आनंद की गुड्डी को देखकर मुझे अपनी गुड्डी की याद आ जाती है । उसकी चंचलता , उसकी नाॅन स्टाप बक - बक , उसका मसखरापन , उसका दिल्लगीपन जैसे एक बार फिर से मेरे यादों के झरोखे से बाहर आ गई हो ।
सच कहूं तो यह गुड्डी , बिल्कुल मेरी गुड्डी - जो सरगम फिल्म के जया प्रदा जी की तरह दिखती थी - लग रही है ।
फर्क इतना है कि मेरी प्रेम कहानी के प्रारब्ध मे वियोग लिखा था और इनके प्रेम कहानी का अंजाम संयोग है ।
गुड्डी का बार बार आनंद पर हक जमाना उसके विश्वास को परिभाषित करता है कि वो सिर्फ आनंद के लिए बनी है ।
आनंद का गुड्डी के साथ बनारस के तंग गलियों मे विचरण करना , इन गलियों मे स्थित शैयद चच्चू का छोटा मकान , अस्मा और उसकी भाभी नूर , इन गलियों से लगे बंगाली टोला , लक्सा माॅल , प्राची सिनेमाघर एवं इस इलाके की रौनक और अपनापन मुझे भयभीत करने पर मजबूर कर रहा है कि फ्यूचर मे होने वाले बम ब्लास्ट का टार्गेट यही क्षेत्र न हो !
शायद यह रौनक आने वाले कल की तबाही न हो !
इस कहानी मे एक किरदार वगैर अपनी उपस्थिति के , वगैर एक सीन्स के रीडर्स के लिए सबसे बड़ी हिरोइन बन गई । वह हिरोइन है रंजीता उर्फ गुड्डी ।
बहुत ही खूबसूरत अपडेट कोमल जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।