इस बार आंखें नम होने की बारी रोज़दा और मेरी थी. आज से एक महीने दो दिन बाद अमेरिका की आजा़दी के दिन, स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत आगरा कोर्ट में हम दोनों शादी के बंधन में बंधने जा रहे थे. न जाने कितने सालों बाद जिल्लतोकुढ़न भरी जिंदगी से उबर कर, धीरे-धीरे ही सही, सारे अरमान पूरे हो रहे थे हमारे. थैंकफुली करण था इसका बेस्ट पार्ट, क्यूंकि मेरी इस सोच का अगले 12 घंटों के अंदर इस फैसले में बदल जाना उसकी कामयाबी थी.
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ट्रेन में माॅम की जुबां पर बस एक बात थी, रजिस्ट्रेशन के लिए शुभ मुहूर्त का समय दोपहर 12:26 बजे से लेकर 12:54 के बीच था, इसलिए मुझे इंश्योर करना है सारा काम इसी दौरान और आसानी से निबट जाये. उनको सिर्फ मौका चाहिये होता था खुद को प्रिवलेज्ड दिखाने का लेकिन उनका यह सबब हर बार मेरे लिए बेइज्जती बनकर आता.
गणेश की मेहनत और सिवाच सर की रिक्वेस्ट पर 12:32 बजे आशीर्वाद एक्सीलेंसी, सत्या निकेतन का 202 अपार्टमेंट माॅम के नाम पर रजिस्टर्ड हो गया. तो दूसरी तरफ मेरी एक छोटी लापरवाही की वजह से रोज़दा का सामान उदयपुर से रेलवे पुलिस दफ्तर, जयपुर जंक्शन की जगह आगरा फोर्ट स्टेशन पहुंच गया. अब डैड और अंकल फोन का जवाब नहीं दे रहे थे और मुझे RPF वालों की खुशामद करनी पड़ रही थी.
दिन-भर की भागदौड़ और माॅम की स्टूपिड हरकतों से फ्रस्ट्रेट मेरा दिमाग, मुझपर ही भारी पड़ गया. आवास पर लौटते वक्त मेरे लेफ्ट हैंड की इंडैक्स फिंगर फ्रैक्चर्ड थी और मलेरिया होने से पूरा बदन बुरी तरह तप रहा था. पसीने की बदबू से बचने के लिए मैंने शाॅवर ले लिया और उसके बाद हुई वाॅमिटिंग से माॅम वही करने लगी जिससे मुझे सबसे ज्यादा नफरत थी.
" माॅम.. आप ये ओवर-रिएक्ट करना प्लीज छोड़ दो. मैं बेशक आपका बच्चा हूॅं पर इतना नासमझ भी नहीं. आपको समझना चाहिये गणेश सरकारी मुलाजिम होने के साथ-साथ मेरा दोस्त भी है, कोई नौकर नहीं.... दवाईयां ले ली है मैंने, सुकून से बस आराम करने की जरुरत है मुझे "
" माफ कर दे बेटा, एक गणेश ही है यहां जिसको मैं जानती हूॅं, और अपने ही तो अपनों के काम आते हैं. चल तू सो जा, आगे से परेशान नहीं करूंगी मैं गणेश और तुझे "
माॅम के सहलाने और रोज़दा के सोक्ड-टाॅवल ट्रीटमेंट से मुझे जल्दी ही नींद आ गई. सुबह आंखे खुली और काॅफी की तलब हुई तो अहसास हुआ मॉम बिल्कुल भी गलत नहीं थी. सामान के नाम पर यहां मेरे कपडे-जूतों के अलावा सब खाली खाली ही था. स्वार्थी का होने का सुबूत मिलने पर मुझे अपने आपसे चिढ़ होने लगी, और उसका पश्चाताप करने के लिए मैं निकल ही रहा था कि खट-खट की आवाज सुनकर मेरे कदम खुद ब खुद रुक गये.
" मैं साथ चलू? आई कैन ड्राइव " विश करने के बाद रोज़दा ने कहा.
" तुमने नोटिस किया? तुम्हारा फ्लो एक बार भी नहीं टूटा. सब पहले की तरह हो जाएगा रोज़दा, तुम्हारा रुक-रुक कर बोलना और ये क्रच स्टिक जल्द ही छूट जाएंगे तुमसे " सिर्फ पांच दिन हुए थे मैडम को डिस्चार्ज हुए और आज के इस डेवलपमेंट पर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा.
" कहीं जा रहे थे तुम .... " हल्का सा मुस्कुराने के बाद रोज़दा ने याद दिलाया.
" वैल, अब नहीं जा रहा. चलो बाहर चलकर गार्डन में बैठते हैं, फिर स्टाफ आ जाएगा तो शाम तक मौका नहीं मिलेगा "
माॅम की मिंट-लेमन टी और नास्ते में रोज़दा के पसंदीदा स्नैक्स के लिए मैंने गार्ड को भेज दिया और रोज़दा के साथ बाहर एक छोटे से पार्क में बनी स्लैब्स पर बैठ गया.
अपना आवास कुछ खास नहीं था मगर ट्रैफिक के शोरशराबे से दूर यहां का एकांत मुझे अच्छा लगता. अफसर लोग इस बंगले को किसी वजह से अशुभ मानते थे इसलिए गार्ड्स के अलावा स्टाफ के ज्यादातर लोग रात को यहां नहीं रुकते.
" आराम करो ना आज, तुम्हें जरूरत है इसकी " स्टिक से घास को कुरेदते हुए रोज़दा ने बोला.
" जरूरत तो मुझे तुम्हारी भी है, पर तुम ना जाने कहां खोई हुई हो. देखो, गलतियां मुझसे भी हुई थी और भरोसा करना वो मैं सुधार चुका हूॅं. पब्लिक पर्सेप्शन की अब बिल्कुल परवाह नहीं है मुझे " मैंने उसे गणेश की मिसाल दी और वो सब जाहिर कर दिया जो पिछले दो दिन से मेरे दिल-ओ-दिमाग में चल रहा था.
" मेरे एक सवाल का जवाब दोगे? " इस बार भी रोज़दा के मुंह से बिना किसी झिझ़क के ये अल्फाज़ निकले.
" क्यूं नहीं... आई मीन हां. बेझिझक पूछ सकती हो "
" भरोसा करते हो मुझपर?? "
यह पूछते हुए उसकी नजरें मेरे चेहरे पर थी. कुछ गलत हुआ था मुझसे, जिसका शायद मुझे अंदाजा न था. नहीं तो, वो यूं ही मुझसे यह आसान सवाल न करती. समझ नहीं आ रहा था इसलिए मैंने ईमानदार रहना बेहतर समझा, " मेरा जवाब हां है पर तुम शायद इससे सहमत नहीं हो.. वजह जान सकता हूं मैं इसकी??
" इमोशनल होती हूॅं तो ठीक से बोल नहीं पाती... मेल कर दूंगी तुम्हें... इसके अलावा तुम्हारा और कोई सवाल नहीं?? "
" मुझे नहीं लगता फिलहाल तुम उसका जवाब देना चाहती हो, और सब्र की मेरे अंदर कमी नहीं "
" इंपार्टेंट ना हो तो ऑफ ले लो ना आज... " कुक को आने का इशारा कर मैडम ने फिर से रुकने दरख्वास्त की.
" सीनियर्स ने भरोसा किया है, इसलिए बच नहीं सकता अपनी जिम्मेदारियों से. बाकी, बाकी के स्टाफ को आने में अभी देर है तो काफी टाइम है अभी अपने पास "
काॅफी सर्व करने के बाद मैंने रोज़दा को बात आगे बढा़ने के लिए सजैस्ट किया.
" फाइन, शाम को तबियत बिगडे़ तो माॅम पर अपना गुस्सा मत निकालना, उन्हें सच में फिक्र होती है तुम्हारी "
" जानती हो, मेरी फिक्रमंद होने के वाबजूद वो मुझे इरिटेट क्यूं करती हैं?? "
" इन दो दिनों में बहुत कुछ बताया है उन्होंने मुझे.... वैसे समर, क्या मैं तुम्हारे लिए शिवानी दी जितना भरोसेमंद बन पाउंगी? "
तो मैड़म की असल उलझन यह थी!! खैर, अपनी काॅफी खत्म कर मैंने उसे समझाया जिसे वो भरोसा समझने की गलती कर रही है उसे असलियत में शिवानी का खौफ कहना बेहतर होगा. बेशक वो माॅम-डैड की आखिरी पसंद थी मगर भरोसेमंद कभी नहीं रही. साथ-साथ रहकर पले-बडे़ थे तो बहुत मुश्किल होता था परिवार में हमारा इक दूसरे के खिलाफ जाना, बदनसीबी से शिवानी की सोच और जिंदगी इससे बहुत अलग थी.
" तुम्हारे आने के बाद हमारी लाइफ में चीजें 360 डिग्री बदली हैं रोज़दा,और उनमें शिवानी भी एक है. ऐसे ही नहीं मानते हम सब तुम्हें अपना लकी चार्म, अनजाने भी बहुत खुशियां दी हैं तुमने उन्हें "
बहुत सारी बातें थी जो मुझे उसके साथ शेयर करनी थी, दूसरी तरफ कुछ मजबूरियां भी. फोनकाॅल्स के बाद अब कलीग्स भी आने लगे थे तो हमें मजबूरन अलग होना ही पडा़. नाश्ता करते हुऐ माॅम ने फिर से इरिटेट करना शुरू कर दिया. तपती गर्मी में गणेश के घर जाने के लिए उन्हें जरूरत थी हमारी ओपन जीप की, जो उस वक्त अकादमी में खडी़ थी. दोपहर बाद रोज़दा के ईमेल की जगह फोटो के साथ एक मैसिज मिला, जिसमें उसने साॅफ्ट-टाॅप लगवाने के लिए थैंक्स लिखा था.
राजौरिया अंकल ने फोन कर बताया मुझे शादी के लिए छुट्टियां लेनी पडेंगी क्यूंकि ॵज़ परिवार की चाहत थी एक परम्परागत शादी की. कलीग्स और सीनियर्स को इंफार्म करना मजबूरी थी मगर मलेरिया होने से बात बन गई. काम से ज्यादा फोनकाॅल्स अब बधाइयों की आने लगी और शाम को हमारे डिपार्टमेंट का बिगडै़ल दादा अपनी मिसेज के साथ हमारे निवास पर मौजूद था.
" यो णा चलेगा दाद्दा.. बेटे की खातिर मिठाई तो पहुंचा दी म्हारे लिए ये भुंगडे़ (भुने हुए चने) और बिस्कुट ही बचे?? "
मतलब ना समझ आने पर उन्होने बताया, हरियाणा में ब्राह्म्णों को इज्जत से दद्दा बोलते हैं, बेटे से उनका मतलब बन्नू था. स्नैक्स में माॅम को हैल्दवाइज भुने मखाने-मूंगफली-काजू-चने रखना बेहतर लगता था जो शायद उन्हें पसंद नहीं आया. आगे की बात फिर माॅम ने संभाली और मैं चेंज करने अपने कमरे में आ गया, जहां मनु भाभी रोज़दा साडी़ पहनना सिखा रही थीं.
" तुम तो ईमेल करने वाली थी?? "
बाथरूम से निकल कर मैंने रोज़दा को याद दिलाया, और भाभी तब तक जा चुकी थी.
" माॅम ने पूरा दिन बिजी़ रखा तो वक्त नहीं मिला. इन पाउचों को ऊपर वाले शेल्फ में रख दोगे प्लीज? " माफी का इजहार कर मैडम ने मुझे काम बताया.
" ग्रेट... तो क्या किया पूरा दिन "
" पहले बन्नू के घर गये.. फिर माॅम को देखना था रेस्टोरेशन का काम शुरु हुआ है या नहीं. लौटते हुए कुछ साडियां खरीदी और जब गणेश भाऊ ने तुम्हारे बाॅस के प्रोग्राम का इंफोर्म किया तो यहां वापस आ गये "
रोज़दा का व्यवहार पहले से बहुत शांत और सहज हो गया था अब. उसकी यह सादगी मुझे ज्यादा पसंद थी मगर एक कसक जरूर थी दिल में उसे पहले की तरह आत्मविश्वाश से परिपूर्ण चहकता और महकता देखने की. पाउचों को रखने के बाद मैंने मैडम को कस कर गले लगाया और उसके माथे के ऊपर वाले हिस्से को चूमने लगा.
" मुझे अपनी जिम्मेदारियों का अहसास है समर. प्रामिस करती हूॅं, अच्छे या बुरे हर फेज में हम हमेशा साथ रहेंगे "
अलग होते हुए रोज़दा के मुंह से यह भारी-भारी अल्फाज़ सुने तो मुस्कुराए बिना रहा नहीं गया. यकीन था मिस्टर या मिसेज सिवाच ने उसे यह ज्ञान दिया होगा, " डैड से बहुत कुछ सीखा है मैंने. तुम जैसी भी हो, मैनेज कर लूंगा तुम्हें. इसलिए ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं "
सहारा देकर मैं उसे बाहर ले आया. उम्मीद के मुताबिक मैडम सबसे मिल चुकी थी. दरअसल रोज़दा से मिलने के साथ-साथ मिस्टर एंड मिसिज सिवाच के यहां आने का मकसद राजौरिया अंकल-आंटी के लिए माफी मांगना था. मेरे पिछले ट्रैक रिकार्ड को देखकर वो नहीं चाहते थे डिपार्टमेंट के कुछ भ्रष्ट लोग मेरी गैरत पर कभी सवाल खडे़ करे. क्यूंकि अब हम जो कर रहे थे, उससे पुलिस डिपार्टमेंट के साथ साथ अन्य विभागों में हर रोज हमारे दुश्मन बढ़ रहे थे, जिनके चेहरों से तो हम परिचित थे मगर सीरत से अनजान.
सबके जाने के बाद माॅम और रोज़दा थोडी हिली हुई जरूर थी लेकिन करण की काॅल आने पर हम शादी की रीति-रिवाजों और पर चर्चा कर रहे थे. डैड का फिक्स था सगाई रैनावारी में होगी, जिसके लिए ॵज़ फैमिली तैयार थी, मगर इसके दो दिन बाद बारात लेकर उदयपुर पहुंचना डैड लिए बहुत हैक्टिक और ट्रबलसम था.
" तुम्हारी भी कोई ख्वाहिश है? " माॅम को अकेला छोड़ मैं और रोज़दा वापस वहीं बैठ गये जहां सुबह थे.
" उबेश्वर जाना है साइकिलिंग करते हुए " ये बोलते हुए रोज़दा ने बच्चों की तरह अपनी आंखें बंद कर ली.
" मेरा सवाल शादी को लेकर था " बचपने पर मुस्कुराते हुए मैंने अपना सवाल दुरुस्त किया.
" तुम भूल रहे हो रजिस्टर्ड मैरिज किसका आईडिया था.. खैर, एक कड़वा सच सुनना चाहोगे समर? "
" नहीं... ईमेल करना प्लीज "
जोर डालते हुए मैं उससे रिक्वेस्ट किया और समझाने लगा कि हमारे आपसी मतभेद वो ऑफिस टाइमिंग में ईमेल के माध्यम से शेयर करे. क्यूंकि ट्रांजिट के दौरान सोचने-समझने के लिए सफीशिएंट वक्त होता, सैकिंडली इसमें आपसी क्लेशिज बढ़ने की गुंजाइश ना के बराबर थी.