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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३४ - मॉल में माल- महक पृष्ठ ३९८

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komaalrani

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भाग - ३४ मॉल में माल, - महक
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4,53,916
--

माल सिगरा के पास ही था, और महक के अंकल का ही था।

उसमें उनके भी चार-पांच स्टोर्स भी थे। लेकिन पूरे शहर में अभी भी अघोषित कर्फ्यू का माहौल था। सड़क पे इक्की दुक्की गाड़ियां दिख रही थी। सिर्फ पुलिस की गाड़ियां, पीएसी की ट्रक नजर आ रही थी। जगह-जगह चेक पोस्ट, नाकाबन्दी लगी हुई थी। हमारी गाड़ी भी दो-तीन बार रोकी गई। एक भी रिक्शा नहीं दिख रहा था।

माल में उतरते समय ये तय हुआ की जब तक मैं शर्ट लूंगा, गाड़ी लेकर रेस्टहाउस से हमारा सामान कलेक्ट करके आ जायेगी और वहां से हम सीधे गुन्जा के यहाँ…


अंकल ने ये भी बोल दिया था- “तुम बस वस के चक्कर में ना पड़ो क्योंकी इस माहौल में उसका भी ठिकाना नहीं है। मेरी गाड़ी तुझे घर तक,आजमगढ़ ड्राप कर आयेगी…”

माल में भी आधी से ज्यादा दुकानें बन्द थी।

अंकल ने पहले से कपड़े वाली दुकान और एक-दो स्टोर्स को बोल दिया था। एक छोटा सी मेडिसिन शाप भी उनमें थी। पहली शाप एक मोबाइल की थी मैं उसमें घुस गया। उसमें एक ब्लैक बेरी का भी कियोस्क था। मेरी तो बांछे खिल गईं। मैंने दो ब्लैक बेरी पसंद कर लिये।


महक मेरे साथ ही लिफाफे पे टिकट की तरह चिपकी थी। वो बोली-


“रुकिये मैं बताती हूँ…” और उसने सेल्समैन को क्या बोला की वो दो नये जस्ट रिलीज हुये टैबलेट और दो आई पैड ले आया और महक ने उसको भी पैक करा दिया।

मैं नहीं नहीं करता रह गया- “बड़ा महंगा है। जरूरत नहीं है। इत्यादी इत्यादी…”

कौन सुनने वाला था। मैंने अपना कार्ड निकालकर सेल्समैन को दे दिया, पेमेंट के लिये।

अब तो डबल पेस अटैक चालू हो गया। महक के अंकल एकदम से नाराज हो गये-


“दामाद कहते हो और पैसा देने की कोशिश करते हो और खासकर इस दुकान में…”

मैंने दुकान का नाम पहली बार देखा, महक के नाम पे था।

महक तो और ज्यादा पूरी ज्वालामुखी-
“नहीं नहीं आपको बहुत शौक है ना पेमेंट का। वो तो करना पड़ेगा। लेकिन पहले शापिंग पूरी तो कर लीजिये मैं खुद एक-एक पैसे का हिसाब लूंगी…” और कार्ड और पैकेट दोनों सेल्समैन के हाथ से उसने ले लिया।

अंकल बोले- “महक जरा तुम इनका ख्याल रखना मैं घर चलता हूँ…” मकान उनका माल से सटा ही था।

महक- “चिन्ता ना करिये मैं इनका बहुत अच्छे से ख्याल रखूंगी…”



गुन्जा खड़े-खड़े मुश्कुरा रही थी।


मैं समझ गया था की ये महक भी उसी मिट्टी की बनी है जिसकी गुंजा, गुड्डी और रीत बनी हैं, मस्त बिन्दास और बनारस के रस में घुली।
 
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komaalrani

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महक की मस्ती

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जैसे ही अंकल आँख से ओझल हुये, महक बोली- “अब बनायेगें तुम्हारी सैंडविच हम दोनों मिलकर। क्यों गुन्जा?”

गुंजा- “एकदम, तब पता चलेगा की बनारसी सालियों से पाला पड़ा है…”



बनारसी सालियों का तो मैं सुबह से ही झेल,… सारी,…रस ले रहा था। गुड्डी और रीत, फिर गुड्डी और गुन्जा और अब गुन्जा और महक।

चुम्मन, शुक्ला ऐसे बनारसी गुंडों को तो मैं निबटा सकता था पर। बनारसी सालियों से तो हार मानने में ही भलायी थी।



स्टोर बंद सा ही था।

लेकिन ढेर सारे सेक्शन, ज्यादातर स्टाफ घर चले गये थे, सिर्फ दो-चार सेल्सगर्ल बची थी, और वो भी जिस तरह से महक उनसे बात कर रही थी, उसकी सहेलियां ज्यादा लग रही थी। जिस जगह मुझे गुन्जा और महक ने बैठा दिया वहां लिंगरी सेक्शन, कास्मेटिक्स था। मेरी समझ में नहीं आया की मुझे वहां क्यों बैठाया है? तभी मेरी निगाह बगल में एक छोटे से फार्मेसी सेक्शन पर गई।

महक वहीं खड़ी थी और काउंटर गर्ल से पूछने लगी- “डाक्टर कब आयेंगी?”

उसने जवाब दिया- “बस घर से निकल चुकी हैं, 5-10 मिनट में पहुँच रही होंगी…”

मैं बोला- “डाक्टर क्यों? मैं एकदम ठीक हूँ। देखो अब खून भी बन्द है…”

महक- “नहीं नहीं, मैं अपने लिये बुला रही हूँ, मेरे हाथ में बड़ा सा घाव हो गया है, खून से मेरी आधी शर्ट भीग गई है। इसलिये। अब तुम मेरे हवाले हो ज्यादा बोलोगे तो मुँह बंद कराने के मुझे कई तरीके आते हैं…”

पास खड़ी सेल्सगर्ल्स मुश्कुरा रही थी। एक ने बोला भी- “हम हेल्प करें?”

गुंजा बोली- “अभी तो हम दोनों ही काफी हैं, हाँ जरूरत पड़ेगी तो क्यों नहीं?”

गुंजा की बदमाशी मैं समझ रहा था, गुड्डी, महक के अंकल के साथ उनके घर चली गयी थी, जरा आंटी से मिल आऊं। लेकिन असली मतलब मैं समझ रहा था, एक तो उन्हें रिअश्योर करना, दूसरे अगल बगल की हाल चाल पता करना। अंदाज तो उसको भी लग गया था की शहर के हाल चाल ठीक नहीं हैं और हर पल और खराब हो रहे हैं।



शाजिया रस्ते में अपने घर उतर गयी थी, तो बचीं गुंजा और महक। दोनों एक से एक शैतान और बचपन से बाँट के खाने वाली, एक आइसक्रीम का कोन भी हो तो दोनों मिल के साथ साथ चाटती थीं, एक बाएं से एक दाएं से। और गुंजा अब महक को खुल के मौका दे रही थी, मेरी रगड़ाई करने का, और जितना मैं झिझकता, हिचकता उतना उन दोनों दुष्टों को और मजा मिलता।



महक ने सीधे मुद्दे पे आते हुए कहा- “चलो कपड़े उतारो…”

मैं हक्का-बक्का रह गया।

इतनी लड़कियों के सामने,…. अकेले में तो चलो। जब साली बन ही गई है तो देख लेने दो।

गुड्डी ने देख लिया, रीत ने देख लिया, गुंजा ने देख लिया तो ये महक भी,

लेकिन मेरी बात वैसे ही रह गई जब महक ने साफ कर दिया- “बात सिर्फ शर्ट उतारने के लिए है, और वो भी दो वजह से एक तो नई शर्ट नापनी है दूसरे अगर डाक्टरनी साहिबा को चोट देखनी है तो शर्ट उतारनी पड़ेगी ना…हाँ और कुछ उतारने का मन हो तो वो भी उतार दीजिये, हम लोग एकदम मना नहीं करेंगे, " बड़ी बड़ी आँखों को नचाती वो दर्जा नौ वाली पंजाबी कुड़ी बोली।”

गुंजा ने बोला- “यार महक बात तो तुम्हारी ठीक है, लेकिन जिसके हाथ में इतनी चोट हो वो कैसे अपने हाथ से कुछ भी कर पायेगा?”

“अरे हम हैं ना?” दो सेल्सगर्ल्स बोली और एक झटके में आकर शर्ट उतार दी।



एक बोली- “हे बनियान में भी तो खून लगा है…”

महक बोली- “तो उसको भी उतार दो ना…” और वो भी उतर गई और मैं अब पूरी तरह टापलेश।

अब वहां मैं, महक, गुंजा और तीन सेल्सगर्ल्स।

और महक की निगाहें मेरी बॉडी को निहार रही थीं, सहला रही थी,। नहीं नहीं, कोई जिम टोंड बॉडी नहीं थी और मैं कभी मसल्स बिल्डिंग के लिए काम करता भी नहीं था, लेकिन अन आर्म्ड कॉम्बैट और मार्शल आर्ट्स के लिए बॉडी फिट तो होनी चाहिए, और ४० इंच के चेस्ट पर ३२ इंच की कमर, सारी मसल्स टोंड, बाइसेप्स, क्वाड्रिसेप्स, और अगर कोई जवानी की दहलीज पर खड़ी युtग टीनेजर इस तरह से देखे तो असर तो होगा ही , और मैं सोच रहा था की वो क्या सोच रही होगी,



ये चौड़ी छाती अगर उसके छोटे छोटे गोल गोल कड़े कड़े जोबनों को दबाएगी, रगडेगी, कुचलेगी और मुझे याद आ गया जब सीढ़ी पर गोलियां चल रही थी, मैंने पीछे से महक को कस कर पकड़ रखा था और महक ने खुद मेरा हाथ खींच कर अपनी कच्ची अमिया पर रखा कर हलके से दबा दिया था, और वो सोच के ही जंगबहादुर पैंट में बगावत कर रहे थे। और देखने ललचाने का काम सिर्फ एक ही थोड़े कर सकता था, मेरी निगाहें भी महक के उभारों पर चिपक गयी थीं, स्कूल का टाइट टॉप, उस पंजाबी कुड़ी के उभारों को छिपा कम रहा था, दिखा ज्यादा रहा था और उस दुष्ट ने अपने टॉप के ऊपर के दो बटन भी खोल दिए थे, बेल्ट टाइट कर ली, जिससे दोनों गोलाइयाँ छलक के बाहर आ रही थी, खूब गोरी गोरी मस्त, किसी का भी मन मचल जाता मसलने के लिए,



लेकिन टॉप पर एक खरोच पर मेरी निगाह पड़ी और मुझे याद आया, गुंजा ने जो बोला था,

चुम्मन ने अपने चाक़ू की नोक से उसके टॉप को दबाया और धमकाया और टॉप में हल्का सा छेद हो गया था, चाक़ू की नोक सीधे वहीं और सोच के ही मैं सिहर गया। किस हादसे से अभी थोड़ी देर पहले गुजरी है ये लड़की



और गुंजा और महक की निगाह मेरे हाथ पर बंधे दुपट्टे पर पड़ी,, खून से लाल था लेकिन उसके नीचे का खुला घाव साफ़ दिख रखा था काम से कम ६ इंच लम्बा था और गहरा भी काफी था, खून बंद होने से घाव साफ़ दिख रहा था।



महक काँप गयी और उसने कस के मेरे हाथ को पकड़ लिया। कैसे सीढ़ी पर हम लोग खड़े थे और इस लड़की ने खून से लथपथ मेरी शरत को देख कर मोड कर तुरंत अपने दुपट्टे को फाड़ कर वहां पट्टी बाँधी थी।

चुम्मन से इन लड़कियों को बचाने के चक्कर में, भाग दौड़ में, फिर पुलिस कंट्रोल रूम में जो टेंशन चल रहा था और उन सब से बढ़ कर तीन तीन मस्त दर्जा नौ वाली शोख शरारती छोरियों के साथ में, मैं भी भूल चूका था, घाव को भी, चुम्मन के उस दस इंच के रामपुरिया चाक़ू को भी। लेकिन घाव को देखकर एकबार फिर से वो पल जिन्दा हो गए,



और मुझसे ज्यादा हदस गयी, गुंजा। पहली बार उसे अंदाजा लगा कितना गहरा घाव था और कैसे बस बाल बाल बची वो। चुम्मन के चाक़ू निकालते ही मुझे लग गया उसका टारगेट गुंजा ही है, बचो, फर्श पर चिल्ला कर मैंने उसे छाप लिया और बिजली की तेजी से गुंजा को लिए दिए फर्श पर। न सिर्फ मेरी देह ने ऊपर से गुंजा को ढक रखा था बल्कि मेरी बाँहों ने उसे नीचे से भी दबोच रखा था, और चाक़ू मेरी बांह में,



जो मैं सोच रहा था, वही गुंजा सोच रही थी, अगर मैं उसके ऊपर नहीं आता तो वो तेज धार वाला चाक़ू सीधे, गुंजा की पीठ से घुसते सीने की ओर, दिल, फेफड़े में अंदर तक पैबस्त होता।



और चाक़ू लगने के बाद, तेजी से खून निकलने के बाद भी मैंने गुंजा पर पकड़ ढीली नहीं की, बल्कि मौका देखकर चुम्मन पर काउंटर टैक



एक पल के लिए माहौल फिर से सीरियस हो गया था, लेकिन सही फैसला लिया, तीनों सेल्सगर्ल में जो सबसे सीनियर थी, स्टोर इंचार्च भी उसने महक को इशारा किया और महक मुस्कराते हुए बोली

“गुंजा यार तुम इसके साथ जाकर शर्ट चेक करो जरा, मैं अभी आती हूँ, डाक्टर भाभी को फोन करके…” गुंजा और दोनों सेल्सगर्ल चली गयीं, पर जाते हुए गुंजा ने कस के महक के पिछवाड़े शरारत से एक हल्का सा थप्पड़ मारा, जैसे इशारा कर रही हो

' चल यार मैंने मैदान साफ़ कर दिया, अब ले ले मजा "



हम सब उस हादसे के पलों से निकलना चाहते थे।

गुंजा ने निकलते हुए मेरी ओर शरारत से देखा, और दरवाजे को बंद कर दिया।

महक मेरे पीछे आकर खड़ी हो गई, लगभग मुझसे सटी हुई। उसकी गरम गरम साँसें मेरी गर्दन पे छू रही थी। उसने एक उंगली से मेरी गर्दन पे छुआ, तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए।

महक एक सेल्सगर्ल से- “हे तू जरा जा और डाक्टर भाभी जैसे ही आयें, सीधे यहां ले आना…”

अब महक और वो सेल्सगर्ल बची जो शायद स्टोर इंचार्ज थी। उसकी उम्र 26-27 साल की रही होगी। बाकी सेल्सगर्ल्स 18-20 साल की रही होंगी।
 

komaalrani

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महक -अमीषा डबल का मीठा
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सेल्सगर्ल के बाहर निकलते ही महक ने मुझे अपनी बांहों में जकड़ लिया।

उसके किशोर उभार मेरी पीठ में रगड़ खा रहे थे, और वो उन्हें हल्के-हल्के दबा रही थी, रगड़ रही थी। उसकी जांघें भी अब मेरे नितम्बों को पीछे से दबा रही थी। और अगले ही पल उसके दोनों हाथ मेरे सीने पे थे, उसकी लम्बी उंगलियां, बड़े-बड़े नाखून मेरे टिट्स के आस पास टहल रहे थे, और अचानक महक ने मेरे मेल टिट्स को अपने एक लम्बे नाखून से खरोंच दिया, और साथ ही उसके होंठ मेरे गर्दन पे एक हल्की सी किस और वहां से मेरे इयर लोबस पे। एक सहलाती हुई चुम्मी।



अगर सामने वो स्टोर इंचार्ज ना खड़ी होती तो मैं मुड़कर महक को बता देता, चोट मेरे बाएं हाथ में लगी थी। बाकी अंग तो ठीक ही थे।

अमीषा उस स्टोर इंचार्ज का नाम था, और फिगर उसकी अमीषा पटेल से एक-दो नंबर बड़ी ही रही होगी, तभी शायद वो लिंगरी सेक्शन की इंचार्ज थी।

महक बोली- “अमीषा, जरा देख बेल्ट कुछ ज्यादा टाईट सी नहीं लग रही है…”

“हाँ…” वो झुक के बोली और मेरे बकल ढीले कर दिए।

क्या जबर्दस्त परफ्यूम लगाया था उस अमीषा ने, और जब झुकी तो खुलकर पूरा क्लीवेज, दोनों गोरी-गोरी गोलाइयां। मेरी तो हालत खराब। और उसी समय महक ने कसकर मेरे सीने को दबोच लिया और हल्के से दबाने लगी। मेरे लिए बहुत मुश्किल हो रहा था।

उधर उठते-उठते अमीषा ने मेरे पैंट के बल्ज को हल्के से, ….बल्की खुलकर दबा दिया और जब वो मुड़ी तो उसके लम्बे खुले लहराते बाल मेरे सीने पे छू गए। उसके नितम्ब 36+ रहे होंगे और दरार पूरी तरह दिख रही थी इतनी टाईट ड्रेस थी।



महक की जीभ की नोक अब मेरे कान के छेद में और हाथ सीधे बल्ज पे। उसने सहलाया नहीं बल्की खुलकर दबा दिया। ‘वो’ आलमोस्ट 90° डिग्री हो रहा था-

“मैंने बोला था ना की बिल दूंगी मैं। पूरी तरह। तो अभी तो बस शुरूआत है। पूरा बिल, सर्विस टैक्स एक्स्ट्रा…”

वो मेरे कान में फुसफुसा रही थी, और उसका एक हाथ मेरे बल्ज पे टिका था।

मैं समझ गया था। की वो किस ‘बिल’ की बात कर रही थी।

पता नहीं महक ने इशारा किया या अमीषा ने खुद पहल की, पीछे से महक लता की तरह चिपटी थी तो आगे से अमीषा चिपक गयी और उसकी बाहों ने महक को पकड़ कर और कस के मेरी देह पर दबोच दिया, और अमीषा एकदम खुल कर खेली खायी लगती थी और महक की राजदार भी, महक को उकसाती चिढ़ाती बोली,



" सारे बिल दे देना, कोई बचा के मत रखना "



मेरे मुंह से घिसा पिटा डायलॉग निकलते निकलते रह गया, मैं छेद छेद में भेद नहीं करता, लेकिन जवाब महक ने ही दिया,



" एकदम नहीं, घुसते ही ये चिल्ला रहे थे, बिल लाओ, बिल लाओ, अब देखती हूँ अगर ये बिना बिल लिए गए न तो इनकी, " और यह कह के अपने बस आ रहे छोटे छोटे २८ साइज के जोबन पीठ पर रगड़ दिए, लेकिन जुगलबंदी के लिए अमीषा थी न , ३४ सी साइज वाली और दोनों ओर से जोबन की चक्की चल रही थी।

जंगबहादुर की हालत खराब थी, कभी तने बल्ज के ऊपर से महक की बिच्छी की तरह डंक मारती उंगलिया तो कभी अमीषा अपने दोनों जाँघों के बीच से ही उसे रगड़ने की कोशिश करती

" और क्या पहले तो कपडे उतरवा लेंगे इनके, शर्ट और बनियान तो उतर ही गयी, पेंट की भी बेल्ट खुल गयी है तो बस उसे भी उतरा लेती हूँ " अमीषा ने चिढ़ाया और सच में मेरी ज़िप खोलने के लिए हाथ लगा दिया



अब कुछ ज्यादा हो रहा था, मैंने नहीं नहीं किया, लेकिन ढीली पेंट के पिछवाड़े अमीषा ने हाथ डाल ही दिया और नितम्बो को दबोचते बोली

" लड़कियां नहीं नहीं करती हैं तो सुनते हो तुम लोग,….. तो हम लोग क्यों सुने, क्यों महक "

" एकदम, "खिलखिला के महक बोली।



चुम्मन से पार पाना तब भी आसान था लेकिन गुंजा की इस सहेली से निबटना बहुत टेढ़ा था, लेकिन बचाया गुंजा ने ही,



तब तक गुंजा की आवाज दूर से आई- “मैंने शर्ट्स देख ली हैं। तू भी एक बार चेक कर ले…”



महक हँसकर बोली- “आती हूँ मेरी नानी…” और मुझे पुश करके सीट पे बैठा दिया।
 

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अमीषा
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अब मैं सीट पे और सामने अमीषा स्टूल पे अपने नेल फाइल करती हुई, मुश्कुराते हुए वो बोली- “आपकी मसल्स बहुत स्ट्रांग हैं…”



मैं भी अब फ्लर्ट करने के मूड में था, मैंने मुश्कुराकर बोला- “हाँ, सारी की सारी…”

अमीषा भी उसी अंदाज में बोल रही थी- “अब जो दिखती है मैं तो उसी के बारे में बोल सकती हूँ। हाँ जो नहीं दिखती। …” वो लगातार मेरे बल्ज को घूरे जा रही थी और जिस तरह से वो पैर पे पैर रखकर बैठी थी उसकी हाई हील्स 7-8 इंच ही दूर रही होंगी ‘उन मसल्स’ से- “खैर, अंदाज तो लगा ही सकती हूँ की वो भी स्ट्रांग होंगी…”

“आपका अंदाज और गलत…” मैंने बहुत हल्के से अपने बल्ज को उचकाते हुए कहा।

मुश्कुराकर अमीषा ने जवाब दिया की उसने सिगनल समझ लिया है। फिर वो बोली- “इनर वियर के अलावा मैं स्पा की भी इंचार्ज हूँ। मैं और वो लड़की जो बाहर गई मेरी हेल्पर है। मेनिक्योर, पेडिक्योर और ओनली फोर गर्ल्स बाडी मसाज। वी हैव सोना, जाकुजी। और मैं स्वीडिश मसाज, तांत्रिक मसाज, थाई मसाज शियात्शु। मैंने दो साल बैंगकाक के एक सैलून में काम किया है। एक साल फुकेत में। लेकिन यहाँ पे ओनली फार गर्ल्स। हाँ यू आर एक्सेप्शन…”



अमीषा उठकर खड़ी हो गई। एक प्लेट में उसने दो बड़ी कैंडल्स जलायीं। लैवेंडर की महक हवा मैंने तैर रही थी। फिर एक छोटी सी बोतल से दो बूँद तेल निकालकर अपनी उंगली के टिप्स पे लगाया और मेरे पीछे खड़ी हो गई। कैंडल के साथ उसने कोई म्यूजिक भी आन कर दिया था, रेलैक्सिंग। और वो मेरे पीछे थी। मैं चाहकर भी मना नहीं कर पाया।



अमीषा की उंगलियां मेरे कन्धों पे। पहले उसने सिर्फ उंगली की टिप से दबाया फिर जोर-जोर से। थोड़े ही देर में मेरे कंधे पे उसके दोनों हाथ थे। वो कस-कसकर मस्साज कर रही थी। दोपहर को दुकान में जो मार-पीट, फिर स्कूल में, सारा दर्द सारी एक थकान साथ उभर आई थी, जो मैंने इतनी देर से बर्दास्त किया था। मेरी पूरी देह दर्द से डूब गई। पोर-पोर। एक-एक मसल्स।



लेकिन एक-दो मिनट के बाद जब उसने हथेली से कंधे के नीचे मेरी पीठ और एकदम चूतड़ तक अपने हाथ से सहलाना, दबाना शुरू किया। तो लगाने लगा जैसे उसकी उंगलियां मेरा सारा दर्द, सारी थकान पी जा रही हों।

रीत की सहेली की दूकान में, जब छोटा चेतन और उसके तिलंगों से मुकाबला हुआ, ज्यादा तो नहीं पड़ी मुझे लेकिन तभी भी दो चार हाथ, और उसमे एक दो निशाने पर लग गए थे, चेहरा तो मैंने बचा लिया था, पर पीठ पर, पैरों पर, और एक दो बार गिरते गिरते भी मेज से टकराया और गुंजा को दबोच कर बचाने के चक्कर में सीधे धड़ाम से फर्श पर, अन आर्म्ड कम्बैट में तो सबसे पहले गिरना ही सिखाते हैं और हर तरह के फर्श पर, इसलिए इतनी नहीं लगी लेकिन जो भी अंदरूनी चोट थी और उससे बढ़कर थकान अब सब अमीषा की उँगलियों से घुल रही थी।

मेरी आँखें बंद होने लगी मेरा सारा शरीर शिथिल पड़ने लगा, और मैं सो गया या तंद्रा में चला गया पता नहीं। मेरी आँख खुली महक और गुंजा के शोर से, मुझे लगा घंटों बाद सोकर उठा हूँ।



लेकिन घड़ी देखा तो सिर्फ 6:00 मिनट हुए थे। मेरी सारी थकान, दर्द मसल्स में तनाव सब गायब था, एकदम फ्रेश।





गुंजा और महक एक शर्ट लाने गई थी लेकिन जैसे पूरी दुकान उठा लायी थी और जब मैंने ध्यान से देखा तो बस मेरे मन में यही आया- “दुष्ट, बदमाश…” लगता है गुड्डी ने इन सबसे शेयर कर रखा था की मुझे पिंक या फ्लोरल प्रिंट नहीं पसंद है। मैंने गुड्डी से एक बार कह दिया था की ये सब तो लड़कियों वाले रंग हैं। छोरियां पहनती हैं, और शर्ट टी-शर्ट कई तो स्लीवलेश थी। आलमोस्ट ट्रांसपरेंट।



महक ने पीछे से मेरे कंधे से मेजर किया और गुंजा से आँख नचाकर बोली- “साइज तो सही है। लगता है तुमने अच्छी तरह से नापा है…”



“एकदम…” गुंजा टी-शर्ट नापते हुए बोली- “मेरे जीजू हैं, नाप के तो देखना ही पड़ेगा…”



महक तुरंत उछल गई- “थे। अब मेरे हैं…”

किसी तरह मौका निकालकर मैं बोला- “अरे यार थोड़ी सोबर व्हाईट या ब्लू। और फिर इतनी ज्यादा…”

महक मेरे ऊपर चढ़ गई- “आपसे पूछा किसी ने आपकी पसंद? हमें मालूम है आपकी पसंद। लेकिन आपकी पसंद नापसंद से क्या फर्क पड़ता है? चलिए पहनिए इसे…”



तब तक जिस सेल्सगर्ल को उसने बाहर लगा रखा था उसका मेसेज आया- “डाक्टर साहेब आ रही हैं…”

मैं भी थोड़ा ठीक होकर बैठ गया।

गुंजा भी मुझसे दूर हट गई।
 

komaalrani

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डाक्टर
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वो किसी ओर से डाक्टर नहीं लग रही थी।

लाईट ब्लू साड़ी, एकदम कसी हुई, सारे उभार और कटाव दिखाती हुई हल्की ट्रांसपेरेंट, नूडल स्ट्रैप ब्लाउज़, डीप लो-कट, एकदम चिपका स्लीवलेश, पीछे से भी बैकलेश, सिर्फ एक पतली सी स्ट्रिंग। और पल्लू भी इस तरह की एक उभार पूरा खुला। नीचे भी साड़ी नाभि-दर्शना, गहरी नाभी, चिकना गोरा पेट, बहुत पतली कमर और साड़ी किसी तरह कुल्हे से टिकी, चूतड़ बड़े-बड़े। और जिस तरह से मैं उन्हें देख रहा था उसी तरह वो भी मुझे नीचे से ऊपर। मेरी एक-एक मसल्स।

फिर मैं और चौंक गया, जिस तरह से वो महक से मिली।

महक ने जोर से उन्हें हाय भाभी बोला और जवाब में उन्होंने महक को गले लगा लिया। और सिर्फ गले ही नहीं लगा लिया जिस तरह से वो दबा रही थी उसे और महक भी रिस्पांस दे रही थी। मेरी तो देखकर।

उन्होंने महक के कान में पूछा- “हे कहाँ गायब हो गई थी तू?”
महक- “भाभी वो लम्बी कहानी है। पहले आप इनसे मिलो…” उनसे अपने को छुड़ाती महक बोली- “इन्हीं के लिए आपको फोन किया था…”

जब तक गुंजा मुँह खोलती, महक बोल चुकी थी- “ये मेरे जीजू हैं…”

वो बोली- “अरे वाह। तब तो ये मेरे नंदोई हुए और सलहज का हक तो साली से भी पहले होता है…” और मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया।

जब मैंने उठने की कोशिश की तो उन्होंने दूसरे हाथ से मेरे कंधे को दबाकर बैठा दिया। इसके दो असर हुए, एक तो जब उनका हाथ मेरे कंधे पे था तो उनका पल्लू और बाल मेरे गाल पे छू गए। और दूसरा जब वो झुकीं तो मेरी निगाह उनकी गोरी गुदाज गोलाइयों पे पड़ गई, बल्की सच बोलूं तो चिपक गई। क्या कटाव क्या उभार। पूरा क्लीवेज दिख रहा था। और उसका असर जो होना था हुआ। ‘वो’ लगभग 90° डिग्री होकर सलामी देने लगा।

जैसे किसी भी मर्द की निगाह महिलाओं के सीधे ब्लाउज़ पे। मेरा मतलब चूचियों पे पड़ती है, उसी तरह लड़कियों की निगाह भी बल्ज पे भले ही वो हटा लें। और उनकी निगाह भी वहीं एक पल के लिए।

फिर वो बोली- “मैं डाक्टर दिया शर्मा…”

मैंने कुछ बोलने की कोशिश की तो उन्होंने चुप करा दिया और महक से बोली- “हे तेरे जीजू। इन्हें कहीं लिटा सकते हैं, मेरा मतलब एक्जामिन करने के लिए…”



पास खड़ी अमीषा बोली- “स्पा में मसाज टेबल है…”

डाक्टर दिया बोली- “तो चलो…” और मैं स्पा में मसाज टेबल पे लिटा दिया गया।

अमीषा, गुंजा और महक डाक्टर के साथ खड़ी थी।

और जब उन्होंने महक की लगाई दुपट्टे की पट्टी खोली तो मेरा दिल धक से रह गया। बगल के शीशे से साफ दिख रहा था और मेरे साथ सबको। दो इंच गहरा और साढ़े तीन इंच लंबा घाव था, खून अभी भी रिस रहा था। अगर चाकू थोड़ा सा और अन्दर गया होता तो हड्डी पे भी घाव हो गया होता।

अब मेरी समझ में महक की हरकत आई। वो लड़की है बहुत समझदार। अगर इस घाव के साथ मैं किसी हास्पिटल में जाता तो फिर तमाम सवाल, चाकू का घाव था। पहले पुलिस रिपोर्ट फिर कहाँ लगा? और अगर मैं डी॰बी॰ की सहायता फिर लेता। इससे ज्यादा आसान महक का तरीका था यहाँ बिना किसी शोरगुल के डाक्टर साहेब देख रही थी। डाक्टर ने एक टार्च मेरी आँख में डाली, उंगलियों को मुड़वाया, घाव के आस पास का स्किन थोड़े ध्यान से देखा।

तब तक महक चालू थी- “भाभी ने अभी बी॰एच॰यू॰ से एम॰एस॰ पूरा किया है, और डिप्लोमा…”

तब तक डाक्टर दिया ने आँख तरेरी और महक चुप होकर मुश्कुराने लगी।

डाक्टर दिया बोली- “घाव बहुत बड़ा है। स्टिच करना पड़ेगा, लेकिन मैं एनेस्थेसिया नहीं लायी हूँ। थोड़ा दर्द होगा। या फिर किसी प्राइवेट नर्सिंग होम में, आधे घंटे में अगर नहीं किया तो इन्फेक्शन सेट कर सकता है। फिर मुश्किल हो जायेगी…”


मैं बोला- “अरे आप स्टिच कर दीजिये ना। कहाँ नर्सिंग होम के चक्कर मैं लगाऊंगा…” मुझे भी घर जाने की जल्दी थी- “और हाँ अगर बेहाश ही करना है तो ये सब है ना यहाँ। एक बार मुश्कुरायेंगी तो मैं बेहोश जाऊँगा…”



सब एक साथ 1-2-3 बोल-कर मुश्कुरायी
लेकिन मैं बेहोश नहीं हुआ। जिसने लिखा था की मर्द को दर्द नहीं होता एक बार स्टिच करा के देखे। 6 बड़े-बड़े टाँके लगे।

गुंजा ने पूछा- “टाँके कटवाने के लिए?”

डाक्टर ने बोला- “नहीं नहीं, डिसाल्वेबल हैं। तीन दिन में अपने आप खतम हो जायेंगे। हाँ पांच-छ दिन में एक बार देखने से ठीक रहता, लेकिन ये तो आज जा रहे हैं। फिर?”

गुंजा झट से बोली- “हाँ लेकिन चार-पांच दिन के लिए। रंग पंचमी के पहले ये आ जायेंगे…”

“फिर क्या? फिर तो मैं थारो चेक अप कर लूँगी…” डाक्टर अब डाक्टर से सलहज वाले रंग में आने लगी थी।

मैंने कुछ पूछने की कोशिश की- “दवा। डाक्टर साहेब?”

उन्होंने बीच में बात काट दिया और महक से बोली- “हे यहाँ कोई डाक्टर वाक्टर है क्या?”
महक भी अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाकर चारों ओर देखते हुए बोली- “ना मुझे तो कहीं नहीं दिख रहा है…” और मेरी ओर आँख तरेर के बोली- “डाक्टर किसे कह रहे हो? ये मेरी प्यारी होने वाली भाभी हैं और आप मेरे जीजू तो…”
मैं बोला- “ओके डाक्टर भाभी…”

“सिर्फ भाभी…”

440 वोल्ट की मुश्कान के साथ जवाब मिला और डांट भी-

“अब चुप रहो। अभी इंजेक्शन लगेंगे और वो भी मोटे-मोटे। अमीषा इनकी पैंट नीचे करो और नीचे हाँ घुटने तक। ये इंजेक्शन तो चूतड़ में लगेंगे ना…”

अमीषा को तो जैसे इसी बात का इंतजार था। मैं पेट के बल लेटा था और जब उसने पैंट नीचे सरकाई तो उसके लम्बे नाखून, मेरे चूतड़ों के निचले भाग पे छू गए। जोर का झटका जोर से लगा।

लेकिन डाक्टर ऊप्स। भाभी को इससे संतोष नहीं हुआ। वो अमीषा से बोली-

“अरे यार तू तो ट्रेंड नर्स है। क्या इंजेक्शन चड्ढी के ऊपर से लगेगा, इसे भी तो सरकाओ नीचे…”

पता नहीं ये अमीषा की बदमाशी थी या महक और गुंजा की करतूत? चड्ढी भी घुटने तक पहुँच गई और अबकी अमीषा ने दोनों हाथ का इश्तेमाल किया। दो उंगलियां वहां भी छू गईं। क्या हालात हुई होगी कोई भी सोच सकता है।



गुंजा और महक ने स्कूल के बारे में बताना शुरू किया, बस चुम्मन का नाम और उससे जुड़ी बातें वो गोल कर गईं ये कहकर। की दो गुंडे थे। ये मैंने तीनों को और गुड्डी को भी अच्छी तरह समझा दिया था की उसका नाम किसी के सामने न लें।

“उयी…” मैं जोर से चिल्लाया।
अमीषा ने इंजेक्शन लगा दिया था। सारी की सारी। मुझे देखकर मुश्कुरा रही थीं।

अमीषा बोली- “अभी एक और लगाना है। ये तो टिटनेस वाला था अभी एंटी बायोटिक बाकी है…” वो आराम से धीरे-धीरे मेरे खुले नितम्बों पे इथर लगा रही थी।



डाक्टर कम भाभी बोली- “नहीं, उसकी तो आई॰वी॰ लगानी पड़ेगी। एक छोटी बोतल 10 मिनट में हो जायेगी। फिर इन्हें घर जाकर सिर्फ ओरल लेनी होंगी…”



महक मुश्कुराते हुए बोली- “भाभी। वो वाला इंजेक्सन लगा दीजिये ना तबियत हरी हो जायेगी, इनकी एकदम…”



“तू ना…” डाक्टर दिया ने उसे डपटा, फिर मेरे नितम्बों को हल्के से छुवा और छूते हुए उनकी लम्बी उंगलियां आगे भी टच कर गईं।



बड़ी मुश्किल से उसे मैंने 90° डिग्री होने से रोका।



मुश्कुराते हुए वो बोली- “हूँ रियेक्शन तो ठीक है। “चल तू बोल रही है तो लेकिन बहुत लाईट डोज…”



महक बोली- “नहीं भाभी। कम से कम मीडियम डोज…”



डाक्टर दिया बोली- “ओके चल तू भी क्या याद करेगी?”


महक ने मुश्कुराते हुए बोला- “भाभी मास्टर्स के बाद। ई॰डी॰ में डिप्लोमा करेंगी…”ई॰डी॰ मतलब एरेक्टाइल डिसफंक्शन। इतना तो मुझे भी मालूम था।



तुरंत महक के कान पकड़ लिए गए। मुश्कुराते हुए डाक्टर कम भाभी बोली- “ये बताना जरूरी था?”

महक बोली- “अरे आपके ननदोई हैं। इनसे क्या शर्म?” उसके कान अभी भी दिया के हाथ में थे।



दिया- “वैसे इन्हें कोई जरूरत नहीं पड़ने वाली है। लौटकर आयेंगे तो मैं जरूर डिटेल में चेक करूँगी
कान महक के उनके हाथ में थे लेकिन वो देख मुझे रही थी।



दिया- “रिटेलिन है?” अबकी वो अमीषा से बोली।



अमीषा ने मुश्कुराते हुए जवाब दिया- “हाँ एक वायल है…”

फिर दो-तीन और दवाएं डाक्टर दिया ने बोला और अमीषा ने कुछ देर में दवाओं का काकटेल तैयार कर दिया और एक इंजेक्सन और चूतड़ के निचले हिस्से में। पल भर में मुझे लगा की मेरा सारा दर्द गायब। मैं उठने लगा तो अमीषा ने फिर लिटा दिया, और मेरे कान में होंठ लगाकर बोली- “चुपचाप अच्छे बच्चे की तरह आँख बंद कर लो। बस दो मिनट तक और अच्छी-अच्छी बातें सोचो…” और उसने मेरी चड्ढी और पैंट ऊपर कर दिया।

गुंजा महक और डाक्टर दिया बाहर चली गई थी।



हाँ अमीषा ने पैंट ठीक करते-करते। मेरे अब लगभग तने जंगबहादुर को कसकर रगड़ दिया और अपने मोटे-मोटे नितम्ब मटकाती चल दी। जब मैंने आँखें बंद की तो बस वही, बड़े-बड़े कसे नितम्ब मेरी आँखों के सामने थे, और फिर डाक्टर भाभी की गोलाइयां। गोरी गुदाज, महक और फिर गुड्डी। दो मिनट में न जाने कहाँ की ताकत मेरे अंदर आ गई और आँखों के सामने बस।



“सो गए क्या?” महक की आवाज बाहर से आई और मैं उठकर बाहर निकला।



जहाँ हम पहले बैठे थे लिंगरी और कास्मेटिक्स के काउंटर के पास। वहीं सारे लोग थे। एक आई॰वी॰ स्टैंड अमीषा और डाक्टर भाभी मिलकर लगा रहे थे। उन लोगों ने मिलकर ड्रिप लगा दी। एक सेल्सगर्ल काफी, पेस्ट्री और साल्टेड काजू ले आई।



अमीषा ने मेरे पैर एक फूट बाथटब में डाल दिए थे, उसमें कुछ गुलाब की पंखुडियां पड़ी हुई थी और एक-दो साल्ट्स पड़े थे। नीचे मारबल राक्स थी जो मेरे तलुवे में हल्के-हल्के रगड़ रही थी। गुनगुने पानी में अमीषा ने लवेंडर तेल की कुछ बूंदें भी डाल दी थी जो बहुत रिलैक्सिंग थी। साथ में वो मेरे एंकल्स का मस्साज भी कर रही थी। ड्रिप खतम होने के पहले उसने मेरे पैर निकाल लिए और तौलिया से रगड़कर उसे एक्स्फोलियेट भी कर दिया। पूरी देह एकदम हल्की सी हो गई।



तभी मेरा फोन बजा। गुड्डी का फोन था वो बस दो मिनट में पहुँच रही थी।

मेरी ड्रिप निकालते हुए डाक्टर भाभी ने कहा- “बस अब तुम्हें किसी इंजेक्शन की जरूरत नहीं पड़ेगी। हाँ कुछ पिल्स मैं फार्मेसी पे निकलवा देती हूँ और एक-दो ड्रेसिंग। वो आप ले लीजियेगा…”
 
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शोख शरारतें
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“बस अब तुम्हें किसी इंजेक्शन की जरूरत नहीं पड़ेगी। हाँ कुछ पिल्स मैं फार्मेसी पे निकलवा देती हूँ और एक-दो ड्रेसिंग। वो आप ले लीजियेगा…”



गुंजा ने कहा- “मैं समझ लेती हूँ…”



महक बोली- “ठीक है वैसे गुड्डी भी पहुँच ही रही हैं और वो इनके साथ जायेगी तो आप उनको समझा दीजियेगा तो और बेहतर रहेगा…”



डाक्टर भाभी बोली- “वो तो बेस्ट है उसे मैं ड्रेसिंग भी समझा दूंगी। एक-दो बार चेंज करना होगा बस…” और गुंजा के साथ फार्मसी की ओर चल दी।

“बिल अभी बाकी है…” महक ने आँख नचाकर कहा और उसमें काउंटर से एक बिल निकाल लिया।



“एकदम…” मैं बोला। मेरे मन में कुछ-कुछ हो रहा था। वो तो मुझे बाद में पता चला की जो दूसरा इंजेक्शन था उसमें युफोरिक और सटीम्युलेंट दवाओं का मिक्सचर था, जो स्लो रिलीज थी और उसका पूरा असर चार-पाँच घंटे में होने वाला था।

--

महक ने एक डार्क कलर की लिपस्टिक निकालकर अपने होंठों पे अच्छी तरह लगा ली और फिर बिल पे पेमेंट की जगह अपने होंठों से किस कर लिया। वहां उसके होंठों के निशान पड़ गए थे। मेरी ओर बिल बढ़ाकर वो मुश्कुराकर बोली- “पेमेंट प्लीज…”



“श्योर…” मैं बोला और उसे बाहों में भरकर मेरे होंठ उसके होंठों पे चिपक गए। फिर उसके होंठों ने उसी गरम जोशी से जवाब दिया। मेरे होंठों को अपने आलिंगन में भरकर और उसकी जीभ मेरे मुँह में घुस गई। मेरे हाथ उसके स्कूल यूनिफार्म में कैद उन रूई के फाहे जैसे बादलों पे पड़ गए जिन्हें सीढ़ी पे गलती से मैंने छू दिया था। लेकिन अबकी ना मैंने हाथ हटाया ना सारी बोला बल्की हल्के से दबा दिया।



बगल के कमरे से गुड्डी की आवाजें आने लगी थी, तो महक मुझसे अलग हो गई।

मैंने बोला- “क्यों हो गया पेमेंट पूरा?”

उसने जोर से ना में सिर हिलाया और मुश्कुराकर बोली- “ये तो सिर्फ एडवांस था…”

तब तक गुंजा आ गई और बोली- “क्यों हो गया बिल पेमेंट। और महक के हाथ से वो लिपस्टिक लेकर मुझे दे दिया- “ले लीजिये याद रहेगा मेरी सहेली का बिल…”

गुंजा ने अमीषा से पूछा- “हे तुम्हारे पास स्ल्ट रेड है क्या?”

“एकदम…” वो बोली और उसने निकलकर दे दिया। गुंजा ने वो और तीन-चार शेड के लिपस्टिक ले लिए।



हम लोग बाहर निकले तो डाक्टर भाभी जा चुकी थी और गुड्डी काउंटर से दवाएं ले रही थी।
 
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गुंजा
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लेकिन उसके दस पंद्रह मिनट पहले, इंजेक्शन के बाद का असर था शायद,थोड़ी तन्द्रा, खुमारी सी और मैं अधलेटा पहले जुमहाने लगा फिर सो जैसा गया। और मुझे सोता देख कर, महक, सेल्स गर्ल्स, गुंजा सब दबे पाँव बाहर खिसक ली, रह रह कर पक्षियों के कलरव की तरह उनकी चहचाहट दरवाजे से छन छन कर हलकी सी आ रही थी, कुछ देर बाद मेरी आँख खुली, अब तबियत एकदम फ्रेश लग रही थी, थकान,दर्द सब गायब हो गया था। लग रहा था इंजेक्शनों का असर हो चुका था। किसी तरह उस मसाज टेबल से मैं नीचे उतरा, अंगड़ाई ली, उँगलियाँ चटकाईं और दरवाजे की ओर देखने लगा।



उन भयावह यादो से अब मैं अपने को आजाद कर रहा था
बस दरवाजा खुल गया।
गुंजा,
एक पल के लिए वहीँ खड़े खड़े मुस्करायी, फिर पैरो से पीछे की ओर मार के दरवाजा बंद किया, और लगभग दौड़ती हुयी, सीधे मेरी अँकवार में

और सुबकने लगी, बस बिना कुछ बोले,



आंसू उसके गालों को गीला करते मेरे कंधे पर गिर रहे थे, और मैंने भी कस के उसे भींच लिया। हलके हलके उसकी पीठ सहलाता रहा, अपने होने का अहसास दिलाते, मेरे उँगलियाँ उसके फूल जैसी देह पर फिसल रही थीं और जितनी जोर से मैं भींच रहा था उससे ज्यादा जोर से वो चिपकी थी।



न उसके आंसू थम रहे थे, न मैंने उन्हें रोकने की कोई कोशिश की।



जिस हादसे से वो गुजरी थी, जहाँ बचने का जरा भी चांस नहीं था, खिड़की रोशनदान उमीदों के एकदम बंद थे, कोई एक छोटी से किरण भी नहीं आ रही थी, वहां से बस बच कर निकली थी, मौत जैसे सहला कर निकल जाए, जो लड़की अभी ढंग से कैशोर्य में भी न हो उसे ये सब देखना पड़े



लेकिन मैं सोच रहा था, अबतक बहुत कोशिश कर के सायास गुंजा ने अपने डर को दबोच कर पिंजड़े में कर के रखा था, लेकिन जरूरी था यह की यह सब एक बार बाहर निकल जाए, अब तक छेड़खानी कर के, सहेलियों के साथ हलकी फुल्की बातें कर के, जैसे यह न दिखाना चाहती हो की उसे कुछ हुआ भी है, पर अब,



और सुबकना अब हिचकियों में बदल गया था , और धीरे धीरे उन्होंने शब्दों की शक्ल ली



" जीजू, अगर तुम न आते, सच में " और फिर हिचकियाँ

मैं सिर्फ उसकी पीठ थपथपा रहा था,



" जीजू अगर तुम न आते सच, बस दो चार मिनट की देरी भी हर होती, "



और अब मैं काँप गया। वो मंजर मेरे सामने फिर से नाचने लगा और जो बात इन लड़कियों ने बताई थी की कैसे शाजिया का फोन छिना, महक के सीने के ऊपर टॉप पर अपना चाक़ू लगा के धमकया और चलने के पहले बोला, बस पांच मिनट और , ये पुलिस वाले बहुत चालाक बन रहे हैं न बस पांच मिनट और उसके बाद तुम तीनो ऊपर, धड़ाम



" कैसे नहीं आता मैं, होली के बाद फिर होली कैसे खेलता "



एक पल के लिए वो मुस्करायी, लेकिन फिर डर के बादलों ने चांदनी की मुश्के कस दी। फिर वह उन पलों में वापस हो गयी लेकिन हल्की सी मुस्कराहट उसके चेहरे पर खेलने लगी, मेरे गाल पर एक ऊँगली फिराकर बोली,

' लेकिन एक बार तू आ गया न तो बस मुझे लग गया, अब तो मेरा कुछ नहीं हो सकता, मैंने हाथ दबा के शाजिया और महक को भी अश्योर किया और जो आपने इशारा किया तो बस मैंने पहले शाजिया को और फिर महक को,



धुप छाँह का खेल चल रहा था, एक बार फिर से गुंजा उदास हो गयी। कुछ देर बाद खुद ही बोली, " आप के साथ होली अधूरी छोड़ के मैं जो आयी तो बहुत अफ़सोस हो रहा था और फिर अचानक ये डर लगने लगा की तुझ से दुबारा मिलूंगी की नहीं जैसे कोई अपशकुन की आहत आ रही हो "



मैं सिर्फ उसके बाल सहला रहा था और धीरे धीरे उसके कान में बोल रहा था अच्छा वो सब छोडो लेकिन जब चुम्मन आया और चाक़ू निकाला तब डर

नहीं लगा।



इतनी देर बाद वो खिलखिलाई, एकदम नहीं, तुम तो आ ही गए थे, अब सब जिम्मेदारी तेरी थी।



और जब सीढ़ी पर गोली चल रही थी, मैंने फिर पूछा



" एकदम नहीं यार तेरे रहते क्या डरना और जब शाजिया और महक नहीं डर रही थीं ,तेरी टांग खींच रही थीं तो मैं क्यों डरती, " हँसते हुए वो हसंनि बोली



शैतान का नाम लो, बल्कि शैतान की मौसी का नाम लो और वो हाजिर, उसी तरह झटाक से दरवाजा खोल के महक घुसी और साथ में एक सेल्स गर्ल

महक ने हम दोनों को चिपके देखा तो छेड़ा, अभी तक सिर्फ चुम्मा चाटी, चिपका चिपकी चल रही है या कुछ हुआ भी, और सेल्सगर्ल से बोली,



" यार जरा एक बड़ी शीशी वैसलीन की ले आना, नहीं, बल्कि के वाई जेली की एक ट्यूब उठा लाओ। "



" अरे नहीं दी, आर्गेनिक का ज़माना है, थूक से बढ़िया कुछ नहीं, जब हम लोग सुई के पतले छेद में लुजलुज लुजलुज धागा घुसेड़ सकते हैं तो इनका तो एकदम कड़ा तना है, " सीधे मेरे बल्ज को घूरती हुयी वो वो दुष्ट बोली। पर जवाब मेरी ओर से गुंजा ने दिया,

" कमीनी तेरे चक्कर में तो, जरा दो मिनट कोई चैन से चुम्मा चाटी तो कर नहीं सकता आगे की रील कैसे चलेगी। और अब जब होगा तो तेरे सामने होगा, होली के बाद जब जीजू आएंगे और तेरा शाजिया का भी नंबर लगेगा, जीजू लेते नहीं है चीथड़े चीथड़े कर देते हैं, चार दिन चल नहीं पाओगी। स्साली "

" अरे तो क्या डर है, मेरे तेरे यार ने पन्दरह दिन की छुट्टी तो करवा दी है न " हँसते हुए महक बोली।



लेकिन तबतक धड़ाक से दरवाजा खुला और हांफती घबड़ायी दूसरी सेल्स गर्ल अंदर आयी और इशारे से पहली वाली को अपने पास बुलाया , कान में कुछ फुसफुसाया और अपने फोन में कोई मेसेज दिखाया,



और वो सेल्सगर्ल भी एकदम सहम गयी, जैसे उसने भूत देख लिया हो। बस उसके मुंह से मुश्किल से यही निकला



" तो, अब "



कुछ पल पहले जो खुल के मजाक कर रही थी, छेड़ रही थी, खिलखिला रही थी, अब एकदम जड़। जैसे उसके गोरे चिकने चेहरे पर किसी ने कालिक पोत दी हो। और तब तक उस लड़की के फोन पर भी मेसेज आया उसके घर से, और उसे पढ़ते ही उसके पैर जैसे पानी के बने हो एकदम ढीले पड़ गए, सांस फूलने लगी और उसने फोन सीधे मेरे हाथ में पकड़ा दिया,



' तुरंत घर चली आओ । महौल खराब हो रहा है, बहुत ज्यादा टेंशन है, हर जगह पुलिस है, लोग कह रहे हैं कई जगह दंगा हो गया है, बस कर्फ्यू लगने वाला है, टीवी चैनल वाले दिखा रहे हैं। कुछ भी हो सकता है, हम सब के बगल वाला मोहल्ला तो तुम जानती हो कैसेलोग है, उधर से मत आना, बस . उस लड़की का मुंह सूख गया था, कुछ उसके समझ में नहीं आ रहा था, कभी महक को देखती, कभी दूसरी सेल्स गर्ल, लेकिन कनखियों से मेरी निगाह गुंजा पर पड़ी



और वह जड़ हो गयी थी, एकदम संज्ञा शून्य। उसने मेरे हाथ को पकड़ रखा था लेकिन अब उसे छोड़ दिया था, जैसे उम्मीद ने उसका साथ छोड़ दिया हो। बस सूनी आँखों से छत को देख रही थी, जैसे बस नियति का इन्तजार करना था, लेकिन बाकी लोग उसकी इस हालत से नावाकिफ थे. उस लड़की का मुंह सूख गया था, कुछ उसके समझ में नहीं आ रहा था, कभी महक को देखती, कभी दूसरी सेल्स गर्ल, लेकिन कनखियों से मेरी निगाह गुंजा पर पड़ी



और गुंजा जड़ हो गयी थी, एकदम संज्ञा शून्य। उसने मेरे हाथ को पकड़ रखा था लेकिन अब उसे छोड़ दिया था, जैसे उम्मीद ने उसका साथ छोड़ दिया हो। बस सूनी आँखों से छत को देख रही थी, जैसे बस नियति का इन्तजार करना था, लेकिन बाकी लोग उसकी इस हालत से नावाकिफ थी।



और मैं समझ रहा था उसकी हालत को, कितनी मुश्किल से वो हादसे वापस आयी थी, धीरे धीरे सामन्य हो रही थी, लेकिन एक बार फिर वही लौट गयी थी।



और फिर किसी ने टीवी खोल दिया।



वहां तो एकदम आग लग हुयी थी, एक ऐंकर चीख रखी, ' पुलिस लड़कियों के नाम क्यों नहीं बताती , प्रेस के सामने उन लड़कियों को पेश करने में क्या डर है, क्या वह बता देंगी उनके साथ क्या हैवानियत हुयी। जागो, जागो कौन है हमारी होली को बर्बाद कर रहा है, मालूम आप सब को है, हर बार हमारे धार्मिक स्थल त्यौहारों पर ही हमला क्यों होता है '



नीचे रनर चल रहा था, पूरी शहर में तनाव, कई जगह दुकाने फूंकी गयी, पूरे शहर में पुलिस की गस्त जाती, अघोषित कर्फ्यू थोड़ी देर में नदेसर में एसटीएफ की प्रेस कांफ्रेस



दुसरे चैनल पे बनारस लोकल नेटवर्क आ रहा था और वहां और भी आग में घी नहीं प्रेट्रोल डाला जाला जा रहा था। पीछे पुराने बम्ब कांडो की

फ़ाइल पिक्चर दिखाई जा रही थी और कुछ किसी और शहर के दंगो की, और उसी बैकग्राउंड में एक टीका वीका लगाए जो किसी परम्पर मंच के अध्य्क्ष थे, प्रकट हुए। हर वैलेंटाइन को उनका मंच प्रकट हो जाता था, लड़के लड़कियों को पकड़ने के लिए



" जो कहते हैं आतंकी का कोई धरम नहीं होता, झूठ बोलते हैं, गद्दार है, लाशो की राजनीति करते हैं। और आज भी आतंकी का धर्म था वो तो एसटीएफ के लोगों ने जान पर खेल कर लड़कियों को बचा लिया, लेकिन हमारा भी धर्म है, आज हमें सिखा देना है, की हमने चुडिया नहीं पहन रखी हैं अगर हम अपने पर उतर आएं तो उनकी ऐसी की तैसी कर देंगे। आज समय घर में बैठने का नहीं है, क्या आप चाहते हैं की आपके बहन बेटियों की इजजत बचे तो बाहर निकलिए, वो दस हैं तो हम हजार है, '



और तभी मेरा फोन घनघनाया, डीबी का फोन था,

" तुरंत निकलो, और हाँ कार वार से नहीं, सड़क पे मुश्किल हो सकती है। "



मैं फोन लेकर कमरे के कोने में आ गया था, पहली बार डीबी घबड़ाये लग रहे थे, लग रहा था, वो भी बहुत टेंशन में हैं, लेकिन उन्होंने प्रॉब्लम का हल भी बताया, " गुड्डी से कहना, और हाँ पुलिस से अबकी कोई हेल्प नहीं मिलेगी, हाँ बहुत होगा तो सिद्दीकी के टच में रहना और मुझे इसी फोन पे '



मुझे लग रहा था की पुलिस की कोई गाडी, हमें गुंजा के घर पहुंचा देगी लेकिन वो भी नहीं, और एक बात और बोल के डीबी ने फोन काट दिया



" पन्दरह बीस मिनट के अंदर पहुँच जाओ और गुंजा का बहुत ध्यान रखना "



और उसी समय गुड्डी भी कमरे में दाखिल हुयी, एकदम बद हवास, ' हम लोगो को तुरंत निकलना होगा, हालत बहुत तेजी से खराब हो रही है /
 

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भाग ३२ - आपरेशन गुंजा + +

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मैं जमीन पे गिरा था, उसके पैरों के पास। गुड्डी से जो मैंने बाल वाला कांटा लिया था और उसने मजाक में मेरे बालों में खोंस दिया था, मेरे हाथ में था।

खच्च। खच्च। खच्च। दो बार दायें पैर में एक बार बायें पैर में।



वो आदमी लड़खड़ाकर गिर पड़ा।

उठते हुये मैंने उसके दायें हाथ की मेन आर्टरी में, पूरी ताकत से कांटा चुभोया और खून छल-छल बहने लगा। निकलते-निकलते मैंने देखा कि एक मोबाइल फर्श पे गिरा है। मैंने उसे तुरन्त उठा लिया और कमरे के बाहर।

उसी समय एक आँसू गैस का शेल खिड़की तोड़ता हुआ कमरे में।

20 मिनट हो चुका था। मुझे 5 मिनट में बाहर निकलकर आल क्लियर का मेसेज देना था, वरना कमांडो अन्दर। लेकिन ज्यादा तुरन्त की समस्या ये थी, ये दोनों पीछा तो करेंगे ही कैसे उसे कम से कम 5-10 मिनट के लिये डिले किया जाय।

दरवाजा बन्द करके मैंने टूटा हुआ ताला उसमें लटका दिया- ऐडवांटेज एक मिनट।

मैंने गुड्डी से जो चूड़ियां ली थी, सीढ़ी की उल्टी डायरेक्शन में मैंने बिखरा दी और कुछ एक कमरे के सामने। अगर वो कन्फुज हुये तो- ऐडवांटेज दो मिनट।



मैं वापस दौड़ता हुआ सीढ़ी की ओर। तीनों लड़कियां सीढ़ी के पार खड़ी थी।

दोनों लड़कियां, डरी सहमी, सीढ़ीा के दरवाजे के पीछे चिपकी, दीवाल से सटी, कातर हिरणी की तरह, देख रही थीं। डर के मारे उनका चेहरा अभी भी सफ़ेद था, और गुंजा के पास पहुँचते ही, दोनों ने गुंजा के हाथ को कस के पकड़ लिया और जहाँ से गुंजा आयी थी, जहाँ तीनो अभी पल भर पहले बॉम्ब के ऊपर बैठायी गयी थीं, बस उधर ही देख रही थीं।

चुम्मन की पहले गरजती हुयी आवाज, ' “लड़कियां कहां गईं?” देख जायेंगी कहां? यहीं कहीं होगीं, ढूँढ़ जल्दी…” उन्होंने सुनी थी और दहस गयी थीं, और फिर जो मैंने कांटा चुभोया चुम्मन के पैर में तो उसकी हलकी सी चीख भी सुनी, लेकिन वो जानती थीं, खतरा टला नहीं है, बॉम्ब अभी भी क्लास में लगा है और चुम्मन को पता चल गया है की वो सब क्लास से बच के निकल भागी हैं।

मुझे देख के गुंजा ने कस के दोनों लड़कियों का हाथ कस के दबा दिया और डरी हुयी भी उसके चेहरे पे एक छोटी सी, नन्ही सी मुस्कान दौड़ गयी।

लेकिन डर मैं भी रहा था,

चुम्मन से भी और उस से ज्यादा होने वाले कमांडो हमले से। और चुम्मन को जो मैंने पल भर के लिए देखा था, मान गया था मैं, जबरदस्त किलर इंस्टिंक्ट, पावर पैक्ड, और अँधेरे में भी गजब का निशाना। लाइटर की हिलती डुलती रौशनी में भी अगर मैंने पालक झपकते कस के गुंजा को अपने नीचे दबोचा नहीं होता और पूरी तरह अपनी देह से छाप नहीं लिया होता, पक्का वो चाक़ू, गुंजा के दिल में पैबस्त होता। देह से चिपकी टाइट जींस, टाइट टी शर्ट में उसकी एक मसल्स साफ़ साफ़ झलक रही थीं, मैंने उसके एक पैर और हाथ में जो काँटा एकदम आर्टरी में चुभोया था, दूसरा होता तो उसका एक हाथ पैर बेकार हो चुका होता, लेकिन मैं जानता था की बस थोड़ी देर अरे वो हम लोगों के पीछे होगा।

चुम्मन जानता था की उसका पूरा प्रोटेक्शन वो तीनों लड़कियां हैं और जब तक लड़कियां उसके कब्जे में है, कोई शायद ही गोली चलाये, और वो निगोशिएट कर सकता है, लेकिन अगर लड़कियां एक बार निकल गयीं तो डी बी से ज्यादा सिद्द्की की जो अबतक छप्पन वाली रेपुटेशन थी, उसका बचना मुश्किल था, इसलिए मैं जानता था की वो कुछ भी कर के तीनो लड़कियों को पकड़ने की फिर से कोशिश करेगा, और उसकी दोनों फूली जेबों से मुझे अंदाज लग गया था की उसके एक जेब में कट्टा नहीं रिवाल्वर है और दूसरी में बॉम्ब का रिमोट। और एक दो चाक़ू तो जरूर और उसने रख रखा होगा,

इसलिए उसका लड़कियों से सामना होना जरूरी नहीं है, बस एक बार विजुअल कांटेक्ट हो जाए, फिर तो जिस फुर्ती से उसने चाक़ू गुंजा के ऊपर अँधेरे में फेंका था, कोई न कोई लड़की या मैं चाक़ू का शिकार का बनता, और उसके बाद बाकी लड़कियां भी पकड़ी जातीं,

और जो डाइवरसन टूटे ताले और चूड़ियों से मैंने किया था वो भी बहुत देर तक टिकने वाला नहीं था, तो उसकी नजर में आने के पहले हम सब को निकल लेने में ही भलाई थी।

लेकिन चुमन से कम खतरा कमांडो से नहीं था। जिस तरह जब हम लोग कमरे से निकले उसके पहले आंसू गैस का गोला खिड़की तोड़ते हुए आया, ये साफ़ था की अब पांच मिनट के अंदर खिड़की से कमांडो घुस सकते हैं, लेकिन उन्हें मेरे बारे में कुछ पता नहीं है और लड़कियों के पास मुझे देख के हो सकता है कोई शाप शूटर गोली चला दे।

इसलिए बस किसी तरह जल्द से जल्द मुझे इन तीनो लड़कियों के साथ बाहर निकल लेना था, लेकिन अब दो बातें थी। एक तो चढ़ते समय गुंजा और उसकी सहेलियों की बचाने की बात थी, और एड्रिनेलिन पूरी तेजी पर था, लेकिन अब एक बार मिशन हो जाने के बाद वो बात नहीं रहती, और दूसरे खुद को हैंडल करना अकेले आसान होता है, लेकिन साथ में तीन लड़कियां हो और उनकी जान पर भी बनी हो तो खतरा तीन गुना ज्यादा बढ़ जाता है।



एक बार मैंने उन तीनो को देखा, गुंजा दोनों के बीच में, और गुंजा का हाथ दोनों कस के पकडे थीं, जैसे मेले की भीड़ में बच्चे माँ का हाथ कस के पकडे रहते हैं, कहीं बिछुड़ ना जाएँ और गुंजा ने मेरी ओर इशारा करके कुछ कहा तो उन दोनों डरे हुए चेहरों पर एक कमजोर सी मजबूर मुस्कान छा गयी।

एक लड़की जो सबसे पहले बेंच पर से उठी थी, और जिसके कान में गुंजा ने अभी कुछ बोला था, कुछ मुझसे, कुछ अपनी सहेलियों से बोली - “चलें नीचे?”



मैंने कहा- “अभी नहीं…” और सीढ़ी का दरवाजा बन्द कर दिया।

पीछे से जोर-जोर से दरवाजा खड़खड़ाने की आवाज आ रही थी।

मैंने बोला- “ये जो कापियों का बन्डल रखा है ना उसे उठा-उठाकर यहां रखो…”



वो बोली- “मेरा नाम महक है। महक दीप…”

मैंने कहा- “मुझे मालूम है। लेकिन प्लीज जरा जल्दी…” और जल्दी-जल्दी कापियों से जो बैरीकेडिंग हो सकती थी किया।

तीसरी लड़की से मैंने रस्सी के लिये इशारा किया और उसने हाथ बढ़ाकर रस्सी पास कर दी। ऊपर की सिटकिनी से बोल्ट तक फिर एक क्रास बनाते हुये। बीच में जो भी टूटी कुर्सियां, फर्नीचर सब कुछ, कम से कम 5-6 मिनट तक इसे होल्ड करना चाहिये।

ये दरवाजा हमारा पहला प्रोटेक्शन था, कितना भी कमजोर क्यों न हो, लेकिन कुछ तो था।



सीढ़ी पर अँधेरा था, जाले, कबाड़, और एक दो टूटी सीढ़ी और हम चार लोगों को उतर के नीचे के दरवाजे तक पहुंचना था, तो तीन चार मिनट तो लगना ही था और अगर तब तक कहीं चुम्मन इस सीढ़ी के छत वाले दरवाजे पर अपने चमचे के साथ पहुँच जाता तो, उसे सीढ़ी से नीचे उतरना भी नहीं है। मैं अँधेरे में चुम्मन के चाक़ू का निशाना देख चुका था और यहाँ तो हम सब की पीठ उस की ओर होती तो बचने का कोई चांस नहीं था।



बस मुझे मालूम था, की जो मैंने चुम्मन के पैरों में काँटा चुभोया था, उसका एक फायदा तो होगा की पैर से मार के अब वो ये दरवाजा आसानी से नहीं तोड़ पायेगा, और थोड़ा भी बैरकेडिंग में ताकत होगी तो हम लोगों को निचले दरवाजे तक पहुँचने का टाइम मिल जाएगा।

तीसरी लड़की से न मैंने नाम पूछा था न उसने बताया, लेकिन बिन बताये, मुझे पता चल गया था की वो शाज़िया है, एक मामले में मेरी गुंजा के कान काटती और एक मामले में गुंजा को टक्कर देती। सुबह से कितनी बार तो गुंजा उसका गुणगान कर चुकी थी, गाली देने में और होली में मस्ती में सिर्फ अकेली शाज़िया थी जो गुंजा के भी कान काटती थी और फागुन लगते ही उसकी होली शुरू हो जाती थी, और ' बिग बी ( बिग बूब्स ) के मामले में वो दोनों अपने से बड़ी दर्जा दस वालियों को भी पीछे छोड़ देती थीं, हंसती तो गालों में गड्ढे पड़ते, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे, खूब लम्बे बाल, गुंजा के बूब्स पर जो दसो उँगलियों के निशान थे वो शाज़िया के ही थे।

लेकिन इस समय सब हंसी खिलंदरा पन गायब था, डर अभी भी उसके चेहरे पर था, पर धीरे धीरे मेरे साथ डर कम होता जा रहा था और रस्सी लगाने, पूरी सीढ़ी पर से टूटे फूटे कबाड़ ला के रस्सी से बाँध के बैरिकेड को स्ट्रांग करने में वो मेरे साथ लगी थी, और गुंजा और महक पुरानी कापियों के बंडल को एक के ऊपर रख के उस को सपोर्ट दे रही थीं।



दो तीन मिनट के अंदर हम लोगों ने सीढ़ी के ऊपर वाले दरवाजे को अच्छी तरह से ब्लाक कर दिया और फिर नीचे की ओर।
Phagun ke din chaar mene already padhi hui hai, is wali me kuch badlav honge ya same rahegi.
 
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Phagun ke din chaar mene already padhi hui hai, is wali me kuch badlav honge ya same rahegi.
Bahoot jyada Badlaav hai karib 40 % naya hai, kayi part naye hain aur kayi ka role badh gaya hai . erotica ke saath action and romance ka part bhi jyada hai, ek baar try kar ke dekhiye,
 
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