धीरे-धीरे तस्वीर अब क्लीयर होने लगी थी. समझ आने लगा था दादू की ख्वाहिश शायद डैड के लिए बडे जैकपाॅट में कैसे तब्दील हो गई. क्यूंकि माॅम-डैड की पेंशन और कुछ इंवेस्टमेंट प्लान्स को मिलाकर हमारी टोटल सेविंग 1.2 करोड़ से ज्यादा न थी. मुझे लगता था, मिस्टर आज़ के ठाठ देखकर मॉम-डैड के दिमाग पर भी रईसों जैसा भूत सवार हो गया था.
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शाम तक लगभग ज्यादातर लोगों के ऊपर से होली का शुरूर उतर चुका था. सड़कें सुनसान थी, बस कुछ स्टूडेंट्स या फिर इक्का दुक्का लोग ही थे जिनकी वजह से ये शहर आबाद लग रहा था. खैर, होली की ड्यूटी से अब हमारी स्पेशल यूनिट भी पूरी तरह आजाद थी और मनु भाभी के आग्रह पर रोजदा को लेकर मैं गणेश के घर स्टा्र्टर में मिले तरह-तरह के पापड़ और पकौडों के संग चाय सिप कर रहा था.
दूसरी तरफ भाभी की ट्रेडीशनल किचिन और किचिनवेयर को देखकर रोज़दा इम्प्रैस्ड थी. हालांकि उसका टेस्ट भी राजस्थानी ही था मगर मटका, हंडी, Rock-Mortar, सिल-बटन, लकडी की मसाल-दानी, सिरेमिक की बरनियां और कोयला, चारकोल या लकडी़ से चलने वाला पोर्टेबल तंदूर; उसके क्या अब हमारे किचिन का हिस्सा भी नहीं रहे थे. उसके पास एक लम्बी लिस्ट थी नये घर में हमारी जरूरत के सामान को लेकर, जिसे मैडम कल मनु भाभी के साथ मिलकर आर्डर करने वाली थी.
सर्किट-हाउस वापस आने पर डैड की काॅल आ गई. राजौरिया अंकल-आंटी के साथ वो और माॅम कल श्रीनगर निकल रहे थे दादू के ऑर्चर्ड की डील क्लोज करने. वो जानते थे उस जगह से मेरा कोई कनैक्ट नहीं है, इसलिए उसके बदले यहां जयपुर में इन्वेस्ट करना कहीं बेहतर होगा, रही बात दादू की ख्वाहिश की तो उसके लिए रैनावारी में अपना घर तो है ही. मैंने डैड को बोला एक बार और सोचने के लिए मगर उनकी दलीलों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था.
" माॅम-डैड को भरोसा है तुम्हारे आने से हमारी किस्मत चमकने लगी है "
यह सुनकर कपडे़ समेटते हुए रोज़दा के चेहरे पर एक बारगी तो मुस्कुराहट फैल गई. फिर कुछ देर बाद ना जाने क्या सोच कर उसके तेवर बदल गये, " तुमसे बेहतर तो मॉम-डैड निकले, कभी इतनी तारीफ तुम भी कर दिया करो.... सच में यार, तुम थोडे भी रोमेंटिक नहीं हो... "
" करैक्ट " मैंने आब्जेक्ट नहीं किया. क्यूंकि यही वो एवरग्रीन फोर्मूला था गणेश ने मुझे बताया था खुशहाल फैमिली लाइफ के लिए. वैसे भी डैड ने सिखाया था कि अपनों से हारने में ही अपनेपन का अहसास होता है.
" घर लेने से पहले हम सगाई करा ले? शायद उससे तुम्हारी ये social anxeity वाली परेशानी खत्म हो?? " यह बोलते हुए रोज़दा का रुख बहुत संजीदा था.
" social anxeity!!! प्लीज अगले वीक मुझे इंपोटेंट समझने मत लगना. वैसे... कहां से ढूंढ कर लाती हो यह सब? इंसान हैं हम रोज़दा.. मुझे फिक्र है बस तुम्हारे डैड के भरोसे की और ये सगाई ही क्यूं? मैरिज रजिस्टर न करा लें.... मगर फिर उनका क्या जिन्होने हमारे लिए पता नहीं क्या-क्या सपने देखे हैं? "
" तो रोक लो ना डैड को आर्चर्ड बेचने से. वैसे भी तुम्हारी जाॅब को देखकर मेरी ऑपिनियन अब बदल गई है, इसलिए हम रेंट पर लेंगे एक बडा अपार्टमेंट और फिर एवरी वीकेंड या छुट्टियों में जाया करेंगे उदयपुर "
मैडम के बदलते रुख से मुझे थोडा़ सुकून मिला, शायद उसने सैंकिंड ओपिनीयन ली होगी किसी से. खैर, ये मसला अब मेरी हैसियत के बाहर था क्यूंकि घरवाले मेरे से ज्यादा उनकी होने वाली बहू की ख्वाहिश के फिक्रमंद थे, " अब मेरी कहां सुनते हैं वो लोग.... और अब तो मैं भी नहीं चाहता कि वो मेरी कोई बात माने "
" पर मुझे बुरा लग रहा है अब, तुम्हारे दादू और डैड का जुडा़व रहा होगा उस जगह से "
" अंदाजा नहीं तुम्हारे सवाल का असल जवाब क्या है. इज्जत, अमन और चैन की जिंदगी बसर करने के लिए हमें कभी कडे़ फैसले लेने पड़ते हैं... दादू ने यह डैड को सिखाया और डैड ने मुझे "
इसके बाद हमारी कोई बात नहीं हुई. एयरकंडीशनर के धीमे शोर और हल्की ठंड में, चादर के अंदर एक दूसरे को सहलाते सहलाते, पता नहीं हमें कब नींद ने अपने आगोश में ले लिया. सुबह जब आंखें खुली तो सवा नौ बज रहे थे और रोज़दा से बातें करते हुऐ गणेश ना जाने मेरे कब जागने का इंतजार कर रहा था. लेट हो गया था मैं आज इसलिए अपने ID प्रूफ, चैक्स और एटीएम कार्ड मैडम को सौंप कर एकेडमी निकल गया.
लंच के वक्त डैड का फोन आया कि वो श्रीनगर तो पहुंच गये हैं मगर मेरे परम आदरणीय गुरू के अंतिम दर्शन में शामिल होने के लिए मुझे कल सुबह तक पालमपुर पहुंचना चाहिये. रोज़दा फोन नहीं उठा रही थी और जब गणेश को काॅल किया तो पता लगा वो उसे काफी पहले बनी-पार्क छोड़ कर वापस अकादमी आ गया था. हालांकि मैडम छोटी बच्ची नहीं थी मगर फ्लाइट पकड़ने की जल्दबाजी में मुझे अंदाजा नहीं था सर्किट-हाउस पहुंचने पर एक और बैड न्यूज मेरा इंतजार कर रही थी.
एक लिफाफे में मेरे ID, ATM और चैक्स के साथ हमारी प्रेम कहानी के टूटने को व्यक्त करते हुऐ रोज़दा ने एक लेटर छोडा़ था. वजह का कोई स्पष्ट जिक्र नहीं था, बस मैंने न जाने किसी बात पर उसका भरोसा इतना तोडा़ था कि मैडम के लिए संभव नहीं था मेरे साथ जिंदगी बिता पाना. थैंकफुली मिस्टर ॵज़ ने आंसर किया, बताया कि वो उदयपुर आ रही है मगर वाजोहात के बारे में उन्हें भी अंदाजा नहीं था.
पालमपुर पहुंचने तक मेरी प्राथमिकताऐं ब्रेक-अप के पीछे की वजह जानने की थी मगर कटोच सर ने पंच तत्व में विलीन होने के वाबजूद मेरा मार्गदर्शन कर अपनी महिमा का अहसास करा दिया. Scarecrow 1 के नाम से सेव कर रखा था उन्होंने मेरा मोबाइल नंबर और इससे पहले का नंबर था उनके बेटे मिलिंद का, जिनके दो बच्चों को उनके तलाक होने के बाद से कटोच सर खुद पाल रहे थे.
व्यवहारिक जीवन खासकर, वैवाहिक बंधन में लाॅजिकल होना होना कितना बडा़ अभिशाप है इस ज्ञान की प्राप्ति मुझे मिलिंद भाई से हुई. प्रख्यात न्यूरोसर्जन और प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक होने के बाद भी वो असफल थे तो उपल्बधियों के नाम पर मेरे पास तो सिर्फ भगौडा़ होने का तमगा. खैर ऐसे अनुभवों का नाम ही जिंदगी है और इसका सफर खत्म होता था शम्शान में चार या चार से कहीं ज्यादा कंधों पर आ कर, और किस को कितने कंधे मिलने हैं वो डिपेंड करता था दूसरों के प्रति उनके आचरण पर.
पालमपुर से वापस निकलते हुए थोडी़ देर के लिए न्यूगल खड्ड पर रुका तो पुराने दिन याद आ गये, मगर चीजें अब यहां बहुत बदल गई थी. फिर मुझे एक बुजुर्ग अंकल के हाथों में वो दिखा जो मेरे बचपन का एक मात्र और बैस्ट खिलौना था, कैंडिल से चलने वाली पुट-पुट बोट्स. फोटो कैप्चर कर मैंने शिवानी को टैग किया और खरीदते हुए सोचने लगा बन्नू को मेरी यह पसंद, पसंद आएगी या नहीं.
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" क्या मैं अंदर आ सकता हूॅं? " अजीब महसूस हो रहा था मुझे इस बार रोज़दा से मिलते हुए, और उसके घर के अंदर खुद को धकेलना मेरे लिए बिल्कुल भी कंफर्टबल न था.
" ............... "
उसने कुछ रिएक्ट नहीं किया और सैकिंड के अगले अंतरालों में अपनी साइकिल निकाल कर मेरी आंखों से ओझल हो गई. गेट लैच कर बेमन से मुझे अंदर जाना पडा़, मिस्टर ॵज़ अभी मुम्बई से आए नहीं थे तो डोमस्टिक-हैल्प ने घर में मेरा स्वागत किया. रोज़दा के बर्ताव से सुलह की उम्मीद खत्म हो गई थी, फिर मॉम-डैड से बात करने के बाद हिम्मत तो नहीं मिली मगर अच्छा महसूस जरूर करने लगा.
अकेला बोर होने पर मैंने कोशिश की रोज़दा को काॅल करने की, नंबर अनब्लाॅक होने से काॅल कन्नेक्ट नहीं हुआ. जानबूझ कर ऐसा कर रही थी वो, शायद उकसाने के लिए. लग रहा था मेरा यहां आना व्यर्थ जाएगा, और ऐसा हुआ भी. मिस्टर ॵज़ ने आकर बताया कि मैडम नाराज होने की वजह से इस मसले पर बात करना नहीं चाहती, इसलिए वो अपनी फ्रेंड्स के साथ रुक रही है.
" जाने-अनजाने में मुझसे हुई हर-एक गलती को सुधार कर, एक और कोशिश करने आया था मैं यहां " अपने दोनों फोन स्क्रीन्स पर रोज़दा को भेजे गये SMSs shuffle कर दिखाते हुए मैंने मिस्टर ॵज़ से रिक्वेश्ट किया, " जो मैडम ने आपसे कहा, क्या यही बात वो मुझे को फोन पर बोल सकती है?? "
आधा घंटे के बाद मिस्टर ॵज़ जब वापस आए तो उनके चेहरे की रंगत से मुझे जवाब मिल गया. शुक्रगुजार था मैं उनका कि अपनी बेटी से उलट मुझे एक मौका दिया चीजों को ठीक करने के लिए, नहीं तो कोई जरूरत नहीं थी उन्हें अपनी बेटी के X के लिए मुम्बई से लौटने की. खैर कुछ घंटे तेजा भाउ की टपरी पर रुकने के बाद मैंने ट्रेन ली और वापस सर्किट-हाउस आ गया.
पहली बार नहीं हुआ था ये हमारे साथ, इसलिए मुस्किल नहीं था जिंदगी में आगे बढ़ना. माॅम-डैड और अंकल-आंटी ने अब कसम खा ली थी मेरे साथ न रहने की, इस शर्त पर कि वीकेंड पर आगरा आता-जाता रहा करुंगा, वैसे भी जयपुर से आगरा उतना दूर भी नहीं था. सिर्फ इतना था कि पहले से उलट अब वहां करण-शिवानी हमारे भी साथ होते और उनके साथ वक्त बिताने के लिए मैं बेताब रहता.
एक शाम मैं दफ्तर से आवास के लिए निकल रहा था तो गार्ड ने इंफार्म किया उदयपुर से कुछ स्टूडेंट आए हैं और वो मुझसे मिलना चाहते हैं. अब तक मुझे एकैडमी में आवास मिल गया था और दोस्त तो बहुत सारे बन गये थे. दफ्तर की जिम्मेदारी खत्म होने के बाद हमारा काम स्पोर्ट्स और वर्क-आउट के नाम पर धमाल मचाने का होता था. शराब की सोहबत से दूर इसमें मेहनत करने से वक्त भी कट जाता और रात को नींद भी दुरुस्त आती. और अब मैं इसका आदी हो गया था, तो इस दौरान हमसे कोई भी (ज्यादातर अधिकारी) मिलने आता तो रूल के मुताबिक उसे हमारे साथ पसीना निकालना पड़ता.
इन स्टूडेंट्स के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी, वैसे भी ये लोग न तो हमारे सहकर्मी थे और ना ही हमारे अफसर, और उदयपुर से कनैक्ट खत्म होने के बाद मेरे साथियों की सलाह थी अगले दिन के लिए उन्हें टरका देना. मगर मेरे लिए यह उतना आसान नहीं था, कोई इतनी दूर से यूं हीं अपना वक्त बरबाद करना तो नहीं चाहेगा. गार्ड से मैंने उनमें से किसी एक को फोन पर लेने के लिए बोला, और काॅल कनैक्ट होने पर मेरा उनसे इकलौता सवाल यह था, क्या यह रोज़दा को लेकर तो नहीं है, जवाब ना में मिलने के अगले कुछ मिनिट्स बाद वो कैंटीन में थे.
" कैसी हो? "
नूतन (रोज़दा की दोस्त) को उनके साथ देखकर यकायक मेरे मुंह से निकल गया. जवाब में हल्की सी मुस्कुराहट के साथ सर हिलाते हुए उसने बाकियों से मेरा परिचय कराया. वालंटियर थे ये लोग उदयपुर गार्जियंस के, सबके काम तो अलग-अलग थे मगर परेशानी एक. रोज़दा इनकी संस्था की कोर्डीनेटर थी और उसका काम था मजलूम लोगों को पुलिस/सिविल प्रशासन की मदद से उनको कानूनी सहायता दिलवाना, और इसके लिए वो अब अपना वक्त नहीं दे पा रही थी.
" जानती हूं कि आप दोनों के बीच..... "
" लिसिन नूतन... मेरा काम था तुम्हारी लीड्स पर प्रशासन की ओर से स्विफ्ट ऐक्शन और वो अभी भी पाॅसिबल है. जहां तक मुझे पता है, उदयपुर गार्जियन्स तुम सबकी इक्वली मिल्कियत है, अब ये आप लोगों को सोचना चाहिये कि ऐसी परेशानियों से किस तरह निबटा जाए "
नूतन को इंट्रप्ट कर उनकी समस्या का हल मैंने उनके सामने रखा मगर फिर पता लगा प्रशासनिक अफसर सिर्फ रोज़दा को आधिकारिक समझते थे, शायद इसलिए कि वो मेरी करीबी है, और इन वजह से चीजें उतनी इफीशिंएंटली काम नहीं कर रही थी जितना कि पहले था. खैर, कुछ फोन काॅल्स करने के बाद मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि प्रशासनिक लेवल पर मैकेनिज्म अब पहले की तरह चलेगा, और अगर फिर भी जरूरत पड़ती है तो वो किसी भी वक्त गणेश को काॅल कर सकते हैं.
इसी दौरान मेरे सहकर्मी दोस्त आ गये और रूल के मुताबिक इन वालंटियर्स को किसी भी स्पोर्ट्स में हमारे खिलाफ पुरजोर आजमाइश करनी थी. मेरे लाख मना करने के बाद भी वो हुआ जो कभी हमने कभी मिलकर तय किया था और फिर फीमेल्स वालंटियर्स को छोड़कर, बाकी वालंटियर्स की तरफ से जिम में कडी़ टक्कर मिलने के बाद हमारी हालत पतली थी.
ऑफिसर मेस में सबके साथ खाना खाने के बाद मैं नूतन एंड पार्टी को छोड़ने उनके होटेल तक गया, तब उन लोगों ने बताया कि पिछले एक-डेढ़ महीने से रोज़दा किसी को डेट करने लगी है और उसका नूतन की गिफ्ट-शाॅप (उदयपुर गार्जियन्स का ऑपरेटिंग सेंटर) में आना लगभग बंद हो गया है. जिस पर मेरा सिर्फ यह मत था कि एक दोस्त होने के नाते उनको रोज़दा की जा़ती जिंदगी से जुडे़ फैसलों की सही मायनों में इज्ज़त करनी चाहिये थी और उन्होंने अपनी इस गलती को सहर्ष स्वीकार कर लिया.