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Incest बेटा है या.....घोड़(ALL IN ONE)

फीर मचायेगें है की नही?

  • हां

    Votes: 9 81.8%
  • जरुर मचायेगें

    Votes: 8 72.7%
  • स्टोरी कैसी लगी

    Votes: 0 0.0%

  • Total voters
    11
  • Poll closed .

sunoanuj

Well-Known Member
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8,019
159
Bhai log yeh kahani bahut time se band hai … Ritesh Bhai toh isko bhul bhi gaye honge ki unhone koi khani bhi likhi thi ….
🌷🌷🌷
 

Andy2710

New Member
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अपडेट--5





सवालो में उलझा रितेश के कदम घर की तरफ बढ़े चले आ रहे थे।

जल्द ही वो घर पहुंच गया......घर पर उसकी मां कजरी के साथ बैठी बाते कर रही थी......।

वो भी उन लोग के पास ही आकर खाट पर बैठ गया....।

कजरी-- अरे बेटा तू आ गया....बैठ तू मैं तेरे लिये पानी लाती हूं.....मुह हाथ धो ले फीर खाना खा ले....।

रितेश खाट पर बैठा अपनी मां को एक टक नीहारे जा रहा था.....आज वो अपनी मां को बहुत गौर से नीहार रहा था...... कजरी का खुबसुरत गोरा चेहरा जीस पर लालीमा बीखरी हुई थी......उसे ना जाने क्यूं आज बहुत मोहीत कर रहा था.....रितेश की नज़रे जब अपनी मां के होठो पर पड़ी तो न जाने क्यूं उसके दील की धड़कने तेज होने लगी....गुलाबी होठ कीसी रस से भरी हुई थी.....दोनो गाल कीसी फूल की पखुंड़ी की तरह खली थी.....रितेश के बड़ते हुए धड़कन ने उसे थोड़ा और नीचे देखने को उकसाया तो रितेश की नज़रे कज़री के सुराहीदार लम्बी गर्दनो पर आ कर टीकी.....रितेश तो जैसे अपनी मां की खुबसुरती में खो सा गया.....उसका मन कर रहा था की......अभी अपनी मां को बांहो में भर ले और उसे चुमता जाये.....लेकीन मन ही तो है कुछ भी करने लगता है....।
रितेश का दील थोड़ा और नीचे देखने को बेसब्र था.....लेकीन हीम्मत ही नही पड़ा।

रितेश को ईस तरह अपने आप को देखते हुए कजरी हैरान सी हो गयी और पास में बैठी संगीता का भी यही हाल था....।

क्यूकीं अब तक कजरी ने रितेश को दो चार बार आवाज़ लगा चुकी थी....। लेकीन रितेश तो जैसे कजरी की खुबसुरती में डुब सा गया था......उसे कुछ सुनाई नही दे रहा था।

'कजरी ने रितेश को झींझोड़ते हुए बोला'

कजरी-- बेटा.....बेटा.....क्या हुआ? कहा खो गया?
रितेश को जैसे होश आया और सपनो की दुनीया से बाहर आते ही-

रितेश-- ह.....हा.....मां।
कजरी-- क्या हुआ बेटा.....कहां खो गया?

रितेश अपने हाव भाव को ठीक करते हुए'
रितेश-- क.....कहीं नही मां.....बस चुनाव के बारे में सोच रहा था....।

कजरी-- चुनाव के बारे में......क्या?
रितेश-- बस यही की.....अजय का पापा चुनाव ठाकुर के विपच्छ खड़े हैं.....और ठाकुर के साथ गांव के कुछ ज्यादा ही लोग खड़े है.....।

कजरी-- बेटा......ठाकुर साहब बड़े आदमी है.....अगर जीतते भी है तो गांव की भलाई के बारे में ही सोचेगें.....।

रितेश-- तो तुम्हारे हीसाब से.....अगर अजय के पापा जीतेगें तो गांव के बारे में नही सोचेगें?

कजरी-- नही.....मेरे कहने का वो मतलब नही था.....अब तू ही बोल रहा है की गांव के ज्यादा तर लोग ठाकुर साहब के साथ है....तो , बात वही आती है की ठाकुर साहब ही जीतेगें......।

रितेश-- कुछ भी हो मां.....ठाकुर को तो मैं जीतने नही दूगां॥

कजरी-- भला वो कैसे?
रितेश-- इसके लिए मैने तरकीब बना ली है...।

कजरी-- कैसी तरकीब बेटा?
रितेश-- है एक तरकीब मां......जीसको मैं और अजय मीलकर अंजाम देगें॥

ये सुनकर कजरी थोड़ा घबरा जाती है.।
कजरी-- बेटा कोइ खतरे वाला काम मत करना की तू मुश्कील में पड़ जाये।

रितेश-- कोई खतरा वतरा नही है मां....तू चिंता मत कर।

कजरी-- अच्छा ठीक है.....मेरा राजा बेटा॥ अब चुनाव के दावपेंच छोड़ और मैं खाना लाती हूं तू खा ले...।

रितेश-- अरे....मां तू भी ना....शाम के 6 बज रहे है। अब सीधा रात को खाउगां.....।

तभी वहां बैठी संगीता बोली-
संगीता-- अरे.....बेटा खा ले। सुबह से कुछ खाया नही होगा भूख लगी होगी...।

रितेश संगीता की बात सुनता तो है लेकीन कुछ बोले बीना ही वंहा से उठ कर चला जाता है...।

संगीता बेचारी बहुत दुखी होती है....और रितेश को जाते हुए देखती रहती है।

रात का समय था.....कजरी रसोई में बैठी खाना बना रही थी.....और रितेश घर के बाहर खाट लगा कर उसपर लेटा था.....।

ठंढी हवायें चल रही थी.....रितेश के दील और दीमाग पर बस उसकी मां ही बैठी थी....वो अभी भी सीर्फ अपनी मां के बारे में ही सोच रहा था....और वो ये भी भूल गया था की आज रात उसे रज्जो ने बुलाया हो...।

रितेश(मन में)-- मां तूने तो मुझे उस चक्रब्यूह में डाल दीया है की मैं उससे बाहर ही नीकल पा रहा हूं.....तू इतनी खूबसुरत क्यूं है मां.....देख ना मैं कीतना बेचैन हो गया हूं......तू कहती है ना की मैं तेरे दील का टुकड़ा हू.....आज यही टुकड़ा तेरे दील से जुड़ने को बेकरार है....मां
*जीन होठो,और गालो को चुम कर मैं बड़ा हुआ मां.......आज उन्ही होठो को चुमने के लीये बेचैन हूं।
मैं कैसे बताउं की कीतना बेचैन हूं मां॥
तेरे ममता के आंचल में बंध चुर हू मां॥

अपने आप से ही बाते करता रहा.....लेकीन जब उसे अपनी खुबसुरत मां को देखने का मन कीया तो वो सीधा उठ कर अपनी मां के पास रसोई घर में जाकर खड़ा हो गया...।

कजरी-- अरे......बेटा, तू यहां क्या कर रहा है..इतनी गर्मी में?
रितश-- कुछ नही मां बस ना जाने क्यूं तूझे देखने का मन कीया तो चला आया।

रितेश की बात सुनकर कजरी , जो इस वक्त रोटीया बना रही थीं.....उसके हाथ रुक गये और नज़रे सीधा अपने बेटे पर डाली......रितेश की आंखो में बहुत सारा प्यार था......जो कजरी पहचान चुकी थी....लेकीन उसने ये नही पहचाना की

"कैसे बताऊं की कीतना बेचैन हूं मा, तेरे ममता के आंचल मे बंध चुर हूं मां"

कजरी को भी रितेश पे प्यार आया....।

कजरी-- आ.....इधर आ....मेरे पास बैठ।

ऐसा पहले कभी नही हुआ था......ना जाने कीतनी दफ़ा रितेश अपने मां के सीरहाने बैठा था.....लेकीन आज अपनी मां के बगल बैठ कर उसे ऐसा लग रहा था की वक्त यूं ही थम जायें......रितेश के दील की धड़कन तब तेज हो जाती है.....जब कजरी रितेश का सर पकड़ कर अपने सीने से लगा लेती है......।

रितेश की हालत तो ऐसी थी की क्या बताएं......गला सुखने लगा.....दील जोरों से धड़कने लगा.....।
क्यूकीं वो अपनी मां की बड़ी बड़ी और कसी चुचीयों पर अपना सर रखा था......और कजरी ने भी उसका सर इतनी जोर से अपने सीने से चीपकाया था की......उसकी चुचीया थोड़ी दब गयी थी.....और उसके लम्बे नुकीले नीप्पल रितेश के गालो पर एक आनंद की अनुभुती के साथ साथ सासों की गती भी बढ़ा रही थी........कजरी ने तो रितेश को ममता वश अपने सीने से लगा रखी थी.....लेकीन रितेश कहीं ना कहीं ममता की दीवार लांघ आनंदमयी दुनीया के सोच में प्रवेश कर चुका था।

कजरी-- क्या हुआ मेरे राजा बेटे को.....आज अपनी मां पर इतना प्यार....की मुझे देखने का मन कर दीया......मेरा तो जीवन धन्य हो गया।

रितेश अपनी तेज चल रही सासों को काबु करते हुए बोला--

रितेश-- क्यूं मां क्या एक बेटे को अपनी मां को देखने का दील नही करता क्या?

कजरी एक हाथ से रोटीया बनाती हुई और दुसरे हाथ से अपने बेटे को सीने से चीपकाये उसके बालो में अपनी उगलींया फीराती हुई बोली--

कजरी-- क्यूं नही होता बेटा.....अपनी मां को देखने का दील तो सबका करता है.....लेकीन जो अपनी मां से दूर होते है....उनका करता हैं......पर तू तो मेरे पास ही है....।

रितेश-- हां.....मां मै तो तेरे पास ही हूं.....सच कहूं तो आज से पहले ऐसा कभी नही हुआ.....पहले तो ऐसा लगता था की तू मेरे पास ही है......लेकीन आज पता नही क्यूं ऐसा लग रहा है की.....तू पास होते हुए भी मुझसे बहुत दूर है....ऐसा क्यूं हो रहा है मां.......।

एक पल के लीये तो कजरी का भी दीमाग झन्ना गया......की रितेश को क्या हो गया लेकीन फीर उसने कहा-

कजरी-- बेटा.......जरुर तूझे बचपन की याद आ गयी होगी.....जब तू छोटा था ना तब मैं कभी कभी तेरे नानी के घर जाती थी तूझे तेरे पापा के पास छोड़ कर......और जब मैं वापस आती थी तो तू मुझसे लीपट कर बहुत रोता था....।और मुझे एक पल के लीये भी नही छोड़ता था.....।

रितेश मन मे सोचा की हालत तो वही है.....मां , लेकीन तुझसे जिदंगी भर लीपट के रहु ऐसा दील कह रहा है...।

रितेश यही सोचते हुए गुमसुम अपनी मां के सीने से चीपका था.।

कजरी-- अच्छा..... चल अब खाना खा ले.....और हां एक बात बता देती हूं......की मैं तेरा साथ जीदंगी भर नही छोड़ने वाली.....और कहकर रितेश से लीपट जाती है....।
रितेश भी अपनी मां से लीपट जाता है...मन में ये कहते हुए की, हां मा लेकीन मेरा साथ अब तू मां बनकर नही बल्की मेरी पत्नी बनकर जींदगी गुजार.....।

रितेश के दील और दीमाग दोनो ये फैसला कर लीया था की......अब चाहे कुछ भी हो जाये.......इतनी खुबसुरत औरत को अपनी पत्नी बनाकर ही रहूगां.........।

रितेश फीर से सपनो की दुनीया में खो जाता है......की कीतना अजीब और अनोखा अहेसास होगा.....जब मां मेरी पत्नी बनेगी.....क्या मरी मां भी मेरी वैसी ही इज्जत करेगी....जैसी पत्नीया अपने पती की इज्जत करती है?....क्या मेरी मां भी सुहाग सेज पर मेरा उतनी ही बेसब्री से इतंजार करेगी जैसे पत्नीया अपने पती का इतंजार करती है?......और क्या मेरी मां भी मेरे बच्चे की मां बनेगी जैसे पत्नीया अपने पती के बच्चे की मां बनती है?
इन सवालो ने रितेश के लंड की लम्बाई सामान्य दीनो से ज्यादा आज बड़ा कर दी थी......लंड के नस नस फट रही थी.....पैटं में तंबू बन गया था......लेकीन चुस्त पैटं पहनने की वजह से तंबू खड़ा नही हो पाया..।

रितेश ने कीसी तरह अपने आप को समझाया और सपनो की दुनीया से बाहर नीकल कर असल जीदंगी मे आया......और सबसे पहले तो अपने लंड महाराज को शांत कीया....।

अब तक कजरी भी रितेश को अपनी आगोश से अलग कर के बोली-

कजरी-- चल.....मेरे राजा बेटा खाना खा ले.....सुबह से कुछ नही खाया है।

ना जाने क्यूं रितेश के चेहरे पर एक मुस्कान सी फैल गयी......जीसे कजरी ने देख लीया....।

कजरी-- अरे......क्या बात है मेरा राजा बेटा इतना मुस्कुरा क्यूं रहा है?

रितेश-- बस ऐसे ही मां.......अगर कोई नामुमकीन चीज मुमकीन हो जाये तो कैसा लगता है।

कजरी-- अगर .....नामुमकीन काम हो जाये तो वैसी खुशी बंया करना मुस्कील है...।

रितेश(मन में)-- तो वही बात है ना मा.....अगर तू मेरी पत्नी बन जायेगी तो .....खाना खाने के बुलाने का अंदाज तेरा कुछ इस तरह होगा (चलीये जी...खाना खा लीजीये....सुबह से आपने कुछ खाया नही है)...........आह.......कीतना अच्छा लगेगा....हे भगवान, मैं पागल ना हो जाऊं॥

कजरी-- अरे......बेटा क्या मन में सोच कर मुस्कुराये जा रहा है......मुझे भी बता की वो नामुमकीन काम है.....कौन सा?

रितेश-- आ.....ह, मां बस इतना समझ ले की तेरे बीना वो काम होगा नही।

कजरी-- म.......मेरे बीना।
रितेश-- हां.....मतलब की तेरे आशीर्वाद के बीना.....।

कजरी ये सुनकर हंसने लगती है ......हे भगवान ये लड़के की बात तो मेरे समझ से परे है......चल अच्छा खाना खा ले....।


फीर कजरी खाना नीकालती है.......खाना दोनो साथ में खाते है......और फीर दोनो अपने अपने बिस्तर पर चले जाते है.....।

रितेश की आंखो में निदं नही था......वो तो बस अपने मां के हसीन खयालो में खो चुका था......और ये भूल चुका था की.....उसका कोई इँतजार भी कर रहा है........।



हवेली के सबसे उपर के कमरे में बिजली जल रही थी......उस कमरे में ठाकुर का दोस्त सेठ जी......एक गद्देदार बीस्तर पर एक चड्ढी पहने बैठा था.....हाथ की उगंलीयो के बीच सीगरेट फंसी हुई थी....और सेठ मुह से धुवां उड़ा रहा था...।

सेठ-- अरे.....आ जा चम्पा रानी......अब क्या जान लेगी मादरचोद....।


जैसा की आप सब लोग जानते ही है......की चम्पा ठाकुर के घर की नौकरानी है......और ठाकुर ने अपने दो नम्बर का काम कराने के लीये चम्पा को सेठ से चुदने को तैयार कीया है.......।




first i would like to thanks to all my frnds for suporting. you likes and your comments. ........but

hamare kuchh dost hai jo bol rahe hai ki kahani.....incest hi rahe ki kajri thakur ke hath na lage......to kuchh frnds bol rahe hai ki kahani thoda audltary honi chahiye!

sach batau to aap sab log yaha tak ki mai sab log ki pasand hoti hai.....to kahani ko mai uss tarike se banane ki koshish karunga ki mere kisi bhi reader ko aisa nahi lagega ki yaar kahani to incest hi rah gai....ya kahani to adultary ban gai......jo bhi hoga......aap sab log ko may be bahut jyada pasand aayega.....itna mai koshish karunga!

apni ray zarur dete rahiyega aur kahani kaisi lag rahi hai zarur reply kare.......thanks to everyone.....take care
Sahi baat hai bhai...
 

Lundwalebaba

Member
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अपडेट--3




कजरी.......और रीतेश आज सुबह सुबह ही खाना खा लिये थ........हालाकीँ कजरी नही खा रही थी....लकीन रितेश ने जबरदस्ती खाना खीला दीया।

कजरी-- बेटा सुबह सुबह ही तूने खाना खीला दीया.....अभी तक तो मैं नहायी भी नही थी...।

रितेश-- तो क्या हुआ मा.....कल से कुछ खायी भी तो नही थी......॥

कजरी-- अच्छा जी....मेरे बेटे को कब से मेरी फीक्र होने लगी?

रितेश-- बस यूं ही।

कजरी और रितेश दोनो बाते कर ही रहे थे की ......उसकी पड़ोसन रज्जो आ गयी....।

रज्जो-- क्या बातें हो रही है मां बेटे में?
रज्जो की बात सुनकर , दोनो ने अपनी नज़र उठायी तो देखा , पास में रज्जो खड़ी थी.....॥

कजरी-- अरे , रज्जो कुछ नही बस ऐसे ही...। बैठ तू .....।

वैसे तो रज्जो हमेशा सज संवर कर ही रहती है.....लेकीन आज उसने एक हरे रंग की साड़ी पहन रखी थी.....जो उसकी भारी भरकम शरीर से चीपकी हुई थी.....जीसमे उसकी मोटी गांड का उभार साफ दीख रहा था.......ब्लाउज तो इतने कसे हुए थे की.....उसकी आधी से ज्यादा चुचींया ब्लाउज के बाहर ही उछल कूद कर रही थी..।

रज्जो के बैठते ही....रितेश की नज़र सीधा रज्जो की बाहर नीकली हुई चुचीयों पर पड़ी।

रज्जो-- आज नही चलेगी.....कजरी ठाकुर के प्रचार में?

कजरी-- नही रज्जो.....अब तो मैं कीसी प्रचार व्रचार में नही जाउगीं॥

रज्जो-- अच्छा.....तो रितेश बेटा तू क्यू नही चलता?
रितेश के उपर रज्जो के बात का कोई असर ही नही पड़ा.....उसकी नज़र तो....रज्जो की अधखुली चुचींयो पर थी....वो एकटक रज्जो की चुचीयों को नीहारे जा रहा था।

रज्जो के एक बार बुलाने पर जब रितेश को कोई फरक नही पड़ा तो....रज्जो और कजरी दोनो की नज़रे रितेश के नज़रो का पीछा कीया तो.....पाया की रितेश की नज़र तो रज्जो की चुचीयों पर टीकी थी।

ये देख रज्जो ने....रितेश को छिंछोड़ाते हुए बोली-

रज्जो-- कहां ध्यान है तेरा बेटा.....मै तूझसे बात कर रही हूं॥
इतना सुनते ही रितेश .....जैसे होश में आया।

रितेश-- क....क.....कहीं नही काकी। वो मैं कुछ सोच रहा था।

रज्जो ये सुनकर मुस्कुरा देती है......और अपनी चुचींयो पर से साड़ी का पल्लू थोड़ा और हटाते हुए बोली-

रज्जो-- अरे बेटा.....अभी तू बच्चा है....ज्यादा सोचा मत कीया कर.....है की नही कजरी?

कजरी-- हां.....सही कहा रज्जो ने।
कजरी(मन में)- - छीनाल.....एक तो अपनी चुचींया दीखा कर मेरे बेटे को भड़का रही है.....और उपर से कह रही है की ज्यादा सोचा मत कीया कर , छिनाल कही की इससे तो अपने बेटे को दूर रखना पड़ेगा नही तो ये छिनाल मेरे बेटे को बिगाड़ कर रख देगी......यही सोचते हुए.....

कजरी-- अरे.....बेटा, तूझे आज अजय के साथ प्रचार में नही जाना है क्या?

रितेश-- हां ......मां बस जा रहा हूं॥
और रितेश उठ कर खड़ा हो जाता है....।

रज्जो-- अरे बेटा रितेश मैं भी ठाकुर के यहां जा रही हूं तो तेरे साथ ही कुछ दूर तक चली चलती हूं॥

इतना सुनते ही.....रितेश की बाछें खील गयी.....उसने सोचा क्या बात है साली की चुचींया देखने का थोड़ा और मौका मील जायेगा।

रितेश-- हां.....काकी चलो ना।

और फीर रज्जो रितेश के साथ चल देती है॥

कजरी बैठे बैठे उन दोनो को जाते हुए देखती रहती है.....और रज्जो के उपर उसका गुस्सा चढ़ा चला जाता हे...।

कजरी(मन में)-- ये छिनाल कहीं मेरे बेटे को बिगाड़ ना दे....क्या करू कुछ समझ में नही आ रहा है.....कैसे दुर रखु अपने बेटे को इस छिनाल से......यही सोचते हुए कजरी उठ कर घर के अँदर चली जाती है।


रास्ते में रितेश रज्जो की चुचींयो को कनखी से ताड़े जा रहा था....जीसका पता रज्जो को था।

रज्जो(मन में)-- अरे रज्जो......इससे अच्छा मौका नही मीलेगा .....रितेश के मोटे और लम्बे लंड से अपने बुर की खुजली मीटवाने का......इस बेचारे को तो इतना भी नही पता है की इसने अपने पास कीतना दमदार हथीयार छुपा रखा है.......आह.....क्या बताउं जब से इसे घर के पिछवाड़े मुतते समय इसका लंड देखा है.....मेरी बुर तो फड़क रही है.....साले का क्या लंड है.....मेरी बुर का भी कचुम्बर बना दे....ऐसा लंड है इसका।

रितेश लगातार रज्जो की चुचीयों पर अपनी नज़र जमाये था.....ये देख रज्जो ने बोला-

रज्जो-- बेटा रितश क्या देख रहा है?
ये सुनकर रितेश थोड़ा घबरा गया....और हकलाते हुए बोला।

रितेश-- क.....कुछ नही काकी।

रज्जो-- देख झूठ मत बोल.....मैं जानती हू तू कब से क्या देख रहा है.....लेकीन तू सच सच बता की क्या देख रहा था?

रज्जो की इस बात से तो रितेश की गांड ही फट गयी.....उसने सोचा की कही साली ने मुझे इसकी चुचींया देखते हुए तो नही देख ली।

रज्जो-- क्या सोचने लगा......बता ना की क्या देख रहा था?

रितेश(हकलाते हुए)-- सच कह रहा हूं काकी....कुछ नही देख रहा था।

रज्जो-- अच्छा.....चल ठीक है....लेकीन तूझे एक बात बता दू....की कुछ चीजें देखने के लीये नही होती।

रितेश-- मैं कुछ समझा......नही काकी।
रज्जो-- धिरे.....धिरे सब समझ जायेगा बेटा....की कुछ चीजे देखने के लीये नही होती(कहकर रज्जो ने अपनी एक चुचीं खो हल्के से दबा देती है)

रज्जो के ऐसा करते देख.....रितेश की हालत खराब हो जाती है.....उसके लंड में खुन का प्रवाह होने लगता है......और फीर धीरे धिरे उसका लंड खड़ा होने लगता हे।

रज्जो की नज़र अचानक ही रितेश क पैटं पर पड़ा जो अब तक उभार ले चुका था.....जीसै देख रज्जो ये समझ गयी थी की ये रितेश का घोड़े जैसा लंड ही है.....रज्जो के कल्पना मात्र से ही उसके बुर में झनझनाहट होने लगती है.....।

गांव के कच्चे सड़क पर चल रहे रज्जो और रितेश दोनो ही अपने अपने हथीयार को समझा कर चल रहे थे......की तभी कुछ दुर आगे......एक कुत्ता एक कुतीया के उपर चढ़ कर चुदाई कर रहा था.....जिस पर उन दोनो की नज़र पड़ जाती है।

उन दोनो की गरमी बढ़ाने के लीये......ये नज़ारा कीसी आग में पड़ रहे घी की तरह था.....।

कुतीया......मुह फाड़ कर चील्ला रही थी.....और कुत्ता जोर जोर से.....उस कुतीया को चोदे जा रहा था.....।

वो दोनो जैसे ही पास में पहुंचते हे.....कुत्ता और कुतीया भाग खड़े होते है....।

रितेश तो चुप था......लेकीन रज्जो से रहा नही जा रहा था....।

रज्जो-- ये आज कल कुत्ते भी ना.....कही भी चालू हो जाते है।

रितश-- हां काकी.....थोड़ा भी दीमाग नही है इन कुत्तो को.....॥

रज्जो-- हां ......अब देख ना की कुतीया मुह फाड़ फाड़ कर चील्ला रही थी लेकीन.....कुत्ता साला जबरजस्ती कीये जा रहा था....।

रज्जो के मुहं से ऐसी बाते सुनकर रितेश का.....लंड उफान पर पहुच गया.....उसका पैट तो मानो जैसे फट जायेगा उसके लंड के तनाव से......रज्जो ने देखा की रितेश का लंड झटके मार रहा है.....तो छिनाल रज्जो ने अपना चाल चलते हुए कहा-

रज्जो-- अरे......बेटा रितेश क्या हुआ तूझे?
रितेश-- कहां क्या हुआ काकी?

रज्जो-- इशारा करते हुए .....ये तेरे नुन्नी को क्या हुआ.....पैटं में झटके मार रहा है।

रितेश की तो सिट्टी पिट्टी गुल हो.....गयी क्यूकीं उसे थोड़ा भी अदांजा नही था की, रज्जो काकी ऐसी बाते कह देगी.....रितेश तो इकदम शरमा गया.....वो समझ नही पा रहा था की क्या बोले।

रज्जो-- अरे क्या हुआ बेटा.....शरमा क्यूं रहा है.....पेशाब लगी है क्या? जो ये तेरा नुन्नी झटके मार रहा है।

रितेश-- ह......हां काकी.....मुझे पेशाब ही लगी है।

रज्जो-- तो कर ले ना, इसमे शरमाने वाली कौन सी बात है....।

रितेश(मन में)-- अरे.....रंडी साली तेरे मुह में पेशाब करने का मन कर रहा है....।

रज्जो-- अरे अब क्या सोचने लगा.....जगह पसंद नही आयी क्या? की अपनी काकी के मुह में मुतेगा।

रितेश तो ये सुनकर दंग रह गया.....ये तो वो बात हो गयी की जैसे उसके मन की बात रज्जो ने सुन ली हो......रितेश ने सोचा की ये साली तो पुरी चुदासी है.....और इतना खुल कर बात कर रही है......तो मैं क्यूं शरमा रहा हूं॥

रितेश-- काकी मन तो मेरा भी है.....की मैं तेरे मुह में ही मुतु ......लेकीन तू थोड़ी ही मेरा मुत पीयेगी......।

ये.......बात सुनकर तो रज्जो पहले तो दंग रह गयी लेकीन फीर उसके दुसर छंड़ ही उसके चेहरे पर एक कातीलाना मुस्कान भी फैली...।

रज्जो-- हे.....भगवान तू.....मेरे मुह में मुतेगा। कीतना गंदा है रे तू......ऐसा सोचता है तू मेरे बारे मे......चल आज तो मैं तेरे मां से मीलुगीं॥

रितेश की सीट्टी पिट्टी गुल......रज्जो की बात उसके होश उड़ा दीये थे.....।

रितेश-- नही.....काकी गलती से.....नीकल गया.....तूने मुह में मुतने की बात की तो मेरे भी मुहं से नीकल गया......माफ़ कर दे काकी मां से कुछ मत कहना(रितेश एक हद तक गीड़गीड़ा कर बोला)

रितेश की हवा टाइट होते देख.....रज्जो की तो बांछे खील गयी.....उसने थोड़ा बनावटी गुस्से में बोली।

रज्जो-- तो क्या....अगर मैं बोलूगीं की मुझे चोद तो तू मुझे चोद देगा....आं.....बोल।

अब तो रितेश और ज्यादा घबरा गया.....उसके पास कोई जवाब ही न था....तो चुपचाप खड़ा रहा।

रज्जो-- खड़ा.....क्यूं हैं बोल.....चोदेगा मुझे तू......अगर मैं बोलूगीं तो.....हा.....बोलता क्यूं नही.....तू अपना मुसल घोड़े जैसा लंड मेरी बुर में डालकर चोदेगा.....बोल।

रितेश तो हक्का बक्का रह गया.....रज्जो के मुह से ऐसी बाते सुनकर।

रितेश-- नही काकी.....गलती हो गयी माफ़ कर दे.....।

रज्जो-- नही....कुछ गलती नही....अब तो तूझे सज़ा मीलेगी ही.....अगर तू चाहता है...की ये बात तेरी मां तक ना पहुचें तो आज.....रात को चुपके से मेरे घर में आ जाना। तूझे तेरी सज़ा वही सुनाउगीं......समझा।

रितेश बेचारा मरता क्या ना करता.....उसे रज्जो की बात माननी पड़ी.....और हां में सर हीला कर.....अजय के घर की तरफ़ चल दीया......और रज्जो ठाकुर की तरफ।



कहानी जारी रहेगा दोस्तो.......अपना सुझाव और कहानी को पसंद करने के लीये.....थैक्सं दोस्तो......कल मीलते है अगले अपडेट के साथ
मैं पी लूँगा रज्जो रानी का मूत,
Aaaahhhhhhhhhh
 
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