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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३४ - मॉल में माल- महक पृष्ठ ३९८

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Sutradhar

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गुंजा
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लेकिन उसके दस पंद्रह मिनट पहले, इंजेक्शन के बाद का असर था शायद,थोड़ी तन्द्रा, खुमारी सी और मैं अधलेटा पहले जुमहाने लगा फिर सो जैसा गया। और मुझे सोता देख कर, महक, सेल्स गर्ल्स, गुंजा सब दबे पाँव बाहर खिसक ली, रह रह कर पक्षियों के कलरव की तरह उनकी चहचाहट दरवाजे से छन छन कर हलकी सी आ रही थी, कुछ देर बाद मेरी आँख खुली, अब तबियत एकदम फ्रेश लग रही थी, थकान,दर्द सब गायब हो गया था। लग रहा था इंजेक्शनों का असर हो चुका था। किसी तरह उस मसाज टेबल से मैं नीचे उतरा, अंगड़ाई ली, उँगलियाँ चटकाईं और दरवाजे की ओर देखने लगा।



उन भयावह यादो से अब मैं अपने को आजाद कर रहा था
बस दरवाजा खुल गया।
गुंजा,
एक पल के लिए वहीँ खड़े खड़े मुस्करायी, फिर पैरो से पीछे की ओर मार के दरवाजा बंद किया, और लगभग दौड़ती हुयी, सीधे मेरी अँकवार में

और सुबकने लगी, बस बिना कुछ बोले,



आंसू उसके गालों को गीला करते मेरे कंधे पर गिर रहे थे, और मैंने भी कस के उसे भींच लिया। हलके हलके उसकी पीठ सहलाता रहा, अपने होने का अहसास दिलाते, मेरे उँगलियाँ उसके फूल जैसी देह पर फिसल रही थीं और जितनी जोर से मैं भींच रहा था उससे ज्यादा जोर से वो चिपकी थी।



न उसके आंसू थम रहे थे, न मैंने उन्हें रोकने की कोई कोशिश की।



जिस हादसे से वो गुजरी थी, जहाँ बचने का जरा भी चांस नहीं था, खिड़की रोशनदान उमीदों के एकदम बंद थे, कोई एक छोटी से किरण भी नहीं आ रही थी, वहां से बस बच कर निकली थी, मौत जैसे सहला कर निकल जाए, जो लड़की अभी ढंग से कैशोर्य में भी न हो उसे ये सब देखना पड़े



लेकिन मैं सोच रहा था, अबतक बहुत कोशिश कर के सायास गुंजा ने अपने डर को दबोच कर पिंजड़े में कर के रखा था, लेकिन जरूरी था यह की यह सब एक बार बाहर निकल जाए, अब तक छेड़खानी कर के, सहेलियों के साथ हलकी फुल्की बातें कर के, जैसे यह न दिखाना चाहती हो की उसे कुछ हुआ भी है, पर अब,



और सुबकना अब हिचकियों में बदल गया था , और धीरे धीरे उन्होंने शब्दों की शक्ल ली



" जीजू, अगर तुम न आते, सच में " और फिर हिचकियाँ

मैं सिर्फ उसकी पीठ थपथपा रहा था,



" जीजू अगर तुम न आते सच, बस दो चार मिनट की देरी भी हर होती, "



और अब मैं काँप गया। वो मंजर मेरे सामने फिर से नाचने लगा और जो बात इन लड़कियों ने बताई थी की कैसे शाजिया का फोन छिना, महक के सीने के ऊपर टॉप पर अपना चाक़ू लगा के धमकया और चलने के पहले बोला, बस पांच मिनट और , ये पुलिस वाले बहुत चालाक बन रहे हैं न बस पांच मिनट और उसके बाद तुम तीनो ऊपर, धड़ाम



" कैसे नहीं आता मैं, होली के बाद फिर होली कैसे खेलता "



एक पल के लिए वो मुस्करायी, लेकिन फिर डर के बादलों ने चांदनी की मुश्के कस दी। फिर वह उन पलों में वापस हो गयी लेकिन हल्की सी मुस्कराहट उसके चेहरे पर खेलने लगी, मेरे गाल पर एक ऊँगली फिराकर बोली,

' लेकिन एक बार तू आ गया न तो बस मुझे लग गया, अब तो मेरा कुछ नहीं हो सकता, मैंने हाथ दबा के शाजिया और महक को भी अश्योर किया और जो आपने इशारा किया तो बस मैंने पहले शाजिया को और फिर महक को,



धुप छाँह का खेल चल रहा था, एक बार फिर से गुंजा उदास हो गयी। कुछ देर बाद खुद ही बोली, " आप के साथ होली अधूरी छोड़ के मैं जो आयी तो बहुत अफ़सोस हो रहा था और फिर अचानक ये डर लगने लगा की तुझ से दुबारा मिलूंगी की नहीं जैसे कोई अपशकुन की आहत आ रही हो "



मैं सिर्फ उसके बाल सहला रहा था और धीरे धीरे उसके कान में बोल रहा था अच्छा वो सब छोडो लेकिन जब चुम्मन आया और चाक़ू निकाला तब डर

नहीं लगा।



इतनी देर बाद वो खिलखिलाई, एकदम नहीं, तुम तो आ ही गए थे, अब सब जिम्मेदारी तेरी थी।



और जब सीढ़ी पर गोली चल रही थी, मैंने फिर पूछा



" एकदम नहीं यार तेरे रहते क्या डरना और जब शाजिया और महक नहीं डर रही थीं ,तेरी टांग खींच रही थीं तो मैं क्यों डरती, " हँसते हुए वो हसंनि बोली



शैतान का नाम लो, बल्कि शैतान की मौसी का नाम लो और वो हाजिर, उसी तरह झटाक से दरवाजा खोल के महक घुसी और साथ में एक सेल्स गर्ल

महक ने हम दोनों को चिपके देखा तो छेड़ा, अभी तक सिर्फ चुम्मा चाटी, चिपका चिपकी चल रही है या कुछ हुआ भी, और सेल्सगर्ल से बोली,



" यार जरा एक बड़ी शीशी वैसलीन की ले आना, नहीं, बल्कि के वाई जेली की एक ट्यूब उठा लाओ। "



" अरे नहीं दी, आर्गेनिक का ज़माना है, थूक से बढ़िया कुछ नहीं, जब हम लोग सुई के पतले छेद में लुजलुज लुजलुज धागा घुसेड़ सकते हैं तो इनका तो एकदम कड़ा तना है, " सीधे मेरे बल्ज को घूरती हुयी वो वो दुष्ट बोली। पर जवाब मेरी ओर से गुंजा ने दिया,

" कमीनी तेरे चक्कर में तो, जरा दो मिनट कोई चैन से चुम्मा चाटी तो कर नहीं सकता आगे की रील कैसे चलेगी। और अब जब होगा तो तेरे सामने होगा, होली के बाद जब जीजू आएंगे और तेरा शाजिया का भी नंबर लगेगा, जीजू लेते नहीं है चीथड़े चीथड़े कर देते हैं, चार दिन चल नहीं पाओगी। स्साली "

" अरे तो क्या डर है, मेरे तेरे यार ने पन्दरह दिन की छुट्टी तो करवा दी है न " हँसते हुए महक बोली।



लेकिन तबतक धड़ाक से दरवाजा खुला और हांफती घबड़ायी दूसरी सेल्स गर्ल अंदर आयी और इशारे से पहली वाली को अपने पास बुलाया , कान में कुछ फुसफुसाया और अपने फोन में कोई मेसेज दिखाया,



और वो सेल्सगर्ल भी एकदम सहम गयी, जैसे उसने भूत देख लिया हो। बस उसके मुंह से मुश्किल से यही निकला



" तो, अब "



कुछ पल पहले जो खुल के मजाक कर रही थी, छेड़ रही थी, खिलखिला रही थी, अब एकदम जड़। जैसे उसके गोरे चिकने चेहरे पर किसी ने कालिक पोत दी हो। और तब तक उस लड़की के फोन पर भी मेसेज आया उसके घर से, और उसे पढ़ते ही उसके पैर जैसे पानी के बने हो एकदम ढीले पड़ गए, सांस फूलने लगी और उसने फोन सीधे मेरे हाथ में पकड़ा दिया,



' तुरंत घर चली आओ । महौल खराब हो रहा है, बहुत ज्यादा टेंशन है, हर जगह पुलिस है, लोग कह रहे हैं कई जगह दंगा हो गया है, बस कर्फ्यू लगने वाला है, टीवी चैनल वाले दिखा रहे हैं। कुछ भी हो सकता है, हम सब के बगल वाला मोहल्ला तो तुम जानती हो कैसेलोग है, उधर से मत आना, बस . उस लड़की का मुंह सूख गया था, कुछ उसके समझ में नहीं आ रहा था, कभी महक को देखती, कभी दूसरी सेल्स गर्ल, लेकिन कनखियों से मेरी निगाह गुंजा पर पड़ी



और वह जड़ हो गयी थी, एकदम संज्ञा शून्य। उसने मेरे हाथ को पकड़ रखा था लेकिन अब उसे छोड़ दिया था, जैसे उम्मीद ने उसका साथ छोड़ दिया हो। बस सूनी आँखों से छत को देख रही थी, जैसे बस नियति का इन्तजार करना था, लेकिन बाकी लोग उसकी इस हालत से नावाकिफ थे. उस लड़की का मुंह सूख गया था, कुछ उसके समझ में नहीं आ रहा था, कभी महक को देखती, कभी दूसरी सेल्स गर्ल, लेकिन कनखियों से मेरी निगाह गुंजा पर पड़ी



और गुंजा जड़ हो गयी थी, एकदम संज्ञा शून्य। उसने मेरे हाथ को पकड़ रखा था लेकिन अब उसे छोड़ दिया था, जैसे उम्मीद ने उसका साथ छोड़ दिया हो। बस सूनी आँखों से छत को देख रही थी, जैसे बस नियति का इन्तजार करना था, लेकिन बाकी लोग उसकी इस हालत से नावाकिफ थी।



और मैं समझ रहा था उसकी हालत को, कितनी मुश्किल से वो हादसे वापस आयी थी, धीरे धीरे सामन्य हो रही थी, लेकिन एक बार फिर वही लौट गयी थी।



और फिर किसी ने टीवी खोल दिया।



वहां तो एकदम आग लग हुयी थी, एक ऐंकर चीख रखी, ' पुलिस लड़कियों के नाम क्यों नहीं बताती , प्रेस के सामने उन लड़कियों को पेश करने में क्या डर है, क्या वह बता देंगी उनके साथ क्या हैवानियत हुयी। जागो, जागो कौन है हमारी होली को बर्बाद कर रहा है, मालूम आप सब को है, हर बार हमारे धार्मिक स्थल त्यौहारों पर ही हमला क्यों होता है '



नीचे रनर चल रहा था, पूरी शहर में तनाव, कई जगह दुकाने फूंकी गयी, पूरे शहर में पुलिस की गस्त जाती, अघोषित कर्फ्यू थोड़ी देर में नदेसर में एसटीएफ की प्रेस कांफ्रेस



दुसरे चैनल पे बनारस लोकल नेटवर्क आ रहा था और वहां और भी आग में घी नहीं प्रेट्रोल डाला जाला जा रहा था। पीछे पुराने बम्ब कांडो की

फ़ाइल पिक्चर दिखाई जा रही थी और कुछ किसी और शहर के दंगो की, और उसी बैकग्राउंड में एक टीका वीका लगाए जो किसी परम्पर मंच के अध्य्क्ष थे, प्रकट हुए। हर वैलेंटाइन को उनका मंच प्रकट हो जाता था, लड़के लड़कियों को पकड़ने के लिए



" जो कहते हैं आतंकी का कोई धरम नहीं होता, झूठ बोलते हैं, गद्दार है, लाशो की राजनीति करते हैं। और आज भी आतंकी का धर्म था वो तो एसटीएफ के लोगों ने जान पर खेल कर लड़कियों को बचा लिया, लेकिन हमारा भी धर्म है, आज हमें सिखा देना है, की हमने चुडिया नहीं पहन रखी हैं अगर हम अपने पर उतर आएं तो उनकी ऐसी की तैसी कर देंगे। आज समय घर में बैठने का नहीं है, क्या आप चाहते हैं की आपके बहन बेटियों की इजजत बचे तो बाहर निकलिए, वो दस हैं तो हम हजार है, '



और तभी मेरा फोन घनघनाया, डीबी का फोन था,

" तुरंत निकलो, और हाँ कार वार से नहीं, सड़क पे मुश्किल हो सकती है। "



मैं फोन लेकर कमरे के कोने में आ गया था, पहली बार डीबी घबड़ाये लग रहे थे, लग रहा था, वो भी बहुत टेंशन में हैं, लेकिन उन्होंने प्रॉब्लम का हल भी बताया, " गुड्डी से कहना, और हाँ पुलिस से अबकी कोई हेल्प नहीं मिलेगी, हाँ बहुत होगा तो सिद्दीकी के टच में रहना और मुझे इसी फोन पे '



मुझे लग रहा था की पुलिस की कोई गाडी, हमें गुंजा के घर पहुंचा देगी लेकिन वो भी नहीं, और एक बात और बोल के डीबी ने फोन काट दिया



" पन्दरह बीस मिनट के अंदर पहुँच जाओ और गुंजा का बहुत ध्यान रखना "



और उसी समय गुड्डी भी कमरे में दाखिल हुयी, एकदम बद हवास, ' हम लोगो को तुरंत निकलना होगा, हालत बहुत तेजी से खराब हो रही है

कोमल मैम

इतने भयावह अनुभव के बाद इतनी शरारती और शोखियां तो कल्पना से परे हैं।

लेकिन आपने सब कुछ इतने विस्तार से और सहजता से लिखा है कि की बस चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है।

अब तो जल्दी से अगले अपडेट का इंतजार है।

सादर
 
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