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फागुन के दिन चार - भाग पांच
चंदा भाभी की पाठशाला
५६८०१
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किचेन से अबकी वो लौटीं तो उनके हाथ में एक बड़ा गिलास था। दूध के साथ-साथ मोटी मलाई की लेयर। और ऊपर से जैसे कुछ हर्ब सी पड़ी हों। मस्त महक आ रही थी। बगल के टेबल पे रखकर पहले तो उन्होंने दरवाजा बंद किया और फिर मेरे बगल में आकर बैठ गईं। साड़ी तो उनकी लूंगी बनके मेरी देह पे थी। वो सिर्फ साए ब्लाउज़ में और ब्लाउज़ भी एकदम लो-कट। भरे-भरे रसीले गोरे गुदाज गदराये जोबन छलकनें को बेताब।
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और अब तो चड्ढी का कवच भी नहीं था। ‘वो’ एकदम फनफना के खड़ा हो गया।
भाभी एकदम सटकर बैठी थी।
“दोनों को दूध दे दिया। पांच मिनट में एकदम अंटा गाफिल। सुबह तक की छुट्टी…” भाभी ने बता दिया, बात वो अपनी बेटी गुंजा और गुड्डी के लिए कर रही थीं लेकिन लाइन क्लियर मुझे दे रही थीं।
भाभी का एक हाथ मेरे कंधे पे था और दूसरा मेरी जांघ पे…”उसके’ एकदम पास। मेरे कान में वो फुसफुसा के बोल रही थी। उनके होंठ मेरे इयर लोब्स को आलमोस्ट टच कर रहे थे। मस्ती के मारे मेरी हालत खराब थी।
“दोनों को सुलाने का दूध दिया। और मुझे…” दूध के भरे ग्लास की ओर इशारा करके मैंने पूछा।
“जगाने का…”
मेरी प्यासी निगाहें ब्लाउज़ से झांकते उनके क्लीवेज से चिपकीं थी और वो भी जानबूझ के अपने उभारों को और उभार रही थी।
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उन्होंने एक हल्का सा धक्का दिया और मैं पलंग पे लेट गया। साथ में वो भी और उन्होंने हल्की रजाई भी ओढ़ ली। हम दोनों रजाई के अंदर थे।
“तुम्हें मैं जितना, अनाड़ी समझती थी। तुम उतने अनाड़ी नहीं हो…” मेरे कान में वो फुसफुसायीं।
“तो कितना हूँ?” मैंने भी उन्हें पकड़कर कहा।
“उससे भी ज्यादा। बहुत ज्यादा। अरे गुड्डी जब तुम्हारी चड्ढी पकड़ रही थी तो तुम्हें कुछ पकड़ धकड़ करनी चाहिए थी। उससे अपना हथियार पकड़वाना चाहिए था, उसकी झिझक भी खुलती शर्म भी खुलती और। मजा मिलता सो अलग। तुम्हें तो पटी पटाई लड़की के साथ भी ना। एक बार लड़की के पटने से कुछ नहीं होता, उसकी शर्म दूर करो, झिझक दूर करो, खुलकर जितना बेशर्म बनाओगे उसे, उतना खुलकर मजा मजा देगी…” भाभी हड़का भी रही थीं, समझा भी रही थीं।
“तो भाभी बना दो ना अनाड़ी से खिलाड़ी…” हिम्मत कर के मैं बोला
“अरे लाला ये तो तुम्हारे हाथ में है। फागुन का मौका है, खुलकर रगडो। एक बार झिझक चली जायेगी थोड़ी बेशर्म बना दो। बस। मजे ही मजे तेरे भी उसके भी। तलवार तो बहुत मस्त है तुम्हारी तलवार बाजी भी जानते हो की नहीं। कभी किसी के साथ किया विया है या नहीं?” भाभी ने साफ़ साफ़ पूछ लिया।
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“नहीं, कभी नहीं…” मैंने धीरे से बोला।
“कोरे हो। तब तो तेरी नथ आज उतारनी ही पड़ेगी…”
चन्दा भाभी ने मुश्कुराते हुए कहा। उनकी एक उंगली मेरे सीने पे टहल रही थी और मेरे निपल के पास आकर रुक गई। वहीं थोड़ा जोर देकर उसके चारों और घुमाने लगी।
मजे के मारे मेरी हालत खराब थी। कुछ रुक के मैं बोला-
“आपने मुझे तो टापलेश कर दिया और खुद?”
“तो कर दो ना। मना किसने किया है?” मुश्कुराकर वो बोली।
मेरी नौसिखिया उंगलियां कभी आगे, कभी पीछे ब्लाउज़ के बटन ढूँढ़ रही थी। लेकिन साथ-साथ वो क्लीवेज की गहराईयों का भी रस ले रही थी।
“क्यों लाला सारी रात तो तुम हुक ढूँढ़ने में ही लगा दोगे…” भाभी ने छेड़ा।
लेकिन मेरी उंगलियां भी, उन्होंने ढूँढ़ ही लिया और चट, चट, चट, सारे हुक एक के बाद एक खुल गए।
“मान गए तुम्हारी बहनों ने कुछ तो सिखाया…” वो बोली।
कुछ झिझकते कुछ शर्माते कुछ घबराते पहली बार मेरी उंगलियों ने उनके उरोजों को छुआ। जैसे दहकते तवे पे किसी ने पानी की बूँदें छिड़क दी हों। मेरी उंगलियों के पोर दहक गए।
“इत्ते अनाड़ी भी नहीं हो…” हँसकर बोली और मछली की तरह सरक के मेरी पकड़ से निकल गईं। अब उनकी पीठ मेरी ओर थी।
मैंने पीछे से ही उनके मदमाते गदराये उभार कसकर ब्रा के ऊपर पकड़ लिया। मैं सोच रहा था शायद फ्रंट ओपन ब्रा होगी। लेकिन, तब तक उन्होंने मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों से पकड़कर-
“कैसे हैं?”
“बहुत मस्त भाभी…”
मैं दबा रहा था वो दबवा रही थी। लेकिन मैं समझ गया था की इसमें भी उनकी चाल है। ब्रा का हुक पीछे था और वहां मेरा हाथ पहुँच नहीं सकता था। वो उनकी गिरफ्त में था। कहतें है ना की शादी नहीं हुई तो क्या बारात तो गए हैं। तो मैं अनाड़ी तो था। लेकिन इतनी किताबें पढ़ी थी। फिल्में देखी थी। मस्त राम के स्कूल का मैं मास्टर था।
चंदा भाभी की पाठशाला
५६८०१
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भाभी एकदम सटकर बैठी थी।
“दोनों को दूध दे दिया। पांच मिनट में एकदम अंटा गाफिल। सुबह तक की छुट्टी…” भाभी ने बता दिया, बात वो अपनी बेटी गुंजा और गुड्डी के लिए कर रही थीं लेकिन लाइन क्लियर मुझे दे रही थीं।
भाभी का एक हाथ मेरे कंधे पे था और दूसरा मेरी जांघ पे…”उसके’ एकदम पास। मेरे कान में वो फुसफुसा के बोल रही थी। उनके होंठ मेरे इयर लोब्स को आलमोस्ट टच कर रहे थे। मस्ती के मारे मेरी हालत खराब थी।
“दोनों को सुलाने का दूध दिया। और मुझे…” दूध के भरे ग्लास की ओर इशारा करके मैंने पूछा।
“जगाने का…”
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“तो कितना हूँ?” मैंने भी उन्हें पकड़कर कहा।
“उससे भी ज्यादा। बहुत ज्यादा। अरे गुड्डी जब तुम्हारी चड्ढी पकड़ रही थी तो तुम्हें कुछ पकड़ धकड़ करनी चाहिए थी। उससे अपना हथियार पकड़वाना चाहिए था, उसकी झिझक भी खुलती शर्म भी खुलती और। मजा मिलता सो अलग। तुम्हें तो पटी पटाई लड़की के साथ भी ना। एक बार लड़की के पटने से कुछ नहीं होता, उसकी शर्म दूर करो, झिझक दूर करो, खुलकर जितना बेशर्म बनाओगे उसे, उतना खुलकर मजा मजा देगी…” भाभी हड़का भी रही थीं, समझा भी रही थीं।
“तो भाभी बना दो ना अनाड़ी से खिलाड़ी…” हिम्मत कर के मैं बोला
“अरे लाला ये तो तुम्हारे हाथ में है। फागुन का मौका है, खुलकर रगडो। एक बार झिझक चली जायेगी थोड़ी बेशर्म बना दो। बस। मजे ही मजे तेरे भी उसके भी। तलवार तो बहुत मस्त है तुम्हारी तलवार बाजी भी जानते हो की नहीं। कभी किसी के साथ किया विया है या नहीं?” भाभी ने साफ़ साफ़ पूछ लिया।
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“कोरे हो। तब तो तेरी नथ आज उतारनी ही पड़ेगी…”
चन्दा भाभी ने मुश्कुराते हुए कहा। उनकी एक उंगली मेरे सीने पे टहल रही थी और मेरे निपल के पास आकर रुक गई। वहीं थोड़ा जोर देकर उसके चारों और घुमाने लगी।
मजे के मारे मेरी हालत खराब थी। कुछ रुक के मैं बोला-
“आपने मुझे तो टापलेश कर दिया और खुद?”
“तो कर दो ना। मना किसने किया है?” मुश्कुराकर वो बोली।
मेरी नौसिखिया उंगलियां कभी आगे, कभी पीछे ब्लाउज़ के बटन ढूँढ़ रही थी। लेकिन साथ-साथ वो क्लीवेज की गहराईयों का भी रस ले रही थी।
“क्यों लाला सारी रात तो तुम हुक ढूँढ़ने में ही लगा दोगे…” भाभी ने छेड़ा।
लेकिन मेरी उंगलियां भी, उन्होंने ढूँढ़ ही लिया और चट, चट, चट, सारे हुक एक के बाद एक खुल गए।
“मान गए तुम्हारी बहनों ने कुछ तो सिखाया…” वो बोली।
कुछ झिझकते कुछ शर्माते कुछ घबराते पहली बार मेरी उंगलियों ने उनके उरोजों को छुआ। जैसे दहकते तवे पे किसी ने पानी की बूँदें छिड़क दी हों। मेरी उंगलियों के पोर दहक गए।
“इत्ते अनाड़ी भी नहीं हो…” हँसकर बोली और मछली की तरह सरक के मेरी पकड़ से निकल गईं। अब उनकी पीठ मेरी ओर थी।
मैंने पीछे से ही उनके मदमाते गदराये उभार कसकर ब्रा के ऊपर पकड़ लिया। मैं सोच रहा था शायद फ्रंट ओपन ब्रा होगी। लेकिन, तब तक उन्होंने मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों से पकड़कर-
“कैसे हैं?”
“बहुत मस्त भाभी…”
मैं दबा रहा था वो दबवा रही थी। लेकिन मैं समझ गया था की इसमें भी उनकी चाल है। ब्रा का हुक पीछे था और वहां मेरा हाथ पहुँच नहीं सकता था। वो उनकी गिरफ्त में था। कहतें है ना की शादी नहीं हुई तो क्या बारात तो गए हैं। तो मैं अनाड़ी तो था। लेकिन इतनी किताबें पढ़ी थी। फिल्में देखी थी। मस्त राम के स्कूल का मैं मास्टर था।
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