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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३४ - मॉल में माल- महक पृष्ठ ३९८

अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, आनंद लें, लाइक करें और कमेंट जरूर दें
 

motaalund

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Jabardast. Manjli aur Sweta ne to bat bhi liya. Upar vala hissa aur niche vala hissa kapde fatenge. Are abhi to muh bole jija he. Bad me pakke vale. Amezing...

Aur mammy ke sath guddi ki shararat jabardast. Bechare anand babu ji mammy. Mammy bolne par bachoge thodi. Ragdai to puri. Pure update me anabd babu ke mahtari par to phd karva di.

Jamai raja ke lie mannt wow. Maza aa gaya. Amezing...

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सबके हिस्से में कुछ न कुछ आया..
लेकिन गुड्डी की मम्मी ने अभी तक अपना दावा नहीं ठोंका...
 

motaalund

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Jabardast shararat mazak. Mummy to panda vala ashirvad dilvane ke pure pure gun batva die. Jese ashirvad ek bar aur dilva ke hi man ne vali ho. Bechare Anand babu bade sidhe he.
Aur inki muh boli shali bhi kuchh kam nahi he. Moke pe choka marne ke pure firag me he.
Lekin guddi aur chanda bhabhi to kuchh aur hi plan me he. Yaha mard he hi kon. Has has ke pet dukh gaya. Amezing shararat erotic mazak.

Is vale part me to conversation me bahot sare mast daylog he. Kis kis ko point karti

Par maza aa gaya.

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यही एक कहानी के पूर्णता का परिचायक है...
वरना कई नीरस कहानियां इसी फोरम में मौजूद है...
जहाँ हीरो सुपरमैन और दिन-रात चुदाई में लगा रहता है...
 

motaalund

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एकदम सही बात है यह अक्सर जगह पर छोटे बच्चों का इस्तेमाल दो बार होता है

एक तो सहबाला के रूप में और दूसरे छोटे बच्चे को नयी उतरी वधु के गोद में डाला जाता जाता है , बिना कहे यह कह कर की इस वंश परम्परा को आगे बढ़ाना अब तुम्हारी जिम्मेदारी है

सेक्स सिर्फ देह का खेल नहीं है, झणिक आनंद नहीं है, अन्य जातियों, प्रजातियों की तरह मानव जाति की कोशिश है,.... विलुप्त होने के विरुद्ध। और यही सन्देश बिलकुल आसान ढंग से दिया जाता है

लेकिन लड़के के छोटे भाई का, विशेष रूप से अगर किशोर हो, एकलौता हो, घर में कोई ननद भी न हो. आने वाली भाभी का बालसखा भी वही हो, और पढ़ने लिखने में तेज हो, इमेज सीधे की हो और लड़कियों को मालूम हो की वो काटेगा नहीं तो उसकी रगड़ाई तय है।
काटने के बजाय उसी की कटेगी...
 

motaalund

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यह वीडियों मैंने इसलिए भी शेयर किये की बहुत से लोग जब अब महानगरों में है या जिन्होंने वह शादियां नहीं देखी हैं उन्हें भी अहसास हो जाये की जो बात हो रही है वो सिर्फ किस्सा कहानी नहीं है

दूसरे परम्पराएं बदलती हैं, टेक्नोलॉजी का असर आता है जैसे मोबायल की रिकार्डिंग

और सबसे बड़ी बात रोल,... लड़को का रोल सिर्फ शांत रहना और बिन बोले कन्याओं का महिलाओं से छेड़े जाने का आनंद लेना है।

मैं कहती आँखन की देखी
और चलचित्र की तरह नजरों के सामने सारे सीन चलने लग जाते हैं...
 

motaalund

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अब शादियां इवेंट बन गयी है

जो कुलाचार था, जिन रस्मों का काम बूआ या नाउन करती, अक्सर सिर्फ महिलाये होती थीं इसलिए मजाक भी ज्यादा खुल के होते थे अब किसी बड़े होटल में होने वाली इवेंट हो गयीं है, हल्दी ऐसी रस्म में ड्रेस कोड होता है।
और उन सब का नेग भी...
 

motaalund

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आपका कमेंट मुझसे ज्यादा आपके बारे में कहता है

आप कितने सहृदय, दूसरों के गुण ढूंढ कर देखने वाले हैं।

लेकिन एक बात इस थ्रेड के बारे में ( जो मेरे बाकी थ्रेडस पर भी लागू होती हैं ), ... मेरी कहानियां थोड़ी नटखट शरीर बच्चों की तरह हैं, हरदम काबू में नहीं रहती। तो मैंने सोचा तो यही था की इस को जस का तस,... क्योंकि दो कहानियां पहले ही चल रही थीं, और उसमे भी समय तो लगता है

तो बस, लेकिन बस एक बार कहानी शुरू हो जाए तो वो हाथ से फिसल जाती है और फिर किधर भागेगी ठिकाना नहीं रहता। कहानी का नेचर अगर सीरियल की तरह हो, साल दर साल वाला तो कई बार आगे के भागों में छोटी मोटी विसंगतिया और कंटीन्यूटी की गलतियां भी आ जाती हैं इसलिए लगता है की उसे ठीक कर ले

तो जैसा आपने सही समझा, कहानी के सूत्र और सूत्रधार तो वही रहेंगे , लेकिन डिटेल्ड ट्रीटमेंट में एम्फेसिस में थोड़ा फरक तो होगा. बाद के भागों में कई बार गाथा में गुड्डी के परिवार का जिक्र आया ( मम्मी, छोटी बहने ) लेकिन पिछली बार शुरू में उनका जिक्र बहुत ही कम था। इसलिए मैंने सोचा की आने वाले दिनों की पदचाप की आहट, हल्की ही सही, कहानी के शुरू के भागों में आना चाहिए इसलिए थोड़ा परिवर्धन करना पड़ा।

आगे के किस भाग में ज्यादा बदलाव होगा , किस में कम यह तो उस भाग को पोस्ट करते समय ही पता चलेगा , लेकिन मैं गुजारिश कर सकतीं हूँ की आप का साथ बना रहे।

दूसरी बात जो आपने मेरे बारे में कही थी और मैंने माना की वह आपको ही ज्यादा दर्शाता है, क्यों

और अब जवाब के लिए मैं गोस्वामी जी का सहारा लेती हूँ ,

निज कवित्त केहि लाग न नीका, सरस होय अथवा अती फीका। जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं॥6॥

( रसीली हो या अत्यन्त फीकी, अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती? किन्तु जो दूसरे की रचना को सुनकर हर्षित होते हैं, ऐसे उत्तम पुरुष जगत् में बहुत नहीं हैं॥6॥)

तो आप उन विरले लोगों में है

धन्यवाद, आभार
और जो कविता की रचना न जानता हो... वो तो दूसरों के कविताओं का रसास्वादन खुल के ले सकता है...
और उनकी तारीफ भी...
 

motaalund

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माला डी माहवारी के दौरान ही शुरू की जाती है और आई पिल देह संबंध के बाद लेकिन २४ घंटे के भीतर,

और आनंद बाबू के मायके में गुड्डी कहाँ दवा की दूकान ढूंढती,

और जैसा समझदार जानते हैं लड़कियां अपनी भावनाएं कई ढंग से व्यक्त करती हैं तो आनंद बाबू के लिए यह इशारा भी रहा हो की अब डरने घबडाने की बात नहीं न उन्हें रबड़ का इंतजाम करने की जरूरत है,

किसी कवि ने कहा है

" कुण्डी मत खड़काना राजा, सीधे अंदर आना राजा :
ओहो.. long term planning...
 

motaalund

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एकदम, और गुड्डी की बात तो योर विश इज माई कमांड वाली बात है, इसलिए गुड्डी ने बता भी दिया खोल के समझा भी दिया की वह न तो आनंद बाबू के उस पाजामे से जलती है जहाँ कितनी रोटी खाने के बाद एक बूँद खून बनता है और कितने खून से एक बूँद धातु बनती है वो धातु उसने खुद आनंद बाबू के पजामे पर सुबह सुबह देखी थी

गुड्डी ने विस्तार से सोदाहरण व्याख्या करके इसलिए समझा दिया की उसे मालूम था की वरना ये लड़का बस यही सोचता रह जाएगा, " गुड्डी बुरा मान जायेगी " और गुड्डी के लिए भी फायदा अगले दिन अनाड़ी नहीं,... हाँ खिलाड़ी न हो लेकिन कुछ तो सीख चूका होगा चंदा भाभी की पाठशाला में।
बल्कि गुड्डी तो न करने पे बुरा मानने वाली है...
 
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