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भाग ३१ ---चू दे कन्या विद्यालय- प्रवेश और गुड्डी के आनंद बाबू पृष्ठ ३५४
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Thanks devar bhauji ke bich mast holi huyiWah man gae. Deh ki holi bhouji sang.
Wah anand babu. Guddi ke tum itne deewane ho gae ki apni bahen mahadari, buaa sab ko pelvane ko rajji ho gae. Tab to rista pakka samzo. Vese banaras vale ki bahen beti le jaoge to vo tumhari thodi na chhodenge. Bas tum byah ke peloge. Vo bina byahe. Amezing.
Aur ye bida vala kya tha. Nishana bhouji ne bhi lagaya tha. Bas guddi ka sidha apne dill pe. To nishana bhabhi ka bhi to lag gaya. To mil gae na tumhe bhi bhabhi.
Jyada shapne mat dekho.
Are kyo na dekhe bhabhi. Jab shapna sach ho raha hai to.
Amezing update komalji.
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Thanks so muchUfff amezing update.
Ssss chup anand babu. Ese hi raho. Ise to woman on the top kahete hai. Vese to women hamesha se hi top par hai. Par abhi bahot kuchh dikhna baki hai.
Sandhya bhabhi ne achhe se ek bar fir se. Paheli bar he to har posh me. Utthake letakar god me to sabse jyada.
Hmmm tadpegi chhat pataegi to dekhne ne jyada maza aaega.
Par guddi ne to dill jit liya. He kiti bar. Muhhh...
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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
३,६०, ७४६
गुड्डी फिर दूर खड़ी हो गई और वहीं से हुक्म दिया- “शर्ट उतारो…”
मैं एक मिनट सोचता रहा फिर बोला- “अरे यार मूड हो रहा है तो बेडरूम में चलते हैं ना। यहाँ कहाँ?”
गुड्डी मुश्कुरायी और बिना रुके पहले तो आराम से शर्ट के सारे बटन खोले और फिर उतारकर सीधे हुक पे, अगला नम्बर बनियान का था।
अब मैं पूरी तरह टापलेश था। गुड्डी ने पहले मुझे सामने से ध्यान से देखा, एकाध जगह हल्की खरोंच सी थी।
वहां हल्के से उसने उंगली के टिप से सहलाया और फिर पीछे जाकर, एक जगह शायद हल्का सा लाल था, वहां उसने दबाया, तो मेरी धीमी सी चीख निकल गई।
खड़े रहना…” गुड्डी बोली और बाहर जाकर फ्रिज से बर्फ एक टिशू पेपर में रैप करके ले आई और उस जगह लगा दिया। एक-दो जगह और शायद कुछ घूंसे लगे थे या गिरते पड़ते टेबल का कोना, वहां भी उसने बर्फ लगाकर हल्का-हल्का दबाया।
“पैंट उतारो…” मैडम जी ने हुकुम सुनाया।
पीछे से फिर बोली- “मैं ही बेवकूफ हूँ। तुम आलसी से अपने हाथ से कुछ करने की उम्मीद करना बेकार है…”
और मुझे पीछे से पकड़े-पकड़े मेरी बेल्ट खोल दी, और पैंट भी हुक पे शर्ट के ऊपर, और अब वो अपने घुटनों के बल बैठ गई थी। एक क्लोज इंस्पेक्शन मेरी टांगों का। फिर पीछे से घुटनों के पास एक बड़ी खरोंच थी। वाश बेसिन पे होटल वालों ने जो आफ्टर शेव दिया था उसे हाथ में लेकर उसने ढेर सारा घुटने पे लगा दिया।
“उईईई…” मैं बड़ी जोर से चीखा।
गुड्डी चिढ़ाते हुए बोली “ज्यादा चीखोगे। तो इसे खोलकर लगा दूंगी…”
मुश्कुराते हुए उसने अपनी लम्बी उंगलियों से चड्ढी के ऊपर से ‘उसे’ दबा दिया।
दर्द, डर और मजे में बदल गया।
गुड्डी- “चड्ढी उतारोगे या मैं उतार दूँ? वैसे अन्दर वाला कई बार देख चुकी हूँ। आज इसलिए ज्यादा शर्माने की जरूरत नहीं है…”
“नहीं मैं वो उतार दूंगा…” और मैंने झट से नीचे सरका दिया।
गुड्डी- “देखा। चड्ढी उतारने में कोई देरी नहीं…” मुश्कुराते हुए वो बोली। फिर पीछे से उसने देखा, एक हाथ में उसके बर्फ के क्यूब थे। मैं जो डर रहा था वही हुआ। वो बोली- “झुको…”
मैं झुक गया।
गुड्डी- टांगें फैलाओ।
मैंने फैला दी।
और बर्फ का क्यूब सीधे मेरे बाल्स पे और वहां से हटाने के बाद मेरे पिछवाड़े के छेद पे।
और असर वही जो होना था, वही हुआ। 90° डिग्री।
गुड्डी सामने आई खिलखिलाती और बोली- “मुँह धो लो या वो भी मैं करूँ?”
“नहीं नहीं…” कहकर मैंने वाश बेसिन पे रखे लिक्विड फेस सोप से मुँह अच्छी तरह धोया, सिर नीचे करके बाल भी।
तब तक वो गुनगुने पानी से भिगा के बाथ तौलिया ले आई थी और मेरी पूर देह उसने रगड़-रगड़कर पोंछ दी और टंगी बाथ गाउन उतारकर दे दिया की अभी यही पहन लो।
मैं एकदम से फ्रेश हो गया और हम लोग बाहर जाकर खाने की मेज पे ही सीधे बैठ गए। उसने रिमोट उठाकर टीवी आन कर दिया। एक कोई म्यूजिक चैनल आन हो गया।
गुड्डी- ठसके से मेरे बगल में आकर बैठ गई और बोली- “हे ये डी॰बी॰ कौन है?”
बहुत ही कामुक और लाजवाब अपडेट हैडी॰बी॰
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गुड्डी का हाथ मेरे कंधे पे था और वो एकदम सटी हुई फिर मेरे कुछ बोलने से पहले बोलने लगी-
“हे ये मत बताना की तुम्हारे हास्टल में सीनियर थे, आई पी एस में में हैं यहाँ सिटी एस॰पी॰ हैं. लेकिन अभी एस एस पी के चार्ज में हैं ये सब मुझे आधे घंटे में दो-तीन बार सुनाई पड़ गया है। इनका पूरा नाम, …तुमसे लेकर सब लोग खाली डी॰बी॰,... डी॰बी॰ बोलते हो…”
मैं हँसने लगा।
गुड्डी बुरा सा मुँह बनाकर बैठ गई- “तो क्या मैंने चुटकुला सुनाया है?”
मैं- “अरे नहीं यार बात ही ऐसी ही। चलो मैं पूरी बात सुना देता हूँ। वो महाराष्ट्र के हैं। सतारा जिले के। ओके। पूरा नाम है, धुरंधर भाटवडेकर। उनके पिता जी जो फिल्में खास तौर से उत्पल दत्त की पिक्चरें बहुत पसंद हैं। एक पिक्चर आई थी रंग बिरंगी। उसमें उत्पल दत्त का वही नाम था,… बस।लेकिन वो इनीसियल ही इश्तेमाल करते हैं। बहुत लोगों को पूरा नाम मालूम नहीं है…”
और वो ' भाभी' जो तुझे बुला रही थीं,जानते हो उनको भी तुम "
मुस्करा के मुझे कुछ चिढ़ाते, कुछ रस लेते मेरे गाल पे चिकोटी काट के बोली,
मैं भी मुस्कराने लगा और यादो के झुरमुट में खो गया, गर्ल्स हॉस्टल, कॉफी हाउस, थियेटर, ड्रामे की रिहर्सल, और डी बी सर ने सिर्फ मुझे मिलवाया था और पहली बार में ही गुड्डी की बात भी चल निकली थी।
देखते ही उन्होंने पूछ लिया डी बी से
" वही जिसकी चिट्ठी आती रहती है,... वही वाला न "
मैं तो बीर बहूटी हो गया लेकिन वो समझ गयीं और खिलखलाती हुयी पूछी कब से चक्कर चल रहा है और मैंने कबूल दिया तीन साल से ज्यादा तो उन्होंने चिढ़ाया की अभी तक लिफाफा खोल पाए की नहीं
और ये बात सुन के गुड्डी भी खिलखिलाने लगी, फिर पूछी और उन लोगों का लिफाफा कब खुला,
बात टाल के मैं बोला, उन्होंने तो शादी भी, ....जैसे उनकी ट्रेनिंग शुरू हुयी उसी समय,
" सीखो, कुछ सीखो "
गुड्डी हँसते हुए बोली और मैं डी बी के बारे में सोच रहा था, अकेडमी में भी उनके बड़े किस्से थे , गोल्ड मेडल भी उन्हें मिला था, शार्प तो वो थे ही स्ट्रांग भी और थियेटर और जासूसी कहानियों के शौक़ीन
और मैंने उसके हाथ से रिमोट लेकर चैनेल चेंज कर दिया कोई न्यूज।
गुड्डी ने मुश्कुराते हुए रिमोट फिर छीन लिया और बोली-
“तुम्हारे अन्दर यही बुराई है की तुम हर जगह अपनी बात चलाते हो…” और फिर से गाने वाला चैनल लगा दिया।
“जिया तू बिहार के लाला…” आ रहा था।
मैं- “तो ठीक है। जहां मेरी बात चलनी हो वहां तुम्हें मेरी बात माननी होगी, और बाकी जगह। …”
और मैं उसके पास सट गया। अब मेरे हाथ भी उसके कंधे पे और उंगलियां उसके उभार पे।
जरा सा रिमोट के लिए मैं रात का प्रोग्राम चौपट नहीं करना चाहता था।
गुड्डी मुश्कुरायी, कनखियों से मुझे देखा और मेरे हाथ जो उसके उभारों के पास था खींचकर उसे सीधे उसके ऊपर कर लिया और हल्के से दबा दिया। उसका दूसरा हाथ अब मेरे बाथिंग तौलिया के ऊपर, जंगबहादुर से एक इंच से भी कम दूर,
बाथरूम में जो उसने शरारत की थी उससे वो कुनमुना तो गए ही थे अब फिर से उन्होंने सिर उठा लिया, और बिना मुझे देखे टीवी की ओर देखते बोली-
“मंजूर। लेकिन बाकी हर जगह मेरी बात चलेगी। समझ लो। फिर। इधर-उधर मत करना…”
मैं- “एकदम…” और मैंने अब उसका उभार हल्के से दबा दिया।
तभी कालबेल बजी- “खाना…”
उस नटखट किशोरी ने उठते-उठते मेरा बाथिंग गाउन खोल दिया और ‘वो’ बाहर पूरी तरह सिर उठाये, यही नहीं चलते चलाते वो उठी और खुले जंगबहादुर के सिर की टोपी भी खोल दी। अब सुपाड़ा पूरी तरह खुला। और गुड्डी ने दरवाजा खोल दिया।
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है तान्या अपना जलवा दिखाने वाली है तान्या को देखकर आनन्द बाबू की नज़रे फिसल रही हैतान्या
खाने की महक ने मेरी भूख जगा दी। एक डिनर ट्राली पे कुछ प्लेटें और ड्रिंक्स की बोतल लेकर एक सुपर सेक्सी वेट्रेस
और एक अधेड़ उम्र का आदमी। खिचड़ी फ्रेंच दाढ़ी।
वेट्रेस ने टिपिकल फ्रेंच मेड की कास्ट्यूम पहन रखी थी, खूब गोरी, हल्का गुलाबी फाउंडेशन, बड़ी सी आई लैशेज, मस्कारा, बाल पोनी टेल में, सफेद बस्टियर ऐसा टाप, थोड़ा छोटा और गहरी क्लीवेज वाला जिसमें से उसकी 34सी गोलाइयों का आकार साफ नजर आ रहा था। बस्टियर कमर पे बहुत टाईट था। एकदम आवर ग्लास की फिगर के लिए। ब्लैक स्कर्ट घुटनों से करीब एक डेढ़ बित्ते ऊपर और ब्लैक स्टाकिंग्स।
वेट्रेस- “गुड आफ्टर नून मेडम, गुड आफ्टर नून सर। मैं तान्या। आय आम हियर टू सर्व यू टूडे। और मेरे साथ हैं मोंस्यु सिम्नों। फ्राम आकवूड बार आवर वाइन हेड…”
उन्होंने भी सिर झुका के ग्रीट किया और मैंने और गुड्डी ने भी जवाब दिया।
तान्या ने पहले तो दमस्क के टेबल मैट लगाये फिर सिल्वर वेयर, क्राकरी और नेपकिन।
तब तक मुझे अचानक याद आया की ‘वो’ तो खुला हुआ है।
मैं कुछ बोलता उसके पहले तान्या हमारी ओर बढ़ी लेकिन गुड्डी ने गनीमत थी नेपकिन से ‘उसे’ ढक दिया और खुद भी नेपकिन रख ली।
तान्या के चेहरे पे एक हल्की सी मुश्कुराहट खेल गई।
मैं समझ गया की वो समझ गई।
उसने गुड्डी की आँखों में देखा और एक मुश्कान दोनों की आँखों में तैर गई। लेकिन तान्या कम दुष्ट नहीं थी, वो हम लोगों की कुर्सी के पीछे खड़ी थी। बल्की ठीक मेरी कुर्सी के पीछे, और हल्की सी झुकी। उसके 34सी उभार मेरी गर्दन को पीछे से हल्के-हल्के ब्रश कर रहे थे, यहाँ तक की खड़े निपलों भी मैं फील कर सकता था। वो थोड़ा और झुकी अब उसके उभार खुलकर रगड़ रहे थे।
तान्या- “वुड यु लाइक टू हैव सम वाइन। वी हैव। सम आफ बेस्ट वाइनस…”
मैं मना करता उसके पहले ही गुड्डी बोल पड़ी- “हाँ हाँ क्यों नहीं…”
और जब तान्या ने झुक के वाइन टेस्टिंग ग्लास सामने रखी तो मेरी आँखें खुशी से चमक पड़ी। मैंने उसकी आँखों की ओर चेहरा उठाकर कहा-
“आई विल हैव प्लेजर आफ टेस्टिंग। इफ यू परमिट…”
दुहरी खुशी। जब वो झुकी तो उसकी आधी गोलाईयां बस्टियर से छलक रही थी। परफेक्ट उभार, खूब कड़े और गुदाज। वो भी कनखियों से देख रही थी और आँखों में मुश्कुरा रही थी। और वो वाइन टेस्टिंग ग्लास, मेरलोत, कनोसियार्स डिलाईट।
मोंस्योर सिम्नों ने बोतल तान्या को दी और उसने थोड़ी सी डालकर मुझे दी। परफेक्ट व्हाईट ग्लोव सर्विस।
मैंने ग्लास ऊपर करके अपनी आँख के सामने लाकर देखा और मोंस्योर सिम्नों की ओर देखकर बोला- “बोर्देऔक्स…”
वो हल्का सा मुश्कुराए और तान्या भी।
मैंने ग्लास को हल्के से घुमाया, ट्विर्ल किया और ग्लास की ओर देखता रहा, हल्के से सूंघा और बोला- “लेफ्ट बैंक…”
अबकी तान्या और मोंस्योर सिम्नों दोनों की मुश्कुराहट ज्यादा स्पष्ट थी। फिर दो-चार बूंदें जीभ पे रखकर एक मिनट के लिए महसूस किया और मेरी आँखें बंद हो गई। धीमे-धीमे मैंने उसे गले के नीचे उतारा और जब मैंने आँखें खोली तो मेरी आँखें चमक रही थी-
“ग्रेट। ग्रेट विंटेज मोंस्योर। इफ आई आम नाट रांग। आई थिंक। 2005। 2005 एंड सैंट मार्टिन…”
बस मोंस्योर ने ताली नहीं बजाई। प् अब वो बोले- “यस। वी हव स्पेशली सेलेक्टेड फार यू…”
मैंने दो घूँट और मुँह में डाली और बोला- “मेर्लोत…” उनकी आँखें थोड़ी सिकुड़ी लेकिन फिर मैंने बोला ब्लेंड के लिए अक्चुअली- “कब्रेंते सुव्ग्नन…”
उन्होंने हल्के से झुक के बो किया और बोले- यु आर अ रियल गूर्मे, एनी थिंग मोर?”
मैंने हल्के से उठने की कोशिश की तो मुझे याद आया। अरे जंगबहादुर तो खुले हुए हैं और पीछे सटकर तान्या खड़ी है और मैं बैठ गया।
तान्या ने पीछे से मोंशुर से इशारा किया- “आई थिंक इट्स आल राईट। आई विल सर्व देम…”
जाते-जाते वो दरवाजे पे एक मिनट के लिए रुक के फिर बोले- “आय आम एत ओकवूड बार। एंड माय फ्रेंडस काल मी क्लोस्ज्युन। एंड नाऊ यू टू कैन काल मी…” और दरवाजा बंद कर दिया।
तान्या अब एक बार फिर सामने और उसके ड्रेस फाड़ते उरोज मेरा ध्यान खींच रहे थे। मैं नदीदों की तरह देख रहा था। उसने एक प्लेट में ढेर सारे कबाब रख दिए, और कहा-
“ये हमारी। कबाब फैक्ट्री से हैं। टुंडा, गलवाटी, काकोरी, सीख और ढेर सारे। नानवेज प्लैटर। वेज प्लैटर भी दूँ?”
“नहीं। ये बहुत हैं। क्यों?” गुड्डी बोली और मुझसे पूछा।
मेरा ध्यान तो तान्या के उभारों में खो गया था। कड़े-कड़े मादक रसीले और जब वो झुकी थी तो आधी गोलाइयां बाहर झांकती, और फिर गुड्डी की बात टालना।
“हाँ हाँ…” मैंने भी बोला।
तान्या ने हम लोगों के प्लेट में डालना चाहा तो फिर गुड्डी ने मना कर दिया- “नहीं हम लोग ले लेंगे…”
लेकिन उसने बोतल से हम दोनों के वाइन ग्लास में रेड वाइन पोर कर दी।
अभी भी ¾ बोतल बची थी। मैं भी अब सोच रहा था की वो कहीं ज्यादा देर रुकी और नेपकिन सरक गया तो बनी बनायी। सब गड़बड़ हो जायेगा। मेनू उसने बगल में रख दिया।
तान्या- “ओके। यू फिनिश योर ड्रिंक्स। देन काल मी। जस्ट प्रेस दिस बटन…”
उसने एक कार्डलेश काल बेल पकड़ा दी, और कहा- “एंड यु कैन आर्डर। आर जस्ट रिंग मी अट 104। एंड आई विल कम बोन अपेतित…”
“ओह्ह… थैंक्स…” मैंने और गुड्डी ने साथ-साथ बोला।
तान्या अपने नितम्ब मटकाते हुए बाहर गई और मेरी आँखों ने तुरंत नाप लिया- 35…” इंच।
गुड्डी
उसके जाते ही गुड्डी उठी और तुरंत जाकर दरवाजा लाक भी कर दिया।
बाद में हम लोगों ने देखा की उसके लिए भी एक रिमोट था, और लौटकर दो काम किया।
पहला मेरे ‘जंगबहादुर’ को नेपकिन मुक्त किया। वो हुंकार करते हुए बाहर निकला।
और दूसरा, कसकर मुझे बाहों में भर लिया और मेरे होंठों से अपने होंठ चिपका के एक जबर्दस्त चुम्मी दी।
गुड्डी के अन्दर कई अच्छी बातें थी लेकिन एक सबसे अच्छी बात ये थी की वो अपनी बात बोलने के बाद जवाब सुनने का न तो इन्तजार करती थी ना उम्मीद। इसलिए उसको ये बताना बेकार था की जलवा मेरा नहीं मेरे सीनियर डी॰बी॰ का था।
फिर वो मुँह फुला कर बैठ गई, फिर मुश्कुराने लगी, और बोली-
“तुम कैसे लालचियों की तरह उसे देख रहे थे। खास तौर से उसके सीने को?”
लेकिन फिर चालू हो गई- “वैसे माल मस्त था…”
और एक सिप उसने ड्रिंक का लिया। एक सिप मैंने भी।
इस वैरायटी में अल्कोहल बाकी रेड वाइन्स से थोड़ा ज्यादा होता है लेकिन उसका मजा भी है।
मेरा ‘वो’ जो नेपकिन से मुक्त हो गया था फिर कैद हो गया गुड्डी के बाएं हाथ में और सिर्फ कैद ही नहीं थी कैद बा-बा-मशक्कत थी। उसे मेहनत भी करनी पड़ रही थी। गुड्डी का हाथ आगे-पीछे हो रहा था।
इस सांप का मंतर गुड्डी ने अच्छी तरह सीख लिया था। गुड्डी ने दूसरा, तीसरा सिप भी ले लिया।
पहले मैंने सोचा की बोलूं जरा धीरे-धीरे। लेकिन फिर टाल गया।
गुड्डी फिर बोली-
“यार वैसे आइडिया बुरा नहीं है। वो साली सिगनल इतना जबर्दस्त दे रही थी। यार मैं लड़कियों की आँख पहचानती हूँ। भले ऊपर से मना करें, और ये तो पिघली जा रही थी। वो आदमी था वरना। अबकी तो जरूर उसे इसकी झलक दिखलाऊँगी, गीली हो जायेगी, और खाने के बाद, स्वीट डिश में वही रस मलाई गप कर जाना। मेरा तो खुद मन कर रहा है लेकिन क्या करूँ? रात के पहले तो कुछ हो नहीं सकता। ये भी पगला रहा है बिचारा…”
मेरे लण्ड को कसकर मसलते वो बोली।
गुड्डी आलमोस्ट मेरी गोद में बैठ गई थी।
लेकिन अब मुड़कर सीधे मेरी गोद में, मेरी ओर मुँह करके, मेरी ही चेयर पे। दोनों टांगें मेरी टांगों के बाहर की ओर फैलाकर गुड्डी के उभार मेरे सीने से रगड़ रहे थे और मेरा खड़ा मस्ताया खुला लण्ड उसकी शलवार के बीच में।
एक हाथ से उसने अपनी वाइन ग्लास की आधी बची वाइन सीधे एक बार में ही मेरे मुँह में उड़ेल दी और बोली-
“सच सच बतलाना। चलो तान्या की बात अभी छोड़ो…”
मैं- “पूछो ना जानम…” मेरे ऊपर भी हल्का सा एक साथ इतनी गई वाइन का सुरूर चढ़ गया और मैंने कसकर उसे अपनी बाहों में भींच लिया-
“तुमसे कोई बात छिपाता हूँ मैं?”
गुड्डी- “सच्ची। अगर तुम हिचकिचाए भी ना तो तुम जानते हो न मुझे…”
गुड्डी के होंठ मेरे होंठ से एक इंच भी दूर नहीं रहे होंगे।
मुझसे ज्यादा कौन जानता था उसको। अगर वो नाराज हो गई तो उसको मनाना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर था। आज रात क्या पूरी होली की छुट्टी सूखी-सूखी बीतने वाली थी। और फिर सबसे बड़ी बात मैं अगर कोशिश भी करता न। तो उससे झूठ नहीं बोल सकता था। मेरा दिल अब मुझसे ज्यादा उसके कंट्रोल में था।
गुड्डी बड़ी सीरियस हो के, मेरी आँखों में आँखे झाँक के बोली,
“ये बताओ। मैं मजाक नहीं कर रही हूँ, सच सच पूछ रही हूँ। वो जो मेरी नाम राशि है, तेरी ममेरी बहन,... गुड्डी। उसे देखकर कभी कुछ मन वन किया?”
मैं हिचकिचा रहा था। फिर बोला- “ऐसा कोई चक्कर नहीं है…”
मेरे गाल पे एक किस करके फिर गुड्डी बोली-
“ये तो मुझे भी मालूम है की कोई अफेयर वफेयर नहीं है,... लेकिन। मैंने कई बार तुम्हें उसके उभारों को देखते देखा है, वैसे ही जैसे आज तुम इसके सीने को देख रहे थे। खुद मैंने देखा है इसलिए झूठ मत बोलना…”
मैं झेंपते हुए नीचे देखते हुए बोला- “नहीं। वो नहीं। मेरा मतलब। अब यार। कोई लड़की सामने होगी। उसके उभार सामने होंगे तो नजर तो पड़ ही जायेगी ना…”
गुड्डी फिर बोली- “अरे सिर्फ नजर पड़ गई या उसे देखकर कुछ हुआ भी। माना उसके मेरे से छोटे ही होंगे लेकिन इतने छोटे भी नहीं हैं। हैं तो मस्त गदराये…”
“हुआ क्यों नहीं? ऐसा कुछ खास भी नहीं, लेकिन तुम तो खुद ही बोल रही हो की,... की,... उसके भी मस्त उभार हैं। तो बस वही हुआ। मन किया…”
मैं हकलाते हुए बोल रहा था।
गुड्डी ने अब मेरी ग्लास मुड़कर उठा ली। एक सिप खुद ली और बाकी फिर मुझे पिला दिया-
“हाँ तो क्या मन किया उसके उभार देखकर साफ-साफ बोलो यार?” गुड्डी ने फिर पूछा।
कुछ रेड वाइन का असर, कुछ मेरे लण्ड पे गुड्डी के मस्त चूतड़ों की रगड़ाई का असर। मैंने कबूल दिया-
“अरे वही यार। जो होता है। मन करता है बस पकड़ लो दबा दो, मसल दो कसकर, चूम लो। वही…”
गुड्डी अब पीछे पड़ गयी मेरी ममेरी बहन को लेकर “अरे बुद्धू साफ-साफ क्यों नहीं बोलते की तू उसकी चूची मसलने के लिए तड़प रहे थे। सिर्फ चूची? लेने का मन नहीं किया कभी। एकाध बार। यार बुरी तो नहीं है वो। और मैं बताऊँ। मेरी तो सहेली है, मुझसे तो सब बताती है। तुम इतने बुद्धू न होते न तो वो खुद ही चढ़ जाती तेरे ऊपर। मैं ये नहीं कह रही हूँ की कोई चक्कर है या तू उसको पटाना चाहता है। बस एकाध बार मजे के लिए, कभी तो मन किया होगा ये खड़ा हुआ होगा उसके बारे में सोचकर?”
गुड्डी खुद कस-कसकर अपने चूतड़ मेरे लण्ड पे रगड़ते बोली।
मेरा लण्ड अब पागल हो रहा था था। उसका बस चलता तो गुड्डी की शलवार फाड़कर उसके अन्दर घुस जाता।
लेकिन हाथ तो कुछ कर सकते थे। मैंने उसके टाईट कुरते के ऊपर से ही उसकी चूचियां दबानी शुरू कर दी। वो बात भी ऐसी कर रही थी।
गुड्डी- “नहीं यार। नहीं मेरा मतलब एकाध बार तो। यार किसका नहीं हो जायेगा। वो खुद ही…”
मैंने मान लिया- “हाँ दो-चार बार हुआ था एकदम ज्यादा। बस मन कर रहा था लेकिन। वैसा कुछ है नहीं हम दोनों के बीच में। लेकिन हाँ… ये खड़ा हुआ भी था कई बार सोचकर। लेकिन…”
गुड्डी- “चलो चलो कोई बात नहीं। अबकी होली में मैं दिलवा दूंगी। लेकिन तुम पीछे मत हटना। समझे वरना? मन तो तुम्हारा किया था ना उसकी लेने का। तो बस। अब उसको पटाना मेरा काम है। मंजूर?” और ये कहकर उसने कसकर फिर दो-चार किस लिए और अपनी कुर्सी पे।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है गुड्डी और आनन्द की कबाब और सबाब की पार्टी चल रही है दोनों पंछी जाम का मजा ले रहे हैं गुड्डी तो गुड्डी ही है गुड्डी ने अपनी ननद के बारे में आनन्द के क्या ख्याल है वो बात उगला ली है साथ ही गुड्डी ने कहा है कि वह सेटिंग करके रहेगी डीबी की कॉल आ गई है लगता है tv पर ब्रेकिंग न्यूज आ गई हैकबाब
फिर प्लेट पे नजर डालकर जोर से चिल्लाई-
“ऊप्स। सारी। मैं तो भूल ही गई थी तुम प्योर वेजिटेरियन हो। अरे यार मिस्टेक हो गया। वेज स्टार्टर मैंने मना कर दिया और तुम भी तो तान्या की चूची दर्शन में इतने मगन थे की भूल गए। तुम क्यों नहीं बोले? अब चलो। तुम मेन कोर्स का इन्तजार करो मैं तो खाती हूँ…”
और फोर्क में एक कबाब का टुकड़ा लगाकर मुझे दिखाते हुए गड़प कर गई।
प्लैटर मैंने एक बार फिर से देखा। मैंने बचपन से अब तक नानवेज कभी नहीं खाया था, नाम के लिए भी नहीं। स्कूल और हास्टल में दोस्तों ने बहुत जिद की, फिर ट्रेनिंग और बाहर भी गया। लेकिन कभी नहीं। कोई धार्मिक या पारिवारिक कारण नहीं। बस नहीं खाया। भूख जोर से लगी थी। लेकिन अब जो गुड्डी ने बोला था मेन कोर्स का इन्तेजार करने के अलावा चारा ही क्या था? लेकिन उन सबसे बढ़कर इतनी अच्छी वाइन। एक ग्लास से ज्यादा तो मैं गटक गया था। गुड्डी के सौजन्य से। लेकिन खाली पेट और खाली पेट वाइन मतलब हैंगओवर। गैस और वाइन की ¾ भरी बोतल सामने थी।
मैंने फिर प्लेटर की ओर देखा। कम से कम 14 आइटम रहे होंगे। उसके अलावा सास, तरह-तरह की चटनी। पांच आइटम तो खाली चिकेन के थे- चिकेन लालीपाप, चिकेन टिक्का, चिकेन रेशमी कबाब, टंगड़ी कबाब और मुर्ग अचारी टिक्का।
उसके बाद मटन के आइटम- मटन गिलाफी सीक, मटन, मटन मेथी सीक, मटन काकोरी कबाब और मटन लैम्ब चाप इन सिनेमम सास। फिर फिश फिंगर और फिश बटर फ्राई भी थी। इसके अलावा, झींगा लासुनी, थाई श्रिम्प केक और चिली गार्लिक प्रान।
गुड्डी- “तुमने कभी नानवेज नहीं खाया ना?” गुड्डी के होंठों के बीच में एक गिलाफी सीक था।
“न…” मैं वाइन की ग्लास हाथ में घुमाते बोल रहा था।
गुड्डी ने फिर पूछा- “घर में और कोई?”
मैं- “तुम्हें मालूम है। भाभी तो खाती है और कोई नहीं…” सामने वाइन का ग्लास तो मैंने भर लिया था। लेकिन।
गुड्डी- “नहीं खाओगे पक्का?” कहकर उसने मेरा इरादा टेस्ट किया।
“नहीं…” मैंने अपने निश्चय को पक्का करते हुए कहा, और गुड्डी के ग्लास में भी वाइन डाल दी।
गुड्डी- “चलो। मैं कहूँगी भी नहीं…” और अब वो मेरी ओर और सरक आई एकदम सटकर, और उसका हाथ मेरे कंधे पे। उसने मुझे अपनी ओर खींच रखा था। चिकेन लालीपाप उसके मुँह में था और वो मेरे मुँह के पास अपना मुँह लाकर बोली- “वैसे है बहुत स्वादिष्ट…”
मैं क्या बोलता?
गुड्डी बोली- “मुँह खोलो खूब बड़ा सा…”
मैं सशंकित- “क्यों?” मैंने धीमे से पूछा।
गुड्डी- “अभी क्या तय हुआ था उस समय? मैं तुम्हारी सब बात मानूंगी और बाकी समय तुम और इतनी जल्दी। मुँह ही खोलने को कह रही हूँ। और कुछ खोलने को तो नहीं कह रही हूँ…”
मैंने मुँह खोल दिया।
गुड्डी- “आँखें बंद…”
मैंने आँखें बंद कर ली। और अगले पल लालीपाप मेरे मुँह के अन्दर और गुड्डी मेरी गोद में- “यार तेरे हाथ मार कुटाई करके थक गए होंगे और अभी वो तान्या आती होगी, उसका भी जोबन मर्दन करना होगा। तो चलो थोड़ा आराम करो और थोड़ा प्रैक्टिस…”
मेरे हाथ गुड्डी के जोबन पे थे वो भी ऊपर से नहीं गुड्डी ने अपने कुरते के बटन खोलकर अन्दर सीधे वहीं। बाकी का लालीपाप गुड्डी के होंठों से कुचला कुचलाया। मेरे हाथ गुड्डी के रसीले उभारों का रस लूट रहे थे। थोड़ी देर में पूरा प्लेटर और वाइन की बोतल खतम हो गई थी। थोड़ा गुड्डी के हाथों से गया, थोड़ा गुड्डी के मुँह से और काफी कुछ मेरी जीभ ने गुड्डी के मुँह में जाकर निकालकर। मुख रस में लिथड़ा। अधखाया। कुचला।
और इस दौरान एक पल के लिए भी दुकान में हुई घटना। वो गुंडे,… वो पोलिस वाले जो हम लोगों को अन्दर करना चाहते थे और बाद में जो डी॰बी॰ ने बताया की जिससे मैं भिड़ गया था, शुक्ला एक नोन गैंगस्टर था,…. कुछ भी नहीं याद आया। गुड्डी ने जैसे सब कुछ इरेज कर दिया है और हम लोग सीधे उसके घर से रीत के पास से, अपने घर जा रहे हों, और बीच में जो हुआ वो एक दुस्वप्न था जिसे हम लोग भूल चुके हों।
गुड्डी ने पूछा- “मीनू देखें या?” और खुद ही फैसला कर दिया- “उस छैल छबीली को ही बोल देते हैं…” और फोन उठाकर गुड्डी ने बोल दिया। मैंने सिर्फ हाँ हूँ। एकदम सुना। पता ये चला की अबकी फिर गुड्डी ने नानवेज का ही आर्डर कर दिया और पूछने पे बोला- “कौन दिमाग लगाए। खाना तो खाना…”
जब तक मेन कोर्स आता मैं बाथरूम में जाकर अपने कपड़े पहनकर वापस आ गया और उसी समय तान्या फिर फूड ट्राली के साथ आई।
हम लोगों का पेट तो स्टार्टर्स से ही काफी भर गया था, लेकिन फिर भी इसरार करके। और इस बार भी। लैम्ब विद पोर्ट-रेड वाइन सास, चेत्तिनाड मटन करी, और लखनवी चिकेन दो प्याजा, साथ में असारटेड ब्रेड और हैदराबादी बिरयानी।
तान्या थी तो गुड्डी खिलाती नहीं, तो मुझे अपने हाथ से ही नानवेज खाना पड़ा और गुड्डी कनखियों से देखकर मुश्कुरा रही थी।
जैसे कह रही हो- “देखा। अभी तो ये शुरूआत है, देखो क्या-क्या करवाती हूँ तुमसे?”
खाने के बाद जब गुड्डी बाथरूम गई तो तान्या ने राज खोला।
मेरी खातिर डी॰बी॰ के चक्कर में तो हो ही रही थी लेकिन कुछ-कुछ मेरे चक्कर में भी। शुक्ला के पकड़े जाने को पुलिस ने दबाकर रखा था और मुझे तो वैसे भी कोई नहीं जानता था, लेकिन थोड़ी बहुत खबर लग गई थी।
शुक्ला के नाम पे हर होटल में एक स्यूट रिजर्व रहता था। इसके आलावा ताज, क्लार्क हर जगह एक कमरा होटेल वालों को खाली रखना पड़ता था। उसकी मर्जी जहाँ रुके और ऐय्याशी भी उसने काफी शुरू कर दी थी। सेक्स के साथ-साथ वो सैडिस्ट भी था।
इसलिए और सब उससे डरते थे।
तान्या पे भी उसकी नजर थी और वो बोलकर गया था की अगली बार वो होटल में आया तो रात उसे उसके साथ ही गुजारनी पड़ेगी। होटल के मैनेजर को उसने बोला था-
“आपकी लड़की शाम को चार बजे लहुराबीर कोचिंग के लिए जाती है…”
स्वीट डिश में रबड़ी, गुलाब जामुन, लेकिन गुलाब जामुन के चारों ओर बूंदी लगी थी। मीठी बूंदी।
हमने स्वीट डिश शुरू ही किया था की मेरा फोन बजा, लेकिन कोई नंबर नहीं। मैंने फिर ध्यान से देखा तो लिखा था- “प्राइवेट नम्बर…”
अचानक मुझे ध्यान आया, डी॰बी॰ का नंबर। मुझे एस॰एम॰एस॰ किया था की कोई खास बात होगी तो मुझे वो इस नम्बर से रिंग करेगा। मैंने फोन उठाया।
डी॰बी॰ की आवाज बड़ी सीरियस थी, बोले - “टीवी देख रहे हो?”
मैं- “हाँ…” टीवी पर गाना आ रहा था हंटर वाला-
आई आम अ हंटर एंड शी वांट तो सी माई गन।
व्हेन आई पुल इट आउट द वोमन स्टार्ट टू रन
ऊ ऊ।
आवाज उनके फोन पे जा रही होगी।
डी॰बी॰बोले “अरे लोकल चेंनेल लगाओ न्यूज…”
फागुन के दिन चार -भाग २८
आतंकी हमला होने की आशंका
गुंजा
3,73,380
स्वीट डिश में रबड़ी, गुलाब जामुन, लेकिन गुलाब जामुन के चारों ओर बूंदी लगी थी। मीठी बूंदी। हमने स्वीट डिश शुरू ही किया था की मेरा फोन बजा, लेकिन कोई नंबर नहीं। मैंने फिर ध्यान से देखा तो लिखा था- “प्राइवेट नम्बर…”
अचानक मुझे ध्यान आया, डी॰बी॰ का नंबर। उन्होंने मुझे एस॰एम॰एस॰ किया था की कोई खास बात होगी तो मुझे वो इस नम्बर से रिंग करेंगे । मैंने फोन उठाया।
डी॰बी॰ बोले - “टीवी देख रहे हो?”
मैं- “हाँ…” टीवी पर गाना आ रहा था हंटर वाला-
आई आम अ हंटर एंड शी वांट तो सी माई गन।
व्हेन आई पुल इट आउट द वोमन स्टार्ट टू रन
ऊ ऊ।
आवाज उनके फोन पे जा रही होगी।
डी॰बी॰ बोले - “अरे लोकल चेंनेल लगाओ न्यूज…”
उनकी आवाज में टेंशन साफ़ झलक रहा था। नॉर्मली वो कभी टेन्स नहीं होते, लेकिन कुछ तो गड़बड़ है, और फिर इस तरह से अनलिस्टेड प्राइवेट नंबर से फोन करके,
अभी सब ठीक चल रहा था, इतनी मस्ती का माहौल लेकिन, उनकी बात सुन के मैं भी टेन्स हो गया और मैंने तान्या को इशारा किया।
उसने चैनेल चेंज करके बी॰एन॰एन॰ (बनारस न्यूज नेटवर्क) लगाया।
एक स्कूल की धुंधली फोटो आ रही थी, नाम भी सही नहीं सुनाई दे रहा था।
एक न्यूज कास्टर सामने खड़ा बोल रहा था। नीचे ब्रेकिंग न्यूज भी चल रही थी।
चूड़ा देवी बालिका विद्यालय, मैं दो लोगों ने लड़कियों को बंधक बनाया,... आतंकी हमला होने की आशंका।
गुड्डी उठकर खड़ी हो गयी “ये तो मेरा स्कूल है…”
एक पल के लिए मेरे चेहरे पे मुस्कराहट छा गयी, गुंजा याद आ गयी, स्कूल से लौट के आयी थी,
भूत.,,,नहीं सारी, ...चुड़ैल लग रही थी।
सुबह कैसी चिकनी विकनी होकर गई थी। गोरे गालों पे अबीर गुलाल रंग पेंट, बालों में भी। एक इंच जगह नहीं बची थी, चेहरे पे, यहां तक की मोती ऐसे सफ़ेद दांत भी लाल, बैंगनी। कई कोट रंग लगे थे ,
गुंजा का स्कूल,
एक कोई मारवाड़ी सेठ ने अपनी पूज्य स्वर्गीया की स्मृति में स्कूल बनवाया था, मैनेंजमेंट और कंट्रोल पूरा उन्ही का, नाम था, चूड़ा देवी बालिका विद्यालय,
लेकिन सब लोग चू दे विद्यालय कहते थे, नयी सड़क के पास ही था। गुंजा ने हंस के बोला,
" जीजू सोचिये न जिस स्कूल का नाम ही चुदे है वहां की लड़कियां नहीं चुदेंगी तो कहाँ की लड़कियां चुदेंगी"
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लेकिन अगले पल मेरी हालत खराब हो गयी, गुंजा, उसकी दूध खील सी हंसी, वो मुस्कान, उसका तो एक्स्ट्रा क्लास था वो,….
कहीं स्कूल में तो नहीं,....
टीवी स्क्रीन पर अब फोटो साफ़ हो गयी थी, चूड़ा देवी बालिका विद्यालय,
गुड्डी ने फिर बोला, ये तो मेरा स्कूल है,
गुड्डी का स्कूल, गुंजा का स्कूल, गुंजा गुड्डी से दो साल ही तो छोटी थी, लेकिन छोटी बहन से भी बढ़कर और उससे भी बढ़कर सहेली और उसकी सारी शरारतों में बराबर की हिस्सेदार और मेरी, छोटी साली
“तुम्हें कुछ मालूम है इस इलाके के बारे में? हमने रेड अलर्ट डिक्लेयर कर दिया है…” डी॰बी॰ की आवाज फोन पे आ रही थी।
मैंने पूछा- “मैं,.. हम आ सकते हैं?” अब मेरा दिल जोर जोर से धक धक कर रहा था , मन तेजी से घबड़ा रहा था, गुंजा भी तो स्कूल गयी थी, किसी एक्स्ट्रा क्लास में
- “आ जाओ मैं कंट्रोल रूम में हूँ कोतवाली में, स्कूल भी पास में ही है…” और फोन रख दिया।
न्यूज चैनेल ने अब ढेर सारी पोलिस की गाड़ी, अम्बुलेंस।
वो एरिया अब बैरिकेड कर दिया गया था। बाकी चैनेल ने भी न्यूज पिक अप कर ली थी। इंडिया टीवी चीख-चीखकर कह रहा था- “सबसे पहले इस चैनेल पे ब्रेकिंग न्यूज। एक नया आतंकी हमला। सरकार फेल…”
“उईई माँ…” गुड्डी अचानक चीखी-
“गुंजा…”
मैंने पूछा- “क्या हुआ गुंजा को?”
गुड्डी- “अरे स्कूल की तो छुट्टी हो गई थी तो उसके क्लास की। बोला था ना उसने एक्स्ट्रा क्लास है। ये उसी के क्लास की लड़कियां होंगी…” गुड्डी की आवाज रुवांसी हो गई थी।
मैंने कस के गुड्डी का हाथ दबाया, उसे अश्योर किया, और उससे ज्यादा खुद को, और धीरे से बोला, " गुंजा को कुछ नहीं हो सकता, वो एकदम ठीक होगी :
बार बार आँखों के सामने गुंजा का वो भोला चेहरा, कैशोर्य की पायदान पर खड़ी, और बार बार मन में यही आता नहीं गुंजा को कुछ नहीं हो सकता
मैं- “अरे हम लोग चलते हैं ना चलो…” गुड्डी को बोला मैंने।
गुड्डी हाथ धोने बाथरूम चली गई।
एक और चैनेल अब बोल रहा था था-
“हालांकि पोलिस ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया है, लेकिन हमारे सोर्सेज के अनुसार ये आतंकी हमला ही लगता है। क्योंकि बंधक बनाने वालों ने एक बाम्ब का प्रयोग किया है। डी॰जी॰ पोलिस ने लखनऊं से बताया है की स्थिति पर कड़ी नजर रखी जा रही है। मुख्यमंत्री वापस आ रहे हैं। अभी अभी खबर आई है की कुल 22 लड़कियों में से 19 बंधकों के घुसने के समय निकल भागीं लेकिन 3 लड़कियां बंधक हैं। उनका नाम पुलिस ने बताने से इनकार किया है…”
मोबाईल, पुलिस की गाड़ी बाहर खड़ी थी।
हम लोग सीधे उसी में जाकर बैठ गए। अचानक मुझे याद आया- “चंदा भाभी कहीं वो टीवी तो नहीं देख रही होंगी और वो चैनेल देखकर घबड़ा तो नहीं रही होंगी?”
गुड्डी ने ऐस्योर किया-
“नहीं वो नार्मली सोती हैं। और ज्यादातर लड़कियां तो चैनेल बता रहा था की निकल गई थीं, तो गुंजा निकल ही गई होगी और अगर हम लोगों ने फोन किया तो पहले तो जवाब दो की हम लोग अब तक गये क्यों नहीं? फिर वो कहेंगी की घर आ जाओ और फिर ये की शहर में टेंशन है। तो आज मत जाओ। तो फिर तो…”
फिर मैंने भी सोचा की वो लोग बेकार में परेशान होंगे।
लेकिन आँखों के सामने बार बार गुंजा का चेहरा याद आ रहा था, सुबह नाश्ते के समय स्कूल की ड्रेस में, स्कूल से लौट के रंगा पुता, स्कूल की उसकी सहेलियों के किस्से, कैसे जबरदस्त होली उसने शाजिया और महक के साथ मिल के खेली,... एकदम रंग उसकी बातों से छलक रहा था
और वो स्कूल, उसी स्कूल में ये हमला, तीन लड़कियों को होस्टेज बनाया है,
बस गुंजा न हो
शहर में टेंशन, गुंजा के स्कूल पर हमला
जगह-जगह पोलिस के बैरिकेड लगे थे। उस डायरेक्शन में जाने वाली गाड़ियों को रोका जा रहा था। टेंशन महसूस किया जा सकता था।
आफिस जल्दी बंद हो रहे थे। यहाँ तक की रिक्शे वाले भी बजाय सवारी लेने के अपने घरों को वापस जा रहे थे। जगह-जगह टीवी की दुकानों पे, जहाँ कहीं भी टीवी लगा था, भीड़ लगी थी।
जैसे-जैसे हम लोग कोतवाली की ओर जा रहे थे। सड़क खाली लग रही थी। रास्ते में जो भी मंदिर मस्जिद पड़ती गुड्डी आँखें बंद करके हाथ जोड़ लेती थी। बस हम यही मना रहे थे की वहां फँसी लड़कियों में गुंजा ना हो। ना हो। जब हम लोग कबीर चौरा हास्पिटल के सामने से निकले तो वहां से ऐम्बुलेंसेज कोतवाली की ओर जा रही थी।
हम लोगों का डर और बढ़ गया। टाउन हाल के आगे तो एकदम सन्नाटा था। खाली पोलिस की गाड़ी दिख रही थी। फायर ब्रिगेड वाले भी आ गए थे।
चैनेल वालों की भी गाड़ियां थी। एक-दो जगह से न्यूज कास्टर खड़े होकर बता रहे थे की वो स्कूल बस यहाँ से 400 मीटर की दूरी पे है।
चारों ओर टेंशन साफ झलक रहा था। सबके चेहरे पे हवाइयां उड़ रही थी।
स्कूल के बगल से हम गुजरे, वहां आसपास की बिल्डिंग्स खाली करायी जा रही थी। बाम्ब डिस्पोजल स्क्वाड के दो दस्ते खड़े थे। एक ट्रक से काली डूंगरी पहने कमांडो दस्ते उतर रहे थे।
गुड्डी का दिल धकधक कर रहा था, मेरा भी। सुबह हम लोग आज दिन भर इतनी मस्ती से,... लेकिन अचानक। कुछ समझ नहीं आ रहा था।
तब तक हम लोगों की गाड़ी सीधे कोतवाली में कंट्रोल रूम के सामने जाकर रुकी। ड्राइवर हम लोगों को सीधे अन्दर ले गया। अन्दर भी बहुत गहमागहमी थी।
पुलिस के अलावा अन्य डिपार्टमेंट के भी लोग थे, सिटी मजिसट्रेट, सिवल डिफेंस के लोग, डाक्टर्स। ड्राइवर ने सीधे हम लोगों को वहां पहुँचा दिया जहाँ डी॰बी॰ थे, एक बड़ी से मेज जिस पे ढेर सारे फोन रखे हुए थे। सामने एक बोर्ड पे उस एरिया का डिटेल्ड मैप बना हुआ था। चारों ओर पुलिस के अधिकारी, मजिस्ट्रेट।
जब हम लोग पहुँचे तो वो एस॰पी॰ ट्रैफिक को बोल रहे थे-
“ट्रैफिक डाइवर्ट कर दिया न,... एक किलोमीटर तक पूरा, यहाँ तक प्रेस को भी जिनके पास अक्रेडीशन हो,...उन को भी नहीं । दो किलोमीटर तक सिर्फ उस एरिया के लोगों को, ...नो वेहिकुलर ट्रेफिक…”
तब तक एक किसी आफिसर ने उन्हें फोन पकड़ाया।
बजाय फोन लेने के उन्होंने स्पीकर फोन आन कर दिया जिससे सब सुन सके। प्रिंसिपल सेक्रेटरी होम का फोन था। उन्होंने पूछा- “हाउ इस सिचुएशन?”
डी॰बी॰ ने जवाब दिया- “टोटली अंडर कंट्रोल सर। लेकिन अभी कुछ साफ पता नहीं चल पाया है की वो हैं कौन? उनका मोटिव क्या है? साइकोलोजिकल प्रोफाइलिंग भी करवाई है। बिहैवियर पाटर्न अनसर्टेन है, अन्दर का कोई प्लान भी नहीं है। लेकिन रेस्ट अश्योर्ड। डैमेज कन्टेन हम करेंगे…”
होम सेक्रेटरी की काल जारी थी-
“ओके। एस॰टी॰एफ॰ की टीम निकल गई है दो-तीन घंटे में वो पहुँच जायेंगे। मैंने सेंटर से भी बात कर ली है। मानेसर में एन॰एस॰जी॰ रेडीनेस में है…”
डी॰बी॰ ने बोला- “नहीं सर, होपफुली उनकी जरूरत नहीं पड़ेगी…”
होम सेक्रेटरी ने पूछा- “लेट अस होप। लेकिन लास्ट टाइम की तरह मैं फँसना नहीं चाहता ना। बी॰एस॰एफ॰ का प्लेन रेडी है। और चापर मानेसर में तैयार है। कोई मल्टीपल अटैक के चांस तो नहीं हैं?”
डी॰बी॰ ने बोला- “नहीं सर एकदम नहीं। एक घंटे से ऊपर हो गए हैं और अभी कहीं से…”
“ओके वी आर विथ यू…” और उधर से फोन कट गया।
एस॰टी॰एफ॰ यानी स्पेशल टास्क फोर्स, जो पिछली सरकार ने बनाया था, ओर्गनाईज्ड क्राइम और स्पेशल इवेंट से निपटने के लिए। उनके तरीके अलग थे और वो सीधे गृह राज्य मंत्री को रिपोर्ट करते थे।
तब तक ड्राइवर ने उनका ध्यान हम लोगों की ओर दिलाया।
डी॰बी॰
मेरा मन अभी भी गुंजा में लगा था, मन मना रहा था वो घर पहुँच गयी हो, लेकिन चंदा भाभी से फोन करके पूछने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। गुड्डी की हालत तो मुझसे भी ज्यादा, लेकिन वो हिम्मती थी ,
तीन साल बाद मैं डी॰बी॰ से मिल रहा था, क़द 5’11…” इंच, गेंहुआ रंग, हल्की मूंछे, छोटे-छोटे क्रू कट बाल, हाफ शर्ट, कुछ भी नहीं बदला था, वही कांफिडेंस, वही मुश्कान। तपाक से उसने हाथ मिलाया और पूछा- “हे तुम लोग इत्ते देर से आये हो बताया नहीं?
मैंने कहा- “बस अभी आये…”
तभी उसकी निगाह गुड्डी पे पड़ी, और वो झटके से उठकर खड़े हो गए । तुरंत उन्होंने नमस्ते किया।
उनकी देखा देखी बाकी आफिसर्स भी खड़े हो गए। हम ये जानने के लिए बेचैन थे की गुंजा उन तीन लड़कियों में है की नहीं। मैंने कुछ पूछना चाहा तो उन्होंने हाथ के इशारे से मना कर दिया और किसी से बोला- “जरा ए॰एम॰ को बुलाओ…”
एक लम्बा चौड़ा पोलिस आफिसर आकर खड़ा हो गया। यूनिफार्म में, तीन स्टार लगे थे। डी॰बी॰ ने परिचय कराया-
“ये हैं। ए॰एम॰, अरिमर्दन सिंह। यहाँ के सी॰ओ॰, सारी चीजें इनकी फिंगर टिप्स पे हैं। यही सब सम्हाल रहे हैं। और ये हैं। …”
मुझे परिचय कराने के पहले ए॰एम॰ ने मुझसे हाथ मिला लिया और बोले- “अरे सर, हमें मालूम है सब आपके बारे में। आज चलिए एक्शन का भी एक्सपोजर हो जाएगा…”
डी॰बी॰ ने किसी से गुड्डी के लिए एक कुर्सी लाने को बोला। लेकिन मैंने मना कर दिया- “कोई रूम हो तो। इतने दिनों बाद हम मिले हैं तो…”
डी॰बी॰ ने बोला- “एकदम…”
हम लोग एक कमरे की ओर चल दिए, शायद सी॰ओ॰ का ही कमरा था।
कमरे में चार-पाँच कुर्सियां, मेज और एक छोटा सोफा था। घुसने से पहले डी॰बी॰ ने कहा- “मेरा जो भी काल हो ना। यहीं डाइवर्ट करना और अगर सी॰एस॰ (चीफ सेक्रेटरी) या सी॰एम॰ का फोन हो तो मोबाइल पे पैच करवा देना…”
अन्दर घुसते ही मैंने पहला काम ये किया की सारी खिड़कियां बंद कर दी और पर्दे भी खींच दिए और बाहर का दरवाजा बस ऐसे खोलकर रखा की अगर कोई दरवाजे के आस पास खड़ा हो तो दिखाई पड़े।
हम लोग ठीक से बैठे भी नहीं थे की डी॰बी॰ चालू हो गए-
“यू नो तीन बातें हैं। जो क्लियर नहीं हो रही हैं,अगर हम टेरर अटैक मानते हैं तो
पहली- आई॰बी॰ ने कोई वार्निंग नहीं दी। ये बात नहीं है की वो कभी सही वार्निंग देते हैं स्पेस्फिक। लेकिन कुछ जनरल उनको आइडिया रहता है। अगर वो गौहाटी में कहेंगे तो गुजरात वाले नार्मली जग जाते हैं। वैसे वो कभी लोकेशन सेपेस्फिक वार्निंग नहीं देते। लेकिन उन्हें जनरल हवा रहती है और ना हुआ तो कम से कम घटना के बाद वो मैदान में आ जाते हैं, कम से कम ये दिखाने के लिए की स्टेट पोलिस वाले कितने बेवकूफ हैं, खास तौर से अगर सरकार दूसरी पार्टी की हो और यहाँ सरकार दूसरी पार्टी की है। लेकिन अभी तक वो सिर खुजला रहे हैं। तुमको याद होगा समीर सिन्हा की?”
मैं- “हाँ जो हम लोगों से चार साल सीनियर थे, बिहार कैडर के। हास्टल में नाटक वाटक करवाते थे। जिन्होंने आई॰ए॰एस॰ लड़की से शादी की थी…” मुझे भी याद आया।
डी॰बी॰- “हाँ वही। वो लखनऊ में जवाइंट डायरेक्टर हैं आई॰बी॰ में, उनसे भी मैंने बात की थी, ना कोई ह्यूमन आई॰टी॰ (ह्युमन इंटेलिजेंस) ना कोई टेक्नीकल…” डी॰बी॰ ने बात आगे बढ़ाई।
“और?” मैंने हुंकारी भरने का योगदान दिया।
गुड्डी बेचैन हो रही थी।
ये सब ठीक है लेकिन गुंजा। उसकी आँखों में डर झलक रहा था।
उसने मेरा हाथ कस के दबाया, और मैंने भी कस के दबा के अश्योर किया, बिन बोले, ; नहीं गुंजा नहीं हो सकती है। गुंजा कैसे सकती है, इतनी लड़कियां बच के निकल गयीं तो वो भी निकल गयी होगी। वो तो इत्ती प्यारी सी स्मार्ट, नहीं उसे कुछ नहीं हो सकता, मैं बस सोच रहा था और आँखे के आगे उस दर्जा नौ वाली शरीर लड़की की तस्वीर आ रही थी।
सुबह ब्रेड रोल में ढेर सारी मिर्चे भर के खिलाते,
जब कोई कपडे नहीं दे रहा था, गुंजा ने अपना बारमूडा और टॉप दिया,
जिस तरह से आँख नचा के वो गुड्डी को चिढ़ाते बोली थी, " दी को मैंने बोल दिया, पटाइये आप लेकिन मजे मैं लूंगी, और फुल टाइम, साली का हक पहले होता है "
और अब मन मानने को नहीं कर रहा था की ऐसी मुसीबत में गुंजा फंस सकती है, लेकिन पुलिसिया दिमाग कह रहा था, कुछ भी हो सकता है , कुछ भी और हर हालत के लिए तैयार रहना चाहिए।
डी॰बी॰ कहीं बात कर रहे थे, उस फोन को रख के फिर हम अपनी बात बढ़ाई-
“दूसरी- पैंटर्न। ये एकदम गड़बड़ है। टेररिस्ट पागल नहीं होता। वो भी रिसोर्स इश्तेमाल करता है, जो बहुत मुश्किल से उसे मिलते हैं। इसलिए वो मैक्सिमम इम्पैक्ट के लिए ट्राई करेगा, जहाँ बहुत भीड़ भाड़ हो और नार्मली वो बाम्ब का इश्तेमाल करेगा, होस्टेज का नहीं। और होस्टेज का होगा तो डिमांड क्या होगी? अब तक सिर्फ कश्मीर में हिजबुल के लोग इस तरह की हरकत करते हैं। लेकिन वहां हालात एकदम अलग हैं। यूपी में जितने भी हमले हुए, वो सिर्फ बाम्ब से हुए। और ज्यादातर में कोई पकड़ा भी नहीं गया तो ये बात कुछ हजम नहीं होती…”
और मेरे दिमाग में भी अब वही बात गूँज रही थी, अगर टेरर अटैक नहीं है तो क्या है ? और मिडिया वाले तो सिर्फ टेरर चिल्ला रहे हैं।
सामने टीवी ऑन था और उस पर दिखा रहा था, इस के पहले भी बनारस में बॉम्ब के धमाके हो चुके हैं , मंदिर में, घाट पर, ट्रेन में और एक बार फिर, क्या वहां बम्ब है, क्या बम्ब फूटेगा, अगर फूटेगा तो क्या होगा उन लड़कियों का, पुलिस ने चुप्पी साध रखी है।
किसी ने चैनल चेंज कर दिया,
और वहां कोई और जोर से चीख रखा था,
कौन है जो आपकी होली को खून की होली में बदलना चाहता है
कौन है जिसे यह संस्कृति नहीं पसंद है
कोई है जो आपके पड़ोस में भी हो सकता है, आपके गली मोहल्ले में भी हो सकता है , बने रहिये सबसे तेज ख़बरों के लिए
तब तक डी॰बी॰ का फोन बजा, दशाश्वमेध थाने से रिपोर्ट थी- “बोट पुलिस ने सब घाट नदी की ओर से भी चेक कर लिए हैं। आल ओके…”
डी॰बी॰ ने घंटी बजायी।
समोसा
चपरासी को उन्होंने 3 चाय के लिए बोला और मुझसे पूछा- “समोसा चलेगा। जलजोग का…”
मैंने बोला- “एकदम दौड़ेगा…”
गुड्डी ने मुझे आँख दिखाई- “कितना खाओगे?” लेकिन जलजोग का समोसा मैं नहीं मना कर सकता था।
डी॰बी॰- “हाँ तो। मैं क्या कह रहा था? हाँ तीसरी बात- उसका मोबाइल फोन। कोई टेररिस्ट मोबाइल पे बात नहीं करता। अगर करेगा तो अपने आका से करेगा, पोलिस से नहीं। एक बार उसने थाने पे यहीं रिंग किया और दूसरी बार अरिमर्दन से बात हुई, तब तक मैं भी यहाँ आ गया था। मोबाइल मतलब अपना सब अता पता बता देता है, तो इसलिए मुश्किल है ये सोचना की …”
मैंने बात बीच में रोक कर पूछा- “वो सिम कहाँ का है?”
डी॰बी॰- “यार क्या बच्चों जैसे। आज कल सिम का क्या? और वो तो पहली चीज इंस्पेक्टर भी देख लेता है। बक्सर के पास किसी जगह से ली गई थी, आधे घंटे में उसकी कुंडली भी आ जायेगी। लेकिन वो सब फर्जी मिलेगी। इतनी बात तो वो सोनी पे कौन सा सीरियल आता है?” डी॰बी॰ बोले।
अबकी बात काटने का काम गुड्डी ने किया। बड़े उत्साह से उसने अपने ज्ञान का परिचय दिया- “सी॰आई॰डी॰ मैं भी देखती हूँ…” वो चहक कर बोली।
डी॰बी॰ बोले- “वही तो मैं कह रहा था, बच्चों को भी ये सब चीजें मालूम होती हैं। सिम विम से क्या होगा?”
मैंने थोड़ी रिलीफ की सांस ली- “तो इसका मतलब की टेरर वेरर की बात…”
डी॰बी॰- “नहीं ऐसा कुछ नहीं है। कुछ कह नहीं सकते, मान लो निकल जाय कोई तो? प्रिकाशन तो लेनी पड़ेगी…” वो बोले- “और ये भी नहीं कह सकते की कोई गुंडा बदमाश है…”
मैं- “क्यों?” मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
डी॰बी॰- “तीन बातें हैं…”
ये तीन बातों का चक्कर उनका पुराना हास्टल के दिनों का था।
डी॰बी॰ ने फिर समझाना शुरू किया-
“देखो पहली बात आज कल नई-नई सरकार आई है अभी सेट होने में टाइम लगेगा सब कुछ, तो उस समय नार्मली ये सब एक्टिविटी स्लो रहती हैं। फिर आज कल बनारस में वैसे ही हम लोगों ने झाड़ू लगा रखी है। एक मोटा असामी था उसका पत्ता तुमने साफ करा दिया। फिर क्रिमिनल भी रिटर्न देखता है- ठेका हो, माइनिंग हो, प्रोटेक्शन हो। अब किडनैपिंग तक तो होती नहीं फिर ये होस्टेज वोस्टेज का चक्कर क्रिमिनल्स के बस का नहीं, ना उनका कोई फायदा है इसमें। आधी चीज तो मोटिव है, वो क्या होगी? फिर तुम जानते हो। ज्यादातर बड़े क्रिमिनल अब नहीं चाहते की फालतू का लफड़ा हो। उनकी असली कमाई तो अब सेमी-लीगल धंधों से होती है। कई ने तो थानों पे फोन करके बोला जैसे ही चैनेल पे खबर आई की उनका कोई लेना देना नहीं है इस इंसिडेंट से…”
तब तक चपरासी समोसा और चाय लेकर आ गया। गरम-गरम ताजा समोसे। डी॰बी॰ ने इन्सिस्ट किया की गुड्डी पहले समोसा ले।
गुड्डी ने समोसा तो ले लिया लेकिन जो सवाल उसे और मुझे तब से परेशान किये हुए था, पूछ लिया-
“वो तीन। तीन लड़कियां जो। नाम क्या है पता चला?”
समोसा खाते हुए डी॰बी॰ ने बोला- “हूँ हूँ कुछ। बताता हूँ। हाँ लेकिन मैं क्या कह रहा था?”
मैंने याद दिलाया- “तीन। तीन बातें क्यों वो गुंडे बदमाश नहीं हो सकते? एक आप बता चुके हैं की बड़े गुंडों के लिए इस तरह की हरकत प्रोफिटेबल नहीं है…”
चाय पीते हुए डी॰बी॰ ने बात जारी रखी-
“हाँ। दूसरी बात- बाम्ब। ये कन्फर्म है की उनके पास बाम्ब है और उसमें ट्रिगर डिवाइस भी है। नार्मली छोटे मोटे गुंडों के पास इम्पैक्ट बाम्ब, यानी जो फोड़ने या फेंकने पे फूटते हैं वही होते हैं। ये साफीस्टीकेटेड बाम्ब हैं।
जो लड़कियां बचकर आई हैं उन्होंने जो बताया है। उसके हमने स्केच बनवाये हैं और उसके अलावा जहाँ-जहाँ यहाँ बाम्ब बनाते हैं, सोनारपुरा में, लंका में आस पास के गाँवों में गंगा पार रामनगर। हर जगह से हम लोगों ने चेक कर लिया की ये उनकी हरकत नहीं। और जो लोकल माफिया हैं या तो गायब हो चुके हैं या उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए हैं…”
जब तक वो तीसरी बात पे आते मैंने बचा हुआ समोसा भी उठा लिया।
गुड्डी ने मुझे बड़ी तेजी से घूरा लेकिन मैंने पूरा ध्यान समोसे की ओर और डी॰बी॰ की ओर दिया।
डी॰बी॰ ने तीसरा कारण शुरू कर दिया- “तीसरी बात- बहुत सिंपल। हमारे किसी खबरी को लोकल बन्दों की हवा नहीं है। तो। …”
अबकी मैंने सवाल दाग दिया- “तो ये हैं कौन?”
डी॰बी॰- “यही तो? अगर साफ हो जाय कोई टेररिस्ट ग्रुप है तो हमें मोटा-मोटा उनकी मोडस आप्रेंडी, काम करने का तरीका मालूम है। क्रिमिनल को तो हम लोग आसानी से टैकल कर लेते हैं। पर अभी तक पिक्चर। …” तब तक उनका फोन बजा।
“सी॰एस॰ का फोन है…” किसी दरोगा ने बताया।
अब तक मैं भी इन शब्दों से परिचित हो चुका था की सी॰एस॰ का मतलब चीफ सेक्रेटरी। और वो स्टेट गवर्नमेंट में सबसे ऊपर होते हैं।
डी॰बी॰ ने पूछा- “साहब खुद लाइन पे हैं या?”
“नहीं पी॰एस॰ हैं…” उधर से आवाज आई।
डी॰बी॰- “उनको बोल दो की मैं मोबाइल पे सीधे रिंग कर लूँगा…” वो बोले और उठकर कमरे के दूसरे कोने की ओर चले गए।
यहाँ मुझ पर डांट पड़ना शुरू हो गई- “तुम यहाँ समोसा खाने आये हो की,... कितना खाते हो, वहां अभी होटल में,... फिर समोसा। हम यहाँ समोसा खाने आये हैं की गुंजा का पता लगाने आये हैं?”
गुड्डी ने घुड़का।
मैंने बात बदलने की कोशिश की- “नहीं वो बात नहीं है। “देखो ये लोग बीजी हैं। अभी चीफ सेक्रेटरी से बात हो रही है…”
गुड्डी बोली- “तुम लोग ना। तुम भी इन्हीं की तरह हो। सिर्फ बातें करते हो काम वाम नहीं…”
मैं- “अरे करेंगे। काम वाम भी करेंगे। प्रामिस घर पहुँचने दो तुम्हारी सारी शिकायत दूर…” कहकर मैंने माहौल को हल्का बनाने की कोशिश की।
गुड्डी शर्मा गई- “धत्त। तुम भी न कहीं भी कुछ भी…”
तब तक बात करते-करते डी॰बी॰ नजदीक आ गए थे और हम लोग चुप हो गए।
डी॰बी॰-
“थैंक्स सर। दो बटालियन आर॰ए॰एफ॰ और एक प्लाटून सी॰आर॰पी॰एफ॰। नहीं सर। दैट विल बी ग्रेट हेल्प। जी मैं भी यही सोच रहा हूँ। आज जो भी होगा उसके रियक्शन का रिस्पोंस प्लान तो करना पड़ेगा, कुछ अमंगल हो जाए तो और कम्युनल टेंशन तो यहाँ। नहीं इतना काफी होगा।
एस॰टी॰एफ॰ की कोई जरूरत तो नहीं है। आप जानते हैं सर, पिछली सरकार में तो वो एक तरह से सरकार ही बन गये थे।
काम सब लोकल पुलिस का होता है। इंटेलिजेंस सब कुछ। उनके आने में तो चार-पांच घंटे लगेंगे तब तब तो मैं इसे। मैं समझ रहा हूँ। सर। वो अपने राज्य मंत्री जी। एस॰टी॰एफ॰ के हेड उनके जिले में एस॰एस॰पी॰ रह चुके हैं और पुराना परिचय है। स्पेशल प्लेन से आ रहे हैं। कोई बात नहीं। मैं आपको इन्फार्म करूँगा। कोई प्राब्लम होगा तो बताऊंगा…”
एस॰टी॰एफ॰ मतलब स्पेशल टास्क फोर्स। इतना तो मैं समझ गया था। लेकिन अब डी॰बी॰ के चेहरे पे थोड़ी एस॰टी॰एफ॰ मतलब स्पेशल टास्क फोर्स। इतना तो मैं समझ गया था। लेकिन अब डी॰बी॰ के चेहरे पे थोड़ी परेशानी साफ दिख रही थी।
रंग में भंग पड़ गया है दोनों पंछी मस्ती कर रहे थेगुड्डी का प्लान
जब वो फिर आकर बैठे तो उन्होंने पूछा- “हाँ तो मैं क्या बोल रहा था?”
“तीन…” मैं असल में तीन लड़कियों के नाम के बारे में जानना चाहता था।
लेकिन डी॰बी॰ तो। वो चालू हो गए-
“हाँ तीन बड़ी परेशानिया हैं। कमांडो हमारे तैयार हैं, शाम जहाँ हुई,... लेकिन अब जल्दी करनी पड़ेगी। वैसे शाम तो होने ही वाली है। उस स्पेशल टास्क फोर्स के पहुँचने के पहले।
तो पहली बात। हमें स्कूल के अन्दर का नक्शा एकदम पता नहीं है। हमने स्कूल के मैनेजर, प्रिंसिपल और नगर निगम से प्लान की कापी मंगवाई है। लेकिन बहुत से अनअथराइज्ड काम हो गए हैं और वो नक्शा एकदम बेकार है।
फिर पता नहीं किस कमरे में लड़कियां होंगी? कई फ्लोर हैं कुल 28 कमरे हैं, और अगर जरा भी पता चला उन्हें तो। एलिमेंट आफ सरप्राइज गायब हो जाएगा…”
गुड्डी के लिए इन टेक्नीकल बातों का कोई मतलब नहीं था, वो फिर से बोली- “जी वो तीन लड़कियां…”
डी॰बी॰ ने विनम्रता पूर्वक बात आगे बढ़ाई-
“जी हाँ। मैं भी वही कह रहा था। उन तीन लड़कियों से बात और उलझ गई है।
एक तो वो लोग कहीं बाम्ब न छोड़ दें, फिर अगर कमांडो कायर्वाही में, कई बार स्मोक बाम्ब से ही घबड़ाकर, कुछ अनहोनी हो जाय, कैसा भी कमांडो आपरेशन हो, कुछ तो गड़बड़ होने का चांस रहता है। फिर मिडिया हम लोगों की,ऐसी की तैसी कर देगी, और अब तो नेशनल चैनल वाले भी मैदान में आ गए हैं। और टीवी देख देख के पब्लिक परसेप्शन, और होली सर पे है ।
सी॰एम॰ ने खुद बोला है की टाइम चाहे जितना लगे, लड़कियों को सेफ निकालना है…”
जब तक वो तीसरी बात बताते गुड्डी मैदान में कूद गई-
“मैं प्लान बना सकती हूँ। और रास्ता भी। एक कागज मंगाइए…”
Thanks so much ye kahani erotic thriller hair to thoda thoda sa dono ka maja milegaWow DB ka private number se phone aaya. Aur tv dekhne ko kaha. Tv on karte hi khatrnak news. Ek atankwadi hamla hone ki ashanka. Dar anand babu ki sali. Guddi ne tv dekhte hi kahe diya ki ye to meri hi school hai. Ab tension gunja ghar aai ya nahi. Vese bhi chudai vali school dono baheno ki ek hi hai.
DB ne red alert jari kar diya hai. Chalo ye achha hai ki DB ne anand babu ko vaha aane ki permission de di. Ghatna sthal ko police ne ghera huaa hai. Sath me media news channel chikh chikh ke ye khabar dila rahe hai.
Guddi ko yaad aaya ki gunja extra class ke lie rukne vali thi. Anand babu guddi ko dilasha to de rahe hai. Par dar unhe bhi lag raha hai.
Bap re bandhak banane valo ne bomb ka upyog kiya hai. Par ye achha hai ki 22 ne se 19 bhag gai. Par 3 ladkiya ab bhi bandhak hai. Aur police vale name nahi bata rahe hai.
Ek ye bhi tension hai ki ghar par kahi chada bhabhi kahi news na dekh rahi ho. Vo bhi pareshan honge. Is sab me anand babu ko us pyari si kishori ki chanchalta yaad aa rahi hai. Jo kisse gunja suna rahi thi. Ghatna usi school ki hai.
Amezing update Komalji. Kahani ka rukh badla aapne to hawao ka rukh badla. Maza aa gaya.
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ekdam sahi kaha isliye ab yahan se kahani mud gayiSahi hai aisi mast sali ko kaun khan chahega.