बस ऐसे ही कुछ छोटी-मोटी आदतें थी जो हमें करीब ले आई, नहीं तो अर्श की फर्श से बेमेल जुगलबंदी का सबक न जाने कितनी दफा शिवानी ने सिखा दिया था मुझे.
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अगले दिन की हमारी शुरूआत हुई पहले साइकिलिंग और फिर हाइकिंग करते हुए उदयपुर के बाहर हिलटाॅप पर बने एक मंदिर में मत्था टेकने से. शहर की भाग-दौड़ और शोर शराबे वाली जिंदगी से दूर शांत वातावरण में अरावली टाॅप से उगते सूरज की लालिमा में लिपटे पूरे उदयपुर शहर का लैंडस्केप व्यू साक्षात स्वर्ग से कम नहीं था.
उम्मीद नहीं थी रोज़दा के संग दिन की शुरुआत ऐसे भी हो सकती है. मेरा मतलब, बंद कमरों में मंहगी मशीनों के बीच एक्सरसाइज फ्लांट करने वालों का, खुले आसमान के तले ग्रामीण आंचल में पसीना बहाना अमूमन रिग्रेसिव कैटेगरी में आता था मगर मैडम इतनी भी बुरी नहीं थी.
" मुझे लगा था इसमें ब्रेकफास्ट होगा " मैड़म के बैकपैक से कुछ खाने की जगह कैमरा निकलते देख मेरा चेहरा उतर गया, मगर उसे मेरी भूख से ज्यादा अपने फोटोज निकालने की फिक्र थी और हद तो तब हुई जब उस कैमरे का अगला निशाना मैं बना.
" चेहरा क्यूं छुपा रहे हो? ओके, साॅरी " हंसते हुए दूसरे बैग से बेंटोबाक्स निकालते हुए उसने बताया गोल्डन ऑवर में कुछ फोटोग्राफ्स चाहिये थी उसे, जो यहां पहुंचने के ठीक बाद शुरू हुआ था और ज्यादा से ज्यादा दस मिनट्स तक ठहरता.
रोज़दा की गोल्डन-ऑवर फोटोग्राफी से ज्यादा दिलचस्पी मुझे तीन खाने वाले उसके बेंटो-बाक्स में थी. यह वैसा ही था जब फिफ्थ में आने पर माॅम ने मुझे दिलाया, और उसके बाद से हमेशा मेरे पास रहा.
" क्या सोच रहे हो? जगह पसंद नहीं आई? " वेज सैंडविच और shaker cum sipper बाॅटल पकडा़ते हुए रोज़दा ने पूछा.
कम्प्रैशन टाइट फुल स्लीव टी-शर्ट और पैंट में उसकी बाॅडी का हर कर्व मेरा ध्यान भटका रहा था. हालांकि उसके साथ मेरा जुड़ाव मानसिक तौर पर ज्यादा था मगर मैं भी तो एक इंसान ही था. पागल बना रहा था मुझे पसीने में तर उसका लरजता सुतवां जिस्म, जो शायद ठंडी हवा और थकान की वजह से वाइब्रेट हो रहा था.
हाथ पकड़ कर मैंने उसे मेरे साथ बैठने के लिए बोला और शायद वो भी मेरे दिल की बात समझ गई. अब मेरी बाॅडी के राइट साइड का हिस्सा, उसके कंधे से लेकर थाइज़ को अच्छे से महसूस कर रहा था. अलग तरह का करंंट बह रहा था अब हमारे बीच, और बिना जुबान हिलाए एक दूसरे को समझ रहे थे हम. उसके जिस्म से निकलती लाइम-लेवैंडर की महक, लेफ्ट थाइज और डेवलप्ड ब्रेस्ट का साॅफ्ट टच, बहती हवा के साथ खेल रहे साफ्ट-सिल्की बाल और गर्म सांसों के साथ दौड़ लगाती उसकी धड़कनें, कभी न भूलने वाला अकल्पनीय बेहतरीन अहसास था यह.
आने-जाने वाले लोगों की आवाज़ पर हम थोडे़ अलग हुए और घर आने तक हमारे बीच कोई बात नहीं हुई. नहाने के बाद मैं किचिन में आ गया क्यूंकि आज मेरी बारी थी उसके लिए कुछ अच्छा बनाने की. सब्जियां चाॅप करने और प्यूरी बनाने के बाद मैंने जिमीकन्द-पनीर के टुकड़ों को डीपफ्राई किया और पेन से एक्सेस आईल निकालकर दाल को चढा़ दिया.
तकरीबन एक घंटे बाद अपने पास जिमीकन्द-पनीर बेस्ड मिक्स वेज, दाल-मखनी, बूंदी रायता, खीर और सलाद के साथ चपातियां बनने के लिए तैयार थीं. हाथ-मुॅंह धुलने के बाद इंतजार करने पर रोज़दा बाहर नहीं आई तो मैं उसके कमरे में गया. अपने लैपटाप पर वो कुछ काम कर रही थी इसलिए बिना डिस्टर्ब किये वापस लौटने लगा मगर अगले ही पल उसने मुझे रोक लिया, " इरीन और साइदा हैं, बात करोगे उनसे? "
समझ नहीं आया यह उसकी रिक्वेस्ट थी या आर्डर. स्क्रीन का रुख मेरी तरफ कर वो बाहर चली गई और न चाहते हुए भी मुझे उन्हें झेलना पडा़. हमारा देश और धर्म बेशक इनसे अलग थे मगर रिश्तों में कोई फर्क नहीं था. अनफोर्चूनेटली, मुझे मजा़क करना नहीं आता था और वो दोनों कोई मौका छोड़ नहीं रहीं थीं.
कांफ्रेंस डिस्कनेक्ट होने के बाद मेरी नज़र मीडिया प्लेयर पर गई, और ना चाहते हुए भी मेरे सामने उबेश्र्वर टाॅप का नजारा नुमायां होने लगा. जज्बात फिर से भड़कने लगे थे उस वीडियो में रोज़दा को देखकर. उम्मीद नहीं की थी मैंने हमारे बीच का वो यादगार लम्हा इस तरह कैमरे में कैद हो जाएगा.
सीप में छुपे मोती की तरह दिखती उसकी आंखें, चेहरे पर ओस की बूंदों की तरह जमा उसका पसीना और सांसों के साथ बदलते अंदरूनी खयाल सबूत थे कि हम एक कश्ती के ही सवार हैं. अब मेरा मन नहीं था इस खयाल से बाहर आने का मगर फिर याद आया कि रोज़दा भी मेरा इंतजार कर रही होगी.
" और भी है कुछ वाॅश कराने के लिए? " मेरे कपड़े दिखाते हुए रोज़दा ने पूछा.
" पहली बार तो नहीं कर रही हो? " गर्दन हिलाते हुए मैंने उसे उसका जवाब दिया मगर वो बिना कुछ बोले ही चली गई.
करण की काॅल आ रही थी, वो एक्सपैक्ट कर रहा था मेरा गुरुग्राम आना. मैंने उसे बता दिया उदयपुर हूं और होली से पहले मेरा वहां होना पाॅसिबल नहीं. उसको अंदाजा हो गया कि मैं बच रहा हूॅं, क्यूंकि होली आने में तीन सप्ताह थे और किसी भी कीमत पर पखवाड़े के अंदर एक बार तो मेरा घर जाना होता ही था.
उसके सवालों से बचने के लिए मैंने काम और डिपार्टमेंटल खींचतान का बहाना बनाया मगर वो भी नहीं चला क्यूंकि वो जानता था अकादमी में मेरी हैसियत सिर्फ रबर स्टाम्प जितनी है. बहरहाल, मेरे इंसिस्ट करने पर वो मान तो गया पर उसकी अगली शर्त ने मुझे खजूर से उठा कर आसमान में लटका दिया.
" अपने यहां इसे अगर कस्टर्ड पाउडर के साथ कुक करने के बाद बेक कर दें तो यह बन जाती है 'फ़रन-श़टलच़' और अब मुझे पूक्का यकीन है कि तुम्हें सरकारी कुक शायद ही पसंद हो "
रोज़दा के हाथ में बाउल देख कर मैं समझ गया वो खीर के बारे में बात कर रही है क्यूंकि कस्टर्ड का इस्तेमाल डैजर्ट्स के अलावा मैंने सब्जियों में तो सुना नहीं था. खैर, बला की खूबसूरत दिख रही थी आज वो पिंक कुर्ते और ब्लैक जींस में. और इससे भी ज्यादा अच्छे लगते थे मुझे एक रबर-बैंड में बंधे उसके वो घने रेशमी बाल जो उसकी गर्दन की हल्की जुम्बिश पर हवा में खेलने लगते.
" चलो ना मेरे साथ जयपुर.... मत करो शादी, तब तक हम लिव-इन में तो रह सकते हैं ना? जानता हूॅं मेरे से गलती हुई है मगर क्या गारंटी है रिटायर होने तक पोस्टिंग उदयपुर ही रहेगी? मैं वायदा कर रहा हूॅं रोज़दा, हम आते रहेंगे अंकल के पास. और नहीं खरीद रहा मैं अपने लिए घर कहीं, जहां तुम ही नहीं, वो घर कैसे हो सकता है मेरे लिए "
" तुम्हारे साथ जहन्नुम में भी रहने के लिए तैयार हूॅं मैं मगर यह तुम हो जिसे मेरे संग नहीं रहना " रोज़दा ने खड़े होते हुए बोला और किचिन की तरफ चल दी.
" तुम पागल तो.... " और फिर अचानक से मुझे रोज़दा की बात का मतलब समझ आ गया.
वो अपनी जगह बहुत सही थी. दरअसल दिक्कत उसे नहीं मुझे थी, उसे जबरदस्ती अपने साथ रखने की, और मैं खुद दुनिया के डर से उसके संग रहने से डरता. बातें अब समझ आने लगी थी मुझे, इससे पहले कि मेरे से कोई और गलती हो मुझे सब-कुछ आर्डर में करना था.
" मार्निंग समर " काॅल आन्सर होने पर रोज़दा के डैड ने विश किया
" आप शाम तक वापस आ रहे हैं अंकल " मैंने उनसे रिक्वेस्ट किया.
" क्यूॅं? कुछ हुआ है क्या? अभी एक घंटे पहले ही तो एन से बात हुई है मेरी "
" नहीं... सब सही है... बस चाहता हूॅं आप यहां हों... फोन पर समझा नहीं सकता "
काॅल डिस्कनैक्ट कर मैं सोचने लगा कि गुरूग्राम से वापस आने के बाद कितना सेल्फिश बन गया था मैं. तरस आ रहा था मुझे अपनी समझ पर और घिन आ रही थी अपने आप से. कैसे मजबूर कर सकता था मैं उस शख्श को जिसने हर वक्त, हर मोड़ पर मेरे माॅं-बाप से ज्यादा मेरा साथ दिया.
अगले कुछ घंटे रोज़दा की गाडी़ में मैं जिंदा लाश की तरह रहा और मुझे मोक्ष मिला राजौरिया अंकल से गले लगकर. पिट्सबर्ग से आने के बाद ये दूसरा मौका था जब मुझे लगा कि मेरा पुनर्जन्म हुआ है क्यूंकि सैल्फसेंटर्ड बनकर न जाने कितनी बार अपनी गैरत का कत्ल किया था मैंने.
खैर, रोज़दा को लेकर घर में जश्न जैसा माहौल था क्यूंकि उसकी वजह से काफी दिनों बाद इस घर में खुशियां आईं थीं. सबकी तवज्जो थी उसकी तरफ और मुझे अंदाजा था अगले कुछ मिनिट्स बाद वो चिढ़ने लगेगी मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं. वो आंटी और माॅम के साथ पुरानी फोटोज देख रही थी और हम सब उसको.
" अब कैसा फील कर रहे हो? " फोन काॅल आनस्वर करने पर रोज़दा के डैड का यह पहला सवाल था.
" बहुत अच्छा... विश आई कुंड बी देयर टू थैंक्स यू "
" वैल, उससे ज्यादा मुझे खुशी होगी तुम्हारी एक्सेप्शनल सब्जी की रेसिपी जानकर. यकीन मानना, खाना सच में बेमिसाल है "
" बेमिसाल और एक्सेप्शनल से एक इंपार्टेट बात याद आई अंकल.. लकी चार्म है रोज़दा मेरे लिए. जबसे वो जिंदगी में आई है, जिंदगी बदल गई है मेरी. दुश्मन भी दोस्त बन गये हैं मेरे और इसकी सबसे बडी़ मिसाल मेरी एक्स है "
" यू गोट हर माई सन. शी इज़ आल यूअर्स फ्राम नाउ. टेक गुड केयर ऑफ हर एंड युअरसेल्फ. मे अल्लाह कीप बॉथ ऑफ यू सेफ एंड ब्लैस्ड फाॅरएवर "
काॅल डिस्कनैक्ट होने के बाद अंकल की वो आखिरी लाइन मेरे इयर-ड्रम से लेकर दिमाग के अंदर अभी तक गूंज रहीं थी. हवाओं में था मैं क्यूंकि उनकी रहमत को तुरंत महसूस कर पा रहा था. सोच लिया था आगे से मेरी उदयपुर ट्रिप में उबेश्वर मंदिर दर्शन जरूर शामिल होगा, और कोशिश होगी आज की तरह साइकिलिंग और हाइकिंग करते वहां पहुंच कर अपना मत्था टेकने की.
" ब्लैक, वाइट, एक्वामरीन, खाकी, ऑलिव, पेस्टल ग्रीन, ब्लू, पिंक और वाइन. और इसमें से अगर पिंक और वाइन निकाल दें तो रोज़दा बन जाती है समर का काउब्वाय वैरिएंट? "
रेणु आंटी के दिल से निकली इस बात का मतलब वहां बैठा हर शख्स जानता था सिवाय रोज़दा के. उनका यह तंज मेरे लिये था, जो अमूमन साल में तीन-चार बार से ज्यादा सुनने को नहीं मिलता. मेरी समझ से यह उनकी झिड़क होती थी अपने उस गुस्से को जाहिर करने की जो एक माॅं का अपनी औलाद के खोने पर होता है. क्यूंकि कहीं ना कहीं मेरे दब्बू पन को वो इसका जिम्मेदार मानती थीं.
खाना खाने के बाद मैं करण से मिलने निकल गया. उसकी माॅम का रुख इस बार भी पहले के जैसा था जिसको पहली फुरसत में मैंने नज़र अंदाज़ कर दिया. उसे बाहर जाना था मेरे साथ, शायद किसी पब में मगर मेरे इंसिस्ट करने पर वो मान गया. कुछ देर के बाद उसके टैरिस गार्डन में हम एक ऐसी अमेरिकन व्हिस्की सिप कर रहे थे जिसका नाम फ्रैंच था.
" सोचा नहीं था हम कभी दोस्त बनेंगे.... मेरा मतलब बहुत काॅम्पलिकेटिड रहा है हमारा रिश्ता. एप्रीशिएट करता हूं कि तुम शिवानी के साथ रहे, नहीं तो वो सच में मुझे तबाह कर देती "
" समर, दोस्त तो हम शुरू से थे मगर उम्मीद नहीं थी आज हमारे बीच इस बारे में बात होगी. शिवानी को तुमसे ज्यादा कोई नहीं जानता इसलिए हम इस टाॅपिक पर बात ना ही करें तो बेहतर है ", करण क्लीयर था कि अब मतलब नहीं रहा पहले जो हुआ उसको डिस्कस करने का क्यूंकि आठ साल पहले जो हुआ वो उसके कंट्रोल में तो बिल्कुल भी न था.
" सहमत हूं करण... पर मेरी जिंदगी बड़ा हिस्सा Rayleigh Scattering, Fabry Perot, Quantisation, Quantum theory of lights और Electromegnetic spectrum को पढने में गुजरा है. शायद इसीलिए तुम्हारी ये सिंगल-डबल माल्ट व्हिस्की, बियर, बर्बन, वोद्का, वरमाउथ और केम्पारी सिर्फ और सिर्फ अल्कोहाॅलिक बेवरेज हैं मेरे लिए, जिसे हम सीधे और साफ शब्दों में शराब बोलते हैं "
" सच बोलती है शिवानी, ईवन अब तो मैं भी यकीन करने लगा हूं कि तुम कितने बड़े खुदगर्ज हो. खैर इतना तो तुम भी जानते हो कि शिवानी और तुम्हारा रिश्ता कितना डेलीकेट रहा है. तुम्हें आज भी उतनी ही नफरत करती है वो पर इस कीमत पर नहीं कि जान चली जाए. हां, एक बात और, बेवरेज पर मेरा ये ज्ञान शो-ऑफ के लिए नहीं था इसलिए, इससे पहले कि मेरा गुस्सा मुझ पर हावी हो बेहतर होगा कि तुम यहां से चले जाओ "