हालांकि हमारा रिश्ता रूमानी था जिसमें में शारीरिक आकर्षण या हवस जैसी मानसिकता की कोई जगह नहीं थी मगर जबसे रोज़दा ने मुझे टर्किश निकाह की अहम रिवाज़ 'मेडेनहुड-बेल्ट' के बारे में बताया, तब से और भी ज्यादा परवाह करने लगा था मैं, उसके डैड को किये अपने वायदे की. यही थी वो एक वजह जिसके लिए तय वक्त से पहले रोज़दा यहां आई, नहीं तो ईमेल पढ़ने के बाद खुद को रोकना मुश्किल हो गया था मेरे लिए उस दिन.
…………
उत्तर भारत भारतीय क्षेत्र और वहां की पर्वत श्रंखलाओं के दर्शन की शुरुआत उदयपुर की अरावली रेंज से हुई. फिर दिल्ली-पंजाब के बीच दोआब का उपजाऊ मैदानी इलाके और बर्फ से ढ़की शिवालिक-धौलधार माउंटेन रेंज से गुजरते हुए सफर खत्म हुआ पीर-पंजाल और जंस्कार की गोद में बसे श्रीनगर शहर में. जिसे अपने देश का क्राउन और धरती पर स्वर्ग मानते. और लोगों की इस राय में कोई शुबहा भी नहीं था क्यूंकि जहां देश का अधिकतर हिस्सा गर्मी से झुलस रहा था तो इधर की वादियां कहीं-कहीं बर्फबारी से गुलजार थी.
" OMG.... "
वैसे तो वहां और भी लोग थे जिनके शामिल होने का मुझे अंदाजा नहीं था, लेकिन जितनी खुशी मुझे तेजा भाऊ और सुंदर को देखकर हुई उतनी तो POTUS से मिलने पर भी नहीं होती.
सबसे मिलने के बाद डैड, करण और मुझे उनके बचपन के दोस्त (रौशन अंकल) समेत दादू के पडौसियों को गंडुन और यज्ञोपवीत की रस्म में इनवाइट कराने के लिए ले गये. इसके उनका बस वही मकसद था जो अमूमन हर बाप का अपनी औलाद से होता है. हालांकि मुझे यह सब पसंद नहीं था लेकिन इस बात से सुकून था कि दादू के साथ उनका असंभव सा सपना सच होने जा रहा था, वो भी हंसी-खुशी.
तो दूसरी ओर मैं शुक्रगुजार था सभी मेहमानों का जो हमारी खुशियों में शरीक होकर, इस इवेंट को बेहद यादगार बनाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे थे, एल्स भागदौड के इस दौर में किसी के पास इतना वक्त कहां था आजकल.
खाना खाने के बाद हम पडौसी अंकल के घर में लिक्वर पार्टी कर रहे थे जहां डैड ने ॵज़ परिवार और बाकी के रहने का इंतजाम किया था. बातों-बातों में मेसुद मुझसे हमारे परिवार के बारे में पूछ बैठा. मसलन वाॅन-सिटी में उसके अंकल रहते थे, लंदन में मामा और सोलना में बूआ. और पुस्तैनी घर में होने के वाबजूद हमारे परिवार या रिश्तेदारों में से कोई यहां मौजूद क्यूं नहीं था? फ्रैक्शंस ऑफ सैकिंड्स के अंदर मेरे जे़हन और चेहरे पर ना जाने कितने इमोशन्स गुजरे मगर फिर मिलिंद भाई, अनूप, गणेश, निघत, सुंदर, तेजा भाऊ और करण से नजरें मिलने पर मुझे अफसोस नहीं हुआ बडा़ परिवार या रिश्तेदार न होने का.
सुबह जल्दी उठना था मगर पिछले 40 घंटों से लगातार जागने के वाबजूद आंखों से नींद कोसों दूर थी. किताबों में मशगूल मैं एक्जाम की तैयारी कर रहा था कि फोन स्क्रीन पर फ्लैश होते रोज़दा के नाम ने मेरी आंखों की चमक और बढ़ा दी. रात के एक बजे मैड़म को तगडी़ अर्ज हो रही थी मीठा खाने की. वैल, पिछले कुछ दिनों से बेहद क्यूट लगने लगी थी वो मुझे और जब फोन पर उसकी हस्की आवाज़ सुनता तब मेरी धड़कनें तो बढ़ने लगती.
" सूट पसंद आया? " मूंग-दाल हलवा और चाय के लिए अनूप (आगरा से मेरे कैटरर दोस्त) को थैंक्स बोल कर मुझसे मैड़म ने पूछा.
" तुमसे ज्यादा नहीं "
जवाब सुनकर वो ब्लश करने लगी. असलियत में उसे पता था मेरी नापसंद का. मगर उसे जानना था, आज मैं उसकी इस पसंद का एहतराम कर रहा हूं या नहीं.
" हैविनली जगह है यह, जस्ट डोंट अंडरस्टैंड तुम्हें इस जगह से इतनी नफरत क्यूं है? दादू की खातिर कुछ दिन तो.... एनीवे मैं तो आया करूंगी यहां " कंधे उचकाते हुए मैडम ने कंम्पलेन किया फिर झिझ़कने पर चाय सिप करने लगी.
मुझे कोई ऑब्जेक्शन नहीं था क्यूंकि उस वक्त मेरा मकसद मैडम से चिपक कर, उसके बदन की गर्म लज्ज़त और खुशबू को अपने अंदर महसूस करना था. थैंकफुली उसे समझ आ गया कि मेरी इब्तिदाई जरूरत क्या थी, फिर अगले पल अपनी चाय साइड में रख वो कंबल में मुझे सहलाने लगी. उसकी उंगलियों के सुखद अहसास ने धीरे-धीरे मेरी आंखों को आराम करने के लिए मजबूर कर दिया, और सुबह जब मैं उठा तो तीन दिन की थकान मेरे चहरे से गायब हो गई.
दो परिवारों के मिलन और वैवाहिक की रस्मों की औपचारिक शुरुआत के लिए हम सब भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद लेने मंदिर गये. जहां संबंधित पूजा-प्रक्रिया पूरी होने के बाद दोनों परिवार और उनके मेहमानों के सम्मान में गिफ्ट्स एक्सचेंज हुआ, और फिर अगली रस्मों के लिए सहमति बनाकर हम वापस अपने घर आ गये.
मेहमान-नवाजी़ और इंतजा़मात से लेकर इस ईवेंट को यादगार बनाने की तमाम जिम्मेदारी डेनिज़-इरीन-साइदा और करण के कंधो पर थी. क्यूंकि फिक्रित और राजौरिया अंकल के इसरार पर यह शादी पारंपरिक कुर्दिश-कश्मीरी रीति-रिवाजों का दवाब था, इसलिए उनके लिए यह टास्क और भी ज्यादा चेलैंजिंग हो गया.
शाम को अगला प्रोग्राम पास के स्कूल में गंडुन या रिंग-सेरेमनी का था. उसके अगले दिन मेरे यज्ञोपवीत होने के बाद बाकी की रस्मों के लिए ॴज़ परिवार उदयपुर लौटने वाला था और अपन वापस आगरा. इवेंट्स की फेहरिस्त लंबी होने से बेशक सबका आराम हराम होता लेकिन वाबजूद इसके सभी एक्साइटिड़ थे. दोपहर में लेक-साइड हजरतबल दरगाह घूमने के बाद सब तैयार होकर स्कूल में जमा हुए एंड सबके बाद रोज़दा के आने पर मेरी आंखे हैरत से फैलने लगी, बेहद हसीन लग रही थी वो पीच कलर की साडी़ में लिपटी.
बेस्ट पार्ट था इंगेजमेंट-टोस्ट्स के दौरान आशीर्वाद या बधाई के नाम पर मिलने वाली भावुक तारीफ और झिड़क. जिसमें अंकल आंटी और माॅम-डैड की स्पीच इफर्टलैस रही, जूनियर ॵज़ बर्दर्स प्रो थे, तो उनके पेरेंट्स मेरी तरह सबमिसिव और थैंकफुल. मुझे इंतजार था शिवानी का मगर इमोशनल होने की वजह से उसका ज्यादातर वक्त करण के जोक्स ने ले लिया.
बाकी इरीन एंड मिलिंद भाई तो एंकर थे ही, जिन्होने मैडम की तेजतर्रार फ्रैंड्स के सामने मेरे सीधे-सादे दोस्तों की हिम्मत कमजोर नहीं पड़ने दी. आखिर में बारी थी हमारी और उससे पहले इरीन ने डिमांड किया मैड़म के ऑनर में मेरी जुबान से कुछ रोमानी अल्फाज़. हालांकि, यह अन-एक्सपैक्टिड था मेरे लिए लेकिन फिर भी सबको देखते हुए, मैं काफी तैयार था अपनी पिछली गलतियों सुधारने को.
" थैंक्स इरीन, यह मौका देने के लिए.
क्यूंकि मुझे रोमानी अल्फाज में तुम्हारी तारीफ करनी है इसलिए मैं शुरुआत करना चाहूंगा मैजिकल थ्री वर्ड्स से.आई लव यू रोजे़न, आज से तुम सबकुछ हो मेरे लिए. वैल तुम्हें कंम्पलेन थी और शायद अभी भी है कि प्यार करने के वाबजूद मैं तुम्हें प्रपोज क्यूं नहीं कर पाया. ऑनेस्टली, मैं डरता था तुम्हें खोने से क्यूंकि लाखों वजह हैं तुम्हारे पास मुझे रिजेक्ट करने की, और बदनसीबी से अपना पैदाइसी नाता रहा है, तो हिम्मत नहीं हुई कभी आगे बढ़ने की. यकीन नहीं होता तो माॅम-डैड और अंकल-आंटी की क्रास्ड फिंगर देख लो, वो अभी भी दुआ कर रहें हैं कि कल मेरे साथ कुछ उलटा न हो जाए.
खैर, रहमत की तरह आई हो तुम मेरी जिंदगी में इसलिए अब तुम्हारे से मुझे उतना डर नहीं, लेकिन एक सच यह भी है तुम्हारी नाराज़गी से जरूर लगने लगा है, जो सही भी है कुज़ हैल्दी मैरिड़ लाइफ के लिए मैंने माॅम-डैड एंड अंकल आंटी से तो यही सीखा है. कोशिश होगी हैशियत से बढ़कर तुम्हें खुश रखने और भरोसा जीतने की. बाकी इतना मेच्योर भी नहीं हूं इसलिए अनजाने में कभी अफेंड कर भी दूं तो बेचारा पति समझ कर माफ कर देना प्लीज. शुक्रगुजार हूं तुम्हारा और ॵज़ फैमिली का, जिन्होंने मुझे और मेरे परिवार को इस इज्जत और प्यार के लायक समझा इसलिए यकीन दिलाता हूं, इंबैरश नहीं होना पडे़गा हमारे तरफ से आपको कभी.
एंड, अभी मुझे अटेंशन चाहिये ईश्वर के समान हमारे सभी मेहमानों की, जो इतनी तकलीफ उठाकर अपने कोजी़-कोजी़ आशियाने से दूर कष्ट कर हमारी खुशियों में शामिल होने के लिए यहां आए. ईमानदारी से मैं ज्यादा सोशल नहीं हूं, इसलिए पहले कभी इसका अहसास नहीं हुआ, लेकिन आज मैं दिल की गहराईयों से बहुत अहसानमंद हूं आपकी आमद और शुभाशीषों के लिए. इन मूमेंट्स को खूबसूरत और यादगार बनाने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद और सादर आभार. हमेशा ऋणी रहेंगे हम आपके इस उपकार के लिए.
थैक यू वैरी-वैरी-वैरी-वैरी- वैरी मच, कुज, दैट मीन्स अ लाॅट टू मी एंड ऑर फैमिली
"
हाथ-जोड़ कर मैंने सबका अभिवादन किया और माइक इरीन को पकड़ाकर वापस अपनी जगह बैठ गया. अब अगली बारी रोजे़न की थी. भाई की हैशियत से मिलिंद भाई ने उसे पोक किया तो मैडम ने सीधे-सीधे गालियां से मेरी तारीफ करने की शुरुआत की. पहले तो बडा़ अजीब लगा, लेकिन बाद में उसका 'पन' समझ आया तो सबके चेहरों पर मुस्कुराहटें आबाद हो गई.
" तारीफ और इस निहायती गुस्ताख, लापरवाह, कंजूस, खुदगर्ज और लाइफटाइम इंबैरसमेंट ट्राफी की जिसको हमेशा सिर्फ अपनी फिक्र होती है? भूल जाओ " इतने पर भी रुकी नहीं वो, और फिर अपनी बहन को दुखडा़ सुनाने लगी, " क्या मैंने बोला नहीं था साइदा, यह आज भी मेरी बेइज्जती कराएगा? भुगतो, क्यूंकि तुम्हारा ब्रदर-इन-ला है ही इतना शैदाई. देखा इरीन, सप्ताह-भर की प्लानिंग के बाद चार घंटे लगे तुम्हारी आर्टिस्ट्स को मुझे तैयार करने में और इस निकम्मे ने एक सैकिंड में सबकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया. एक लफ्ज तक नहीं निकला इसके लंगूर जैसे मुंह से कि इस भारी-भरकम साडी़ में आज कितनी खूबसूरत लग रही हूॅं मैं!!!
जाहिर है चेहरे, साडी़, गहने और मैटिरियलिस्टिक चीजों से अलग इसे मेरी सादगी पसंद है. एंड डैड, यह कमीना आज भी आपको मिस्टर ॵज़ के नाम से एड्रेस कर रहा है, पूछ कर देखोगे तो नाम तक नहीं बता पाएगा आपका.
ट्रस्ट मी, चिढ़ होती है इसको ऐसे बिहेव करते देख मगर रीजन भी बहुत हैं इसे प्यार करने के. पागल है, लेकिन रहमत की तरह इज्जत करता है मेरी,
और खयाल भी रखता है आपके जितना. जितनी मर्जी गालियां सुना लूं नाराज नहीं होता, वाबजूद इसके सेवा में रहता है दासियों की तरह. भरोसेमंद कितना है ये आप देख चुके हो, लेकिन माॅम की तरह सुख-दुख का साथी और साथ लेकर वालों में से भी है यह.
ब
भाई, बडे़ बाबा-अम्मी, बूआ एंड फूफसा. दो-दो माॅम हैं समर के पास और दोनों ही बेहद अच्छी. बेशक इनके दरम्यां खून का रिश्ता नहीं लेकिन जज्बाती जुडा़व हम नोमैडिकों से भी मजबूत है. बहुत अच्छा महसूस होता है इस फैसले में आपने मेरा साथ दिया, एंड वैसे भी एक दिन आपने मेरा निकाह कर इस कुनबे को बडा़ तो करना ही था.थैंक यू, मुझपर भरोसा जताने और सपोर्ट करने के लिए. बस इतनी गुजारिश और है कि हमेशा की तरह आप मेरे इस नए परिवार के बेहद करीब रहेंगे "
उसकी आवाज़ में पहले जैसा कॉन्फिडेंश और चेहरे पर शैतानी मुस्कुराहट वापस देखकर मैं मन ही मन ऊपर वाले का आभार जताने लगा. सख्त जरूरत थी हमें/मैडम को इसकी. झिझक और मजा़क के खौफ से उसका खामोश/गुमसुम रहना बर्दाश्त नहीं होता था, मगर बेबस थे अपन ईश्वर की मर्जी या ताकत के आगे.
भगवान शिव का दिन था तो दिमाग में उबेश्वर शिव मंदिर घूमने लगा. फैसला किया अब से हर एक सोमवार पैदल-पैदल नंगे पैर भगवान के दरबार में अपनी हाजिरी जरूर लगा करेगी, इस उम्मीद से कि उसका क्रच भी जल्द छूट जाए.