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पर भौजी ने उस बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दी और लेकिन कह के रुक गयी और मेरी साँस ऊपर की ऊपर, नीचे की नीचे
और मैं जानता था भौजी खुद ही राज खोलेंगी और लम्बी सांस लेके वो बोलीं,
" देखो इत्ते दिन में तुम समझ गए हो गुड्डी के पापा को, ...महीने में 20 दिन तो बाहर रहते हैं और जब रहते भी है तो कभी काम तो कभी दोस्ती यारी, "
संध्या भाभी चुप हो गयीं, और मैं भी समझ गया,
कल ही तो की बात है, जब मम्मी और गुड्डी की दोनों बहने पहले तो वो सीधे स्टेशन पर ही पहुंचे और फिर जब बाद में ट्रेन चलने के घण्टे दो घंटे बाद में गुड्डी ने मम्मी से बात कराई तो वो अपनी बर्थ श्वेता के लिए छोड़ के,.... दूसरे डिब्बे में किसी अपने दोस्त के पास, ...और उनके नहीं रहने पे मम्मी और दोनों बहने जयादा खुले खुले,
" और कुछ नहीं, कुछ उनकी नौकरी है ऐसी आधे टाइम पे तो टूर पे और फिर काम धंधे का प्रेशर, और दोस्ती यारी भी ज्यादा है, इसलिए "
संध्या भाभी ने समझाया और बात आगे बढ़ाई,
" तो गुड्डी क मम्मी अस सोचती हैं की जो उनकी सबसे बड़ी बेटी का, ....मतलब बड़ा दामाद हो, एकदम हंसमुख, खुला खुला और सबसे बढ़ के उनका भी हाथ बटावे, और दोनों छोटी बहनों का भी, मतलब उन्हें बच्ची न माने,... साली माने, वो तो अभी से दोनों को चिढ़ाती हैं, 'ज्यादा दिन इन्तजार नहीं करना पड़ेगा तुम दोनों का, गुड्डी का बियाह मैं जल्दिये करा दूंगी, फिर वो तुम दोनों की भी झिल्ली फाड़ेगा'' लेकिन वो दोनों भी इतनी खुली, मेरे सामने ही, वो चिढ़ा रही थीं तो मंझली जो बहुत कम बोलती है, बोली, ' मैं तो दीदी के पहले कोहबर में ही नंबर लगवा लूंगी, ' तो छुटकी तो हर बात में उससे आगे रहने की होड़ में, चढ़ के गुड्डी से बोली, " कोहबर तक मैं इन्तजार न करने वाली, सगाई में ही, दीदी उनको ऊँगली में अंगूठी पहनाएंगी तो मैंने अपनी गुलाबी अंगूठी, ' और उसकी बात काट के उसकी मम्मी बोलीं, ' तिसरकी टांग में ' और सब एकदम खुल के '
और मुझे गलती का अहसास हुआ.
साल में एक दो चक्कर तो औरंगाबाद का, गुड्डी के घर का, लग ही जाता था, लेकिन वहां पहुँचते ही गुड्डी के अलावा मुझे कुछ दिखता नहीं था, वो पास में न भी हो, उसकी बहने मुझसे बात कर रही हों लेकिन ध्यान मेरा वहीँ,गुड्डी के पास, में एकदम गुड्डी की दोनों छोटी बहनों को ऐसे नजअंदाज करता था जैसे वो वहां हों ही नहीं। लेकिन कल से दो तीन बार बात हो गयी थी फोन से, तो मैं मुस्कराते हुए बोला,
" फोन से बात हुयी थी उन लोगों से कल ट्रेन में थी वो और आज कानपुर पहुँचने पे "
लेकिन संध्या भाभी सख्त एक्जामिनर थीं, तुरंत पूछ लिया, ' फोन किसने किया था'
' गुड्डी ने , फिर उसने मुझसे मम्मी से बात कराई, फोन पे छुटकी और श्वेता भी थीं। "
मैंने बोला लेकिन मेरे जवाब के पूरा होते होते मुझे अहसास हो गया की गलती कहाँ हुयी और भौजी ने तुरंत कान पकड़ लिया,
" तुम्हारे पास फोन नहीं है क्या, तुम नहीं कर सकते थे ? "
मैंने झट कान पकड़ लिया, मेरा चेहरा भी उतर गया और भौजी ने मामला हल्का करना लिए के मुझे गरियाना शुरू कर दिया,
" फोन अपनी महतारी के भोसड़े में तो नहीं घुसेड़ दिया था,... की अपनी उस एलवल वाली बहिनिया के लिए ग्राहकों की एडवांस बुकिंग कर रहे थे, वैसे तेरी महतारी के ग्राहक भी बहुत है इस बनारस में, जो जो पण्डे सावन में उतरे थे सब गुणगान कर रहे हैं "
मैंने बोल भी दिया और सोच भी लिया आज घर पहुँच के नहीं तो कल सुबह पक्का लेकिन भौजी ने दूसरी गलती का भी अहसास दिला दिया
" बात सिर्फ गुड्डी की महतारी से ही मत करना, .....उनकी दोनों बेटियों से भी "
और मैंने मूढ़मति की तरह सर हिलाया,
सच में गलती यही थी की मेरा तो बस अर्जुन की तरह ध्यान चिड़िया की आँख पे, गुड्डी पे ही और ये बात भी थी की दोनों को मैं एकदम छोटी समझता था। रिक्शे पे भी गुड्डी ने जानबूझ के मुझे अपनी दोनों बहनों के साथ और मुझे अंगूठा दिखा के मम्मी के साथ, और छुटकी रिक्शे पे भी जिद कर रही थी, मेरी गोद में बैठने की लेकिन मैंने हड़का लिया, गिर जाओगी और उसने जो डबल मीनिंग डायलॉग धीरे से बोला था वो मुझे अब समझ में आया,
" मैं तो नहीं गिरूँगी, लेकिन आप तो नहीं गिर जाओगे ? '।
मेरा ध्यान तो अगले रिक्शे पे बैठी गुड्डी पे था, जो शलवार कुर्ती में बहुत हॉट लग रही थी। और स्टेशन में भी उन दोनों को मैंने बच्चो वाली कॉमिक और चॉकलेट दिलवाई, तो छुटकी बोली,
' गुड्डी दी को कौन सी चॉकलेट खिलाते हैं हमें भी वही चाहिए '
लेकिन किसी तरह दोनों को डिब्बे में चढ़ाकर मैं अपनी सारंग नयनी का दर्शन लाभ के चक्कर में ,
फिर मुझे चंदा भाभी की बात याद आयी,... जब वो अपनी होली में पहली चुदाई जो उनकी पड़ोस के एक जीजा ने की थी, उसका जिक्र करते हुए बताया था की वो छुटकी की ही उम्र की थीं फिर आगे ये भी जोड़ा की पिछले साल होली में उन्होंने छुटकी की बिल में खूब ऊँगली की थी, बहुत मस्ती की और उसकी चिड़िया एकदम उड़ने को तैयार है,
मैंने संध्या भाभी से सिर्फ ये कहा, " भौजी चंदा भाभी कह रही थीं की पिछले साल होली में उन्होंने छुटकी के साथ,.... "
भौजी के गाल गुलाबी नैन शराबी हो गए उस होली को याद कर के, बोलीं
"सच में बहुत मजा आया था, छुटकी, मैं और श्वेता, और गुड्डी की मम्मी, चंदा भाभी, दूबे भाभी, फिर कुछ सोच के वो मुस्करायी और कस के मुंझे डांटा
" अच्छा तो तू सोचता है की कुँवारी लड़की की ऊँगली कैसे, ....कहीं झिल्ली फटफटा तो नहीं जायेगी, एकदम नहीं। तुझे मालूम भी है की झिल्ली होती कहाँ है और कैसी होती है। स्साले, तीन साल से लौंडिया पटी है और अब तक पेली नहीं, ......तेरा ऐसा बुरबक, ये तो अच्छा है की गुड्डी है,... दूसरी कोई होती तो कोई और ढूंढ लेती।
पहली बात तो झिल्ली थोड़ा नीचे होती है, अंदर, तो एक पोर, दो पोर ऊँगली करने से फटेगी नहीं।
दूसरी बात, झिल्ली बहुत इलास्टिक होती है, एकदम लचीली, तो ऊँगली का जरा सा जोर पड़ भी गया तो नीचे धंस जाती है
और तीसरे जो लड़किया एक दूसरे को या खुद ऊँगली कर के झाड़ती हैं न वो सबसे पहले तो दोनों फांको को आपस में रगड़ के, या हथेली से रद्द के और ऊँगली डाला भी तो लंड की तरह धक्के नहीं मारती, जैसे कान खुजाते हैं बस वैसे ही, थोड़ा सा मोड़ के अंदर घुसेड़ के और एक बार बुर की अंदर की दीवार पे ऊँगली रगड़ती हैं न तो बेचारी नहीं लड़की का तो पानी निकलना तय है एकदम। "
और फिर संध्या भाभी, टाइम मशीन पर बैठ कर पिछले साल की होली में पहुँच गयीं।
और बात और किसकी, होली की और रीत की । बोलीं,
" इस साल होली में बहुत मस्ती हुयी, रीत तो एकदम उधरा गयी थी, तुम्हारे और गुड्डी के चक्कर में। नहीं तो, लेकिन पिछले साल भी, बहुत दिन बाद पहली बार वो होली में निकली, ....निकली क्या गुड्डी खींच के ले आयी और उसके बाद उन दोनों ने क्या धमाल मचाया, लेकिन आज की तरह नहीं, बस घण्टे दो घंटे, अगले दिन दोनों का ही परचा था, गुड्डी का दर्जा दस का मैथ्स का और रीत का बारहवीं का अंग्रेजी का, इसलिए, और मंझली की भी तबियत खराब थी। "
" क्या हो गया था मंझली को,"? मैंने पूछा.
मंझली मतलब, गुड्डी की मंझली बहन, जो उस समय नौवीं में थी।
संध्या भाभी जोर से खिलखिलाई,
" होगा क्या, स्कूल में जबरदस्त होली हुयी, घंटों
और कोई गड्ढा था उसमे पानी भरा था तो मंझली ने कुछ लड़कियों को उसमे धकेला तो चार पांच लड़कियों ने पकड़ के उसे भी, और सब जगह, अच्छी तरह से, बस भीग गयी थी तो सर्दी जुकाम और बुखार, तो एक दो घण्टे के बाद रीत और गुड्डी एक ही कमरे में बंद कर के, पढाई से ज्यादा ये डर था कहीं भीग गयीं तो इम्तहान, और मंझली भी उसी कमरे में और कमरा हम लोगो ने बाहर से भी बंद कर दिया था।
" तो फिर होली का, ....रीत गुड्डी और मंझली तो, " मैं अपनी आशंका ठीक से उजागर भी करता फिर उनका खिलखिलाना शुरू हो गया और कस के उन्होंने मुझे पकड़ के चूम लिया और बोलीं,
" स्साले, बहन महतारी के भंडुए, अभी तूने देखा ही क्या है, आज जितना चंदा और दूबे भाभी रगड़ाई कर रही थीं उससे कही ज्यादा गुड्डी की मम्मी अकेले,.... और जो तेरा पिछवाड़ा बच गया न आज, अगर गुड्डी की मम्मी होतीं न तो सीधे मुट्ठी जाती अंदर, और तेरे ऊपर चढ़ के रेप करतीं वो अलग। होली के दिन एकदम से, न रिश्ता न उमर बस मस्ती, ...."
मेरी आँखों के सामने उनकी तस्वीर आ गयी भाभी की शादी में, अकेला छोटा भाई था, अभी इंटर ही पास किया था, हाँ JEE में हो गया था,
और औरतों में घिरा, मंडप में ,कप्तान गुड्डी की मम्मी ही थीं और गुड्डी भी रस ले रही थी, मुझे आँखों से चिढ़ा रही थी,
गुड्डी की मम्मी ने अपना आँचल भी नहीं ठीक किया, बस एकदम सट के, उन्हें अपने गद्दर ब्लाउज से झांकते जोबन का मेरे ऊपर असर मालूम पड़ गया था। दोनों जोबन एकदम मेरे सीने से सटा कर, अपनी बड़ी सी अठन्नी साइज की लाल लाल टिकुली, अपने चौड़े माथे से निकाल के मेरे माथे पे चिपका दीं और वार्निंग भी दे दी ,
" खबरदार, अपनी महतारी के भतार,.... अगर इसे उतारा कल बिदाई के पहले, तोहरे सुहाग क निशानी है । "
और जोबन से खूब जोरदार धक्का दिया और धीरे से बोलीं,
" अरे मालूम है मुझे इसका असर, बहुत टनटना रहा है न। पहला पानी इसी में दबा के रगड़ रगड़ के निकालूंगी, फिर अंजुरी में भर के तोहीं को पिलाऊंगी, ऐसी गरमी लगेगी, सीधे अपनी महतारी के भोंसडे में जाकर डुबकी मारोगे तभी गरमी शांत होगी। "
संध्या भौजी की चिकोटी से मैं मंडप की यादों से वापस आया और संध्या भाभी बोलीं,
" तीन तीन भौजाई, गुड्डी क मम्मी, चंदा भाभी और दूबे भौजी लेकिन मैं अकेली ननद, ...लेकिन गुड्डी की सबसे छोटी बहन, छुटकी थी और गुड्डी की एक पक्की सहेली, एकदम घर जैसे, स्कूल में उससे एक क्लास आगे है ११ वी में थी वो भी पकड़ी गयी, तो बस दूबे भाभी ने मुझे दबोचा और श्वेता को गुड्डी की मम्मी ने छुटकी, चंदा भाभी के हिस्से में आयी। और फिर होली रगड़ के हुयी।"
संध्या भाभी ने जो बताया उसका सारांश ये था की खेल छुटकी, गुड्डी की सबसे छोटी बहन से ही शुरू हुआ, और उकसाया और किसने, उसकी मतलब गुड्डी की मम्मी ने चंदा भाभी को,
चंदा भाभी रंग तो खूब रगड़ रगड़ के लगा रही थीं छुटकी को, हाथ एक उनका छुटकी की फ्राक के अंदर घुस के कच्ची अमियो को रगड़ रही थीं, कभी मटर के दाने ऐसे आ रहे निपल को पकड़ के मरोड़ देतीं, और दूसरा हाथ छुटकी की जांघ के सरकते हुए चड्ढी के अंदर घुस रहा था। हाँ जैसा यहाँ होली का कायदा था, भौजाइयां हाथ पहले बाँध देती थीं, पीछे मरोड़ के,... तो चंदा भाभी ने छुटकी का हाथ भी पीछे,
लेकिन असली मस्ती तो श्वेता के साथ हो रही थी,
गुड्डी की मम्मी तो गुड्डी की मम्मी ही थीं। उन्हें इस बात से कोई फरक नहीं पड़ता था की सामने उनकी बेटी है और जिसकी वो ले रही हैं वो बेटी की सहेली है। उस समय तो जो लड़की पकड़ में आये वो ननद की तरह ही हो जाती है।
श्वेता का पहले उन्होंने दुपट्टा खींचा और आराम से दोनों हाथ पीछे कर के कस के कलाई बाँध दी। अब वो लाख उछले कूदे, फिर श्वेता का टॉप उतरा और फिर दोनों कबूतर खुले और श्वेता की ब्रा खोल के उन्होंने चंदा भाभी की ओर उछाल दी, जिससे छुटकी के हाथ उन्होंने बाँध दिए .
संध्या भाभी मुस्कराते हुए बोलीं,
" लेकिन गुड्डी की मम्मी ने जिस तरह श्वेता की शलवार खोली और उसकी चिड़िया दिखाई,.... वो देखने लायक था "
मैं चुप था और संध्या भाभी ने खुद बताया,
"आराम आराम से उन्होंने श्वेता की शलवार का नाड़ा खोला । हाथ तो उसके उन्होंने पहले ही बाँध दिया थे लेकिन तब भी वो छोरी पैर पटक के, जाँघों को चिपका के, एक पैर को दूसरे पैर में फंसा के रेजिस्ट कर रही थी, लेकिन गुड्डी की मम्मी को फरक नहीं पड़ रहा था। आराम से उन्होंने पहले नाड़ा खोला, और फिर शलवार उतारने, खींचने के बजाय, श्वेता को दिखा के नाड़ा शलवार में से खींच के निकाल दिया और उसे तोड़ दिया। अब वो चाह के भी शलवार नहीं बाँध सकती थी। फिर कभी यहाँ कभी यहाँ गुदगुदी, जाँघे खुलीं , पैर फैले और शलवार सरक के नीचे, गुड्डी के मम्मी के हाथ में और जब तक श्वेता कुछ समझे उन्होंने पूरी ताकत से शलवार उठा के छत के नीचे आंगन में फेक दिया। एक तो नाड़ा टूट गया और फिर शलवार भी अब बहुत दूर , लेकिन एक और रक्षा पंक्ति थी अभी, चड्ढी,
" हे कोई खजाना छुपा के रखा है, कब तक चिड़िया को ऐसी पिंजड़े में बंद रखेगी "
मुस्कराते हुए वो बोलीं फिर दोनों हाथ पैंटी के अंदर डाल के कस के जो जोर लगाया, वो जाँघों के बीच की दो फांको की तरह, दो फांक हो गयी। उसे शलवार से बिछुड़े हुए थोड़ा वक्त हो गया था तो गुड्डी की मम्मी ने चड्ढी के दोनों टुकड़ों को भी आंगन में शलवार के पास भेज दिया। और फिर चंदा भाभी को हड़काया,
" हे आज के दिन तो कम से कम बुलबुल को हवा पानी लगने दो, का ढक्क्न के अंदर से,... और ढक्कन उठा के,... हटा के शहद खाओ "
चंदा भाभी छुटकी की चड्ढी के अंदर हाथ डाल के छुटकी की नयी नयी बुलबुल का हाल चाल पूछ रही थीं, थोड़ी झिझक उन्हें गुड्डी की मम्मी की ही थी लेकिन अब वो खुद उकसा रही थीं,
तो बस छुटकी की भी चड्ढी उतर गयी और हथेली से पहले रंग लगा फिर रगड़ रगड़ के चाशनी निकालनी शुरू की, उधर गुड्डी की मम्मी की दो उंगलिया श्वेता की बिल में मथानी चला चला के मक्खन निकाल रही थीं और उसे गरिया भी रही थीं।
रंग की होली मंद पड़ गयी थी, देह की होली जोर पकड़ रही थी
और चंदा भाभी हर भाभी की तरह जानती थीं, जब ननदों का हाथ पीछे से बंधा होता है, चिड़िया खुल जाती है तब भी भौजी की मेहनत बढ़ाने के लिए अपनी जांघें जोर से सिकोड़ लेती हैं, जबरदस्ती की चीख पुकार मचाती हैं और छुटकी ने यही किया लेकिन चंदा भाभी कौन छोड़ने वाली थीं, छुटकी को पहले तो उन्होंने चिढ़ाया,
" हे अभी कउनो यार मिल जाए न तो झट से टाँगे फैला दोगी, खुद ही अपने हाथों से चिड़िया का मुंह खोल दोगी "
श्वेता की ऊँगली करते हुए, गुड्डी की मम्मी, चंदा भाभी और छुटकी को देखते हुए गुड्डी की मम्मी भी बोलीं,
"एकदम सही कहती हो, मन तो करता है की पूरी ऊँगली अंदर जाए और ऊपर से नखड़ा, अरे जड़ तक ऊँगली अंदर पेलो, बरस बरस का त्यौहार, आज एकदम बचनी नहीं चाहिए "
चंदा भाभी ने उस कच्ची कली की दोनों फांको को बस ऊँगली से फैलाया ही थी की छुटकी चीखने लगी,
" नहीं अंदर नहीं, अंदर नहीं, बस ऊपर ऊपर से कर लीजिये, बहुत दर्द होगा, "
और अबकी श्वेता ने उसे चिढ़ाया
" हे ऊँगली से घबड़ा रही है, मैं तेरे उमर की थी तो चार चार मोटे मोटे लौंड़े घोंट चुकी थी, तन से भले बड़ी हो गयी लेकिन अभी भी तू बच्ची ही है छोटी वाली, दूध अभी ग्लास से पीना शुरू किया या बोतल से ही "
किसी जवान होती किशोरी के लिए इससे बढ़के बेइज्जती क्या हो सकती थी
छुटकी अलफ़ गुस्से में पैर पटकते हुए बोली, " श्वेता दी, मैं कतई बच्ची नहीं हूँ, "
लेकिन फिर शरारत से मुस्कराते हुए, कैशोर्य की दहलीज पर खड़ी, उस शोख गुड्डी की छोटी बहन ने आँख नचाते, श्वेता को चिढ़ाते बोली
" दी, आप जिन मोटे मोटे लौंड़ो की बात कर रही नहीं है, असल में केंचुआ छाप टाइप, वाला, जो मेरी फाड़ेगा न वो उन सबसे बीस नहीं पच्चीस होगा, और वो तय भी है की कौन होगा। मेरी क्लास में भी कितनों की चिड़िया उड़ रही है लेकिन मैं रोज अपनी सुंदरी को, इस सहेली को समझातीं हूँ, थोड़ा सबर कर, जिसे गुड्डी दी पटाएंगीं न, जिससे उनकी गाँठ जुड़ेगी, मेरे जीजू,…. गुड्डी दीदी से पहले मेरे साथ, ….सगाई के दिन ही, ..."
लेकिन श्वेता कौन जल्दी हार मानने वाली थी, छुटकी को छेड़ते बोली,
" हे इतना मोटा होगा तो बहुत दर्द होगा तुझे, फट के हाथ में आ जाएगी, और मान लो जो छोटे छोटे चूतड़ मटका के चलती है न तू, कहीं तेरी गांड न मार लें, तेरे जीजू "
छुटकी खुश , लेकिन बनावटी गुस्से से श्वेता दी से बोली,
" देखिए दी, आप मेरी दी भी हैं पक्की सहेली भी लेकिन इसका मतलब ये नहीं की, " और छुटकी ने मुंह फुला लिया और फिर जोड़ा, " और चाहे आप हों , चाहे गुड्डी दी खुद, साली और जीजू के बीच कोई नहीं आ सकता जो मेरे जीजू की मर्जी, करें, और जीजू कौन जो साली से पूछे या साली के मना करेने से मान जाए "
संध्या दी, गुड्डी की छोटी बहन, छुटकी और श्वेता की छेड़छाड़ सुना रही थीं,
मुझे कल रात की चंदा भाभी की बात याद आ रही थी की कैसे जब वो गूंजा भी से छोटी थीं, छुटकी के आसपस की उम्र की, पड़ोस के एक जिज्जा ने होली में अपनी सलहज के साथ मिल के उनका फीता काट दिया था, फिर मुस्करा के कहने लगीं चंदा भाभी बोलीं, अब जीजा साली की नहीं फाड़ेगा तो कौन लेगा।
संध्या भाभी ने फिर श्वेता की बात सुनाई, की कैसे वो पलटा मार गयी और कुछ छुटकी को मनाते कुछ गुड्डी की मम्मी को सुनाते बोलीं,
" चल यार बात तेरी एकदम सही है, सबसे छोटी साली है तू तो तेरा हक़ सबसे पहले, लेकिन साली तो मैं भी हूँ, छोटी न सही बड़ी ही सही तो क्या मैं छोडूंगी उस स्साले को बिना घोंटे "
अब छुटकी मान गयी और हँसते हुए बोली ,
" ये बात हुयी न मेरी दी वाली, एकदम सही कहा आपने, अगर कहीं ज्यादा शर्मायेंगे, न तो बस हम सब बहने मिल के रेप कर देंगे उनका। और हक़ तो आपका है, पूरा है , लेकिन पहले मेरा नंबर, उसके बाद मंझली का फिर जीजू आपके हवाले, गुड्डी दी का नंबर सबसे बाद में "
और अब गुड्डी की मम्मी भी मैदान में आ गयीं, गचागच श्वेता की बुर में दो दो ऊँगली एक साथ पेलते बोलीं,
" बात तुम दोनों सही कह रही हो, जीजा का हक़ तो है ही सालियों पे चाहे छोटी हो बड़ी, लेकिन छोटी का नंबर पहले, और ज्यादा इन्तजार नहीं करना पड़ेगा तुम दोनों को,
“ स्साली छिनार, गुड्डी के मरद का लम्बा मोटा घोंटने के लिए तैयार बैठी हैं बुर फैलाय के अभी से,… और यहाँ ऊँगली घोटने में गाँड़ फटी जा रही है। अबे स्साली, तेरे जीजू का काम आसान कर रही हूँ, घोंट ,…घोंट न"
चंदा भाभी बोलीं और झट से एक ऊँगली छुटकी की बिल में दो पोर तक, वो पैर पटकती रही लेकिन जैसे चूड़ी वाली चूड़ी पहनाती हैं उसी तरह बड़ी उमर की लड़कियां, चिढ़ा के, खिला के, कच्ची कलियों की बिल में ऊँगली कभी कभी गोल गोल घुमा के, कभी धीमे धीमे सरका के, आराम आराम से तो पहले एक ऊँगली का दो पोर, फिर दो उँगलियाँ, लेकिन उनका आधा पोर हो घुस पाया।
और अब श्वेता की रगड़ाई अगले लेवल पे पहुँच गयी थी। गुड्डी की मम्मी कस के दो ऊँगली से उसकी बोल चोदते बोलीं,
" अरे श्वेता उस उमर में तूने चार चार लौंड़े घोंटे थे तो अब तो दो चार का नाश्ता कर लेती होगी और चंदा भाभी से बोलीं," सुन यार इस श्वेता की गांड और बुर दोनों में मुट्ठी करनी होगी इसकी मस्ती ऊँगली से नहीं निकलेगी। "
अब श्वेता भी घबड़ायी और मैं भी। मैंने पूछा
" क्या सच में मुट्ठी हुयी ?
" अरे नहीं " खिलखिलाती हुयी संध्या भाभी बोलीं और फिर ज्ञान दिया,
" कुंवारियों की कभी नहीं होती और शादी शुदा की भी,… एक बच्चे के हो जाने के बाद ही लेकिन श्वेता को डरा के गुड्डी की मम्मी ने और चंदा भाभी ने बड़ी मस्ती की। दोनों लोग मेरी भी लेने के चक्कर में थी तो थोड़ी देर बाद दूबे भाभी के चंगुल से मैं छूटी तो वो दोनों लोग इन्तजार ही कर रही थीं, दोनों ने मुझे दबोच लिया एक साथ लेकिन गुड्डी की मम्मी ने श्वेता को बोला
" सुन स्साली, अगर मुट्ठी से बचना है तो दस मिनट में छुटकी को पकड़ के,... " और आगे की बात चंदा भाभी ने पूरी की
" चूस चूस के झाड़ दो, वरना तेरी गांड और बुर दोनों में मुट्ठी एक साथ होगी "
कहानी में मोड़ आ गया था और मैं धयान से सुन रहा था।
छुटकी तेज शोख, श्वेता को अंगूठा दिखा के भागी और श्वेता पीछे पीछे, कभी छुटकी कन्नी काट के निकल जाती तो कभी पास में आके चिढ़ाती और दूर भाग जाती। लेकिन अंत में पकड़ी गयी,पटकी गयी और दोनों जाँघे फैला के श्वेता ने चूसना शुरू किया और साथ में हल्की हलकी ऊँगली। नयी लड़की चार पांच मिनट में ही झड़ गयी, पर श्वेता ने छोड़ा नहीं चूसती रही जब तक छुटकी थेथर नहीं हो गयी और फिर खुद उसके ऊपर चढ़ के अपनी बुर भी सबके सामने उससे चुसवाई।
मुझे याद आया कल शाम को ही तो, जब मैं और गुड्डी, मम्मी से वीडियो काल पे बात कर रहे थे, और वीडियों काल में छुटकी और श्वेता भी दिख रही थीं। छुटकी चिढ़ा रही थी,
" मैं जीत गयी, मैं जीत गयी दी, हार गयीं "
और श्वेता उसे गुदगुदाते हुए बोल रही थी, तूने बेईमानी की है , तूने पत्ते छिपाये थे मैं तेरी तलाशी लूंगी अभी देख मैं निकलती हूँ तेरी चड्ढी से, वहीँ छुपाये हैं तूने "
और जैसे श्वेता ने अंदर हाथ डाला चड्ढी के, वो बड़ी जोर से उछली,
" दी, वहां नहीं, वहां नहीं, बदमाशी नहीं अंदर नहीं, निकाल लीजिये, प्लीज अंदर नहीं "
लेकिन श्वेता और, ....
कुछ देर बाद छुटकी बोली, " दी आपने देख लिया, चेक कर लिया, अब तो हाथ निकाल लीजिये "लेकिन श्वेता और मस्ती के मूड में थी। छुटकी की मंम्मी भी देख रही थी लेकिन मुस्करा रही थीं।
तो ये चक्कर था, छुटकी और श्वेता एक और इसकिये मम्मी भी बजाय कुछ बोलने के नयन सुख ही ले रही थीं।
लेकिन छुटकी और श्वेता के इस लेस्बियन दंगल और जिस तरह से डिटेल में संध्या भाभी उस कच्ची कली की चिपकी चिपकी एकदम कसी गुलाबी मुलायम टाइट फुद्दी की फूली फूली भरी भरी फांको की बात कर रही थीं, जंगबहादुर फनफना गए।
और उनके बौराने का एक कारण संध्या भाभी के नरम गरम चूतड़ भी थे, जिस तरह से वो अपने चूतड़ मेरे खड़े खूंटे पे रगड़ रही थीं उसी से अंदाजा लग रहा था की कितनी गरमा गयीं, बुर उनकी एकदम पनिया गयी थी। मैंने अपने दोनों हाथों से भौजी के जुबना मीस रहा था और वो सिसकते हुए बोल रहीं थी,
" उस स्साली छुटकी के कच्चे टिकोरे भी ऐसी ही कस कस के मसलना और कुतरना जरूर।
और मेरे सामने सुबह की वीडियो काल में दिख रही छुटकी याद आ रही थी, छुटकी के दोनों मूंगफली के दाने ऐसे, घिसे हुए टॉप से साफ़ साफ रहे थे दोनों, बस मन कर रहा था मुंह में लेके कुतर लूँ, ऊँगली में ले के मसल दूँ, दोनों छोटे छोटे आ रहे दानों को ।आँखे मेरी बस वही अटकी थीं, छुटकी और मम्मी के, कबूतरों पे,
एक कबूतर का बच्चा, अभी बस पंख फड़फड़ा रहा था और दूसरा, खूब बड़ा तगड़ा, जबरदस्त कबूतर, सफ़ेद पंखे फैलाये,
२८ सी और ३८ डी डी दोनों रसीले जुबना,
साइज अलग, शेप अलग पर स्वाद में दोनों जबरदस्त,
बस मन कर रहा था कब मिलें, कब पकड़ूँ, दबोचूँ, रगडूं, मसलु, चुसू, काटूं,
और संध्या भाभी की बात एकदम सही थी, स्साली गरमा भी रही थी, तैयार भी थी, सुबह जिस तरह मम्मी के वीडियो काल से जाने के बाद छुटकी ने फोन थोड़ा टिल्ट करके दोनों चोंचों का क्लोज अप एकदम पास से दिखाया, झुक के क्लीवेज का दर्शन कराया, लेकिन अभी तो सामने संध्या भाभी थीं, तो बस,...
गुड्डी थी तो लेकिन बाथरूम में और वो बोलकर गई थी डेढ़ घंटे के पहले वो नहीं निकलेगी।
मैंने सीढ़ी का दरवाजा बंद किया और चंदा भाभी के बाथरूम में पहले तो सिर झुका के सिर में लगे रंग, फिर चेहरे, हाथ पैर के रंग। जो रीत ने सबसे पहले पेंट लगा दिया था उसका कमाल था या जो बेसन वेसन चंदा भाभी ने दिया था उसका। काफी रंग साफ हो गया। मैंने मुँह में एक बार फिर से साबुन लगाया तभी दरवाजे पे खट खट हुई। मुँह पोछते हुए मैं दरवाजे के पास पहुँचा। जल्दी से मैंने बस टॉवेल लपेटी
तब तक खट-खट तेज हो गई थी। जैसे कोई बहुत जल्दी में हो। कौन हो सकता है ये मैंने सोचा- “गुंजा…”
घड़ी की ओर निगाह पड़ी तो उसके आने में तो अभी पौन घंटे से ऊपर बाकी था। वो बोलकर गई थी की मेरे आने के पहले मत जाइएगा। बिना सबसे छोटी साली से होली खेले। कहीं जल्दी तो नहीं आ गई और मैंने दरवाजा खोला। साबुन अभी भी आँख में लगा था साफ दिख नहीं रहा था।
गुड्डी अभी भी लगता है बाथरूम में ही थी।
कपडे दिख नहीं रहे थे, किसी तरह एक छोटी सी टॉवेल लपेट के मैं निकला,
शैतान का नाम लो शैतान हाजिर और गुड्डी बाहर निकल आई।
लम्बे भीगे बाल तौलिया में बंधे, रंग उसका भी साफ हुआ था लेकिन पूरा नहीं और एक खूब टाईट शलवार सूट में।
upload image उसके किशोर जोबन साफ-साफ दिखते, छलकते और कसी शलवार में नितम्बों का कटाव, यहाँ तक की अगर वो जरा भी झुकती तो चूतड़ की दरार तक। मेरी निगाह उसके गदराये जोबन पे टिकी थी। मैं बेशर्मों की तरह उसे घूर रहा था।
“लालची…” वो मुश्कुराकर बोली बिना दुपट्टा नीचे किये।
“अच्छी चीज हो तो मुँह में पानी आ ही जाता है…” मैं बोला।
“मुँह में या कहीं और…” वो शैतान बोली और उसकी निगाह नीचे की ओर।
और मेरी निगाह भी नीचे पड़ी। टॉवेल थोड़ी सी खुली थी और ' वो शैतान' अपना माल देखकर ललचाते हुए झाँक रहा था।
“रहने दो ऐसे ही। थोड़ा हवा पानी लगने दो…” खिलखिलाते हुए वो बोली, फिर आँख नचाकर कहने लगी। अच्छा चलो मैं बंद कर देती हूँ और मेरे पास आकर अपनी कोमल उंगलियां। बंद किसे करना उसने हाथ अन्दर डालकर सीधे उसे पकड़ लिया।
वो थोड़ा सुस्ता रहा था। लेकिन फिर अब गुड्डी की उंगलियां। वो फिर कुनमुनाने लगा।
“तेरे लिए एक अच्छी खबर है…” मेरे कान में होंठ लगाकर गुड्डी बोली।
मेरे मन में चिंता की लहर दौड़ गई कहीं ये ठीक नहीं हुई तो। मैंने इतना प्लान बनाया था की रात भर आज इसे और फिर अब मेरे जंगबहादुर को स्वाद भी लग गया था।
गुड्डी मुझे इन्तजार कराके बोली-
“वो मेरी सहेली। टाटा, बाईं बाई। एकदम साफ। इसलिए तो नहाने में इतना टाइम लग गया था। अब तुम्हारा रास्ता एकदम क्लियर…”
“हुर्रे। ये तो बहुत अच्छी खबर है, तो पहले तो कुछ मीठा हो जाय…” मैंने भी उसे कसकर बाहों में भींच लिया। जवाब में उसके हाथ ने मेरे लण्ड को कसकर दबा दिया। सोया शेर अब जग गया था।
“एकदम क्यों नहीं…” और दो किस्सी गुड्डी ने मेरे होंठों पे दे दी।
“अरे इसे भी तो कुछ मीठा खिला दो। बिचारा भूखा है…” मैंने बोला।
“तो रहने दो न। बुद्धू लोगों के साथ यही होता है। अरे मेरे प्यारे बुद्धू। चल तो रही हूँ न तेरे साथ। आज रात से पूरे हफ्ते भर रहूंगी। दिन रात। । संध्या भाभी दावत तो दे के गयीं हैं बेचारी उनके दोनों मुंह में इतना पानी आ रहा था। अभी गुंजा आती होगी, स्साले तेरी सबसे छोटी साली, खिलाना उसको यहाँ तक, अपना मोटा लम्बा ब्रेड रोल। "
वो बोली,.... और साथ में अब जोर-जोर से मुठिया रही थी।
मेरा सुपाड़ा तो चंदा भाभी के हुकुम के बाद खुला ही रहता था, बस गुड्डी ने अपने अंगूठे से उसे भी रगड़ना शुरू कर दिया।
एक बात मैंने देखी, जब भाभियों ने मेरा चीर हरण कर के पूरी तरह निर्वस्त्र किया, जितना कड़क औजार देख के भाभियाँ पनियाती हैं उससे भी ज्यादा मोटे बौराये खुले सुपाड़े को देख के.... नीचे की मंजिल में एक तार की चासनी निकलने लगती है।
“ये भी तो पांच दिनों के बाद…” शलवार के ऊपर से मैं भी अब उसकी चुनमुनिया को रगड़ रहा था।
“तुम ना बेसबरे। एक से एक भोजन है यहाँ और, चलो अभी गुंजा आयेगी ना। रीत और संध्या भाभी को तो दूबे भाभी और चंदा भाभी इत्ती जल्दी बिना पूरी तरह निचोड़े छोड़ने वाली नहीं, लेकिन गुंजा बस आ ही रही होगी, सुबह तो उसे दिखा भी दिया, पकड़ा भी दिया और बाकी काम अब, तुम्हें कुछ नहीं मालूम अरे यार अभी तो नहाई हूँ ना। छ: सात घंटे तक कुछ नहीं…” गुड्डी बोली।
“एक उंगली भी नहीं। आखीरकार, इसका उपवास भी तो टूटना चाहिए न…” मैं मुँह बनाते बोला।
खिलखिला के वो हँसने लगी और एक बार फिर मुझे किस कर लिया और बोली-
“इसका उपवास पांच दिन का नहीं …. और वो उंगली से नहीं इससे टूटेगा, मेरे बेसबरे बालम। तुम लेते लेते थक जाओगे मैं देते देते नहीं थकूँगी। प्रामिस है मेरा। बस थोड़ा सा। इंतेजार…” upload image
गुड्डी की उंगलियां लगातार चल रही थी और अब मेरे लण्ड की हालत खराब हो रही थी। अब मैंने उसके होंठ पे कसकर एक चुम्मी ली, उसके निचले होंठों को मुँह में लेकर चूस लिया। गुड्डी का गुलाबी रसीला होंठ मेरे होंठों के बीच में था।
मैं उसे चूस रहा था, चुभला रहा था साथ में मेरा एक हाथ टाईट कुरते को फाड़ती चूची को दबा रहा था और दूसरा उसके चूतड़ के कटाव की नाप जोख कर रहा था। हाथ गुड्डी के भी खाली नहीं थे। एक से तो वो मेरा लण्ड अब खुलकर कस-कसकर मुठिया रही थी और दूसरे से उसने मेरी पीठ पकड़ रखी थी और अपनी ओर पूरी जोर से खींच रखा था।
“हे वहां एक छोटा सा किस बस जरा सा। देखो ना उसका कितना मन कर रहा है…” मैंने फिर मनुहार की।
“छोटा सा क्यों, पूरा क्यों नहीं। यहाँ से यहाँ तक…” और उसने अपनी नाजुक उंगली से, लम्बे नाखून से मेरे खुले सुपाड़े से लेकर लण्ड के बेस तक लाइन खींच दी। लेकिन अगली बात ने उम्मीद तोड़ दी।
“लेकिन अभी नहीं। बोला ना। अच्छा चलो। बनारस से निकलने से पहले बस किस दूंगी वहां…” और उसने मेरे सुपाड़े को अपने अंगूठे से दबाकर इशारा साफ कर दिया की वो किस कहाँ होगा।
“अभी…” मैंने फिर अर्जी लगाई।
“उनहूँ…” अब उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में घुसा दी थी और मैं उसे कसकर चूस रहा था। कुछ देर बाद जब सांस लेने के लिए होंठ अलग हुए तो मैंने फिर गुहार की- “बस थोड़ा सा…”
फिर आँख नचाके वो शोख बदमाश बोली, " हाँ एक बात बता सकती हूँ, मिल सकता है इसको किस भी, चुसम चुसाई भी " सुपाड़े की एकलौती आँख पे अपने नाख़ून से सुरसुरी करती उसने एक उम्मीद जगाई, और मैं कुछ पूछता उसके पहले उसने बता भी दिया,
" तेरी छोटी साली, दर्जा नौ वाली,
चुसवाना उससे मन भर के, बस आती ही होगी और वैसे भी अभी घंटे भर तक तो नीचे बाथरूम में कुश्ती चलेगी ननद भाभियों की। अभी गुंजा आती होगी उससे चुसवाना…”
थोड़ा सा वो पसीजी। कम से कम साफ मना तो नहीं किया।
“गुंजा। अरे यार वो छोटी है अभी…” मैंने उसे फिर मुद्दे पे लाने की कोशिश की।
असली बात ये थी की मैं न नौ नगद न तेरह उधार वाला था, जंगबहादुर फनफनाये थे, गुड्डी मेरी बाँहों में थी, छत पर सन्नाटा और उसके रसीले होंठ इसलिए मैं गुंजा के पोस्ट डेटेड चेक पर नहीं टलने वाला था, पर गुड्डी गुस्सा हो गयी।
पहले तो उसने मेरे कान का पान बनाया और हड़काते हुए बोली,
" स्साले, तेरी किस्मत अच्छी थी की मैं तुझे ऊपर से लिखवा के ले आयी, वरना, कुछ लोग बुद्धू होते हैं तू महाबुद्धु है। सुबह दबा के मीज के रगड़ के ऊपर वालों की नाप जोख कर ली,
चुनमुनिया भी सहला ली, सुबह से उसने चिक्क्न मुक्क्न कर के रखी है। अरे दो ढाई साल पहले से उसका बिना घाव के खून निकलना शुरू हो गया है। छोटी कतई नहीं है,
दो बाते सुन भी लो और समझ लो, साल डेढ़ साल पहले से उसके क्लास की आधे से ज्यादा लड़कियों की चिड़िया उड़नी शुरू हो गयी है, मेरे ही स्कूल की है और एक एक बात बताती भी है। और दूसरी उससे भी ज्यादा जरूरी बात, साली कभी छोटी नहीं होती। साली साली होती है। "
फिर उसे ध्यान आया की बहुत देर से और बहुत कस के कान पकडे है तो कान छोड़ के मुस्कराते हुए बोली,
" अरे यार दीदी की छुट्टी चल रही हो तो छोटी साली ही काम आएगी न "
मेरे मन की बदमाशी मुझसे पहले उसे पता चल गयी थी, वो समझ गयी की मैं उसकी दोनों छोटी बहनों के बारे में सोच रहा हूँ। उसकी नाचती गाती दीये सी बड़ी बड़ी आँखे मुझे बता रही थी, की मैं क्या सोच रहा हूँ उसने पकड़ लिया है।
मैंने भी शरारत से पूछा, " सिर्फ साली ही या, "
जोर का मुक्का और जोर से पड़ा और गालिया भी, " हिम्मत हो तो मम्मी के सामने बोलना, मैं समझ रही हूँ तेरी बदमाशी। "
सच में मेरे मन में पता नहीं कहाँ से गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी ही आ गयीं थी,खूब भरी देह, गोरी जबरदस्त, मुंह में पान, कोहनी तक लाल लाल चूड़ियां गोरे हाथों में, खूब टाइट चोली कट ब्लाउज, जो नीचे से उभारों को उभारे और साइड से कस के दबोचे, और खूब लो कट, स्लीवलेस, मांसल गोरी गोलाइयाँ तो झलक ही रही थीं घाटी भी अंदर तक, उभार भी क्या जबरदस्त और उतने ही कड़े कठोर,
फिर वो मम्मी की परी खुद ही बोली, मेरी ओर से तो सब के लिए ग्रीन सिग्नल है और जहाँ तक मम्मी का सवाल है वो तो वो खुद ही तुझे सीधे रेप , अब सोच लो "
मैं लेकिन बात पटरी पर वापस ले आना चाहता था
“अच्छा बस एक छोटा सा किस। बहुत छोटा सा बस एक सेकंड वाला…” गुंजा की बात सोचकर मेरा लण्ड और टनटना गया। लेकिन बर्ड इन हैंड वाली बात थी।
गुड्डी घुटने के बल बैठ गई और मेरी आँखों में अपने शरारती आँखें डालकर ऊपर देखती हुई बोली-
“चलो। तुम भी क्या याद करोगे किस बनारस वाली से पाला पड़ा है…”
और टॉवेल के ऊपर से ही उसने तने हुए तम्बू पे एक किस कर लिया। बिच्चारा मेरा लण्ड। लेकिन अगले ही पल उसने खुली हवा में साँस ली। जैसे स्प्रिंग वाला कोई चाकू निकलकर बाहर आ जाय 8” इंच का। बस वही हालत उसकी थी। मैंने उसे पकड़कर गुड्डी के होंठों से सटाने की कोशिश की तो गुड्डी ने घुड़क दिया।
“चलो हटाओ हाथ अपना। छूना मत इसे। मना किया था ना की अब हाथ मत लगाना इसे अब जो करूँगी मैं करूँगी, या तेरी साली, सलहज, फिर कुछ रुक के मुस्करा के आँख नचा के बोली,... सास करेंगी। …”
उतनी डांट काफी थी। मैंने दोनों हाथ पीठ के पीछे बाँध लिए। की कहीं गलती से ही। हाथ गुड्डी ने भी नहीं लगाया। सुपाड़ा पहले से ही । मोटा लाल गुस्सैल, खुला हुआ और लण्ड चितकबरा हो रहा था। दूबे भाभी के हाथ की लगायी कालिख, रीत और गुड्डी के लगाये लाल गुलाबी रंग।
गुड्डी ने अपने रसीले प्यारे होंठ खोल दिए। मुझे लगा की अब ये किशोरी लेगी लेकिन उसनी अपनी जीभ निकाली और फिर सिर्फ जीभ की टिप से, मेरे पी-होल को, सुपाड़े के छेद पे हल्के से छुआ दिया। जोर का झटका जोर से लगा।
उसकी गुलाबी जुबान पूरी बाहर निकली थी। कभी वो पी-होल के अंदर टिप घुसेड़ने की कोशिश करती तो कभी बस जुबान से सुपाड़े के चारों ओर जल्दी-जल्दी फ्लिक कराती।
और जब उसकी जुबान ने सुपाड़े के निचले हिस्से को ऐसे चाटा जैसे कोई नदीदी लड़की लालीपाप चाटे तो मेरी तो जान निकल गई। मेरी आँखें बार-बार गुहार कर रही थी, ले ले यार ले ले। कम से कम सुपाड़ा तो ले ले।
गुड्डी जीभ से सुपाड़ा चाटते हुए मेरे चेहरे को, मेरी आँखों को ही देखती रहती जैसे उसे मुझे तड़पाने में, सताने में मजा मिल रहा ही और फिर उसने एक बार में ही गप्प। पूरा मुँह खोल कर पूरा का पूरा सुपाड़ा अन्दर। जब उसके किशोर होंठ सुपाड़े को रगड़ते हुए आगे बढ़े और साथ में नीचे से जीभ भी चाट रही थी लेकिन ये तो शुरूआत थी। मजे में मेरी आँखें बंद हो गई थी।
अब गुड्डी ने चूसना शुरू कर दिया। पहले धीरे-धीरे फिर पूरे जोश से।
लेकिन सुपाड़े से वो आगे नहीं बढ़ी। हाँ अब उसकी उंगलियां भी मैदान में आ गईं थी। वो मेरे बाल्स को सहला रही थी, दबा रही थी। एक उंगली बाल्स और गाण्ड के बीच की जगह पे सुरसुरी कर रही थी और दूसरे हाथ का अंगूठा और तरजनी लण्ड के बेस पे हल्के-हल्के दबा रहे थे। और गुड्डी ने मुँह आगे-पीछे करना शुरू कर दिया। ओह्ह… आह्ह… हांआ मेरे मुँह से आवाजें निकल रही थी।
तभी सीढ़ी पे हल्के से कदमों की आवाजे आई। गुड्डी ने झटके से अपना मुँह हटाया और शेर को वापस पिंजड़े में किया।
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है गुड्डी की 5 दिन वाली सहेली की छुट्टी हो गई अब आनंद के लिए ग्रीन सिग्नल है दोनो के बीच हुई मस्ती भरी बाते मजेदार थी लगता है गुंजा आ गई है
सुबह कैसी चिकनी विकनी होकर गई थी। गोरे गालों पे अबीर गुलाल रंग पेंट, बालों में भी। एक इंच जगह नहीं बची थी, चेहरे पे, यहां तक की मोती ऐसे सफ़ेद दांत भी लाल, बैंगनी। कई कोट रंग लगे थे ,
लेकिन स्कूल यूनिफार्म करीब करीब बची, सिवाय,… सही समझा
सबसे जबर्दस्त लग रहा था उसके सफेद स्कूल युनिफोर्म वाले ब्लाउज़ पे ठीक उसके उरोज पे, उभरती हुई चूची पे किसी ने लगता है निशाना लगाकर रंग भरा गुब्बारा फेंका था। फच्चाक।
और एकदम सही लगा था,… साइड से। लाल गुलाबी रंग। और चारों ओर फैले छींटे। सफ़ेद ब्लाउज यूनिफार्म का एकदम गीला, जुबना से चपका, उभार न सिर्फ साफ़ साफ़ झलक रहे थे बल्कि उस नौवीं वाली के उभार का कटाव, कड़ापन, साइज सब खुल के, मैं उसे दुआ दे रहा था जिसने इतना तक के गुब्बारा मारा था
गुड्डी की निगाह भी वहीं थी।
“ये किसने किया?” हँसकर उसने पूछा। आखीरकार, वो भी तो उसी स्कूल की थी।
“और कौन करेगा?” गुंजा बोली।
“रजउ…” गुड्डी बोली और वो दोनों साथ-साथ हँसने लगी।
पता ये चला की इनके स्कूल के सामने एक रोड साइड लोफर है। हर लड़की को देखकर बस ये पूछता है- “का हो रज्जउ। देबू की ना। देबू देबू की चलबू थाना में…” और लड़कियों ने उसका नाम रजउ रख दिया है। छोटा मोटा गुंडा भी है। इसलिए कोई उसके मुँह नहीं लगता।
“हे टाइटिल क्या मिली?” गुड्डी ने पूछा।
“धत्त बाद में…” उसकी निगाहे मेरी ओर थी।
“अरे जीजू से क्या शर्माना। दे ना तेरे लिए एक गुड न्यूज भी है चल…” गुड्डी बोली।
गुंजा ने टाइटिल वाला कागज अपने सीने के पास छिपाने की कोशिश की। और वही उसकी गलती हो गई। मैंने कागज तो छीना ही। साथ में जोबन मर्दन भी कर दिया।
“हमने माना हम पे साजन जोबनवा भरपूर है…”
मैंने सस्वर पाठ किया। सही तो है उसकी उठती चूचियों को देखते हुए मैंने कहा।
“बस साजन की जगह जीजा होना चाहिए…” गुड्डी ने टुकड़ा लगाया।
“जाइए मैं नहीं बोलती। लेकिन वैसे जीजू आप अच्छे हैं मेरे लिए रुके रहे, लेकिन वो गुड न्यूज क्या है…” गुंजा मुश्कुराकर बोली।
“वही तो तेरे जीजा इत्ते फिदा हो गए तेरे ऊपर की रंग पंचमी में हम लोगों के साथ ही रहेंगे और वो भी दो दिन पहले आ जायेंगे। है ना गुड न्यूज…” गुड्डी हँसकर बोली।
“अरे ये तो बहुत बहुत अच्छी मस्त न्यूज है। एकदम…” और गुंजा आकर मुझसे चिपट गई।
उसकी ठुड्डी उठाकर मैं बोला- “तो फिर कुछ मीठा हो जाए…”
“एकदम…” वो बोली और उसके होंठ सीधे मेरे होंठों पर।
और मैं सुबह की याद कर रहा था इस स्वॉट सेक्सी टीनेजर ने कैसे मुझसे प्रॉमिस करवाया था और मेरी उँगलियों को बदले में अपनी हवा मिठाई का स्वाद,
मैं गुंजा को प्रॉमिस कर रहा था, पक्का तेरा वेट करूँगा, तेरे स्कूल से तेरे आने के बाद ही, तुझसे होली खेल के ही जाऊँगा , श्योर कसम से
लेकिन गूंजा हड़काते हुए बोली,
" दीदी ठीक ही बोलती थीं, आप बुद्धू ही नहीं महा बुद्धू हो, मैंने कहा था सीने पे, दिल पे और आप मेरे टॉप पे हाथ रख के कसम खा रहे हो, ये भी नहीं मालूम की दिल कहाँ होता है। "
और जिस टीनेजर ब्रा के अंदर घुसने में मेरी ऊँगली को सात करम हो रहे थे, माथे पर पसीना आ रहा था, उस लड़की ने, सीधे मेरे दोनों हाथों को पकड़ के ब्रा को दरकाते ऊपर कर के सीधे अपने सीने पर,
मेरे दोनों हाथों में गोल गोल हवा मिठाई,
मेरे हाथ अब हलके हलके उन बस आते हुए उरोजों को सहला रहे थे, कभी कस के भी दबा देते तो उसकी हल्की सी सिसकी निकल जाती, तर्जनी से मैं बस उभर रहे निप्स को फ्लिक कर देता और मस्ती से जोबन पथरा रहे थे , उसकी लम्बी लम्बी चल रही थीं, साफ़ था पहली बार किसी लड़के का हाथ वहां पड़ा था।
" बोलो न प्रॉमिस करो न " हलके हलके गूंजा की आवाज निकल रही थी।
मैं बोला ,
" एकदम तुम्हारा वेट करूँगा, बिना तुझसे होली खेले नहीं जाऊँगा, पक्का। जब भी स्कूल से लौटोगी तब तक, प्रॉमिस, पिंकी प्रॉमिस, , फिर थोड़ा सा टोन बदल के कस के पूरी ताकत से उसकी चूँची रगड़ के मैंने पूछा उससे हामी भरवाई,
" मेरा जहाँ मन करेगा, मैं वहां रंग लगाऊंगा, फिर गाली मत देना, गुस्सा मत होना, "
और गुंजा भी, गुड्डी से भी चार हाथ आगे, मुड़ी और मेरे होंठों पर पहले होंठ रखे फिर बोली,
" आप को जहाँ मन करेगा लगाईयेगा लेकिन मेरा भी जहाँ मन करेगा लगाउंगी, और मन भर लगाउंगी, चुप चाप लगवा लीजियेगा, "
जितने जोर से मैं उसे नहीं चूम रहा था उससे ज्यादा जोर से वो मेरे होंठ चूस रही, अपने भीगे गीले झलकते उभार मेरे खुले सीने पे वो टीनेजर रगड़ रही थी,
गुड्डी दूर खड़ी देख रही थी, मुश्कुरा रही थी। मानो कह रही हो, देख लो तुम कह रहे थे ना। बच्ची है। कोई बच्ची वच्ची नहीं है। तुम्हीं बुद्धू हो।
और गुड्डी की बात की ताईद गुंजा के नव अंकुरित उभारकर रहे थे जो मेरे सीने में दब रहे थे। मैंने गुंजा को और कसकर भींच लीया और मैंने भी पहले तो उसके होंठों को अपने होंठों के बीच दबाकर चूसा और फिर उसके गाल पे भी एक छोटा सा किस किया और उसके फूले फूले गालों को मुँह में भरकर हल्के से काट लिया।
उईई वो चीखी। कुछ दर्द से कुछ अदा से। फिर गुड्डी को देखकर बोली-
“देख दीदी जीजू ने काट लिया। कटखने…”
गुड्डी उसे देखती मुश्कुराती रही और बोली- “तुम सबसे छोटी साली हो, तुम जानो ये जाने। बिचारे तुम्हारे आने का इंतेजार कर रहे थे तो कुछ तो…”
तभी गुड्डी को कुछ याद आया, बोली,
" हे माना यूनिफार्म पे रंग नहीं है लेकिन अंदर, ...?"
शरारत से आँखे नचा के वो मेरी वाली बोली, आखिर वो भी तो उसी स्कूल में पढ़ती थी, बस गुंजा से दो ही क्लास आगे
' कमीनी सब छोड़तीं और वो शाजिया,... " खिलखिलाते हुए गुंजा बोली,
"दिखाओ दिखाओ दिखाओ,... "
मैं गुंजा को गुदगुदी लगाने लगा, लेकिन गुड्डी ने मुझे इशारा किया, सुबह से बनारस की होली खेल के मैं पक्का हो गया था, होली में कुछ भी चलता है और अगर दो एक ओर हों तो, बस पीछे से मैंने उस चंचल रंगी पुती किशोरी की नरम नरम कलाइयां कस के दबोच ली,
और गुड्डी ने आराम से धीरे धीरे, उस का स्कूल का सफ़ेद टॉप उतार के छत के एक कोने में फेंक दिया।
मैं तो पीछे से गुंजा की कलाई पकडे थे लेकिन पीठ पे ही जितना रंग लगा था उसी से मैं चौंक गया, जबरदस्त होली हुयी थी गुंजा की क्लास में।
" हे ये किसके निशान हैं ?" गुड्डी ने सामने से पूछा और गुंजा खिलखिलाती रही, पर गुड्डी बिना मुझे हड़काये कैसे रह सकती थी, तो बोली,
" छोटी स्साली से खाली होली खेलने का शौक है, पूछा नहीं कुछ खाया की नहीं, भूखी तो नहीं है " और गुंजा से बोली,
" बहुत जीजा जीजा करती हो न, देख लो अपने जीजा को, ....चलो मैं लाती हूँ"
चलने के पहले गुंजा को गुड्डी ने हल्का सा धक्का दिया और गुंजा मेरे ऊपर, और मैं नीच।
हम दोनों चौखट के पास बैठे, गुंजा, मेरी साली मेरी गोद में,
और तब मैंने देखा उसकी सहेलियों की बदमाशी, इतना तो मुझे भी अंदाज था मौका पाके लड़कियां टॉप के ऊपर से कभी दबा देती हैं या टॉप की एक दो बटन खोल के ऊपर से अबीर, गुलाल,
लेकिन गुंजा के उभार एक तो वैसे ही जबरदस्त, ऊपर से लाल, काही, नीला, कई कोट रंग अच्छी तरह से उसकी सहेलियों ने रगड़ा पर सबसे मजेदार बात थी
उसकी किसी सहेली के दोनों हाथ के निशान, लगता है गोल्डन पेण्ट दोनों हाथ में लगा के, हथेली फैला के, दोनों उभारों पे पांच पांच उँगलियाँ, जैसे कोई कस कस के उसकी उभरती चूँचीयो पे ,
सुबह स्कूल जाने के पहले इसी टॉप के अंदर छुप छुप के मेरी उँगलियों ने खूब छुआ छुववल खेली थी, हल्के से भी भी दबाया था और कस के रगड़ा भी था,
लेकिन अब एकदम सामने, मैंने गुंजा की कमर को दोनों हाथों से पकड़ रखा था
लेकिन गुंजा, गुंजा थी, गुड्डी की असली छोटी बहन, खुद खींच के उसने मेरे दोनों हाथ अपने रसीले मस्त मस्त किशोर उभारों पर रख के दबा दिए, फिर मैं क्यों छोड़ता, अगर कोई साली खुद अपने हाथ से मीठा मीठा मालपूआ अपने जीजा को खिलाये तो कौन जीजा छोड़ सकता है,
लेकिन, गुंजा के कान पे हलकी सी चुम्मी लेते हुए मैं बोला, " सुन यार, मैं तो पहले से ही टॉपलेस था, सिर्फ छोटी सी तौलिया, और तू भी टॉपलेस हो गयी तो क्या "
गुंजा को जो मैंने और गुड्डी ने मिल के उसके दूनो जुबना को आजाद कर दिया था, उसपे कोई एतराज नहीं था, हाँ मेरे टॉवेल पे शायद था।
उसने अपने छोटे छोटे चूतड़ जरा सा रगड़ा और मेरे जंगबहादुर एक बार फिर से फनफना के तौलिये से बाहर निकल आये, हल्की सी तो गाँठ थी, वो भी ढीली पड़ गयी। मेरी छोटी स्साली उन्ह कर के जरा सा उठी और फिर बैठ गयी, इसी में उसका स्कर्ट पीछे से कमर तक उठ गया और
मेरे मूसल राज की किस्मत खुल गयी। नीचे भी कोई ढक्कन नहीं था। मेरे पहलवान की गुंजा की सहेली से मुलाकात हो गयी।
मुझसे पहले वो खुद हलके हलके अपनी कमर आगे पीछे करने लगी, मोटा खुला सुपाड़ा, आप ही सोचिये किसी गोरी बारी उमरिया वाली दर्जा नौ वाली की कसी कसी गुलाबी फांको पे रगड़ा जाएगा तो क्या हालत होगी, और साथ में मेरे हाथ भी, साली के जोबन मुट्ठी में होंगे तो रस लेने को कौन जीजा छोड़ देगा, ऊपर से मेरी गुड्डी ने बोल ही दिया की पहली बात गुंजा छोटी नहीं है और दूसरी बात, साली कभी छोटी नहीं होती, साली होती है। और उभार मेरी साली के सच में गुड्डी से थोड़े ही छोटे होंगे, ३० ++,... कम से कम,
तभी तो उसे टाइटल मिली, हम ने माना हम पर साजन जोबनवा भरपूर है,
वो मिडल ऑफ टीन वाली टीनेजर, सिसक रही थी, मेरे गाल पे अपना गाल रगड़ रही थी,
उसके दोनों हाथ मेरे हाथों को हलके हलके दबा रहे थे जिनमे गुंजा के रसकलश थे, जाँघे गुंजा की हल्के फ़ैल रही थी और कमर भी हिल रही थी। और मेरे लिंगराज भी इतनी लिफ्ट पाके हलके हलके ठीक दोनों दोनों फांको के बीच धक्के लगा रहे थे,
मुझे पता था की इस किशोरी की अब क्या चाहिए था, स्कूल की लड़कियों के साथ होली ने इसे एकदम गर्मा दिया था।
और तभी गुड्डी आ गयी, बियर की बोतले और एक प्लेट में वही भांग वाली गुझिया, बियर मैंने उस शोख टीनेजर अपनी साली की ओर बढ़ाई, तो उसने हलके से बोली , मैंने कभी पहले नहीं पी, बुदबुदा के बोली, और मैंने मुंह में लगा के एक तिहाई बियर खुद, तबतक गुड्डी उसे हड़काते बोली
" अरे कैसी साली हो, जो जीजा को मना करती हो, अरे जो चीज पहले कभी नहीं घोंटी वही तो जीजा घोटात्ते हैं "
" तो घोटाये न मैं कब मना कर रही हूँ, देखिये दीदी, आप भी अब अपने वाले की ओर से बोल रही हैं, पहली बात तो मैं उन सालियों में नहीं जो मना करती हैं , मेरी तो एडवांस में हाँ हर चीज के लिए। लेकिन उससे बड़ी दूसरी बात, वो जीजा कौन जो साली के मना करने पे मान पे जाए, जबरदस्ती न, "
खिलखिलाती मेरी छोटी साली बोली,
" स्साली पूरा बोल न,... जबरदस्ती न पेल दे "
हंसती हुयी गुड्डी बोली और कस के एक धौल गुंजा की पीठ पे
और मैंने गुंजा का सर कस के अपने दोनों हाथों से पकड़ के मुंह में अपना मुंह चिपका के, मेरे मुंह की सारी बियर अब उस कच्ची काली के मुंह में और वो गट गट कर के पी गयी और मेरे हाथ से बियर की बोतल ले एक बार और,
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है साली तो साली हो होती है गुंजा ने आनंद को पूरी छूट दे दी है वह इसके साथ कुछ भी कर सकता है वह इसके लिए तैयार हैं लेकिन अभी तक आनंद बुद्धू ही है
" हे तेरे स्कूल में होली जबरदस्त हुयी " मैंने कस के दोनों उभारों को मसलते हुए पूछा, जहाँ उसकी सहेलियों ने जम के रंग लगाया था।
गुंजा जोर से खिलखिलाई और गुड्डी की ओर इशारा करते बोली,
" अपनी दिलजनिया से पूछिए न, वो भी तो उसी स्कूल में हैं और दो दिन पहले जब ११ वी की छुट्टी हुयी तो क्या मस्ती काटी इनलोगो ने "
गुड्डी ने गुझिया मुझे खिलाते हुए गुंजा को बनावटी गुस्से से हड़काया, " हे ' अपनी ' का क्या मतलब, तू इनकी नहीं है कुछ क्या ?"
अपना हक़ जताते हुए मेरे खड़े खूंटे पे कस कस के अपने छोटे छोटे खुले चूतड़ गुंजा ने कस के रगड़ा, और बोली,
" एकदम हूँ, और साली का हक़ तो पहले होता है वो भी छोटी साली का, इसलिए तो मैं गोद में बैठी हूँ, क्यों जीजू "
और गुंजा ने कस के चुम्मी ली और अबकी गुंजा के मुंह से , उसके मुख रस के स्वाद के साथ बियर मेरे मुंह में।
और गुड्डी ने सुनाना शुरू किया लेकिन हंसी के मारे, वो बोली, एक तो हम दोनों के स्कुल का नाम ऐसे और फिर ही ही ही
बात गुंजा ने पूरी की और आगे होली के बदलते नियमो की बात भी
एक कोई मारवाड़ी सेठ ने अपनी पूज्य स्वर्गीया की स्मृति में स्कूल बनवाया था, मैनेंजमेंट और कंट्रोल पूरा उन्ही का, नाम था, चूड़ा देवी बालिका विद्यालय,
लेकिन सब लोग चू दे विद्यालय कहते थे, नयी सड़क के पास ही था। गुंजा ने अपने हाथ से बियर मुझे पिलाते हुए हंस के बोला,
" जीजू सोचिये न जिस स्कूल का नाम ही चुदे है वहां की लड़कियां नहीं चुदेंगी तो कहाँ की लड़कियां चुदेंगी"
" तो चुदवा ले न , देख बेचारे इतनी दुर्गत सह के भी छोटी साली के लिए रुके थे "
गुड्डी ने मेरी ओर देखते हुए गुंजा को चढ़ाया,
गुंजा ने बड़े प्यार से मेरे गाल पे एक खूब मीठी वाली चुम्मी ली और बोली, मेरे जीजू चाहे जो करें और गुड्डी ने स्कूल की होली का किस्सा शुरू किया।
पहले रूल्स बहुत स्ट्रिक्ट थे, जब गुड्डी क्लास ८ में थी, होली एकदम मना थी, लेकिन लड़कियां कहाँ मानती थीं तो जबतक गुड्डी नौ में पहुंची तो अबीर गुलाल की होली परमिट हो गयी लेकिन क्लास में नहीं, और वो भी सिर्फ टीका लगा के,
" दी उसमें क्या मजा आता होगा, जबतक अंदर हाथ डाल के गुब्बारे न रगड़े जाएँ " गुंजा ने बियर की एक घूँट लेते हुए कहा।
गुड्डी उसे देख के मुस्करा रही थी, बोली,
" तू क्या सोचती है, मैं थी न। मैं घर से तो गुलाल ही ले गयी घर पे भी नोटिस आयी थी अगर कोई लड़की रंग लाते हुए पकड़ी गयी या उसके बैग में रंग मिला तो फाइन। लेकिन मैं भी, रस्ते में एक दूकान से पूरे ढाई सौ ग्राम पक्का लाल रंग , ये बोल के की दुपटा रंगना है, और उसी गुलाल में मिला दिया और गुलाल का पैकेट फिर से बंद। स्कूल में भी सब के बैग चेक हुए दो चार के बैग में रंग पकड़ा गया तो वहीँ सब के सामने कान पकड़ के,... और सब पैकेट जब्त। "
फिर मैंने हुंकारी भरते हुए गुड्डी की ओर तारीफ़ की नजर से देखा और गुंजा ने अपने हाथ की बियर की बॉटल से मुझे बियर पिलाया।
असल में बियर पिलाने का कभी अपने मुंह से कभी बियर की बॉटल से गुंजा कर रही थी और भांग वाली गुझिया खिलाने का काम गुड्डी
मेरी तो मज़बूरी थी, दोनों हाथ फंसे थे, बिजी थे, उस सेक्सी किशोरी के उभरते हुए उभारों को मसलने रगड़ने में
और गुड्डी ने जब वो गुंजा की क्लास में थी उस समय की होली का किस्सा आगे बढ़ाया,
गुड्डी बोली,
" तो मेरा और मेरी और छह साथ सहेलियों के पास ' असली गुलाल ' वाला पैकेट था, फिर तो वही पक्का रंग मिला गुलाल, जबतक कोई टीचर देखती तो बस माथे पे और बहुत हुआ तो गाल पे, और टीचर भी तो कभी हम लोगो की तरह थीं तो जहां वो निकलीं,...
बस दो लड़कियां पीछे से हाथ पकड़ती और मैं यूनिफार्म वाले ब्लाउज के खोल के सीधे कबूतरों पे वो वाला गुलाल, और आराम से सहलाना मसलना और साथ में गरियाना भी,
"स्साली जाके अपने भाइयों से चूँची मिजवाओगी, रगड़वाओगी और हम लोगो से मसलवाने में शर्म आ रही है "
" दी एकदम सही कह रही हैं मेरी क्लास में भी करीब आधे से ज्यादा तो अपने भाइयों के साथ ही, ....दो चार तो सगे,रोज घपाघप करवाती हैं, बिना नागा और,... अगले दिन हम लोगो को जलाती हैं। ""
गुंजा मुझे बियर पिलाते बोली।
" लेकिन तब भी तो सूखा रंग ही रहा न, झाड़ झुड़ के " मेरे समझ में अभी गुड्डी की पूरी प्लानिंग नहीं आयी तो मैंने पूछ लिया।
" अरे तो फिर रंगरेज के यहाँ से दुपट्टे रंगने वाले रंग लेने का फायदा क्या, "
गुड्डी मुझे घूरते बोली, फिर उसने राज खोला,
उसकी और सहेलियों ने , कुछ ने रुमाल तो कुछ ने दुप्पट्टे ही स्कूल से निकलने के पहले गीले कर लिए थे और फिर निकलते समय फिर वही, एक ने पीछे से दोनों कलाई पकड़ी और गीली रुमाल या गीले दुपट्टे से तो टॉप के अंदर डाल के निचोड़ दिया, सूखा रंग गीला हो गया, और उसके बाद रगड़ रगड़ के फिर से दोनों गुब्बारे,
ज्यादातर लड़कियां जब हफ्ते भर की होली की छुट्टी के बाद लौटी तब भी उनके रंग पूरी तरह नहीं छूटे थे।
मान गया गुड्डी को मैं,
हम तीनो खूब हँसे, और गुंजा ने जोड़ा,
"तभी दीदी,… पिछले साल से जब आप दसवीं में थी, मुझे याद है , रंग परमिट हो गया था आखिरी दिन लेकिन बस अब दो कंडीशन है, यूनिफार्म पे रंग नहीं पड़ना चाहिए और क्लास में होली नहीं होगी, बाकी कुछ भी कर लो। अब तो आखिरी पीरियड में टीचर सब हर क्लास की, बस अटेंडेंस लेके चली जाती हैं टीचर रूम में और घंटे भर हम लोगों की मस्ती, और आज तो मस्ती हुयी, ....इंटरवल के बाद ही हम लोगो की टीचर चली गयी, बस दो घण्टे,"
"और ये किसने किया,"... गुड्डी ने एक भांग वाली गुझिया को सीधे गुंजा के मुंह में डालते हुए पूछा, "
गुड्डी का इशारा गुंजा के दोनों उभारों पर उँगलियों के निशानों पर था,
" और कौन करेगा, " गुझिया खाते हुए गुंजा बोली और फिर जोड़ा,
' वही शाजिया,
और अकेले पार तो पा नहीं सकती मुझसे तो वो कमीनी छिनार महक, उसने मेरे दोनों हाथ पीछे से पकड़ के अपने दुपट्टे से बाँध दिया और शाजिया ने गोल्डन पेण्ट अपने हाथ में लगा के, पूरे पांच मिनट तक दबाती रही, और बोली, यार तेरे जोबन इत्ते जबरदस्त हैं, जो भी तेरा यार होगा कम से कम मेरा इसी बहाने नाम पूछेगा "
" सच में दोनों बहने होली में एकदम पागल हो जाती हैं " मेरी कुछ समझ में नहीं आया तो गुड्डी ने मैं कुछ बोलूं, उसके पहले एक बियर की बोतल खोल के मेरे मुंह में, और बोलना शुरू कर दी,
" नादिया, ...नादिया है शाजिया की बड़ी बहन, मेरी अच्छी दोस्त है। वो और श्वेता, होली में ऐसे दोनों बौरातीं हैं, लड़कियां तो छोड़, लड़के भी उन दोनों से पनाह मानते हैं, श्वेता से तो कल वीडियो काल पे मिले थे, छुटकी के साथ,... "
और मैंने एक फैसला कर लिया।
गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी और गुड्डी की दोनों बहनों का तो कानपुर से होली के बाद लौटने का रिजर्वेशन तो कराना ही है , श्वेता का एकदम पक्का, उसने गुड्डी की दोनों बहनों के साथ होली आफ्टर होली में मेरा बटवारा कर लिया था, सर से कमर तक छुटकी के हिस्से, घुटने के नीचे दोनों पैर मंझली के हवाले और कमर से लेकर घुटने तक श्वेता के कब्जे में।
और गुझिया ख़तम कर के गुंजा ने अपने क्लास की होली की हाल बतानी शुरू की, लेकिन उसके पहले गुड्डी ने पूछ लिया और गाने में कौन जीता, और ये बात भी मेरे समझ में नहींआयी।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है गुंजा और गुड्डी की स्कूल की होली तो बहुत ही मजेदार है गुलाल में पक्का रंग मिलाकर होली खेलने के बहाने लड़कियों के कबूतरो को मिंझना बाद में पानी डालकर अच्छी तरह रगड़ना लड़कियों की तो हालत ही खराब हो जाती हैं आनंद और गुंजा दोनो बीयर के जाम एक दूसरे के होठों से पी रहे हैं साथ ही आनंद अपनी साली के कबूतरो के साथ खेल रहा है
-- " और कौन जीतेगा, मेरे प्यारे जीजू की छोटी साली, मेरे और शाजिया के आगे कौन टिकता स्साली छिनार ९ बी वालों की हम लोगो ने फाड़ के रख दी, पहला गाना मैंने शुरू किया,
"आओ बच्चो तुझे दिखाएं झांटे ९ बी वालियों की, इनकी बुर को तिलक करो ये बनी चुदवाने को,..."
कुछ समझ गया और कुछ गुड्डी ने समझा दिया,
क्लास नौ में दो सेक्शन हैं ९ ए और ९ बी, बस टीचर विचर के जाने के बाद, ये मुकाबला पहले तो दोनों ओर से पांच पांच गाने, फिर खुल के गालियां, दोनों क्लास की लड़कियों की ओर से फिर दोनों ओर की दो दो लड़किया और जब दो दो लड़कियों का मुकाबला होगा तो गाली एकदम नयी होनी चाहिए, घिसी पिटी नहीं
और आगे की बात गुंजा ने सम्हाली,
गाली के मामले में जैसे श्वेता है न आपकी सहेली,... वैसी ही शाजिया, और अब उसकी संगत में मैं भी भी , ...एक से एक नई नयी गाली, उधर से पूनम और चंदा थी तो बस शाजिया बोली,
'पूनम की माँ के भोंसडे में छाता डाल के खोल दूंगी" तो चंदा मेरे पीछे पड़ गयी,
'गुंजा के माँ के भोसड़े में छाते की दुकान '
तो शाजिया ने जवाब दिया तेरी माँ की गांड में झाड़ू पेल दूंगी, मोर बन के नाचेंगी,
लेकिन अंत में जीत मेरी ही वजह से मिली, वो सब बस माँ के पीछे, तेरी माँ के बुर में, ये तो हम लोग जैसे हम लोगो ने बोला की
पूनम और चंदा की माँ के भोंसडे में गोदौलिया तो वो सब बोली की
तेरी और शाजिया की माँ के भोंसडे में पूरा बनारस, तो शाजिया बोली की तुम दोनों छिनरों की माँ के भोंसडे में पूरा यूपी और उधर से जैसे जवाब आया तो मैं पहले से तैयार थी बोल दी,
तेरी माँ के भोंसडे में मेरी माँ ,.... बस हम सब जीत गए।
....
मेरी साली इस बेस्ट कह के मैंने कस के गुंजा को चूम लिया
लेकिन गुड्डी शरारत भरी मुस्कान से मुझे और गुंजा को देख रही थी और गुंजा को उकसाते हुए बोली,
"और तेरे जीजा की माँ के, ...."
और बात गुंजा के पाले में छोड़ दी।
गुंजा बदमाशी से अपनी शोख निगाहों से मुझे देखती रही फिर बोली,
"जीजू की माँ के भोसड़े में, जीजू तुम ही बोलो,... क्या जाएगा" और फिर झट्ट से बड़ी बड़ी आँखे नचाती, मुझे दिखाती वो शरारती बोली,
"जीजू की माँ के भोसड़े में, मेरे जीजू का,..."
और कुछ रुक के बात पूरी की
"जीजू के माँ के भोसड़े में मेरे जीजू का लंड. "
और हँसते हुए बोली, "अरे इनकी माँ का ही फायदा करा रही हूँ,"
बात टालने के लिए अब मुझे कुछ करना था वरना ये दोनों मिल के,... तो मैंने गुंजा से उसके क्लास की होली के बारे में पुछा और वो चालू हो गयी।
" वही साली सुनितवा,....
मैंने और महक ने तय कर रखा था आज कुछ भी हो कमीनी को पकड़ेंगे और सबसे कस के रगड़ेंगे, हर बार बच के निकल जाती थी .."
गुंजा ने अपने क्लास की होली का हाल सुनाना शुरू किया, गुड्डी मुस्करा रही थी लेकिन तभी गुंजा को याद आया की मुझे उसकी क्लास की लड़कियों के बारे में तो मालूम नहीं है तो उसने पात्र परिचय कराना शुरू कर दिया,
" अरे जीजू सुनितवा, मेरे क्लास की सबसे बड़ी लंडखोर,"
साफ़ था क्लास की होली के बाद बियर और भांग का असर भी चढ़ गया था उस पे, और बियर की बोतल खाली कर के आगे बढ़ायी बात उसने,
" सबसे पहले उसकी चिड़िया उडी मेरे क्लास, में जानते हैं दो चार महीने पहले नहीं,... पूरे डेढ़ साल पहले "
मेरे मन में उत्सुकता जग गयी, और मैं पूछ बैठा,
" किसके साथ " तो गुंजा बड़े जोर से मुस्करायी और बड़ी बड़ी आँख नचा के, खिलखिलाती हुयी बोली,
" और किसके साथ,... " फिर मामला साफ़ किया,
" जीजा, वो भी कोई सगे रिश्ते के नहीं,... अरे स्साली छिनार खुद ही गर्मायी थी, चूत में आग लगी थी, पड़ोस के मोहल्ले की एक दीदीथीं , पांच छह महीने पहले शादी हुयी थी, बस होली में, ....और ये भी पहुँच गयी, तो जीजू आप ही बताइये, अरे सामने रखी थाली और होली में साली कोई छोड़ता है, ...तो बस उसके जीजू ने भी नहीं छोड़ा, पेल दिया। तो चलिए पेलवा लिया कोई बात नहीं, जीजा साली की बात, लेकिन होली के बाद जब स्कूल खुला तो हम लोगो को इत्ता जलाया,
' अरे यार बड़ा मजा आया जीजा के साथ, ऐसा था वैसा था,"
और उससे भी बढ़ के अपनी बुलबुल खोल के दिखाया, देख जीजू ने धक्के मार मार के कितना लाल कर दिया है। सच में हम लोगो की फांके जैसे चिपकी रहती हैं वैसी नहीं थी, हलकी सी दरार, और सुनीता ने फैला के भी दिखाया, आराम से फ़ैल गयी। "
और वो फिर चुप हो गयी और कभी गुड्डी को देख के, कभी मुझे देख के मुस्कराने लगी, लेकिन मुझे कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन गुंजा खुद ही मुस्करा के कस के मेरे गाल पे चिकोटी काट के बोली,
..." उसी दिन मैं आके गुड्डी दी से बोली, दी पटाना आप, ...मजे मैं करुँगी,... छोडूंगी नहीं अभी से बोल दे रही हूँ। "
गुड्डी भी मीठा मीठा मुस्करा रही थी, डेढ़ साल पहले मैंने झट्ट से जोड़ लिया, उस समय तो मेरा गुड्डी का कस के, मामला थोड़ा बहुत देह तक पहुंच गया था, उसकी उँगलियों ने मेरे जंगबहादुर की नाप जोख कर ली थी।
मैं गुंजा या गुड्डी से कुछ बोलता उसके पहले गुंजा सुनीता के बारे में और किस्से चालु कर दी।
" जीजू, चलिए जीजा के साथ तो, ....और साली तो साली होती, छोटी बड़ी नहीं होती,... लेकिन उसके महीने भर के अंदर ही उसके एक फुफेरे भाई थे उससे पूरे सात साल बड़े, बस उसपे सुनीता ने लाइन मारनी शुरू कर दी और उनके साथ भी,... और फिर आके बताती, ...अभी तो चार पांच यार हैं उसके, कोई हफ्ता नहीं जाता जब कुटवाती नहीं और फिर आके हम लोगो को ललचाती है, ख़ास तौर से मुझे महक और शाजिया को, हम तीनो का क्लास में फेविकोल का जोड़ है.,... और अब खाली हम छह सात ही बची हैं "
लेकिन गुड्डी को होली का किस्सा सुनना था, वो भी उसी स्कूल में पढ़ती थी तो उसने कहानी को एड लगायी,
" अरे वो स्साली,सुनीता होली में फसी कैसे,तुम लोगो से "
"मैंने शाजिया और महक ने तय कर लिया था कुछ और लड़कियों से मिल के,.... आज होली में इस स्साली सुनीता की बुलबुल को हवा खिलाएंगे, लेकिन महक जानती थी की वो स्साली जरूर भागने की कोशिश करेगी, पीछे वाली सीढ़ी से, बस मैं और शाजिया तो नौ बी वालो की माँ बहन कर रहे थे,
लेकिन महक की नजर बाज ऐसी सीधे सुनीता पे, और जैसे सुनीता ने क्लास के पीछे वाले दरवाजे से निकलने की कोशिश की वो पंजाबन उड़ के क्या झपट्टा मारा, और फिर दो तीन लड़कियां और, और इधर हम लोग भी जीत गए थे, फिर तो मैं और शाजिया भी, "
मैं और गुड्डी दोनों ध्यान लगा के सुन रहे थे, गुंजा मुस्कराते हुए मेरी आँख में आँख डाल के बोली,
" जीजू, शाजिया, कभी मिलवाउंगी आपसे, ....पक्की कमीनी, लेकिन वो और महक मेरी पक्की दोस्त दर्जा ४ से,...
बस होली में कोई शाजिया की पकड़ में आ जाए,...महक और बाकी लड़कियों ने पीछे से हाथ पकड़ रखा था सुनीता का और शाजिया ने आराम से स्कर्ट उठा के धीरे धीरे चड्ढी खोली सुनीता की, दो टुकड़े किये और अपने बैग में रख ली, और जीजू आप मानेंगे नहीं, शाजिया ने उसकी बिल फैलाई तो भरभरा के सफेदा, और चारो ओर भी, मतलब स्कूल के रस्ते में किसी से चुदवा के आ रही थीं।
कम से कम पांच कोट रंग का और शाजिया ने कस के दो ऊँगली एक साथ उस की बिल में पेल दी, ऊपर वाला हिस्सा मेरे हिस्से में, ...चड्ढी शाजिया ने लूटी और ब्रा मैंने,... फिर मैंने भी खूब कस के रंग पेण्ट सब लगाया।
उस के साथ तो जो होली शुरू हुयी, आज पूरे दो घंटे थे, सीढ़ी वाले रास्ते से कोई जा नहीं सकता था महक उधर ही थी और जब तक फाइनल छुट्टी का घंटा नहीं बजता बाहर का गेट खुलता नहीं। इसलिए खूब जम के अबकी होली हुयी, ब्रा चड्ढी तो सबकी लूटी भी फटी भी, मैंने खुद तीन लूटीं, "
"लेकिन ये बताओ," मैंने उसके उभारो पर बने उँगलियों के निशानों की ओर इशारा किया ये
वो जोर से खिलखिलाई, " मन कर रहा है आपका शाजिया से मिलने का, बताया तो शाजिया के हाथ के निशान हैं लेकिन पहले मैंने ही, मैं सफ़ेद वार्निश वाली ३-४ डिब्बी ले गयी थी बस वही उसकी दोनों चूँचियों पे, एकदम इसी तरह, उसके भी और महक के भी, और शाजिया के तो पिछवाड़े भी, वहां तो छुड़ाने में भी उसकी हालत खराब हो जायेगी। "
हम तीनो ने मिल के चार बियर बॉटल और आधी दर्जन भांग वाली गुझिया ख़त्म कर दी थी और ज्यादा ही दोनों जीजा साली ने,
गुड्डी खाली प्लेट और बॉटल्स उठा के ले जाते हुए बोली, " और जीजा से होली कब खेलोगी "
बहुत ही कामुक गरमागरम और लाजवाब अपडेट है
गुंजा ने अपनी स्कूल की होली के बारे में आनंद को बता दिया उसकी स्कूल की लड़किया एक से बढ़कर एक है साथ ही बातो ही बातो में आनंद की मां को भी लपेटे में ले लिया
गुंजा संग होली की मस्ती
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--- गुड्डी खाली प्लेट और बॉटल्स उठा के ले जाते हुए बोली, " और जीजा से होली कब खेलोगी "
"अभी, और कस के, ... अच्छा हुआ ये नहा वहा के थोड़े बहुत चिकने मुकने हो गये हैं, जितना आप छह लोगों ने मिल के लगाया होगा, उससे ज्यादा रगडूंगी, और जब होली के हफ्ते बाद लौटेंगे न तब भी छोटी साली का लगाया रंग नहीं छूटेगा। और कोई जगह नहीं बचेगी, बल्कि अंदर तक, "
दो ऊँगली मेरी ओर दिखा की उसे शोख, शरारती साली ने अपना इरादा साफ़ किया और स्कूल का बैग खोल लिया।
और गुंजा के बैग खोलते ही मैं सहम गया,
बैग खूब फूला हुआ लेकिन, न एक कॉपी, न एक किताब, न पेन न पेन्सिल। सिर्फ रंग, पेण्ट और वार्निश की ढेर सारी डिबिया, एक दो खुली, सफेद चांदी के रंग की, और बाकी बंद।
उस टीनेजर ने मुड़ के अपनी चपल निगाहों से मुझे देखा और हलके से मुस्करायी, फिर रंग का सब भण्डार खाली करने में जुट गयी, सच में जितना रीत, संध्या भाभी, चंदा भाभी और दूबे भाभी ने मिल के लगाया था उससे ज्यादा मेरी छोटी साली ले के आयी थी।
और मेरे पास रंग की एक पुड़िया भी नहीं, लेकिन मुझे दूबे भाभी की सीख याद आयी,
" अरे स्साली, सलहज से होली खेलने के लिए रंग की जरूरत पड़ती है क्या, एकदम बौरहे हो। गाल लाल करो चूम के, चूँची रंगो रगड़ के और बुरिया रंग डालो चोद चोद के "
और मैंने गुंजा को पीछे से धर दबोचा और उस किशोरी के मुलायम मुलायम मक्खन से गालों पर, कस के पहले चुम्मा, फिर होंठों के बीच में दबा के चूसना शुरू कर दिया, और हाथ मेरे कम लालची थे क्या और किस जवान मर्द की उँगलियाँ न होंगी जो दर्जा नौ वाली के छोटे छोटे बस आये आये टिकोरों को न छूना चाहें और यहाँ तो कच्ची मसलने का मौका था, तो गुंजा के छोटे छोटे उभार मेरी हथेलियों में, ... मसला सुबह भी था, लेकिन कपड़ो के अंदर से, थोड़ा सहमति झिझकते,
गुंजा गरमा रही थी, मस्ता रही थी, पीछे से अपने स्कर्ट में ढंके चूतड़ मेरे खड़े पागल खूंटे पे रगड़ रही थी पर हाथ उसके , हाथों में रंग लगाने पेण्ट के डिब्बे खोल के तैयारी करने में लगे थे।
लेकिन मन मेरा भी कर रहा था, यार एक दो लाल रंग की पुड़िया ही मिल जाती कहीं से,
गुंजा छुड़ाते हुए मुझे याद करती, फिर कुछ सोच के वो रंग छोड़ देती,... उसकी सहेलियां उसे चिढ़ाती, ' हे ये रंग किसने लगाया, हमने तो नहीं लगाया,"
और वो छेड़ती सहेलियों को अदा से बोलती, " नहीं बताउंगी, है न कोई ,... एकदम खास वाला। "
एक चीज मैंने जिंदगी में सीख ली थी की जब कहीं से भी मदद मिलने की उम्मीद बंद हो जाए, कोई चांस न बचे तो, ... गुड्डी मदद करती है, और बिना कहे। मेरी हरचीज बिना मेरे कहे उसे जादूगरनी को पता चल जाती है, जो बोलने की मेरी हिम्मत भी नहीं पड़ती वो भी,
तो गुड्डी ने मेरे हाथ में पक्के वाले गुलाबी रंग की एक डिबिया और काही रंग की दी चार पुड़िया कहीं से निकाल के पकड़ा दी , और जब कृपा बरसती है तो हर ओर से, मेरी छोटी साली जब रंगों का जखिरा सम्हाल रही थी तो सफ़ेद वार्निश की एक डिबिया लुढ़की और मेरे हाथ में ,
और होली मैंने ही शुरू कर दी,
और गुड्डी ने हड़का लिया, " हे वो छोटी है, पहले उसे लगाने दो "
लेकिन कहते हैं जब बीबी का मूड खराब हो तो साली काम आती है और मेरी साली तो बहुत ही काम वाली, वो मेरी ओर से बोली,
" लगाइये न जीजू,... दी, लगाने दो इनको, जब मैं लगाउंगी न तो उसके बाद बेचारे लगाने लायक नहीं रहेंगे, इनकी बहिन महतारी सब कर दूंगी आज, ...अभी एकलौती छोटी साली हूँ , "
और जब साली हाँ कर दे, वो भी एक सेक्सी टीनेजर चढ़ती उम्र वाली तो कौन जीजा छोड़ेगा, आठ दस कोट रंग के तो गुंजा पहले ही लगवा के आयी थी, अपनी सहेलियों से , बस मैंने वही वार्निश वाला डिब्बा खोला, और आराम से अपने दोनों हाथों में लगाया फिर,..
उस शोख, चढ़ती उमरिया वाली कोरी कच्ची कली के दोनों गाल मेरे हाथों में,...
रंग वंग तो बस,... असली मजा तो उंगलियों को उन कोमल, पुरइन के पात ऐसे चिकने गालों को छूने में सहलाने में आते हैं, जिन स्निग्ध, मालपुआ ऐसे गालों को छू के जब नजर फिसल जाती है तो उसी में मूसल चंद बौरा जाते हैं, ...आज तो वो गाल मेरे हाथ में थे।
सुबह की होली के बाद जिस तरह से संध्या भाभी और दूबे भाभी ने मुझे रंग लगाया था और नहाने में, छुड़ाने में जो हालत हुयी थी मैं भी कुछ कुछ सीख गया था, ऐसी जगह रंग लगाना जहाँ पहली बात तो जल्दी दिखाई न पड़े और दूसरी बात छुड़ाते समय वहां ठीक से हाथ भी न पहुंचे, तो एक बार वार्निश का कोट उस कोमलांगी के चन्द्रबदन पर लगाने के बाद, मैंने कान के पीछे और ईयर लोब्स पे, गर्दन के पीछे, कन्धों पर, नाक के किनारे किनारे, उन जगहों पर ढूंढ ढूंढ के वार्निश के कोट,
और थोड़ी देर तक उस शोख ने मेरे हाथों को पकड़ने की छुड़ाने की कोशिश भी की, लेकिन फिर बोली,
" ठीक है, जीजू मेरी बारी आएगी न तो मैं भी ऐसी ऐसी जगह लगाउंगी न की आप भी याद करेंगे बनारस में एक साली मिली थी, "
" वो तो हरदम याद रहेगी, छोटी साली वो भी मेरी गुंजा जैसी,... कोई भूल सकता है क्या "मैंने गुंजा को मक्खन लगाया
लेकिन साली तो साली होती है, और मेरी वाली बदमाश नहीं महाबदमाश,
दोनों हाथ तो उसने मेरे छोड़ दिए लेकिन उसके चूतड़ अब खुल के कस के टॉवेल में छुपे ढंके मूसलचंद को रगड़ने लगे, और ये आदत उसकी एकदम उसकी दी गुड्डी पे, दोनों को मुझसे ज्यादा जंगबहादुर से लगाव था और दोनों चाहती थी की वो खुली हवा में सांस ले, पिंजड़े में न रहे, इसलिए वो मुझसे ज्यादा अब वो गुड्डी की बात मानते थे और अब गुंजा की भी।
उस शरारती टीनेजर की शरारत का दो असर हुआ, मूसलचंद फनफनाने लगे और तौलिया सरसराकर नीचे,
" हे उठाने की नहीं होती, "
गुंजा और गुड्डी दोनों एक साथ बोलीं,
लेकिन मैंने भी जब तक गुंजा मेरी अगले कदम के बारे में सोचे हाथ सरक कर सीधे साली की पतली कटीली कमरिया पे, और स्कर्ट भी तौलिये के साथ दोस्ती निभा रही थी,
" जीजू बहुत महंगा पड़ेगा और अब चेहरे से आप का हाथ हट गया है तो दुबारा नहीं जा सकता " गुंजा खिलखिलाते हुए बोल।
और अब चेहरे पर मैं जाना भी नहीं चाहता था,
पहली बात वार्निश की एक ही डिबिया और मैं पूरी की पूरी उसे उस चंद्रमुखी के चेहरे पर खाली कर चुका था और हाथ ललचा रहे थे उस किशोरी के बस आते हुए जुबना का रस लेने को,
वार्निश ख़तम हो गयी थी तो गुड्डी का दिया रंग तो था, तो बस मैंने आराम से हाथ अब रंग पोता, और दोनों जोबन पे,, बस मैं यही सोच रहा था साली हो तो गुंजा ऐसी और ससुराल हो तो गुड्डी के मायके जैसी।
होली में कभी टॉप के ऊपर से हलके से किसी टीनेजर साली के आते हुए उभार छूने का मौका मिल जाए, अगर साथ देने वाली सलहज हो , साली के हाथ पैर पकड़ने को तैयार तो कभी टॉप के अंदर सेंध लगा के उभारो के ऊपरी हिस्से को भी जीजा छू ले तो बस लगता है होली सफल हो गयी, और वैसी साली की जिंदगी भर गुलामी करने को तैयार,
पर यहाँ तो खुद साली अपने हाथ से,
और उभार भी कैसे, एकदम गुदाज, मुलायम, टेनिस बाल की तरह स्पंजी कड़े कड़े भी और मुलायम भी,
मेरे हाथ कुछ देर तक तो मुरव्वत करते रहे फिर कस के कभी दबाते, कभी रगड़ते और थोड़ी देर में पूरा रंग, लेकिन तभी गुड्डी बोली
जैसे क्रिकट के मैच में जिस बाल पर बैट्समन बोल्ड हो जाये, बॉलर खुशिया मनाये लेकिन नो बाल का हूटर बज जाए, एकदम उसी तरह
" हे बहुत हो गया, अब गुंजा का टर्न, और चुपचाप रंग लगवा लो, छिनरपन मत करना वरना मैं भी छोटी बहन के साथ मैदान में आ जाउंगी "
बहुत ही मजेदार और लाजवाब अपडेट है आनंद और गुंजा की होली शुरू हो गई है बुद्धू के पास रंग भी नही था लेकिन गुड्डी ने लाकर दे दिया आनंद ने गुड्डी के चहरे पर अच्छी तरह रंग लगाया है साथ ही उसके कबूतरो पर भी सच में साली हो तो गुंजा जैसी आनंद की टर्म खतम अब गुंजा की बारी