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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
is on Page 325, please do read, enjoy, like and comment.
मैं, गुड्डी और होटल
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कहानी मैंने पोस्ट करनी शुरू कर दी है।इस बार आपकी कहानी शुरू से पढूंगा। बीच में पढ़ने में मजा नही आता।
बधाई हो नए सूत्र की, और आशा है कि हर कहानी की तरह इसमें भी आपके शब्दों के जादू से सब मोहित हो।
Just a reminder, and request.Komal ji Maine apki yeh kahani xossip pe padi thi par Puri nahi pad paya,chalo ek bar phir se ek adbhut or Sundar kahani padne ko milegi,apko bohot bohot shubkamnaye
बहुत जल्द शुरू करता हूं।कहानी मैंने पोस्ट करनी शुरू कर दी है।
इस सूत्र के पृष्ठ ११ पर पहला भाग है।
अब मैं और यह सूत्र प्रतीक्षारत है आपके कमेंट्स का।
बहुत जल्द शुरू करता हूं।
वैसे USC में आपकी कहानी का इंतजार कर रहा हूं बेसब्री से।
मैं कहानी के किसी कांटेस्ट में भाग नहीं लेती और वैसे भी मैं इस समय इसे जोड़ के तीन कहानियां पोस्ट कर रही हूँ। इसके पीछे कोई विशेष कारण नहीं है लेकिन मुझे लगता है की शायद मैं छोटी कहानियां नहीं लिख पाती हूँ या कभी सोच के किसी विशेष रूप से लिखूं वो मुश्किल होती है। हाँ कई बार पढ़ने जरूर पहुँच जाती हूँ.वैसे USC में आपकी कहानी का इंतजार कर रहा हूं बेसब्री से।
चलिए आपको ईक्षा।मैं कहानी के किसी कांटेस्ट में भाग नहीं लेती और वैसे भी मैं इस समय इसे जोड़ के तीन कहानियां पोस्ट कर रही हूँ। इसके पीछे कोई विशेष कारण नहीं है लेकिन मुझे लगता है की शायद मैं छोटी कहानियां नहीं लिख पाती हूँ या कभी सोच के किसी विशेष रूप से लिखूं वो मुश्किल होती है। हाँ कई बार पढ़ने जरूर पहुँच जाती हूँ.
Mast story start ki hai Komal ji. Aapki lekhin ka jabaab nahin hai. Ye kahani bhi gajab dhayegi.1. बनारस की शाम ( पूर्वाभास कुछ झलकियां )
हम स्टेशन से बाहर निकल आये थे। मेरी चोर निगाहें छुप छुप के उसके उभार पे,... और मुझे देखकर हल्की सी मुस्कराहट के साथ गुड्डी ने दुपट्टा और ऊपर एकदम गले से चिपका लिया और मेरी ओर सरक आई ओर बोली, खुश।
“एकदम…” और मैंने उसकी कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया।
“हटो ना। देखो ना लोग देख रहे हैं…” गुड्डी झिझक के बोली।
“अरे लोग जलते हैं। तो जलने दो ना। जलते हैं और ललचाते भी हैं…” मैंने अपनी पकड़ और कसकर कर ली।
“किससे जलते हैं…” बिना हटे मुस्करा के गुड्डी बोली।
“मुझ से जलते हैं की कितनी सेक्सी, खूबसूरत, हसीन…”
मेरी बात काटकर तिरछी निगाहों से देख के वो बोली- “इत्ता मस्का लगाने की कोई जरूरत नहीं…”
“और ललचाते तुम्हारे…” मैंने उसके दुपट्टे से बाहर निकले किशोर उभारों की ओर इशारा किया।
“धत्त। दुष्ट…” और उसने अपने दुपट्टे को नीचे करने की कोशिश की पर मैंने मना कर दिया।
“तुम भी ना,… चलो तुम भी क्या याद करोगे। लोग तुम्हें सीधा समझते हैं…” मुश्कुराकर गुड्डी बोली ओर दुपट्टा उसने और गले से सटा लिया।
“मुझसे पूछें तो मैं बताऊँ की कैसे जलेबी ऐसे सीधे हैं…” और मुझे देखकर इतरा के मुस्करा दी।
“तुम्हारे मम्मी पापा तो…”
मेरी बात काटकर वो बोली- “हाँ सच में स्टेशन पे तो तुमने। मम्मी पापा दोनों ही ना। सच में कोई तुम्हारी तारीफ करता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है…” और उसने मेरा हाथ कसकर दबा दिय
“सच्ची?”
“सच्ची। लेकिन रिक्शा करो या ऐसे ही घर तक ले चलोगे?” वो हँसकर बोली।
चारों ओर होली का माहौल था। रंग गुलाल की दुकानें सजी थी। खरीदने वाले पटे पड़ रहे थे। जगह-जगह होली के गाने बज रहे थे। कहीं कहीं जोगीड़ा वाले गाने। कहीं रंग लगे कपड़े पहने। तब तक हमारा रिक्शा एक मेडिकल स्टोर के सामने से गुजरा ओर वो चीखी- “रोको रोको…”
“क्यों कया हुआ, कुछ दवा लेनी है क्या?” मैंने सोच में पड़ के पूछा।
“हर चीज आपको बतानी जरूरी है क्या?”उस सारंग नयनी ने हड़का के कहा।
वो आगे आगे मैं पीछे-पीछे।
“एक पैकेट माला-डी और एक पैकेट आई-पिल…” मेरे पर्स से निकालकर उसने 100 की नोट पकड़ा दी।
रिक्शे पे बैठकर हिम्मत करके मैंने पूछा- “ये…”
“तुम्हारी बहन के लिए है जिसका आज गुणगान हो रहा था। क्या पता होली में तुम्हारा मन उसपे मचल उठे। तुम ना बुद्धू ही हो, बुद्धू ही रहोगे…” फिर मेरे गाल पे कसकर चिकोटी काटकर उस ने हड़का के कहा।
फिर मेरे गाल पे कसकर चिकोटी काटकर वो बोली-
“तुमसे बताया तो था ना की आज मेरा लास्ट डे है। तो क्या पता। कल किसी की लाटरी निकल जाए…”
मेरे ऊपर तो जैसे किसी ने एक बाल्टी गुलाबी रंग डाल दिया हो, हजारों पिचकारियां चल पड़ी हों साथ-साथ। मैं कुछ बोलता उसके पहले वो रिक्शे वाले से बोल रही थी- “अरे भैया बाएं बाएं। हाँ वहीं गली के सामने बस यहीं रोक दो। चलो उतरो…”
गली के अन्दर पान की दुकान। तब मुझे याद आया जो चंदा भाभी ने बोला था। दुकान तो छोटी सी थी। लेकिन कई लोग। रंगीन मिजाज से बनारस के रसिये। लेकिन वो आई बढ़कर सामने। दो जोड़ी स्पेशल पान।
पान वाले ने मुझे देखा ओर मुश्कुराकर पूछा- “सिंगल पावर या फुल पावर?”
मेरे कुछ समझ में नहीं आया, मैंने हड़बड़ा के बोल दिया- “फुल पावर…”
वो मुश्कुरा रही थी ओर मुझ से बोली- “अरे मीठे पान के लिए भी तो बोल दो। एक…”
“लेकिन मैं तो खाता नहीं…” मैंने फिर फुसफुसा के बोला।
पान वाला सिर हिला हिला के पान लगाने में मस्त था। उसने मेरी ओर देखा तो गुड्डी ने मेरा कहा अनसुना करके बोल दिया- “मीठा पान दो…”
“दो। मतलब?” मैंने फिर गुड्डी से बोला।
वो मुश्कुराकर बोली- “घर पहुँचकर बताऊँगी की तुम खाते हो की नहीं?”
मेरे पर्स से निकालकर उसने 500 की नोट पकड़ा दी। जब चेंज मैंने ली तो मेरे हाथ से उसने ले लिया और पर्स में रख लिया। रिक्शे पे बैठकर मैंने उसे याद दिलाया की भाभी ने वो गुलाब जामुन के लिए भी बोला था।
“याद है मुझे गोदौलिया जाना पड़ेगा, भइया थोड़ा आगे मोड़ना…” रिक्शे वाले से वो बोली।
“हे सुन यार ये चन्दा भाभी ना। मुझे लगता है की लाइन मारती हैं मुझपे…” मैं बोला।
हँसकर वो बोली-
“जैसे तुम कामदेव के अवतार हो। गनीमत मानो की मैंने थोड़ी सी लिफ्ट दे दी। वरना…”
मेरे कंधे हाथ रखकर मेरे कान में बोली- “लाइन मारती हैं तो दे दो ना। अरे यार ससुराल में आये हो तो ससुराल वालियों पे तेरा पूरा हक बनता है। वैसे तुम अपने मायके वाली से भी चक्कर चलाना चाहो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है…”
“लेकिन तुम। मेरा तुम्हारे सिवाय किसी और से…”
“मालूम है मुझे। बुद्धूराम तुम्हारे दिल में क्या है? यार हाथी घूमे गाँव-गाँव जिसका हाथी उसका नाम। तो रहोगे तो तुम मेरे ही। किसी से कुछ। थोड़ा बहुत। बस दिल मत दे देना…”
“वो तो मेरे पास है ही नहीं कब से तुमको दे दिया…”
“ठीक किया। तुमसे कोई चीज संभलती तो है नहीं। तो मेरी चीज है मैं संभाल के रखूंगी। तुम्हारी सब चीजें अच्छी हैं सिवाय दो बातों के…” गुड्डी, टिपिकल गुड्डी
तब तक मिठाई की दुकान आ गई थी ओर हम रिक्शे से उतर गए।
“गुलाब जामुन एक किलो…” मैंने बोला।
“स्पेशल वाले…” मेरे कान में वो फुसफुसाई।
“स्पेशल वाले…” मैंने फिर से दुकानदार से कहा।
“तो ऐसा बोलिए ना। लेकिन रेट डबल है…” वो बोला।
“हाँ ठीक है…” फिर मैंने मुड़कर गुड्डी से पूछा- “हे एक किलो चन्दा भाभी के लिए भी ले लें क्या?”
“नेकी और पूछ पूछ…” वो मुश्कुराई।
“एक किलो और। अलग अलग पैकेट में…” मैं बोला।
पैकेट मैंने पकड़े और पैसे उसने दिए। लेकिन मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रहा था-
“हे तुमने बताया नहीं की स्पेशल क्या? क्या खास बात है बताओ ना…”
“सब चीजें बताना जरूरी है तुमको। इसलिए तो कहती हूँ तुम्हारे अंदर दो बातें बस गड़बड़ हैं। बुद्धू हो और अनाड़ी हो। अरे पागल। होली में स्पेशल का क्या मतलब होगा, वो भी बनारस में…”
बनारसी बाला ने मुस्कराते हुए भेद खोला।
सामने जोगीरा चल रहा था। एक लड़का लड़कियों के कपड़े पहने और उसके साथ।
रास्ता रुक गया था। वो भी रुक के देखने लगी। और मैं भी।
जोगीरा सा रा सा रा। और साथ में सब लोग बोल रहे थे जोगीरा सारा रा।
तनी धीरे-धीरे डाला होली में। तनी धीरे-धीरे डाला होली में।