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Erotica फागुन के दिन चार

Sanju@

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गुंजा


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" हे बहुत हो गया, अब गुंजा का टर्न, और चुपचाप रंग लगवा लो, छिनरपन मत करना वरना मैं भी छोटी बहन के साथ मैदान में आ जाउंगी "


मेरी हिम्मत जो गुड्डी की बात नहीं मानता और मैं अलग, वैसे भी गुड्डी का दिया रंग ख़तम हो गया और गुंजा की निगाहें मुझे चिढ़ा रही थीं छेड़ रही थी और मुझे दिखा दिखा के नीले, काही और बैंगनी रंग की कॉकटेल अपने हाथों पे बना रही थी, और फिर वो हाथ मेरे चेहरे पे


और अब मुझे समझ में आया, गुड्डी की बात,

अबतक तो मैं गुंजा को मैं पीछे से पकड़ के रंग लगा रहा था, मूसल चंद भी चूतड़ों के रस में डुबकी लगा रहे थे और अब तो गुंजा सामने थी,

उसके दोनों हाथ मेरे चेहरे पे बिजी, एकदम मुझसे चिपकी, अपने जोबन को मेरे सीने पे रगड़ती और उस पे जो मैंने रंग अभी पोता था वो मेरी चौड़ी छाती पे,


गुंजा की कोमल मुलायम उँगलियाँ मेरे चेहरे पे, किसी गोरी कुँवारी किशोरी की ऊँगली कहीं गलती से भी इधर उधर लग जाए तो लगता है की किसी बिच्छी ने डंक मार दिया, पूरी देह झनझना उठती है और अब मेरे गालों पे, पूरे चेहरे पे, वही बिच्छियां इधर उधर रेंग रही थी, सरसरा रही थीं, उस टीनेजर के कोमल कपोत, मुलायम सफ़ेद पंख मेरे सीने में रगड़ रहे थे और मैं उड़ रहा था,



नीले, काही और बैंगनी रंगों का खतरनाक कॉकटेल, और ऊपर से उस चतुर सुजान का हाथ,

कोई जगह नहीं बच रही थी, नाक के किनारे, कानों के पीछे, और कम से कम दो चार कोट, लेकिन ये तो रंगों का बेस था,

उसके बाद गुंजा ने डिब्बे पे डिब्बे खोलने शुरू किये, सफ़ेद वार्निश के, मुझे तो चोरी से एक मिल गया था, वो कोई दूकान लूट के लायी थी,बीसों, और वो मेरे चेहरे पे, और जो जगहें मैं सोच भी नहीं सकता था,

आँखें बंद करवा के, पलकों और भौंहो तक पे, क्या कोई कोई ब्यूटी पार्लर बाला आयी शैडो और मस्कारा लगाएगी, और गालों पर तो पता नहीं कितनी बार , लेकिन रंग तो बहाना था असली मजा तो गालों को रगड़ने मीसने का है, वार्निश के साथ उस किशोरी के हाथों के रस भी मेरे गालो पे,



पोता चेहरा जा रहा था पर होली तो पूरी देह की हो रही थी,

कभी उसके जोबन, नशीले मतवाले, बरछी ऐसे मेरे सीने में चुभ जाते, धंस जाते कभी वो जान बुझ के अपनी चूँचियों को रंगड़ देती, दबा देती, ये चढ़ती जवानी और उभरते जोबन वाली छोरियां, देखन में छोटे लगे गाह्व करे गंभीर, और जब वो इतनी नजदीक होती तो मेरे बावरे हुरियार मूसल चंद को भी अपनी गुलाबी सहेली को चुम्मा लेने का मौका मिल ही जाता

और अब मुझसे नहीं रहा गया,

मैंने कस के अपनी छोटी साली को गुंजा को दबोच लिया, कस कर मतलब, कस कर, खूब कस के, भींच के

और वो शोख चिंगारी भी लता की तरह लिपट गयी, मुझसे भी कस के, हाँ उसके हाथ दोनों अभी भी मेरे चेहरे पे वार्निश की चौथी कोट कर रहे थे पर अब उसके किशोर ३० सी उभार खुल के मेरे सीने में धंसे हुए रगड़ रहे थे, उसने अपनी दोनों लम्बी टांगों से मेरी टांगों को बाँध लिया था, नागपाश की तरह और कुछ अपनी चुनमुनिया, रस टपकाती जलेबी, मेरे बौराये खूंटे पे, खुले सुपाड़े पे रगड़ रही थी।


और मैं बस पागल नहीं हुआ,

मेरे दोनों हाथ कभी गुंजा की गोरी, खुली चिकनी पीठ पे टहलता तो कभी नीचे चक्कर लगा कर उस कमसिन के छोटे छोटे चूतड़ों को कस के दबोच लेता, आज होली के तरह तरह के रस मिले थे लेकिन ये बिना चढ़ती जवानी वाली छोटी साली से होलिका जो रस मिल रहा था वो सबसे अलग था। जितना मैं गुंजा की पीठ को कस के पकड़ के अपनी ओर खींचता उसके दूने जोर से वो अपनी कच्ची अमिया मेरी छाती में धंसाती, रगड़ती।



मेरे मन के सबसे भीतरी परत में जो बात दबी रहती है, जिसे मुझसे मेरा मन मुझसे भी बोलते सहमता है, वो गुड्डी न सिर्फ सुन लेती है बल्कि कर भी डालती है और तभी मेरा मन उसका बेखरीदा गुलाम है।

गुड्डी ने मेरे हाथों को खोला और आपने हाथों से ढेर सारा गाढ़ा ललाल रंग मेरी हथेलियों में लगा दिया,

और होली दो तरफा शुरू हो गयी, गुंजा की पीठ, कमर, पेट और सबसे ज्यादा मेरा मन जिसके लिए ललचा रहा था , जिसे ठुमका के वो चलती तो उसके मोहल्ले से स्कूल तक सारे लौंडो की पेंट टाइट हो जाती, उस किशोरी के छोटे लेकिन एकदम कसे चूतड़ , बार बार मेरे हाथ वही, और लाल रंग बीच की दरार में भी,

सफ़ेद पेण्ट की गुंजा को कोई कमी तो थी नहीं तो चेहरे के बाद, छाती, कन्धा पेट, पीठ यहाँ तक की हाथ पैर की उँगलियों के बीच और पैरों के तलुवे में भी, फिर वो गुड्डी से बोली,

" दी जरा निहराओ न इनको "


गुंजा के साथ गुड्डी और बौरा जाती है, जैसे सुबह इन दोनों ने मिल के मिर्चे वाले ब्रेड रोल खिला के मेरी बुरी हालत कर दी थी, वही हाल फिर हो रही थी, दस गुना ज्यादा, वो मुझसे बोली,

' अबे स्साले निहुर, मेरी बहन कुछ कह रही है,... हाँ चूतड़ ऊपर और उठा, टांग फैलाओ कस के जैसे, " और कस के एक हाथ मेरे पिछवाड़े,

" अरे दी साफ़ साफ़ बोलिये न, जैसे, ...कह के क्यों छोड़ दिया, "


खिलखिलाते हुए पिछवाड़े सफेद वार्निश पोतते गुंजा ने गुड्डी को उकसाया।

गुंजा की हंसी, जैसे किसी ने दर्जनों मोती जमीन पर लुढ़का

" तुही बोल दे न, तेरी बात का ज्यादा असर होगा " गुड्डी ने गुंजा को लहकाया,

भांग और बियर का असर मुझसे और गुड्डी से ज्यादा असर गुंजा पे पड़ रहा था, वो मेरे नितम्बो के बीच की दरार पे रंग रगड़ते बोली,

" जीजू जैसे, फिर एक पल के लिए रुक गयी और हंस के बोली, ..."जैसे गाँड़ मरवाने के लिए उठाते हैं, हाँ ऐसे ही " और

जो काम रीत नहीं कर पायी, नौ इंच का डिलडो बाँध के आयी थी,... पर दूबे भाभी ने बचा लिया, ये कह के की अरे छुआ के सगुन कर दो, बाकी का जब होली के बाद आएंगे, तब तो असली वाले से,...वो गुंजा ने कर दिया

,

और गुंजा की ऊँगली गप्प से पूरी की पूरी अंदर,

फिर बाहर निकली तो उसके नीचे दूसरी ऊँगली लगा के, ...वो गुड्डी से बोली

" दी जरा कस के चियारना इनकी,,,,, और जोर लगाओ न " और गुड्डी एकदम गुंजा के साथ, वो दोनों मिल जाए तो किसी की भी ऐसी की तैसी कर दें,



और गुड्डी ने एक खुश खबरी गुंजा को सुनाई,

"तेरे जीजू जब होली के बाद आएंगे तीन चार दिन के लिए तो अपने साथ अपनी ममेरी बहन को ले आएंगे, अब उनकी कोई सगी तो है नहीं तो वो सगी से भी बढ़के,..."



" वाह जीजू हों तो है ऐसे " गुंजा खुश होके बोली, पर गुड्डी ने उसे गरियाया,

" अरे स्साली, जीजू की चमची, पूरी बात तो सुन ली, अपना जो रॉकी है न, दूबे भाभी वाला, उस से गाँठ बँधवायेगी वो, "





गुंजा मुंह फुला के बोली,

" दी आप भी न ऐसे जीजू किस के होंगे, लोग साले सालियों की भी परवाह नहीं करते, ये तो राकी तक की, और वो बेचारा कितना उदास भी रहता है, खाली कातिक में मजा ले पाता था, "

" और क्या इनकी बहिनिया तो हरदम पनियाई रहती है " गुड्डी ने गुंजा की बात में बात मिलाई, लेकिन मुझे पता चला की पिछवाड़े का गुंजा गुड्डी का प्रोग्राम कुछ और भी था, रंग का,

" दी जरा और कस के " कभी गुंजा की आवाज सुनाई पड़ती,

" ये वाला भी " कभी गुड्डी की भी आवाज,

" थोड़ा सा और " गुंजा गुड्डी की सलाह मांगती,

" और क्या, इनकी बहन रॉकी का मुट्ठी इतना मोटा, जब गाँठ अंदर बनालेगा तो हंस हंस के घोंटेंगी,... तो ये थोड़ा सा और "

गुड्डी उसे और भड़काती, लेकिन मुझे खाली सुनाई पड़ रहा था, समझ में कुछ नहीं आ रहा था, क्योंकि बीच बीच में गुंजा की टीनेजर उँगलियाँ, लम्बे नाख़ून बस मेरे पागल खूंटे को कभी छू देती, कभी सहला देतीं,


और दोनों ने मिल के मुझे खड़ा कर दिया,

" क्यों मस्त लग रहे हैं न आपके मनमोहन,' गुंजा ने हँसते हुए गुड्डी से पूछ।


एकदम चांदी की मूरत, बालों तक में सफेद वार्निश और एक नहीं कई कोट,

इसलिए उसने कसम धरवाई थी की जीजू मेरे साथ बिना होली खेले, बिना मुझसे मिले वापस न जाइयेगा,


और फिर स्नैप स्नैप, मेरे मोबाइल से ही दर्जन भर फोटो, और फिर सबके मोबाईल में, गुंजा का जवाब नहीं था

" हे वो जगह क्यों छोड़ दिया " और गुड्डी ने गुंजा के कान में कुछ बोला और वो पहले तो झेंपी फिर खिलखिलाने लगी,



सच में वो आठ नौ इंच एकदम खड़ा, खूब मोटा, उस पे पेण्ट का एक टुकड़ा भी नहीं


" उस की तो अच्छी से और खास रगड़ाई करुँगी, आखिर आज रात भर मेरी दीदी के साथ मजे लेगा, मजे देगा वो "


गुंजा ने गुड्डी को छेड़ा और जब तक गुड्डी एक कस के धौल जमाती, गुंजा छटक के दूर,

" हे चल एक सेल्फी तो ले ले उस के साथ " गुड्डी ने गुंजा को चढ़ाया



" एकदम सही आइडिया तभी तो आप मेरी अच्छी वाली दी हो " गुंजा मुस्करा के बोली और ' उसे पकड़ के एक जबरदस्त सेल्फी , फिर खुले सुपाड़े पे चुम्मी लेते सेल्फी ,



गुड्डी समझ रही थी अब देह की होली का नंबर आ गया है और गुंजा को तो फरक नहीं पड़ता था लेकिन वो जानती थी की मैं किसी के सामने नहीं कर पाऊंगा,एकदम से असहज हो जाऊँगा तो एक घिसा पिटा बहाना बनाया और डांट पड़ी मुझे



लेकिन जो भी जिंदगी भर का अरेंजमेंट चाहते हैं ये पहले से जानते हैं की डांट वांट तो माना हुआ रिस्क है लेकिन उस मजे के आगे



तो अब गुड्डी अगर घंटे दो घंटे में मुझे एक बार कस के नहीं डांटती थी तो मुझे लगता है की ये सारंगनयनी, मेरी मनमोहिनी या तो नाराज है या इसकी तबियत नहीं ठीक है,

" यार तेरे चक्कर में, जल्दी बाजी के, ....अरे नहाने के बाद मैं कपडे धोना भूल गयी, और वो पांच दिन के बाद वाले कपडे, बस आती हूँ "

और वो छत से वापस, कमरे में और दरवाजा भी बंद, लेकिन दरवाजा बंद करने पहले गुंन्जा की ओर दिखा के ऊँगली से गोल बना के उसके अंदर दूसरी उंगल से अंदर बाहर कर के, चुदाई का इंटरनेशनल सिंबल दिखा के अपने मन की बात कह गयी। दरवाजा सिर्फ बंद नहीं हुआ अब्ल्कि अंदर से सिटकिनी लगने की भी आवाज आयी, फटाक।



नीचे से बाथरूम से भी कभी कस के संध्या भाभी की, तो कभी कस के रीत की सिसकोयों की आवाज आ रही थी और ये साफ़ था की नीचे हो रही कन्या क्रीड़ा कम से कम अभी एक डेढ़ घंटा और चलेगी और गुड्डी भी जल्दी बाहर नहीं निकलेगी,

मतलब छत पे मैं और वो सेकसी हॉट टीनेजर अकेली, कम से कम घंटे डेढ़ घंटे तक,
बहुत ही मजेदार और लाजवाब अपडेट है गुड्डी और गुंजा ने आनंद के एक हिस्से को छोड़कर उसे अच्छी तरफ से रंग लगा दिया है साथ ही उसकी बहन को रॉकी से गांठ बंधवाने की बोलकर अच्छे से लपेटा है उसके पिछवाड़े में अंगुली डालकर अच्छे से रंग लगाया है मजा आ गया होली का जितना मजा सब के साथ नही आया उतना मजा अकेले गुंजा के साथ आया है गुड्डी ने गुंजा के साथ चूदाई करने का ग्रीन सिग्नल दे दिया है
 
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गुंजा -भीगे होंठ मेरे



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नीचे से बाथरूम से भी कभी कस के संध्या भाभी की, तो कभी कस के रीत की सिसकोयों की आवाज आ रही थी और ये साफ़ था की नीचे हो रही कन्या क्रीड़ा कम से कम अभी एक डेढ़ घंटा और चलेगी और गुड्डी भी जल्दी बाहर नहीं निकलेगी, मतलब छत पे मैं और वो सेकसी हॉट टीनेजर अकेली, कम से कम घंटे डेढ़ घंटे तक,


लेकिन गुंजा को कोई फरक नहीं पड़ रहा था,

उसने आराम से उसने अपने स्कूल बैग का बाहरी पाउच खोला, और पहले एक शीशी खोली उसमें से कुछ लिक्विड निकाला और कस कस के हाथ पे रगड़ा और धीरे धीरे हाथ में लगा सफ़ेद वार्निश काफी कुछ साफ़ साफ़ हो गया

और फिर उसी बाहर वाले पाउच से रंग के कुछ अलग से चार पांच पैकेट, बड़े बड़े, और लाल रंग का पाउच खोल के मुझे दिखाते हुए पूछने लगी


" कैसे लगेगा ये रंग मेरे यार पे "

" तो उसी से पूछ न " अपने तन्नाए मूसलचंद की ओर इशारा करते मैं बोला,

" अरे उसी से पूछ रही हूँ, बुद्धू राम, ...मैंने सुबह बोला था न स्कूल जाने से पहले मेरा इन्तजार करना फिर देखना इत्ती कस के इसकी रगड़ाई होगी, "

और वो लाल रंग गुंजा के कोमल कोमल हाथों से मेरे मोटे मूसल पे

कुछ देर तो वो पीछे से, मेरे पीठ पे अपने उभरते जुबना दबाती रगड़ती, एक मुट्ठी में उसके नहीं आ रहा था तो दोनों हाथों से पकड़ के जैसे कोई ग्वालिन दोनों हाथ से मथानी पकड़ के,

और फिर सामने से नीचे से बैठ के लाल के बाद हरा, और फिर नीला रंग बीच बीच में, और बदमाश इतनी की उस शोख किशोरी की नाचती गाती आँखे मेरी आँखों में झांकती, उकसाती, कभी खुले सुपाड़े को जीभ निकाल के चिढ़ाती तो कभी बस छू के हटा लेती

मेरी हालत ख़राब मैं कहना चाहता था बोल नहीं पा रहा था तो गुंजा ने ही बोल दिया

." अरे जीजू, मैं दी की तरह कंजूस नहीं हूँ, ....बस एक बार बोल के देखिये आपकी साली सब कुछ दे देगी "

और जब उसने जीभ से छुआ तो मुझसे नहीं रहा गया और मैं बोल पड़ा, " हे मुंह में ले ले न न बस जरा सा न, बस एक बार, बस थोड़ी देर,... "

गप्प

सुबह से मूसल चंद ने बहुत स्वाद चखा था, रीत की कसी कसी गुलाबी फांको पे रगड़ घिस कर के, संध्या भाभी की रसीली खेली खायी हलकी सी खुली फांको के बीच फंस के,

लेकिन होंठों का स्वाद नहीं मिला था, और मिला भी तो एकदम शोला और शबनम, गरम गर्म कच्ची अमिया वाली टीनेजर के खूब गुलाबी रसीली होंठों का, सुबह मैं ललचा ललचा के टेबल पे पर ही देख रहा था और स्कूल जाने के पहले एक छोटी सी ही सही मेरे होंठों को चुम्मी मिल गयी थी, लेकिन मेरे चर्मदण्ड की ये किस्मत,

मोटे कड़े मांसल सुपाड़े पे उस शोख सेक्सी टीन के रसीले होंठों का हल्का हल्का प्रेशर, और उस से भी थी उस बदमाश की कातिल कजरारी बड़ी बड़ी आँखे जो मेरी आँखों में मुस्करा के देख रही थीं,

" हे क्या कर रही है, गुंजा,... " मेरे मुंह से निकला।

और जवाब में उसने उन होंठों का दबाव मेरे पगला रहे सुपाड़ा पे बढ़ा दिया और सरकाते हुए इंच इंच आगे,

मजे से मेरी हालत खराब हो रही थी, अच्छा भी लग रहा था, मन भी कर रहा था की ये रुक जाए, ....और मन ये भी कह रहा था की और कस कस के चूसे,

अब मेरी छोटी,... स्कूल वाली साली की जीभ भी मैदान में आ गयी, होंठ हलके हलके दबा रहे थे, जीभ नीचे से रगड़ने लगा और जहाँ सुपाड़ा चर्मदण्ड से मिलता है, ठीक उस जगह पे जीभ की टिप से कुरेदने लगी, और साथ में अब उसने रुक रुक के चूसना भी शुरू कर दिया

मैं सिसक रहा था, कमर अपने आप हिल रही थी मस्ती से हालत खराब हो रही थी, सुबह से होली की मस्ती में पहली बार ऐसे हो रहा था की मेरा एकदम अपने ऊपर कंट्रोल नहीं था। किसी तरह से मैंने बोला,

." अरे निकालो न, अभी तूने इत्ता रंग पोता है सब तेरे मुंह में,.... " और मेरी उस छोटी मिर्च सी तीखी, रसगुल्ले सी मीठी साली ने जवाब दे दिया

पूरी ताकत से उसने अपने सर से, गले से पुश किया और अब मुजफ्फरपुर की शाही लीची से भी रसीला, मोटा सुपाड़ा उस कच्ची कली के मुंह में,

और अब उसके दोनों हाथ भी मैदान में थे, बचा खुचा रंग अपने हाथ से लंड पे पोत रही, रगड़ रही थी, लेकिन रंग से ज्यादा कस कस के मुठिया रही थी। इतना कस के चूस रही थी वो स्साली की जैसी लंड के रस की एक एक बूँद आज घोंट के ही रहेगी,

मुझसे अब नहीं रहा गया, मस्ती से मेरी आँखे बंद हो गयीं, कस के मैंने गुंजा का सर दोनों हाथों से पकड़ा और बिना इस बात का ध्यान रखे की वो उमरिया की बारी है, ....आज पहली बार पहलवान से उसकी दोस्ती हो रही है, दोनों हाथो से उस कोमल किशोरी का, अपनी छोटी साली का मुंह पकड़ के मैंने ठेल दिया, और गुंजा ने भी कस के अपना मुँह फेला , धीरे धीरे कर के सुपाड़े के आगे भी,

जितना जोर से में पुश कर रहा था, उससे जोर के वो पुश कर रही थी,

खूब मुलायम, मखमली रस भरे, गुंजा का मुख रस मेरे मसल में अच्छे से लिथड़ रहा था, उस लड़की न। जैसे मैंने दोनों हाथों से उसके सर को पकड़ रखा था,उसने मेरे चूतड़ को पकड़ के, कस के मुझे अपनी ओर खींच लिया, धीरे धीरे कर के आधे से थोड़ा ही कम खूंटा उस के मुंह के अंदर था।

गुंजा की आँखे उबली पड़ रही थीं,

मोटे से खूंटे को घोंट के गाल एकदम फूले, फ़टे पड़ रहे थे, होंठों के कोनो से लार की एक धार कभी निकल रही थी पर न तो उसके चूसने के जोश में कभी न जीभ जिस तरह से चाट रही थी उसमे कोई कमी आयी, कुछ देर में उसका मुंह तक गया तो उसने बाहर निकाला लेकिन फिर भी नहीं छोड़ा, हाथ से पकड़ के मेरे मूसल को अपने चिकने गाल पे रगड़ने लगी, फिर जीभ से बेस से लेकर ऊपर तक लिक कर रही थी

और मुझे फिर वही बात याद आयी



" अरे क्या कर रही है इसमें लगा रंग तेरे मुंह में,... " मैंने फिर बोला,

हंस के उस हंसिनी ने सुपाड़े पे एक मोटा सा चुम्मा जड़ दिया और मुस्करा के बोली, उसकी दूध खिल सी हंसी बिखर पड़ी,

" जीजू आप भी न, आप की साली हूँ मेरी जो मर्जी वो मुंह में लूँ। "

फिर कुछ रुक के बोली

"आप भी न एकदम बुद्धू हो , तभी मेरी दी अभी तक बची है। अरे इस प्यारे प्यारे मोटू के लिए मैंने अलग इंतजाम किया था, इसलिए तो बाहर वाले पाउच में वो रंग रखे थे, ये सब खाने में डालने वाले, खाने वाले रंग है और वो भी स्ट्रबेरी और चॉकलेट फ्लेवर्ड, मेरी पसंद का इसलिए तो मैं चूसूंगी और मन भर के चूसूंगी। अभी सिर्फ इस लिए निकाल लिया की आप की बात का जवाब देना था। "

वो बोल रही थी, तब भी गुंजा के दोनों मुलायम हाथों में मेरा कड़ा पगलाया खूंटा मसला रगड़ा जा रहा था और फिर जैसे अपने बात पे जोर देने के लिए उसने लम्बी सी जीभ निकाली, पहले मुझे चिढ़ाया, फिर सीधे सुपाड़ा के छेद में, पेशाब वाले छेद में जीभ की टिप डाल के सुरसुरी करने लगी,

मेरी हालत खराब लेकिन गुंजा बदमाशी के नए नए रिकार्ड बना रही थी, जीभ से सुपाड़ा के चारो ओर, बार, कुछ उसके थूक से कुछ मेरे प्री कम से, एकदम गीला लसलसा, और ऊँगली से लगा के गुंजा ने उसी लसलस को अपनी प्रेम गली में और

मेरा मन खराब हो गया, गुंजा ने एक बार फिर से खूंटा मुंह में ले लिया था और कस के चूस रही थी, लेकिन अब एक बार प्रेम गली पे निगाह पे मेरी पड़ गयी तो अब हम दोनों 69 की मुद्रा में
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है गुंजा ने आनंद के मुसलचंद पर चॉकलेटी और स्ट्राबेरी फ्लेवर वाले खाने वाले रंग लगाए उसने मूसलचंद को अच्छे से घोट लिया बेचारे ने सब का स्वाद चखा था लेकिन उसका स्वाद किसी ने नहीं चखा अब तो गुंजा ने वो स्वाद चख लिया
 
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चुसम चुसाई होली में



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और अब चूसने चाटने का काम मेरा था.

जैसे कोई पिया की प्यारी, मिलन की प्यासी खुद अपनी बांहे फैला दे, जैसे साजन की राह तकती, विरह में जलती नायिका, दरवाजे खोल के खड़ी हो जाए,



बस एकदम उसी तरह गुंजा ने अपनी मेरे होंठों के वहां पहुँचने से पहले ही अपनी दोनों कदली सी चिकनी, मांसल जाँघे फैला दी, जैसे रस्ते खुद खुल गए हों,

मेरे प्यासे होंठ जो अब तक उस कुँवारी किशोरी के भीगे रसीले होंठों का, आ रहे उभारों का स्वाद चख चुके थे, उस रति कूप में डुबकी लगाने के लिए बेक़रार थे। पर सीधे कुंए में उतरने के पहले, उसकी सीढ़ियों पर चढ़ना, उसके आसपास का हाल चाल,

चुंबन यात्रा जाँघों के उस ऊपरी हिस्सों से शुरू हुयी जहाँ, न धूप की किरण पड़ती थी न किसी की नजर, कभी मेरे होंठ हलके से चूमते, कभी सिर्फ जीभ जरा सा बाहर निकल कर बस उसकी टिप एक लाइन सी खींचती, रस्ता बताती उस प्रेम कूप की ओर जिसमें डुबकी लगाने के लिए मैं अब तड़प रहा था और कभी होंठ कस कस के चूसते, एक जांघ पर होंठ थे दूसरे से मेरी लम्बी काम भड़काने वाली उँगलियाँ, दोस्ती कर रही थीं। कभी बस छूतीं, कभी सहलाती तो कभी सरक सरक के प्रेम गली की ओर,....


गुंजा तड़प रही थी, सिसक रही थी,

और ये नहीं की वो मेरे चर्मदंड को भूल गयी थी,... उसके होंठ कभी मेरे होंठों की नक़ल करते उसके आस पास चाटते तो कभी मुट्ठी में पकड़ के वो कच्ची अमिया वाली हलके हलके आगे पीछे,

मस्ती के मारे मेरी आंखे जो अब तक बंद थी जब खुलीं तो बस एक पल ही देखा जो, वो आँखों से कभी भी न बिसरे बस इसलिए पलक के दोनों पपोटों में समा के मैंने आँखों की सांकल कस के बंद कर ली,


चिकनी गुलाबी खूब फूली फूली रस से छलकती दोनों फांके,

आम की दो बड़ी बड़ी रस चुआती फांको को जैसे किसी ने कस के चिपका दिया हो,


छेद क्या दरार भी नहीं दिखती थी, लेकिन जैसे चाशनी से भीगी, डूबी ताज़ी निकली जलेबी हो, शीरे में डूबी, उसी तरह रस में गीली, भीगी पता चल रहा था की ये कच्ची कली किस तरह चुदवासी थी,

कभी अपनी जाँघे जोर जोर से रगड़ती, कभी सिसकती, " जीजू करो न, अच्छे जीजू, प्लीज, "



और कौन जीजू साली की बात टालता है वो भी फागुन में,

रति कूप के चारो ओर मेरे होंठ अब चक्कर काट रहे थे, कभी जीभ से बस बस मैं एक लाइन सी खींचता दोनों मोटे मोटे भगोष्ठों के चारो ओर, लेकिन गुंजा को मालूम था की मेरे एक्सीलेरेटर पर कैसे पैर रखा जाता है एक बार सुपाड़ा फिर उसके होंठों के बीच और वो कस कस के चूस रही थी तो मैं अब कैसे छोड़ता,

पहले मेरी जीभ ने उस कच्ची कोरी रस में भीगी चूत की चासनी को धीरे धीरे कर के चाटा, फिर हलके हलके चूसना शुरू किया,

फुद्दी फुदकने लगी, और मेरी चूसने की रफ़्तार बढ़ गयी,

होंठों का प्रेशर दोनों फांको पे , जो अब पूरी तरह मेरे मुंह थी, चूसने के साथ मेरी जीभ दोनों फांको को अलग करने की कोशिश कर रही थी, चाटने चूसने से चाशनी कम होने की बजाय और बढ़ रही थी, रस से एक ेदक गीली थी और अब होंठों ने दोनों फांको को हथेली के लिए छोड़ा और खुद क्लिट को छेड़ने में जुट गए, इस दुहरे से हमले तो खूब खेली खायी भी गरमा जाती, गुंजा तो पहले से ही पिघल रही थी,

थोड़ी देर हथेली से रगड़ने के बाद मैंने तर्जनी से दोनों फांको को फ़ैलाने की कोशिश की, लेकिन फेविकोल का जोड़ मात, इतनी कस के दोनों चिपकी थी,


जैसे दो बचपन की सखियाँ कस के गल बंहिया डाल के बैठी हों कोई छुड़ा न पाए, एकदम स्यामिज ट्विन्स की तरह जुडी चिपकी,

कलाई के पूरे जोर से तर्जनी को घुसाने की कोशिश की,


उईईई गुंजा जोर से चीखी,



ऊँगली का बस सिरा ही घुसा था, मैंने गोल गोल घुमाने की फिर घुसाने की कोशिश की जैसे बरमे से कोई कठोर लकड़ी में छेद कर रहा हो पर उस कच्ची कली की पंखुडिया इतनी कस के चिपकी थीं,

और मुझे कल रात की चंदा भाभी की बात याद आयी, बात तो वो गुड्डी के सिलसिले में कर रही थीं, लेकिन बात हरदम के लिए सही थी,

" देख बिना चिकनाई लगाए कभी भी नहीं करना चाहिए ,सबसे अच्छा तो देसी सरसों का तेल है, लेकिन उसको रखने का झंझट है और नहीं तो लगभग वैसा ही है वैसलीन, ( मुझे याद आया गुड्डी ने जब कल वैसलीन ली थी दूकान से तो दूकान वाला बोला, बड़ी शीशी है चलेगी तो गुड्डी मेरी ओर देख के मुस्कराते बोली एकदम बड़ी शीशी ही दे दीजिये"


और सरसों का तेल हो तो पहले अपने मूसल पे लगाओ, लेकिन उसके पहले हथेली पे और ऊँगली पे और हल्का सा नहीं बल्कि चुपड़ लो।तेल की शीशी में सीधे डाल लो ऊँगली पहचान ये है की ऊँगली से तेल टप टप चूए, और उससे फिर दोनों फांको के बीच,.... धीमे धीमे, ...तेल अपने आप जगह बनाएगा, और जैसे ही दरार थोड़ी सी फैले, ...उसमें बूँद बूँद तेल चुआ चुआ करके, जबतक ऊपर तक न छलक जाए,.... फिर हथेली से थोड़ी देर पूरी बुर रगड़ो, हलके हलके, और जब तेलिया जाए, तो फिर तेल में डूबी ऊँगली,जब तक दो पोर एक ऊँगली की न चली जाए तब तक, और उसके बाद गोल गोल घुमाओ,

फिर उसी ऊँगली के पीछे दूसरी ऊँगली एकदम चिपका के, दोनों ऊँगली एक पोर तक और हर बार पहले तेल अंदर, दो ऊँगली जब सटा सट जाने लगे तो उसके बाद सुपाड़े को एकदम तेल में चुपड़ के, तब धीरे धीरे, "



भाभी समझा भी रही थी और मेरे खूंटे पे तेल चुपड़ भी रही थी।

मुझसे नहीं रहा गया और मैं पूछ बैठा, " भाभी ने तो बताया था किआप करीब करीब छुटकी की उमर की थीं, जब आपके जीजा ने आपके साथ, तो कैसे आपकी तो एकदम, "

वो जोर से हंसी और तेल की धार सीधे सुपाड़े के छेद में और खूंटे को तेल लगे हाथों से मुठियाते बोलीं,

" देवर जी, पहली बात तो मेरे जिज्जा की महतारी आपकी महतारी की तरह गदहे के साथ नहीं सोई थीं, जीजा का आदमी ऐसा था , तोहरी तरह गदहा, घोडा छाप नहीं। दूसरी बात हमरे जीजा तोहरे तरह बुद्धू नहीं थे, खूब खेले खाये चतुर सुजान, और फिर हमार भौजी उनके साथ,...


तो पहले उनकी सलहज, हमार भौजी,... हमार बिल फैलाये के सीधे कडुवा तेल की बोतल का मुंह उसी में लगा के ढरका दीं, आधी बोतल, फिर बुरिया के ऊपर दबा के देर तक रगड़ रगड़ के जब तक तेल अंदर सोख नहीं लिया, फिर अपनी तेल में चुपड़ी दो ऊँगली,…

और हमार भौजी तो पिछली होली में ऊँगली घुसा के, नेवान कर दी थी, और फिर तो मैं खुद भी, ….

लेकिन उस दिन इतना तेल पानी करने पे भी, जब झिल्ली फटी तो भौजी कस के हमार हाथ गोड़ दोनों छान के पूरी ताकत से,तब भी मैं ऐसी उछली, …..इसलिए पहली बात,... तेल पानी चिकनाई पहले और फिर ऊँगली पूरी अंदर कर के गीली कर के,... और जीजा का तो दो ऊँगली इतना मोटा रहा होगा, तेरा तो मेरी कलाई के बराबर, जब तक दो ऊँगली अंदर कम से कम दो पोर तक न घुस जाए तोहरे अस मूसल, घुसब बहुत मुश्किल है बल्किल कोशिश भी नहीं करनी चाहिए , बिना तेल लगाए, बिना दो पोर तक ऊँगली अंदर किये "



और यहाँ तो तेल की शीशी क्या तेल की एक बूँद भी नहीं थी, और मैं समझ गया बिना तेल, चिकनाई के, लेकिन जब सामने छपन भोग की थाली हो, तो



मैं एक बार कस के फिर से चूसने चाटने में लग गया,

मैं सीधे पांचवे गियर में पहुँच गया, कस के गुंजा की दोनों फैली जांघो को और बुरी तरह फैला दिया, अंगूठे को अपने मुंह में ले जाकर अपना सारा थूक उसपे लिपटा सीधे दरार के बीच, और अब मैं बजाय अंदर घुसाने की कोशिश करने के थोड़ी सी फैली फांको के बीच उसे रगड़ने लगा, और असर तुरंत हुआ,

" जीजूउउउउ " गुंजा ने जोर की सिसकी भरी।



वो हलके हलके चूतड़ उछाल रही थी, तड़प रही थी, उह्ह्ह आआह नहीं, हाँ कर रही थी कस कस के सिसक रही थी।

मुंह में मैंने ढेर सारा थूक भरा, दोनों अंगूठों से उस कोरी कच्ची कली की पंखुड़ियों को कस के फैलाया, और सारा का सारा थूक उसी खुली दरार में, और फिर अंगूठे और तर्जनी से दोनों फांको को पकड़ के चिपका के हलके हलके आपस में रगड़ना शुरू किया और गुंजा मस्ती से पागल हो गयी,


" ओह्ह्ह, क्या कर रहे हो जीजू, उफ़ कैसा लगता है , जीजू तू, ओह्ह जीजू ओह्ह्ह "



वो टीनेजर लम्बी लम्बी साँसे भर रही थी, कुछ भी मेरा बोलना उस जादू को तोड़ना होता। और फिर मेरी जीभ और होंठों को बोलने के और भी तरीके आते थे, एक बार फिर से जीभ ने मेरी छोटी साली के योनि कपाटों को बस हलके से खोला और जो दरार दिखी उसी में सेंध लगा दी

आगे पीछे, गोल गोल, उस प्रेम गली के मुहाने पे वो बार बार दरवाजा खटखटा रही थी, और मेरी जीभ का असर, मेरी साली की चढ़ती जवानी का असर,



जैसे पाताल गंगा निकल पड़ी हों, रस का एक झरना फूट पड़ा हो, पहले बूँद बूँद, फिर एक तार की चाशनी जैसा, लसलसा, लेकिन

क्या गंध, क्या स्वाद, क्या स्पर्श, और चुसूर चुसूर मेरे होंठ अंजुरी बना के उस कुँवारी कच्ची योनि रस को सुड़कने लगे


"ओह्ह्ह बहुत अछ्छा लग रहा है जीजू क्या हो रहा है जीजू उफ़ उफ़ हाँ हाँ, "

रुक रुक के वो जवानी की चौखट पे खड़ी टीनेजर कभी सिसकती कभी रुक रुक के बोलती

मेरे दोनों हाथों ने अब पूरा जीभ के लिए छोड़ दिया था

लेकिन वो दोनों शैतान हाथ अब भी रस ले रहे थे, पीछे गुंजा के छोटे छोटे नितम्बों को छू के दबा के दबोच के, और उंगलिया जिसे बहुत लोग वर्जित समझते हैं वहां भी जांच पड़ताल कर रही थीं


और जीभ पंखुड़ियों पे एक मिनट में १०० बार, २०० बार तितली की तरह पंख फड़फड़ा रही थी, फ्लिक कर रही थी,

गुंजा पागल हो रही थी

होंठ कभी चूसते कभी चाटते, कभी ऊपर जा कर उस कोमल कली की कड़ी कड़ी क्लिट पे भी सलामी बजा देते

ओह्ह आह बस ऐसे ही, क्या करते हो , बहुत बहुउउउत अच्छाआ लग रहा है ओह्ह्ह्हह्हह ओह्ह्ह्हह

और मैं समझ गया की मेरी साली अब एकदम झड़ने के कगार पे है, मैंने चूसने की चाटने की रफ़्तार बढ़ा दी

लेकिन छेड़ने का हक़ क्या सालियों का है , सुबह का ब्रेड रोल मैं भूला नहीं था, बस जब वो वो एकदम कगार पे पहुँच गयी,

मैं रुक गया



और गालियों की झड़ी लग गयी,



"करो न जीजू, ओह्ह्ह्ह रुक क्यों गए, अच्छा लग रहा था, ओह्ह प्लीज स्साले,.... तेरी बहन की, तेरी उस एलवल वाली की,... कर ना"



मेरे होंठ उस रसीली की रसभरी फांको से अब इंच भर ऊपर थे, मैंने चिढ़ाया

" क्या करूँ गुंजा रानी, मेरी प्यारी साली "

" स्साले, जो अबतक कर रहे थे, बहन के भंड़ुवे, " गुंजा अब एकदम बनारस वाली रसीली साली बन गयी थी।

" अरे स्साली वही तो पूछ रहा हूँ, " मैंने उस रस की पुतली को फिर उकसाया,

" अपनी बहन की चूत चाट चाट के चूस चूस के जो सीख के आया हैं न वही, " और फिर से एकदम स्वीट स्वीट

" जीजू प्लीज करो न चुसो न कस कस के बहुत अच्छा लग रहा था, चूस मेरी चूत, चाट कस के "

वो अपने चूतड़ उचका के खुद अपनी रस की गुल्लक मेरे होंठों के पास ला रही थी और मैं होंठ और ऊपर,

लेकिन साली जब अपने मुंह से कह दे, उसके बाद तो, फिर से चूसना चाटना, शुरू तो मन्द्र सप्तक से हुआ, मदिर मदिर समीर से लें ऐसी चढ़ती जवानी हो तो हवा को तूफ़ान में बदलने में कितनी देरी लगती है

और अबकी जब गुंजा झड़ने के कगार पर पहंची तो मैंने घोड़े को और एड दे दी, वो हवा में उड़ने लगा और गुंजा भी,

ओह्ह्ह उफ्फ्फ उईईई नहीं हां उफ्फ्फ आअह्ह्ह अह्ह्ह्हह

जवालामुखी फूट पड़ा, मैं कस के उसे दबाये था तभी वो चूतड़ उछाल रही थी, उचक रही थी, तड़प रही, जाल में आने वाली मछली जैसे हवा में उछलती है फ़ीट भर एकदम उसी तरह



लेकिन न मेरे चूसने में कमी हुयी न चाटने में



बस जीजू बस, बस एक पल, ओह्ह ओह्ह्ह देह उसकी एकदम ढीली हो गयी थी

उसकी बात मान के मैं एक पल को रुका फिर से चूसना शुरू कर दिया और दो चार मिनट में वो फिर झड़ रही थी , उसके बाद तो ये हालत हो गयी की मैं बस उसके रस कूप पे होंठ लगाता, क्लिट पे जीभ छुआता और वो,

तीसरी बार, चौथी बार



एकदम थेथर होगयी, थकी, निढाल और तब मैं रुका और बहुत देर तक हम दोनों ऐसे ही बेसुध, फिर मैं ही उठा और कस के उसे अपनी गोद में बिठा के चूम लिया, और बदले में क्या उस लड़की ने चूमा मेरे होंठों को, चाट चाट के चूस के, थकान से सपनों से लदी उसकी पलकें अभी भी बंद थी, लेकिन जब बड़ी बड़ी आँखे खोल के उस खंजननयनी ने देखा तो उसे अहसास हुआ,

जो वो चूस चाट रही थी उसका अपना योनि रस था,



वो एकदम से शर्मा गयी, मेरे पीठ पे मुक्के से मारने लगी, ' गंदे, बदमाश "

और मैंने उसे कस के भींच लिया और कान में पूछा, " हे अच्छा लगा "

और अबकी वो और जोर से शर्मा गयी, मेरी बाहों में कस के दुबक गयी। और फिर जवाब उसके एक मीठे वाले चुम्बन ने दिया,

कुछ देर तक हम दोनों ऐसे कस के चिपके, एक दूसरे को बाहों में भींचे रहे, और गुंजा को अपने नितम्बो में धंस रहे खूंटे का अहसास हुआ वो अभी भी जस का तस खड़ा,कड़ा, और गुंजा ने मेरे कानो में धीरे से बोला,

" सॉरी जीजू "

समझ तो मैं रहा था लेकिन मैं उसे हड़काते बोला, " साली, गाली देती हैं, सॉरी नहीं बोलती, न जीजा न साली "

" वो तेरा, : कस के बिन बोले अपने चूतड़ों से मेरे खड़े मूसल को दबाते बिन बोले उसने इशारा किया



" इत्ता मजा तो मिला, तेरे भीगे भीगे मीठे मीठे होंठों का शहद से मुंह का "

मैं बोला और गुंजा और कुछ बोलती उसके पहले मेरे होंठों ने उसके होंठ सील किये और जीभ ने मेरी साली के मुंह में सेंध लगा ली। कुछ देर पहले जो सुख मेरे लिंग को मिल रहा था अब वही मेरे जीभ को मिल रहा था, चूसे जाने का,

अब न गुंजा बोल सकती थी न मैं


=====

" गुंजा, " बड़ी जोर से आवाज गूंजी।

उसकी सहेली.... वही जो सुबह उसे बुलाने आयी थी, मोहल्ले भर में नहीं तो चार पांच घरों में जरूर सुनाई पड़ा होगा,



और उछल के गुंजा मेरी गोद से खड़ी हो गयी,


' स्साली कमीनी छिनार '

बुदबुदाते हुए झट से मेरे तौलिये के ऊपर आराम फरमा रही अपनी स्कर्ट को चढ़ा लिया और फिर स्कूल वाली टॉप को, और मैंने भी तौलिया बाँध लिया।


और मेरी ओर मुड़ के उस कामिनी ने एक झट से चुम्मी ली, और बड़ी बड़ी आँखे झुका के बोली,

" सॉरी जीजू मैं भूल ही गयी थी, मेरी एक एक्स्ट्रा क्लास है थोड़ी देर में, और उसमे जाना,... "

तबतक गुड्डी धुले हुए कपड़ो का गट्ठर लेके बाथरूम से निकल आयी थी, और गुंजा की बात सुन के बोली, " क्यों मोहिनी मैडम ""

और दोनों सहेलियों की तरह खिलखिलाई उस मैडम के नाम पर, गुड्डी चू दे बालिका विद्यालय की पुरानी खिलाडन, गुंजा की दो साल सीनियर,

बालिका विद्यालय की उन दोनों बालिकों के वार्तालाप से ये पता चला की,


मोहिनी मैडम कालेज के जो मारवाड़ी मालिक हैं उन के लड़के से फंसी है, और ज्यादातर टाइम उस की बाइक के पीछे चिपकी नजर आती हैं, क्लास वलास तो कम ही लेती हैं लेकिन स्टूडेंट्स उन से बहुत खुश रहती हैं, क्योंकि इम्तहान के पहले वो एक क्लास लेती हैं जिसमें दस वेरी इम्पोर्टेन्ट क्वेशन बताये जाते हैं, आठ शर्तिया आते हैं और करने पांच ही होते हैं। पर्चे मोहिनी मैडम के ताऊ की प्रेस में ही छपते हैं और उस मारवाड़ी मालिक के लड़के की कृपा से हर बार ठेका उन्ही को मिलता है।

और गुंजा ने आज की क्लास का स्पेशल अट्रैक्शन ये बताया की मोहिनी मैडम आज सिर्फ अपना सब्जेक्ट नहीं बल्कि तीन तीन पेपर, मैथ, इंग्लिश और सोसल, तीनो के ' इम्पोर्टेन्ट सवाल ' बताएंगी और मॉडल आंसर भी वो जिराक्स करा के लायी है तो वो भी, हाँ अगर आज उन की क्लास में जो नहीं गया, वो कॉपी में कुछ भी लिख के आये, उस का फेल होना पक्का,

तबतक गुंजा का नाम फिर जोर से लेकर वो सहेली चिल्लाई, और बोली, मैं ऊपर आ रही हूँ क्या कर रही है कमीनी,

" आती हूँ, यहाँ होली चल रही है अगर आयी तो जा नहीं पाएगी सोच ले " गुंजा ने जबरदस्त बहाना बनाया

लेकिन गुंजा के बाद एक और आवाज नीचे से पुकारने की आयी,



" गुड्डी, गुड्डी " और ये आवाज तो बुलंद थी ही मैं सबसे अलग, दूबे भाभी की। और गुड्डी धड़धड़ा के नीचे,



" स्साली छिनार, क्लास में अभी आधा घंटा है, सुबह एक बार चुदवा मन नहीं भरा तो इस समय भी "

गुंजा अपनी सहेली के बारे में बोल रही थी फिर उसने राज खोला की एक यार है उसका तो गुंजा को पंद्रह मिनट चौकीदारी करनी पड़ेगी,

" पन्दरह मिनट में हो जाता है,... " अचरज से मैं बोला। और गुंजा जोर से खिलखिलाई

" जीजू मैं ज्यादा बोल रही हूँ, दस मिनट, पांच मिनट कपडा उतारने और पहनने में, दो मिनट में वो मुठिया के खड़ा करती है, फिर मुश्किल से तीन मिनट। सुबह वाले को तो उसने मुंह में लिया था, मैं बाहर घडी देख रही थी, कुल दो मिनट बीस सेकेण्ड चूसा होगा, और मलाई बाहर, " हंस के मेरी छोटी प्यारी दुलारी साली बोली।

तब तक गुड्डी के वापस सीढ़ी पर चढ़ने की आवाज सुनाई पड़ी और गुंजा ने मेरी टॉवेल को उठा के अभी भी तन्नाए सुपाड़े पे एक कस के चुम्मी ली, और उससे और मुझसे दोनों से बोली

" जीजू, चुदुँगी तो तुझसे ही, ,,,आज नहीं हुआ तो, " और उसकी बात मैंने पूरी की

" जब होली के बाद लौटूंगा न तो सबसे पहले तेरी चुनमुनिया ही फाड़ूंगा " और मन में कसम खायी आयी से जेब में एक छोटी वैसलीन की शीशी कुछ न हो तो बोरोलीन की ट्यूब ही सही,

" एकदम " वो चंद्रमुखी खिल उठी और खड़ी हो के मुझे बाँहों में बाँध के जोर से एक चुम्मी ली।



तबतक गुड्डी आ गयी और मुझसे बोली " जल्दी नीचे जाओ, दूबे भाभी का बुलावा है, संध्या भाभी तेरे रंग छुड़ायेंगी। "



गुंजा सीढ़ी पर नीचे, और मैंने बोला" हे मैं भी आता हूँ "



" नहीं नहीं जीजू, " मना करती वो सुनयना बोली,

" वो कमीनी एक बार देख लेगी न और अगर मेरी क्लास की सहेलियों को खबर हो गयी तो फिर सब की सब, ....कोई नहीं छोड़ने वाली आपको, एक बार मैं निकल जाऊं "

और थोड़ी देर में गुंजा की नीचे से आवाज आयी, " मम्मी, मेरी एक्स्ट्रा क्लास है मैं जा रही हूँ , तिझरिया में लौट आउंगी "

बाथरूम के अंदर से चंदा भाभी की आवाज आयी ठीक है



और मैं भी सीढ़ी पर नीचे,

एक बाथरूम का दरवाजा आधा खुला था, संध्या भाभी झाँक रही थीं, ....सीढ़ी की ओर टकटकी लगाए।
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है आनंद और गुंजा ने एक दूसरे के साथ खूब मज़े किए हैं आनंद ने गुंजा के कुपिका से चार बार पानी निकाल कर अपनी प्यास भुझा ली है बेटी के साथ मजे करने में मां का सिखाया ज्ञान बेटी पर इस्तेमाल किया वही ये सब करके गुंजा को भी बहुत मजा आया है आगे कुछ हो पाता उससे पहले उसकी सहेली उसको बुलाने उसके घर आ जाती हैं लेकिन जाते जाते गुंजा कह जाती हैं कि वह जब भी चुदेगी उनसे ही चुदेगी
 
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फागुन के दिन चार भाग २०

संध्या भाभी


संध्या भौजी की आँखे कह रही थीं, वो कितनी प्यासी थीं, टकटकी लगाए बस वो सीढ़ी की ओर देख रही थीं बाथरूम का दरवाजा आधा खुला आधा बंद और और वो उस दरवाजे के पीछे से, सिर्फ टॉवेल लपेटे,

जब तक मैं बाथरूम के दरवाजे पर पहुंचूं, बगल के बाथरूम से रीत की हंसी और चंदा भाभी की गुहार सुनाई पड़ी, दूबे भाभी के लिए मदद के लिए,

और संध्या भाभी को धकियाती दूबे भाभी बाथरूम से बाहर निकली,

मैं समझ गया एक भौजाई के साथ एक ननद, दूबे भाभी, संध्या भौजी का रंग छुड़ा रही थीं और चंदा भाभी रीत का लेकिन रीत से पार पाना आसान था क्या तो मदद के लिए दूबे भाभी बगल के बाथरूम में

लेकिन मुझे देख के वो ठिठक गयीं और फिर हंसी की एक लहर शुरू होती और उसके रुकने के पहले दूसरी, बड़ी मुश्किल से बोल पायीं,

" गुंजा आ गयी क्या "


मैं एकदम चांदी की मूर्ति बना, सर से पैर तक सफ़ेद वारनिश ( और जहाँ नहीं थीं वो अंग छोटी सी टॉवेल में छुपा था,)

जवाब अंदर से चंदा भाभी ने दिया, " हाँ, लेकिन चली भी गयी, कोई क्लास था अभी "

दूबे भाभी चंदा भाभी वाले बाथरूम में घुसी और संध्या भाभी ने मुझे अपने बाथरूम में खींच कर दरवाजा बंद कर लिया।

और मैं बाथरूम में देख रहा था, कन्या रस की मस्ती के साथ वाकई में रंग छुड़ाने का काम भी बड़ी शिद्द्त से हुआ था। तरह तरह के देह से निकले रंग से बाथरूम का फर्श पटा था, और साथ में रंग छुड़ाने के लिए तरह तरह की सामग्री, सरसो के तेल में सना बेसन, थोड़ा सा सिरका, तरह तरह के साबुन , शैम्पू,म्वासचराइजर, कंडीशनर के साथ कपडे के साबुन तक थे।

लेकिन मैं उस वार्निश के लिए परेशान था पर संध्या भाभी छेड़ने पर जुटी थीं, बोली,

'गुंजा सच में असली छोटी साली है, सही रगड़ा है जल्दी छूटेगा नहीं "

" और मैं घर कैसे जाऊँगा, ऐसे ही, फिर बाजार भी जाना है "

रोकते रोकते भी मेरी परेशानी फुट पड़ी। और संध्या भाभी ने मुझे कस के बांहों में भर लिया और एक जबरदस्त चुम्मी।

टॉवेल उनकी, उनके जबरदस्त उभारों को बड़ी मुश्किल से ढंक पा रही थी, बस निप्स के नीचे से

" अरे मुन्ना मैं हूँ न अभी सब जगह का रंग छुड़ाउंगी और जो सफ़ेद रंग तुमने बचा के रखा है न अपनी बहिनिया के लिए वो भी निकालूंगी। "

भौजी बोली और टॉवेल के ऊपर से ही उसे रगड़ दिया।


' उस ' की हालत वैसे ही खराब थी, गुंजा ने चूस चूस के मुझे पागल कर दिया था और झड़ने का उसे मौका मिल नहीं रह था और उसके बाद इतना खुला ऑफर,



लेकिन मामला उसके आगे नहीं बढ़ा,

भौजी उस बेचारे को ऐसे छोड़ के ही बाथरूम के बाहर चली गयीं और लौटी तो उनके हाथ में एक बड़ी सी बोतल,... मैं आधी खुली आँखों से ही थोड़ा बहुत देख पा रहा था,

भौजी ने जाते जाते मुंझे शावर के नीचे खड़ा कर दिया था और सर में उसके पहले ढेर सारा शैम्पू उलट दिया था। बड़ी सी बोतल के साथ दूसरे हाथ में एक कोई छोटी सी शीशी भी थी जो संध्या भौजी ने अपने चौड़े पिछवाड़े छिपा रखा था, लेकिन उसकी तेज झार से मैं पहचान गया और ये भी की उस का रंग छुड़ाने से कोई मतलब नहीं,

हाँ अगर वो मेरे पास होता तो गुंजा का खून खच्चर हो गया होता।

लेकिन देवर कितना भी चालाक हो भौजाई की तेज आँख से बच नहीं सकता। और जोर से डांट पड़ी,

" हे बेईमानी नहीं, आँख बंद कर "


और हँसते हुए उन्होंने मेरी बदमाशी की सजा भी दे दी। टॉवेल मेरी पकड़ के खींच दी।

और जंगबहादुर सैल्यूट करते खड़े हुए, उस टीनेजर गुंजा ने जो इत्ता कस कस के अपने मीठे मीठे मुंह से कस कस के चूसा था उसका असर इतनी जल्दी नहीं ख़त्म होना था। और जब तक भौजी की ललचाती निगाह उस मोटे लम्बे खिलौने पे अटकी थी, मैंने भी उनकी टॉवल खींच दी, और मिचमिचाती आंखों से देखा की संध्या भौजी के गोरे गोरे कड़े कड़े जुबना पे जो मैंने काही और गाढ़ा नीला रंग कस कस के लगाया था वो अभी भी बचा था, आस पास के रंग भले ही धुल गए हों।


लेकिन तब तक भौजी मेरे पीछे,... और बड़ी वाली बोतल का तेल निकाल के अपने दोनों हाथों से अपने हाथों में लगा के मेरे चेहरे पे,... और क्या ताकत थी संध्या भाभी के हाथों में,

पर अब मेरी आँखे बंद थीं और वैसे भी संध्या भौजी पीछे थीं।

लेकिन देवर को भौजी को देखने के लिए आँख की जरूरत थोड़ी पड़ती है, पूरी देह आँख हो जाती है और वो भी एक्स रे आईज, जो चोली के पीछे जुबना और साये के अंदर दरार देख लेती हैं और भौजी भी देवर को ये देखते ललचाते देख लेती है।

अभी भी संध्या भौजी की उँगलियाँ वो जादुई तेल मेरे चेहरे पे रगड़ रही थीं, उनके गदराये उभार मेरी पीठ पे रगड़ रहे थे, उनके खड़े खड़े निप्स उनकी हालत भी बता रहे थे और बरछी की तरह पीठ में छेद भी कर रहे थे और रंग छुड़ाते छुड़ाते उन्होंने बताया की वो क्यों बुला रही थीं .


मामला उनका भी ननद भौजाई का था, और हर भौजाई की तरह वो भी अपने ननद का नाम बिना गाली दिए नहीं ले सकती थीं तो उन्होंने अपनी परेशानी बतानी शुरू की,

" वो चंदा बाई चूतगंज वाली का फ़ोन आया तो मैं समझ गयी हुआ सब गबड़जंग, ( मैं ये समझ गया की चंदा उनकी ननद का नाम है लेकिन चूतगंज,... फिर मेरी चमकी, मतलब वो चेतगंज में रहती होंगी और ननद हैं तो चेतगंज का चूत गंज बोलना तो,.... )।


और चेहरे पे तेल मलने के बाद संध्या भौजी मेरी छाती और पीठ पे जो वार्निश गुंजा रानी ने पोती थी उसे छुड़ा रही थीं और साथ में अपनी ननद का पात्र परिचय कराया,

उनकी ननद उनसे काफी बड़ी थीं, बारह चौदह साल बल्कि थोड़ी और ज्यादा, एक बेटी भी थी. गुड्डी की सबसे छोटी बहन छुटकी की उम्र की। लेकिन ननद तो ननद,... उनसे यह नहीं देखा गया की उनकी भौजाई मायके में मस्ती कर रही हैं तो उन्होंने बोल दिया की शाम को चेतगंज आ जाना और ये भी की संध्या भाभी के मरद आएंगे तो वो भी अपनी बहन के यहाँ ही रुकेंगे, और वो भी होली के पहले वाली शाम को।

संध्या भाभी ने छाती का रंग छुड़ाते छुड़ाते मेरे मेल टिट्स को जोर से पिंच कर दिया और जब मैं चीखा तो चिढ़ाते हुए बोलीं

" अभी थोड़ी देर पहले जो मेरी चूँची कस कस के दबा रहे थे, अपनी छुटकी बहिनिया की समझे थे क्या "

और कचकचा के मेरे गाल काट लिए तो मैंने भी उन्हें छेड़ा, " अरे भौजी ननद हैं तो ननदोई भी तो होंगे. उनसे मजा ले लीजियेगा, "


संध्या भौजी ने जोर से मुंह बिचकाया और बोलीं

" अरे वो तो, उनकी मेहरारू के आगे उनकर हिम्मत है की भर नजर देख भी लें और वो भी दो दिन के लिए बाहर गए हैं .तभी तो चंदा बाई चूत गंज वाली गर्मायी हैं, रात भर का पेला पेली का, घिस्सा घिस्सी का प्रोग्राम है तभी मोहाई हैं.उससे भी बड़ी बात है की होली के अगले दिन ही शायद हमको लौटना पड़े, इलसिए होली के बाद तो तोहसे मुलाकात हो नहीं पाती , इसलिए मैंने कहा, और वैसे भी भी मैं नौ नगद और तरह उधार वाली हूँ, तो मुझे उधार नहीं रखना था। "



और तब तक भौजी के हाथ फनफनाये खड़े मूसलचंद पे और सामने आके उसे देखते बोलीं, " गनीमत थी गुंजा ने यहाँ पेण्ट नहीं लगाया "

मैं उन्हें क्या बताता की उस शोख शरारती साली ने वहां पहले खाने वाला रंग लगाया और फिर खुद खा गयी,




हाँ उसकी उँगलियों के निशान अभी भी बचे थे।

संध्या भाभी ने एक सूखे तौलिये से तेल जो मेरे चेहरे पे लगाया था उसे रगड़ रगड़ के साफ़ किया और फिर दुबारा वही तेल और उसके बाद बेसन तेल लगा के रगड़ घिस और फिर मुझे शावर के नीचे,

और अब जब मैंने बाथरूम में लगे आदमकद देखा तो वार्निश पेण्ट पूरी तह साफ़ था लेकिन मेरी साली, दर्जा नौ वाली आखिर गुड्डी की ही छोटी बहन थी। असली खेल था वार्निश के नीचे जो उसने रगड़ रगड़ के चेहरे पे लाल नीला रंग लगाया था वो करीब करीब वैसे ही और संध्या भाभी ने भी हाथ खड़ा कर लिया

" छोटी साली के हाथ का रंग है थोड़ा तो दो चार दिन रहना चाहिए "

और वैसे भी लाल काही नीला रंग, उस वार्निश छुड़ाने वाले तेल से तो छूटता नहीं, लेकिन संध्या भाभी की कृपा की वार्निश अब करीब करीब साफ़ हो गयी थी, और मुझसे तो वो कभी छूटती नहीं।

2,57,920
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है संध्या भाभी ने आनंद को अपने बाथरूम में बुला लिया है संध्या भाभी जो काफी समय से गरमाई थी और उसकी प्यास अधूरी रह गई थी उसे पूरी करने के लिए आनंद को बाथरूम में ही बुला लिया साथ ही दोनो की मस्तियां शुरू हो गई है गुंजा का लगाया हुआ वार्निश तो संध्या ने हटा दिया लेकिन उसके नीचे लगा रंग नही हटा पाई ।गुंजा भी गुड्डी से कम नहीं थी संध्या का बुलावा आ गया है उसकी ननंद के यहा से तो वह आज तो आनंद बाबू के हथियार का स्वाद ले के ही जाने वाली है
 
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शावर में मस्ती



" छोटी साली के हाथ का रंग है थोड़ा तो दो चार दिन रहना चाहिए "

और वैसे भी लाल काही नीला रंग, उस वार्निश छुड़ाने वाले तेल से तो छूटता नहीं, लेकिन संध्या भाभी की कृपा की वार्निश अब करीब करीब साफ़ हो गयी थी, और मुझसे तो वो कभी छूटती नहीं।


और अब बाकी रंगों का नंबर था


तो भौजी ने खींच के मुझे अपने साथ शावर में खड़ा कर दिया। पहले साबुन, फिर तेल मिला बेसन और फिर साबुन,

शावर में हम दोनों चिपके, देह पर घूमती, नाचती पागल करती भौजी की रसीली उँगलियाँ, साबुन लगाते कभी चिकोटी काट लेतीं तो कभी गुदगुदा देतीं और कभी कस के अपनी ओर खींच लेती। जिसने जिसने भौजाई की मीठी चिकोटियां और गुदगुदी का मजा लिया होगा उसे मालूम होगा की कामदेव के बाण भी उसके आगे फेल, और जब ये सब हो तो बेचारे मूसल चंद बौरायँगे ही, और वो अपनी प्यारी सहेली को सूंघ कर उसके दरवाजे पर जोर जोर से ठोकर मारने लगे,



और अब शावर में मजा लेना मैं भी सीख रहा था,

ऊपर से भौजाई ने मेरे हाथ में साबुन पकड़ा दिया, उनकी देह में लगाने को। बस।




साबुन के झाग के साथ मेरी उंगलिया, संध्या भाभी की कभी पतली कटीली कमरिया पे तो कभी केले के पत्ते को भी शर्माने वाली चिकनी चिकनी गोरी गोरी पीठ पर, पर असली चीज जो मुझे पागल किये थी जैसे मैंने उन्हें देखा था वो थे उनके मोटे मोटे नितम्ब और एक हाथ साबुन के साथ सीधे वहीँ, दोनों नितम्बों को पकड़ के मैं उन्हें अपनी ओर खींचने लगा,

तो वो तो और खेली खायी थीं, साल भर से रोज बिना नागा जिस खायीं में कुदाल चल रही थी और जो दस दिन से उपवास पे थी, उसकी भूख तो उन्हें भी बेबस किये थी। बस उन्होंने भी अपने दोनों हाथों से पकड़ के मुझे अपनी ओर खींच लिया।

और शावर में ही खुल के ग्राइंडिंग होने लगी, रगड़ घिस, रगड़ घिस,

लेकिन संध्या भौजी असली उस्ताद थीं, उन्होंने खुद अपनी दोनों जाँघे फैला दी और मेरा खड़ा खिलाडी, सूंघते ढूंढते उन जाँघों के बीच, जैसे कोई मोटा भूखा चूहा, रोटी के लालच में सूंघते सूंघते अंदर घुसे और चूहेदानी का दरवाजा, खट्ट बंद हो जाए, बस एकदम उसी तरह मूषक राज भौजी की दोनों जाँघों के बीच पकडे गए, दबोचे गए और संध्या भाभी की कदली की तरह की जाँघों ने उसे कस कस के रगड़ना मसलना शुरू कर दिया।


इतना मजा तो कभी सपने में भी मुट्ठ मारने में नहीं आ सकता था। और भौजी का दुहरा हमला था, साथ में उनकी मोटी मोटी चूँचिया मेरे सीने पे रगड़ रही थीं और उनके हाथ मेरे नितम्बो को कभी दबोचते कभी उनकी लम्बी ऊँगली नितम्बो के बीच की दरार को कुरेद देती।

उंचासो पवन काम के चल रहे थे, मैंने अपने को भौजी के हवाले कर दिया था।

अब मैं सिर्फ देह था।

भौजी की जांघो के बीच रगड़ रगड़ कर मेरे मोटे मूसल की हालत खराब हो गयी थी,

और अब कमान पूरी तरह संध्या भौजी ने अपने हाथ में ले ली थी जैसे कल रात चंदा भाभी ने ले लिया था।

लेकिन चार पांच मिनट की रगड़ घिस के बाद भौजी मेरे हाथों की बेचैनी समझ गयी


और अब उनकी पीठ मेरे सीने की ओर थी और गप्पाक से मेरे दोनों हाथों ने भौजाई के जोबन को गपुच लिया, होली में सब देवर भौजाई का जोबन देख देख के ही खुस हो जाते हैं, रंग में भीगी देह से चिपकी साड़ी और गीली चोली के बीच से झांकता, ललचाता जोबन ही होली को सफल बना देता है और कोई लकी देवर और उदार भौजी हुईं तो बस चोली के ऊपर हिस्सों से रंग लगाने के बहाने, छुआ छुअल,


लेकिन यहाँ तो दोनों जोबना मेरी जमींदारी हो गए थे। कस कस के मैं मसल रहा था, मूसल राज अब गोरे गोरे मांसल नितम्बो के बीच कुण्डी खड़का रहे थे, एक बार फिर जाँघों का दरवाजा खुला, मूसल राज भौजी की दोनों मखमली जांघो के बीच गिरफ्तार, कैद बमश्क्क्त,जैसे जेल में कैदी चक्की चलाते हैं यहाँ वो खुद जाँघों की चक्की के बीच पीसे जा रहे थे


लेकिन मैंने भी रात में चंदा भाभी की पाठशाला में न सिर्फ पढ़ाई की थी बल्कि अच्छे नंबरों से पास भी हुआ था।



एक हाथ जोबन के गर्व को मसल के चूर कर रहा था और दूसरा दक्षिण दिशा में योनि के किले पर चढ़ाई करने, ....थोड़ी देर हथेली से मैंने सहलाया, फिर एक ऊँगली अंदर बाहर और अंगूठा क्लिट पे।

भौजी जबरदस्त गरमाई थीं, जिस तरह से उनकी जादुई अंगूठी, क्लिट कड़ी कड़ी हो गयी थी, एकदम साफ़ लग रहा था और जॉबन और भौजी की गुलाबो दोनों के रगड़ने मसलने का नतीजा जल्द सामने आया,

वो सिसकने लगीं, उनकी बिल शहद फेंजने लगी, एकदम गाढ़ा गाढ़ा, मीठा मीठा, ऊँगली में लगा के मैंने भौजी को चटा दिया और भौजी ने अपने होंठों से मुझे।


और भौजी समझ गयी असली खेला का टाइम आ गया,



वो शावर से बाहर निकली, मैंने शावर धीमे किया और संध्या भौजी ने निचे छुपी एक पतली शीशी निकाल ली। जब वो वार्निश निवारक तेल लायी थीं तभी और उसकी झार से ही मैंने पहचान लिया था, कोल्हु का शुद्ध देसी सरसों का तेल।

संध्या भौजी ने अपनी खूब गहरी गदोरी में कम से कम १००- १५० ग्राम कडुवा तेल , और उनकी गहरी हथेली देख के मुझे कल रात की चंदा भाभी की एक बात याद आ गयी।

चुदाई की पढ़ाई के साथ औरतों को समझने और पटाने के भी उन्होंने १०१ नुख्से बताये थे एकदम कच्ची कलियों से चार चार बच्चों की माँ तक के लिए,


और उसी में उन्होंने बताया था की जिस औरत की हथेली जितनी गहरी होती है उसकी बुर भी उतनी ही गहरी होती है और उतनी ही जबरदस्त चुदवासी, छोटे मोटे लंड से उसका मन नहीं बुझता और उस कहीं तेरे ऐसा मुस्टंडा वाला डंडा मिल जाए तो खुद पकड़ के घोंट लेगी और उसे कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए।


एक बार उसका मन भर गया तो कुछ भी करेगी और उसके आशीर्वाद का भी बड़ा असर होगा, जो किसी से न पटे, वो लौंडिया खुद ही टांग फैला देगी , अगर गहरी हथेली वाली को हचक के पेल दो तो। और हचक के पेलवाने के साथ उस औरत को गारी देने में, रगड़ने और रगड़वाने में भी बहुत मजा आता है।



संध्या भाभी की हथेली एकदम वैसे ही थी, ...खूब गहरी,

लेकिन मुझसे नहीं रहा गया और मैंने चंदा भाभी से पूछ ही लिया,

" भाभी और लड़को के भी साइज पता करने का कोई तरीका हैं क्या "
और वो बहुत जोर से हंसी, हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। किसी तरह से बोलीं,


" अबे स्साले, तुझे तो देख के ही मैं समझ गयी थी। और फिर उनकी हंसी चालू और अब जब रुकी तो चंदा भाभी बोलीं की मुझे लगा की,....मैंने गुड्डी की मम्मी से बोला तो वो हँसते हुए बोलीं की तुम सोचती हो मुझे अंदाज नहीं था और उन्होंने तो साइज भी, मैं जानती थी बड़ा होगा लेकिन गुड्डी की मम्मी हम सबसे आगे हैं इन सब मामलों में। वो बोलीं की जब तुम भैया के बियाह में बिन्नो की शादी में आये थे तो तुम्हे छेड़ रही थीं, तभी अंदाज लगा लिया था उसी समय, ऊँगली देख के, "





लेकिन ऊँगली से, कैसे, उस समय तो मैं वैसे भी, " मेरे अचरज का ठिकाना नहीं था, जितनी बातें चंदा भाभी से सीख रहा था।



उनकी हंसी फिर चालू हो गयी, फिर किसी तरह हंसी रोक के बोलीं,

" ये सब औरतों की बातें, सब कुछ एक दिन में ही सीख लेगो क्या, लेकिन चलो बता देती हूँ , तर्जनी की लम्बाई और जिस ऊँगली में अंगूठी पहनते हैं बस उसी से, तर्जनी अंगूठी वाली ऊँगली से जितनी छोटी हो मरद का मूसल उतना ही बड़ा होता है और फिर औरत की निगाह, गुड्डी की मम्मी ने तो साइज का भी अंदाज ही लगा लिया था लेकिन पहली बार वो गलत थी, कल बताउंगी मैं उन्हें। "

" मतलब " मेरी अभी भी कुछ समझ में नहीं आया,

" अरे गुड्डी की मम्मी ने बोला था कम से कम सात साढ़े सात इंच का, ज्यादा भी हो सकता है... लेकिन हँसते हुए वो ये भी बोलीं की तुम लजाते बहुत हो, गौने की दुल्हिन झूठ, और अब मैं कल बताउंगी उनको की पहली बार उनका अंदाज गलत है , पूरे बित्ते भर का है, एक दो सूत ज्यादा ही होगा। " चंदा भाभी हँसते बोली।




लेकिन संध्या भाभी की हरकत से मैं फ्लैश बैक से वापस आ गया
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है
संध्या भाभी तेल लेकर आई है ये वही तेल है जिसे चंदा भाभी ने आनंद के हथियार पर लगाया था लगता है संध्या भाभी तेल से हथियार की मालिश करके उसे अपनी भूख मिटाने के लिए तैयार करने वाली है दोनो के बीच रगड़ा रगड़ी चल रही है चंदा भाभी की पाठशाला में सिखाया ज्ञान का अब इस्तेमाल करने का समय आ गया है आनंद संध्या की हथेली की गहराई देखकर फलैश बैक में चला गया है
 
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" करो न "



एक बार फिर उन्होंने मेरी ओर मुस्करा के देखा और अब जब मैंने उन्हें हलके से उन्हें अपने औजार के ऊपर खींचा, तो मुझसे दुगने जोर से उन्होंने पीछे की ओर धक्का दिया बस दो चार धक्के देवर भाभी के बाद आलमोस्ट पूरा अंदर था।

लेकिन अब मेरा मन भी जोर जोर से कर रहा था और मैंने एक बार फिर से कमान अपने हाथ में ले ली, आलमोस्ट पूरा बाहर निकल के बस जितनी ताकत थी, उससे भी ज्यादा जोश से, दो चार धक्के, और चौथे धक्के में मेरा हथोड़ा छाप मोटा सुपाड़ा सीधे संध्या भौजी की बच्चेदानी में पूरी ताकत से, और,....


संध्या भाभी काँप गयी। उनकी पूरी देह सिहर रही थी, बुर दुबडुबा रही थी, सिसक रही थीं और मैं समझ गया की अब वो बस झड़ने के कगार पे हैं और मैं रुक गया, बस हलके हलके कभी उनकी पीठ सहला रहा था, कभी झुक के चूम रहा था और संध्या भाभी शिकायत से बोलीं , बहुत हलके से

" करो न "


" क्या करूँ " मैंने भी उसी तरह से उन्हें चिढ़ाते हुए बोला,

वो अभी भी सिसक रही थीं, देह उनकी काँप रही थी बहुत हलके से बोलीं

" जो अभी तक कर रहे थे " लेकिन समझ गयीं मेरी बदमाशी और अपनी असलियत पे आ गयीं, असली बनारस वाली भौजाई,


" स्साले, मादरचोद , जो अपनी महतारी के साथ करते हो, उनके भोंसडे में, पेल कस कस के, ....वरना तेरी महतारी पे बनारस के सांड चढ़ाउंगी "

गुड्डी की मम्मी के बाद पहली बार किसी ने महतारी को लेकर कुछ कहा था वरना सब गालियां आग तक मेरी ममेरी बहन गुड्डी को लेकर मुझसे लेकर गदहे और रॉकी, दूबे भाभी के बुलडाग को जोड़ के सुनाई जाती थीं और उस गाली का असर हुआ,

कस कस के मैं संध्या भाभी के दोनों जोबन को पकड़ के निचोड़ने लगा और एक बार फिर से आधा लंड बाहर निकल के जो धक्का मारा, संध्या भाभी हिल गयीं, लेकिन उन्हें मजा भी जबरदस्त आया। अपनी जाँघे भी उन्होंने थोड़ी सिकोड़ ली और उसी तरह गरियाती बोलीं

" देखो बुरा मत मानना, तोहार गुड्डी के क्लास वाली बहिनिया तो अभी तक कुँवार है उसकी झिल्ली भी नहीं फटी है और वो मेरी गुड्डी अपने सामने तुझी से फड़वा के बनारस ले आएगी, तो आखिर इतना हचक हचक के चोदना कैसे सीखे हो? अपनी महतारी क भोंसड़ा मार मार के न,... वैसे मैं उनसे मिल भी चुकी हूँ, जब वो साल डेढ़ साल पहले सावन में आयी थीं, मेरी शादी के पहले, क्या मस्त चूतड़ हैं बड़े बड़े, "




बस मैं और जोश में आ गया, मेरी आँखों के सामने,....और फिर तो

क्या हचक हचक के पेलना शुरू किया, जिस तरह से उन्होंने बोला था एकदम से जोश, दोनों हाथ मेरे कस कस के भौजी के रसीले जोबन का रस निकाल रहे थे और धक्के पूरी स्पीड से चल रहे थे लेकिन संध्या भौजी और जोर से, कभी चीख रही थीं कभी गरिया रही थीं, एकदम गरमा गयीं थीं




" स्साले, मादरचोद, तेरी माँ का भोंसड़ा नहीं है जो इस तरह से पेल रहा है, तेरी माँ के भोंसडे में तो बनारस के सांड भी चढ़ जाए तो पता न चले उस भोंसड़ी वाली को, अरे जरा आराम से, ओह्ह्ह उफ्फ्फ लग रहा है यार, अरे एक मिनट रुके, ओह्ह्ह्ह रुक, रुक स्साले, तेरी माँ की, "


पता नहीं भौजी की बातों का असर था या उनकी चीखों का मैं एकदम से, कभी कस के अपने नाख़ून भौजी की चूँची में गड़ा देता, कभी झुक के निहुरि हुयी भौजी की कंधे पे, पीठ पे चूमते हुए कस के काट लेता, कभी उनका बाल पकड़ के खींच देता, मैं एकदम से आखिरी गियर में पहुँच गया था


भौजी ने पीछे मुड़ के शिकायत की निगाह से मेरी ओर देखा, उनकी आँखों में दर्द और शिकायत के साथ एक गजब की मस्ती भी

और अब मुझसे नहीं रहा गया, बस मेरे होंठ और संध्या भौजी के रसीले होंठ, लेकिन अबकी मामला चुम्मा चाटी पे नहीं छूटा .


मैं कचकचा के भौजी के होंठ अपने होंठो के बीच दबा के चूस रहा था, कस कस के काट रहा था, लंड एकदम जड़ तक घुसा था और मैं उसके बेस से भाभी की क्लिट रगड़ रहा था। भौजी ने कुछ देर के बाद जैसे मेरे होंठों ने उन के होंठों को छोड़ा, उलटे मेरे होंठों को पकड़ लिया अपने होंठों में,.... और जो मैंने काटा था वो तो कुछ नहीं इतनी जोर से वो काट रही थीं, जैसे मेरे होंठ न हो उनकी बुर में घुसा धंसा मेरा लंड हो।

क्या गर्मी क्या मस्ती थी।


बस, होंठों का जैसे खेल ख़त्म हुआ मैंने भाला आलमोस्ट बाहर निकाला, पल भर के लिए भौजी की सहली को आराम मिला लेकिन उसे क्या मालूम था की जैसे भौजी मेरी महतारी गरिया रहीं थीं वैसे ही अब उनकी गुलाबो की मैं माँ चोद देने वाला था।

एक बार फिर से मैंने दोनों हाथ से भौजी की कमर पकड़ी, ३४ के जोबन और ३६ के चूतड़ पे संध्या भाभी की २६ की कमर एकदम ही कटीली लगती थी। और क्या तूफानी धक्का मारा, बस दो चार धक्के में जब मेरे मोटे सुपाड़ी का हथोड़ा पूरी तेजी से संध्या भौजी की बच्चेदानी पे पड़ा, उन्हें दिन में तारे नजर आ गए, वो चीख पड़ी

" ओह्ह नहीं , रुक, रुक जा, ओह्ह निकाल ले, उफ्फ्फ नहीं नहीं, लगता है , उईईईईई उईईईईई "




दर्द से उनके देह सिहर रही थी लेकिन अभी तो दर्द की शुरआत थी, झुक के मैंने कचकचा के भौजी की चूँची काट ली और दांत गड़ाए रहा



भौजी सिसक रही थीं,

कुछ देर तक काटने के बाद जब दांत हटाए, तो फिर वहीँ चूसने लगा और फिर दुबारा,


होली का रंग तो भौजी छुड़ा लेंगी लेकिन ये निशान जल्दी नहीं जाने लायक और भौजी गरियाने लगीं



" अरे बहनचोद, ये क्या किया, ननद मेरी चिढ़ाएगी, बोलेगी, ....भैया नहीं थे तो किससे मायके में कटवाय के आयी हो "
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है मस्ती की पाठशाला में आनंद की पहली चूदाई है ऐसे तो पहली चंदा भाभी के साथ थी लेकिन वो केवल सिखाई गई थी संध्या भाभी की तो दमदार चूदाई करके दिन में तारे दिखा दिया साथ ही होली के रंग से गहरे लवबाइट के निशान दे दिए बेचारे आनंद के हथियार को अब जाके सुकून मिला है सुबह से रगड़ा जा रहा था
 
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बेटी,... महतारी दोनों



" ओह्ह नहीं , रुक, रुक जा, ओह्ह निकाल ले, उफ्फ्फ नहीं नहीं, लगता है , उईईईईई उईईईईई "

दर्द से उनके देह सिहर रही थी लेकिन अभी तो दर्द की शुरआत थी, झुक के मैंने कचकचा के भौजी की चूँची काट ली और दांत गड़ाए रहा

भौजी सिसक रही थीं,

कुछ देर तक काटने के बाद जब दांत हटाए, तो फिर वहीँ चूसने लगा और फिर दुबारा, होली का रंग तो भौजी छुड़ा लेंगी लेकिन ये निशान जल्दी नहीं जाने लायक और भौजी गरियाने लगीं

" अरे बहनचोद, ये क्या किया, ननद मेरी चिढ़ाएगी, बोलेगी, भैया नहीं थे तो किससे मायके में कटवाय के आयी हो ?"

खूंटा एकदम जड़ तक धंसाए, मैंने भौजी को छेड़ा,


" अरे तो क्या हुआ बोल दीजियेगा, मेरे नन्दोई मिल गए थे, अब नन्दोई को कोई ना थोड़े करता है और बहुत गर्माएंगी, तो मै होली के बाद आऊंगा तो मिलवा दीजियेगा, उनको भी मोटे मूसल का मजा दे दूंगा,"

भौजी खुश नहीं महा खुश, लेकिन बोलीं,

अरे उनकी तो उमर, फिर कुछ सोच के बोलीं,

"लेकिन उसकी बेटी एकदम गरम माल है, गुड्डी की सबसे छोटी बहन, छुटकी की उमर की है, उसी के क्लास में पढ़ती है मस्त चोदने लायक, "


मेरी आँखों के सामने छुटकी तस्वीर जो सुबह वीडियो काल में देखी थी वो घूम गयी





और मारे जोश के मैंने मोटा मसल आधे से ज्यादा निकाला और हचक के चोदते हुए भौजी से बोला,

" अरे भौजी, तोहार हुकुम हो तो बेटी महतारी दोनों को एक साथ चोद दूंगा "


और अबकी नान स्टाप चुदाई, जैसे धुनिया रुई धुनता है बस थोड़ी देर में भौजी झड़ने के कगार पे पहुँच गयी लेकिन अबकी मैं रुका नहीं और रफ़्तार बढ़ी दी,

" ओह्ह उन्हह उफ़ उफ़ " भौजी की साँसे लम्बी होती गयीं, बिल दुबदुबा रही थी, और झड़ते समय उनकी प्यारी हसीना अपने बुर को कस कस के निचोड़ रही थी, झड़ते समय संध्या भौजी की हालत खराब थी। लग रहा था पूरी देह का रस किसी ने निचोड़ लिया है, सब ताकत ख़तम हो गयी है, देह एकदम ढीली पड़ती जा रही थी, आँखे बंद हो रही थी, हलकी हलकी सिसकियाँ और फिर एकदम से, उनकी देह स्थिर,....



लेकिन मैं इतनी जल्दी मैदान नहीं छोड़ने वाला था,
हाँ मैंने स्पीड कम कर दी, फिर रुक गया।



चार मिनट तक भौजी एकदम कांपती रही, फिर मुड़ के जो मेरी ओर से प्यार से देखा फिर लजा गयीं, और मैंने कस के उन्हें पकड़ के गालों से लेकर नितम्बों तक चूम लिया।




खूंटा मेरा अभी भी जड़ तक धंसा था और भौजी की बिलिया अच्छी तरह फैली कस के उसे प्यार से दबोची थी।

भौजी अभी जस्ट झड़ी थीं, इसलिए मैं धक्के नहीं लगा रहा था लेकिन मेरे होंठ, उँगलियाँ भौजी को फिर से गरमा रहे थे।


कभी उँगलियाँ उनकी रेशमी जाँघों को सहलातीं और चूतड़ पे चिकोटी काट लेतीं, तो कभी मेरे होंठ उड़ते भौंरे की तरह उनके गालों पे बैठ के रस चूस लेता तो कभी मेरी जीभ, कंधे से लेकर नितम्बो तक उनकी रीढ़ की हड्डी के ऊपर से, गहरी चिकनी पीठ पर एक गीली सी लाइन खींच देती। हाथ भी अब एक बस खुल के, कस के जुबना का रस ले रहे थे और भौजी गरमाने लगीं, हीटर की मोटी रॉड तो अंदर तक बालिश भर धंसी ही थी।

संध्या भाभी ने निहुरे निहुरे एक बार मुड़ के मेरी ओर फिर से देखा, आँखों में प्यास, उनकी मांग में भरभराता खूब गहरा सिन्दूर, माथे पर बड़ी सी बिंदी, गले में लटकता मंगल सूत्र, सुहागिन के निशान देख के एक बार मैं एकदम जोश में भर गया और कस के उस सिन्दूर को पहले चूमा, फिर बिंदी को फिर होंठों पे कस के चुम्मा लेके हलके हलके, मोटा सांप बिल से सरकते हुए धीरे धीरे, हाँ चूँची कस कस के रगड़ी जा रही थी,


लेकिन मैंने आलमोस्ट सुपाड़ा बाहर तक निकाल के रोक दिया, और भौजी की हालत ख़राब



लेकिन बेचारा मेरा मोटू भी तो कितनी बार ताल पोखरी के पास सुबह से जा के बिना डुबकी लगाए, रीत, संध्या भौजी और सबसे बढ़कर वो कोरी गुंजा, सिर्फ जरा सा सरसों के तेल न होने से बिन चुदे रह गयी, वो बेचारी तो मुझसे भी ज्यादा गर्मायी थी,

" हे डालो न " शिकायत के स्वर में भौजी की हलकी सी आवाज आयी।

" क्या डालूं, भौजी, " मैंने भी उनके कान के लोब्स को हलके से काटते पूछा।



लेकिन मैं भूल गया था की संध्या भौजी असली बनारस वाली हैं, पलट के उन्होने जवाब दिया,


" स्साले मादरचोद, जो अपनी महतारी के भोंसड़ा में डालते हो, वही, ....की उनसे भी पूछते हो, भोंसडे में डालूं की गांड में, पेल साले तेरी महतारी के भोंसडे में, " और फिर जो गालियों की गंगा बही,




भौजी को मालूम था मेरा एक्सिलरेटर कब और कैसे दबाना चाहिए, और बस उनकी महतारी की गारी का जवाब मैंने हचक के पेल के दिया और बोला,

" भौजी, आज तोहार बुर क भोंसड़ा न बना दिया तो कहना, और लौट के आऊंगा तो तोहरी ननद और ओकर बिटिया जो आप कह रही थीं गुड्डी की छुटकी बहिनिया के बराबर है उसका भी, लीजिये सम्हालिए " मैंने कस के धक्का मारते हुए बोला,

" ओह्ह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ उईईई उईईई नहीं, ओह्ह आह्ह्ह्हह रुक स्साले, एक मिनट, ओह फट जायेगी, इतना जोर से नहीं "


भौजी चीख रही थीं, सुबक रही थी और इतनी जोर जोर से की बगल के बाथरूम में रीत, चंदा भाभी और दूबे भाभी तो सुन ही रहीं थीं , संध्या भौजी की ये चीखें पक्का ऊपर गुड्डी को भी सुनाई पड़ रही होंगी।




लेकिन आवाजें बगल के बाथरूम से भी आ रही थीं, रीत की चंदा भाभी और दूबे भाभी की और वो भी ऐसे ही तेज तेज



जब मैं संध्या भाभी को रगड़ रगड़ के चोद रहा था वो जोर जोर से चीख रही थीं, महतारी को गरिया रही थीं बगल वाले बाथरूम से रीत की भी आवाज आ रही थी,
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है संध्या भाभी अपनी नंनद और उसकी बेटी को भी चोदने का ऑफर आनंद को दे देती है एक बार फिर से संध्या भाभी और आनंद के बीच मस्तियां शुरू हो जाती है संध्या भाभी आनंद की महतारी को गरिया रही थी जिससे आनंद में जोश आ गया और वह संध्या की दमदार चूदाई करने लगा लगता है आज तो संध्या भाभी अपना कोटा पूरा करके ही मानने वाली है
 
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सिसकियाँ और चीखें






भौजी चीख रही थीं, सुबक रही थी और इतनी जोर जोर से की बगल के बाथरूम में रीत, चंदा भाभी और दूबे भाभी तो सुन ही रहीं थीं ,

संध्या भौजी की ये चीखें पक्का ऊपर गुड्डी को भी सुनाई पड़ रही होंगी।

लेकिन आवाजें बगल के बाथरूम से भी आ रही थीं, रीत की चंदा भाभी और दूबे भाभी की और वो भी ऐसे ही तेज तेज,

जब मैं संध्या भाभी को रगड़ रगड़ के चोद रहा था वो जोर जोर से चीख रही थीं, महतारी को गरिया रही थीं बगल वाले बाथरूम से रीत की भी आवाज आ रही थी,

" चंदा भाभी प्लीज, चूसो न, झाड़ दो न, सुबह से बार बार, मेरी अच्छी भौजी, मेरी प्यारी भौजी, तोहार हाथ जोड़ रही हूँ, गोड़ पड़ रही हूँ "

और चंदा भाभी की ओर से दूबे भाभी की आवाज आयी, " अरे झाड़ तो ये देगी मेरी देवरान, लेकिन तुझको भी इसकी चूस चूस के झाड़नी पड़ेगी, "

" एकदम भौजी, मंजूर सब मंजूर " सिसकते हुए रीत की आवाज आ रही थी।


" सोच ले, जो जो चुसवाऊँगी, चटवाउंगी, सब चाटना पडेगा, जीभ अंदर डाल के, फिर अगर पीछे हटी न तो, " खिलखिलाते हुए चंदा भाभी की आवाज आयी।

" अगर पीछे हटी न तो मैं हूँ न , इसके पिछवाड़े मुट्ठी पेल दूंगी, अरे अगवाड़े की झिल्ली बचानी है लेकिन पिछवाड़े का क्या " उसी तरह हँसते हुए दूबे भाभी की आवाज सुनायी दी, और लगता है चंदा भाभी ने चूसना शुरू कर दिया था क्योंकि रीत की सिसकियाँ सुनाई दे रही थी



और फिर जब इधर संध्या भाभी झड़ रही थीं, उधर रीत के उह आह्ह की आवाज आ रही थीं वो भी झड़ रही थीं।

और अब जब मैं एक बार कस के संध्या भाभी को चोद रहा था, भौजी गरिया रही थीं, सिसक रही थीं चीख रही थीं, उधर से भी चंदा भाभी की आवाज आ रही थीं

" हाँ रीत हाँ ऐसे ही चूस, झाड़ दे मुझे मेरी ननदिया, "


लेकिन थोड़ी देर बार रीत की उन्ह आह नहीं नहीं इधर नहीं की आवाज आ रही थीं और फिर जवाब में दूबे भौजी की गरजने की

' स्साली छिनार, खोल मुँह पूरा , और चौड़ा, जीभ अंदर तक जानी चाहिए, वरना तेरी गांड का गोदाम बनेगा आज, बिना चूड़ी उतारे कोहनी तक पेलुँगी "

मैं समझ गया खेल,

चंदा भाभी अब अपने बड़े चूतड़ फैला के, पिछवाड़ा खोल के, और रीत मुंह बना रही होगी, लेकिन दूबे भभकी बात और उधर से आवाजें आना बंद हो गयीं, और मैं समझ गया अब रीत रानी चंदा भौजी के पिछवाड़े चूसुर चुसूर, गोल दरवाजे का रस चूस रही होंगी


बस ये सोच के ही इतना जोश आया मुझे की संध्या भौजी की दोनों चूँची पकड़ के मैंने वो हलब्बी धक्का मारा की उनकी भी चीख निकल पड़ी

" उययी उययी ओह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ "

चुदाई के समय लड़कियों की चीखें लड़को का जोश और बढ़ा देती हैं, और जैसे कोई पहली बार पेली जा रही बछिया को जबरदस्त सांड़ छाप लेता है, अगले दोनों पैरों से दबोच लेता है, उसी तरह अपने हाथों से संध्या भौजी को कस के दबोच के, मैं धक्के पे धक्के मार रहा था


चार पांच धक्के के बाद उनके कान में जीभ घुमाते हुए पूछा

" काहें भौजी, मजा आ रहा है "

" अरे स्साले, सपने में भी ऐसा मजा नहीं मिला जो आ जा मिल रहा है, जेके बियहबा तू वो धन्य हो जाई"


और मारे ख़ुशी के भौजी की बात सुन के मैंने उनका मालपुवा अस गाल कचकचा के काट लिया और चिढ़ाया,

" अब तोहार ननद पूछेंगी तो का बताइयेगा "

" इहे की हमारे मायके में एक नंबरी चोदू है, ओहके लगा तोहार बयाना बटा दे दिए हैं, होली के बाद आयी तो तोहरो चुदाई ऐसे ही करी /"

खिलखिलाते हुए भौजी बोलीं और इसी बात पे मैंने दूसरा गाल भी कस के काट लिया। मेरे दांत के निशान कोई रंग तो थे नहीं जो बेसन और साबुन से छूट जाते।

और दोनों जुबना मसलते हुए मेंने एक धक्का और मारा और बोला

" हमरे भौजी का हुकुम हम टाल नहीं सकते, हचक के पेलूँगा, लेकिन एक के साथ एक फ्री "

मेरा इशारा संध्या भाभी ने जो अपनी ननद की बेटी के बारे बताया था, गुड्डी की सबसे छोटी बहन के क्लास वाली, उसकी ओर था,

अब चुदाई सावन के झूले की तरह चल रही थीं, एक ओर से मैं पेंग मारता तो दूसरी ओर से वो कभी झूला धीरे धीरे तो कभी एकदम तेज , सुहागिन साल भर की ब्याहता औरतों को चोदने का यही तो मजा है, पूरा साथ देती हैं और मेरा जैसा नौसिखिया हो बढ़ बढ़ के मजे देने में हिस्सा लेती हैं। संध्या भौजी हंसती हुयी बोलीं

" अरे हमरे ननद के पहले तो वही टांग फैलाएगी, मैं जाती हूँ उनके यहाँ, चूतगंज ( संध्या भौजी अपने नन्द के मोहल्ले चेतगंज को चूतगंज ही कहती थीं ) तो उसी के साथ सोती हूँ, इतनी गर्म है, खुद मेरा हाथ पकड़ के अपनी गुच्ची पे, रात भर गुच्च गुच्च, एक पोर तो ऊँगली का आराम से घोंट लेती है और थोड़ा जोर लगाती हूँ तो दो पोर तर्जनी का,



लेकिन है अभी कोरी कुँवारी, चूँचिया भी बस एकदम कच्ची अमिया, गुड्डी की छुटकी की तरह से, लेकिन एक बात समझ लो लल्ला, ऐसी चूँचिया उठान वाली को चोदने का मजा ही अलग है। कभी नहीं छोड़ना चाहिए, बहुत पाप लगता है, फिर एक बार ओह उम्र वाली की पेल के फाड़ दोगे न तो जिन्नगी भर, "

उनकी ननद की बेटी को तो मैंने नहीं देखा था लेकिन गुड्डी की छुटकी को तो मैंने देखा ही था, मेरी खिंचाई करने में अपनी मम्मी का पूरा साथ दे रही थीं और आज सुबह जिस तरह से उसने छोटे छोटे जोबन की झलक दिखाई थीं,

बस मैंने पूरा बाहर निकाल के ऐसी ताकत से मारा की मोटा सुपाड़ा सीधे संध्या भाभी की बच्चेदानी पे लगा और वो काँप गयीं, बुर उनकी फूलने पिचकने लगी, और मैंने अपनी मन की बात उनसे कह दी, डर जो था,

" भौजी मेरा, थोड़ा, ..."

संध्या भाभी मेरे पूरे घुसे खूंटे को मस्ती से अपनी बिल को सिकोड़ के निचोड़ते बोलीं,

" थोड़ा, किसको बता रहे हो, अरे गदहे का लंड है मनई का नहीं, मनई का पांच छह इंच का होता है तोहार तो बालिश्त से भी, तोहार ममेरी बहन गदहे वाली गली में रहती हैं न तो जरूर तोहार महतारी गदहे के साथ सोई होंगी तभी, लेकिन क्या होगा बहुत होगा थोड़ा सरसो का तेल ज्यादा लगेगा, तो कौन कंजूसी, कमा तो रहे हो, और चीखेगी चिल्लायेगी, तो चीखने देना, यही चीख सोच सोच के तो खुश होगी बाद में "

बगल के बाथरूम से चंदा भाभी की सिकियाँ तेज हो गयी थीं लग रहा था रीत ने उन्हें चूस के झाड़ दिया है और वो आवाजे सुन के मैं और जोश में आ गया और संध्या भाभी भी बस भौजी के मोटे मोटे चूतड़ को पकड़ के मैंने कस के धक्के मारने शुरू कर दिया

" लो भौजी लो ,ये गदहे का लंड " मैंने जोश में बोला,

" दे, मादरचोद, दे, चोद जैसे अपनी महतारी का भोसड़ा चोदता है, देखती हूँ तेरी ताकत "

मेरी ओर मुंह कर के निहुरे निहुरे संध्या भाभी बोली और मैंने कस के उनके होंठ चूस लिए फिर कचकचा के काट लिए,

भौजी की फैली हुयी टाँगे भी अब थोड़ी सिकुड़ गयी थीं, वो प्रेम गली अब पहले से संकरी हो गयी थीं और मूसल रगड़ते, घिसटते दरेररते जा रहा था। मैंने भी तिहरा हमला कर दिया, एक हाथ भौजी की कड़ी कड़ी चूँची मसल रहा था, दूसरी चूँची मेरे होंठों के बीच और दूसरा हाथ मेरा सीधा भौजी की फूलती पिचकती क्लिट पे

धक्के भी लगातार और हर धक्का सीधे बच्चेदानी पे

ओह्ह उफ़ नहीं हाँ और और हाँ ऐसे ही संध्या भाभी बोल रही थीं, एकदम झड़ने के कगार पे और अब मैं भी नहीं रुकने वाला था, थोड़ी देर में वो झड़ने लगीं, जोर जोर से सिसक रही थीं

उईईई ओह्ह्ह नहीं उफ्फ्फ्फ़ हाँ रुक स्साले, उफ्फ्फ उईईईईई उईईई

पर मैं अबकी नहीं रुकने वाला था न स्पीड धीमे करने वाला, एक बार दो बार वो झड़ी होंगी और फिर मैं भी उनके अंदर, ढेर सारी मलाई,


एक बार मेरा झड़ना रुका तो फिर हलके हलके धीरे धीरे और फिर दुबारा बचा खुचा, डॉट बोतल में कस के लगी थीं तब भी रिस रसी के एक दो बूँद बाहर निकल कर जाँघों पे सरकती रेंगती

थोड़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही चिपके रहे, संध्या भाभी झुकी, निहुरि और मैं चढ़ा उनके ऊपर, फिर हम दोनों बाथरूम के फ्लोर पे बैठ गए और अब जब संध्या भाभी ने देखा तो शर्मा गयीं

फिर थोड़ी देर बाद अपनी बड़ी बड़ी दीये जैसी आँखों को खोल के उन्होंने मुझे देखा और कस के दबोच के चूम लिया और बोलीं, लाला तुम जितने अनाड़ी दीखते हो उतने हो नहीं।

बगल के बाथरूम से आवजें आनी बंद हो गयी थीं, नहाने धोने और मस्ती के बाद दूबे भाभी, चंदा भाभी और रीत निकल गयी थीं लेकिन यहाँ निकलने का मन न मेरा कर रहा था न संध्या भौजी का और न हम दोनों को कोई जल्दी थीं।



बात संध्या भाभी ने ही शुरू की
बहुत ही मजेदार और लाजवाब अपडेट है रीत चंदा भाभी और दुबे भाभी तीनो एक दूसरे के साथ मस्तियां कर रही है तीनो ने एक दूसरे से मजे लेकर झड़ गई है वही आनंद ने संध्या भाभी की अच्छे से चूदाई की है संध्या भाभी आनंद की चूदाई की कायल हो गई है अब तक की उनकी सब से बेस्ट चूदाई थी
 
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फागुन के दिन चार भाग २१ -

संध्या भाभी और गुड्डी

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बगल के बाथरूम से आवजें आनी बंद हो गयी थीं, नहाने धोने और मस्ती के बाद दूबे भाभी, चंदा भाभी और रीत निकल गयी थीं लेकिन यहाँ निकलने का मन न मेरा कर रहा था न संध्या भौजी का और न हम दोनों को कोई जल्दी थीं।



बात संध्या भाभी ने ही शुरू की

संध्या भाभी मुस्कराते हुए, आँखे नचा के बोलीं,

" गुड्डी को ले जा रहे हो, आज रात हचक के पेलना, महीना उसका ख़तम हो गया न "

" हाँ, भौजी, नहा के निकली थी बाल धो के, खुद ही बोली, पांच दिन वाली आंटी जी गयीं, " मुस्कराते हुए मैंने कबूला।

" अरे तब तो आज बहुत गर्मायी होगी, छनछना रही होगी खुद ही लंड लेने को, मेरा महीना तो कल ख़तम हुआ था तब से ऐसी आग लगी थी, बुर में ऐसे चींटे काट रहे थे, वो तो तुमने अभी हचक के पेला है तो जा के ठंडक आयी है। कब से चक्कर चल रहा है तुम दोनों का ? "
भौजी अब एकदम पक्की दोस्त की तरह बतिया रही थीं। क्या बताता मैं, कुछ सोचा,... कुछ जोड़ा और बोल दिया,

" भौजी, ढाई तीन साल तो हो गया होगा, बल्कि शायद ज्यादा ही । "

संध्या भाभी आश्चर्य चकित हो के मुझे देखने लगीं, फिर कस के मुझे पकड़ के मेरी आँखों में देखते बोलीं

" ढाई तीन साल ? और अभी तक पेले नहीं हो उसको ? गुड्डिया सहिये कहती है, एकदम बुरबक हो। आजकल के लड़के तो सबेरे लड़की से बात होती है, नाम पूछते हैं और शाम को पर्स में बोरोलीन की ट्यूब और कंडोम लेके पहुँच जाते है और तुम तीन साल से लटकाये टहल रहे हो। "


कुछ देर वो चुप बैठी रहीं, मैं भी क्या जवाब देता, फिर वो कुछ सोच के, समझ के बोलीं,

" गुड्डी ही मना करती थी क्या, झिझकती होगी, लेकिन लड़की तो मना करेगी ही, लड़के का काम है थोड़ा जोर जबरदस्ती, थोड़ा मनाना, "


मैं क्या बोलता उनसे, झिझक तो मेरी सब गुड्डी ने ही दूर की, मैं तो खाली उसे देख के ललचाता रहता था।

उसकी कच्ची अमिया देख के मुंह में पानी आता था, ....और समझती तो वो थी ही, पिक्चर हाल के अँधेरे में उसने खुद मेरा हाथ खींच के अपने टिकोरों पे रखा था , डेढ़ पौने दो साल पहले और उसी बार पाटी से पाटी सटा के हम दोनों सोते थे नीचे बरामदे में गर्मी में, कभी बतियाते, कभी बस देखते रहते, और उसी ने खींच के मेरा हाथ अपनी शलवार के ऊपर, और मुझसे नाड़ा नहीं खुला तो खुद नाड़ा खोल के मेरा हाथ अंदर, उस भट्ठी को पहली बार मैंने छुआ था और गुड्डी ने भी मेरे पाजामे में हाथ डाल के ' उसका हाल चाल ' लिया था लेकिन तब भी मेरी हिम्मत नहीं पड़ी।



कुछ तो ये डर की बरामदे में खुले में, और कुछ मेरी झिझक, लेकिन संध्या भाभी की बात का जवाब तो देना ही था तो मैंने बोल दिया


" नहीं, नहीं गुड्डी ने कभी मना नहीं किया, झिझकता मैं ही ज्यादा था, फिर लगता था हम दू बरामदे में हैं कोई आ गया तो, गुड्डी ने आज तक मुझे कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया। "

मैंने कबूल कर लिया।



" तो आज, कैसे " संध्या भाभी सब बात पूछ लेना चाहती थीं जैसे कम्पनी के कंसल्टेंट सब बात पूछ के उसी से कुछ रिपोर्ट बना के दे देत्ते हिन्


" अभी तो हलकी ठडंक है, हम लोग कमरे में ही रहेंगे, नीचे वाली मंजिल में, और भैया भाभी तो ऊपर वाले कमरे में और एक बार भाभी ऊपर चली जाती हैं तो फिर सुबह ही उतरती हैं, बर्तन वाली आती है तो दरवाजा मैं ही खोलता हूँ तो इसलिए इस समय,"

मैंने धीरे से अपनी प्लानिंग बताई।



और संध्या भौजी खिलखिलाने लगीं,

" एकदम सही कह रहे हो, बिंन्नो दी ( मतलब मेरी भाभी ) भी यही कह रही थीं की तेरे भैया तो एकदम चुंबक हैं, चिपक जाते हैं तो रात भर छोड़ते नहीं हैं, तीन बार से तो कम कभी नहीं और कई बार तो सुबह भी और कभी पिछवाड़ा भी , ....एक बार वो ऊपर गयीं तो फिर दरवाजा बंद तो सुबह ही खुलता है और घडी की सुई नौ पे गयी नहीं की ऊपर से पुकार आने लगती है "




मैं भी याद करके मुस्कराने लगा और बोला,

" एकदम यही है, कई बार मुझसे गप्प मारने में भाभी को देर हो गयी, और सबसे पहले मुझे अपने सामने बैठा के डांट डांट के खिलाती हैं, और नौ बज गया तो अपना खाना ले के ऊपर "


" तो नीचे और कोई नहीं, तोहार महतारी तो दक्षिण की तीर्थ यात्रा पे निकली हैं वो तो मई जून में आएँगी, "

संध्या भाभी को काफी कुछ मालूम था तब भी उन्होंने पूछा,

" नहीं एक मंजू भौजी हैं, ....घर की ही समझिये बल्कि घर से बढ़के, घर सम्हालती वही हैं वो पीछे दो कोठरिया बनी है उसमें रहती हैं , ...तो नीचे मैं और गुड्डी ही " मैंने मुस्कराते हुए भौजी से कबूला।



वो भी जोर से मुस्करायीं, उनकी आँखों में चमक आयी और फिर उन्होंने हलके से थोड़ा सोये थोड़ा जागे, जंगबहादुर को सहलाते, दुलराते

मेरे गाल पे छोटी सी चुम्मी ले के कहा, "स्साले फिर तो तेरी चांदी है, ...पेलना मजे ले ले के "
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
संध्या भाभी ने सही कहा है कि आनंद एक दम बुद्धू है गुड्डी से 3 साल से चक्कर है लेकिन अभी तक गुड्डी को नहीं पेल पाया कुछ किया है वो भी गुड्डी ने हाथ पकड़ कर सीधा प्वाइंट पर रख दिया तब आज कल के लौंडे को इन 3 सालो में पता नही कितनी बार प्रेगनेंट कर चुके होते
 
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ज्ञान की बातें -संध्या भाभी








लेकिन कुछ सोच के उन्होंने कुछ समझना शुरू किया,

" देख, तुम हो तो अभी नौसिखिया ही और गुड्डी का भी पहली बार ही होगा, इसलिए बता रही हूँ, जब नयी सील खोलनी हो, तो कुछ बातों का जरूर ध्यान देना चाहिए और ये जिम्मेदारी लड़के की है। सब सोचते हैं की टाँगे फैला लो, जाँघे खोल लो तो कच्ची कोरी बिल में घुसने का काम हो गया। एकदम गलत है, ये सब बातें ठीक हैं लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है तकिया। "

और बजाय रहस्य खोलने के वो मुस्कराने लगीं और मैं चकित हो के देखता रहा ।

मैंने मदन मंजरी से लेकर असली सचित्र कोकशास्त्र ८४ आसन सचित्र, बड़ा तक छुप छुप के पढ़ा था लेकिन कहीं तकिये का नाम नहीं आया। मैंने पूछ ही लिया

" मतलब "


" अबे स्साले तेरी उस भोंसड़ी वाली महतारी ने कुछ सिखाया नहीं, खाली अपने भोंसडे में, अरे भोंसड़ा चोदने और मेरी कुँवारी कोरी कच्ची छोटी बहिनिया को पेलने में बहुत फर्क है "


संध्या भौजी अपने रंग में आ गयी थीं, लेकिन उन्होंने मेरे बाल सहलाते हुए समझा दिया

" तकिया मतलब, ...चूतड़ के नीचे गुड्डी के तकिया जरूर लगाना. जितना चूतड़ उठा पाओगे, चार अंगुल, एक बित्ता, ....उतना ही उसकी बुर खुल के सामने आएगी और जब दोनों टांगों को गुड्डी के कंधे पे रखोगे न तो उसकी फूली फूली मालपुवे ऐसे बुर एकदम उभरी रहेगी,





तुझे दोनों फांको को फैला के तेल, वैसलीन जो भी लगाना हो, फांक दोनों फैला केअपने इस बदमाश को अंदर सरकाना हो, तो ज्यादा आसान रहेगा, वरना तेरे ऐसा बुरबक रात भर बिल का छेद ढूंढने में ही लगा देगा और मेरी गुड्डी तड़पती रहेगी। और हाँ एक बात और,..."

लेकिन बजाय एक बात और बताने के संध्या भाभी चुप हो गयीं, वो मुझसे कहलवाना चाहती थीं और मैंने पूछ ही लिया

" क्या बात भौजी? "

अब वो मेरे खूंटे को कस कस के दबा रही थीं, मूसल कड़ा भी हो रहा था, भौजी के मुलायम हाथ अब उसने पहचान लिए थे, वो बोलीं

" एक बात बल्कि, दो बात, एक तो कभी किसी लड़की को, औरत को, तोहार बहिन, महतारी, चाची, बूआ, मौसी जो भी हो, एक बार चोद के कभी मत छोड़ना। पहली बार में तो यही सोचने में लग जाता है लड़की को की स्साला टू मिंट नूडल है या लम्बी रेस का घोडा, और दूसरी बार ही असली मजा आता है, दोनों खिलाड़ी एक दूसरे को जान समझ लेते हैं। तो गुड्डी को एक बार पेलने के बाद गरम कर के दुबारा, बल्कि ऊपर तोहरी भाभी हैट ट्रिक करेंगी तो तुम भी कम से कम कम तीन बार, इस उम्र में रात सोने के लिए थोड़े ही होती है।

और मौका मिले तो दिन में भी नंबर जरूर लगाना, वैसे गुड्डी को कितने दिन के लिए ले जा रहे हो?


मैंने कुछ मन में जोड़ा, कुछ ऊँगली पे और संध्या भाभी को बताया,

" देखिये भौजी, चार दिन बाद तो होली है, और ओकरे बाद, ,...पहिले तो हम दोनों वहीँ आजमगढ़ में ही, लेकिन अब एक तो दूबे भाभी बोलीं हैं की रंग पंचमी के एक दो दिन पहले तो फिर उनकी बात और, गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी भी हो सकता है कानपूर से जल्दी आ जाएँ तो हम दोनों उनसे बोले हैं की उन लोगो को लेने के लिए मैं और गुड्डी स्टेशन पे रहेंगे, तब भी छह सात दिन, सात दिन तो पक्का "

मैंने जोड़ के बोला

और जब मैंने गुड्डी की मम्मी मतलब मम्मी बोला तो जिस तरह से समझ के संध्या भाभी ने देखा, ...एक पल के लिए मैं लजा गया।


लेकिन संध्या भाभी भी कुछ जोड़ घटाना कर रही थीं, जोड़ के बोलीं,

" तो चलो सात दिन और जैसा तेरा बम्बू है और ताकत है तो रात में तो किसी दिन तीन बार से कम नहीं और दिन में भी एकाध बार जरूर नंबर लगाना और कुछ नहीं हो तो चुसम चुसाई, तो २८ बार, और उतना नहीं तो २०-२२ बार तो कम से कम, तो मेरे इस मुन्ने की दावत हो गयी। "


और उनका मुन्ना, उनकी मुट्ठी से बाहर आने के लिए जंग कर रहा था, अब वो एकदम बड़ा और खड़ा दोनों हो गया था और भौजी भी अब खुल के मुठिया रही थीं। एक तो गुड्डी का नाम लेने से ही वो मेरा जंगबहादुर आप से बाहर हो जाता था फिर संध्या भौजी का कोमल कोमल हाथ

संध्या भौजी ने सुपाड़े को अंगूठे से रगड़ते हुए कहा


" और असली दावत तो तेरी यहाँ पहुँचने पे होगी, गूंजा, गुड्डी की बहने,...."


और उनकी बात काट के मैंने याद दिलाया " और आपकी ननद और उसकी बेटी "

वो जोर से हंसी, " पहले आज गुड्डी को तो निबटाओ, "

पर मुझे याद आया उन्होंने दो बात कही थी और सिर्फ एक ज्ञान तकिये वाला देकर बात मोड़ दी पर मैं नहीं भूला था, मैंने तुरंत याद दिलाया,



" भौजी, आपने दो बात कही थी लेकिन दूसरी बात, "

" तुम स्साले, कुछ भुलाते नहीं हो " मुस्करा के भौजी बोलीं और समझाया,

" बात चिकनाई की है और खास तौर से कोरी कच्ची कली की, और तोहरे किस्मत में खाली गुड्डी नहीं दर्जनो की झिल्ली फाड़ना लिखा है, पहले तो वो तोहार बहिनिया, ...दूबे भाभी का हुकुम है. फिर यहाँ आओगे तो गूंजा, और गुड्डी की बहने,.. और भी .


लेकिन तोहार मूसल जस है, कउनो खूब चुदी चुदाई हो तोहरे बहिन महतारी की तरह,.... तब भी हर बार तेल पानी जरूरी है। कुछ लोग ये सोचते हैं की बिल में पानी गिरा है तो सट्ट से चला जाएगा, दुबारा करने पे। सबके लिए होगा तोहरे लिए नहीं,... एक तो बुरिया में जो बीज गिरता है केतना होता है फिर गिरता तो एकदम अंदर है, तो उससे कितनी चिकनाई होगी। हाँ एक बार सुपाड़ा घुस जाने के बाद,... इसलिए जितनी बार करो तेल पानी लगा के, और गुड्डी के साथ तो आज रात एकदम ध्यान रखना,"



और जैसी उनकी आदत थी ऐन मौके पे वो चुप हो गयीं जिससे मैं निहोरा करूँ, जैसे कुछ लिखने वालियां होती हैं न ऐन मौके पे पोस्ट पे ब्रेक दे देती हैं और फिर जब तक कमेंट न करो, आगे की पोस्ट आती नहीं है, एकदम वैसे।



और मैंने बोला,

" बताइये न भौजी, गुड्डी के साथ क्या, आज की रात के लिए " मैं एकदम उकता रहा था।

संध्या भौजी ने एक पल के लिए अपने मोटू मुन्ना को सहलाना बंद किया और मेरी आँखों में देखती बोलीं

" देख सबसे पहली बात ये सिर्फ तेरे साथ नहीं है सब मर्दो के साथ,...ख़ास तौर से नए लौंडो के साथ कच्ची चूत चोदने को सब पगलाए रहते हैं लेकिन इंतजाम नहीं करते "

मुझे भी लगा इसी गलती से आज गुंजा बच गयी अगर थोड़ा सा भी कडुवा तेल या कुछ भी होता तो बिना फाड़े मैंने उसे जाने नहीं देता लेकिन लौट के आऊंगा तो सबसे पहले उसी का नंबर लगेगा, जेब में अब से बोरोलीन की ट्यूब या वैसलीन की छोटी शीशी,

लेकिन अबकी संध्या भाभी रुकी नहीं उनका ज्ञान जारी था,

" देख यार सबसे अच्छा तो सरसो का तेल, एकदम सटासट जाता है ,





लेकिन आधी रात में कहाँ रसोई में डब्बा ढूंढते फिरोगे, फिर दाग धब्बा और सूंघने वाले अगले दिन भी सूंघ लेते हैं की सरसो की तेल की झार मतलब गपागप हुआ है तो तेल तो नहीं तो वैसलीन, इसका इंतजाम, "

मैं उन्हें क्या बोलता, मेरे बस का कुछ नहीं है लेकिन वो जो मेरी सारंग नयनी है जो मेरे जनम जिंदगी का ठेका ले के पैदा हुयी है उसने वैसलीन, की सबसे बड़ी शीशी खुद खरीदी है, मुझे दिखा के।



" और उसके बाद ऊँगली "

संध्या भाभी से आज मैं बहुत कुछ सीख रहा था, फिर उन्होंने जोड़ा,

"बहुत लोग बिस्तर पे जाने पे के पहले माउथवाश, मंजन सब करते हैं लेकिन ऊँगली का ध्यान नहीं रखते। "

मैं ध्यान से सुन रहा था और भौजी बोलीं " ऊँगली में एक तो नाख़ून एकदम नहीं, और दूसरे साफ़, एकदम साफ़, जैसे अमिताभ बच्चन नहीं हाथ धो के दिखाते हैं डिटॉल वाले में बस वैसे ही, "



" ये ऊँगली पे इतना जोर क्यों " मैं सच में इन मामलों में एकदम स्लो था। एक प्यार की चपत मेरे गाल पे मार के बोलीं

" स्साले मादरचोद, वैसलीन लगाएगा किस चीज से? लंड से की अपनी महतारी की बड़ी बड़ी चूँची से ? अरे लंड से पहले तोहरी जानेजाना, गुड्डी रानी की बुरिया में का घुसी, इहे उँगरिया न। "

फिर एक जोर की चुम्मी संध्या भाभी ने मेरे गाल पे ली और कचकचा के गाल काट लिया और बोलीं

"देख साले, कब भी कोरी बुर चोदो, और हमार आशीर्वाद है तोहें एक से कली मिलेंगी जिनकी झांट भी ठीक से नहीं आयी हो,... तो पहली बात ये याद रखो, एक ऊँगली का तर्जनी का कम से कम दो पोर,... और दोनों ऊँगली तर्जनी और मंझली का एक पोर.

पहले एक ऊँगली डाल के खूब तेल में, वैसलीन में चुपड़ के हलके हलके धँसाओ, पुश मत करना, और फिर गोल गोल, एक तो उससे बिलिया थोड़ी खुलेगी, दूसरे लौंडिया स्साली गर्माएगी, पनियायेगी, खुद चूतड़ पटकेगी लंड लेने के लिए। और जब दो पोर देर तक गोल गोल तो वो ऊँगली निकल के फिर से चिकनाई लगा के उसके पीछे एकदम चिपका के दूसरी ऊँगली और थोड़ी देर बाद दोनों ऊँगली अलग अलग, चूत की अंदर की दीवार पे, ....सब मजा तो वहीँ हैं, कभी अंदर बाहर कभी कैंची की फाल की तरह फैला दिया, चीखेगी स्साली, जोर से चीखेगी, तो घबड़ाना मत। तेरा इत्ता मोटा सुपाड़ा है कम से कम दोनों फांके इतनी तो खुल जाएँ, की सुपाड़े का मुंह उसमे फंस जाये, तो,.... चिकनाई और ऊँगली। "



भौजी की सब बाते मैंने गाँठ बाँध ली।

उन्होंने कुछ बात ही ऐसे की माहौल सीरियस हो गया, पहले तो मुस्करा के वो बोलीं,

" देखो २०-२५ बार तो वहां और यहाँ भी तीन चार दिन रहोगे तो मौका निकाल के आठ दस बार, तो जाने के पहले ३० -३५ बार तो पेलोगे ही उसको, लेकिन अभी भी मान नहीं सकती की आज के जमाने में तोहरे अस कोई लड़का, लड़की ढाई तीन साल से पटी, खुद शलवार का नाडा खोल दिया, औजार भी इतना मस्त तगड़ा, हरदम टनटनाया रहता है फिर भी चोदा नहीं, एकदम ही अलग हो। "

मैं क्या बोलता बस मुस्करा दिया। ३० -३५ बार का जो उन्होंने टारगेट दिया था अब गुड्डी के साथ मुझे डाँकना था,

लेकिन संध्या भाभी इस बार बिना मेरी हुंकारी के बोलीं,

" देखो, चुदाई का रिश्ता तीन चार तरह का, एक तो रंडी टाइप, उसमें भी कोई बुराई नहीं, और वो नहीं जो दालमंडी में खड़ी रहती हैं जहाँ तेरी बहनिया आके,... मेरा मतलब स्कूल में नंबर के लिए पास कराई, नौकरी में प्रमोशन, पोस्टिंग कुछ भी बात के लिए, लेकिन दोनों का काम होता है दोनों की ख़ुशी, तो मुझे इसमें कोई गलत नहीं लगता।


लेकिन ज्यादातर, जब दोनों की मर्जी हो, दोनों गर्मायें हो , दोनोंमज़ा लेना चाहते हों,... अब हर बार जिसको चोदोगे या लड़की जिससे चुदवायेगी उससे शादी थोड़ी हो ।जायेगी अब मैंने ही तुझसे चुदवाया सच में ऐसा मजा आज तक नहीं आया था और अब जब भी मिलोगे, स्साले, बिना तुझसे गपागप किये, भले मुझे तेरा रेप करना पड़े मैं छोडूंगी नहीं , लकिन शादी तो मेरी पहले ही हो गयी है।

फिर गुंजा है और गुड्डी की बहने, और भी लड़कियां, औरतें,.... तो सबसे शादी थोड़े कोई करेगा और ये बात लड़के से पहले लड़की को मालूम होती है इसलिए वो गोली वोली का इंतजाम किये रहती है। हाँ मजा असली तभी आता है जब पहले मन मिले, मन करे और लड़का केयरिंग हो, और तुझसे बड़ा केयरिंग तो मैंने देखा नहीं। सही कह रही हूँ न "

अबकी उन्होंने हुंकारी भरवाई और मैंने भरी भी बोला भी, " एकदम सही कह रही है आप , "


अब कल रात में मैंने चंदा भाभी को तीन बार चोदा था, अभी संध्या भाभी और दोनों शादी शुदा और गुंजा बस चुदवाती चुदवाती रह गयी, दो छटांक तेल के चक्कर में,... तो उस का भी तो रिश्ता तो जीजा साली का था।



लेकिन अब जो संध्या भाभी ने बात की,

"तो वही गुड्डी के साथ, मतलब ३०-४० बार तो, मेरा मतलब की तुम दोनों का मजा लेने का या,... मतलब अब कैसे कहूं, अब हर बार चुदाई के बाद बियाह, और का पता तोहरे घर वाले कहीं और लड़की वड़की देख के, ....या कोई और लड़की वाले तोहरे घरे, मतलब, देखो गुड्डी को मैं जानती हूँ , वो न बोलेगी न बुरा मानेगी"



मैं धक्क से रह गया, कुछ बोल ही नहीं निकल रहे थे बस किसी तरह से आवाज फूटी,



" मैं, मतलब, ....मेरा क्या, गुड्डी नहीं बोलेगी लेकिन मैं फिर, ....फिर मेरे रहने का क्या मतलब, होने का क्या मतलब, ....अगर वो, "



जैसे कोई भीत भहरा गयी।




जो कुछ मैंने कभी गुड्डी से भी नहीं, किसी से भी नहीं कहा था वो सब मेरे मुंह से निकल रहा था, मुझे पता भी नहीं
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है बुद्धू की जीझक खत्म करके उसे खुल कर मजे लेने के लिए आनंद को एक और गुरु मिल गई है जिसने उसे पहले प्रैटिकल करवाया फिर कच्ची कली को फूल बनाने के लिए क्या क्या करना है वो बता रही है आनंद को दोनो गुरु ही शानदार मिले हैं जिन्होंने ज्ञान के साथ फुल मजा भी दिया है संध्या भाभी ने 30 - 35 बार पेलने का टारगेट दे दिया है लेकिन गुड्डी की शादी कही और वाला झटका दे दिया है
 
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