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सुबह जब मेरी नींद खुली तो सूरज ऊपर तक चढ़ आया था और नींद खुली उस आवाज से।
“हे कब तक सोओगे। कल तो बहुत नखड़े दिखा रहे थे। सुबह जल्दी चलना है शापिंग पे जाना है और अब। मुझे मालूम है तुम झूठ-मूठ का। चलो मालूम है तुम कैसे उठोगे?”
और मैंने अपने होंठों पे लरजते हुए किशोर होंठों का रसीला स्पर्श महसूस किया।
मैंने तब भी आँखें नहीं खोली।
“गुड मार्निंग…” मेरी चिड़िया चहकी।
मैंने भी उसे बाहों में भर लिया और कसकर किस करके बोला- “गुड मार्निंग…”
“तुम्हारे लिए चाय अपने हाथ से बनाकर लाई हूँ, बेड टी। आज तुम्हारी गुड लक है…” वो मुश्कुरा रही थी।
मैं उठकर बैठ गया।
“तुम ना क्या? अरे गुड मार्निग जरा अच्छे से होने दो न…” और अबकी मैंने और कसकर उसके मस्त किशोर उरोज दबा दिए।
उसकी निगाह मेरे नीचे, साड़ी कम लूंगी से थोड़ा खुले थोड़ा ढके ‘उसपे’ वो कुनमुनाने लगा था, और क्यों ना कुनमुनाए। जिसके लिए वो इत्ते दिनों से बेकरार था वो एकदम पास में बैठी थी। मेरा एक हाथ उसके उभार पे था। उसकी ओर इशारा करते हुए मैंने गुड्डी से कहा-
“हे जरा उसको भी गुड मार्निग करा दो ना। बेचारा तड़प रहा है…”
“तड़पने दो। तुमको करा दिया ना तो फिर सबको…”
वो इतरा के बोली। लेकिन निगाह उसकी निगाह अभी भी वहीं लगी थी।
‘वो’ तब तक पूरा खड़ा हो गया था।
मैंने झटके से गुड्डी का सिर एक बार में झुका दिया और उसके होंठ कपड़े से आधे ढके आधे खुले उसके ‘सुपाड़े’ पे। मेरा हाथ कस-कसकर उसके गदराये जोबन को दबा रहा था।
उसने पहले तो एक हल्की सी फिर एक कसकर चुम्मी ली वहां पे, और बड़ी अदा से आँख नचाकर खड़ी हो गई और जैसे ‘उसी’ से बात कर रही हो बोली-
“क्यों हो गई ना गुड मार्निग। नदीदे कहीं के…”
और फिर मुड़कर मेरा हाथ खींचते हुए बोली- “उठो ना इत्ती देर हो रही है, सब लोग नाश्ते के लिए इंतजार कर रहे हैं…”
“जानू इंतजार तो हम भी कर रहे हैं…” हल्के से फुसफुसाते हुए मैं बोला।
जोर से मुश्कुराकर वो उसी तरह फुफुसाते हुए बोली- “बेसबरे मालूम है मुझे। चल तो रही हूँ ना आज तुम्हारे साथ। बस आज की रात। थोड़ा सा ठहरो…” और फिर जोर से बोली-
“उठो ना। तुम भी। सीधे से उठते हो या…”
मैं उठकर खड़ा हो गया। लुंगी ठीक करने के बहाने मैंने उसको सुबह-सुबह पूरा दर्शन करा दिया। लेकिन खड़े होते ही मुझे कुछ याद आया-
“अरे यार मैंने मंजन तो किया नहीं…”
“तो कर लो ना की मैं वो भी कराऊँ?” वो हँसी और हवा में चांदी की हजार घंटियां बज उठी।
“और क्या अब सब कुछ तुमको करवाना पड़ेगा और मुझे करना पड़ेगा…” मुश्कुराकर मैं द्विअर्थी अंदाज में बोला।
“मारूंगी…” वो बनावटी गुस्से में बोली और एक हाथ जमा भी दिया।
“अरे तुम ना तुम्हें तो बस एक बात ही सूझती है…” मैंने मुँह बनाकर कहा-
“तुम भूल गई। कल तुम्हारे कहने पे मैं रुक गया था। तो मेरे पास ब्रश मंजन कुछ नहीं है…” फिर मैं बोला।
“अच्छा तो बड़ा अहसान जता रहे हैं। रुक गया मैं…” मुझे चिढ़ाते हुए बोली- “फायदा किसका हो रहा है? सुबह-सुबह गुड मार्निग हो गई, कल मेरे साथ घूमने को मिल गया। मंजन तो मिल जाएगा। हाँ ब्रश नहीं है तो उंगली से कर लो ना…”
“कर तो लूं पर…” मैंने कुछ सोचते हुए कहा- “तुम्हीं ने कहा था ना। की मेरे रहते हुए अब तुम्हें अपने हाथ का इश्तेमाल करने की जरूरत नहीं है। तो…”
“वो तो मैंने…” फिर अपनी बात का असर सोचकर खुद शर्मा गई। बात बनाकर बोली-
“चल यार तू भी क्या याद करोगे। किसी बनारस वाली से पाला पड़ा था। मैं करा दूंगी तुम्हें अपनी उंगली से। लेकिन काट मत खाना तुम्हारा भरोसा नहीं…”
वो जैसे ही बाहर को मुड़ी, उसके गोल-गोल कसे नितम्ब देखकर ‘पप्पू’ 90° डिग्री में आ गया। मैंने वहां एक हल्की सी चिकोटी काटी और झुक के उसके कान में बोला-
“काटूँगा तो जरूर लेकिन उंगली नहीं…”
वो बाहर निकलते-निकलते चौखट पे रुकी और मुड़कर मेरी ओर देखकर जीभ निकालकर चिढ़ा दिया।
बाहर जाकर उसने किसी से कुछ बात की शायद गुंजा से, चंदा भाभी की लड़की। जो उससे शायद एकाध साल छोटी थी और उसी के स्कूल में पढ़ती थी। भाभी ने कल रात बताया तो था, गुड्डी की मंझली बहन से महीने डेढ़ महीने ही बड़ी है उसी के क्लास में, दोनों ने कुछ बात की फिर हल्की आवाज में हँसी।
“आइडिया ठीक है। बन्दर छाप दन्त मंजन के लिए दीदी…” ये गुंजा लग रही थी।
“मारूंगी…” गुड्डी बोली- “लेकिन बात तुम्हारी सही है…” फिर दोनों की हँसी।
मैं दरवाजे से चिपका था।
“आप तो बुरा मान गई दीदी। आखिर मेरी दीदी हैं तो मेरा तो मजाक का हक बनता है जीजू से, छोटी साली हूँ। वो भी फागुन में…” गुंजा ने छेड़ा।
लेकिन गुड्डी भी कम नहीं थी-
“मजाक का क्यों तू जो चाहे सब कर ले, करवा ले। साली का तो, वो भी फागुन में ज्यादा हक होता है,। मैं बुरा नहीं मानूंगी…” वो बोली।
थोड़ी देर में गुड्डी अन्दर आई। सच में उसके हाथ में बन्दर छाप दन्त मंजन था।
हँसकर वो बोली- “कटखने लोगों के लिए स्पेशल मंजन…”
“पर ऊपर से नीचे तक हर जगह काटूँगा…” मैं भी उसी के अंदाज में बोला।
“काट लेना। जैसे मेरे कहने से छोड़ ही दोगे। मुझे मालूम है तुम कितने शरीफ हो। अब उठो भी बाथरूम में तो चलो…” मुझे हाथ पकड़कर बाथरूम में वो घसीटकर ले गई।
मैंने मंजन लेने के लिए हाथ फैला दिया।
बदले में जबरदस्त फटकार मिली-
“तुम ना मंगते हो। जहां देखा हाथ फैला दिया। क्या करोगे? तुम्हारे मायके वालियों का असर लगता है, आ गया है तुम्हारे ऊपर। जैसे वो सब फैलाती रहती हैं ना सबके सामने…”
ये कहते हुए गुड्डी ने अपने हाथ पे ढेर सारा लाल दन्त मंजन गिरा लिया था। वो अब जूनियर चन्दा भाभी बनती लग रही थी।
“मुँह खोलो…”
वो बोली, और मैंने पूरी बत्तीसी खोल दी। उसने अपनी उंगली पे ढेर सारा मंजन लगाकर सीधे मेरे दांतों पे और गिन के बत्तीस बार और फिर दुबारा और मंजन लगाकर और फिर तिबारा।
स्वाद कुछ अलग लग रहा था। फिर मैंने सोचा की शायद बनारस का कोई खास मंजन हो। पूरा मुँह मंजन से भरा हुआ था। मैं वाशबेसिन की ओर मुड़ा।
तब वो बोली- “रुको। आँखें बंद कर लो। मंजन मैंने करवाया तो मुँह भी मैं ही धुलवा देती हूँ…”
अच्छे बच्चे की तरह मैंने आँखें बंद रखी और उसने मुँह धुलवा दिया। जब मैं बाहर निकला तो अचानक मुझे कुछ याद आया और मैं बोला- “हे मेरे कपड़े…”
“दे देंगे। तुम्हारी वो घटिया शर्ट पैंट मैं तो पहनने से रही और आखीरकार, किससे शर्मा रहे हो? मैंने तो तुम्हें ऐसे देख ही लिया है। चंदा भाभी ने देख ही लिया है और रहा गुंजा तो वो तो अभी बच्ची है…”
ये कहते हुए मुझे पकड़कर नाश्ते की टेबल पे वो खींच ले गई।
मेरी आँखें बस टंगी रह गईं। चेहरा एकदम भोला-भाला, रंग गोरा चम्पई । लेकिन आँखें उसकी चुगली कर रही थी। खूब बड़ी-बड़ी, चुहल और शरारत से भरी, कजरारी, गाल भरे-भरे, एकदम चन्दा भाभी की तरह और होंठ भी, हल्के गुलाबी रसीले भरे-भरे उन्हीं की तरह। जैसे कह रहे हों- “किस मी। किस मी नाट…”
मुझे कल रात की बात याद आई जब गुड्डी ने उसका जिक्र किया था तो हँसकर मैंने पूछा था- “क्यों बी॰एच॰एम॰बी (बड़ा होकर माल बनेगी) है क्या?”
पलटकर आँख नचाकर उस शैतान ने कहा था- “जी नहीं। बी॰एच॰ काट दो, और वैसे भी मिला दूंगी…”
मेरी आँखें जब थोड़ी और नीचे उतरी तो एकदम ठहर गई, उसके उभार। उसके स्कूल की युनिफोर्म, सफेद शर्ट को जैसे फाड़ रहे हों और स्कूल टाई ठीक उनके बीच में, किसी का ध्यान ना जाना हो तो भी चला जाए। परफेक्ट किशोर उरोज। पता नहीं वो इत्ते बड़े-बड़े थे या जानबूझ के उसने शर्ट को इत्ती कसकर स्कर्ट में टाईट करके बेल्ट बाँधी थी।
मुझे चंदा भाभी की बात याद आ रही थी,... चौदह की हुयी तो चुदवासी,
और जब होली में उनके मुंहबोले पड़ोस के जीजू ने उनकी चिड़िया उड़ाई थी वो गुड्डी की मंझली बहन से भी थोड़ी छोटी, मतलब गुंजा से भी कम उम्र,
पता नहीं मैं कित्ती देर तक और बेशर्मों की तरह देखता रहता, अगर गुड्डी ने ना टोका होता-
“हे क्या देख रहे हो। गुंजा नमस्ते कर रही है…”
मैंने ध्यान हटाकर झट से उसके नमस्ते का जवाब दिया और टेबल पे बैठ गया। वो दोनों सामने बैठी थी। मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी और फिर आपस में फुसफुसा के कुछ बातें करके टीनेजर्स की तरह खिलखिला रही थी। मेरे बगल की चेयर खाली थी।
मैंने पूछा- “हे चंदा भाभी कहाँ हैं?”
“अपने देवर के लिए गरमा-गरम ब्रेड रोल बना रही हैं। किचेन में…” आँख नचाकर गुंजा बोली।
“हम लोगों के उठने से पहले से ही वो किचेन में लगी हैं…” गुड्डी ने बात में बात जोड़ी।
मैंने चैन की सांस ली। तो इसका मतलब हम लोगों का रात का धमाल इन दोनों को पता नहीं।
तब तक गुड्डी बोली-
“हे नाश्ता शुरू करिए ना। पेट में चूहे दौड़ रहे हैं हम लोगों के और वैसे भी इसे स्कूल जाना है। आज लास्ट डे है होली की छुट्टी के पहले। लेट हो गई तो मुर्गा बनना पड़ेगा…”
“मुर्गा की मुर्गी?” हँसते हुए मैंने गुंजा को देखकर बोला। मेरा मन उससे बात करने को कर रहा था लेकिन गुड्डी से बात करने के बहाने मैंने पूछा-
“लेकिन होली की छुट्टी के पहले वाले दिन तो स्कूल में खाली धमा चौकड़ी, रंग, ऐसी वैसी टाइटिलें…”
मेरी बात काटकर गुड्डी बोली- “अरे तो इसीलिए तो जा रही है ये। आज टाइटिलें…”
उसकी बात काटकर गुंजा बीच में बोली- “अच्छा दीदी, बताऊँ आपको क्या टाइटिल मिली थी…”
गुड्डी ने उसे हड़काया “मारूंगी। और मुझसे बोली , आप नाश्ता करिए न कहाँ इसकी बात में फँस गए। अगर इसके चक्कर में पड़ गए तो…”
लेकिन मुझे तो जानना था। उसकी बात काटकर मैंने गुंजा से पूछा- “हे तुम इससे मत डरो मैं हूँ ना। बताओ गुड्डी को क्या टाइटिल मिली थी?”
हँसते हुए गुंजा बोली- “बिग बी…”
पहले तो मुझे कुछ समझ नहीं आया ‘बिग बी’ मतलब लेकिन जब मैंने गुड्डी की ओर देखा तो लाज से उसके गाल टेसू हो रहे थे, और मेरी निगाह जैसे ही उसके उभारों पे पड़ी तो एक मिनट में बात समझ में आ गई।
बिग बी, बिग बूब्स । वास्तव में उसके अपने उम्र वालियों से 20 ही थे, बल्कि पचीस ही होंगे, लेकिन मेरी निगाह बार बार गुंजा के उभारो की ओर सरक जा रही थी।
मेरी चोरी पकड़ी गयी, उस शरीर लड़की ने छेड़ते हुए पूछा, " क्या देख रहे हैं ? "
गुड्डी को गुंजा से बदला लेने का मौका मिल गया, हँसते हुए बोली, " देखने वाली चीज हो तो कोई भी देखेगा"
बदमाश दुष्ट उस टीनेजर ने इत्ते भोलेपन से आँख नचाते हुए मुझसे पूछा, " सिर्फ देखने वाली ही चीज है या,... "
गनीमत थी गुड्डी ने टॉपिक बदल दिय। गुड्डी ने बात बदलते हुए मुझसे कहा- “हे खाना शुरू करो ना। ये ब्रेड रोल ना गुंजा ने स्पेशली आपके लिए बनाए हैं…”
“जिसने बनाया है वो दे…” हँसकर गुंजा को घूरते हुए मैंने कहा।
मेरा द्विअर्थी डायलाग गुड्डी तुरंत समझ गई। और उसी तरह बोली- “देगी जरूर देगी। लेने की हिम्मत होनी चाहिए, क्यों गुंजा?”
“एकदम…मैं उन स्सालियों में नहीं जो देने में पीछे हटजाएँ, हां लेने में, 'आपके उनके ' की हिम्मत पर डिपेंड करता है "
वो भी मुश्कुरा रही थी। मैं समझ गया था की सिर्फ शरीर से ही नहीं वो मन से भी बड़ी हो रही है।
'आपके उनके' के नाम पर गुड्डी गुलाल हो गयी । जोर से उसने गूंजा के जांघों पे चिकोटी काटी और बात मेरी ओर मोड़ दी,
“हे ये अपने हाथ से नहीं खाते, इनके मुँह में डालना पड़ता है अब अगर तुमने इत्ते प्यार से इनके लिए बनाया है तो। …”
“एकदम…” और उसने एक किंग साइज गरम ब्रेड रोल निकाल को मेरी ओर बढ़ाया। हाथ उठने से उसके किशोर उरोज और खुलकर। मैंने खूब बड़ा सा मुँह खोल दिया लेकिन मेरी नदीदी निगाहें उसके उरोजों से चिपकी थी।
" जीजू आ बोलिये जैसे लड्डू खाने के लिए मुंह खोलते हैं एकदम वैसा और बड़ा, हाँ ऐसे।"
मैंने मुंह खोल दिया खूब बड़ा सा, और वो ब्रेड रोल हाथ में लेके बड़ी भोली सूरत बना के गुड्डी से पूछ रही थी,
" दी, एक बार में डाल दूँ पूरा,"
“इत्ता बड़ा सा खोला है। तो डाल दे पूरा, एक बार में। इनको आदत है…” गुड्डी भी अब पूरे जोश में आ गई थी। और गूंजा को चढ़ाते हुए जोड़ा
" और क्या अपनी बार में ये छोड़ेंगे क्या, डाल दे पूरा एक साथ " गुड्डी भी उसी डबल मीनिंग डायलॉग में बोल रही थी।
" आधे तीहै में न डालने वाले को मजा न डलवाने वाली को " बुदबुदाती गुंजा ने एक बार में बड़ा सा ब्रेड रोल खूब गरम मेरे मुंह मे।
" काट लो ऊँगली, फिर मौका नहीं मिलेगा “गुड्डी ने मुझे उकसाया, लेकिन गूंजा चपल चालाक, ब्रेड रोल मुंह में उसकी उँगलियाँ बाहर, और उलटा वो गुड्डी को चिढ़ाने लगी,
" आज रात को काटेंगे न आपको, तो कल सुबह ही फोन कर के पूछूंगी, कहाँ कहाँ काटा। "
ब्रेड रोल बहुत ही गरम, स्वाद बहुत ही अच्छा था। लेकिन अगले ही पल में शायद मिर्च का कोई टुकड़ा। और फिर एक, दो, और मेरे मुँह में आग लग गई थी। पूरा मुँह भरा हुआ था इसलिए बोल नहीं निकल रहे थे।
वो दुष्ट , गुंजा। अपने दोनों हाथों से अपना भोला चेहरा पकड़े मेरे चेहरे की ओर टुकुर-टुकुर देख रही थी।
“क्यों कैसा लगा, अच्छा था ना?” इतने भोलेपन से उसने पूछा की।
तब तक गुड्डी भी मेरी ओर ध्यान से देखते हुए वो बोली- “अरे अच्छा तो होगा ही तूने अपने हाथ से बनाया था। इत्ती मिर्ची डाली थी…”
मेरे चेहरे से पसीना टपक रहा था।
गुंजा बोली- “आपने ही तो बोला था की इन्हें मिर्चें पसंद है तो। मुझे लगा की आपको तो इनकी पसंद नापसंद सब मालूम ही होगी। और मैंने तो सिर्फ चार मिर्चे डाली थी बाकी तो आपने बाद में…”
इसका मतलब दोनों की मिली भगत थी। मेरी आँखों से पानी निकल रहा था। बड़ी मुश्किल से मेरे मुँह से निकला- “पानी। पानी…”
“ये क्या मांग रहे हैं…” मुश्किल से मुश्कुराहट दबाते हुए गुंजा बोली।
गुड्डी अब गूंजा को चिढ़ा रही थी, आँख नचाकर बोली, “मुझे क्या मालूम तुमसे मांग रहे हैं। तुम दो… दुष्ट गुड्डी भी अब डबल मीनिंग डायलाग की एक्सपर्ट हो गई थी।
पर गुंजा भी कम नहीं थी- “हे मैं दे दूंगी ना तो फिर आप मत बोलना की, आपसे पहले मैंने,… । …”
उसने गुड्डी से बोला।
यहाँ मेरी लगी हुई थी और वो दोनों।
“दे दे, दे दे। आखिर मेरी छोटी बहन है और फागुन है तो तेरा तो…छोटी बहन का बड़ी बहन से पहले हक होता है।” बड़ी दरियादिली से गुड्डी बोली।
बड़ी मुश्किल से मैंने मुँह खोला, मेरे मुँह से बात नहीं निकल रही थी। मेरी जान जा रही थी, एक तो गरम इत्ता और फिर मिर्चे सिर्फ जबान में नहीं गाल में भी, मुंह में चारो ओर, और मुंह भरा हुआ, बोला नहीं जा रहा था, बस पसीना, आँख से पानी, हालत खराब थी। मैंने मुँह की ओर इशारा किया।
“अरे तो ब्रेड रोल और चाहिए तो लीजिये ना…” और गुंजा ने एक और ब्रेड रोल मेरी ओर बढ़ाया- और बड़े भोलेपन से मुझे देखते हुए बोली,
“और कुछ चाहिए तो साफ-साफ मांग लेना चाहिए। जैसे गुड्डी दीदी वैसे मैं…दी को तो थोड़ा टाइम भी लगेगा, मैं तो एकदम, बस जरा सा इशारा कर दीजिये, मना नहीं करुँगी। ”
वो नालायक। मैंने बड़ी जोर से ना ना में सिर हिलाया और दूर रखे ग्लास की ओर इशारा किया।
उसने ग्लास उठाकर मुझे दे दिया लेकिन वो खाली था।
एक जग रखा था। वो उसने बड़ी अदा से उठाया।
“अरे प्यासे की प्यास बुझा दे बड़ा पुण्य मिलता है…” ये गुड्डी थी।
“बुझा दूंगी। बुझा दूंगी और आप से पहले बुझाऊँगी, आपकी छोटी बहन हूँ,मेरी गारंटी, ऐसे छोटी साली नहीं बनी हूँ। अरे कोई प्यासा किसी कुंए के पास आया है तो…” गुंजा बोली और नाटक करके पूरा जग उसने ग्लास में उड़ेल दिया।
सिर्फ दो बूँद पानी था।
“अरे आप ये गुझिया खा लीजिये ना गुड्डी दीदी ने बनायी है आपके लिए। बहुत मीठी है कुछ आग कम होगी तब तक मैं जाकर पानी लाती हूँ। आप खिला दो ना अपने हाथ से…”
गुड्डी ने प्लेट में से एक खूब फूली हुई गुझिया मेरे होंठों में डाल ली और मैंने गपक ली।
झट से मैंने पूरा खा लिया। मैं सोच रहा था की कुछ तो तीतापन कम होगा। लेकिन जैसे ही मेरे दांत गड़े एकदम से, गुझिया के अन्दर बजाय खोवा सूजी के अबीर गुलाल और रंग भरा था।
मेरा सारा मुँह लाल। और वो दोनों हँसते-हँसते लोटपोट।
तब तक चंदा भाभी आईं एक प्लेट में गरमागरम ब्रेड रोल लेकर। लेकिन मेरी हालत देखकर वो भी अपनी हँसी नहीं रोक पायीं, कहा-
“क्या हुआ ये दोनों शैतान। एक ही काफी है अगर दोनों मिल गई ना। क्या हुआ?”
मैं बड़ी मुश्किल से बोल पाया- “पानी…”
उन्होंने एक जासूस की तरह पूरे टेबल पे निगाह दौडाई जैसे किसी क्राइम सीन का मुआयना कर रही हों। वो दोनों चोर की तरह सिर झुकाए बैठी थी। फिर अचानक उनकी निगाह केतली पे पड़ी और वो मुश्कुराने लगी। उन्होंने केतली उठाकर ग्लास में पोर किया।
और पानी।
रेगिस्तान में प्यासे आदमी को कहीं झरना नजर आ जाए वो हालत मेरी हुई। मैंने झट से उठाकर पूरा ग्लास खाली कर दिया। तब जाकर कहीं जान में जान आई।
जब मैंने ग्लास टेबल पे रखा तब चन्दा भाभी ने मेरा चेहरा ध्यान से देखा। वो बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकने की कोशिश कर रही थी लेकिन हँसी रुकी नहीं। और उनके हँसते ही वो दोनों जो बड़ी मुश्किल से संजीदा थी वो भी उस हंसी के मैराथन में शामिल हो गयीं। । फिर तो एक बार हँसी खतम हो और मेरे चेहरे की और देखें तो फिर दुबारा। और उसके बाद फिर।
“आप ने सुबह, हीहीहीही, आपने अपना चेहरा, ही ही शीशे में, हीहीहीही…” चन्दा भाभी बोली।
“नहीं वो ब्रश नहीं था तो गुड्डी ने। उंगली से मंजन, फिर…”
मैंने किसी तरह समझाने की कोशिश की मेरे समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
“जाइए जाइए। मैंने मना तो नहीं किया था शीशा देखने को। मगर आप ही को नाश्ता करने की जल्दी लगी थी। मैंने कहा भी की नाश्ता कहीं भागा तो नहीं जा रहा है। लेकिन ये ना। हर चीज में जल्दबाजी…” ऐसे बनकर गुड्डी बोली।
गुंजा बोली, -“अच्छा मैं ले आती हूँ शीशा…”
और मिनट भर में गुंजा दौड़ के एक बड़ा सा शीशा ले आई। लग रहा था कहीं वाशबेसिन से उखाड़ के ला रही हो और मेरे चेहरे के सामने कर दिया।
मांग तो मेरी सीधी मुँह धुलाने के बाद गुड्डी ने काढ़ी थी, सीधी और मैंने उसकी शरारत समझा था, लेकिन अब मैंने देखा। चौड़ी सीधी मांग और उसमें दमकता सिन्दूर।
माथे पे खूब चौड़ी सी लाल बिंदी, जैसे सुहागन औरतें लगाती है। होंठों पे गाढ़ी सी लाल लिपस्टिक और, जब मैंने कुछ बोलने के लिए मुँह खोला तो दांत भी सारे लाल-लाल।
अब मुझे बन्दर छाप दन्त मंजन का रहस्य मालूम हुआ और कैसे दोनों मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी, ये भी समझ में आया। चलो होली है चलता है।
चन्दा भाभी ने मुझे समझाया और गुंजा को बोला- “हे जाकर तौलिया ले आ…”
उन्होंने गुड्डी से कहा- “हे हलवा किचेन से लायी की नहीं?”
मैं तुरंत उनकी बात काटकर बोला- “ना भाभी अब मुझे इसके हाथ का भरोसा नहीं है आप ही लाइए…”
हँसते हुए वो किचेन में वापस में चली गईं। गुंजा तौलिया ले आई और खुद ही मेरा मुँह साफ करने लगी। वो जानबूझ कर इत्ता सटकर खड़ी थी की उसके उरोज मेरे सीने से रगड़ रहे थे। मैंने भी सोच लिया की चलो यार चलता है इत्ती हाट लड़कियां।
मैंने गुड्डी को चिढ़ाते हुए कहा- “चलो बाकी सब तो कुछ नहीं लेकिन ये बताओ। सिंदूर किसने डाला था?”
गुंजा ने मेरा मुँह रगड़ते हुए पूछा- “क्यों?”
“इसलिए की सिन्दूर दान के बाद सुहागरात भी तो मनानी पड़ेगी ना। अरे सिन्दूर चाहे कोई डाले सुहागरात वाला काम किये बिना तो पूरा नहीं होगा ना काम…” मैंने हँसते हुए कहा।
“इसी ने डाला था जो तुमसे इतनी सटकर खड़ी है। मना लो सुहागरात…बल्कि सुहाग दिन, छोड़ना मत,”
खिलखिलाते हुए गुड्डी बोली।
गुंजा छटक के दूर जाकर खड़ी हुई, एकदम गुड्डी के बगल में- और मुझे अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखों से देखते हुए अपने दोनों हाथ अपने टीन उरोजों के नीचे रखे, उन्हें थोड़ा सा और उभारे, मीठी मुस्कान से बोली,
" मना लें न सुहाग दिन ,मैं पीछे नहीं हटने वाली, लेकिन ये बताइये, आइडिया किसका था? बोला तो आप ने ही था और बाद में लिपस्टिक। फिर एक चुटकी सिन्दूर तो आपने भी…”
वो गुड्डी को देखते हुए बोल रही थी।
“चलो कोई बात नहीं। दोनों के साथ मना लूँगा…” हँसते हुए मैं बोला।
“पहले इनके साथ…” गुड्डी की ओर इशारा करके वो बोली।
“नहीं मांग तो तुमने भरी है पहले इसके साथ, सुहाग दिन, पूरे चार चुटकी सिन्दूर डाला था, …” अब गुड्डी बोली।
तब तक चन्दा भाभी आ गई हलवे का बरतन लिए। क्या मस्त महक आ रही थी।
“क्या तुम दोनों पहले आप, पहले आप कर रही हो। कोई लखनऊ की थोड़े ही हो…बनारस वालियां तो पहले मैं पहले मैं करती हैं।”
ये कहते हुए वो कटोरी में हलवा निकालने लग गई। वो बिचारी क्या समझे की किस चीज के लिए पहले आप, पहले आप हो रही है।
मैं- “हे भाभी इत्ता नहीं…”
वो ढेर सारा हलवा मेरी कटोरी में डाल रही थी। हलवा भी पूरा देसी घी से तर, काजू बादाम पड़ा हुआ। सूजी का हलवा-
“अरे खा ना। रात में तो तेरी सारी मलाई मैंने निकाल ली…” मुँह दबाकर फुसफुसाते हुए वो बोली।
मेरे मना करने पे जितना डाल रही थी उसका भी दूना उन्होंने डाल दिया।
“जितना मना करोगे उसका दूना डालूंगी। अब तक तुम नहीं समझे…” हँसकर भाभी बोली। भाभी भी, बिना डबल मीनिंग डायलाग बोले रह नहीं सकती थी।
वो दोनों भी एक दूसरे को देखकर मुश्कुरा रही थी।
“ये ऐसे ही समझते हैं…” गुड्डी आँख नचाकर भाभी से बोली।
मैंने हलवा शुरू करने में थोड़ी सी देरी की और भाभी चालू हो गयीं, " इत्ती देर में तेरी वो बहन, फिर गुड्डी की ओर मुड़ के पूछा उन्होंने,
" वो इनकी वो बहन, कहाँ रहती हैं, कल तूने क्या बताया था, "
" एलवल, गदहे वाली गली में " गुड्डी को तो मौका चाहिए था, और अब वहां से भाभी ने अपनी बात फिर से शुरू कर दी,
" हां वो तेरी एलवल वाली, जितना टाइम तुझे मुंह खोलने में लग रहा है उतने में तो वो गदहे की गली वाली, अपना निचला मुंह खोल के गपागप घोंटना भी शुरू कर देती। अब दालमंडी ( बनारस का पुराना रेड लाइट एरिया ) ला के कोठे पे बैठाओगे उसे, तो रात भर निचला मुंह खुला ही रहेगा और तुम, मुंह खोलने में ही,... "
गुँजा खिसखीस कर रही थी भाभी की बात सुन के और गुड्डी को तो मौका चाहिए था अपना किस्सा सुनाने का, वो चालू हो गयी,
" तभी मैं कहूँ, कल जहाँ देखो तहाँ ये सबसे यही पूछ रहे थे, दालमंडी किधर है भैया, और मैं जब गुलाबजामुन लेने भीड़ में घुसी तो कुरता पाजामा पहने, कान में इत्र की फुरेरी लगाए आदमी से यही बतिया रहे थे। उससे इन्होने पूछा तो इधर उधर देख के वो आदमी बोला
" बैठना है या कोई माल हाथ लगा है उसे बैठाना है ? "
ये बोले " वही बात समझ लो, दूसरी वाली "
तो उसने कहा की बसंती के कोठे पे बैठा दूंगा, दस ग्राहक तो रोज रात को पक्का, उससे ज्यादा उसके कमर और जोबन के जोर पर है। दो आने मेरा दो आने तुम्हारा और चार आने बसंती का, बाकी आठ आना और टिप उसका। नंबर दे रहा हूँ, फोटो भेज देना, होली के बाद ले आना मिलवा दूंगा। "
उस समय समझ में नहीं आया लेकिन आप ने दालमंडी का नाम लिया तो मैं अब समझी की ये कल बाजार में कौन सा सौदा कर रहे थे। "
और जब तक गुड्डी अपनी गप्प में मुझे खींच रही थी, भाभी ने टेबल के नीचे हाथ डालकर मेरी लुंगी की गाँठ खींच दी,
दोनों पट खुल गए, ' वो ' बाहर, थोड़ा सोया थोड़ा जागा, भाभी की मुट्ठी में, कभी भाभी अपने उस बाएं हाथ के अंगूठे से बेस को रगड़ देतीं तो कभी उँगलियों से पकड़ के दबाती, कभी बस हलके से सहला देतीं, भाभी की उँगलियों की छुअन कौन खुश नहीं होगा, वो तो फूल के कुप्पा।
भौजी का अंगूठा टहलते टहलते अब आलमोस्ट खड़े खूंटे के सुपाड़े पर पहुँच गया और खुले मांसल सुपाड़े को रगड़ने लग। सुपाड़ा एकदम खुला चमड़ी सरकी।
" चलो लाला, एक बात तो तुमने मेरी मानी " भौजी ने खुश हो के मेरे कान में बोला ।
हम सब खाने लगे तो भाभी ने मुझे देखकर कहा- “हे, इन सबों की शैतानियों का बुरा तो नहीं माना?”
मैं बस उन दोनों को देखकर मुश्कुरा दिया।
भाभी बोली- “अरे ससुराल में आये हो फागुन का दिन है। चलो सलहज की कमी नहीं है। लेकिन यहाँ कोई छोटी साली तो है नहीं, बिन्नो की वैसे भी कोई छोटी बहन नहीं है तो चलो इन दोनों को छोटी साली ही मान लो और क्या? बिना साली सलहज के ससुराल और होली दोनों का मजा आधा है…”
"नहीं नहीं छोटी साली तो मैं ही हूँ, गुड्डी दी से छोटी हूँ, "
गुंजा ने तुरंत बात काट दी और अपना हक पेश कर दिया, एकमात्र छोटी साली होने का।
" बात तो सही है तेरी, गुड्डी तो इनकी,... क्यों, ..."
और उस के बाद जिस तरह से भाभी ने मीठी मुस्कान से गुड्डी को देखा फिर मुझे और जिस तरह से गुड्डी शर्मायी और उससे ज्यादा मैं, जो न जानता हो वो जान जाए, मैं गुड्डी के साथ कौन सा रिश्ता चाहता हूँ। चन्दा भाभी और गूंजा दोनों गुड्डी के तो राजदार थे ही. अब मेरे भी। मेरे मन में यही था की भाभी की ये बात सही हो जाय।
" चलो ये तो अच्छा है न तुझे एक पक्की छोटी साली मिल गयी, साली पसंद है ? भाभी चिढ़ाने का मौका क्यों छोड़तीं,
" नहीं नहीं छोटी साली तो मैं ही हूँ, गुड्डी दी से छोटी हूँ, "
गुंजा ने तुरंत बात काट दी और अपना हक पेश कर दिया, एकमात्र छोटी साली होने का।
" बात तो सही है तेरी, गुड्डी तो इनकी क्यों, ...फिर गुड्डी साली तो नहीं हो सकती, साली तो तू ही है वो भी छोटी । "
और उस के बाद जिस तरह से भाभी ने गुड्डी को देखा फिर मुझे और जिस तरह से गुड्डी शर्मायी और उससे ज्यादा मैं, जो न जानता हो वो जान जाए मैं गुड्डी के साथ कौन सा रिश्ता चाहता हूँ। चन्दा भाभी और गूंजा दोनों गुड्डी के तो राजदार थे ही अब मेरे भी। मेरे मन में यही था की भाभी की ये बात सही हो जाय।
" चलो ये तो अच्छा है न तुझे एक पक्की छोटी साली मिल गयी, साली पसंद है ? भाभी मुझे चिढ़ाने का मौका क्यों छोड़तीं,
मैं एक बार चंदा भाभी को देखता एक बार गूंजा को, उसी तरह गूंजा की भी दीये की तरह बड़ी बड़ी कजरारी दावत देती ललचाती पास बुलाती गहरी आँखे, एक मेरा दोस्त ऐसी आँख वाली कभी दिख जाए तो बोलता था की ये आँख से ही चोद के झाड़ देगी, एकदम वैसी, भाभी ऐसी ही सुतवां नाक, उसी तरह रसीले होंठ, देखते ही चूसने का मन कर जाए, और उरोज एकदम कड़े कड़े, टाइट टॉप को फाड़ते,
" क्यों पसंद है साली" भाभी ने फिर पूछा,और अपने सवाल पर जोर देने के लिए अपने हाथ से मूसल चंद जो अब अच्छी तरह जगे थे, उन्हें खुल के मुठियाने लगी।
"एकदम " मैंने तुरंत जवाब दिया, और भाभी ने मौके का फायदा उठा के थोड़ा हलवा और मेरी प्लेट में डाल दिया, और बोलीं, " अरे इस ख़ुशी के मौके पे कुछ मीठा हो जाए "
और इस जीजा साली के रिश्ते पे चंदा भाभी की भी पक्की मुहर लग गयी ।
मेरी रगड़ाई का मौका हो और गुड्डी पीछे रह जाए, वो भी बोली, थोड़ा मेरी ओर से , और भाभी ने थोड़ा और मेरी प्लेट में,
और भाभी एकदम अपने अंदाज में
" तेरी बहने तो कभी ना ना नहींकरती डलवाते समय, ये तूने कहाँ से सीख लिया, लेकिन समझ लो ना ना करने से डालने वाला रुकता नहीं और डालता है, "
गुड्डी और गूंजा दोनों खिसखीस कर रही थीं, गुँजा बोली, थोड़ा सा एकलौती साली की तरफ से भी। लेकिन भाभी ने बात गुँजा की ओर मोड़ दी,
" कैसी साली हो? खुद दो और एक बात,... मेरे जीजू होते न तो एक बार मैं कहती तो प्लेट तक खा जाते ये तो जरा सा हलवा, "
" मेरे जीजू को कम मत समझियेगा, आपके जीजू से दो हाथ आगे रहेंगे, " गुँजा बोली और झुक कर हलवा मेरी प्लेट में,
टॉप की एक बटन खुल गयी थी और उभार के साथ गहराई भी, मैंने उसे देखने के चक्कर में
और जितना भाभी ने डाला था उसका दूना, "
" जीजू अब आपकी एकलौती साली के नाक का सवाल है, कुछ बचना नहीं चाहिए, " गुँजा मुस्कराते हुए बोली।
" और बचेगा तो याद रखियेगा जो कल गुड्डी की मम्मी ने कहा था वही यहाँ भी होगा " चंदा भाभी ने कल की बात याद दिलाई, मैं क्या भूल सकता था गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी की बात,
" हे क्या कल की बात, मुझे भी बताओ न दी, " गुँजा ने गुड्डी से इसरार किया और गुड्डी ने बता दिया,
" कल मम्मी ने इनके प्लेट में चावल डाला तो जैसे तेरे जीजू की आदत है ना ना करने की और मम्मी तो ना ना सुनती नहीं, बोली, जो भी बचे तेरे पिछवाड़े,
l" पिछवाड़े मतलब " गुँजा ने बड़ी भोली अदा से पूछा।
लेकिन चंदा भाभी ने अबकी असली गुस्से से घूर के गुड्डी को देख। घूरने वाली बात ही थी । कल गुड्डी के राशिफल में साफ़ साफ़ लिखा था की अब आगे से उसे चाहे कोई सामने बैठा हो, वो लंड, बुर, गांड, चुदाई यही सब बोलेगी, वरना, और आज गुड्डी फिर से,
गुड्डी समझ गयी और फिर से हँसते हुए गुँजा को समझाया
" अरे तेरे जीजू को, मम्मी ने बोला था इनके लिए, जो मुंह से नहीं खाएंगे, एक दाना भी प्लेट में बचा रहेगा वो गांड से अंदर जाएगा, सीधे नहीं तो जबरदस्ती। छुटकी तो बेलन भी ले के आ गयी थी . "
गुँजा मुस्कराते बोली, " एकदम सही, जाएगा तो दोनों ओर से पेट में ही। सोच लीजिए जीजू किधर से खाएंगे"
भाभी का एक हाथ मेरे खड़े खूंटे को कभी छूता, कभी सहला देता, कभी ऊँगली से सुपाड़े की आँख को रगड़ देता, लेकिन वो ऐसे भोली बनी थीं जैसे कुछ हो ही न रहा हो, पर मेरी हालत खराब हो रही थी।
भाभी ने मुझे समझाया,
" अरे खालो खालो तेरी एकलौती साली कह रही है, ये खास हलवा है इसमें बड़ी ताकत है बड़ी ताकत है और रात को बड़ी ताकत की जरूरत होगी तुमको ।"
गुँजा जानबूझ के अनजान बनते हुए पूछ बैठी, " क्यों रात को क्या होगा"
भाभी गुड्डी की टांग खींचने का मौका क्यों छोड़तीं,हंस के बोलीं, " अपनी दी से पूछ न, वही साथ जाएंगी, उन्हें मालूम होगा। "
गुड्डी की बोलती बंद, गाल लाल , लेकिन जवाब भाभी ने ही दिया,
" अरे वही होगा जो बहुत पहले हो जाना चाहिए था लेकिन कुछ लोगों की किस्मत में बुद्धू लोग पड़ जाते हैं"
गुंजा हँसी, - “मुझे क्यों देख रहे हैं। आपने मुझे थोड़ी दिए थे कपड़े। जिसे दिए थे उससे मांगिये…”
मैंने गुड्डी को देखा पर वो दुष्ट गुंजा से बोली- “दे दे ना देख बिचारे कैसे उघारे उघारे…”
“अरे तो कौन इनका शील भंग कर देगा…” गुंजा बोली, और इत्ती दया आ रही है तो अपना ही कुछ दे दे न इस बिचारे को…”
“क्यों शलवार सूट पहनियेगा?” गुड्डी ने हँसकर कहा।
मुझे भी मौका मिल रहा था छेड़खानी करने का। मैंने गुंजा से कहा- “हे तूने गायब किया है तुझी को देना पड़ेगा…” और फिर मुड़कर मैं चन्दा भाभी से बोला- “भाभी देखिये ना इत्ता तंग कर रही हैं…”
“देखो मैं जीजा साली के बीच नहीं पड़ने वाली, तुम जानो तेरी साली जाने, गुंजा की ओर देखते हुए मुस्कराके भाभी बोलीं।
लेकिन फिर गुंजा को चिढ़ाते बोलीं,
" लेकिन सोच ले तू, तेरे जीजा जरा बुद्धू हैं, बल्कि जरा नहीं पूरे, अगर मेरे जीजा होते न तो,..."
और मुस्करा के जिस तरह मेरी ओर देखा, मुझे कल रात की बात याद आ गयी की उनके मुंहबोले पड़ोस के जीजू ने कैसे होली में उनकी चिड़िया उड़ा दी थी।
लेकिन ये लड़कियां, गुंजा ने झट्ट से पाला बदल लिया और बोली, " देखिये मेरे जीजू को कुछ मत बोलियेगा, मेरी मर्जी, मेरे जीजू की मर्जी "
लेकिन भाभी मुझे खींचने पर लगी थीं, बोलीं, बुद्धू नहीं तो क्या, तुम लोगों ने इनका इतना सिंगार किया, ये कम से कम गुलाल का टीका ही लगा देते, इत्ता बड़ा सा शुद्ध मिर्ची वाला रोल तूने इन्हे खिलाया तो ये, "
और जिस तरह से बात उन्होंने रोकी मैं समझ गया लेकिन बात एक बार फिर मुड़ गयी।
मैंने ही बात मोड़ी, मुझे अपने कपड़ों की चिंता हो रही थी और भाभी की साडी भी वापस करनी थी ,
“पर, पर मुझे जाना है। और शापिंग उसके बाद रेस्टहाउस, सामान सब वहां है फिर रात होने के पहले पहुँचना भी है। क्यों गुड्डी तुम सुबह से कह रही हो शापिंग के लिए…”
“अरे ये बनारस है तुम्हारा मायका नहीं। यहाँ दुकानें रात 8-9 बजे तक बंद होती हैं…” भाभी बोली।
और क्या गुड्डी ने हामी भरी। शापिंग तो मैं आपसे करवाऊँगी ही चाहे ऐसे ही चलना पड़े। लेकिन उसकी जल्दी नहीं है। आज कल होली का सीजन है दुकान खूब देर तक खुली रहती है…”
मैं इधर-उधर देखने लगा फिर मैंने बात बदलने की कोशिश की- “हे लेकिन कपड़े तो चाहिए मैं कब तक ऐसे?”
“सुन तू अपना बर्मुडा दे दे न, वैसे भी वो इत्ता पुराना हो गया है…” गुड्डी ने गुंजा को उकसाया।
“दे दूँ। लेकिन कहीं किसी ने इनके ऊपर रंग वंग डाल दिया तो। मेरा तो खराब हो जाएगा…” बड़ी शोख अदा में गुंजा बोली।
मैंने मुड़कर झट चंदा भाभी की ओर देखा- “भाभी मतलब, रंग वंग। हमें जाना है और…”
“देखो, इसकी गारंटी मैं नहीं लेती। ससुराल है, बनारस है और तुम ऐसे चिकने हो की किसी का भी डालने का मन कर ही जाए…और अब तो एक छोटी साली भी मिल गयी, मैं साली होती तो अपने जीजू को बिना अच्छी तरह रंगे तो जाने नहीं देती, कम से कम पांच कोट, अब तुम जानो तेरी साली जाने, "”
तब तक गुड्डी भी बोल उठी- “और क्या दूबे भाभी भी तो आने वाली हैं और उनके साथ जिनकी नई-नई शादी हुई है इसी साल…”
भाभी ने उसे आँख तरेर कर घूरा जैसे उसने कोई स्टेट सीक्रेट लीक कर दिया हो। वो चालाक झट से बात पलटकर गुंजा की ओर मुड़ी और कहने लगी-
“हे तू चिंता मत कर, अगर जरा सा भी खराब हुआ तो ये तुम्हें नया दिलवाएंगे और साथ में टाप फ्री…”
“मैं इस चक्कर में नहीं पड़ती। तुम सब तो आज चले जाओगे और मैं स्कूल जा रही हूँ तो फिर?” गुंजा ने फिर अदा दिखायी।
“अरे यार इनका तो यही रास्ता है। होली से लौटकर मुझे छोड़ने तो आयेंगे फिर उस समय…” गुड्डी फिर मेरी ओर से बोली।
लेकिन गुंजा चूकने वाली नहीं थी। उसने फिर गुड्डी को छेड़ा- “अच्छा आप बहुत इनकी ओर से गारंटी ले रही हैं। कोई खास बात है क्या जो मुझे पता नहीं है…”
अबकी तो चंदा भाभी ऐसे मुश्कुराई की बस जो न समझने वाला हो वो भी समझ जाए।
“चलो मैं कहता हूँ शापिंग भी करूँगा और जो तुम कहोगी वो भी…” मैंने बात सम्हालने की कोशिश की।
“ये हुई न मेरे प्यारे प्यारे अच्छे मीठू जीजू वाली बात…” मेरे प्याले में चाय उड़ेलते हुए गुंजा बोली।
मेरी बेशर्म निगाहें उसके झुके उरोजों से चिपकी थी।
बेपरवाह वो चन्दा भाभी को चाय देती हुई बोली-
“क्यों मम्मी दे दूं। बिचारे बहुत कह रहे हैं…”
“तुम जानो, ये जानें। मुझे क्यों बीच में घसीट रही हो? जैसा तुम्हारा मन…और फिर जीजा साली के बीच में कोई नहीं पड़ता, मैं तो बिलकुल नहीं, देना तुम्हे लेना इन्हे, साली जाने, जीजा जाने,"” चन्दा भाभी अपने अंदाज में बोली।
मुझे चंदा भाभी की रात की बात याद आ गयी । होली में इनके पड़ोस के जीजा ने जब पिचकारी से सफ़ेद रंग वाली होली इनके साथ खेल ली, और वो घर लौटीं, पग पग पर चिल्ख उठती थी, और जब चंदा भाभी के मम्मी ने उन्हें देखा तो दुलरा के अपनी गोद में भींच लिया और चूम के बोली, " अच्छा हुआ चल आज से तू हम लोगों की बिरादरी में आ गयी। "
गुड्डी और गुंजा मेज समेट रही थी। चन्दा भाभी ने उठते हुए मेरी लुंगी की गाँठ की ओर झपट कर हाथ बढ़ाया। मैंने घबड़ाकर दोनों हाथों से उसे पकड़ लिया। उनका क्या ठिकाना कहीं खींचकर मजाक-मजाक में खोल ही न दें।
वो हँसकर बोली- “अब इसे वापस कर दीजिये, मैंने सिर्फ रात भरकर लिए दी थी। प्योर सिल्क की है। अगर इस पे रंग वंग पड़ गया न तो आपके उस मायके वाले माल को रात भर कोठे पे बैठाना पड़ेगा तब जाकर कीमत वसूल हो पाएगी…और इतना डर क्यों रहे हैं, खुलने से। किससे शर्मा रहे हैं, मुझसे की गुड्डी से और रही गुँजा तो वो अब तुम्हारी छोटी साली हो गयी है , ”
गुंजा और गुड्डी दोनों मुँह दबाये हँस रही थी।
भाभी जाते-जाते मुड़कर खड़ी हो गईं और मुझसे कहने लगी- “हे बस 10 मिनट है तुम्हारे पास, चाहे जो इन्तजाम करना हो कर लो…”
गुंजा अपने कमरे की ओर जा रही थी। मैंने पीछे से आवाज लगाईं- “हे दे दो ना…”
वो रुकी, मुश्कुराई और बोली- “चलो तुम इत्ता कहते हो तो। "
और आगे वो और पीछे-पीछे मैं उसके कमरे में चल पड़े। कमरे में गुंजा ने अपनी वार्डरोब खोली। झुक कर वो नीचे की शेल्फ पे ढूँढ़ रही थी।
मेरी तो हालत खराब हो गई।
झुकने से उसके गोरे-गोरे भरे मांसल नितम्ब एकदम ऊपर को उठ आये थे। उसकी युनिफार्म की स्कर्ट आलमोस्ट कमर तक उठ आई थी। उसने एक बहुत ही छोटी सी सफेद काटन की पैंटी पहन रखी थी, जो एकदम स्ट्रेच होकर उसकी दरारों में घुस गई थी।
उसके भरे-भरे किशोर चूतड़ों के साथ उसके बीच की दरार भी लगभग साफ दिख रही थी।
मेरे जंगबहादुर से नहीं रहा गया, वो एकदम 90° डिग्री हो गए और पीछे से रगड़ खाने लगे। अब जो होना है सो हो जाय, मुझसे नहीं रहा गया। मैंने उसकी कमर पकड़ ली। उसने कुछ नहीं बोला और थोड़ा और झुक गई सबसे नीचे वाली शेल्फ में देखते हुए।
मैं पहले धीरे-धीरे फिर कस-कसकर उसके नितम्बों पे अपना हथियार रगड़ने लगा। पहले तो उसने कुछ रेस्पोंड नहीं किया, लेकिन फिर जैसे दायें से बाएं देख रही हो और फिर बाएं से दायें अपनी कमर वो हिलाने लगी। इन सब में आगे से उसकी सफेद शर्ट भी थोड़ी सी स्कर्ट से बाहर निकल आई थी। मेरा एक हाथ उसके पेट पे चला गया। एकदम मक्खन मलाई।
वो कुछ नहीं बोली बस उसका अपने पिछवाड़े को मेरे पीछे रगड़ना थोड़ा हल्का हो गया। मेरी उगलियां ऊपर की ओर बढीं और फिर उसकी ब्रा के बेस पे आकर रुक गईं। थोड़ी देर में दो उंगलियों ने और जोश दिखाया और ब्रा के अन्दर घुस गईं।
तभी वो झटके से खड़ी हो गई और मेरी ओर मुड़ गई। उसके उरोज अब मेरे सीने से रगड़ खा रहे थे। अपने आप मेरे हाथ उसके नितम्बों पे पहुँच गए।
मुश्कुराकर वो बोली- “मैं एकदम बुद्धू हूँ। तुम्हारी तरह…”
जवाब मेरे हाथों ने दिया, कसकर उसके नितम्ब दबाकर- “क्यों और मैं कैसे बुद्धू हूँ…” मैंने उसके कानों को लगभग होंठों से सहलाते पूछा।
“इसलिए,... जाने दो। गुड्डी दीदी कहती थी की आप बड़े बुद्धू हो, भले ही पढ़ाई में चाहे जित्ते तेज हो। लेकिन मुझे लगता था की आप इत्ते, ये कैसे हो सकता है की। लेकिन जब आज तुमसे मिली। मैं समझ गई की वो जो कहती थी ना आप…”
गुंजा के शब्द मिश्री घोल रहे थे।
मेरे हाथ अब खुलकर उसके चूतड़ दबा रहे थे।
“तो क्या समझा तुमने की मैं उतना बुद्धू नहीं हूँ बल्की उससे कम हूँ या एकदम नहीं हूँ…” मैंने कहा।
उसने कसकर मेरे गाल पे चिकोटी काटी। मेरी दो उंगलियां उसकी गाण्ड की दरार में धंस गई। ‘वो’ तो सामने कसकर रगड़ खा ही रहा था।
लेकिन गूंजा एक बार फिर पलट गयी, अब उसका मुंह अलमारी की ओर, सामने ही टंगा था, बारमूडा उसका,
खिलखिला के हंसी वो, " जी नहीं, गुड्डी दी जित्ता कह रही थीं न उससे भी बहुत ज्यादा, और उसका असर मेरे ऊपर भी पड़ गया, सामने टंगा बारमूडा नहीं दिख रहा , दूँगी तो मैं, अब स्साली कौन जो जीजू को मना करे दे, लेकिन पहले मेरे दिल पे, मेरे सीने पे हाथ रख के कसम खाइये की मेरा इन्तजार करेंगे स्कूल से लौटने का, और मुझसे होली खेल के ही गुड्डी दीदी के साथ जाएंगे। "
वो बोली और खुद ही खींच के मेरा हाथ अपने उभारों पे अपने सफ़ेद टॉप के ऊपर से,"
एक बार फिर मेरा जगा हुआ मूसल उस षोडसी के नितम्बो से रगड़ खा रहा था, उसके उठने में स्कर्ट भी उसकी ऊपर उठ गयी, और लुंगीबनी साडी भी कब तक मूसल चंद का गुस्सा सहती, वो भी साली जीजा के बीच से हट गयी थी, इसलिए खूंटा अब सीधे उस दर्जा नौ वाली के नितम्बों की दरार पर, छोटी सी सफ़ेद पैंटी उसकी दरार के बीच में सिकुड़ गयी थी,
मेरी हालत खराब थी, मेरे हाथ में वो रुई के गोल गोल फाहे,
और मैं गुंजा को प्रॉमिस कर रहा था, पक्का तेरा वेट करूँगा, स्कूल से तेरे आने के बाद ही, श्योर कसम से
लेकिन गूंजा गुड्डी की असली बहन बल्कि असली बहन से भी बढ़के, हड़काने में एकदम गुड्डी की तरह, हड़काते हुए बोली,
" दीदी ठीक ही बोलती थीं, आप बुद्धू ही नहीं महा बुद्धू हो, मैंने कहा था सीने पे, दिल पे और आप मेरे टॉप पे हाथ रख के कसम खा रहे हो, ये भी नहीं मालूम की दिल कहाँ होता है। "
और जिस टीनेजर ब्रा के अंदर घुसने में मेरी ऊँगली को सात करम हो रहे थे, माथे पर पसीना आ रहा था, उस लड़की ने, सीधे मेरे दोनों हाथों को पकड़ के ब्रा को दरकाते ऊपर कर के सीधे अपने सीने पर,
मेरे दोनों हाथों में गोल गोल हवा मिठाई,
थोड़ी देर पहले नाश्ते की टेबल पर बस मन यही कर रहा था की एक बार ऊपर से ही गलती से ही सही इस टीनेजर के ये उभार टॉप के ऊपर से ही छूने को मिल जाएँ और अब खुद उसने पकड़ के,
मैं हलके हलके से छू रहा था लेकिन अभी भी गूंजा का हाथ मेरे हाथों के ऊपर था और उसने खुद मेरे हाथ अपने उभारों पर दबा के ुइशारा कर दिया उसे क्या चाहिए, और बोली, " बोल न, अभी जो बोल रहे थे, "
लेकिन गूंजा गुड्डी की असली बहन बल्कि असली बहन से भी बढ़के, हड़काने में एकदम गुड्डी की तरह, हड़काते हुए बोली,
" दीदी ठीक ही बोलती थीं, आप बुद्धू ही नहीं महा बुद्धू हो, मैंने कहा था सीने पे, दिल पे और आप मेरे टॉप पे हाथ रख के कसम खा रहे हो, ये भी नहीं मालूम की दिल कहाँ होता है। "
और जिस टीनेजर ब्रा के अंदर घुसने में मेरी ऊँगली को सात करम हो रहे थे, माथे पर पसीना आ रहा था, उस लड़की ने, सीधे मेरे दोनों हाथों को पकड़ के ब्रा को दरकाते ऊपर कर के सीधे अपने सीने पर,
मेरे दोनों हाथों में गोल गोल, हवा मिठाई
थोड़ी देर पहले नाश्ते की टेबल पर बस मन यही कर रहा था की एक बार ऊपर से ही गलती से ही सही इस टीनेजर के ये उभार टॉप के ऊपर से ही छूने को मिल जाएँ और अब खुद उसने पकड़ के,
मैं हलके हलके से छू रहा था लेकिन अभी भी गूंजा का हाथ मेरे हाथों के ऊपर था और उसने खुद मेरे हाथ अपने उभारों पर दबा के इशारा कर दिया उसे क्या चाहिए, और बोली,
" बोल न, अभी जो बोल रहे थे, "
आवाज कहाँ मेरी निकलती है, हाथों में वो जो मुलायम मुलायम छुअन हो रही थी, कभी कभी आइस पाइस खेलने में अगर कोई लड़की जानबूझ के या गलती से ही साथ छुप गयी तो जो फीलिंग होती थी उससे हजार गुना ज्यादा।
लेकिन अब मैं उतना नौसिखिया भी नहीं था , कल चंदा भाभी के नाइट स्कूल में पढाई की, कच्ची कलियों वाला पाठ तो उन्होंने वेरी इम्पोर्टनेट कह के पढ़ाया था अपनी केस स्टडी भी कराई,
तो मेरे हाथ अब हलके हलके उन बस आते हुए उरोजों को सहला रहे थे, कभी कस के भी दबा देते तो उसकी हल्की सी सिसकी निकल जाती, तर्जनी से मैं बस उभर रहे निप्स को फ्लिक कर देता और मस्ती से जोबन पथरा रहे थे , सस्ने उसकी लम्बी लम्बी चल रही थीं, साफ़ था पहली बार किसी लड़के का हाथ वहां पड़ा था।
" बोलो न प्रॉमिस करो न " हलके हलके गूंजा की आवाज निकल रही थी।
ये स्साली नौवीं-दसवीं वालियों के चूँचिया उठान, दुप्पटे की तीन परत के अंदर से भी अपनी महक बिखेरते हैं और यहाँ तो उसने खुद खींच के अपने जुबना पे,
अब खुल के उसके जोबन को दबाते, मसलते, रगड़ते और साथ साथ में उसके कोमल गुलाबी गालों पे अपने गाल रगड़ते, मैं बोल रहा था
" एकदम तुम्हारा वेट करूँगा, बिना तुझसे होली खेले नहीं जाऊँगा, पक्का। जब भी स्कूल से लौटोगी तब तक, प्रॉमिस, पिंकी प्रॉमिस, , फिर थोड़ा सा टोन बदल के कस के पूरी ताकत से उसकी चूँची रगड़ के मैंने पूछा उससे हामी भरवाई,
" मेरा जहाँ मन करेगा, मैं वहां रंग लगाऊंगा, फिर गाली मत देना, गुस्सा मत होना, "
और यह के कस के उसके निप्स पे चिकोटी काट के मैंने अपना इरादा साफ कर दिया की मैं कहाँ रंग लगाऊंगा,
वो जोर से खिलखिलाई, फर्श पर हजारों मोती लुढ़क गए, फिर दूध खील वाली हंसी के साथ बोली,
" जीजू गाली तो मैं दूंगी, माँ की बहन की सब की, आखिर साली हूँ, साली कौन जो गाली न दे, और गुस्सा होउंगी अगर आप मेरे आने के पहले चले गए बिना मुझसे मिले, होली खेले, और यह कह के मत डराइए की मैं यहाँ लगाऊंगा, वहां लगाऊंगा, जहाँ मन करे वहां लगाइये, लेकिन एक बात समझ लीजिये, "
उसने एक जबरदस्त पॉज दिया,
कहते हैं न की मरद की जात कमीनी होती है लालची, एकदम सही कहते हैं।
पहले तो मेरा मन कर रहा था, उन उभारों को बस जरा सा बस हलके जैसे गलती से, बस वस में चढ़ते उतरते छू जाता है, वैसे छू जाए, और अब जब दोनों लड्डू मेरे हाथ में थे, तो मेरे मूसल चंद मचल रहे थे , हाथ रस ले रहे है तो मैंने कौन सी गलती की है, एकदम फनफनाये, बौराये, स्कर्ट पहले ही एकदम छल्ले की तरह सिकुड़ी मुकडी कमर के पास सटी, सफ़ेद दो अंगुल की चड्ढी, सहमी दरार के बीच छिपी सिकुड़ी, और चंदा भाभी ने कल जो मोटे सुपाड़े की चमड़ी अपने हाथ से
खोली थी, उसके बाद ही बोल दिया था,
' खबरदार, जो इस दुल्हन का घूंघट फिर से किया तो, कपडे से रगड़ रगड़ कर, खुले सुपाड़े की हालत ऐसी हो जायेगी की एकदम ठस, जल्दी झड़ेगा नहीं और जिस लड़की की चमड़ी पर छू भर गया तो वो हरदम के लिए इसकी पागलहो जाएगी । "
तो बस वही खुला सुपाड़ा उस दर्जा नौ वाली के नितम्बो की कोमल कोमल चमड़ी पर रगड़ रहा था, बस दरार से इंच भर दूर।
गुंजा ने पॉज के बाद एक हल्का सा टर्न लिया, और जिस काम का मेरा मन कर रहा था पर हिम्मत नहीं पड़ रही थी वो ।
हलकी सी चुम्मी सीधे लिप्पी, और अपने दोनों होंठों के बीच मेरे नीचे वाले होंठ को दबा के हलके से चूस लिया और जब छोड़ा तो वापस चेहरा सामने और बोली
" आप को जहाँ मन करेगा लगाईयेगा लेकिन मेरा भी जहाँ मन करेगा लगाउंगी, और मन भर लगाउंगी, चुप चाप लगवा लीजियेगा, "
और वो कहाँ लगाएगी ये भी उसने साफ़ कर दिया,
कहते हैं न महिलायें अपनी भावनाएं कई ढंग से व्यक्त करती हैं तो गूंजा ने, अपने कोमल नितम्बो को उस बौराये, प्यासे, पागल खुले सुपाड़े पर रगड़ रगड़ के, पांच बार दाएं बाएं कर के, और खूंटा एकदम प्रेम गली की सांकरी गली के बीच, बस वो पतली सी पैंटी न होती तो,
और प्यार से बोली,
" ये जो बहुत बौरा रहा हैंन, कम से कम पांच कोट, वो भी एकदम पक्के वाले, सबसे पहले गाढ़ा लाल, फिर काही , फिर बैगनी, फिर नीला और सबसे ऊपर पेण्ट, खूब दबा दबा के, आप भी याद करियेगा बनारस में कोई छोटी साली मिली थी।"
" लेकिन मैं भी फिर अंदर तक रंग लगाऊंगा एकदम अंदर तक, सफ़ेद वाला, सोच लो पूरा डालूंगा सोच ले "
मैंने भी अपना इरादा साफ़ कर दिया,
धक्का मुक्की में चड्ढी सरक गयी, मूसलचंद के गुलाबी फांकों तक जाने का रस्ता खुल गया , खुला सुपाड़ा अब उन कुँवारी फांको को रगड़ रहा था,
गूंजा ने कस के अपनी टाँगे भींच ली और मूसल चंद एकदम फंस गए, वो शोख अदा से बोली,
" लगा दीजियेगा, अंदर तक, और मैं डरने वाली साली नहीं हूँ , सफ़ेद रंग से भी नहीं, आज कल हर तरह की दवा आती है, बस आप ने मेरी कसम खायी है अपनी छोटी साली की कसम बिना मुझसे होली खेले नहीं जाएंगे ये याद रखियेगा।"
और तभी कुछ खट्ट से हुआ।
---और झट्ट से, ये लड़कियां भी न, गूंजा की स्कर्ट नीचे, जुबना का ढक्क्न बंद, सब कुछ चाक चौबंद, मेरा हाथ भी बाहर, और गूंजा ने बात बदल दी,
“जी नहीं। आप, तुम उतने नहीं , उससे भी ज्यादा बुद्धू हो, और आपके असर से मैं भी। ये देखिये बरमुडा मैंने हुक पे टांग रखा था और नीचे ढूँढ़ रही थी। कल रात भर मैं इसे पहने रही, बल्कि दो दिन से यही पहने हूँ, घर में जब स्कूल की ड्रेस पहनी तो उतारकर यहीं टांग दी और नीचे ढूँढ़ रही थी…” वो बोली और उतारकर उसने मुझे पकड़ा दिया।
उसके अन्दर से उसकी देह की महक आ रही थी। वो शर्मा गई और बोली- “असल में मैं घर में, वो, मेरा, वो नहीं…”
मैंने छेड़ा “अरे साफ-साफ बोलो ना की पैंटी नहीं पहनती घर में। तो ठीक तो है उसको भी हवा लगनी चाहिये। तुम्हारी परी को…”
और ये कहकर मैंने कसकर उसके बरमुडा को सूंघ लिया। यहाँ तक की जहाँ उसकी परी रगड़ खाती थी, उस जगह को उसे दिखा के चाट भी लिया।
“हट बदमाश। गंदे। छि। कभी लगता है एकदम सीधे हो और कभी एकदम बदमाश…मेरा क्या क्या लगा होगा इसमें , दो दिन से और इसके अंदर कुछ नहीं पहनती हूँ ”
मुझे मुक्के से मारते हुये वो बोली-
“और अगर मेरे आने से पहले गए तो मैं कभी नहीं बोलूंगी…”
“कैसे जाऊँगा? तुम मेरी छोटी साली जो हो और तुम्हारी मम्मी ने भी बोल दिया। अब तो मुझे लाइसेंस मिल गया है। बिना साली को रगड़े रंग लगाये। होली खेले…और जब इसमें से इत्ती अच्छी महक आ रही है तो तेरी परी कित्ती महकती होगी, अब तो बिना उसे सूंघे, "
बात मेरी कट गयी , नहीं गुंजा ने कुछ नहीं बोला, बस कस के एक जबरदस्त मुक्का लगाया पीठ में और बोली,
“होली तो मैं खेलूंगी आपसे, आज आपको पता चलेगा की है कोई रंग लगाने वाली…हर जगह पांच कोट ” मुझसे दूर हटकर मुश्कुराते हुए वो बोली।
तब तक नीचे से चन्दा भाभी की आवाज आई-
“हे नीना इंतजार कर रही है तुम्हारा, आओ बस आने वाली है…”
" आती हूँ मम्मी जरा जीजू को अपना बरमूडा दे दूँ।"
" एकदम, " हँसते हुए चंदा भाभी बोलीं " मैं तो अपनी साडी दस मिनट में लेलूँगी, तू नहीं देगी तो तेरे जीजू उघारे उघारे फिरेंगे "
फिर गुंजा बुदबुदाते हुए बोली,
" स्साली कमीनी नीना, बस का झूठा, बस तो अभी दस मिनट बाद आएगी,उसे यार से मिलने की देर हो रही है , गुलाबो में मोटे मोटे चींटे काट रहे होंगे, बस के नाम पे लड़को से नैन मटक्का करेगी, कित्ती बार उस की हाजिरी मैं भरवाती हूँ, क्लास में पीछे एक सीढ़ी है, वैसे तो बंद रहती है, लेकिन जरा सा झटका दो बस, क्लास एक बार शुरू हो जाए नीना महारानी उसी सीढ़ी से गायब, साल भर में छह यारों से मजे ले चुकी हैं, चार तो अभी भी हैं, और बहाना बना रही हैं क्लास का, बस का "
तभी फिर से खट्ट हुआ और हम दोनों की निगाह दीवार की ओर, एक मूषक महराज थे दीवाल के सहारे और हम लोगो के देखते ही झट्ट से बिल में गायब, मतलब पहली बार वाली खट्ट भी उन्ही की कृपा थी।
गूंजा बोली, चूहा,
और खिलखिला के 'मोटे चूहे' को पकड़ लिया। और अबकी कस के, पहले लुंगी के ऊपर से फिर लुंगी हटा के, और अबकी खुल के कस के, प्यार से भी और ताकत से भी,
" हे ये चूहा भी बिल में घुसना चाहता है, " मैंने उस टीनेजर को छेड़ा,
" एकदम घुसेगा, आज रात को गुड्डी दीदी के बिल में, पक्का। " खिलखिलाते हए वो बोली,
कभी वो उसे कस के दबा देती तो कभी हलके से बस पकडे रहती जैसे उसकी मोटाई का कड़ेपन का अहसास कर रही हो।
" और अगर ये गुड्डी दीदी की छोटी दीदी के बिल में घुसना चाहे तो "
मैंने फिर थाह लेने की कोशिश की।
गूंजा ने ' चूहे ' को पकडे पकडे , अपनी ऊँगली से न जाने कैसे अपनी चड्ढी सरकायी, टाँगे थोड़ी सी फैलायीं, और अगले पल चूहे का मुंह, दोनों गुलाबी फांको पर, हलकी सी पनियायी, गूंजा ने फिर टाँगे कस के ' चूहे' पर भींच ली और मुझे हड़काते हुए बोली
" चूहे की मर्जी, तुमसे मतलब, फिर चूहा है तो बिल में जाएगा ही "
लेकिन हम लोगो की मस्ती में विघ्न पड़ गया, नीचे से नीना की आवाज आयी, यार क्या कर रही है, मैं आती हूँ ऊपर, देर हो रही है, तुझसे बोलै था न आज जल्दी निकलना है थोड़ा।
" नहीं नहीं तू मत आ मैं आती हूँ नीचे बस एक मिनट, " गूंजा बोली और एक मिनट में चूहा लुंगी के अंदर, स्कर्ट टॉप दुरुस्त।
“हे टाप…” मैंने याद दिलाया।
“मैं भी। आप के चक्कर में। ये भी यहीं है…” और ऊपर से उठाकर उसने दे दिया।
तब तक जैसे उसको कुछ याद आया हो- “हे और मेरी होली गिफ्ट…”
“एकदम कहो तो आज ही…” मैं बोला।
“ना आज तो मेरी शाम को एक्स्ट्रा क्लास है। आप लौटकर आओगे ना होली के चार दिन बाद तब। और छोडूंगी नहीं “
लेकिन फिर बोली ठीक है, मंजूर और बाहर निकालने के लिए बढ़ी।
मैंने आवाज देकर रोक लिया- “बस एक मिनट। जरा मैं ये बर्मुडा ट्राई तो कर लूं कहीं अन्दर न जाए तो…”
हँसती हुई वो बोली- “जाएगा जाएगा। पूरा अन्दर जाएगा। बस ट्राई तो करिए…”
मैं समझ रहा था वो क्या इशारा कर रही है लेकिन मेरा पूरा ध्यान लुंगी के अन्दर उसे चढ़ाने में लगा था। डर ये लग रहा था की कहीं सरक के लुंगी नीचे न आ जाए और मैं उसके सामने।
तभी गुड्डी घुसी, एकदम जोश में। हम दोनों को देखकर जोर से बोली-
“अरे 10 मिनट कब के हो गए और तुमने चेंज भी नहीं किया, और ये कैसे पहन रहे हो। पहले साड़ी उतार दो…”
और ये कहकर पास में आकर साड़ी कम लुंगी खींचने लगी।
मेरे दोनों हाथ तो बरमुडा ऊपर चढ़ाने में फँसे थे। मैंने बहुत विरोध किया, लेकिन तब तक गुंजा को देखकर गुड्डी बोली-
“अच्छा तो इससे शर्मा रहे हो। क्यों देख लेगी तो बुरा लगेगा क्या?” गुंजा से उसने पूछा।
उसने ना में कसकर दायें से बाएं सिर हिलाया।
गुड्डी के एक झटके से चन्दा भाभी की साड़ी जो मैंने लुंगी की तरह पहन रखी थी उसके हाथ में। गुड्डी ने आधा पहना बर्मुडा भी नीचे खींच दिया। मेरे दोनों हाथ तो ‘वहां’ थे उसे किसी तरह छिपाने की कोशिश में और गूंजा और गुड्डी दोनों की निगाहें वहीँ, मुस्कराती छेड़तीं,
लुंगी गुड्डी के हाथ में, बारमूडा अभी घुटने तक भी नहीं पहुंचा था और इश्क मुश्क की तरह खड़ा खूंटा भी कहीं छुपता है, दोनों हाथों के पीछे से भी झांक रहा था।
ऊपर से गुड्डी और उसकी डांट,
" हे हाथ हटाओ, क्या पकड़ रखा है, शर्म नहीं आती। दो दो इत्ते मस्त माल सामने खड़े हैं और अभी भी ६१, ६२ कर रहे हो,"
और फिर जोर से घुड़की वो, "हटाओ हाथ दोनों हाथ एकदम पीछे, बोल तो दिया मेरी बहन ने बुरा नहीं मानेगी, तुरंत"
मेरे दोनों हाथ पीछे, गुड्डी की बात मेरे हाथ न माने ये हो नहीं सकता,
खुला पोस्टर निकला हीरो,
जैसे खटके वाला चाकू होता है न, बटन दबाया नौ इंच का चाकू बाहर, बस एकदम उसी तरह, और सामने खड़ी दोनों टीनेजर्स को सलाम ठोंकता, ' बाली उमर को सलाम'
गूंजा की आँखे वहीँ चिपकी, उसने पकड़ा था सहलाया था, दुलराया था, दबाया था, मोटाई और कड़ेपन का पक्का अंदाज हो गया था उसे, लेकिन देखा तो नहीं था,
दोनों किशोरियां थोड़ी देर तक आपस में फुसफुसाई, फिर खिलखिलायीं, फिर गुड्डी ही मुझसे बोली,
" इसी के लिए इत्ता शरमा रहे थे, देखा मेरी छोटी बहन ने एकदम बुरा नहीं माना "
मेरे मुंह से निकलते निकलते रह गया, बुर वालियों का क्या बुरा मानना, लेकिन गूंजा तो पता नहीं गुड्डी जबरदस्त पिटाई लगा देती .
वो नौवे में पढ़ने वाली लड़की,मेरी छोटी साली, गुँजा एकदम एकटक वहीँ देख रही थी, खुला मोटा सुपाड़ा, एकदम लाल भभुका, उसकी कलाई इतना मोटा खूंटा और निगाहों से नाप कर उसने अंदाज लगा लिया था उसके बित्ते से कम तो नहीं ही होगा, बड़ा भले ही हो,
मैंने बारमूडा ऊपर चढ़ाने की कोशिश की तो बड़ी बहन की डांट फिर पड़ गयी,
"किसने कहा था हाथ आगे करने को और कल क्या मना किया अब तेरे हाथों की कारस्तानी बंद, हम दोनों बहने सामने खड़ी है और ये अपना हाथ जरूर,"
हाथ फिर पीछे हो गए, गूंजा मुझे देख के चिढ़ाते हुए मुस्करा रही थी, गुड्डी ने अब उससे पूछा, " क्या देख रही है इत्ते ध्यान से "
" दी बस यही सोच रही हूँ, मैंने सोचा था की पांच कोट रंग लगाउंगी इस पर, चार कोट रंग फिर पेण्ट, और अब सोच रही हूँ की और ज्यादा तो नहीं, ...पांच से काम नहीं चलेगा,"
" अरे यार तू मेरी छोटी बहन है, पांच दस कोट जित्ता मन करे उत्ता लगाना, हाँ इनके दोनों हाथ एकदम इसी तरह पीछे रहेंगे, तुम्हे एकदम नहीं मना करेंगे, ये गुड्डी की गारंटी, तेरा पूरा हक है जो चाहे करना, और ये ज़रा भी इधर उधर करें तो मैं हूँ न, क्लास लूंगी कस के,और रहा रंग छुड़ाने का तो इन्हे इनके मायके ले ही चल रही हूँ, वहां इनकी बहने हैं चूस चूस के छुड़ायेंगी। बड़ी बहन से पहले छोटी बहन का हक होता है। "
गुड्डी के पास हर सवाल का जवाब था, एकदम बड़ी बहन की तरह बोली।
लेकिन तब तक नीचे से नीना की आवाज आयी। लग रहा था उसका यार बार बार मेसेज कर रहा थ।
झट से दोनों बहनों ने मिल के मेरा मतलब गूंजा का बारमूडा ऊपर चढ़ा दिया, हाँ खूंटा पकड़ के गूंजा ने ही अंदर किया और अंदर करने के पहले, अपने कोमल किशोर हाथों से कस के दबा भी दिया, हलके से मुठिया भी दिया और अंगूठे से खुले सुपाड़े को रगड़ दिया, उसकी आँखे मेरी आँखों में लगातार झांक रही थीं, जैसे कह रही हो,
"जीजू प्लीज होली खेल के जाना और अगर चूहा बिल में घुसना चाहे तो घुसे मेरी बिल को कोई परेशानी नहीं है। "
टी शर्ट मैंने खुद पहन ली। हम दोनों गूंजा के कमरे से निकल के छत पे आये जहाँ एक कोने में किचेन थ। वहीँ पास में ही नीचे जाने वाली सीढ़ी थी। हम तीनो के निकलने की आवाज सुन के चंदा भाभी भी बाहर आयी, गूंजा का टिफिन ले के। गुड्डी ने उनकी साडी वापस कर दी
" देखिये एकदम सही सलामत, और मेरी छोटी बहन ने आपकी साडी बचाने के लिए कितने त्याग बलिदान का परिचय दिया, अपना फेवरिट बारमूडा, "
लेकिन गुड्डी की आगे की बात चंदा भाभी की हंसी में खो गयी, हंसी रुके फिर चालू हो जाये, मुझे देख देख के
और अब गुड्डी भी फिर गूंजा भी, और बात साफ़ की, और किसने गुड्डी ने
" अरे इन्हे लड़कियों वाले कपडे अच्छे लगते हैं कल रात में आपकी साडी, आज दिन में मेरी बहन का बारमूडा और टी, फबते भी हैं उपपर और क्या पता लड़कियों वाली बाकी चीजें भी अच्छी लगती हों "
" एकदम सही बोल रही है तू " चंदा भाभी गुड्डी से बोलीं और फिर हंसने का दौर शुरू, फिर मुझसे वो बोलीं,
" ये मत कहना की छेद, अरे एक बार निहुरा देंगे न, लंबा छेद न सही गोल छेद सही, छेद तो छेद, बस घंटे भर में होली शुरू हो जाएगी यही छत पर, "
और अब चंदा भाभी की तोप गूंजा की ओर मुड़ गयी,
" सुबह से बोल रही थी न मेरे जीजू, मैंने क्या कहा था तेरे जीजू बुद्धू हैं एकदम बुद्धू जब अक्ल बंट रही थी अपनी बहनों के चक्कर में पड़े थे। अब तो मुझे लग रहा है तेरे जीजू बुद्धू नहीं है महा बुद्धू हैं एकदम ही बुद्धू। "
" हे मेरे जीजू को कुछ मत कहियेगा, इत्ते मुश्किल से तो एक जीजू मिले हैं होली के टाइम पे और आप भी "
गूंजा ने मुंह बनाया और एकदम मुझसे चिपक के खड़ी हो गयी, एक हाथ मेरी कमर में बाँध लिया। और फिर चमक के बोली,
" लेकिन आप ऐसे क्यूँ कह रही हैं "
चंदा भाभी पे एक बार फिर हंसने का दौर चढ़ गया था, उनकी निगाहें गूंजा के बारमूडा से जिसे मैं पहने था, चिपकी थी। फिर किसी तरह बोली,
" बुद्धू तो हैं ही, और बुद्धू बनाया तुम्ही ने, बेचारे को मिठाई का डिब्बा देकर टरका दिया, अंदर की मिठाई,, मेरे जीजू होते तो बिना अंदर की मिठाई खाये, डिब्बे के अंदर हाथ लगाए, छोड़ते नही। स्कूल की ऐसी की तैसी "
मैं भी समझ रहा था, गूंजा और गुड्डी भी की मिठाई का डिब्बा बारमूडा को कहा जा रहा है और अंदर की मिठाई,...
लेकिन तब तक सीढ़ी से किसी के चढ़ने की आवाज आयी, हम सब समझ गए की नीना ही होगी, बस गूंजा धड़धड़ा के नीचे,
लेकिन जाने के पहले पूरा प्रोग्राम बता गयी।
" बस दो घण्टे में आती हूँ स्कूल से, जीजू को बोल दिया है मेरे आने से पहले जाएंगे नहीं, और लौट के ऐसी होली में रगड़ाई करुँगी न की ये भी याद करेंगी एक गूंजा नाम की साली मिली थी बनारस वाली । "
बोल वो चंदा भाभी से रही थी लेकिन मेसेज मुझे दे रही थी, बस ब्रेक के बाद, साली पहले की सालियों से आगे निकलेगी। मिठाई मिलेगी और मन भर मिलेगी।
गूंजा नीचे चली गयी, गुड्डी को षड्यंत्रकारियों की तरह चंदा भाभी ने किचेन में गुड्डी को बुला लिय।
बचा मैं, और मैं छत के एक कोने की मुंडेर की ओर, जहाँ से नीचे सड़क दिख रही थी और गूंजा और उसकी सहेली, की बात साफ़ सुनाई पड़ रही थी।
गुंजा उसे हड़का रही थी, " स्साली, क्यों तेरे चींटे काट , रहे थे, दस मिनट रुक नहीं सकती थी क्य। मुझे भी मालूम है बस कब आती है ।
नीना उसे समझा रही थी, " अरे यार वो स्साला चूतिया बंटीवा, मेसेज पे मेसेज ठेले जा रहा था, और बस से किसे जाना है। मुझे तो उसकी बाइक पे, होली की शॉपिंग के लिए, तू भी प्लीज मेरी हाजिरी लगा देना, मेरी अच्छी मेरी प्यारी गुंजा, लेकिन ये बता तू क्या कर रही थी, तुझे क्यों देर लग रही थी, कोई था क्या, हाय हैंडसम टाइप। "
" और क्या " गुंजा खिलखिलाते हुए बोली। फिर उससे रहा नहीं गया , उगल दी । मेरे जीजू हैं, एकदम हैंडसम स्मार्ट, बहुत प्यारे से।
और फिर दोनों लड़कियों ने कुछ फुसफुसा के बात की जो सुनाई नहीं पड़ा लेकिन जिस तरह गुंजा की सहेली ने रिएक्ट किया, मुझे थोड़ा अंदाज लग गया,
" हाय सच्ची, यार एक बार मेरे साथ भी, " वो बोली।
" कत्तई नहीं, तेरे पास तो आलरेडी चार हैं, लेकिन मेरे जीजू अकेले उन चारों के बराबर हैं " गुंजा बड़े ठसके से बोली।
" यार जस्ट एक बाइट, उसकी सहेली रिक्वेस्ट करते बोली, फिर हँसते हुए चिढ़ाया, "यार अब तो तेरी चिड़िया भी जल्दी उड़ने लगेगी तू भी हम लोगों की बिरादरी में आ जायेगी। "
" जल्दी क्यों, आज क्यों नहीं " गुंजा ने मुंह फुला के बोला, और फिर राज खोला,
" जानती है मैंने उनसे कसम दिलवाई है वो मेरा वेट करेंगे होली के लिए, स्कूल से लौटने का वरना वो तो कल से जल्दी जाने की जिद किये थे, लेकिन मेरी बात, झट्ट मान गए। "
तब तक एक लड़का बाइक ले के दिखा और सहेली उस की बाइक पे पीछे और गुंजा पास के बस स्टैंड पे,
और मेरे पिछवाड़े तभी एक जोर की पड़ी, चटाक,
"स्साले लौंडिया ताड़ रहे हो, स्कूल की।"
और कौन होगा गुड्डी थी, उसके एक हाथ में तौलिया थी । पहले हड़काया फिर समझाया,
" इतना तो लौंडिया नहीं शर्माती जो लुंगी खोलने में लाज लग रही थी। अरे मेरी छोटी बहन है, तेरा देख लेगी तो क्या एकाध इंच कम हो जाएगा, बेवकूफों की तरह हाथ से छिपा रहे थे, और अब पीछे से उसके मटकते हुए चूतड़ देख रहे हो। चंदा भाभी सही कह रही थी , बेचारी मेरी छोटी बहन को कैसा जीजा मिला है, दूसरा जीजा होता तो अबतक साली के ताले में ताली लगा चुका होता। अभी स्कूल से लौटेगी न, उफ़ तुम भी न । "
गुड्डी झुंझला रही थी,
क्या हुआ मैंने पूछा
" चलो बारमूडा उतरो, माना तेरी साली की महक है इसके अंदर लेकिन फ़ौरन ये तौलिया,
और बारमूडा और टी अब गुड्डी के हाथ में था ।
पलंग पे पड़ा एक छोटा सा तौलिया उसने मेरी ओर बढ़ा दिया और बोली- “ये कपड़े नहाने तैयार होने के बाद…”
“मतलब?” मुश्किल से पीछे मुड़कर उस तौलिये को बाँधकर मैंने पूछा।
अब खुलकर हँसती हुई उस सारंग नयनी ने कहा-
“मतलब ये है की आपकी भाभी ने आदेश दिया है की आपको चिकनी चमेली बना दिया जाय। सुबह तो सिर्फ मंजन किया था ना। तो फिर…” और हाथ पकड़कर वो मुझे चंदा भाभी के कमरे में ले आई जहां मैं रात में सोया था।
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