Episode 5 : Part VII
“क्या करूँ मैडम जी, जब तक आम नहीं चूसते हमरा केला संतुष्ट ही नहीं होता। देखिये कइसे मुंह बाये खड़ा है।” बुड्ढे ने अपनी धोती को कमर से हटा कर अलग कर दिया।
“छी! तुम्हे शर्म नहीं आती? एक औरत के सामने नंगे हो गए हो?” ‘नंगा’ बोलने में कितना मज़ा आता है। जब भी नीता ‘नंगा’ बोलती उसके चूत से दो बूँद टपक पड़ती। “वैसे तुम्हारा क..क.. केला बहुत बड़ा है।” केला बोलते समय नीता की जुबान फंस रही थी। काफी प्रयास करने के बाद उसने ये शब्द बोला था और शब्द बोलते ही वो एक आज़ादी महसूस करने लगी थी। एक हल्कापन। खुली चूची पर बस की खिड़की से आ रही ठंढी हवा से और अपने ऊपर लगे सामाजिक बंधनों को तोड़ कर नीता हवा में उड़ रही थी।
“बड़ा मैडम जी तभी त केला के बदले आम वाली सब आम देती है।”
“कितनो का आम खाये हो?”
“अब गिनती मत पूछिए। हमरा काम आम खाना है, गुठली गिन कर क्या करेंगे?”
ओह! इस बुड्ढे के जीवन में कितनी मस्ती है? इसे गिनती भी नहीं याद। न जाने कितनी औरतों के साथ सम्भोग का आनंद लिया है इसने? और एक मैं - पूरे जीवन में बस एक के साथ, और वो भी एक नामर्द के साथ - ऐसा सम्भोग जिसमे न तो भोग है और न ही आनंद! ये कैसा धर्म है जो मनुष्य को उसके मूलभूत आवश्यकताओं से दूर करता हो? सेक्स मनुष्य के लिए इतना आवश्यक है कि इसके लिए कई लड़ाइयाँ हुई, कई सभ्यता, कई साम्राज्य बने और नष्ट हुए। अगर कोई धर्म, कोई नियम मनुष्य को ऐसे सेक्स से रोकता है तो वह नियम सही नहीं हो सकता। मेरा पति एक नामर्द है। वो मेरी शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता। अगर ऐसे में मैं किसी और से वो मस्ती लेती हूँ तो उसमे कौन सी बुराई है?