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फागुन के दिन चार भाग ३०
कौन है चुम्मन ?
३,९३,५११
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उन्होंने गुड्डी को होंठों पे उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया और एक मिनट। वो बोले और जाकर दरवाजा बंद कर दिया। लौटकर उन्होंने रिकार्डिंग फिर से आन की और फुसफुसाते हुए गुड्डी से बोले- “ध्यान से एक बार फिर से सुनो, और बहुत कम और बहुत धीमे बोलना…”
रिकार्डिंग एक बार फिर से बजने लगी।
खतम होने के पहले ही गुड्डी ने कहा- “बताऊँ मैं?”
डी॰बी॰ ने सिर हिलाया- “हाँ…”
“चुम्मन…” गुड्डी बोली
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हम सब लोग चुप्पी साधे इंतेजार कर रहे थे। गुड्डी हम लोगों को देख रही थी। फिर बात आगे बढ़ायी-
“बहुत दिन से नहीं दिखा, 7-8 महीने पहले छोटा मोटा दादा टाइप चौराहे पे खड़ा रहता था। एक नई मोटर साइकिल भी ली थी।
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मतलब वो ज्यादा लड़कियों के चक्कर में नहीं रहता था। लेकिन बाकी सब उसे अपना बास मानते थे। लेकिन वो एक गुंजा के साथ लड़की है- महक। महकदीप, उसी की बड़ी बहन, प्रीत के साथ वो सीरियस हो गया था। उसको लगता था बस जो वो कहें सब माने, जैसे उसके चमचे मानते थे।
तो उसने उसको अपने साथ चलने के लिए कहा। दोनों बहनें स्कूटी पे आती थी, प्यारी गुलाबी रंग की।उसके अंकल बहुत पैसे वाले हैं, सिगरा पे उनका एक माल है, हथुवा मार्केट में कई दुकानें हैं, उसके अंकल के कोई है नहीं तो वो दोनों बहनें उनके साथ रहती थी, वैसे उसके फादर कनाड़ा में रहते थे…”
“हुआ क्या यार ये बताओ…” मैंने फास्ट फारवर्ड करने की कोशिश की।
डी॰बी॰ ध्यान से सुन रहे थे- “ठीक है। बोलने दो ना इसे…”
गुड्डी बोली- “तो उसने,… चुम्मन ने तेजाब फेंक दिया…”
“अरे इतना शार्ट कट भी नहीं…” मैंने समझाया।
गुड्डी बोली- “तुम्हीं तो कह रहे थे। खैर, तो मैं बता रही थी ना की चुम्मन ले जाना चाहता था उसको। कोई क्यों ले जाएगा किसी लड़की को,… मौज मस्ती।
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चुम्मन ने उसे दो-चार बार बोला- “चलती क्या खंडाला…” और एक दिन उसकी स्कूटी का हैंडल पकड़कर रोक दिया। जब तक वो संभलती। उसने प्रीत का हाथ पकड़ लिया और अब हम लोग वहीं खड़े थे साथ-साथ। चुम्मन ने उसे अपनी मोटर साइकिल की ओर खींचा।
चारों ओर उसके चमचे खी-खी कर रहे थे घेरकर।
चुम्मन ने बोला- “हे चल आज एक बार मेरे खूंटे पे बैठ जा। फिर खुद आएगी रोज दौड़ी दौड़ी…”
प्रीत ने पूरी ताकत से एक चांटा मार दिया और जब तक वो संभले। स्कूटी उठायी और चल दी… और अगले दिन से कार से आने लगी, ड्राइवर भी उसका बाड़ी-गार्ड टाइप…”
”डी॰बी॰ ने पूछा- “तेजाब उसने कब फेंका? क्या अगले ही दिन?”
गुड्डी फिर बोली-
“नहीं। 10-12 दिन हो गए थे। “एक्जाम का आखिरी दिन था। हम सब लोग बहुत मस्ती में थे। प्रीत मेरे आगे थी। मैं और महक साथ-साथ थे, उसकी कार थोड़ी दूर खड़ी होती थी। अभी तक मुझे एक-एक चीज याद है। अचानक कहीं से वो निकला, उस दिन वो अकेला था। हाथ पीछे…”
प्रीत की ओर आकर उसने एक बोतल दिखाई और बोला- “बहुत गुमान था ना गोरे रंग पे, इस जोबन पे ,
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अब देखता हूँ। तुझे कोई देखेगा भी नहीं…” और पूरी की पूरी बोतल उसकी ओर खोल कर उछाल दी।
लेकिन तब तक मैंने प्रीत का हाथ पकड़कर जोर से पीछे की ओर खींचा। वो पीछे की ओर मुँह के बल गिर पड़ी। इसलिए बच गई, थोड़ा सा उसके पैर के पंजे पे पड़ा बस। करीब 10 दिन बी॰एच॰यू॰ में भर्ती रही थोड़ी प्लास्टिक सर्जरी भी हुई। फिर ठीक हो गई…”
“और चुम्मन?” डी॰बी॰ कुछ कागज पर नोट कर रहे थे, फोन उनके लगातार जारी थे, लेकिन साथ-साथ वो गुड्डी की बात भी ध्यान से सुन रहे थे।
गुड्डी बोली- “वो दिखा नहीं उसके बाद से। उसके अगले दिन उसकी माँ आई थी। सब दुकानदारों से मिली की कोई गवाही ना दे। वैसे भी किसको पड़ी थी। हम लोगों से भी बोला, महक के अंकल से भी…”
डी॰बी॰ ने बोला- “वही जो बगल वाली टेबल पे बैठे थे…”
तब मुझे याद आया, एक लहीम शहीम 50-55 साल के बीच के, रंग ढंग कपड़े अंदाज से काफी पैसे वाले संभ्रांत लगते थे।
डी॰बी॰ ने पूछा- “था वो कहाँ का कुछ याद है?” साथ-साथ वो किसी को फोन लगा रहे थे, उसे इंतेजार करने के लिए बोलकर गुड्डी को उन्होंने देखा।
गुड्डी बोली- “सोनारपुरा,… शायद…”
डी॰बी॰ ने फोन पर इंतेजार कर रहे आदमी को बोला- “सोनारपुरा पी॰एस॰ को बोलना, उसका एक बन्दा है। हाँ वो जानता है मैं किसके बारे में बात कर रहा हूँ। बस उसको बोलना उस आदमी को बोले मेरे दूसरे वाले फोन पे रिंग करे…”
कौन है चुम्मन ?
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रिकार्डिंग एक बार फिर से बजने लगी।
खतम होने के पहले ही गुड्डी ने कहा- “बताऊँ मैं?”
डी॰बी॰ ने सिर हिलाया- “हाँ…”
“चुम्मन…” गुड्डी बोली
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हम सब लोग चुप्पी साधे इंतेजार कर रहे थे। गुड्डी हम लोगों को देख रही थी। फिर बात आगे बढ़ायी-
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तो उसने उसको अपने साथ चलने के लिए कहा। दोनों बहनें स्कूटी पे आती थी, प्यारी गुलाबी रंग की।उसके अंकल बहुत पैसे वाले हैं, सिगरा पे उनका एक माल है, हथुवा मार्केट में कई दुकानें हैं, उसके अंकल के कोई है नहीं तो वो दोनों बहनें उनके साथ रहती थी, वैसे उसके फादर कनाड़ा में रहते थे…”
“हुआ क्या यार ये बताओ…” मैंने फास्ट फारवर्ड करने की कोशिश की।
डी॰बी॰ ध्यान से सुन रहे थे- “ठीक है। बोलने दो ना इसे…”
गुड्डी बोली- “तो उसने,… चुम्मन ने तेजाब फेंक दिया…”
“अरे इतना शार्ट कट भी नहीं…” मैंने समझाया।
गुड्डी बोली- “तुम्हीं तो कह रहे थे। खैर, तो मैं बता रही थी ना की चुम्मन ले जाना चाहता था उसको। कोई क्यों ले जाएगा किसी लड़की को,… मौज मस्ती।
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चारों ओर उसके चमचे खी-खी कर रहे थे घेरकर।
चुम्मन ने बोला- “हे चल आज एक बार मेरे खूंटे पे बैठ जा। फिर खुद आएगी रोज दौड़ी दौड़ी…”
प्रीत ने पूरी ताकत से एक चांटा मार दिया और जब तक वो संभले। स्कूटी उठायी और चल दी… और अगले दिन से कार से आने लगी, ड्राइवर भी उसका बाड़ी-गार्ड टाइप…”
”डी॰बी॰ ने पूछा- “तेजाब उसने कब फेंका? क्या अगले ही दिन?”
गुड्डी फिर बोली-
“नहीं। 10-12 दिन हो गए थे। “एक्जाम का आखिरी दिन था। हम सब लोग बहुत मस्ती में थे। प्रीत मेरे आगे थी। मैं और महक साथ-साथ थे, उसकी कार थोड़ी दूर खड़ी होती थी। अभी तक मुझे एक-एक चीज याद है। अचानक कहीं से वो निकला, उस दिन वो अकेला था। हाथ पीछे…”
प्रीत की ओर आकर उसने एक बोतल दिखाई और बोला- “बहुत गुमान था ना गोरे रंग पे, इस जोबन पे ,
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“और चुम्मन?” डी॰बी॰ कुछ कागज पर नोट कर रहे थे, फोन उनके लगातार जारी थे, लेकिन साथ-साथ वो गुड्डी की बात भी ध्यान से सुन रहे थे।
गुड्डी बोली- “वो दिखा नहीं उसके बाद से। उसके अगले दिन उसकी माँ आई थी। सब दुकानदारों से मिली की कोई गवाही ना दे। वैसे भी किसको पड़ी थी। हम लोगों से भी बोला, महक के अंकल से भी…”
डी॰बी॰ ने बोला- “वही जो बगल वाली टेबल पे बैठे थे…”
तब मुझे याद आया, एक लहीम शहीम 50-55 साल के बीच के, रंग ढंग कपड़े अंदाज से काफी पैसे वाले संभ्रांत लगते थे।
डी॰बी॰ ने पूछा- “था वो कहाँ का कुछ याद है?” साथ-साथ वो किसी को फोन लगा रहे थे, उसे इंतेजार करने के लिए बोलकर गुड्डी को उन्होंने देखा।
गुड्डी बोली- “सोनारपुरा,… शायद…”
डी॰बी॰ ने फोन पर इंतेजार कर रहे आदमी को बोला- “सोनारपुरा पी॰एस॰ को बोलना, उसका एक बन्दा है। हाँ वो जानता है मैं किसके बारे में बात कर रहा हूँ। बस उसको बोलना उस आदमी को बोले मेरे दूसरे वाले फोन पे रिंग करे…”
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