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कजरी अब तक रितेश को दो चार बार आवाज लगा चुकी थी....लेकीन रितेश अभी तक रज्जो के बारे में ही सोंच रहा था..उसके माथे पर से पसीने की बुंद टपक रही थी.....
बेटा.....क्या हुआ? कजरी के झींझोड़ने से जैसे रितेश को होश आया.।
रितेश-- क....कुछ नही मां॥
कजरी-- क्या हुआ बेटा? तू इतना परेशान क्यूं है...और ये तुझे पसीने क्यूं हो रहे है।
रितेश ने अपना हाथ अपने माथे पर लगाया तो उसे सच में पसीने हुए थे।
रितेश-- अ....अरे वो....वो....मां...मु....मुझे।
कजरी-- सच...सच बता ....क्या कीया रज्जो ने तेरे साथ?
रितेश झट से खाट पर से उठ जाता है...और थोड़ा आगे जाकर
रितेश-- क....काकी ने क..कुछ नही कीया।
कजरी उठ कर रितेश का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ घुमाते हुए...
कजरी-- अच्छा...तो तुझे पसीने क्यूं हो रहे है....और तू हकला कर क्यू बोल रहा है....बात क्या है बता?
रितेश अब और ज्यादा डर गया....उसने सोचा की मां को अब सारी बात बताने में ही भलायी है....अगर मैं नही बताउगां तो रज्जो काकी ज़रुर बतायेगी।
रितेश-- मां बात ये है की.....
बात ये है की....रितेश बेटा चुहे से डर कर भाग आया...।
ये आवाज़ सुनते ही...कजरी और रितेश दोनो मुड़कर देखते है....तो रज्जो खड़ी थी।
रज्जो-- अरे....हां कजरी, ये गेहुं की बोरी नीकाल रहा था....तभी इसने चुहा देख लीया और समझा सांप हे....तो डर गया है ना रितेश।
रितेश-- ह.....हां.....मां, स.....सापं समझ कर डर गया था.....अच्छा मां मै अजय के घर जा रहा हूं।
ये कहकर रितेश घर से बाहर नीकल जाता है.......कजरी और रज्जो रितेश को बाहर जाते हुए देखती रहती है...
कजरी-- रज्जो साफ साफ बता, की तूने मेरे बेटे के साथ क्या कीया?
रज्जो-- अरे. ....कजरी तू पागल हो गयी है, क्या भला मैं क्या करुगीं?
कजरी-- देख रज्जो, बन मत तू, मुझे पता है तू कैसी औरत है.....अगर तू मेरे बेटे के साथ कुछ ऐसा वैसा कीया तो...
रज्जो-- तो.....तो क्या? ऐसा वैसा करुगीं नही...कर ली मैने, हाय क्या लड़का है।
रज्जो के मुहं से ऐसी बात सुनकर कजरी के पैरो तले ज़मीन खीसक गयी.
कजरी(गुस्से में) -- रज्जो............
रज्जो(शरारती) - अ....हां गुस्सा नही करते कजरी....तेरा बेटा अब जवान हो गया है...जवान नही पूरा सांड हो गया है...और उसका वो तो घोड़े जैसा है...
कजरी-- छी....
रज्जो(शरारती) -- छि...नही कजरी, वाह बोल वाह, क्या लड़का पैदा कीया है...एक छटके में सीर्फ एक छटके में कजरी उसने मेरी चुदी चादी बुर को फाड़ कर रख दीया...तु.....तुझे यकीन नही होता ना...ये देख मेरा ब्लाउज देख इस पर जो खून लगा है ना, तेरा बेटा मेरा बुर फाड़ कर अपने लंड पर लगा खून इसी से साफ कर के भाग आया....
कजरी चुप चाप खड़ी रज्जो की बाते सुन रही थी और रज्जो कीसी शातीर खीलाड़ी की तरह कजरी के चारो तरफ घुम घुम कर सुना रही थी..।
कजरी(चिल्लाते) -- चुप कर रंडी....तुझे शरम ना आयी अपने बेटे के जैसे लड़के के साथ ये सब करते हुए।
रज्जो(शातीराना) -- अरे...हां, शरम तो बहुत आयी की कैसे मै रितेश को अपनी बुर दीखाउगीं....रज्जो बोल ही रही थी की।
कजरी अपने कानो पर दोनो हाथ रखते हुए चील्ला कर बोली-- चुप हो जा छिनाल, भगवान के लीये चुप हो जा...
रज्जो-- अच्छा ठीक है...तू बोलती है तो चुप हो जाती हूं...
कजरी(गुस्से मेँ) - नीकल जा यहां से रंडी और दुबारा मेरे बेटे के उपर नज़र मत डालना।
रज्जो(शातीराना) - ठीक है...लेकीन तेरा बेटा अगर नही माना तो।
कजरी-- वो तेरी तरह नही है छिनाल, वो मेरी बात कभी नही टालेगा...और मैं उसे तेरे आस पास भी नही भटकने दुगीं।
रज्जो-- अच्छा...तो इतना भरोसा है तुझे खुद पर।
कजरी-- और नही तो क्या मैं उसकी मां हू, वो मेरी बात जरुर मानेगा।
रज्जो-- अच्छा....ये बुर की लत है कजरी, जो मैं दे सकती हूं वो मां नही दे सकती।
ये कहकर रज्जो अपने घर की तरफ़ चल देती है.....उसकी चाल भी बदली थी थोड़ा भचक भचक कर चल रही थी....जीसे कजरी देख रही थी....।
कुछ पल के लीये कजरी....एकदम शांत वही खड़ी रही फीर वो अपने सर पर हाथ रखकर खाट पर बैठ जाती है।
कजरी को आज कुछ समझ में नही आ रहा था....उसने जो बाते रज्जो के मुंह से सुनी थी....वो सच है या गलत इसका फैसला करने के लीये वो ऐसी बाते वो अपने बेटे से भी नही कर सकती थी....लेकीन रितेश की परेशानी कही ना कही रज्जो की बात को सच कर रहा था....बहुत सारे सवाले के ठेर में फंसी कजरी ये सब सोचं ही रही थी की...
कजरी....वो कजरी.....
कजरी-- अरे संगीता तू क्या हुआ? इतनी घबरायी हुई क्यूं हैं?
संगीता-- अरे कजरी.....वो ठाकुर साहब के दोस्त का ख़ून हो गया है।
ये सुनकर कजरी भी चौंक गयी..।
कजरी-- क्या...कैसे?
कजरी बोलते बोलते उठ गयी....और संगीता के साथ घर से करीब भागते भागते नीकल कर ठाकुर के घर की तरफ चल दी.
संगीता-- वो तो पता नही लेकीन...सुना है की ठाकुर साहब चुनाव ना लड़ सके इसलीये कीसी ने शाजीश कर के ये काम को अंजाम दीया है...
यही सब बाते करते हुए कजरी और संगीता ठाकुर के घर पर पहुचं गये....जंहा बड़ी तादात में भीड़ इकट्ठा हुई थी।
ठाकुर के घर पर दरोगा....शतीस सींह के साथ चार हवलदार खड़े थे....
दरोगा-- तो ठाकुर साहब.....आप एक कष्ट कीजीए की आप अपने घर के सभी सदस्य को बुलाईये और थोड़ा हमे भी परीचय कराइये।
और कहकर दरोगा ने जेब से एक लंवाग नीकाल कर मुंह में डाल कर उसे अपने दांत के नीचे दबा लीया।
ठाकुर-- जी दरोगा साहब!
कुछ ही पल में ठाकुर के घर के सभी सदस्य नीचे जमा हुए-
i m so so sory................frnds ki itne dino se update nahi de paya.....kuchh durghtna hone ki vajah se!
kuchh readers to hamare itne gusse ho gaye ki kah rahe hai ki story hi close ho gaya....par aisa nahi hai
i am back.....lets rock!
subah tak ek update aur-