भाग 13
मैं (धीरे से): बाल तो आपकी काखों के भी कम नहीं हैं |
दीदी: अच्छा जी, तो यही सब देख रहे थे भाई साहिब | बताया ना तेरे को मुझे काखों के बाल पसंद हैं | उनको रखना भी और ..... चाटना भी |
दीदी (मेरी पैंट के उभार को देखते हुए): क्या ..... तुझे भी काखों के बाल सूंघना और चाटना पसंद है ?
मैं (तपाक से): हाँ दीदी, बहुत ......
दीदी (हँसते हुए): पता था मुझे ... आखिर खून तो एक ही है | भाई, क्या सूंघेगा अपनी दीदी की कांख को?
मैं (जल्दी से): खुशी-२ दीदी, ख़ुशी-२ .... मैं तो आपसे पूछने ही वाला था।
यह कहते हुए मैं संगीता दीदी की तरफ खिसक गया | संगीता दीदी ने एक कातिल स्माइल देते हुए अपना हाथ ऊपर उठा लिया और अपनी काख मेरे मुंह के पास ले आयी | मैंने जल्दी से अपना मुंह उसकी कांख में गुस्सा दिया और एक गहरी साँस ली ।
जैसे ही मैंने अपनी जीभ बाहर निकाली और उसके उसकी कांख को पतली सी ड्रेस के ऊपर से चाटना शुरू किया, दीदी ने अपना हाथ हटा लिया और बोली, "रुक भाई रुक, ये तो गलत बात है | मैंने तो डायरेक्ट चाटा था और तुम ड्रेस के ऊपर से | मैं इस कमीज को उतार देती हूँ ताकि तुम भी डायरेक्ट मेरे पसीने का मज़ा ले सको |"
तो उसने तुरंत ही कमीज़ के बटन खोले और पलक झपकते ही अपनी कमीज निकल दी | मुझे विस्वाश ही नहीं हो रहा था, मेरी जवान बहन मेरे सामने अपने बड़े-२ पपीते जैसे बोबों को शान से दिखते हुए आधी नंगी बैठी हुई थी | कमीज में तो मैं उसके बोबे पहले ही देख चूका था लेकिन कमीज के बाहर उसके बोबे और भी गोर और बड़े लग रहे थे, उसके निप्पल पहले से ज़्यादा कड़े और बड़े लग रहे थे | दीदी का ये रूप देख कर मैं पागल हो रहा था, मेरे हाथ पैर उतेज़ना से कम्कम्पाने से लगे थे | ना जाने मैं कितनी देर दीदी के बोबों को निहारता रहा |
दीदी: भाई, तेरा तो ठीक है लेकिन पूरी दुनिया को अपनी बहन नंगी दिखायेगा क्या? खिड़की तो बंद कर दे कम से कम |
दीदी की बात सुन के जैसे मैं नींद से जगा और खड़ा हो के तुरंत खिडकी बंद करने लगा |
यहाँ मेरा बुरा हाल हो रहा था और दीदी को जैसे कोई फरक ही नहीं पड़ रहा था | वो बिलकुल नार्मल तरीके से पेश आ रही थी | जैसे ही मैं खिड़की बंद करके वापिस मुडा दीदी ने अपने हाथ उठा दिए, जैसे मुझे अपने शरीर का रस पीने के लिए आमंत्रित कर रही हो |
यहाँ मेरा बुरा हाल हो रहा था और दीदी को जैसे कोई फरक ही नहीं पड़ रहा था | संगीता दीदी को अपने भाई के सामने ऐसे खुल के नंगी खड़ी होने में कोई शर्म महसूस नहीं हो रही थी | जैसे ही मैं खिड़की बंद करके वापिस मुडा दीदी ने अपने हाथ उठा दिए, जैसे मुझे अपने शरीर का रस पीने के लिए आमंत्रित कर रही हो |
दीदी सीट पर बैठी थी और उसने अपने हाथ अपने सिर के पीछे से हुए थे | मैं निचे अपने घुटने टेक कर बैठ गया और वापिस अपनी बहन के कांख में घुस गया | मैं जीभ निकाल कर संगीता दीदी की पसीने से भरी कांख चाटने लगा | उसके पसीने का स्वाद बिलकुल सस्ती देसी शराब की तरह था और नशा उससे कई गुना | उस पोज़िशन में बैठ कर अपनी बहन की बालों से भरी कांख चाटने से मेरा लंड और भी सख्त हो रहा था । इस पोजीशन में मेरे लंड को फैलने की लिए जगह भी थोड़ा ज़्यादा मिल रही थी | वासना से दीदी की ऑंखें बंद हो गयी थी | मैं दीदी को बहुत देर तक चाटता रहा |
फिर कुछ देर बाद दीदी ने कहा: ओह भाई .... इतना पसंद आया तुझे अपनी बहन का पसीना | मैं कब से इस दिन का इंतज़ार कर रही थी की कोई इतने प्यार से मेरी कांखों को चाटे | तेरे जीजा को तो जैसे इन सब से कोई मतलब ही नहीं है | मैं बहुत खुश हूँ भाई |
मैं: दीदी आपकी ख़ुशी के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ और आपका पसीना तो जैसे अमृत है | अगर आप कहो तो मैं इससे ज़िन्दगी भर चाट सकता हूँ |
दीदी (ख़ुशी से): सच में भाई .... मुझे चाटने की तू कोई चिंता न कर | जब तेरा दिल करे मुझे बता देना ... तेरी बहन तेरे लिए सदा हाज़िर है | अब बहुत देर हो गयी तुझे चाटते हुए, अब मेरी बारी ।