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Romance फख्त इक ख्वाहिश

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अब मेरे पास करण जैसा पक्का दोस्त, परेशानी रहित अच्छी जिंदगी, ना चाहते हुए भी गुरुग्राम का ये घर और राजौरिया अंकल की ताउम्र जिम्मेदारी थी, जो इस इंटरव्यू करने के एवज में उन दोनों ने जबरदस्ती मुझ पर थोपी.


***************


अगले दिन मैं और रोज़दा दिल्ली और मेरठ के बीच बहती गंग नहर के बेड पर ताजा गुड़(jaggery) खा रहे थे. हमारा इधर आने का मकसद था डैड के दोस्त की फसल के लिए दवाईयां देना और उनसे देशी सिरका लेना. मगर उनके फार्म-हाउस के बराबर से आने वाली एक मीठी सुगंध ने हमें यहां तक पहुंचा दिया. यह बिजली से चलनी वाली एक मिडिल साइज गन्ने की मिल थी जिससे जूस निकाल कर यहां फ्लेवर वाला गुड़ बनाया जा रहा था, और इस प्रोसेस में निकलने वाली खुशबू यहां दूर दूर तक फैल रही थी. हालांकि इस गांव में मेरी ये शायद दूसरी विजिट थी मगर अदरक-मूंगफली मिक्स ताजे गुड़ का टेस्ट मैंने पहली बार किया.


रोज़दा को नहर मे स्विमिंग करनी थी मगर प्राइवसी और टाइम की कमी ने हमें वापस लौटने पर मजबूर कर दिया. आज शाम करण के यहां हमारी दावत थी मगर मैडम का दिमाग अभी भी गंगनहर की स्विमिंग और उस फ्लेवर्ड गुड़ को एक सही बाजार दिलाने पर अटका था. दिल्ली पहुंचने से पहले माॅम से आदेश मिला चांदनी चौक से काॅटन और सिल्क की साडियां लाने का और फिर मैड़म के जेहन से गंगनहर का तिलिस्म गायब था. ये तो तब था जब उसे साडियों के बारे में क, ख, ग नहीं आता था मगर माॅम की शागिर्दगी में उसे अब यह सब सीखना तो बनता ही था.


शादी से पहले बीवी का ध्यान बंटाने के नुस्खे तो मुझे मिल रहे थी मुझे, मगर इनके साथ दिक्कत यह थी कि वो मेरी जेब पर भारी पड़ते. खरीददारी खत्म होने के बाद अगली मुश्किल थी सामान को पार्किंग तक पहुंचाने की, और वहां की भीड़-भाड़ को देख मेरी रीसेंटली इंजर्ड कलाई और कंधे पहले से ही रोने लगे थे. आखिरकार डेढ़ घंटे के बाद साडियां और अन्य कपडे़ सलैक्ट कर माॅम ने विडियो काॅलिंग बंद की, और उसके बाद हमारा काम शाॅप ओनर ने मिनटों में करा दिया. बेस्ट पार्ट था कि रोज़दा कच्ची खिलाडी थी इसलिए मॉम ने उसे बख्श दिया, एल्स अब तक वो हमें 17 आउटलेट्स के चक्कर लगाने के बाद 18 वें में टहला रही होती.


लौटते वक्त पूरे टाइम वो साइदा के साथ फोन पर थी, कुर्दिश नहीं आती थी मुझे पर 'लहंगा' वो एक लफ्ज था जो बार बार रिपीट हो रहा था, दूसरा साडी़, तीसरा चांदनी चौक और लास्ट था गेंजी़स मतलब गंगा. खैर, घर आने पर आंटी का रोज़दा से पहला सवाल था कि अपनी तरफ से मैंने क्या दिलाया है उसे तो जवाब में उसने खुद को आगे कर दिया. सवाल यह नहीं था कि मैंने आज क्या दिलाया उसे, मगर फिलहाल जो सांगानेरी कुर्ता उसने पहना हुआ था, वो भी तो कभी मैंने ही उसे दिलाया था.


खाना खाने के बाद कोई 30-40 मिनिट्स की नैप लिया होगा मैंने कि अचानक मुझे रूम में किसी के होने का अहसास हुआ. साइड बदल कर देखा तो बाथरूम का दरवाजा खुला हुआ था और वहां से किसी के सिसकने की आवाज़ आ रही थी. इसके कुछ सैकिंड्स बाद रोज़दा का नाम दिमाग में क्लिक हुआ और फिर मैं सुपरमेन की फुर्ती से बाथरूम के अंदर था और वो मेरी बाजुओं में. अंदाजा नहीं था क्या वजह रही उसके इस हाल में यहां होने की पर मेरे दिमाग की सूई दो जगह अटक रही थी.


पहली, मेरी खुद की माॅं. थोडा़ सा भी भरोसा नहीं था मुझे उन पर क्यूंकि वो थी ही इतनी लापरवाह कि अपने मजे के लिए किसी को भी अफेंड कर सकती थी. और दूसरा, वो मिस कर रही थी अपने डैड को, मगर‌ फिर मुझे लगा मेरे दोनों ही अंदाजे गलत हैं. यह भी तो हो सकता था वो अपनी माॅम को मिस कर रही हो, क्यूंकि मेरी माॅं तो बेसब्री से इंतजार कर रही थी अपनी होने वाली बहू का और रोज़दा को रुला कर वो अपने अरमानों का गला घोंटने से बेशक परहेज करती.


मैं अभी इन खयालों के बीच राशनल होने की कोशिश कर रहा था कि रोज़दा एक लौंग लिपलाॅक ने मुझे एक दूसरी दुनिया में पहुंचा दिया. रेस लगाती धड़कनों के बीच बस एक ही कोशिश थी हमारी, उस Oneness तक पहुंचना, जहां से वापसी कभी पाॅसिबल न हो. गजब अहसास था यह मगर कुछ देर बार डोर पर हुई नाॅक की आवाज ने हमें जता दिया कि कुछ सामाजिक नियमों से बंधे हम अदने से इंसान हैं. थोडा़ अफसोस तो जरूर हुआ मगर जाते हुए रोज़दा के इन अल्फाजों ने‌ फिर से हौंसला भर दिया इन बंदिशों से बाहर निकल फिर से एक होने का.


" तुम्हारे साथ सोना है मुझे.... पीरियड "


………………




अब यहां रुकने का और मन नहीं था मेरा. करण ने भी पूछा मैं खोया-खोया क्यूं हूं, तब ना जाने कैसे मेरी जुबान से वो बहाना निकल आया जिसकी मदद से हम तुरंत जयपुर निकल सकते थे. वैसे भी हमें अगले दिन वापस जाना ही था, इसलिए किसी पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. पर जिसके लिए मैं यह कर रहा था उसके दिमाग में पता नहीं क्या भरा हुआ था. सच बोलते हैं कि लड़कियों का दिमाग टखनों में होता है और मैड़म एन उनमें से एक थी.


अगली दिन सालिड़ लडाई के बाद मैं अपने दफ्तर में था और रोज़दा उदयपुर अपने घर. नाराज़गी यह नहीं थी कि उसने मेरे प्लान पर वीटो किया, वजह थी उसका वो बचकाना जवाब कि उसे रात में 250 किलोमीटर ट्रैवल नहीं करना था. पूरे सप्ताह हमारे बीच तनातनी रहने से बोल-चाल बंद रही. इक्का दुक्का एक्सचेंज आफ मैसेजिस जरूर होते थे उदयपुर गार्जियन को लेकर, लेकिन उससे ज्यादा कुछ नहीं.


अकादमी में खास काम नहीं था, मगर मेरा रुकना मजबूरी थी क्यूंकि होली की छुट्टियां होनी थी और ज्यादातर तैयारी कर रहे थे अपनों के संग यह पर्व मनाने की. वीकेंड पर करण के साथ माॅम-डैड और अंकल आंटी आ गए तो पता नहीं लगा दो दिन कैसे निकल गये. उसके बाद करण-शिवानी गुरुग्राम चला गए और बाकी लोग उदयपुर. ये सोचकर कि इस बार हमारी होली रोज़दा के परिवार के साथ मनेगी मगर ऐन वक्त पर अतिरिक्त काम मिलने से मेरा प्रोग्राम कैंसिल हो गया. और जब मैंने उन्हें बताया नहीं आने के अलावा दूसरा आप्शन नहीं है तो फिर मुझे फोन पर ही गालियां सुनने को मिलने लगी.


रोज़दा का नंबर बिजी जा रहा था, उसकी द़ोस्त से बात हुई तो उसने बताया वो आज आई नहीं थी. दो-तीन बार ट्राई करने पर रिस्पांस नहीं मिला तो उसके डैड से बात हुई, वो खफा थे DIG झा और मेरे बीच चल रहे चूहे-बिल्ली के खेल से. उनका अभी भी यही मानना था कि उदयपुर ट्रैफिक के लिए मना करने की यह गलती उनकी बेटी पर भारी पड़ने वाली थी. और इस बात का सही मतलब मुझे तब समझ आया जब देर रात रोज़दा ने पूछा खाना लेकर एकेडमी आना है या सर्किट हाउस.


तकरीबन एक घंटे बाद कलैक्टरेट सर्किल से उसने मुझे पिक किया, और बस एक झलक देखने भर से हमारी नाराजगी दूर हो गई. मैं खुश था कि मेरे लिए वो‌ इतना पेन लेकर यहां आई और ये खुशी डबल तब हो गई जब उसके तीन बैग्स ड्रैग कर मैं रूम में ले जा रहा था. रोज़दा के शाॅवर लेने तक मैंने‌ पोर्टल का काम फिनिश किया और फिर खाना गर्म करने की रिक्वेश्ट कर नहाने चला गया.


" एक मिलियन फौलोअर्स हो गये हैं हमारे और वालंटियर्स‌ की तो.... कहीं जाना‌ है तुम्हें? "


" हां.... फोर्स कम है तो स्पेशल ड्यूटी लगी है, पब्लिक मीटिंग है बस एक. उसके बाद सुबह तक फ्री " डेनिम में शर्ट को टक कर कफ बटन लगाते हुए मैंने जवाब दिया.


" ये क्या होता है यार... बिल्कुल भी... पहले बता देते मैं होटेल चली जाती " रुआंसी सूरत बना कर रोज़दा की आंखे एकाएक आंसुओं से भर गई.


" पागल... पता होता तो पहले ही न निबटा लेता... रियली एन. फाइन... खाना खा कर साथ में चलते हैं. और जयपुर वालों के साथ सेलिब्रेट करते हैं तुम्हारे उदयपुर गार्जियंस परिवार के दस लाख फोलोअर्स होने का सफर... " गोद में बिठाते हुऐ आंसुओं से भरी उसकी झील सी आंखों मैं देखते हुए मैंने कहा.


" थकी हुई हूं मैं "


" पैर दबा दूंगा.... प्रामिश " मैंने सोल्यूशन ऑफर किया.


" हैड मसाज? "


" डन "


" डेली? "


" पक्का "


इस तरह उसकी इक दो शर्त और थी. मसलन से किसी भी हालत में हम बात करना बंद नहीं करेंगे और एक दूसरे को भरोसे में लिए बिना कुछ भी प्लान करने से बचेंगे. खाना खाने के बाद रोजदा ने थोडा़ वक्त चेंज करने में लगाया, इतने में मैंने गणेश को वहां स्नैक्स और साॅफ्ट-ड्रिंक का इंतजाम कराने के लिए बोल दिया.


मीटिंग की वजह थी मिक्स्ड कम्यूनिटी वाली जगहों पर सोशल पुलिसिंग की हैल्प से फैस्टिव सीजन के दौरान सद्भाव, सौहार्द और भाईचारा कायम करना. क्यूंकि उर्स के साथ पुष्कर मेला सम्पन्न कराने का मुझे सफल अनुभव था, और होली के ठीक बाद मस्जिदों में रमजान की तैयारियां चल रही थी. उपद्रवियों से दोनों कम्यूनिटियों के त्यौहार में कोई भंग ना डले, इस वजह से सभी वर्गों के जनप्रतिनिधि, समाजसेवक और भद्र-जनों को‌ इस मीटिंग में बुलाया गया था.


बेस्ट पार्ट रहा गणेश का रोज़दा को आडिटोरियम से पहले रोक देना. क्यूंकि उस मीटिंग में जनता को छोड़कर, हर उस तबके की भागीदारी थी, जिनके लिए कभी भारतीय दंड संहिता को लागू किया गया. बहुत पर्सनल होने लगा था DIG, अफवाहों को सीढी बना कर मेरी बेदाग सर्विस को निशाना बनाने चला था.


मुनासिब मौका था अब रोज़दा का मेरी ज्याती और पेशेवर जिंदगी में दाखिल होने का, और फिर उसके संवाद के बाद पब्लिक के नाम का मुखौटा पहने टट्टुओं का चेहरा देखने लायक था. नेशनल मीडिया पर पकड़ के साथ-साथ उसके पास फौज थी स्टूडैंट्स, टीचर्स, डाक्टर्स, वकील, ड्राइवर्स से लेकर रहडी-पटरी पर काम करने वाले उन वालंटियर्स की, जो जनहित में उसके एक इशारे पर मरने-मारने के लिए तैयार थे.




 
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भाई आज पढ़ नहीं पाया हूँ
पर आज रात को पढ़ूंगा जरूर
 
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मुनासिब मौका था अब रोज़दा का मेरी ज्याती और पेशेवर जिंदगी में दाखिल होने का, और फिर उसके संवाद के बाद पब्लिक के नाम का मुखौटा पहने टट्टुओं का चेहरा देखने लायक था. नेशनल मीडिया पर पकड़ के साथ-साथ उसके पास फौज थी स्टूडैंट्स, टीचर्स, डाक्टर्स, वकील, ड्राइवर्स से लेकर रहडी-पटरी पर काम करने वाले उन वालंटियर्स की, जो जनहित में उसके एक इशारे पर मरने-मारने के लिए तैयार थे.


****************


अपने वायदे के मुताबिक मैं लार्ज‌ पेग के साथ चुस्कियां लेकर रोज़दा के पैरों को सहला रहा था और वो मुझसे न्यूगल खड्ड और हिमाचल की बाकी उन जगहों के बारे में पूछ रही थी जो देखने में तो खास मगर खबरों में बहुत आम थी.
मिसाल के तौर पर वो मनाली, शिमला और स्पीति वैली में घूम चुकी थी मगर अनजान थी पैराग्लाइडिंग, स्केटिंग, टी-गार्डन्स और लग्जरी डेस्टीनेशन वेडिंग्स के‌ लिए फेमस उन छोटी-छोटी जगहों से जहां असली हिमाचल बसता था.
वाव
भूगोल और भ्रमण के लिए सटीक विवरण

ड्रिंक खत्म होने‌ पर मैंने एक और लार्ज रिफिल लिया मगर इस बार पैरों के बजाय मैडम का सर मेरे लैप में था. थोडी सैकिंड्स के लिए नींद में उसकी पलकें झुकती और फिर कुछ देर बाद न जाने क्यूं खुल जाती. उसको इसी तरह सहला कर सुलाने की कोशिश में, त्यौहारों पर फील्डिंग टाइट करने के लिए शहर की हर रजिस्टर्ड Resident welfare associations का सुबह तक रिकार्ड निकालने के लिए निर्देशित करने लगा.

" अब तो मुझपर भी ऐसे उल्टे-सीधे इल्जाम लगा करेंगे? कैसे मैनेज करते हो तुम ऐसे लोगों को? " शायद मीटिंग में जो हुआ उससे नींद गायब हो गई थी रोजदा की.

" बोला था ना मैंने इक ड्रिंक के लिए. वैसे आई कितने दिनों के लिए हो तुम? " बहुत लाइट मूड में मैंने उसका जवाब दिया था मगर उसके साथ किये एक गलत सवाल ने अब उसके अंदर की गर्लफ्रेंड को एक्टिव कर दिया.

" शाबाश समर. आज फिर दिखा दिया तुमने. वैसे, सच में यार बरदाश्त नहीं होता तुम्हें मेरा यहां होना. वक्त बे-वक्त निकल ही आता है तुम्हारे अंदर से.... बट अब मैं कहीं नहीं जा रही, यहीं रहूंगी तुम्हारे साथ इस टेन बाई टेन के कमरे में "

" ओके फाईन और तुम्हारी थीसिस?? "
हा हा हा हा हा
इस डायलॉग पर दीवार फिल्म के अमिताभ जी की संवाद याद आता है
" उफ तुम और तुम्हारे यह उसूल"

" हो जाएगी.. वैसे भी, अब तो डैड भी हैं हैल्प के लिए "

" हम्म... मंदिर चले कल? उबेश्वर तो जा नहीं सकते "

" आई डाउट कि तुम भगवान को मानते हो, और साइकिल भी तो नहीं हैं अपने पास... "

अपनी नींद छोड़, बेड के हेड-रेस्ट से कमर लगाकर अब मैडम कंप्लेनिंग मूड में आ गई. उबेश्वर ट्रिप सच में एक टर्निंग प्वाइंट थी हमारी जिंदगी में, और अब रोज़दा को उसके पसंदीदा शहर में मेरा नहीं होना बहुत खलने लगा था. उसे शिकायत थी कि मैं उससे उसके जितना प्यार नहीं करता, और खयाल तो बिल्कुल भी नहीं रखता था उसका. अपनी सफाई में जवाब देने के लिए मैंने कोशिश नहीं की, क्यूंकि मेरे पास जवाब देने लायक कुछ था ही नहीं.

बातें बढ़ने पर मैंने उससे उसकी सारी परेशानियों का सोल्यूशन पूछा तो उसका जवाब था, इनीशियली जयपुर में हमारे लिए 1 बडा घर और बाकी के परिवार का उदयपुर में उसके डूप्लेक्स में रहना. वो मेरे साथ हर जगह रहने के लिए राजी थी मगर इस वायदे पर कि उसके डैड का खयाल मुझे राजौरिया अंकल की तरह ही रखना होगा और मेरे लिए उदयपुर की हैशियत आगरा या पालमपुर से कम नहीं होगी.

पहले तो मुझे लगा कि वो मेरी फिरकी ले रही है लेकिन अगले ही पल उसके सीरियस अंदाज ने बयां कर दिया कि मैं गलत था. खैर, बडी बात थी कि वो मेरे लिए उदयपुर छोड़ने के लिए तैयार थी, तो दूसरी तरफ भरोसा नहीं था रोज़दा की इस मांग पर घरवालों का नजरिया पाॅजिटिव होगा या नेगेटिव. पर अब इतना आगे बढ़ने के बाद पीछे हटकर रोज़दा का भरोसा नहीं तोड़ना था मुझे. वैसे भी कोई ताजमहल नहीं मांग रही थी वो, इकलौती औलाद होने के नाते अपने डैड की जिम्मेदारी उठाने में रोज़दा की यह शर्त मुझे तो वाजिब ही लगी.
परफेक्ट

बेड के सिरहाने से पुश्त लगाए, एक चादर के अंदर अपने हाथ और पैरों के पंजों की हरकतों से हम एक दूसरे से बात कर रहे थे. अपने टखने‌ और उंगलियों से दवाब बढा कर रोज़दा जवाब सुनना चाह रही थी, तो दूसरी तरफ मैं उससे साथ सहमत होने के वाबजूद माॅम-डैड और अंकल-आंटी से पूछे बिना कुछ भी बोलने से बच रहा था. मगर फिर मेरी हथेलियों पर उसकी कम होती पकड़ और तेज चलती सासों ने मुझे वो सब कुबूल करा दिया जो मेरी हैशियत के बाहर था.
भाई यही तो खासियत होती है
यार मैं शादी सुदा हूँ
ऐसे मैटर पर बहुत एक्सपेरियंस है मुझे
पसंद करने के साथ प्यार करने लगा था मैं अब उसे, इसलिए नहीं कि वो बेहद समझदार, खूबसूरत, पैसे-वाली थी या उसने कभी मेरी जान बचाई. दरअसल मेरे से मीलों दूर रहने के बाद भी वो समझने लगी थी मुझे कि मैं कब अकेला महसूस करता हूॅं, और ऐसा वक्त आने से ठीक पहले वो in person मेरे साथ होती.
ह्म्म्म्म सहमत


अगली सुबह की शुरुआत बहुत heavenly रही. मंदिर दर्शन करने के बाद अपना नास्ता हुआ और फिर मुझे एकेडमी छोड़ कर, अपार्टमेंट तलाश करने के लिए रोज़दा अपने परिचितों से मिलने चली गई. दोपहर तक उसके पास 5 आप्शन्स थे जिनमें से शाम होने तक सिर्फ 2 रह गये. एक फुली फर्निश्ड अपार्टमेंट था तो दूसरा था 100 वर्ग मीटर कारपेट एरिया में बना 3BHK घर जिसका ऑपन स्पेस मिलाकर टोटल साइज 320 स्क्वायर मीटर हो जाता.

सबको दूसरा ऑप्शन पसंद आ रहा था मगर उनकी पसंद से पहले मेरी सूई अटक रही थी उसकी 11 करोड़ की कीमत पर. माॅम का तो ठीक था क्यूंकि मेरे जन्म से ही सास बनने के लिए पागल‌ थी मगर हैरत थी डैड के रुख को लेकर, पता नहीं किस हिसाब से उन्हें यह रकम अफोर्डेबल लग रही थी? 130 साल लगते मुझे इस तनख्वाह से इतनी रकम जमा करने में और ये लोग अगले पांच जन्मों के लिए मुझे बैंक के पास गिरवी रखने पर‌ तुले हुए थे.

एब्सोल्यूटली नाॅट के साथ मैं अपने काम में लग गया मगर मेरी हैशियत ना बोलने की भी नहीं थी. रात होते-होते मुझे पछतावे के साथ शिवानी से हमदर्दी होने लगी, इतना तो कभी उसने भी नहीं मांगा था मुझसे. बार-बार मेरी उंगलियां फोन डायलर तक पहुंचती, मगर फिर करण का खयाल आता और हिम्मत साथ छोड़ जाती.

मुश्किल में था इसलिए रोए बिना रहा नहीं गया. अनजाने में ही सही कभी शिवानी से उसका परिवार तो छीना था मैंने, उसका सूद समेत हिसाब अब रोज़दा मुझसे ले रही थी. ख्वाहिशों का सबब कितना बेदर्द होता है अच्छी तरह से समझ आने लगा था मुझे मगर दुख इस बात का था कि जानने में अब बहुत देर हो गई थी.

खैर, दहन होलिका माता का हो रहा था और लपटें मेरे अंदर से निकल रही थी. बेहतर बात यह थी शहर के हिंदू और गैर-हिंदू जगहों पर लोग आपस में गले मिलकर रंगों के इस त्यौहार को मनाने निकल पडे. सुकून था टीम की ईमानदार कोशिशों और मुस्तैदी की वजह से कोई अनहोनी नहीं हुई, क्यूंकि महकमे ने यह जिम्मेदारी मुझे परखने के बजाय पनिश कर शर्मिंदा करने के लिए दी थी.

" हैप्पी होली बन्नू मियां... " सर्किट-हाउस के गार्डन में बन्नू को होली खेलते देख थकान और तकलीफ दोनों दूर हो गई, बेस्ट मेट था यहां वो मेरा. मासूम, शैतानियों से दूर, सभ्य, पढाई का शौकीन, क्यूरिअश और क्विक लर्नर... जस्ट अ लविंग किड.

हमारे फील्ड में रहने और रात को सर्किट-हाउस में अकेला होने की वजह से रोज़दा मनु भाभी-सा (बन्नू की मॉम) के पास चली गई थी, और फिर हमारे फ्री होने का सुनकर थोडी देर पहले ही यहां आई थी. जगह-जगह थोडा़-थोडा़ खाने की वजह से मेरा पेट तो भरा हुआ था मगर डायबेटिक होने‌ और रात भर जागने के कारण गणेश की हालत बुरी थी इसलिए शाम को आने का बोलकर चला गया.

" हैप्पी होली.... अच्छी लग रही हो " पहली बार साडी में देखा था उसे. यूनिफार्म निकाल कर मुझे शाॅवर लेना था मगर उससे पहले हम दोनों की होली शुरू हो गई. नाराज़गी खत्म नहीं हुई थी मगर उसे जाहिर करने से भी कोई सोल्यूशन निकलने वाला नहीं था. वैसे भी प्रामिश किया था मैंने उसे और जो भी वो कर रही थी मेरे साथ रहने के लिए ही तो कर रही थी. खैर मुझे एक वायदा और याद आ गया जो कभी मैंने मिस्टर ऑज़ से किया था, और रोज़दा की वाइल्डनेस के चलते, सख्त जरुरत थी उसे ईमानदारी निभाने की.

बच्ची तो वो भी नहीं थी इसलिए उसे याद दिलाने पर मैंने थोडी़ सी इज्जत और कमा ली. बेहद हसीन लग रही थी साडी पहने वो पानी में भीगी हुई और इन हालात में बहुत मुश्किल होता था उसके आगोश से खुद को वापस निकाल पाना. मतभेदों से परे मैं इज्जत करता था उसकी कि वो मुझे अपने लायक समझती है इसके वाबजूद वो 11 करोड़ की रकम हमारे रिश्ते पर हावी होने लगती.

" उस 30+ लाख वाले जॉब के ऑफर के लिए क्या तुम मेसुद से एक बार और पूछ सकती हो? " बाहर निकल कर रोज़दा से मैंने रिक्वेस्ट किया. क्यूंकि इससे बेहतर आईडिया तो मेरे पास सिर्फ चोरी/घूस ही बचता था, जो फिलहाल तो मेरी नीयत और सम्मान दोनों के खिलाफ था.

" और तुम्हें लगता है वो जाॅब मैं तुम्हें करने दूंगी? " बाथरूम में जाते हुए रोज़दा ने जवाब दिया.

" क्यूं?? अब ऐसा क्या हो गया??? " मैंने बाहर से ही पूछा.

" इम्म्म... क्यूंकि तुम्हारे स्टेट कैडर में मुझे उदयपुर या उदयपुर के आस-पास रहने की गारंटी देता है "

जानकारी तो उसकी दुरुस्त थी मगर जवाब से इरीटेट होने की वजह से मैं फिर से अपना आपा खोने लगा

" अगर ऐसा है तो एक और घर के लिए जयपुर में इतनी बडी इन्वेस्टमेंट जरूरी है? और वैसे भी हमारी बात सिर्फ एक घर को लेकर थी बंगले को लेकर नहीं "

" वो मेरा डिसीजन नहीं है. बस इतना जानती हूं कि तुम्हारे डैड अपना ऑर्चर्ड अब किसी रिएल्टर को सेल कर रहे हैं "

" व्हट... " बस इतना ही बोला गया मुझसे.
धीरे-धीरे तस्वीर अब क्लीयर होने लगी थी. समझ आने लगा था दादू की ख्वाहिश शायद डैड के लिए बडे जैकपाॅट में कैसे तब्दील हो गई. क्यूंकि माॅम-डैड की पेंशन और कुछ इंवेस्टमेंट प्लान्स को मिलाकर हमारी टोटल‌ सेविंग 1.2 करोड़ से ज्यादा न थी. मुझे लगता था, मिस्टर आज़ के ठाठ देखकर मॉम-डैड के दिमाग पर भी रईसों जैसा भूत सवार हो गया था.
चलो कोई साल्यूशंस तो है
खैर बेस्ट ऑफ लक
 
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भूगोल और भ्रमण के लिए सटीक विवरण

हा हा हा हा हा
इस डायलॉग पर दीवार फिल्म के अमिताभ जी की संवाद याद आता है
" उफ तुम और तुम्हारे यह उसूल"

परफेक्ट

भाई यही तो खासियत होती है
यार मैं शादी सुदा हूँ
ऐसे मैटर पर बहुत एक्सपेरियंस है मुझे

ह्म्म्म्म सहमत

चलो कोई साल्यूशंस तो है
खैर बेस्ट ऑफ लक


धन्यवाद दोस्त 🙏
अगला अपडेट कल शाम तक आ जाएगा.
 
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भाई आज पढ़ नहीं पाया हूँ
पर आज रात को पढ़ूंगा जरूर

कोई गल नी.
 
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धन्यवाद दोस्त 🙏
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ज़रूर मुझे इंतजार रहेगा
 
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मुनासिब मौका था अब रोज़दा का मेरी ज्याती और पेशेवर जिंदगी में दाखिल होने का, और फिर उसके संवाद के बाद पब्लिक के नाम का मुखौटा पहने टट्टुओं का चेहरा देखने लायक था. नेशनल मीडिया पर पकड़ के साथ-साथ उसके पास फौज थी स्टूडैंट्स, टीचर्स, डाक्टर्स, वकील, ड्राइवर्स से लेकर रहडी-पटरी पर काम करने वाले उन वालंटियर्स की, जो जनहित में उसके एक इशारे पर मरने-मारने के लिए तैयार थे.



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अपने वायदे के मुताबिक मैं लार्ज‌ पेग के साथ चुस्कियां लेकर रोज़दा के पैरों को सहला रहा था और वो मुझसे न्यूगल खड्ड और हिमाचल की बाकी उन जगहों के बारे में पूछ रही थी जो देखने में तो खास मगर खबरों में बहुत आम थी.

मिसाल के तौर पर वो मनाली, शिमला और स्पीति वैली में घूम चुकी थी मगर अनजान थी पैराग्लाइडिंग, स्केटिंग, टी-गार्डन्स और लग्जरी डेस्टीनेशन वेडिंग्स के‌ लिए फेमस उन छोटी-छोटी जगहों से जहां असली हिमाचल बसता था.


ड्रिंक खत्म होने‌ पर मैंने एक और लार्ज रिफिल लिया मगर इस बार पैरों के बजाय मैडम का सर मेरे लैप में था. थोडी सैकिंड्स के लिए नींद में उसकी पलकें झुकती और फिर कुछ देर बाद न जाने क्यूं खुल जाती. उसको इसी तरह सहला कर सुलाने की कोशिश में, त्यौहारों पर फील्डिंग टाइट करने के लिए शहर की हर रजिस्टर्ड Resident welfare associations का सुबह तक रिकार्ड निकालने के लिए निर्देशित करने लगा.


" अब तो मुझपर भी ऐसे उल्टे-सीधे इल्जाम लगा करेंगे? कैसे मैनेज करते हो तुम ऐसे लोगों को? " शायद मीटिंग में जो हुआ उससे नींद गायब हो गई थी रोजदा की.


" बोला था ना मैंने इक ड्रिंक के लिए. वैसे आई कितने दिनों के लिए हो तुम? " बहुत लाइट मूड में मैंने उसका जवाब दिया था मगर उसके साथ किये एक गलत सवाल ने अब उसके अंदर की गर्लफ्रेंड को एक्टिव कर दिया.


" शाबाश समर. आज फिर दिखा दिया तुमने. वैसे, सच में यार बरदाश्त नहीं होता तुम्हें मेरा यहां होना. वक्त बे-वक्त निकल ही आता है तुम्हारे अंदर से.... बट अब मैं कहीं नहीं जा रही, यहीं रहूंगी तुम्हारे साथ इस टेन बाई टेन के कमरे में "


" ओके फाईन और तुम्हारी थीसिस?? "


" हो जाएगी.. वैसे भी, अब तो डैड भी हैं हैल्प के लिए "


" हम्म... मंदिर चले कल? उबेश्वर तो जा नहीं सकते "


" आई डाउट कि तुम भगवान को मानते हो, और साइकिल भी तो नहीं हैं अपने पास... "


अपनी नींद छोड़, बेड के हेड-रेस्ट से कमर लगाकर अब मैडम कंप्लेनिंग मूड में आ गई. उबेश्वर ट्रिप सच में एक टर्निंग प्वाइंट थी हमारी जिंदगी में, और अब रोज़दा को उसके पसंदीदा शहर में मेरा नहीं होना बहुत खलने लगा था. उसे शिकायत थी कि मैं उससे उसके जितना प्यार नहीं करता, और खयाल तो बिल्कुल भी नहीं रखता था उसका. अपनी सफाई में जवाब देने के लिए मैंने कोशिश नहीं की, क्यूंकि मेरे पास जवाब देने लायक कुछ था ही नहीं.


बातें बढ़ने पर मैंने उससे उसकी सारी परेशानियों का सोल्यूशन पूछा तो उसका जवाब था, इनीशियली जयपुर में हमारे लिए 1 बडा घर और बाकी के परिवार का उदयपुर में उसके डूप्लेक्स में रहना. वो मेरे साथ हर जगह रहने के लिए राजी थी मगर इस वायदे पर कि उसके डैड का खयाल मुझे राजौरिया अंकल की तरह ही रखना होगा और मेरे लिए उदयपुर की हैशियत आगरा या पालमपुर से कम नहीं होगी.


पहले तो मुझे लगा कि वो मेरी फिरकी ले रही है लेकिन अगले ही पल उसके सीरियस अंदाज ने बयां कर दिया कि मैं गलत था. खैर, बडी बात थी कि वो मेरे लिए उदयपुर छोड़ने के लिए तैयार थी, तो दूसरी तरफ भरोसा नहीं था रोज़दा की इस मांग पर घरवालों का नजरिया पाॅजिटिव होगा या नेगेटिव. पर अब इतना आगे बढ़ने के बाद पीछे हटकर रोज़दा का भरोसा नहीं तोड़ना था मुझे. वैसे भी कोई ताजमहल नहीं मांग रही थी वो, इकलौती औलाद होने के नाते अपने डैड की जिम्मेदारी उठाने में रोज़दा की यह शर्त मुझे तो वाजिब ही लगी.


बेड के सिरहाने से पुश्त लगाए, एक चादर के अंदर अपने हाथ और पैरों के पंजों की हरकतों से हम एक दूसरे से बात कर रहे थे. अपने टखने‌ और उंगलियों से दवाब बढा कर रोज़दा जवाब सुनना चाह रही थी, तो दूसरी तरफ मैं उससे साथ सहमत होने के वाबजूद माॅम-डैड और अंकल-आंटी से पूछे बिना कुछ भी बोलने से बच रहा था. मगर फिर मेरी हथेलियों पर उसकी कम होती पकड़ और तेज चलती सासों ने मुझे वो सब कुबूल करा दिया जो मेरी हैशियत के बाहर था.

पसंद करने के साथ प्यार करने लगा था मैं अब उसे, इसलिए नहीं कि वो बेहद समझदार, खूबसूरत, पैसे-वाली थी या उसने कभी मेरी जान बचाई. दरअसल मेरे से मीलों दूर रहने के बाद भी वो समझने लगी थी मुझे कि मैं कब अकेला महसूस करता हूॅं, और ऐसा वक्त आने से ठीक पहले वो in person मेरे साथ होती.



अगली सुबह की शुरुआत बहुत heavenly रही. मंदिर दर्शन करने के बाद अपना नास्ता हुआ और फिर मुझे एकेडमी छोड़ कर, अपार्टमेंट तलाश करने के लिए रोज़दा अपने परिचितों से मिलने चली गई. दोपहर तक उसके पास 5 आप्शन्स थे जिनमें से शाम होने तक सिर्फ 2 रह गये. एक फुली फर्निश्ड अपार्टमेंट था तो दूसरा था 100 वर्ग मीटर कारपेट एरिया में बना 3BHK घर जिसका ऑपन स्पेस मिलाकर टोटल साइज 320 स्क्वायर मीटर हो जाता.


सबको दूसरा ऑप्शन पसंद आ रहा था मगर उनकी पसंद से पहले मेरी सूई अटक रही थी उसकी 11 करोड़ की कीमत पर. माॅम का तो ठीक था क्यूंकि मेरे जन्म से ही सास बनने के लिए पागल‌ थी मगर हैरत थी डैड के रुख को लेकर, पता नहीं किस हिसाब से उन्हें यह रकम अफोर्डेबल लग रही थी? 130 साल लगते मुझे इस तनख्वाह से इतनी रकम जमा करने में और ये लोग अगले पांच जन्मों के लिए मुझे बैंक के पास गिरवी रखने पर‌ तुले हुए थे.


एब्सोल्यूटली नाॅट के साथ मैं अपने काम में लग गया मगर मेरी हैशियत ना बोलने की भी नहीं थी. रात होते-होते मुझे पछतावे के साथ शिवानी से हमदर्दी होने लगी, इतना तो कभी उसने भी नहीं मांगा था मुझसे. बार-बार मेरी उंगलियां फोन डायलर तक पहुंचती, मगर फिर करण का खयाल आता और हिम्मत साथ छोड़ जाती.


मुश्किल में था इसलिए रोए बिना रहा नहीं गया. अनजाने में ही सही कभी शिवानी से उसका परिवार तो छीना था मैंने, उसका सूद समेत हिसाब अब रोज़दा मुझसे ले रही थी. ख्वाहिशों का सबब कितना बेदर्द होता है अच्छी तरह से समझ आने लगा था मुझे मगर दुख इस बात का था कि जानने में अब बहुत देर हो गई थी.


खैर, दहन होलिका माता का हो रहा था और लपटें मेरे अंदर से निकल रही थी. बेहतर बात यह थी शहर के हिंदू और गैर-हिंदू जगहों पर लोग आपस में गले मिलकर रंगों के इस त्यौहार को मनाने निकल पडे. सुकून था टीम की ईमानदार कोशिशों और मुस्तैदी की वजह से कोई अनहोनी नहीं हुई, क्यूंकि महकमे ने यह जिम्मेदारी मुझे परखने के बजाय पनिश कर शर्मिंदा करने के लिए दी थी.


" हैप्पी होली बन्नू मियां... " सर्किट-हाउस के गार्डन में बन्नू को होली खेलते देख थकान और तकलीफ दोनों दूर हो गई, बेस्ट मेट था यहां वो मेरा. मासूम, शैतानियों से दूर, सभ्य, पढाई का शौकीन, क्यूरिअश और क्विक लर्नर... जस्ट अ लविंग किड.


हमारे फील्ड में रहने और रात को सर्किट-हाउस में अकेला होने की वजह से रोज़दा मनु भाभी-सा (बन्नू की मॉम) के पास चली गई थी, और फिर हमारे फ्री होने का सुनकर थोडी देर पहले ही यहां आई थी. जगह-जगह थोडा़-थोडा़ खाने की वजह से मेरा पेट तो भरा हुआ था मगर डायबेटिक होने‌ और रात भर जागने के कारण गणेश की हालत बुरी थी इसलिए शाम को आने का बोलकर चला गया.


" हैप्पी होली.... अच्छी लग रही हो " पहली बार साडी में देखा था उसे. यूनिफार्म निकाल कर मुझे शाॅवर लेना था मगर उससे पहले हम दोनों की होली शुरू हो गई. नाराज़गी खत्म नहीं हुई थी मगर उसे जाहिर करने से भी कोई सोल्यूशन निकलने वाला नहीं था. वैसे भी प्रामिश किया था मैंने उसे और जो भी वो कर रही थी मेरे साथ रहने के लिए ही तो कर रही थी. खैर मुझे एक वायदा और याद आ गया जो कभी मैंने मिस्टर ऑज़ से किया था, और रोज़दा की वाइल्डनेस के चलते, सख्त जरुरत थी उसे ईमानदारी निभाने की.


बच्ची तो वो भी नहीं थी इसलिए उसे याद दिलाने पर मैंने थोडी़ सी इज्जत और कमा ली. बेहद हसीन लग रही थी साडी पहने वो पानी में भीगी हुई और इन हालात में बहुत मुश्किल होता था उसके आगोश से खुद को वापस निकाल पाना. मतभेदों से परे मैं इज्जत करता था उसकी कि वो मुझे अपने लायक समझती है इसके वाबजूद वो 11 करोड़ की रकम हमारे रिश्ते पर हावी होने लगती.


" उस 30+ लाख वाले जॉब के ऑफर के लिए क्या तुम मेसुद से एक बार और पूछ सकती हो? " बाहर निकल कर रोज़दा से मैंने रिक्वेस्ट किया. क्यूंकि इससे बेहतर आईडिया तो मेरे पास सिर्फ चोरी/घूस ही बचता था, जो फिलहाल तो मेरी नीयत और सम्मान दोनों के खिलाफ था.


" और तुम्हें लगता है वो जाॅब मैं तुम्हें करने दूंगी? " बाथरूम में जाते हुए रोज़दा ने जवाब दिया.


" क्यूं?? अब ऐसा क्या हो गया??? " मैंने बाहर से ही पूछा.


" इम्म्म... क्यूंकि तुम्हारे स्टेट कैडर में मुझे उदयपुर या उदयपुर के आस-पास रहने की गारंटी देता है "


जानकारी तो उसकी दुरुस्त थी मगर जवाब से इरीटेट होने की वजह से मैं फिर से अपना आपा खोने लगा


" अगर ऐसा है तो एक और घर के लिए जयपुर में इतनी बडी इन्वेस्टमेंट जरूरी है? और वैसे भी हमारी बात सिर्फ एक घर को लेकर थी बंगले को लेकर नहीं "


" वो मेरा डिसीजन नहीं है. बस इतना जानती हूं कि तुम्हारे डैड अपना ऑर्चर्ड अब किसी रिएल्टर को सेल कर रहे हैं "


" व्हट... " बस इतना ही बोला गया मुझसे.

धीरे-धीरे तस्वीर अब क्लीयर होने लगी थी. समझ आने लगा था दादू की ख्वाहिश शायद डैड के लिए बडे जैकपाॅट में कैसे तब्दील हो गई. क्यूंकि माॅम-डैड की पेंशन और कुछ इंवेस्टमेंट प्लान्स को मिलाकर हमारी टोटल‌ सेविंग 1.2 करोड़ से ज्यादा न थी. मुझे लगता था, मिस्टर आज़ के ठाठ देखकर मॉम-डैड के दिमाग पर भी रईसों जैसा भूत सवार हो गया था.

 
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प्रतिक्षा है

प्रतिक्षा है मित्र


थैंक यू मित्र 🙏
 
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ज़रूर मुझे इंतजार रहेगा

वैल, इंतजार कराने के लिए प्लीज माफ करना.




धीरे-धीरे तस्वीर अब क्लीयर होने लगी थी. समझ आने लगा था दादू की ख्वाहिश शायद डैड के लिए बडे जैकपाॅट में कैसे तब्दील हो गई. क्यूंकि माॅम-डैड की पेंशन और कुछ इंवेस्टमेंट प्लान्स को मिलाकर हमारी टोटल‌ सेविंग 1.2 करोड़ से ज्यादा न थी. मुझे लगता था, मिस्टर आज़ के ठाठ देखकर मॉम-डैड के दिमाग पर भी रईसों जैसा भूत सवार हो गया था.


…............


शाम तक लगभग ज्यादातर लोगों के ऊपर से होली का शुरूर उतर चुका था. सड़कें सुनसान थी, बस कुछ स्टूडेंट्स या फिर इक्का दुक्का लोग ही थे जिनकी वजह से ये शहर आबाद लग रहा था. खैर, होली की ड्यूटी से अब हमारी स्पेशल यूनिट भी पूरी तरह आजाद थी और मनु भाभी के आग्रह पर रोजदा को लेकर मैं गणेश के घर स्टा्र्टर में मिले तरह-तरह के पापड़ और पकौडों के संग चाय सिप कर रहा था.


दूसरी तरफ भाभी की ट्रेडीशनल किचिन और किचिनवेयर को देखकर रोज़दा इम्प्रैस्ड थी. हालांकि उसका टेस्ट भी राजस्थानी ही था मगर मटका, हंडी, Rock-Mortar, सिल-बटन, लकडी की मसाल-दानी, सिरेमिक की बरनियां और कोयला, चारकोल या लकडी़ से चलने वाला पोर्टेबल तंदूर; उसके क्या अब हमारे किचिन का हिस्सा भी नहीं रहे थे. उसके पास एक लम्बी लिस्ट थी नये घर में हमारी जरूरत के सामान को लेकर, जिसे मैडम कल मनु भाभी के साथ मिलकर आर्डर करने वाली थी.


सर्किट-हाउस वापस आने पर डैड की काॅल आ गई. राजौरिया अंकल-आंटी के साथ वो और माॅम कल श्रीनगर निकल रहे थे दादू के ऑर्चर्ड की डील क्लोज करने. वो जानते थे उस जगह से मेरा कोई कनैक्ट नहीं है, इसलिए उसके बदले यहां जयपुर में इन्वेस्ट करना कहीं बेहतर होगा, रही बात दादू की ख्वाहिश की तो उसके लिए रैनावारी में अपना घर तो है ही. मैंने डैड को बोला एक बार और सोचने के लिए मगर उनकी दलीलों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था.


" माॅम-डैड को भरोसा है तुम्हारे आने से हमारी किस्मत चमकने लगी है "


यह सुनकर कपडे़ समेटते हुए रोज़दा के चेहरे पर एक बारगी तो मुस्कुराहट फैल गई. फिर कुछ देर बाद ना जाने क्या सोच कर उसके तेवर बदल गये, " तुमसे बेहतर तो मॉम-डैड निकले, कभी इतनी तारीफ तुम भी कर दिया करो.... सच में यार, तुम थोडे भी रोमेंटिक नहीं हो... "


" करैक्ट " मैंने आब्जेक्ट नहीं किया. क्यूंकि यही वो एवरग्रीन फोर्मूला था गणेश ने मुझे बताया था खुशहाल फैमिली लाइफ के लिए. वैसे भी डैड ने सिखाया था कि अपनों से हारने में ही अपनेपन का अहसास होता है.


" घर लेने से पहले हम सगाई करा ले? शायद उससे तुम्हारी ये social anxeity वाली परेशानी खत्म हो?? " यह बोलते हुए रोज़दा का रुख बहुत संजीदा था.


" social anxeity!!! प्लीज अगले वीक मुझे इंपोटेंट समझने मत लगना. वैसे... कहां से ढूंढ कर लाती हो यह सब? इंसान हैं हम रोज़दा.. मुझे फिक्र है बस तुम्हारे डैड के भरोसे की और ये सगाई ही क्यूं? मैरिज रजिस्टर न करा लें.... मगर फिर उनका क्या जिन्होने हमारे लिए पता नहीं क्या-क्या सपने देखे हैं? "


" तो रोक लो ना डैड को आर्चर्ड बेचने से. वैसे भी तुम्हारी जाॅब को देखकर मेरी ऑपिनियन अब बदल गई है, इसलिए हम रेंट पर लेंगे एक बडा अपार्टमेंट और फिर एवरी वीकेंड या छुट्टियों में जाया करेंगे उदयपुर "


मैडम के बदलते रुख से मुझे थोडा़ सुकून मिला, शायद उसने सैंकिंड ओपिनीयन ली होगी किसी से. खैर, ये मसला अब मेरी हैसियत के बाहर था क्यूंकि घरवाले मेरे से ज्यादा उनकी होने वाली बहू की ख्वाहिश के फिक्रमंद थे, " अब मेरी कहां सुनते हैं वो लोग.... और अब तो मैं भी नहीं चाहता कि वो मेरी कोई बात माने "


" पर मुझे बुरा लग रहा है अब, तुम्हारे दादू और डैड का जुडा़व रहा होगा उस जगह से "


" अंदाजा नहीं तुम्हारे सवाल का असल जवाब क्या है. इज्जत, अमन और चैन की जिंदगी बसर करने के लिए हमें कभी कडे़ फैसले लेने पड़ते‌ हैं... दादू ने यह डैड को सिखाया और डैड ने मुझे "



इसके बाद हमारी कोई बात नहीं हुई. एयरकंडीशनर के धीमे शोर और हल्की ठंड में, चादर के अंदर एक दूसरे को सहलाते सहलाते, पता नहीं हमें कब नींद ने अपने आगोश में ले लिया. सुबह जब आंखें खुली तो सवा नौ बज रहे थे और रोज़दा से बातें करते हुऐ गणेश ना जाने मेरे कब जागने का इंतजार कर रहा था. लेट हो गया था मैं आज इसलिए अपने ID प्रूफ, चैक्स और एटीएम कार्ड मैडम को सौंप कर एकेडमी निकल गया.


लंच के वक्त डैड का फोन आया कि वो श्रीनगर तो पहुंच गये हैं मगर मेरे परम आदरणीय गुरू के अंतिम दर्शन में शामिल होने के लिए मुझे कल सुबह तक पालमपुर पहुंचना चाहिये. रोज़दा फोन नहीं उठा रही थी और जब गणेश को काॅल किया तो पता लगा वो उसे काफी पहले बनी-पार्क छोड़ कर वापस अकादमी आ गया था. हालांकि मैडम छोटी बच्ची नहीं थी मगर फ्लाइट पकड़ने की जल्दबाजी में मुझे अंदाजा नहीं था सर्किट-हाउस पहुंचने पर एक और बैड न्यूज मेरा इंतजार कर रही थी.


एक लिफाफे में मेरे ID, ATM और चैक्स के साथ हमारी प्रेम कहानी के टूटने को व्यक्त करते हुऐ रोज़दा ने एक लेटर छोडा़ था. वजह का कोई स्पष्ट जिक्र नहीं था, बस मैंने न जाने किसी बात पर उसका भरोसा इतना तोडा़ था कि मैडम के लिए संभव नहीं था मेरे साथ जिंदगी बिता पाना. थैंकफुली मिस्टर ॵज़ ने आंसर किया, बताया कि वो उदयपुर आ रही है मगर वाजोहात के बारे में उन्हें भी अंदाजा नहीं था.


पालमपुर पहुंचने तक मेरी प्राथमिकताऐं ब्रेक-अप के पीछे की वजह जानने की थी मगर कटोच सर ने पंच तत्व में विलीन होने के वाबजूद मेरा मार्गदर्शन कर अपनी महिमा का अहसास करा दिया. Scarecrow 1 के नाम से सेव कर रखा था उन्होंने मेरा मोबाइल नंबर और इससे पहले का नंबर था उनके बेटे मिलिंद का, जिनके दो बच्चों को उनके तलाक होने के बाद से कटोच सर खुद पाल रहे थे.


व्यवहारिक जीवन खासकर, वैवाहिक बंधन में लाॅजिकल होना होना कितना बडा़ अभिशाप है इस ज्ञान की प्राप्ति मुझे मिलिंद भाई से हुई. प्रख्यात न्यूरोसर्जन और प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक होने के बाद भी वो असफल थे तो उपल्बधियों के नाम पर मेरे पास तो सिर्फ भगौडा़ होने का तमगा. खैर ऐसे अनुभवों का नाम ही जिंदगी है और इसका सफर खत्म होता था शम्शान में चार या चार से कहीं ज्यादा कंधों पर आ कर, और किस को कितने कंधे मिलने हैं वो डिपेंड करता था दूसरों के प्रति उनके आचरण पर.


पालमपुर से वापस निकलते हुए थोडी़ देर के लिए न्यूगल खड्ड पर रुका तो पुराने दिन याद आ गये, मगर चीजें अब यहां बहुत बदल गई थी. फिर मुझे एक बुजुर्ग अंकल के हाथों में वो दिखा जो मेरे बचपन का एक मात्र और बैस्ट खिलौना था, कैंडिल से चलने वाली पुट-पुट बोट्स. फोटो कैप्चर कर मैंने शिवानी को टैग किया और खरीदते हुए सोचने लगा बन्नू को मेरी यह पसंद, पसंद आएगी या नहीं.


.......….........




" क्या मैं अंदर आ सकता हूॅं? " अजीब महसूस हो रहा था मुझे इस बार रोज़दा से मिलते हुए, और उसके घर के अंदर खुद को धकेलना मेरे लिए बिल्कुल भी कंफर्टबल न था.


" ............... "


उसने कुछ रिएक्ट नहीं किया और सैकिंड के अगले अंतरालों में अपनी साइकिल निकाल कर मेरी आंखों से ओझल हो गई. गेट लैच कर बेमन से मुझे अंदर जाना पडा़, मिस्टर ॵज़ अभी मुम्बई से आए नहीं थे तो डोमस्टिक-हैल्प ने घर में मेरा स्वागत किया. रोज़दा के बर्ताव से सुलह की उम्मीद खत्म हो गई थी, फिर मॉम-डैड से बात करने‌ के‌ बाद हिम्मत तो नहीं मिली मगर अच्छा महसूस जरूर करने लगा.


अकेला बोर होने पर मैंने कोशिश की रोज़दा को काॅल करने की, नंबर अनब्लाॅक होने से काॅल‌ कन्नेक्ट नहीं हुआ. जानबूझ कर ऐसा कर रही थी वो, शायद उकसाने के लिए. लग रहा था मेरा यहां आना व्यर्थ जाएगा, और ऐसा हुआ भी. मिस्टर ॵज़ ने आकर बताया कि मैडम नाराज होने‌ की वजह से इस मसले पर बात करना नहीं चाहती, इसलिए वो अपनी फ्रेंड्स के साथ रुक रही है.


" जाने-अनजाने में मुझसे हुई हर-एक गलती को सुधार कर, एक और कोशिश करने आया था मैं यहां " अपने दोनों फोन स्क्रीन्स पर रोज़दा को भेजे गये SMSs shuffle कर दिखाते हुए मैंने मिस्टर ॵज़ से रिक्वेश्ट किया, " जो मैडम ने आपसे कहा, क्या यही बात वो मुझे को फोन पर बोल सकती है?? "


आधा घंटे के बाद मिस्टर ॵज़ जब वापस आए तो उनके चेहरे की रंगत से मुझे जवाब मिल गया. शुक्रगुजार था मैं उनका कि अपनी बेटी से उलट मुझे एक मौका दिया चीजों को ठीक करने के लिए, नहीं तो कोई जरूरत नहीं थी उन्हें अपनी बेटी के X के लिए मुम्बई से लौटने‌ की. खैर कुछ घंटे तेजा भाउ की टपरी पर रुकने‌ के बाद मैंने ट्रेन ली और वापस सर्किट-हाउस आ गया.


पहली बार नहीं हुआ था ये हमारे साथ, इसलिए मुस्किल नहीं था जिंदगी में आगे बढ़ना. माॅम-डैड और अंकल-आंटी ने अब कसम खा ली थी मेरे साथ न रहने की, इस शर्त पर कि वीकेंड पर आगरा आता-जाता रहा करुंगा, वैसे भी जयपुर से आगरा उतना दूर भी नहीं था. सिर्फ इतना था कि पहले से उलट अब वहां करण-शिवानी हमारे भी साथ होते और उनके साथ वक्त बिताने के लिए मैं बेताब रहता.


एक शाम मैं दफ्तर से आवास के लिए निकल रहा था तो गार्ड ने इंफार्म किया उदयपुर से कुछ स्टूडेंट आए हैं और वो मुझसे मिलना चाहते हैं. अब तक मुझे एकैडमी में आवास मिल गया था और दोस्त तो बहुत सारे बन गये थे. दफ्तर की जिम्मेदारी खत्म होने के बाद हमारा काम स्पोर्ट्स और वर्क-आउट के नाम पर धमाल मचाने का होता था. शराब की सोहबत से दूर इसमें मेहनत करने से वक्त भी कट जाता और रात को नींद भी दुरुस्त आती. और अब मैं इसका आदी हो गया था, तो इस दौरान हमसे कोई भी (ज्यादातर अधिकारी) मिलने आता तो रूल के मुताबिक उसे हमारे‌ साथ पसीना निकालना पड़ता.


इन स्टूडेंट्स के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी, वैसे भी ये लोग न तो हमारे सहकर्मी थे और ना ही हमारे अफसर, और उदयपुर से कनैक्ट खत्म होने के बाद मेरे साथियों की सलाह थी अगले दिन के लिए उन्हें टरका देना. मगर मेरे लिए यह उतना आसान नहीं था, कोई इतनी दूर से यूं हीं अपना वक्त बरबाद करना तो नहीं चाहेगा. गार्ड से मैंने उनमें से किसी एक को फोन पर लेने के लिए बोला, और काॅल कनैक्ट होने पर मेरा उनसे इकलौता सवाल यह था, क्या यह रोज़दा को लेकर तो नहीं है, जवाब ना में मिलने के अगले कुछ मिनिट्स बाद वो कैंटीन में थे.


" कैसी हो? "


नूतन (रोज़दा की दोस्त) को उनके साथ देखकर यकायक मेरे मुंह से निकल गया. जवाब में हल्की सी मुस्कुराहट के साथ सर हिलाते हुए उसने बाकियों से मेरा परिचय कराया. वालंटियर थे ये लोग उदयपुर गार्जियंस के, सबके काम तो अलग-अलग थे मगर परेशानी एक. रोज़दा इनकी संस्था की कोर्डीनेटर थी और उसका काम था मजलूम लोगों को पुलिस/सिविल प्रशासन की मदद से उनको कानूनी सहायता दिलवाना, और इसके लिए वो अब अपना वक्त नहीं दे पा रही थी.


" जानती हूं कि आप दोनों के बीच..... "


" लिसिन नूतन... मेरा काम था तुम्हारी लीड्स पर प्रशासन की ओर से स्विफ्ट ऐक्शन और वो अभी भी पाॅसिबल है. जहां तक मुझे पता है, उदयपुर गार्जियन्स तुम सबकी इक्वली मिल्कियत है, अब ये आप लोगों को सोचना चाहिये कि ऐसी परेशानियों से किस तरह निबटा जाए "


नूतन को इंट्रप्ट कर उनकी समस्या का हल मैंने उनके सामने रखा मगर फिर पता लगा प्रशासनिक अफसर सिर्फ रोज़दा को आधिकारिक समझते थे, शायद इसलिए कि वो मेरी करीबी है, और इन वजह से चीजें उतनी इफीशिंएंटली काम नहीं कर रही थी जितना कि पहले था. खैर, कुछ फोन काॅल्स करने के बाद मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि प्रशासनिक लेवल पर मैकेनिज्म अब पहले की तरह चलेगा, और अगर फिर भी जरूरत पड़ती है तो वो किसी भी वक्त गणेश को काॅल कर सकते हैं.


इसी दौरान मेरे सहकर्मी दोस्त आ गये और रूल के मुताबिक इन वालंटियर्स को किसी भी स्पोर्ट्स में हमारे खिलाफ पुरजोर आजमाइश करनी थी. मेरे लाख मना करने के बाद भी वो हुआ जो कभी हमने कभी मिलकर तय किया था और फिर फीमेल्स वालंटियर्स को छोड़कर, बाकी वालंटियर्स की तरफ से जिम में कडी़ टक्कर मिलने के बाद हमारी हालत पतली थी.


ऑफिसर मेस में सबके साथ खाना खाने के बाद मैं नूतन एंड पार्टी को छोड़ने उनके होटेल तक गया, तब उन लोगों ने बताया कि पिछले एक-डेढ़ महीने से रोज़दा किसी को डेट करने लगी है और उसका नूतन‌ की गिफ्ट-शाॅप (उदयपुर गार्जियन्स का ऑपरेटिंग सेंटर) में आना लगभग बंद हो गया है. जिस पर मेरा सिर्फ यह मत था कि एक दोस्त होने के नाते उनको रोज़दा की जा़ती जिंदगी से जुडे़ फैसलों की सही मायनों में इज्ज़त करनी चाहिये थी और उन्होंने अपनी इस गलती को सहर्ष स्वीकार कर लिया.
 
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