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Erotica बदनसीब फुलवा; एक बेकसूर रण्डी (Completed)

Fulva's friend Kali sold herself in slavery. Suggest a title

  • Sex Slave

    Votes: 7 38.9%
  • मर्जी से गुलाम

    Votes: 6 33.3%
  • Master and his slaves

    Votes: 5 27.8%
  • None of the above

    Votes: 0 0.0%

  • Total voters
    18
  • Poll closed .

BDSMTORTURE

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Story needs more serious tortures and serious cruel bdsm

like send her to a reformatory or prison or asylum or rehab where she is treated and cured by daily and routine different kinds of tortures , where other women are admitted too
 

Lefty69

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लाला ठाकुर, “मैं स्कूल में था जब एक अनजान आदमी ने मुझे एक्सीडेंट से बचाया। मैं उसे अपने घर ले गया और उसे अपने घर में नौकरी दिलाई। यही मेरा महापाप था!”


फुलवा की आंखों में देखते हुए लाला ठाकुर, “ठीक एक महीने बाद वह मेरी प्रिया दीदी को अगवा कर ले गया। पुलिस ने कहा कि मेरी दीदी अपनी मर्जी से भागी है और रिपोर्ट लेने से इंकार किया। मैने कसम खा ली की मैं प्रिया दीदी को वापस लाऊंगा।”


चिराग को देखते हुए लाला ठाकुर, “मेरी भूख उस दिन शुरू हुई। मुझे फोटोग्राफिक मेमोरी का श्राप है। मैं कभी कुछ नहीं भूलता। मेरे माता पिता ने मुझे मदद करने से मना किया तो मैने अपना पैसा खुद बनाया। पैसा कोई मायने नहीं रखता अगर तुम अपना निवाला उन पैसों से खरीद ना पाओ।”


फुलवा को देखते हुए, “उम्र के 25 वे साल तक मैं लगभग पूरे देश के हर रंडीखाने को ढूंढ चुका था। शायद उतनी रंडियां चोद चुका था। पर मेरी भूख बस बढ़ रही थी। जहां मुमकिन था मैने लड़कियों को बचाया पर मेरी भूख नहीं थमी। वह मेरा निवाला नहीं थी!”


चिराग को देखते हुए, “तुमने अपना बचपन बिताया अपनी मां को ढूंढने में। मैने अपनी जिंदगी लूटा दी प्रिया दीदी की एक झलक के लिए।”


अधर में नजर लगाए, “30 साल बीत गए। मां बापू मर गए। मेरी भूख न मुझे जीने देती और ना ही मरने देती। ऐसे अधूरे इंसान से कौन शादी करे? पैसे के लिए कई आईं और मैने उन्हें पैसे दे कर भगा दिया पर मेरा दिल कब का मर चुका था। उसे मेरा भूखा पेट खा चुका था!”


कुछ होश में आ कर फुलवा को देखते हुए, “4 साल पहले मुझे एक कॉल आया। डरी हुई आवाज न बताया की मेरी आपा मर चुकी है और अब मैं उसे ढूंढना बंद कर दूं। कॉल बहुत कम वक्त का था पर मैंने उसका पता लगा लिया और अपने गुंडों के साथ पुरानी दिल्ली पहुंचा। वहां मुझे वह दगाबाज मिला जिसने मेरी दीदी को अगवा किया था। मेरे सर पर खून संवार था। मैंने पूछताछ की तो पता चला कि दगाबाज ने पिछले हफ्ते मेरी दीदी की सीढ़ियों से गिराकर मार डाला था।”


लाला ठाकुर के चेहरे पर किसी खूंखार जानवर के भाव थे।


लाला ठाकुर, “दगाबाज ने मुझ से वादा लिया की अगर वह मुझे अपनी दीदी की आखरी निशानी का पता बता दे तो मैं उसे नहीं मारूंगा। भूख बड़ी बेरहम सजा है। मैने वादा किया कि मैं उसे नहीं मारूंगा पर उसके सामने उसे 30 साल से पनाह देने वाले सब को मार डाला।”


फुलवा को देखते हुए, “दगाबाज को मैं जंगल में ले गया और वहां पर उसे एक टीले पर बांध कर छोड़ दिया। अपनी जीत की खुशी मनाते हुए दगाबाज ने बताया की ज़िन को नरबली के लिए बेचा गया है और उसने एक बात छुपाई थी। यही की अब तब ज़िन राज नर्तकी की भेंट चढ़ चुकी होगी। मैंने अपना वादा निभाया और उसे जिंदा छोड़ दिया। मैने भी उसकी तरह एक बात छुपाई थी। यही की जिस टीले पर हाथ पांव बांध कर उसे रखा था वह लाल चिटियों का छत्ता था। कुछ ही पलों में जंगल दगाबाज की चीखों से गूंज उठा जब चीटियां उसे जिंदा खा गई।”


अपने ससुर की दर्दनाक मौत से चिराग को कोई अफसोस नहीं था।


फुलवा को देखते हुए, “मैं राज नर्तकी की हवेली पहुंचा तब दोपहर का वक्त था। हवेली की जगह पर एक खंडहर था। कई सौ लाशों को जंगली जानवर नोच कर खा रहे थे। पता लगाना मुश्किल था कि कौनसी लाश कब मरे हुए इंसान की है! ज़िन जैसे गायब हो गई थी।”


चिराग को देखते हुए, “ मैंने तहकीकात जारी रखी और पता चला कि कुछ लोगों को उनका चोरी हुआ सामान वापस मिल गया है। साथ ही किसी चूतपुर के मुनीम ने राज नर्तकी के जेवरात museum को दान कर दिए थे। लेकिन चूतपुर के मुनीम से कुछ हाथ नहीं आया!”


अपनी आंखें बंद कर लाला ठाकुर, “उस रात मैंने अपनी पिस्तौल में एक गोली भरी, नली को अपने मुंह में लिया और घोड़ा दबाया। पिस्तौल चली, गोली पर चोट लगी पर गोली नहीं चली! मैने कहा था ना, इस श्राप का कोई इलाज नहीं!”



"चार साल नाउम्मीद होकर जीने के बाद पिछले हफ्ते मैं भक्तावर सेठ से मिलने गया जब उसकी बीवी एक पेंटिंग की जगह बदल रही थी। पेंटिंग का नाम राज नर्तकी था और उसके पहने जेवरात मैने लखनऊ के म्यूजियम में देखे थे। कलाकार का नाम प्रिया लिखा था पर भक्तावर ने कोई जवाब नहीं दिया। भक्तावार के पहचान की प्रिया को ढूंढना मुश्किल नहीं था और मैं यहां तक पहुंच गया।”


लाला ठाकुर की आंखें नम हो गई थी और वह अपने घुटनों पर बैठ गया।


लाला ठाकुर गिड़गिड़ाते हुए, “मुझे कोई फरक नहीं पड़ता कि आप लोगों ने प्रिया की निशानी को कैसे रखा है। उसे जिंदा रखने के लिए मैं आप का एहसानमंद हूं। बस ज़िन को एक बार मैं उसके घर ले जाऊं! बस एक बार मैं उसे उसकी मां का हक लौटाऊं तो मेरी जिंदगी भर की तड़प मिट जाए! अपनी भांजी को एक बार देख लूं तो शायद गोली धोखा ना दे!”


लाला ठाकुर पूरी तरह टूट गया था। जब उसके कंधे पर सहानुभूति भरा हाथ रखा गया तो वह रोने लगा।


लाला ठाकुर, “मैं थक गया हूं। दीदी से किया वादा मुझे जीने नहीं देता और यह भूख मुझे मरने नहीं देती! बस एक बार मैं प्रिया दीदी को किसी तरह उसके घर ले जाऊं तो शायद मैं मर पाऊं!!”


प्रिया ने लाला ठाकुर के बगल में बैठ कर, “अम्मी जानती थी कि आप उन्हें ढूंढ रहे हैं। इसी वजह से उन्होंने मरने के बाद अपनी सहेली उर्फी के जरिए आप को संदेश भिजवाया। उर्फी मौसी कैसी है?”


लाला ठाकुर ने प्रिया का चेहरा अपने हाथों में लेकर, “हमेशा दूसरों के बारे में सोचना अच्छा नहीं होता दीदी! (सिसक कर) अब उर्फी नही रही पर चंदा गल्फ में नौकरी कर काफी अमीर बन कर अपने गांव लौट गई है। तुम नही जानती पर तुम अपनी मां की छवि हो! क्या तुम प्रिया का हक लेकर मुझे आज़ाद करोगी? अपने गांव लौटकर अपनी विरासत संभालोगी?”


प्रिया, “अम्मी हर रक्षा बंधन के दिन एक धागा मेरे हाथ पर बांध कर कहती की एक दिन मेरे मामाजी मुझे मिलेंगे। मुझे यकीन नहीं हो रहा की वह बात सच है! लेकिन मामाजी मैं अभी गांव नहीं आ सकती!”


लाला ठाकुर, “तुम डरना मत! कोई तुम्हें नहीं रोकेगा!! (चिराग को देख कर) इसे कितने में खरीदा था? छोड़ो! कितना चाहते हो? जो चाहे मांग लो! करोड़? 10 करोड़? सौ करोड़? कितना?”


प्रिया खड़ी हो गई और दोबारा बोली,
“मामाजी, मैं कोई गुलाम नहीं, चिराग की बीवी हूं। अब देख रहे हो ना की मैं अभी गांव क्यों नहीं आ सकती?”


लाला ठाकुर प्रिया का खिलता बदन निहारते हुए, “तुम मजबूर गुलाम नहीं हो? इज्जतदार अमीर बहु हो? तुम मां बनने वाली हो? मैं… मैं नाना बनूंगा?”


प्रिया, “फुलवा मां ने मुझे नरबली होने से बचाया, मुझे पढ़ाया, मुझे काबिल बनाया और मुझे अपने प्यार से भी मिलाया! मैं आज ज़िन नहीं प्रिया हूं क्योंकि फुलवा मां मुझे मिली!”


लाला ठाकुर फुलवा के पैरों में गिर गया और रोते हुए बोला,
“मैंने अपनी दीदी को बरबाद होने दिया, तुम्हें रंडीखाने में छोड़ा और ज़िन को भी बचाने में नाकाम रहा पर तुमने न केवल खुद को बचाया पर मेरी दीदी की आखरी निशानी को भी बचाया! उसे अपनी बहु बनाया! उसे सम्मान दिया! मैं नालायक आप का गुलाम रहूंगा!”


फुलवा ने लाला ठाकुर को उठाते हुए, “आप ने मुझे औरत होने का एहसास दिलाया। अगर आप ना होते तो मैं अंदर ही अंदर कब की मर चुकी होती। आप हमेशा मुझे याद रहे क्योंकि आप अकेले थे जिन्होंने मुझे इज्जत दी। मेरे भाइयों ने भी मुझ में एक रण्डी देखी पर आप ने प्यार को तरसती लड़की को पहचाना। आप दुखी न होना। जो हुआ वह बस नसीब की बात थी। सोचो, अगर आप मुझे Peter अंकल से बचा लेते तो ना चिराग पैदा होता और ना ही मैं प्रिया को बचा पाती!”


लाला ठाकुर ने हाथ जोड़कर मां बेटे से उन्हें धमकाने की माफी मांगी और अपनी भांजी से उसे न बचा पाने के लिए भी माफी मांगी। लाला ठाकुर वह राक्षस था जो कुछ मिनटों में अपना अहंकार और गर्व त्याग कर अचानक इंसान बन गया था।


लाला ठाकुर को कमरे में आए आधा घंटा हुआ था जब दोबारा घंटी बजी।


चिराग ने दरवाजा खोलते ही मानव शाह, छोटेलाल और भक्तावर ने अंदर कदम रखा। तीनों दोस्त बातें करने के तय समय बाद उन्हें बचाने आए थे। प्रिया को लाला ठाकुर का हाथ अपने हाथों में लेकर बातें करते हुए देख कर तीनों पीछे मुड़ कर चले गए।


फुलवा ने प्रिया से बात करके तय किया कि लाला ठाकुर हर रोज प्रिया के साथ एक घंटा फुलवा की मौजूदगी में बीता सकता है। प्रिया अपने बच्चे को जन्म देने के 2 महीनों बाद अपने पूरे परिवार समेत अपने मामाजी के साथ अपना गांव देखने जायेगी।


हालांकि चिराग को लाला ठाकुर पर पूरा भरोसा नहीं हुआ था वह बस उसके alpha prime male होने का हिस्सा था। चिराग ने दारूवाला से मदद मांगी और लाला ठाकुर के अतीत को खंगाला।


लाला ठाकुर ने अपने माता पिता से मिली पूरी दौलत को अपनी दीदी के नाम से एक ट्रस्ट में रख कर उसे बढ़ाते हुए C corp के बराबरी का कारोबार बनाया था। यह पूरी दौलत अब वह अपनी भांजी को देने के लिए उतावला था। सास बहू और मामाजी रोज मिलते, बातें करते और चिराग के मना करने के बावजूद डिंपी से भी मिल कर आए।


लाला ठाकुर की अपनी निजी संपत्ति थी जो उसने बड़ी बेरहमी से उन लोगों से छीन कर बनाई थी जो औरतों को देह व्यापार में झोंकना अपना धंधा समझते थे। इस संपत्ति की शुरुवात मासूमों के खून से हुई थी पर अंत दगाबाजों के खून से हुआ था। लाला ठाकुर ने इस दौलत को दुनिया में कई जगह लगाकर बड़े और खतरनाक दोस्त बनाए थे जिन में कई देश शामिल थे।


लाला ठाकुर गुनाहों का मानव शाह था।


फुलवा के जन्मदिन के 7 दिन बाद चिराग को लाला ठाकुर ने जल्दबाजी में अस्पताल बुला लिया। प्रिया को दर्द शुरू हो गया था और दोनों मर्द हॉस्पिटल के गलियारों के चक्कर काटते हुए अगले 11 घंटों में दोस्त बन गए।


प्रिया की चीखें सुनकर दोनों ने तय किया कि अगर चिराग ने प्रिया को दुबारा छूने की कोशिश की तो उसका लौड़ा काट दिया जाए। उनकी बेवकोफियों पर काम्या और काली हंस पड़ी पर मानव और मोहनजी ने हमदर्दी जताई।


डॉक्टर जब फुलवा के साथ चिराग की बेटी को लाए तब चिराग ने प्रिया के बारे में पहले पूछा और लाला ठाकुर ने उसे अपना दामाद मान लिया। प्रिया थकी हुई थी पर अपने बेटी को सीने से लगाए काफी खुश और डरी हुई थी।


सबने प्रिया की तारीफ की और डॉक्टर ने प्रिया को 3 दिन बाद हॉस्पिटल से रिहा करने का वादा किया। सवा महीने बाद छोटी साक्षी अपने माता पिता दादी और नाना के साथ मंदिर गई और दो महीने बाद अपने पहले सफर पर निकली।


गांव में दिवाली जैसी रोशनाई थी कि बरसों के बाद प्रिया लौट रही थी। चिराग और प्रिया अपनी बेटी से साथ प्रिया के घर में कुछ दिन रहे लेकिन दोनों को मुंबई लौटना पड़ा। C corp अब चिराग खुद चला रहा था तो प्रिया अपने मामाजी से मिली फोटोग्राफिक मेमोरी के कारण अपनी इन्वेस्टमेंट फंड के साथ अब धीरे धीरे अपनी विरासत में मिली कंपनी भी संभालने वाली थी।


मामाजी से विदा लेकर चिराग और प्रिया लौटने के लिए गाड़ी में बैठे तो फुलवा ने दोनों के माथे को चूमा और उनके साथ आने से मना कर दिया।


चिराग, “मां, यहां रहकर क्या करोगी? आप के सारे दोस्त रिश्तेदार मुंबई में है!”


फुलवा शर्माकर, “मैं मुंबई आती जाती रहूंगी लेकिन मुझे अपनी जिंदगी का छूटा हुआ एक पड़ाव पूरा करना है। मैं बेटी, प्रेमिका, मां और दादी बन चुकी हूं पर (लाला ठाकुर का हाथ पकड़ कर) मुझे पत्नी बन कर जीना है।”


प्रिया ने चिराग का हाथ पकड़ कर उसे बिना बोले समझाया और दो मर्दों ने आंखों ही आंखों में एक दूसरे को धमकाया। चिराग ने फुलवा से कहा कि वह फोन पर बात करते रहेगा और लाला ठाकुर को तीखी नजर से देखते हुए चला गया।


एक महीने बाद गांव दोबारा रौशनाई से चमक रहा था क्योंकि गांव के ठाकुर ने गांव के मंदिर में शादी कर ली थी। आज फुलवा अपने पहले प्यार को अपना आखरी प्यार बना चुकी थी।


अपनी पोती को गोद में लिए अपने पति, बेटे और बहु को देखते हुए फुलवा मुस्कुराई। फुलवा जानती थी कि वह न कभी बदनसीब थी और न कभी रण्डी। किस्मत ने बस उसे थोडा इंतजार कराया था।


समाप्त
 
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Lefty69

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Story needs more serious tortures and serious cruel bdsm

like send her to a reformatory or prison or asylum or rehab where she is treated and cured by daily and routine different kinds of tortures , where other women are admitted too
Sorry but I am not into hard BDSM
 

Lefty69

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Nice superb kahani mein twist ab aage kya hoga fulwa kya karegi lala ke shabd sunne ke baad ...
Thank you for your continued support and reply.

According to previous poll in Manav bana Daanav I will be restarting शीघ्रपत्नि

Please do support me there and give me your ideas.

PS Kaali will also get her story after that.
 
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Mink

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Bahut hi khubsurat aant story ka aakhir jindagi mein itne utaar chadao aur dukh dard paane ke baad Fulwa ko apna saathi mil gaya....
 
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