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फागुन के दिन चार भाग ३० -कौन है चुम्मन ? पृष्ठ ३४७
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कोमल मैमहाँ भी और नहीं भी,
हाँ, यह कहानी २०१० के दशक के आसपास की है और मैं कोशिश करती हूँ की समय और स्थान का आभास मेरे पाठकों को कम से कम लम्बी कहानियों में हो जिससे वो ज्यादा कहानी से जुड़ा महसूस कर सकें
और बाकी बातों के लिए नहीं।
अगर किसी कहानी की पृष्ठभमि, सिंधु घाटी की सभ्यता है तो यह कल्पना करना की लिखने वाला भी उसी समय का होगा, निश्चित रूप से गलत होगा। कई बार पौराणिक गाथाओं को आधार बना के भी कहानी लिखी जाती है, तो क्या हमें मानना चाहिए की लेखक भी सतयुग या द्वापर का होगा ? तो अगर यह कहानी किसी काल क्रम से जुडी है, और वो भी मात्र पृष्ठ्भूमि से तो लेखक के बारे में कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता।
दूसरी बात, लेखन की परिपक्वता और लेखक की बायोलॉजिकल एज से आपने जो टांका भिड़ाने की कोशिश की है वो भी गलत है और मैं उदाहरण दे रही हूँ बनारस का ही, क्योंकि ये कहानी अभी बनारस में चल रही है।
आधुनिक हिंदी के जनक भारतेन्दु हरिशचंद्र का जन्म १८५० में बनारस में हुआ और मात्र ३५ वर्ष से कम की आयु में उन्होंने हिंदी गद्य की शुरुआत की और दर्जनों नाटक, निबंध, कविता संग्रह लिखे। उनके मशहूर नाटक २२-२३ वर्ष की आयु में छप चुके थे। कविगुरु रविन्द्रनाथ टैगोर को कौन नहीं जानता, और उनका पहला कविता संग्रह २१ वर्ष की आयु में निकला था।
लेखक की परिपक्वता, उम्र से नहीं पढ़ने से आती है, किताबे भी और जिंदगी की किताब भी और उस पढ़ने से वह क्या देखता है, सीखता है उसका क्या निरूपण कहानी में कर पाता है , और यह बात सिर्फ लेखक के लिए नहीं बल्कि एक अच्छे पाठक के लिए भी जरूरी है।
मैंने पहले भी कई बार कहा है की इस कहानी को लिखने के लिए मैंने कई किताबो को आद्योपांत पढ़ा है और कई बातों की गहराई के लिए नेट का सहारा लिया, और वो सीन कहानी में एक दो लाइनों में निकल गए जैसे अभी कुछ दिन पहले पोस्ट भाग २७ मैं गुड्डी और होटल ( पृष्ठ ३२५ ) को ले
अबकी तान्या और मोंस्योर सिम्नों दोनों की मुश्कुराहट ज्यादा स्पष्ट थी। फिर दो-चार बूंदें जीभ पे रखकर एक मिनट के लिए महसूस किया और मेरी आँखें बंद हो गई। धीमे-धीमे मैंने उसे गले के नीचे उतारा और जब मैंने आँखें खोली तो मेरी आँखें चमक रही थी-
“ग्रेट। ग्रेट विंटेज मोंस्योर। इफ आई आम नाट रांग। आई थिंक। 2005। 2005 एंड सैंट मार्टिन…”
बस मोंस्योर ने ताली नहीं बजाई। प् अब वो बोले- “यस। वी हव स्पेशली सेलेक्टेड फार यू…”
मैंने दो घूँट और मुँह में डाली और बोला- “मेर्लोत…” उनकी आँखें थोड़ी सिकुड़ी लेकिन फिर मैंने बोला ब्लेंड के लिए अक्चुअली- “कब्रेंते सुव्ग्नन…”
उन्होंने हल्के से झुक के बो किया और बोले- यु आर अ रियल गूर्मे, एनी थिंग मोर?”
वाइन के इन डिटेल्स के लिए मुझे बहुत पढ़ना और ढूंढना पड़ा
so you are not write ( right) in these respects but thanks so much for taking time, reading, enjoying and sharing comments
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True Komal Mam Ko Is Forum Ka Brand Ambesdor Ghosit Kar देना Chahiyeकोमल मैम
आपकी कहानियों की यही डिटेलिंग जहां एक और आपको औरों से अलग करती हैं वहीं दूसरी और कहानी को कुछ और ही स्तर पर ले जाती हैं।
अलग - अलग विधाओं से पाठकों का परिचय कराना कितना श्रमसाध्य होता हैं, इसे केवल महसूस किया जाता है।
आपके पाठक इसी बात के प्रशंसक हैं।
सादर
Wah komalji. Kya concept dala hai baki. Sala atankvadi dhudh rahe the. Ye to chumban nikla. Gali ka gunda. Par sala sach me chutiyape vala ashik hai. Ladki nahi mili to tezab fek diya. Ab DB ka bhi dimag chalne laga. Amezing update.फागुन के दिन चार भाग ३०
कौन है चुम्मन ?
३,९३,५११
उन्होंने गुड्डी को होंठों पे उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया और एक मिनट। वो बोले और जाकर दरवाजा बंद कर दिया। लौटकर उन्होंने रिकार्डिंग फिर से आन की और फुसफुसाते हुए गुड्डी से बोले- “ध्यान से एक बार फिर से सुनो, और बहुत कम और बहुत धीमे बोलना…”
रिकार्डिंग एक बार फिर से बजने लगी।
खतम होने के पहले ही गुड्डी ने कहा- “बताऊँ मैं?”
डी॰बी॰ ने सिर हिलाया- “हाँ…”
“चुम्मन…” गुड्डी बोली
हम सब लोग चुप्पी साधे इंतेजार कर रहे थे। गुड्डी हम लोगों को देख रही थी। फिर बात आगे बढ़ायी-
“बहुत दिन से नहीं दिखा, 7-8 महीने पहले छोटा मोटा दादा टाइप चौराहे पे खड़ा रहता था। एक नई मोटर साइकिल भी ली थी।
मतलब वो ज्यादा लड़कियों के चक्कर में नहीं रहता था। लेकिन बाकी सब उसे अपना बास मानते थे। लेकिन वो एक गुंजा के साथ लड़की है- महक। महकदीप, उसी की बड़ी बहन, प्रीत के साथ वो सीरियस हो गया था। उसको लगता था बस जो वो कहें सब माने, जैसे उसके चमचे मानते थे।
तो उसने उसको अपने साथ चलने के लिए कहा। दोनों बहनें स्कूटी पे आती थी, प्यारी गुलाबी रंग की।उसके अंकल बहुत पैसे वाले हैं, सिगरा पे उनका एक माल है, हथुवा मार्केट में कई दुकानें हैं, उसके अंकल के कोई है नहीं तो वो दोनों बहनें उनके साथ रहती थी, वैसे उसके फादर कनाड़ा में रहते थे…”
“हुआ क्या यार ये बताओ…” मैंने फास्ट फारवर्ड करने की कोशिश की।
डी॰बी॰ ध्यान से सुन रहे थे- “ठीक है। बोलने दो ना इसे…”
गुड्डी बोली- “तो उसने,… चुम्मन ने तेजाब फेंक दिया…”
“अरे इतना शार्ट कट भी नहीं…” मैंने समझाया।
गुड्डी बोली- “तुम्हीं तो कह रहे थे। खैर, तो मैं बता रही थी ना की चुम्मन ले जाना चाहता था उसको। कोई क्यों ले जाएगा किसी लड़की को,… मौज मस्ती।
चुम्मन ने उसे दो-चार बार बोला- “चलती क्या खंडाला…” और एक दिन उसकी स्कूटी का हैंडल पकड़कर रोक दिया। जब तक वो संभलती। उसने प्रीत का हाथ पकड़ लिया और अब हम लोग वहीं खड़े थे साथ-साथ। चुम्मन ने उसे अपनी मोटर साइकिल की ओर खींचा।
चारों ओर उसके चमचे खी-खी कर रहे थे घेरकर।
चुम्मन ने बोला- “हे चल आज एक बार मेरे खूंटे पे बैठ जा। फिर खुद आएगी रोज दौड़ी दौड़ी…”
प्रीत ने पूरी ताकत से एक चांटा मार दिया और जब तक वो संभले। स्कूटी उठायी और चल दी… और अगले दिन से कार से आने लगी, ड्राइवर भी उसका बाड़ी-गार्ड टाइप…”
”डी॰बी॰ ने पूछा- “तेजाब उसने कब फेंका? क्या अगले ही दिन?”
गुड्डी फिर बोली-
“नहीं। 10-12 दिन हो गए थे। “एक्जाम का आखिरी दिन था। हम सब लोग बहुत मस्ती में थे। प्रीत मेरे आगे थी। मैं और महक साथ-साथ थे, उसकी कार थोड़ी दूर खड़ी होती थी। अभी तक मुझे एक-एक चीज याद है। अचानक कहीं से वो निकला, उस दिन वो अकेला था। हाथ पीछे…”
प्रीत की ओर आकर उसने एक बोतल दिखाई और बोला- “बहुत गुमान था ना गोरे रंग पे, इस जोबन पे ,
अब देखता हूँ। तुझे कोई देखेगा भी नहीं…” और पूरी की पूरी बोतल उसकी ओर खोल कर उछाल दी।
लेकिन तब तक मैंने प्रीत का हाथ पकड़कर जोर से पीछे की ओर खींचा। वो पीछे की ओर मुँह के बल गिर पड़ी। इसलिए बच गई, थोड़ा सा उसके पैर के पंजे पे पड़ा बस। करीब 10 दिन बी॰एच॰यू॰ में भर्ती रही थोड़ी प्लास्टिक सर्जरी भी हुई। फिर ठीक हो गई…”
“और चुम्मन?” डी॰बी॰ कुछ कागज पर नोट कर रहे थे, फोन उनके लगातार जारी थे, लेकिन साथ-साथ वो गुड्डी की बात भी ध्यान से सुन रहे थे।
गुड्डी बोली- “वो दिखा नहीं उसके बाद से। उसके अगले दिन उसकी माँ आई थी। सब दुकानदारों से मिली की कोई गवाही ना दे। वैसे भी किसको पड़ी थी। हम लोगों से भी बोला, महक के अंकल से भी…”
डी॰बी॰ ने बोला- “वही जो बगल वाली टेबल पे बैठे थे…”
तब मुझे याद आया, एक लहीम शहीम 50-55 साल के बीच के, रंग ढंग कपड़े अंदाज से काफी पैसे वाले संभ्रांत लगते थे।
डी॰बी॰ ने पूछा- “था वो कहाँ का कुछ याद है?” साथ-साथ वो किसी को फोन लगा रहे थे, उसे इंतेजार करने के लिए बोलकर गुड्डी को उन्होंने देखा।
गुड्डी बोली- “सोनारपुरा,… शायद…”
डी॰बी॰ ने फोन पर इंतेजार कर रहे आदमी को बोला- “सोनारपुरा पी॰एस॰ को बोलना, उसका एक बन्दा है। हाँ वो जानता है मैं किसके बारे में बात कर रहा हूँ। बस उसको बोलना उस आदमी को बोले मेरे दूसरे वाले फोन पे रिंग करे…”
Ye bada mazedar update tha. Maza aa gaya komalji.खबरी
थोड़ी देर में ही ब्लेक बेरी पे रिंग आई।
डी॰बी॰- “सुनो। सोनारपुरा में कोई चुम्मन है। सुना है उसके बारे में? पिछले एक हफ्ते का उसका अता पता मालूम करो और उसकी माँ होगी। उसको मेरे पास ले आना। हाँ बुरके में और सीधे मेरे पास, आधे घंटे के अन्दर…”
फोन रखकर डी॰बी॰ बोले-
“इट मेक्स सेन्स बट डज नाट आन्सर आल द क्वेस्चन्स। ऐनी वे। इट साल्व्स प्रजेंट प्राब्लम। इट सीम्स…”
पहली बार डी॰बी॰ ने राहत कि साँस ली और दोनों हाथ पीछे करके अंगड़ायी ली- “आपने बहुत हेल्प की…” गुड्डी की ओर देखकर कहा, और फिर मुझे देखकर मुस्करा के बोले.
“बस यही बदकिस्मती है की आप इस जैसे घोन्चू के साथ। चलिये आप कि बदकिस्मती लेकिन इसकी किश्मत…”
गुड्डी मुश्कुरायी और बोली- “बात तो आपकी सही है। लेकिन किश्मत के आगे कुछ चलता है? वैसे आपका?”
मैं और डी॰बी॰ दोनों मुश्कुराये।
डी॰बी॰- “मेरी लाइन बहुत पहले ही बन्द हो चुकी है। बचपन में मेरी एक ममेरी बहन थी। वान्या। मुझसे बहुत छोटी और मैं उसके कान खींचा करता था और उसने पूरा बदला ले लिया अब। वो जिन्दगी भर मेरे कान खींचेगी…”
गुड्डी ने बहुत अर्थपूर्ण ढंग से देखते हुये मुझे हल्के से आँख मार दी, और हल्के से बोली- “सीखो। सीखो…”
डी॰बी॰ फोन पर दूर खड़े होकर बात कर रहे थे। आकर वो फिर हम लोगों के पास बैठ गये और बोले-
“अच्छा ये चुम्मन डरता है किसी चीज से? और क्या तुम सोचती हो। कौन होगा उसके साथ?”
गुड्डी ने कुछ देर सोचा, और लगभग उछलकर बोली-
“चूहा। मेरे ख्याल से वो चूहे से डरता है, बल्की पक्का डरता है।
जब, जिस दिन उसने प्रीत पे तेजाब फेंका था। मैंने बताया था ना कि मैं प्रीत के पीछे-पीछे ही थी, और मैंने उसक हाथ पकड़कर पीछे खींचा था। तो हम लोग ना जब किसी को डराना होता था तो बड़ी जोर से बोलते थे- चूहा।
हमारे क्लास में थे भी बहुत, मोटे-मोटे। बस वो डरकर बिदक गया। थोड़ा सा तेजाब उसके अपने हाथ पे भी गिर गया था। प्रीत को इसलिये भी कम लगा और उसके साथ, मेर पूरा शक है। रजऊ ही होगा। वही उसका सबसे बड़ा चमचा था और उसका नाम लेकर लड़कियों को डराता था, और खिड़की पे सबसे ज्यादा वही खड़ा रहता था…”
चुम्मन और रजऊ, चुम्मन मुख्य भूंमिका में और रजऊ उसका चमचा।
मुझे दिन का सीन याद आया। गुंजा के उरोजों पे रंगीन गुब्बारे का सटीक निशाना।
मैंने गुड्डी को देख के बोला और फिर मेरी चमकी और हंस के बोला
" अरे वही, जिसने सुबह गुंजा को होली का गुब्बारा फेंक के मारा था "
मुझे गुंजा की बात याद आयी, जब गुंजा स्कूल से लौट के आयी तो, स्कूल यूनिफार्म करीब करीब बची, सिवाय,… सही समझा
सबसे जबर्दस्त लग रहा था उसके सफेद स्कूल युनिफोर्म वाले ब्लाउज़ पे ठीक उसके उरोज पे, उभरती हुई चूची पे किसी ने लगता है निशाना लगाकर रंग भरा गुब्बारा फेंका था। फच्चाक।
और एकदम सही लगा था,… साइड से। लाल गुलाबी रंग। और चारों ओर फैले छींटे। सफ़ेद ब्लाउज यूनिफार्म का एकदम गीला, जुबना से चपका, उभार न सिर्फ साफ़ साफ़ झलक रहे थे बल्कि उस नौवीं वाली के उभार का कटाव, कड़ापन, साइज सब खुल के, मैं उसे दुआ दे रहा था जिसने इतना तक के गुब्बारा मारा था
गुड्डी की निगाह भी वहीं थी।
“ये किसने किया?” हँसकर उसने पूछा। आखीरकार, वो भी तो उसी स्कूल की थी।
“और कौन करेगा?” गुंजा बोली।
“रजउ…” गुड्डी बोली और वो दोनों साथ-साथ हँसने लगी।
पता ये चला की इनके स्कूल के सामने एक रोड साइड लोफर है। हर लड़की को देखकर बस ये पूछता है- “का हो रज्जउ। देबू की ना। देबू देबू की चलबू थाना में…” और लड़कियों ने उसका नाम रजउ रख दिया है। छोटा मोटा गुंडा भी है। इसलिए कोई उसके मुँह नहीं लगता।
पक्का वही होगा और मैंने डीबी को बोला
" वही होगा, सुबह भी स्कूल के आसपास थी था, क्या पता उस रजऊ को लड़कियों पे नजर रखने के लिए चुम्मन ने बोला हो
तब तक ओलिव कलर में कुछ मिलेट्री के लोग आये। डी॰बी॰ ने खड़े होकर उनसे हाथ मिलाया और हम लोगों का परिचय कराया।
मिलेट्री मैन- “हम लोगों ने पूरी रेकी कर ली है। थर्मल इमेजिन्ग डिवाइसेज से भी। एक कोई नीचे के कमरे में है और एक ऊपर के कमरे में।
डी॰बी॰ बोले- “थैन्क्स सो मच मेजर समीर। इट विल बि ग्रेट हेल्प और मेरे ख्याल से। वी विल नाट रिक्वायर बिग गन्स। लेकिन आप तैयार रहिये। हम नहीं जानते सिचुयेशन क्या टर्न ले?” और खड़े हो गये।
मेजर को संकेत मिल गया और वो हाथ मिलाकर चले गये।
डी॰बी॰ अब हम लोगों के साथ खुलकर बात करने के मूड में थे- “चलो। ये बात अब साफ हो गई की ये नीचे वाला कमरा जिसे तुम प्रिन्सिपल का रूम कह रही हो चुम्मन यहां है…”
फिर अचानक उन्हें कुछ याद आया और उन्होंने ए॰एम॰, अरिमर्दन सिंह, सी॰ओ॰ कोतवाली को बुलाया। और बोले-
“ये मीडिया वाले साले। इनको बोल दो कोई भी लाइव टेलीकास्ट के चक्कर में ना पड़े अगले तीन घन्टों तक। वैन मोबाइल पे अगर कोई फोटो लेते दिखे, उसे अन्दर कर दो। ये भी साले फीड करते हैं। और 500 मीटर के बाहर…”
अरिमर्दन- “मैं सबको हैंडल कर लूंगा, पर सर वो इन्डिया टीवी…”
डी॰बी॰- “उसकी तो तुम…” अचानक डी॰बी॰ की निगाह बोलते-बोलते गुड्डी पे पड़ी और उसको देखकर बोले- “ऊप्स सारी तुम्हारे सामने…”
सी॰ओ॰ चले गये।
डी॰बी॰ ने फिर गुड्डी से माफी मांगने कि कोशिश की तो मैंने रोक दिया-
“आप इसको नहीं जानते। ये अगर मूड में आ जाय ना। तो ये सब जो आप बोल रहे थे ना कुछ नहीं है और अगर आप इनकी दूबे भाभी से मिलेंगे तो फिर तो जो आप फ्रेशर्स को सिखाते थे ना वो शरीफों की जुबान हो जाय…” मैंने जोड़ा।
डी॰बी॰ बोले- “मैं फिर जरूर मिलूंगा। बनारस में एक-दो भाभियां तो होनी ही चाहिये। ओके…”
फिर बात पर लौट आये- “वो चुम्मन। वो नीचे प्रिन्सिपल के कमरे में इसलिये है कि वहां टीवी होगा…”
गुड्डी ने तुरन्त हामी भरी।
डी॰बी॰ बोले- “वो वहां से लाइव टेलीकास्ट देख रहा होगा। दूसरे वहा से मेन गेट और घुसने के सारे रास्ते दिखते हैं, यहां तक की वो खिड़की भी जिससे वो सब इंटर हुये थे। तो अगर उसके पास कोई रिमोट होगा तो वहीं से वो एक्स्प्लोड कर सकता है। लेकिन लड़कियों को वो अकेले नहीं छोड़ सकता तो ये जो थर्मल इमेजिन्ग दिखा रही है। गुड्डी आपने एकदम सही कहा था। लड़कियां इसी कमरे में होस्टेज हैं। लेकिन घुसेंगे कैसे? सामने से वहां वो बन्दा है और अगर उसके पास रिमोट हुआ। खिड़की। लेकिन लड़कियां एकदम सटकर हैं, ऐन्ड माई ब्रीफ इज जीरो कैजुअल्टी…”
तब तक एक फटीचर छाप जीन्स और कुर्ते में एक आदमी दनदनाता हुआ अन्दर घुसा। बाहर कोई उसको अन्दर आने से मना कर रहा था पर डी॰बी॰ ने आवाज देकर उसे अन्दर बुला लिया।
वो बोला- “सर जी आपने एकदम सही कहा था। कुछ दिन में तो आपको हम लोगों की जरूरत नहीं रहेगी…”
डी॰बी॰ ने पूछा- “सीधे मुद्दे पे आओ। ये बोलो। उसकी माँ मिली कि नहीं?”