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Romance फख्त इक ख्वाहिश

kamdev99008

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कहानी का‌ मतलब समझते हो दोस्त? अगर हां‌ तो जवाब जरूर देना. वैल, जरूरी नहीं कहानी का‌ किरदार आपकी तरह आइंस्टाइन ही हो, वो‌ रेग्नर लाॅथब्रुक या जुआरेज जैसा निर्दयी सनकी, या मिस्टर बीन, चार्ली चैप्लिन जैसे मसखरा या फिर अलेक्जेंडर द ग्रेट जैसा महान भी हो सकता है.

वैसे भी, जिन किरदारों का जिक्र आपने‌ किया, उनके लिए मैं कोई घटिया शब्द इस्तेमाल नहीं करूंगा, लेकिन आपको इतना जरूर याद दिलाना चाहुंगा कि उनमें‌ कुछ तो था जो उनका किरदार आपको आज भी याद रहा.

थर्डली, लगता है आपको हिटलर/लेनिन जैसे एक्शन वाले किरदार ज्यादा पसंद हैं, जो मेरी ओपिनियन के हिसाब से अगर थोडे़ सबमिसिव होते तो यह दुनिया विश्वयुद्ध की आग में झुलसने‌ से बच जाती.

खैर, फर्क बस पसंद‌ का है, जो अधिकतर‌ लोगों की अक्सर आपस में मेल नहीं खाती इसलिए आपका इसमें कोई दोष नहीं. खेद है कि आपको‌ पसंद नहीं‌ आया लेकिन मैं बेबस हूं, उक्त किरदार को चुलबुल पांडे, सिंघम या कुछ और नहीं बना सकता.

आपके अवलोकन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, यह महज एक फिक्शन कहानी है इसलिए इसे सीरियसली अपने दिल पर मत लो‌. तारे जमीं का नायक भी दिमागी रूप से उतना विकसित नहीं था.… छोडो, चलो खत्म करते हैं.
भाई मैं भी चुलबुल पाण्डे या सिंघम नहीं.... ना ही हिटलर...
लेकिन मैं एक गाल पर तमाचा खाकर दूसरा गाल आगे करने वालों में से भी नहीं...
बेवकूफ़ कोई भी बन सकता है... लेकिन बार बार एक ही तरह से बेवकूफ़ बनना....
इसलिए मुझे कोफ्त होती है....

दुनियां वहाँ खत्म नहीं हुई.... और भी हैं...
देवदास जैसी सनक को प्यार मैंने शरत को पढकर भी नही माना... वो पागलपन का ही रूप है...

कहानी अच्छी है आपकी... लेकिन बार बार हारने पर भी जुए की लत ना छोड़ने वाले जुआरी जैसी... मुझे उबाऊ लगने लगी तो लिख दिया....

आपको बुरा लगा... तो
आइन्दा बिना कुछ लिखे ही पढ़ लूंगा :D
 
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भाई मैं भी चुलबुल पाण्डे या सिंघम नहीं.... ना ही हिटलर...
लेकिन मैं एक गाल पर तमाचा खाकर दूसरा गाल आगे करने वालों में से भी नहीं...
बेवकूफ़ कोई भी बन सकता है... लेकिन बार बार एक ही तरह से बेवकूफ़ बनना....
इसलिए मुझे कोफ्त होती है....

दुनियां वहाँ खत्म नहीं हुई.... और भी हैं...
देवदास जैसी सनक को प्यार मैंने शरत को पढकर भी नही माना... वो पागलपन का ही रूप है...

कहानी अच्छी है आपकी... लेकिन बार बार हारने पर भी जुए की लत ना छोड़ने वाले जुआरी जैसी... मुझे उबाऊ लगने लगी तो लिख दिया....

आपको बुरा लगा... तो
आइन्दा बिना कुछ लिखे ही पढ़ लूंगा :D

दोस्त, स्टोरी काॅंटेस्ट अनाउंस हुआ था और उस वक्त इक प्लाॅट था मेरे दिमाग में, तो जल्दबाजी में वहां‌ से इसकी शुरुआत हुई. असलियत यह है कि एक लम्बे अरसे के बाद कहानी वहीं की वहीं है तो आप लोगों के‌ साथ मुझे भी कथानक को बार-बार फिर से रिकंसाइल करने में बहुत दिक्कत‌ होती है.

तो इस तरह कुछ चीजें मुझसे छूट जाती होंगी जिससे कहानी उबाऊ लगने लगी हो. लेकिन यकीन करना मेरी पूरी कोशिश है कहानी को लयबद्ध कर इसका खोया चार्म फिर से वापस लाने की. खैर, समर को लेकर आपकी शिकायत के परिपेक्ष में सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि जब अपनों या अपनों की वजह से (चाहे वो आपके सगे हों या बचपन के दोस्त) तिरस्कार मिला‌ हो तब मुश्किल‌ होता है बाहर की दुनिया में इज्जत कमा पाना. और यही वजह है शिवानी के साथ शांति बहाल करने की.

लास्ट में ऑनेस्टली एडमिट कर रहा हूं, आपकी कंप्लेन उतनी लाॅजिकल नहीं लगी इसलिए सच में‌ बुरा लगा था‌ मुझे. क्यूंकि गिने-चुने रीडर्स में बस आप 3-4 लोग ही हो जो इस कहानी के ख्वाहिशमंद हैं, तो मैं आप लोगों को ही क्यूं डिसअपोइंट करने लगा? टाइम दो बेवकूफ किरदार का रोमांस बाहर निकलने के लिए, फिर देखना अपराजिता की लगाई चिंगारी कहां-कहां, किसे और कब जलाएगी.
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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यह वो जगह थी जो रणकपुर से उदयपुर के बीच उस रास्ते में पड़ती, जिसको उसने मेरे साथ घूमने के लिए चुना था। अपनी बेचारी "समझ" पर हंसी आ रही थी अब मुझे, सच में गधा था मैं जिसने अपराजिता की संगत को कुछ और ही मान लिया था। उसका मेरे से मिलना और घूमना बस एक जरिया था उसके पसंदीदा शख्श के होम-टाउन और उसके आसपास की जगहों से रूबरू होने का।



अब आगे...........



मुझे यह मलाल यह नहीं था कि अपराजिता ने शादी क्यूँ की, यह उसका ज्याती मामला था, वैसे भी हम दोनों दोस्त से ज्यादा कुछ थे भी नहीं और शायद ही कभी पर्सनल हुए हों मगर बात जब साथ देने पर आती तो दिल में एक टीस सी उठती, जिसका मेरे पास सिर्फ एक ही इलाज़ था।

हर शाम मेरी अब फतेह सागर लेक पर शराब के साथ इस खयाल से गुजरती कि नार्वे जाने से पहले वो एक बार तो मेरे से मिलने जरूर आएगी, मगर उस केस को खारिज हुए अब ग्यारह दिन हो चुके थे। हर दिन लगता कि वो नहीं आएगी मगर शाम होते-होते मेरे कदम उस ठिकाने पर आ ही जाते जहां कभी हमने आधी रात साथ में बिताई थी।

" कोई परेशानी है समर?? कुछ दिनों से बहुत लेट आ रहे हो? " एक सुबह राजौरिया अंकल ने पूछ ही लिया।

" काम होता है अंकल "

" तो अब अपने अंकल से भी झूठ बोलने लगे " इस बार माँ थी।

मुश्किल था अब इनसे कुछ भी छुपाना। एक तो पिछले दो सप्ताह से मैं इनको थोडा़ सा भी वक्त नहीं दे पा रहा था तो दूसरी तरफ राजौरिया अंकल-आंटी से मेरा झूठ बोलना माँ और डैड को बिल्कुल भी बरदाश्त हुआ, और होता भी क्यूँ, अपनी बेटी के एक झूठ ने ही तो उन्हें मेरे इतने करीब ला दिया कि अपने बेटी को हमेशा के लिए छोड़ आज वो मेरे साथ थे और वही गलती आज मैं कर रहा था।

" झूठ बोलने के लिए माफ कर देना अंकल। अभी आफिस के लिए देर हो रही है, शाम को सबकुछ सच-सच बताता हूँ और आज शाम अपन सब घूमने चल रहे हैं " कान पकड़ते हुऐ मैंने सच उगला और मुस्कुराते हुए दफ्तर के लिए निकल गया।

काम से फारिग हो कर मैं घर निकलने का सोच रहा था कि शिवानी का नंबर मेरी मोबाइल स्क्रीन पर फ्लैश होने लगा। फोन काॅल की जगह वो मुझे एसएमएस से ज्यादा परेशान करती थी, मुझे लगा कुछ इंपार्टेंट होगा तो मैंने कॉल रिसीव कर ली।

" क्या कहा है तुमने डैड से? "

" ?????? "

" अब सांप क्यूँ सूंघ गया तुम्हें, बोलते क्यूँ नहीं "

" कु...छ भी तो नहीं.... क....हा "

" इनोसेंट बनने की जरूरत नहीं है समर, सब खेल जानती हूँ मैं तुम्हारा, अब जब तुम्हें लगा कि मैं कोर्ट से अपना हक ले लूंगी तो फिर से चालबाजियां खेलने लगे.... "

बहुत खौफनाक होता था मेरा उसके साथ एनकउंटर, अब तो हमारे बीच मीलों का फासला था मगर उसके गुस्से का डर आज भी मेरे जे़हन में उतना ही बरकरार था जितना कि सालों पहले, इसलिए उसका फोन डिसकनैक्ट कर मैं अंकल का नंबर डायल करने लगा, उनसे जो पता लगा उसका खामियाजा भुगतने का दम मेरे में तो बिल्कुल भी नहीं था। इसलिए इन सबसे बेहतर था उस वक्त शिवानी को मनाना, और उसको मनाने के लिए गिने-चुने आप्संस में से एक था 'फोन'

" पांच मिनिट्स मुझे सुनोगी प्लीज " अंकल से बात करने के बाद शिवानी का नंबर कनैक्ट होने पर मैंने उससे विनती की।

" थैंक्स..." जारी रखते हुए मैं उसे बताने लगा, " एक-डेढ़ साल से शराब छोड़ दी थी मैंने और एकसाथ रहने लगा हूँ सबके साथ "

" तो..... "

" ..... "

" अब बोलो भी "

" अभी कुछ दिन से फिर से शुरु कर दिया है तो अंकल को लगा पहले की तरह इसमें भी तुम्हारा हाथ है, और तुम्हें सुना दिया। "

" बकवास एक्सक्यूज.... तुम्हें लगता है मैं इस पर भरोसा कर लूंगी और ये 'भी' से तुम्हारा मतलब क्या है? शादी के लिए इंकार ही तो किया था मैंने, अपनी जिंदगी का इतना इंपार्टेंट फैसला ऐसे ही किसी और को थोडे़ ही करने देती "

" किसी और....??? " और फिर मैंने खिसियाहट में फोन डिसकनैक्ट कर दिया।

हर बार की तरह आज भी उसकी आवाज सुनने के बाद मैं भगवान का शुक्रिया अदा करता कि उन्होंने मेरी जिंदगी जो बुरी-भली जैसी भी थी उसे नरक बनने से बचा लिया। स्वार्थ के लिए कितना गिर चुकी थी वो कि आज अपने डैड को ही 'किसी और' मान कर गैर बना दिया, और खिसिया-हट इस बात की थी उन्हीं गैरों की प्राॅपर्टी पर वो ना जाने किस हक से अपना हिस्सा मांग रही थी।



" अपराजिता ने शादी कर ली है अंकल। उसके बाबा (डैड) आये थे दफ्तर तो उन्होंने बताया " डिनर करने के बाद मैंने राजोरिया अंकल से कहा।

" ...... ...... ..... बेटा हमारा सुख तो शायद तेरे नसीब में नहीं पर तू अपना दुख तो हम सबके साथ बांट सकता है ना? " काफी देर खामोश रहने के बाद अंकल ने मेरे कंधे को सहला कर थोडा़ टहलने के लिए इशारा किया।

रेस्टोरेंट की पार्किंग में एक कुल्फी वाला था जहां माँ और आंटी को डैड कुल्फी दिलाने लगे, और मैं अंकल के साथ कदमताल करते हुऐ थोडा़ आगे आ गया, " माँ बताती थी जिस दिन मैं पैदा हुआ उस दिन उनको सात महीने से रुकी सेलरी के साथ नौकरी से हटाने का नोटिस मिला था "

" हाहाहाहा, मुझे आज भी याद है पूरे कैंपस में विलेन बना दिया था मुझे इस डिसीजन के लिए। इंगलिश की एकमात्र प्रोफेसर अपनी मैटरनिटी लीव दो महीने बढा़ना चाहती थी और बच्चों के एग्जाम आने वाले थे। मगर मैं अपनी जगह फेयर था बेटा, जानते हो कितना मुश्किल होता था उनदिनों इंग्लिश का एक अच्छा प्रोफेसर ढूंढना? "

" अंकल आप एक रजिस्ट्रार की हैशियत से तो बहुत फेयर रहे मगर एक बाप की तरह नहीं "

" हुँह.... तो बरखुरदार यह भी बता दो जो शिवानी ने अपने बाप के साथ किया वो कितना फेयर है?? "

" उसमें इतनी अक्ल ही कहां है। इसीलिए तो बोल रहा हूँ दे दो सब शिवानी को, फ्यूचर में जरुरत पडे़गी उसे। आप हैं तो सही मेरे साथ, वैसे भी महाभारत में पांडवों ने भगवान कृष्ण को चुना था, उनकी सेना को नहीं। मुझे पैसा चाहिये होगा तो अपना पुलिसिया डंडा है ना, चला लूंगा उसे "

" ओह, कहने ही क्या हैं तेरे। एक तरफ पांडवों जैसा भी बन रहा है दूसरे बगल कौरवों के डंडे की तारीफ "

हल्की-फुल्की मजा़क करते हुए मैं अंकल को शिवानी की गलतियों को माफ कर उसे अपनाने के लिए मनाने लगा। वैसे भी वो उनकी इकलौती बेटी थी, जिसकी सिर्फ इतनी ही तो गलती थी कि उसने मुझे छोड़-कर अपनी पसंद से शादी की और मुझे तो इसका अब कोई गिला ही नहीं था।

काफी देर तक अंकल के ना-नुकुर करने के बाद मैंने उन्हें मना ही लिया। एक-दो दिन में अपनी और आंटी की पेंशन के अलावा, अपनी हर चल-अचल संपत्ति शिवानी के नाम करने को इस शर्त पर तैयार हुऐ कि मैं हमेशा और हर हाल में उन्हें अपने साथ रखूंगा। जिससे कि शिवानी कभी उनसे मिलने आए तो उसकी गैरत को थोडी़ ठेस तो पहुंचे।

शिवानी नाम के सर-दर्द से छुटकारा मिलने की खुशी में मैंने सबको एक-एक कुल्फी दिलाई और वेंडर को पैसे देने के बाद गाडी़ की तरफ जाने लगा कि तभी मुझे अपने कंधे में धक्के के साथ तेज दर्द और एक गरम-गरम नश्तर जैसा कुछ महसूस हुआ, अभी मैं खुद को सम्हालने की कोशिश कर ही रहा था कि मुझे किसी ने बहुत जोर से जमीन पर पटक दिया, इसके बाद मेरे कानों में गोलियां चलने का शोर गूंजने लगा तो दूसरी तरफ मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया।
अपराजीता का जख्म या शिवानी का वार?
 

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दोस्त, स्टोरी काॅंटेस्ट अनाउंस हुआ था और उस वक्त इक प्लाॅट था मेरे दिमाग में, तो जल्दबाजी में वहां‌ से इसकी शुरुआत हुई. असलियत यह है कि एक लम्बे अरसे के बाद कहानी वहीं की वहीं है तो आप लोगों के‌ साथ मुझे भी कथानक को बार-बार फिर से रिकंसाइल करने में बहुत दिक्कत‌ होती है.

तो इस तरह कुछ चीजें मुझसे छूट जाती होंगी जिससे कहानी उबाऊ लगने लगी हो. लेकिन यकीन करना मेरी पूरी कोशिश है कहानी को लयबद्ध कर इसका खोया चार्म फिर से वापस लाने की. खैर, समर को लेकर आपकी शिकायत के परिपेक्ष में सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि जब अपनों या अपनों की वजह से (चाहे वो आपके सगे हों या बचपन के दोस्त) तिरस्कार मिला‌ हो तब मुश्किल‌ होता है बाहर की दुनिया में इज्जत कमा पाना. और यही वजह है शिवानी के साथ शांति बहाल करने की.

लास्ट में ऑनेस्टली एडमिट कर रहा हूं, आपकी कंप्लेन उतनी लाॅजिकल नहीं लगी इसलिए सच में‌ बुरा लगा था‌ मुझे. क्यूंकि गिने-चुने रीडर्स में बस आप 3-4 लोग ही हो जो इस कहानी के ख्वाहिशमंद हैं, तो मैं आप लोगों को ही क्यूं डिसअपोइंट करने लगा? टाइम दो बेवकूफ किरदार का रोमांस बाहर निकलने के लिए, फिर देखना अपराजिता की लगाई चिंगारी कहां-कहां, किसे और कब जलाएगी.
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन

उसे इक ख़ूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा

itni si bat nahi samajh ati hamare hero ko
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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भाई मैंने चना गुड़ या फिर चुड़ा गुड़ खाया है l यह अदरक मूँगफली मिक्स गुड़ कभी नहीं खाया
ये फ्लेवर वाला गुड होता है, जिसे कम लोग या जगह पर बनाया जाता है, खास कर किस खास के लिए, मूंगफली, सोंठ, तिल, और कई प्रकार के ड्रायफ्रूट्स भी डाले जाते है, बनवाने वाली की पसंद ही मुख्य होती है इसमें
 

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क्यूंकि माॅम-डैड की पेंशन और कुछ इंवेस्टमेंट प्लान्स को मिलाकर हमारी टोटल‌ सेविंग 1.2 करोड़ से ज्यादा न थी. मुझे लगता था, मिस्टर आज़ के ठाठ देखकर मॉम-डैड के दिमाग पर भी रईसों जैसा भूत सवार हो गया था.
दुनिया की सबसे बड़ी गलती, पांव चादर से बाहर निकलना
 

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इस कहानी में अभी तक सबसे सही किरदार शिवानी का ही है, भाई नही पसंद तो खुला बोल कर निकल गई लाइफ से। (प्रैक्टिकल)

अपराजिता को दोनो बारी बस एक मध्यम या सीढ़ी चाहिए थी, पहली बार में नायक बेवकूफ बना, और खैर दूसरी बार तो मानवता का तकाजा था। (Opportunist)

रोजदा एक कन्फ्यूजन से भरा किरदार है, उसे किस क्षण कुछ चाहिए होता है अगले क्षण कुछ और, मैच्योरिटी नही है उसके अंदर। (एमेच्योर)

अब नायक खुद में बड़ा वाला बेवकूफ दिखता है अभी तक की कहानी में, अपने पेशे में कामयाब मगर निजी जीवन में बुरी तरह से मात खाया हुआ। और वो ये मात बारंबार खा रहा है जो इसे सिर्फ बेवकूफ ही दिखा रही है, खैर अब आगे देखते है लेखक महोदय अपने नायक को क्या बनाना चाहते हैं, एक हारा हुआ इंसान या हालातों से लड़ने वाला।
 
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इस कहानी में अभी तक सबसे सही किरदार शिवानी का ही है, भाई नही पसंद तो खुला बोल कर निकल गई लाइफ से। (प्रैक्टिकल)

अपराजिता को दोनो बारी बस एक मध्यम या सीढ़ी चाहिए थी, पहली बार में नायक बेवकूफ बना, और खैर दूसरी बार तो मानवता का तकाजा था। (Opportunist)

रोजदा एक कन्फ्यूजन से भरा किरदार है, उसे किस क्षण कुछ चाहिए होता है अगले क्षण कुछ और, मैच्योरिटी नही है उसके अंदर। (एमेच्योर)

अब नायक खुद में बड़ा वाला बेवकूफ दिखता है अभी तक की कहानी में, अपने पेशे में कामयाब मगर निजी जीवन में बुरी तरह से मात खाया हुआ। और वो ये मात बारंबार खा रहा है जो इसे सिर्फ बेवकूफ ही दिखा रही है, खैर अब आगे देखते है लेखक महोदय अपने नायक को क्या बनाना चाहते हैं, एक हारा हुआ इंसान या हालातों से लड़ने वाला।

बहुत बहुत धन्यवाद दोस्त.

काफी हद तक आपसे सहमत हूॅं.
 
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अपराजीता का जख्म या शिवानी का वार?

दोनों में से किसी का नहीं, लेकिन अपराजिता से लिंक्ड जरूर है. काफी टाइम लगेगा इसे उजागर होने में.
 
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