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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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Yes.. Alphas in this forum are in every thread except some notable stories. As brother said, logically it is impossible to believe someone will opened up in record time.. disgusting. This is what your skill differs.. Which is called sensual sexuality I. e. forced to feel the feelings.yes but the forum is full of threads, as you mentioned with serial sex and most of the time it is some Alpha male whose sole rationale in life to have sex with as many girls, ladies as possible in a short time.
Behad shandaar updateसिखाई पढाई
“बहुत जबर्दस्त जंगबहादुर है तुम्हारा मान गए…” आगे-पीछे करते भाभी मुश्कुराकर बोली।
“अरे भाभी ये सब आपकी करामात है। लेकिन इस बिचारे का मन तो रख दीजिये…”
“चलो अब तुम इत्ता कह रहे हो तो। लेकिन तुम्हें कुछ आता वाता तो है नहीं…” हँसकर वो बोली।
“तो सिखा दीजिये ना…” मैंने अर्जी लगाईं।
“क्या-क्या सिखाऊं?” आँख नचाते हुए वो बोली।
“सब कुछ…”
“अनाड़ी चुदवैया, बुर की बरबादी…” हँसकर वो बोली।
“अरे तो आप बना दीजिये ना अनाड़ी से खिलाड़ी। प्लीज…” मैं मुँह बनाकर बोला।
“चलो। तुम इत्ता हाथ जोड़ रहे हो तो। लेकिन गुरु दक्षिणा लगेगी…” वो मुश्कुराकर बोली।
“एकदम गुरु-दक्षिणा या बुर-दक्षिणा। जो आप हुकुम करें…” मैं भी अब उन्हीं के रंग में आ गया था।
“चलो। सही बोला तो पहला पाठ यही है की। तुम अपनी भाषा बदलो। कम से कम जब अकेले में हो या जब कोई औरत खुलकर बोलने को तैयार हो। पहले लड़की थोड़ा बिचकेगी, मुँह बनाएगी। क्या बोलते हो? कैसे बोलते हो। मारूंगी। गंदे। लेकिन तुम चालू रहो और कोशिश करके उससे भी ये सब बुलवाओ। बस देखना उसकी शर्म झिझक सब खतम हो जायेगी और वो भी टाँगें उठाकर चूतड़ उचका के खुलकर मजे लेगी। अच्छा चलो तुम्हें इससे मिलवाती हूँ…”
और उन्होंने मेरा हाथ खींचकर अपनी झांटों भरी बुर पे रख दिया।
फिर तो जो उन्होंने पढ़ाना शुरू किया और मैंने पढ़ना शुरू किया। मैंने दर्जनों सेक्स मैनुअल पढ़े थे, लेकिन जो बात चन्दा भाभी में थी। सब चीजें।
उंगली, उन्होंने समझाया- “हमेशा बीच वाली उंगली इश्तेमाल करो। सिर्फ इसलिए नहीं की वो सबसे लम्बी होती है बल्की उसके साथ दोनों और की उंगलियों से चूत की पुत्तियों को सहला सकते हो मसल सकते हो,... और साथ में अंगूठे से क्लिट को भी दबा सकते हो। यहाँ तक की शलवार या पैंटी के ऊपर से भी। सामने देखते रहो, बातें करते रहो,... लेकिन उंगलियां अपना काम करती रह सकती हैं।
जांघों को थोड़ा सहलाओ अगर लड़की पट रही होगी तो एक पल के लिए वो खोलकर फिर बंद कर लेगी। बस उसी समय हाथ अन्दर डाल दो। थोड़ा कुनमुनाएगी, बिचकेगी। लेकिन एक बार जहां तुम्हारा हाथ वहां लगा। एकदम पिघल के हाथ में आ जायेगी…”
“भाभी एक बार करने दो ना। तभी तो सीखूंगा…” मेरी हालत खराब हो रही थी अब सीधे प्रैक्टिकल के लिए
“क्या?” आँखें नचाकर वो बोली। मैं समझ गया वो क्या सुनना चाहती हैं।
“उंगली। आपकी रसीली चूत में…”
“तो करो ना…” और मेरी मझली उंगली खींचकर उन्होंने चूत में डाल दी। एकदम कसी थी, मस्त, रसीली मांसल, और उन्होंने शरारत से अपनी चूत मेरी उंगली पे भींच दी।
“कैसा लग रहा है देवरजी?”
“बहुत अच्छा भाभी। बस यही सोच रहा हूँ की अगर उंगली की जगह मेरा…”
“मेरा क्या? क्या लौंडियों की तरह हकला रहे हो?” वो बोली।
“मेरा लण्ड होता तो कित्ता मजा आता…”
“चलो लगे रहो क्या पता मेरा मन कर जाए…” अदा से वो बोली।
मैंने उंगली को गोल-गोल अन्दर घुमाना शुरू किया।
उन्होंने खुद समझाया, कैसे गोल-गोल करते हैं। सारी नर्व्स ऊपर तक ही होती हैं इसलिए ज्यादा अन्दर तक करने की जरूरत नहीं। हाँ कैसे उंगली को चम्मच की तरह मोड़कर अन्दर दबा सकते हैं, कब और कितना अन्दर-बाहर कर सकते हैं और सबसे ज्यादा जरूरी बात, क्लिट ढूँढ़ने की।
करते समय तो वो बीच में दबी रहेगी,.. इसलिए अंदाज इत्ता अच्छा होना चाहिये की बिना देखे उसे छू सको, छेड़ सको। कैसे उसको दो उंगली के बीच में दबा सकते हैं, कैसे अंगूठे से उंगली करने के साथ-साथ,... अगर ढंग से करो तो दो-तीन मिनट में ही झड़ जायेगी…”
लेकिन सबसे जरूरी बात उन्होंने जो समझाई-
“पहले उसे बाकी जगहों से गर्म करो। किस करके। जोबन मर्दन, जांघें और चूत सहलाकर। उसके बाद ही क्लिट पे हाथ लगाओ। वरना एक तो वो उचकेगी और दूसरा मजे की जगह दर्द भी हो सकता है…” फिर उन्होंने मेरी आँखें बंद करवायीं और कहा-
“तुम मेरी क्लिट टच करो…”
भाभी हिल डुल जा रही थी। तीन-चार बार ट्राई करने के बाद ही मैं ढूँढ़ पाया। लेकिन जब दो-तीन बार लगातार मैंने कर लिया, तो खुश होकर उन्होंने मुझे किस कर लिया।
मैंने शरारत से पूछा- “तो अच्छे स्टुडेंट को इनाम क्या मिलेगा?”
“मिलेगा। जरूर मिलेगा। जो वो चाहता है वही मिलेगा…” मुश्कुराकर वो बोली। फिर कहने लगी की हर जगह तो रोशनी नहीं होगी, कभी रात के अँधेरे में, कभी बाग में, झुरमुट में,... तो अँधेरे में सही जगह लगाने की प्रैक्टिस होनी चाहिए और उन्होंने ब्रा से मेरी आँखें बाँध दी और बोला की ठीक है चलो अब तुम अपने हथियार को, …”
मैं उनकी बात काटकर बोला- “हथियार या …”
“तुम अब पक्के हुए। अपने लण्ड को मेरी बुर पे, चलो। सिर्फ तीन मौका है अगर सही हुआ तो इनाम वरना ऐसे ही सो जाना…”
पहली बार तो मैं एकदम फेल हो गया। दूसरी बार मेरा अंदाज सही था।
लेकिन वो आखिरी मौके पे सरक गईं और बोली- “क्या तुम सोचते हो की वो टांग फैलाकर खड़ी रहेगी…”
तब मेरी बुद्धी खुली। मैंने पहले तो उनके हाथ कब्जे में किये, पैरों से जांघें फैलायीं और फिर उसे लण्ड को सीधे सेंटर पे, बुर पे और थोड़ी देर रगड़कर जैसा उन्होंने समझाया था।
वो खूब गीली हो गईं तब छोड़ा। इस पूरी पढ़ाई के दौरान कभी उनका हाथ, कभी होंठ मेरे ‘उसको’ बार-बार छेड़ रहे थे और वो उसी तरह तना हुआ था।
“भाभी। अब तो…” मैंने अपने तन्नाये लण्ड की ओर इशारा किया।
“चलो तुम भी ना…” ये कहकर उन्होंने मुझे हल्का सा धक्का दे दिया।
मैं पलंग पे लेट गया। मेरा कुतुब मीनार हवा में था।
“करूँगी मैं,... बस तुम लेटे रहना। अनाड़ी कहीं उल्टा सीधा कर दो तो। अगर हिले डुले ना तो बहुत मारूंगी…”
फिर वो पलंग से उठकर चल दी और जब वो लौटी तो उनके हाथ में दो बोतल थी। उसे उन्होंने टेबल पे रख दी और मेरे पैरों के बीच में आकर बैठ गईं।
उन्होंने उसमें से ब्राउन बोतल उठाई और थोड़ा सा तेल अपनी हथेली पे लिया और हल्के से मला। फिर वो तेल मेरे तन्नाये हुए लिंग पे हल्के-हल्के लगाने लगी। गजब की सुरसुरी हो रही थी। क्या फीलिंग थी मैं बता नहीं सकता।
चन्दा भाभी ने मेरी और मुश्कुराते हुए देखा और बोला- “मालूम है ये क्या है?”
मैंने ना ने सिर हिलाया। उन्होंने अबकी ढेर सारा तेल बोतल से लिया और सीधे मेरे लिंग पे चुपड़ दिया। वो चमक रहा था। लेकिन थोड़ी देर में ही उसने जैसे तेल सोख लिया हो। भाभी ने फिर कुछ तेल अपने हाथ में लिया, मला और ‘उसपे’ मालिश करने लगी। अबकी उनकी उंगलियां कस-कसकर मुठिया रही थी।
जोश के मारे मेरी हालत खराब थी। वो नीचे से तेल लगाती थी और ऊपर तक। लेकिन सुपाड़े पे आकर रुक जाती थी, और हँसकर बोली-
“ये सांडे का तेल है और वो नहीं जो तुमने मजमे वालों के पास देखा होगा…”
भाभी की बात सही थी। मैंने कित्ती बार मजमे वालों के पास देखा था बचपन में, दोस्तों से सुना भी था। लोहे की तरह कड़ा हो जाता है। खम्भे पे मारो तो बोलेगा टन्न।
तेल मलते हुए भाभी बोली-
“देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”
मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?
चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।
जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-
“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”
भाभी बोली- “अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी…”
भाभी ने वो बोतल बंद करके दूसरी ओर रख दी और दूसरी छोटी बोतल उठा ली। जैसे उन्होंने बोतल खोली मैं समझ गया की सरसों का तेल है। उन्होंने खोलकर दो-चार बूंदें सीधे मेरे सुपाड़े के छेद पे पहले डाली, मजे से मैं गिनगिना गया,...
Bahut hi acchi training de rahi hain Chanda bhabhi. Slow and steady wins the race.फागुन के दिन चार - भाग पांच
चंदा भाभी की पाठशाला
५६८०१
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किचेन से अबकी वो लौटीं तो उनके हाथ में एक बड़ा गिलास था। दूध के साथ-साथ मोटी मलाई की लेयर। और ऊपर से जैसे कुछ हर्ब सी पड़ी हों। मस्त महक आ रही थी। बगल के टेबल पे रखकर पहले तो उन्होंने दरवाजा बंद किया और फिर मेरे बगल में आकर बैठ गईं। साड़ी तो उनकी लूंगी बनके मेरी देह पे थी। वो सिर्फ साए ब्लाउज़ में और ब्लाउज़ भी एकदम लो-कट। भरे-भरे रसीले गोरे गुदाज गदराये जोबन छलकनें को बेताब।
और अब तो चड्ढी का कवच भी नहीं था। ‘वो’ एकदम फनफना के खड़ा हो गया।
भाभी एकदम सटकर बैठी थी।
“दोनों को दूध दे दिया। पांच मिनट में एकदम अंटा गाफिल। सुबह तक की छुट्टी…” भाभी ने बता दिया, बात वो अपनी बेटी गुंजा और गुड्डी के लिए कर रही थीं लेकिन लाइन क्लियर मुझे दे रही थीं।
भाभी का एक हाथ मेरे कंधे पे था और दूसरा मेरी जांघ पे…”उसके’ एकदम पास। मेरे कान में वो फुसफुसा के बोल रही थी। उनके होंठ मेरे इयर लोब्स को आलमोस्ट टच कर रहे थे। मस्ती के मारे मेरी हालत खराब थी।
“दोनों को सुलाने का दूध दिया। और मुझे…” दूध के भरे ग्लास की ओर इशारा करके मैंने पूछा।
“जगाने का…”
मेरी प्यासी निगाहें ब्लाउज़ से झांकते उनके क्लीवेज से चिपकीं थी और वो भी जानबूझ के अपने उभारों को और उभार रही थी।
उन्होंने एक हल्का सा धक्का दिया और मैं पलंग पे लेट गया। साथ में वो भी और उन्होंने हल्की रजाई भी ओढ़ ली। हम दोनों रजाई के अंदर थे।
“तुम्हें मैं जितना, अनाड़ी समझती थी। तुम उतने अनाड़ी नहीं हो…” मेरे कान में वो फुसफुसायीं।
“तो कितना हूँ?” मैंने भी उन्हें पकड़कर कहा।
“उससे भी ज्यादा। बहुत ज्यादा। अरे गुड्डी जब तुम्हारी चड्ढी पकड़ रही थी तो तुम्हें कुछ पकड़ धकड़ करनी चाहिए थी। उससे अपना हथियार पकड़वाना चाहिए था, उसकी झिझक भी खुलती शर्म भी खुलती और। मजा मिलता सो अलग। तुम्हें तो पटी पटाई लड़की के साथ भी ना। एक बार लड़की के पटने से कुछ नहीं होता, उसकी शर्म दूर करो, झिझक दूर करो, खुलकर जितना बेशर्म बनाओगे उसे, उतना खुलकर मजा मजा देगी…” भाभी हड़का भी रही थीं, समझा भी रही थीं।
“तो भाभी बना दो ना अनाड़ी से खिलाड़ी…” हिम्मत कर के मैं बोला
“अरे लाला ये तो तुम्हारे हाथ में है। फागुन का मौका है, खुलकर रगडो। एक बार झिझक चली जायेगी थोड़ी बेशर्म बना दो। बस। मजे ही मजे तेरे भी उसके भी। तलवार तो बहुत मस्त है तुम्हारी तलवार बाजी भी जानते हो की नहीं। कभी किसी के साथ किया विया है या नहीं?” भाभी ने साफ़ साफ़ पूछ लिया।
“नहीं, कभी नहीं…” मैंने धीरे से बोला।
“कोरे हो। तब तो तेरी नथ आज उतारनी ही पड़ेगी…”
चन्दा भाभी ने मुश्कुराते हुए कहा। उनकी एक उंगली मेरे सीने पे टहल रही थी और मेरे निपल के पास आकर रुक गई। वहीं थोड़ा जोर देकर उसके चारों और घुमाने लगी।
मजे के मारे मेरी हालत खराब थी। कुछ रुक के मैं बोला-
“आपने मुझे तो टापलेश कर दिया और खुद?”
“तो कर दो ना। मना किसने किया है?” मुश्कुराकर वो बोली।
मेरी नौसिखिया उंगलियां कभी आगे, कभी पीछे ब्लाउज़ के बटन ढूँढ़ रही थी। लेकिन साथ-साथ वो क्लीवेज की गहराईयों का भी रस ले रही थी।
“क्यों लाला सारी रात तो तुम हुक ढूँढ़ने में ही लगा दोगे…” भाभी ने छेड़ा।
लेकिन मेरी उंगलियां भी, उन्होंने ढूँढ़ ही लिया और चट, चट, चट, सारे हुक एक के बाद एक खुल गए।
“मान गए तुम्हारी बहनों ने कुछ तो सिखाया…” वो बोली।
कुछ झिझकते कुछ शर्माते कुछ घबराते पहली बार मेरी उंगलियों ने उनके उरोजों को छुआ। जैसे दहकते तवे पे किसी ने पानी की बूँदें छिड़क दी हों। मेरी उंगलियों के पोर दहक गए।
“इत्ते अनाड़ी भी नहीं हो…” हँसकर बोली और मछली की तरह सरक के मेरी पकड़ से निकल गईं। अब उनकी पीठ मेरी ओर थी।
मैंने पीछे से ही उनके मदमाते गदराये उभार कसकर ब्रा के ऊपर पकड़ लिया। मैं सोच रहा था शायद फ्रंट ओपन ब्रा होगी। लेकिन, तब तक उन्होंने मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों से पकड़कर-
“कैसे हैं?”
“बहुत मस्त भाभी…”
मैं दबा रहा था वो दबवा रही थी। लेकिन मैं समझ गया था की इसमें भी उनकी चाल है। ब्रा का हुक पीछे था और वहां मेरा हाथ पहुँच नहीं सकता था। वो उनकी गिरफ्त में था। कहतें है ना की शादी नहीं हुई तो क्या बारात तो गए हैं। तो मैं अनाड़ी तो था। लेकिन इतनी किताबें पढ़ी थी। फिल्में देखी थी। मस्त राम के स्कूल का मैं मास्टर था।
Uffff Komalji aap erotica ki queen ho. Itna acht vrank bahut hi kam dekha hai maine.गुरु बनी चंदा भाभी
मैंने होंठों से ही उनकी ब्रा का हुक खोल दिया।
और आगे मेरे दोनों हाथों ने कसकर ब्रा के अन्दर हाथ डालकर उनके मस्त गदराये उभार दबोच लिए।
“लल्ला, तुम इत्ते अनाड़ी भी नहीं हो…” मुश्कुराकर वो बोली।
मेरी तो बोलने की हालत भी नहीं थी। मेरे होंठ उनके केले के पत्ते ऐसे चिकनी पीठ पे टहल रहे थे, और दोनों हाथ मस्त जोबन का रस लूट रहे थे।
क्या उभार थे। एकदम कड़े-कड़े, मेरी एक उंगली निपल के बेस पे पहुँची
तभी मछली की तरह फिसल के वो मेरी बाँहों से निकल गई और अगले ही पल वो 36डी डीउभार मेरे सीने से रगड़ खा रहे थे।
चन्दा भाभी का एक हाथ मेरे सिर को पकड़े बालों में उंगली कर रहा था और दूसरा मेरे नितम्बों को कसकर पकड़े था। मेरे कानों से रसीले होंठों को सटाकर वो बोली-
“मेरा बस चले तो तुम्हें कच्चा खा जाऊं…”
“तो खा जाइए ना…” मैं भी सीने को उनके रसीले उभारों पे कसकर रगड़ते बोला-
मेरे होंठों पे एक हल्का सा चुम्बन लेती हुई वो बोली- “चलो एक किस लेकर दिखाओ…”
मैंने हल्के से एक किस ले ली।
“धत्त क्या लौंडिया की तरह किस कर रहे हो…”
वो बोली फिर कहा, वैसे शर्मीली लड़की को पहली बार पटा रहे तो ऐसे ठीक है वरना थोड़ी हिम्मत से कसकर…”
और अगली बार और कसकर उन्होंने मेरे होंठों पे होंठ रगड़े। जवाब में मैंने भी उन्हें उसी तरह किस किया। भाभी ने मेरे होंठों के बीच अपनी जुबान घुसा दी। मैं हल्के से चूसने लगा।
थोड़ी देर में होंठों को छुड़ाके उन्होंने हल्के मेरे गाल को काट लिया और बोली-
“क्यों देवरजी अब तो हो गई ना मैं भी आपकी तरह टापलेश। लेकिन किसी नए माल को करना हो तो इत्ती आसानी से चिड़िया जोबन पे हाथ नहीं रखने देगी…”
“तो क्या करना चाहिए?” मैंने पूछा।
“थोड़ी देर उसका टाप उठाने या ब्लाउज़ खोलने की कोशिश करो, और पूरी तरह से तुम्हें रोकने में लगी हो तो। उसी समय अचानक अपने बाएं हाथ से उसका नाड़ा खोलना शुरू कर दो। सब कुछ छोड़कर वो दोनों हाथों से तुम्हारा बायां हाथ पकड़ने की कोशश करेगी। बस तुरंत बिजली की तेजी से उसका टाप या ब्लाउज़ खोल दो। जब तक वो सम्हले तुम्हारा हाथ उसके उभारों पे। और एक बार लड़के का हाथ चूची पे पड़ गया तो किस की औकात है जो मना कर दे। और यकीन ना हो तो इसी होली में वो जो तेरी बहन कम छिनार माल है उसके साथ ट्राई कर लो…”
भाभी ने कहा।
“अरे उसके साथ तो बाद में ट्राई करूंगा। लेकिन…”
ये बोलते हुए मैंने उनके पेटीकोट का नाड़ा खींच लिया। वो क्यों पीछे रहती। मेरी साड़ी कम लूंगी भी उनके साए के साथ पलंग के नीचे थी।
“लेकिन तुम ट्राई करोगे उसे,अपनी बहन कम माल को । ये तो मान गए…”
हँसते हुए वो बोली। रजाई भी इस खींच-तान में हम लोगों के ऊपर से हट चुकी थी। मेरे दोनों हाथ पकड़कर उन्होंने मेरे सिर के नीचे रख दिया और मेरे ऊपर आकर बोली-
“अब तुम ऐसे ही रहना, चुपचाप। कुछ करने की उठाने की हाथ लगाने की कोशिश मत करना…”
मेरे तो वैसे ही होश उड़े थे।
उनके दोनों उरोज मेरे होंठों से बस कुछ ही दूरी पे थे। मैंने उठने की कोशिश की तो उन्होंने मुझे धक्का देकर नीचे कर दिया। हाथ लगाने की तो मनाही ही थी। सिर उठाके मैं अपने होंठों से उन रसभरी गोलाइयों को छूना चाहता था। लेकिन जैसे ही मैं सिर उठाता वो उसे थोड़ा और ऊपर उठा लेती, बस मुश्किल से एक इंच दूर। और जैसे ही मैं सिर नीचे ले आता वो पास आ जाती।
जैसे कोई पेड़ खुद अपनी शाखें झुका के,.. एक बार वो हटा ही रही थी की मैंने जीभ निकालकर उनके निपलों को चूम लिया। कम से कम एक इंच के कड़े-कड़े निपल।
“ये है पहला पाठ। तुम्हारे पास तुम्हारे तलवार के अलावा। तुम्हारी उंगलियां हैं, जीभ है, बहुत कुछ है जिससे तुम लड़की को पिघला सकते हो। बस अन्दर घुसाने के पहले ही ऐसे ही उसे पागल बना दो। वो खुद ही कहेगी डाल दो। डाल दो…”
भाभी बोली।
और इसके साथ ही थोड़ा और नीचे फिसल के,... अब उनके उरोज मेरे सीने पे रगड़ रहे थे, कस-कसकर दबा रहे थे। बालिश्त भर की मेरी कुतुबमीनार उनके पेट से लड़ रही थी। वो जोबन जो ब्लाउज़ के अन्दर से आग लगा रहे थे,... मेरी देह पे,.. जांघ पे।
और जो मैं सोच नहीं सकता था। मेरे तनतनाये हथियार को उन्होंने अपनी चूचियों के बीच दबा दिया और आगे-पीछे करने लगी।
मुझे लगा की मैं अब गया तब गया।
तब तक भाभी की आवाज ने मेरा ध्यान तोड़ा- “हे खबरदार जो झड़े। ना मैं मिलूंगी ना वो…”
मैं बिचारा क्या करता।
भाभी ने एक हाथ से मेरे चरम दंड को पकड़ने की कोशिश की। लेकिन वो मुस्टंडा, बहुत मोटा था। उन्होंने पकड़कर उसे खींचा तो मेरा लाल गुलाबी मोटा सुपाड़ा। खूब मोटा, बाहर निकल आया। मस्त। गुस्स्सैल। मेरा मन हो रहा था की भाभी इसे बस अपने अंदर ले लें,.. लेकिन वो तो।
उन्होंने अपना कड़ा निपल पहले तो सुपाड़े पे रगड़ा और फिर मेरे सीधे पी-होल पे।
मुझे जोर का झटका जोर से लगा।
उनका निपल थोड़ी देर उसे छेड़ता रहा फिर उनकी जीभ के टिप ने वो जगह ले ली। मैं कमर उछाल रहा था। जोर-जोर से पलंग पे चूतड़ पटक रहा था और भाभी ने फिर एक झटके में पूरा सुपाड़ा गप्प कर लिया। पहली बार मुलायम रसीले होंठों का वहां छुवन। लग रहा था बस जान गई।
“भाभी मुझे भी तो अपने वहां…”
“लो देवरजी तुम भी क्या कहोगे?” और थोड़ी देर में हम लोग 69 की पोज में थे।
लेकिन मैं नौसिखिया। पहली बार मुझे लगा की किताब और असल में जमीन आसमान का अन्तर है। मेरे समझ में ही नहीं आ रहा था की कहाँ होंठ लगाऊं, कहाँ जीभ। पहली बार योनि देवी से मुलाकात का मौका था, कितना सोचता था की,...
लेकिन चन्दा भाभी भी कुछ बिना बताये, खुद अपनी जांघें सरका के सीधे मेरे मुँह पे सेंटर करके और कुछ समझा के। क्या स्वाद था। एक बार जुबान को स्वाद लगा तो, पहले तो मैंने छोटे-छोटे किस लिए और फिर हल्के से जीभ से झुरमुट के बीच रसीले होंठों पे। चन्दा भाभी भी सिसकियां भरने लगी। लेकिन दूसरी ओर मेरी हालत भी कम खराब नहीं थी।
वो कभी कसकर चूसती, कभी बस हल्के-हल्के सारा बाहर निकालकर जुबान से सुपाड़े को सहलाती और उनका हाथ भी खाली नहीं बैठा था। वो मेरे बाल्स को छू रही थी, छेड़ रही थी, और साथ में उनकी लम्बी उंगलियां शरारत से मेरे पीछे वाले छेद पे कभी सहला देती तो कभी दबाकर बस लगता अन्दर ठेल देंगी, और जब मेरा ध्यान उधर जाता तो एक झटके में ही ¾ अन्दर गप्प कर लेती, और फिर तो एक साथ, उनके होंठ कस-कसकर चूसते, जीभ चाटती चूमती और थोड़ी देर में जब मुझे लगता की बस मैं कगार पे पहुँच गया हूँ,....
Wowww kya mast mast chusai hui hai. Pahli bar ka mazaaa hi alag hota hai.मुख सुख
चन्दा भाभी भी कुछ बिना बताये, खुद अपनी जांघें सरका के सीधे मेरे मुँह पे सेंटर करके और कुछ समझा के। क्या स्वाद था। एक बार जुबान को स्वाद लगा तो, पहले तो मैंने छोटे-छोटे किस लिए और फिर हल्के से जीभ से झुरमुट के बीच रसीले होंठों पे।
चन्दा भाभी भी सिसकियां भरने लगी। लेकिन दूसरी ओर मेरी हालत भी कम खराब नहीं थी।
वो कभी कसकर चूसती, कभी बस हल्के-हल्के सारा बाहर निकालकर जुबान से सुपाड़े को सहलाती
और उनका हाथ भी खाली नहीं बैठा था। वो मेरे बाल्स को छू रही थी, छेड़ रही थी, और साथ में उनकी लम्बी उंगलियां शरारत से मेरे पीछे वाले छेद पे कभी सहला देती तो कभी दबाकर बस लगता अन्दर ठेल देंगी, और जब मेरा ध्यान उधर जाता तो एक झटके में ही ¾ अन्दर गप्प कर लेती,
और फिर तो एक साथ, उनके होंठ कस-कसकर चूसते, जीभ चाटती चूमती और थोड़ी देर में जब मुझे लगता की बस मैं कगार पे पहुँच गया हूँ, जब मैं सोचता की भाभी अब ना रूकें, तो वो रुक जाती। और ‘उसको’ पूरी तरह से बाहर निकालकर मुझे चिढ़ाती-
“गन्ना तो तुम्हारा बहुत मीठा है किस-किस से चुसवाया?”
जवाब में मैं कस-कसकर उनकी ‘सहेली’ को चूसने लगता और वो भी सिसकियां भरने लगती। तीन-चार बार मुझे किनारे पे लेजाकर वो रुक गईं। हर बार मुझे लगता की बस अब हो जाने दें। लेकिन अचानक भाभी मुझे छोड़कर उठ गईं और मेरे पैरों के बीच में जाकर बैठ गईं। मुझे पुश करके बेड के बोर्ड के सहारे बैठा दिया और ‘उसे’ अपनी मुट्ठी में कसकर पकड़ लिया। मस्ती के मारे मैंने आँखें बंद कर ली।
आगे-पीछे हिलाते हुए उन्होंने पूछा- “क्यों 61-62 करते हो?”
मैं चुप रहा।
उन्होंने एक झटके में सुपाड़े को खोल दिया और फिर से पूछा- “बोलो ना?”
“नहीं। हाँ। कभी-कभी…”
“किसका नाम लेकर? कल जिसको ले जाओगे उसको। देखो तुम्हें देवर बनाया है मुझसे कुछ मत छिपाओ फायदे में रहोगे…” भाभी बोली।
“नहीं,... हाँ…”
आगे-पीछे जोर से करते हुए उन्होंने फिर से पूछा, और अपनी उस ममेरी बहन की चूँचिया उठान सोच के, सच बोलो , जिसका हाल आज हम लोग सुना रहे थे
“नहीं। कभी नहीं…” फिर मेरे मुँह से सच निकल ही गया- “हाँ। एक-दो बार…”
“साले। तेरी बहन की फुद्दी मारूं। तेरे अन्दर बहनचोद बनने के पूरे लक्षण हैं…”
फिर कुछ रुक के मुझे देखते हुए उन्होंने कहा-
“अब आगे से 61-62 मत करना। अरे मैं सिखा दूंगी तुम्हें सब ट्रिक। तेरे लिए लौंडियों की क्या कमी है। एक तो है ही जिसको तुमने पटा लिया है। फिर वो तेरा घर का माल। इत्ता मस्त हथियार तो सिर्फ, आगे-पीछे। मुह में जहाँ चाहे वहाँ… बोलो झाड़ दूँ…”
“हाँ, भाभी हाँ…” मस्ती से मेरी हालत खराब थी।
उन्होंने झुक के मेरे गुलाबी मस्त सुपाड़े पे कसकर एक चुम्मी ली और फिर एक झटके में उसे गप्प कर लिया। उनके दोनों हाथ भी साथ-साथ। एक मेरे जांघ पे फिसलता तो दूसरा मेरे सीने को सहलाता हुआ कभी मेरे निपल को फ्लिक कर देता तो कभी वहां कसकर चिकोटी काट लेता। उनकी जुबान गोल-गोल मेरे सुपाड़े के चारों और घूम रही थी, फिसल रही थी।
मैं मस्ती के मारे अपनी कमर उछाल रहा था।
भाभी ने फिर एक मोटा तकिया लेकर मेरे चूतड़ के नीचे अन्दर तक सरका के रख दिया। अपने लम्बे नाखूनों से एक-दो बार मेरे निपल फ्लिक करके और कस-कसकर पिंच करके उन्होंने उसे छोड़ दिया और मेरे पिछवाड़े की ओर। कभी उनका मोटा अंगूठा वहां दबाता, तो कभी वो एक साथ दो उंगलियां एक साथ मेरे नितम्बों के बीच छेद पे इस तरह दबाती की पूरा घुसेड़ के ही मानेंगी।
अब तक दो तिहाई हिस्सा उन्होंने गड़प कर लिया था और कस-कसकर चूस रही थी।
मैं मस्ती के मारे ना जाने क्या-क्या बोल रहा था। मुझे लग रहा था की अब गया तब गया। ये भी लग रहा था की कहीं भाभी के मुहं के अन्दर ही ना। तब तक उन्होंने पूरा बाहर निकाल लिया और मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा-
“क्यों आया मजा?”
“हाँ भाभी लेकिन। …” मैं आगे बोलता की भाभी ने वो किया की मेरी चीख निकल गई।
उन्होंने अपने कड़े खड़े निपल को मेरे सुपाड़े के छेद पे रगड़ दिया।
वो उसे मेरे पी-होल के अंदर डाल रही थी और उनकी मुश्कुराती आँखें मेरे मजे से पागल चहरे को देख रही थी। थोड़ी देर इसी तरह छेड़कर उन्होंने साइड से मेरे खड़े चर्म दंड को चाटना शुरू कर दिया। चारों और से उनकी जीभ लप-लप चाट रही थी।
ये एक नए ढंग का मजा था।
उन्होंने एक हाथ से मेरे बाल्स को पकड़ रखा था। उनकी जुबान जहां से मेरा शिश्न बाल से मिलता है वहीं से शुरू होकर सीधे सुपाड़े तक और फिर वहाँ से नीचे वापस। और दो-चार बार ऐसे करके जब उनकी जीभ नीचे गई तो बजाय ऊपर आने के। एक बार में उसने मेरी बाल गड़प कर ली।
मेरी तो जान निकल गई।
कुछ देर तक चूसने चुभलाने के बाद भाभी के होंठ वापस मेरे सुपाड़े पे आये और आँख नचाकर वो मुझे देखते हुए बोली-
“जरूर चुसवाना उससे। दोनों से…”
और जब तक मैं कुछ बोलता समझता, उन्होंने अबकी पूरा ही गड़प कर लिया।
और अब वो पूरे जोर से चूस रही थी। मेरा सुपाड़ा उनके गले के अंत तक जाकर टकरा रहा था, लेकिन जैसे उन्हें कोई फर्क ना पड़ रहा हो। उनके रसीले भरे-भरे होंठ जब रगड़ते हुए ऊपर-नीचे होते और वो कसकर चूसती। मेरी कमर साथ-साथ ऊपर-नीचे हो रही थी। वो करती रही करती रही। मुझे लगा की अब मैं निकल ही जाऊँगा, लेकिन मुझे लगा की कहीं भाभी के मुँह में ही,...
मैं जोर से बोला- “भाभी प्लीज छोड़ दीजिये। बाहर निकाल लीजिये। मेरा होने ही वाला है। ओह्ह…”
उन्होंने अपनी दोनों बाहों से कसकर मेरी जांघों को पकड़कर नीचे दबा दिया और मेरी ओर देखकर आँखों ही आँखों में मुश्कुरायीं जैसे कह रही हों, होने वाला हो तो हो जाय, और फिर दूनी तेजी से कस-कसकर चूसने लगी।
मुझे लगा की मेरी आँखों के आगे तारे नाच रहे हों, मेरी देह का सबकुछ निकल रहा हो।
“ओह्ह… ओह्ह… आह्ह… भाभी…” मेरी आवाज जोर से निकल रही थी।
लेकिन वो और जोर से चूस रही थी,,,, और जैसे कोई जोर का फव्वारा छूटे। मेरी कमर अपने आप बार-बार ऊपर-नीचे हो रही थी और भाभी बिना रुके।
मेरा पूरा लिंग उनके मुँह में था। उनके होंठ मेरे बाल से चिपके थे। मुझे पता नहीं चला की मैं कित्ती देर तक झड़ा। लेकिन जैसे ही मैं रुका। भाभी ने पहले हल्के से फिर कसकर मेरी बाल दबाया और दूसरे हाथ से मेरी गाण्ड के छेद में उगली दबाई।
ओह्ह्ह… ओह्ह… मैं दुबारा झड़ रहा था। आज तक ऐसा नहीं हुआ था। जब थोड़ी देर में तूफान ठंडा हो गया तभी भाभी ने अपना मुँह हटाया। दो-चार बूँद जो बाहर गिर पड़ी थी उसे भी समेट के उन्होंने अपने होंठों पे लगा लिया और फिर मेरे पास आकर लेट गईं।
Mast training de rahi hain chanda bhabhi.चंदा भाभी की सीख - कूंवा और पनिहारिन
हम दोनों के सिर बगल में थे। मैं कुछ बोलने की हालत में नहीं था।
चन्दा भाभी ने अपने हाथ के जोर से मेरा मुँह खुलवाया और अपने होंठ मेरे होंठ से चिपका दिए।
जब तक मैं कुछ समझूँ। थोड़ी सी मलाई मेरे मुँह में भी, उन्होंने अपनी जुबान भी मेरे मुँह में डाल दी। थोड़ी देर तक हम लोग ऐसे ही किस करते रहे।
फिर अपने होंठ हटाकर मेरी आँखों में झांक के बोली-
“अरे थोड़ी सी मलाई तुम्हें भी खिला दी वरना कहते की भाभी ने सारी अकेले अकेले गप्प कर ली। वैसे थी बहुत मजेदार। खूब गाढ़ी, थक्केदार…”
बहुत देर तक हम दोनों एक दूसरे की बाहों में लेटे रहे, बातें करते रहे, वो मुझे बताती रही समझाती रही, क्या कैसे,...
लौंडिया कब चुदवाने लायक हो जाती है, कब देख के अंदाज लगाओगे की चुदवासी है, कैसे आँखों से सिर्फ देख के पटाने का काम, सिर्फ देख के मुस्करा के और अगर उसकी ओर से जरा सा भी इशारा हो तो छोड़ना नहीं चाहिए, ... कैसे चुम्मा चाटी कर के उसे इतना गरम कर दो की खुद ही नाड़ा खोल दो,...
चंदा भाभी भी न, पता नहीं यह बनारस के पानी का असर था या, गुड्डी और गुड्डी की मम्मी, ऊप्स मेरा मतलब मम्मी की तरह बिन बोले ही मेरे मन बात सिर्फ समझ ही नहीं जाती थीं बल्कि एकदम सटीक जवाब भी दे देती थीं की बस चुपचाप उनकी बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं होता,
मेरे मन में तो सिर्फ वो सारंग नयनी बसी थी, जो अभी थोड़ी देर पहले मेरे सब कपड़े उठा के मुझे चंदा भाभी के हवाले कर के चली गयी थी, ... वही चाहिए थी और हरदम के लिए, ...
और यह उहापोह चंदा भाभी ने भांप ली, मेरी नाक पकड़ के हिलाते बोलीं,
" लाला, अच्छा यह बोलो की कउनो मुसाफिर है, गरमी के मारे हालत खराब, प्यास से गला सूख रहा हो और रास्ते में कहीं कूंवा दिखा, कूँवे पे पानी निकालती पनिहारिन दिखी, तो प्यासा रहना चाहिए की उससे मुंह खोल के पानी मांग लेना चाहिए, "
" मांग लेना चाहिए, बिना मांगे उस बेचारी को कैसे पता चलेगा की राही प्यासा है, ... "
मैंने तुरंत भौजी की बात का जवाब दिया।
"एक किसी प्यासे को पानी पिलाने से न तो पनिहारिन क घड़ा खाली होगा, न कुंआ झुरायेगा। "
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भौजी बोलीं,
फिर उन्होंने किस्सा आगे बढ़ाया, राही को तो और आगे जाना है, जेठ क दुपहर, थोड़ी देर में फिर पियास, और कोई और कुंआ दिखा, पनिहारिन दिखी, पानी पिलाने को तैयार,... तो का करेगा, ... पनिहारिन खुद बुला रही है, बटोही आम क पेड़ है थोड़ी देर सुस्ता लो, पानी पी लो,... बहुत घाम है , दो मुंह बतिया लो तो वो का करेगा,... पनिहारिन क बात मान के प्यास बुझायेगा न , ... "
" पी लेना चाहिए, फिर पता नहीं कब कहाँ कुंवा दिखे, ... और आप की बात एक प्यासे को पानी पिलाने से कौन कूंवा झुरा जाएगा। "
मैंने बोल तो दिया लेकिन फिर मेरे समझ में आया, वो किस कुंवे की बात कर रही हैं।
लेकिन मैंने अपनी बात रखने की कोशिश की, " लेकिन मान लीजिये मुझे कोई एक पनिहारिन उसका कुंवा अच्छा लगे तो,... "
हँसते हुए भौजी ने कचकचा के मेरा गाल काटा,
" तो लगाओ न डुबकी कौन मना कर रहा है, वो बेचारी तो पिलाने के लिए तैयार बैठी है, और तुम खाली निहार रहे हो, ललचा रहे हो, ... अरे सबेरे सबेरे गरम गरम जलेबी छन रही है, कड़ाही में सुनहरी सुनहरी,... देखने में अच्छी लग रही है तो खाली देख के ललचाओगे या गप्प गप्प खाओगे, देखने का मजा तो है लेकिन असली मजा तो खाने का है। और तोहार कुंवे वाली बात, तो कभी वो पनिहारिन साथ न रहे, प्यास लगे तो,... फिर पनिहारिन खुदे कहे, आज जरा यह कुंए का पानी पी के देखो,... तो,... सौ बात की एक बात प्यास लगे, कुंवा दिखे तो पानी पी लेना चाहिए।
और तोहरे पनिहारिन को एकदम बुरा नहीं लगेगा, लिख लो, चंदा भाभी क बात। "
भौजी तो चुप होगयी थीं, लेकिन अब उनकी उँगलियाँ बोल रही थीं, कभी बस मेरे होंठों पे टहल जातीं, तो कभी मेरे होंठों को जबरदस्ती खुलवा के मेरे मुंह में घुस जातीं , जैसे थोड़ी देर पहले मेरा खूंटा उनके मुंह में था , तो कभी मेरे मेल टिट्स को बदमाशी से,
मैं गिनगीना रहा था काँप रहा था और भौजी की बात सोच रहा था। एकदम सोलहो आना सही, यही बात तो गुड्डी भी कह रही थी, जो मैं चंदा भाभी के नाम से उचक रहा था तो चिढ़ा के बोली,
" कितनी बार तो पाजामे में, नाली में पानी गिराया होगा तो का मैं तुम्हारे पाजामे और नाली से जलूँगी? "
और चंदा भाभी तो और, मम्मी के बारे में एकदम खुल के,
" बच गए तुम मम्मी को आज कानपूर जाना पड़ गया, वरना आज खुले आम रात में रेप किये बिना वो छोडती नहीं, एक बार शील भंग हो जाता न तो जो इतना लजाते झिझकते हो। " और लॉजिक भी उसका सही था,
" दिल तो तेरा कब से मेरे पास है, तो कोई तेरे मायके वाली तो तुझसे ले नहीं सकती, मेरी चीज मेरे पास है, पानी तुम चाहे जहाँ गिराओ "
चंदा भौजी की बदमाशी बढ़ रही थी, उनकी उँगलियों के साथ उनके गद्दर जोबन भी मैदान में आ गए और कस के मेरे सीने पे उसे कभी बस दबा देतीं तो कभी रगड़ देतीं, और साथ में उनकी चुम्मी कभी होंठों पे कभी गालों पे,... और इन सबका नतीजा ये हुआ की खूंटा एक बार फिर से टनटनाने लगा था, लेकिन भौजी को कोई फरक नहीं पड़ रहा था।
बदमाशी के साथ मुझे समझाने सिखाने का काम भी उनका चल रहा था। और थोड़ा बहुत हड़काने का भी। उनकी बायीं मुट्ठी में एक बार फिर मेरे मूसलचंद कैद थे। भौजी मुठिया नहीं रही थीं, बस हलके हलके कभी दबातीं तो कभी बस ऐसे पकडे रहतीं
और उन्होंने फिर समझाया भी हड़काया भी,...
" तुम भी न अक्ल बंट रही थी तो अपनी किस बहिनिया के साथ कबड्डी खेल रहे थे। अभी वो लड़की गुड्डी, तेरी चड्ढी खोल के उतार के ले के चली गयी और तुमने उससे , इस को पकड़वाया भी नहीं। थोड़ा झिझकती, तो जबरदस्ती करते,... अरे गुड्डी को छोड़, ... तेरा माल इतना मस्त है, किसी भी लड़की को बस पकड़ा दोगे ने, थोड़ा ना नुकुर करेगी, ... बस थोड़ी सी जबरदस्ती,... और एक बार इसका कड़ापन, मोटाई, लम्बाई उसकी नाजुक उँगलियों में महसूस होगी न बस,... थोड़ी देर में खुद ही सोचेगी, हाथ में इत्ता मजा आ रहा है तो गुलाबो में घुसेगा तो किता मजा आएगा,...
और असली बात है की खुलेआम पकड़ाओ, वो देखे भी, थोड़ा लजाये, थोड़ा झिझके,... फिर एक बार लाज झिझक कम हो जायेगी न तो खुद दोस्ती कर लेंगी। चल कल इसी छत पे सबके सामने पकड़वाना गुड्डी से,... अरे कमर के नीचे की छुट्टी है, कमर के ऊपर तो होली होगी ही उसकी,... तेरी भी झिझक चली जाएगी उसकी भी। "
Uffff Komal ji. Chanda bhabhi to ekdam professional trainer ki tarah Anand ko tayyar kar rahi hain.ना उम्र की सीमा हो , ना जन्म का कोई बंधन
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मेरी तो सोचने समझने की ताकत चली गयी थी, बस मैं भौजी की उँगलियाँ महसूस कर रहा था और अपने सीने पे उनके गद्दर जोबन,...
खूंटा अब एकदम फनफना गया था लेकिन भौजी को कोई जल्दी नहीं थी।
मैंने कहा था न गुड्डी की तरह वो भी मन की बात समझ लेती थीं तो उन्होंने पूछ लिया
" कहीं तुम गुड्डी को छोटा तो नहीं समझते हो की अभी,... "
और मेरे मुंह से मुश्किल से हाँ निकलता की उन्होंने हलके हलके मुठियाते, खिलखिला के बोला, ...
" बेचारी गुड्डी भी,... तेरे जैसा, अरे मेरे बुद्धू देवर गुड्डी तो छोड़ उसकी दोनों छोटी बहने भी, लेने लायक,.... सुना नहीं है,... चौदह की मतलब चोदवासी,... अरे मंझली के जोबन कैसे गदरा रहे हैं, छोटी कह रहे हो , ...
अरे मेरी गूंजा की समौरिया है उसी की क्लास में पढ़ती है,
महीने दो महीने का फरक होगा ऊपर नीचे बस, गुड्डी से डेढ़ साल ही तो छोटी है बल्कि और कम,... फरक होगा, पिछली होली में उन दोनों की, मंझली की भी, छुटकी की भी, गुड्डी की दोनों छोटी बहिनों की मैंने अंदर तक हाथ डाल के नाप जोख की थी। एकदम पनिया रही थीं, फुदक रही थी गुलाबो दोनों की। "
भौजी अब थोड़ा और जोर से मुठिया रही थीं और मैं डेढ़ साल पीछे चला गया था।
बताया तो था, गर्मी की छुट्टियां, गुड्डी आयी थी. उसी साल मेरा सेलेक्शन हो गया, आल इण्डिया सर्विस, क्लास वन,... १०० के अंदर की रैंक,.. और सबसे बड़ी बात फर्स्ट अटेम्प्ट था, वो भी मिनिमम एज में अपीयर हुआ था,... गुड्डी से नैनो का खेल तो कबसे चल रहा था अब बेशर्म नदीदों की तरह उसके बस आ रहे चूजों को देख के ललचाता रहता था,... और एक दिन पिक्चर हाल के अँधेरे में उसने ही पहल की, मेरा हाथ खींच के अपने सीने पे , रुई के गोल गोल फाहे बस,... मुझे लगा उसने अपना दिल निकाल के मेरे हाथ पर रख दिया।
और रात में, भैया भाभी का तो कमरा ऊपर था, नीचे हम लोग, में गुड्डी और दो चार और मेहमान,... गर्मी की रात लाइट चली जाती थी तो चारपाई बरामदे में, मेरी और गुड्डी की अगल बगल,... और पिक्चर हाल में जो मेरे हाथ को स्वाद लग गया था, ... मेरे हाथ ने ही उसकी चददर में सेंध लगायी और इस बार टॉप के ऊपर से नहीं, सीधे अंदर, ... लेकिन थोड़ी देर में गुड्डी का हाथ भी मेरे चद्दर के अंदर, कुछ देर तक पजामे के अंदर फिर बिना नाड़ा खोले अंदर,... अगले दिन तो उसने दिन में टोंक दिया, भाभी के सामने ही " कोई शार्ट नहीं है क्या लफड़ लफड़ पाजामा लहराते हो घर में ही ", ... तो रात में शार्ट में और गुड्डी तो, ...स्कर्ट के नीचे कोई कवच नहीं था। करीब हफ्ते भर,... जबतक वो रही,...
दिन में वो और भाभी मिल के , बेईमानी कर के लूडो में , सांप सीढ़ी में हरातीं,... चिढ़ाती और ताश सिखाने की कोशिश करती और रात में ,...
आखिर के तीन दिन तो नीचे हम लोग अकेले ही थे , एक दिन तो गुड्डी सरक के मेरी चद्दर के अंदर,... लेकिन बात छूआछुअल से आगे नहीं बढ़ी, मैं ही सहम जाता था , कहीं भाभी नीचे न आ जाएँ,... डेढ़ साल पहले
और मंझली गुड्डी से डेढ़ साल से भी कम छोटी है
तो मतलब अभी वो जिस उमर में मंझली अभी है हैं, मैं और गुड्डी,... पकड़ा पकड़ाई खेल रहे थे , गुड्डी की शलवार के अंदर मेरी ऊँगली टहल चुकी थी. मेरा ऐसा झिझकने वाला न होता तो भरतपुर स्टेशन में ट्रेन होती।
चंदा भाभी की बात एकदम सही है, असल में बुद्धू मैं ही हूँ , बात नजर की है।
और छुटकी भी जिस तरह फोन पर उसकी सिसकी सुनाई दे रही थी , श्वेता छुटकी की चड्ढी में ऊँगली कर रही थी , साफ़ था क्या हो रहा था। और मम्मी बगल की सीट पर ही बैठी थीं ,
लेकिन चंदा भाभी, उनकी शरारतें, उनके गुदाज उभार एक बार फिर मेरे सीने से रगड़ने लगे। उनकी जांघें मेरे सोये शेर को जगाने लगी और जैसे ही वो कुनमुनाने लगा,
भाभी ने मुठियाना शुरू कर दिया
अभी मैं सिसक रहा था, चंदा भाभी जिस तरह मुठिया रही थीं, एकदमअलग ढंग से, कभी मुट्ठी में लेके हलके हलके सहलातीं, कभी कस के दबा देतीं, कभी नाख़ून से खरोच देती और जब अपने अंगूठे से मोटे फूले मस्ताए, बौराये खुले सुपाड़े को रगड़ देती तो मैं जोर जोर की सिसकी लेने लगता। मुझे लगता मैं कुछ करने की हालत में नहीं हुए लेकिन भाभी ने खुद मेरा एक हाथ पकड़ के अपने मस्ताए जोबन पे रख दिया। अपने आप मेरा हाथ कभी छूता, कभी सहलाता कभी दबाता,...
और भौजी की सीख भी चिढ़ाना भी चालू था,...
" का हो लाला का सोच रहे हो,... मंझली के बारे में, अरे मस्त कच्ची अमिया है उसकी खूब धीरे धीरे कुतरने लायक, एक बात समझ लो असली चीज है ये दोनों पहाड़,... मेरा हाथ अपने ३६ डी पर कस के दबाते बोलीं, फिर आगे बढ़ाई बात,
" चाहे जवान होती लड़की हो गुड्डी की बहनों की उमर वाली, बस छोटी छोटी कच्ची अमिया वाली ,
या किसी उमर की औरत,... अगर जोबन पर नजर लगाते ही वो मुस्कराये, या आँख नीची कर शर्माये या दुपट्टा सही करे, ... समझो अर्जी लग गयी,... समझ जाती है की इस लड़के को क्या चाहिए, ... लेकिन बुद्धू तुम्ही हो, लड़की से पहले तुम्ही लजा जाते हो, चलो अच्छा है मेरी पकड़ में आये हो, सब सिखा दूंगी, सब लाज शरम, तुम का कह रहे थे, गुड्डी की बहने छोटी हैं,... अरे मझली तो गूंजा के साथ पढ़ती है, ... मेरी गुंजा हुयी मंझली पैदा हुयी उसके दो महीने बाद, ... गुड्डी डेढ़ साल की थी। "
फिर उन्हें कुछ याद आया भाभी बोली-
“तुम्हें दूध तो पिलाया ही नहीं…” और उठकर खडी हो गईं।
दूध का ग्लास अपने दोनों उभारों के बीच जैसे मेरा खूंटा उनके जोबन के बीच दबा कुचला हो, हलके से ग्लास को होंठ लगा के जैसे मेरे सुपाड़े को किस कर रही हों,... मेरी आँखों में आँखे डाल के एक बात और बताई उन्होंने,...
" जिस घर में सिर्फ माँ बेटी होती हैं न वो रिश्ता बहुत जल्द सहेली में बदल जाता है, ... जिस दिन बेटी का खून खच्चर शुरू होता है उसी दिन, जब माँ सब खोल के समझाती है तो ये भी बोल देती है,... अब टाँगे एकदम सिकोड़ के रखना,... लेकिन अगर कभी कुछ हो भी गया तो परेशान होने की जरूरत नहीं है, बजाय नौ नौ टसुए बहाने के, चिंता करने के,... दवा के डिब्बे में इस्तेमाल के बाद वाली गोली रखी है जल्द से जल्द एक गटक लो,... उस के बाद तो सहेली से भी ज्यादा खुल के और गुड्डी की मम्मी तो अपनी बेटियों से ऐसे खुल के,... क्या कोई भौजाई ननद को छेड़ेगी,... "
बात भौजी की एकदम सही थी, गुड्डी के साथ मिल के उन्होंने कितनी मेरी रगड़ाई की, बगल में उनकी दोनों छोटी बेटियां भी ट्रेन में लेकिन एकदम खुल के रगड़ रही थीं मुझे।
दूध का ग्लास ऊपर तक भरा था और कम से कम तीन अंगुल गाढ़ी मोटी मलाई।
“बच्चों की तरह दूध पियोगे या बड़ों की तरह?”
Amezing......lagta he aaj bhabhi anand babu ki nath utar kar hi rahegi. Jabardast erotic. Sikh lo anand babu kahi esa na ho ki sahi bakhat aane par tum sochte rahe jao ki karna kya he. Bhabhi sikha rahi he. Akhir bhabhi ka fagun aur holi aati kis lie he. Maza aa gaya Komalji.फागुन के दिन चार - भाग पांच
चंदा भाभी की पाठशाला
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किचेन से अबकी वो लौटीं तो उनके हाथ में एक बड़ा गिलास था। दूध के साथ-साथ मोटी मलाई की लेयर। और ऊपर से जैसे कुछ हर्ब सी पड़ी हों। मस्त महक आ रही थी। बगल के टेबल पे रखकर पहले तो उन्होंने दरवाजा बंद किया और फिर मेरे बगल में आकर बैठ गईं। साड़ी तो उनकी लूंगी बनके मेरी देह पे थी। वो सिर्फ साए ब्लाउज़ में और ब्लाउज़ भी एकदम लो-कट। भरे-भरे रसीले गोरे गुदाज गदराये जोबन छलकनें को बेताब।
और अब तो चड्ढी का कवच भी नहीं था। ‘वो’ एकदम फनफना के खड़ा हो गया।
भाभी एकदम सटकर बैठी थी।
“दोनों को दूध दे दिया। पांच मिनट में एकदम अंटा गाफिल। सुबह तक की छुट्टी…” भाभी ने बता दिया, बात वो अपनी बेटी गुंजा और गुड्डी के लिए कर रही थीं लेकिन लाइन क्लियर मुझे दे रही थीं।
भाभी का एक हाथ मेरे कंधे पे था और दूसरा मेरी जांघ पे…”उसके’ एकदम पास। मेरे कान में वो फुसफुसा के बोल रही थी। उनके होंठ मेरे इयर लोब्स को आलमोस्ट टच कर रहे थे। मस्ती के मारे मेरी हालत खराब थी।
“दोनों को सुलाने का दूध दिया। और मुझे…” दूध के भरे ग्लास की ओर इशारा करके मैंने पूछा।
“जगाने का…”
मेरी प्यासी निगाहें ब्लाउज़ से झांकते उनके क्लीवेज से चिपकीं थी और वो भी जानबूझ के अपने उभारों को और उभार रही थी।
उन्होंने एक हल्का सा धक्का दिया और मैं पलंग पे लेट गया। साथ में वो भी और उन्होंने हल्की रजाई भी ओढ़ ली। हम दोनों रजाई के अंदर थे।
“तुम्हें मैं जितना, अनाड़ी समझती थी। तुम उतने अनाड़ी नहीं हो…” मेरे कान में वो फुसफुसायीं।
“तो कितना हूँ?” मैंने भी उन्हें पकड़कर कहा।
“उससे भी ज्यादा। बहुत ज्यादा। अरे गुड्डी जब तुम्हारी चड्ढी पकड़ रही थी तो तुम्हें कुछ पकड़ धकड़ करनी चाहिए थी। उससे अपना हथियार पकड़वाना चाहिए था, उसकी झिझक भी खुलती शर्म भी खुलती और। मजा मिलता सो अलग। तुम्हें तो पटी पटाई लड़की के साथ भी ना। एक बार लड़की के पटने से कुछ नहीं होता, उसकी शर्म दूर करो, झिझक दूर करो, खुलकर जितना बेशर्म बनाओगे उसे, उतना खुलकर मजा मजा देगी…” भाभी हड़का भी रही थीं, समझा भी रही थीं।
“तो भाभी बना दो ना अनाड़ी से खिलाड़ी…” हिम्मत कर के मैं बोला
“अरे लाला ये तो तुम्हारे हाथ में है। फागुन का मौका है, खुलकर रगडो। एक बार झिझक चली जायेगी थोड़ी बेशर्म बना दो। बस। मजे ही मजे तेरे भी उसके भी। तलवार तो बहुत मस्त है तुम्हारी तलवार बाजी भी जानते हो की नहीं। कभी किसी के साथ किया विया है या नहीं?” भाभी ने साफ़ साफ़ पूछ लिया।
“नहीं, कभी नहीं…” मैंने धीरे से बोला।
“कोरे हो। तब तो तेरी नथ आज उतारनी ही पड़ेगी…”
चन्दा भाभी ने मुश्कुराते हुए कहा। उनकी एक उंगली मेरे सीने पे टहल रही थी और मेरे निपल के पास आकर रुक गई। वहीं थोड़ा जोर देकर उसके चारों और घुमाने लगी।
मजे के मारे मेरी हालत खराब थी। कुछ रुक के मैं बोला-
“आपने मुझे तो टापलेश कर दिया और खुद?”
“तो कर दो ना। मना किसने किया है?” मुश्कुराकर वो बोली।
मेरी नौसिखिया उंगलियां कभी आगे, कभी पीछे ब्लाउज़ के बटन ढूँढ़ रही थी। लेकिन साथ-साथ वो क्लीवेज की गहराईयों का भी रस ले रही थी।
“क्यों लाला सारी रात तो तुम हुक ढूँढ़ने में ही लगा दोगे…” भाभी ने छेड़ा।
लेकिन मेरी उंगलियां भी, उन्होंने ढूँढ़ ही लिया और चट, चट, चट, सारे हुक एक के बाद एक खुल गए।
“मान गए तुम्हारी बहनों ने कुछ तो सिखाया…” वो बोली।
कुछ झिझकते कुछ शर्माते कुछ घबराते पहली बार मेरी उंगलियों ने उनके उरोजों को छुआ। जैसे दहकते तवे पे किसी ने पानी की बूँदें छिड़क दी हों। मेरी उंगलियों के पोर दहक गए।
“इत्ते अनाड़ी भी नहीं हो…” हँसकर बोली और मछली की तरह सरक के मेरी पकड़ से निकल गईं। अब उनकी पीठ मेरी ओर थी।
मैंने पीछे से ही उनके मदमाते गदराये उभार कसकर ब्रा के ऊपर पकड़ लिया। मैं सोच रहा था शायद फ्रंट ओपन ब्रा होगी। लेकिन, तब तक उन्होंने मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों से पकड़कर-
“कैसे हैं?”
“बहुत मस्त भाभी…”
मैं दबा रहा था वो दबवा रही थी। लेकिन मैं समझ गया था की इसमें भी उनकी चाल है। ब्रा का हुक पीछे था और वहां मेरा हाथ पहुँच नहीं सकता था। वो उनकी गिरफ्त में था। कहतें है ना की शादी नहीं हुई तो क्या बारात तो गए हैं। तो मैं अनाड़ी तो था। लेकिन इतनी किताबें पढ़ी थी। फिल्में देखी थी। मस्त राम के स्कूल का मैं मास्टर था।