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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३०

कौन है चुम्मन ?

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उन्होंने गुड्डी को होंठों पे उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया और एक मिनट। वो बोले और जाकर दरवाजा बंद कर दिया। लौटकर उन्होंने रिकार्डिंग फिर से आन की और फुसफुसाते हुए गुड्डी से बोले- “ध्यान से एक बार फिर से सुनो, और बहुत कम और बहुत धीमे बोलना…”

रिकार्डिंग एक बार फिर से बजने लगी।

खतम होने के पहले ही गुड्डी ने कहा- “बताऊँ मैं?”
डी॰बी॰ ने सिर हिलाया- “हाँ…”

“चुम्मन…” गुड्डी बोली

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हम सब लोग चुप्पी साधे इंतेजार कर रहे थे। गुड्डी हम लोगों को देख रही थी। फिर बात आगे बढ़ायी-

“बहुत दिन से नहीं दिखा, 7-8 महीने पहले छोटा मोटा दादा टाइप चौराहे पे खड़ा रहता था। एक नई मोटर साइकिल भी ली थी।


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मतलब वो ज्यादा लड़कियों के चक्कर में नहीं रहता था। लेकिन बाकी सब उसे अपना बास मानते थे। लेकिन वो एक गुंजा के साथ लड़की है- महक। महकदीप, उसी की बड़ी बहन, प्रीत के साथ वो सीरियस हो गया था। उसको लगता था बस जो वो कहें सब माने, जैसे उसके चमचे मानते थे।

तो उसने उसको अपने साथ चलने के लिए कहा। दोनों बहनें स्कूटी पे आती थी, प्यारी गुलाबी रंग की।उसके अंकल बहुत पैसे वाले हैं, सिगरा पे उनका एक माल है, हथुवा मार्केट में कई दुकानें हैं, उसके अंकल के कोई है नहीं तो वो दोनों बहनें उनके साथ रहती थी, वैसे उसके फादर कनाड़ा में रहते थे…”



“हुआ क्या यार ये बताओ…” मैंने फास्ट फारवर्ड करने की कोशिश की।

डी॰बी॰ ध्यान से सुन रहे थे- “ठीक है। बोलने दो ना इसे…”

गुड्डी बोली- “तो उसने,… चुम्मन ने तेजाब फेंक दिया…”

“अरे इतना शार्ट कट भी नहीं…” मैंने समझाया।



गुड्डी बोली- “तुम्हीं तो कह रहे थे। खैर, तो मैं बता रही थी ना की चुम्मन ले जाना चाहता था उसको। कोई क्यों ले जाएगा किसी लड़की को,… मौज मस्ती।


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चुम्मन ने उसे दो-चार बार बोला- “चलती क्या खंडाला…” और एक दिन उसकी स्कूटी का हैंडल पकड़कर रोक दिया। जब तक वो संभलती। उसने प्रीत का हाथ पकड़ लिया और अब हम लोग वहीं खड़े थे साथ-साथ। चुम्मन ने उसे अपनी मोटर साइकिल की ओर खींचा।
चारों ओर उसके चमचे खी-खी कर रहे थे घेरकर।

चुम्मन ने बोला- “हे चल आज एक बार मेरे खूंटे पे बैठ जा। फिर खुद आएगी रोज दौड़ी दौड़ी…”

प्रीत ने पूरी ताकत से एक चांटा मार दिया और जब तक वो संभले। स्कूटी उठायी और चल दी… और अगले दिन से कार से आने लगी, ड्राइवर भी उसका बाड़ी-गार्ड टाइप…”


”डी॰बी॰ ने पूछा- “तेजाब उसने कब फेंका? क्या अगले ही दिन?”


गुड्डी फिर बोली-

“नहीं। 10-12 दिन हो गए थे। “एक्जाम का आखिरी दिन था। हम सब लोग बहुत मस्ती में थे। प्रीत मेरे आगे थी। मैं और महक साथ-साथ थे, उसकी कार थोड़ी दूर खड़ी होती थी। अभी तक मुझे एक-एक चीज याद है। अचानक कहीं से वो निकला, उस दिन वो अकेला था। हाथ पीछे…”

प्रीत की ओर आकर उसने एक बोतल दिखाई और बोला- “बहुत गुमान था ना गोरे रंग पे, इस जोबन पे ,
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अब देखता हूँ। तुझे कोई देखेगा भी नहीं…” और पूरी की पूरी बोतल उसकी ओर खोल कर उछाल दी।


लेकिन तब तक मैंने प्रीत का हाथ पकड़कर जोर से पीछे की ओर खींचा। वो पीछे की ओर मुँह के बल गिर पड़ी। इसलिए बच गई, थोड़ा सा उसके पैर के पंजे पे पड़ा बस। करीब 10 दिन बी॰एच॰यू॰ में भर्ती रही थोड़ी प्लास्टिक सर्जरी भी हुई। फिर ठीक हो गई…”

“और चुम्मन?” डी॰बी॰ कुछ कागज पर नोट कर रहे थे, फोन उनके लगातार जारी थे, लेकिन साथ-साथ वो गुड्डी की बात भी ध्यान से सुन रहे थे।

गुड्डी बोली- “वो दिखा नहीं उसके बाद से। उसके अगले दिन उसकी माँ आई थी। सब दुकानदारों से मिली की कोई गवाही ना दे। वैसे भी किसको पड़ी थी। हम लोगों से भी बोला, महक के अंकल से भी…”

डी॰बी॰ ने बोला- “वही जो बगल वाली टेबल पे बैठे थे…”

तब मुझे याद आया, एक लहीम शहीम 50-55 साल के बीच के, रंग ढंग कपड़े अंदाज से काफी पैसे वाले संभ्रांत लगते थे।

डी॰बी॰ ने पूछा- “था वो कहाँ का कुछ याद है?” साथ-साथ वो किसी को फोन लगा रहे थे, उसे इंतेजार करने के लिए बोलकर गुड्डी को उन्होंने देखा।

गुड्डी बोली- “सोनारपुरा,… शायद…”

डी॰बी॰ ने फोन पर इंतेजार कर रहे आदमी को बोला- “सोनारपुरा पी॰एस॰ को बोलना, उसका एक बन्दा है। हाँ वो जानता है मैं किसके बारे में बात कर रहा हूँ। बस उसको बोलना उस आदमी को बोले मेरे दूसरे वाले फोन पे रिंग करे…”
 
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खबरी
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थोड़ी देर में ही ब्लेक बेरी पे रिंग आई।


डी॰बी॰- “सुनो। सोनारपुरा में कोई चुम्मन है। सुना है उसके बारे में? पिछले एक हफ्ते का उसका अता पता मालूम करो और उसकी माँ होगी। उसको मेरे पास ले आना। हाँ बुरके में और सीधे मेरे पास, आधे घंटे के अन्दर…”

फोन रखकर डी॰बी॰ बोले-

“इट मेक्स सेन्स बट डज नाट आन्सर आल द क्वेस्चन्स। ऐनी वे। इट साल्व्स प्रजेंट प्राब्लम। इट सीम्स…”



पहली बार डी॰बी॰ ने राहत कि साँस ली और दोनों हाथ पीछे करके अंगड़ायी ली- “आपने बहुत हेल्प की…” गुड्डी की ओर देखकर कहा, और फिर मुझे देखकर मुस्करा के बोले.
“बस यही बदकिस्मती है की आप इस जैसे घोन्चू के साथ। चलिये आप कि बदकिस्मती लेकिन इसकी किश्मत…”

गुड्डी मुश्कुरायी और बोली- “बात तो आपकी सही है। लेकिन किश्मत के आगे कुछ चलता है? वैसे आपका?”



मैं और डी॰बी॰ दोनों मुश्कुराये।

डी॰बी॰- “मेरी लाइन बहुत पहले ही बन्द हो चुकी है। बचपन में मेरी एक ममेरी बहन थी। वान्या। मुझसे बहुत छोटी और मैं उसके कान खींचा करता था और उसने पूरा बदला ले लिया अब। वो जिन्दगी भर मेरे कान खींचेगी…”


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गुड्डी ने बहुत अर्थपूर्ण ढंग से देखते हुये मुझे हल्के से आँख मार दी, और हल्के से बोली- “सीखो। सीखो…”


डी॰बी॰ फोन पर दूर खड़े होकर बात कर रहे थे। आकर वो फिर हम लोगों के पास बैठ गये और बोले-
“अच्छा ये चुम्मन डरता है किसी चीज से? और क्या तुम सोचती हो। कौन होगा उसके साथ?”



गुड्डी ने कुछ देर सोचा, और लगभग उछलकर बोली-

“चूहा। मेरे ख्याल से वो चूहे से डरता है, बल्की पक्का डरता है।

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जब, जिस दिन उसने प्रीत पे तेजाब फेंका था। मैंने बताया था ना कि मैं प्रीत के पीछे-पीछे ही थी, और मैंने उसक हाथ पकड़कर पीछे खींचा था। तो हम लोग ना जब किसी को डराना होता था तो बड़ी जोर से बोलते थे- चूहा।

हमारे क्लास में थे भी बहुत, मोटे-मोटे। बस वो डरकर बिदक गया। थोड़ा सा तेजाब उसके अपने हाथ पे भी गिर गया था। प्रीत को इसलिये भी कम लगा और उसके साथ, मेर पूरा शक है। रजऊ ही होगा। वही उसका सबसे बड़ा चमचा था और उसका नाम लेकर लड़कियों को डराता था, और खिड़की पे सबसे ज्यादा वही खड़ा रहता था…”


चुम्मन और रजऊ, चुम्मन मुख्य भूंमिका में और रजऊ उसका चमचा।

मुझे दिन का सीन याद आया। गुंजा के उरोजों पे रंगीन गुब्बारे का सटीक निशाना।
मैंने गुड्डी को देख के बोला और फिर मेरी चमकी और हंस के बोला

" अरे वही, जिसने सुबह गुंजा को होली का गुब्बारा फेंक के मारा था "

मुझे गुंजा की बात याद आयी, जब गुंजा स्कूल से लौट के आयी तो, स्कूल यूनिफार्म करीब करीब बची, सिवाय,… सही समझा


सबसे जबर्दस्त लग रहा था उसके सफेद स्कूल युनिफोर्म वाले ब्लाउज़ पे ठीक उसके उरोज पे, उभरती हुई चूची पे किसी ने लगता है निशाना लगाकर रंग भरा गुब्बारा फेंका था। फच्चाक।

और एकदम सही लगा था,… साइड से। लाल गुलाबी रंग। और चारों ओर फैले छींटे। सफ़ेद ब्लाउज यूनिफार्म का एकदम गीला, जुबना से चपका, उभार न सिर्फ साफ़ साफ़ झलक रहे थे बल्कि उस नौवीं वाली के उभार का कटाव, कड़ापन, साइज सब खुल के, मैं उसे दुआ दे रहा था जिसने इतना तक के गुब्बारा मारा था

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गुड्डी की निगाह भी वहीं थी।

“ये किसने किया?” हँसकर उसने पूछा। आखीरकार, वो भी तो उसी स्कूल की थी।

“और कौन करेगा?” गुंजा बोली।

“रजउ…” गुड्डी बोली और वो दोनों साथ-साथ हँसने लगी।

पता ये चला की इनके स्कूल के सामने एक रोड साइड लोफर है। हर लड़की को देखकर बस ये पूछता है- “का हो रज्जउ। देबू की ना। देबू देबू की चलबू थाना में…” और लड़कियों ने उसका नाम रजउ रख दिया है। छोटा मोटा गुंडा भी है। इसलिए कोई उसके मुँह नहीं लगता।

पक्का वही होगा और मैंने डीबी को बोला
" वही होगा, सुबह भी स्कूल के आसपास थी था, क्या पता उस रजऊ को लड़कियों पे नजर रखने के लिए चुम्मन ने बोला हो

तब तक ओलिव कलर में कुछ मिलेट्री के लोग आये। डी॰बी॰ ने खड़े होकर उनसे हाथ मिलाया और हम लोगों का परिचय कराया।



मिलेट्री मैन- “हम लोगों ने पूरी रेकी कर ली है। थर्मल इमेजिन्ग डिवाइसेज से भी। एक कोई नीचे के कमरे में है और एक ऊपर के कमरे में।

डी॰बी॰ बोले- “थैन्क्स सो मच मेजर समीर। इट विल बि ग्रेट हेल्प और मेरे ख्याल से। वी विल नाट रिक्वायर बिग गन्स। लेकिन आप तैयार रहिये। हम नहीं जानते सिचुयेशन क्या टर्न ले?” और खड़े हो गये।



मेजर को संकेत मिल गया और वो हाथ मिलाकर चले गये।

डी॰बी॰ अब हम लोगों के साथ खुलकर बात करने के मूड में थे- “चलो। ये बात अब साफ हो गई की ये नीचे वाला कमरा जिसे तुम प्रिन्सिपल का रूम कह रही हो चुम्मन यहां है…”

फिर अचानक उन्हें कुछ याद आया और उन्होंने ए॰एम॰, अरिमर्दन सिंह, सी॰ओ॰ कोतवाली को बुलाया। और बोले-

“ये मीडिया वाले साले। इनको बोल दो कोई भी लाइव टेलीकास्ट के चक्कर में ना पड़े अगले तीन घन्टों तक। वैन मोबाइल पे अगर कोई फोटो लेते दिखे, उसे अन्दर कर दो। ये भी साले फीड करते हैं। और 500 मीटर के बाहर…”

अरिमर्दन- “मैं सबको हैंडल कर लूंगा, पर सर वो इन्डिया टीवी…”



डी॰बी॰- “उसकी तो तुम…” अचानक डी॰बी॰ की निगाह बोलते-बोलते गुड्डी पे पड़ी और उसको देखकर बोले- “ऊप्स सारी तुम्हारे सामने…”

सी॰ओ॰ चले गये।



डी॰बी॰ ने फिर गुड्डी से माफी मांगने कि कोशिश की तो मैंने रोक दिया-

“आप इसको नहीं जानते। ये अगर मूड में आ जाय ना। तो ये सब जो आप बोल रहे थे ना कुछ नहीं है और अगर आप इनकी दूबे भाभी से मिलेंगे तो फिर तो जो आप फ्रेशर्स को सिखाते थे ना वो शरीफों की जुबान हो जाय…” मैंने जोड़ा।


डी॰बी॰ बोले- “मैं फिर जरूर मिलूंगा। बनारस में एक-दो भाभियां तो होनी ही चाहिये। ओके…”


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फिर बात पर लौट आये- “वो चुम्मन। वो नीचे प्रिन्सिपल के कमरे में इसलिये है कि वहां टीवी होगा…”



गुड्डी ने तुरन्त हामी भरी।

डी॰बी॰ बोले- “वो वहां से लाइव टेलीकास्ट देख रहा होगा। दूसरे वहा से मेन गेट और घुसने के सारे रास्ते दिखते हैं, यहां तक की वो खिड़की भी जिससे वो सब इंटर हुये थे। तो अगर उसके पास कोई रिमोट होगा तो वहीं से वो एक्स्प्लोड कर सकता है। लेकिन लड़कियों को वो अकेले नहीं छोड़ सकता तो ये जो थर्मल इमेजिन्ग दिखा रही है। गुड्डी आपने एकदम सही कहा था। लड़कियां इसी कमरे में होस्टेज हैं। लेकिन घुसेंगे कैसे? सामने से वहां वो बन्दा है और अगर उसके पास रिमोट हुआ। खिड़की। लेकिन लड़कियां एकदम सटकर हैं, ऐन्ड माई ब्रीफ इज जीरो कैजुअल्टी…”


तब तक एक फटीचर छाप जीन्स और कुर्ते में एक आदमी दनदनाता हुआ अन्दर घुसा। बाहर कोई उसको अन्दर आने से मना कर रहा था पर डी॰बी॰ ने आवाज देकर उसे अन्दर बुला लिया।

वो बोला- “सर जी आपने एकदम सही कहा था। कुछ दिन में तो आपको हम लोगों की जरूरत नहीं रहेगी…”



डी॰बी॰ ने पूछा- “सीधे मुद्दे पे आओ। ये बोलो। उसकी माँ मिली कि नहीं?”
 
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चन्दर

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“अरे आप चन्दर को हुकुम दें और वो फेल हो जाय ये हो नहीं सकता। लाये हैं बाहर बैठी हैं। लेकिन मैंने सोचा कि मैं खुद साहब को पहले बता दूं ना…” उस आदमी ने बोला।



डी॰बी॰ ने कहा- “ठीक है बोलो…”

चंदर ने कहा- “वो तेजाब वाले वारदात के बाद, करीब छ महीने से वो गायब था। लेकिन अभी 10-12 दिन से नजर आ रहा है। अब सब लोग कहते हैं की एकदम बदल गया है। एकदम शान्त। बोलबै नहीं करता। घर पे भी कम नजर आता है और उसकी दो बातें जबरदस्त हैं। एक तो चाकू का निशाना, अन्धेरे में भी नहीं चूक सकता, और दूसरा जो लौन्डे लिहाड़ी हैं ना, वो सब बहुत कदर करते हैं। उसकी बात मानते हैं…”

डी॰बी॰ ने कहा- “ठीक है। उसकी माँ को बुला लाओ…”

जैसे ही बुरके में वो औरत आई, डी॰बी॰ उठकर खड़े हो गये और बोले- “अम्मा बैठिये…”

वो बैठ गईं और नकाब उठा दिया। एक मिडिल ऐजेड, 45-50 साल की गोरी थोडे स्थूल बदन की-
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“अरे भैय्या उ चुम्मनवा काव गड़बड़ किहिस। आप लोग काहे ओके पकड़े हैं?” उन्होंने बोला।


डी॰बी॰ ने बड़े शान्त भाव से प्यार से उनसे कहा-

“अरे नाहिं आप निशाखातिर रहिये। कोई नाहि पकड़े है उसको। कुछ नहीं किये है वो। आप पानी पिजिये…” और अपने हाथ से उन्होंने पानी बढ़ाया।

उन्होंने पानी का एक घूंट पिया और पूछा- “त बात का है? हम कसम खात हैं उ अब बहुत सुधर गया है…”

डीबी ने मोबाइल रिकार्डिन्ग को आन किया- “जरा ये आवजिया सुनियेगा…”

वो ध्यान से सुनती रही चुपचाप, फिर बोली- “अवाजिया त ओहि का है बाकी। …”


“बाकी का अम्मा?” डी॰बी॰ ने बड़े प्यार से उनसे पूछा।

“हमार मतलब। बाकी उ कह का रहा है, ये हमारे समझ में नहीं आ रहा है…”

“कौनो बात नहीं। त इ बतायीं की…”



और डी॰बी॰ की प्यार भरी बात ने 5 मिनट में सब कुछ साफ करा दिया।



चुम्मन की माँ ने बताया-

“उस तेजाब वाली घटना के बाद वो बम्बई चला गया था। उसके कोई फूफा रहते थे, उसके यहाँ… कुछ दिन टैक्सी वैक्सी का काम किया, लेकिन जमा नहीं, लाइसेंस नहीं मिला। फिर वो भिवंडी में। वहीं उसकी कुछ लोगों से उसकी मुलाकात हुई। वो एकदम मजहबी हो गया और अब जब आया है तो अब अपने पुराने दोस्तों से बहुत कम,.... खाली एक-दो से और एक कोई साहब कुछ खास काम दिये हैं, पता नही। बस यही कहता है की अम्मी बहुत बिजी हौं और कुछ जुगाड़ बन गया तो सऊदिया जाने का प्रोग्राम भी बन सकता है…”
 
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आगे क्या करना है


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मेरी आँखों के सामने गुंजा की सूरत घूम रही थी, कहाँ तो उससे वादा कर के आया था की होली के बाद लौट के आऊंगा, रंगपंचमी के पहले लौट के आऊंगा और सबसे पहले होली उसी के साथ खेलूंगा, और कहाँ अब उसके जान बचने की दुआ मांग रहा था, बार बार मन घबड़ा रहा था

चन्दर को बुलाकर डी॰बी॰ ने हिदायत दी- “इन महिला को आराम से एक कमरे में रखे…” और हम लोग मिलकर ऐक्शन प्लान बनाने में जुट गये।

आगे क्या करना है अब इसका प्लान बनाना था

बहुत चीजें साफ़ हो गयी थीं, गुड्डी की बात से और उससे बढ़ कर चुम्मन की माँ के बयान से।

डीबी ने ये सब बात सिर्फ हम तीनो तक सीमित रखी थी, मैं गुड्डी और डीबी,

बाहर तो वही, भय आतंक, एस टी ऍफ़ के आने की तैयारी, मिलेट्री के लोग, पुलिस की स्पेशल कमांडो टीम, अलग अलग डिपार्टमेंट के लोग अलग सिचुएशन सम्हाल रहे थे। और हर थाने से खबरी, लोकल इंटेलिजेंस वाले टेंशन बढ़ने की सूचना दे रहे थे, मिडिया वाले अलग आग में हाथ सेंक रहे थे, टी आर पी बढ़ाने के चक्कर में थे,


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और डीबी कभी हम लोगों के साथ, तो कभी बीच बीच में सिद्दीकी, तो कभी लोकल इंटेलिजेंस यूनिट वाला, लगातार बज रहे फोन को भी हैंडल कर रहे थे, लेकिन कभी हम लोगों के पास से हटकर, कमरे के दूसरे ओर तो कभी बगल के कमरे में जाकर,

और मैं और गुड्डी सामने पड़े गुड्डी के बनाये नक़्शे को देख रहे थे, और अब साथ में मिलेट्री के लोगो ने जो थर्मल इमैजिंग की बहुत क्लियर दोनों मंजिलो की पिक्चर्स दी थीं उसे भी गुड्डी के बनाये नक़्शे से मैं जोड़ कर देख रहा था, सामने स्क्रीन पर अलग अलग एंगल से स्कूल की बिल्डिंग की तस्वीर आ रही थी, कैमरे का एंगल भी चेंज कर के देखा जा सकता था।

इन तीनो को बार बार देख के मन में कुछ बातें मेरे एकदम साफ़ हो गयीं थीं



१ स्कूल बिल्डिंग में गुंजा और उसके साथ की दो लड़कियों के अलावा सिर्फ दो और लोग हैं, वही जिन्होंने उन्हें बंधक बनाया है।


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२ उनमे से एक, चुम्मन नीचे प्रिंसिपल के कमरे में टीवी पर चल रही ख़बरों से बाहर की हाल चाल ले रहा होगा और वहां लैंडलाइन फोन भी है , और अगर जरूरत पड़ी तो उससे बात भी कर सकता है। उस कमरे की खिड़की भी थोड़ी खुली है, जहाँ से वो बाहर का नजारा देख रहा है।

३ दूसरा ऊपर के कमरे में लड़कियों के आस पास ही है, थर्मल इमेजिंग में करीब पन्दरह बीस फुट दूर नजर आ रहा है, बम्ब का रिमोट उसी के पास होगा। और चुम्मन ने उसे बोला होगा की लड़कियों के ऊपर नजर रखने को, लेकिन बम्ब से डर कर वह कमरे के दूसरी ओर या दरवाजे के पास खड़ा है।


४ तीनो लड़कियां एक साथ दरवाजे के पास, जो खिड़की गुड्डी ने बतायी थी, बस वही चिपक के बैठी हैं और बम्ब वही हैं।


५, गुड्डी के प्लान से कमरे में घुसने का रास्ता निकलने का रास्ता सब साफ़ हो गया था और कैमरे की फीड से नीचे का वो दरवाजा भी हल्का हलका दिख रहा था।



तो दोनों होस्टेज बनाने वाले चुम्मन और उसका चमचा थे और गुंजा के साथ बाकी दो लड़कियां कौन थीं?



सुबह की गुंजा के साथ जबरदस्त होली बार बार मुझे याद आ रही थी, छोटी सी प्यारी सी लड़की, इतनी खुश और मस्त और अब बस एक धागे से उसकी और उसकी दोनों सहेलियों की जान, बार बार मेरा दिल भर आ रहा था, लेकिन मेरे सवाल का जवाब भी उसी से मिल गया। बाकी दो लड़कियां, गुड्डी ने महक, की बहन का किस्सा और उसका चुम्मन का चक्कर बताया था, तो पक्का एक लड़की महक ही होगी और वही चुम्मन की असली टारगेट होगी, और वो दोनों हैं तो साथ में शाजिया भी होगी।



दोपहर की गुंजा के संग होली में इसी स्कूल के तो कितने किस्से गुंजा ने बताये थे और अपनी सहेलियों के भी

" जीजू, चलिए जीजा के साथ तो, ....और साली तो साली होती, छोटी बड़ी नहीं होती,... लेकिन उसके महीने भर के अंदर ही उसके एक फुफेरे भाई थे उससे पूरे सात साल बड़े, बस उसपे सुनीता ने लाइन मारनी शुरू कर दी और उनके साथ भी,... और फिर आके बताती, ...अभी तो चार पांच यार हैं उसके, कोई हफ्ता नहीं जाता जब कुटवाती नहीं और फिर आके हम लोगो को ललचाती है, ख़ास तौर से मुझे महक और शाजिया को, हम तीनो का क्लास में फेविकोल का जोड़ है.,...


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और अब खाली हम छह सात ही बची हैं , जिनकी चिड़िया नहीं उडी, खैर मेरी पे तो मेरे जीजू का नाम लिखा है "

"मैंने शाजिया और महक ने तय कर लिया था कुछ और लड़कियों से मिल के,.... आज होली में इस स्साली सुनीता की बुलबुल को हवा खिलाएंगे, लेकिन महक जानती थी की वो स्साली जरूर भागने की कोशिश करेगी, पीछे वाली सीढ़ी से, बस मैं और शाजिया तो नौ बी वालो की माँ बहन कर रहे थे,

लेकिन महक की नजर बाज ऐसी सीधे सुनीता पे, और जैसे सुनीता ने क्लास के पीछे वाले दरवाजे से निकलने की कोशिश की वो पंजाबन उड़ के क्या झपट्टा मारा, और फिर दो तीन लड़कियां और, और इधर हम लोग भी जीत गए थे, फिर तो मैं और शाजिया भी, "



मैं और गुड्डी दोनों ध्यान लगा के सुन रहे थे, गुंजा मुस्कराते हुए मेरी आँख में आँख डाल के बोली,



" जीजू, शाजिया, कभी मिलवाउंगी आपसे, ....पक्की कमीनी, लेकिन वो और महक मेरी पक्की दोस्त दर्जा ४ से,...

बस होली में कोई शाजिया की पकड़ में आ जाए,... महक और बाकी लड़कियों ने पीछे से हाथ पकड़ रखा था सुनीता का और शाजिया ने आराम से स्कर्ट उठा के धीरे धीरे चड्ढी खोली सुनीता की, दो टुकड़े किये और अपने बैग में रख ली, और जीजू आप मानेंगे नहीं, शाजिया ने उसकी बिल फैलाई तो भरभरा के सफेदा, और चारो ओर भी, मतलब स्कूल के रस्ते में किसी से चुदवा के आ रही थीं।

कम से कम पांच कोट रंग का और शाजिया ने कस के दो ऊँगली एक साथ उस की बिल में पेल दी, ऊपर वाला हिस्सा मेरे हिस्से में, ...चड्ढी शाजिया ने लूटी और ब्रा मैंने,... फिर मैंने भी खूब कस के रंग पेण्ट सब लगाया।

उस के साथ तो जो होली शुरू हुयी, आज पूरे दो घंटे थे, सीढ़ी वाले रास्ते से कोई जा नहीं सकता था महक उधर ही थी और जब तक फाइनल छुट्टी का घंटा नहीं बजता बाहर का गेट खुलता नहीं। इसलिए खूब जम के अबकी होली हुयी, ब्रा चड्ढी तो सबकी लूटी भी फटी भी, मैंने खुद तीन लूटीं, "



"लेकिन ये बताओ," मैंने उसके उभारो पर बने उँगलियों के निशानों की ओर इशारा किया ये


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वो जोर से खिलखिलाई,

" मन कर रहा है आपका शाजिया से मिलने का, बताया तो शाजिया के हाथ के निशान हैं लेकिन पहले मैंने ही, मैं सफ़ेद वार्निश वाली ३-४ डिब्बी ले गयी थी बस वही उसकी दोनों चूँचियों पे, एकदम इसी तरह, उसके भी और महक के भी, और शाजिया के तो पिछवाड़े भी, वहां तो छुड़ाने में भी उसकी हालत खराब हो जायेगी। "


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तो दो चार घंटे पहले ये तीन लड़कियां इतनी मस्ती कर रही थीं लेकिन अब, ....क्या हालत हो रही होगी उन बेचारियों की, सोच सोच के क्या होनेवाला है।

ये सोच के बस रोना नहीं आ रहा था, लेकिन मैंने तय कर लिया, कुछ भी हो और बहुत जल्द, क्योंकि वो कोई प्रोफेशनल तो हैं नहीं कब उन्हें डर लगे की वो पकडे जाएंगे और बम्ब का स्विच दबा दें,....



एक बार फिर मैंने नक़्शे को, थर्मल इमेजेस को देखा और धीरे धीरे एक एक दरवाजे, खिड़की रस्ते को मन में बैठा लिया। अब आँखे बंद कर के भी मैं जा सकता था।

मैंने डी॰बी॰ से पूछा- “अरे जब पता चल गया है कि ऐसा कोई खास नहीं हैं तो आप बता क्यों नहीं देते? फालतू का टेन्शन…”

डी॰बी॰ बोले- “मुझे बेवकूफ समझ रखा है। पहली बात इस बात की क्या गारन्टी की वो टेररिस्ट नहीं है? दूसरी इतना बढ़िया मौका मेरे लिये। इसी बहाने आर॰ऐ॰एफ॰, सी॰आर॰पी॰एफ॰ ये सब मिल गईं अब होली पीसफुली गुजर जायेगी। वरना डंडा छाप होमगार्ड के सहारे। इतना ज्यादा अफवाह है होली में दंगे की। और तीसरी बात- बेसिक सिचुएशन तो नहीं बदली है ना। वो तीन लड़कियां तो अभी तक होस्टेज हैं…”



बात तो उनकी सही थी।

डीबी ने जो बात नहीं बोली थी वो भी मैंने सुन ली,

क्या पता कोई टेरर लिंक हो ही। चुम्मन बंबई से आया है, अपनी अम्मी से कही विदेश जाने की बात कर रहा है, फिर उसकी अम्मी ने जो ये बात बोली की बंबई से लौटने के बाद एकदम बदल गया है। कुछ भी हो सकता है और सबसे बड़ी बात ये बम्ब, कहाँ से उसके हाथ लगा, फोड़ के फेंकने वाला लोकल नहीं था, तो कैसे उस एंगल को रूल आउट कर सकते हैं



और वो बात जो डीबी को ज्यादा तंग कर रही थी, नैरेटिव, पोलिटिकल लीडरशिप का एक पार्ट टेरर एंगल ही चाहता था तभी तो पोलिटिकल माइलेज मिलेगा, मीडया की भी टी आर पी मिलेगी और पुलिसवालों को मैडल मिलेगा, पकड़ लिया पकड़ लिया और इसलिए बोला गया है एस टी ऍफ़ का इंतजार करें मिडिया की आँखों के सामने आपरेशन, लड़कियां इन्वाल्व हैं, होली का मौका,

उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता की आपरेशन में लड़कियों की जान जा सकती है

डर से वो दोनों बॉम्ब एक्सप्लोड कर सकते हैं

और मिडिया वालो की हेडलाइन इम्प्रूव हो जायेगी

पर इसलिए ही डीबी और हम दोनों चाहते हैं की लड़कियां आपरेशन के पहले बाहर निकल जाए क्योंकि एस टी ऍफ़ के आने के बाद बातें उन के कंट्रोल के बाहर हो जायेगी।

और एक बात और थी, शहर में टेंशन, मेरे खड़े कानो ने सुन लिया था और डीबी के चेहरे का टेंशन देख लिया था। चुम्मन की अम्मी जो अभी बुर्के में आयी थी, कहीं किसी की नजर में पड़ गयी, तो एक नया एंगल


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लेकिन गुड्डी ज्यादा फोकस्ड थी, वो श्योर थी अब बिना रुके लड़कियों को छुड़ाने का काम होना चाहिए

हम दोनों ने मिलकर प्लान बनाना शुरू किया, लेकिन शुरू में ही झगड़ा हो गया और सुलझाया गुड्डी ने। उसकी बात टालने कि हिम्मत डी॰बी॰ में भी नहीं थी। झगड़ा इस बात पे था कि पीछे वाली सीढ़ी से अन्दर कौन घुसे?
 
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komaalrani

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अन्दर कौन घुसे?

मेरा कहना था की मैं।

डी॰बी॰ का कहना था की पुलिस के कमान्डो।



मेरा आब्जेक्शन दो बातों से था।

पहला जूते, दूसरा सफारी। पुलिस वाले वर्दी पहने ना पहनें, ब्राउन कलर के जूते जरूर पहनते हैं और कोई थोड़ा स्मार्ट हुआ, स्पेशल फोर्स का हुआ तो स्पोर्टस शू। और सादी वर्दी वाले सफारी। दूर से ही पहचान सकते हैं और सबसे बढ़कर। बाडी स्ट्रक्चर और ऐटीट्युड। उनकी आँखें।

डी॰बी॰ का मानना था कि बो प्रोफेशनल हैं हथियार चला सकते हैं, और फिर बाद में कोई बात हुई तो?



मेरा जवाब था- “हथियार चलाने से ही तो बचना है। गोली चलने पे अगर कहीं किसी लड़की को लगी तो फिर इतने आयोग हैं, और सबसे बढ़कर न मैं चाहता था ना वो की ये हालत पैदा हों। दूसरी बात। अगर कुछ गड़बड़ हुआ तो वो हमेशा कह सकता है की उसे नहीं मालूम कौन था? वो तो एस॰टी॰एफ॰ का इन्तजार कर रहा था…”



लेकिन फैसला गुड्डी ने किया। वो बोली-

“साली इनकी है, जाना इनको चाहिये और ये गुंजा को जानते हैं तो इन्हें देखकर वो चौंकेगी नहीं और उसे ये समझा सकते हैं…”



तब तक एक आदमी अन्दर आया और बोला- “बाबतपुर एयरपोर्ट, बनारस का एयरपोर्ट से फोन आया है की एस॰टी॰एफ॰ का प्लेन 25 मिनट में लैन्ड करने वाला है और बाकी सारी फ्लाइट्स को डिले करने के लिये बोला गया है। उनकी वेहिकिल्स सीधे रनवे पर पहुँचेंगी…”



डी॰बी॰ ने दिवाल घड़ी देखी, कम से कम 20 मिनट यहां पहुँचने में लगेंगें यानी सिर्फ 45 मिनट। हम लोगों का काम 40 मिनट में खतम हो जाना चाहिये। फिर उस इंतेजार कर रहे आदमी से कहा- “जो एल॰आई॰यू॰ के हेड है ना पान्डेजी। और एयरपोर्ट थाने के इन्चार्ज को बोलियेगा की उन्हें रिसीव करेंगे और सीधे सर्किट हाउस ले जायेंगे। वहां उनकी ब्रीफिंग करें…”



अब डी॰बी॰ एक बार फिर। पूरी टाइम लाइन चेन्ज हो गई। डी॰बी॰ ने बोला- “जीरो आवर इज 20 मिनटस फ्राम नाउ…”



मुझे 15 मिनट बाद घुसना था, 17 मिनट बाद प्लान ‘दो’ शुरू हो जायेगा 20वें मिनट तक मुझे होस्टेज तक पहुँच जाना है और अगर 30 मिनट तक मैंने कोई रिस्पान्स नहीं मिला तो सीढ़ी के रास्ते से मेजर समीर के लोग और। छत से खिड़की तोड़कर पुलिस के कमान्डो।



डी॰बी॰ ने पूछा- “तुम्हें कोई हेल्प सामान तो नहीं चाहिये?”



मैंने बोला- “नहीं बस थोड़ा मेक-अप, पेंट…”



गुड्डी बोली- “वो मैं कर दूंगी…”



डी॰बी॰ बोले- “कैमोफ्लाज पेंट है हमारे पास। भिजवाऊँ?”



गुड्डी बोली- “अरे मैं 5 मिनट में लड़के को लड़की बना दूं। ये क्या चीज है? आप जाइये। टाइम बहुत कम है…”



डी॰बी॰ बगल के हाल में चले गये और वहां पुलिसवाले, सिटी मजिस्ट्रेट, मेजर समीर के तेजी से बोलने की आवाजें आ रही थीं।



गुड्डी ने अपने पर्स, उर्फ जादू के पिटारे से कालिख की डिबिया जो बची खुची थी, दूबे भाभी ने उसे पकड़ा दी थी, और जो हम लोगों ने सेठजी के यहां से लिया था, निकाली और हम दोनों ने मिलकर। 4 मिनट गुजर गये थे। 11 मिनट बाकी थे।



मैंने पूछा- “तुम्हारे पास कोई चूड़ी है क्या?”



“पहनने का मन है क्या?” गुड्डी ने मुश्कुराकर पूछा और अपने बैग से हरी लाल चूड़ियां। जो उसने और रीत ने मिलकर मुझे पहनायी थी।



सब मैंने ऊपर के पाकेट में रख ली। मैंने फिर मांगा- “चिमटी और बाल में लगाने वाला कांटा…”



“तुमको ना लड़कियों का मेक-अप लगता है बहुत पसन्द आने लगा। वैसे एकदम ए-वन माल लग रहे थे जब मैंने और रीत ने सुबह तुम्हारा मेक अप किया था। चलो घर कल से तुम्हारी भाभी के साथ मिलकर वहां इसी ड्रेस में रखेंगें…” ये कहते हुये गुड्डी ने चिमटी और कांटा निकालकर दे दिया।



7 मिनट गुजर चुके थे, सिर्फ 8 मिनट बाकी थे। निकलूं किधर से? बाहर से निकलने का सवाल ही नहीं था, इस मेक-अप में। सारा ऐड़वान्टेज खतम हो जाता। मैंने इधर-उधर देखा तो कमरे की खिड़की में छड़ थी, मुश्किल था। अटैच्ड बाथरूम। मैं आगे-आगे गुड्डी पीछे-पीछे। खिड़की में तिरछे शीशे लगे थे। मैंने एक-एक करके निकालने शुरू किये और गुड्डी ने एक-एक को सम्हाल कर रखना। जरा सी आवाज गड़बड़ कर सकती थी। 6-7 शीशे निकल गये और बाहर निकलने की जगह बन गई।



9 मिनट। सिर्फ 6 मिनट बाकी। बाहर आवाजें कुछ कम हो गई थीं, लगता है उन लोगों ने भी कुछ डिसिजन ले लिया था। गुड्डी ने खिड़की से देखकर इशारा किया। रास्ता साफ था। मैं तिरछे होकर बाथरूम की खिड़की से बाहर निकल आया।


वो दरवाजा 350 मीटर दूर था।

यानी ढाई मिनट। वो तो प्लान मैंने अच्छी तरह देख लिया था, वरना दरवाजा कहीं नजर नहीं आ रहा था। सिर्फ पिक्चर के पोस्टर।

तभी वो हमारी मोबाईल का ड्राईवर दिखा, उसको मैंने बोला- “तुम यहीं खड़े रहना और बस ये देखना कि दरवाजा खुला रहे…”



पास में कुछ पुलिस की एक टुकडी थी। ड्राइवर ने उन्हें हाथ से इशारा किया और वो वापस चले गये। 13 मिनट, सिर्फ दो मिनट बचे थे।

मैं एकदम दीवाल से सटकर खड़ा था, कैसे खुलेगा ये दरवाजा? कुछ पकड़ने को नहीं मिल रहा था। एक पोस्टर चिपका था। सेन्सर की तेज कैन्ची से बच निकली, कामास्त्री।

हीरोईन का खुला क्लिवेज दिखाती और वहीं कुछ उभरा था। हैंडल के ऊपर ही पोस्टर चिपका दिया था। दो बार आगे, तीन बार पीछे जैसा गुड्डी ने समझाया था।

सिमसिम।

दरवाजा खुल गया। वो भी पूरा नहीं थोड़ा सा।
 
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komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३० -कौन है चुम्मन ? पृष्ठ ३४७

अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, आनंद लें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
 
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komaalrani

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गुंजा का आशिक, एक लोकल गुंडा उर्फ रजऊ

आखि़र सीनियोरिटी भी कोई चीज होती है, कम से कम आपकी इस कहानी में तो हमें सम्मान मिलना ही चाहिए, कोमल मैम।

हा हा हा

:akshay:

सादर
इस अपडेट को पढियेगा तो जवाब मिल जाएगा

बात आपकी एकदम सही है सीनियर होने का फायदा तो है ही, हाँ लेकिन वक्त की धूल बहुत कुछ धुंधला देती है तो थोड़ा बहुत,

चुम्मन और रजऊ साथ हैं लेकिन है अलग,

और कहानी के बाकी हिस्सों की तरह बहुत कुछ नया भी जुड़ा है विस्तार भी है, गुंजा के प्रसंग का भी और स्कूल का भी
 

Rajizexy

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अन्दर कौन घुसे?

मेरा कहना था की मैं।

डी॰बी॰ का कहना था की पुलिस के कमान्डो।



मेरा आब्जेक्शन दो बातों से था।

पहला जूते, दूसरा सफारी। पुलिस वाले वर्दी पहने ना पहनें, ब्राउन कलर के जूते जरूर पहनते हैं और कोई थोड़ा स्मार्ट हुआ, स्पेशल फोर्स का हुआ तो स्पोर्टस शू। और सादी वर्दी वाले सफारी। दूर से ही पहचान सकते हैं और सबसे बढ़कर। बाडी स्ट्रक्चर और ऐटीट्युड। उनकी आँखें।

डी॰बी॰ का मानना था कि बो प्रोफेशनल हैं हथियार चला सकते हैं, और फिर बाद में कोई बात हुई तो?



मेरा जवाब था- “हथियार चलाने से ही तो बचना है। गोली चलने पे अगर कहीं किसी लड़की को लगी तो फिर इतने आयोग हैं, और सबसे बढ़कर न मैं चाहता था ना वो की ये हालत पैदा हों। दूसरी बात। अगर कुछ गड़बड़ हुआ तो वो हमेशा कह सकता है की उसे नहीं मालूम कौन था? वो तो एस॰टी॰एफ॰ का इन्तजार कर रहा था…”



लेकिन फैसला गुड्डी ने किया। वो बोली-

“साली इनकी है, जाना इनको चाहिये और ये गुंजा को जानते हैं तो इन्हें देखकर वो चौंकेगी नहीं और उसे ये समझा सकते हैं…”



तब तक एक आदमी अन्दर आया और बोला- “बाबतपुर एयरपोर्ट, बनारस का एयरपोर्ट से फोन आया है की एस॰टी॰एफ॰ का प्लेन 25 मिनट में लैन्ड करने वाला है और बाकी सारी फ्लाइट्स को डिले करने के लिये बोला गया है। उनकी वेहिकिल्स सीधे रनवे पर पहुँचेंगी…”



डी॰बी॰ ने दिवाल घड़ी देखी, कम से कम 20 मिनट यहां पहुँचने में लगेंगें यानी सिर्फ 45 मिनट। हम लोगों का काम 40 मिनट में खतम हो जाना चाहिये। फिर उस इंतेजार कर रहे आदमी से कहा- “जो एल॰आई॰यू॰ के हेड है ना पान्डेजी। और एयरपोर्ट थाने के इन्चार्ज को बोलियेगा की उन्हें रिसीव करेंगे और सीधे सर्किट हाउस ले जायेंगे। वहां उनकी ब्रीफिंग करें…”



अब डी॰बी॰ एक बार फिर। पूरी टाइम लाइन चेन्ज हो गई। डी॰बी॰ ने बोला- “जीरो आवर इज 20 मिनटस फ्राम नाउ…”



मुझे 15 मिनट बाद घुसना था, 17 मिनट बाद प्लान ‘दो’ शुरू हो जायेगा 20वें मिनट तक मुझे होस्टेज तक पहुँच जाना है और अगर 30 मिनट तक मैंने कोई रिस्पान्स नहीं मिला तो सीढ़ी के रास्ते से मेजर समीर के लोग और। छत से खिड़की तोड़कर पुलिस के कमान्डो।



डी॰बी॰ ने पूछा- “तुम्हें कोई हेल्प सामान तो नहीं चाहिये?”



मैंने बोला- “नहीं बस थोड़ा मेक-अप, पेंट…”



गुड्डी बोली- “वो मैं कर दूंगी…”



डी॰बी॰ बोले- “कैमोफ्लाज पेंट है हमारे पास। भिजवाऊँ?”



गुड्डी बोली- “अरे मैं 5 मिनट में लड़के को लड़की बना दूं। ये क्या चीज है? आप जाइये। टाइम बहुत कम है…”



डी॰बी॰ बगल के हाल में चले गये और वहां पुलिसवाले, सिटी मजिस्ट्रेट, मेजर समीर के तेजी से बोलने की आवाजें आ रही थीं।



गुड्डी ने अपने पर्स, उर्फ जादू के पिटारे से कालिख की डिबिया जो बची खुची थी, दूबे भाभी ने उसे पकड़ा दी थी, और जो हम लोगों ने सेठजी के यहां से लिया था, निकाली और हम दोनों ने मिलकर। 4 मिनट गुजर गये थे। 11 मिनट बाकी थे।



मैंने पूछा- “तुम्हारे पास कोई चूड़ी है क्या?”



“पहनने का मन है क्या?” गुड्डी ने मुश्कुराकर पूछा और अपने बैग से हरी लाल चूड़ियां। जो उसने और रीत ने मिलकर मुझे पहनायी थी।



सब मैंने ऊपर के पाकेट में रख ली। मैंने फिर मांगा- “चिमटी और बाल में लगाने वाला कांटा…”



“तुमको ना लड़कियों का मेक-अप लगता है बहुत पसन्द आने लगा। वैसे एकदम ए-वन माल लग रहे थे जब मैंने और रीत ने सुबह तुम्हारा मेक अप किया था। चलो घर कल से तुम्हारी भाभी के साथ मिलकर वहां इसी ड्रेस में रखेंगें…” ये कहते हुये गुड्डी ने चिमटी और कांटा निकालकर दे दिया।



7 मिनट गुजर चुके थे, सिर्फ 8 मिनट बाकी थे। निकलूं किधर से? बाहर से निकलने का सवाल ही नहीं था, इस मेक-अप में। सारा ऐड़वान्टेज खतम हो जाता। मैंने इधर-उधर देखा तो कमरे की खिड़की में छड़ थी, मुश्किल था। अटैच्ड बाथरूम। मैं आगे-आगे गुड्डी पीछे-पीछे। खिड़की में तिरछे शीशे लगे थे। मैंने एक-एक करके निकालने शुरू किये और गुड्डी ने एक-एक को सम्हाल कर रखना। जरा सी आवाज गड़बड़ कर सकती थी। 6-7 शीशे निकल गये और बाहर निकलने की जगह बन गई।



9 मिनट। सिर्फ 6 मिनट बाकी। बाहर आवाजें कुछ कम हो गई थीं, लगता है उन लोगों ने भी कुछ डिसिजन ले लिया था। गुड्डी ने खिड़की से देखकर इशारा किया। रास्ता साफ था। मैं तिरछे होकर बाथरूम की खिड़की से बाहर निकल आया।


वो दरवाजा 350 मीटर दूर था।

यानी ढाई मिनट। वो तो प्लान मैंने अच्छी तरह देख लिया था, वरना दरवाजा कहीं नजर नहीं आ रहा था। सिर्फ पिक्चर के पोस्टर।

तभी वो हमारी मोबाईल का ड्राईवर दिखा, उसको मैंने बोला- “तुम यहीं खड़े रहना और बस ये देखना कि दरवाजा खुला रहे…”



पास में कुछ पुलिस की एक टुकडी थी। ड्राइवर ने उन्हें हाथ से इशारा किया और वो वापस चले गये। 13 मिनट, सिर्फ दो मिनट बचे थे।

मैं एकदम दीवाल से सटकर खड़ा था, कैसे खुलेगा ये दरवाजा? कुछ पकड़ने को नहीं मिल रहा था। एक पोस्टर चिपका था। सेन्सर की तेज कैन्ची से बच निकली, कामास्त्री।


हीरोईन का खुला क्लिवेज दिखाती और वहीं कुछ उभरा था। हैंडल के ऊपर ही पोस्टर चिपका दिया था। दो बार आगे, तीन बार पीछे जैसा गुड्डी ने समझाया था।

सिमसिम।

दरवाजा खुल गया। वो भी पूरा नहीं थोड़ा सा।
Gajab super duper jasusi update
✔️✔️✔️✔️✔️✔️✔️
👌👌👌👌👌👌
💯💯💯💯💯
Sherlock Holmes ke jasusi novel jesi update hai, bahut pehle padhe huye jasusi novels ki yaad taza kra di aap ne didi.
Lovely update 👇
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Rajizexy

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फागुन के दिन चार भाग ३० -कौन है चुम्मन ? पृष्ठ ३४७

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Bhukhalund

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Comment kr diya hai Komal didi ❣️
Kabhi Hume bhi itne pyaar se comment kardo
 
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