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Erotica फागुन के दिन चार

motaalund

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ससुराल की गारियाँ भूले जाने के लिए होती भी नहीं, खाना ससुराल का कितना भी स्वादिष्ट हो, बिना गारी खाना फीका रहता है जैसे बिन साली सलहज ससुराल अधूरी रहती है।
वो भी रीत और गुंजा जैसी सालियां...
 

motaalund

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और इस भाग से रीत की ऑब्जर्वेशन पावर, विश्लेषण क्षमता और पल भर में सब कुछ भांप के निष्कर्ष पर पहुँचने की शक्ति की झलक दिखती है जो आगे के भागों में साफ़ दिखेगी, इसलिए इस भाग का अधिकांश हिस्सा रीत के व्यक्तित्व के उन पहलुओं से जुड़ा है जो पहले शुरू में नहीं दिखे थे लेकिन बाद में थ्रिलर वाले हिस्से में अच्छी तरह से स्पष्ट हुए इसलिए ये सारे पार्ट रफ़ूगीरी के तौर पर जोड़े गए है।

रीत का बिंदास बनारसी बाला का भी रूप है, खुल के मस्ती लेने वाला भी और ये सब भाग उसे बैलेंस करते हैं, उसके बहुआयामी व्यक्तित्व की झलक देते हैं
खास कर मगज अस्त्र का इस्तेमाल....
 

motaalund

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शर्लाक होम्स की तरह ऑब्जर्वेशन पावर को दिखाने के लिए उनकी मशहूर पुस्तक साइन आफ फॉर का एक कोटेशन इस में इस्तेमाल किया गया है लेकिन रीत ने ब्रेकफास्ट टेबल पर पानी वाले मामले में इस्तेमाल किया। फेलू दा और उनके जनक सत्यजीत राय भी होम्स के फैन थे।

और आनंद बाबू को भी पता चल गया की बनारसी बालाओं के सामने सरेंडर ही कर देना श्रेयस्कर होता है,
ये बुनियाद.. और रीत की करामात ...
आगे भी प्रतीक्षा रहेगी...
 

motaalund

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और एक कारण यह भी है की रीत और आनंद बाबू की तरह मैं भी सत्यजीत राय की फैन हूँ और इसलिए इस फोरम में भी मैंने एक थ्रेड उनके नाम पर उन्हें ट्रिब्यूट के तौर पर शुरू किया था।
इस प्रसंग के बाद मैंने भी सर्च करके फेलू दा और उससे संबंधित जानकारियों को ढूंढा...
 

motaalund

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यह भाग वास्तव में सबसे अलग था और कबीर और एक टिपिकल बनारस की होरी से मैंने रीत कैसे सोचती होगी, क्या देखने का नजरिया होगा ये दिखाने की कोशिश की,

मृत्यु के बीच, जीवन

जो नहीं शेष है , जो नहीं रहेगा उनके बीच का यह पल ' जो है ' उतना ही सत्य है जितना जो नहीं है या जो नहीं रहेगा

इसलिए मैंने कबीर का वो भजन मुर्दों का गाँव भी उद्धृत किया।
:applause::applause:🙏🙏🙏🙏
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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आभार,

Ars longa, vita brevis, ( art is long and life is short)

जीवन की इस आपधापी में, रोज नयी उलझन को सुलझाने में भी आप समय निकाल कर उत्तर दे रहे हैं यही कम नहीं है।

समय हमेशा कम रहता है, कान्फ्लिक्टिंग डिमांड्स होती हैं समय पर, उसमें भी आप समय निकाल के पाठकों के लिए कहानी लिख रहे हैं, उसकी कलात्मकता पर ध्यान दे रहे हैं यही बड़ी बात है, इसी लिए मैं समझ सकती हूँ, और हर पाठक के लिए हर लेखक की कहानी पढ़ना सम्भव भी नही।
हाँ बस यह कह सकती हूँ की अगर कभी टाइम मिले और मेरी कहानी पढ़ने की चाह हो, तो मेरी अनेको कहानियों में आप मोहे रंग दे पढ़े, कम से कम शुरू के आठ दस भाग, क्योंकि मेरी लिखी शायद सबसे रोमांटिक कहानी है जो नव दम्पति के बीच है, लेकिन पहले आपके समय पर आपकी कहानियों का अधिकार है

और अगर अंग्रेजी में लिखी कहानी पढ़नी है मेरी Its a Hard rain, कहानी ट्राई कर सकते हैं इसलिए भी की बहुत छोटी है।

मैं मानती हूँ की कहानी हमें तभी कहनी चाहिए जब हमारे पास कुछ ख़ास अलग कहने को हो और हम मानते हों की हम पाठक के समय को बर्बाद नहीं कर रहे हैं।

एक बार फिर से आपको बधाई और उत्तर के लिए धन्यवाद

बहुत बहुत धन्यवाद, कोमल जी! :)
आपकी पाती पढ़ कर स्पष्ट है कि आप मंझी हुई लेखिका हैं। अवश्य ही आपकी कहानियाँ पढ़ूँगा।
मैंने देखा है कि आपने मेरी एक दो कहानियाँ पढ़ भी ली हैं - मैं इस मामले में थोड़ा फ़िसड्डी हूँ।
लेकिन वायदा है आपसे - आपकी कहानियाँ ज़रूर पढ़ूंगा!
अपना ध्यान रखें! शीघ्र ही मिलते हैं!
 

Shetan

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बहुत बहुत धन्यवाद, कोमल जी! :)
आपकी पाती पढ़ कर स्पष्ट है कि आप मंझी हुई लेखिका हैं। अवश्य ही आपकी कहानियाँ पढ़ूँगा।
मैंने देखा है कि आपने मेरी एक दो कहानियाँ पढ़ भी ली हैं - मैं इस मामले में थोड़ा फ़िसड्डी हूँ।
लेकिन वायदा है आपसे - आपकी कहानियाँ ज़रूर पढ़ूंगा!
अपना ध्यान रखें! शीघ्र ही मिलते हैं!
अगर कोमलजी को पढ़ना है तो उनकी मोहे रंग दे पढ़ना. जबरदस्त भी है. और आप के मतलब की भी है. मै दीवानी हु उस स्टोरी की.
 

motaalund

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फागुन के दिन चार -भाग १०

रीत - म्यूजिक, मस्ती, डांस

१,२५,४१६


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अंदर से बनारस की गोरी आवाज दे रही थी, आओ न मैं म्यूजिक लगा रही हैं। मैं कौन था जो होरी में गोरी को मना करता, मैं रीत के पास.

--

रीत म्यूजिक सिस्टम की एक्सपर्ट थी। झट से उसने सेट कर दिया, और बोली- “कोई सीडी होती तो लगाकर चेक कर लेते…”

“सही कह रही हो। देखता हूँ…” मैं बोला- “कल रात मैंने देखा था…” तभी मिल गईं वहीं मेज के नीचे, और एक मैंने उसे दे दिया।

झुक के वो लगा रही थी लेकिन मेरी निगाहें उसके नितम्बों से चिपकी थी, गोल मटोल परफेक्ट। लगता था उसकी पाजामी को फाड़कर निकल जायेंगी और उसके बीच की दरार, एकदम कसी-कसी। बस मन कर रहा था की ठोंक दूं। उसी दरार में डाल दूं । क्या मस्त गाण्ड थी।
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आनंद बाबू पर बनारसी भांग का नशा चढ़ रहा था, आँखे गुलाबी हो रही थीं। गोदौलिया वाले नत्था के एक गुलाबजामुन का असर इतना होता था की भौजाइयां देवरों को खिला के अपने नन्द पर चढ़ा देती थीं और रीत के दहीबड़े में तो उसका दुगना और फिर दो दहीबड़े तो चौगुना भांग आनंद बाबू के अंदर पहुँच चुकी थी और अब धीरे धीरे उनके सर पर सोच पर चढ़ रही थी, ऊपर से रात भर की चंदा भाभी की सीख, किसी की प्यास बुझाने से न पनिहारिन का घड़ा खाली होता है न कुंवा सूखता है, और सामने खड़ी पनिहारिन की आँखे खुद उन्हें बुला रही थीं, उकसा रही थीं और उसके जोबन, उफ़,

आनंद बाबू के हाथों ने जबसे गुंजा की हवा मिठाई का स्वाद लिया था, खुद ढक्क्न उठा के कैसे दर्जा नौ वाली ने अपने आते जोबन उन्हें पकड़ा दिए थे,
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और अब रीत के उभार, ये तो और भी, जैसे सामने पहाड़ देख के पर्वतारोही के पांव आपने आप उठ जाते हैं, ऐसे मस्त जोबन देख के उनके हाथ भी खुजला रहे थे,



भांग का नशा, रीत के जोबन का नशा और रात में चंदा भाभी के जोबन को रगड़ा मसला और सुबह सुबह गुंजा ऐसी किशोरी का,… तो ये किशोरी रीत, उसके जोबन, सारी झिझक, हिचक भांग में धीरे धीरे घुल रही थी और सामने बस मस्त रीत थी, उसके गदराये जोबन, भरे भरे हिप्स थे



तब तक वो उठकर खड़ी हो गई। उसकी आँखों ने नशा झलक रहा था। झुक के उसने ग्लास उठाया और होंठों से खुद लगाकर एक बड़ी सी सिप ले ली।

क्या जोबन रसीले। बस मन कर रहा था की दबा दूं, चूस लूं और तब तक म्यूजिक चालू हो गया।

भांग का असर अब रीत पर भी पड़ रहा था, गुलाबजामुन के साथ स्प्राइट में भी तो आधी वोदका मिली थी।




अनारकली डिस्को चली,

अरे छोड़ छाड़ के अपने सलीम की गली,

अरे होए होए। छोड़ छाड़ के अपने सलीम की गली।



साथ-साथ रीत भी थिरकने लगी।
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मैं खड़ा देख रहा था।

वो मस्त नाचती थी। क्या थिरकन, लय। और जिस तरह अपने जोबन को उभारती थी। जोबन थे भी तो उसके मस्त गदराये। दुपट्टा उसने उतारकर टेबल पे रख दिया था। उसने मेरा हाथ पकड़कर खींच लिया, और बोली-



“ये दूर-दूर से क्या देख रहे हो? आओ ना…”

और साथ में टेबल से फिर वोदका मिली स्प्राईट का एक बड़ा सिप ले लिया।

साथ में मैं भी थिरकने लगा। मुझे पता भी नहीं चला कब मेरा हाथ उसके चूतड़ों पे पहुँचा। पहले तो हल्के-हल्के, फिर कसकर मैं उसके नितम्बों को सहला रहा था, रगड़ रहा था। वो भी अपने कुल्हे मटका रही थी, कमर घुमा रही थी। कभी हम दोनों पास आ जाते कभी दूर हो जाते। उसने भी मुझे पकड़ लिया था और ललचाते हुए अपने रसीले जोबन कभी मेरे सीने पे रगड़ देती, और कभी दूर हटा लेती।

मुझसे नहीं रहा गया।

मैंने उसे पास खींचकर अपना हाथ उसकी पाजामी में डाल दिया। कुछ देर तक वो लेसी पैंटी के ऊपर और फिर सीधे उसके चूतड़ पे। मेरे एक हाथ ने उसे जकड़ रखा था। दूसरा उसके नितम्बों के ऊपर सहला रहा था, मसल रहा था, उसे पकड़कर ऊपर उठा रहा था। उसने कुछ ना-नुकुर की लेकिन मेरे होंठों ने उन्हें कसकर जकड़ लिया.

रीत के टाइट कुर्ती से जिस तरह उसके जोबन फाड् रहे थे, मुझसे नहीं रहा गया, एक हाथ पजामी के अंदर उसके नितम्बों को सहला मसल रहा था और दूसरा उसके उभारों पर

डांस करते हुए रीत ने मेरे हाथ को अपने उभार पे पकड़ लिया और कस के दबा दिया, जैसे सुबह गुंजा ने मेरे झिझक समझ के खुद मेरा हाथ पकड़ के, अपने ढक्क्न के अंदर सीधे अपनी हवा मिठाई पे,

हम दोनों म्यूजिक पे थिरक रहे थे और मेरे दोनों हाथ, एक उभारों का और दूसरा नितम्बों का रस ले रहा था
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और मन में कल की गुड्डी और चंदा भाभी की बातें याद आ रही थी, गुड्डी की मम्मी मेरा मतलब मम्मी, नीचे दूबे भाभी से मिलने चली गयीं थी

और चंदा भाभी, और गुड्डी खुल के बात कर रहे थे।

चंदा भाभी ने मुझे समझाया, " अरे देवर जी, ससुराल में मांगते नहीं है सीधे ले लेते हैं, और क्या इससे बोलोगे, ' में आई कम इन मैडम " गुड्डी की ओर इशारा कर के बोली। उन्हें मेरा और गुड्डी का चक्कर पता चल गया था, फिर जोड़ा,

" जब इससे नहीं पूछोगे, तो इसकी बहन, भाभी और ससुराल में कोई भी हो, क्यों पूछोगे ? अरे कहीं गलती से पूछ लिया न तो इसी की नाक कटेगी, की इसका वाला कितना बुद्धू है "

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और शाम को बाजार में गुड्डी जब मुझे चंदा भाभी के साथ करने के लिए उकसा रही थी उसी समय उसने साफ़ साफ़ बोल दिया,


" यार, चाहे तेरी ससुराल वाले हों या मेरी, मेरी ओर से दोनों के लिए ग्रीन सिग्नल एडवांस में है, ये मत सोचना की मैं क्या सोचूंगी हाँ कुछ नहीं किया तो मैं सोचूंगी, अब तक सैकड़ों बार पजामें में नाली में गिराया होगा, अगर मेरी भाभी, मेरी बहन में दो बूँद गिरा दिया तो क्या कम हो जाएगा तेरा, हां उनको भी अंदाज लग जाएगा की मेरा वाला कैसा है। और दिल तो तेरा मेरा पास है , एक जन्म के लिए नहीं सात जन्म के लिए तो जो तेरे पास नहीं, उसका क्या खतरा, बार बार मैं बोलूंगी नहीं। "
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और मैं रीत के जोबन और नितम्ब दोनों डांस के साथ साथ कस के रगड़ मसल रहा था,


मैं भी अपने आपे में नहीं था। मुझे लगा की मैं हवा में उड़ रहा हूँ। कभी लगता की बस जो कर रहा हूँ। वही करता रहूँ। इस कैटरीना के होंठ चूसता रहूँ।

रीत भी साथ दे रही थी। उसके होंठ भी मेरे होंठ चूस रहे थे। उसकी जीभ मेरी जीभ से लड़ रही थी, और सबसे बढ़ कर वो अपना सेंटर, योनि स्थल, काम केंद्र मेरे तन्नाये हुए जंगबहादुर से खुलकर रगड़ रही थी।

हम दोनों अब अच्छी तरह से भांग के नशे में थे।

चंदा भाभी ने मुझे रात को जो ट्रेनिग दी थी। बस मैंने उसका इश्तेमाल शुरू कर दिया, मल्टिपल अटैक। एक साथ मेरे होंठ उसके होंठ चूस रहे थे, मेरा एक हाथ उसका जोबन मसल रहा था तो दूसरा उसके नितम्बों को रगड़ रहा था मेरा मोटा खूंटा सीधे उसके सेंटर पे।



रीत पिघल रही थी, सिसक रही थी।
होली का नशा.. भांग का नशा...
और ऊपर से रीत ऐसी कुड़ी का नशा...
तो कोई होश संभाले तो कैसे संभाले....
और चंदा भाभी का सिखाया पढ़ाया... तो इम्प्लीमेंट तो करना बनता हीं है....
 

motaalund

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डांस बेबी डांस ---मुझको हिप हाप सिखा दे

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म्यूजिक सिस्टम पे ममता शर्मा गा रही थी।

मुझको हिप हाप सिखा दे,

बीट को टाप करा दे,

थोड़ा सा ट्रांस बजा दे,


मुझको भी चांस दिला दे।



और हम लोगों का डांस अब ग्राइंडिंग डांस में बदल गया था। बस हम लोग एक दूसरे को पकड़कर सीधे सेंटर पे सेंटर रगड़ रहे थे दोनों की आँखें बंद थी। मैंने बीच में एक-दो सिप और उसको लगवा दी। वो ना ना करती लेकिन मैं ग्लास उसके होंठों से लगाकर अन्दर।

हम लोग खुलकर ड्राय हम्पिंग कर रहे थे। वो दीवाल की ओर मुड़ी और दीवाल का सहारा लेकर, मेरे तन्नाये हथियार पे सीधे अपने भरे-भरे नितम्ब, उसकी दरार। मैं पागल हो रहा था मेरे हाथ बस उसकी कमर को सहारा दे रहे थे और मेरी कमर भी म्यूजिक की धुन पे गोल-गोल। एकदम उसके नितम्बों को रगड़ती हुई।
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फिर रीत एक पल के लिए मुड़ी। उसने मुझे एक फ्लाइंग किस दिया और जब तक मैं सम्हलता मेरे सिर को पकड़कर एक कसकर किस्सी मेरे होंठी की ले ली और फिर मुड़कर दीवाल के सहारे।

अब वो अपने उभार दीवाल पे रगड़ रही थी, जोर-जोर से चूतड़ मटका रही थी। फिर वो बगल में पड़े पलंग पे पे झुक गई। म्यूजिक के साथ उसके नितम्ब और उभार दोनों मटक रहे थे। जैसे वो डागी पोज में हो।

ये वही पलंग पे था जहां कल रात मैंने चन्दा भाभी को तीन बार।

मैंने झुक के उसके उभार पकड़ लिए हल्के से और गाने के साथ हाथ फिराने लगा। साथ में मेरा खूंटा अब पाजामी के ऊपर से ही।

रीत झुकी थी और गाना बज रहा था-


होगी मशहूर अब तो, तेरी मेरी लव स्टोरी।

तेरी ब्यूटी ने मुझको, मारा डाला छोरी,


थोड़ा सा दे अटेनशन, मिटा दे मेरी टेंशन।

(मैं अब कस-कसकर उसकी चूची मसल रहा था)


आग तेरा बदन है, तेरी टच में जलन है।
तू कोई आइटम बाम्ब है, मेरा दिल भी गरम है।



और वो फिसल के मेरी बांहों से निकल गई।
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और वैसे ही मुड़कर पलंग पे अब पीठ के बल हो गई। अभी भी वो धुन के साथ अपने उभार उछाल रही थी, कुल्हे मटका रही थी, मुश्कुरा रही थी। उसकी आँखों में एक दावत थी एक चैलेंज था। मैंने मुश्कुराकर उसके उभारों को टाईट कुरते के ऊपर से ही कसकर चूम लिया। मेरी दोनों टांगें उसकी पलंग से लटक रही टांगों के बीच में थी।मेरा एक हाथ उसका कुरता ऊपर सरका रहा था और दूसरा पाजामी के नाड़े पे।



गाना बज रहा था। वो लेटे-लेटे डांस कर रही थी और मैं भी।



तू कोई आइटम बाम्ब है, मेरा दिल भी गरम है।

ठंडा ठंडा कूल कर दे, ब्यूटी फूल भूल कर दे।


और मैंने एक झटके में पाजामी का नाड़ा खींचकर नीचे कर दिया।

उसने अपनी टांगें भींचने की कोशिश की पर मैंने अपने टांगें पहले ही बीच में फँसा रखी थी। मैंने उसे और फैला दिया और पाजामी एक झटके में कुल्हे के नीचे कर दिया।

क्या मस्त लेसी गुलाबी पैंटी थी।


पैंटी क्या बस थांग थी एकदम चिपकी हुई एक खूब पतली पट्टी सी। मेरा हाथ सीधे उसके अन्दर और उसकी परी के ऊपर, एकदम चिकनी मक्खन।
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मैंने हल्के-हल्के सहलाना शुरू कर दिया। और दूसरा हाथ कुरते को उठाकर ऊपर कर चुका था। गुलाबी लेसी ब्रा में छुपे गोरे-गोरे कबूतरों की झलक मिल रही थी।

लेकिन जिसने मुझे पागल कर दिया वो थी उन कबूतरों के चोंच। गुलाबी, कड़े, मटर के दाने ऐसे।

कल रात भाभी ने सिखाया था। अगर एक बार परी हाथ में आकर पिघल गई तो समझो लड़की हाथ में आ गई। मेरे हथेली अब रीत की परी को प्यार से हल्के-हल्के सहला रही थी, मसल रही थी।

रीत अब चूतड़ पटक रही थी। गाने की धुन पे नहीं मेरे हाथ की धुन पे।


गाना तो बंद हो चुका था। मेरे अंगूठे ने बस हल्के से उसके क्लिट को छुआ। वो थोड़ा छिपा, थोड़ा खुला लेकिन स्पर्श पाते ही कड़ा होने लगा। दूसरा गाना चालू हो गया था-


शीला की जवानी माई नेम इस शीला। शीला। शीला की जवानी।



मुझे बस लग रहा था की मेरे नीचे कैट ही है। मेरे होंठों ने ब्रा के ऊपर से ही झांकते चोंच को पकड़ लिया और चुभलाने लगे। मेरा अंगूठा और तरजनी थांग को सरका के अब उसकी खुली परी को हल्के-हल्के मसल रहे थे।

अब मुझसे नहीं रहा गया।

मैंने के झटके में उसकी पाजामी घुटने के नीचे खींच दी और उसकी लम्बी-लम्बी गोरी टांगें मेरे कंधे पे।


मेरा जंगबहादुर भी बस उसकी जांघों पे ठोकर मार रहा था, वो खूब गीली हो रही थी। अब मुझसे नहीं रहा गया मैंने एक उंगली की टिप अन्दर घुसाने की कोशिश की। लेकिन एकदम कसी।

मेरा दूसरा हाथ अब खुलकर जोबन मर्दन कर रहा था।
नाच मेरी बुलबुल...(शीला)...
कूल्हे मटका के डांस...
अब तो शीला की जवानी आग लगा रही है....
और कबूतर के चोंच मुँह में पानी भर रहे हैं...
 

motaalund

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गुड्डी -रीत और आनंद
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रीत अपने नितम्ब रगड़ रही थी, सिसक रही थी, मुझे कसकर अपने बांहों में भींचे थी, उसके लम्बे नाखून मेरी पीठ में गड़े हुए थे।


ड्राइव मी क्रेजी। माई नेम इज शीला,

नो बडी हैज गाट बाडी लाइक मी।


“एकदम…” मैंने अपनी कैट के, के कान में कहा और कसकर चूम लिया। मेरे हाथों ने अब उसके उभारों को ब्रा से आजाद कर दिया था।
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तभी आवाज आई- “कहाँ हो। आप लोग?”

गुड्डी बुला रही थी।

मैंने तुरंत उसकी थांग सरका दी। रीत ने झट से उठकर अपनी पाजामी बांध ली। मैंने ब्रा ठीक करके वापस कुरता नीचे कर दिया। हम दोनों उठ गए। उसके चेहरे पे कुछ खीझ, कुछ फ्रस्ट्रेशन। कुछ मजा झलक रहा था। मुझे लगा कहीं वो गुस्सा तो नहीं।

लेकिन रीत तो रीत, बाकी बनारसवालियों को भी मेरे मन की बात सोचने से पहले मालूम हो जाती थी, चाहे गुंजा हो या चंदा भाभी, और ये तो मेरी गुड्डी की भी बड़ी दी,

वो मुड़ी, कस के मुझे बाहों में जकड़ा और अपने दोनों नुकीले उभार, बरछी की तरह मेरी छाती में उतार दिए, कस के रगड़ते हुए उसकी पजामी का सेंटर मेरे खड़े खूंटे पे और क्या रगड़ा है उसने, उसका एक हाथ मेरी पीठ पर और दूसरा नितम्बों पर और बाल झटक के गाती हुयी मुड़ गयी,


" अभी तो पार्टी शुरू हुयी है, अभी तो बस शुरुआत है "
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अपने रसीले नितम्ब मटकाते वो बाहर निकल पड़ी।

पीछे-पीछे मैं।

बाहर निकलते ही गुड्डी ने पूछा- “तुम लोग कर क्या रहे थे? मैंने तीन बार आवाज दी…”

रीत- “अरे यार म्यूजिक सिस्टम ठीक कर रहे थे। फिर सीडी मिल गई तो लगाकर चेक कर रहे थे। तुम्हीं ने तो कहा था की गाने वाने का। गाने की आवाज में कैसे सुनाई देता?” रीत ने ही बात सम्हाली।


गुड्डी बोली- “हाँ गाने की आवाज तो आ रही थी। सलीम की गली वाला। एकदम लेटेस्ट हिट। तो बाहर छत पे लगाओ न…” और उन दोनों ने मिलकर 5 मिनट में म्यूजिक सिस्टम बाहर सेट कर दिया।

रीत बोली, मैं नीचे से जाकर अपने सीडी भी ले आती हूँ, मेरे पास असली भोजपुरी वाले भी हैं, ठेठ बनारसी, "

और वो सीढ़ी से नीचे उतर गयी, और रीत के सीढ़ी पे जाते ही गुड्डी अपने असली बनारसी रूप में आ गयी, बरमूडा फाड़ते मेरे खड़े खूंटे को वो देख रही थी और रीत की पीठ हम लोगों की ओर होते ही, उसने बारमूडा के ऊपर से ही उसे कस के दबोच लिया और साफ़ साफ़ पूछ लिया,

" कुछ हुआ की नहीं, "
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" बस थोड़ा बहुत, " किसी तरह से मैंने बोला और गुड्डी सीधे मुद्दे पर, हाथ अंदर बारमुडे के और बोली,

" साफ़ साफ़ बोल न, अंदर घुसा की नहीं, पानी गिराया की नहीं "

और मेरे कुछ बोलने के पहले ही वो समझ गयी की कुछ ज्यादा नहीं हुआ और एकदम अपनी मम्मी की बेटी वाले रूप में,

" स्साले, तेरी माँ की,... कितना समझाउंगी तुझे, तेरी ससुरालवालियाँ है सब की सब, और समझ तो मैं पहले ही गयी थी जब देखा सिग्नल डाउन नहीं हुआ, ...एक बात समझ ले, अगर यहाँ से तुम भूखे प्यासे गए न तो रात में भी कुछ नहीं मिलेगा, और यहाँ अगर, … तो तेरे मायके में भी रोज दावत दूंगी और क्या पता जिंदगी भर का इसका जुगाड़ हो जाए, "
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और ऐसे लाइफ टाइम ऑफर के आगे रीत और गुंजा क्या, लेकिन तब तक रीत के सीढ़ी पर से आने की आवाज आयी, और गुड्डी का हाथ बाहर और वो थोड़ी दूर खड़ी।

अब गुड्डी रीत के पीछे पड़ गयी, - “हे तुम लोग बातें क्या कर रहे थे?”



रीत ने मुश्कुराकर मेरी ओर शरारत से देखा और फिर गुड्डी की पीठ पे कसकर एक धौल जमाते हुए बोली- “अरे यार। तेरा ये ‘वो’ ना इत्ता सीधा नहीं है जित्ता तुम कहती है वो…”


मेरा दिल धक्-धक् होने लगा कहीं ये?

लेकिन गुड्डी ही बोली- “ये मेरे। ‘वो’ थोड़े ही…”

लेकिन उसकी बात काटकर रीत बोली- “चल दिल पे हाथ रखकर कह दे। ये तेरे ‘वो’ नहीं हैं…”
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गुड्डी पहले तो शर्माई फिर पैंतरा बदल के बोली- “आप भी ना। बताइये न…”


तब तक चन्दा भाभी किचेन से बाहर निकलकर आई, हँसती। और इशारे से मुझे अपने साथ अपने कमरे में चलने को कहा। उनके हाथ में एक पीतल का बड़ा सा डब्बा था। मैं चल दिया।

मुझे डब्बा दिखाकर उन्होंने अलमारी खोली-

“आज सुबह से तुम्हारे लिए बना रही थी। 22 हर्ब्स पड़ती हैं इसमें। साथ में शिलाजीत, अश्वगंधा, मूसली पाक, स्वर्ण भस्म, केसर, शतावर, गाय के घी में बनाया है इसको। सम्हालकर रख रही हूँ याद करके जाने के पहले ले जाना साथ में और उससे भी ज्यादा, आज रात को एक खा लेना…”


मैंने देखा की करीब दो दर्जन लड्डू थे नार्मल साइज से थोड़े ही छोटे। मैंने पूछा- “एक अभी खा लूं?”

चंदा भाभी- “एकदम। वैसे भी तुमने कल रात इतनी मेहनत की थी। इतना तो बनता ही है। मुझे तो लगता था की अब तुम्हारी सारी मलाई निकल गई लेकिन, ससुराल में हो होली का मौका है क्या पता?अरे साली हैं, सलहज है, छोड़ना मत किसी को, वरना मेरी रात की सब पढ़ाई बेकार, ये कोई बुरा मानने वाली नहीं है, और सबसे खुश तेरी वाली होगी, सब बोलेंगी न उससे अरे यार तेरा वाला तो एकदम, ”

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ये कहकर उन्होंने एक लड्डू मुझे खिला दिया और डब्बा अलमारी में रखकर बंद कर दिया।

चंदा भाभी फिर बोली- “चलो बाहर चलो वरना वो सब न जाने क्या सोच रही होंगी?”

वास्तव में रीत और गुड्डी की निगाहें बाहर दरवाजे पे ही लगी थी।
ओह्ह.. ये तो गुड्डी के आने से KLPD हो गई...
लेकिन चोर की दाढ़ी में तिनका..
तेरे 'वो' कह के बात संभाली जा रही है...
 
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