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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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और ये हक तो जन्म जन्मांतर का लगता है...बहुत बहुत धन्यवाद
कई बातें एक साथ चल रही थीं और दोनों पर स्पीकर फोन आन थे, इसलिए छुटकी और श्वेता की छेड़छाड़ भी साफ़ साफ़ पता चल रही थी। गुड्डी की मम्मी आनंद बाबू के जलवे से खुश थीं, और गुड्डी मम्मी पर जलवों का असर पड़ने से खुश थी और आनंद बाबू के लिए ख़ुशी का मतलब गुड्डी की ख़ुशी थी। वह चकोर की तरह बस उस चंद्रमुखी का मुख निहारते थे।
एक पार्ट ( मम्मी ) का अंत ही इस पंक्ति के साथ होता है
गुड्डी उसी हक से बोल रही थी जिस तरह से पत्निया पति के लिए बोलती हैं अपनी माँ से
रफू तो नहीं.. लेकिन हाँ... कड़ी के निरंतरता के लिए आवश्यक...एकदम सही कहा आपने
कहानी के एकदम शुरू में ही आने वाले दिनों की पदचाप दिखने लगे, भले ही मजाक में हो, भले ही बहुत हल्की हो,... तो इससे अच्छा क्या होगा। बहुत सी रफ़ूगीरी इसलिए भी करनी पड़ रही है।
शायद मैंने अलग अर्थ लगा लिया...नहीं नहीं कंटीन्यूटी की बात नहीं है शायद और साफ़ और डिटेल में लिखना चाहिए था।
आपको याद होगा, होली छत पर हुयी थी, तो गुड्डी और चंदा भाभी का घर ऊपर छत पर था. दूबे भाभी, संध्या भाभी का नीचे। और खुली छत ऊपर।
अब पार्ट दर पार्ट देखते हैं
पोस्ट ३७४ की अंतिम लाइन -
पर मेरी बात काटकर वो बोली। इत्ती खुश होने की बात नहीं है। अरे यार एक रात की बात है। चन्दा भाभी के यहाँ। उनका घर बहुत अच्छा है। कल तो तुम्हारे साथ चल ही दूँगी…”
तब तक हम लोग घर पहुँच गए थे।
यहाँ घर का मतलब घर के नीचे, रिक्शे से उतरकर ,
और सारी फोन की बातचीत यही हुयी
पार्ट ३७५ " मम्मी का फोन "
जैसे किसी आगे बढ़ती फ़ौज को हाल्ट का हुकुम सुनाया जाय, बस उसी तरह। मैं खड़ा. हम लोग घर पहुँच गए थे, गुड्डी और चंदा भाभी का घर ऊपर फर्स्ट फ्लोर पर था, हम लोग नीचे खड़े
पोस्ट ३७८
गुड्डी और मम्मी
हाँ जब तक हम लोग सीढ़ी चढ़ के ऊपर पहुंचे एक बार फिर गुड्डी का फोन बजा
दूसरी बात भी डेढ़ साल पहले की है और सावन की है और रहने की बात की ताकीद खुद आनंद बाबू ने की बाकी सब सिर्फ छेड़छाड़ है चिढ़ाना है या कुछ और ये गुड्डी की मम्मी ही जानती हैं।
और उनको हवा दे रही है गुड्डी...या सिर्फ चिढ़ाना, छेड़ना और इस बात का आनंद बाबू को अहसास दिलाना की गुड्डी की मम्मी को मालूम है की आनंद बाबू उनके जोबन जबरदंग पे लुभाये हैं और वो अप्राप्य भी नहीं हैं।
इन परिदृश्यों से आपने एकदम सही खाका पेश किया है और चहुंमुखी फागुन का असर चढ़ा है..आपका रिव्यू एक बार पढ़ने से मन नहीं भरता।
एक तो अपनी तारीफ़ किसे नहीं अच्छी लगती, और फिर तारीफ़ करने वाला एक मश्हूरो मारूफ लिखने वाला है जिनकी राय की हर शख्स कदर करता है सर आंखों पे उसका हर लफ्ज़ रखता है।
और दूसरी बात आप के साथ अतीत की गलियों में सफर करने का लुत्फ़ भी मिलता है। मेरी कहानियों में वो अतीत वो माटी की पुकार हलकी कशिश ही सही आती है और आप उसे दुहराकर और ताजा बना देते हैं और फिर लगता है लिखना अकारज नहीं गया।
लेकिन सबसे बड़ी बात आप सिर्फ क्या कहा गया उसपे जोर नहीं देते बल्कि कैसे कहा गया, कथ्य के साथ जो शिल्प है उस पर भी आपकी पारखी नजर जाती है।
आप के कमेंट पर सिर्फ एक रस्म पूरा करने वाला धन्यवाद देने से मन नहीं भरता बल्कि वो एक बतकही में तब्दील हो जाती है।
अब जो आपने होली के मंजरकशी की बात की,...
अब इस भाग में " खयी के पान बनारस वाला " में अनेक दृश्य हैं और जैसे पेंटिंग में कोलाज या फिल्मो में मोंताज होता है जहाँ कई दृश्य मिल कर एक अलग अहसास चित्रित करते हैं, बिलकुल उसी तरह, ... और उस में बनारस की गलियों का भी चित्र है, फगुनहट का , देर शाम का और उन के बैकग्राउंड में गुड्डी और आनंद की अनकही बढ़ती प्रणय बेल का,
और गली बनारस की पतली, संकरी लम्बी और दोनों ओर घर भी दुकाने भी, गलियों में से निकलती और संकरी गलियां, जैसे बात से बात निकलती है,...
यहाँ बात से बात निकलने की उपमा गली से निकलती गली की बात कहती ही है हमें टी. एस इलियट की मशहूर कविता की इन लाइनों की भी याद दिला देता है,
Streets that follow like a tedious argument
फागुन हो बनारस हो न हो, चाहे वह सेमी क्लासिकल होरी, धमार हो या शुद्ध भोजपुरी गाने,
गली के शुरू में ही जहाँ लग रहा था कोई गाने की बैठकी चल रही थी, एक मीठी मीठी आवाज आ रही थी होरी की,
कैसी होरी मचाई,...
इतते आवत कुँवरी राधिका, उतते कुँवर कन्हाई
खेलत फाग परस्पर हिलमिल, यह सुख बरनि न जाई
घर-घर बजत बधाई
और उस गाने ने ही आनंद और गुड्डी दोनों को ट्रांसफार्म कर दिया, ... खेलत फाग परस्पर हिलमिल,, बनारस का रस लेने के लिए सुनने वाले को रसिक होना पड़ता है, रस का अहसास होना चाहिए और गुड्डी तो ठेठ बनारसी और अपने रस में उसने आनंद को भी मिला लिया,...
गुड्डी ने जिस तरह मुझे देखा, छरछरराती हजार पिचकारियां एक साथ चल पड़ी,.. बिना रंगे, रंगो से मैं नहा उठा,... हम दोनों आगे आगे पीछे से पीछा करती धीमी होती ठुमरी
अब इस समय गुड्डी या आनंद शायद कुछ भी बोलते तो रस भंग होता, सिर्फ पलकों का उठना गिरना, हलकी सी मुस्कान और बहुत हुआ तो हथेली का दबाना, दबना बहुत कुछ कह देता है,
एक चित्र है मुंडेर पर से रंग उंडेलने का,
एक बड़ी सी बिंदी, काजल भरी आंखे,... खिलखलाती हंसती,..मुंडेर से एक बड़ा लोटा गाढ़े गुलाबी रंग का,...
भांग की दूकान, गुलाल, रंग और पिचकारी की दुकाने,... मैंने कोशिश की है एक फागुनी शाम का चित्र खींचने की
और साथ में गुड्डी का छेड़ना, चिढ़ाना तो है ही लेकिन एक अनकही बात भी इस गली में होती है
गुड्डी के खींचने से मैं बच तो गया लेकिन एक दो छींटे मेरी भी सफ़ेद शर्ट पर
तभी बड़ी जोर की भगदड़ मची, ...
गुड्डी ने कस के मेरा हाथ पकड़ लिया और खिंच के एकदम पीछे, सट के चिपक के ढाल सी खड़ी हो गयी,
गुड्डी चिढ़ाती है तो बचाती भी है चाहे मुंडेर से गिरते रंग से हो, या फिर वृषभ देव से गली के रेले से,... आनंद से पहले उसे आहट हो जाती है आशंकित हो उठती है वो और सामने,
वामा सिर्फ पुरुष के लिए रमणी ही नहीं, उसकी शक्ति भी है ऊर्जा भी है उसे विश्वास भी दिलाती है।
एक बार फिर कोटिश आभार आपका, समय निकाल कर इस सूत्र पर आने का,... आने वाले हिस्सों में भी आप का साथ चाहूंगी,
धन्यवाद
आपके उत्तर भी एक नया परिप्रेक्ष्य और वास्तविकता पेश करते हैं...आनंद बाबू के भाई साहेब के विवाह वाले प्रसंग में जब गुड्डी और गुड्डी की मम्मी पहली बार मिलती हैं आनंद बाबू से तभी वह ऑफर मिल गया था एक के साथ एक फ्री वाला, पृष्ठ १९ पोस्ट १८६
दुहरा देती हूँ लाइने
" कल गुड्डी का डांस बहुत अच्छा था, .... " लेकिन जो जवाब गुड्डी की मम्मी ने दिया मैं सोच नहीं सकता था,
" बियाह करोगे इससे " वो सीरियस हो के बोली, भाभी ( गुड्डी की मम्मी )एकदम उसके पीछे पड़ी थी, चिढ़ाते बोलीं,
अरे आज शादी थोड़ी कर देंगे , बस यही मंडप में आज सगाई हो जायेगी, सब लोग हैं भी,... शादी तो तीन चार साल बाद,... पढ़ाई वढ़ाई हो जाए,... "
और फिर मेरे ऊपर चालू हो गयीं,
" घबड़ा मत,.. मैं हूँ न तबतक हमसे काम चलाना, सिखाय पढाय के पक्का कर दूंगी, जो लजाते हो न इतना "
असल में 'तुम्हारी मम्मी ' वाला झगड़ा शादी के बाद चलता है, लड़के के मम्मी को, अपनी सास को अगर नयी बहू, तुम्हारी मम्मी कह के बोले ( बोलती है तो या तो गुस्से में तंज में य चिढ़ाने में_) तो लड़के को हजम नहीं होता, लेकिन कई पुरुषो को सास को मम्मी बोलना अजीब लगता है।
लेकिन मेरे लिए ये मामला प्रेम वाले मामले में और टेढ़ा है,
प्रेम का मतलब ही है व्हेयर ईच इज बोथ.
जहाँ मैं और तुम का अहसास ही ख़तम हो जाए, कबीरा यह घर प्रेम का खाला का घर नहीं सीस उतारो भुई धरो तब पैठो घर माहीं।
सीस उतारो का मतलब ही है मैं का अहसास ख़तम होना, सिर्फ देह का मिलना नहीं नेह का जुड़ना,... और फिर तब मेरी और तेरी का क्या मतलब।
इसमें जीतने वाला भी हारता है..गर बाजी इश्क की बाजी है , जो चाहो लगा दो डर कैसा।
जीत गए तो क्या कहना, हारे भी तो बाजी मात नहीं .
इस खेल में हार कर ही जीत होती है, ... और आनंद बाबू इस रगड़ाई के बाद भी यही तो चाहते हैं उनका सपना भी यही है
" बस वो स्वाद एक सपना जगाता है ,... उसी घर में ये लड़की दुल्हन बनी, कोहबर में दही गुड़ खिला रही है और उसकी बहने छेड़ रही हैं,... लेकिन मैं सपने देखने वाला और वो सपनों को जमीन पर लाने वाली,..." ( पृष्ठ ३८ पोस्ट ३७२ )
बहुत बहुत आभार इतने अच्छे कमेंट्स के लिए और ये मेरे मन में भी और बाकी पाठको के मन भी भी कहानी के प्रति विश्वास जगाता है ,
धन्यवाद
अब तो आनंद बाबू को पेटीकोट साड़ी में हीं रात गुजारनी पड़ेगी...फागुन के दिन चार - भाग चार
चंदा भाभी
४६,६०९
" मम्मी बोलते हो तो बहुत अच्छा लगता है, खूब मीठा मीठा लगता है लगता है एकदम दिल से बोल रहे हो। "
जबतक मैं जी मम्मी बोलता फोन कट गया, लेकिन गुड्डी ने जिस प्यार से मुझे देखा, ...मै मान गया उसकी यह बात भी बाकी बात की तरह सही थी,
हाँ जब तक हम लोग सीढ़ी चढ़ के ऊपर पहुंचे एक बार फिर गुड्डी का फोन बजा और बजाय खोलने के उसने मुझे पकड़ा दिया, तेरे लिए ही होगा, मम्मी का फोन है।
उन्ही का था, बड़ी मिश्री भरी आवाज एकदम छेड़ने वाली चिढ़ाने वाली, बोलीं
" मम्मी इस लिए तो नहीं कहते की दुद्धू पीना यही, चल अबकी आओगे न होली के बाद, पिला दूंगी "
और जब तक मैं कुछ जबाब देता फोन कट गया था और हम लोग चंदा भाभी के घर पहुँच गए थे।चंदा भाभी का घर फर्स्ट फ्लोर पर था, गुड्डी के घर से सटा, सामने खूब बड़ी सी खुली छत। छत परसिर्फ यही दो घर थे,...
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वो मुझे चंदा भाभी के घर सीधे ले गई। वो मास्टर बेडरूम में थी। एक आलमोस्ट ट्रांसपरेंट सी साड़ी पहने वो भी एकदम बदन से चिपकी, खूब लो-कट ब्लाउज़।
उन्हें देखते ही गुड्डी चहक के बोली- “देखिये आपके देवर को बचाकर लायी हूँ इनका कौमार्य एकदम सुरक्षित है। हाँ आगे आप के हवाले वतन साथियों। मैं अभी जस्ट कपड़े बदल के आती हूँ…”
और वो मुड़ गई।
“हेहे। लेकिन। ये तो मैंने सोचा नहीं…” तब तक मेरी चमकी, मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, फिर भी मैं बोला।
“क्या?” वो दोनों साथ-साथ बोली।
“अरे यार मैं। मैं क्या कपड़ा पहनूंगा। और सुबह ब्रश। वो भी नहीं लाया…”
अपनी परेशानी मैंने गुड्डी और चंदा भाभी को बताई।
“ये कौन सी परेशानी की बात है कुछ मत पहनना…” चंदा भाभी बोली।
“सही बात है आपकी भाभी का घर है। जो वो कहें। और वैसे भी इस घर में कोई मर्द तो है नहीं। भाभी हैं, मैं हूँ। गुंजा है। तो आपको तो लड़कियों के ही कपड़े मिल सकते हैं। और मेरे और गुंजा के तो आपको आयेंगे नहीं हाँ…”
भाभी की और आँख नचाकर वो कातिल अदा से बोली, और मुड़कर बाहर चल दी।
“आइडिया तो इसने सही दिया। लेकिन आप शर्ट तो उतार ही दो। क्रश हो जायेगी और शाम से पहने होगे। अन्दर बनियाइन तो पहना होगा ना तो फिर। चलो…”
और मेरे कुछ कहने के पहले ही भाभी ने शर्ट के बटन खोल दिए। और खूँटी पे टांग दी।
बेडरूम में एक खूब चौड़ा डबल बेड लगा था। उसपे एक गुलाबी सी सिल्केन चादर, दो तकिये, कुछ कुशन, बगल में एक मेज, एक सोफा और ड्रेसिंग टेबल। साथ में एक लगा हुआ बाथरूम।
“छोटा है ना?” भाभी ने मुझे कमरे की ओर देखते हुए कहा।
लेकिन मेरी निगाह तब तक उनके छलकते हुए उभारों की ओर चली गई थी। मुश्कुराकर मैं बोला- “जी नहीं एकदम बड़ा है। परफेक्ट…”
“मारूंगी तुमको। लगता है पिटाई करनी पड़ेगी…” मेरी नजरों की बदमाशी पकड़ी गयी थीं। भाभी बोलीं।
“हाँ मेरी ओर से भी…” ये गुड्डी थी।
वो कपडे बदलकर वापस आ गयी थी। उसने घर में पहनने वाली फ्राक पहन रखी थी जो छोटी भी थी और टाईट भी। जिस तरह उसके उभार छलक रहे थे साफ लग रहा था की उसने ब्रा नहीं पहन रखी है।
“अरे वाह। आपको टापलेश तो कर ही दिया पूरा ना सही। आधा ही सही…”
गुड्डी आते ही चालू हो गई। पर चन्दा भाभी कुछ सोच रही थी।
“आप लुंगी तो पहन लेते हैं ना…” वो बोली।
“हाँ कभी कभी। है क्या?” मैंने पूछा। मैं भी पैंट पहनकर कभी सो नहीं पाता था।
“हाँ,... नहीं। वो गुंजा के पापा जब आते हैं ना तो कभी मेरी। मतलब वो भी कित्ते कपड़े लाये। और दो-चार दिन के लिए तो आते हैं। तो मेरी एकाध पुरानी साड़ी की लूंगी बनाकर,.. रात भर की तो बात होती है…”
“अरे पहन लेंगे ये। और बाकी। साड़ी क्या ये जो आप पहनी हैं वही क्या बुरी है…” गुड्डी ने बोला।
मुझे भी मजाक सूझा। मैंने भी बोला-
“ठीक है भाभी आप जो साड़ी पहने हैं वही और आखिर मैं भी तो दो कपड़े में ही रहूँगा। और आप फिर भी…”
“ठीक है चलिए पहले आप पैंट उतारिये…” भाभी ने हँसकर कहा।
“एकदम नहीं…” गुड्डी इस समय मेरे साथ आ गई थी-
“ये सही कह रहे हैं। पहले आपकी साड़ी उतरेगी। आखिर आप ने ही तो साड़ी की लूंगी बनाने का आफर दिया था…”
हँसकर वो बोली- “सही की बच्ची। कल तुमको और इनको यहीं छत पे नंगे ना नचाया तो कहना और वो भी साथ-साथ…”
गुड्डी ने मुझे आँख से इशारा किया। मैं कौन होता था उसकी बात टालने वाला। जब तक चन्दा भाभी समझें समझें, उनकीं साड़ी का आँचल मेरे हाथ में था। वो मना करती रही पर मैं जानता था की इनका मना करना कितना असली था कितना बनावटी। और दो मिनट के अन्दर उनकी साड़ी मेरे हाथ में थी।
लेकिन अब भाभी के हाथ में मेरी बेल्ट थी और थोड़ी देर में मेरी पैंट की बटन। मैंने झट से उनकी साड़ी लूंगी की तरह लपेट ली।
तब तक मेरी पैंट उनके हाथ में थी और वो उन्होंने गुड्डी को पास कर दिया। उसने स्लिप पे खड़े फिल्डर की तरह मेरे देखने से पहले ही कैच कर लिया और शर्ट के साथ वो भी खूँटी पे।
जब मैंने अपनी ओर देखा तब मुझे अहसास हुआ की गुड्डी और भाभी मुझे देखकर साथ-साथ क्यों मुश्कुरा रही थी। साड़ी उनकी लगभग ट्रांसपरेंट थी और मैंने ब्रीफ भी एकदम छोटी वी कट और स्किन कलर की। शेप तो साफ-साफ दिख ही रहा था और भी बहुत कुछ। सब दिखता है के अंदाज में।
चंदा भाभी ने अपनी हँसी छुपाते हुए गुड्डी को हड़काया-
“अच्छा चल बहुत देख लिया चीर हरण। कल होली में पूरी तरह होगा। पर ये बता की तुम दोनों ने बाजार में खाली मस्ती ही की या जो मैंने सामान लाने को कहा था वो लायी। जरूर भूल गई होगी…”
“नहीं कैसे भूलती, आपके देवर जो थे साथ में थे। अभी लाती हूँ…”
जैसे ही वो मुड़ी भाभी ने कहा- “अरे सुन ना। इनकी शर्ट पैंट सम्हालकर रख देना…”
“एकदम…” उसने खूँटी से खींचा और ले गई बछेड़ी की तरह। फिर दरवाजे पे खड़ी होकर मेरी शर्ट मुझे दिखाकर बोलने लगी-
“सम्हालकर। मतलब यहाँ पे गुलाबी और यहां पे गाढ़ा नीला…”
“हे मेरी सबसे फेवरिट शर्ट है…” लेकिन वो कहाँ पकड़ में आती। ये जा वो जा।
थोड़ी देर में वो बैग लेकर आई और भाभी को दिखाया। उसने भाभी के कान में कुछ कहा और भाभी ने झांक के बोला- “अरे अब तो कल मजा आ जायेगा…”
मैं समझ गया की उसने बियर की बोतल दिखाई होंगी।
अब तो लग रहा है कि आनंद बाबू की हीं सैंडविच बनेगी.. चंदा भाभी और गुड्डी के बीच...गुड्डी और चंदा भाभी -डबल ट्रबल
जैसे ही वो मुड़ी भाभी ने कहा- “अरे सुन ना। इनकी शर्ट पैंट सम्हालकर रख देना…”
“एकदम…” उसने खूँटी से खींचा और ले गई बछेड़ी की तरह। फिर दरवाजे पे खड़ी होकर मेरी शर्ट मुझे दिखाकर बोलने लगी- “सम्हालकर। मतलब यहाँ पे गुलाबी और यहां पे गाढ़ा नीला…”
“हे मेरी सबसे फेवरिट शर्ट है…” लेकिन वो कहाँ पकड़ में आती। ये जा वो जा।
थोड़ी देर में वो बैग लेकर आई और भाभी को दिखाया। उसने भाभी के कान में कुछ कहा और भाभी ने झांक के बोला- “अरे अब तो कल मजा आ जायेगा…”
मैं समझ गया की उसने बियर की बोतल दिखाई होंगी।
पान लायी की नहीं? भाभी ने मेरे चेहरे की तरफ देखते हुए अगला सवाल किया।
“लायी। लेकिन एक तो ये खाते नहीं। मालूम है वहां दुकान पे बोलने लगे की मैं तो खाता नहीं…”
तब तक भाभी पान के पैकेट खोल चुकी थी। चांदी के बर्क में लिपटा स्पेशल पान- “अरे ये किसकी पसंद है?”
“और किसकी। इन्हीं की…” गुड्डी ने हँसते हुए कहा।
“मैं तो इनको अनाड़ी समझती थी लेकिन ये तू पूरे खिलाड़ी निकले…” भाभी हँसने लगी।
“आप ही ने तो कहा था की स्पेशल पान तो मैंने। …” मैंने रुकते-रुकते बोला।
“लेकिन उसने पूछा होगा ना की। …” भाभी बोली।
“हाँ पूछा था की सिंगल या फुल। तो मैंने बोल दिया। फुल…” मैंने सहमते हुए कहा।
“ठीक कहा। ये पान सुहागरात के दिन दुलहन को खिलाते हैं। पलंग-तोड़ पान…” वो हँसते हुए बोली।
“अरे तो खिला दीजिये ना इन्हें ये किस दुलहन से कम हैं और। सुहागरात भी हो जायेगी…” गुड्डी छेड़ने का कोई चांस नहीं छोड़ती थी।
“भई, अपना मीठा पान तो…”गुड्डी ने मीठे पान का जोड़ा मुझसे दिखाया, अपने रसीले होंठों से दिखा के ललचाया जैसे पान नहीं होंठ दे रही हो और पूछा
म “क्यों खाना है?”
बड़ी अदा से उसने पान पहले अपने होंठों से, फिर उभारों से लगाया और मेरे होठों के पास ले आई और आँख नचाकर पूछा-
“लेना है। लास्ट आफर। फिर मत कहना तुम की मैंने दिया नहीं…”
जिस अदा से वो कह रही थी। मेरी तो हालत खराब हो गई। ‘वो’ 90° डिग्री का कोण बनाने लगा।
“नहीं। मैंने तो कहा था ना तुमसे की। मैं…”
पर वो दुष्ट मेरी बात अनसुनी करके उसने पान को मेरे होंठों से रगड़ा, और उसकी निगाह मेरे ‘तम्बू’ पे पड़ी थी और फिर उसने अपने रसीले गुलाबी होंठों को धीरे से खोला और पूरा पान मुझे दिखाते हुए गड़ब कर गई। जैसा मेरा ‘वो’ घोंट रही हो।
भाभी की निगाहें “होली स्पेशल…” मैगजीन पे जमीन थी। मैंने निकालकर उन्हें दिखाया। इसमें होली के गाने, टाईटिलें, और सबसे मस्त होली के राशिफल दिए हैं।
“हे तू सुना पढ़ के…” उन्होंने गुड्डी से कहा। पर वो दुष्ट। उसने अपने मुँह में चुभलाते पान की ओर इशारा किया और राशिफल का पन्ना खोलकर मुझे पकड़ा दिया।
“अरे तू भी तो बैठ। मैंने उससे बोला।
पर सोफे पे मुश्किल से मेरे भाभी के बैठने की जगह थी। भाभी ने हाथ पकड़कर उसे खींचा और वो सीधी मेरी गोद में।
“अरे ठीक से पकड़ ना लड़की को वरना बिचारी गिर जाएगी…” भाभी बोली और मैंने उसकी पतली कमर को पकड़ लिया।
“तभी तो मैं कहती हूँ की तुम पक्के अनाड़ी हो, अरे जवान लड़की को कहाँ पकड़ते हैं ये भी नहीं मालूम और उन्होंने मेरा हाथ सीधे उसके उभार पे रख दिया। मेरी तो लाटरी खुल गई।
वो शरारती उसे कुछ नहीं फर्क पड़ रहा था। उसने राशिफल के खुले पन्ने और भाभी की ओर इशारा करते हुए अपने उंगली कन्या राशि पे रख दी।
ओह्ह... होली का रंगारंग कार्यक्रम चल रहा है...होली का राशिफल
चंदा भाभी -कन्या राशि
“भाभी सुनाऊं कन्या राशि?” मैंने हिचकचा के पूछा
“सुनाओ, लेकिन इसके बाद तुम दोनों का भी सुनूंगी…”
चंदा भाभी की झलकौवा साड़ी तो मेरी देह पर लुंगी बनी थी, वो सिर्फ चोली और पेटीकोट में। चोली भी बस नीचे से कस के जोबन को दबोचे, उभारे, दोनों गोरी गोरी गोलाइयाँ साफ़ झलक रही थीं और वो जरा सा झुकी तो उन दोनों कबूतरों की चोंच भी दिख दिख गयी, और मुझे देखते गुड्डी ने भी देख लिया और भाभी ने भी,... दोनों जोर से मुस्करायीं , गुड्डी ने चिढ़ाया भी लालची।
मैंने पढ़ना शुरू किया- “कन्या राशी की भाभियां। आपके लिए आने वाले दिन बहुत शुभ हैं. आपका.... और फिर मैं ठिठक गया, आगे जो लिखा था।
देख दोनों रही थी क्या लिखा है? लेकिन पहल गुड्डी ने की। पान चुभलाते हुए वो बोली-
“अरे इत्ता खुल कर तो भाभी ने शाम को तुम्हें तुम्हारी सो-काल्ड बहन का हाल सुनाया। तो तुम उनसे शर्मा रहे हो या मुझसे? पढ़ो जो लिखा है…”
भाभी ने भी बोला- “पढ़ो ना यार। पूरा बिना सेंसर के जस का तस…”
और मैंने फिर शुरू किया-
“आपके आने वाले दिन बहुत शुभ हैं। आपका,.. थूक गटका मैंने और बोला-
" आपका लण्ड का अकाल खतम होने वाला है। इस होली में खूब मोटी मोटी पिचकारी मिलेगी। आपकी चोली फाड़ चूचियां खूब मसली रगड़ी जायेंगी और पिछवाड़े का बाजा बजने का भी पूरा मौका है।कोई कुंवारा है जो आपके जोबन जबरदंग का दीवाना है, देख के ही उसके मुंह में पानी आता है लेकिन न सबके लिए आपको इस फागुन में एक विशेष उपाय करना पड़ेगा। ध्यान से सुनें…”
भाभी बोली- “सुनाओ ना कर लूँगी यार…”
और मैंने आगे पढ़ना शुरू कर दिया, लेकिन बार बार निगाहें भाभी के गद्दर जोबन की ओर मुड़ जाती थी, चोली में एकदम चिपके, कड़ाव उभार कटाव सब दिख रहा था. और चोली थी भी झलकौवा, जहाँ से उभार शुरू होते थे वहीँ से पकडे उभारे, साइड से दबोचे और गोरी चिकने पेट पर खूब गहरी नाभि भी साफ़ दिख रही थी। पेटीकोट भी कूल्हे के नीचे से बंधा था, नाभि के नीचे भी एक बित्ते से ज्यादा गोरा गोरा मक्खन सा चिकना पेट दिख रहा था, बस थोड़ा ही नीचे होगा रस कूप।
“इस मैगजीन के आखिरी पन्ने पे दिए लण्ड पुराण का रोज पाठ करें, सुबह और शाम जोर-जोर से गा के। किसी कुँवारे देवर की नथ उतार दें भले ही आपको उसे रेप करना पड़े, और इस होली में होली से पहले किसी कुँवारी चूत की सील तुड़वाने में सहायता करें। फागुन में कम से कम दो चूत में उंगली करें। साल भर लण्ड देवता की आप पे कृपा रहेगी। कहने को तो आप कन्या राशी की हैं लेकिन आप बचपन से ही छिनाल हैं। इसलिए अगर आप अन्य कन्याओं को छिनाल बनाने में सहायता करेंगी तो होलिका देवी की आप पे विशेष कृपा रहेगी। आपकी होली बहुत जोरदार होगी, दिन की भी, रात की भी। बस देवर का दिल रख दें…”
ये कहकर मैंने उनकी ओर देखा।जितनी ललचाई निगाह से मैं उन्हें देख रहा था उतनी ही प्यासी निगाह से वो मुझे।
गुड्डी ने तुरंत भाभी से कहा-
“अरे आपका ये कुँवारा कम कुँवारी देवर है ना। बस इसकी नथ उतार दीजिये। और आपकी होली की भविष्यवाणी पूरी…”
“और वो सील तुड़वाने वाली बात?” मैं क्यों पीछे रहता।भाभी की संगत पा के मेरी धड़क भी खुल गयी थी।
गुड्डी शर्मा गई।
पर भाभी क्यों मौका छोड़ती। हँसकर बोली- “है ना ये?”
गुड्डी ने हँसकर बात बदली और बोली- “अच्छा चलो अपना सुनाओ…”
नहीं थोड़ा सा और बचा है,... मैं बोला और चंदा भाभी के आने वाले साल का राशिफल बचा खुचा भी सुना दिया।
होली में चोली न खुले तो बड़ा पाप लगता है, तो चोली तो खुलनी ही चाहिए और चोली के फूलों का दान भी दीजिये। दान देने से दूना जोबन बढ़ेगा। और सबसे जरूरी बात है की कन्या राशि के लिए कन्या को स्त्री बनाने में योगदान बहुत जरूरी है। घर मे कोई, अगल बगल पास पड़ोस,... सीधे से न माने तो जबरदस्ती,... सबको ऊँगली घोटाइये लेकिन होलिका देवी का आशीर्वाद पूरा तभी मिलेगा जब उसे लंड घोंटाने में सहायता देंगी,...
तुम्हारा शुरू करता हूँ, मैंने बोला पर भाभी भी गुड्डी के साथ , आखिर मैंने कर्क राशी का राशिफल पढ़ना शुरू किया।