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Erotica फागुन के दिन चार

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komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३६, पृष्ठ ४१६

वापस -घर


अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
 
Last edited:

motaalund

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आप ने सही कहा, चंदा भाभी ने आनंद बाबू को कच्ची कलियों का रस लेने के लिए भी इस रोल प्ले से तैयार कर दिया, जो थोड़ा लजायेगी, ना ना करेगी, पैर सिकोड़ेगी, गोरे गोरे गाल राजा छूने नहीं दूंगी, भी बोलेगी और खुद अपने गोरे चिकने गालों की ओर इशारा भी करेगी, और कैसे उसकी चोली खुलेगी, कैसे बंद प्रेम गली में सेंध लगेगी, किस ट्रिक से पटेगी और कैसे उसकी फटेगी

अगली पोस्ट में खुद अपने उदाहरण से उन्हें इशारा भी कर दिया की ये बात और सीख सिर्फ गुड्डी के लिए नहीं, उनके जिज्जा ने जब उनकी सील खोली तो वो गुड्डी की मंझली बहन से भी छोटी थीं, गूंजा ( उनकी बेटी ) से पूरे छह महीने छोटी, और न उनकी दीदी ने बुरा माना न माँ ने।

अब आनंद बाबू के ऊपर है चंदा भाभी की इस सीख, और इशारे का कितना फायदा उठाते हैं
शुरुआत चंदा भाभी के घर से हीं..
 

motaalund

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Yes.. Pathsala continues. in full swing.
Anand babu gifted his cherry in "Gurudakshina "😛😛😛.
A new Anand babu in making ..rouged in sexual appeal.
Teenage anxieties and shyness towards opposite sex is a different feel... Like "Log kya kahenge".And once opened up.. THEN..❤❤❤.
As usual it's all of dearest mam.. 🙏🙏
पहली बार की हिचक है...
फिर तो धूम-धड़ाका....
 

Shetan

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motaalund

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आपने एक लाइन में वो बात कह दी जिसके लिए मैंने पूरी पोस्ट लगा दी और यह होती है एक अच्छे समीक्षक की पहचान, वह सीधे मुख्य बिंदु तक पहुँच जाता है

जो आपने यह कहा, " इस खेल की सबसे बड़ी बाधा है झिझक टूटना । एक बार झिझक टूटा फिर चाहे लड़का हो या लड़की दिल - जिगर - गुर्दा सबकुछ मजबूत होना शुरू हो जाता है । आनंद साहब की झिझक टूट चुकी है ।"

असली बात यही है झिझक टूटना। और खास तौर से जो लोग थोड़े अंतर्मुखी होते हैं, एक अच्छे बच्चे कि इमेज में फंस के जीते हैं, चाह के भी मजे का मजा नहीं ले पाते,

बस चंदा भाभी की पूरी कोशिश यही थी, पनिहारिन और कुंवा के उदाहरण से समझाया, कि एक किसी के पीने से कुंवा नहीं सूखता, फिर केस स्टडी के तौर पर अपना उदहारण भी दिया कि वो उनके जीजा ने उनके साथ, कैसे कब और सबसे बढ़कर रोल प्ले, एक कुंवारी कन्या के साथ जो उन्ही कि तरह अनुभव हीन हो तो उसके साथ कैसे,

किताबें तो आनंद बाबू ने बहुत पढ़ रखी थीं, पढ़ने लिखने, सोचने समझने में भी तेज है, लेकिन बस वही झिझक और उसके लिए एक स्त्री गुरु कि जरूरत थी जो चंदा भाभी ने काफी कुछ पूरी करने कि कोशिश की ।

आपके कमेंट एकदम ' ज्यों नावक के तीर ' कि तरह होते हैं एकदम सटीक, और मैं पोस्ट होने के बाद उनका इन्तजार करती hu।

एक बार फिर से आभार, धन्यवाद
एकदम सटीक उदहारण और साथ में कमेंट भी...
 

motaalund

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छन्दा या चंदा भाभी

शायद आजकल के माहौल में आप चंदा शब्द के प्रयोग से बचाना चाह रहे हों
अब चाहे छंदा हो या चंदा...
फंदा तो डाल दिया गया है....
 
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motaalund

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बहुत बहुत धन्यवाद

आपके कमेंट पढ़ के सच में अच्छा लगा, लेकिन आनंद बाबू तो अभी प्रेम शास्त्र का पहला पाठ पढ़ रहे थे और जिधर का ताला खोलने की बात कर रहे हैं उसमे तो थोड़ा अनुभवी हो तो सही रहता है। हाँ आइडिया आपका सही है और आगे जरूर इस्तेमाल होगा।
लेकिन चंदा भाभी ऐसी गुरु कहाँ मिलेगी...
 

motaalund

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Thanks so much for the nice comments and now we will see in the next part to what extent the teaching of Night School of Chanda Bhabhi has influenced Aanand babu. A day will dawn with more teasing of Phagun of Sasural that too of Banaras.

Next part Today, Guddi, Good Morning.
किसी अगले प्रत्याशी पर इस ट्रेनिंग से कितना फायदा मिला...
वही आनंद बाबू की असली परीक्षा होगी...
 

prkin

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किसी अगले प्रत्याशी पर इस ट्रेनिंग से कितना फायदा मिला...
वही आनंद बाबू की असली परीक्षा होगी...

motaalund bhai.

अपने जिस प्रकार से इस कहानी की प्रशंसा की है वो सच में प्रशंसनीय है. इससे लेखक का मनोबल बढ़ता है और कृति और उत्कृष्ट बनती है.

धन्यवाद.
 

motaalund

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भाग ७

गुड्डी- गुड मॉर्निंग


८१,२६४


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सुबह जब मेरी नींद खुली तो सूरज ऊपर तक चढ़ आया था और नींद खुली उस आवाज से।


“हे कब तक सोओगे। कल तो बहुत नखड़े दिखा रहे थे। सुबह जल्दी चलना है शापिंग पे जाना है और अब। मुझे मालूम है तुम झूठ-मूठ का। चलो मालूम है तुम कैसे उठोगे?”

और मैंने अपने होंठों पे लरजते हुए किशोर होंठों का रसीला स्पर्श महसूस किया।
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मैंने तब भी आँखें नहीं खोली।

“गुड मार्निंग…” मेरी चिड़िया चहकी।

मैंने भी उसे बाहों में भर लिया और कसकर किस करके बोला- “गुड मार्निंग…”


“तुम्हारे लिए चाय अपने हाथ से बनाकर लाई हूँ, बेड टी। आज तुम्हारी गुड लक है…” वो मुश्कुरा रही थी।

मैं उठकर बैठ गया।


“तुम ना क्या? अरे गुड मार्निग जरा अच्छे से होने दो न…” और अबकी मैंने और कसकर उसके मस्त किशोर उरोज दबा दिए।


उसकी निगाह मेरे नीचे, साड़ी कम लूंगी से थोड़ा खुले थोड़ा ढके ‘उसपे’ वो कुनमुनाने लगा था, और क्यों ना कुनमुनाए। जिसके लिए वो इत्ते दिनों से बेकरार था वो एकदम पास में बैठी थी। मेरा एक हाथ उसके उभार पे था। उसकी ओर इशारा करते हुए मैंने गुड्डी से कहा-

“हे जरा उसको भी गुड मार्निग करा दो ना। बेचारा तड़प रहा है…”



“तड़पने दो। तुमको करा दिया ना तो फिर सबको…”

वो इतरा के बोली। लेकिन निगाह उसकी निगाह अभी भी वहीं लगी थी।
‘वो’ तब तक पूरा खड़ा हो गया था।


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मैंने झटके से गुड्डी का सिर एक बार में झुका दिया और उसके होंठ कपड़े से आधे ढके आधे खुले उसके ‘सुपाड़े’ पे। मेरा हाथ कस-कसकर उसके गदराये जोबन को दबा रहा था।


उसने पहले तो एक हल्की सी फिर एक कसकर चुम्मी ली वहां पे, और बड़ी अदा से आँख नचाकर खड़ी हो गई और जैसे ‘उसी’ से बात कर रही हो बोली-

“क्यों हो गई ना गुड मार्निग। नदीदे कहीं के…”
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और फिर मुड़कर मेरा हाथ खींचते हुए बोली- “उठो ना इत्ती देर हो रही है, सब लोग नाश्ते के लिए इंतजार कर रहे हैं…”


“जानू इंतजार तो हम भी कर रहे हैं…” हल्के से फुसफुसाते हुए मैं बोला।



जोर से मुश्कुराकर वो उसी तरह फुफुसाते हुए बोली- “बेसबरे मालूम है मुझे। चल तो रही हूँ ना आज तुम्हारे साथ। बस आज की रात। थोड़ा सा ठहरो…” और फिर जोर से बोली-

“उठो ना। तुम भी। सीधे से उठते हो या…”

मैं उठकर खड़ा हो गया। लुंगी ठीक करने के बहाने मैंने उसको सुबह-सुबह पूरा दर्शन करा दिया। लेकिन खड़े होते ही मुझे कुछ याद आया-

“अरे यार मैंने मंजन तो किया नहीं…”

“तो कर लो ना की मैं वो भी कराऊँ?” वो हँसी और हवा में चांदी की हजार घंटियां बज उठी।


“और क्या अब सब कुछ तुमको करवाना पड़ेगा और मुझे करना पड़ेगा…” मुश्कुराकर मैं द्विअर्थी अंदाज में बोला।


“मारूंगी…” वो बनावटी गुस्से में बोली और एक हाथ जमा भी दिया।


“अरे तुम ना तुम्हें तो बस एक बात ही सूझती है…” मैंने मुँह बनाकर कहा-

“तुम भूल गई। कल तुम्हारे कहने पे मैं रुक गया था। तो मेरे पास ब्रश मंजन कुछ नहीं है…” फिर मैं बोला।


“अच्छा तो बड़ा अहसान जता रहे हैं। रुक गया मैं…” मुझे चिढ़ाते हुए बोली- “फायदा किसका हो रहा है? सुबह-सुबह गुड मार्निग हो गई, कल मेरे साथ घूमने को मिल गया। मंजन तो मिल जाएगा। हाँ ब्रश नहीं है तो उंगली से कर लो ना…”
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“कर तो लूं पर…” मैंने कुछ सोचते हुए कहा- “तुम्हीं ने कहा था ना। की मेरे रहते हुए अब तुम्हें अपने हाथ का इश्तेमाल करने की जरूरत नहीं है। तो…”

“वो तो मैंने…” फिर अपनी बात का असर सोचकर खुद शर्मा गई। बात बनाकर बोली-

“चल यार तू भी क्या याद करोगे। किसी बनारस वाली से पाला पड़ा था। मैं करा दूंगी तुम्हें अपनी उंगली से। लेकिन काट मत खाना तुम्हारा भरोसा नहीं…”

वो जैसे ही बाहर को मुड़ी, उसके गोल-गोल कसे नितम्ब देखकर ‘पप्पू’ 90° डिग्री में आ गया। मैंने वहां एक हल्की सी चिकोटी काटी और झुक के उसके कान में बोला-

“काटूँगा तो जरूर लेकिन उंगली नहीं…”

वो बाहर निकलते-निकलते चौखट पे रुकी और मुड़कर मेरी ओर देखकर जीभ निकालकर चिढ़ा दिया।


बाहर जाकर उसने किसी से कुछ बात की शायद गुंजा से, चंदा भाभी की लड़की। जो उससे शायद एकाध साल छोटी थी और उसी के स्कूल में पढ़ती थी। भाभी ने कल रात बताया तो था, गुड्डी की मंझली बहन से महीने डेढ़ महीने ही बड़ी है उसी के क्लास में, दोनों ने कुछ बात की फिर हल्की आवाज में हँसी।

“आइडिया ठीक है। बन्दर छाप दन्त मंजन के लिए दीदी…” ये गुंजा लग रही थी।

“मारूंगी…” गुड्डी बोली- “लेकिन बात तुम्हारी सही है…” फिर दोनों की हँसी।

मैं दरवाजे से चिपका था।

“आप तो बुरा मान गई दीदी। आखिर मेरी दीदी हैं तो मेरा तो मजाक का हक बनता है जीजू से, छोटी साली हूँ। वो भी फागुन में…” गुंजा ने छेड़ा।



लेकिन गुड्डी भी कम नहीं थी-

“मजाक का क्यों तू जो चाहे सब कर ले, करवा ले। साली का तो, वो भी फागुन में ज्यादा हक होता है,। मैं बुरा नहीं मानूंगी…” वो बोली।



थोड़ी देर में गुड्डी अन्दर आई। सच में उसके हाथ में बन्दर छाप दन्त मंजन था।


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हँसकर वो बोली- “कटखने लोगों के लिए स्पेशल मंजन…”

“पर ऊपर से नीचे तक हर जगह काटूँगा…” मैं भी उसी के अंदाज में बोला।



“काट लेना। जैसे मेरे कहने से छोड़ ही दोगे। मुझे मालूम है तुम कितने शरीफ हो। अब उठो भी बाथरूम में तो चलो…” मुझे हाथ पकड़कर बाथरूम में वो घसीटकर ले गई।

मैंने मंजन लेने के लिए हाथ फैला दिया।



बदले में जबरदस्त फटकार मिली-

“तुम ना मंगते हो। जहां देखा हाथ फैला दिया। क्या करोगे? तुम्हारे मायके वालियों का असर लगता है, आ गया है तुम्हारे ऊपर। जैसे वो सब फैलाती रहती हैं ना सबके सामने…”

ये कहते हुए गुड्डी ने अपने हाथ पे ढेर सारा लाल दन्त मंजन गिरा लिया था। वो अब जूनियर चन्दा भाभी बनती लग रही थी।



“मुँह खोलो…”

वो बोली, और मैंने पूरी बत्तीसी खोल दी। उसने अपनी उंगली पे ढेर सारा मंजन लगाकर सीधे मेरे दांतों पे और गिन के बत्तीस बार और फिर दुबारा और मंजन लगाकर और फिर तिबारा।

स्वाद कुछ अलग लग रहा था। फिर मैंने सोचा की शायद बनारस का कोई खास मंजन हो। पूरा मुँह मंजन से भरा हुआ था। मैं वाशबेसिन की ओर मुड़ा।

तब वो बोली- “रुको। आँखें बंद कर लो। मंजन मैंने करवाया तो मुँह भी मैं ही धुलवा देती हूँ…”


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अच्छे बच्चे की तरह मैंने आँखें बंद रखी और उसने मुँह धुलवा दिया। जब मैं बाहर निकला तो अचानक मुझे कुछ याद आया और मैं बोला- “हे मेरे कपड़े…”



“दे देंगे। तुम्हारी वो घटिया शर्ट पैंट मैं तो पहनने से रही और आखीरकार, किससे शर्मा रहे हो? मैंने तो तुम्हें ऐसे देख ही लिया है। चंदा भाभी ने देख ही लिया है और रहा गुंजा तो वो तो अभी बच्ची है…”

ये कहते हुए मुझे पकड़कर नाश्ते की टेबल पे वो खींच ले गई।
मैंने झटके से गुड्डी का सिर एक बार में झुका दिया और उसके होंठ कपड़े से आधे ढके आधे खुले उसके ‘सुपाड़े’ पे। मेरा हाथ कस-कसकर उसके गदराये जोबन को दबा रहा था।

पिछली बार जो आनंद बाबू .. पकड़ाने में शरमा रहे थे..
और चंदा भाभी से उलाहना भी मिल गया...
वही अब गुड्डी के सिर को झुका के.. अपने गुरु से प्राप्त ज्ञान प्रयोग कर लिया...
 
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