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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
is on Page 325, please do read, enjoy, like and comment.
मैं, गुड्डी और होटल
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देखिये गुड्डी नंबर कितना देती हैऔर गुड्डी का पेपर आज रात में हीं सॉल्व करेंगे ...
अपना कलम चला कर....
swagat hai aapka,Page 10 tak ki kahani badhiya aur romanchak hai.
आगे आगे देखिये कुछ नया कुछ पुरानाइतनी जल्दी...
अभी तो बहुत कुछ बचा है...
या बाद के लिए बचा कर रखा है...
एकदम खुल्लम खुल्ला ही होगा, फागुन में क्या लुकाना छिपाना वो भी बनारस मेंएकदम खुल्लम खुल्ला...
आपका साथ, आपकी शुभाशीष और शुभ कामनाओं का पाथेय इसी तरह प्राप्त होता रहे तो रुक रुक कर ही सही, पथ के देवता की कृपा से यह कहानी भी अपने लक्ष्य तक पहुंचेगी, कई बदलाव और जुड़ाव के साथ300 पृष्ठ पूरे होने पर तीन सहस्र बधाइयाँ....
कोमल जी,
आपका प्रतिक्रिया पढ़कर बहुत खुशी हुई। यह आपकी विनम्रता और सादगी का प्रतीक है।
सच कहूँ तो, आपकी कहानियों ने मुझे गहरे स्तर पर प्रेरित किया है.. छोटे शहरों का सटीक चित्रण, वहां के पात्रों की जीवंतता और उनके जीवन के जटिल पहलुओं को आपने जिस बारीकी से छुआ है, वह वाकई अप्रतिम है.. आपकी लेखनी में एक विशेष प्रकार की सच्चाई और सरलता है, जो पाठकों को अपने भीतर समेट लेती है.. और ईसी कारणवश, पाठक आपकी कहानियों से एक अकथित जुड़ाव भी महसूस करते है..
गुजारिश है, की आप हमेशा ऐसी ही सुंदर कहानियाँ लिखती रहें.. आपकी लेखनी, न सिर्फ मुझे, बल्कि औरों को भी प्रेरित करती है.. मैं आभारी हूँ कि मुझे आपकी रचनाएँ पढ़ने का अवसर मिला, और मैं आशा करता हूँ कि आप आगे भी इसी तरह की अनमोल रचनाएँ लिखती रहें, जो हमें जीवन और समाज के विभिन्न पहलुओं को अधिक गहराई से समझने का अवसर दें
आपका लेखन निरंतर समृद्ध हो, इसी शुभकामना के साथ
सादर,
वखारिया