#3
इस से बेहतरीन सुबह और भला क्या होती , अचानक ही मेरी नजर उस पर पड़ी. और लगा की दिल साला कहीं ठहर से गया . लहराते आँचल से बेखबर वो दनदनाती हुई हाथो में थाली लिए सीढिया उतर कर मेरी तरफ ही आ रही थी . माथे पर बड़ा सा तिलक , हाथो में खनकती चूडिया . जी करे बस देखता ही रहूँ, और अचानक से ही हमारी नजरे मिली ,हमने इक दुसरे को देखा, मुस्कराहट को छुपाते हुए वो मेरे पास आई और बोली-”हाथ आगे करो ”
मैंने हथेली आगे की .
“ऐसे नहीं दोनों हाथ ” उसने जैसे आदेश दिया.
उसने एक लड्डू मेरे हाथ पर रखा और बोली- तुम यहाँ
मैं- वो भाभी आई है पूजा के लिए तो साथ आना पड़ा
वो- तो अन्दर क्यों नहीं गए.
मैं- अन्दर जाने की क्या जरुरत मुझे अब ,
अचानक ही वो हंस पड़ी .
“अच्छा रहता है यहाँ आना , आया करो ” उसने कहा
मैं- अब तो आना ही पड़ेगा
वो- खैर, मैं चलती हूँ देर हो रही है
मैं- मैं छोड़ दू आपको
वो- अरे नहीं,
उसने मेरी गाड़ी की तरफ देखते हुए कहा .
मैं- मुझे अच्छा लगेगा
वो- पर आदत तो मेरी बिगड़ जाएगी न
बेशक उसने बिना किसी तकल्लुफ के कहा था पर वो बात दिल को छू गयी .
“कुछ चीजों की आदत ठीक रहती है ” मैंने कहा
वो- और बाद में वहीँ आदते जंजाल बन जाती है , खैर फिर मुलाकात होगी अभी जाना होगा मुझे.
इतना कहकर उसने अपना रास्ता पकड़ लिया मैं बस उसे जाते हुए देखता रहा . मुझे लगा वो पलट कर देखेगी पर ऐसा नहीं हुआ. अब और करता भी क्या बस इंतज़ार ही था भाभी के आने का . थोड़ी देर बाद वो भी आ गयी . और हम घर की तरफ चल पड़े.
“क्या बात है देवर जी , चेहरे पर ये मुस्कान कैसी ” भाभी ने कहा
उनकी बात सुनकर मैं थोडा सकपका गया .
“नहीं भाभी कुछ भी तो नहीं ” मैंने कहा
भाभी- कुछ होना था क्या .
उन्होंने हँसते हुए कहा .
मैं- क्या भाभी आप भी , ऐसा करेंगी तो मैं फिर साथ नहीं आऊंगा.
भाभी- अच्छा बाबा,
हंसी ठिठोली करते हुए हम घर पहुंचे . मैंने देखा भाई आँगन में कुर्सी पर बैठा था . मैं उसे नजरंदाज करते हुए चोबारे में जाने लगा.
“छोटे, रुको, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है ” उसने कहा
मैं- पर मुझे कुछ नहीं कहना सुनना
भाई- बस तेरा ये रवैया ही तेरा दुश्मन है , मैं तेरे लिए एक मोटर साईकिल लाया था सोचा तू खुश होगा ,
मैं- मैं अपनी साइकिल से ही खुश हूँ , दूसरी बात मैं अपनी जरूरतों का ध्यान रख सकता हूँ मेरी चादर इतनी ही फैलती है जितनी मेरी औकात है . तीसरी बात मैं नहीं चाहता की हमारी वजह से इस घर की शान्ति भंग हो तो मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो .
“भाई हो तुम दोनों भाई एक दुसरे पर जान छिडकते है और तुम दोनों हो की जब भी एक दुसरे से बात करते हो , कलेश ही करते हो , आखिर क्या मन मुटाव है तुम्हारे बीच बताते तो भी नहीं . ” माँ ने हमारे बेच आते हुए कहा .
“भाइयो में कैसी नाराजगी माँ, छोटा है इसका हक़ है जो चाहे करे ,कोई बात नहीं इसे मोटर सायकल नहीं लेनी तो नहीं लेगा. छोटा है जिस दिन बड़ा होगा समझ जायेगा ” भाई ने माँ से कहा और अपने कमरे में चला गया .
रह गए मैं , माँ और भाभी .
मैं- ऐसे भाई नसीब वालो को मिलते है , इतना चाहता है तुझे कितनी परवाह करता है तेरी और तू है की ऐसा व्यवहार करता है .
मैं-माँ तू चाहे तो मुझे मार ले , पर इस बात को यही पर रहने दे,
माँ- या तो तुम अपने मसले हल कर लो वर्ना मैं तुम्हारे पिताजी को बता दूंगी फिर वो ही सुलटेंगे तुमसे, मेरी तो कोई सुनता ही नहीं है इस घर में .
मैं- ठीक है माँ, मेरी गलती हुई, मैं चलता हूँ
“देवर जी खाना तो खा लो, ” भाभी ने आँखों से मनुहार करते हुए कहा .
मैं- पेट भरा है भाभी , आजकल भूख ज्यदा नहीं लगती मुझे . वहां से मैं सीधा कुवे पर पहुंचा और जोर आजमाइश करने लगा अपने उसी बंजर टुकड़े के साथ , दोपहर फिर न जाने कब शाम हो गयी . दिन पूरा ही ढल गया था की मैंने चाची को आते देखा .
“आज फिर भाई से झगडा किया ” चाची ने मेरे पास बैठते हुए कहा .
मैं- इस बारे में मैं कोई बात नहीं करना चाहता और माँ ने अगर आपको भेजा है तो बेशक चली जाओ
चाची- तुझे क्या लगता है किसी को जरुरत है मुझे तेरे पास भेजने की .थोड़ी देर पहले ही शहर से आई, आते ही मालूम हुआ की सुबह बिना रोटी खाए तू निकला है घर से तो खाना ले आई . देख सब तेरी पसंद का बना है .
मैं- भूख नहीं है
चाची- मुझसे झूठ बोलेगा इतना बड़ा भी नहीं हुआ है तू.
मैं- मेरा वो मतलब नहीं था चाची
चाची- ठीक है , चल मेरे हाथो से खाना खिलाती हूँ , मेरी तसल्ली के लिए ही थोडा सा खा ले .
चाची ने टिफिन खोला और एक निवाला मेरे मुह में दिया . न जाने क्यों मेरी रुलाई छूट पड़ी . और मैं चाची के सीने से लग कर रोने लगा. चाची ने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और मेरी को सहलाने लगी.
“बस हो गया ,अब खाना खा ले तू नहीं खायेगा तो मैं भी नहीं खाने वाली आज रात ” चाची ने कहा .
मैं- खाता हूँ .
खाने के बाद चाची ने बर्तन समेटे और बोली- घर चले.
मैं- मेरा मन नहीं है
चाची- मेरे घर तो चल , वैसे भी प्रोफेसर साहब आज कही बाहर गए है तो अकेले मुझे डर लगेगा.
मैं- माँ है भाभी है तो सही
चाची- तुझे कोई दिक्कत है क्या , वैसे तो मेरी चाची , मेरी चाची करते रहता है और चाची को ही परेशां देख कर अच्छा लगता है तुझे .
मैं- ठीक है चाची ,चलते है .
घर आने के बाद हमने बहुत देर तक बाते की , रात बहुत बीती तो मैं फिर सोने चला गया . न जाने कितनी देर आँख लगी थी की उन अजीब सी आती आवाजो ने मेरी नींद छीन ली. ऐसा लग रहा था की जैसे चुडिया तेजी से खनक रही थी . मैं उठा और उस तरफ गया दरवाजा खुला था और जो मैंने देखा , बस देखता ही रह गया .