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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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आपके इस प्रयास को कोटि कोटि नमन...
एकदम और गूंजा के साथ गुड्डी की सबसे छोटी बहन छुटकी भी इस में हाथ बंटा रही है, ललचाने लुभाने और सिखाने में की लड़कियां ज्यादा जल्दी जवान होती है'अभी छोटी है' वाली झिझक और गडबड तो धीरे-धीरे हट रही है...
अगला इम्तिहान गुड्डी या रीत या फिर गुंजा....?????
रीत रीत हैएक नई साज- सज्जा के साथ...
और जैसे गुंजा की भूमिका में बढ़ोतरी हुई है...
वैसे हीं रीत की करामातें भी अपनी ऊँचाईयाँ छुएगी...
आखिर दूबे भाभी की ननद जो ठहरी...
गूंजा इस कहानी में बार बार आएगी और अलग अलग पृष्ठभूमि मेंलेकिन एक बार जब अक्ल का घोड़ा दौड़ना शुरू होगा फिर तो...
घुड़दौड़ और घुड़सवारी तो बेजोड़ होगी...
मैंने तो खाली पेश कियाआपके इस छंद ने मन को मोह लिया...
Komal Madam, for 8 updates, you have 1L views..in 100 updates it should comfortably break jkg's numbers/views
मैं भी रसिया बन गया हूँ इस कहानी कासही है। सिर से पैर तक तो तुम कामरस में डूबी हो। हे मुझे भी कुछ पढ़ा देना। कामरस। आम-रस। मैं तो रसिया हूँ रस का…” मेरी निगाहें उसके उरोजों से चिपकी थीं।
ससुराल हो, वो भी बनारस की, फागुन होयात्री अपने सामान की खुद देखभाल करें..
सफाचट होने पर इसके लिए वो खुद जिम्मेदार हैं...
विशेष कर होली के शुभ अवसर पर अपने ससुराल में (अभी भाई की ससुराल)...