Premkumar65
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Aapki kahani mujhe apne teenage ki harkaton ki yada dila rahi hai. Kuchh kuchh aisa hi hua tha meri early sex life me.गुड्डी
देह की नसेनी
अगले दिन तो हद हो गई।
गरमी के दिन थे। भैया भाभी ऊपर सोते और हम सब नीचे की मंजिल पे।
एक दिन रात में बिजली चली गई। उमस के मारे हालत खराब थी। मैंने अपनी चारपायी बरामदे में निकाल ली। थोड़ी देर में मेरी नींद खुली तो देखा की बगल में एक और चारपाई। मेरी चारपाई से सटी। और उसपे वो सिर से पैर तक चद्दर ओढ़े। हल्की-हल्की खर्राटे की आवाजें। मैंने दूसरी ओर नजर दौड़ाई तो एक-दो और लोग थे लेकिन सब गहरी नींद में।
मैंने हिम्मत की और चारपाई के एकदम किनारे सटकर उसकी ओर करवट लेकर लेट गया और सिर से पैर तक चद्दर ओढ़े। थोड़ी देर बाद हिम्मत करके मैंने उसकी चद्दर के अंदर हाथ डाला। पहले तो उसके हाथ पे हाथ रखा और फिर सीने पे। वो टस से मस नहीं हुई। मुझे लगा की शायद गहरी नींद में है। लेकिन तभी उसके हाथ ने पकड़कर मेरा हाथ टाप के अंदर खींच लिया। पहले ब्रा के ऊपर से फिर ब्रा के अंदर।
पहली बार मैंने जवानी के उभार छुए थे। समझ में ना आये की क्या करूँ। तभी उसने टाप के ऊपर से अपने दूसरे हाथ से मेरा हाथ दबाया, फिर तो।
कभी मैं सहलाता, कभी हल्के से दबाता, कभी दबोच लेता। दो दिन बाद फिर पावर कट हुआ। अब मैं बल्की पावर कट का इंतजार करता था और उस दिन वो शलवार कुरते में थी। थोड़ी देर ऊपर का मजा लेने के बाद मैंने जब हाथ नीचे किया तो पता चला की शलवार का नाड़ा पहले से खुला था। पहली बार मैंने जब ‘वहां’ छुआ तो बता नहीं सकता कैसा लगा। बस जो कहा है ना की गूंगे का गुड बस वही। सात दिन कैसे गुजर गए पता नहीं चला।
कुछ कुछ होता है टाइप जो टीनेज में होता है बस वो शुरू हो गया था, वो टीनेज की मझधार में थी, और मेरे भी टीनेज गुजरे बहुत दिन नहीं हुए थे।
उसे देखकर मुझे कुछ कुछ होता है, मुझसे पहले उसे पता चल गया था।
चार आँखों का खेल चलता रहता था, बस देखना, मुस्कराना और बात जो जबान तक आ के रुक जाए वही हालत थीं, वो सोचती थी मैं कुछ बोलूंगा पर मैं कभी शेरो का सहारा लेता,
क्या पूछते हो शोख निगाहों का माजरा,
दो तीर थे जो मेरे जिगर में उतर गये।
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कौन लेता है अंगड़ाइयाँ,
आसमानों को नींद आती है।
और फिर वो क्या जबरदस्त अंगड़ाई लेती थी, दोनों कबूतर लगता था पिंजरा तोड़ के उड़ जाएंगे, उभार, कड़ाव, ऊंचाई,... और वो जानती थी क्या असर होता था उसका। तम्बू तन जाता था मेरा और वो बेशर्मी से देखती मुस्कराती,
कभी चिढ़ा के बोलती, होता है, होता है। कभी मैंने ज्यादा शायरी की बात करता तो मेरी नाक पकड़ के हिला के बोलती,
" मुझे शेर वेर नहीं मालूम, सर्कस में देखा था। लेकिन एक चीज मालूम है की जो बुद्धू हैं वो बुद्धू ही रहते हैं।"
और मैं उसकी आँखों में डूब जाता।
लेकिन उसे मालूम था की देह की नसेनी लगा के ही मन की गहराई में उतर सकते है, प्यार के अरुण कमल को पाने के लिए,, बिना तन के मन नहीं होता।
दिन भर तो वो खिलंदड़ी की तरह कभी हम कैरम खेलते कभी लूडो। भाभी भी साथ होती और वो मुझे छेड़ने में पूरी तरह भाभी का साथ देती। यहाँ तक की जब भाभी मेरी कजिन का नाम लगाकर खुलकर मजाक करती या गालियां सुनाती तो भी। ताश मुझे ना के बराबर आता था लेकिन वो भाभी के साथ मिलकर गर्मी की लम्बी दुपहरियों में और जब मैं कुछ गड़बड़ करता और भाभी बोलती क्यों देवरजी पढ़ाई के अलावा आपने लगता है कुछ नहीं सिखा। लगता है मुझे ही ट्रेन करना पड़ेगा वरना मेरी देवरानी आकर मुझे ही दोष देगी तो वो भी हँसकर तुरपन लगाती,
"हाँ एकदम अनाड़ी हैं।"
उस सारंग नयनी की आँखें कह देती की वो मेरे किस खेल में अनाड़ी होने की शिकायत कर रही है।
जिस दिन वो जाने वाली थी, वो ऊपर छत पर, अलगनी पर से कपड़े उतारने गई। पीछे-पीछे मैं भी चुपके से- हे हेल्प कर दूं मैं उतारने में मैंने बोला।
‘ना’ हँसकर वो बोली। फिर हँसकर डारे पर से अपनी शलवार हटाती बोली, मैं खुद उतार दूंगी।
अब मुझसे नहीं रहा गया।
मैंने उसे कसकर दबोच लिया और बोला-
हे दे दो ना बस एक बार "
और कहकर मैंने उसे किस कर लिया। ये मेरा पहला किस था। लेकिन वो मछली की तरह फिसल के निकल गई और थोड़ी दूर खड़ी होकर हँसते हुए बोलने लगी.
“ इंतजार बस थोड़ा सा इंतजार। “
एक-दो महीने पहले फिर वो मिली थी एक शादी में धानी शलवार सुइट में, जवानी की आहट एकदम तेज हो गई थी। मैंने उससे पूछा हे पिछली बार तुमने कहा था ना इंतजार तो कब तक?
बस थोड़ा सा और।हंस के वो बोली
मैं शायद उदास हो गया था। वो मेरे पास आई और मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए बोली
पक्का- बहुत जल्द और अगली बार जो तुम चाहते हो वो सब मिलेगा प्रामिस।
मेरे चेहरे पे तो वो खुशी थी की, कुछ देर बोल नहीं फूटे
मैंने फिर कहा सब कुछ।
तो वो हँसकर बोली एकदम। लेकिन तब तक बारात आ गई और वो अपनी सहेलियों के साथ बाहर।
भाभी की चिट्ठी ने मुझे वो सब याद दिला दिया और अब उसने खुद कहा है की वो होली में आना चाहती है और। उसे तो मालूम ही था की मैं बनारस होकर ही जाऊँगा। मैंने तुरंत सारी तैयारियां शुरू कर दी।
ओह्ह… कहानी तो मैंने शुरू कर दी।
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लेकिन पात्रों से तो परिचय करवाया ही नहीं। तो चलिए शुरू करते हैं।