Thank you for your continued support LuckylodaBhut hi shandaar tarike se end ki gyi story
I have restarted शीघ्रपत्नी as per poll in Manav ending
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फुलवा ने सपने में देखा की राज नर्तकी की हवेली का दरवाजा खुला था और अंदर से सिसकने की आवाज आ रही थी। राज नर्तकी गुस्से में नाच रही थी और उसके सुनहरे घुंघरुओं की आवाज मानो गूंज रही थी। अचानक घुंघरू रुक गए और एक और सिसकती बेबस आवाज शुरू हो गई।
राज नर्तकी (सिर्फ आवाज), “मेरी सखी! मैं थक गई हूं! मुझे मदद करोगी?”
फुलवा की आंख खुली और उसे अपने इर्दगिर्द मौत की बू आ रही थी। फुलवा ने गहरी सांस ली और समझ गई कि आज उसकी मौत तय है।
फुलवा ने चुपके से उठ कर अपने सोते हुए बेटे को आखरी आशीर्वाद दिया और रसोईघर से एक तेज चाकू लेकर बापू की गाड़ी लेकर निकली। मौत की बू मानो उसे सही रास्ते पर तेजी से खींचे जा रही थी। 15 मिनट बाद गाड़ी राज नर्तकी की हवेली के सामने अपने आप बंद पड़ गई।
राज नर्तकी की हवेली का दरवाजा सच में पूरी तरह खुला था और अंदर से सिसकियों के साथ किसी तरह के काले जादू के रसम की आवाज सुनाई दे रही थी। फुलवा ने अंदर झांक कर देखा तो एक जवान लड़की के माथे पर अपने खून से किसी तरह की निशानी बनाकर एक आदमी राज नर्तकी को पुकार रहा था। आदमी की पीठ फुलवा की ओर थी पर लड़की हाथ और मुंह बंधी हुई हालत में उसे अपनी ओर आते हुए देख रही थी।
आदमी, “ओ प्राचीन खजाने की रखवाली करती पिशाच!! मेरा यह तोहफा कुबूल कर!! इस कोरी अनछुई कुंवारी को अपनी गुलाम बना और मुझे अपने खजाने को बस छूने का मौका दे! मैं तेरे लिए छोटे छोटे बच्चे भी लाऊंगा बस मुझे अपना प्रसाद दे!!”
आदमी ने अपने घुटनों पर बैठ कर अपने जोड़े हुए हाथ ऊपर उठाए तो उसने पकड़ा हुआ चाकू साफ नजर आया। लड़की डर कर रोते हुए उस चाकू को देख रही थी तो लालची आदमी लड़की का कांपता हुआ गला।
फुलवा ने बिना सोचे अपना चाकू निकाला और पीछे से आदमी का सर पकड़ लिया। आदमी चौंक गया और उसके हाथ से चाकू गिर गया।
फुलवा, “धन तुझे चाहिए और मरे कोई और, यह कहां का इंसाफ हुआ?”
फुलवा ने अपने चाकू को आदमी के गले पर लगाया तो वह छटपटाते हुए अपनी आज़ादी मांगने लगा।
फुलवा, “तूने पहले भी कहीं पर किसी मासूम को मारा है। तुझे छोड़ दूं तो तू और छोटे बच्चों को मारेगा। इंसाफ कहता है कि तुझे मारकर ही उन्हें बचाना होगा!”
फुलवा ने चाकू घुमाया और दरिंदे ने जलाई आग उसी के खून से बुझ गई। फुलवा ने उस मरते बदन को नजरंदाज करते हुए डरी हुई लड़की को अपने गले से लगाया और उसके हाथ और मुंह को खोला।
लड़की रोते हुए हाथ जोड़कर, “मुझे मत मारो!…
मैंने कुछ नहीं देखा!!…
मैं बेकसूर हूं!!…”
फुलवा को उस कांपते हुए बदन में वही विवशता, वही डर महसूस किया जो उसने इस हवेली में बापू के साथ महसूस किया था। फुलवा ने एक मां की ममता से उस लड़की के माथे को चूमा और उसकी आंखों में देखा।
फुलवा, “बेटा, जो भी हुआ वह गुनाह नहीं है। कातिल को सजा देना इंसाफ होता है। तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं!!”
फुलवा को अपने पीछे से घुंघरू की आवाज सुनाई दी और उसकी आंखों में से आंसू छलक पड़े। फुलवा ने अपने आप से कहा कि वह अब भी बेकसूर है।
फुलवा लड़की के कान में, “क्या तुम्हें घुंघरू सुनाई दे रहे हैं?”
लड़की ने बुरी तरह कांपते हुए हां कहा।
फुलवा, “इसका मतलब तुम भी बेकसूर हो!”
अचानक हवेली की सदियों से बंद खिड़कियां खुल गईं और जोर से हवाएं बहने लगी। फुलवा को अपने पीछे से राज नर्तकी की आवाज सुनाई दी।
राज नर्तकी, “इतने सालों में मेरा मनुष्य से विश्वास उठ गया था। मेरी सखी, मेरी सहायता करने के लिए मैं आभारी हूं।”
फुलवा और लड़की ने पीछे आवाज की ओर देखा और भोर की पहली किरणों में राज नर्तकी चमक रही थी।
फुलवा राज नर्तकी के रूप से मंत्रमुग्ध हो कर देखती रही और राज नर्तकी ने उसे प्रणाम किया।
राज नर्तकी, “आज तुमने न्याय करके इस श्रापित वास्तु को मुक्त किया है और इस लिए मैं तुम्हें कुछ देना चाहती हूं।”
राज नर्तकी के पीछे पीछे फुलवा और लड़की चलते हुए दरबार के बीचोबीच आ गए।
फुलवा, “मैंने वादा किया था की मैं आऊंगी, इस लिए मैं आई। मुझे कुछ नहीं चाहिए।”
राज नर्तकी मुस्कुराते हुए, “सखी, मैं यह जानती हूं। इसी लिए मैं स्वेच्छा से तुम्हें यह देना चाहती हूं।”
राज नर्तकी ने ठीक बीच की फर्श पर अपनी ऐड़ी को दबाया और वह फर्श टूट कर बिखर गई। राज नर्तकी ने इशारे से दोनों को वहां के टुकड़ों को उठाने को कहा।
राज नर्तकी, “इसी जगह पर मैंने अपनी आखरी सांस छोड़ी थी।”
फर्श के अंदर से एक पोटली निकली जिसमे कुछ सामान था। पोटली बगल में रखते ही दूसरी पोटली वहां आ गई। ऐसा लग रहा था मानो पिछली कई सदियों से हवेली ने जो खजाना निगला था उसे हवेली उल्टी कर निकाल रही थी। पोटलियों के बाद संदूकें आईं। उनके बाद पुराने लकड़ी के डिब्बे बक्से और सबसे आखिर में कुछ राजसी जेवरात। आखिर में सोने और हीरे जड़े कई खंजर और जेवरात आए जो मानो पूरे दरबार ने एक साथ निकाल रखे थे। उनके बाद एक रत्नजड़ित खंजर जिस पर अब भी ताज़ा खून लगा था और आखिर में हीरे रत्न लगा कमरपट्टा और सोने के घुंघरू ठीक जैसे राज नर्तकी ने पहने हुए थे।
राज नर्तकी, “सामान बहुत है इसे जल्दी से बाहर ले जाओ सुबह बस होने को है।”
फुलवा की गाड़ी भर गई तो उसने राज नर्तकी को अपने कैद से आजाद होते हुए देखा।
राज नर्तकी (बाहर खड़ी हो कर), “सखी, मेरे लिए दुखी न होना। मैं तो अपने आराध्य, अप्सरा उर्वशी के शरण में जा रही हूं। तुम्हारी प्रशंसा अवश्य करूंगी!”
सूरज की पहली किरण के साथ राज नर्तकी जैसे चमकने लगी और देखते ही देखते ओझल हो गई। राज नर्तकी के जाते ही पूरा महल ताश के पत्तों के महल जैसा गिर गया। अंदर सदियों से बंद लाशें खुले में आ गई। फुलवा सदमे में खोई लड़की को अपनी गाड़ी में बिठाकर अपने साथ अपने घर ले आई।
चिराग काम के लिए तैयार हो गया था और अपनी मां को वापस आता देख आगे आया पर लड़की को देख रुक गया।
फुलवा, “चिराग, यह मेरी सहेली है और अब हमारे साथ ही रहेगी। तुम काम करने जाओ, आज हम दोनों जरा व्यस्त रहेंगी।”
चिराग अपनी मां से बिना बहस किए चला गया।
फुलवा ने लड़की को कुछ साफ कपड़े दिए और नहाकर नए कपड़े पहनने को कहा। जब लड़की लौटी तो फुलवा ने उसे नाश्ता खिलाया और उसके बारे में पूछा।
लड़की, “मेरा नाम झीना है और मैं पुराने दिल्ली की बदनाम गलियों में पली बढ़ी हूं।”
फुलवा, “झीना!! इसका मतलब क्या है?”
लड़की सर झुकाकर, “शादी के बिना मर्द का साथ देना।”
फुलवा चौंक कर, “क्या? मुझे नहीं लगता कि तुम्हारी मां ने तुम्हें यह नाम दिया होगा!”
लड़की, “नही, यह नाम अब्बू ने दिया था। वह मां से वही काम करवाते। लेकिन… मां कभी कभी मुझे नींद में समझ कर मुझे प्रिया बुलाती।”
फुलवा, “क्या हम तुम्हें प्रिया बुलाएं? (उसने सर हिलाकर हां कहा) तुम्हारी मां कहां है?”
प्रिया जोर जोर से रोने लगी। काफी देर बाद फुलवा उसे शांत कर पाई और प्रिया ने अपनी दुखी दास्तान सुनाई।
प्रिया की मां किसी अच्छे घर की बेटी थी जिसे उसके अब्बू ने भगाया, बर्बाद किया और अब वह लौट नहीं सकती थी। मजबूरी में अपना जिस्म बेचकर अपना पेट और बच्चा पालती थी। अब्बू उस के लिए ग्राहक लाते और तब अपनी बेटी को मार कर रात भर बाहर रखते। जैसे बेटी जवान होने लगी अब्बू ने उसे बेचने के पैंतरे शुरू किए पर उसकी मां ने उसे बड़ी मुश्किल से बचाए रखा। कल जब वह 18 साल की हुई तो अब्बू ने उसे मोटी रक्कम में एक काला जादू करने वाले ओझा को बेच दिया। जब ओझा प्रिया को ले जा रहा था तब उसकी मां को रोकते हुए अब्बू बुरी तरह पिट रहा था। प्रिया ने अपनी मां को आखरी बार देखा तब कोठे की सीढ़ियों से नीचे गिरकर टूटी गुड़िया की तरह दिख रही थी।
फुलवा ने उस दुःखी बच्ची को ममता से गले लगाया और उसे अपना दिल हल्का कर अपनी मां की मौत का मातम करने दिया। फिर फुलवा ने फोन उठाया और नारायण जी से बात की।
फुलवा, “नारायण जी मुझे धनदास की जरूरत है। क्या आप उसे भेज सकते हैं?”
नारायण जी, “ऐसा क्या है जो तुम्हें धनदास की जरूरत आ पड़ी? ठीक है, आता हूं!"
फुलवा के साथ प्रिया को देख नारायण जी चौंक गए पर प्रिया डर गई की शायद अब फुलवा उसे बेच दे। लेकिन फुलवा ने खजाने की पहली पोटली खोली और अंदर के जेवरात को देख नारायण जी और ज्यादा चौंक गए।
नारायण जी, “बेटी, ये कहां से मिला? यह हार मैने बनाया था और इसे चोरी हुए 12 साल बीत चुके हैं।“
फुलवा, “क्या आप इसे सही लोगों को लौटा सकते हैं?”
नारायण जी चिढ़ाते हुए, “याद है ना? धनदास ऐसे काम नहीं करता!”
फुलवा, “धनदास को और मौके मिलेंगे!”
पहली पोटली को बंद कर फुलवा ने दूसरी पोटली निकाली। धनदास ने इसे 20 साल पुरानी बताई। इसके भी मालिक का पता चलना मुमकिन था तो इसे भी रख दिया गया। पोटलियां निकलती गई और धनदास को इस खेल में मजा आने लगा। भारत की स्वतंत्रता का दौर गया और संदूकें खुलने लगी। अब मालिक का पता चलना मुमकिन नहीं था और कीमत पर मोल भाव होने लगा। प्रिया के लिए ऐसे पैसे के साथ खेलना नया था पर मर्द और औरत में हंसी मजाक बिलकुल अविश्वसनीय था।
संदूकों के साथ अंग्रेजों का काल बीत गया और नक्काशी के लकड़ी के बक्सों को खोलने से उनका खजाना तोलने तक के खेल में प्रिया भी शामिल हो गई। नवाबों का दौर खत्म होते हुए फुलवा ने राजसी जेवरात निकाले और उन्हें देख कर धनदास को जैसे सांप सूंघ गया।
धनदास बुदबुदाया, "नवाबी बहु के जेवरात?"
सोने और हीरे जड़े खंजर देख कर धनदास का रंग उड़ गया।
धनदास, "गायब नवाबी दरबार?”
रत्नजड़ित खंजर देख कर धनदास लगभग बेहोश हो गया।
धनदास फुसफुसाया, "नवाबजादे का खंजर…"
सोने के घुंघरू और एक रत्नजड़ित कमरपट्टा देख धनदास बस एक वाक्य कह पाया।
धनदास, “राज नर्तकी का खजाना!!”
फुलवा ने प्रिया का हाथ अपने हाथ में लेकर, “हमें मिला है।”
धनदास की आंखों में आंसू भर आए।
धनदास, “मेरी बच्ची ये तूने क्या किया!!…
यह खजाना शापित है। इसे मुझे दे दो! मैं इसे लौटाऊंगा! मैं अपनी जिंदगी जी चुका हूं। तुम यह बात किसी को मत बताना और मुझे ढूंढने मत आना! वहां मौत का राज है!”
प्रिया चौंक कर, “आप हमारे लिए मरने को तैयार हैं?”
धनदास उसके सर पर हाथ रखकर, “एक आखरी कर्जा उतार रहा हूं मेरी बच्ची!”
फुलवा मुस्कुराकर, “नारायण जी कोई कर्जा बाकी नहीं है और कोई कहीं नहीं जा रहा! यह राज नर्तकी ने खुद हमें दिया हुआ तोहफा है और अब वहां कोई हवेली नही। श्राप टूट चुका है और हम दोनों अब सही सलामत हैं।”
नारायण जी को विश्वास दिलाने में थोड़ा वक्त और लगा पर उसने जिन चीजों के मालिक ढूंढे जा सकते थे उन्हें लौटाने का जिम्मा उठाया। फुलवा ने खजाने के बारे में पूरी सच्चाई बताते हुए कुंवारी की बली देते ओझा के बारे में बताया और नारायण जी सोच में पड़ गए।
नारायण जी, “मैं तुम्हें डराना नहीं चाहता पर ऐसे लोग अक्सर जोड़ी या किसी साझेदारी में रहते हैं। इस लड़की की जान को अब भी खतरा है!”
प्रिया डर गई और फुलवा ने उसे ढाढस बंधाते हुए, “आप ही बताइए! क्या करें?”
नारायण जी, “मोहन से बात कर तुम सब को मुंबई भेज देते हैं! इसे कोई देखने से पहले अगर तुम सब यहां से चले गए तो तुम्हारा साथ होना किसी को पता ही नहीं चलेगा। मोहन ने मुंबई में तैयारी कर रखी है और बाकी बातें आराम से हो जाएंगी।”
दोपहर के खाने तक नारायण जी और मोहनजी ने सारे इंतजाम कर लिए थे। चिराग आज घर जल्दी आ कर मुंबई जाने की तैयारी में हाथ बटाने वाला था। कल सुबह की ट्रेन से तीनों मुंबई जाने वाले थे क्योंकि वहां सिर्फ चिराग के कागज दिखाकर काम चल जाने वाला था।
प्रिया पैसे की इस ताकत को देख कर बुरी तरह डर चुकी थी। फुलवा ने नारायण जी के जाने के बाद प्रिया को सच्चाई से अवगत कराया।
फुलवा (प्रिया के हाथ अपने हाथों में लेकर), “प्रिया तुमने मुझसे यह नहीं छुपाया की तुम एक वैश्या की बेटी हो। सच्चाई बताते हुए तुम्हें डर लगा होगा की तुम्हें बुरा बर्ताव मिलेगा पर तुमने सच कहा! अब सच कहने की बारी मेरी है। मैं भी वैश्या की बेटी हूं। राज नर्तकी मेरी सखी थी क्योंकि उसी के सामने मेरे बापू ने मेरी गांड़ मार कर मुझे वैश्या बनाया था। कल तुम्हारा 18 वा जन्मदिन था और आज मेरा 38 वा जन्मदिन है। मैने जवानी के 20 सालों में से 19 साल किसी न किसी तरह से कैद में गुजारे हैं। मैं कभी रण्डी थी तो कभी डकैत। आखरी कैद में मैं एक 50 रुपए की रण्डी थी और हर रात 20 से ज्यादा लौड़े लेती थी। इसी वजह से मुझे सेक्स की बीमारी लग गई है। मेरे बेटे चिराग ने मुझे बचाया और अब मैं अपने ही बेटे ने चुधवाते हुए अपनी बीमारी पर काबू पाने की कोशिश कर रही हूं। अब बताओ, क्या तुम ऐसे बदचलन लोगों के बीच रहना चाहती हो? सोचो! अगर मना किया तो मैं आसानी से तुम्हें नारायण जी की मदद से तुम्हारी मर्जी के शहर में तुम्हारा अच्छा इंतज़ाम कर सकती हूं!”
प्रिया मुस्कुराकर, “औरत मर्द के बीच क्या होता है यह तो शायद मैं बोलना सीखने से पहले सीख गई। लेकिन आप की सच्चाई जानकर मुझे लगता है कि मुझे आप से बेहतर कोई समझ नहीं पाएगा। अगर आप बुरा न मानो तो मैं आप के साथ ही रहना चाहूंगी।”
फुलवा ने प्रिया को गले लगाया और उसके साथ अपने मानसउपचारतज्ञ के पास गई। डॉक्टर ने उनके मुंबई के दोस्त का पता दिया और दोनों को शुभकामनाएं दी।
चिराग घर लौटा तो उसके मन में कई सवाल थे। चिराग ने अपनी मां को देखा और उसके लाल होते चेहरे, तेज चलती सांसे, माथे पर पसीना और चमकती आंखों से पहचान गया की उसे जवाबों के लिए थोड़ा और इंतजार करना होगा।
Thank you for your comments.एक नम्बर क्या कहानी है भाई कामुकता है सस्पेंस है रोमांस है हॉरर है मजा आ गया
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