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Romance फख्त इक ख्वाहिश

kamdev99008

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वहां कौन रहता है
उत्पादन और भंडारण क्षमता के माप की दृष्टि से खतौली की त्रिवेणी चीनी मिल एशिया में सबसे बड़ी है।
बाकी parameters पर आपके हिसाब से कुछ और भी हो सकती हैं लेकिन हरियाणा और बिहार में... यूपी में नहीं
 
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Adirshi

Royal कारभार 👑
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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).

Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hindi section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 7000 words tak ho sakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. . Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writers ko Awards k alawa Cash prizes bhi milenge jinki jaankaari rules thread mein dedi gayi hai, Total 7000 Rupees k prizes iss baar USC k liye diye jaa rahe hain, sahi Suna aapne total 7000 Rupees k cash prizes aap jeet shaktey hain issliye derr matt kijiye or apni kahani likhna suru kijiye.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 28th February tak open rahega is dauraan aap apni story post kar shakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.


Rules Check karne ke liye is thread ka use karein — Rules & Queries Thread


Contest ke regarding Chit Chat karne ke liye is thread ka use karein — Chit Chat Thread




Prizes
Position Benifits
Winner 3000 Rupees + Award + 5000 Likes + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 1500 Rupees + Award + 3000 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 1000 Rupees + 2000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories)
3rd Runner-UP 750 Rupees + 1000 Likes
Best Supporting Reader 750 Rupees Award + 1000 Likes
Members reporting CnP Stories with Valid Proof 200 Likes for each report



Regards :-XForum Staff

 
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" I badly hate myself Samar, therefore i found Fateh Sagar as good as your Newgal Khadd to drown myself in "



अब आगे.........


कागज के टुकडे़ पर खिंची चार लाइनों के बीच लिखे उन 19 लफ्जों को, पढ़ने से लेकर समझ में आने तक, न जाने कितनी बार खरीदा था रोज़दा ने मुझे. इमोशनल होने पर गला रुंधने से जुबान अटकने लगी थी मेरी. उखड़ती सांसों को काबू में करने के बाद मैं रोज़दा से अलग हुआ और पानी पीने के बाद बाॅटल उसे पकडा़ कर सामने ही बैठ गया.


" वैल..पैसे-वाले हो गये हैं डैड अब. जब तुम हास्पिटल में थीं तब करण की मॉम के साथ पहाडों में घूम रहे थे चारों " हल्का महसूस कराने के लिए रोज़दा से फिजूल की बातें करने लगा.


" .......... माफ..कर देना .. मुझे... प्..लीज "


इमोशनल हो गई थी वो या दिमागी चोट का असर, मगर उसके दर्द भरे एक्सप्रैसन्श और वाइब्रेट होती कमजोर अवाज़ ने मुझे अंदर तक झिंझोड़ दिया. कड़वी यादें दिमाग से निकालकर मैंने उसे फिर से एक नई शुरुआत करने के लिए पुश किया, और ये याद दिलाया कि वो पहले खुशमिजाज, जिंदादिल और हैल्पिंग होने के साथ कितनी प्रोएक्टिव थी.


" तो क्..या हम फिर से.. साथ...? " बोलते-बोलते वो रुक गई.


" क्यूं नहीं " और भरोसा दिलाने के लिए मैं रोज़दा के हाथों को सहलाने लगा.


" थैं...क्स... रूम नहीं दि..खाओगे अपना?? "


अब उसकी आवाज़ में पहले जितना ठहराव नहीं था और चेहरे की रौनक भी वापस लौटने लगी थी. अपराधबोध होने से थोडी़ झिझक बाकी थी अभी, मगर मुझे और मेरे परिवार में से किसी को उससे कोई शिकायत नहीं थी. सहारा देकर मैं उसे अपने में ले गया, हालांकि यह राजौरिया अंकल का घर था मगर‌ फिलहाल इसका जिक्र कर पुराने जख्मों को कुरेदने की नीयत नहीं थी मेरी.


" रुकना नहीं चाहोगी? " रोज़दा ने वापस जाने के लिए बोला तो मैंने उसे पूछ लिया मगर जवाब देने के बजाय उसने चुप्पी साध ली.


काफी देर तक हम आंखों में आंखे डाल कर एक दूसरे के चेहरे को पढ़ते रहे. लगभग चार महीने बाद मौका मिला था हमें साथ में आने का, और मैड़म के स्टूपिड़ आब्जर्वेशन्स की वजह से मैं उसे फिर से मरने के लिए छोड़ना नहीं चाहता था. इसलिये जब साइदा उसे ले जाने के लिए आई तो मैंने उसे वापस भेज दिया, क्यूंकि इस सब से बाहर निकलने के लिए मैडीकल असिस्टेंस से ज्यादा मैडम को मेरी जरूरत थी.


मुझे फर्क नहीं पड़ता था कि कोई यह समझे कि मैं फेवर लौटा रहा हूं या रोज़दा को अपनी गलती का अहसास है, इंपार्टेंंट यह था कि हम आज भी एक दूसरे को उतना ही पसंद/प्यार करते थे, और अब उसका खयाल रखते हुए मेरी दूसरी बडी़ जरुरत थी मैड़म की शिकायतों को एग्जीक्यूट कर ईमानदारी से अपने अपने हिस्से की गलतियां सुधारने की.


बाद में साइदा ने बताया रोज़दा के ट्रीटमेंट के चलते कल शाम ही दिल्ली पहुंचे थे. डाक्टर्स से कंसल्ट करने के बाद वापसी में उनका प्लान जयपुर में मुझसे मिलना था मगर मुझसे मिलने से पहले रोज़दा माॅं-डैड और अंकल-आंटी से मिलना चाहती थी. उसका अंदाजा था वो शिवानी के पास गुरुग्राम होंगे, फिर डैड को काॅल करने के बाद उनको यहा का पता मिला, उसके बाद वो टैक्सी लेकर यहां आ गये.


रात को डैड की जुबां पर फिर से बडे़ घर की रट थी, और मेरी नजर थी अंकल की प्रापर्टी पर. क्यूंकि आज ये घर हमारी उन सारी जरूरतों को अच्छे से पूरा कर रहा था. सैकिंडली, ट्रेन की मार्फत मैं यहां से रोजाना अपनी नौकरी भी कर सकता था, तो झंझट ही नहीं था सरकारी आवास पर अंकल-आंटी या किसी और रखने की परमीशन को लेकर. और इसी बात को लेकर अगले दिन मेरी लड़ाई, करण-शिवानी के बजाय अपने डैड से हुई.


" तुम्हारा ब्रश, लूफा, यू.जीज़, टाॅवल और कपडे़. ट्वाइलेटरीज कार्नर में हैं और बाकी का सामान बाॅक्स रुम में. इसके अलावा कुछ चाहिये तो मैं कमरे में ही हूॅं "

बाहर निकलते हुए मुझे, उसके मुंह से " ...लिप " सुनाई दिया. मुझे लगा उसे लिपलाॅक चाहिये, और जब मैं वापस घूमा तब वो अपना शर्ट निकाल रही थी. पीछे से उसे अपनी बाहों में भरकर मैं उसकी गर्दन को चूमने लगा. एक पल के लिए उसके बदन में झुर-झुरी सी हुई, और फिर घूम कर वो साथ देने लगी. कुछ मिनिट्स की लडा़ई के बाद उसका फेस पूरी तरह से सुर्ख था.


" दो मिनिट में कितना ग्लो करने लगी हो.... " आईने के सामने खडा़ कर मैं उसको उसका चेहरा दिखाया. मगर जवाब बाहर से मिला क्यूंकि वहां माॅम आ चुकी थी.


" बद्तमीज कहीं के... तुझे कपड़े देने का बोला था या.... "


" आपको तो नाॅक करके आना चाहिये था? " पता नहीं बेशर्मी से यह मेरे मुंह से कैसे निकल गया.


" मेरा कमरा ह.... तू!!!... चल दफा हो यहां से..... "



………………



सबको ब्रेकफास्ट कराने के बाद शिवानी लंच के लिए सब्जियां काट रही थी, माॅम बर्तनों में साबुन लगा रही थी और मेरा काम था उन्हें पानी में धुलकर टोकरी में रखना. पहले रेणु आंटी फ्री हुई, फिर माॅम और उसके बाद मैं. थोडी़ देर पसीना सुखाने के बाद मैंने शाॅवर लिया और आंटी से ब्रेकफास्ट लेकर राजोरिया अंकल के पास आ गया.


" पराठा खाओगे?? "


" अपने डैड से भी पूछ लिया कर कभी " अखबार को फोल्ड कर अंकल ने मजा़किया लहजे में कहा.


" छोडो़ उनको.. वो कौन सा हर काम मुझसे पूछकर करते हैं. देखा नहीं, तीन महीने पहले जब ए.सी. इंस्टाॅल कराए थे तब कितना प्रवचन दे रहे थे. अब सिर्फ एक रात कूलर में निकली है तो सुबह से भुनभुना रहे हैं "


डैड की फितरत को मैं अंकल के सामने नंगा कर रहा था इतने में वो साइदा, डेनिज़ और उनके माॅम-डैड के साथ खुद हाजिर हो गये. वहां से उठ कर मैं बाहर आने लगा मगर डेनिज़ के डैड ने मुझे रोक लिया, " तुम्हारे बारे में अब तक सिर्फ सुना था बेटा मगर कल से देख भी रहा हूॅं. मेरा सवाल बस इतना है कि, यह जानते हुए कि रोज़दा ने तुम्हारे साथ क्या किया, क्या तुम अब भी उससे से शादी करना चाहोगे? "


" चाहने जितनी की गुंजाइश नहीं है अंकल. मिस्टर ॵज.. मेरा मतलब रोज़दा डैड चाहे तो हम आज भी शादी कर सकते हैं "


मेरे इतना बोलने पर, पहले डेनिज़ की माॅम, फिर उसके डैड ने बारी-बारी से मेरे गालों को चूमा और डैड से उदयपुर निकलने की इजा़जत मांगने लगे. और हां, रोज़दा अब उनके साथ नहीं जा रही थी. शिवानी का खाना तैयार था मगर सफर लंबा होने की दलील ने हमें खामोश कर दिया. इसके बाद करण ने दूसरी टैक्सी का इंतजाम किया और वो लोग उदयपुर निकल गये.


" एक और परांठा मिलेगा " आंटी के हां में सर हिलाने पर मैंने बचे हुए परांठे और दूध को फिर से गरम कर लाने हुक्म सुना दिया.


" फाइन, तो कैसी रही आपकी चार-धाम या.... "


सवाल मेरा अंकल से था और झन्नाटेदार थप्पड़ में जवाब मिला माॅम से, कुछ देर के लिए तो दिमाग सुन्न पड़ गया. लाड़ला होने के नाते गरम परांठा ही तो मांगा था मैंने वो भी अपनी आंटी से. माॅम ने ये इनाम किस खुशी में दिया था, समझ नहीं आ रहा था मुझे? बेशक माॅं थी, मगर उससे भी पहले, थीं वो ओवरएक्टिंग की चलती फिरती दुकान.


घर में शिवानी की स्कूटी यूं ही खडी़ थी, रोज स्टेशन आने-जाने के लिए वो बेस्ट थी, इसलिए उसकी सर्विस कराने मार्केट चला गया. तपती दोपहरी के बीच मैं वापस लौटा तो करण फेसबुक पर माॅम-डैड और अंकल-आंटी के अकाउंट्स बना कर, उनको एक्सेस करना सिखा रहा था. तभी मेरी नजर शिवानी के पैरों के बीच, फ्लोर मैट पर बैठी रोज़दा पर गई. कंधों तक लहराते खुले सिल्की बाल, कानों में झूलती इयर-रिंग्स और उसके गले तक पहुंचते-पहुंचते उसे मेरी नजरों का अहसास हो चुका था.


मैडम का पोश्र्चर बदलने के बाद मैंने गणेश को फोन मिलाकर उस अपार्टमेंट का बुकिंग अमाउंट कनफर्म करने के लिए बोला जो रोज़दा को पसंद था, इतना सुनने के बाद मैडम के अलावा अब सबकी तवज्जो़ मेरी तरफ थी.

और मेरी उम्मीद के मुताबिक सबसे पहला रिएक्शन डैड की तरफ से ही आया, " अब क्या हो गया? इतने रंग तो गिरगिट भी नहीं बदलता!! "


" आप सही थे डैड... मुझे लगा ईजी़ होगा. इस दो घंटे की गर्मी से मेरा इतना बुरा हाल हुआ है, तो आईडिया हो गया है रोजाना दस घंटे ट्रेन में निकालने से मेरा क्या होगा "


इतना सुनने के बाद हजारों आइंस्टाइनों जितना आत्मविश्वास पल भर के अंदर डैड में समा गया, और अगले 5-6 मिनिट्स तक उनका प्रवचन सुनने के बाद मेरे हाथ में 99 लाख रुपयों के चार चैक्स थे. अब ना चाहते हुए भी डैड का लकी(रोज़दा) चार्म अपार्टमेंट रजिस्टर कराने मेरे साथ कल जयपुर जा रहा था.


शाम होने से पहले करण-शिवानी गुरुग्राम चले गये. उनके बाद घर खाली-खाली हो गया. माॅम, मधुकर बबीता धर के नाम से बना अपना फेसबुक पेज देख रहीं थी जिसकी टाइमलाइन पर राजीव रेणु राजोरिया, शिवानी करण सहरावत के साथ सजदा ॵज़ के पोस्ट्स दिख रहे थे. तो दूसरी तरफ रेणु आंटी किचिन में छुप-छुप कर रो रहीं थी क्यूंकि फ्रिज़ के दरवाजे पर शिवानी ने एक नोट छोडा था, जिस पर लिखा था.


" खिचडी़ और सब्जियां बना कर जा रही हूॅं, बस आपको रोटियां बनानी हैं "


सिवाच सर की काॅल आने पर मैं अपने कमरे में चला गया और आधा-पौना घंटे बाद जब बाहर निकला तो ड्राइंगरुम में रोज़दा, माॅम-डैड और अंकल-आंटी के साथ वकील जैसा दिखने वाले एक बुजुर्ग, कुछ कागजों पर मेरे दस्तखत लेने का इंतजार कर रहे थे.


" फिर से नई वसीयत? "


" तो ठीक है, इसे मेरी वसीयत ही समझ ले ", फाइल खोलकर अभी मैंने कुछ देखा भी नहीं था कि, एक बार फिर अंकल की ऊंची और सर्द आवाज़ ने मेरे कानों में गूंजकर, उनका आदेश मानने पर मजबूर कर दिया.


इस बार आंखें नम होने की बारी रोज़दा और मेरी थी. आज से एक महीने दो दिन बाद अमेरिका की आजा़दी के दिन, स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत आगरा कोर्ट में हम दोनों शादी के बंधन में बंधने जा रहे थे. न जाने कितने सालों बाद जिल्लतोकुढ़न भरी जिंदगी से उबर कर, धीरे-धीरे ही सही, सारे अरमान पूरे हो रहे थे हमारे. थैंकफुली करण था इसका बेस्ट पार्ट, क्यूंकि मेरी इस सोच का अगले 12 घंटों के अंदर इस फैसले में बदल जाना उसकी कामयाबी थी.
 
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उत्पादन और भंडारण क्षमता के माप की दृष्टि से खतौली की त्रिवेणी चीनी मिल एशिया में सबसे बड़ी है।
बाकी parameters पर आपके हिसाब से कुछ और भी हो सकती हैं लेकिन हरियाणा और बिहार में... यूपी

उत्पादन और भंडारण क्षमता के माप की दृष्टि से खतौली की त्रिवेणी चीनी मिल एशिया में सबसे बड़ी है।
बाकी parameters पर आपके हिसाब से कुछ और भी हो सकती हैं लेकिन हरियाणा और बिहार में... यूपी में नहीं

Haryana main utne level par cane sowing bhi nhi hoti to sugar mill production and storage m competetion ka to question hi nhi h.

In other words, major part of haryana is barren as their is no irrigation mode other then the Rain. So, U ppl got some favorable variables to harvest most cane comparing to others but u cant question inputs of haryana, bihar or other wrt their inputs in agriculture.

N plz otherwise mat lena. I admit that you reside on most fertile soil/land on this planet...
 
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खतौली पर ये ही दोनों जिलों का बॉर्डर है.... :D

To fir ye kis district main aata hai? Haridwar???
 
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दोनो ही नही भाई, मुझे भी अच्छा लगा आपसे मिल कर

🫂
 

kamdev99008

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इस बार आंखें नम होने की बारी रोज़दा और मेरी थी. आज से एक महीने दो दिन बाद अमेरिका की आजा़दी के दिन, स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत आगरा कोर्ट में हम दोनों शादी के बंधन में बंधने जा रहे थे. न जाने कितने सालों बाद जिल्लतोकुढ़न भरी जिंदगी से उबर कर, धीरे-धीरे ही सही, सारे अरमान पूरे हो रहे थे हमारे. थैंकफुली करण था इसका बेस्ट पार्ट, क्यूंकि मेरी इस सोच का अगले 12 घंटों के अंदर इस फैसले में बदल जाना उसकी कामयाबी थी.

……………

ट्रेन में माॅम की जुबां पर बस एक बात थी, रजिस्ट्रेशन के लिए शुभ मुहूर्त का समय दोपहर 12:26 बजे से लेकर 12:54 के बीच था, इसलिए मुझे इंश्योर करना है सारा काम इसी दौरान और आसानी से निबट जाये. उनको सिर्फ मौका चाहिये होता था खुद को प्रिवलेज्ड दिखाने का लेकिन उनका यह सबब हर बार मेरे लिए बेइज्जती बनकर आता.

गणेश की मेहनत और सिवाच सर की रिक्वेस्ट पर 12:32 बजे आशीर्वाद एक्सीलेंसी, सत्या निकेतन का 202 अपार्टमेंट माॅम के नाम पर रजिस्टर्ड हो गया. तो दूसरी तरफ मेरी एक छोटी लापरवाही की वजह से रोज़दा का सामान उदयपुर से रेलवे पुलिस दफ्तर, जयपुर जंक्शन की जगह आगरा फोर्ट स्टेशन पहुंच गया. अब डैड और अंकल फोन का जवाब नहीं दे रहे थे और मुझे RPF वालों की खुशामद करनी पड़ रही थी.

दिन-भर की भागदौड़ और माॅम की स्टूपिड हरकतों से फ्रस्ट्रेट मेरा दिमाग, मुझपर ही भारी पड़ गया. आवास पर लौटते वक्त मेरे लेफ्ट हैंड की इंडैक्स फिंगर फ्रैक्चर्ड थी और मलेरिया होने से पूरा बदन बुरी तरह तप रहा था. पसीने की बदबू से बचने के लिए मैंने शाॅवर ले लिया और उसके बाद हुई वाॅमिटिंग से माॅम वही करने लगी जिससे मुझे सबसे ज्यादा नफरत थी.

" माॅम.. आप ये ओवर-रिएक्ट करना प्लीज छोड़ दो. मैं बेशक आपका बच्चा हूॅं पर इतना नासमझ भी नहीं. आपको समझना चाहिये गणेश सरकारी मुलाजिम होने के साथ-साथ मेरा दोस्त भी है, कोई नौकर नहीं.... दवाईयां ले ली है मैंने, सुकून से बस आराम करने की जरुरत है मुझे "

" माफ कर दे बेटा, एक गणेश ही है यहां जिसको मैं जानती हूॅं, और अपने ही तो अपनों के काम आते हैं. चल तू सो जा, आगे से परेशान नहीं करूंगी मैं गणेश और तुझे "

माॅम के सहलाने और रोज़दा के सोक्ड-टाॅवल ट्रीटमेंट से मुझे जल्दी ही नींद आ गई. सुबह आंखे खुली और काॅफी की तलब हुई तो अहसास हुआ मॉम बिल्कुल भी गलत नहीं थी. सामान के नाम पर यहां मेरे कपडे-जूतों के अलावा सब खाली खाली ही था. स्वार्थी का होने का सुबूत मिलने पर मुझे अपने आपसे चिढ़ होने लगी, और उसका पश्चाताप करने के लिए मैं निकल ही रहा था कि खट-खट की आवाज सुनकर मेरे कदम खुद ब खुद रुक गये.

" मैं साथ चलू? आई कैन ड्राइव " विश करने के बाद रोज़दा ने कहा.

" तुमने नोटिस किया? तुम्हारा फ्लो एक बार भी नहीं टूटा. सब पहले की तरह हो जाएगा रोज़दा, तुम्हारा रुक-रुक कर बोलना और ये क्रच स्टिक जल्द ही छूट जाएंगे तुमसे " सिर्फ पांच दिन हुए थे मैडम को डिस्चार्ज हुए और आज के इस डेवलपमेंट पर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा.

" कहीं जा रहे थे तुम .... " हल्का सा मुस्कुराने के बाद रोज़दा ने याद दिलाया.

" वैल, अब नहीं जा रहा. चलो बाहर चलकर गार्डन में बैठते हैं, फिर स्टाफ आ जाएगा तो शाम तक मौका नहीं मिलेगा "

माॅम की मिंट-लेमन टी और नास्ते में रोज़दा के पसंदीदा स्नैक्स के लिए मैंने गार्ड को भेज दिया और रोज़दा के साथ बाहर एक छोटे से पार्क में बनी स्लैब्स पर बैठ गया.
अपना आवास कुछ खास नहीं था मगर ट्रैफिक के शोरशराबे से दूर यहां का एकांत मुझे अच्छा लगता. अफसर लोग इस बंगले को किसी वजह से अशुभ मानते थे इसलिए गार्ड्स के अलावा स्टाफ के ज्यादातर लोग रात को यहां नहीं रुकते.

" आराम करो ना आज, तुम्हें जरूरत है इसकी " स्टिक से घास को कुरेदते हुए रोज़दा ने बोला.

" जरूरत तो मुझे तुम्हारी भी है, पर तुम ना जाने कहां खोई हुई हो. देखो, गलतियां मुझसे भी हुई थी और भरोसा करना वो मैं सुधार चुका हूॅं. पब्लिक पर्सेप्शन की अब बिल्कुल परवाह नहीं है मुझे " मैंने उसे गणेश की मिसाल दी और वो सब जाहिर कर दिया जो पिछले दो दिन से मेरे दिल-ओ-दिमाग में चल रहा था.

" मेरे एक सवाल का जवाब दोगे? " इस बार भी रोज़दा के मुंह से बिना किसी झिझ़क के ये अल्फाज़ निकले.

" क्यूं नहीं... आई मीन हां. बेझिझक पूछ सकती हो "

" भरोसा करते हो मुझपर?? "

यह पूछते हुए उसकी नजरें मेरे चेहरे पर थी. कुछ गलत हुआ था मुझसे, जिसका शायद मुझे अंदाजा न था. नहीं तो, वो यूं ही मुझसे यह आसान सवाल न करती. समझ नहीं आ रहा था इसलिए मैंने ईमानदार रहना बेहतर समझा, " मेरा जवाब हां है पर तुम शायद इससे सहमत नहीं हो.. वजह जान सकता हूं मैं इसकी??

" इमोशनल होती हूॅं तो ठीक से बोल नहीं पाती... मेल कर दूंगी तुम्हें... इसके अलावा तुम्हारा और कोई सवाल नहीं?? "

" मुझे नहीं लगता फिलहाल तुम उसका जवाब देना चाहती हो, और सब्र की मेरे अंदर कमी नहीं "

" इंपार्टेंट ना हो तो ऑफ ले लो ना आज... " कुक को आने का इशारा कर मैडम ने फिर से रुकने दरख्वास्त की.

" सीनियर्स ने भरोसा किया है, इसलिए बच नहीं सकता अपनी जिम्मेदारियों से. बाकी, बाकी के स्टाफ को आने में अभी देर है तो काफी टाइम है अभी अपने पास "
काॅफी सर्व करने के बाद मैंने रोज़दा को बात आगे बढा़ने के लिए सजैस्ट किया.

" फाइन, शाम को तबियत बिगडे़ तो माॅम पर अपना गुस्सा मत निकालना, उन्हें सच में फिक्र होती है तुम्हारी "

" जानती हो, मेरी फिक्रमंद होने के वाबजूद वो मुझे इरिटेट क्यूं करती हैं?? "

" इन दो दिनों में बहुत कुछ बताया है उन्होंने मुझे.... वैसे समर, क्या मैं तुम्हारे लिए शिवानी दी जितना भरोसेमंद बन पाउंगी? "

तो मैड़म की असल उलझन यह थी!! खैर, अपनी काॅफी खत्म कर मैंने उसे समझाया जिसे वो भरोसा समझने की गलती कर रही है उसे असलियत में शिवानी का खौफ कहना बेहतर होगा. बेशक वो माॅम-डैड की आखिरी पसंद थी मगर भरोसेमंद कभी नहीं रही. साथ-साथ रहकर पले-बडे़ थे तो बहुत मुश्किल होता‌ था परिवार में हमारा इक दूसरे के खिलाफ जाना, बदनसीबी से शिवानी की सोच और जिंदगी इससे बहुत अलग थी.

" तुम्हारे आने के बाद हमारी लाइफ में चीजें 360 डिग्री बदली हैं रोज़दा,और उनमें शिवानी भी एक है. ऐसे ही नहीं मानते हम सब तुम्हें अपना लकी चार्म, अनजाने भी बहुत खुशियां दी हैं तुमने उन्हें "

बहुत सारी बातें थी जो मुझे उसके साथ शेयर करनी थी, दूसरी तरफ कुछ मजबूरियां भी. फोन‌काॅल्स के बाद अब कलीग्स भी आने लगे थे तो हमें मजबूरन अलग होना ही पडा़. नाश्ता करते‌ हुऐ माॅम ने फिर से इरिटेट करना शुरू कर दिया. तपती गर्मी में गणेश के घर जाने के लिए उन्हें जरूरत थी हमारी ओपन जीप की, जो उस वक्त अकादमी में खडी़ थी. दोपहर बाद रोज़दा के ईमेल की जगह फोटो के साथ एक मैसिज मिला, जिसमें उसने साॅफ्ट-टाॅप लगवाने‌ के लिए थैंक्स लिखा था.

राजौरिया अंकल‌ ने फोन कर बताया मुझे शादी के लिए छुट्टियां लेनी पडेंगी क्यूंकि ॵज़ परिवार की चाहत थी एक परम्परागत शादी की. कलीग्स और सीनियर्स को इंफार्म करना मजबूरी थी मगर मलेरिया होने से बात बन गई. काम से ज्यादा फोनकाॅल्स अब बधाइयों की आने लगी और शाम को हमारे डिपार्टमेंट का बिगडै़ल दादा अपनी मिसेज के साथ हमारे निवास पर मौजूद था.

" यो णा चलेगा दाद्दा.. बेटे की खातिर मिठाई तो पहुंचा दी म्हारे लिए ये भुंगडे़ (भुने हुए चने) और बिस्कुट ही बचे?? "

मतलब ना समझ आने पर उन्होने‌ बताया, हरियाणा में ब्राह्म्णों को इज्जत से दद्दा बोलते हैं, बेटे से उनका मतलब बन्नू था. स्नैक्स में माॅम को हैल्दवाइज भुने मखाने-मूंगफली-काजू-चने रखना बेहतर लगता था जो शायद उन्हें पसंद नहीं आया. आगे की बात फिर माॅम ने संभाली और मैं चेंज करने अपने कमरे में आ गया, जहां मनु भाभी रोज़दा साडी़ पहनना सिखा रही थीं.

" तुम तो ईमेल करने वाली थी?? "
बाथरूम से निकल कर मैंने रोज़दा को याद दिलाया, और भाभी तब तक जा चुकी थी.

" माॅम ने पूरा दिन बिजी़ रखा तो वक्त नहीं मिला. इन पाउचों को ऊपर वाले शेल्फ में रख दोगे प्लीज? " माफी का इजहार कर मैडम ने मुझे काम बताया.

" ग्रेट... तो क्या किया पूरा दिन "

" पहले बन्नू के घर गये.. फिर माॅम को देखना था रेस्टोरेशन का काम शुरु हुआ है या नहीं. लौटते हुए कुछ साडियां खरीदी और जब गणेश भाऊ ने तुम्हारे बाॅस के प्रोग्राम का इंफोर्म किया तो यहां वापस आ गये "

रोज़दा का व्यवहार पहले से बहुत शांत और सहज हो गया था अब. उसकी यह सादगी मुझे ज्यादा पसंद थी मगर एक कसक जरूर थी दिल में उसे पहले की तरह आत्मविश्वाश से परिपूर्ण चहकता और महकता देखने‌ की. पाउचों को रखने के बाद मैंने मैडम को कस कर गले लगाया और उसके माथे के ऊपर वाले हिस्से को चूमने लगा.

" मुझे अपनी जिम्मेदारियों का अहसास है समर. प्रामिस करती हूॅं, अच्छे या बुरे हर फेज में हम हमेशा साथ रहेंगे "

अलग होते हुए रोज़दा के मुंह से यह भारी-भारी अल्फाज़ सुने तो मुस्कुराए बिना रहा नहीं गया. यकीन था मिस्टर या मिसेज सिवाच ने उसे यह ज्ञान दिया होगा, " डैड से बहुत कुछ सीखा है मैंने. तुम जैसी भी हो, मैनेज कर लूंगा तुम्हें. इसलिए ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं "

सहारा देकर मैं उसे बाहर ले आया. उम्मीद के मुताबिक मैडम सबसे मिल चुकी थी. दरअसल रोज़दा से मिलने के साथ-साथ मिस्टर एंड मिसिज सिवाच के यहां आने का मकसद राजौरिया अंकल-आंटी के लिए माफी मांगना था. मेरे पिछले ट्रैक रिकार्ड को देखकर वो नहीं चाहते थे डिपार्टमेंट के कुछ भ्रष्ट लोग मेरी गैरत पर कभी सवाल खडे़ करे. क्यूंकि अब हम जो कर रहे थे, उससे पुलिस डिपार्टमेंट के साथ साथ अन्य विभागों में हर रोज हमारे दुश्मन बढ़ रहे थे, जिनके चेहरों से तो हम परिचित थे मगर सीरत से अनजान.

सबके जाने के बाद माॅम और रोज़दा थोडी हिली हुई जरूर थी लेकिन करण की काॅल आने पर हम शादी की रीति-रिवाजों और पर चर्चा कर रहे थे. डैड का फिक्स था सगाई रैनावारी में होगी, जिसके लिए ॵज़‌ फैमिली तैयार थी, मगर इसके दो दिन बाद बारात लेकर उदयपुर पहुंचना डैड लिए बहुत हैक्टिक और ट्रबलसम था.

" तुम्हारी भी कोई ख्वाहिश है? " माॅम को अकेला छोड़ मैं और रोज़दा वापस वहीं बैठ गये जहां‌ सुबह थे.

" उबेश्वर जाना है साइकिलिंग करते हुए " ये बोलते हुए रोज़दा ने बच्चों की तरह अपनी आंखें बंद कर ली.

" मेरा सवाल शादी को लेकर था " बचपने‌ पर मुस्कुराते हुए मैंने अपना सवाल दुरुस्त किया.

" तुम भूल रहे हो रजिस्टर्ड मैरिज किसका आईडिया था.. खैर, एक कड़वा सच सुनना चाहोगे समर? "

" नहीं... ईमेल करना प्लीज "
जोर डालते हुए मैं उससे रिक्वेस्ट किया और समझाने‌ लगा कि हमारे आपसी मतभेद वो ऑफिस टाइमिंग में ईमेल के माध्यम से शेयर करे. क्यूंकि ट्रांजिट के दौरान सोचने-समझने के लिए सफीशिएंट वक्त होता, सैकिंडली इसमें आपसी क्लेशिज बढ़ने की गुंजाइश ना के बराबर थी.

कहानी की घटनायें मेरे लिए अजीब हैं....
हर फैसला जल्दबाजी और दोहराव लिए हुए....
जिन्दगी में ठहराव और परिवर्तन के लिए इन्सान की तरह सोच समझ कर फैसले लेने होते हैं ना कि कम्प्यूटर/रोबोट की तरह प्रोग्रामिंग में सुधार करके एग्जेक्ट आउटपुट की उम्मीद रखना... आजमायी हुई गलतियों और इन्सानों पर भरोसा करके....
 
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कहानी की घटनायें मेरे लिए अजीब हैं....
हर फैसला जल्दबाजी और दोहराव लिए हुए....
जिन्दगी में ठहराव और परिवर्तन के लिए इन्सान की तरह सोच समझ कर फैसले लेने होते हैं ना कि कम्प्यूटर/रोबोट की तरह प्रोग्रामिंग में सुधार करके एग्जेक्ट आउटपुट की उम्मीद रखना... आजमायी हुई गलतियों और इन्सानों पर भरोसा करके....


Zaroor... lekin kuch log virtual se jyada physical life m yakeen karte hain.
 
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Zaroor... lekin kuch log virtual se jyada physical life m yakeen karte hain.
Yahi mera bhi manna hai...
Jindgi Experiments ke liye nahi..... Experiences se samajhne aur galtiyon ko repeat karne se bachna seekhne ke liye hai.....

Khair... Har insan ki soch alag hoti hai... Aur sochne samajhne ki kshamta bhi
 
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Khair... Har insan ki soch alag hoti hai... Aur sochne samajhne ki kshamta bhi

दुरुस्त....



22





इस बार आंखें नम होने की बारी रोज़दा और मेरी थी. आज से एक महीने दो दिन बाद अमेरिका की आजा़दी के दिन, स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत आगरा कोर्ट में हम दोनों शादी के बंधन में बंधने जा रहे थे. न जाने कितने सालों बाद जिल्लतोकुढ़न भरी जिंदगी से उबर कर, धीरे-धीरे ही सही, सारे अरमान पूरे हो रहे थे हमारे. थैंकफुली करण था इसका बेस्ट पार्ट, क्यूंकि मेरी इस सोच का अगले 12 घंटों के अंदर इस फैसले में बदल जाना उसकी कामयाबी थी.


……………


ट्रेन में माॅम की जुबां पर बस एक बात थी, रजिस्ट्रेशन के लिए शुभ मुहूर्त का समय दोपहर 12:26 बजे से लेकर 12:54 के बीच था, इसलिए मुझे इंश्योर करना है सारा काम इसी दौरान और आसानी से निबट जाये. उनको सिर्फ मौका चाहिये होता था खुद को प्रिवलेज्ड दिखाने का लेकिन उनका यह सबब हर बार मेरे लिए बेइज्जती बनकर आता.


गणेश की मेहनत और सिवाच सर की रिक्वेस्ट पर 12:32 बजे आशीर्वाद एक्सीलेंसी, सत्या निकेतन का 202 अपार्टमेंट माॅम के नाम पर रजिस्टर्ड हो गया. तो दूसरी तरफ मेरी एक छोटी लापरवाही की वजह से रोज़दा का सामान उदयपुर से रेलवे पुलिस दफ्तर, जयपुर जंक्शन की जगह आगरा फोर्ट स्टेशन पहुंच गया. अब डैड और अंकल फोन का जवाब नहीं दे रहे थे और मुझे RPF वालों की खुशामद करनी पड़ रही थी.


दिन-भर की भागदौड़ और माॅम की स्टूपिड हरकतों से फ्रस्ट्रेट मेरा दिमाग, मुझपर ही भारी पड़ गया. आवास पर लौटते वक्त मेरे लेफ्ट हैंड की इंडैक्स फिंगर फ्रैक्चर्ड थी और मलेरिया होने से पूरा बदन बुरी तरह तप रहा था. पसीने की बदबू से बचने के लिए मैंने शाॅवर ले लिया और उसके बाद हुई वाॅमिटिंग से माॅम वही करने लगी जिससे मुझे सबसे ज्यादा नफरत थी.


" माॅम.. आप ये ओवर-रिएक्ट करना प्लीज छोड़ दो. मैं बेशक आपका बच्चा हूॅं पर इतना नासमझ भी नहीं. आपको समझना चाहिये गणेश सरकारी मुलाजिम होने के साथ-साथ मेरा दोस्त भी है, कोई नौकर नहीं.... दवाईयां ले ली है मैंने, सुकून से बस आराम करने की जरुरत है मुझे "


" माफ कर दे बेटा, एक गणेश ही है यहां जिसको मैं जानती हूॅं, और अपने ही तो अपनों के काम आते हैं. चल तू सो जा, आगे से परेशान नहीं करूंगी मैं गणेश और तुझे "


माॅम के सहलाने और रोज़दा के सोक्ड-टाॅवल ट्रीटमेंट से मुझे जल्दी ही नींद आ गई. सुबह आंखे खुली और काॅफी की तलब हुई तो अहसास हुआ मॉम बिल्कुल भी गलत नहीं थी. सामान के नाम पर यहां मेरे कपडे-जूतों के अलावा सब खाली खाली ही था. स्वार्थी का होने का सुबूत मिलने पर मुझे अपने आपसे चिढ़ होने लगी, और उसका पश्चाताप करने के लिए मैं निकल ही रहा था कि खट-खट की आवाज सुनकर मेरे कदम खुद ब खुद रुक गये.


" मैं साथ चलू? आई कैन ड्राइव " विश करने के बाद रोज़दा ने कहा.


" तुमने नोटिस किया? तुम्हारा फ्लो एक बार भी नहीं टूटा. सब पहले की तरह हो जाएगा रोज़दा, तुम्हारा रुक-रुक कर बोलना और ये क्रच स्टिक जल्द ही छूट जाएंगे तुमसे " सिर्फ पांच दिन हुए थे मैडम को डिस्चार्ज हुए और आज के इस डेवलपमेंट पर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा.


" कहीं जा रहे थे तुम .... " हल्का सा मुस्कुराने के बाद रोज़दा ने याद दिलाया.


" वैल, अब नहीं जा रहा. चलो बाहर चलकर गार्डन में बैठते हैं, फिर स्टाफ आ जाएगा तो शाम तक मौका नहीं मिलेगा "


माॅम की मिंट-लेमन टी और नास्ते में रोज़दा के पसंदीदा स्नैक्स के लिए मैंने गार्ड को भेज दिया और रोज़दा के साथ बाहर एक छोटे से पार्क में बनी स्लैब्स पर बैठ गया.

अपना आवास कुछ खास नहीं था मगर ट्रैफिक के शोरशराबे से दूर यहां का एकांत मुझे अच्छा लगता. अफसर लोग इस बंगले को किसी वजह से अशुभ मानते थे इसलिए गार्ड्स के अलावा स्टाफ के ज्यादातर लोग रात को यहां नहीं रुकते.


" आराम करो ना आज, तुम्हें जरूरत है इसकी " स्टिक से घास को कुरेदते हुए रोज़दा ने बोला.


" जरूरत तो मुझे तुम्हारी भी है, पर तुम ना जाने कहां खोई हुई हो. देखो, गलतियां मुझसे भी हुई थी और भरोसा करना वो मैं सुधार चुका हूॅं. पब्लिक पर्सेप्शन की अब बिल्कुल परवाह नहीं है मुझे " मैंने उसे गणेश की मिसाल दी और वो सब जाहिर कर दिया जो पिछले दो दिन से मेरे दिल-ओ-दिमाग में चल रहा था.


" मेरे एक सवाल का जवाब दोगे? " इस बार भी रोज़दा के मुंह से बिना किसी झिझ़क के ये अल्फाज़ निकले.


" क्यूं नहीं... आई मीन हां. बेझिझक पूछ सकती हो "


" भरोसा करते हो मुझपर?? "


यह पूछते हुए उसकी नजरें मेरे चेहरे पर थी. कुछ गलत हुआ था मुझसे, जिसका शायद मुझे अंदाजा न था. नहीं तो, वो यूं ही मुझसे यह आसान सवाल न करती. समझ नहीं आ रहा था इसलिए मैंने ईमानदार रहना बेहतर समझा, " मेरा जवाब हां है पर तुम शायद इससे सहमत नहीं हो.. वजह जान सकता हूं मैं इसकी??


" इमोशनल होती हूॅं तो ठीक से बोल नहीं पाती... मेल कर दूंगी तुम्हें... इसके अलावा तुम्हारा और कोई सवाल नहीं?? "


" मुझे नहीं लगता फिलहाल तुम उसका जवाब देना चाहती हो, और सब्र की मेरे अंदर कमी नहीं "


" इंपार्टेंट ना हो तो ऑफ ले लो ना आज... " कुक को आने का इशारा कर मैडम ने फिर से रुकने दरख्वास्त की.


" सीनियर्स ने भरोसा किया है, इसलिए बच नहीं सकता अपनी जिम्मेदारियों से. बाकी, बाकी के स्टाफ को आने में अभी देर है तो काफी टाइम है अभी अपने पास "

काॅफी सर्व करने के बाद मैंने रोज़दा को बात आगे बढा़ने के लिए सजैस्ट किया.


" फाइन, शाम को तबियत बिगडे़ तो माॅम पर अपना गुस्सा मत निकालना, उन्हें सच में फिक्र होती है तुम्हारी "


" जानती हो, मेरी फिक्रमंद होने के वाबजूद वो मुझे इरिटेट क्यूं करती हैं?? "


" इन दो दिनों में बहुत कुछ बताया है उन्होंने मुझे.... वैसे समर, क्या मैं तुम्हारे लिए शिवानी दी जितना भरोसेमंद बन पाउंगी? "


तो मैड़म की असल उलझन यह थी!! खैर, अपनी काॅफी खत्म कर मैंने उसे समझाया जिसे वो भरोसा समझने की गलती कर रही है उसे असलियत में शिवानी का खौफ कहना बेहतर होगा. बेशक वो माॅम-डैड की आखिरी पसंद थी मगर भरोसेमंद कभी नहीं रही. साथ-साथ रहकर पले-बडे़ थे तो बहुत मुश्किल होता‌ था परिवार में हमारा इक दूसरे के खिलाफ जाना, बदनसीबी से शिवानी की सोच और जिंदगी इससे बहुत अलग थी.


" तुम्हारे आने के बाद हमारी लाइफ में चीजें 360 डिग्री बदली हैं रोज़दा,और उनमें शिवानी भी एक है. ऐसे ही नहीं मानते हम सब तुम्हें अपना लकी चार्म, अनजाने भी बहुत खुशियां दी हैं तुमने उन्हें "


बहुत सारी बातें थी जो मुझे उसके साथ शेयर करनी थी, दूसरी तरफ कुछ मजबूरियां भी. फोन‌काॅल्स के बाद अब कलीग्स भी आने लगे थे तो हमें मजबूरन अलग होना ही पडा़. नाश्ता करते‌ हुऐ माॅम ने फिर से इरिटेट करना शुरू कर दिया. तपती गर्मी में गणेश के घर जाने के लिए उन्हें जरूरत थी हमारी ओपन जीप की, जो उस वक्त अकादमी में खडी़ थी. दोपहर बाद रोज़दा के ईमेल की जगह फोटो के साथ एक मैसिज मिला, जिसमें उसने साॅफ्ट-टाॅप लगवाने‌ के लिए थैंक्स लिखा था.


राजौरिया अंकल‌ ने फोन कर बताया मुझे शादी के लिए छुट्टियां लेनी पडेंगी क्यूंकि ॵज़ परिवार की चाहत थी एक परम्परागत शादी की. कलीग्स और सीनियर्स को इंफार्म करना मजबूरी थी मगर मलेरिया होने से बात बन गई. काम से ज्यादा फोनकाॅल्स अब बधाइयों की आने लगी और शाम को हमारे डिपार्टमेंट का बिगडै़ल दादा अपनी मिसेज के साथ हमारे निवास पर मौजूद था.


" यो णा चलेगा दाद्दा.. बेटे की खातिर मिठाई तो पहुंचा दी म्हारे लिए ये भुंगडे़ (भुने हुए चने) और बिस्कुट ही बचे?? "


मतलब ना समझ आने पर उन्होने‌ बताया, हरियाणा में ब्राह्म्णों को इज्जत से दद्दा बोलते हैं, बेटे से उनका मतलब बन्नू था. स्नैक्स में माॅम को हैल्दवाइज भुने मखाने-मूंगफली-काजू-चने रखना बेहतर लगता था जो शायद उन्हें पसंद नहीं आया. आगे की बात फिर माॅम ने संभाली और मैं चेंज करने अपने कमरे में आ गया, जहां मनु भाभी रोज़दा साडी़ पहनना सिखा रही थीं.


" तुम तो ईमेल करने वाली थी?? "

बाथरूम से निकल कर मैंने रोज़दा को याद दिलाया, और भाभी तब तक जा चुकी थी.


" माॅम ने पूरा दिन बिजी़ रखा तो वक्त नहीं मिला. इन पाउचों को ऊपर वाले शेल्फ में रख दोगे प्लीज? " माफी का इजहार कर मैडम ने मुझे काम बताया.


" ग्रेट... तो क्या किया पूरा दिन "


" पहले बन्नू के घर गये.. फिर माॅम को देखना था रेस्टोरेशन का काम शुरु हुआ है या नहीं. लौटते हुए कुछ साडियां खरीदी और जब गणेश भाऊ ने तुम्हारे बाॅस के प्रोग्राम का इंफोर्म किया तो यहां वापस आ गये "


रोज़दा का व्यवहार पहले से बहुत शांत और सहज हो गया था अब. उसकी यह सादगी मुझे ज्यादा पसंद थी मगर एक कसक जरूर थी दिल में उसे पहले की तरह आत्मविश्वाश से परिपूर्ण चहकता और महकता देखने‌ की. पाउचों को रखने के बाद मैंने मैडम को कस कर गले लगाया और उसके माथे के ऊपर वाले हिस्से को चूमने लगा.


" मुझे अपनी जिम्मेदारियों का अहसास है समर. प्रामिस करती हूॅं, अच्छे या बुरे हर फेज में हम हमेशा साथ रहेंगे "


अलग होते हुए रोज़दा के मुंह से यह भारी-भारी अल्फाज़ सुने तो मुस्कुराए बिना रहा नहीं गया. यकीन था मिस्टर या मिसेज सिवाच ने उसे यह ज्ञान दिया होगा, " डैड से बहुत कुछ सीखा है मैंने. तुम जैसी भी हो, मैनेज कर लूंगा तुम्हें. इसलिए ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं "


सहारा देकर मैं उसे बाहर ले आया. उम्मीद के मुताबिक मैडम सबसे मिल चुकी थी. दरअसल रोज़दा से मिलने के साथ-साथ मिस्टर एंड मिसिज सिवाच के यहां आने का मकसद राजौरिया अंकल-आंटी के लिए माफी मांगना था. मेरे पिछले ट्रैक रिकार्ड को देखकर वो नहीं चाहते थे डिपार्टमेंट के कुछ भ्रष्ट लोग मेरी गैरत पर कभी सवाल खडे़ करे. क्यूंकि अब हम जो कर रहे थे, उससे पुलिस डिपार्टमेंट के साथ साथ अन्य विभागों में हर रोज हमारे दुश्मन बढ़ रहे थे, जिनके चेहरों से तो हम परिचित थे मगर सीरत से अनजान.


सबके जाने के बाद माॅम और रोज़दा थोडी हिली हुई जरूर थी लेकिन करण की काॅल आने पर हम शादी की रीति-रिवाजों और पर चर्चा कर रहे थे. डैड का फिक्स था सगाई रैनावारी में होगी, जिसके लिए ॵज़‌ फैमिली तैयार थी, मगर इसके दो दिन बाद बारात लेकर उदयपुर पहुंचना डैड लिए बहुत हैक्टिक और ट्रबलसम था.


" तुम्हारी भी कोई ख्वाहिश है? " माॅम को अकेला छोड़ मैं और रोज़दा वापस वहीं बैठ गये जहां‌ सुबह थे.


" उबेश्वर जाना है साइकिलिंग करते हुए " ये बोलते हुए रोज़दा ने बच्चों की तरह अपनी आंखें बंद कर ली.


" मेरा सवाल शादी को लेकर था " बचपने‌ पर मुस्कुराते हुए मैंने अपना सवाल दुरुस्त किया.


" तुम भूल रहे हो रजिस्टर्ड मैरिज किसका आईडिया था.. खैर, एक कड़वा सच सुनना चाहोगे समर? "


" नहीं... ईमेल करना प्लीज "

जोर डालते हुए मैं उससे रिक्वेस्ट किया और समझाने‌ लगा कि हमारे आपसी मतभेद वो ऑफिस टाइमिंग में ईमेल के माध्यम से शेयर करे. क्यूंकि ट्रांजिट के दौरान सोचने-समझने के लिए सफीशिएंट वक्त होता, सैकिंडली इसमें आपसी क्लेशिज बढ़ने की गुंजाइश ना के बराबर थी.
 
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