333,,,रोहन अद्भुत अहसास से भरता चला जा रहा था,,,,,,,, कमरे का नजारा मादकता से भरा हुआ था बाहर बादलों की गड़गड़ाहट के साथ तेज बारिश हो रही थी जिसकी वजह से सारा वातावरण ठंडा हो चुका था लेकिन कमरे का वातावरण एकदम गरम था वह भी सुगंधा की मदमस्त जवानी के कारण जो कि बिस्तर पर नंगी होकर कसमसा रही थी और इसकी जवानी के दर्शन करने का सौभाग्य उसके खुद के बेटे को ही प्राप्त था जो कि आंखें फाड़े अपनी मत बस जवानी से भरपूर अपनी मां को देखे जा रहा था और अपने हाथों से उसकी जवानी को महसूस किया जा रहा था,,,,, आधी रात से ऊपर का समय हो गया था और ऐसे में दोनों मां-बेटे की आंखों से नींद कोसों दूर थी रोहन अपनी मां की भारी-भरकम बड़ी बड़ी गांड को अपने हाथों से मसल रहा था सरसों के तेल से सुगंधा की मदमस्त चिकनी गांड और भी ज्यादा चमकने लगी थी अभी तक रोहन अपनी मां की गांड की ऊपरी सतह की मालिश कर रहा था लेकिन वह अपनी मां की गांड की गहरी दरारों के अंदर अपनी उंगलियां डालकर उसकी चिकनाहट और दोनों अद्भुत अतुल्य छेद को अपनी उंगलियों के स्पर्श से महसूस करना चाहता था इसलिए हिम्मत करते हुए धीरे-धीरे वह अपनी मां की गांड की गहरी दरार में अपनी उंगलियां फिराना शुरू कर दिया,,, अपने बेटे की इस हरकत की वजह से सुगंधा की मदमस्त कसमसाती हुईे बदन में उत्तेजना की लहर पल-पल बढ़ती जा रही थी,,,
सुगंधा अपने बेटे की इस हरकत को रोक नहीं पा रही थी बल्कि उसके अद्भुत एहसास में होती चली जा रही थी उत्तेजना के सागर में मादकता की लहर में अपने आपको खुद ही बहाए ले जा रही थी,,, दोनों को किसी भी प्रकार का भान नहीं था रोहन धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था,,, अपनी मां की तरफ से किसी भी प्रकार का विरोध होता ना देख कर रोहन की उंगलियां गांड की गहरी दरार मे हरकत के साथ साथ शिरकत भी कर रही थी जो कि बेहद आनंददायक थी,,,,,
अब कैसा लग रहा है मम्मी,,,,,
बहुत अच्छा लग रहा है बेटा ऐसा लग रहा है कि मेरा दर्द धीरे धीरे कम हो रहा है,,, तो इसी तरह से मालिश करता रहे मुझे अच्छा लग रहा है,,, ( ऐसा कहते हुए सुगंधा सुकून भरी आंखें भर रही थी और जवान हो चुका रोहन अपनी मां की इस गर्म आहे को अच्छी तरह से पहचानता था उसे समझ में आ रहा था कि उसकी हरकत उसकी मां को बेहद आनंद दे रही है और उसे अच्छा लग रहा है और वह अपनी हरकत को और आगे ज्यादा बढ़ा सकता है इतनी पूरी तरह से उसे उम्मीद थी इसलिए वहां अपनी उंगली को अपनी मां की गांड की गहराई के निचले स्तर पर रगड़ता हुआ नीचे की तरफ ले जा रहा था और जब जब रोहन की उंगली का स्पर्श सुगंधा की मदमस्त गांड की भूरे रंग के उस छोटे से छेद पर हो रहा था तब तक सुगंधा को ऐसा लग रहा था मानो उसके बदन में करंट दौड़ गया हूं और वह उत्तेजना के मारे पूरी तरह से गणना जा रही थी वह अपनी कसमसाहट को रोक नहीं पा रही थी बार-बार अपनी गांड को इधर-उधर हिलाते हुए अपनी कामोत्तेजना को दबाने की कोशिश कर रही थी लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था,,,,,
रोहन को इस बात का एहसास था कि वह अपनी उंगली से अपनी मां के कौन से अंग को स्पर्श कर रहा है और इसलिए उसके तन बदन में उत्तेजना का पारा कुछ ज्यादा ही ऊपर चढ़ता चला जा रहा था उसका लंड रोहे के रोड की तरह एकदम कड़क और गर्म हो चुका था पसीने से तरबतर रोहन अपनी मां की गुलाबी बुर को छूना चाहता था लेकिन ना जाने क्यों उस तरफ अपनी उंगली को बढ़ाने में हिचकीचा रहा था एक अजीब सा डर उसके मन में था हालांकि वह किसी भी प्रकार की हरकत अपनी मां के साथ कर सकता था क्योंकि मन ही मन में उसकी मां ने पूरी तरह से से छूट दे रखी थी और इस बात का एहसास रोहन को भी जल्द ही हो जाना चाहिए था जब वह खुद उसे अपने हाथों से पेटीकोट ऊतारने के लिए बोली थी,,,,, लेकिन रोहन इस मामले में अभी पूरी तरह से कच्चा खिलाड़ी था,,,, एक औरत के साथ बिस्तर पर किस तरह का खेल खेला जाता है इस बात से रोहन बिल्कुल अनजान था यह सारा मामला उसके लिए पहली बार का ही था इसलिए वह अपने आप ही धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था हालांकि उसकी मां धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए उसे इशारा कर देती थी लेकिन उस इशारे को समझने में रोहन असमर्थ था और अपने आप ही धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था जिस तरह से वह मालिश करते हुए अपनी उंगली को इधर-उधर उसके नाजुक अंगों से छेड़खानी कर रहा था सुगंधा चाहती थी कि वह अपनी उंगली की हरकत उसकी नाजुक रसीली मखमली गुलाबी बुर पर भी करें इसलिए वह उसे इशारा देते हुए अपनी टांगों को हल्का सा खोल दी,,,
रोहन के लिए जैसे जन्नत का द्वार खुल गया था उसकी आंखें चमक उठी अपनी मां की इस हरकत पर लेकिन जिस चीज को वह देखना चाह रहा था वह चीज अभी भी उसकी नजरों से दूर थी क्योंकि लालटेन की पीली रोशनी में सुगंधा के टांगों के बीच की उस पतली दरार को देख पाना मुश्किल सा लग रहा था क्योंकि लालटेन की रोशनी ज्यादा नहीं थी इसलिए रोहन बार-बार अपनी नजरों को नीचे करके अपनी मां की रसीली बुर के दर्शन करना चाह रहा था लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था वह लगातार अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड पर अपनी दोनों हथेलियों को रगड़ते जा रहा था उन्हें हाथों में भरकर दबाए जा रहा था इतना तो उसे पता ही चल गया था कि उसकी मां को किसी भी प्रकार की दिक्कत नहीं थी उसकी हरकत की वजह से इसलिए उसकी हिम्मत बढ़ती जा रही थी,,,,, और दूसरी तरफ सुगंधा अपनी टांगों को हल्का सा चौड़ा करके अपनी रसीदी गुलाबी पुर पर अपने बेटे की उंगलियों की हरकत का आनंद लेना चाह रही थी लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था कुछ देर तक रोहन उसी तरह से अपनी मां की बड़ी-बड़ी तरबूज देसी कांड से ही खेलता रहा हालांकि इसमें भी सुगंधाको बहुत ही आनंद की प्राप्ति हो रही थी लेकिन वह इससे कुछ ज्यादा बढ़कर इच्छा रख रही थी लेकिन अपनी इच्छा में कामयाब नहीं हो पा रही थी जिससे उसे इस बात का आभास हो गया था कि रोहन आगे बढ़ने में डर रहा है तभी तो केवल उसकी उंगली बुर की ऊपरी सतह पर गांड के भूरे रंग के छेद पर ही आकर रुक जा रही थी इससे आगे बढ़ाने में रोहन की हिम्मत नहीं हो रही थी,,, सुगंधा को इस बात का आभास हो गया कि इससे आगे बढ़ने के लिए रोहन के मन से और ज्यादा डर को निकालना जरूरी है इसलिए वह बातों का दौर शुरू करते हुए बोली,,,,।
रोहन जब तुझे उस दिन होश आया और मुझे वहां ना पाकर तेरे मन में क्या सवाल उठा मतलब कि तुझे क्या लगा,,,
मुझे जब होश आया तो मैं चारों तरफ देखा तो तुम मुझे कहीं भी नजर नहीं आई केवल तूफानी बारिश और तेज चलती हवाओं को देखकर और तुम्हें वहां ना पाकर मैं घबरा गया मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं,, ( ऐसा कहते हुए रोहन अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड को दोनों हाथों से पकड़ कर आपस में रगड़ रहा था जिससे सुगंधाको और ज्यादा मजा आ रहा था,,,।)
और जब तुझे यह पता चला कि मैं खंडहर में हूं तो तेरे मन में क्या उठा मतलब तुझे कैसा आभास हुआ मुझे लेकर और उस शैतान को लेकर,,,, ( सुगंधा जिस तरह का सवाल कर रही थी उसका मतलब रोहन अच्छी तरह से समझ रहा था कि वह क्या सुनना चाहती है और सोहन को भी इसमें मजा आ रहा था रोहन इस बात को समझ गया था कि अब अपनी मां के आगे शर्म करने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि वह फिर एक बेशर्म होकर इस तरह की बातें जानबूझकर पूछ रही थी ताकि वह गंदे शब्दों में उन सवालों का जवाब दें लेकिन जानबूझकर रोहन अच्छा बनने की कोशिश करते हुए बोला,,,।)
मम्मी जब मैं तुम्हारी आवाज को खंडहर में से आता हुआ सुना तो मुझे लगा कि तुम्हारे साथ कुछ ना कुछ गलत हो रहा है,,,
गलत मतलब क्या क्या लगा तुझे कि मेरे साथ क्या गलत हो रहा है,,,, (सुगंधा जानबूझकर अपने बेटे को उकसाते हुए बोली,,,)
मुझे लगा कि तुम्हारे साथ वो,,,, हो गया,,,, मतलब की ऊसने वो वो,,,, कर दीया,,,,,, ( रोहन जो कहना चाह रहा था उस बात को सुगंधा अच्छी तरह से समझ रही थी लेकिन रोहन कहने से घबरा रहा था लेकिन इस दौरान भी उसके हाथ,,, सुगंधा के मदमस्त बड़ी बड़ी गांड पर टिके हुए थे जिसे वह अपनी हथेली में भर भर कर दबा रहा था। )
मैं समझी नहीं कि तुम क्या कहना चाह रहे हो उसने क्या कर दिया ठीक ठीक बताओ मुझसे शर्माने की जरूरत नहीं है और अभी भी शर्माओगे तो पता नहीं क्या करोगे,,,,
मम्मी में तुम्हें कैसे बताऊं की मुझे उस समय क्या लगा था मुझे तो बताने में शर्म आ रही है,,,,,।
अच्छा तो जनाब को शर्म आ रही है,,,, अपनी ही मां को एकदम नंगी करके उसकी गांड को तेल से मालिश करने के बहाने जोर जोर से दबाते हुए तुम यह कह रहे हो कि तुम्हें बताने में शर्म आ रही है,,,,
( अपनी मां की यह बात सुनते ही रोहन एकदम से झेंप गया उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें एकाएक उसके हाथ अपनी मां की मदमस्त गांड पर बर्फ की तरह जम गए,,, फिर भी वह बात को संभालने की कोशिश करते हुए बोला,,, )
यह क्या कह रही हो मम्मी मैं तो तुम्हें दर्द से राहत देने के लिए सब कर रहा हूं,,,
हां हां मैं सब समझती हूं दर्द से राहत किसे मिल रहा है अभी भी कह रहे थे कब शर्माने की जरूरत नहीं है हम दोनों के बीच काफी कुछ बातें ऐसी हो चुकी है जो मां बेटे के बीच नहीं होनी चाहिए लेकिन फिर भी ऐसा चल रहा है इस समय अपना बेटा नहीं बल्कि एक दोस्त की तरह समझ रही हूं जिसे मैं अपना दुख दर्द सब कुछ कह सकती हूं और तू भी मुझे एक दोस्त की तरह समझ और मुझसे शर्माने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है,,, उस समय उस शैतान को लेकर मेरे बारे में जो भी तू सोच रहा था वह सब कुछ खुले शब्दों में बता दे मैं भी तो समझो कि मेरा बेटा कितना बड़ा हो गया और कहां तक सोच सकता है मेरे बारे में और हां यूं मालिश करना बंद मत कर जिस तरह से दबा दबा कर मालिश कर रहा था उसी तरह से मालिश चालू रख मुझे तेरी मालिश अच्छी लग रही है और सच कहूं तो तेरे हाथों में जादू है (सुगंधा ने यह अंतिम शब्द जानबूझकर रोहन को बहकाने के लिए बोली थी और रोहन भी अपनी मां के इस शब्द को सुनकर प्रसन्नता से मुस्कुरा दिया,,,,, रोहन अपने मन में सोच रहा था कि जब उसकी मां इतना खुलकर सामने से सब कुछ कह रही है और खुले शब्दों में सब कुछ सुनना चाहती है तो वह क्यों शर्म कर रहा है,,, अपने आप से ही बातें करते हुए बोला कि अगर इस स्वादिष्ट मीठे लड्डू को खाना है तो रोशनी को अच्छी तरह से खोलना होगा तभी इस लड्डू का स्वाद आएगा इसलिए वह अपना मन मजबूत करते हुए बोला,,,,।)
मम्मी जब मुझे पता चला कि तुम खंडहर में हो और वो भी उस शैतान के साथ,,,तो,,, तो,,, मुझे ऐसा लगा कि उसने तुम्हें चोद दिया होगा,,,, ( रोहन डरते हुए बोल दिया और अपनी बेटे के मुंह से यह सुनकर सुगंधा जानबूझकर चोकने वाली अदा दिखाते हुए बोली,,,,)
बाप रे बाप तुम्हें इतना ज्यादा सोच लिया,,,
देखो मम्मी इसमें अब मेरी कोई गलती नहीं है क्योंकि वह आदमी भी तुम्हारे साथ वही करना चाहता था क्योंकि वह बार-बार बोल रहा था कि मैं तुम्हारे पीछे ना जाने कब से पड़ा हूं मैं तुम्हें चोदना चाहता हूं और आज तो मैं तुम्हारी चुदाई करके रहूंगा देखता हूं मुझे कौन रोकता है इसलिए जब मुझे पता चला कि तुम उस शैतान के साथ उस खंडहर में हो तो मुझे ऐसा ही लगा कि उसने तुम्हारी चुदाई कर दिया होगा,,,,( एक सांस में सब कुछ बोल गया लेकिन इतना बोलते समय इतना ज्यादा उत्तेजित हो गया था कि उसका लंड एकदम से टन्ना गया था और इस बार वह हिम्मत दिखाते हुए अपनी उंगली को गांड की गहराई में रगड़ ते हुए गांव के पूरे रंग के छोटे से छेद पर उंगली का दबाव बढ़ाते हुए धीरे-धीरे नीचे की तरफ ले गया और इस बार रोहन की उंगली का स्पर्श सुगंधा की रसीली चिकनी कचोरी जैसी फूली हुई बुर की गुलाबी पत्तियों पर हुई जिसकी वजह से सुगंधा अपने बेटे की उंगली की रगड़ अपनी रसमलाई जैसी बुर की गुलाबी पत्तियों पर महसूस करते ही वह काम उत्तेजना से एकदम से सिसक उठी और ना चाहते हुए भी उसके मुख से गर्म सिसकारी की आवाज कुछ ज्यादा ही जोर से फूट पड़ी,,,,
सससससससहहहहहह आहहहहहहहहहहहह,,,,,
क्या हुआ मम्मी,,, ? (अपनी मां के मुख से गर्म सिसकारी की आवाज सुनकर रोहन बोला,,,)
कुछ नहीं बेटा और हां जैसा तू सोच रहा था मेरे मन में भी वही ख्याल बार-बार उम्र रहे थे क्योंकि जिस तरह से वह बोल रहा था मुझे लग रहा था कि आज वह मुझे नहीं छोड़ेगा और वह मुझे उठाकर खंडार मिलेगा तो मुझे यकीन हो गया कि आज वह मेरी चुदाई कर के मानेगा,,,,
तुम भी एकदम डर गई थी ना मम्मी,,,,( रोहन अपनी बीच वाली उंगली को अपनी मां की गुलाबी कुर्ती गुलाबी पत्तियों पर रगड़ता हुआ बोला ऐसा करते हुए रोहन एकदम से मस्त हो गया था ऐसा लग रहा था जैसे उसकी मुंह मांगी मुराद पूरी हो गई हो भले ही वह अपनी मां की गुरु को ठीक से देख नहीं पा रहा था लेकिन उसे उंगली से महसूस कर पा रहा था उसके आकार को समझने की कोशिश कर रहा था ऐसा करने में उसकी उंगली पूरी तरह से अपनी मां की बुर से निकले हुए काम रस में डूबकर गीली हो चुकी थी,,,, और सुगंधा अपने बेटे की ईस हरकत की वजह से पूरी तरह से कसमसाने लगी उसके बदन में उत्तेजना की ऐठन होने लगी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी उत्तेजना को कैसे दबाये वह तो चाह रही थी कि जिस तरह से उसका बेटा अपनी उंगलियों से उसकी रसीली फूली हुई कचोरी जैसी बुर से खेल रहा है,, काश वह अपने मोटे तगड़े लंड को हांथ मे पकड़ कर उसकी रसीली बुर से छेड़खानी करता तो इससे भी ज्यादा उसे आनंद की प्राप्ति होती,,,,, लेकिन फिर भी रोहन की हरकतों ने अपनी मां को कामोत्तेजना के परम शिखर पर पहुंचा दिया था जहां से उसके सोचने समझने की शक्ति खत्म हो चुकी थी सही गलत को परखने की क्षमता क्षीण होती जा रही थी,,, वासना के अधीन होकर वह आगे बढ़ती जा रही थी जहां से वापस लौटने नामुमकिन था,,, इसलिए तो वह एकदम मदहोश होते हुए बोली,,,,।