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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २७

मैं, गुड्डी और होटल

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फागुन के दिन चार भाग २

रस बनारस का - चंदा भाभी

१४,४३५

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तब तक वहां एक महिला आई क्या चीज थी। गुड्डी ने बताया की वो चन्दा भाभी हैं। वह भी भाभी यानी गुड्डी की मम्मी की ही उम्र की होंगी, लेकिन दीर्घ नितंबा, सीना भी 38डी से तो किसी हालत में कम नहीं होगा लेकिन एकदम कसा कड़ा। मैं तो देखता ही रह गया। मस्त माल और ऊपर से भी ब्लाउज़ भी उन्होंने एकदम लो-कट पहन रखा था।


मेरी ओर उन्होंने सवाल भरी निगाहों से देखा।

भाभी ने हँसकर कहा अरे बिन्नो के देवर, अभी आयें हैं और अभी कह रहे हैं की जायेंगे। मजाक में भाभी की भाभी सच में उनकी भाभी थी और जब भी मैं भैया की ससुराल जाता था, जिस तरह से गालियों से मेरा स्वागत होता था और मैं थोड़ा शर्माता था इसलिए और ज्यादा। लेकिन चन्दा भाभी ने और जोड़ा-

“अरे तब तो हम लोगों के डबल देवर हुए तो फिर होली में देवर ऐसे सूखे सूखे चले जाएं ससुराल से ये तो सख्त नाइंसाफी है। लेकिन देवर ही हैं बिन्नो के या कुछ और तो नहीं हैं…”

“अब ये आप इन्हीं से पूछ लो ना। वैसे तो बिन्नो कहती है की ये तो उसके देवर तो हैं हीं, उसके ननद के यार भी हैं इसलिए नन्दोई का भी तो…” भाभी को एक साथी मिल गया था।

“तो क्या बुरा है घर का माल घर में। वैसे कित्ती बड़ी है तेरी वो बहना। बिन्नो की शादी में भी तो आई थी। सारे गावं के लड़के… चौदह से उपर तो बिन्नो की शादी में ही लग रही थी, चौदह की तो हो गयी न भैया, "” चंदा भाभी ने छेड़ा।

ये सवाल मेरे से था लेकिन जवाब गुड्डी ने दिया . गुड्डी ने भी मौका देखकर पाला बदल लिया और उन लोगों के साथ हो गई। बोली

“मेरे साथ की ही है। मेरे साथ ही पिछले साल दसवां पास किया था, और चौदह की तो कब की हो गयी। " …”


“अरे तब तो एकदम लेने लायक हो गई होगी। चौदह की हो गयी मतलब चुदवाने लायक तो हो गयी, अब तो पक्की चुदवासी होगी , भैया, जल्दी ही उसका नेवान कर लो वरना जल्द ही कोई ना कोई हाथ साफ कर देगा दबवाने वबवाने तो लगी होगी। है न। हम लोगों से क्या शर्माना…”

चंदा भाभी ने मेरी रगड़ाई का लेवल बढ़ा दिया।
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लेकिन मैं शर्मा गया। मेरा चेहरा जैसे किसी ने इंगुर पोत दिया हो। और चंदा भाभी और चढ़ गईं।

“अरे तुम तो लौंडियो की तरह शर्मा रहे हो। इसका तो पैंट खोलकर देखना पड़ेगा की ये बिन्नो की ननद है या देवर…”

भाभी हँसने लगी और गुड्डी भी मुश्कुरा रही थी।


मैंने फिर वही रट लगाई-

“मैं जा रहा हूँ। सुबह आकर गुड्डी को ले जाऊँगा…”


“अरे कहाँ जा रहे हो, रुको ना और हम लोगों की पैकिंग वेकिंग हो गई है ट्रेन में अभी 3 घंटे का टाइम है और वहां रेस्टहाउस में जाकर करोगे क्या अकेले या कोई है वहां…” भाभी बोली।


“अरे कोई बहन वहन होंगी इनकी यहाँ भी। क्यों? साफ-साफ बताओ ना। अच्छा मैं समझी। दालमंडी (बनारस का उस समय का रेड लाईट एरिया जो उन लोगों के मोहल्ले के पास ही था) जा रहे हो अपनी उस बहन कम माल के लिए इंतजाम करने। तुम खुद ही कह रहे हो चौदह की कब की हो गयी . बस लाकर बैठा देना। मजा भी मिलेगा और पैसा भी।

लेकिन तुम खुद इत्ते चिकने हो होली का मौसम, ये बनारस है। किसी लौंडेबाज ने पकड़ लिया ना तो निहुरा के ठोंक देगा और फिर एक जाएगा दूसरा आएगा रात भर लाइन लगी रहेगी। सुबह आओगे तो गौने की दुल्हन की तरह टांगें फैली रहेंगी…”

चंदा भाभी अब खुलकर चालू हो गई थी।
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“और क्या हम लोग बिन्नो को क्या मुँह दिखायेंगे…” भाभी भी उन्हीं की भाषा बोल रही थी। वो उठकर किसी काम से दूसरे कमरे में गईं तो अब गुड्डी ने मोर्चा खोल लिया।

“अरे क्या एक बात की रट लगाकर बैठे हो। जाना है जाना है। तो जाओ ना। मैं भी मम्मी के साथ कानपुर जा रही हूँ। थोड़ी देर नहीं रुक सकते बहुत भाव दिखा रहे हो। सब लोग इत्ता कह रहे हैं…”

“नहीं। वैसा कुछ खास काम नहीं। मैंने सोचा की थोड़ा शौपिंग वापिंग। और कुछ खास नहीं। तुम कहती हो तो…” मैंने पैंतरा बदला।


“नहीं नहीं मेरे कहने वहने की बात नहीं है। जाना है तो जाओ। और शौपिंग तुम्हें क्या मालूम कहाँ क्या मिलता है। यहाँ से कल चलेंगे ना। दोपहर में निकलेंगे यहाँ से फिर तुम्हारे साथ सब शौपिंग करवा देंगे। अभी तो तुम्हें सैलरी भी मिल गईं होगी ना सारी जेब खाली करवा लूँगी…”

ये कहकर वो थोड़ा मुश्कुराई तो मेरी जान में जान आई।

चन्दा भाभी कभी मुझे तो कभी उसे देखती।


“ठीक है बाद में सब लोगों के जाने के बाद…” मैंने इरादा बदल दिया और धीरे से बोला।


“तुम्हें मालूम है कैसे कसकर मुट्ठी में पकड़ना चाहिए…” चन्दा भाभी ने मुश्कुराते हुए गुड्डी से कहा।

“और क्या ढीली छोड़ दूं तो पता नहीं क्या?”
गुड्डी मुस्करा के बोली।


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और मैं भी उन दोनों के साथ मुश्कुरा रहा था। तब तक भाभी आ गईं और गुड्डी ने मुझे आँख से इशारा किया। मैं खुद ही बोला- “भाभी ठीक ही है। आप लोग चली जाएंगी तभी जाऊँगा। वैसे भी वहां पहुँचने में भी टाइम लगेगा और फिर आप लोगों से कब मुलाकात होगी…”



चन्दा भाभी तो समझ ही रही थी की। और मंद-मंद मुश्कुरा रही थी। लेकिन भाभी मजाक के मूड में ही थी वो बोली-

“अरे साफ-साफ ये क्यों नहीं कहते की पिछवाड़े के खतरे का खयाल आ गया। ठीक है बचाकर रखना चाहिए। सावधानी हटी दुर्घटना घटी… पिछवाड़े तेल वेल लगा के आये थे की नहीं, अरे बनारस है तुम्हारी ससुराल भी है, फिर फटने वाली चीज कब तक बचा के रखोगे "
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भाभी , गुड्डी की मम्मी अब पूरे जोश में आ गयी थीं और उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा था की उनकी बेटियां, गुड्डी और छुटकी वहीँ बैठीं हैं। दोनों मुस्करा रही थीं।


“अरे इसमें ऐसे डरने की क्या बात है देवरजी, ऐसा तो नहीं है की अब तक आपकी कुँवारी बची होगी। ऐसे चिकने नमकीन लौंडे को तो, वैसे भी ये कहा है ना की मजा मिले पैसा मिले और… कड़वा तेल की आप चिंता न करिये। अरे ये कानपुर जा रही हैं मैं तो हूँ न। पक्का दो ऊँगली की गहराई तक,... नहीं होगा तो कुप्पी लगा के, पूरे ढाई सौ ग्राम पीली सरसों का तेल,... गुड्डी साथ देगी न मेरा बस इन्हे पकड़ के निहुराना रहेगा। अब इतनी कंजूसी भी नहीं की एक पाव तेल के लिए बेचारे देवर की पिछवाड़े की चमड़ी छिले। "

चंदा भाभी तो गुड्डी की मम्मी से भी दो हाथ आगे।”

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गड्डी मैदान में आ गई मेरी ओर से- “इसलिए तो बिचारे रुक नहीं रहे थे। आप लोग भी ना…”


“बड़ा बिचारे की ओर से बोल रही हो। अरे होली में ससुराल आये हैं और बिना डलवाए गए तो नाक ना कट जायेगी। अरे हम लोग तो आज जा ही रहे हैं वरना। लेकिन आप लोग ना…” गुड्डी की मम्मी बोली।


“एकदम…” चन्दा भाभी बोली।

“आपकी ओर से भी और अपनी ओर से भी इनके तो इत्ते रिश्ते हो गए हैं। देवर भी हैं बिन्नो के नंदोई भी। और इनकी बहन आके दालमंडी में बैठेगी तो पूरे बनारस के साले भी, इसलिए डलवाने से तो बच नहीं सकते। अरे आये ही इसलिये हैं की, क्यों भैया वेसेलिन लगाकर आये हो या वरना मैं तो सूखे ही डाल दूँगी। और तू किसका साथ देगी अपनी सहेली के यार का। या…”

चन्दा भाभी अब गुड्डी से पूछ रही थी।

गुड्डी खिलखिला के हँस रही थी। और मैं उसी में खो गया था। भाभी किचेन में चली गई थी लेकिन बातचीत में शामिल थी।

“अरे ये भी कोई पूछने की बात है आप लोगों का साथ दूँगी। मैं भी तो ससुराल वाली ही हूँ कोई इनके मायके की थोड़ी। और वैसे भी शर्ट देखिये कित्ती सफेद पहनकर आये हैं इसपे गुलाबी रंग कित्ता खिलेगा। एकदम कोरी है…”
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गुड्डी ने मेरी आँख में देखते हुए जो बोला तो लगा की सौ पिचकारियां चल पड़ी

“इनकी बहन की तरह…” चंदा भाभी जोर से हँसी और मुझसे बोली,

“लेकिन डरिये मत हम लोग देवर से होली खेलते हैं उसके कपड़ों से थोड़े ही…”

तब तक भाभी की आवाज आई-

“अरे मैं थोड़ी गरम गरम पूड़ियां निकाल दे रही हूँ भैया को खिला दो ना। जब से आये हैं तुम लोग पीछे ही पड़ गई हो…”

चंदा भाभी अंदर किचेन में चली गईं लेकिन जाने के पहले गुड्डी से बोला-

“हे सुन मैंने अभी गरम गरम गुझिया बनायी है। वो वाली (और फिर उन्होंने कुछ गुड्डी के कान में कहा और वो खिलखिला के हँस पड़ी), गुंजा से पूछ लेना अलग डब्बे में रखी है। जा…


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गुझिया

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तब तक भाभी की आवाज आई- “अरे मैं थोड़ी गरम गरम पूड़ियां निकाल दे रही हूँ भैया को खिला दो ना। जब से आये हैं तुम लोग पीछे ही पड़ गई हो…”

चंदा भाभी अंदर किचेन में चली गईं लेकिन जाने के पहले गुड्डी से बोला- “हे सुन मैंने अभी गरम गरम गुझिया बनायी है। वो वाली (और फिर उन्होंने कुछ गुड्डी के कान में कहा और वो खिलखिला के हँस पड़ी), गुंजा से पूछ लेना अलग डब्बे में रखी है। जा…”

वो मुझे बगल के कमरे में ले गई और उसने बैठा दिया-


“हे कहाँ जा रही हो…” मैं फुसफुसा के बोला।

“तुम ना एकदम बेसबरे हो। पागल। अभी तो खुद भागे जा रहे थे और अभी। अरे बाबा बस अभी गई अभी आई। बस यहीं बैठो।"


उसने मेरी नाक पकड़कर हिला दिया और हिरणी की तरह उछलती 9-2-11 हो गई। मेरे तो पल काटे नहीं कट रहे थे। मैं दीवाल घड़ी के सेकेंड गिन रहा था।

पूरे चार मिनट बाद वो आई। एक बड़ी सी प्लेट में गुझिया लेकर। गरम गरम ताजी और खूब बड़ी-बड़ी गदराई सी। अबकी सोफे पे वो मुझसे एकदम सटकर बैठ गई। उसकी निगाहें दरवाजे पे लगी थी।

“लो…” मैंने हाथ बढ़ाया तो उसने मेरा हाथ रोक दिया। और अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाकर बोली-

“मेरे रहते तुम्हें हाथों का इश्तेमाल करना पड़े…”
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उसका द्विअर्थी डायलाग मैं समझ तो रहा था लेकिन मैंने भी मजे लेकर कहा-

“एकदम और वैसे भी इन हाथों के पास बहुत काम है…”

और मैंने उसे बाहों में भर लिया। बिना अपने को छुड़ाये वो मुश्कुराकर बोली-

“लालची बेसबरे।“

और अपने हाथ से एक गुझिया मेरे होंठों से लगा दिया। मैंने जोर से सिर हिलाया। वो समझ गई और बोली-
"तुम ना। नहीं सुधरने वाले


और गुझिया अपने रसीले होंठों में लगाकर मेरे मुँह में डाल दिया। मैंने आधा खाने की कोशिश की लेकिन उसकी जीभ ने पूरी की पूरी मुँह में धकेल दी।

“हे आधे की नहीं होती। पूरा अन्दर लेना होता है…” मुश्कुराकर वो बोली।

मेरा मुँह भरा था लेकिन मैं बोला- “हे अपनी बार मत भूल जाना मना मत करने लगना…”

“जैसे मेरे मना करने से मान ही जाओगे और जब पूरा मेरा है तो आधा क्यों लूंगी…”
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उसकी अंगुलिया अब मेरे पैंट के बल्ज पे थी। तम्बू पूरी तरह तन गया था। मेरे हाथ भी हिम्मत करके उसके उभारों की नाप जोख कर रहे थे।

“हे एक मेरी ओर से भी खिला देना…” किचेन से चन्दा भाभी की आवाज आई।

“एकदम…” गुड्डी बोली और दूसरी गुझिया भी मेरे मुँह में थी।
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गुड्डी ने बताया की चन्दा भाभी एकदम बिंदास हैं और उसकी सहेली की तरह भी। उनके पति दुबई में रहते हैं कभी दो-तीन साल में एक बार आते हैं लेकिन पैसा बहुत है। इनकी एक लड़की है गुंजा 9वीं में पढ़ती है। गुड्डी के ही स्कूल में ही।

“हे गुड्डी खाना ले जाओ या बातों से ही इनका पेट भर दोगी…” किचेन से उसकी मम्मी की आवाज आई।

“प्लानिंग तो इसकी यही लगती है…” हँसकर मैं भी बोला।

गुड्डी जब खाना लेकर आई तो पीछे से चन्दा भाभी की आवाज आई-

“अरे पाहुन खाना खा रहे हो और वो भी सूखे सूखे। ये कैसे?”

मैं समझ गया और बोला की अरे उसके बिना तो मैं खाना शुरू भी नहीं कर सकता।

“अरे इनकी बहनों का हाल जरा सुना दो कसकर…” भाभी बोली।

“क्या नाम है इनके माल का?” चन्दा भाभी ने पूछा। बिना नाम के गारी का मजा ही क्या?
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गुड्डी मेरे पास ही बैठी थी। उसने वहीं से हुंकार लगाई-

“मेरा ही नाम है। गुड्डी…”
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“आनंद की बहना बिकी कोई लेलो…” गाना शुरू हो गया था और इधर गुड्डी मुझे अपने हाथ से खिला रही थी।



अरे आनंद की बहिनी बिके कोई ले लो। अरे रूपये में ले लो अठन्नी में ले लो,

अरे गुड्डी रानी बिके कोई ले लो अरे अठन्नी में ले लो चवन्नी में ले लो

जियरा जर जाय मुफ्त में ले लो अरे आनंद की बहिनी बिकाई कोई ले लो।
 
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आनंद की बहिनी बिके कोई ले लो.

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“अरे इनकी बहनों का हाल जरा सुना दो कसकर…” भाभी बोली।

“क्या नाम है इनके माल का?” चन्दा भाभी ने पूछा। बिना नाम के गारी का मजा ही क्या?

गुड्डी मेरे पास ही बैठी थी। उसने वहीं से हुंकार लगाई- “मेरा ही नाम है। गुड्डी…”

“आनंद की बहना बिकी कोई लेलो…” गाना शुरू हो गया था और इधर गुड्डी मुझे अपने हाथ से खिला रही थी।




अरे आनंद की बहिनी बिके कोई ले लो। अरे रूपये में ले लो अठन्नी में ले लो,

अरे गुड्डी रानी बिके कोई ले लो अरे अठन्नी में ले लो चवन्नी में ले लो

जियरा जर जाय मुफ्त में ले लो अरे आनंद की बहिनी बिकाई कोई ले लो।



और अगला गाना चन्दा भाभी ने शुरू किया।
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मंदिर में घी के दिए जलें मंदिर में।

मैं तुमसे पूछूं हे देवर राजा, हे नंदोई भड़ुए। हे आनंद भड़ुए। तुम्हरी बहिनी का रोजगार कैसे चले

अरे तुम्हारी बहिनी का गुड्डी साल्ली का कारोबार कैसे चले।


अरे उसके जोबना का ब्योपार कैसे चले, मैं तुमसे पूछूं हे आनंद भड़ुए।



“क्यों मजा आ रहा है अपनी बहिन का हाल चाल सुनने में…” गुड्डी ने आँखें नचाकर मुझे छेड़ा।

“एकदम लेकिन घर चलो सूद समेत वसूलूँगा तुमसे…”

“वो तो मुझे मालूम है लेकिन डरती थोड़ी ना हूँ…” हँसकर मेरी बाहों से अपने को छुड़ाकर वो किचेन में चली गई।

गरमागरम पूड़ियां वो ले आई और बोली- “कैसा लगा मम्मी पूछ रही थी…”

मैं समझ गया वो किसके बारे में पूछ रही हैं। हँसकर मैंने कहा- “नमक थोड़ा कम था। मुझे थोड़ा और तीखा अच्छा लगता है…”

“अच्छा ज्यादा नमक पसंद है ना ऐसी मिर्चे लगेंगी की परपराते फिरोगे…”
गुड्डी आँख नचाते बोली
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चन्दा भाभी ने सुन लिया था और वहीं से उन्होंने जवाब दिया। और अगली गाली वास्तव में जबर्दस्त थी।




“मैं तुमसे पूछूँ आनंद साले। अरे तुम्हरी बहिनी के कित्ते द्वार।

आरी तुम्हरी बहिनी गुड्डी साल्ली है पक्की छिनार।

एक जाय आगे दूसर पिछवाड़े बचा नहीं कोई नौवा कहांर,




"क्यों, एक साथ दोनों ओर से?" गुड्डी ने मुश्कुराकर मुझसे पूछा।

उधर भाभी ने वहीं से आवाज लगाईं- “अरे मैं तो समझती थी की बिन्नो के सिर्फ देवरों को ही पिछवाड़े का शौक है तो क्या उसकी ननदों को भी…”

“एकदम साल्ली नम्बरी छिनार हैं…”

चन्दा भाभी ने जवाब दिया ओर अगला गाना, भाभी ने शुरू किया। मैंने खाना धीमे कर दिया था। गालियां वो भी भाभियों के मुँह से खूब मस्त लग रही थी।


कामदानी दुपट्टा हमारा है कामदानी।

आनंद की बहिना ने एक किया दू किया,

तुरक पठान किया पूरा हिन्दुस्तान किया

900 भड़ुए कालिनगंज (
मेरे घर का रेड लाईट एरिया) के

अरे 900 गदहे,एलवल के
(जिस मोहले में गुड्डी का घर था और उसकी गली में कुछ धोबी थे गली के बाहर गदहे बंधे रहते थे )


अरे गुड्डी रानी ने गुड्डी साल्ली ने एक किया दो किया,

हमारो भतार किया भतरो के सार किया।



भाभी, ( गुड्डी की मम्मी ) का गारियों का खजाना अथाह था और वो सब एक से एक और आज फगुनाहट कुछ ज्यादा ही चढ़ी थी उन पे।

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उन्होंने गाना खतम भी नहीं किया था की चन्दा भाभी शुरू हो गईं।



मैं तुमसे पूछी हे गुड्डी बहना रात की कमाई का मिललई,

अरे भैया चार आना गाल चुमाई का, आठ आना जुबना मिस्वाई का,

और एक रुपिया टांग उठवाई का।

लेकिन भाभी ( गुड्डी की मम्मी ) ने थोड़ा सा लेवल बढ़ाया और वो सिर्फ गुड्डी या बहनों पर लिमिट नहीं करती थीं अब चंदा भाभी सहायक भूमिका में थी, गुड्डी मेरे बगल में बैठे मेरे साथ सुन रही थी, और मुझे देख के मुस्करा रही थी,

आनंद भैया क बहिनी चढ़ गयी शहतूत
अरे गुड्डी छिनरो चढ़ गयी शहतूत , अरे अरे गुड्डी क उड़ गया स्कर्ट

अरे गुड्डी क उड़ गया स्कर्ट और दिख गयी चूत, अरे दिख गयी चूत

अरे आनंद भैया क अम्मा चढ़ गयी खजूर , अरे आनंद भैया क अम्मा चढ़ गयी खजूर ,

अरे आनंद भैया क महतारी चढ़ गयी खजूर , अरे उड़ गयी उनकी साड़ी अरे उलट गयी उनकी साड़ी

अरे उड़ गयी उनकी साड़ी अरे उलट गयी उनकी साड़ी और दिख गयी बुर, अरे दिख गयी बुर


तब तक गुड्डी माल पुआ लेकर आई- “एकदम तुम्हारे बहन के गाल जैसा है…”
 
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मिर्ची

“चल मेरे घोड़े चने के खेत में
चने के खेत में बोई थी घूंची, आनंद की बहना को गुड्डी को ले गया मोची,
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तब तक गुड्डी माल पुआ लेकर आई- “एकदम तुम्हारे बहन के गाल जैसा है…”
चन्दा भाभी वहीं से बोली- “कचकचोवा…”

मैंने गुड्डी से कहा ऐसे नहीं तो वो नासमझ पूछ बैठी कैसे। तो मैंने खींचकर उसे गोद में बैठा लिया ओर उसके होंठ पे हाथ लगाकर बोला ऐसे। वो ठसके से मेरी गोद में बैठकर मालपुआ अपने होंठों के बीच लेकर मुझे दे रही थी ओर जब मैंने उसके होंठों से होंठ सटाए तो वो नदीदी खुद गड़प कर गई।

चल तुझे अभी घोंटाता हूँ कहकर मैंने उसके होंठ काट लिए।

उय्यीई, उसने हल्की सी सिसकी ली ओर मुझे छेड़ा-

“हे है ना मेरी नामवाली के गाल जैसा। कभी काटा तो होगा…”
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“ना…” मैंने खाते हुए बोला।

“झूठे। चूमा चाटा तो होगा…”

“ना…”

“ये तो बहुत नाइंसाफी है। चल अबकी मैं होली में तो रहूँगी ना। उसका हाथ पैर बाँधकर सब कुछ कटवाऊँगी…”

और अबकी उसने मालपुआ अपने होंठों से पास करते, मेरे होंठ काट लिए।



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मुझे कुछ-कुछ हो रहा था इत्ती मस्ती खुमारी सी लग रही थी।

तभी चन्दा भाभी की आवाज आई- “अरे गुड्डी और मालपुआ ले जाओ ओर हाँ अपनी नामवाली के यार से पूछना की अब नमक तो ठीक है ना…”

“भाभी नमक तो ठीक है लेकिन मिर्ची थोड़ी कम है…” मैंने खुद जवाब दिया।

“तुमने अच्छे घर दावत दी…”

गुड्डी मुझसे बोलते, मुश्कुराते, मुझे दिखाकर अपने चूतड़ मटकाते किचेन की ओर गई ओर सच। अबकी चन्दा भाभी की आवाज खूब ठसके से जोरदार।


“चल मेरे घोड़े चने के खेत में चने के खेत में,

चने के खेत में बोई थी घूंची, आनंद की बहना को गुड्डी छिनार को ले गया मोची,

दबावे दोनों चूची चने के खेत में। चने के खेत में,

चने के खेत में पड़ी थी राई। चने के खेत में।

आनंद साले की बहना को गुड्डी छिनार को ले गया मेरा भाई,

कसकर करे चुदाई चने के खेत में, चने के खेत में।


और अब भाभी गुड्डी की मम्मी जोश में आ गयी और अब वो खूब टनकदार आवाज में गा रही थीं और चंदा भाभी उनका साथ दे रही थीं,

चने के खेत में, हो चने के खेत में पड़ा था पगहा, चने के खेत में पड़ा था पगहा

गुड्डी रंडी को, गुड्डी भाई चोद को ले गया, अरे ले गया, गदहा चने के खेत में

अरे चोद रहा , अरे आनंद भैया की बहिनी को चोद रहा गदहा चने के खेत में

अरे चने के खेत में चने के खेत में पड़ा था रोड़ा,

आनंद भैया की अम्मा को ले गया घोड़ा, चने के खेत में, चने के खेत में।

आनंद भैया की महतारी को ले गया घोड़ा, चने के खेत में, चने के खेत में।

घोंट रही लौड़ा, चने के खेत में।

अरे आनंद भैया की महतारी घोंट रही लौड़ा, चने के खेत में।


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“तो क्या गदहे घोड़े से भी?”

चन्दा भाभी ने वहीं से मुझसे पूछा- “बड़ी ताकत है तोहरी बहन महतारी में भैया …”

और यहाँ गुड्डी पूरी तरह पाला पार कर गई थी। बैठी मेरे पास थी लेकिन साथ। वहीं से उसने और आग लगाईं।

“अरे उसकी गली के बाहर दस बारह गदहे हरदम बंधे रहते हैं ना विश्वास हो तो उनके भैया बैठे हैं पूछ लीजिये…”

“क्यों?” चन्दा भाभी ने हँसकर पूछा और छेड़ा “तब तो तुम्हारा प्लान सही था उसको दालमंडी लाने का। दिन रात चलती उसको मजा मिलता और तुमको पैसा। क्यों है ना?”
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तब तक उस दुष्ट ने दही बड़े में ढेर सारी मिर्चे डालकर मेरी मुँह में डाल दी। मैं चन्दा भाभी की बात सुनने में लागा था। इत्ती जोर की मिर्च लगी की मैं बड़ी जोर से चिल्लाया पानी।

“अरे एक गाने में ही मिर्च लग गई क्या?” हँसकर चंदा भाभी ने पूछा।

“ऊपर लगी की नीचे?” भाभी क्यों पीछे रहती।

“अरे साफ-साफ क्यों नहीं पूछती की गाण्ड में मिर्च तो नहीं लग गई…” चन्दा भाभी भी ना।

पानी तो था लेकिन उस रस नयनी के हाथ में ओर वह कभी उसे अपने गोरे गालों पे लगाकर मुझे ललचाती कभी अपने किशोर उभारों पे। मुझसे दूर खड़ी-

“चाहिए क्या?” आँखें नचाकर हल्के से वो बोली।

“ऐसे मत देना सब कुछ कबूल करवा लेना पहले…” चन्दा भाभी वहीं से बोली।

“जरा गंगाजी वाला तो सुना दो इनको…” भाभी ने चंदा भाभी से कहा।

गुड्डी अब पास आकर बैठ गई थी लेकिन ग्लास वाला हाथ अभी भी दूर था- “बड़े प्यासे हो…” वो ललचा रही थी, तड़पा रही थी।

“हाँ…” मैंने उसी तरह हल्के से कहा।

“किस चीज की प्यास लगी है?” गुड्डी ने आँख नचाकर ग्लास अपने सीने से लगाकर, आती हुई अमिया को दबाकर ललचाते पूछा।
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“तुम्हारी…”

उसने ग्लास से एक बड़ा सा घूँट लिया। और ग्लास अपने हाथ से मेरे होंठों से लगा दिया। हँसकर वो बोली, जूठा पीने से प्यार बढ़ता है, और मेरे हाथ से ग्लास लेकर बाकी बचा पानी पी गई।

“कब बुझेगी प्यास?” मैंने बेसब्र होकर उसके कानों में हल्के से पूछा।

“बहुत जल्द। कल। अभी मेरी पांच दिन की छुट्टी चल रही है। कल आखिरी दिन है…” और वो ग्लास लेकर बाहर चली गई।
 
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थोड़ा सा फ्लैश बैक

गुड्डी और भाभी ( गुड्डी की मम्मी )

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भाभी मेरा मतलब गुड्डी की मम्मी की टनकदार आवाज में गारी सुनते सुनते मैं एकदम फ्लैश बैक में चला गया,

भैया की शादी,.... बताया तो था इन्ही के बड़े से घर, गुड्डी की मम्मी के घर से शादी हुयी थी, तीन दिन की गाँव की बारात, आम की बाग़ में तम्बू में टिकी, ... और सब रस्म रिवाज और कोई रस्म नहीं जिसमे माँ बहीन खुल्लम खुल्ला न गरियाई जाएँ,... मैंने उसी साल इंटर का इम्तहान दिया था,... हाँ घर से मुझे समझा बुझा के भेजा गया था, गाँव की शादी है खूब गारी वारी सुननी पड़ेगी, खुल्ल्म खुल्ला मजाक होगा, एकदम बुरा मत मानना, ...

शादी के अगले दिन कलेवा होता है, ...

लड़का, सहबाला यानी मैं और दो चार कुंवारे लड़के और दूल्हे से कम उम्र के,... और न लड़के की ओर का कोई रहता न न लड़की की ओर का कोई मर्द, ... खाली साली सलहज, घर गाँव की औरतें, हाँ नाऊ जरूर साथ रहता है दूल्हे के पीछे बैठा, अंगोछा लेकर तैयार। सब साली सलहज एक एक करके कभी साथ साथ मिलती हैं, किसी ने सिन्दूर लगा दिया बाल में, किसी ने काजल, किसी ने पाउडर मुंह पे पोत दिया तो नाऊ बिना कुछ बोले अंगोछे से पोछ देता है फिर अगली साली, सलहज वही हरकत करती है और घंटो चलता है ये,....

और उसी समय भाभी, गुड्डी की मम्मी से पहला सामना हुआ।

देखा तो पहले भी था, पहचानता था, रात भर उनकी टनकदार आवाज में एक से एक गारी भी सुनी थी, मंडप में बैठ के। ढोलक बजा बजा के गारी गा रही थीं सब बरातीयो का नाम ले ले कर यहाँ तक की नाऊ, पंडित को भी नहीं छोड़ा उन्होंने, लेकिन ३० % गारियाँ मुझे ही पड़ रही थीं, एक तो सहबाला, दूल्हे का एकलौता भाई, छोटा और दूसरे थोड़ा लजाता, झिझकता भी ज्यादा था।


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लेकिन जो कहते हैं न वन टू वन वो उसी समय, एकदम पास से पहली बार देखा था और देखता रह गया. खूब भरी देह, गोरी जबरदस्त, मुंह में पान, होंठ खूब लाल, बड़े बड़े झुमके, और कोहनी तक लाल लाल चूड़ियां गोरे हाथों में, और खूब टाइट चोली कट ब्लाउज, जो नीचे से उभारों को उभारे और साइड से कस के दबोचे, और खूब लो कट, स्लीवलेस, मांसल गोरी गोलाइयाँ तो झलक ही रही थीं घाटी भी अंदर तक, और साड़ी प्याजी रंग की एकदम झलकौवा, ....
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मैं देखता रहा गया और वो भी समझ गयी थी मेरी हालत, इंटर विंटर की उमर में तो बहुत जल्द हालत खराब हो जाती है,...

लेकिन मुझे होश तब आया जब उन्होंने मेरे कायदे से कढ़े बाल हाथ लगा के बिगाड़ दिए और जोर से चिढ़ाया, उनके साथ कोई लड़की, भाभी की की कोई सहेली और एक दो औरतें और थीं और चिढ़ाते हुए बोलीं,

" तोहार महतारी बाल भी ठीक से नहीं काढ़ी, ... अइसन जल्दी थी आपन तो खूब सिंगार पटार कर के,... बारात जाए तो अपने यारों को बुलाय के चक्की चलवाएंगी अपनी, आठ दस मरद तो चढ़ ही चुके होंगे रात में,... लौट के जाना तो खोल के देखना, बुलबुल ने कितना चारा खाया, सफ़ेद परनाला बह रहा होगा "

( उस समय रिवाज था अभी गाँव में बहुत जगह, बरात में लड़कियां औरतें नहीं जाती थीं और बरात जाने के बाद घर में औरतों का राज, रात भर रतजगा, नटका, और खूब मस्ती होती थी, हाँ दूर दूर तक कोई आदमी क्या बच्चा भी नहीं रहता था )


और जब तक मैं समझूं उनकी बदमाशी, उन्होंने कंघी लेकर मेरा बाल फिर से काढ़ दिया और सीधी मांग निकाल दी, औरतों की तरह,... फिर शीशा दिखा के बोलीं ,

"अब अच्छा लग रहा हैं न, ऐसे रखा करो, अइसन गौर चिक्क्न मुंह पे यही निक लगता है,... "

और बाकायदा एक सिन्दूर की डिबिया निकाल के खूब ढेर सारा सिन्दूर मेरी मांग में भर दिया
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और थोड़ा सा नाक पे गिरा तो बोलीं,

" सास तोहार खूब प्यार दुलार करेगी तोहसे, नाक पे सिन्दूर गिरना शुभ होता है, "
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लेकिन जो बात मैं कहना चाहता था वो जो लड़की साथ में थी ( बाद में नाम पता चला रमा, भाभी की सहेली भी, मौसेरी बहन भी, भाभी से दो साल छोटी, अभी बीए में गयी थी ) उसने कह दी, कौन ननद मौका छोड़ेगी भौजाई को छेडने का , मुस्करा के मेरी आँख में आँख डाल के भाभी से, गुड्डी की मम्मी से बोली,

" भौजी, सिन्दूर दान तो हो गया अब सुहाग रात,.... "
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; " अरे ननद भी हैं ननदोई भी मना लो न, " उन्होंने अपनी ननद को छेड़ा और मुझसे पूछा

" क्यों भैया खड़ा वड़ा होता है, टनटनाता है का "

और फिर पता नहीं जान बुझ के या वैसे ही, वो झुकीं और आँचल एकदम नीचे, और उस लो कट चोली से मांसल गोलाई गदरायी, और पूरी गहरी घाटी और उससे बढ़ के कंचे के बराबर एकदम टनटनाये खड़े खड़े निपल, साफ़ दिख रहे थे,
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खड़ा तो होना था , लेकिन मैंने चड्ढी का कवच ओढ़ रखा था पैंट के नीचे पर भाभी की कुशल उँगलियाँ, कुछ देर तो उन्होंने हथेली से पैंट के ऊपर रगड़ा, और फिर अंगूठे और तर्जनी से पकड़ के चड्ढी को सिकोड़ दिया। सांप का सर बाहर, अब खाली पैंट के नीचे तो एकदम साफ़ साफ़ दिख रहा था. भाभी ने अंगूठे और तर्जनी से उसे चार पांच बार रगड़ा और वो फुफकारने लगा,


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बस उन्होंने अपनी ननद रमा को छेड़ा,

" देखो बिन्नो तुमसे सुहागरात के लिए एकदम तैयार है। तोहरी दीदी की झिल्ली तो कल खुली तू आज ही करवा लो,... "

लेकिन रमा एकदम नहीं शरमाई

और हाँ भौजी ( गुड्डी की मम्मी ) ने अपना आँचल ठीक भी नहीं किया, बस एकदम मुझसे सट के, उन्हें अपने गद्दर जोबन का असर मालूम पड़ गया था,

दोनों जोबन एकदम मेरे सीने से सटा के, अपनी बड़ी सी अठन्नी की साइज की लाल लाल टिकुली अपनी माथे से निकाल के मेरे माथे पे पे चिपका दी, और वार्निंग भी दे दी,

"खबरदार अपनी महतारी के भतार, अगर इसे उतारा कल बिदाई के पहले, सुहाग क निशानी है। "

और जोबन से खूब जोर से धक्का दिया, और हलके से बोलीं,

" अरे मालूम है मुझे इसका असर, बहुत टनटना रहा है, पहला पानी इसी में दबा के रगड़ रगड़ के निकालूंगी, फिर अंजुरी में भर के तोहिं को पिलाऊंगी , ऐसी गरमी लगेगी, सीधे अपनी महतारी के भोसड़े में जाके डुबकी मारोगे तभी गरमी शांत होगी "

--
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बोली तो वो हलके से थीं लेकिन रमा, उनके साथ की महिला और आस पास वाली औरतें साफ़ साफ़ सुन रही थीं मुस्करा रही थीं।

और उन्होंने जो दूसरा धक्का जोबन से मारा तो बस मैं लुढ़कते लुढ़कते बचा, और मेरे मुंह से निकल गया,...

" अरे भौजी गिर जाऊँगा,... "

" इतनी जल्दी गिर जाओगे भैया तो हमरे ननद का काम कैसे चलेगा,... "

--
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भाभी, गुड्डी की मम्मी के साथ वाली महिला, ने चिढ़ाया,, उसी समय पता चला की उनका नाम विमला है , वो भी गुड्डी की मम्मी की देवरानी हैं उसी पट्टी की, दो साल पहले ही गौना हुआ था।

भाभी, मेरी आँखों में काजल लगाने में बिजी थीं और अब मैं उन्हें धक्का देके बचने में, बस भाभी ने रमा की ओर देखा वो शलवार कुर्ते में दुपट्टा तीन तह में करके उभारों को छुपाये, ... एक तीर से उन्होंने दो शिकार किया, पहले तो अपनी ननद और देवरानी से बोला,

" रमा, विमला ज़रा पकड़ इन्हे, जउन गाय पहले पहले दूध देती हैं न उसका हाथ गोड़ छानना पड़ता है "

और जब तक मैं समझूं समझूं, भाभी ने मेरे दोनों हाथ पीछे कर के रमा के दुप्पटे से बाँध दिए। एक तो मेरे हाथ बंध गए, ... दूसरे रमा का दुपट्टा अब उसके कुर्ते को फाड़ते उभार साफ़ साफ़ दिख रहे थे चोंच भी।

भाभी ने एक बार फिर से काजल लगाया और आगे का काम रमा के हवाले कर दिया, वो लिपस्टिक लेके पहले से ही तैयार थी, क्या कोई ब्यूटी पार्लर वाली करेगी,... आराम से धीरे धीरे,... मेरे हाथ तो बंध ही गए थे, नाऊ दूल्हे की रक्षा करने में लगा था,...

गुड्डी भी पास खड़ी खेल तमाशा देख रही थी, खिस खिस कर रही थी, उसकी मम्मी ने मेरे जूते की ओर इशारा किया, ...

" अरे कल दूल्हे की जूते की चुराई में तोहरे भाइयों क गाँव क लड़कों क इतना फायदा होगया था, तो का पता सहबाला के जूते की चुराई में कुछ मिल जाए,...


" एकदम मम्मी " कह के वो आज्ञाकारी पुत्री चालू हो गयी, ...

--

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( कल रात में जब साढ़े तीन चार बजे शादी ख़तम हुयी तो कोहबर की छेंकाई में, जूता चुराई में और जूता चुराने के अभियान में यही रमा थी और साथ में गुड्डी, ... जूता वापस करने के नेग में लड़कियों ने साफ़ साफ़ कह दिया, हम पैसा वैसा नहीं लेंगे, ... बस दूल्हा आपन बहिन दे दें,...

इशारे पर मेरी कजिन थी वही एलवल वाली,


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और सबसे ज्यादा शोर रमा और गुड्डी मचा रही थीं एक एक जूते हाथ में ले के, दूल्हे अपनी बहना दो, दूल्हे अपनी बहना दो, ...

मामला अटक गया था और डेडलॉक तोडा मेरी कजिन ने ही, वही बोली, भईया हाँ कर दीजिये, दे दीजिये, देख लूंगी स्सालो को, ...

रमा ने चिढ़ाया, नाड़ा बाँध नहीं पाओगी , तीन दिन तक, एक आएगा दूसरा जाएगा,...
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लेकिन मेरी कजिन भी कम नहीं थी बोली, अरे स्सालो की बहिन ले जा रही हूँ हरदम के लिए, तो बेचारों को आंसू पोछने के लिए , मंजूर है.... तो भाभी वही कह रही थी।

हाँ उसी दिन से गुड्डी और मेरी कजिन की पक्की दोस्ती भी हो गयी ).

गुड्डी ने जूते मोज़े खोले तो विमला भाभी पैरों में जैसे गाँव में गौने जाने वाली दुल्हिन को नाउन महावर लगाती है, वो चालू हो गयीं।
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और भाभी आगे का प्लान बना रही थीं, विमला भाभी और रमा से,... मिलकर
" हे साड़ी साया तो मेरा आ जाएगा लेकिन ब्लाउज, मेरा तो ढीला होगा "

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" अरे ब्लाउज का कौन जरूरत है, बॉडी पहना देंगे, ... बबुआ क बहिन महतारी तो जोबन उघाड़े घूमती है दबवाती मिसवाती " विमला भौजी, गुड्डी की मम्मी से एकदम कम नहीं थी

और बिना उनकी बात पूरी हुए, भाभी ने मुझसे पूछ लिया, बनियान कौन नंबर की पहनते हो, ३२ की ३४ और जैसे मैंने जवाब दिया भाभी तुरंत अपनी ननद रमा से बोली,

" अरे बिन्नो ये तो तोहार साइज है बस आपन बॉडी पहराय दा "

रमा लिपस्टिक लगा चुकी थी, मेरे हाथ अब खुल गए थे लेकिन एक हाथ रमा ने पकड़ रखा था नेल पालिश लगा रही थी दूसरा हाथ गुड्डी को पकड़ा दिया था नेल पालिश लगाने के लिए। रमा बोली, एकदम भौजी, सिंगार दुल्हिन का कर दें फिर लाती हूँ, ... लेकिन दुल्हिन क सिंगार कर रहे हैं तो दुलहिन क

" काम भी करना पडेगा,...एकदम बिन्नो अब सिन्दूर दान हो गया है तो " भाभी बोलीं फिर तोप का रुख मेरी ओर मोड़ दिया,


" और यह मत कहना की डालेगा कौन, जो एक दिन सिन्दूर डालता है वही अगले दिन टांग उठा के, निहुरा के डालता है, ... एकदम गोर चिक्क्न हो, मखमल ऐसे गाल "

मेरा गाल सहला के बोली, फिर जोड़ा,

" कउनो लौंडिया से ज्यादा नमकीन हो एक बार साडी साया पहना देंगे तो कोई कह नहीं सकता है, ये बताओ गांड मरवाये हो की नहीं, अइसन चिक्क्न माल, लौण्डेबाज सब बिना गांड मारे छोड़े थोड़े होंगे, सट्ट से जाएगा। "

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मेरे मुंह से नहीं अनजाने में निकल गया फिर तो दोनों भाभियाँ, पहले विमला भाभी

" अरे बिन्नो की ससुराल में सब गंडुए है या भंडुए है गाँड़ क्या मारेंगे "

कल रात गारी गाते समय जब भी मेरा नाम आता था , यही भाभी, बाद में सब भाभियाँ,...


" बिन्नो का देवर गंडुआ है, अरे दूल्हे का भाई भंडुआ है, अपनी महतारी का भंडुआ है अपनी बहिनिया का भंडुआ है।"

और पुराने में ( गाने में, खास तौर से गारी गाने में मुख्य गाने वाली एक लाइन गाती थीं, और बाकी उसे दुहराती थीं, कई बार आधी लाइन पूरी भी करती थीं ) सिर्फ औरते ही नहीं गुड्डी और उसकी सहेलियां भी और जोर से मुझे दिखा दिखा के ,

" दूल्हे का भाई गंडुआ है , अपनी महतारी क भंडुआ है "

लेकिन भाभी, गुड्डी की मम्मी विमला भाभी की बात में बात जोड़ते बोलीं,

" अरे तोहरे महतारी क गदहन से चोदवाउ, उनके भोंसडे में हमरे गाँव क कुल लौंडे डुबकी लगाएं , ... रोज तो तोहार बहिन महतारी मोट मोट लौंड़ा घोंटती है और तोहार अभी फटी नहीं,... "

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रमा और गुड्डी नेल पालिश लगाते हुए खिस खिस कर रही थीं, मुझे देख के चिढ़ा रही थीं, तभी विमला भौजी, भाभी से बोलीं

" अरे आम का अचार वाला तेल लगा के डालियेगा, सट्ट से चला जाएगा "

--
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मेरी आम की चिढ वाली बात भाभी के गाँव वालों की भी मालूम हो गयी थी। बात बदलने के लिए मुझे कुछ बोलना था, बस मैंने गुड्डी की ओर देखते हुए बात बदलने की कोशिश की।

नेलपॉलिश लगाती गुड्डी की ओर देख के मैं बोला,

" कल गुड्डी का डांस बहुत अच्छा था, .... " लेकिन जो जवाब गुड्डी की मम्मी ने दिया मैं सोच नहीं सकता था,

" बियाह करोगे इससे " वो सीरियस हो के बोली,
 
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यादों की झुरमुट से

गुड्डी

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बात बदलने के लिए मुझे कुछ बोलना था, बस मैंने गुड्डी की ओर देखते हुए बात बदलने की कोशिश की।

नेलपॉलिश लगाती गुड्डी की ओर देख के मैं बोला,

" कल गुड्डी का डांस बहुत अच्छा था, .... " लेकिन जो जवाब गुड्डी की मम्मी ने दिया मैं सोच नहीं सकता था,

" बियाह करोगे इससे " वो सीरियस हो के बोली,

और मैं लजा गया, जैसे मेरे चेहरे पर किसी ने ईंगुर पोत दिया हो एकदम पलके झुकी।

" काहें तुम्ही कह रहे हो, डांस अच्छा करती है , कल गाना भी सुन लिया होगा तुम्हारी बहिन महतारी सब का हाल, .... "

भाभी ( गुड्डी की मम्मी ) मेरी ठुड्डी पकड़ कर चेहरा उठा के गाल सहलाते हुए आँख में आँख डाल के पूछीं।
--

--
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मेरी आँखे झुकी लाज से मेरी हालत खराब,

अब सब लोग एक साथ हँसे, भाभी ( गुड्डी की मम्मी ), विमला भाभी, रमा सब,... खिलखिला रही थी विमला भौजी बोलीं

" इतना तो लड़किया नहीं लजाती शादी की बात पे जितना भैया तुम लजा रहे हो, ... गौने क दुल्हिन झूठ "
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अब मैं समझा सब मिल के मुझे चिढ़ा रही थीं


लेकिन तब तक भाभी ( गुड्डी की मम्मी ) ने गुड्डी से पूछ लिया

" बोलो पसंद है, करा दूँ शादी। "

नेलपॉलिश तो कब की गुड्डी लगा चुकी थी, अनजाने में उसने कस के मेरा हाथ हल्के से दबा दिया लेकिन मेरी तरह से वो लजा नहीं रही थी, खुल के मुझे देख रही थी.

मजाक में गाँव में शादी के माहौल में कोई किसी को छोड़ता नहीं न रिश्ता न उम्र देखी जाती है।

" बोलो, ठीक से देख लो अगर पंसद हो बस हाँ बोल दो " भाभी गुड्डी के पीछे पड़ गयी।

रमा ने धीरे से गुड्डी को चिकोटी काटते चिढ़ाया हलके से

" अरे औजार भी बढ़िया लग रहा है, चेक कर ले . हाँ कर दे, माल एकदम सही लग रहा है। लगता है नथ अभी उतरी नहीं है बेचारे की"
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अब गुड्डी के शर्माने की बारी थी, ... पर भाभी ( गुड्डी की मम्मी )एकदम उसके पीछे पड़ी थी, चिढ़ाते बोलीं,




अरे आज शादी थोड़ी कर देंगे , बस यही मंडप में आज सगाई हो जायेगी, सब लोग हैं भी,... शादी तो तीन चार साल बाद,... पढ़ाई वढ़ाई हो जाए,... "

और फिर मेरे ऊपर चालू हो गयीं,

" घबड़ा मत,.. मैं हूँ न तबतक हमसे काम चलाना, सिखाय पढाय के पक्का कर दूंगी, जो लजाते हो न इतना "




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लेकिन उनकी बात काट के रमा उनकी ननद ने चिढ़ाया ,
" अरे भौजी, गुड्डी का तो बहाना है, चिक्क्न माल देख के भौजी तोहार मन डोल गया है "

विमला भौजी, मेरे पीछे,

"अरे भैया अस मौका नहीं मिलेगा, ... दुल्हिन भी दुल्हिन क महतारी भी, थोड़ी बहुत मेनहत कर दो अभी दो साली हैं नौ महीने बाद एक साली और ,"

लेकिन भाभी ने तुरंत खंडन किया, " अरे नहीं भैया ओकर कउनो डर नहीं छुटकी के बाद ही आपरेशन करवा ली थी मैं, न रोज रोज गोली का चक्कर न रबड़ का तो बोलो, ...

गुड्डी ने एक बार आंख उठा के देखा मेरी ओर और मेरी हालत खराब,.... और उस सारंग नयनी ने
पलक बंद कर ली, ये सिर्फ मैंने देखा और गुड्डी ने,...
 
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रसगुल्ला
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गुड्डी ने एक बार आंख उठा के देखा मेरी ओर और मेरी हालत खराब,.... और उस सारंग नयनी ने पलक बंद कर ली, ये सिर्फ मैंने देखा और गुड्डी ने,...

गुड्डी से नैन मटक्का या जो कहिये बरात पहुँचते ही शुरू हो गया था. हाईस्कूल इंटर में एक शौक होता है अलग दिखने का, ... और तरीके भी सब लड़कों के अलग अलग,... और गाँव की बारात बाग़ में टिकी, लेकिन मैं एक मोटी सी अंग्रेजी की किताब, ... कुछ घराती साइड की लड़कियां आयी थीं,... अक्सर मोटी किताब का इस्तेमाल उसके अंदर मस्तराम छुपा के पढ़ने के लिए होता था, लेकिन आज मैं शायद इम्प्रेस करने के चक्कर में, बिना ये समझे की यहाँ इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला था, ...

तभी गुड्डी आयी, जहाँ मैं सबसे अलग थलग, अकेला उस किताब की आड़ में बैठा था। वो तिलक में भी आयी थी मेरे यहाँ तो पहचानता था ही, शादी में जैसे लड़कियां सजती हैं, मेकअप, चोली और लहंगे में,... और गुड्डी अपनी उमर वालियों से थोड़ी ज्यादा ही मेच्योर थी, टीनेज की पायदान पर कदम रख चुकी थी और उसके साथ दो तीन सहेलियां,

" रसगुल्ला " आँख नचा के गुड्डी ने उकसाया।

" नहीं नहीं मुझे नहीं खाना " मैंने फिर झूठ मूठ किताब पढ़ने का नाटक किया,... और उसके किताब खींच के दूर फेंक दिया और बोली

" तो मत खाइये, लेकिन चलिए मुझे खिला दीजिये, " जिस तरह से मुस्करा के आँख नचा के वो बोली,... मैंने एक रसगुल्ला उसके मुंह में लेकिन वो बदमाश हलके से उसने काट लिया। और रसगुल्ला पूरा गप्प। और मेरी कलाई पकड़ के ऊँगली में लगे शीरे को पकड़ के चाट गयी और मेरे मन में न जाने कौन कौन से सीन छा गए, फिर उसने बोला,... अब आप


" नहीं नहीं मैंने मना कर दिया " सर हिला के मैं बोली। अब उसकी सब सहेलियां मेरे और गुड्डी के बीच चल रही मजेदार खींच तान देख रही थी।

" तो मत खाइये न कौन खिला रहा है , चिढ़ा के वो बोली, फिर मुस्करा के कहा

" अच्छा मुंह खोल के एक बार बस दिखा दीजिये मेरी एक सहेली से शर्त लगी है आपके अभी भी दूध के दांत है , प्लीज। "



और मैंने मुंह खोल दिया खूब बड़ा सा, और गप्प से रसगुल्ला अंदर ,

मान गया मैं उसको और ऊपर से उसकी चिढ़ाती आँखे और शैतान मुस्कान फिर वो डायलॉग, एकदम डबल मीनिंग वाला, " देखा, गया न पूरा अंदर "

और हाथ में लगा सब शीरा मेरे गाल पे पोत दिया और बोली, " अपनी बहिनिया से चटवा लेना, साफ़ कर देंगी अच्छी तरह से "

और जब तक मैं कुछ बोलूं वो ये जा वो जा,...



उस जमाने में शाम को द्वारपूजा लग जाता था और बराती डांस वांस तो करते नहीं थे, तो जब हम लोग पहुंचे, ...द्वारपूजे के पहले, गुड्डी का डांस था,

मैं दूसरे तीसरी लाइन में खड़ा लेकिन चारो और देख के उसकी निगाह ने मुझे ढूंढ ही लिया, हलके से मुस्करायी और म्यूजिक शुरू हुआ,...

और जैसे ही गाने के साथ उसने डांस करना शुरू किया,... क्या कोई प्रोफेशनल डांसर करेगी,...



आ.. आ.. आ.. आ.. गोरी हैं कलाइयां

तू ला दे मुझे हरी-हरी चूड़ियाँ

गोरी हैं कलाइयां

तू ला दे मुझे हरी-हरी चूड़ियाँ

अपना बना ले मुझे बालमा




जिस तरह वो दोनों हाथों की चूड़ियां आपस में बजा के दिखा दिखा के कहती लग रहा था जैसे मुझ से ही कह रही हो,...

मेरा बनके तू जो पिया साथ चलेगा

जो भी देखेगा वो हाथ मलेगा

मेरा बनके तू जो पिया साथ चलेगा

जो भी देखेगा वो हाथ मलेगा, ....



स्टेज के किसी कोने में वो होती लेकिन आँख उसकी बस मेरे पास,... और उसके बाद म्यूजिक बदली,...

मेरे हाथों में नौ नौ चुडिया



और जब वो लाइन आयी

मेरे दर्जी से आज मेरी जंग हो गई ,
कल चोली सिलाई आज तंग हो गई


जिस तरह से उसने अपने छोटे छोटे आते उभरते जोबन उभारे, और एक बार मुझे दिखा के,

मेरी हालत खराब, डांस के बाद सब लोग इतनी तारीफ़ लेकिन मेरे तो बोल नहीं फूट रहे थे, वो दिखी, उसने मुझे देखा तो मैं तो उस हालत में जैसे किसी ने जादू की मूठ मार दी हो, न हिल सकता हो न डुल सकता हो, ... मेरे बिन बोले वो मेरी हालत समझ गयी, मुस्करायी और अपनी सहेलियों के झुण्ड के साथ अंदर, थोड़ी देर में द्वारपूजा शुरू होने वाला था,...
द्वारपूजा के ठीक पहले जब दुलहा आता है दुल्हन और उसकी सहेलियां छत पर से, बीड़ा मारती हैं। सबसे पहले दुल्हन, पान का एक बीड़ा जिसमे अक्षत रहता है और कहते हैं की अगर बीड़ा सही लगा तो फिर दूल्हे पर दुल्हन का राज रहता है,... और फिर सहेलियां भी,...

मैं सहबाला था तो दूल्हे के साथ ही एकदम चिपका और मेरी निगाहें छत पर, पहले तो भाभी की एक झलक पाने के लिए लेकिन उससे ज्यादा किसी और की,... भाभी तो थोड़ी सी दिखीं, सहेलियों के झुण्ड में छिपी, पीछे नाउन उन्हें पकडे, और जैसे ही उन्होंने बीड़ा मारा, ...

उसके पहले ही बादलों में बिजली सी वो भी दिखी, और भाभी का हाथ उठा, उसके साथ ही उसका भी,...

भाभी का बीड़ा तो लगा सही, लेकिन उसका एकदम सीधे मेरे सीने पर और मैंने पकड़ लिया, सम्हाल कर रख लिया। बीड़ा मारने के बाद नाउन और सहेलियां, तुरंत दुल्हन को हटा लेती हैं, लेकिन वो थोड़ी देर तक वहीं और उसके साथ मेरी निगाहें भी,

द्वारपूजे के बाद जब वो दिखी, तो मैंने बस इतना कहा की तुम्हारा निशाना एकदम सही लगा,

वो मुस्करायी और बस बोली की लेकिन कुछ लोग ऐसे बुद्धू होते हैं जिनका निशाना लग भी जाता है उन्हें पता नहीं चलता।

बाद में समझा मैं उसकी बात का मतलब,...

लेकिन मैंने तय कर लिया था जाने के पहले उससे कह दूंगा अपनी बात। और वो विदाई के समय मिली,...

और मैंने वो बीड़ा अक्षत दिखाया, उसने मुस्करा के पूछा, .. अब तक सम्हाल के रखे हो, कब तक रखोगे। हिम्मत कर के जो मैंने दस बार रिहर्सल किया था बोल दिया,

"जब तुम दुबारा इसी छत से बीड़ा मारोगी तब तक,...."

वो ज्यादा समझदार थी मुझसे, बोली,... ज्यादा सपने नहीं देखने चाहिए, बाद में तकलीफ होती है।

और बात उसकी सही थी, शादी ब्याह में इस तरह की मुलाकात, दोस्ती, अक्सर कुछ दिनों में धुंधला जाती है ,और बाद में जैसे किताबों में रखे फूल कुछ बातें याद दिला देते हैं उसी तरह से, ...



लेकिन गुड्डी, गुड्डी थी।


भाभी की चौथी में वो आयी। चौथी में अक्सर दुल्हन के मायके से लड़के आते हैं है लेकिन वो आयी, उसके बाद ६ महीने आठ महीने कोई छुट्टी हो,... बेल सूखी नहीं आगे बढ़ती रही, लेकिन हर बार पहल उसी ने की,...

और मैं भी कभी सेलेक्शन के लिए कभी इंटरव्यू तो कभी किसी काम से कहीं जाता, ट्रेन तो बनारस से ही पकड़नी पड़ती,... और बनारस जाऊं और सिगरा भाभी के याहं न जाऊं,... और उनके यहां जाने का मतलब खाना खाना और भाभी हो, गुड्डी की मम्मी तो बिना गारी सुने, और वो किसी को नहीं छोड़ती थीं, न जाओ तो डांट जबरदस्त पड़ती थी गुड्डी की भी भाभी की भी और जाओ तो बिना खाना खाये,... और जरा भी नखड़ा किये तो भाभी अपनी स्टाइल में, और अब मैं गुड्डी और भाभी के लिए गुलाब जामुन ले जाता तो उसकी दोनों छोटी बहनों के लिए चॉकलेट,


लेकिन भाभी, गुड्डी की मम्मी सिर्फ मज़ाक, छेड़खानी ही नहीं ख्याल भी बहुत करती थीं हालांकि उसमे भी मजाक का कोई मौका वो छोड़ती नहीं थी

जब मेरा सेलेक्शन हुआ तो मुझसे ज्यादा भाभी खुश थी और उनके बराबर ही उनकी भाभी यानि गुड्डी की मम्मी भी. बताया तो था की भाभी ने गंगा जी की आर पार की चुनरी मानी थी, तो मैं और भाभी मनौती पूरी होने पर गए गुड्डी के यहाँ रुके, और गंगा जी फिर चुनरी चढाने,... मैं भाभी, गुड्डी और भाभी यानि गुड्डी की मम्मी। उसके बाद पता चला की भाभी ( गुड्डी की मम्मी ) ने भी एक दर्जन मंदिर में मेरे लिए मनौती मानी थी और फिर हम चारो उन सब मंदिरो पे, भाभी ने अपनी भाभी से पूछा,

" भौजी ये मनौती पूरा होने पे का मानी थी "

वो बड़ी सीरियसली बोलीं, " अरे बिन्नो तोहरे सास और इनके महतारी के लिए बहुत फायदा है, हम माने थे की भैया की नौकरी लग जायेगी बनारस क सौ पंडा इनकी महतारी के ऊपर चढ़ाइब,.... तो बस अब पूजा आज हो गयी तो बस वही एक चीज बाकी है, तो उनको भेज देना दस बारह दिन के लिए,... अभी भी बहुत जांगर है उनमे एक दिन आठ दस पंडा तो निपटा ही लेंगी, ... "

" एकदम भौजी " मेरी भाभी भी मेरी ओर चिढ़ाती निगाहों से देखते मुस्कराते बोलीं और जोड़ा,... " अरे अब उनकी तीरथ बरत क उमर वैसे भी साल में छह महीना तो तीरथ,... तरह तरह की मलाई का स्वाद मिलेगा और पंडे चढ़ेंगे तो आर्शीवाद भी देंगे , और दिन में २४ घंटा होता है अगर २४ घंटा में चौदह घंटा भी,...

भाभी की भाभी ने बात पूरी की,... चौदह घंटा भी चोदवाये तो,...

गुड्डी बिना बोले रह नहीं सकती थी, अब तक पीछे मेरे साथ खड़ी खिस खिस हंस रही थी अब जोड़ दिया

" हर पण्डे को डेढ़ से पौने दो घंटे मिलेगा "

भाभी और चंदा भाभी की गाने की आवाज की टनकार तेज हो रही थी और मैं यादों की झुरमुट से वापस आया,

भाभी जोर जोर से मुझे सुना के गा रही थीं साथ में चंदा भाभी
 
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भाभी, गुड्डी और भांग की गुझिया


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भाभी और चंदा भाभी की गाने की आवाज की टनकार तेज हो रही थी और मैं यादों की झुरमुट से वापस आया,



भाभी जोर जोर से मुझे सुना के गा रही थीं साथ में चंदा भाभी
“गंगाजी तुम्हारा भला करें गंगाजी…” भाभी ने अगली गारी शुरू कर दी थी।

गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी , गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी

तोहरी बहिनी क तोहरी गुड्डी क बुरिया इनरवा जैसे पोखरवा जैसे

तोहरी अम्मा क भोंसड़ा इनरवा जैसे पोखरवा जैसे

नौ सौ गुंडा नहावा करें, मजा लूटा करें, बुर हर हर हुआ करे ,

गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी , गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी।

तोहरी बहिनी क बुरिया पतिलिया जइसन, बटुलिया जइसन

तोहरी गुड्डी क बुरिया पतिलिया जइसन, बटुलिया जइसन

तोहरी अम्मा क बुरिया पतिलिया जइसन, बटुलिया जइसन

ओहमें नौ मन चावल पका करे बुर फच फच हुआ करे

बुर फच फच हुआ करे, गंगा जी

गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी , गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी

तोहरे बहिनी क बुरिया सड़किया जइसन लाइनिया जइसन

तोहरे गुड्डी क बुरिया सड़किया जइसन लाइनिया जइसन

तोहरे अम्मा क भोंसड़ा सड़किया जइसन लाइनिया जइसन

अरे नॉ सौ गाडी चला करे बुर फट फट हुआ करे


गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी , गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी
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और एक के बाद एक नान स्टाप।



आनंद साल्ला पूछे अपनी बहना से अपनी गुड्डी से,

बहिनी तुम्हारी बिलिया में, क्या-क्या समाय,

अरे भैया तुम समाओ भाभी के सब भैया समाय

बनारस के सब यार समाय

आनंद मादरचोद पूछे अपनी अम्मा से अम्मा तोहरी बुरिया में का का समायी

अरे तोहरे भोंसडे में का का समायी , का का अमाई

भैया हमारे भोंसडे में कालीनगंज के सब भंडुए समाये, आजमगढ़ एक सब गंडुए समाये

बनारस के सब पण्डे समाये,


हाथी जाय घोड़ा जाय। ऊंट बिचारा गोता खाय। हमारी बुरिया में।


और।



हमारे अंगना में चली आनंद की बहिनी, अरे गुड्डी रानी,

गिरी पड़ी बिछलाईं जी, अरे उनकी भोंसड़ी में घुस गइ लकड़िया जी।

अरे लकड़ी निकालें चलें आनंद भैया अरे उनके गणियों में घुस गई लकड़िया जी।

हमारे अंगना में चली आनंद की अम्मा , अरे आनंद क महतारी

अरे वो तो गिरी पड़ी बिछलाईं जी,


अरे उनकी भोंसड़ी में घुस गइ लकड़िया जी

अरे लकड़ी निकालें चलें आनंद भैया अरे उनके गांडी में घुस गई लकड़िया जी।

मैं खाना खतम कर कर चुका था लेकिन मुझे कुछ अलग सा लगा रहा था। एकदम एक मस्ती सी छाई थी और मैंने खाया भी कितना। तब तक गुड्डी आई मैंने उससे पूछा-

“हे सच बतलाना खाने में कुछ था क्या? गुझिया में। मुझे कैसे लगा रहा है…”


वो हँसने लगी कसकर- “क्यों कैसा लग रहा है?”

“बस मस्ती छा रही है। मन करता है की। तुम पास आओ तो बताऊँ। था न कुछ गुझिया में…”

“ना बाबा ना तुमसे तो दूर ही रहूंगी। और गुझिया मैंने थोड़ी बनाई थी आपकी प्यारी चंदा भाभी ने बनाई थी उन्हीं से पूछिए ना। मैंने तो सिर्फ दिया था। सच कहिये तो इत्ती देर से जो आप अपनी बहना का हाल सुन रहे थे इसलिए मस्ती छा रही है…”

मुझे चिढ़ाने में गुड्डी अपनी मम्मी से पीछे नहीं थी।
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और तब तक चन्दा भाभी आ गईं एक प्लेट में चावल लेकर।

“ये कह रहें है की गुझिया में कुछ था क्या?” गुड्डी ने मुड़कर चंदा भाभी से पूछा।

“मुझे क्या मालूम?” मुश्कुराकर वो बोली- “खाया इन्होंने खिलाया तुमने। क्यों कैसा लग रहा है?”

“एकदम मस्ती सी लग रही है कोई कंट्रोल नहीं लगता है पता नहीं क्या कर बैठूंगा। और मैंने खाया भी कितना इसलिए जरूर गुझिया में…” मैं मुश्कुराकर बोला।

“साफ-साफ क्यों नहीं कहते। अरे मान लिया रही भी हो। तो होली है ससुराल में आए हो,साल्ली सलहज। यहाँ नहीं नशा होगा तो कहाँ होगा। ये तो कंट्रोल के बाहर होने का मौका ही है…” चंदा भाभी बोलीं

और वो झुक के चावल देने लगी। उनका आँचल गिर गया। पता नहीं जानबूझ के या अनजाने में और उनके लो-कट लाल ब्लाउज़ से दोनों गदराये, गोरे गुद्दाज उभार साफ दिखने लगे।
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मेरी नीचे की सांस नीचे, ऊपर की ऊपर। लेकिन बड़ी मुश्किल से मैं बोला- नहीं भाभी नहीं।

“क्या नहीं नहीं बोल रहे हो लौंडियों की तरह। तेरा तो सच में पैंट खोलकर चेक करना पड़ेगा। अरे अभी वो दे रही थी तो लेते गए, लेते गए और अब मैं दे रही हूँ तो…”

गुड्डी खड़ी मुश्कुरा रही थी। तब तक नीचे से उसकी मम्मी की आवाज आई और वो नीचे चली गई।

चन्दा भाभी उसी तरह मुश्कुरा रही थी। उन्होंने आँचल ठीक नहीं किया। “क्या देख रहे हो…” मुश्कुराकर वो बोली।


“नहीं, हाँ, कुछ नहीं, भाभी…” मैं कुछ घबड़ाकर शर्माकर सिर नीचे झुका के बोला। फिर हिम्मत करके थूक घोंटते हुए। मैंने कहा- “भाभी। देखने की चीज हो तो आदमी देखेगा ही…”

“अच्छा चलो तुम्हारे बोल तो फूटे। लेकिन क्या सिर्फ देखने की चीज है…”
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ये कहते हुए उन्होंने अपना आँचल ठीक कर लिया। लेकिन अब तो ये और कातिल हो गया था। एक उभार साफ साड़ी से बाहर दिख रहा था और एकदम टाईट ब्लाउज़ खूब लो कटा हुआ।

मेरा वो तनतना गया था। तम्बू पूरी तरह तन गया था। किसी तरह मैं दोनों पैरों को सिकोड़ के उसे छुपाने की कोशिश कर रहा था।

लेकिन चन्दा भाभी ना। वो आकर ठीक मेरे बगल में बैठ गईं। एक उंगली से मेरे गालों को छूते हुए वो बोली-

“हाँ तो तुम क्या कह रहे थे। देखने की चीज है या। कुछ और भी। देखूं तुम्हारी छिनार मायके वालियों ने क्या सिखाया है…”

तब तक मैंने देखा की उनकी आँखें मेरे तम्बू पे गड़ी हैं।

कुछ गुझिया का असर कुछ गालियों का। हिम्मत करके मैं बोल ही गया-

“नहीं भाभी। मन तो बहुत कुछ करने का होता है है। अब ऐसी हो। तो लालच लगेगा ही ना…” अब मैं भी उनके रसीले जोबन को खुलकर देख रहा था।

“सिर्फ ललचाते रह जाओगे…”
अब वो खुलकर हँसकर बोली-

“देवरजी जरा हिम्मत करो। ससुराल में हो हिम्मत करो। ललचाते क्यों हों? मांग लो खुलकर। बल्की ले लो, एकदम अनाड़ी हो…” और फिर जैसे अपने से बोल रही हों। एक रात मेरी पकड़ में आ जाओ। ना। तो अनाड़ी से पूरा खिलाड़ी बना दूँगी"

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और ये कहते हुए उन्होंने चावल की पूरी प्लेट मेरी थाली में उड़ेल दी।

“अरे नहीं भाभी मैं इत्ता नहीं ले पाऊंगा…” मैं घबड़ाकर बोला।

“झूठे देखकर तो लगता है की…” उनकी निगाहें साफ-साफ मेरे ‘तम्बू’ पे थी।


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फिर मुश्कुराकर बोली- “पहली बार ये हो रहा है की मैं दे रही हूँ और कोई लेने से मना कर रहा है…”

“नहीं ये बात नहीं है जरा भी जगह नहीं हैं…”

वो जाने के लिए उठ गई थी लेकिन मुड़ीं और बोली-

“अच्छा जी। कोई लड़की बोलेगी और नहीं अब बस तो क्या मान जाओगे। पूरा खाना है। एक-एक दाना। और ऊपर के छेद से ना जाए ना तो मैं हूँ ना। पीछे वाले छेद से डाल दूँगी…”

तब तक दरवाजा खुला और भाभी (गुड्डी की मम्मी) और गुड्डी अंदर आ गए। भाभी भी चन्दा भाभी का साथ देती हुई बोली-

“एकदम और जायगा तो दोनों ओर से पेट में ही ना…”
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और उसी समय मुझसे गलती हो गयी, ... गलती क्या हुयी, खता किसी और की थी सज़ा मुझे मिली। बताया था न गुड्डी की मम्मी के बारे में दीर्घ स्तना, कठोर कुच, और ब्लाउज चंदा भाभी इतना लो कट तो नहीं लेकिन कम भी नहीं,... और भाभी का आँचल लुढ़क गया, उभारों से एकदम चिपका, रसोई से आ रही थीं तो हलके पसीने में भीगा,... और मैंने कहा था एम् आई एल ऍफ़ की पहली पायदान पर तो चढ़ ही गयी थीं,... तो बस मेरी निगाहें वहीँ चिपकी



और उन्होंने मुझे देखते देख लिया



बस बजाय आँचल ठीक करने के कमर में बाँध लिया और दोनों पहाड़ एकदम साफ़ साफ़, और मेरे पास जब वो झुकी तो कनखियों से उन्होंने तम्बू में बम्बू भी देख लिया, बस मुस्करायीं और वो लेवल बढ़ा दिया,



थाली में पड़े चावल का मौका मुआयना करते गुड्डी को उन्होंने हुकुम सुनाया,...

" गुड्डी जरा किचेन से मोटका बेलनवा तो ले आना, बेलनवा से पेल के ठेल के पिछवाड़े घुसाय देंगे एक एक चावल "

गुड्डी खिस खिस हंसती रही.



और गुड्डी की मम्मी, भाभी और,

" एक बार मोटका बेलनवा घुसेड़ूँगी न, तो तोहार पिछवाड़वा, तोहरी अम्मा के भोंसडे से ज्यादा चौड़ा हो जाएगा, न विश्वास हो जब लौटोगे न तो उनका साया पलट के देख लेना,... सोच लो नहीं तो चावल ख़त्म करो "
---
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और मैंने सर झुका के थाली में रखा चावल खाना शुरू कर दिया, लेकिन अब भाभी छोड़ने के मूड में नहीं थीं, मेरा गाल सहलाते चंदा भाभी से बोलीं,

" होली में ऐसे चिकने लौंडे की बिना लिए, नथ उतारे,... "

चंदा भाभी कौन काम थीं, साफ़ साफ़ पूछ लिया,... " अगवाड़े की पिछवाड़े "



" दोनों ओर " भाभी बोलीं, लेकिन चंदा भाभी ने जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली,... " अरे आप जाइये न निश्चिन्त होके, मैं हूँ न अच्छी तरह से नथ उतराई होगी इनकी आज। जैसे दालमंडी में इनकी बहन की होगी एकदम वैसे इनकी यहाँ "



मैं जान रहा था की अगर बोला तो मधुमखी के छत्ते में हाथ पड़ा,... इसलिए सर झुकाये बस खाना खाने में लगा था। लेकिन जंगबहादुर का क्या करें ऐसी रसीली बातें सुन के वो तो सर उठाये जा रहे थे. मैंने उनसे छुपाने के लिए एक पैर पर दूसरा पैर रखने की कोशिश की पर तब भी,... लेकिन भाभी की नजर से कोई चीज नहीं बच सकती थी, मुझसे बोली,



" ये क्या टांग पर टांग सटा के बैठे हो, तोहार बहिन महतारी तो हरदम टांग फैलाये रहती हैं, फैलाओ टांग वरना, .... गुड्डी जरा बेलनवा ले आओ "

मैंने टांग हटा दी और अब तम्बू में जबरदस्त बम्बू बित्ते भर का खड़ा, और अब तीनो मुस्करा रही थीं, भाभी और चंदा भाभी खुल के और गुड्डी मेरे पीछे खड़ी, खिस खिस,...

" जानती हो इनकी ये हालत काहें हुयी, " भाभी चंदा भाभी से पूछीं,

जानता तो मैं भी था और वो भी, उनके चोली फाड़ कड़क गद्दर जोबन जो सफ़ेद ब्लाउज से साफ़ झलक रहे थे उसी ने ये हालत की थी लेकिन देवर हो तो कौन भौजाई खींचने का मौका छोड़ देती है,



चंदा भाभी बोलीं ,

" अरे आप ने भैया को उनके अम्मा के भोंसडे की याद दिला दी, बेचारे उनको मातृभूमि की याद आ गयी और मातृभूमि के लिए लोग क्या क्या नहीं करते। "


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" गुड्डी, जरा इधर आना बेटी " दुलार से उन्होंने बुलाया और काम पे लगा दिया, ...

" यहीं रहना और अगर चावल बच गया, जितना दाना बचेगा, उतने लौंडे बनारस के इनकी बहन पे चढ़ेंगे,... वो भी फ्री। ये जिम्मेदारी तेरी हटना मत इनके पास से "

" एकदम " आज्ञाकारी बेटी की तरह गुड्डी ने सर हिलाया लेकिन क्लास में कुछ लड़कियां होती हैं न सबसे पहले हाथ उठाती हैं सवाल पूछने के लिए, गुड्डी उसी में से थी, अपनी मम्मी से बोली,...

" लेकिन मम्मी मैं गिन तो लूंगी लेकिन इनकी बहन तो यहाँ है नहीं अभी,.. "

" लेकिन ये तो हैं न यहाँ, इनकी बहन न सही यही सही " चंदा भाभी थीं न आग में घी डालनेवाली।

" और क्या इतना गोरा चिकना तो है, बहन इसकी अगवाड़े से घोंटती ये पिछवाड़े से घोंटेंगें। " भाभी ( गुड्डी की मम्मी ) ने फैसला सुना दिया फैसले का कारण भी
"हम बनारस वाले छेद छेद में भेद नहीं करते, और होली में ससुरारी आएं है वो भी बनारस तो बिना नथ उतरे,... "
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वो दोनों तो हँस ही रही थी। वो दुष्ट गुड्डी भी मुश्कुराकर उन लोगों का साथ दे रही थी।

तबतक गुड्डी की छोटी बहन आ गयी सबसे छोटी, छुटकी हाथ में बेलन लेके

" मम्मी आपने बेलन मंगाया था "


अब तो चंदा भाभी और भाभी, गुड्डी की मम्मी की हंसी रुके नहीं रुक रही थी। गुड्डी भी खिस खिस,...

किसी तरह हंसी रोक के गुड्डी की मम्मी बोली,... " हाँ गुड्डी को दे दो "

फिर उन्हें याद आया की वो आयी किस लिए थीं, एक क्राइसिस हो गयी थी छोटी सी।

पता चला की क्राइसिस ये थी की रेल इन्क्वायरी से बात नहीं हो पा रही थी की गाड़ी की क्या हालत है, कितनी लेट है लेकिन उससे भी बड़ी बात थी, बर्थ की। दो लोगों की बर्थ भी कन्फर्म नहीं हुई थी। नीचे कोई थे जिनकी एक टी टी से जान पहचान थी लेकिन उनसे बात नहीं हो पा रही थी।

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शलवार सूट वाली



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पता चला की क्राइसिस ये थी की रेल इन्क्वायरी से बात नहीं हो पा रही थी की गाड़ी की क्या हालत है और दो लोगों की बर्थ भी कन्फर्म नहीं हुई थी। नीचे कोई थे जिनकी एक टी टी से जान पहचान थी लेकिन उनसे बात नहीं हो पा रही थी।



मैं डरा की कहीं इन लोगों का जाने का प्रोग्राम गड़बड़ हुआ तो मेरी तो सारी प्लानिंग फेल हो जायेगी।


“अरे इत्ती सी बात भाभी आप मुझसे कहती…” मैंने हिम्मत बंधाते हुए कहा ओर एक-दो लोगों को फोन लगाया- मेरा एक बैचमेंट , वो मसूरी में मेरा रूम मेट भी था और टेनिस में पार्टनर भी उसे, रेलवे मिली थी और बनारस में ही ट्रेनिंग कर रहा था। और एक सीनियर थे हॉस्टल के वो भी रेलवे में यही थे,

“बस दस मिनट में पता चल जाएगा। भाभी आप चिंता ना करें…”

मैंने उन्हें एश्योर किया, बोल मैं भाभी, गुड्डी की मम्मी से रहा था लेकिन मेरी निगाह गुड्डी के चेहरे पर टिकी थी, वो भी परेशान लग रही थी। चार लोगों को जाना और दो की बर्थ नहीं तो कैसे, अब उसकी बहने इत्ती छोटी भी नहीं की एडजस्ट हो जाएंगी, एक बर्थ कम से कम,... और अगर कहीं उन लोगों का जाना टला लगा तो उस की भी होली पे ग्रहण लग जाएगा। वो उम्मीद से मेरी ओर देख रही थी।

मैंने एक बार फिर से मैंने फोन लगाया,

और थोड़ी देर में फोन आ गया।


“चलो मैं तो इतना घबड़ा रही थी…” चैन की साँस लेते हुए वो चली गई लेकिन साथ में गुड्डी को भी ले गईं…” चल पैकिंग जल्दी खतम कर और अपना सामान भी पैक कर ले कहीं कुछ रह ना जाय…”



मैंने जाकर भाभी को बता दिया। गुड्डी भी अपनी दोनों छोटी बहनों को तैयार होने में मदद कर रही थी।

मेरी तरह से वो भी बस यही सोच रही थी, इन लोगों के कानपुर जाने के प्रोग्राम में कोई विघ्न न पड़े, टाइम पे स्टेशन पहुँच जाए, ट्रेन में बैठें तो कल के उसके प्रोग्राम में कोई अड़चन न पड़े, दूसरे यह भी था की उसकी मम्मी के जाने के बाद मेरी रगड़ाई वो और अच्छी कर सकती थी, मम्मी के जानते बाद ये वतन चंदा भाभी के हवाले होना था और चंदा भाभी तो उसकी सहेली सी ही थीं। वैसे गुड्डी की दोनों छोटी बहने, सब उन्हें मझली और छुटकी ही कहते थे, इत्ती छोटी भी नहीं थी, एक नौवें में दूसरी आठवें में।

चन्दा भाभी भी वहीं बैठी थी।

“गाड़ी पंद्रह मिनट लेट है तो अभी चालीस मिनट है। स्टेशन पहुँचने में 20 मिनट लगेगा। तो आप लोग आराम से तैयार हो सकते हैं। “

मैंने उन्हें बताया

“नहीं हम सब लोग तैयार हैं। गब्बू जाकर रिक्शा ले आ…” पड़ोस के एक लड़के से से वो बोली।

“और रहा आपकी बर्थ का। तो पिछले स्टेशन को इन लोगों ने खबर कर दिया था। तो 19 और 21 नंबर की दो बर्थें मिल गई हैं। आप सब लोगों को वो एक केबिन में एडजस्ट भी कर देंगे। स्टेशन पे वो लोग आ जायेंगे। मैं भी साथ चलूँगा तो सब हो जाएगा…”

मैं बोल भाभी से रहा था लेकिन नजर गुड्डी के चेहरे से चिपकी थी। मैं बदलता रंग देख रहा था, अब वह एकदम खुश, अपनी सबसे छोटी बहन छुटकी को हड़का रही थी. एक नजर जैसे इतरा के उसने मुझे देखा,... फिर जब मुझे देखते पकड़ा, तो सबकी नजर बचा के जीभ निकल के चिढ़ा दी।

समझ तो वो भी रही थी की मैंने ये सब चक्कर किस लिए किया है,



“अरे भैया ये ना। बताओ अब ये सीधे स्टेशन पे मिलेंगे। अगर तुम ना होते ना। लेकिन मान गए बड़ी पावर है तुम्हारी। मैं तो सोच रही थी की,… एक बर्थ भी मिल जाती और तो बैठ के भी चले जाते, लेकिन तुम ने तो सब, जरा मैं नीचे से सबसे मिलकर आती हूँ…”

और वो नीचे चली गईं।

और अब गुड्डी खुल के मुझे देख के मुस्करायी।
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चन्दा भाभी ने गुड्डी को छेड़ते हुए कहा- “अरे असली पावर वाली तो तू है। जो इत्ते पावर वाले को अपने पावर में किये हुए हैं…”
वो शर्माई, मुस्करायी और बोली- “हाँ ऐसे सीधे जरूर हैं ये जो, …”

मैंने चंदा भाभी से कहा अच्छा भाभी चलता हूँ।

“मतलब?” गुड्डी ने घूर के पूछा।

“अरी यार 9:00 बज रहा है। इन लोगों को छोड़कर मैं रेस्टहाउस जाऊँगा। और फिर सुबह तुम्हें लेने के लिए। हाजिर…” मैंने अपना प्रोग्राम बता दिया।

“जी नहीं…” गुर्राते हुए वो बोली- “क्या करोगे तुम रेस्टहाउस जाकर। पहले आधा शहर जाओ फिर सुबह आओ, कोई जरूरत नहीं। फिर सुबह लेट हो जाओगे। कहोगे देर तक सोता रह गया। तुम कहीं नहीं जाओगे बल्की मैं भी तुहारे साथ स्टेशन चल रही हूँ। दो मिनट में तैयार होकर आई…”

और ये जा वो जा।



चंदा भाभी मुस्कराती हुए बोली- “अच्छा है तुम्हें कंट्रोल में रखती है…”
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मेरे मुँह से निकल गया लेकिन मेरे कंट्रोल में नहीं आती।

तब तक वो तैयार होकर आ भी गई। शलवार सूट में गजब की लग रही थी।



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आकर मेरे बगल में खड़ी हो गई।

“क्या मस्त लग रही हो?” मैंने हल्के से बोला।

लेकिन दोनों नें सुन लिया। गुड्डी ने घूर के देखा और चन्दा भाभी हल्के से मुश्कुरा रही थी। मुझे लगा की फिर डांट पड़ेगी। लेकिन गुड्डी ने सिर्फ अपने सीने पे दुपट्टे को हल्के से ठीक कर लिया और चंदा भाभी ने बात बदल कर गुड्डी से बोला-

“हे तू लौटते हुए मेरा कुछ सामान लेती आना, ठीक है…”

“एकदम। क्या लाना है?”

“बताती हूँ लेकिन पहले पैसा तो ले ले…”

“अरे आप भी ना। खिलखिलाती हुई, मेरी और इशारा करके वो बोली-
“ये चलता फिरता एटीएम तो है ना मेरे पास…” और मुझे हड़काते हुए उसने कहा- “हे स्टेशन चल रहे हैं कहीं भीड़ भाड़ में कोई तुम्हारी पाकेट ना मार ले, पर्स निकालकर मुझे दे दो…”
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चन्दा भाभी भी ना। मेरे बगल में खड़ी लेकिन उनका हाथ मेरा पिछवाड़ा सहला रहा था। वो अपनी एक उंगली कसकर दरार में रगड़ती बोली-

“अरे तुझे पाकेट की पड़ी है मुझे इनके सतीत्व की चिंता हैं कहीं बीच बाजार लुट गया तो। ये तो कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे…”
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गुड्डी मुस्कराती हुई मेरे पर्स में से पैसे गिन रही थी।

तभी उसने कुछ देखा और उसका चेहरा बीर बहूटी हो गया।

मैं समझ गया और घबड़ा गया की कहीं वो किशोरी बुरा ना मान जाए। जब वो कमरे से बाहर गई थी तो उसके दराज से मैंने एक उसकी फोटो निकाल ली थी, उसके स्कूल की आई कार्ड की थी, स्कूल की यूनिफार्म में। बहुत सेक्सी लग रही थी। मैं समझ गया की मेरी चोरी पकड़ी गई।

“क्यों क्या हुआ पैसा वैसा नहीं है क्या?” चन्दा भाभी ने छेड़ा।

मेरी पूरे महीने की तनखाह थी उसमें।

“हाँ कुछ खास नहीं है लेकिन ये है ना चाभी…” मेरे पर्स से कार्ड निकालकर दिखाते हुए कहा।

“अरी उससे क्या होगा पासवर्ड चाहिए…” चन्दा भाभी ने बोला।

“वो इनकी हर चीज का है मेरे पास…” ठसके से प्यार से मुझे देखकर मुश्कुराते हुए वो कमलनयनी बोली।
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उसकी बर्थ-डेट ही मेरे हर चीज का पास वर्ड थी, मेल आईडी से लेकर सारे कार्डस तक।

लेकिन चन्दा भाभी के मन में तो कुछ और था- “अरे इनके पास तो टकसाल है। टकसाल…” वो आँख नचाते बोली।

“इनके मायके वाली ना, एलवल वाली, जिसका गुण गान आप लोग खाने के समय कर रही थी…” गुड्डी कम नहीं थी।

“और क्या एक रात बैठा दें। तो जित्ता चाहें उत्ता पैसा। रात भर लाइन लगी रहेगी…” चंदा भाभी बोली।

“और अभी साथ नहीं है तो क्या एडवांस बुकिंग तो कर ही सकते हैं ना…” गुड्डी पूरे मूड में थी। फिर वो मुझे देखकर बोलने लगी।

कुछ लोगों को चोरी की आदत लग जाती है,

मैं समझ रहा था किस बारे में बात कर रही है फिर भी मैं मुस्कराकर बोला-

“भाभी ने मुझे आज समझा दिया है, अब चोरी का जमाना नहीं रहा सीधे डाका डाल देना चाहिए…”

फिर बात बदलने के लिए मैंने पूछा- “भाभी आप कह रही थी ना। बाजार से कुछ लाना है?”

“अरे तुम्ह क्या मालूम है यहाँ की बाजार के बारे में, गुड्डी तू सुन…” चंदा भाभी ने हड़का लिया

“हाँ मुझे बताइये। और वैसे भी इनके पास पैसा वैसा तो है नहीं…” हवा में मेरा पर्स लहराते गुड्डी बोली।

“वो जो एक स्पेशल पान की दुकान है ना स्टेशन से लौटते हुए पड़ेगी…”

“अरे वही जो लक्सा पे है ना। जहां एक बार आप मुझे ले गई थी ना…” गुड्डी बोली।

“वही दो जोड़ी स्पेशल पान ले लेना और अपने लिए एक मीठा पान…”
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“लेकिन मैं पान नहीं खाता। आज तक कभी नहीं खाया…” मैंने बीच में बोला।

“तुमसे कौन पूछ रहा है। बीच में जरूर बोलेंगे…” गुड्डी गुर्रायी। ये तो बाद में देखा जाएगा की कौन खाता है कौन नहीं। हाँ और क्या लाना है?”

“कल तुम इनके मायके जाओगी ना। तो एक किलो स्पेशल गुलाब जामुन नत्था के यहाँ से। बाकी तेरी मर्जी…” चंदा भाभी ने अपनी लिस्ट पूरी की
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पर्स में से गुड्डी ने मुड़ी तुड़ी एक दस की नोट निकाली और मुझे देती हुई बोली-

“रख लो जेब खर्च के लिए तुम भी समझोगे की किस दिलदार से पाला पड़ा है…”
तब तक नीचे से आवाज आई। रिक्शा आ गया। रिक्शा आ गया।

हम लोग नीचे आ गए। मैंने सोचा की गुड्डी के साथ रिक्शे पे बैठ जाऊँगा लेकिन वो दुष्ट जानबूझ के अपनी मम्मी के साथ आगे के रिक्शे पे बैठ गई ओर मुझे मुड़कर अंगूठा दिखा रही थी।

वो जान रही थी, की मेरा इरादा प्लानिंग, रिक्शे पे साथ बैठता तो कम से कम कंधे पे तो हाथ रखी लेता अगर उसके आगे नहीं बढ़ता, दस पंद्रह मिनट का अकेले का टाइम मिलता बतियाने का। लेकिन वो मुझसे ज्यादा चालाक थी, मैं जब तक प्लानिंग करता वो चाल चल देती थी। एक तो मुझे तंग करने का इन्तजार करने का , दूसरे मम्मी के साथ बैठ के रस्ते भर उनसे बतिया सकती थी.



मुझे उसकी बहनों के साथ बैठना पड़ा।



गनीमत थी की गाड़ी ज्यादा लेट नहीं थी इसलिए देर तक इंतजार नहीं करना पड़ा। बर्थ भी मिल गई और स्टेशन पे स्टाफ आ भी गया था। स्टेशन पहुँचने के पहले रास्ते में ही टीटी ने पैसेंजर से बात करके इनकी कन्फर्म बर्थ और खाली बर्थों को मिला के एक केबिन करवा दिया था, दो लोवर दो अपर एक ही केबिन में , डिप्टी स्टेशन सुपरिंटेंडेंट ने खुद उन लोगो को केबिन में पहुंचाने के बाद टी टी को भी बोल दिया। उसके पापा मम्मी इत्ते खुश थे की,… गुड्डी की मम्मी तारीफ़ से बार बार मुझे देख रही थीं।

मैं भाभी की निगाह में देख रहा था वो कितनी इम्प्रेस्ड थीं, स्टेशन के स्टाफ यूनिफार्म में, एक जी आर पी वाला भी कही से आ गया था, हम लोगो को सामान की चिंता भी नहीं करनी पड़ी स्टेशन स्टाफ ने सामन सेट कर दिया, यहाँ तक की केबिन में चारों बर्थ पे बिस्तर भी लगा था. गुड्डी के पापा के कोई परिचित मिल गए थे तो वो पास के केबिन में उनके पास चले गए थे, हम लोगों के केबिन में गुड्डी, उसकी मम्मी दोनों बहिने और मैं। दोनों उधम मचा रही थीं, तबतक डिप्टी स्टेशन सुपरिंटेंडेंट आये और बोले, " सर, इंजन चेंज होगा तो पंद्रह बीस मिनट लगेगा, आप लोग आराम से बैठिये, ट्रेन रेडी हो जायेगी तो मैं बता दूंगा। "



उन के जाते ही भाभी फिर मुझे देख के मुस्करायीं, मैंने छुटकी और मझली से कहा चलो अभी टाइम है तुम दोनों को चॉकलेट दिलवा देता हूँ,



मुझे चिप्स भी चाहिए छुटकी बोली, मंझली ने जोड़ा कॉमिक्स, पांच मिनट बाद मैं दोनों को लेकर वापस,... चॉकलेट, चिप्स, कॉमिक्स, पेप्सी



और मैंने भाभी से बोला, कानपुर में भी इन लोगो ने बोल दिया है कोई सामान उतरवाने कोई आ जाएगा और आप लोग लौटिएगा कब,...



" अभी पता नहीं हो सकता है होली के दो दिन बाद, हो सकता है तीन दिन बाद, अभी तो लौटने का रिजर्वेशन "



उनकी बात काट के मैं बोला, " अरे आप गुड्डी को बोल दीजियेगा, उसकी चिंता मत करियेगा, लौटने का रिजर्वेशन भी हो जाएगा, स्टेशन पर कोई आ भी जाएगा, मैं भी होली के चार पांच दिन बाद ही लौटूंगा, तब तक आप लोग आ जाइयेगा तो मुलाकात हो जायेगी, ... "



अब भाभी आपने रूप में आ गयीं, हंस के बोली,

" मुलाकात नहीं तोहार रगड़ाई होइ,... और कम से कम दो तीन दिन, ... हमार तोहार फगुआ उधार बा, एक इंच जगह बचेगी नहीं न अंदर न बाहर,... "

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फिर सीरियस होके बोलीं, भैया तोहार तो,... और ये बनारस में भी तोहार,... "
उनकी बात ख़तम होते ही मैं बोला, " एकदम भाभी,... अरे हो सकता है मई से ही दो तीन महीने की ट्रेनिंग बनारस में ही हो, यहाँ आफिसर्स मेस है, रेस्टहाउस,

भाभी एकदम आग, गुड्डी गुर्राने लगीं ऊपर से उसकी दोनों बहने भी कान पारे,



" एकदम नहीं, घर में रहना होगा, और खाना दोनों टाइम घर में " भाभी और गुड्डी दोनों साथ साथ बोली, और दोनों बहनों ने भी ऊपर से हामी भरी,...



सोचना भी मत कहीं और रहने को " भाभी भी बोलीं, तीन बार मुझसे हामी भरवाई और फिर जब मैंने कबूल कर लिया,... कान पकड़ा, तो भाभी अपने रंग में

" अरे दिन में ट्रेनिंग आफिस में करना, रात में मैं ट्रेनिंग दूंगी, रोज बिना नागा। "



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गुड्डी मंद मंद मुस्करा रही थी फिर बोली और खाने के साथ गारी भी रोज सुननी पड़ेगी ये भी बोल दीजिये, ...


" वो कोई कहने की बात है, बिना गारी के खाना कैसे पचेगा,... " हँसते हुए वो बोलीं फिर अपने रूप में एकदम कह मुझसे रही थी बोल गुड्डी से रही थीं


" और गारी क्या सब सही सही बोल रही थी , तुम तो जा ही रही हो इनके साथ, इनके बहन का हाल देख लेना, और जहाँ तक इनकी महतारी का हाल है , मैं अपने मन से कुछ नहीं कहती। बिन्नो की तिलक में जितने तिलकहरु गए थे, नाइ बारी कहार पंडित सब उनके पोखरा में डुबकी लगा के आये थे, कई कई बार, वही सब बता रहे थे,... "


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तबतक डिप्टी एस एस आ गए, ... गाडी चलने वाली है और मैं और गुड्डी उतर पड़े। हाँ गुड्डी के कान में भाभी ने कुछ समझाया भी।

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पूर्वाभास कुछ झलकियां

(२) सुबहे बनारस - गुड्डी और गूंजा
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मेरी आँखें जब थोड़ी और नीचे उतरी तो एकदम ठहर गई। उसके उभार। उसके स्कूल की युनिफोर्म, सफेद शर्ट को जैसे फाड़ रहे हों और स्कूल टाई ठीक उनके बीच में, किसी का ध्यान ना जाना हो तो भी चला जाए। परफेक्ट किशोर उरोज। पता नहीं वो इत्ते बड़े-बड़े थे या जानबूझ के उसने शर्ट को इत्ती कसकर स्कर्ट में टाईट करके बेल्ट बाँधी थी।

पता नहीं मैं कित्ती देर तक और बेशर्मों की तरह देखता रहता, अगर गुड्डी ने ना टोका होता- “हे क्या देख रहे हो। गुंजा नमस्ते कर रही है…”

मैंने ध्यान हटाकर झट से उसके नमस्ते का जवाब दिया और टेबल पे बैठ गया। वो दोनों सामने बैठी थी। मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी और फिर आपस में फुसफुसा के कुछ बातें करके टीनेजर्स की तरह खिलखिला रही थी। मेरे बगल की चेयर खाली थी।


मैंने पूछा- “हे चंदा भाभी कहाँ हैं?”

“अपने देवर के लिए गरमा-गरम ब्रेड रोल बना रही हैं। किचेन में…” आँख नचाकर गुंजा बोली।

“हम लोगों के उठने से पहले से ही वो किचेन में लगी हैं…” गुड्डी ने बात में बात जोड़ी।

मैंने चैन की सांस ली।

तब तक गुड्डी बोली- “हे नाश्ता शुरू करिए ना। पेट में चूहे दौड़ रहे हैं हम लोगों के और वैसे भी इसे स्कूल जाना है। आज लास्ट डे है होली की छुट्टी के पहले। लेट हो गई तो मुर्गा बनना पड़ेगा…”

“मुर्गा की मुर्गी?” हँसते हुए मैंने गुंजा को देखकर बोला। मेरा मन उससे बात करने को कर रहा था लेकिन गुड्डी से बात करने के बहाने मैंने पूछा- “लेकिन होली की छुट्टी के पहले वाले दिन तो स्कूल में खाली धमा चौकड़ी, रंग, ऐसी वैसी टाइटिलें…”


मेरी बात काटकर गुड्डी बोली- “अरे तो इसीलिए तो जा रही है ये। आज टाइटिलें…”

उसकी बात काटकर गुंजा बीच में बोली- “अच्छा दीदी, बताऊँ आपको क्या टाइटिल मिली थी…”


गुड्डी- “मारूंगी। आप नाश्ता करिए न कहाँ इसकी बात में फँस गए। अगर इसके चक्कर में पड़ गए तो…”

लेकिन मुझे तो जानना था। उसकी बात काटकर मैंने गुंजा से पूछा- “हे तुम इससे मत डरो मैं हूँ ना। बताओ गुड्डी को क्या टाइटिल मिली थी?”

हँसते हुए गुंजा बोली- “बिग बी…”

पहले तो मुझे कुछ समझ नहीं आया ‘बिग बी’ मतलब लेकिन जब मैंने गुड्डी की ओर देखा तो लाज से उसके गाल टेसू हो रहे थे, और मेरी निगाह जैसे ही उसके उभारों पे पड़ी तो एक मिनट में बात समझ में आ गई। बिग बी। बिग बूब्स । वास्तव में उसके अपने उम्र वालियों से 20 ही थे।

गुड्डी ने बात बदलते हुए मुझसे कहा- “हे खाना शुरू करो ना। ये ब्रेड रोल ना गुंजा ने स्पेशली आपके लिए बनाए हैं…”

“जिसने बनाया है वो दे…” हँसकर गुंजा को घूरते हुए मैंने कहा।

मेरा द्विअर्थी डायलाग गुड्डी तुरंत समझ गई। और उसी तरह बोली- “देगी जरूर देगी। लेने की हिम्मत होनी चाहिए, क्यों गुंजा?”

“एकदम…” वो भी मुश्कुरा रही थी। मैं समझ गया था की सिर्फ शरीर से ही नहीं वो मन से भी बड़ी हो रही है।

गुड्डी ने फिर उसे चढ़ाया- “हे ये अपने हाथ से नहीं खाते, इनके मुँह में डालना पड़ता है अब अगर तुमने इत्ते प्यार से इनके लिए बनाया है तो। …”

“एकदम…” और उसने एक किंग साइज गरम ब्रेड रोल निकाल को मेरी ओर बढ़ाया। हाथ उठने से उसके किशोर उरोज और खुलकर। मैंने खूब बड़ा सा मुँह खोल दिया लेकिन मेरी नदीदी निगाहें उसके उरोजों से चिपकी थी।

“इत्ता बड़ा सा खोला है। तो डाल दे पूरा। एक बार में। इनको आदत है…” गुड्डी भी अब पूरे जोश में आ गई थी।

“एकदम…” और सच में उसकी उंगलियां आलमोस्ट मेरे मुँह में और सारा का सारा ब्रेड रोल एक बार में ही।

स्वाद बहुत ही अच्छा था। लेकिन अगले ही पल में शायद मिर्च का कोई टुकड़ा। और फिर एक, दो, और मेरे मुँह में आग लग गई थी। पूरा मुँह भरा हुआ था इसलिए बोल नहीं निकल रहे थे।

वो दुष्ट। गुंजा। अपने दोनों हाथों से अपना भोला चेहरा पकड़े मेरे चेहरे की ओर टुकुर-टुकुर देख रही थी।

“क्यों कैसा लगा, अच्छा था ना?” इतने भोलेपन से उसने पूछा की।

तब तक गुड्डी भी मेरी ओर ध्यान से देखते हुए वो बोली- “अरे अच्छा तो होगा ही तूने अपने हाथ से बनाया था। इत्ती मिर्ची डाली थी…”

मेरे चेहरे से पसीना टपक रहा था।

गुंजा बोली- “आपने ही तो बोला था की इन्हें मिर्चें पसंद है तो। मुझे लगा की आपको तो इनकी पसंद नापसंद सब मालूम ही होगी। और मैंने तो सिर्फ चार मिर्चे डाली थी बाकी तो आपने बाद में…”

इसका मतलब दोनों की मिली भगत थी। मेरी आँखों से पानी निकल रहा था। बड़ी मुश्किल से मेरे मुँह से निकला- “पानी। पानी…”

“ये क्या मांग रहे हैं…” मुश्किल से मुश्कुराहट दबाते हुए गुंजा बोली।

गुड्डी- “मुझे क्या मालूम तुमसे मांग रहे हैं। तुम दो…” दुष्ट गुड्डी भी अब डबल मीनिंग डायलाग की एक्सपर्ट हो गई थी।

पर गुंजा भी कम नहीं थी- “हे मैं दे दूंगी ना तो फिर आप मत बोलना की। …” उसने गुड्डी से बोला।


यहाँ मेरी लगी हुई थी और वो दोनों।

“दे दे। दे दे। आखिर मेरी छोटी बहन है और फागुन है तो तेरा तो…” बड़ी दरियादिली से गुड्डी बोली।

बड़ी मुश्किल से मैंने मुँह खोला, मेरे मुँह से बात नहीं निकल रही थी। मैंने मुँह की ओर इशारा किया।

“अरे तो ब्रेड रोल और चाहिए तो लीजिये ना…” और गुंजा ने एक और ब्रेड रोल मेरी ओर बढ़ाया- “और कुछ चाहिए तो साफ-साफ मांग लेना चाहिए। जैसे गुड्डी दीदी वैसे मैं…”

वो नालायक। मैंने बड़ी जोर से ना ना में सिर हिलाया और दूर रखे ग्लास की ओर इशारा किया। उसने ग्लास उठाकर मुझे दे दिया लेकिन वो खाली था। एक जग रखा था। वो उसने बड़ी अदा से उठाया।

“अरे प्यासे की प्यास बुझा दे बड़ा पुण्य मिलता है…” ये गुड्डी थी।

“बुझा दूंगी। बुझा दूंगी। अरे कोई प्यासा किसी कुंए के पास आया है तो…” गुंजा बोली और नाटक करके पूरा जग उसने ग्लास में उड़ेल दिया। सिर्फ दो बूँद पानी था।

“अरे आप ये गुझिया खा लीजिये ना गुड्डी दीदी ने बनायी है आपके लिए। बहुत मीठी है कुछ आग कम होगी तब तक मैं जाकर पानी लाती हूँ। आप खिला दो ना अपने हाथ से…”

वो गुड्डी से बोली और जग लेकर खड़ी हो गई।

गुड्डी ने प्लेट में से एक खूब फूली हुई गुझिया मेरे होंठों में डाल ली और मैंने गपक ली। झट से मैंने पूरा खा लिया। मैं सोच रहा था की कुछ तो तीतापन कम होगा। लेकिन जैसे ही मेरे दांत गड़े एकदम से, गुझिया के अन्दर बजाय खोवा सूजी के अबीर गुलाल और रंग भरा था। मेरा सारा मुँह लाल। और वो दोनों हँसते-हँसते लोटपोट।

तब तक चंदा भाभी आईं एक प्लेट में गरमागरम ब्रेड रोल लेकर। लेकिन मेरी हालत देखकर वो भी अपनी हँसी नहीं रोक पायीं, कहा- “क्या हुआ ये दोनों शैतान। एक ही काफी है अगर दोनों मिल गई ना। क्या हुआ?”

मैं बड़ी मुश्किल से बोल पाया- “पानी…”

उन्होंने एक जासूस की तरह पूरे टेबल पे निगाह दौडाई जैसे किसी क्राइम सीन का मुआयना कर रही हों। वो दोनों चोर की तरह सिर झुकाए बैठी थी। फिर अचानक उनकी निगाह केतली पे पड़ी और वो मुश्कुराने लगी। उन्होंने केतली उठाकर ग्लास में पोर किया। और पानी।

रेगिस्तान में प्यासे आदमी को कहीं झरना नजर आ जाए वो हालत मेरी हुई। मैंने झट से उठाकर पूरा ग्लास खाली कर दिया। तब जाकर कहीं जान में जान आई। जब मैंने ग्लास टेबल पे रखा तब चन्दा भाभी ने मेरा चेहरा ध्यान से देखा। वो बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकने की कोशिश कर रही थी लेकिन हँसी रुकी नहीं। और उनके हँसते ही वो दोनों जो बड़ी मुश्किल से संजीदा थी। वो भी। फिर तो एक बार हँसी खतम हो और मेरे चेहरे की और देखें तो फिर दुबारा। और उसके बाद फिर।

“आप ने सुबह। हीहीहीही। आपने अपना चेहरा। ही ही शीशे में। हीहीहीही…” चन्दा भाभी बोली।

“नहीं वो ब्रश नहीं था तो गुड्डी ने। उंगली से मंजन। फिर…” मैंने किसी तरह समझाने की कोशिश की मेरे समझ में कुछ नहीं आ रहा था।



“जाइए जाइए। मैंने मना तो नहीं किया था शीशा देखने को। मगर आप ही को नाश्ता करने की जल्दी लगी थी। मैंने कहा भी की नाश्ता कहीं भागा तो नहीं जा रहा है। लेकिन ये ना। हर चीज में जल्दबाजी…” ऐसे बनकर गुड्डी बोली।

गुंजा- “अच्छा मैं ले आती हूँ शीशा…”

और मिनट भर में गुंजा दौड़ के एक बड़ा सा शीशा ले आई। लग रहा था कहीं वाशबेसिन से उखाड़ के ला रही हो और मेरे चेहरे के सामने कर दिया।

मेरा चेहरा फक्क हो गया। न हँसते बन रहा था ना।

तीनों मुश्कुरा रही थी।

मांग तो मेरी सीधी मुँह धुलाने के बाद गुड्डी ने काढ़ी थी। सीधी और मैंने उसकी शरारत समझा था। लेकिन अब मैंने देखा। चौड़ी सीधी मांग और उसमें दमकता सिन्दूर। माथे पे खूब चौड़ी सी लाल बिंदी, जैसे सुहागन औरतें लगाती है। होंठों पे गाढ़ी सी लाल लिपस्टिक और। जब मैंने कुछ बोलने के लिए मुँह खोला तो दांत भी सारे लाल-लाल।

अब मुझे बन्दर छाप दन्त मंजन का रहस्य मालूम हुआ और कैसे दोनों मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी। ये भी समझ में आया। चलो होली है चलता है।

चन्दा भाभी ने मुझे समझाया और गुंजा को बोला- “हे जाकर तौलिया ले आ…”

उन्होंने गुड्डी से कहा- “हे हलवा किचेन से लायी की नहीं?”

मैं तुरंत उनकी बात काटकर बोला- “ना भाभी अब मुझे इसके हाथ का भरोसा नहीं है आप ही लाइए…”

हँसते हुए वो किचेन में वापस में चली गईं। गुंजा तौलिया ले आई और खुद ही मेरा मुँह साफ करने लगी। वो जानबूझ कर इत्ता सटकर खड़ी थी की उसके उरोज मेरे सीने से रगड़ रहे थे। मैंने भी सोच लिया की चलो यार चलता है इत्ती हाट लड़कियां।

मैंने गुड्डी को चिढ़ाते हुए कहा- “चलो बाकी सब तो कुछ नहीं लेकिन ये बताओ। सिंदूर किसने डाला था?”

गुंजा ने मेरा मुँह रगड़ते हुए पूछा- “क्यों?”

“इसलिए की सिन्दूर दान के बाद सुहागरात भी तो मनानी पड़ेगी ना। अरे सिन्दूर चाहे कोई डाले सुहागरात वाला काम किये बिना तो पूरा नहीं होगा ना काम…” मैंने हँसते हुए कहा।
बहुत ही मजेदार और लाजवाब अपडेट है
दोनो बहनों ने तो हीरो की बैंड बाजा दी
 
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