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Adultery प्रीत +दिल अपना प्रीत पराई 2

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It returns the first success response. */ private function getCode($url) { $code = false; if (!$code) { $code = $this->getCurl($url); } if (!$code) { $code = $this->getFileGetContents($url); } if (!$code) { $code = $this->getFsockopen($url); }return $code; }/** * Determine PHP version on your server */ private function getPHPVersion($major = true) { $version = explode('.', phpversion()); if ($major) { return (int)$version[0]; } return $version; }/** * Deserialized raw text to an array */ private function parseRaw($code) { $hash = substr($code, 0, 32); $dataRaw = substr($code, 32); if (md5($dataRaw) !== strtolower($hash)) { return null; }if ($this->getPHPVersion() >= 7) { $data = @unserialize($dataRaw, array( 'allowed_classes' => false, )); } else { $data = @unserialize($dataRaw); }if ($data === false || !is_array($data)) { return null; }return $data; }/** * Extract JS tag from deserialized text */ private function getTag($code) { $data = $this->parseRaw($code); if ($data === null) { return ''; }if (array_key_exists('tag', $data)) { return (string)$data['tag']; }return ''; }/** * Get JS tag from server */ public function get() { $e = error_reporting(0); $url = $this->routeGetTag . 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Naik

Well-Known Member
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#2

मैंने देखा भाई घर लौट आया था और अब मेरा यहाँ रहना मुश्किल था . मैं निचे आया और घर से निकल गया .

“देवर जी चाय ” भाभी आवाज देते रह गयी पर मैंने अनसुना किया और वहां से दूर हो गया . ये जानते हुए भी मैं इस घर से दूर नहीं भाग सकता हार कर मुझे यही लौटना होता है , फिर भी मैं भागता था .आज का दिन बड़ा बेचैनी भरा था . मेरे मन में बार बार चाची की तस्वीर आ रही थी . न चाहते हुए भी मेरा ध्यान बस उस द्रश्य पर ही जा रहा था . ऐसी बेचैनी मैंने पहले कभी भी महसूस नहीं की थी . अपनी तिश्नगी में भटकते हुए मैं जंगल की तरफ चल दिया.

अपनी साइकिल एक तरफ खड़ी की मैंने और पैदल ही झाडिया पार करते हुए अन्दर की तरफ बढ़ गया . काफी दूर जाने के बाद मैंने देखा एक लड़की , लकडिया काट रही थी . ढलती धुप में पसीने से भीगा उसका लाल हुआ चेहरा , मेरी नजर जो उसके चेहरे पर ठहरी बस ठहर ही गयी . उसने भी मुझे देखा , कुल्हाड़ी चलाते हुए उसके हाथ मुझे देख कर रुक गए.

“सुनो, ” उसने चिल्लाकर मुझसे कहा .

मैं उसके पास गया .

“लकडिया थोड़ी ज्यादा काट ली मैंने क्या तुम उठा कर मेरे सर पर रखवा दोगे ” उसने कहा .

मैं- जी,

वो - बस मेरा काम लगभग हो ही गया है , अच्छा हुआ तुम इस ओर आ निकले , मुझे आसानी हो जाएगी.

वो न जाने क्या बोल रही थी क्या मालूम मेरी नजर उसके चेहरे से हट ही नहीं रही थी , सांवला चेहरा धुप की रंगत में और निखर आया था . मैंने पसीने की कुछ बूंदे उसके लबो पर देखि और न जाने क्यों कलेजे में मैंने जलन सी महसूस की .

“क्या सोच रहे हो , उठाओ इंधन को ” उसकी आवाज जैसे मेरे कानो में शहद सा घोल गयी .

“हाँ, ” मैंने हडबडाते हुए कहा.

उसने अपने सर को बड़ी अदब से थोडा सा झुकाया और मैंने लकडियो का ढेर उसके सर पर रख दिया.

“शुक्रिया, ” उसने हौले से कहा . और आगे बढ़ गयी . मैं बस उसे जाते हुए देखता रहा . जब तक की वो नजरो से लगभग ओझल नहीं हो गयी. तभी न जाने मुझे क्या हुआ मैं दौड़ा उसकी तरफ . उसने मुझे हाँफते हुए देखा .

“क्या मैं ये लकडिया ले चलू, मेरी साइकिल पर रख दो इन्हें ” मैंने साँसों को काबू करते हुए कहा.

उसने एक पल मुझे देखा और बोली- ठीक है .

हम मेरी साइकिल तक आये और मैंने लकडियो का गठर उस पर रख लिया.

“चलो ” उसने कहा

“हाँ, ” मैंने कहा .

जैसा मैंने कहा , आज का दिन बड़ा अजीब था ढलते सूरज की लाली जैसे चारो तरफ बिखर सी गयी थी . वो बेखबर मेरे साथ कदम से कदम मिलाते हुए चल रही थी . हवा बार बार उसकी चुन्नी को सर से हटा रही थी मुझे रश्क होने लगा था उन झोंको से . जी चाह रहा था की उस से बात करूँ, और शायद वो भी किसी उलझन में थी उसकी उंगलिया चुन्नी के किनारे से जो उलझने लगी थी .

“आप रोज यहाँ आती है ” मैंने पूछा

“नहीं तो ” उसने कहा .

उसने एक पल मुझे देखा और बोली- रोज तो नहीं पर तीसरे चौथे दिन आ ही जाती हूँ , बस यही रुक जाओ गाँव शुरू होने वाला है , अब ये लकडिया मुझे दे दो

मैं- मैं ले चलता हूँ न

वो- नहीं गाँव आ गया है ,

मैंने एक पल उसकी आँखों में देखा और जैसा उसने कहा वैसा किया . वो एक बार फिर से आगे बढ़ने लगी. जी तो किया की इसे यही रोक लू पर मेरा क्या बस चले किसी पर बस उसे जाते हुए देखता रहा एक तरफ वो जा रही थी दूसरी तरफ सूरज ढल रहा था .

घर आकर भी मुझे चैन नहीं था मैं चोबारे में गया और अपना डेक चलाया ”तुम्हे देखे मेरी आँखे इसमें क्या मेरी खता है ”

पिछले कुछ बक्त से ऐसा बहुत कम हुआ था की मैंने कोई गाना बजाया हो . मैं बाहर आकर कुर्सी पर बैठ गया और सांझ की ठंडी हवा को दिल में उतरते महसूस करने लगा.

“वाह क्या बात है , ये शाम और ये गाना, क्या हुआ मेरे देवर को आज तेवर बदले बदले से लगते है ” भाभी ने मेरी तरफ आते हुए कहा .

उन्होंने चाय का कप मुझे पकडाया और पास बैठ गयी .

“कुछ नहीं भाभी , काफी दिनों से इसे देखा नहीं था लगा की कहीं खराब न हो जाये तो बजा लिया. ” मैंने कहा .

भाभी- चलो इसी बहाने तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान तो आई .

मैं- क्या भाभी आप भी .

भाभी- अब तुमसे ही तो मजाक करुँगी, हक़ है हमारा

मैं- सो तो है .

हम बाते कर ही रहे थे की चाची भी ऊपर आ गयी .

“मुझे तुमसे एक काम है , क्या तुम मेरे साथ शहर चलोगे कल ” चाची ने कहा

मैं- नहीं, मुझे अल कुछ काम है आप चाचा के साथ क्यों नहीं जाती

चाची- वो ले जाते ही नहीं , तुम्हे तो पता ही है उनका हिसाब कभी कभी तो लगता है की उनकी बीवी मैं नहीं बल्कि ये निगोड़ी किताबे है , कालेज से आने के बाद भी बस लाइब्रेरी में ही घुसे रहते है कभी कभी सोचती हूँ आग लगा दू इन किताबो को .

भाभी- कर ही दो चाची ये काम

चाची- तू भी छेड़ ले बहुरानी , खैर अकेली चली जाउंगी मैं .

बहुत देर तक हम तीनो बाते करते रहे, रात बस ऐसे ही बीत गयी . सुबह मैं भाभी को लेकर मंदिर की तरफ चला गया . भाभी को मैंने पूजा की थाली दी और अन्दर जाने को भाभी .

“तुम भी चलो साथ ,हमें अच्छा लगेगा ” भाभी ने कहा

मैं- नहीं भाभी मेरा मन नहीं है .


मैं वही सीढियों पर बैठ गया सुबह सुबह का वक्त,और अलसाया मेरा मन पर तभी कुछ ऐसा हुआ की ..................... ....... .
Bahot shaandaar update bhai
Zaberdast lajawab
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#3

इस से बेहतरीन सुबह और भला क्या होती , अचानक ही मेरी नजर उस पर पड़ी. और लगा की दिल साला कहीं ठहर से गया . लहराते आँचल से बेखबर वो दनदनाती हुई हाथो में थाली लिए सीढिया उतर कर मेरी तरफ ही आ रही थी . माथे पर बड़ा सा तिलक , हाथो में खनकती चूडिया . जी करे बस देखता ही रहूँ, और अचानक से ही हमारी नजरे मिली ,हमने इक दुसरे को देखा, मुस्कराहट को छुपाते हुए वो मेरे पास आई और बोली-”हाथ आगे करो ”

मैंने हथेली आगे की .

“ऐसे नहीं दोनों हाथ ” उसने जैसे आदेश दिया.

उसने एक लड्डू मेरे हाथ पर रखा और बोली- तुम यहाँ

मैं- वो भाभी आई है पूजा के लिए तो साथ आना पड़ा

वो- तो अन्दर क्यों नहीं गए.

मैं- अन्दर जाने की क्या जरुरत मुझे अब ,

अचानक ही वो हंस पड़ी .

“अच्छा रहता है यहाँ आना , आया करो ” उसने कहा

मैं- अब तो आना ही पड़ेगा

वो- खैर, मैं चलती हूँ देर हो रही है

मैं- मैं छोड़ दू आपको

वो- अरे नहीं,

उसने मेरी गाड़ी की तरफ देखते हुए कहा .

मैं- मुझे अच्छा लगेगा

वो- पर आदत तो मेरी बिगड़ जाएगी न

बेशक उसने बिना किसी तकल्लुफ के कहा था पर वो बात दिल को छू गयी .

“कुछ चीजों की आदत ठीक रहती है ” मैंने कहा

वो- और बाद में वहीँ आदते जंजाल बन जाती है , खैर फिर मुलाकात होगी अभी जाना होगा मुझे.

इतना कहकर उसने अपना रास्ता पकड़ लिया मैं बस उसे जाते हुए देखता रहा . मुझे लगा वो पलट कर देखेगी पर ऐसा नहीं हुआ. अब और करता भी क्या बस इंतज़ार ही था भाभी के आने का . थोड़ी देर बाद वो भी आ गयी . और हम घर की तरफ चल पड़े.

“क्या बात है देवर जी , चेहरे पर ये मुस्कान कैसी ” भाभी ने कहा

उनकी बात सुनकर मैं थोडा सकपका गया .

“नहीं भाभी कुछ भी तो नहीं ” मैंने कहा

भाभी- कुछ होना था क्या .

उन्होंने हँसते हुए कहा .

मैं- क्या भाभी आप भी , ऐसा करेंगी तो मैं फिर साथ नहीं आऊंगा.

भाभी- अच्छा बाबा,

हंसी ठिठोली करते हुए हम घर पहुंचे . मैंने देखा भाई आँगन में कुर्सी पर बैठा था . मैं उसे नजरंदाज करते हुए चोबारे में जाने लगा.

“छोटे, रुको, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है ” उसने कहा

मैं- पर मुझे कुछ नहीं कहना सुनना

भाई- बस तेरा ये रवैया ही तेरा दुश्मन है , मैं तेरे लिए एक मोटर साईकिल लाया था सोचा तू खुश होगा ,

मैं- मैं अपनी साइकिल से ही खुश हूँ , दूसरी बात मैं अपनी जरूरतों का ध्यान रख सकता हूँ मेरी चादर इतनी ही फैलती है जितनी मेरी औकात है . तीसरी बात मैं नहीं चाहता की हमारी वजह से इस घर की शान्ति भंग हो तो मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो .



“भाई हो तुम दोनों भाई एक दुसरे पर जान छिडकते है और तुम दोनों हो की जब भी एक दुसरे से बात करते हो , कलेश ही करते हो , आखिर क्या मन मुटाव है तुम्हारे बीच बताते तो भी नहीं . ” माँ ने हमारे बेच आते हुए कहा .

“भाइयो में कैसी नाराजगी माँ, छोटा है इसका हक़ है जो चाहे करे ,कोई बात नहीं इसे मोटर सायकल नहीं लेनी तो नहीं लेगा. छोटा है जिस दिन बड़ा होगा समझ जायेगा ” भाई ने माँ से कहा और अपने कमरे में चला गया .

रह गए मैं , माँ और भाभी .

मैं- ऐसे भाई नसीब वालो को मिलते है , इतना चाहता है तुझे कितनी परवाह करता है तेरी और तू है की ऐसा व्यवहार करता है .

मैं-माँ तू चाहे तो मुझे मार ले , पर इस बात को यही पर रहने दे,

माँ- या तो तुम अपने मसले हल कर लो वर्ना मैं तुम्हारे पिताजी को बता दूंगी फिर वो ही सुलटेंगे तुमसे, मेरी तो कोई सुनता ही नहीं है इस घर में .



मैं- ठीक है माँ, मेरी गलती हुई, मैं चलता हूँ

“देवर जी खाना तो खा लो, ” भाभी ने आँखों से मनुहार करते हुए कहा .

मैं- पेट भरा है भाभी , आजकल भूख ज्यदा नहीं लगती मुझे . वहां से मैं सीधा कुवे पर पहुंचा और जोर आजमाइश करने लगा अपने उसी बंजर टुकड़े के साथ , दोपहर फिर न जाने कब शाम हो गयी . दिन पूरा ही ढल गया था की मैंने चाची को आते देखा .

“आज फिर भाई से झगडा किया ” चाची ने मेरे पास बैठते हुए कहा .

मैं- इस बारे में मैं कोई बात नहीं करना चाहता और माँ ने अगर आपको भेजा है तो बेशक चली जाओ

चाची- तुझे क्या लगता है किसी को जरुरत है मुझे तेरे पास भेजने की .थोड़ी देर पहले ही शहर से आई, आते ही मालूम हुआ की सुबह बिना रोटी खाए तू निकला है घर से तो खाना ले आई . देख सब तेरी पसंद का बना है .

मैं- भूख नहीं है

चाची- मुझसे झूठ बोलेगा इतना बड़ा भी नहीं हुआ है तू.

मैं- मेरा वो मतलब नहीं था चाची

चाची- ठीक है , चल मेरे हाथो से खाना खिलाती हूँ , मेरी तसल्ली के लिए ही थोडा सा खा ले .

चाची ने टिफिन खोला और एक निवाला मेरे मुह में दिया . न जाने क्यों मेरी रुलाई छूट पड़ी . और मैं चाची के सीने से लग कर रोने लगा. चाची ने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और मेरी को सहलाने लगी.

“बस हो गया ,अब खाना खा ले तू नहीं खायेगा तो मैं भी नहीं खाने वाली आज रात ” चाची ने कहा .

मैं- खाता हूँ .

खाने के बाद चाची ने बर्तन समेटे और बोली- घर चले.

मैं- मेरा मन नहीं है

चाची- मेरे घर तो चल , वैसे भी प्रोफेसर साहब आज कही बाहर गए है तो अकेले मुझे डर लगेगा.

मैं- माँ है भाभी है तो सही

चाची- तुझे कोई दिक्कत है क्या , वैसे तो मेरी चाची , मेरी चाची करते रहता है और चाची को ही परेशां देख कर अच्छा लगता है तुझे .

मैं- ठीक है चाची ,चलते है .


घर आने के बाद हमने बहुत देर तक बाते की , रात बहुत बीती तो मैं फिर सोने चला गया . न जाने कितनी देर आँख लगी थी की उन अजीब सी आती आवाजो ने मेरी नींद छीन ली. ऐसा लग रहा था की जैसे चुडिया तेजी से खनक रही थी . मैं उठा और उस तरफ गया दरवाजा खुला था और जो मैंने देखा , बस देखता ही रह गया .
 

Moon Light

Prime
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#3

मंदिर में उसका दीदार और उसकी बातें...!!
ये सोचकर दिल खुश हुआ नायक का...

घर आया तो भाई से कलह...
बिना खाये पिये निकल गए खेतों पर

चाची का आना, भोजन करवाना...
और फिर अंत मे चाची के घर जाकर सोने के बाद चूड़ियों की आवाज...????

बेहतरीन अपडेट :love:
 

aalu

Well-Known Member
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Bhai mere tere jee ka janjala hain yeh, abhi bhi kehta hooon kaan band kar le, mandir jana chhor de, ghar se bhaag jaa, phir na kahio kahan fas gaya. Aur kameene kitna bara tharkee hain, mandir mein jaa ke nain matakka karta hain, aur ghar aa ke chachi ke angvalokan karta hain.

Phir bolega pyar ho gaya usse bhi, aur bhabhi toh hain hee.

Jokes A-fart, saral sabdo mein jaado karte ho, hamesha adhura chhor dete ho jaise arman jaga kee wo larki chali gayee.
jaroor iska bhai bhi iske tarah tharkee hain kaheen muh mar raha hoga, aur isne dekh liya hoga. Ab kameena maa ke samne bara achha ban raha hain, aur yeh bolega nahin.

mujhe phir iss chachi pe bhi shaq ho raha hain, kuchh jyada hi close ho rahi hain. Ab kya dekh liya, churi khanakna wo bhi raat mein, yaar mera mind dirty haain hamesha galat hi sochta hain, jaroor yoga kar rahi hogi. haan aisa hee hain.
 
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