कजरी को समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हो गया उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके बेटे की आंखों के सामने उसकी पेटीकोट की डोरी खुल गई थी,,कजरी अपनी ही नजरों में शर्म से गड़ी जा रही थी क्योंकि वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि उसके साथ ऐसा कुछ हो जाएगा,, जिस दिन से रघु खेतों में चोरी-छिपे उसे पेशाब करते हुए देख रहा था तब से लेकर के अब तक कजरी हमेशा उससे अपने बदन को छुपाते आ रही थी,,,लेकिन वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि जितना वह अपने बेटे से अपने बदन को छीपाएगी ऊतना ही वह अपने बेटे की आंखों के सामने खुद खुलती जाएगी। अपने बेटे से वो आंख तक नहीं मिला पा रही थी,,, क्योंकि कमर के नीचे से वह संपूर्ण नंगी होकर उसकी गोद में गिरी थी,,लेकिन इस बात की तसल्ली उसके मन में थी कि अगर उसका बेटा उसे थामने लिया होता तो वह नीचे जमीन पर गिर जाती और चोट लग जाती,, एक तरफ कजरी अपनी हरकत की वजह से पूरी तरह से शर्मिंदगी से घड़ी जा रही थी और दूसरी तरफ जिस तरह से रघु ने उसको अपनी गोद में उठा लिया था उसकी ताकत को देखकर ना जाने क्यों उसके तन बदन में अजीब सा एहसास हो रहा था,,, कजरी बहुत हैरान थी यह सोच कर कि उसका बेटा उसके बारे में क्या सोच रहा होगा क्योंकि वह सिर्फ ब्लाउज पहने हुए थी बाकी पूरी तरह से नंगी थी उसके नंगे पन का एहसास उसके बेटे को जरूर हुआ होगा,,,तभी तो वह एकटक उसके चेहरे को गोद में लिए हुए देखता जा रहा था वह यह भी नहीं समझ पा रहा था कि उसे गोद में से नीचे उतार देना चाहिए,,अगर वह उसे उतारने के लिए ना कहीं होती तो शायद वह उसी तरह से उसे गोद में लिए खड़े रहता,, जो भी हो जिस चीज को छुपाते आ रही थी वह अपने आप ही उसके बेटे की आंखों के सामने खुल चुकी थी जिसमें कजरी को अपनी ही गलती दिखाई दे रही थी,, क्योंकि वह अपने मन में यही सोच रही थी कि जो कुछ भी हुआ था उसकी गलती से हुआ था,, उसे कसकर अपनी पेटीकोट की डोरी को बांध लेना चाहिए था,,, लेकिन आज तक ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ था उसका बेटा उसके बारे में क्या सोचेगा कहीं वह यह ना सोचने लगे कि जानबूझकर उसने पेटीकोट को नीचे गिरा दी।,,,, ख्याल मन में आते ही कजरी काफी चिंतित हो गई और शर्मसार होने लगी,,,,
दूसरी तरफ रघु इस घटना के बाद अपने घर पर नहीं रोका बल्कि सीधा जाकर खेत के किनारे पेड़ के नीचे बैठ गया। वह अपने तन बदन में अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव कर रहा था,, क्योंकि जो कुछ भी हुआ था अनजाने में हुआ था लेकिन फिर भी उस एहसास से कुछ दिनों तक रघु का निकल पाना मुश्किल नजर आ रहा था क्योंकि वह पेड़ के नीचे बैठकर उसी घटना के बारे में कल्पनातीत हुए जा रहा था,, बार-बार उसकी आंखों के सामने वही नजारा घूम रहा था नीचे खड़ा होकर पांचवा गुरु से बड़ा डिब्बा अपनी मां को थमाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया था,,, और फिर जिसके बारे में उसने कभी सोचा नहीं था वह हो गया दबा पकड़ने के लिए जैसे ही उसकी मां नीचे की तरफ चुकी वैसे ही उसके पेटीकोट की दूरी एकदम से खुल गई और उसकी पेटीकोट नौटंकी के परदे की तरह का एक नीचे की तरफ गिर गई,,, लेकिन नौटंकी के परदे के गिरने और उसकी मां के पेटीकोट के खेलने में काफी फर्क था नौटंकी का पर्दा तब गिरता है जब नाटक खेल खत्म हो जाता है लेकिन उसकी मां का पेटीकोट गिरने के बाद ही सारा नाटक और खेल शुरू हुआ,, शुभम अभी भी उस अद्भुत नजारे के बारे में याद करके अपने तन बदन में गर्मी का एहसास कर रहा था,,, उसकी आंखों के ठीक सामने ऊंचाई पर कमर के नीचे उसकी मां के गदराई मदमस्त उभरी हुई गोरी गोरी नंगी गांड नजर आ रही थी,,, जिसकी गोलाकार बनावट बेहद अद्भुत और आकर्षक थी शुभम पहली बार अपनी मां के नितंबों का संपूर्ण गोलाकार आकार देख रहा था,,, हालांकि वह अपनी मां को पेशाब करते हुए देखा जरूर था लेकिन उस समय उसकी मां की गांड गोलाकार स्थिति में ना होकर फैली हुई नजर आ रही थी ,,,, कजरी के नितंबों का घेराव रघु के तन बदन में हलचल पैदा कर रहा था और ऊपर से उसकी लंबी चिकनी गोरी टांगें मांसल पिंडलियों यह सब शुभम के लिए उत्तेजना से भर देने वाला नजारा था,,, इस तरह के नजारे के मापने का कोई मापदंड बिल्कुल भी नहीं था लेकिन इस तरह के नजारे को देखकर देखने वाले की क्या हालत होती है बस उसके पजामे की हालत को देखकर ही समझा जा सकता था जोकि इस समय रघु के पजामे में पूरी तरह से गदर मचा हुआ था,,,, रघु का दिमाग उस समय और ज्यादा घूमने लगता था जब वह यह सोचता था कि कहीं उसकी मां यह सब जानबूझकर तो नहीं की,,, क्योंकि उसके दिमाग में यही ख्याल घूम रहा था कि पेटीकोट की डोरी इस तरह से कैसे खुल सकती है और उसकी मां उसकी आंखों के सामने अपनी साड़ी उतारने के लिए तैयार कैसे हो गई,,, रघु यह सब सोचकर अजीब से भंवर में खींचता चला जा रहा था,, रघु को लगने लगा था कि यह सब उसकी मां जानबूझकर की थी उसे उकसाने के लिए,,,पल भर में भी रघु के दिमाग में ढेर सारे सवाल के साथ-साथ खुद ही उसका जवाब भी मिलना शुरू हो गया था,,, अपने मन में यही सोच रहा था कि उसकी मां यह हरकत जानबूझकर की थी जिसका जवाब भी यही था कि काफी दिनों से वह पुरुष संसर्ग से दूर थी,,, यह सब सोचते हुए उसे हलवाई की बीवी का ख्याल आया जिसके पास उसका पति भी था लेकिन फिर भी वह उसके साथ शारीरिक संबंध बनाकर संतुष्टि का अहसास ली थी,,,इसका मतलब साफ था कि जब एक शादीशुदा पति के होने के बावजूद भी शारीरिक तौर पर भूखी रहकर दूसरे से संबंध बनाती है तो उसकी मां तो बरसों से अपने पति के बिना रह रही थी और ऐसे में उसकी शारीरिक भूख जागना औपचारिक ही था,,, शायद उसे भी मोटे तगड़े लंड की जरूरत थी और इसीलिए वह जानबूझकर अपने नंगे जिस्म का नुमाइश अपने ही बेटे की आंखों के सामने कर रही थी ताकि वह पूरी तरह से उत्तेजित होकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाकर उसे संपूर्ण रूप से संतुष्टि का अहसास दिलाए वर्षों से दबी प्यास शायद अब जगने लगी थी,,, और शारीरिक प्यास को शारीरिक संबंध बनाकर पूरी तरह से बुझाई जाए,,, अपनी मां के बारे में यह सब सोचकर रघु का माथा ठनक रहा था,,,उसका दिल जोरों से धड़क रहा था उत्तेजना उसके तन बदन को अपनी गिरफ्त में ले रही थी और यही उत्तेजना सही गलत का फैसला नहीं कर पा रही थी उसे अनजाने में ही गीरी पेटीकोट अपनी मां की तरफ से उसे उकसाने वाला संपूर्ण नाटक ही लग रहा था और यही सोचकर वह काफी उत्तेजना का अनुभव करके सड़क से नीचे खेत में उतर गया और झाड़ियों के बीच जाकर अपने पैजामा को घुटने तक गिरा कर अपनी खड़े लंड को हाथ में ले लिया और आंखों को बंद करके कल्पना के सागर में गोते लगाने लगा,,, इस समय रघु को कल्पना के चित्र हकीकत से भी ज्यादा उन्मादक लग रहे थे,,,जिसमें उसकी मां अपने हाथों से उसके पर जाने को नीचे करके उसके खड़े लंड को अपने हाथ में लेकर हिला रही थी,,,, पर बार-बार उसके लंड की सुपारी पर अपने गुलाबी होठ रखकर चुंबन कर दे रही थी,,, रघु इस तरह का दृश्य सोचते हुए जोर-जोर से अपने लंड को हिला रहा था,,, कल्पना में उसकी मां भी अत्यधिक कामातुर नजर आ रही थी जोकि अपनी बुर में अपनी बेटी के लंड को लेने से पहले उसे मुंह में लेकर अच्छी तरह से गिला कर रही थी,,, देखते ही देखते रघु की कल्पना में उसकी मां घुटनों के बल बैठ गई और अपनी मदमस्त मतवाली गांड को ऊपर की तरफ उठाकर अपने बेटे की आंखों के सामने परोस दी,,,कल्पना मुंह से कम अपनी मां की कामुक हरकतों को देखकर पूरी तरह से मदहोश हो गया था,, वह अपनी मां को चोदने की पूरी तैयारी कर चुका था और वह कल्पना में जैसे ही अपनी मां को चोदने के लिए अपनी मां की बड़ी-बड़ी गांड को दोनों हाथों में थामा वैसे ही
रघु की उत्तेजना का पारा एकदम से फुट पड़ा और हकीकत में,,, उसके लंड से गर्म पानी की पिचकारी झाड़ियों पर गिरने लगी,,, पानी निकल जाने के बाद रघु अपने आप को बेहद हल्का महसूस कर रहा था,,,जवानी का जोश शांत होते ही उसका दिमाग काम करना शुरू कर दिया उसे लगने लगा था कि जो कुछ भी हुआ था वह अनजाने में हुआ था उसकी मां की कोई गलती नहीं थी उसकी मां ऐसा नहीं कर सकती,,, यह सब सोचकर और अपनी मुठ मारने वाली क्रिया के बारे में सोच कर वह अपने आप को एक बार फिर से घ्रणित महसूस करने लगा,,, अपने मन में आए गंदे ख्याल के बारे में सोचकर वह अपने आप पर गुस्सा होने लगा और अपना ध्यान अपनी मां की तरफ से हटाने के लिए वह खेतों में बने ट्यूबेल पर नहाने के लिए चला गया,,,
दूसरी तरफ कजरी के बदन पर गुड़ का रस पुरी तरह से लग चुका था,,, बनाना चाहती थी और उसे जरूरत भी थी क्योंकि कुछ देर पहले जो कुछ भी हुआ था अनजाने में ही उन सब के बारे में सोच कर वह पूरी तरह से गर्मा चुकी थी,,, कजरी नहाने के लिए गुसल खाने में गई,,, और अंदर पहुंचते ही अच्छे से लकड़ी के दरवाजे को बंद करके अपने सारे कपड़े उतार दी वैसे भी उसके बदन पर ब्लाउज और पेटिकोट के सिवा कुछ भी नहीं था,,, अपने बदन पर से कपड़े उतारते ही सबसे पहले उसका ध्यान अपने दोनों छलकती हुई जवानी पर गई उसे देखकर ना जाने क्यों उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई,,,, वह अपने दोनों हाथों को अपनी दोनों तनी हुई चुचियों के नीचे करके दोनों संतो को अपने दोनों हथेली में इस तरह से ले ली जैसे कि सीपी में मोती,,, वैसे भी कजरी की मदमस्त जवानी की दोनों छलकती हुई रस से भरे हुए संतरे बेशकीमती मोती की तरह ही थे,,, हालांकि उन दोनों गोलाईयों का आकार बस मोदी की तरह गोल था बाकी ,, दोनों खरबूजा जैसी बड़ी बड़ी थी,,,कजरी के मन में क्या चल रहा था यह खुद कजरी भी नहीं समझ पा रही थी वह दोनों चूचियों को अपने हथेली के ऊपर रखकर उनके से दोनों को बारी-बारी से उठाने लगी मानो की जैसे तराजू में खरबूजा रख कर तोल रही हो,,, फिर ना जाने क्या हुआ वह एकाएक अपनी दोनों चुचियों को अपनी हथेली में रखकर जोर से दबा दी,,, और खुद ही उसके मुख से आह निकल गई,, वह अपने मन में यही सोच रही थी कि आज भी उसकी जवानी ,,,जवानी के दिनों जैसी ही थी,,,, अपने ही द्वारा स्तन मर्दन के कारण मुंह से निकली हुई आह की आवाज को सुनकर वह मुस्कुराने लगी। पेट की नाभि पर ढेर सारा गुड़ का रस लगा हुआ था वह बाल्टी में से लोटे से पानी निकालकर अपनी नाभि पर डालने लगी और उसे अच्छी तरह से साफ करने लगी जब उसे संतुष्टि नहीं हुई तो वह साबुन का टुकड़ा लेकर उस पर मरने लगी और थोड़ा थोड़ा पानी अपनी नाभि पर डालने लगी वैसे तो गुड़ का रस उसकी छातियों पर भी लगा हुआ था लेकिन ना जाने के बाद अपनी नाभि को ही धोए जा रही थी,,,ढेर सारा झाग उसकी नाभि से होता हुआ नीचे की तरफ उसकी टांगों के बीच इकट्ठा हो रहा था जोकि उसके रेशमी भुखमरी बालों को पूरी तरह से अपनी गिरफ्त में ले लिया था वह ध्यान से अपनी टांगों के बीच देखी तो उसे अपनी बुर नहीं बल्की बुर पर इकट्ठा हुआ साबुन का झाग नजर आ रहा था,,, कचरी अपनी हथेली को अपनी नाभि से नीचे की तरफ ले जाते ले जाते दोनों टांगों के बीच अपनी तपती हुई भट्टी पर रखकर रुक गई,,,, और उस साबुन के झाग को अपनी कचोरी जैसी फूली हुई और बुर रगड़ने लगी,,,,, एक बार फिर से अनजाने में ही उसके मुख से आह निकल गई लेकिन इस बार उसकी आह दर्द से नहीं बल्कि मदहोशी में निकली थी,,,, उसे अच्छा लग रहा था वह साबुन के झाग को अपनी खूबसूरत रेशमी बालों से भरपूर बुर पर रगड़ने लगी रगड़ने के कारण थोड़ी ही देर में उसकी बुर की ऊपरी सतह पर झागो का ढेर हो गया,,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कर रही है वह अब तक खड़ी थी अपनी दोनों टांगों को फैला कर साबुन लगा रही थी लेकिन वह आराम से नीचे बैठ गई,, और अच्छे से अपनी दोनों नजरों को अपनी दोनों टांगों के बीच टिकाए हुए जोर-जोर से साबुन के झाग को मलने लगी,,, अनजाने में ही बात साबुन के झाग से खेलते खेलते एकदम गरम हो गई उसके चेहरे के हाव-भाव बदलने लगे साथ ही आनंद के सागर में डूबते हुए उसकी आंखें बंद हो गई और आंखें बंद होते ही उसकी आंखों के सामने वही दृश्य नजर आने लगा जब रघु की आंखों के सामने उसकी पेटीकोट की पूरी अपनी आंख खोलकर उसका पूरा पेटीकोट उसकी टांगों में गिर गई थी और वह अपने ही बेटे के सामने पूरी तरह से नंगी हो गई थी,,,उस दृश्य को सोचते ही उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी जबकि वह ऐसा कुछ भी नहीं चाहती थी लेकिन यह सब अपने आप ही हो रहा था भला मन के घोड़े को कैसे लगाम लगाया जा सकता है वह तो बेलगाम होता है और बेलगाम घोड़ा कहीं भी दौड़ता है कहीं भी कूदता है और ऐसा कजरी के साथ हो रहा था ना चाहते हुए भी उसका ध्यान बार-बार रघु की तरफ जा रहा था,,, कैसे वह अपने बेटे की आंखों के सामने नंगी हो गई कैसे उसका बेटा सीढ़ी से नीचे खड़ा होकर उसकी मदमस्त गोरी बड़ी बड़ी गांड को घुर रहा था,,,, कैसे हो आप उसे गिरते हुए अपनी बलिष्ठ भूजाओ में पकड़ कर अपनी गोदी में ले लिया,,,,,आहहहहहह अद्भुत अहसास से कजरी पूरी तरह से भर गई पहली बार उसे इस बात का एहसास हुआ कि उसके बेटे की भुजाएं वाकई में काफी बलिष्ठ है वरना जिस तरह से वह गिरी थी कोई भी उसे अपनी गोदी में नहीं ले सकता था,,,,कजरी जोर जोर से अपनी कचोरी जैसी फुली हुई बुर मसलते हुए अपनी कल्पनाओं में खो रही थी,,,,,वह यही सोच रही थी कि जब उसका बेटा उसके नंगे पन को अपनी गोदी में महसूस किया होगा तो क्या सोच रहा होगा,,,, उसका हाल क्या हुआ होगा जब वह खेतों में उसे पेशाब करता हुआ देखकर एकदम मंत्रमुग्ध हो गया था यहां तो वह खुद एकदम नंगी उसकी गोदी में गिर गई थी,,,,,यही सब सोचते हुए उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी जबकि वह ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहती थी लेकिन तभी उसके मुख से जोर से आह निकल गई क्योंकि काफी उत्तेजित होकर वह मदहोशी के आलम में अपनी गुलाबी बुर के गुलाबी पत्तियों के बीच से अपनी उंगली को अपनी बुर में डाल दी थी,,,,
आहहहहह,,,,,ऊहहहहहहह,,,,, इस तरह मदहोशी भरी आवाज के साथ कजरी अपनी कचोरी जैसी फूली हुई बुर के अंदर अपनी दो उंगली को धीरे धीरे अंदर बाहर कर रही थी,,, कजरी अपने काबू में बिल्कुल भी नहीं थी ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई अनजान व्यक्ति उसका हाथ पकड़कर मदहोशी सागर में लिए जा रहा है,,,, यह सब करना पाप आप समझती थी लेकिन आज यह पापों ऊसे पुन्य लग रहा था क्योंकि वह पूरी तरह से मदहोश थी और उत्तेजित सिंह कामवासना के अधीन हो चुकी थी,,,, आंखें बंद थी कल्पना वो का घोड़ा उसे अपनी मर्यादा के विपरीत दिशा में लिए जा रहा था संस्कारों शर्मो हया से मिलो दूर जहां पर इन सब बातों का कोई वजूद नहीं था बस सुख और सुख तृप्ति का एहसास यही सब मायने रखते थे,,,
कल्पनाओं में खोते हुए कजरी अपनी दोनों उंगली को थोड़ी तीव्रता के साथ अपनी बुर के अंदर बाहर कर रही थी।उसे समझ में नहीं आ रहा था यह सब क्या हो रहा है लेकिन आप आज बराबर हो रहा था कि जो कुछ भी हो रहा है उसमें उसे आनंद की प्राप्ति हो रही थी बरसों के बाद उसने अपनी गुलाबी बुर के अंदर अपनी उंगली डाली थी,,,
वासना में वह इस समय पूरी तरह से खो चुकी थी,,, सही गलत क्या है इसका फैसला बाद में करना था। पहले आनंद की परिभाषा को पूरी तरह से आत्मसत करना था।
छोटे से टूटे हुए गुसल खाने में कजरी पूरी तरह से निर्वस्त्र होकर अपनी नाजुक अंग में दो उंगली पेवस्त करके जवानी का आनंद लूट रही थी,,,, देखते ही देखते उसकी सांसों की गति तेज होने लगी उसके मुख से गर्म सिसकारी की आवाज फूटने लगी,,,, और थोड़ी ही देर में वह चरम सुख के बेहद करीब पहुंच गई,,, उसके हाथों की गति तेज होने लगी वह थोड़ा और अपनी दोनों टांगों को फैला ली,,, और देखते ही देखते तेज चीख के साथ वह अपने चरम सुख को प्राप्त कर ली,,,,, एकदम मस्त हो गई थी चेहरे की रंगत सुर्ख लाल हो चुकी थी चूचियों के निप्पल एकदम कड़ी हो चुकी थी,,,थोड़ी देर में अपनी सांसो को दुरुस्त करके वह अपने हालात पर गौर की तो शर्म से पानी पानी हो गई,,, उसकी उंगली अभी भी उसकी पुर के अंदर थी वह जल्दी से अपनी दोनों उंगलियों को अपनी बुर से बाहर खींच कर उस पर पानी डाली तो उसकी रेशमी बालों से भरपूर गुलाबी बुर बेहद मनमोहक और संतुष्ट लग रही थी। लेकिन वासना का तूफान थमने के बाद कजरी अपने आप को धिक्कार ने लगी उसे अपने आप से घिन्न आने लगी,,, क्योंकि वह बहुत ही घिनौनी हरकत कर दी थी अगर उसके ख्यालों में उसकी कल्पनाओं में उसका बेटा ना होता तो शायद वह अपने आप को माफ कर देती लेकिन ना चाहते हुए भी उसके कल्पनाओं के घोड़े पर उसका बेटा ही सवार था,,,, इसलिए वह अपने आपको अपनी ही नजर से गिरता हुआ महसूस कर रही थी,,, उसकी आंखों में आंसू थे वह अपने आप को कोस रही थी,,,क्योंकि कमरे के अंदर जो कुछ भी हुआ था वह अनजाने में हुआ था लेकिन गुसल खाने में उसमें उसे अपनी ही गलती नजर आ रही थी,,,,, दोबारा कभी ऐसा नहीं होगा ऐसा सोचकर वह मन ही मन में कसम खा रही थी और वह बाल्टी से लोटा भर भर कर पानी अपने ऊपर डाल रही थि ताकि उसका मन एकदम शांत हो जाए ,,,,
इस घटना के बाद से रघु अपनी मां की नजरों के सामने आने से कतराने लगा और कजरी का भी यही हाल था कजरी भी अपने बेटे से नजर नहीं मिला पा रही थी गुसलखाना में की गई हरकत को लेकर उसे ऐसा ही लगता था कि जैसे उसने अपनी उंगली से नहीं बल्कि अपनी कल्पना में अपने बेटे को रखकर उसके लंड को अपनी बुर में लेकर उसे से संभोग सुख प्राप्त की है,,। यह बात उसे अंदर तक झकझोर कर रख दे रही थी,। रघु भी एक बार फिर से अपने आपको अपनी मां के प्रति मन में आए गंदे ख्यालों को रोकने में कामयाब हो गया था। हालांकि शालू बार-बार अपने भाई के लंड के दर्शन करने की चाह लेकर उसे जगाने के लिए उसके कमरे में जाती रही लेकिन दोबारा उसे वह दृश्य नहीं दिखाई दिया जिसकी कामना उसके मन में बसी हुई थी,,,।
लेकिन एक बार फिर वही हुआ जिसका ऊसे डर था,,, रात के तकरीबन 2:00 बज रहे थे,,, चारों तरफ धुप्प अंधेरा छाया हुआ था,, तेरा इतना कहना था कि 2 मीटर की दूरी पर कुछ दिखाई नहीं देता था,,, आसमान में केवल तारे सितारे नजर आ रहे थे,,, चांद बादल के पीछे छिप गया था,,, गर्मी का समय था एक तरफ शालू और उसकी मां सोई हुई थी और दूसरी तरफ रघु अकेले चटाई बिछाकर लेटा हुआ था नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी,,, वह हलवाई की बीवी के ख्यालों में खोया हुआ था बार-बार उसकी बड़ी बड़ी गांड उसकी आंखों के सामने नाच जा रही थी,,,वैसे तो जब भी वह हलवाई की बीवी के बारे में सोचता था तो उसकी आंखों के सामने उसकी मां का जवान जिस में भी नजर आ जाता था,,, लेकिन अपनी मां के बारे में गंदी बातें ना सोचने की कसम खा रखी थी इसलिए वह बार-बार उधर से ध्यान हटा दे रहा था,,,, जिस तरह से भूख लगने पर भोजन करना पड़ता है उसी तरह से शारीरिक भूख इंसान को जब परेशान करती है तो, उसकी भी हालत ठीक रघु की तरह होती है ईस समय उसे शरीर की भूख परेशान कर रही थी और वह हलवाई की बीवी को याद करके मुठ मारने की तैयारी नहीं था वह,, अपनी कमर पर से तो लिया हटाकर अपने खड़े लंड को हाथ में लेकर ऊपर नीचे कर रहा था कि तभी,,,शालू की नींद खुल गई उसे जोर की पेशाब लगी हुई थी,,, बखरी होकर सीढ़ियों से नीचे उतरने ही वाली थी कि ना जाने क्या सोचकर वह रघु की तरफ जाने लगी रघु अपने ही ख्यालों में खोया हुआ था,,,,लेकिन चूड़ियों की खनक कानों में पड़ते ही वह झट से अपना हाथ हटाकर आंखों को बंद कर ली क्योंकि चूड़ियों की खनक उसे बेहद करीब से सुनाई दी थी,,, शालू की नजर रघु पर पड़ी तो वह हैरान रह गई थी फिर से उसका लंड पूरी तरह से खड़ा था और आसमान की तरफ मुंह उठाए अपनी औकात दिखा रहा था,,,, हालांकि शालू की नजर तब नहीं पड़ी थी जब वह अपने लंड को हाथ में लेकर हिला रहा था,,, इसलिए उसे ऐसा ही लग रहा था कि उसका भाई पूरी तरह से नींद में है,,, एक बार फिर से शालू के तन बदन में उमंग जगने लगी,,.