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Erotica फागुन के दिन चार

motaalund

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इस के साथ ही बनारस की होली का प्रंसग ख़तम हुआ और कहानी गुड्डी के घर से निकल कर बनारस की गलियों में बढ़ेगी और वहां भी कुछ नयापन दिखेगा, अगली पोस्ट में जल्द ही
इतनी जल्दी...
अभी तो बहुत कुछ बचा है...
या बाद के लिए बचा कर रखा है...
 

motaalund

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फागुन के दिन चार भाग २३
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गुड्डी,
बनारस की गलियां और शॉपिंग
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मैं गुड्डी के साथ बाहर निकल आया लेकिन मुझे लग रहा था की मेरा कुछ वहीं छूट गया है। रीत की बात भी याद आ रही थी। आँख फड़कने वाली। लेकिन चाहने से क्या होता है। और खास तौर से जब आपके साथ कोई हसीन नमकीन लड़की हो जो पिछले करीब 24 घंटे से आपकी ऐसी की तैसी करने पे जुटी हो।


और वही हुआ। पहले तो उसने रिक्शे की बात पे ना ना कर दी-

“पैसा है तुम्हारे पास। चले हैं रिक्शे पे बैठने…” घुड़कते हुए वो बोली।


तब मुझे याद आया। मेरा मोबाइल, कार्ड्स पर्स सब तो इसी के पास था-

“हे मेरा पर्स वो। लेकिन मैंने। तो…” हिम्मत करके मैंने बोलने की कोशिश की।


“जगह-जगह नोटिस लगी रहती है। यात्री अपने सामान की सुरक्षा खुद करें। लेकिन पढ़े लिखे होकर भी। मेरे पास कोई पर्स वर्स नहीं है…”

बड़बड़ाते हुए वो बोली और फिर जैसे मुझे दिखाते हुए उसने अपना बड़ा सा झोले ऐसा पर्स खोला। बाकायदा मेरा पर्स भी था और मोबाइल भी। ऊपर से वो मेरा पर्स निकालकर मुझे दिखाते हुए बोली- “देखो मैं अपना पर्स कितना संभाल कर रखती हूँ। तुम्हारी तरह नहीं…” और फिर जिप बंद कर दिया।

उसमें मेरी पूरी महीने की सेलरी पड़ी थी। और उसके बाद रास्ते की बात पे तो वो एकदम तेल पानी लेकर मेरे ऊपर चढ़ गई-

“बनारस की कौन है। मैं या तुम?” वो आँख निकालकर बोली।
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“तुम हो…” मैंने तुरंत हामी भर ली।

“फिर…?”

मैं चुप रहा। ऐसे सवाल का जवाब देना भी नहीं चाहिए।

“अरे उलटा पड़ेगा। लेकिन तुम्हें तो बचपन से ही सब काम उल्टे करने की आदत है। यहाँ से गौदालिया कित्ता पास है। बगल में वो लक्सा वाली रोड पे एक माल भी खुल गया है। नई सड़क के बगल वाली गली में सब चीजें इतनी सस्ती मिलती हैं। लेकीन कल से तुम्हें रेस्टहाउस जाने की जल्दी पड़ी है…”

फिर मुझे मनाते हुए मेरे कंधे पे हाथ रखकर बोली-

“अरे मेरे बुद्धू राम जी। मैं मना थोड़े ही कर रही हूँ लेकिन इससे टाइम बचेगा। यहाँ की एक-एक गलियां मैं जानती हूँ…”

लेकिन गुड्डी का सारा सामान। एक बड़ा सा बैग उठाकर तो मैं चल रहा था। ऊपर से जनाब जी ने तुर्रा ये की मना कर दिया था की मैं इसे अपने पीठ पे ना रखूं।

मैं बड़बड़ा रहा था- “गधे का बोझ उठाकर कौन चल रहा है?”

“जो गधे ऐसी चीज रखेगा। वही गधे का काम करेगा। और क्या?”
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उसने मुश्कुराती आँखों से मुझे देखते हुए चिढ़ाया। और साथ में बोली-

“अच्छा चलो अब ये ब्रा उतार दो बहुत देर से पहने हो हाँ तुम्हारा मन कर रहा हो तो अलग बात है…”

आँख नचाकर वो दुष्ट बोली।



और जैसे ही मैंने उतारा सम्हालकर उसने अपने बैग में रख लिया।
मैं गुड्डी के साथ बाहर निकल आया लेकिन मुझे लग रहा था की मेरा कुछ वहीं छूट गया है। रीत की बात भी याद आ रही थी। आँख फड़कने वाली। लेकिन चाहने से क्या होता है। और खास तौर से जब आपके साथ कोई हसीन नमकीन लड़की हो जो पिछले करीब 24 घंटे से आपकी ऐसी की तैसी करने पे जुटी हो।
ये पहला लाइन हीं बहुत मौजूं है...
हमें भी लग रहा है कि कुछ नहीं बल्कि बहुत कुछ छूट पीछे छूटा रह गया..
लेकिन उम्मीद है कि गुड्डी अपने बनारसी और चुटीले अंदाज में सबको लुभाती रहेगी...
 

motaalund

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बनारस की गलियां
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गुड्डी की बातें और बनारस की गलियां एक तो कभी ख़तम नहीं होतीं और दूसरे एक से दूसरी निकलती रहती हैं,

लेकिन मेरी ऑब्जर्वेशन वाली आदत और ऊपर से आज एक और फेलू दा की फैन मिल गयी थी, रीत,मगज अस्त्र में प्रवीण, तो मैं थोड़ा ही ज्यादा इधर उधर और मुझे जय बाबा फेलूनाथ की सीन्स एक के बाद एक याद आ रही थीं।

एक पतली सी गली में बड़ा सा महल सा मकान, बाहर दीवाल पर सिपाही और घुड़सवार के चित्र और ऐसा ही एक घर दिखा, गली ज्यादा पतली तो नहीं थी लेकिन चौड़ी भी नहीं, और गुड्डी चालू हो गयी,


" अरे एक बड़े पुराने रईस का घर है, मैं आ चुकी हूँ इनके याहं दूबे भाभी के साथ एक शादी में। अब बेचारे अकेले ही रहते हैं, हाँ शादी में आये थे सब लड़के बच्चे कोई बंबई, कोई दिल्ली, एक बेटी तो अमेरिका में, सब लोग कहते हैं होटल बना दीजिये, बेच के बच्चों के पास, और किसी से तो नहीं लेकिन दूबे भाभी से बोले, " अमरीका, और गंगा जी कैसे जाऊँगा रोज, बाप दादों का घर होटल, पता नहीं कैसे कैसे लोग आयंगे, जितना बचा है ऐसे ही काट लेंगे "

तब तक हम लोग आगे आ गए थे और बात के चक्कर में गुड्डी एक गली मिस कर गयी और डांट मुझे पड़ी,

तेरे चक्कर में न, आज तक मैं ये मोड़ कभी मिस नहीं करती, चलो मुड़ो,

और गलती उस की भी नहीं थी, एकदम संकरी सी गली और उस के बाहर एक वृषभ महोदय बैठे किसी बछिया का इन्तजार कर रहे थे, एक दो मोटरसाइकलें भी खड़ी थी, गली का मुहाना कहीं दिख नहीं रहा था।



बनारसी सांड के बगल से गुजरते मैं थोड़ा ठिठका, तो गुड्डी ने चिढ़ाया,


" क्यों क्या देख रहे हो तेरी बहिनिया के लिए सही है की नहीं. ...स्साला तेरा वो बचपन का माल साथ होता न,... तो ये अबतक फनफना के खड़े हो गए होते, वैसे उस माल को देख के खड़ा तो तेरा भी होता है,.... है न और सिर्फ तेरी बहिनिया या,.... और कोई भी है, "

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अब गुड्डी जब पीछे पड़ जाए ख़ास तौर से मेरी मायकेववालियों के तो पीछे हटने में ही भलाई होती है,

इसलिए मैं बचते बचाते उसका १२ किलो का सामान लादे कभी पीछे पीछे तो कभी बगल में,

रास्ता तो उसे ही मालूम था। एक बचत यह होगयी की रीत आख्यान चालू हो गया और अगर कोई रीत फैंस क्लब बने तो बिना इलेक्शन के वो लाइफ टाइम प्रेजिडेंट हो जायेगी, हाँ ऑर्डिनरी मेंबर मैं भी बन जाऊँगा।

" अरे मुझे तो कुछ नहीं मालूम है, ये तो आस पास की गलियां हैं, रीत दी को तो बनारस की एक एक गली, आँख में पट्टी बाँध के उन्हें चला दो तो भी किसी से पहले खाली गली गली यहाँ से लंका, अस्सी घाट, मैदागिन, नाटी इमली सब जगह, और कितनी बार तो मैं उनकी एक्टिवा पे बैठ के उनके पीछे पीछे, जहाँ मैं सोचती भी नहीं थी वहां से भी एक्टिवा निकाल लेती हैं, "


गुड्डी का रीत पुराण चालू था।

लेकिन मैं तब तक ठिठक गया।

आब्जर्वेशन पावर मेरी भी जबरदस्त थी और फिर ट्रेनिंग में, सर्वेलेंस में अच्छी तरह से सिखाया भी गया था , ये गली आगे पहुँच के बंद हो जाती थी। एक दरवाजा था जो बंद था, और कोई मोड़ भी नहीं दिख रहा था। मैं अगल बगल के घरों को चारो धयान से देख रहा था और बीसो बार मैंने अपने को समझाया था गुड्डी जो कहे आँख मूँद के मानना चाहिए, सवाल नहीं करना चाहिए, लेकिन मुंह से निकल गया,



" अरे ये गली तो आगे से बंद है "

और पड़ गयी डांट,

" अभी रीत दी होतीं न तो तेरी माँ बहन सब एक कर देतीं। बनारस में हो बनारस वालियों की बात माननी चाहिए,... बल्कि अपने मायके में भी, "
प्राचीन बनारस और गलियों का समन्वय...
अति उत्तम...
लेकिन अब बहुत कुछ बदलता जा रहा है...
 
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motaalund

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रीत महिमा और गलियों में गलियां
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और फिर रीत महिमा गान शुरू हो गया।

" जानते हो रीत दी को एकदम डर नहीं लगता, रात के अँधेरे में भी, एक तो उनके हाथ में जोर इतना है, दो चार को तो अकेले ही,...


फिर गली गली, उनको सिर्फ रास्ता भी नहीं मालूम आधे से ज्यादा बनारस में, उस गली के मोड़ पे कौन रहता है, उनसे पूछ लो तो बता देंगी तो हर गली में आस आपस कौन है, कैसा है... इसलिए मैं कहती हूँ जब तेरी बहनिया आएगी न यहाँ तो देखना रीत दी कितने लौंडे चढ़ायेंगी,... एक तो तुम पोस्टर लगाए घूम रहे हो, फिर रीत दी और माल भी तो मस्त है वो, और स्साले मुंह मत बना। गलती तेरी अब तक छोड़ क्यों रखा था स्साली को। चल यार झिल्ली तो तुझी से फड़वाउंगी, वो भी अपने सामने, दूबे भाभी का हुकुम, और तूने भी हाँ बोला था, मेरे और रीत दी दोनों के मोबाइल में रिकार्ड है। अरे आठ दस बार डुबकी लगा लेना, उसके बाद तो नदी बह रही है चाहे जो डुबकी लगाए, ...और फिर पैसा भी मिलेगा,


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तेरी तो यार चांदी हो जाएगी, चार आने हम लोग तुझे भी देंगे न "

तबतक वो बंद दरवाजा आ गया, एकदम फर्जी दरवाजा था, गुड्डी ने हाथ लगाया और खुल गया और वो बोली,

" खुला ही रहता है, किसी ने मारे बदमाशी के बंद कर दिया होगा, पुराने ज़माने का है अभी तक चला आ रहा है "



और अब एक चौड़ी गली आ गयी थी, जिसके दोनों ओर दोमंजिले घर थे और उस से कई जगहों पर और गलियां निकल रही थीं। पास में ही एक मस्जिद की मीनार भी दिख रही थी।

कुछ नए, कुछ पुराने और कुछ बहुत पुराने जिनका रंग रोगन उजड़ सा गया था, इसी बीच एक बड़ा सा टूटता हुआ घर दिखा, करीब करीब टूट ही चुका था, जगह जगह पुरानी ईंटे, गिरती हुयी बिल्डिंग के सामान पड़े हुए थे, और एक बोर्ड लगा था, ' बिल्डिंग टूट रही है, किसी को मोरंग, पुरानी ईंटे या और कोई सामान चाहिए, तो सम्पर्क करें। ईंटे गली में इधर उधर भी बिखरे पड़े थे और गुड्डी अचानक थोड़ी उदास हो गयी, उस घर को देख के और मेरे बिन पूछे बोलने लगी,


" सैय्यद चच्चू का घर है, था। बहुते बड़ा, बचपन में कितनी बार आयी थी दूबे भाभी के साथ, अरे बहुत छोटी थी, वो उनका चच्चू बोलती थीं तो हम बच्चे भी। बड़ा सा आंगन था, बरामदा, एकट दूकट खेलते थे अगल बगल की लड़कियां, उनके यहाँ तो कोई बचा नहीं था। "

फिर रुक के बोली

" अरे उनके दो भाई थे वो पाकिस्तान चले गए एक लड़का भी, दो बेटियां थी, एक अमेरिका गयी पढ़ने, एक कनाडा वहीँ रह गयी, शादी नौकरी। ये अकेले। दो चार साल में कभी आतीं तो बस यही जिद्द की मकान बेच के हम लोगों के साथ चलिए, लेकिन चच्चू किसी की नहीं सुनते, बोलते यहाँ जो पुरखों की कब्र है, वहां दिया बाती करते हैं वो कौन करेगा। रोज नियम से जाड़ा गरमी बरसात सुबह सुबह गंगा नहाते थे, पहले तो तैर कर रामनगर तक, लेकिन अब वो बंद हो गया था। कनाडा वाली बेटी ने बहुत जिद की तो बोले, गंगा जी को भी साथ ले चलो तो चलेंग। तीन चार महीने पहले, बेटे बेटी कोई नयी आये। बेटे को वीसा नहीं मिला, बेटियों का अपना अलग, सब मोहल्ले वालों ने, मैं भी आयी थी दूबे भाभी के साथ, और वो कनाडा वाली महीने भर बाद आयीं तो घर बेच दिया अब का कहते हैं कोई बिल्डर लिया है, मल्टी स्टोरी बनाएगा। "
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पुरानी चीजों पर हसरत भरी निगाहें ..
और नई चीजों पर आश्चर्य भरी दृष्टि....
ये ट्रांजिशन हीं लगता है सतत है...
 
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motaalund

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गुड्डी और गली की सहेली


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मै भी चुप हो गया, लेकिन बस १०० कदम चलने के बाद गुड्डी जोर से मुस्करायी और मैंने देखा, एक लड़की गुड्डी की ही उम्र की, शलवार कुर्ते में और उस के साथ एक कोई औरत, संध्या भाभी की उम्र की रही होंगीं, वो दुप्पटे को हिजाब की तरह सर पर लपेटे,

वो लड़की पहले गुड्डी को देखकर मुस्करायी, फिर साथ वाली औरत को इशारा किया, वो तो हम दोनों को देख कर लहालोट और गुड्डी से बिन बोले मेरी ओर देख के इशारा किया,

अब गुड्डी की कस के मुस्कराने की बारी थी और उन दोनों को दिखा के मुझसे एकदम चिपक गयी और गुड्डी का हाथ मेरे कंधे पे, मुझे भी अपनी ओर पकड़ के खींच लिया, एकदम चिपका लिया उन दोनों को दिखाते,


मान गया मैं बनारस को, वो जो दुपट्टे वाली थीं,

पहले तो गुड्डी की ओर तर्जनी और मंझली ऊँगली को जोड़ के चूत का सिंबल बना के इशारा किया,

और फिर मेरी ओर देख के अंगूठे और तर्जनी को मिला के गोल छेद और उसमे ऊँगली डाल के आगे पीछे, चुदाई का इंटरनेशनल सिंबल,

और अब मैं भी मुस्करा पड़ा,

और गिरते गिरते बचा, जो बिल्डिंग पीछे हम छोड़ आये थे, जो गिर रही थी, उसके ईंटे सड़क पे यहाँ तक बिखरे पड़े थे, उसी से ठोकर लगी, वो तो गुड्डी ने कस के मेरा हाथ पकड़ रखा था,



वो दोनों, लड़की और साथ में औरत तब तक एक घर में घुस गए थे और गुड्डी ने मेरे बिना पूछे सब मामला साफ़ कर दिया।


गुड्डी की एक सहेली है सी गली में, एकदम शुरू में जहाँ मकान टूट रहा था उससे भी बहुत पहले, एकदम शुरू में।

तो बस उस की जो सहेलियां वो गुड्डी की भी, वो जो लड़की थी उसका नाम अस्मा है, गुड्डी से एक साल सीनियर, इंटर में पढ़ती है।
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तो सहेलियों के साथ इस मोहल्ले में १५ -२० भाभियाँ, और उनमे से आठ दस तो गुड्डी के शलवार का नाडा खोलने के चक्कर में पड़ी रहती थीं, सब बोलती,

"कैसी लड़की हो इंटर में पहुँच गयी और अभी तक इंटरकोर्स नहीं किया, "

कोई कहती की "तुझसे कोई नहीं पट रहा हो तो मैं अपने भाई से तेरी सील खुलवा दूँ, "

तो कोई कहती ,अरे इस गली में मेरे कितने देवर भी हैं, लटकाये टहलते रहते हैं, जब कहो तब।"

अस्मा की भाभी नूर जो साथ में थीं वो तो सबसे ज्यादा, अंत में गुड्डी की सहेली ने साफ़ साफ़ बता दिया, इसका कोई है, इसलिए किसी और से तो


नूर भाभी ने हड़काया और बोलीं
"फिर तो मेरी ननद एकदम, अरे बियाह तक इन्तजार करोगी क्या, शुरू कर दो गपगप, गपगप, और वो भी स्साला एकदम बुरबक है, अइसन माल अभी तक छोड़ के रखा है"

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आगे की बात मैं बिन बोले समझ गया, अस्मा ने जब अपनी भाभी को इशारा किया गुड्डी की ओर तो नूर ने मेरी ओर इशारा करके बिन बोले यही पूछा

" यही है क्या "

और गुड्डी ने मुझसे चिपक के, मेरे कंधे पे हाथ रख के, मुझे अपनी ओर खींच के, एकदम से इशारे में हामी भर दी

और वो ऊँगली जोड़ के चूत और चुदाई का इशारा, और हलके साथ में गुड्डी को दिखा के गपगप बोलना, मेरे लिए ही थी, मैं मुस्कराने लगा, और फिर गिरते गिरते बचा, एक और मकान टूट रहा था उसकी ईंटे,



गिरने का सवाल ही नहीं था गुड्डी ने इत्ती कस के हाथ पकड़ रखा था।
जैसे लड़के अपने माल पर हक जमाते हैं..
गुड्डी भी अपने यार पर हक और अधिकार दिखा रही है...
लेकिन सहेलियों को मौका मिलते हीं गुड्डी से इशारे से पूछ ताछ...
 

motaalund

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गली गली होली
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लेकिन मेरी निगाह बगल की साइड में चल रही बातचीत पे चल रही थी, सिर्फ इस गली में नहीं हर जगह रास्ते में जगह, जगह बच्चे प्लास्टिक वाली पिचकारी लेकर रस्ते में आने जाने वालों पर पिच पिच कर रहे थे।

और ये हाल हर जगह होता है, घर में माँ होली का सामान, गुझिया, समोसे, दहीबड़े, बनाने में लगी रहती हैं तो बच्चे तंग न करें इसलिये उन्हें बाहर कर दिया जाता है।



साइड में दो लोग, सफ़ेद कुर्ते पाजामे में, शायद मस्जिद से नमाज पढ़ के आ रहे थे, और सफ़ेद कपडे देख कर तो रंग छोड़ने वालों को और जोश आ जाता है तो बच्चों ने उन पे भी,

एक जो थोड़े बड़े थे उस बच्चे को चिढ़ाया,

" अरे मियां, क्या पानी लेकर पिच्च पिच्च, अपनी अम्मी से कह दो थोड़ा रंग वंग भी दिलवा दें, खाली पानी में क्या मजा "

इशारा बच्चे के बहाने अंदर की ओर था और जवाब अंदर से सूद के साथ आया, गुझिया छनने की छनन मनन और चूड़ियों की तेज खनक के साथ

" राजू अपने चच्चू से कह दो दिलवा दें न रंग। का करेंगे सब पैसा बचा के, अब तो कोई बहिनियों नहीं बची है जिसके लिए जहेज का इंतजाम कर रहे हों "

अब बाहर से चच्चू की आवाज अंदर गयी,

" आदाब भाभी "

" तसलीम " के साथ अंदर की खिलखिलाती आवाज ने चिढ़ाया भी बुलाया भी

" सब काम बाहर बाहर से कर लोगे, या अंदर भी आओगे, गरम गरम गुजिया निकाल रही हूँ। "

" नहीं नहीं भाभी, आप रंग डाल देंगी " बाहर से घबड़ाया जवाब गया।

" देखो भाभी हूँ, मेरा हक़ है, वो अंदर आओगे तो पता चलेगा, देखो, डलवाने से डरने से कोई बचता थोड़े ही है। "

हंसी के साथ दावतनामा आया,


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और मैं रंग से भीगते भीगे बचा, लेकिन थोड़ा फिर भी,

असल में निशाना गुड्डी ही थीं मैं नहीं। गुड्डी ने जो बोला था था उस मोहल्ले में पन्दरह बीस भाभियाँ, तो उन्ही में से एक, छत पर खड़ी, दूर से उन्होंने गुड्डी को आते देखा होगा और होली का मौसम, ननद सूखी सूखी चली जाये, मोहल्ले से,
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लेकिन गुड्डी भी एक तेज, उसने भी देख लिया था तो वो छटक के दूसरी पटरी पे और मैं, बाल्टी के रंग के आलमोस्ट नीचे,



और होली का ये असर सिर्फ इस गली में नहीं,

अब तक हम लोगो ने दस पन्दरह गलियां पार कर ली थी और होली अभी चार पांच दिन दूर थी, लेकिन अभी से होली का असर पसरा पड़ा था।

प्लास्टिक की पिचकारियां लिए बच्चे, कहीं बाहर खड़े, कहीं छत पर से, कोई दिखा नहीं जिसके कपडे रंग से सराबोर न हों और कोई अगर मेरी तरह का ससुराली पकड़ में आ गया, ससुराल खुद की न हो, किसी की हो,

मोहल्ले और गाँव के रिश्ते की भी तो बस, अंदर जो खातिर होती है वो तो ही, बाहर निकलने पर भी सलहजें तैयार रहती हैं बाल्टीलेकर



और आठ दस ऐसी सीन पिछले बीस मिनट में देख चुका था मैं, मुझे नजीर की होली याद आ रही थी,




जब फ़ागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की

और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की



लेकिन फिर गुड्डी की कमेंट्री चालु हो गयी बनारस की गलियों पे

सच में इतनी गलियां जगह जगह से निकल रही थीं, वो बोली ये दाएं वाली आगे जा के मुड़ जाती है, थोड़ा आगे जा के बंगाली टोला वाली गली भी इसमने और वहां से एक और मोड़ फिर सीधे घाट पे,



मुझे भी मालूम था जमाने से ढेर सारे बंगाली लोग और उनमे भी बंगाली विडोज यहाँ आके रहती हैं,



फिर एक संकरी सी गली थी, दो लोग साथ साथ नहीं निकल सकते थे , उसकी ओर दिखाते बोली,

मैं तुझसे बोल रही थी नहीं लक्सा वाला मॉल, बस इसी गली से मुश्किल से दस मिनट, लेकिन वहां नहीं चलेंगे अभी, बहुत महंगा है, हाँ तेरा माल आएगा न होली के बाद तो उसे तेरे साथ जरूर ले चलूंगी उस मॉल में, बढ़िया दाम लगेगा उस स्साली का वहां, बाकी तेरे भंडुआगिरी पे है, अपनी बहिनिया से कितना कमाते हो,



तब तक मुझे एक गली दिखी दूसरी ओर जो नयी सड़क के पास खुलती थी,

सामने नयी सड़क, प्राची सिनेमा जो कब का बंद हो चुका था बस उसी के बगल में, सड़क साफ़ दिख रही थी और गुड्डी ने मेरे बिन बोले कहाँ,

" नहीं अब हम लोग गोदौलिया ही चलेंगे, नहीं तो तुम कहोगे, वहां भी गलियों में सस्ते में अच्छा माल मिल जाता है और फिर तुम जो पीछे पोस्टर लगा के घूम रहे हो, और तेरे उस माल की पिक्स भी हैं मेरे पास,... तो तगड़ा डिस्काउंट पक्का
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यही छुट-पुट बातें कहानियों को रस भरा बनाती हैं...
और ऐसे ऐसे डायलोग गुदगुदा कर बरबस हीं होंठों पर मुस्कान बिखेर जाता है...
 

motaalund

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मार्केट और

पहली बुकिंग गुड्डी की होने वाली ननदिया की
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और हम लोग गलियों के मकड़ जाल से निकल के में मार्केट में पहुँच गए।

पहुँच तो सच में हम लोग आधे टाइम में गए थे, एक तो सड़क के मुकाबले रस्ता छोटा था, फिर बनारस की ट्रैफिक, लेकिन पैदल और वो भी कोई बात नहीं,

गुड्डी के सामान का का बीस किलो का बोझ लादे लादे और चंदा भाभी ने भी ढेर सारे झोले, पैकेट पकड़ा दिए थे, थकान भी लग रही थी थोड़ा गुस्सा भी,

गुड्डी मेरा हाथ कस के दबा के मुझे चिढ़ाते बोली,

" देख यार मेरा मरद है, मैं उसे चाहे जिस पे चाहे उस को चढ़वाऊं, तुझ से क्या,.... चाहे उस की बहन हो महतारी हो, ...और जो मेरी ननदिया है, मेरी मरजी, मैं चाहे जिस के आगे उस की टांग फैलवाऊं, उसके शलवार का नाड़ा खुलवाऊं "


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और वो जोर से मुस्करायी

मेरी सारी थकान और गुस्सा एक मिनट में पिघल गया।मैं एकदम खुश, बीस किलो वजन ढोने का पैसा वसूल, अगर मेरी बहन उसकी ननद और मैं मरद तो वो,

मतलब हाँ

गली-गली हम लोग थोड़ी ही देर में गोदौलिया चौराहे पे पहुँच गये। भीड़, धक्कम धुक्का, जबकी अभी शाम भी नहीं हुई थी। समय तो कम लगा, लेकिन मैं जो नहीं चाहता था वही हुआ।

मेरी शर्ट पे आगे और पीछे, जो “अच्छी अच्छी बातें…” मेरी और मेरी ममेरी बहन के बारे में रीत और गुड्डी ने लिखी थी। एकदम खुले आम दावत देते हुये। सब उसे पढ़ रहे थे और मुझे घूर रहे थे। और कुछ देर बाद मेरे मोबाइल का मेसेज बजा।

था तो वो गुड्डी के बैग मे। लेकिन उसने तुरत फुरत निकाला और मेरी ओर बढ़ाया और बोली- “बधाई हो तेरी ममेरी बहन की पहली बुकिन्ग आ गई…”



उन दुष्टों ने मेरी शर्ट पे मेरे मोबाइल के 9 डिजिट लिख रखे थे और आखिरी नम्बर की जगह ऐस्टेरिक लगा रखा था। पहले तो मैं सोच रह था कि ये सेफ है, कौन दसवां नम्बर ढूँढ़ पायेगा? लेकिन लगता है ये उतना मुश्किल नहीं था। गुड्डी ने जो मेसेज दिखाया, उसमें लिखा था-

“क्या दो के साथ एक फ्री होगा, या कम से कम कुछ डिस्काउंट…”


गुड्डी ने मुझे दिखाते हुये वो मेसेज पहले तो रीत को पास किया और फिर मुझे दिखाते हुये जवाब भेज दिया-

“आपकी पहली बुकिन्ग थी इसलिये स्पेशल डिस्काउंट। तीसरा 50% डिस्काउंट पे। लेकिन पहले दो के साथ। साथ…”


उसने मेरे रोकते-रोकते मेसेज भेज दिया और जब तक मोबाइल मैं उससे लेता वापस उसके पर्स में।

बाद में मैंने नोटिस किया कि वो हर मेसेज के जवाब के साथ-साथ रीत का नम्बर दे रही थी आगे की सेटिन्ग के लिये और मेसेज डिलिट भी कर दे रही थी। यानि कि मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था। तभी मुझे जोर का झटका जोर से लगा। मेरी ममेरी बहन का तो पूरा नम्बर सालियों ने मेरी शर्ट के पीछे टांक रखा है, तो उस बिचारी के पास तो सीधे ही और वो कितनी लज्जित फील कर रही होगी।

लेकिन ऐसा हुआ कुछ नहीं, मेसेज उसको मिले और एक से एक। लेकिन जैसा उसने गुड्डी से बोला, की उसे खूब मजा आया और उसने भी उसी अन्दाज में उन लोगों को जवाब दिया। कईयों को तो उसने अपनी मेल आई॰डी॰ और फेस बुक पेज के बारे में भी बता दिया। वो समझ गई थी की ये होली का प्रैंक है और उसी स्प्रिट में मजा ले रही थी।


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गुड्डी को उसने दिखाया की कईयों ने तो उसे अपने “अंग विशेष…” के फोटो भी भेज दिये थे, कड़े कड़े, खड़े एकदम तन्नाए

एक बार इश्तेमाल करने की गुजारिश के साथ।

असल में वो फोटुयें तो मेरे मोबाइल पे भी आई इस रिक्वेस्ट के साथ कि-


“राजा, अरे तुन्हूं मजा ला,,... तोहरि बहिनियों के मजा देब। एक बार में पूरा सटासट-सटासट। सरसों का तेल लगाकर। तनिको ना दुखायी। मजा जबरदस्त आई…"


और साईज भी एक से एक, लम्बे भी मोटे भी। मैं अपने आपको शेर समझता था लेकिन वो भी मेरे से 20 नहीं तो 19 भी नहीं थे।



खैर, मैं ये कहां कि बात ले बैठा। ये बात तो मेरे घर पहुँचने के बाद के प्रसंग में आ
नी है।
रीत और गुंजा की कारस्तानी रंग ला रही है...
 
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motaalund

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शॉपिंग और गुड्डी की मस्ती

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खैर, हम जब दुकान में घुसे तो गुड्डी जी ने बहुत अहसान करके मेरा मोबाइल मुझे वापस कर दिया।

लेकिन पर्स क्रेडिट कार्ड उसी कि मुट्ठी में, और जब उसने शापिन्ग कि लिस्ट निकाली। उसके हाथ से पर्स तक निकली। मेरी तो रूह कांप गई।

लेकिन मुझे वो कार्ड निकालकर दिखाते हुये बोली- “चिन्ता मत करो बच्चे। मैंने और रीत ने चेक कर लिया था की ये प्लेटीनम कार्ड है, दो लाख तक तो ओवरड्राफ्ट मिलेगा और इसमें भी बैलेन्स काफी है…” वो दुकान ड्रेसेज की थी।

“क्या साइज है?” दूकानदार ने पूछा।

जोबन उभार के गुड्डी बोली- “बस मेरी साइज समझ लीजिये। क्यों?” मुश्कुराकर वो बोली।



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लेकिन पुष्टि के लिये उसने मेरी ओर देखा।

दुकानदार कभी गुड्डी की ओर देखता तो कभी मेरी शर्ट पे पेंट, इश्तहार पे।

तब तक गुड्डी ने आर्डर पेश कर दिया, स्लीवलेश टाप, वो भी हो सके तो शियर। एकदम आइटम गर्ल टाईप और एक लो-कट जीन्स। आप समझ गये ना?”

दुकानदार समझ गया शायद और अन्दर चला गया।

लेकिन मेरे समझ में नहीं आया-

“ये किसके लिये ले रही हो, कौन पहनेगा इतना बोल्ड वो भी…”



“तुम्हारे खिचड़ी वाले शहर में है ना…” खिलखिलाती हुई वो बोली-

“और कौन तुम्हारा माल, तुम्हारी ममेरी बहन गुड्डी (रंजीता), अरे यार उसे पटाना चाहते हो, उससे सटाना चाहते हो, तो बाहर से जा रहे हो। होली का मौका है कुछ हाट-हाट गिफ़्ट तो ले जानी चाहिये ना। तभी तो चिड़िया दाना चुगेगी…”


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दुकानदार बाहर आया और साथ में कई टाप, सबके सब स्लीवलेश, लो-कट। लाल, गुलाबी, पीला और आलमोस्ट शियर। मेरे तो पैरों के तले जमीन सरक गई। ये कोई भी कैसे?

लेकिन गुड्डी ने तब तक मेरे हाथ में से मोबाइल छीन लिया और एक पिक्चर निकालती हुई दुकानदार को दिखाया। वो बड़ी प्राइवेट सी फोटो थी।

उसने दोनों हाथ एक दूसरे में बाँधकर, सिर के पीछे उभारों को उभार के, मस्ती की अदा में हाट माडल्स की नकल में। मैंने बस मोबाइल से खींच ली। मेरी ममेरी बहन ने मुझसे कहा था की मैं डिलीट कर दूँ लेकिन मैंने बोला की यार मेरे मोबाइल में है कर दूंगा।

बस वो गुड्डी के हाथ और वही पिक्चर।
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फिर बोली- “ठीक है लेकिन एक नम्बर छोटा…”

“हे हे। अरे थोड़ा कम हाट, पहनने लायक तो हो…” मैंने दुकानदार से रिक्वेस्ट की।

वो बिचारा फिर अन्दर गया।

गुड्डी ने ठसके से बिना मुड़े मुझे सुनाते हुए बोला-


“पहनेगी वो और उसकी सात पुस्त। और पहनाओगे तुम अपने हाथ से। देखना…”

तब तक मेरे फोन पे एक मेसेज आया। नम्बर फोन बुक में नहीं था। मैंने खोला तो लिखा था-


“अरे पांच के बदले पच्चास लग जाय। बिन चोदे ना छोड़ब चाहे जेहल होय जा। अरे बनारस में आकर जरूर मिलना। हो गुड्डी…”

जब तक मैं ये मेसेज देख ही रहा था वो फिर निकला। अबकी उसने जो टाप दिखाए वो थोड़े कम हाट लेकिन तब भी स्लीवलेश तो थे ही।


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“दोनों टाइप के एक-एक दे दीजिये…” गुड्डी बोली। मैं इरादा बदलता उसके पहले गुड्डी ने आर्डर दे दिया।



“हे तू भी तो कोई ले ले…” मैंने गुड्डी को बोला।


वो ना-ना कराती रही पर मैंने उसके लिए भी टाप, कैपरी और एक बहुत ही टाईट लो-कट जीन्स ले ली।
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दुकानदार के सामने ही मुझसे बोली- “ये सब तो ठीक है, तेरी वो इसके अन्दर कुछ नहीं पहनेगी क्या? बनारस वालों का तो फायदा हो जाएगा। लेकिन…”

दुकानदार मुश्कुराने लगा और बोला-


“मैं अभी दिखाता हूँ। मेरे पास एक से एक हाट ब्रा पैंटी हैं…” और सचमुच जब उसने निकाली तो हम देखते रह गये। एक से एक। कलर, कट, डिजाइन। विक्टोरिया’स सिक्रेट भी मात खा जाय। जो गुड्डी ने छांटी, कयामत थी।

वो एक तो स्किन कलर को ध्यान से ना देखो तो लगेगा ही नहीं कि अन्दर कुछ पहने हैं की नहीं, और पतली इतनी की निपल का आकार प्रकार सब सामने आ जाय।


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लेकिन दुकानदार नहीं माना, और कहा- “मेरी सलाह मानिये तो ये वाली ले जाइये…” और उसने अन्दर से चुनकर एक निकाली।

थी तो वो भी स्किन कलर की लेकिन सिर्फ हाफ कप, अन्डर वायर्ड। और साथ में हल्की सी पैडेड- उभार उभरकर सामने आयेंगे, 30 साल की होगी तो 32 साल की दिखेगी, कप साइज भी एक बडा दिखेगा। क्लीवेज भी पूरा खुलकर…”



अब गुड्डी के लिये सोचने की बात ही नहीं थी। उसने एक पसंद कर लिया और साथ में एक सफेद भी।



मैंने दुकानदार से कहा- “इनके दो सेट दे देना…”

फिर वो पैन्टी ले आया। गुड्डी जब तक चुन रही थी। वो धीरे से आकर बोला-


“साहब। वो जो आखिरी एम॰एम॰एस॰ मिला होगा ना, वो मैंने ही भेजा है…”

मेरा माथा ठनका। तो इसका मतलब- “पान्च के बदले पचास लग जाय, बिन चोदे ना छोड़ब। चाहे जेहल होइ जाय…” वाला मेसेज इन्हीं जनाब का था।

तब तक गुड्डी ने दो थान्गनुमा पैन्टी पसन्द कर ली थी। मैंने फिर उसे दो सेट का इशारा किया।

पैक करते हुये वो बोला- “सही चुना आपने इम्पोर्टेड है…”

“तब तो दाम बहुत होगा?” गुड्डी ने चौंक के पूछा।

“अरे रहने दीजिये आपसे पैसे कौन मांगता है? वो मेरा मतलब है आप लोग तो आयेंगी ना बस ऐड्जस्ट हो जायेगा…”

“मतलब। ऐसा कुछ नहीं है…” मैं उसे रोकते हुये बोला।

लेकिन बीच में गुड्डी बोली-

“अरे भैया आप इनसे पैसा ले लिजिये। होली के बाद जब वो आयेगी ना तो आपके पास लेकर आयेंगे और फिर हम दोनों मिलकर आपकी दुकान लूट लेंगें…”

गुड्डी की कातिल अदा और मुश्कान कत्ल करने के लिये काफी थी।

जब हम बाहर निकले तो हमारे दोनों हाथ में शापिन्ग बैग और गुड्डी पर्स निकालकर पैसे गिन-गिन के रख रही थी। गुड्डी ने जोड़कर बताया। 40% ड्रेसेज पे और 48% बिकनी टाप पे छूट, कुल मिलाकर 42% छूट।

फिर नाराज होकर मेरी ओर देखकर बोली-

“तुम भी ना बेकार में इमोशनल हो जाते हो। अगर वो फ्री में दे रहा था तो ले लेते। बाद की बात किसने देखी है? कौन वो तुम्हारे ऊपर मुकदमा करता? और फिर मान लो, तुम्हारी वो ममेरी बहन दे ही देती तो कौन सा घिस जायेगा उसका? फिर इसी बहाने जान पहचान बढ़ती है। अब आगे किसी और दुकान पे टेसुये बहाये ना तो समझ लेना। तड़पा दूंगी। बस अपने से 61-62 करते रहना। बल्की वो भी नहीं कर सकते हो। मैंने तुमसे कसम ले ली है की अपना हाथ इश्तेमाल मत करना…”

और उसके बाद जिस अदा से उसने मुश्कुराकर तिरछी नजर से मुझे देखा, मैं बस बेहोश नहीं हुआ।

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उसके बाद एक बाद दूसरी दुकान।
गुड्डी दूरंदेशी है..
आनंद बाबू का इंतजाम तैयार करवा रही है...
और दूकानदार भी कम रंगीला नहीं है....
 
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