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चू दे की छात्राएं .. चुदने से बच गईं....बूम, बॉम्ब और,… बाहर
तभी कई बातें एक साथ हुयी,
मेरी उस बदमाश दर्जा नौ वाली स्साली बनारस वाली ने अपना पिछवाड़ा मेरे ' वहां' रगड़ दिया
मुझे लगा सीढ़ी हिल रही है,
ऊपर से एक प्लास्टर का बड़ा सा टुकड़ा गिरा और मैंने झुक के शाज़िया की कमर पकड़ के उसे छाप लिया और मेरा एक हाथ सीधे
मेरे मुंह से ' सॉरी' निकल गया और शाज़िया के मुंह से जबरदस्त गाली, जैसे दीवाली की फुलझड़ी छूटी हो,
" स्साले, तेरी माँ बहन की, ....स्साली से सॉरी बोलते हो, चलो बाहर तेरी तो मैं,... और उस गुंजा की भी "
लेकिन शाज़िया की मीठी मालपुवे ऐसी बाकी गालियां एक तेज आवाज में दब गयीं
गड़गड़ , गड़गड़
प्लास्टर के और ढेर सारे टुकड़े, लेकिन सब के सब मेरी पीठ, बांह और सर पे, शाज़िया बच गयी थी,
पीछे से कापियों के बंडल
आवाज तेज हो गयी थी,
गड़गड़, गड़गड़, गड़गड़, गड़गड़,
और मैं समझ गया, गड़बड़, महागड़्बड़ जोर से में चीखा ' बचो, दो की फ़ाइल में "
और अबकी समझाना नहीं पड़ा, महक ने खुद मुझे खींच के अपने पीछे और मेरा एक हाथ खींच के अपने उभार पे कस के,
लेकिन अभी मेरा ध्यान कहीं और था, मैंने जैसे रटी रटाई कमांड की तरह से, ' दोनों हाथों से कान बंद, सर झुका, एकदम सीने के अंदर '
और एक हाथ से तो महक को पकडे था, दूसरे हाथ से गुंजा और शाज़िया को, कस के दबोच कर, दीवाल से चिपक के
बूम
जोर का धमाका हुआ,
फिर सीढ़ी पर से लुढ़कते पुढ़कते फर्नीचर जो हमने बैरकेड में लगाए थे कापियों के बण्डल, और ढेर सारा छत का प्लास्टर चूना
और साथ ही में वो नीचे वाला दरवाजा धड़ाम से और और हम सब लुढ़कते पुढ़कते बाहर,
और जब मेरी आँख खुली तो शाज़िया पेट के बल थी और मैं उसके ठीक ऊपर,
गुंजा, महक को सहारा दे के खड़ा कर रही थी और मुझे चिढ़ाने लगी
' माना जीजू, मेरी सहेली मस्त माल है, और अभी तक एकदम कोरी भी, सील पैक बंद, अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर से टाइट, ...लेकिन ऐसा भी क्या की खुले मैदान में, "
मैं शरमाता झेंपता उठा और शाज़िया को भी पकड़ के उठाया पर शाज़िया क्यों छोड़ती गुंजा को,
" अबे स्साली, मेरा मुंह मत खुलवा, मेरे जीजू हैं,... मैं चाहे खुले मैदान में मस्ती करूँ चाहे भरे बाजार में,... किसी की क्यों फटती है "
लेकिन लड़कियों की मस्ती से अलग मेरी निगाह चारो ओर घूम रही थी, जहां हम निकले थे वहां तो सन्नाटा था लेकिन दीवाल की कुछ ईंटे अभी भी गिर रही थीं
" भागो " मैं जोर से चिल्लाया और हम सब २००-३०० मीटर दूर जा के रुके।
और तब तक चु दे बालिका विद्यालय की एक दीवाल भरभरा के जहाँ हम लोग थोड़ी देर पहले थे,...
सबने एक साथ खुली हवा में सांस ली। अब हम लोगों ने स्कूल की ओर देखा। ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था। जिस कमरे में ये लोग पकड़े गये थे, उसकी छत, एक दीवाल काफी कुछ गिर गई थी। सीढ़ी के ऊपर का वरान्डा भी डैमेज हुआ था। अभी भी थोडे बहुत पत्त्थर गिर रहे थे।
बाम्ब एक्स्प्लोड किसने किया? उन दोनों का क्या हुआ? मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
मैंने इशारे से तीनो लड़कियों को चुप रहने और दीवाल के पास सटने के लिए बोला और चारों और देखने लगा,
अंदर की दो दुष्टात्मा से तो बच के हम लोग निकल आये थे लेकिन बाहर के गिद्ध भी कम खतरनाक नहीं थे, हर चीज को खबर बना के, बेच देने वाले, सेंसेशन फैला कर कमाई करने वाले और सब के अपने हिट थे,
डीबी ने जो आउटर पेरिमीटर बनवाया था, ३०० मीटर का, पुलिस का बैरिकेड लगा था, पी ए सी की एक ट्रक, एक आंसू गैस वालों की टुकड़ी और वाटर कैनन और बैरिकेड के ठीक पार ढेर सारी ओबी वान और कई अनाउंसर कभी अपना मेकअप दुरुस्त करती तो कभी कैमरा मैन को चु दे विद्यालय की ओर इशारा करती, और कभी जोर जोर से चीखती
यह खबर आज सबसे पहले बनारस न्यूज नेटवर्क से सुन रहे हैं,.... में निवेदिता जीरो प्वाइंट पर मौजूद हूँ, चु दे बालिका विद्यालय से, ....पुलिस का आपरेशन शुरू होने वाला है, बल्कि शुरू हो भी चूका है, बस कुछ देर और और हमारी तीनो होस्टेज आजाद होंगी निवेदिता का प्रॉमिस सबसे पहले उन तीनो लड़कियों का इंटरव्यू आप इसी चॅनेल पर देख्नेगे, बस कुछ ही देर में आपरेशन शुरू होने वाला है
तब तक कैमरा में ने कुछ इशारा किया, निवेदिता ने माइक बंद किया और एक छोटे से शीशे में देखकर अपनी लिपस्टिक फ्रेश की , पल्लू को थोड़ा सा झटका दिया, और तब तक कैमरा मैन चारो ओर के पुलिस बंदोबस्त को दिखा रहा था लेकिन एक और अनाउंसर आ गयी, शलवार सूट में
" मै सबीहा, सीधे चु दे विद्यालय से, आप देख सकते हैं पुलिस के इंतजाम को, बस आपरेशन शुरू होने वाला है, अभी अभी हमारे संवाददाता ने बाबतपुर एयरपोर्ट से खबर दी है की लखनऊ से एस टी ऍफ़ की टीम पहुंच गयी है और एयर पोर्ट से चल दी है। बस कुछ देर और , हमरे उन तीनो लड़कियों के बारे में बड़ी एक्सक्लूसिव खबर मिली है, ....कौन हैं वो, जो बनारस पुलिस की लापरवाही से आंतकवादियों के हमले का शिकार हुयी और अभी भी उन बेरहम बदमाशों के कब्जे में फंसी है,.... कब तक छूटेंगी वो,.... क्या गुजर रही होगी उन बेचारियों पे,.... क्या बचपाएगी उन की जान या वे सब भी बनारस पुलिस के निकम्मेपन का शिकार होंगी, ....क्या होगा उन बेचारियों के साथ, बस कुछ पल और,"
और वो तीनो बेचारियाँ भी ये सब सुन रही थीं, खिलखिला रही थीं। और मेरे पीछे पड़ी थीं, ....लेकिन मै अभी सब नजारा देख रहा था,
बॉम्ब के एक्सप्लोजन के बाद एक साथ कई एक्टिविटी शुरू हो चुकी थी,
घेरे के सबसे बाहर की ओर लेकिन इनर पैरामीटर में एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियां थीं, और दो चार एम्बुलेंस स्कूल की ओर बढ़ना शुरू की और उनके पीछे , दो फायरब्रिगेड की गाड़ियां लेकिन तब तक ट्रैफिक पुलिस के कोई अधिकारी आये और उन्होंने सबको रोक दिया, और सिर्फ एक एम्बुलेंस को आगे बढ़कर स्कूल के सामने पहुँच कर ५० मीटर पहले रुक जाने को बोला, और फायर ब्रिगेड की एक ट्रक को स्कूल की साइड में लगा के खड़ा होने के लिए,
तब तक फायरिंग की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा- टैक-टैक। सेल्फ लोडेड राईफल और आटोमेटिक गन्स की, 25-30 राउन्ड।
सारा फायर प्रिन्सीपल आफिस की ओर केन्द्रित था। वो तो हम लोगों को मालूम था की वहां कोई नहीं हैं। स्कूल की ओर से कोई फायर नहीं हो रहा था।
तब तक मेगा फोन पर डी॰बी॰ की आवाज गुंजी- “स्टाप फायर…”
थोड़ी देर में एक पोलिस वालों की टुकडी, कुछ फोरेन्सिक वाले और एक एम्बुलेन्स अन्दर आ गई। कुछ देर बाद एक आदमी लंगड़ाते हुये और दूसरा उसके साथ जिसके कंधे पे चोट लगी थी, चारों ओर पुलिस से घिरे बाहर निकले।
स्कूल के गेट से वो निकले ही थे की धड़धड़ाती हुई 5 एस॰यू॰वी॰ और उनके आगे एक सफेद अम्बेसेडर और सबसे आगे एक सफेद मारुती जिप्सी जिसमें पीछे स्टेनगन लिये हुये। लोग बैठे थे, आकर रुकी।
डी॰बी॰ आगे बढ़कर अम्बेसेडर से निकले आदमी से मिले।
मैंने नोटिस किया बात करते-करते उसने पोजीशन बदल ली और अब डी॰बी॰ की पीठ स्कूल के गेट की ओर हो गई।
उधर एस॰यू॰वी॰ से उतरे लोगों ने पुलिस से कुछ बात की और उसमें से निकलकर चार लोगों ने उन दोनों को एस॰यू॰वी॰ में बिठा लिया, और चल दिये। जैसे ही वो गाड़ियां चली। अम्बेसेडर से उतरे आदमी ने, अब तक वहां प्रेस वालों से इशारा किया की डी॰बी॰ से बात करें।
उधर पीछे से गुंजा और महक आवाज दे रही थी।
सारी एक्टिविटी अब स्कूल के बाहर के दरवाजे के पास हो रही थी, एस टी ऍफ़ के अफसरों के साथ, डी बी और साथ में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, और कुछ अफसर, एस टी ऍफ़ वाले अपने साथ कुछ मिडिया वाले भी लाये थे और कुछ मिडिया वालों को उन्होंने इजाजत दे दी थी, और पुलिस थाने का रास्ता एकदम खाली था, जो लोग खड़े भी थे वो सब स्कूल की ओर देख रहे थे, कैमरे हो या आँखें सब स्कूल की ओर,
और मै दबे पांव, गुंजा, महक और शाज़िया के साथ पुलिस कंट्रोल रूम के अंदर जो डीबी का इनर रूम था, वहां।
गुड्डी वहीं थी।
सत्ता और अपराधियों का चोली दामन का साथ है...डीबी और चीफ मिनिस्टर
और तभी डीबी कमरे में आ गए, उनके चेहरे पे भयानक टेंशन था, एकदम परेशान लग रहे थे, लेकिन जैसे ही उन्होंने गुड्डी के साथ तीनों लड़कियों को देखा, एकदम से टेंशन कम हो गया, चेहरे पर ख़ुशी आ गयी, और मैं कुछ बोलता उसके पहले ही उन्होंने हाथ के इशारे से चुप रहने का इशारा किया। एक खिड़की उन्होंने देखा थोड़ी सी खुली थी और एक दरवाजा जिधर से वो आये थे, वो आधा खुला रह गया था,
उन्होंने मुझे इशारा किया, लेकिन मैं कुछ समझता, कुछ कर पाता, गुड्डी ने पहले तो खिड़की बंद कर दी, फिर उस पर पर्दा खींच दिया और गुंजा और उसकी सहेलियों को इशारा किया तो वो भी एकदम दीवार के सहारे, एकदम इस तरह की वो किसी ओर से नहीं दिखतीं,
मैंने दरवाजा बंद कर दिया और डीबी ने अपनी जेब से फोन निकाल लिया, और कोई नंबर लगाया,
एक बार फिर से वो टेन्स लग रहे थे। लेकिन निगाह उनकी एकदम गुड्डी के अगल बगल खड़ी गुंजा और उसकी दोनों सहेलियों पर घूम रही थी ,
लगता है फोन लग गया, लेकिन फोन स्पीकर पर था, डीबी बोले, " सर का मेसेज था बात करने के लिए "
" हाँ, बस लगाता हूँ, आप लाइन पर रहिएगा " उधर से आवाज आयी और डीबी ने इशारे से मुझे एकदम चुप रहने को कहा, वो लड़कियां भी हल्की सी टेन्स, गुड्डी के आसपास
और उधर से आवाज जो आयी, एकदम रिलैक्स, कम्फर्टेबल और जिसको मैं सपने में भी पहचान सकता था, कितनी बार तो टीवी पर सुन चूका था, चीफ मिनिस्टर खुद थे, पहला सवाल उन्होंने डीबी से एक शब्द में किया, और उस शब्द में भी चिंता झलक रही थी
" लड़कियां, "
" सर, मिल गयीं हैं, एकदम सेफ हैं, तीनो ही सेफ और सिक्योर हैं, " डीबी की निगाह गुंजा और उसकी दोनों सहेलियों पर चिपकी थी
" मिडिया, वीडिया या कोई " उधर से सी एम् का दूसरा सवाल आया,
" नहीं सर, मिडिया, को कुछ पता नहीं है, वो एकदम सेफ हैं " डीबी ने जवाब दिया और फिर अपनी परेशनी बताई,
" वो एस टीएफ, वाले "
लेकिन सीएम ने उनकी बात काट दी और हलके से खिलखिलाये,
" अरे तुम्हे कब से फोटो खिंचवाने का शौक हो गया, थोड़ा लाइम लाइट में रहने दो उनको और उसी बहाने से छोटे साहब भी, तुम एक काम करो, एक बड़ी जबरदस्त सी उनकी प्रेस कांफ्रेंस करवा दो, मिडिया वालों को लगा दो, आधे पौन घण्टे में, और आधे घंटे तक तो चलेगी ही, तो बस शाम को वो सब लखनऊ आ जायेगे, नेशनल चैनेल्स के टाक टाइम तक, "
लेकिन मैंने अंदाज लगा लिया था की डीबी की परेशानी क्या थी, वो चुम्मन और रजऊ का पोजेशन चाहते थे, उनसे पूछताछ के लिए। रजऊ से तो कुछ खास नहीं पता चलता लेकिन चुम्मन से शायद कुछ और काम की बात निकल पाती, दूसरे आज कल जो रेपुटेशन थी, कहीं एनकाउंटर में वो दोनों निपट गए तो फिर सब मामला दबा रह जाएगा,
डीबी ने यही बात साफ़ करने की कोशिश की लेकिन इतना अंदाजा तो था सीएम को भी बिना बताये, डीबी को उन्होंने रोक दिया और बोले,
" चिंता मत करो, थोड़ा दो दिन उन लोगों को फोटो वोटो खिंचवा लेने दो, तुम्हारे पास दो दिन में दोनों पहुँच जाएंगे, अगर सेंट्रल एजेंसी वाले नहीं कूदे तो, और हाँ गाडी पलटेगी भी नहीं ये मैं बोल देता हूँ , और कुछ, "
डीबी ने जैसे पहले से सोच रखा हो क्या क्या हेल्प मांगनी है, तुरंत बोले, " कुछ लोग जमालो टाइप, आंच सेंकने की कोशिश में हैं और कुछ मीडिया वाले भी "
एक बार फिर सीएम ने बात काट दी और बोले,
" लोकल वालों को तुम सम्हाल ही लोगे, बाकी मैं डायरेक्टर इंफॉरमशन को बोल देता हैं, वो जानता है किसकी पूँछ कहा दबती है, और मैं यहां पार्टी में भी लगाता हूँ कुछ लोगों को, लेकिन तुम जानते हो यहाँ भी हर तरह के लोग हैं, और, फ़ोर्स की ज्यादा जरूरत तो नहीं, मैं एड़ीजी साहेब को बोल दूँ , कुछ और पी ए सी, "
लेकिन अबकी बात काटने की बारी डीबी की थी,
" नहीं नहीं पी ए सी की जरूरत नहीं है , यहाँ रामनगर वाली बारहवीं वाहनी है न, उसे बुला लिया था , हाँ दो बटालियन आर ए ऍफ़, एक बार आप होम सेक्रेट्ररी से बोल दीजियेगा, सेंटर से बात कर लेंगे "
" ठीक है लेकिन बस तुम एक बात पर ध्यान दो, वो तीनो लड़कियां, बहुत ट्रॉमेटाइज्ड होंगी, तो जल्दी से जल्दी अपने घर पहुँच जाए, मिडिया से तो दूर रखना ही और कोई एजेंसी वाले, पूछताछ के नाम पे तो साफ़ मना कर देना नाम बताने से, बल्कि तुम्हे भी नाम जानने की जरूरोर्ट नहीं है, उन्हें जल्द से जल्द घर रवाना कर दो, घर वाले परेशान होंगे, ये काम अच्छा हो गया, बाकी सब तो राज काज है चलता रहता है "
और डीबी ने भी जयहिंद कह के फोन जेब में रख लिया और एक बार फिर से गुंजा और उसकी सहेलियों की ओर देखा, फिर गुड्डी की ओर जैसे सब क्रेडिट गुड्डी की ही है, और वो कुछ बोलते उसके पहले बगल वाले कमरे से आवाज आयी,
सर एक मिनट,
और डीबी ने इशारे से मुझे बुलाया और साथ में मैं भी उसी दरवाजे से कंट्रोल रूम में, जहाँ अभी भी काफी पुलिस के और सिवल आफिसर्स बैठे थे,
मैंने उस दरवाजे को बंद कर दिया जो उस कमरे में खुलता था जहाँ गुंजा, शाजिया और महक थीं।
अब रात की बारी...महक के अंकल,
लेकिन सवाल था की हम सब पांचो निकले कैसे, पुलिस को पता नहीं चलना था तो जिस पुलिस की गाडी से मैं और गुड्डी आये थे, उसका तो सवाल ही नहीं था। और डीबी की बात सही थी, मिडिया वाले उन तीनो लड़कियों को सूंघ रहे थे, तो कोई पुलिस वाला ही बता दे, फिर कहीं कोई एस टी ऍफ़ वाला ही सुरागरसी कर रहा हो तो पूछताछ के नाम पर, और मेरा रोल तो एकदम ही अनऑफिशियल था और न मैं चाहता था न डीबी की ये बात कहीं बाहर निकले।
तो बस हम लोगों का दबे पांव चुपके से निकल जाना ही ठीक था, और मैं देख चुका था की बाहर टेंशन बढ़ ही रहा है।
मेरी और गुड्डी की घंटी साथ-साथ बजी। महक के अंकल-
मैंने डीबी से धीरे से कहा की महक के अंकल हैं, बाहर, उनके साथ निकल जाएंगे,
" उनसे कहना की गाड़ी अपनी पीछे लगा दें, और तुम लोग पीछे वाले रस्ते से निकल जाओ, जल्दी। चपरासी से बोल देना वो उन्हें बता देगा, की गाड़ी कहाँ लगानी है, और हाँ ये दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर लेना, " और वो वापस कंट्रोल रूम में।
वो बिचारे कितने परेशान हो रहे होंगे। जब हम लोग दोपहर को कोतवाली में आये थे तो वो बाहर बैठे थे और अभी भी जब हम लोग अंदर घुसे तो मैंने देखा की एक पुलिस वाले से वो कुछ पूछ रहे थे।
हम दोनों एक साथ बोल पड़े- “महक तुम्हारे अंकल, यहां दोपहर से इंतेजार कर रहे हैं…”“कहां?” वो उछल पड़ी और बाहर जाने के लिये बेचैन हो उठी।
मैंने बोला- “तुम बैठो। मैं ढूँढ़कर लाता हूँ…” और बाहर निकला।
वहीं दरवाजे के पास वो चपरासी था जो हम लोगों के लिये चाय समोसे ले आया था। मैंने उसी को बोला, उन्हें बुलाने के लिये चपरासी को जो बात डीबी ने बोली थी वही मैंने भी समझा दी, उनसे बोलने के लिए की गाड़ी पीछे वाले दरवाजे के पास लगा दें और वो अंकल को ले आये।
और बाथरूम चला गया हाथ मुँह धोने।
जब मैं निकला तो महक और उसके अंकल, दोनों ने एक दूसरे को बांहों में पकड़ रखा था और बिना बोले दोनों की आँखों में आँसू थे।
उन्होंने पूछा- “तुम्हें कुछ हुआ तो नहीं? ये कपड़े पे खरोंच…” उनकी आखों ने कुर्ते पे चाकू के निशान को देख लिया था।
“ये?” मुश्कुराकर महक बोली- “कुछ नहीं भागते निकलते समय खरोंच लग गई थी…”
महक के अंकल बोले- “ये तो बहुत अच्छा हुआ। टाइम पे कमांडो ऐक्शन हो गया। मुझे मालूम था की जैसे कमांडो आयेंगे ये भाग जायेंगे। कोई चैनेल कह रहा था की दोनों पकड़े भी गये…”
उस समय टीवी पे आ भी रहा था, ब्रेकिंग न्यूज- “कमांडो ऐक्शन में तीनों लड़कियां छुड़ायी गई। तीनों सुरक्षित, मेडिकल जांच जारी। फिर टीवी पे तेजी से बाहर निकलते अम्बुलेन्स की फोटो। दूसरे चैनेल पे गृह राज्य मन्त्री बयान दे रहे थे की टाईमली एस॰टी॰एफ॰ के ऐक्शन से लड़कियों को बचा लिया गया है। एक और चैनेल पे एस॰टी॰एफ॰ के प्रवक्ता लखनऊ में बोल रहे थे की होस्टेज को छुड़ा लिया गया। स्थानीय पुलिस ने भी बहुत सहयोग दिया…”
सब लोगों की आँखें टीवी पे लगी थी।
अचानक महक के अंकल की आँखें मुझ पे पडीं, और उन्होंने पूछा- “ये कौन है?”
“ये?” महक मेरे पास आकर खड़ी हो गई और मेरी कमर में हाथ डालकर बोली- “वो जो चैनेल वाले बोल रहे हैं ना वही। कमांडो। पुलिस सब कुछ…”
गुन्जा भी मेरे पास खड़ी हो गई- “ये मेरे जीजू हैं…”
महक ने मेरी कमर पे हाथ का दबाव बढ़ाते हुये कहा- “झूठ। थे, अब मेरे हैं…”
महक के अंकल को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
फिर तीनों लड़कियां एक साथ चालू हो गईं। मेरी वीर गाथा। साथ में थोड़ी नमक मिर्च। पांच मिनट में बिना कामर्सियल ब्रेक के लगातार सुनाकर ही वो रुकीं।
महक के अंकल को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था। उन्होंने अब सीधे मुझसे पूछा-
“आप अकेले थे? आप कमांडो में है?”
मैंने दोनों सवालों का जवाब एक साथ एक शब्द में दिया- “नहीं…” और मैंने बताया- “ गुड्डी का और डी॰बी॰ का बहुत योगदान है…”
मेरी बात खतम होने के पहले ही वो बोले- “आप उन्हें जानते हैं?”
अबकी गुड्डी ने जवाब दिया- “हाँ इनके बहुत ही क्लोज फ्रेन्ड हैं, हास्टेल के जमाने से…”
“मेरी समझ में नहीं आ रहा है मैं आपसे क्या कहूँ। मैं आपको इसके बदले में कुछ दे भी नहीं सकता, धन्यवाद भी नहीं। मेरे लड़का लड़की कुछ भी नहीं, जो भी है बस ये है और अगर इसे कुछ। कुछ भी हो जाता तो वो मेरा आखिरी दिन होता…”
महक के अंकल मेरे पास आकर बोल रहे थे। उनका हाथ मेरे कंधे पे था और अबकी बार आँसू का एक कतरा बाहर निकल आया था। गनीमत था लड़कियों ने, चुम्मन ने उनसे जो कुछ कहा था वो सब पूरा सेन्सर कर दिया था और सिर्फ बचने वाली कहानी सुनायी थी।
मैं- “देखिये आप मुझसे बुजुर्ग हैं। लेकिन मैं एक बात बोलूं। इसे कुछ नहीं होगा। जिसपर आप जैसे बुजुर्गों का साया है, और मुझे जितना मैं सोच सकता था। उससे बहुत ज्यादा इस काम में मिल गया है…”
महक के अंकल मुश्कुराने लगे और बोले- “अरे क्या मिला, जरा हमें भी तो बताओ?”
मैं- “दो नई सालियां। और फिर जब महक मेरी साली हो गई तो मैं तो आपका दामाद तो वैसे ही हो गया। कहते हैं जामाता दसवां ग्रह। तो फिर तो मैं लगातार लेता रहूंगा। एक बार में थोड़े ही छोड़ूंगा। क्यों महक?”
महक के गाल थोड़े से लाल हो गये, मेरे द्विअर्थी डायलाग का मतलब समझ कर। मुश्कुरा कर वो बोली- “हाँ एकदम…”
गुड्डी और गुंजा से मैंने कहा- “चलें? वैसे भी बहुत देर हो गई है इसे घर ड्राप करके फिर सामान पिकअप करना है और बस पकड़नी है…”
अंकल बोले- “आप। तुम जाओगे कैसे?”
मैं- “क्यों रिक्शा कर लेंगें हम। पास में ही जाना है, नई सड़क के पास। गुंजा को छोड़कर हम चले जायेंगे। और अब तो रिक्शा चलने लगा होगा…”
“तुम ना कैसे दामाद हो? अरे मेरे साथ चलो…” और तब उनकी निगाह मेरे शर्ट पे पड़ी, और वो बोले- “अरे इतना खून। शर्ट तो बदल लेते…”
मैं बोला- “नही। वो तो मैं होटल में ही चेंज कर पाऊँगा। चलेगा तब तक…”
हम लोग गाड़ी में बैठ गये। गुड्डी आगे बैठ गई, पीछे हम चारों।
लेकिन मुझे उनकी बात में दम लगा, खून में लथपथ ये शर्ट देखकर है मैं भले कुछ नहीं कहता लेकिन चंदा भाभी की हालत खराब हो जाती और बात उनसे गुड्डी की मम्मी और मेरी भाभी तक पहुँच जाती, इसलिए शर्ट चेंज कर लेना ही ठीक था, लेकिन अब यहाँ से जाकर फिर शर्ट चेंज कर के गुंजा के यहाँ, औरंगाबाद आना, तो अच्छा तो यही था की यही शर्ट ले लूँ, पर मैं कहना नहीं चाहता था।
मेरी नगाह बीच बीच में सड़क पर भी दौड़ रही थी और देख कर लग रहा था की कुछ गड़बड़ होने वाला है, जब मैं गुड्डी के साथ शॉपिंग कर रहा था तो यहाँ कंधे छिलते थे, बस धककम धुक्का, और अभी सन्नाटा पसरा पड़ा था, गली के बाहर बस कहीं कहीं दो चार लोग खड़े दिखते, लेकिन वो भी सशंकित, बार बार इधर उधर देखते, और कोई पुलिस की गाडी दिखते ही गली में दुबक जाते , सड़क पर ट्रैफिक न के बराबर।
महक बोली- “ऐसा कीजिये माल चलते हैं। वहां इनके लिये एक शर्ट ले लेते हैं। वर्ना हर चौराहे पे पुलिस वालों को ये जवाब देते फिरेंगे। और कहीं पकड़ लिये गये। तो रात थाने में गुजरेगी…”
गुड्डी बोली- “एकदम सही कहा तुमने। इसके पहले भी ये आज थाने जाते-जाते बचे हैं…”
ड्राइव करते हुए आगे से महक के अंकल ने पूछा- “उन लोगों के पास तो हथियार रहे होंगे?”
गुंजा और महक साथ-साथ पीछे से बोली- “दो बड़े-बड़े चाकू, एक रिवाल्वर और एक बाम्ब…”
उन्होंने फिर पूछा- “और तुम्हारे पास?”
अबकी जवाब गुड्डी ने दिया- “मेरी चिमटी, मेरे बाल का काँटा, चूड़ियां और पायल…”
चारों खिलखिलाने लगी।
गुड्डी फिर मुँह फुलाकर बोली- “हाँ और सब उन्होंने गुमा दिया…”
अंकल बोले- “अरे मत उदास हो सब तुम्हें हम दिलवा देंगे…” वो भी अब लड़कियों के ही स्प्रिट में आ गए थे।
मैंने पीछे से सही जवाब देने की कोशिश की- “मेरा असली हथियार था। मेरी सालियां, और आप बुजुर्गों का आशीर्वाद…”
अंकल बोले- “मक्खन बहुत जबर्दस्त लगाते हो तुम…”
और पीछे से, समवेत स्वर साथ-साथ मेरे कमेंट पे उभरा- “डायलाग डायलाग…”
“डर नहीं लगा तुम्हें?” अंकल ने पूछा।
“बहुत लगा। अगर इन्हें कुछ भी हो जाता, एक खरोंच भी लग जाती तो गुड्डी बहुत मारती मुझे और। भूखा रखती सो अलग…” मैंने मुँह बनाकर बोला।
अंकल ने शायद नहीं समझा लेकिन सारी लड़कियां ‘भूखा रखने’ की बात समझ गईं और मेरे और गुड्डी की ओर देखकर मुश्कुराने लगी।
थोड़ी देर में हम मॉल में पहुँच गए, पर हाँ उसके थोड़ी देर पहले रस्ते में हम लोगो ने शाज़िया को ड्राप कर दिया,
शाजिया का घर एक गली में था, गली में ज्यादा अंदर नहीं, बस दो चार घर छोड़ के और जैसे बनारस की गलियों का उसूल है, जितनी पतली गली, उतना ही बड़ा मकान, तो शाज़िया का भी घर बहुत बड़ा था, शाज़िया जैसे ही कार से उतरी, और मेरे बिना पूछे बोली,
" मैं चली जाउंगी, देखिये मम्मी खड़ी वेट भी कर रही हैं, गली के ज्यादा अंदर नहीं जाना है "
पर अगली सीट से गुड्डी गरजी, " हे अकेली लड़की जायेगी, छोड़ के आओ गली के अंदर तक'
शाज़िया ने मुड़ के मेरी ओर देखा, हलके से मुस्करायी, होंठ उसके मना कर रहे थे, पर बड़ी बड़ी आँखे दावत दे रही थीं, और मैं कार का दरवाजा खोल के उसके साथ, और उसका हाथ पकड़ के,
" अब जाइये आप, मम्मी देख रही हैं, सामने तो खड़ी हैं " वो बोली,
मुश्किल से सौ कदम दूर, कुछ मामलों में तो शाज़िया की बड़ी बहन लग रही थी और ऊपर की मंजिल गुड्डी की मम्मी के टक्कर की, शाज़िया को देख के जोर से मुस्करायीं,
कभी नीम नीम कभी शहद शहद
थोड़ी देर पहले जो लड़की मुझे कार में इस तरह से छेड़ रही थी, मैं बीच में था पिछली सीट पर, एक ओर महक, एक ओर शाज़िया. तीनों एक से एक शातिर दुष्ट, दर्जा नौ वाली, टीनेजर्स, जबतक मैं कुछ समझता, थोड़ा सरको, थोड़ा सरको ( और वैसे भी तीन की सीट पर पीछे हम चार थे ), गूंजा ने शाज़िया को मेरी ओर ठेला और महक ने मुझे धकेला, बस, शाज़िया ने जैसे सहारे के लिए मुझे पकड़ा और आधे से ज्यादा मेरी गोद में, लेकिन बदमाशी उसकी भी कम नहीं थी, जिस तरह उसके नितम्ब मुझे दबा रहे थे, बदमाश उंगलिया और शरारती आंखे, ऊपर से महक बोली, ' पकड़ लीजिये न गिर जायेगी बेचारी ' और खुद मेरा हाथ पकड़ कर शाज़िया के,
और वही शाज़िया, अभी, , मम्मी के पास जाने से पहले , पल भर ठिठकी, मुड़ी एक बार उसने मुझे भर आँखों से देखा, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे उसकी डबडबा आयीं, मुझे देखती रही वो लड़की और अचानक बाँहों में भींच लिया। एक दो स्वाती की बूंदे ढलक गयीं, बाकी उसकी आँखे पी गयीं। जैसे बोल नहीं निकल पा रहे थे, फिर बड़ी मुश्किल से हिचकी लेते बोली,
" अगर आप नहीं आते, पांच मिनट, बस पांच मिनट, वो, वो बोल कर गया था, 'बस पांच मिनट, उसके बाद धूम,धड़ाम, धड़ाका, ,जिसको भी याद करना हो कर लो, बस पांच मिनट बचे हैं तुम तीनो के पास, मैंने तो एकदम उम्मीद खो दी थी, फिर से मम्मी को देखने की, पर आप, और और, सीढ़ी पर भी, एक गोली तो एकदम बगल से गुजरी, बहुत डर लग रहा था, "
मैंने भी उसे भींच रखा था और सोच रहा था जब मैंने पहली बार देखा था, गुंजा के बगल में बेंच पर, डर के मारे एकदम सफ़ेद, कस के दोनों हाथों से बेंच दबोच रखी थी, लेकिन एक बार शाज़िया ने फिर मुझे भींचा, एक मुस्कान होंठों पर चिपकायी, मुझे देखते हुए बच्चों की तरह तेजी से अपनी मम्मी की बांहो में
" कौन हैं ये " मम्मी ने उसकी मेरी ओर इशारा करके पूछा और शाज़िया अब फिर वही शरारती बच्ची हो गयी, मम्मी को छेड़ती बोली
" आपके दामाद " फिर मामले को साफ़ करके हलके से बोली
" अपनी गुड्डी दी के, अरे वही, और हम लोगों के जीजू "
जबतक उनकी मम्मी कुछ बोलतीं, कार में से गुड्डी ने इशारा किया मैं जल्दी आ जाऊं। कोई पुलिस की गाडी आ गयी थी और महक के अंकल से वहां से जल्दी जाने के लिए कह रही थी, थोड़ी देर में हम सब मॉल में पहुँच गए।
First of all, thanks for the first comment on this post.lovely update
आभार, नमनवाह मजा आ गया कोमल मैम
"गाड़ी नहीं पलटेगी" वाले डायलॉग ने तो प्रसिद्ध सी एम साब का भी खुलासा कर दिया।
कुल मिलाकर एक शानदार अपडेट।
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद, आप समीक्षा इतने मनोयोग से लिखते हैं की पढ़कर आनंद आ जाता है। सब की सब बातें एकदम सही है और जो भी कहानी में कसर होती है वो आपकी टिप्पणियां पूरी कर देती हैं। ऐसी टिप्पणियां बहुत संबल देती हैं, हौसला बढ़ाती हैंएक और खुबसूरत अपडेट ।
गली कूचे का एक मवाली एकाएक कुछ लड़कियों को बंधक बना लेता है , घातक हथियार और बम का प्रयोग करता है , पुरे प्रशासन और पुलिस महकमा को नाको चने चबाने को मजबूर कर देता है तो इसका मतलब वह अब एक साधारण मवाली तो हरगिज ही नही है ।
इसके तार अवश्य किसी टेररिस्ट संगठन से जुड़े हुए है ।
लड़कियों की भी प्रशंसा अवश्य होनी चाहिए । बंधक होने के दौरान वह बहुत ही मुश्किल घड़ी मे थी । उनकी जान कभी भी जा सकती थी । ऐसे हालात मे खुद को संभालना कोई आसान काम नही होता । इन्होने न केवल खुद को संभाला बल्कि एक दूसरे के लिए भी संबल का वायस बनी । यही नही इन्होने यहां से निकलने के लिए बड़े सब्र और बुद्धिमानी से आनंद के साथ ताल मे ताल भी मिलाई ।
और महज आधे घंटे के अंदर इन लड़कियों का अल्हड़पन , चुलबुलापन , शरारतीपन शुरू भी हो गया ।
यह दर्शा रहा है कि यह लड़कियाँ कितनी जिंदादिल है !
लोग-बाग लाइम लाइट मे रहने के लिए , अखबार और इलेक्ट्रानिक मीडिया मे सुर्खी बनने के लिए न जाने क्या क्या तक कर जाते है ! कोई विवादास्पद बयान देता है , कोई जान पर खेलकर रील बनाता है , कोई ऊंची पानी के टंकी पर चढ़ जाता है , कोई अपने अफेयर्स की झूठी खबरे फैलाता है लेकिन , हमारे आनंद साहब हवा के झोंके की तरह आए , वगैर किसी हथियार के स्कूल मे प्रवेश किए , किडनैपर के आंखो मे धूल झोंका और चट से बंधकों को लेकर नौ दो ग्यारह हो गए ।
इस बहादुरी की कोई खबर नही , कोई सुर्खियां नही , कोई वाहवाही नही ।
ऐसा काम सिर्फ देश की सेना करती है ।
बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट कोमल जी ।
पहली बात सब कुछ बिजली की तेजी से हुआ,जब तक लड़कियां समझतीं वो दोनों अंदर थे। दूसरी बात, शाजिया और ये दोनों हल्ला कर के लड़कियों को भगा रही थीं, इसलिए ज्यादातर लड़कियां भग गयी और ये तीनो पकड़ी गयीं।लेकिन पटरा लगाते हीं उसे ठेल के गिरा क्यूं नहीं दिया...
क्या चाकू से डर गईं... या फिर कोई और बात थी...
आखिर चाकू का आर्टिस्ट तो दूर से भी अपना कमाल दिखा सकता था...
वह तो तैयार ही है, वह ही नहीं महक भी। आखिर साली की सहेली भी तो साली है, और जीजा ऐसा, जिसने जान पर खेलकर जान बचाई" यार, सुन स्सालियों, अब तो मेरे तीनो बिलों पर, तुम दोनों से पहले, मेरे इस जीजू का नाम लिखा है, जब सामने ऐसा हैंडसम जीजू हो, तो फिर पूरी की पूरी वेटिंग लिस्ट कैंसल,
अब तो शाजिया की सेज सजानी हीं पड़ेगी....
डीबी देख पा रहे थे की अभी तो खतरे और भी थे, तो उनसे बचाना और फिर सी एम् और होम मिनिस्टर को मालूम ही था की परदे के पीछे कौन है। एसटीएफ की ईगो रह गयी और डीबी का काम हो गया।मिशन सक्सेसफुल... तो क्रेडिट लेने की होड़...
लेकिन अब तो ऐसा उपाय कि एसटीएफ भी खुश.. और पुलिस भी खुश...
इसके बहुत से हिस्से, ख़ास तौर से नए जोड़े हिस्से मैंने प्रोसिजरल क्राइम नावल की विधा में लिखने की कोशिश की हैसबकी अपनी अपनी परेशानियाँ...
सबको खुश रखना...
निजाम को और उसके कारिंदों को कैसे संतुष्ट किया जाए...
इसकी फील्ड ट्रेनिंग हो रही है....