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Romance फख्त इक ख्वाहिश

Kala Nag

Mr. X
Prime
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144


धीरे-धीरे तस्वीर अब क्लीयर होने लगी थी. समझ आने लगा था दादू की ख्वाहिश शायद डैड के लिए बडे जैकपाॅट में कैसे तब्दील हो गई. क्यूंकि माॅम-डैड की पेंशन और कुछ इंवेस्टमेंट प्लान्स को मिलाकर हमारी टोटल‌ सेविंग 1.2 करोड़ से ज्यादा न थी. मुझे लगता था, मिस्टर आज़ के ठाठ देखकर मॉम-डैड के दिमाग पर भी रईसों जैसा भूत सवार हो गया था.

…............

शाम तक लगभग ज्यादातर लोगों के ऊपर से होली का शुरूर उतर चुका था. सड़कें सुनसान थी, बस कुछ स्टूडेंट्स या फिर इक्का दुक्का लोग ही थे जिनकी वजह से ये शहर आबाद लग रहा था. खैर, होली की ड्यूटी से अब हमारी स्पेशल यूनिट भी पूरी तरह आजाद थी और मनु भाभी के आग्रह पर रोजदा को लेकर मैं गणेश के घर स्टा्र्टर में मिले तरह-तरह के पापड़ और पकौडों के संग चाय सिप कर रहा था.

दूसरी तरफ भाभी की ट्रेडीशनल किचिन और किचिनवेयर को देखकर रोज़दा इम्प्रैस्ड थी. हालांकि उसका टेस्ट भी राजस्थानी ही था मगर मटका, हंडी, Rock-Mortar, सिल-बटन, लकडी की मसाल-दानी, सिरेमिक की बरनियां और कोयला, चारकोल या लकडी़ से चलने वाला पोर्टेबल तंदूर; उसके क्या अब हमारे किचिन का हिस्सा भी नहीं रहे थे. उसके पास एक लम्बी लिस्ट थी नये घर में हमारी जरूरत के सामान को लेकर, जिसे मैडम कल मनु भाभी के साथ मिलकर आर्डर करने वाली थी.

सर्किट-हाउस वापस आने पर डैड की काॅल आ गई. राजौरिया अंकल-आंटी के साथ वो और माॅम कल श्रीनगर निकल रहे थे दादू के ऑर्चर्ड की डील क्लोज करने. वो जानते थे उस जगह से मेरा कोई कनैक्ट नहीं है, इसलिए उसके बदले यहां जयपुर में इन्वेस्ट करना कहीं बेहतर होगा, रही बात दादू की ख्वाहिश की तो उसके लिए रैनावारी में अपना घर तो है ही. मैंने डैड को बोला एक बार और सोचने के लिए मगर उनकी दलीलों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था.

" माॅम-डैड को भरोसा है तुम्हारे आने से हमारी किस्मत चमकने लगी है "

यह सुनकर कपडे़ समेटते हुए रोज़दा के चेहरे पर एक बारगी तो मुस्कुराहट फैल गई. फिर कुछ देर बाद ना जाने क्या सोच कर उसके तेवर बदल गये, " तुमसे बेहतर तो मॉम-डैड निकले, कभी इतनी तारीफ तुम भी कर दिया करो.... सच में यार, तुम थोडे भी रोमेंटिक नहीं हो... "

" करैक्ट " मैंने आब्जेक्ट नहीं किया. क्यूंकि यही वो एवरग्रीन फोर्मूला था गणेश ने मुझे बताया था खुशहाल फैमिली लाइफ के लिए. वैसे भी डैड ने सिखाया था कि अपनों से हारने में ही अपनेपन का अहसास होता है.

" घर लेने से पहले हम सगाई करा ले? शायद उससे तुम्हारी ये social anxeity वाली परेशानी खत्म हो?? " यह बोलते हुए रोज़दा का रुख बहुत संजीदा था.

" social anxeity!!! प्लीज अगले वीक मुझे इंपोटेंट समझने मत लगना. वैसे... कहां से ढूंढ कर लाती हो यह सब? इंसान हैं हम रोज़दा.. मुझे फिक्र है बस तुम्हारे डैड के भरोसे की और ये सगाई ही क्यूं? मैरिज रजिस्टर न करा लें.... मगर फिर उनका क्या जिन्होने हमारे लिए पता नहीं क्या-क्या सपने देखे हैं? "

" तो रोक लो ना डैड को आर्चर्ड बेचने से. वैसे भी तुम्हारी जाॅब को देखकर मेरी ऑपिनियन अब बदल गई है, इसलिए हम रेंट पर लेंगे एक बडा अपार्टमेंट और फिर एवरी वीकेंड या छुट्टियों में जाया करेंगे उदयपुर "

मैडम के बदलते रुख से मुझे थोडा़ सुकून मिला, शायद उसने सैंकिंड ओपिनीयन ली होगी किसी से. खैर, ये मसला अब मेरी हैसियत के बाहर था क्यूंकि घरवाले मेरे से ज्यादा उनकी होने वाली बहू की ख्वाहिश के फिक्रमंद थे, " अब मेरी कहां सुनते हैं वो लोग.... और अब तो मैं भी नहीं चाहता कि वो मेरी कोई बात माने "

" पर मुझे बुरा लग रहा है अब, तुम्हारे दादू और डैड का जुडा़व रहा होगा उस जगह से "

" अंदाजा नहीं तुम्हारे सवाल का असल जवाब क्या है. इज्जत, अमन और चैन की जिंदगी बसर करने के लिए हमें कभी कडे़ फैसले लेने पड़ते‌ हैं... दादू ने यह डैड को सिखाया और डैड ने मुझे "


इसके बाद हमारी कोई बात नहीं हुई. एयरकंडीशनर के धीमे शोर और हल्की ठंड में, चादर के अंदर एक दूसरे को सहलाते सहलाते, पता नहीं हमें कब नींद ने अपने आगोश में ले लिया. सुबह जब आंखें खुली तो सवा नौ बज रहे थे और रोज़दा से बातें करते हुऐ गणेश ना जाने मेरे कब जागने का इंतजार कर रहा था. लेट हो गया था मैं आज इसलिए अपने ID प्रूफ, चैक्स और एटीएम कार्ड मैडम को सौंप कर एकेडमी निकल गया.

लंच के वक्त डैड का फोन आया कि वो श्रीनगर तो पहुंच गये हैं मगर मेरे परम आदरणीय गुरू के अंतिम दर्शन में शामिल होने के लिए मुझे कल सुबह तक पालमपुर पहुंचना चाहिये. रोज़दा फोन नहीं उठा रही थी और जब गणेश को काॅल किया तो पता लगा वो उसे काफी पहले बनी-पार्क छोड़ कर वापस अकादमी आ गया था. हालांकि मैडम छोटी बच्ची नहीं थी मगर फ्लाइट पकड़ने की जल्दबाजी में मुझे अंदाजा नहीं था सर्किट-हाउस पहुंचने पर एक और बैड न्यूज मेरा इंतजार कर रही थी.

एक लिफाफे में मेरे ID, ATM और चैक्स के साथ हमारी प्रेम कहानी के टूटने को व्यक्त करते हुऐ रोज़दा ने एक लेटर छोडा़ था. वजह का कोई स्पष्ट जिक्र नहीं था, बस मैंने न जाने किसी बात पर उसका भरोसा इतना तोडा़ था कि मैडम के लिए संभव नहीं था मेरे साथ जिंदगी बिता पाना. थैंकफुली मिस्टर ॵज़ ने आंसर किया, बताया कि वो उदयपुर आ रही है मगर वाजोहात के बारे में उन्हें भी अंदाजा नहीं था.

पालमपुर पहुंचने तक मेरी प्राथमिकताऐं ब्रेक-अप के पीछे की वजह जानने की थी मगर कटोच सर ने पंच तत्व में विलीन होने के वाबजूद मेरा मार्गदर्शन कर अपनी महिमा का अहसास करा दिया. Scarecrow 1 के नाम से सेव कर रखा था उन्होंने मेरा मोबाइल नंबर और इससे पहले का नंबर था उनके बेटे मिलिंद का, जिनके दो बच्चों को उनके तलाक होने के बाद से कटोच सर खुद पाल रहे थे.

व्यवहारिक जीवन खासकर, वैवाहिक बंधन में लाॅजिकल होना होना कितना बडा़ अभिशाप है इस ज्ञान की प्राप्ति मुझे मिलिंद भाई से हुई. प्रख्यात न्यूरोसर्जन और प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक होने के बाद भी वो असफल थे तो उपल्बधियों के नाम पर मेरे पास तो सिर्फ भगौडा़ होने का तमगा. खैर ऐसे अनुभवों का नाम ही जिंदगी है और इसका सफर खत्म होता था शम्शान में चार या चार से कहीं ज्यादा कंधों पर आ कर, और किस को कितने कंधे मिलने हैं वो डिपेंड करता था दूसरों के प्रति उनके आचरण पर.

पालमपुर से वापस निकलते हुए थोडी़ देर के लिए न्यूगल खड्ड पर रुका तो पुराने दिन याद आ गये, मगर चीजें अब यहां बहुत बदल गई थी. फिर मुझे एक बुजुर्ग अंकल के हाथों में वो दिखा जो मेरे बचपन का एक मात्र और बैस्ट खिलौना था, कैंडिल से चलने वाली पुट-पुट बोट्स. फोटो कैप्चर कर मैंने शिवानी को टैग किया और खरीदते हुए सोचने लगा बन्नू को मेरी यह पसंद, पसंद आएगी या नहीं.

.......….........



" क्या मैं अंदर आ सकता हूॅं? " अजीब महसूस हो रहा था मुझे इस बार रोज़दा से मिलते हुए, और उसके घर के अंदर खुद को धकेलना मेरे लिए बिल्कुल भी कंफर्टबल न था.

" ............... "

उसने कुछ रिएक्ट नहीं किया और सैकिंड के अगले अंतरालों में अपनी साइकिल निकाल कर मेरी आंखों से ओझल हो गई. गेट लैच कर बेमन से मुझे अंदर जाना पडा़, मिस्टर ॵज़ अभी मुम्बई से आए नहीं थे तो डोमस्टिक-हैल्प ने घर में मेरा स्वागत किया. रोज़दा के बर्ताव से सुलह की उम्मीद खत्म हो गई थी, फिर मॉम-डैड से बात करने‌ के‌ बाद हिम्मत तो नहीं मिली मगर अच्छा महसूस जरूर करने लगा.

अकेला बोर होने पर मैंने कोशिश की रोज़दा को काॅल करने की, नंबर अनब्लाॅक होने से काॅल‌ कन्नेक्ट नहीं हुआ. जानबूझ कर ऐसा कर रही थी वो, शायद उकसाने के लिए. लग रहा था मेरा यहां आना व्यर्थ जाएगा, और ऐसा हुआ भी. मिस्टर ॵज़ ने आकर बताया कि मैडम नाराज होने‌ की वजह से इस मसले पर बात करना नहीं चाहती, इसलिए वो अपनी फ्रेंड्स के साथ रुक रही है.

" जाने-अनजाने में मुझसे हुई हर-एक गलती को सुधार कर, एक और कोशिश करने आया था मैं यहां " अपने दोनों फोन स्क्रीन्स पर रोज़दा को भेजे गये SMSs shuffle कर दिखाते हुए मैंने मिस्टर ॵज़ से रिक्वेश्ट किया, " जो मैडम ने आपसे कहा, क्या यही बात वो मुझे को फोन पर बोल सकती है?? "

आधा घंटे के बाद मिस्टर ॵज़ जब वापस आए तो उनके चेहरे की रंगत से मुझे जवाब मिल गया. शुक्रगुजार था मैं उनका कि अपनी बेटी से उलट मुझे एक मौका दिया चीजों को ठीक करने के लिए, नहीं तो कोई जरूरत नहीं थी उन्हें अपनी बेटी के X के लिए मुम्बई से लौटने‌ की. खैर कुछ घंटे तेजा भाउ की टपरी पर रुकने‌ के बाद मैंने ट्रेन ली और वापस सर्किट-हाउस आ गया.

पहली बार नहीं हुआ था ये हमारे साथ, इसलिए मुस्किल नहीं था जिंदगी में आगे बढ़ना. माॅम-डैड और अंकल-आंटी ने अब कसम खा ली थी मेरे साथ न रहने की, इस शर्त पर कि वीकेंड पर आगरा आता-जाता रहा करुंगा, वैसे भी जयपुर से आगरा उतना दूर भी नहीं था. सिर्फ इतना था कि पहले से उलट अब वहां करण-शिवानी हमारे भी साथ होते और उनके साथ वक्त बिताने के लिए मैं बेताब रहता.

एक शाम मैं दफ्तर से आवास के लिए निकल रहा था तो गार्ड ने इंफार्म किया उदयपुर से कुछ स्टूडेंट आए हैं और वो मुझसे मिलना चाहते हैं. अब तक मुझे एकैडमी में आवास मिल गया था और दोस्त तो बहुत सारे बन गये थे. दफ्तर की जिम्मेदारी खत्म होने के बाद हमारा काम स्पोर्ट्स और वर्क-आउट के नाम पर धमाल मचाने का होता था. शराब की सोहबत से दूर इसमें मेहनत करने से वक्त भी कट जाता और रात को नींद भी दुरुस्त आती. और अब मैं इसका आदी हो गया था, तो इस दौरान हमसे कोई भी (ज्यादातर अधिकारी) मिलने आता तो रूल के मुताबिक उसे हमारे‌ साथ पसीना निकालना पड़ता.

इन स्टूडेंट्स के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी, वैसे भी ये लोग न तो हमारे सहकर्मी थे और ना ही हमारे अफसर, और उदयपुर से कनैक्ट खत्म होने के बाद मेरे साथियों की सलाह थी अगले दिन के लिए उन्हें टरका देना. मगर मेरे लिए यह उतना आसान नहीं था, कोई इतनी दूर से यूं हीं अपना वक्त बरबाद करना तो नहीं चाहेगा. गार्ड से मैंने उनमें से किसी एक को फोन पर लेने के लिए बोला, और काॅल कनैक्ट होने पर मेरा उनसे इकलौता सवाल यह था, क्या यह रोज़दा को लेकर तो नहीं है, जवाब ना में मिलने के अगले कुछ मिनिट्स बाद वो कैंटीन में थे.

" कैसी हो? "

नूतन (रोज़दा की दोस्त) को उनके साथ देखकर यकायक मेरे मुंह से निकल गया. जवाब में हल्की सी मुस्कुराहट के साथ सर हिलाते हुए उसने बाकियों से मेरा परिचय कराया. वालंटियर थे ये लोग उदयपुर गार्जियंस के, सबके काम तो अलग-अलग थे मगर परेशानी एक. रोज़दा इनकी संस्था की कोर्डीनेटर थी और उसका काम था मजलूम लोगों को पुलिस/सिविल प्रशासन की मदद से उनको कानूनी सहायता दिलवाना, और इसके लिए वो अब अपना वक्त नहीं दे पा रही थी.

" जानती हूं कि आप दोनों के बीच..... "

" लिसिन नूतन... मेरा काम था तुम्हारी लीड्स पर प्रशासन की ओर से स्विफ्ट ऐक्शन और वो अभी भी पाॅसिबल है. जहां तक मुझे पता है, उदयपुर गार्जियन्स तुम सबकी इक्वली मिल्कियत है, अब ये आप लोगों को सोचना चाहिये कि ऐसी परेशानियों से किस तरह निबटा जाए "

नूतन को इंट्रप्ट कर उनकी समस्या का हल मैंने उनके सामने रखा मगर फिर पता लगा प्रशासनिक अफसर सिर्फ रोज़दा को आधिकारिक समझते थे, शायद इसलिए कि वो मेरी करीबी है, और इन वजह से चीजें उतनी इफीशिंएंटली काम नहीं कर रही थी जितना कि पहले था. खैर, कुछ फोन काॅल्स करने के बाद मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि प्रशासनिक लेवल पर मैकेनिज्म अब पहले की तरह चलेगा, और अगर फिर भी जरूरत पड़ती है तो वो किसी भी वक्त गणेश को काॅल कर सकते हैं.

इसी दौरान मेरे सहकर्मी दोस्त आ गये और रूल के मुताबिक इन वालंटियर्स को किसी भी स्पोर्ट्स में हमारे खिलाफ पुरजोर आजमाइश करनी थी. मेरे लाख मना करने के बाद भी वो हुआ जो कभी हमने कभी मिलकर तय किया था और फिर फीमेल्स वालंटियर्स को छोड़कर, बाकी वालंटियर्स की तरफ से जिम में कडी़ टक्कर मिलने के बाद हमारी हालत पतली थी.

ऑफिसर मेस में सबके साथ खाना खाने के बाद मैं नूतन एंड पार्टी को छोड़ने उनके होटेल तक गया, तब उन लोगों ने बताया कि पिछले एक-डेढ़ महीने से रोज़दा किसी को डेट करने लगी है और उसका नूतन‌ की गिफ्ट-शाॅप (उदयपुर गार्जियन्स का ऑपरेटिंग सेंटर) में आना लगभग बंद हो गया है. जिस पर मेरा सिर्फ यह मत था कि एक दोस्त होने के नाते उनको रोज़दा की जा़ती जिंदगी से जुडे़ फैसलों की सही मायनों में इज्ज़त करनी चाहिये थी और उन्होंने अपनी इस गलती को सहर्ष स्वीकार कर लिया.
रिव्यू कल देता हूँ
 
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धीरे-धीरे तस्वीर अब क्लीयर होने लगी थी. समझ आने लगा था दादू की ख्वाहिश शायद डैड के लिए बडे जैकपाॅट में कैसे तब्दील हो गई. क्यूंकि माॅम-डैड की पेंशन और कुछ इंवेस्टमेंट प्लान्स को मिलाकर हमारी टोटल‌ सेविंग 1.2 करोड़ से ज्यादा न थी. मुझे लगता था, मिस्टर आज़ के ठाठ देखकर मॉम-डैड के दिमाग पर भी रईसों जैसा भूत सवार हो गया था.

…............
हा हा हा हा
ह्म्म्म्म लगता कुछ बातों से नायक या तो अंजान है हर रिश्ते नातों से ऊबा हुआ है

शाम तक लगभग ज्यादातर लोगों के ऊपर से होली का शुरूर उतर चुका था. सड़कें सुनसान थी, बस कुछ स्टूडेंट्स या फिर इक्का दुक्का लोग ही थे जिनकी वजह से ये शहर आबाद लग रहा था. खैर, होली की ड्यूटी से अब हमारी स्पेशल यूनिट भी पूरी तरह आजाद थी और मनु भाभी के आग्रह पर रोजदा को लेकर मैं गणेश के घर स्टा्र्टर में मिले तरह-तरह के पापड़ और पकौडों के संग चाय सिप कर रहा था.

दूसरी तरफ भाभी की ट्रेडीशनल किचिन और किचिनवेयर को देखकर रोज़दा इम्प्रैस्ड थी. हालांकि उसका टेस्ट भी राजस्थानी ही था मगर मटका, हंडी, Rock-Mortar, सिल-बटन, लकडी की मसाल-दानी, सिरेमिक की बरनियां और कोयला, चारकोल या लकडी़ से चलने वाला पोर्टेबल तंदूर; उसके क्या अब हमारे किचिन का हिस्सा भी नहीं रहे थे. उसके पास एक लम्बी लिस्ट थी नये घर में हमारी जरूरत के सामान को लेकर, जिसे मैडम कल मनु भाभी के साथ मिलकर आर्डर करने वाली थी.
हम्म्म आज कल तह ट्रडिशनल बातेँ फैशन बनता जा रहा है
अब मेरे घर में भी कुछ ऐसे हालात हैं

सर्किट-हाउस वापस आने पर डैड की काॅल आ गई. राजौरिया अंकल-आंटी के साथ वो और माॅम कल श्रीनगर निकल रहे थे दादू के ऑर्चर्ड की डील क्लोज करने. वो जानते थे उस जगह से मेरा कोई कनैक्ट नहीं है, इसलिए उसके बदले यहां जयपुर में इन्वेस्ट करना कहीं बेहतर होगा, रही बात दादू की ख्वाहिश की तो उसके लिए रैनावारी में अपना घर तो है ही. मैंने डैड को बोला एक बार और सोचने के लिए मगर उनकी दलीलों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था.

" माॅम-डैड को भरोसा है तुम्हारे आने से हमारी किस्मत चमकने लगी है "

यह सुनकर कपडे़ समेटते हुए रोज़दा के चेहरे पर एक बारगी तो मुस्कुराहट फैल गई. फिर कुछ देर बाद ना जाने क्या सोच कर उसके तेवर बदल गये, " तुमसे बेहतर तो मॉम-डैड निकले, कभी इतनी तारीफ तुम भी कर दिया करो.... सच में यार, तुम थोडे भी रोमेंटिक नहीं हो... "
हा हा हा
मुझे लगा था ऐसा ही कोई डायलॉग पढ़ने को मिलेगा

" करैक्ट " मैंने आब्जेक्ट नहीं किया. क्यूंकि यही वो एवरग्रीन फोर्मूला था गणेश ने मुझे बताया था खुशहाल फैमिली लाइफ के लिए. वैसे भी डैड ने सिखाया था कि अपनों से हारने में ही अपनेपन का अहसास होता है.
हाँ यह बात सौ टका सही है

" घर लेने से पहले हम सगाई करा ले? शायद उससे तुम्हारी ये social anxeity वाली परेशानी खत्म हो?? " यह बोलते हुए रोज़दा का रुख बहुत संजीदा था.

" social anxeity!!! प्लीज अगले वीक मुझे इंपोटेंट समझने मत लगना. वैसे... कहां से ढूंढ कर लाती हो यह सब? इंसान हैं हम रोज़दा.. मुझे फिक्र है बस तुम्हारे डैड के भरोसे की और ये सगाई ही क्यूं? मैरिज रजिस्टर न करा लें.... मगर फिर उनका क्या जिन्होने हमारे लिए पता नहीं क्या-क्या सपने देखे हैं? "

" तो रोक लो ना डैड को आर्चर्ड बेचने से. वैसे भी तुम्हारी जाॅब को देखकर मेरी ऑपिनियन अब बदल गई है, इसलिए हम रेंट पर लेंगे एक बडा अपार्टमेंट और फिर एवरी वीकेंड या छुट्टियों में जाया करेंगे उदयपुर "

मैडम के बदलते रुख से मुझे थोडा़ सुकून मिला, शायद उसने सैंकिंड ओपिनीयन ली होगी किसी से. खैर, ये मसला अब मेरी हैसियत के बाहर था क्यूंकि घरवाले मेरे से ज्यादा उनकी होने वाली बहू की ख्वाहिश के फिक्रमंद थे, " अब मेरी कहां सुनते हैं वो लोग.... और अब तो मैं भी नहीं चाहता कि वो मेरी कोई बात माने "

" पर मुझे बुरा लग रहा है अब, तुम्हारे दादू और डैड का जुडा़व रहा होगा उस जगह से "

" अंदाजा नहीं तुम्हारे सवाल का असल जवाब क्या है. इज्जत, अमन और चैन की जिंदगी बसर करने के लिए हमें कभी कडे़ फैसले लेने पड़ते‌ हैं... दादू ने यह डैड को सिखाया और डैड ने मुझे "


इसके बाद हमारी कोई बात नहीं हुई. एयरकंडीशनर के धीमे शोर और हल्की ठंड में, चादर के अंदर एक दूसरे को सहलाते सहलाते, पता नहीं हमें कब नींद ने अपने आगोश में ले लिया. सुबह जब आंखें खुली तो सवा नौ बज रहे थे और रोज़दा से बातें करते हुऐ गणेश ना जाने मेरे कब जागने का इंतजार कर रहा था. लेट हो गया था मैं आज इसलिए अपने ID प्रूफ, चैक्स और एटीएम कार्ड मैडम को सौंप कर एकेडमी निकल गया.

लंच के वक्त डैड का फोन आया कि वो श्रीनगर तो पहुंच गये हैं मगर मेरे परम आदरणीय गुरू के अंतिम दर्शन में शामिल होने के लिए मुझे कल सुबह तक पालमपुर पहुंचना चाहिये. रोज़दा फोन नहीं उठा रही थी और जब गणेश को काॅल किया तो पता लगा वो उसे काफी पहले बनी-पार्क छोड़ कर वापस अकादमी आ गया था. हालांकि मैडम छोटी बच्ची नहीं थी मगर फ्लाइट पकड़ने की जल्दबाजी में मुझे अंदाजा नहीं था सर्किट-हाउस पहुंचने पर एक और बैड न्यूज मेरा इंतजार कर रही थी.

एक लिफाफे में मेरे ID, ATM और चैक्स के साथ हमारी प्रेम कहानी के टूटने को व्यक्त करते हुऐ रोज़दा ने एक लेटर छोडा़ था. वजह का कोई स्पष्ट जिक्र नहीं था, बस मैंने न जाने किसी बात पर उसका भरोसा इतना तोडा़ था कि मैडम के लिए संभव नहीं था मेरे साथ जिंदगी बिता पाना.
ओ तेरी यह तो बड़ा कांड हो गया
थैंकफुली मिस्टर ॵज़ ने आंसर किया, बताया कि वो उदयपुर आ रही है मगर वाजोहात के बारे में उन्हें भी अंदाजा नहीं था.

पालमपुर पहुंचने तक मेरी प्राथमिकताऐं ब्रेक-अप के पीछे की वजह जानने की थी मगर कटोच सर ने पंच तत्व में विलीन होने के वाबजूद मेरा मार्गदर्शन कर अपनी महिमा का अहसास करा दिया. Scarecrow 1 के नाम से सेव कर रखा था उन्होंने मेरा मोबाइल नंबर और इससे पहले का नंबर था उनके बेटे मिलिंद का, जिनके दो बच्चों को उनके तलाक होने के बाद से कटोच सर खुद पाल रहे थे.

व्यवहारिक जीवन खासकर, वैवाहिक बंधन में लाॅजिकल होना होना कितना बडा़ अभिशाप है इस ज्ञान की प्राप्ति मुझे मिलिंद भाई से हुई. प्रख्यात न्यूरोसर्जन और प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक होने के बाद भी वो असफल थे तो उपल्बधियों के नाम पर मेरे पास तो सिर्फ भगौडा़ होने का तमगा. खैर ऐसे अनुभवों का नाम ही जिंदगी है और इसका सफर खत्म होता था शम्शान में चार या चार से कहीं ज्यादा कंधों पर आ कर, और किस को कितने कंधे मिलने हैं वो डिपेंड करता था दूसरों के प्रति उनके आचरण पर.

पालमपुर से वापस निकलते हुए थोडी़ देर के लिए न्यूगल खड्ड पर रुका तो पुराने दिन याद आ गये, मगर चीजें अब यहां बहुत बदल गई थी. फिर मुझे एक बुजुर्ग अंकल के हाथों में वो दिखा जो मेरे बचपन का एक मात्र और बैस्ट खिलौना था, कैंडिल से चलने वाली पुट-पुट बोट्स. फोटो कैप्चर कर मैंने शिवानी को टैग किया और खरीदते हुए सोचने लगा बन्नू को मेरी यह पसंद, पसंद आएगी या नहीं.

.......….........



" क्या मैं अंदर आ सकता हूॅं? " अजीब महसूस हो रहा था मुझे इस बार रोज़दा से मिलते हुए, और उसके घर के अंदर खुद को धकेलना मेरे लिए बिल्कुल भी कंफर्टबल न था.

" ............... "

उसने कुछ रिएक्ट नहीं किया और सैकिंड के अगले अंतरालों में अपनी साइकिल निकाल कर मेरी आंखों से ओझल हो गई. गेट लैच कर बेमन से मुझे अंदर जाना पडा़, मिस्टर ॵज़ अभी मुम्बई से आए नहीं थे तो डोमस्टिक-हैल्प ने घर में मेरा स्वागत किया. रोज़दा के बर्ताव से सुलह की उम्मीद खत्म हो गई थी, फिर मॉम-डैड से बात करने‌ के‌ बाद हिम्मत तो नहीं मिली मगर अच्छा महसूस जरूर करने लगा.

अकेला बोर होने पर मैंने कोशिश की रोज़दा को काॅल करने की, नंबर अनब्लाॅक होने से काॅल‌ कन्नेक्ट नहीं हुआ. जानबूझ कर ऐसा कर रही थी वो, शायद उकसाने के लिए. लग रहा था मेरा यहां आना व्यर्थ जाएगा, और ऐसा हुआ भी. मिस्टर ॵज़ ने आकर बताया कि मैडम नाराज होने‌ की वजह से इस मसले पर बात करना नहीं चाहती, इसलिए वो अपनी फ्रेंड्स के साथ रुक रही है.

" जाने-अनजाने में मुझसे हुई हर-एक गलती को सुधार कर, एक और कोशिश करने आया था मैं यहां " अपने दोनों फोन स्क्रीन्स पर रोज़दा को भेजे गये SMSs shuffle कर दिखाते हुए मैंने मिस्टर ॵज़ से रिक्वेश्ट किया, " जो मैडम ने आपसे कहा, क्या यही बात वो मुझे को फोन पर बोल सकती है?? "

आधा घंटे के बाद मिस्टर ॵज़ जब वापस आए तो उनके चेहरे की रंगत से मुझे जवाब मिल गया. शुक्रगुजार था मैं उनका कि अपनी बेटी से उलट मुझे एक मौका दिया चीजों को ठीक करने के लिए, नहीं तो कोई जरूरत नहीं थी उन्हें अपनी बेटी के X के लिए मुम्बई से लौटने‌ की. खैर कुछ घंटे तेजा भाउ की टपरी पर रुकने‌ के बाद मैंने ट्रेन ली और वापस सर्किट-हाउस आ गया.
ओ चलो गाड़ी अब पटरी पर आई है

पहली बार नहीं हुआ था ये हमारे साथ, इसलिए मुस्किल नहीं था जिंदगी में आगे बढ़ना. माॅम-डैड और अंकल-आंटी ने अब कसम खा ली थी मेरे साथ न रहने की, इस शर्त पर कि वीकेंड पर आगरा आता-जाता रहा करुंगा, वैसे भी जयपुर से आगरा उतना दूर भी नहीं था. सिर्फ इतना था कि पहले से उलट अब वहां करण-शिवानी हमारे भी साथ होते और उनके साथ वक्त बिताने के लिए मैं बेताब रहता.

एक शाम मैं दफ्तर से आवास के लिए निकल रहा था तो गार्ड ने इंफार्म किया उदयपुर से कुछ स्टूडेंट आए हैं और वो मुझसे मिलना चाहते हैं. अब तक मुझे एकैडमी में आवास मिल गया था और दोस्त तो बहुत सारे बन गये थे. दफ्तर की जिम्मेदारी खत्म होने के बाद हमारा काम स्पोर्ट्स और वर्क-आउट के नाम पर धमाल मचाने का होता था. शराब की सोहबत से दूर इसमें मेहनत करने से वक्त भी कट जाता और रात को नींद भी दुरुस्त आती. और अब मैं इसका आदी हो गया था, तो इस दौरान हमसे कोई भी (ज्यादातर अधिकारी) मिलने आता तो रूल के मुताबिक उसे हमारे‌ साथ पसीना निकालना पड़ता.

इन स्टूडेंट्स के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी, वैसे भी ये लोग न तो हमारे सहकर्मी थे और ना ही हमारे अफसर, और उदयपुर से कनैक्ट खत्म होने के बाद मेरे साथियों की सलाह थी अगले दिन के लिए उन्हें टरका देना. मगर मेरे लिए यह उतना आसान नहीं था, कोई इतनी दूर से यूं हीं अपना वक्त बरबाद करना तो नहीं चाहेगा. गार्ड से मैंने उनमें से किसी एक को फोन पर लेने के लिए बोला, और काॅल कनैक्ट होने पर मेरा उनसे इकलौता सवाल यह था, क्या यह रोज़दा को लेकर तो नहीं है, जवाब ना में मिलने के अगले कुछ मिनिट्स बाद वो कैंटीन में थे.

" कैसी हो? "

नूतन (रोज़दा की दोस्त) को उनके साथ देखकर यकायक मेरे मुंह से निकल गया. जवाब में हल्की सी मुस्कुराहट के साथ सर हिलाते हुए उसने बाकियों से मेरा परिचय कराया. वालंटियर थे ये लोग उदयपुर गार्जियंस के, सबके काम तो अलग-अलग थे मगर परेशानी एक. रोज़दा इनकी संस्था की कोर्डीनेटर थी और उसका काम था मजलूम लोगों को पुलिस/सिविल प्रशासन की मदद से उनको कानूनी सहायता दिलवाना, और इसके लिए वो अब अपना वक्त नहीं दे पा रही थी.

" जानती हूं कि आप दोनों के बीच..... "

" लिसिन नूतन... मेरा काम था तुम्हारी लीड्स पर प्रशासन की ओर से स्विफ्ट ऐक्शन और वो अभी भी पाॅसिबल है. जहां तक मुझे पता है, उदयपुर गार्जियन्स तुम सबकी इक्वली मिल्कियत है, अब ये आप लोगों को सोचना चाहिये कि ऐसी परेशानियों से किस तरह निबटा जाए "

नूतन को इंट्रप्ट कर उनकी समस्या का हल मैंने उनके सामने रखा मगर फिर पता लगा प्रशासनिक अफसर सिर्फ रोज़दा को आधिकारिक समझते थे, शायद इसलिए कि वो मेरी करीबी है, और इन वजह से चीजें उतनी इफीशिंएंटली काम नहीं कर रही थी जितना कि पहले था. खैर, कुछ फोन काॅल्स करने के बाद मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि प्रशासनिक लेवल पर मैकेनिज्म अब पहले की तरह चलेगा, और अगर फिर भी जरूरत पड़ती है तो वो किसी भी वक्त गणेश को काॅल कर सकते हैं.

इसी दौरान मेरे सहकर्मी दोस्त आ गये और रूल के मुताबिक इन वालंटियर्स को किसी भी स्पोर्ट्स में हमारे खिलाफ पुरजोर आजमाइश करनी थी. मेरे लाख मना करने के बाद भी वो हुआ जो कभी हमने कभी मिलकर तय किया था और फिर फीमेल्स वालंटियर्स को छोड़कर, बाकी वालंटियर्स की तरफ से जिम में कडी़ टक्कर मिलने के बाद हमारी हालत पतली थी.
हा हा हा हा हा


ऑफिसर मेस में सबके साथ खाना खाने के बाद मैं नूतन एंड पार्टी को छोड़ने उनके होटेल तक गया, तब उन लोगों ने बताया कि पिछले एक-डेढ़ महीने से रोज़दा किसी को डेट करने लगी है और उसका नूतन‌ की गिफ्ट-शाॅप (उदयपुर गार्जियन्स का ऑपरेटिंग सेंटर) में आना लगभग बंद हो गया है. जिस पर मेरा सिर्फ यह मत था कि एक दोस्त होने के नाते उनको रोज़दा की जा़ती जिंदगी से जुडे़ फैसलों की सही मायनों में इज्ज़त करनी चाहिये थी और उन्होंने अपनी इस गलती को सहर्ष स्वीकार कर लिया.
वाव
कहानी में नायक ऐसा लग रहा है जैसे वह खुद खुद से खीज गया हो
रिश्ते और जिंदगी में कंप्रोमाइज करना जैसे मज़बूरी है
कोई सीरियसनेस नहीं
जिंदगी को गले लगाने के लिए या अपने दिल की धड़कन सुनने के लिए


धीरे-धीरे तस्वीर अब क्लीयर होने लगी थी. समझ आने लगा था दादू की ख्वाहिश शायद डैड के लिए बडे जैकपाॅट में कैसे तब्दील हो गई. क्यूंकि माॅम-डैड की पेंशन और कुछ इंवेस्टमेंट प्लान्स को मिलाकर हमारी टोटल‌ सेविंग 1.2 करोड़ से ज्यादा न थी. मुझे लगता था, मिस्टर आज़ के ठाठ देखकर मॉम-डैड के दिमाग पर भी रईसों जैसा भूत सवार हो गया था.

…............

शाम तक लगभग ज्यादातर लोगों के ऊपर से होली का शुरूर उतर चुका था. सड़कें सुनसान थी, बस कुछ स्टूडेंट्स या फिर इक्का दुक्का लोग ही थे जिनकी वजह से ये शहर आबाद लग रहा था. खैर, होली की ड्यूटी से अब हमारी स्पेशल यूनिट भी पूरी तरह आजाद थी और मनु भाभी के आग्रह पर रोजदा को लेकर मैं गणेश के घर स्टा्र्टर में मिले तरह-तरह के पापड़ और पकौडों के संग चाय सिप कर रहा था.

दूसरी तरफ भाभी की ट्रेडीशनल किचिन और किचिनवेयर को देखकर रोज़दा इम्प्रैस्ड थी. हालांकि उसका टेस्ट भी राजस्थानी ही था मगर मटका, हंडी, Rock-Mortar, सिल-बटन, लकडी की मसाल-दानी, सिरेमिक की बरनियां और कोयला, चारकोल या लकडी़ से चलने वाला पोर्टेबल तंदूर; उसके क्या अब हमारे किचिन का हिस्सा भी नहीं रहे थे. उसके पास एक लम्बी लिस्ट थी नये घर में हमारी जरूरत के सामान को लेकर, जिसे मैडम कल मनु भाभी के साथ मिलकर आर्डर करने वाली थी.

सर्किट-हाउस वापस आने पर डैड की काॅल आ गई. राजौरिया अंकल-आंटी के साथ वो और माॅम कल श्रीनगर निकल रहे थे दादू के ऑर्चर्ड की डील क्लोज करने. वो जानते थे उस जगह से मेरा कोई कनैक्ट नहीं है, इसलिए उसके बदले यहां जयपुर में इन्वेस्ट करना कहीं बेहतर होगा, रही बात दादू की ख्वाहिश की तो उसके लिए रैनावारी में अपना घर तो है ही. मैंने डैड को बोला एक बार और सोचने के लिए मगर उनकी दलीलों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था.

" माॅम-डैड को भरोसा है तुम्हारे आने से हमारी किस्मत चमकने लगी है "

यह सुनकर कपडे़ समेटते हुए रोज़दा के चेहरे पर एक बारगी तो मुस्कुराहट फैल गई. फिर कुछ देर बाद ना जाने क्या सोच कर उसके तेवर बदल गये, " तुमसे बेहतर तो मॉम-डैड निकले, कभी इतनी तारीफ तुम भी कर दिया करो.... सच में यार, तुम थोडे भी रोमेंटिक नहीं हो... "

" करैक्ट " मैंने आब्जेक्ट नहीं किया. क्यूंकि यही वो एवरग्रीन फोर्मूला था गणेश ने मुझे बताया था खुशहाल फैमिली लाइफ के लिए. वैसे भी डैड ने सिखाया था कि अपनों से हारने में ही अपनेपन का अहसास होता है.

" घर लेने से पहले हम सगाई करा ले? शायद उससे तुम्हारी ये social anxeity वाली परेशानी खत्म हो?? " यह बोलते हुए रोज़दा का रुख बहुत संजीदा था.

" social anxeity!!! प्लीज अगले वीक मुझे इंपोटेंट समझने मत लगना. वैसे... कहां से ढूंढ कर लाती हो यह सब? इंसान हैं हम रोज़दा.. मुझे फिक्र है बस तुम्हारे डैड के भरोसे की और ये सगाई ही क्यूं? मैरिज रजिस्टर न करा लें.... मगर फिर उनका क्या जिन्होने हमारे लिए पता नहीं क्या-क्या सपने देखे हैं? "

" तो रोक लो ना डैड को आर्चर्ड बेचने से. वैसे भी तुम्हारी जाॅब को देखकर मेरी ऑपिनियन अब बदल गई है, इसलिए हम रेंट पर लेंगे एक बडा अपार्टमेंट और फिर एवरी वीकेंड या छुट्टियों में जाया करेंगे उदयपुर "

मैडम के बदलते रुख से मुझे थोडा़ सुकून मिला, शायद उसने सैंकिंड ओपिनीयन ली होगी किसी से. खैर, ये मसला अब मेरी हैसियत के बाहर था क्यूंकि घरवाले मेरे से ज्यादा उनकी होने वाली बहू की ख्वाहिश के फिक्रमंद थे, " अब मेरी कहां सुनते हैं वो लोग.... और अब तो मैं भी नहीं चाहता कि वो मेरी कोई बात माने "

" पर मुझे बुरा लग रहा है अब, तुम्हारे दादू और डैड का जुडा़व रहा होगा उस जगह से "

" अंदाजा नहीं तुम्हारे सवाल का असल जवाब क्या है. इज्जत, अमन और चैन की जिंदगी बसर करने के लिए हमें कभी कडे़ फैसले लेने पड़ते‌ हैं... दादू ने यह डैड को सिखाया और डैड ने मुझे "


इसके बाद हमारी कोई बात नहीं हुई. एयरकंडीशनर के धीमे शोर और हल्की ठंड में, चादर के अंदर एक दूसरे को सहलाते सहलाते, पता नहीं हमें कब नींद ने अपने आगोश में ले लिया. सुबह जब आंखें खुली तो सवा नौ बज रहे थे और रोज़दा से बातें करते हुऐ गणेश ना जाने मेरे कब जागने का इंतजार कर रहा था. लेट हो गया था मैं आज इसलिए अपने ID प्रूफ, चैक्स और एटीएम कार्ड मैडम को सौंप कर एकेडमी निकल गया.

लंच के वक्त डैड का फोन आया कि वो श्रीनगर तो पहुंच गये हैं मगर मेरे परम आदरणीय गुरू के अंतिम दर्शन में शामिल होने के लिए मुझे कल सुबह तक पालमपुर पहुंचना चाहिये. रोज़दा फोन नहीं उठा रही थी और जब गणेश को काॅल किया तो पता लगा वो उसे काफी पहले बनी-पार्क छोड़ कर वापस अकादमी आ गया था. हालांकि मैडम छोटी बच्ची नहीं थी मगर फ्लाइट पकड़ने की जल्दबाजी में मुझे अंदाजा नहीं था सर्किट-हाउस पहुंचने पर एक और बैड न्यूज मेरा इंतजार कर रही थी.

एक लिफाफे में मेरे ID, ATM और चैक्स के साथ हमारी प्रेम कहानी के टूटने को व्यक्त करते हुऐ रोज़दा ने एक लेटर छोडा़ था. वजह का कोई स्पष्ट जिक्र नहीं था, बस मैंने न जाने किसी बात पर उसका भरोसा इतना तोडा़ था कि मैडम के लिए संभव नहीं था मेरे साथ जिंदगी बिता पाना. थैंकफुली मिस्टर ॵज़ ने आंसर किया, बताया कि वो उदयपुर आ रही है मगर वाजोहात के बारे में उन्हें भी अंदाजा नहीं था.

पालमपुर पहुंचने तक मेरी प्राथमिकताऐं ब्रेक-अप के पीछे की वजह जानने की थी मगर कटोच सर ने पंच तत्व में विलीन होने के वाबजूद मेरा मार्गदर्शन कर अपनी महिमा का अहसास करा दिया. Scarecrow 1 के नाम से सेव कर रखा था उन्होंने मेरा मोबाइल नंबर और इससे पहले का नंबर था उनके बेटे मिलिंद का, जिनके दो बच्चों को उनके तलाक होने के बाद से कटोच सर खुद पाल रहे थे.

व्यवहारिक जीवन खासकर, वैवाहिक बंधन में लाॅजिकल होना होना कितना बडा़ अभिशाप है इस ज्ञान की प्राप्ति मुझे मिलिंद भाई से हुई. प्रख्यात न्यूरोसर्जन और प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक होने के बाद भी वो असफल थे तो उपल्बधियों के नाम पर मेरे पास तो सिर्फ भगौडा़ होने का तमगा. खैर ऐसे अनुभवों का नाम ही जिंदगी है और इसका सफर खत्म होता था शम्शान में चार या चार से कहीं ज्यादा कंधों पर आ कर, और किस को कितने कंधे मिलने हैं वो डिपेंड करता था दूसरों के प्रति उनके आचरण पर.

पालमपुर से वापस निकलते हुए थोडी़ देर के लिए न्यूगल खड्ड पर रुका तो पुराने दिन याद आ गये, मगर चीजें अब यहां बहुत बदल गई थी. फिर मुझे एक बुजुर्ग अंकल के हाथों में वो दिखा जो मेरे बचपन का एक मात्र और बैस्ट खिलौना था, कैंडिल से चलने वाली पुट-पुट बोट्स. फोटो कैप्चर कर मैंने शिवानी को टैग किया और खरीदते हुए सोचने लगा बन्नू को मेरी यह पसंद, पसंद आएगी या नहीं.

.......….........



" क्या मैं अंदर आ सकता हूॅं? " अजीब महसूस हो रहा था मुझे इस बार रोज़दा से मिलते हुए, और उसके घर के अंदर खुद को धकेलना मेरे लिए बिल्कुल भी कंफर्टबल न था.

" ............... "

उसने कुछ रिएक्ट नहीं किया और सैकिंड के अगले अंतरालों में अपनी साइकिल निकाल कर मेरी आंखों से ओझल हो गई. गेट लैच कर बेमन से मुझे अंदर जाना पडा़, मिस्टर ॵज़ अभी मुम्बई से आए नहीं थे तो डोमस्टिक-हैल्प ने घर में मेरा स्वागत किया. रोज़दा के बर्ताव से सुलह की उम्मीद खत्म हो गई थी, फिर मॉम-डैड से बात करने‌ के‌ बाद हिम्मत तो नहीं मिली मगर अच्छा महसूस जरूर करने लगा.

अकेला बोर होने पर मैंने कोशिश की रोज़दा को काॅल करने की, नंबर अनब्लाॅक होने से काॅल‌ कन्नेक्ट नहीं हुआ. जानबूझ कर ऐसा कर रही थी वो, शायद उकसाने के लिए. लग रहा था मेरा यहां आना व्यर्थ जाएगा, और ऐसा हुआ भी. मिस्टर ॵज़ ने आकर बताया कि मैडम नाराज होने‌ की वजह से इस मसले पर बात करना नहीं चाहती, इसलिए वो अपनी फ्रेंड्स के साथ रुक रही है.

" जाने-अनजाने में मुझसे हुई हर-एक गलती को सुधार कर, एक और कोशिश करने आया था मैं यहां " अपने दोनों फोन स्क्रीन्स पर रोज़दा को भेजे गये SMSs shuffle कर दिखाते हुए मैंने मिस्टर ॵज़ से रिक्वेश्ट किया, " जो मैडम ने आपसे कहा, क्या यही बात वो मुझे को फोन पर बोल सकती है?? "

आधा घंटे के बाद मिस्टर ॵज़ जब वापस आए तो उनके चेहरे की रंगत से मुझे जवाब मिल गया. शुक्रगुजार था मैं उनका कि अपनी बेटी से उलट मुझे एक मौका दिया चीजों को ठीक करने के लिए, नहीं तो कोई जरूरत नहीं थी उन्हें अपनी बेटी के X के लिए मुम्बई से लौटने‌ की. खैर कुछ घंटे तेजा भाउ की टपरी पर रुकने‌ के बाद मैंने ट्रेन ली और वापस सर्किट-हाउस आ गया.

पहली बार नहीं हुआ था ये हमारे साथ, इसलिए मुस्किल नहीं था जिंदगी में आगे बढ़ना. माॅम-डैड और अंकल-आंटी ने अब कसम खा ली थी मेरे साथ न रहने की, इस शर्त पर कि वीकेंड पर आगरा आता-जाता रहा करुंगा, वैसे भी जयपुर से आगरा उतना दूर भी नहीं था. सिर्फ इतना था कि पहले से उलट अब वहां करण-शिवानी हमारे भी साथ होते और उनके साथ वक्त बिताने के लिए मैं बेताब रहता.

एक शाम मैं दफ्तर से आवास के लिए निकल रहा था तो गार्ड ने इंफार्म किया उदयपुर से कुछ स्टूडेंट आए हैं और वो मुझसे मिलना चाहते हैं. अब तक मुझे एकैडमी में आवास मिल गया था और दोस्त तो बहुत सारे बन गये थे. दफ्तर की जिम्मेदारी खत्म होने के बाद हमारा काम स्पोर्ट्स और वर्क-आउट के नाम पर धमाल मचाने का होता था. शराब की सोहबत से दूर इसमें मेहनत करने से वक्त भी कट जाता और रात को नींद भी दुरुस्त आती. और अब मैं इसका आदी हो गया था, तो इस दौरान हमसे कोई भी (ज्यादातर अधिकारी) मिलने आता तो रूल के मुताबिक उसे हमारे‌ साथ पसीना निकालना पड़ता.

इन स्टूडेंट्स के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी, वैसे भी ये लोग न तो हमारे सहकर्मी थे और ना ही हमारे अफसर, और उदयपुर से कनैक्ट खत्म होने के बाद मेरे साथियों की सलाह थी अगले दिन के लिए उन्हें टरका देना. मगर मेरे लिए यह उतना आसान नहीं था, कोई इतनी दूर से यूं हीं अपना वक्त बरबाद करना तो नहीं चाहेगा. गार्ड से मैंने उनमें से किसी एक को फोन पर लेने के लिए बोला, और काॅल कनैक्ट होने पर मेरा उनसे इकलौता सवाल यह था, क्या यह रोज़दा को लेकर तो नहीं है, जवाब ना में मिलने के अगले कुछ मिनिट्स बाद वो कैंटीन में थे.

" कैसी हो? "

नूतन (रोज़दा की दोस्त) को उनके साथ देखकर यकायक मेरे मुंह से निकल गया. जवाब में हल्की सी मुस्कुराहट के साथ सर हिलाते हुए उसने बाकियों से मेरा परिचय कराया. वालंटियर थे ये लोग उदयपुर गार्जियंस के, सबके काम तो अलग-अलग थे मगर परेशानी एक. रोज़दा इनकी संस्था की कोर्डीनेटर थी और उसका काम था मजलूम लोगों को पुलिस/सिविल प्रशासन की मदद से उनको कानूनी सहायता दिलवाना, और इसके लिए वो अब अपना वक्त नहीं दे पा रही थी.

" जानती हूं कि आप दोनों के बीच..... "

" लिसिन नूतन... मेरा काम था तुम्हारी लीड्स पर प्रशासन की ओर से स्विफ्ट ऐक्शन और वो अभी भी पाॅसिबल है. जहां तक मुझे पता है, उदयपुर गार्जियन्स तुम सबकी इक्वली मिल्कियत है, अब ये आप लोगों को सोचना चाहिये कि ऐसी परेशानियों से किस तरह निबटा जाए "

नूतन को इंट्रप्ट कर उनकी समस्या का हल मैंने उनके सामने रखा मगर फिर पता लगा प्रशासनिक अफसर सिर्फ रोज़दा को आधिकारिक समझते थे, शायद इसलिए कि वो मेरी करीबी है, और इन वजह से चीजें उतनी इफीशिंएंटली काम नहीं कर रही थी जितना कि पहले था. खैर, कुछ फोन काॅल्स करने के बाद मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि प्रशासनिक लेवल पर मैकेनिज्म अब पहले की तरह चलेगा, और अगर फिर भी जरूरत पड़ती है तो वो किसी भी वक्त गणेश को काॅल कर सकते हैं.

इसी दौरान मेरे सहकर्मी दोस्त आ गये और रूल के मुताबिक इन वालंटियर्स को किसी भी स्पोर्ट्स में हमारे खिलाफ पुरजोर आजमाइश करनी थी. मेरे लाख मना करने के बाद भी वो हुआ जो कभी हमने कभी मिलकर तय किया था और फिर फीमेल्स वालंटियर्स को छोड़कर, बाकी वालंटियर्स की तरफ से जिम में कडी़ टक्कर मिलने के बाद हमारी हालत पतली थी.

ऑफिसर मेस में सबके साथ खाना खाने के बाद मैं नूतन एंड पार्टी को छोड़ने उनके होटेल तक गया, तब उन लोगों ने बताया कि पिछले एक-डेढ़ महीने से रोज़दा किसी को डेट करने लगी है और उसका नूतन‌ की गिफ्ट-शाॅप (उदयपुर गार्जियन्स का ऑपरेटिंग सेंटर) में आना लगभग बंद हो गया है. जिस पर मेरा सिर्फ यह मत था कि एक दोस्त होने के नाते उनको रोज़दा की जा़ती जिंदगी से जुडे़ फैसलों की सही मायनों में इज्ज़त करनी चाहिये थी और उन्होंने अपनी इस गलती को सहर्ष स्वीकार कर लिया.
मित्र आपकी उपस्थापना बहुत अच्छा था
नायक का चरित्र ऐसा लग रहा है जैसे वह हर रिश्ते से उबा हुआ है
कोई सीरियसनेस नहीं
पर रिश्ते और नातों को मज़बूरी में ढ़ो रहा है
खैर अति उत्तम
प्रतिक्षा रहेगी आपकी अगली कड़ी की
 
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उपस्थापना के लिए 👏

वैल, आप यकीन नहीं करोगे एक टाइम था जो में आज से कहीं ज्यादा व्यस्त होने के वाबजूद अपडेट देने में बहुत रेगुलर‌ था, इसकी वजह थी ब्लैकबेरी का फ्लालैश कीपैड फोन.

वो जमाना 2G का था लेकिन टचस्क्रीन, दोयम कैमरा और legged interface के दीवानों ने दुनिया की आखिरी सबसे फास्ट, सेफ, रिलाइबल और राब्स्ट मोबाइल कंपनी को‌ बर्बाद करके रख दिया.

ऐसा नहीं‌ है कि मैं इसके खिलाफ‌ हूं लेकिन पीएसबी और full frame sensor or 35" camera roll के सामने आज के प्रीमियम फ्लैगशिप फोन की बिसात उतनी ही है जितनी राॅकेट के‌ सामने‌ साइकिल की. पर‌ लोग हैं‌ कि....

एनीवे... लिखना शुरू किया है. इक-दो‌ दिन‌ में अगला अपडेट पोस्ट‌ कर दूंगा. बाकी इंतजार कराने‌ के लिए 🙏

आप सभी का बहुत बहुत आभार.
 

Thakur

असला हम भी रखते है पहलवान 😼
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उपस्थापना के लिए 👏

वैल, आप यकीन नहीं करोगे एक टाइम था जो में आज से कहीं ज्यादा व्यस्त होने के वाबजूद अपडेट देने में बहुत रेगुलर‌ था, इसकी वजह थी ब्लैकबेरी का फ्लालैश कीपैड फोन.

वो जमाना 2G का था लेकिन टचस्क्रीन, दोयम कैमरा और legged interface के दीवानों ने दुनिया की आखिरी सबसे फास्ट, सेफ, रिलाइबल और राब्स्ट मोबाइल कंपनी को‌ बर्बाद करके रख दिया.

ऐसा नहीं‌ है कि मैं इसके खिलाफ‌ हूं लेकिन पीएसबी और full frame sensor or 35" camera roll के सामने आज के प्रीमियम फ्लैगशिप फोन की बिसात उतनी ही है जितनी राॅकेट के‌ सामने‌ साइकिल की. पर‌ लोग हैं‌ कि....

एनीवे... लिखना शुरू किया है. इक-दो‌ दिन‌ में अगला अपडेट पोस्ट‌ कर दूंगा. बाकी इंतजार कराने‌ के लिए 🙏

आप सभी का बहुत बहुत आभार.
Hum tera intjar karenge,
Kayamat tak karenge :music:
 
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Thanks for this support my friend. It really mean a lot.

Be blessed and keep shredding.
 

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ऑफिसर मेस में सबके साथ खाना खाने के बाद मैं नूतन एंड पार्टी को छोड़ने उनके होटेल तक गया, तब उन लोगों ने बताया कि पिछले एक-डेढ़ महीने से रोज़दा किसी को डेट करने लगी है और उसका नूतन‌ की गिफ्ट-शाॅप (उदयपुर गार्जियन्स का ऑपरेटिंग सेंटर) में आना लगभग बंद हो गया है. जिस पर मेरा सिर्फ यह मत था कि एक दोस्त होने के नाते उनको रोज़दा की जा़ती जिंदगी से जुडे़ फैसलों की सही मायनों में इज्ज़त करनी चाहिये थी और उन्होंने अपनी इस गलती को सहर्ष स्वीकार कर लिया.



अब आगे.........




एक दिन मुझे सचिवालय में बुलाया गया. वहां हमारे महकमे से संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों और मंत्रियों के साथ एक व्यक्ति और थे, जिनको मैंने सर्किट-हाउस में अपने प्रवास के दौरान एक-दो बारी देखा तो था मगर उनसे बातचीत कभी नहीं हुई. मीटिंग थी ट्यूरिज्म सेक्टर को बूस्ट करने के लिए पुलिस इनपुट्स को बढा़ने को लेकर. मुझे शार्ट नोटिस पर तलब किया गया था लिहाजा इस बैठक का मकसद या वहां आगे क्या होने वाला था उसका अंदाजा मुझे बिल्कुल नहीं था. मेरे आने के कोई पांच मिनिट्स बाद जब उस अपरिचित व्यक्ति ने इस मामले में मुझसे मेरी राय मांगी तो मैंने अकादमी में पर्यटक सुरक्षा पर ट्रेनिंग कोर्स में शामिल कुछ पुलिस कर्मियों द्वारा उनके कार्यक्षेत्र में की सृजनात्मक कुशलताओं के बारे में बताया जिनकी कैल्कुलेटिव प्रयासों से पर्यटकों की अदद सुरक्षा हुई.


वो बैठक खत्म होने के कुछ दिन बाद मुझे सूचना मिली, मेरा तबादला ट्रैफिक में किया जा रहा है. मुझे इससे कोई आपत्ति नहीं थी मगर इस बात का दुख था कि गणेश मुझसे अलग हो रहा है. लाख कोशिशों के बाद भी मेरे वरिष्ठ अधिकारियों ने मेरी इस इकलौती मांग को अनसुना कर दिया. बहुत बेबस था, इसलिए एक रात उससे मिलने उसके घर चला गया. कई महीनों से व्हिस्की को छुआ नहीं था मगर फिर राउंड्स आफ रिफिल्स अंदर डालने के बाद हम मेन टाॅपिक पर आ गये.


" ट्रैफिक में भेज रहें है मुझे "


" जानता हूं सर "


गणेश हमेशा की तरह रिलैक्स था और जब उसने मुस्कुराते हुए मुबारकबाद दी तो मुझे बुरा लगने लगा, " मुझे अकेले ही भेज रहे हैं, इसका मतलब समझते हो?? "


" डिपार्टमेंट में बाइ-सेक्सुअल और स्नाइफर डाॅग समझते हैं आपको सब, और मुझे गे और डाॅग-टेल. कम से कम इन सब उपाधियों से तो छुटकारा मिलेगा. वैसे भी मैं तो अपने घर के घर हूॅं, और आपको भी तो जयपुर ही दे रहे हैं... कौन सा दूर जा रहे हो मुझसे?? "


इस बार भी गणेश के चेहरे पर पहले जितनी ही रौनक थी. मैं समझ गया वो क्यूं खुश था, मेरी वजह से उसकी इमेज... लेकिन फिर याद आया कि मैं कुछ भूल रहा हूॅं. मेरे तबादले की सूचना जब मुझे ही दो घंटे पहले मिली थी तो गणेश को यह कैसे पता लगा?


" तुझे कैसे पता लगा कि मेरा ट्रांसफर हो रहा है और जयपुर ही मिल रहा है?? " इस बार गणेश मेरे शिकंजे में था और मेरा नशा दिमाग से बाहर मगर गणेश की मुस्कुराहट इतने पर भी कायम थी.


" माफ करना सर, आपसे पहले मैं कमिश्नर सर का वफादार हूॅं और आपका तबादला ट्रैफिक में नहीं, आपके पसंदीदा विभाग में हो रहा है "


चौंकने की बारी अब मेरी थी. फिर गणेश ने बताया उसके अजमेर ट्रांसफर होने से पहले उसने ज्ञानचंद सिवाच के साथ चार साल काम किया था. उनकी गिनती राज्य के बडे़ बिगडैल अफसरों में होती थी और मेरी पहली नियुक्ति के दौरान ड्रग्स के केस में उनकी नजर मुझ पर पडी़, जिसमें मेरी इंवेस्टीगेशन से प्रभावशाली सफेदपोशों नेताओं के साथ एक सरकारी वकील की नौकरी चली गई. फिर राजनैतिक दवाब में आकर सरकार ने शहीद करने के लिए मुझे खनन माफिया के आंगन, अजमेर भेज दिया जहां मेरी फुर्ती से अपराजिता उनका शिकार होने से बची. और अब जबसे सरकार बदली है वो मुझे अपने पाले में करना चाहते हैं और सचिवालय में आज की बैठक सरकार में उनके फिर से दबदबे का नतीजा थी.


वो खुश था, और साथ में प्राउड फील कर रहा था सिवाच जैसे ईमानदार अफसर का वफादार मुखबिर बनने पर, तो अब मेरी भी सनकने लगी थी उसका सिवाच-पुराण सुनकर. वजह शराब रही हो या चिढ़, पर मेरी जुबान से निकल गया अफसरशाही और नेतागीरी से कोसों दूर मेरी निष्ठा और सेवाएं सिर्फ जनता के लिए हैं सिवाच श्री के लिए नहीं.


और तबादले के बाद मेरी इस बद्तमीजी़ का खामियाजा मुझे उठाना पड़ा अकादमी में अपने आवास खोकर. सर्किट हाउस अब मेरा फिर से आशियाना था, लेकिन मैं खुश था पसंदीदा विभाग और अपनी तरह के सहकर्मी पाकर जिनमें सिवाच सर भी एक थे. काम की वजह से फ्रीक्वेंट आगरा जाना संभव नहीं हो पाता था मगर करण-शिवानी यहां आ जाते थे बाकी सब को लेकर.


कुछ दिनों बाद मुझे सरकारी आवास भी मिल गया लेकिन यहां मुझे राजौरिया अंकल-आंटी को अपने साथ रखने की आजादी नहीं थी. ईमानदार था इसलिए कंप्लेन नहीं करता था, और इस खुन्नस में मैंने सहकर्मियों की पार्टियों में जाना बंद कर दिया. बुरा लगता था अपने परिवार से दूर, दूसरों के परिवार के साथ मौज-मस्ती करना.


इसी बीच एक शाम मुझे खबर मिली रोज़दा और उसके ब्वायफ्रैंड का एक्सीडेंट हुआ है, फतेह सागर लेक में. डूबने की वजह से उन दोनों की हालत सीरियस थी, और एक्सीडेंट की वजह ओवरस्पीड और ड्रग्स लेना पाया गया था.


अगले दिन मेरे और करण के पहुंचने से पहले मिलिंद भाई वहां स्टैंड-बाई पर थे. लड़का तो खतरे से बाहर था मगर cerebral hypoxia और hypertensive crises की वजह से मैडम के अगले 4-6 घंटे बहुत क्रिटिकल थे. थैंकफुली दोपहर बाद ब्लड-प्रेशर और अंदरूनी दिमागी सूजन कम होने लगी थी उसकी, और इसके बाद हर घंटे-दर घंटे करके अगली सुबह तक वो खतरे से पूरी तरह बाहर थी.


इसी बीच लड़का डिस्चार्ज होकर जा चुका था. मैं हैरान था कि ना मिस्टर ॵज़ ने कोई शिकायत की थी और ना ही पुलिस की तरफ कोई Suo Moto Action लिया गया. पता लगा रोज़दा के डैड के कहने पर DIG झा ने इस मामले को ओवर-स्पीडिंग, रैश एंड नेग्लजेंट ड्राइविंग और ड्रग ओवरडोज की जगह सिर्फ ब्रेक फेल होने का बना कर पूरी तरह दबा दिया था.


इस मौके पर " मियां-बीवी राजी़ " वाली कहावत मुझ पर फिट बैठ रही थी. खैर, अब मैडम किसी भी घंटे अपनी आंखे खोल सकती थी तो दूसरी तरफ सिवाच सर की काल्स भी अब बहुत फ्रीक्वेंट होने लगी. करण और मिलिंद भाई के जाने के बाद से मैं पहले से अकेला पड़ गया था और अब मिस्टर ॵज़ और DIG झा‌ की पकाई खिचडी़ से मेरा स्वाद और बिगड गया, लिहाजा दोपहर की फ्लाइट लेकर मैं वापस जयपुर आ गया.


" मुबारिक हो धर साहिब, तुम्हारे इशक के चर्चे सरे आम होणे लगे हैं. इसलिए कान पकडो़ और Low Life रहने की आदत डाल लो. कदि ऐसा ना हो, प्रशांत झा के कारनामों पर मीडिया तुम्हारी छाप लगा दे " आवास पर पहुंचने के थोडी देर बाद सिवाच सर के ठहाके गूंजने लगे.


" ऐसा कुछ नहीं है सर.... एक फेवर रिटर्न करना था, तो जाना पडा़... काॅफी चलेगी या टाॅस करोगे?? " लैपी पर काम करना बंद कर मैं सर से मुखातिब हुआ.


" कुछ नहीं, मिसिज सिवाच नै सात दिन की रामायण का पाठ रख्या है आवास पे. जिसमें हर सुबह एक बाम्ह्ण देवता जिमाना था तो सोचा तुझसे बडा़ ब्राह्मण कौन होगा इसलिए न्यौतने आ गया "


" माफ करना सर, तीन दिन का काम बाकी है और इस वीकेंड घर नहीं पहुंचा तो कयामत आ जाएगी " हाउस-हैल्प को चाय लाने का इशारा कर मैंने सिवाच बैठने के लिए रिक्वेस्ट किया.


" मजाक कर रहा था बावले... गणेश और मणू आये थे काल्ह. पूछ रहे थे उदयपुर में सब ठीक तो है, तूने तो कोई जवाब दिया ना, इस करके मैं खुद चला आया. वैसे या वही छ्योरी है ना जो सर्किट-हाउस में थारे साथ थी? "


" जी "


" के होया था फेर? बताउगा?? रैंक में परदादा हूं थारा अर उमर में भी... " कंधे सहला कर हिम्मत बढा़ते हुए सिवाच सर ने मुझे थोडा़ और पुश किया.


" अंदाजा नहीं.. सब कुछ ठीक चल रहा था. सबको एक साथ यहां रखने के लिए घर देख रही थी.. फिर होली के दो दिन बाद एक लैटर छोड़कर उदयपुर चली गई. उससे ज्यादा मैं, पब्लिक के बीच अपनी इमेज को लेकर काॅशियस हूं, बस ऐसा ही कुछ लिखा था ", चाय का प्याला सर्व करते हुए मैंने अपनी बात खत्म की.


" हम्म.... इक काम कर. गणेश बता रहा था वो फ्लैट मालिक 93 में देने को तैयार है उसे अब. तो कल ब्याणा देकर रजिस्ट्री करा ले. फेर गणेश उसे रेनोवेट करा देगा, तब ले आना अपने अंकल-आंटी अर मां बाबूजी को. फैमली साथ होगी तो काम करने में मजा आउगा. नहीं तो बस कुत्तेखाणी है, चाहे नौकरी और या जिंदगी. तो कल ब्याणा दे अर उदयपुर भाज जा, फेर तो बस काम ही देखना है तन्नै "


" वो कमिटिड है सर अब और फैमिली.... "


" म्हारी भी बात हुई हैं किसी से. डिप्परेशण में ड्रग्स की आदत पड़गी थी छोरी को, अर गाडी़ मालिक मामे का छोरा है उसका. खाली‌ पीली वीडियो बणाता फिरे है वो इंस्टा विष्ठा पर. वा छोरी अर छोरी का बाप तन्ने आज भी पसंद करे हैं, बाकी भई थारी मर्जी "


सिवाच सर के जाने के बाद नींद गायब थी मेरी. मैं अभी सोच ही रहा था कि मेरा फोन बजने लगा. मिस्टर ॵज़ के नंबर से काॅल आ रही थी. फोन आन्सर करने पर उन्होने बताया मेरे आने के काफी देर बाद रोज़दा होश में आ गई थी, फिलहाल उसे बोलने में थोडी प्राब्लम है, बाकी यादाश्त और विजन सब ठीक लग रहे हैं उसके. इसके अगले मिनिट फोन मेसुद ने लिया, वो लोग शाम को स्वीडन से उदयपुर पहुंचे थे, और चाहते थे मेरा वहां होना.


शायद उन्हें पता नहीं था कि हमारा ब्रेकअप हो गया है. खैर, ऑफिस वर्क का बहाना कर मुझे फिलहाल के लिए उनसे छुटकारा तो मिल गया, लेकिन वीकेंड पर मेरे आगरा पहुंचने पर समस्त ॵज़ परिवार वहां पहले मौजूद था. कुछ देर बाद करण-शिवानी भी आ गये, उनको भी मेरी तरह शाॅक लगा. आंटी की तैयारियों से लग रहा था ये प्रोग्राम किसी भी एंगिल से अचानक तो प्लान किया नहीं गया था. महज चार जनों के ड्राइंग रुम में अठारह लोगों का एक साथ बैठकर खाने पीने का इंतजाम, प्री-प्लानिंग के बिना पाॅसिबल नहीं था. खैर, रोज़दा और मुझे अकेला छोड़ने के लिए, एक-एक करके सब लोग इधर-उधर हो गये.


गरदन झुकाए, शांत और सहमी हुई सी, वो मेरे राइट साइड में थोडे़ फासले से बैठी हुई थी. मैं खामोश रहने की कोशिश कर रहा था फिर मेरा ध्यान उसके राइट में रखी Elbow Crutch पर गया तो मेरे मुंह से अनायस ही निकल गया, " चलने में परेशानी होती है? "


जिसका जवाब उसने हां में अपनी गरदन हिला कर दिया. बाद में मुझे करण ने टैक्स्ट कर समझाया कि ट्राॅमा और दिमागी चोट की वजह उसे हकलाने की परेशानी भी है, इसलिए मुझे उससे सहज तरीके से ही बात करना है. कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्यूंकि पहली बार था जब मैं इस तरह के हालात से वाकिफ हुआ. इसी बीच रोज़दा सोफे से उठने लगी, और उसकी हैल्प करने के लिए जैसे ही मैं उसके पास गया, एक कागज़ टुकडा़ मेरे हाथ में थमा कर वो वापस अपनी जगह पर बैठ गई, या शायद उस वक्त उससे चला नहीं गया.


कागज पर बहुत कुछ लिखा हुआ था जिससे मैं अब उतना इत्तेफाक तो नहीं रखता था, लेकिन उसके जिस हिस्से ने सबसे ज्यादा असर डाल मुझे अपनी राय बदलने पर मजबूर किया, उसका कुछ अंश यह था.


" I badly hate myself Samar, therefore i found Fateh Sagar as good as your Newgal Khadd to drown myself in "



 
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kamdev99008

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ऑफिसर मेस में सबके साथ खाना खाने के बाद मैं नूतन एंड पार्टी को छोड़ने उनके होटेल तक गया, तब उन लोगों ने बताया कि पिछले एक-डेढ़ महीने से रोज़दा किसी को डेट करने लगी है और उसका नूतन‌ की गिफ्ट-शाॅप (उदयपुर गार्जियन्स का ऑपरेटिंग सेंटर) में आना लगभग बंद हो गया है. जिस पर मेरा सिर्फ यह मत था कि एक दोस्त होने के नाते उनको रोज़दा की जा़ती जिंदगी से जुडे़ फैसलों की सही मायनों में इज्ज़त करनी चाहिये थी और उन्होंने अपनी इस गलती को सहर्ष स्वीकार कर लिया.


अब आगे.........



एक दिन मुझे सचिवालय में बुलाया गया. वहां हमारे महकमे से संबंधित वरिष्ठ अधिकारियों और मंत्रियों के साथ एक व्यक्ति और थे, जिनको मैंने सर्किट-हाउस में अपने प्रवास के दौरान एक-दो बारी देखा तो था मगर उनसे बातचीत कभी नहीं हुई. मीटिंग थी ट्यूरिज्म सेक्टर को बूस्ट करने के लिए पुलिस इनपुट्स को बढा़ने को लेकर. मुझे शार्ट नोटिस पर तलब किया गया था लिहाजा इस बैठक का मकसद या वहां आगे क्या होने वाला था उसका अंदाजा मुझे बिल्कुल नहीं था. मेरे आने के कोई पांच मिनिट्स बाद जब उस अपरिचित व्यक्ति ने इस मामले में मुझसे मेरी राय मांगी तो मैंने अकादमी में पर्यटक सुरक्षा पर ट्रेनिंग कोर्स में शामिल कुछ पुलिस कर्मियों द्वारा उनके कार्यक्षेत्र में की सृजनात्मक कुशलताओं के बारे में बताया जिनकी कैल्कुलेटिव प्रयासों से पर्यटकों की अदद सुरक्षा हुई.


वो बैठक खत्म होने के कुछ दिन बाद मुझे सूचना मिली, मेरा तबादला ट्रैफिक में किया जा रहा है. मुझे इससे कोई आपत्ति नहीं थी मगर इस बात का दुख था कि गणेश मुझसे अलग हो रहा है. लाख कोशिशों के बाद भी मेरे वरिष्ठ अधिकारियों ने मेरी इस इकलौती मांग को अनसुना कर दिया. बहुत बेबस था, इसलिए एक रात उससे मिलने उसके घर चला गया. कई महीनों से व्हिस्की को छुआ नहीं था मगर फिर राउंड्स आफ रिफिल्स अंदर डालने के बाद हम मेन टाॅपिक पर आ गये.

" ट्रैफिक में भेज रहें है मुझे "

" जानता हूं सर "

गणेश हमेशा की तरह रिलैक्स था और जब उसने मुस्कुराते हुए मुबारकबाद दी तो मुझे बुरा लगने लगा, " मुझे अकेले ही भेज रहे हैं, इसका मतलब समझते हो?? "

" डिपार्टमेंट में बाइ-सेक्सुअल और स्नाइफर डाॅग समझते हैं आपको सब, और मुझे गे और डाॅग-टेल. कम से कम इन सब उपाधियों से तो छुटकारा मिलेगा. वैसे भी मैं तो अपने घर के घर हूॅं, और आपको भी तो जयपुर ही दे रहे हैं... कौन सा दूर जा रहे हो मुझसे?? "

इस बार भी गणेश के चेहरे पर पहले जितनी ही रौनक थी. मैं समझ गया वो क्यूं खुश था, मेरी वजह से उसकी इमेज... लेकिन फिर याद आया कि मैं कुछ भूल रहा हूॅं. मेरे तबादले की सूचना जब मुझे ही दो घंटे पहले मिली थी तो गणेश को यह कैसे पता लगा?

" तुझे कैसे पता लगा कि मेरा ट्रांसफर हो रहा है और जयपुर ही मिल रहा है?? " इस बार गणेश मेरे शिकंजे में था और मेरा नशा दिमाग से बाहर मगर गणेश की मुस्कुराहट इतने पर भी कायम थी.

" माफ करना सर, आपसे पहले मैं कमिश्नर सर का वफादार हूॅं और आपका तबादला ट्रैफिक में नहीं, आपके पसंदीदा विभाग में हो रहा है "

चौंकने की बारी अब मेरी थी. फिर गणेश ने बताया उसके अजमेर ट्रांसफर होने से पहले उसने ज्ञानचंद सिवाच के साथ चार साल काम किया था. उनकी गिनती राज्य के बडे़ बिगडैल अफसरों में होती थी और मेरी पहली नियुक्ति के दौरान ड्रग्स के केस में उनकी नजर मुझ पर पडी़, जिसमें मेरी इंवेस्टीगेशन से प्रभावशाली सफेदपोशों नेताओं के साथ एक सरकारी वकील की नौकरी चली गई. फिर राजनैतिक दवाब में आकर सरकार ने शहीद करने के लिए मुझे खनन माफिया के आंगन, अजमेर भेज दिया जहां मेरी फुर्ती से अपराजिता उनका शिकार होने से बची. और अब जबसे सरकार बदली है वो मुझे अपने पाले में करना चाहते हैं और सचिवालय में आज की बैठक सरकार में उनके फिर से दबदबे का नतीजा थी.

वो खुश था, और साथ में प्राउड फील कर रहा था सिवाच जैसे ईमानदार अफसर का वफादार मुखबिर बनने पर, तो अब मेरी भी सनकने लगी थी उसका सिवाच-पुराण सुनकर. वजह शराब रही हो या चिढ़, पर मेरी जुबान से निकल गया अफसरशाही और नेतागीरी से कोसों दूर मेरी निष्ठा और सेवाएं सिर्फ जनता के लिए हैं सिवाच श्री के लिए नहीं.

और तबादले के बाद मेरी इस बद्तमीजी़ का खामियाजा मुझे उठाना पड़ा अकादमी में अपने आवास खोकर. सर्किट हाउस अब मेरा फिर से आशियाना था, लेकिन मैं खुश था पसंदीदा विभाग और अपनी तरह के सहकर्मी पाकर जिनमें सिवाच सर भी एक थे. काम की वजह से फ्रीक्वेंट आगरा जाना संभव नहीं हो पाता था मगर करण-शिवानी यहां आ जाते थे बाकी सब को लेकर.

कुछ दिनों बाद मुझे सरकारी आवास भी मिल गया लेकिन यहां मुझे राजौरिया अंकल-आंटी को अपने साथ रखने की आजादी नहीं थी. ईमानदार था इसलिए कंप्लेन नहीं करता था, और इस खुन्नस में मैंने सहकर्मियों की पार्टियों में जाना बंद कर दिया. बुरा लगता था अपने परिवार से दूर, दूसरों के परिवार के साथ मौज-मस्ती करना.

इसी बीच एक शाम मुझे खबर मिली रोज़दा और उसके ब्वायफ्रैंड का एक्सीडेंट हुआ है, फतेह सागर लेक में. डूबने की वजह से उन दोनों की हालत सीरियस थी, और एक्सीडेंट की वजह ओवरस्पीड और ड्रग्स लेना पाया गया था.

अगले दिन मेरे और करण के पहुंचने से पहले मिलिंद भाई वहां स्टैंड-बाई पर थे. लड़का तो खतरे से बाहर था मगर cerebral hypoxia और hypertensive crises की वजह से मैडम के अगले 4-6 घंटे बहुत क्रिटिकल थे. थैंकफुली दोपहर बाद ब्लड-प्रेशर और अंदरूनी दिमागी सूजन कम होने लगी थी उसकी, और इसके बाद हर घंटे-दर घंटे करके अगली सुबह तक वो खतरे से पूरी तरह बाहर थी.

इसी बीच लड़का डिस्चार्ज होकर जा चुका था. मैं हैरान था कि ना मिस्टर ॵज़ ने कोई शिकायत की थी और ना ही पुलिस की तरफ कोई Suo Moto Action लिया गया. पता लगा रोज़दा के डैड के कहने पर DIG झा ने इस मामले को ओवर-स्पीडिंग, रैश एंड नेग्लजेंट ड्राइविंग और ड्रग ओवरडोज की जगह सिर्फ ब्रेक फेल होने का बना कर पूरी तरह दबा दिया था.

इस मौके पर " मियां-बीवी राजी़ " वाली कहावत मुझ पर फिट बैठ रही थी. खैर, अब मैडम किसी भी घंटे अपनी आंखे खोल सकती थी तो दूसरी तरफ सिवाच सर की काल्स भी अब बहुत फ्रीक्वेंट होने लगी. करण और मिलिंद भाई के जाने के बाद से मैं पहले से अकेला पड़ गया था और अब मिस्टर ॵज़ और DIG झा‌ की पकाई खिचडी़ से मेरा स्वाद और बिगड गया, लिहाजा दोपहर की फ्लाइट लेकर मैं वापस जयपुर आ गया.

" मुबारिक हो धर साहिब, तुम्हारे इशक के चर्चे सरे आम होणे लगे हैं. इसलिए कान पकडो़ और Low Life रहने की आदत डाल लो. कदि ऐसा ना हो, प्रशांत झा के कारनामों पर मीडिया तुम्हारी छाप लगा दे " आवास पर पहुंचने के थोडी देर बाद सिवाच सर के ठहाके गूंजने लगे.

" ऐसा कुछ नहीं है सर.... एक फेवर रिटर्न करना था, तो जाना पडा़... काॅफी चलेगी या टाॅस करोगे?? " लैपी पर काम करना बंद कर मैं सर से मुखातिब हुआ.

" कुछ नहीं, मिसिज सिवाच नै सात दिन की रामायण का पाठ रख्या है आवास पे. जिसमें हर सुबह एक बाम्ह्ण देवता जिमाना था तो सोचा तुझसे बडा़ ब्राह्मण कौन होगा इसलिए न्यौतने आ गया "

" माफ करना सर, तीन दिन का काम बाकी है और इस वीकेंड घर नहीं पहुंचा तो कयामत आ जाएगी " हाउस-हैल्प को चाय लाने का इशारा कर मैंने सिवाच बैठने के लिए रिक्वेस्ट किया.

" मजाक कर रहा था बावले... गणेश और मणू आये थे काल्ह. पूछ रहे थे उदयपुर में सब ठीक तो है, तूने तो कोई जवाब दिया ना, इस करके मैं खुद चला आया. वैसे या वही छ्योरी है ना जो सर्किट-हाउस में थारे साथ थी? "

" जी "

" के होया था फेर? बताउगा?? रैंक में परदादा हूं थारा अर उमर में भी... " कंधे सहला कर हिम्मत बढा़ते हुए सिवाच सर ने मुझे थोडा़ और पुश किया.

" अंदाजा नहीं.. सब कुछ ठीक चल रहा था. सबको एक साथ यहां रखने के लिए घर देख रही थी.. फिर होली के दो दिन बाद एक लैटर छोड़कर उदयपुर चली गई. उससे ज्यादा मैं, पब्लिक के बीच अपनी इमेज को लेकर काॅशियस हूं, बस ऐसा ही कुछ लिखा था ", चाय का प्याला सर्व करते हुए मैंने अपनी बात खत्म की.

" हम्म.... इक काम कर. गणेश बता रहा था वो फ्लैट मालिक 93 में देने को तैयार है उसे अब. तो कल ब्याणा देकर रजिस्ट्री करा ले. फेर गणेश उसे रेनोवेट करा देगा, तब ले आना अपने अंकल-आंटी अर मां बाबूजी को. फैमली साथ होगी तो काम करने में मजा आउगा. नहीं तो बस कुत्तेखाणी है, चाहे नौकरी और या जिंदगी. तो कल ब्याणा दे अर उदयपुर भाज जा, फेर तो बस काम ही देखना है तन्नै "

" वो कमिटिड है सर अब और फैमिली.... "

" म्हारी भी बात हुई हैं किसी से. डिप्परेशण में ड्रग्स की आदत पड़गी थी छोरी को, अर गाडी़ मालिक मामे का छोरा है उसका. खाली‌ पीली वीडियो बणाता फिरे है वो इंस्टा विष्ठा पर. वा छोरी अर छोरी का बाप तन्ने आज भी पसंद करे हैं, बाकी भई थारी मर्जी "

सिवाच सर के जाने के बाद नींद गायब थी मेरी. मैं अभी सोच ही रहा था कि मेरा फोन बजने लगा. मिस्टर ॵज़ के नंबर से काॅल आ रही थी. फोन आन्सर करने पर उन्होने बताया मेरे आने के काफी देर बाद रोज़दा होश में आ गई थी, फिलहाल उसे बोलने में थोडी प्राब्लम है, बाकी यादाश्त और विजन सब ठीक लग रहे हैं उसके. इसके अगले मिनिट फोन मेसुद ने लिया, वो लोग शाम को स्वीडन से उदयपुर पहुंचे थे, और चाहते थे मेरा वहां होना.

शायद उन्हें पता नहीं था कि हमारा ब्रेकअप हो गया है. खैर, ऑफिस वर्क का बहाना कर मुझे फिलहाल के लिए उनसे छुटकारा तो मिल गया, लेकिन वीकेंड पर मेरे आगरा पहुंचने पर समस्त ॵज़ परिवार वहां पहले मौजूद था. कुछ देर बाद करण-शिवानी भी आ गये, उनको भी मेरी तरह शाॅक लगा. आंटी की तैयारियों से लग रहा था ये प्रोग्राम किसी भी एंगिल से अचानक तो प्लान किया नहीं गया था. महज चार जनों के ड्राइंग रुम में अठारह लोगों का एक साथ बैठकर खाने पीने का इंतजाम, प्री-प्लानिंग के बिना पाॅसिबल नहीं था. खैर, रोज़दा और मुझे अकेला छोड़ने के लिए, एक-एक करके सब लोग इधर-उधर हो गये.

गरदन झुकाए, शांत और सहमी हुई सी, वो मेरे राइट साइड में थोडे़ फासले से बैठी हुई थी. मैं खामोश रहने की कोशिश कर रहा था फिर मेरा ध्यान उसके राइट में रखी Elbow Crutch पर गया तो मेरे मुंह से अनायस ही निकल गया, " चलने में परेशानी होती है? "

जिसका जवाब उसने हां में अपनी गरदन हिला कर दिया. बाद में मुझे करण ने टैक्स्ट कर समझाया कि ट्राॅमा और दिमागी चोट की वजह उसे हकलाने की परेशानी भी है, इसलिए मुझे उससे सहज तरीके से ही बात करना है. कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्यूंकि पहली बार था जब मैं इस तरह के हालात से वाकिफ हुआ. इसी बीच रोज़दा सोफे से उठने लगी, और उसकी हैल्प करने के लिए जैसे ही मैं उसके पास गया, एक कागज़ टुकडा़ मेरे हाथ में थमा कर वो वापस अपनी जगह पर बैठ गई, या शायद उस वक्त उससे चला नहीं गया.

कागज पर बहुत कुछ लिखा हुआ था जिससे मैं अब उतना इत्तेफाक तो नहीं रखता था, लेकिन उसके जिस हिस्से ने सबसे ज्यादा असर डाल मुझे अपनी राय बदलने पर मजबूर किया, उसका कुछ अंश यह था.

" I badly hate myself Samar, therefore i found Fateh Sagar as good as your Newgal Khadd to drown myself in "


भाई किस पागल की ज़िन्दगी का किस्सा लेकर बैठ गये... ये लड़कियों को उनकी औकात से पसन्द करता है और वो इसे इसकी औकात दिखा देती हैं...

शिवाना, अपराजिता या रोज़दा इन में से कोई घर बसाने वाली तो है नहीं इसका... बस मकान खरीदने बेचने का कारोबार जरूर शुरू करा देंगी...

ये देवदास, देव डी, रांझना, कबीर सिंह टाइप चुतियापे की ओर बढ़ता करैक्टर लग रहा है... जो लड़की की बात सुनते ही फैसले बदल लेता है

अपडेट जल्दी जल्दी दिया करो जो कहानी समझ आनी शुरू हो जाये
 
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भाई किस पागल की ज़िन्दगी का किस्सा लेकर बैठ गये... ये लड़कियों को उनकी औकात से पसन्द करता है और वो इसे इसकी औकात दिखा देती हैं...

शिवाना, अपराजिता या रोज़दा इन में से कोई घर बसाने वाली तो है नहीं इसका... बस मकान खरीदने बेचने का कारोबार जरूर शुरू करा देंगी...

ये देवदास, देव डी, रांझना, कबीर सिंह टाइप चुतियापे की ओर बढ़ता करैक्टर लग रहा है... जो लड़की की बात सुनते ही फैसले बदल लेता है

अपडेट जल्दी जल्दी दिया करो जो कहानी समझ आनी शुरू हो जाये

कहानी का‌ मतलब समझते हो दोस्त? अगर हां‌ तो जवाब जरूर देना. वैल, जरूरी नहीं कहानी का‌ किरदार आपकी तरह आइंस्टाइन ही हो, वो‌ रेग्नर लाॅथब्रुक या जुआरेज जैसा निर्दयी सनकी, या मिस्टर बीन, चार्ली चैप्लिन जैसे मसखरा या फिर अलेक्जेंडर द ग्रेट जैसा महान भी हो सकता है.

वैसे भी, जिन किरदारों का जिक्र आपने‌ किया, उनके लिए मैं कोई घटिया शब्द इस्तेमाल नहीं करूंगा, लेकिन आपको इतना जरूर याद दिलाना चाहुंगा कि उनमें‌ कुछ तो था जो उनका किरदार आपको आज भी याद रहा.

थर्डली, लगता है आपको हिटलर/लेनिन जैसे एक्शन वाले किरदार ज्यादा पसंद हैं, जो मेरी ओपिनियन के हिसाब से अगर थोडे़ सबमिसिव होते तो यह दुनिया विश्वयुद्ध की आग में झुलसने‌ से बच जाती.

खैर, फर्क बस पसंद‌ का है, जो अधिकतर‌ लोगों की अक्सर आपस में मेल नहीं खाती इसलिए आपका इसमें कोई दोष नहीं. खेद है कि आपको‌ पसंद नहीं‌ आया लेकिन मैं बेबस हूं, उक्त किरदार को चुलबुल पांडे, सिंघम या कुछ और नहीं बना सकता.

आपके अवलोकन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, यह महज एक फिक्शन कहानी है इसलिए इसे सीरियसली अपने दिल पर मत लो‌. तारे जमीं का नायक भी दिमागी रूप से उतना विकसित नहीं था.… छोडो, चलो खत्म करते हैं.
 
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