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bahad badhiya update dostअपडेट****18
सुबह-सुबह रीतेश, और अजय गांव के पुलीया पर बैठ कर......बीड़ी की कश ले रहे थे।
अजय - यार भाई, सच बताउं तो मुझे यकीन नही हो रहा है की हमारे पास! इतने रुपये है।
रीतेश ने बीड़ीं की एक कश ले कर , अजय की ओर बढ़ाते हुए बोला-
रीतेश - तू सच मेँ पागल है, तूझे बोला जब मैने की इसके बारे मेँ चर्चा मत कर अभी। फीर भी!
अजय बीड़ीं का एक कश ले कर बीड़ी को नीचे ज़मीन पर फ़ेक कर , अपने पैरों से रौदंता हुआ बोला!
अजय- अरे....गलती हो गयी भाई!
रीतेश पुलीया पर से उठते हुए बोला-
रीतेश- चल अच्छा अब घर चलते है! आज बाजार भी चलना है। तू तैयार हो कर घर पर आ जाना फीर चलेंगें!
अजय हां में सर हीलाता है, फीर दोनो अपने- अपने घर की तरफ चल देते है।
'मौसम अब भी उतना साफ नही था, रीतेश जैसे ही अपने घर पर पहुंचा वो सीधा आंगन में चला जाता है।
आगनं में कज़री बर्तन धो रही थी......रीतेश भी वही जाकर एक खाट लगाकर , खाट पर बैठते हुए बोला-
रीतेश- जल्दी से पूरा काम धंधा कर ले मां, फीर बाज़ार चलेगें !
कज़री - अच्छा बाबा ठीक है, तू भी थोड़ा हाथ बटा दे तो जल्दी हो जायेगा!
रीतेश खाट पर से उठकर खड़ा हो जाता है, और फीर बोला-
रीतेश - ठीक है......! क्या करूं बता-
कज़री अपने खुबसुरत चेहरे पर० मुस्कान लाते हुए बोली-
कज़री - अरे .....रहने दे, मैं तो बस ऐसे ही बोल रही थी!
रीतेश - अरे ......तो क्या हुआ? थोड़ा काम ही कर दूगां तो क्या हो जायेगा?
कज़री धुले हुए बर्तन को उठा कर खड़ी हो जाती है और फीर बोली-
कज़री - घर के काम करना अच्छी बात होती है बेटा, लेकीन तू रहने दे। थोड़ा सा ही, तो है कर लूगीं मैं!
!और फीर ये कह कर कज़री जाने लगती है....रीतेश की नज़र सीधा कज़री के कमर पर पड़ती है.....क्या पतली कमर थी कज़री की, रीतेश की तो आंखे ही नही हट रही थी! रीतेश जब तक अपनी नज़र और नीचे लाता , तब तक कज़री कमरे में जा चुकी थी!
रीतेश एक ठंढ़ी आह लेता है और बोला-
रीतेश - मां.......तू पागल कर के ही छोड़ेगी मुझे!
और फीर वो भी उठ कर उस कमरे की तरफ चल देता है...........
ठाकुर अपने कमरे में बैठा था.....वो बहुत परेशान था! चुनावी पर्चा नीरस्त हो गया था और पैसे भी.......उसने मन ही मन गुस्सा कीया और उठ कर दारू की बोतल लेकर फीर सोफे पर आकर बैठ जाता है...।
तभी वहां चपां आ जाती है....चंपा को देखकर ठाकुर बोला**
ठाकुर-- तू यहां क्या कर रही है?
चंपा थोड़ा हैरान हो जाती है...क्यूकीं ठाकुर थोड़ा गुस्से में बोला था!
चंपा - वो.....वो मालीक मैं तो कमरे की सफाई करने आयी थी!
ठाकुर *दारू की बोतल खोलकर ग्लास में डालते हुए बोला-
ठाकुर - अच्छा ठीक है, कर ले!
चंपा फीर हाथ में झाड़ू ले कर कमरे की सफाई करने लगती है.......चंपा सफाई करते-करते अपना पल्लू जानबूझ कर नीचे गीरा देती है।
जीससे चंपा की बड़ी - बड़ी चुचीया और पेट का पुरा हीस्सा ठाकुर को दीख गया!
लेकीन ठाकुर इतनी परेशानी में था की, उसने ये सब पर ध्यान ही नही दीया। चंपा बेचारी क्या करती, उसने कमरे की सफाई की और फीर वंहा से चली गयी!
चंपा उस कमरे से नीकलने के बाद सीधा, रेनुका के कमरे की ओर बढ़ी!
खट.......खट......खट.....
रेनुका - तू रुक साले अभी आयी......
इतना कह कर रेनुका दरवाजे की तरफ बढ़ी.....और दरवाज़े के पास पहुचं कर बोली !
रेनुका - कौन ?
अरे......मैं हूं! चंपा ......
रेनुका....दरवाजा खोलती है'
*चंपा अँदर आते ही .....कुछ बुदबुदाने लगी! ये देख रेनुका ने बोला-
रेनूका - अरे क्या हुआ , क्यूं बुदबुदा रही है?
चंपा - अब बुदबुदाउं नही तो , और क्या करू? आपका तो काम हो जाता है.....पर मेरा क्या?
*रेनुका को समझते देर नही लगी की चंपा कीस बारे में बात कर रही है? वो चंपा के एक दम करीब आकर बोली-
रेनुका - क्या हुआ बुर में आग लगी है क्या?
चंपा इठलाती हुई बोली.........
चंपा - ये लो, सब पता मालकीन आपको फीर भी पुछ रही हो!
रेनुका हस देती है......और फीर बोली!
रेनुका - चल आ......तेरे बुर की गर्मी शांत करती हूं!
चंपा , रेनुका के पीछे-पीछे चलने लगती है.....वो जल्द ही उस छोटे से कमरे की तरफ जाने लगती है। जहां पर रेनुका ने एक आदमी को कैद करके रखा था......चंपा इतना तो जानती थी, लेकीन ये नही जानती थी की.....वो आदमी था कौन?
*चंपा जैसे ही उस कमरे में पहुचंती है........वो दंग रह जाती है, मानो उसकी आखें फट पड़ी हो। उसने जो देखा , वो वीश्वास नही कर पा रही थी!
अंदर एक कुर्सी में बधां इंसान, कोई और नही बल्की रेनुका का बड़ा बेटा पंकज था !
चंपा ये देखकर ......हकलाते हुए बोली-
चंपा - म.........मालकीन ! ये तो।
रेनुका ने पंकज के बाल अपनी मुट्ठी में पकड़ कर जोर से खीचा.....पकंज का मुह बंधा होने के बाद भी उसकी एक घुटी - घुटी चीख नीकली।
रेनुका - हां.......ये भड़वां मेरा बेटा ही है। ये साला छुप कर मेरी और राजीव की बाते सुन रहा था। वो तो अच्छा हुआ की ये उस हरामी ठाकुर के पास जाने से पहले' 'मेरे पास आया , मुझे धमकाने....... बोल रहा था की अभी जाकर , सब पापा को बता दूगां......लेकीन बेचारा एक डंडा खाकर गीर गया और अब देख यहीं बंधा पड़ा है। पता नही कीतना पाप होगा मुझसे इस 'सकींरा' के चक्कर में!
चंपा का गला तो वैसे ही सुख गया था......वो ये तो जानती थी की, रेनुका हरामी है.....लकीन इतना की अपने ही बेटे को भी मार सकती है। ये वो आज जान गयी!
रेनुका - अरे......चंपा रानी तू मत डर! जो मेरे साथ है, उसे मैं कुछ नही करुगीं! अच्छा चल ये रहा तेरा......मर्द ! अब शांत कर ले अपने बुर की गरमी!
ये सुनकर पकंज छटपटाने लगा........पकंज को छटपटाता देख रेनुका ने कहा!
रेनुका - देख कैसा छटपटाने लगा तेरा साडं....जरा इसका पतलून तो उतार , मै भी तो देखू कैसा है.....!
चंपा इठलाते हुए बोली-
चंपा- अगर पंसद नही आया मालकीन तो सच बता रही हूं काट कर फेंक दूगीं मैं इसका?
ये सुनकर रेनुका चंपा की तरफ बढ़ी.....और उसके कमर में हाथ डालकर जोर से खीचं कर अपने छाती से लगाते हुए बोली-
रेनुका - अरे वाह! मेरी छीनाल तो बहुत जल्दी सब कुछ सीखने लगी!
चंपा ने भी.....अपना एक हाथ रेनुका के कमर पर रख दी और बोली-
चंपा- सब आप से ही तो सीख रही हूं!
रेनुका ने अपना हाथ धीरे-धीरे चंपा के कमर से सरकाती हुई चंपा के गांड पर ले गयी और दोनो हाथो की मुट्ठी में चंपा की गाड को कस लीया!
चँपा - आह........मालकीन!
रेनुका ने और जोर से चंपा की गांड को मसल दीया.....
चंपा - आ.......ह, मालकीन......
रेनुका - तेरी गांड तो बहुत कसी लग रही है रे कुतीया.......कभी कीसी ने कुतरा नही क्या। और ये कहते हुए रेनुका ने जोर का थप्पड़ चंपा के गाडं पर जड़ दीया!
चंपा - हाय रे.......मालकीन! मेरी तो बुर को ही अभी तक मस्त लंड नही मीला है।
रेनुका ने चंपा की साड़ी का पल्लू पकड़ कर जोर से खीचने लगी......चंपा गोल-गोल नाचने लगी.....और देखते ही देखते उसकी साड़ी उसके बदन से अलग हो गयी!
चँपा अब सीर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी......उसकी चुचींया ब्लाउज़ के आकार को उठाये हुई थी.......थोड़ी सांवली थी मगर उसे देखकर भी बूढ़ो का लंड खड़ा हो जाये! ऐसी बनावट थी!
रेनुका ने चंपा की साड़ी नीचे ज़मीन पर फेकते हुए .....उसके पास जाकर एक बार फीर चंपा को कस कर अपने से चीपका लेती है।
दोनो औरते गरम थी.....और दोनो ही बड़ी चुदक्कड़ थी.....अपनी मां की ऐसी हरकत देखकर पंकज ने अपनी आखें बंद कर ली!
*रेनुका ने चंपा की चुचींयो को अपने हाथो में पकड़ कर जोर-जोर से दबाने लगी!
चंपा - आ.........ह मालकी.....न थो........ड़ा धीरे...........दबाइ..........ये ! दर्द हो.....र.....'हा है।
चंपा की मदमस्त चीख सुनकर रेनुका को भी मस्ती चढ़ने लगी.......उसने चंपा का ब्लाउज़ पकड़ कर खीचते हुए फाड़ दीया..........चंपा की चुचीयां उछलते हुए बाहर आज़ाद हो गयी........
रेनुका - साली........देख तेरी चुचीयां......कीतनी उछल रही है!
चंपा की तो हालत खराब हो गयी थी......सर पर हवस सवार हो गयी थी उसके.......
चंपा - हाय रे........मालकीन कुछ करो......सहा नही जा रहा है!
*रेनुका भी एक नम्बर की रंडी थी......उसने चंपा की चुचीयों को अपने मुह में भर कर अपने हाथो से दबा - दबा कर चुसने लगी.....चंपा की तो आंखे बंद हो गयी......
चंपा - आ.........'ह.............उम्म्म्म्म्म्ह..........मालकी......न! चु........सो......बहुत म.......ज़ा आ रहा है!
रेनुका ने चंपा की चुचींया इतनी.......बेरहमी से दबा-दबा कर नीचोड़ कर चुसा की......चंपा की बुर ने पानी टपकाना शुरु कर दीया! चंपा की दोनो चुचींया एकदम लाल और नीप्पल खड़े हो गये थे!
रेनुका की भी सासें......तेज चलने लगी थी, वो भी पुरे जोश में आ गयी थी......उसने चंपा की खड़े हो चुके चुचींयो का नीप्पल देखा तो.....उससे रहा नही गया..!
*रेनुका ने चंपा के नीप्पल के चारो तरफ अपनी जीभ घुमाने लगी......जीससे चंपा को इतना मज़ा आया की उसने .....अपने पेटीकोट का नाड़ा खोल दीया......पेटीकोट सीधा ज़मीन पर जाकर गीरा!
पेटीकोट गीरते ही चँपा नगीं हो गयी......रेनुका ने बीना देरी कीये झट से अपनी उगली.......चंपा के बुर में पेल दीया और चंपा के नीप्पल को दातों से जोर से दबाकर बड़ी जोर से खीचा.......जीससे चंपा दर्द और मजे से छटपटा कर चीखने लगी!
चंपा - आ....इइइइइई....मा........ल.......की......न!
चंपा की बुर इतनी गीली हो गयी थी की.....रेनुका का पुरा पंजा भीग गया.....!
रेनुका ने चंपा के बुर में एक उगलीं कचा-कच पेलते हुए बोली-
रेनुका - बोल......रंडी! लंड चाहीए?
चंपा की तो हालत खराब थी.....वो छटपटा कर कभी अपना मुह इधर झटकती तो कभी उधर....
चंपा - आ.........आ..........हां.......चाहीए!
रेनुका ने चंपा के बुर से अपनी उगंली नीकाल ली और बोली-
रेनुका - तो जा साली......देख तेरा सांड बैठा है! कर ले अपनी बुर को ठंढ़ा-
रेनुका के इतना कहते ही.....चंपा कीसी भूखे शेरनी की तरह , पंकज पर झपट पड़ी.....उसने पंकज़ की पतलून का नाड़ा खोल दीया......पंकज छटपटाने लगा ये देख कर पास में खड़ी रेनूका ने पंकज के गाल पर खीचं कर तमाचा मारा!
रेनूका - साले.......छटपटा क्यूं रहा है! चुप-चाप बैठा रह नही तो जान से मार दूगां!
रेनूका का गुस्सा देखकर पंकज शातं हो गया......और इधर चंपा ने अब तक उसका पतलून खोलकर नीकाल दीया था......जैसे ही चड्ढ़ी नीकाली , पंकज का 5 इंच का लंड खड़ा हो गया!
ये देखकर रेनूका ने फीर एक थप्पड़ पंकज को जड़ दीया और बोली-
रेनूका - साले .......मादरचोद.....ये लंड है तेरा!
चंपा का भी मुह सीकुड़ गया लेकीन उसने झट से अपनी एक टांग इधर कुर्सी के इधर की और एक टांग उधर करके, पकंज का लंड पकड़ कर अपने बुर के मुह पर रखकर एक बार में ही समुचा अँदर उतार लेती है!
चंपा - आह......मालकीन.......मजा आ गया!
रेनुका ने फीर एक थप्पड़ पंकज को चड़ दीया और बोली-
रेनूका - ये भड़वे के लंड से मज़ा आ गया तूझे!
चंपा अपनी दोनो चुचींया पकड़ कर पंकज़ के लंड पर उछलने लगी......!
चंपा - आह......,आह.......मालकीन.......आह......छोटा है लेकीन.....,अआ......ह....मज़ा आ र......हा है!
चंपा ने अभी शुरुवात ही कीया था की.......पंकज का बदन अकड़ने लगा.....ये देखकर रेनूकाने कहा-
रेनूका - ले ये भड़वां झड़ने वाला है......!
चंपा जोर -जोर से अपनी गाडं उछालते हुए पंकज के गाल पर चाटे की बरसात करते हुए बोली-
चंपा - आ........ह साले.......हरामी......अभी नही....अभी मत झड़ना......थोड़ी देर और!
चंपा अभी बोल ही रही थी की , पंकज के लंड ने जोर दार पीचकारी मारी और वो चंपा के बुर में झड़ने लगा.......चंपा की गुस्से से गांड जल गयी......लेकीन फीर भी वो अपनी गांड उठा - उठा कर धक्के मारते रही!
*लेकीन कुछ ही देर में पंकज का लंड सीकुड़ कर चंपा के बुर से बाहर नीकल गया!
चंपा को इतना गुस्सा आया की उसने खड़ी होकर जोर का लात पँकज के सीने पर मार.....कुर्सी में बंधा हुआ पंकज पीछे की तरफ ज़मीन पर गीर गया!
ज़मीन पर गीरते ही , उस बेरहम कुतीया ने जो की अपने हवस की आग मे अँधी हो चुकी थी......उसने झट से अपनी बुर पंकज के मुह पर रख दी और अपनी गांड आगे पीछे करके ......जोर-जोर से अपनी बुर पंकज के मुह पर घीसने लगी!
चंपा - आह........मालकीन.......मैं......गयी......मै.........आ.....ह.!
और फीर चंपा अपना पूरा जोर लगाकर अपनी गाडं रखकर पंकज के मुह पर बैठ जाती है.......और अपनी आखं बंद करके जोर -जोर की सांसे लेकर झड़ने लगती है.....चंपा की गांड इतनी बड़ी थी की, पंकज का पूरा का पूरा मुह ठक गया था......पकंज को सांस नही ली जा रही थी......वो छटपटाने लगा.....तो रेनूका ने पंकज को एक लात कस कर मारी और चंपा को हटा कर अपनी साड़ी उपर करके ......अपना बुर पंकज के मुह में सटा कर अपनी चंपा से भी बड़ी गांड इतनी जोर - जोर से और बेरहमी से रगड़ने लगी की।
उसकी बुर पंकज के मुह के साथ साथ नाक भी रगड़ा जाती.......पंकज को सांस लेने मे दीक्कत होने लगी......उसकी सासें फूलने लगी!
मगर रेनुका ने बीना रहम के तब तक अपनी बुर दबाकर रगड़ी जब तक की.......उसका पानी नही नीकल गया!
रेनुका - आह.......साले का......मुह बहुत कमाल का है......मज़ा आ गया!
ये कहकर रेनूका पंकज के मुह पर से अपनी पहाड़ जैसी गांड हटाती है....और उठते हुए बोली-
रेनूका - देख चंपा , साला जींदा है की मर गया!
चंपा पंकज के करीब आकर**उसके नाक के पास उगंली रखी और फीर बोली!
चंपा - गया......ये तो!
रेनुका हंसते हुए बोली- अपनी मां की पहाड़ जैसी गांड के नीचे दब कर मर गया!
ये सुनते ही चंपा भी हसने लगी..........
चंपा - सच में मालकीन.......आपके जैसी औरत आज तक नही देखी......जो अपने ही बेटे को जान से मारने के बाद......इतनी खुश है!
रेनुका नंगी ही कुर्सी पर बैठ जाती है.....और अपनी टांगे चौड़ी करके अपने बुर पर लगे पानी को चंपा की साड़ी से साफ करते हुए बोली-
रेनूका - संकीरा के अमृत जल के लीये तो मै कीसी की भी जान ले लूं!
ये सुनकर चंपा अपने घुटनो के बल कीसी कुतीया की तरह गाडं हीलाते हुए अपना'मुह रेनुका के बुर के पास लाती है.....और अपनी जीभ नीकाल कर रेनुका के बुर को चाटते हुए बोली-
चंपा - संकीरा का अमृत जल......!
रेनूका - हां..... अमृत जल, समय आने पर तू सब समझ जायेगी!
और फीर रेनुका ने चंपा का बाल पकड़ के उसका मुह अपनी बुर से चीपका देती है**चंपा भी कुतीया की तरह जीफ नीकाल कर चाटने लगती है!
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पप्पू अपने घर पहुचं कर अपने जेब में से बंदूक नीकाल कर टेबल पर रख देता है.......तभी उसकी मां रज्जो वंहा आ जाती है! वो बंदूक को देख कर बोली-
रज्जो - अरे पप्पू ये क्या है?
पप्पू तुरतं अपनी मां की आवाज़ सुनकर उसकी तरफ घुमते हुए बोला-
पप्पू - ये ......ये बंदूक है!
रज्जो - तो ये तेरे पास क्यूं हैं? सच बता तू ठाकुर के यहां क्या करता है?
पप्पू बंदूक को अपने हाथ मे उठा कर 'अपने मां के करीब आता है! और बंदूक की नली को अपनी मां के गाल पर फीसलाते हुए बोला-
पप्पू - सच बताउ या.......झूठ!
पप्पू के इस अंदाज़ से' रज्जो डर गयी.....और हकलाते हुए बोली-
रज्जो - इ......इसे हटा ले बेटा......मुझे डर लग रहा है!
पप्पू ने अपनी मां के कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी तरफ खीचं लीया.......रज्जो के चेहरे पर एक डर की झलक उमड़ पड़ी......
रज्जो- ये.......ये तू क्या कर रहा है......मैं तेरी मां हू.......छोड़ दे मुझे!
पप्पू ने बंदूक की नली को अपनी मां के चेहरे पर से फीसलाता हुआ......उसकी बड़ी -बड़ी छातीयो पर से होकर......बंदूक सीधा अपनी मां के नाभी से सटाते हुए बोला-
पप्पू - तू मां नही......एक नम्बर की रंडी है साली.....बचपन से देखता आ रहा हूं......घर मे मौसा.....फुफा......और उनके दोस्त तुझे कुतीया की तरह चोदते थे.......तूझे पता भी है मेरी गांड कीतनी जलती थी.......जब तू अपनी बुर उनलोग का लंड लेकर रंडी की तरह चुदवाती और वो लोग तेरे गांड पर थप्पड़ मार मार कर तेरी बुर चोदते.....!
रज्जो अपने चेहरे पर एक कातील मुस्कान लाते हुए बोली-
रज्जो- हाय......तू सच मेँ देखता था......जब वो लोग मुझे रंडी की तरह चोदते थे.......अच्छा तूने वो देखा था......जब मैं तेरे मौसा का लंड चुस रही थी, और तेरे फुफा मेरी बुर फाड़ रहे थे.......तभी तेरे मौसा ने कहा की......साली लंड नीकाल मुह में से मुझे पेशाब आयी है......पर तभी तेरे फूफा ने कहा- अरे यार मूत दे ये साली के मुह में ही......अपनी रंडी है पी लेगी! हाय कीतना मज़ा.......आया था.....तेरे मौसा का पेशाब पी के!
अपनी मां की रंडी गीरी देखकर .......पप्पू गुस्से में लाल पीला हो गया.....पप्पू का चेहरा देखकर रज्जो पप्पू की बंदूक को अपने माथे पर टीकाते हुए बोली-
रज्जो - क्या हुआ मेरा बेटा गुस्सा हो गया.....अब मुझे जान से मारेगा......और तू कर भी क्या सकता है......अगर तेरे लंड में ताकत होती तो तू......आज अपनी मां को चोद-चोद कर मारता......लेकीन वो तो तेरा काम ही नही करता......तो अच्छा है की तू नामर्दो की तरह मुझे इस बंदूक से मार दे!
पप्पू के पास कोयी जवाब नही था........वो गुस्से में अपनी बंदूक को अपनी मां के माथे पर से हटाया और बोला-
पप्पू - तेरी इसी हरकत ने मुझे क़ातील बना दीया........तूझे बता दू......फूफा और मौसा कल रात भगवान को प्यारे हो गये......इसी बंदूक से मैने उनके गांड में गोलीया दाग दी.....उनका लंड तेरे बुर में उतना अँदर तक नही गया होगा......जीतनी मेरी बंदूक की गोली उनके गांड में.....घुसी थी......! सोचा था की ये गोली तेरे भी बुर में इतनी अँदर तक घुसा दूगां की......तेरी आग हमेशा के लीये शांत हो जायेगी! लेकीन मैं नामर्द नही हूं.......अगर सीर्फ लंड होने पर ही मर्द होते है तो। 5 साल की बच्चीयों का बलात्कार करने वाले को भी तू मर्द कहेगी! सच तो ये है की.......रंडीयो को कोई फर्क नही पड़ता.......मैं जा रहा हूं घर छोड़कर तू रह और बूला ले जीतने लोगो को बूलाना है। और चुदवा रोज.........
पप्पू की बात सुनकर रज्जो झट से, पप्पू के पैरों में गीर गयी.......और रोने लगी......!
रज्जो- मुझें......माफ़ कर दे बेटा.....बहुत बड़ी गलती हो गयी......तू चाहे तो मुझे जान से मार दे.....लेकीन मुझे छोड़ कर मत जा!
अपनी मां को गीड़गीड़ाता देख......पप्पू का दील भर आया.......और वो अपनी मां को उठा कर सीने से लगा लेता है!
पप्पू - कुछ नही मां जो हो गया सो हो गया.....गलती सब से हो जाती है.....मुझसे भी हो गयी थी......लेकीन कल मेरी आंखे खुल गयी.....जब मुझे पता चला की 'ठाकुर' ने मेरे बाप को मरवाया था......और रितेश के बाप की जान भी उस ठाकुर ने लीया था......!
रज्जो - मुझे पता है बेटा! की ठाकुर ने ही मारा था तेरे बाप को और रितेश के बाप को भी.....और ये बात कज़री को भी पता है!
पप्पू - तो तूम लोग ने हमे बताया क्यूं नही?
रज्जो - इसलीये क्यूकीं ......हम नही चाहते थे की, ठाकुर तुम लोगो का भी वही हाल करे जो...... तुम्हारे !
*****बाप का हुआ था***** एक अनजान आवाज़ सुनकर जैसे ही पप्पू ने सर घुमाया.....वो सामने खड़े इँसान का चेहरा देखकर दंग रह जाता हे............
*********नमस्कार दोस्तो.......अब चाहे जो भी बोल लो यार.......गलती तो हो गयी.....की कहानी शुरु की और आधी भी नही हुई......अपडेट देना ही बंद कर दीया था!!
पर कुछ faimily me problems thi so nahi de paya......!
thanks for your love for this story.....
parsanshniye update dostअपडेट -- 19
पप्पू ने अपना सर उस......आवाज़ की तरफ घुमाया तो देखा....सामने विधायक खड़ा था!
विधायक० के साथ, मुनीम और चार आदमी खड़े थे......जीनके हाथो में दो नली बदूंक थी, और वो बंदूके .....पप्पू के सामने तनी थी!
*ये देख पप्पू ने भी अपनी बंदूक, विधायक की तरफ तान दीया और बोला-
पप्पू - अच्छा हुआ विधायक.....तू ख़ुद 'मरने आ गया....!
"पप्पू की बात सुनकर विधायक के चेहरे पर एक मुस्कान की लहर दौड़ गयी....!
विधायक - दाद....देनी पड़ेगी तेरी.! मेरे साथ चार-चार आदमी अपने हाथ में बंदूक लीये खड़े है! और तू फीर भी....बीना डर के मेरे उपर बंदूक ताने खड़ा है!
"पप्पू ने बंदूक की नोख से अपने सर को खुज़ाते हुए थोड़ा हंसा और फीर बोला-
पप्पू- अबे.....हरामी, मेरी बंदूक की गोली सीर्फ तेरी खोपड़ी के चिथड़े करेगी.....मुझे मेरी जान की परवाह नही है|
"चंद लम्हो में ही विधायक के चेहरे की हंसी गायब हो गयी.....उसने तुरतं अपने आदमीयो को बंदूके नीचे करने के लीये बोल दीया!
मार डाल बेटा इसे..........ये सब तेरे बाप के क़ातील है! छोड़ना मत इसे!
विधायक अपने दोनो हाथ उपर कीये खड़ा था.......उसने पप्पू की आँखो में आँखे डाल कर बोला-
विधायक - तू ......मुझे तो मार सकता है! लेकीन ठाकुर तुझे नही छोड़ेगा|
.....ये सुनकर रज्जो का चेहरा गुस्से से लाल हो गया.....उसने अपनी आँखे घुरते हुए बोली-
रज्जो - तुझे........और ठाकुर को तो मैं अपनी हाथो से मारुगीं......क्यूकीं तुम दोनो ने मेरा सुहाग उजाड़ा है! और मुझे चैन तभी मीलेगा जब मैं तुम दोनो के सीने में गोलीयां दाग दूगीं|
**ये कहते हुए रज्जो ने पप्पू के हाथ से बंदूक ले लीया......और विधायक की ओर तानते हुए वो विधायक की तरफ बढ़ी......रजंजो की आँखो में खून सवार था! वो विधायक के एकदम नज़दीक जा कर अपनी बंदूक विधायक के सीने से सटा दी!
ये देख विधायक थोड़ा मुस्कुराया......पप्पू कुछ समझ नही पाया की ये क्यूं मुस्कुरा रहा है की, तभी..........रज्जो ने बंदूक विधायक के सीने से हटा ली और पप्पू की तरफ मुड़ कर बंदूक पप्पू की तरफ तान दी|
**पप्पू तो.....अवाक् रह गया....वो अपनी मां को देखता ही रह गया! तभी रज्जो अपने चेहरे पर एक कातीलाना हसीं लाते हुए बोली-
रज्जो - ऐसे आँखे फाड़-फाड़ कर क्या देख रहा है? ओ......हो! बेचारे को तक़लीफ हो रही है.....क्यूं, भरोसा नही हो रहा है की तेरी मां तूझ पर बंदूक ताने खड़ी है|
ये कहकर रज्जो......विधायक के कमर में हाथ डाल देती है......और विधायक हसतें हुए रज्जो को जोर से अपनी बांहो में खीच लेता है......!
रज्जो-- आ........ह विधायक जी, थोड़ा आराम से.....मेरी कमर में दर्द होता है......जब भी आप ऐसे खीचते है|
पप्पू तो एकदम से जल-भून गया, ये देखकर|
रज्जो - अब क्या करे विधायक जी इसका?
विधायक रज्जो की गांड पर अपना हाथ फिराते हुए बोला-
विधायक - मरना तो है इसे......लेकीन यंहा नही!
रज्जो - तो फीर कहां?
विधायक - इसके माँ के सामने!
पप्पू को कुछ समझ में नही आ रहा था.....की ये क्या बोल रहा है| जबकी उसकी मां तो विधायक के बांहों में बल खा रही थी!
रज्जो - अभी तक मारा....नही, उस कुतीया को!
ये सुनकर पप्पू अपनी आंखे और बड़ी कर ली....उसे कुछ भी समझ में नही आ रहा था!
पप्पू का चेहरा देखकर ....विधायक ने बोला-
विधायक - अरे......जानेमन क्यूं बेचारे को चकीत कर रही हो......सीधे-सीधे बता दो बेचारे को की हम.....इसके असली मां के बारे में बात कर रहे है|
पप्पू के बदन में एक सुरसुरी सी.....लहर......दौड़ जाती है.....
पप्पू - असली......मां!
विधायक - हां तेरी असली मां.......ये तो मेरी और ठाकुर की रंडी है| तेरा बाप जब तेरी माँ को ब्याह कर लाया था.......तो तेरी मां की खुबसुरती पर हम दोनो......लट्टू हो गये थे! तेरी मां कोई और नही बल्की© कज़री की बड़ी बहन है| कसम उड़ान छल्ले की तेरी मां को देखने के बाद तो ऐसा लग रहा था की, उससे खुबसुरत कोयी औरत ही नही है!
लेकीन ज़ब तेरी मां ने अपनी, छोटी बहन यानी कज़री की शादी तेरे बापू के दोस्त से की ॥ तो हमने कज़री को पहली बार देखा!
**अरे.......विधायक जी, अब ये बेचारा कहानी सुन कर क्या करेगा? ये उपर जा कर कीसे सुनायेगा?
रज्जो ने......विधायक की बात काटते हुए बोल दीया!
विधायक - हां .......सही कहां तूने! लेकीन ईसे एक बात तो तू ज़रुर बता की , तूने ही इसे नामर्द बनाया था.....|
रज्जो - अब क्या करु.......विधायक जी? आप लोग को ही मेरे रंडी पन पर भरोसा नही था! आप सबको लगा की.....ये कही बड़ा हो जाने पर मुझे चोद-चोद कर अपनी रंडी ना बना ले| और मैं सारे राज़ इसे बता दूं!
ये.......सब सुनते-सुनते पप्पू की आंखो में आशूं आ गया!
रज्जो - रो.......ले जीतना रोना है! क्यूकीं.....अब तेरी कहानी खत्म!
पप्पू अपने आंख के आशूं पोछते हुए बोला-
पप्पू- कहानी तो अभी शुरु हुई है! और ये आशूं खुशी की है.......की तू एक रंडी, मेरी मां नही है|
विधायक - तो चल तूझे तेरी मां के दर्शन कराते है.........
******************************
चामुडां.........अपने मठ में बैठा था, अपना लंबा और मोटा लंड लटकाये था| मंदा उसके मोटे लंड को अपने दोनो हाथो से पकड़ कर, उस पर लेप लगा रही थी.........
........तभी एक औरत मठ के अँदर आती है......और बोली- बाबा बाहर एक औरत आयी है, कह रही है की वो ठाकुर की पत्नी है!
चामुडां......ये सुनकर अपने चेहरे पर एक हंसी फैल जाती है , और बोला
चामुडां - शिकार ख़ुद ब ख़ुद ज़ाल में फसने आ गया......जाओ भेज दो उसे|
कुछ देर बाद.......रेनुका मठ के अँदर घुसती है| तब तक चामुडां अपना वस्त ठीक-ठाक कर लेता है.......रेनुका को देखकर चामुडां ने, मंदा को जाने का इशारा कीया! मंदा और वंहा खड़ी औरते चामुडां का इशारा पाते ही.....मठ से बाहर चली जाती है|
चामुडां - आओ.........ठकुराइन। बैठो....
रेनुका चामुडां के कहने पर बैठ जाती है|
चामुडां - ठाकुर से नही हो पाया तो, उसने तुम्हे भेज दीया ......संकीरा के रहस्यो के बारे में जानने के लीये**
रेनुका अपनी साड़ी का पल्लू हल्का सरका देती है, जीससे उसकी चुचीयों का कुछ हीस्सा जो ब्लाउज़ के बाहर नीकले हुए थे......वो चामुडां को दीख सके!
रेनुका - नही बाबा, मेरा यंहा आने का ठाकुर से कोई मतलब नही है| मैं तो यहां अपने खातीर आयी हूं.......क्यूकीं संकीरा का अमृत जल मुझे कीसी भी हाल में चाहीए?
चामुडां ने रेनुका द्वारा गीराया हुआ साड़ी का पल्लू से वो भांप गया था की ये, साली छीनाल है!
चामुडां ने अपनी मजबुत जांघ आगे करके उसपर से , लाल वस्त्र हटा देता है| जीससे उसकी बालो से लदी जांघ पर रेनुका की नज़र पड़ती हे!
चामुडां ने अपने जाघं को जोर से थपथपाते हुए बोला-
चामुडा - आ जाओ......ठकुराइन मेरी जांघ पर बैठ जाओ......फीर बात करते है|
रेनुका तुरतं उठ कर खड़ी हो जाती है.....और जा कर चामुडां के जांघ पर बैठ जाती है|
चामुडां के जाघ पर जैसे ही......ठकुराइन की गरम गांड पड़ती है.....चामुडां के मुह से एक मादक आह नीकल जातीहै|
चामुडां - ठकुराईन......मुझे संकीरा के अमृत जल के लीये, तुम्हारी जैसी गरम औरत की ही जरुरत थी! लेकीन संकीरा का अमृत जल पाना इतना आसान नही है........उसके लीये तुम्हे........बहुत बलीदान करना पड़ेगा|
और ये बोल कर चामुडां, ठकुराईन के कमर पर अपने हाथ के पंजो से सहलाने लगता है|
रेनुका - मैं अमृत चल के लीये कुछ भी.....बलीदान कर सकती हूं!
चामुडां ने धिरे-धिरे अपना हाथ.....रेनुका की गांड पर ले जाकर सहलाने लगा......
चामुडां - ये कोइ ऐसा-वैसा बलीदान नही है, बल्की , इसमें तुम्हे अपने बेटे की बली चढ़ा कर.....मेरे साथ संभोग करना होगा|
चामुडां की ये बात पर.......रेनुका ने कहा-
रेनुका - थोड़ी देर हो गयी बाबा........आज सुबह ही......मैने अपने बड़े बेटे को जान से मार दीया.......पहले पता होता तो बचा कर रखती.......अब तो मेरा एक ही बेटा है! और मैं उससे बहुत प्यार करती हूं!
चामुडां - सोच लो ठकुराईन, एक बार संकीरा का अमृत जल पीने के बाद.......तुम हमेशा के लीये जवान हो जाओगी!
रेनुका अपनी गांड मटकाते हुए चामुडा के करीब आकर ....फीर से उसके जांघ पर बैठते हुए बोली-
रेनुका - कब करना है.......ये सब!
चामुडां जैसे ही......ये सुनता है,वो रेनुका को जोर से अपनी मजबुत बांहो में खीच के भर लेता है.......रेनुका कीसी बच्ची की तरह चामुडां के बांहो में सीमट कर रह गयी!
चामुडां - कल रात को.....
रेनुका - ठीक है.......आपका बली का बकरा और आपकी ये बकरी हाज़ीर रहेगी......और ये कहते हुए वो अपने आपको चामुडां से छुड़ाते हुए बोली......अपनी बेसब्री बचा कर रखीये, जो भी करना है कल कर लीजीयेगा!
चामुडां रेनुका को अपनी बांहो के कैद से आज़ाद कर देता है........और एक ज़हरीली मुस्कान उसके चेहरे पर फैल जाती है!
००००रेनुका चामुडां के मठ से नीकल कर सीधा हवेली आ जाती है०००
रेनुका जैसे ही अपने कमरे के नज़दीक पहुचतीं है.........उसने चंपा को ठाकुर के कमरे के अंदर जाते हुए देखा......वो समझ गयी की जरुर ठाकुर ने चंपा को चोदने के लीये बुलाया है|
चंपा - कहीये.......मालीक क्यूं बुलाया है?
ठाकुर अपने बीस्तरे पर लेटा हुआ था.....उसके बदन पर सीर्फ एक तौलीया था| ठाकुर के सीने पर गुच्छेदार बाल देख कर , चंपा की बुर फड़कने लगी|
ठाकुर - दरवाजा बंद कर दे......और अपनी साड़ी उतार कर आ......जा बीस्तर पर!
ये सुनकर चंपा मस्त हो जाती है.........उसके चेहरे पर एक हसी बीखर जाती है|
॥ चंपा दरवाजा बंद करके .......अपनी साड़ी उतार कर एक दम मादरजात नगी हो जाती है!
ठाकुर ......ने एक सीगरेट जला कर उसका कश लेने के बाद.......चंपा की मदमस्त बदन को नीहारने लगता है|
ठाकुर ने अपने मुह से धुंए को हवे में छोड़ता हुआ.......अपनी तौलीये को नीकाल कर झट से अलग कर देता है|
ठाकुर का 7 इंच का लंड ......हवा में मुडीं उपर कीये......खड़ा था.....जीसे देखकर चंपा से रहा नही गया और वो कुदकर बीस्तर पर चढ़ जाती है............
कहानी जारी रहेगी.........
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चंपा ......अपनी मुट्ठीयों में ठाकुर के लंड को पकड़ लेती है। चंपा की मुट्ठीयों में ठाकुर के लंड की नसे जैसे फटने लगती है।
चंपा - बहुत.......मस्त लंड है मालीक आपका! देखो ना कैसे फड़फड़ा रहा है....ये!
ठाकुर ने .......बीना कुछ बोले, चंपा के बालो को अपने मुट्ठीयों में पकड़ कर उसका ......सर अपने लंड पर झुका देता है, और बोला-
ठाकुर - ज्यादा नाटक मत कर साली......अपना मुह खोल, और चुस जल्दी!
.....चंपा ने अपने होठ को थोड़ा सा खोलकर......ठाकुर के लंड के सुपाड़े पर एक चुम्बन दे देती है|
ठाकुर - आ.......ह, काश ऐसे ही कज़री.....मेरे लंड को पकड़ कर चुसती!
चंपा.......ने ठाकुर का पूरा लंड अपने मुह मे, धिरे-धिरे उतार लेती है| चंपा के मुह की गरमी पाकर......ठाकुर की आंखे बंद होने लगती है!
......चंपा बड़े प्यार से ठाकुर के लंड को अपने मुह में लेकर चुसने लगती है!
चंपा ठाकुर का लंड चुसते हुए.....अपनी नज़र ठाकुर की तरफ डाली तो......देखा ठाकुर अपनी आंखे बंद कीये.....लंड चुसवाने का मज़ा ले रहा था......!
चंपा के चेहरे पर.........एक मुस्कान फैल जाती है! उसने ठाकुर के लंड के सुपाड़े को अपने दात से हल्का सा काट लेती है|
ठाकुर - आह.......साली, मज़ा आ गया! ऐसे ही चुसेगी तो.....तुझे अपनी रंडी बनाकर रखुगां!
"*चंपा ने एक बार फीर......ठाकुर के लंड को पूरा अपने गले तक उतार लेती है! जीससे ठाकुर मस्त हो जाता है!
........कमरे में बीस्तर पर ठाकुर नंगा लेटा.....था| और चंपा अपनी गांड उठाये ठाकुर के लंड को चुस रही थी......वाकयी में क्या मस्त नज़ारा था!
चंपा - मालीक........कैसा चुस रही है , आपकी रंडी?
ठाकुर - पुछ मत.......चंपा। बहुत मज़ा आ रहा है......चुसती रह.......एक बार तो अपने लंड का पानी तुझे पीलाउगां.....जल्दी-जल्दी चुस और नीकाल कर पी जा !
इतना सुनते ही, चंपा ने ठाकुर के लंड को जोर-जोर से चुसने लगती है......ठाकुर की मज़े से हालत खराब होने लगती है!
ठाकुर - आह.......कुतीया, साली.....कीतना मस्त चुसती है.....नीचोड़ कर पूरा पानी नीकाल ले!
......चंपा ने अपने लंड चुसने की गती और तेज कर देती है.....तभी अचानकर से ठाकुर ने चंपा का बाल पकड़ कर अपने उपर खीचं ले ता है!
और चंपा की बड़ी-बड़ी चुचींयो को अपनी हथेलीयों में भर कर दबाने लगता है|
चंपा- आ.........ह मालीक धी......रे! मेरी चुचींया .......आह......आह!
ठाकुर ने झट से चंपा को नीचे.....कर के उसके उपर आ जाता है.......और चंपा के चुचीयों को एक-एक करके बुरीतरह चुसने और काटने लगता है!
चंपा दर्द और मजे से जोर-जोर चील्लाने लगती है.....
चंपा - आ.......आ......मालीक.......और......जोर से.......चुसो,
और ये बोलते हुए चंपा ने अपनी दोनो टागें....उठा कर ठाकुर के कमर पर लपेट लेती है!
चंपा इतनी जोर-जोर से चील्ला रही थी की.....उसकी आवाज़ कमरे के बाहर तक साफ सुनायी दे रही थी......
बाहर खड़े नौकरो का लंड भी इतनी मस्त आवाज़ सुनकर खड़ा होने लगा!
अरे.......यार, रामू......! आज तो लगता है....चंपा की ठाकुर साहब ज़म कर ले रहे है!
सही कहा हीरालाल तुमने......सुन नही रहा तू, कैसे चील्ला रही है.....कुतीया की तरह!
ये बोलकर दोनो हसने लगते है.......! तभी वहीं पर हवेली का झाड़ू पोछा करने वाली शोभा....अपने हाथो में बाल्टी ले कर आ जाती है!
शोभा को देखकर ......रामू और हीरा अपने लंड सहलाने लगते है!
शोभा भी जब चंपा की चीखे सुनती है तो.....वो हीरा से बोली-
शोभा - क्या हुआ हीरा.? ये कौन गला फाड़ कर चील्ला रही है?
हीरा - आज ठाकुर साहब.......चंपा की फाड़ रहे है.......शोभा! वही चील्ला रही है|
हीरा की बात सुनकर.......शोभा शरमा जाती है......! शोभा को शरमाते देख, रामू ने मौके का फायदा उठाते हुए बोला|
रामू - काश हम भी कीसी की फाड़ सकते!
रामू की बात सुनकर 35 साल की शोभा.....शरम से लाल हो जाती है! वो कुछ बोली नही..... वो बाल्टी को जमीन पर रख कर.....अपनी साड़ी को घुटनो तक उठा कर नीचे ज़मीन पर बैठ जाती है!
और बाल्टी में से पोछा नीकाल कर.....फर्श को साफ करने लगती है!
हीरा और रामू ने शोभा की गोरी टागें देखते ही.....मस्त हो जाते है!
***आह.......मालीक.....अब नही रहा जाता! ....डाल दो अपना लंड...... चंपा की ये आवाज़ जैसे ही शोभा के कानो में पड़ती है......वो दंग रह जाती है! उसने अपनी तीरछी नज़र से रामू......और हीरा को देखा तो......वो दोनो पतलून के उपर से ही अपने लंड को मसल रहे थे.......और उसकी तरफ ही देखकर मुस्कुरा रहे थे|
चंपा की मदमस्त चीखे.....और पास में खड़े दो मर्द जो उसके सामने ही अपना लंड मसल रहे थे.......शोभा के अँदर की औरत को जगाने लगे थे.......!
ठाकुर ने चपां की चुचीयों की हालत खराब कर दी.......जगह- जगह पर चंपा की चुचींयो पर लाल नीशान पड़ गये थे!
ठाकुर ने झट से......चंपा को कुतीया बना दीया......और चंपा की बुर में.......अपना लंड एक झटके में पूरा अँदर तक उतार दीया!
......चंपा जोर से चील्लाई......!
चंपा - आ.....इइईईईईईईईई........म........र ग.....यी, मा......ली....क! आ........ह नीकाल लो......माली......क । ब.......हुत मोटा है......आपका!
चंपा की इस आवाज़ ने.......शोभा को अँदर तक हीला दीया......चंपा की चीखे, शोभा के बदन को गरम करने लगी......उसके हाथ फर्श पर चलते-चलते रुक गये! और उसका गला सूखने लगा! शोभा की बुर में हलचल मचने लगी.......और रामू और हीरा भी उस मदमस्त चीख को सुनकर अपना लंड और जोर से मसलने लगे!
ठाकुर ने चंपा की गांड पर जोर का थप्पड़ मार......और चंपा की कमर पकड़ कर अपनी गांड तक का जोर लगाकर अपना......लंड चंपा के बुर में पेलने लगा!
चंपा......छटपटाने लगी.......और अपना गला फाड़ कर चील्लाने लगी......ठाकुर ने चंपा की गांड पर जोर -जोर के थप्पड़ बरसाते हुए.....उसे कीसी कुत्ते की तरह चोदने लगा!
चंपा - आ......ईईईईई.........ईईईईईई........मां| छो.........ड़ दो, मा........लीक.........मर जाउगीं!
गांड पर पड़ रहे थप्पड़ और चंपा की चीखो की आवाज़ .........शोभा के बदन में अगांरे फोड़ने लगे!!
ठाकुर - चुप साली रंडी.........मादरचोद, इतनी कसी - कसी बुर है तेरी, मज़ा आ रहा है.......
चंपा - आ........ह........मालीक........थो......ड़ा॥ धीरे.......चो.......दो!
ठाकुर की गालीयाँ.........सुनकर रामू और हीरा का लंड झटके मारने लगा........और शोभा बेचारी का तो पूछो ही मत!
अब तक ठाकुर ने .........चंपा को 10 मीनट तक जानवरो की तरह चोदा.......चंपा बीस्तर पर छटपटा रही थी......चंपा दर्द सहन नही कर पा रही थी......वो अपना सर कभी इधर झटकती कभी उधर......कभी अपने दोनो हाथ रख कर कुतीया बन कर छटपटा कर चील्लाती तो कभी अपना सर नीचे बीस्तर में गाड़ कर अपनी मुट्ठी में चादर पकड़ कर! लेकीन ठाकुर को उसको छटपटाना देख.......उसके बद न में और जोश भर देता! और वो चंपा के कमर को पकड़े ताबड़ तोड़ झटके मारने लगता!
चंपा तो अब यही चाहती थी की.........कीसी तरह ठाकुर का पानी नीकल जाये........शायद चंपा की भगवान ने सुन ली.......ठाकुर गीनगीनाता हुआ अपने धक्के तेज कर दीया.......और तीन-चार धक्के जोर का मार कर चपां का बाल पकड़ कर.......जोर से खीच कर उसकी पीठ को अपने सीने से लगा लीया!
चंपा मारे दर्द के रोने लगी........और ठाकुर उसकी चुचीयां दबाते......अपने लंड का पानी चंपा के बुर में पूरा उड़ेल दीया!
........चंपा का रो.....रो कर बुरा हाल हो गया था......शायद उसकी बुर अभी तक पूरी तरह से खुली नही थी.......इसी लीये उसे आज चुदाई में मज़े से ज्यादा दर्द का सामना करना पड़ा!
ठाकुर अपना पूरा पानी चंपा के बुर में छोड़ने के बाद.......चंपा को बीस्तर पर ठेल देता है!
चंपा पेट के बल बीस्तर पर गीर जाती है.......वो अब भी सीसक रही थी!
ठाकुर ने चंपा के गांड पर थप्पड़ जड़ते हुए बीस्तर पर से खड़ा हो गया! और एक सीगरेट जला कर कश लेते हुए चंपा के बगल मे लेटते हुए बोला-
ठाकुर - आज तुझे चोदने में बहुत मज़ा आया चंपा रानी......!
चंपा सरक कर ठाकुर के सीने पर अपना सर रख देती है......और ठाकुर के गुच्छेदार सीने के बालो में अपनी उगंलीया घुमाती हुई बोली-
चंपा - आपको तो मज़ा आया.......पर मेरी तो जान नीकाल दी......कीसी कुत्ते की तरह चोद रहे थे......बेरहमीं से!
ये सुनकर ठाकुर.......चंपा का बाल पकड़ कर जोर से खीचता है.......जीससे चंपा की चीख नीकल जाती है!
ठाकुर - तूझे कुत्ते की तरह चोदा या घोड़े की तरह चोदा रे कुतीया!
चंपा (कराहते हुए बोली)- घोड़े की तरह चोदने के लीये घोड़े जैसा लंड होना चाहीए ......मालीक! आपका भी बड़ा है......लेकीन घोड़े जैसा दीखना भी तो चाहीए!
चंपा की बात ठाकुर को लग गयी.......उसने चंपा को खीच कर एक चाटा मारते हुए बोला-
ठाकुर - साली......इतने लंड में ही कुतीया की तरह चील्ला रही थी! और घोड़े जैसा लंड लेगी! चल जा.......मेरे लीये कुछ खाने को ला......मादरचोद!
ठाकुर कीबात सुनकर , चंपा बीस्तर पर से उठ जाती है! और अपनी साड़ी पहन कर भचक- भचक कर कमरे से बाहर जाने लगती है!
चंपा की बीगड़ी हुई चाल देख कर ठाकुर ने कहा-
ठाकुर - चाल तो ठीक कर ले.....जानेमन!
चंपा ने पीछे मुड़ कर ठाकुर को देखा और बोला-
चंपा - ऐसे चोदोगो तो.......चाल तो बीगड़ेगी ही ना!
ये कहकर चंपा कमरे के बाहर नीकल जाती है! चंपा जैसे ही सीढ़ीयों से नीचे उतर रही थी! शोभा की नज़र चंपा पर पड़ती है.....चंपा ठीक से चल नही पा रही थी......चंपा की चाल देखकर शोभा समझ जाती है.......की ठाकुर साहब ने इस कुतीया की जम कर मारी है!
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**विधायक के आदमी पप्पू के कनपटी पर बंदूक लगा देता है........और उसे बाहर ले जाकर गाड़ी मेँ बैठने को बोलते है!
कज़री ने देखा की......विधायक भी साथ में था! और रज्जो भी......कज़री समझ गयी की ज़रुर कुछ गड़बड़ है!
**जैसे ही विधायक की गाड़ी...चली, कज़री भी भागते हुए.....उस गाड़ी का पीछा करने लगती है|लेकीन कज़री बेचारी कहां तक पीछा करती......कुछ ही समय में विधायक की गाड़ी कज़री के नज़रो से......ओझल हो जाती है! लेकीन फीर भी कज़री अभी भी उस गाड़ी का पीछा कीये.....आगे बढ़ी जा रही थी!
कज़री.....भाग - भाग कर थक चुकी थी.....और वो गांव से काफ़ी दूर भी आ चुकी थी!
कज़री भागते-भागते एक मोड़ पर आकर खड़ी हो गयी! जहां से दो रास्ते गुज़रे थे!
वंहा पर दो सड़के दो दीशाओं में.......घुमी थी!
कज़री परेशान हो गयी......उसे कुछ समझ में नही आ रहा था की......आखीर विधायक पप्पू को लेकर कीस रास्ते गया होगा!
*कजरी के बदन पर पसीने ऐसे चढ़ गये थे, मानो वो नहा कर अभी-अभी आयी हो!
लाचार कजरी को कुछ समझ में नही आ रहा था.....तभी उसकी नज़र बांये तरफ मुड़ने वाली सड़क पर पड़ी.....उस सड़क के कीनारे थोड़ा सा कीचड़ था! और उसी कीचड़ में गाड़ी के पहीये का नीशान उसे दीखा!
.......कज़री को समझते देर नही लगी की, जरुर विधायक इसी रास्ते से गया होगा.....लेकीन ये रास्त तो जंगल की तरफ जाता है.....लेकीन फीर कजरी ने अपनी हीम्मत बांध कर खुद से बोली - मुझे कीसी भी हालत में ये पता करना होगा की.....विधायक ने पप्पू के सीर पर बंदूक तानते हुए ॥ उसे गाड़ी में बीठा कर क्यूं ले गया?
*"और यही सोचते हुए कज़री.....उस रास्ते पर अपनी कदम तेजी से बढ़ा देती है|
**रीतेश.....अजय के साथ अपने घर पहुचं कर....अपनी मां को आवाज़ लगता है|
लेकीन उसे उसकी मां की .....कोइ आवाज़ नही आती!
रितेश - अजय.....तू जरा आगंन और छत पर देख.....मां वहीँ होगी! तब तक मैं पैसे नीकाल लेता हूं|
अजय - ठीक है!
'ये कहकर अजय, आंगन की तरफ चल देता है! वो आंगन पहुचं कर कज़री को आवाज़ लगाता है.....लेकीन कज़री कहीं भी नही दिखती , अजय छत की तरफ चल देता है! छत पर पहुचं कर भी उसे कज़री वहा नही दिखी००
अजय छत से उतर कर सिधा रीतेश के पास आता है.....और बोला!
अजय - भाई कज़री काकी कहीं नही दीखी!
रीतेश - अच्छे से देखा था की नही?
अजय - यार ......आवाज़ भी लगायी थी!
रीतेश - फीर कंहा जा सकती है....चल थोड़ा बाहर देखकर आते है!
........अजय और रीतेश घर से बाहर नीकल कर कुछ गांव के लोगो से पुछता है.....लेकीन कीसी को कुछ नही पता था , और ना ही कीसी ने कज़री को देखा!
रीतेश को अपनी मां को ढ़ुढ़ंते हुए काफी समय हो गया......तो वो थोड़ा घबराने लगा! वो भरी धुप में एक पेड़ के छांव में अजय के साथ खड़ा हो गया!
तभी एक गांव का चरवाहा......अपनी बकरीया लीये आ रहा था..... वो जैसे ही रीतेश के पास पहुचां तो बोला!
..........अरे रीतेश बेटा.....तेरी मां ठेरी के जंगल की तरफ क्यूं भागते हुए जा रही थी!
ये सुनकर रीतेश के कान खड़े हो गये......!
रीतेश - दादा आपने......सच में मेरी मां को उधर जाते देखा......!
............अरे हां बेटा.........!
ये सुनकर.......रीतेश अजय की तरफ देखा॥ और फीर दोनो रास्तो पर अपने कदम काफी तेजी के साथ , बढ़ा कर भागने लगते है!
**कज़री अब तक बहुत थक चुकी थी, तेज धुप में भागते -भागते कज़री का ब्लाउज़ पसीने से भीग चुका था.......वो एक पेड़ की छाव में रुक गयी......ठंढ़ी हवाये जब चली तो उसके पसीनो को सुखाते हुए.....उसके थक चुके शरीर में उर्जा का प्रवास होने लगा!
थोड़ी देर कज़री उस पेड़ की छांव में रुकी....लेकीन कुछ समय बाद वो फीर से उठ"कर चल पड़ी!!!
कज़री के लीये वो जंगल का रास्ता ऐकदम नया था......वो कुछ दुर आगे चलने के बाद उसे खंडहर दीखाई पड़ा!
वो हैरान वस अपने कदम धिरे-धिरे उस खंडहर की तरफ बढ़ा दी.......!
कज़री......जैसे ही कुछ दूर आगे गयी! दो लोग पेड़ पर से छलांग लगा कर कज़री के आगे खड़े हो जाते है!
**कज़री उन दो लोग को देखकर डर जाती है**
उसमें से एक आदमी ने अपनी कमर पर बंधे रुमाल में दबी चाकू को नीकाल कर.....कज़री के आगे तानते हुए बोला-
.........कौन हो तुम.......और यंहा क्या कर रही हो!
कज़री तो मानो कीसी मुर्ती की तरह खड़ी रह गयी.....उसके मुह से कुछ आवाज़ ही नही नीकल रहा था!
उस आदमी की नज़र.......कज़री के मासुम और खुबसुरत चेहरे को देखकर.....जैसे वो भी कज़री में खो सा गया!
**उसकी नज़र कज़री के खुबसुरत चेहरे से होते हुए......जैसे ही कज़री के ब्लाउज़ पर पड़ी, तो उसके तो होश ही उड़ गये! कज़री का ब्लाउज़ पूरा पसीने से भीग गया था......और काले रंग की ब्लाउज कज़री की चुचींयो से एकदम चीपक गया था......कज़री की साड़ी भागने की वज़ह से अस्त - ब्यस्त हो गयी थी! और कज़री के ब्लाउज़ का एक बटन भी खुल गया था!! और उस आदमी को कज़री के ब्लाउज़ के बटन की जगह से जन्नत दीख गया.....उस आदमी का गला सुख चला.....वो अपने सुखे होठो पर अपनी जीभ फीराने लगा!!!
कज़री.......देखो मैं रास्ता भूल गयी हूं!! मुझे गांव की तरफ जाना था.....और मैं गलती से इधर आ गयी!!
***कज़री की बात का दोनो पर कोई असर नही हुआ** कज़री ने उन दोनो को गौर से देखा तो वो दोनो की नज़र उसके "* चुचींयो पर और एक की उसके कमर पर थी¡!
॥ कज़री ने झट से अपनी अधखुली चुचीयों और अपनी बीज़ली गीरा देने वाली गोरी और पतली कमर को अपने साड़ी से ठक लीया!!!
वो दोनो तो जैसे.........नीदं से जाग गये हो!! उनमे से एक ने कहा!!
........यार हमने ऐसा क्या पुन्य कर दीया की , हमारे सामने सामने अप्सरा आ कर खड़ी हो गयी!!!
उनकी बात सुनकर कज़री......थोड़ा सकपका गयी......उसने अपने कापंते हुए लफ्ज़ो में कहा-
कजरी - देखीये.....आप लोग मुझे जाने दीजीये....मैं रास्ता भूल गयी थी!! और यंहा गलती से आ गयी!
वो दोनो आदमीयों में से......एक ने बोला- कैसे जाने दे....हमने आज तक तुम्हारी जैसी खुबसुरत औरत सपने में भी नही देखा!!! देखते ही तुम्हारी खुबसुरती के कायल हो गये है!! माशाअल्लाह: क्या जीस्म पाया है तुमने.....हमारी तो देख कर ही पसीने छुट गये!
......कज़री के चेहरे पर ......परेशानी के बादल मड़राने लगे!!! वो कुछ बोलती उससे पहले ही वो दोनो आदमी कज़री की तरफ़ बढ़े--
ये देखकर कज़री.....मारे डर के अपने कदम पीछे लेने लगी!! वो दोनो कज़री की तरफ बढ़े आ रहे थे** कज़री के कदम एक पेड़ से टकरा गये......और वो गीरने को जैसे ही हुई उसे कीसी मजबुत बांहो ने थाम लीया..........
कहानी जारी रहेगी ...........
manmohak update mitrअपडेट***21
"***कज़री को जैसे ही.......कीसी मज़बूत बांहो का सहारा मीला!! उसने अपनी नज़र उपर कर के देखा, तो उसे सहारे से पकड़ने वाला कोयी और नही बल्की......रीतेश ही था!!
"कज़री रीतेश को देखते ही.....रोने लगती है!! और रीतेश के सीने से चीपक जाती है......मानो कज़री को अपनी ज़िदगीं जैसे मील गयी हो!
......कज़री को रोता देख.....रीतेश के चेहरे पर गुस्से के बादल मड़राने ....लगे!!
वो दोनो आदमी.......रीतेश को देखकर रुक जाते है!! और एक ने बोला-
.......अबे तू कौन है बे? जो यहां मरने आ गया!!
रीतेश ने अपनी .....आंखे गुस्से से उन दोनो आदमीयो की तरफ घुरते हुए.......बोला-
रीतेश - पता नही तू मुझे मार पायेगा की नही.....दम है तो मार ले!! क्यूकीं मैं तूझे नही छोड़ने वाला हूं.......!!
"रीतेश की बात सुनकर........वो दोनो हसने लगते है!!
उन लोगो को हसता देख......पास में खड़ा अज़य ने बोला!!
अजय- माना की हसनां सेहत के लीये अच्छा होता है....... लेकीन उस समय नही जब 'जान आफ़त में हो!!
अज़य की बात सुनकर.....वो दोनो ने अपने "चाकू नीकाल लीये.....और फीर बोले-
.......तो फीर ठीक है.....देखते है, की कीसकी जान आफ़त में है! हमारी या फीर तुम्हारी.....
ये कहकर......वो दोनो रीतेश की तरफ बढ़े! और जैसे ही वो दोनो .....थोड़ा करीब आये!! रीतेश ने अपना हाथ उपर कीया......और झट से पेड़ की टहनी को झटके से तोड़ते हुए......एक के सर पर दे मारा!! वो बेचारा ज़मीन पर गीरते ही अपना सर पकड़ कर , कलथने लगा!!
उसको कलथता देख......दुसरा आदमी, लम्बी ले लीया......वो तुरतं अपना चाकू वही फेक कर.....भाग गया!
ज़मीन पर गीरा हुआ......आदमी!! कलथ -कलथ कर बेहोश हो गया.....
रीतेश (गुस्से में) - मां तू यहा क्यूँ आयी है? तूझे पता है की, हम कीतना परेशान हो गये थे!! अगर आज़ कुछ हो जाता तूझे तो......!
रीतेश बीना रूके.....एक सासं में ही गुस्से से बोला!!
कज़री.....रीतेश को प्यार भरी नज़रों से देखते हुए बोली-
कज़री - तेरे होते हुए.....भला मुझे क्या हो सकता है!!
और इतना कहकर......कज़री एक बार फीर....रीतेश के सीने से लग जाती है!! रीतेश अपना हाथ कज़री के पीठ पर प्यार से सहलाते हुऐ बोला-
रीतेश - अच्छा........ठीक है, लेकीन तू यहां क्यूं आयी थी?
कज़री.....रीतेश के सीने से अलग होते हुए....सारी कहानी बताती है!! जीसे सुनकर रीतेश ने फीर गुस्सा होते हुए बोला-
रीतेश - अरे.......मा, तूझे पता नही है!! ये पप्पू ठाकुर और विधायक के लीये ही काम करता है!! और तो और .......पप्पू ने ही अपने गांव के दरोगा को जान से मारा है! मैने और अज़य ने अपनी आँखो से देखा है.......
पास में खड़ा अजय भी रीतेश की बात पूरी होते ही बोला-
अजय - हां काकी....रीतेश सच कह रहा है!!
उन दोनो की बात सुनकर.......कज़री ने कहा-
कज़री - मुझे ये तो नही पता था की, दरोगा का खून पप्पू ने ही कीया है| लेकीन इतना ज़रुर पता था की.....पप्पू ठाकुर के लीये काम करता था तो......जरुर वो बुरे काम ही करता होगा!!! लेकीन शायद तूझे सच्चाई नही पता है!!
.........कज़री की बात सुनकर रीतेश और अजय दोनो ही.....असंमजंस में पड़ जाते है|
रीतेश - सच्चाई.......?
अजय- सच्चाई..........?
कज़री - हां.......सच्चाई**
रीतेश - कैसी सच्चाई मां ?
कज़री - पप्पू तेरा मौसेरा.......भाई है!!
ये सुनते ही रीतेश और अजय दोनो ही चौकं जाते है.......!
रीतेश - भ........भाई?
कज़री - हां......बेटा!!
रीतेश - मां ये क्या बोल रही है तू?
.........धांय.......धांय........गोलीयों की आवाज़ गुजीं......!!
गोली की आवाज़ सुनकर रीतेश , अजय और कज़री तीनो चौक जाते है! सारे पंच्छी.....पेड़ो पर से उड़ कर गोलीयों की आवाज़ से......चील्लाते हुए मडंराने लगते है!! शायद ये गोलीयों की आवाज़ उन पंछीयों के लीये नया नही था.......लेकीन रीतेश, अजय और कज़री के तो मानो होश ही उड़ गये!!
कज़री.......गोलीयों की आवाज़ सुनते ही रोने लगती है......और बोली-
कज़री - मार दीया.....हरामीयों ने!!
रीतेश कज़री को रोता हुआ देख बोला-
रीतेश - अजय तू मां.....को ले कर जा!! मैं जाकर देखता हुं की माज़रा क्या है?
अज़य - नही......रीतेश, तू अकेला नही जायेगा मैं भी चलता हू!! काकी को भेज देते है......घर पर|
ये सुनकर कज़री बोली-- नही......मैं भी चलूगीं!!
रीतेश - नही......मा, वहां बहुत खतरा है....तू घर पर चली जा!!
लेकीन कज़री नही मानती.......और साथ चलने की ज़ीद करने लगती है|
थक हार कर ......रीतेश ने कहा- अच्छा ठीक है!!
रीतेश ने.......ज़मीन पर गीरे हुए आदमी के हाथ से! चाकू लेते हुए......उस तरफ बढ़ चलता है.....जीस तरफ गोलीयों की आवाज़ सुनायी दी थी!!
......लगभग दस मीनट चलने के बाद......अजय ने रीतेश को दुसरी तरफ दीखाते हुए इशारा कीया......!!
रीतेश ने उस तरफ देखा तो.......उसे एक पुराना टुटा-फूटा खंडहर दीखा!! और उसके दरवाजे पर दो लोग......अपने हाथो में बंदूक लीये खड़े थे!!
रीतेश - हमें पीछे के रास्ते से चलना होगा.....!
और फीर तीनो.......खंडहर के पीछे की तरफ चल देते है!!
जल्द ही वो खंडहर के पीछे आ जाते है.......रीतेश ने थोड़ा इधर-उधर देखा !! उसे एक टुटी हुई खीड़की दीखाई देता है!!
रीतेश उस खीड़की के पास पहुचं कर .....चुपके से अँदर देखता है तो, दंग रह जाता है|
" पप्पू के दोनो हाथ.....रस्सी से'बंधे थे| उसके पास में दो लोग बंदूके लीये खड़े थे!! उसने अपनी नज़र दुसरी तरफ कीया तो......उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी!!
उसने देखा.......विधायक एक कुर्सी पर बैठा था....और उसने अपनी जांघ पर रज्जो को बीठा रखा था......ये देख कर उसने अपनी नज़र खीड़की से हटाते हुए .....अपनी मां की तरफ करते हुए बोला-
रीतेश - मां ये रज्जो.....काक.....
रितेश और कुछ बोलता , इससे पहले ही कज़री बोली-
कज़री - ये.......पप्पू की सौतेली मां है|
रीतेश के लीये.......ये सब बाते चौका देने वाली थी.....!
रीतेश - सौतेली मां.......तो फीर असली....कौन?
कज़री - पप्पू की असली मां.......सुधा!!
कज़री की आखें.........फटने लगी.......ये देख कर रीतेश बोला-
रीतेश - हां......मां, सुधा.......
लेकीन तभी.....रीतेश अपनी मां का हाव -भाव देखते हुए, उसने उसकी नज़रो का पीछा करते हुए फीर से खीड़की के अँदर झाका तो देखा!!
एक औरत को दो लोग रस्सीयों में बांधे.....ले आते है!!
वो औरत......के बदन में जैसे जान ही न था, बेसुध बेचारी...रस्सीयों में बधीं कीसी लाश की तरह खड़ी थी!!
ये......देख कर कज़री की आंखे आसुओं से छलक जाती है!! रीतेश और अजय कुछ समझ नही पाते!!
रीतेश - मां......!
रीतेश कुछ बोलता......इससे पहले ही कज़री....रोते हुए बोली!!
कज़री - सुधा.....दीदी!! तेरी मौसी.....मुझे लगा था की....ये दरीदें दीदी को मार दीयें है, लेकीन इन लोगो ने तो दीदी.....को!!
और ये कहते हुए.....कज़री रोने लगती है!!
रीतेश अपनी मां की, हालत समझ जाता है और उसे अपने सीने से लगा लेता है......पल भर में रीतेश की पलकें भी भीग जाती है!!
.........आओ सुधा.......कैसा लग रहा है!! कोई तकलीफ़ तो नही है ना, यहां पर.....
ये आवाज़ सुनते ही....रीतेश एक बार फीर खीड़की से झांकने लगता है!!
विधायक......रज्जो की कमर को अपनी हथेलीयों से मलते हुए......और एक हाथ में सीगरेट का कश लगा कर धुएं को हवा में उड़ाते हुए फीर बोला!!
विधायक - अरे.......मैं तो भूल गया था की!! पीछले बीस सालो में.....तूने तो बोलना ही छोड़ दीया है.....लेकीन आज तू बोलेगी!! क्यूकीं आज तेरे लीये सबसे बड़ा दीन है!! पता है क्यूं..........क्यूकीं आज तू अपने बेटे से जो मीलने वाली है!!
विधायक की बात सुनकर..........सुधा का सर जो अभी कमजोरी के कारण नीचे झुका हुआ था.......बाल बीखरे हुए थे.....बदन पर एक मैली सी साड़ी थी.....जो जगह-जगह फ़टे थे!!
........उसने अपना सर.....बहुत धिरे-धिरे उठाते हुए.......धिमी गती में बोला......बे.......टा!!
विधायक - हां तेरा.......बेटा, पूरे 21 साल का हो गया है शायद, लेकीन अफसोस........इतने ही उम्र में मरेगा बेचारा!!
........इतना सुनते ही........सुधा.......विधायक के उपर झटके से अपने लड़खड़ाते हुए कदम बढ़ा कर......विधायक का गीरेबान पकड़ कर। चील्लाते हुए बोली-
सुधा - ....हरामी.......कुत्ते, मैं तुझे जीदां गाड़ दूगीं.......!
सुधा को तड़पते हुए देख......विधायक ने बोला-
विधायक - पहले.....अपने बेटे को तो बचा ले! देख कैसे पानी के लीये......तड़प रहा है!! जा उसे पानी पीला कर बचा ले!!
......इतना सुनते ही......सुधा ने अपनी नज़र पप्पू की तरफ घुमाया......पप्पू रस्सी में बंधा .....पानी.....पानी, बोले जा रहा था!! उसके शरीर और चेहरे पर घाव के नीशान थे!!
सुधा की आंखो में ममता के आंशू उमड़ गये.......मानो बरसो से प्यासी आंखो को आज..... सूकून और दील में राहत मील गयी हो!!
नज़रो की प्यास ही नही बुझ रही हो......मानो!!
सुधा ज़मीन पर रखे......पानी की बोतल की तरफ बढ़ती है.......और जैसे ही बोतल के नज़दीक पहुच कर उठाने की कोशीश करती है.........विधायक ने एक जोर का लात , बोतल पर मारी और बोतल लुढ़कता हुआ ........सुधा से काफी दूर चला जाता है|
........खाली हाथ लीये सुधा.......जमीन पर गीर जाती है......और रोने लगती है!! रोते हुए सुधा अपने दोनो हाथ जोड़ते हुए बोली-
सुधा - रहम.......करो विधायक!! तूने सब कुछ तो बर्बाद कर दीया है......मेरा!! कम से कम मेरे बेटे को तो.......बक्श दे!!
सुधा का.......इस तरह रो-रो कर गीड़गीड़ाते देख, रीतेश , कज़री और अजय के दील में जैसे तुफ़ान उठ गये हो......और आँखो से संमदर बहने लगा!!
विधायक - तू सीर्फ एक ही शर्त पर अपने बेटे की जीदंगी......बचा सकती है!! और मुझे क्या चाहीए ये तू अच्छी तरह से जानती है......!!
सुधा - हां......हां.......हां, तूझे मेरा जीस्म ही चाहीए ना!! कर ले जो भी करना है.....लेकीन मेरे बेटे को......बक्श दे!!
........इतना सुनते ही, विधायक खुशी से झूम उठता है........और रीतेश का पारा मानो आसमन को पार कर गया हो........!!
रीतेश अपने आशूंओ को पोछते हुए........गुस्से में उठा!! और खीड़की पर जोर का लात मारता है........खीड़की कयी हीस्सो में टुट कर , विधायक के पास जा कर गीरता है!!
विधायक.......चौक जाता है.....और जमीन पर पड़े टुटे हुए खीड़की को देखते हुए.......अपनी नज़र उपर करता है.......तो देखता है की, सामने !! रीतेश खड़ा है.......और उसकी आँखो में अँगारे भड़क रहे थे!!
विधायक के हाव-भाव बीगड़ चुके थे.......
विधायक - तू,!!
रितेश ने.......कहा तू नही.......तमीज में बात कर!! और ये कहते हुए रितेश ने अपना हाथ की मुट्ठी हवा में खीचते हुए......जोर का घुसां विधायक के नाक पर जड़ देता है!!
विधायक......धड़ाम से कुर्सी पर गीर जाता है!! और कुर्सी टुट जाती है.......
विधायक के दो आदमी......झट से रितेश के दोनो तरफ कनपटी पर बंदूक लगा देते है.......तब तक रीतेश अपने एक घुटने पर बैठते हुऐ अपने पतलून में से चाकू नीकाल कर.......घप्प......घप्प.....उन दोनो के पेट में घुसा कर चीर-फाड़ देता है!! वो दोनो तो जगह पर ही दम तोड़ देते है!!
तब तक एक ने और बंदूक ताना ही था की.....रीतेश गुलाटी मारते हुए......चाकू फेंक कर उस आदमी को मारा। और वो चाकू सीधा......जा कर उसके गले में घुस जाता है|
और झट से जमीन पर पड़ा हुआ बंदूक......उठा कर विधायक के कनपट्टी पर लगाते हुए बोला-
रितेश - उठ.......साले, कुत्ते!!
विधायक के कनपटी पर.......बंदूक सटा देख , विधायक के सारे आदमी.....अपनी-अपनी बंदूके नीचे फेकं देते है.!!
तभी.......अजय उन बंदूको को इकट्ठा कर लेता है|
सुधा..........कुछ समझ नही पाती, वो बस अपनी आंखे फाड़ कर रितेश को देखती हुई शायद यही सोच रही थी की, आखीर ये बहादूर लड़का है कौन? जो चंद लम्हो में ही.....विधायक के सारे घमंड को मीट्टी में मीला दीया.......
..........तभी एक आवाज़ सुधा के कानो में......पड़ता है!! वो आवाज़ जीसे सुने हुए उसे बीस साल हो गये थे.......वो प्यारी आवाज़ सुनते ही उसके.....हाथ के रोगंटे खड़े होने लगते है.......वो आवाज थी-'......दीदी.......!
***सुधा अपना सर धिरे-धिरे पीछे की तरफ घुमाती है.......और जैसे ही उसके नजरो के सामने कज़री का चेहरा दीखा.......वो फफक......फफक कर रो पड़ती है.......कज़री भी झट से सुधा को अपने गले से लगा लेती है!!
.......दोनो बहनो का मीलन देखकर, रीतेश और अजय के आँखो मेँ भी आंशू आ जाते है!!
विधायक - शाबाश.......मान गया तेरी बहादुरी को.......थोड़ा भी समय नही लगा तूने तो मेरा....तख्ता ही पलट दीया!!
विधायक के नाक से खुन बह रहा था!! और जैसे ही विधायक की आवाज सुधा के कानो में पहूचां......वो कजरी से अलग होते हुए !! रितेश की तरफ देखा और फीर कजरी की तरफ देखते हुए......अपनी एक उँगली रितेश की तरफ इशारा करते हुऐ पुछा-
सुधा - ये........
कजरी - रीतेश........मेरा बेटा?
.........इतना सुनते ही.......सुधा एक बार फीर रीतेश की तरफ देखती है.......जो अभी विधायक का गीरेबान पकड़ा था......ये देखकर उसकी आखें एक बार फीर भर आती है!!
विधायक - लेकीन तू अब कर भी क्या सकता है!! जेल में डालेगा.....विधायक हूं ......ऐसे छुट जाउगां.....ऐसे!!
रीतेश विधायक की बात सुनकर........अपनी आंखे बड़ी करते हुए, विधायक की आँखो में देखता हुआ बोला-
रितेश - तू......इतना मत सोच, ये.......कानून......वानून का लफड़ा में पालता ही नही.......!
ये सुनकर.......विधायक घबरा कर बोला-
विधायक - मतलब !
रितेश - यही की तेरी कहानी खत्म!!
ये सुनकर......विधायक रितेश के कदमो में गीर जाता है......और गीड़गीड़ने लगता है......लेकीन जब उसने देखा की, उसके गीड़गीड़ने का कोई फर्क रीतेश पर नही हो रहा है,तो.....
वो झट से कज़री की तरफ.......बढ़ा और उसके कदमो में गीरते हुए गीड़गीड़ा कर बोला-
विधायक - क...........कज़री, मु.........मुझे बचा ले.......तूझे तो पता है की........मैं तूझे कीतना चाहता हूँ॥
और गीड़गीड़ते हुए विधायक........जमीन पर गीरा हुआ चाकू अपने हाथ में लेकर.......
कहानी जारी रहेगी........
saloni update dostअपडेट****22
विधायक .......जैसे ही, बंदूक लेकर उठने की कोशीश करता है!! तभी एक गोली उसके सर के आर-पार हो जाता है*** और विधायक 'धड़ाम" से नीचे ज़मीन पर गीर जाता है!!
.........विधायक की हालत देख सब लोग अपनी नज़रें उठाते है, तो देखते है की......पप्पू के हाथ में बदूकं था......!!
विधायक की कहानी तो खत्म हो गयी थी.......बची रज्जो , उसको भी पप्पू मारने ही वाला था की.......उसकी मां सुधा ने रोकते हुए कहा-
सुधा - नही........बेटा, रहने दे.......औरतो को जान से नही मारते!!
सुधा की बात मानते हुए........पप्पू बंदूक ज़मीन पर फेंक देता है, और भाग कर अपनी मां को गले लगा लेता है!!
........सब के चेहरे पर खुशी थी, बरसो बाद एक बेटे को अपनी मां और एक मां को अपना बेटा जो मीला था!!
..........रीतेश और अजय अपने आँख के आंशू पोछते हुए अजय से बोला-
रीतेश - चल अजय......इस कुत्ते की लाश को ठीकाने लगा देते है!!
अजय - अरे भाई.......तुम भी क्या इस मादरचोद को.....
अजय इतना बोला ही था की......रीतेश ने अजय को बगल की ओर देखने का इशारा कीया......कहने का मतलब, सब यहां खड़े है और तू गाली दे रहा है......
अजय रीतेश का इशारा समझते हुए......दुसरी तरफ देखा तो सब उसे ही देख रहे थे!!
अजय शरमा गया.......और बोला-
अजय - हां.......तो नीकल गया मुहं से!! इस हरामी को देखकर!!
..........अजय की बात पर सब हंस पड़ते है......सुधा की भी हंसी नही रुकी और वो भी हसं पड़ती है!! बरसो बाद उसके चेहरे पर हसीं आयी थी......
अजय - अरे इस कुत्ते की लाश को भाई, तूम दो गज़ ज़मीन देना चाहते हो!!
रीतेश - तो फीर क्या करे....?
अजय .......विधायक के मृत शरीर को लात मारते हुए बोला-
अजय - फेंक देते है......पहाड़ी से नीचे .....नदी में!!
रीतेश - ठीक है........
उसके बाद.......रीतेश....अजय और पप्पू मीलकर सब की लाश को पहाड़ी के नीचे फेंक देते है!!!
और अपने घर की तरफ नीकल पड़ते है...........
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"***संकीरा पहाड़ी के मज़ींल के बीच एक घने जंगल में छोटा सा कबीला था!!
और इस कबीले में कुछ आदीवासी रहते थे!! और इस कबीले के सरदार जुम्मन साही एक पेड़ के नीचे.....बैठा था!!
**उसके आस पास सैकड़ो की संख्या में.....लोग खड़े थे!! उनके शरीर पर नाम मात्र का कपड़ा था.........!!
.....जुम्मन साही देखने में ही, खतरनाक लग रहा था!! बड़ी- बड़ी चौड़ी छातीया.......डाढ़ी-मूछ एक प्रकार से दानव ही लग रहा था!!
......उसके सामने एक आदीवासी......रस्सीयों में बधां था......और कुछ लोग अपने हाथो में भाला......लीये जोर से चील्ला रहे थे!!
तभी एक औरत ........दौड़ते हुए जुम्मन साही के पैरो में गीर गयी......और रोते हुए बोली-
...........सरदार ......दया करो.....छोड़ दो मेरे पति को.!!
जुम्मन साही......उस औरत को रोता देखा......जोर-जोर से हसां और बोला-
जुम्मन - माफी.........मैं उन लोग को कभी माफ नही करता , जो नेकी करना चाहते है!! और तेरे इस मरद ने तो........बली चढ़ने वाली बकरी को बचाने का प्रयास कीया!!
...........वो आदमी रस्सी से बधां हुआ ........बोला-
...........तू भी नेकी करना सीख, जुम्मन साही....नही तो एक दीन ऐसा आयेगा जब .....तेरी भी बली चढ़ेगी और उस समय तूझे बचाने वाला कोयी नही होगा!!
उस आदमी की बात सुनकर.......जुम्मन साही, आग बबूला हो गया.....वो पेड़ के बने हुए ओटले पर से उठा और अपना हाथ आगे करते हुए गुस्से में बोला-
जुम्मन - कोड़ा.......ला!!
जुम्मन की आवाज़ की दहशत से सारे आदीवासी सन्न हो कर खड़े हो जाते है!!
.......और तभी एक आदमी कोड़ा लाकर जुम्मन के हाथों में रख देता है!!
जुम्मन कोड़ा लेकर उसकी तरफ बढ़ा!! उस आदमी की औरत फीर से जुम्मन के पैरों को पकड़ कर रोने लगती है!!
ये देख जुम्मन फीर अपनी गुर्राती आवाज़ में बोला-
जुम्मन - क्या बात है......संपूरा? तेरी औरत तो कमाल की है.....मस्त चीज है, मेरा तो ध्यान ही नही रहा!!
जुम्मन की बात सुनकर.....संपूरा, अपने आप को छुड़ाने की कोशीश करता हुआ गुर्रा कर बोला!!
संपूरा - मेरी औरत को हाथ भी लगाया तो, तेरी खाल खींच कर रख दूगां ....जुम्मन!!
ये सुनकर .......जुम्मन जोर-जोर से हसंने लगा और बोला-
जुम्मन - तूने अपना कबीला तो बचा ही नही पाया.......और बात करता है की, तू अपनी औरत को बचायेगा!! बहुत अच्छा लग रहा है......सारड़ी कबीले का सरदार , आज मेरे सामने......रस्सीयों में बधां छटपटा रहा है!! अब वो दीन दुर नही जब........भींटा और तीमरा जैसे कबीलो को भी हांसील करने के बाद........मैं संकीरा तक पहुचं जाउगां!!
संपूरा - तू पागल हो गया है.......जुम्मन!! भींटा और तीहरा मेरे कबीले जैसा छोटा कबीला नही है.......जो तू उसे जीत लेगा!! अगर ऐसा करने का सोचा भी तो, जान से हाथ धो लेगा!!
संपूरा की बात सुनकर.......जुम्मन बोला!!
जुम्मन - अरे.......हट!! जुम्मन की नज़र जीस चीज पर पड़ती है, वो जुम्मन हासील कर लेता है!! तू अपनी जान की फीक्र कर ......!!
जुम्मन के पैरों में गीरी........सपूरां की औरत ! हाथ जोड़कर विनती करने लगती है की, वो संपूरा की जान बक्श दे!!
........उस औरत का गीड़गीड़ाना देख........
जुम्मन - जा.......इसकी जान बक्श दीया,
ये सुनकर संपूरा की औरत खुश हो जाती है......तभी!!
जुम्मन - लेकीन हर रोज़ ये मेरे सामने 20 कोड़े खायेगा.......तब जाकर मुझे सुकुन मीलेगा........|
ये कहकर.......जुम्मन ने अपने हाथ मे लीये कोड़े को.......एक आदमी की तरफ बढ़ाते हुए !! उसे 20 कोड़े लगाने को कहता है--
**वो आदमी कोड़ा लेकर संपूरा की तरफ बढ़ता है...... और वो संपूरा के नज़दीक पहुचं कर उस पर कोड़े बरसाने लगता है!!
..........हर कोड़े पर, संपूरा की चीख नीकल पड़ती......जीसे सुनकर संपूरा की औरत अपना सर नीचे कीये रोने लगती और जुम्मन खुश होता!!
.........करीब 20 कोड़े पड़ने तक.....संपूरा का दर्द से बुरा हाल हो गया......वो बेचारा दर्द ना सह पाने से.......बेहोश हो जाता है!!
जुम्मन - ले जाओ इसे.......और छोटी पहाड़ी के कारागार में डाल दो!!
और तभी जुम्मन पास में खड़ी कुछ औरतो को इशारा करते हुए उसकी औरत को ले जाने को बोला-
..........वो औरते संपूरा की औरत को लेकर चली जाती है, और कुछ लोग संपूरा को ले जाकर कारागार में डाल देते है !!
जुम्मन फीर से पेड़ की ओटले बैठ गया, तभी एक आदमी बोला-
............सरदार , करीब 100 लोग को बंदी बनाये है , और ये संपूरा के सैनीक है!! अब इनका क्या करना है?
जुम्मन कुछ बोलता......उससे पहले ही, संपूरा के सारे सैनीक उसके कदमो गीर जाते है........और जान की भीख मागने लगते है!!
.......जुम्मन अपनी डाढ़ी को सहलाते हुए, मुस्कुराने लगता है!! और अपने हाथ से ना मारने का इशारा करता है!! और बोला-
जुम्मन - तुम सब लोग आज से, हमारी सेना हो!!
......इतना सुनते ही संपूरा के सैनीक......जुम्मन की जय-जय कार करने लगते है!!
हालाकी उनकी भाषा कुछ हद तक अलग ही थी!!
जुम्मन .....एक नीहायती, घटीया और हैवान कीस्म का आदमी था....उसने अपने आदमीयों से कहा की, भीटां कबीले पर नज़र रखे.....और पता करे की उस कबीले का सरदार कौन है!! और उसकी सेना कीतनी है....और ये कहकर वो अपने कमरे में चला जाता है!!
...........शाम हो गयी थी.......बीच घने जंगल में जुम्मन के कबीले में......सब दीये जलाने लगे' कबीला प्रकाश की रौशनी में जगमगा गया, लेकीन तभी............तेज हवायें, चलने लगी!!
......चारो तरफ जंगल होने की वजह से.....हंवाये काफी ठंढ़ी हो गयी......बादल गरजने लगे......और आसमान से एक बूदं धरती पर टपका तो......देखते ही देखते बूदों की बारीश होने लगी!!
........संपूरा की औरत एक कमरे में बैठी थी, और कुछ औरते उसे नये वस्त्र पहना रहे थे......सजा -धजा रहे थे!! वो कुछ समझ नही पा रही थी........उसका दील जोर - जोर से धड़क रहा था.......एक तो बेचारी पहले सै ही!! अपने पति के लीये चीतींत थी.....वो अपने आप को सजता देख.....मिठे सपनो मे खो गयी!!
........उसे याद आया की जब उसका ब्याह, संपूरा से हो रहा था तो, ऐसे ही उसे सजाया-धजाया जा रहा था!!
ये सब सोच कर उसकी आंखो में.......आशूं भर गये!!
उसे रोता देख......एक औरत ने बोला-- अरे तू रो क्यूं रही है? तूझे पता नही क्या की, सरदार को रोने-धोने वाले लोग पसंद नही है|
संपूरा की औरत ने उस औरत से पूछा-- तूम लोग मुझे ऐसे क्यूं सजा - धज़ा रहे हो!!
उसकी बात सुनकर.........पास में खड़ी औरते हसने लगती है.......लेकीन कुछ बोलती नही!!
उन लोगो का हसना देख!! वो हैरान रह जाती है......की ये लोग क्यूं हंस रही है?
तभी वो औरते........वंहा से उठ कर चली जाती है........कमरे में वो अकेली ही कुछ देर बैठी रहती है........और अपने पति के बारे में सोचने लगती है की.......पता नही इन लोग ने कुछ खाने पीने को दीया भी है की नही.......वो ये सोच ही रही थी की तभी एक औरत अँदर आती है!! उसके हाथ में खाना था!!
..........वो औरत खाने की थाली लीये उसके पास आती है.......और बोली - चलो खाना खा लो!!
......संपूरा की औरत गुस्से में बोली - नही मैं नही खाउगीं.....तूम जाओ यहां से!!
वो औरत वंहा से चली जाती है.......संपूरा की औरत कुछ देर बैठने के बाद उठ कर......खीड़की की तरफ जाती है....और खीड़की जैसे ही खोलते ही......बारीश की बूदो का फव्वारा.....हवा के झोकें के साथ ही खीड़की से होते हुए उसके चेहरे पर पड़ने लगती है!! बहुत ही मस्ताना मौसम था.......उपर खीड़की से उसे चारो तरफ अँधेरा ही अँधेरा दीख रहा था........!!
**तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आती है!! और वो चौक कर दरवाजे की तरफ देखती है, तो दंग रह जाती है!!
..........दरवाज़े से जुम्मन अँदर आता है!! और फीर अंदर आकर दरवाज़ा बंद कर देता है!!
जुम्मन को देखने के बाद......वो उसे नज़र अंदाज करती हुई.......वापस खीड़की से बाहर देखने लगती है.......!!
जुम्मन अँदर आते ही बीस्तर पर बैठ जाता है......कमरे में दो - तीन चीमनी जल रही थी!! जो अंदर उजाला फैलाये थी.......जुम्मन ने एक छोटी सी सुराही से शराब नीकाल कर एक कटोरे में........डालते हुए एक ही सासं में गटक जाता है!!
..........जुम्मन ने अपनी नज़र खीड़की की तरफ़ की तो, देखा वो बाहर झांक रही थी.......उसके बदन पर एक नया वस्त्र था, जो की आदीवासीयो के जैसा था, कमर से लेकर घुटने तक का एक लाल वस्र था........और फीर पूरा पेट नीरवस्त्र था.......उरोजो को ठकने के लीये एक वस्त्र था जो की पीछे पीठ की तरफ आकर बंधी थी.......जीससे उसकी चौड़ी और गोरी पीठ भी दीख रही थी.......उसकी गोरी बांहे पूरी नगीं थी.......जुम्मन ने उसकी गोरी पीठ देखते हुए अपनी नज़रे नीचे की ओर की......उसकी चीकनी गोरी कमर से होते हुए कीसी पानी के मटके के आकार लीये उसके कमर की कटाव और फीर कमर के नीचे उसके नीतम्ब कीसी मटके के आकार में गोलायी लीये.......जुम्मन के दील की धड़कन को तेज कर दीया!! उसके बाल गुहे हुए थे.......और बालो की लम्बी चोटी उसके चुतड़ो के दरार तक लटक रही थी!!
........इतने सुहाने मौसम में........जंहा बादल गरज रहे थे.......और आसमान मे बीजली चमक रहे थे.......जो बीजली चमकने पर उसकी रौशनी खीड़की तक आती और खीड़की पर खड़ी संपूरा की औरत कयामत ढाते हुए ......जुम्मन के दीलो पर बीज़लीया गीरा देती!!
........यूं तो जुम्मन एक वहसी था.......हर रात वो कीसी ना कीसी औरत को नोच - खसोट कर अपनी हवस पूरी करता था........लेकीन आज ना जाने क्यूं उसने सँपूरा के औरत को गौर से देखने के बाद उसके दील की धड़कन धड़कने लगी|
***जुम्मन ने वापस से उस कटोरे में......शराब उलेड़ ली और फीर एक घुट में ही गटकने के बाद वो कटोरा रख कर उठ गया!! और फीर खीड़की की तरफ बढ़ने लगा!!
..........जुम्मन उसके एकदम नज़दीक आकर बोला-
जुम्मन - वंहा अधेंरे मे क्या देख रही हो?
वो बाहर खीड़की से देखते हुए बोली -- देख रही हूं की, कैसे पल भर में मेरी जीदंगी भी इसी तरह अंधेरे में खो गयी!!
जुम्मन - जो होना था वो हो गया.......अब तुम्हारी जगह यही हैं.......अब कीसी की भी उम्मीद लगा कर मत बैठना.......अब जो है यहीं है..........और ये बोलते हुए जुम्मन उसकी कमर पर हाथ रखकर सहलाने लगता है!!
........वो झट से जुम्मन का हाथ अपने कमर पर से झटक देती है!! ये देख जुम्मन मुस्कुराने लगता है.......और बोला-
जुम्मन - वैसे तुम्हे मैं कीस नाम से पुकारुं....अपना नाम तो तुमने बताया ही नही!!
........वो अब भी खीड़की से बाहर झांकते हुए बोली - अब तो हर चीज तुम्हारी मुट्ठी में ही है!! तो नाम भी कोयी तुम ही रख दो.......और वैसे भी जीसकी जीदंगी अंधेरे में खो गयी हो वहां उसे नाम से बुलाने वाला कौन होगा??
जुम्मन ने एक बार फीर अपना हाथ......उसके कमर पर रख कर सहलाते हुए बोला-
जुम्मन - अंधेरे का राजा हू मैं.......तो तुम्हे अंधेरे में अगर मुझे बुलाना हो.......तो!!
..........इस बार वो जुम्मन का हाथ अपने कमर पर से नही हटाती.......क्यूकीं वो जानती थी की मेरा वीरोध करना ब्यर्थ ही होगा......ये हैवान उसे छोड़ने वाला तो था नही!!
उसने कहा - मरीयम नाम है मेरा......
जुम्मन - वाह.......तुम्हारा नाम भी , तुम्हारी तरह खुबसुरत है.......!
.............और ये कहते हुए.......जुम्मन ने उसे पीछे से खीच कर अपनी बांहो में भर लेता है!! कीसी गैर की बांहो में खुद को पाकर ......मरीयम को अपने आप पर घीन आने लगती है!! लेकीन वो कुछ कर भी नही सकती थी.........!
***जुम्मन, मरीयम को अपनी बांहों में भरकर उसके गदराये पेट को अपनी उगंलीयो से .......सहलाने लगता है!! आखीर मरीयम भी एक औरत ही थी.......जीस्म पर मर्द का हाथ पड़ते ही........औरत बहकने लगती है। चाहे वो मर्द उसका पति हो चाहे कोई गैर!!
...........जुम्मन की उगंलीया इस तरह से मरीयम के पेट पर चल रही थी.....की मरीयम के बदन में कंपकँपी फैल गयी.......!!
'जुम्मन ने मरीयम का पेट सहलाते हुए......उसके गर्दन पर एक चुम्बन जड़ दीया!!
मरीयम - आ..........ह!!
मरीयम के मुह से ऐसी मादक सीसकारी सुनकर......जुम्मन के होठो पर हसीं फैल जाती है!!
जुम्मन ने अपनी उगंलीया.......मरीयम के पेट पर सहलाते-सहलाते एक उंगली उसके नाभी में घुसा देता है......जीससे मरीयम तड़प कर ......अपना मुह उपर करके जैसे ही एक मादक......आ.......ह करती है........जुम्मन पीछे से ही मरीयम के होठो को अपने होठो में.......दबोच लेता है, और उसके होठो को चूसने लगता है!!
***जुम्मन का शरीर इतना कभी भी कीसी भी औरत को चोदते वक्त उत्तेजीत नही हुआ था जीतना आज.......!!
जुम्मन पूरी मस्ती मेँ मरीयम के होठ चूसने का मज़ा ले रहा था!! वो मरीयम के कभी नीचे के होठ को चूसता तो कभी उपर के तो कभी पूरा का पूरा ही उसके मुहँ में घुसा कर चूसता!!
.............घने जंगल के बीच एक कबीले का सरदार........अपने दुश्मन को बंदी बनाकर , कारागर में ढकेल दीया था और उसकी पत्नी को अपनी बांहों में भरे हुए उसकी जवानी चख रहा था.......ये अहेसास जुम्मन के अंदर और जोश भर देता........और वो मरीयम को अपनी बांहों में और कस कर दबोचते हुए .........उसके होठो को चूसने लगता है!!
मरीयम........बस जुम्मन की बांहो में कीसी बेजान गुड़ीया की तरह खड़ी थी!! वो जुम्मन का विरोध तो नही कर रही थी.......लेकीन उसका साथ भी नही दे रही थी!!
........जुम्मन , मरीयम के होठ चूसते-चूसते.......अपने दोनो हाथ मरीयम के पेट से सरकाते हुए........उसके चुचीयों पर लाता है.......और जैसे ही वो उसकी चुचींयो को अपने हथेली में भरकर दबाता है.......उसे मरीयम की चुचीयां कठोर लगी.......इससे वो.....पागल हो जाता है.......मरीयम की चुचीयां सच में काफी बड़ी थी और उतनी ही कठोर भी!!
........जुम्मन , मरीयम की चुचीयां.......जोर-जोर से दबाने लगता है.......जीसके कारण मरीयम दर्द से.....तीलमीला जाती है.......वो चीखी लेकीन उसकी चीख एक दबी हुई घुटन बन कर ......उसके और जुम्मन के मुह मेँ ही गुजंने लगती है!!
मरीयम को तड़पता देख........जुम्मन और जोर -जोर से मरीयम के चुचीयोँ को बेरहमी से मसलने लगता है!!
...........मरीयम.........दर्द से और तड़पने लगती है.........और वो अपना हाथ ......खीड़की पर मारने लगती है!!
.....ये देखकर.......जुम्मन मरीयम की चुचीयों को छोड़ देता है.......और अपने होठ अलग करते हुए बोला-
जुम्मन - क्या हुआ ?
मरीयम..........कुछ बोलती नही और अपना सर नीचे झुका लेती है!!
.........अब जुम्मन , मरीयम को अपनी मज़बुत बाहों में उठा लेता है........और बीस्तर के पास पहुच कर मरीयम को कीसी कागज़ की तरह बीस्तर पर फेंक देता है!!
.......जुम्मन भी.......बीस्तर पर आकर मरीयम के उपर चढ़ जाता है........और फीर से उसके रसीले होठ को चूसने लगता है...........वो मरीयम के होठो को चुसते-चुसते उसके गर्दन और गालो को भी चुसने लगा था!!
......जीससे अब मरीयम को भी मजा आने लगा था......वो मरीयम के गले को चुमता हुआ.... उसके पेट को चुमने लगता है और अपनी जीभ नीकालकर , उसके पेट को चाटने लगता है.!! जीससे मरीयम सीहर जाती है.....
मरीयम - आ..........ह............उ........म्ह्ह्ह्ह.........आ.....ह!
मरीयम अब बीस्तर पर मचलने लगती है.......जुम्मन ने मरीयम का नीचे का अंग वस्त्र एक ही झटके में फाड़ देता है!! उसकी आंखे चौधींया जाती है.......मरीयम की छोटी और खुबसुरत बुर जीसके उपर हल्के-हल्के बाल थे....बहुत ही खुबसुरत लग रहे थे!!
.......अपने आप को जुम्मन के सामधे नीरवस्त्र पाकर.....मरीयम शरम से पानी-पानी हो जा रही थी!! उसने अपनी बुर को अपनी टांगे चीपका कर छुपाना चाहा........लेकीन, तभी जुम्मन ने मरीयम के दोनो टागों को अपर हवा मे...........उठाते हुए चौड़ी कर देता है!! और झट से अपना मुह मरीयम के बूर में लगाकर चाटने लगता है!!
मरीयम -- आह.........मां..........आह......आ....इ
..........मरीयम का बदन पूरी तरह गरम हो गया था........और उसकी बुर......गीली हो चुकी थी........जुम्मन ने......मरीयम की टागें छोड़ दी.....तब भी मरीयम अपनी टागें उपर उठाये थी.......जुम्मन समझ गया की अब ये पूरी तरह उसके काबू मेँ है!! उसने मरीयम के बुर की फाकों को अपने दोनो हाथो की उगंलीयों से चौड़ी करके ......अपनी जीभ जैसे ही मरीयम के बुर के गुलाबी छेंद मे........घुसायी तो मरीयम अपनी गांड उठा कर उछल पड़ी!!!
.......जुम्मन ने अपना पुरा मुहं मरीयम के बुर घुसा दीया और कीसी कुत्ते की तरह उसका बुर चाटने लगा!!
मरीयम -- आ..............ह............ह्म्म्म्म......करते हुए अपना हाथ जुम्मन के सर पर लगा कर अपनी बुर पर दबाने लगी.......ये देख जुम्मन और जोश मे आ गया.......और मरीयम की बुर में अपनी जीभ जैसे ही डाली.........मरीयम अपनी गांड उठा कर जुम्मन के मुह पर अपना बुर दाबाते हुए झड़ने लगती है!!!
.........कुछ देर बाद मरीयम लस्त हो कर हाफने लगती है.......जुम्मन भी अपनी तेज सासें लीये.......मरीयम के बगल में लेटते हुए बोला-
जुम्मन - मजा आया?
मरीयम कुछ बोलती नही और शरम से अपनी नज़रे दूसरी तरफ कर लेती है!!
जुम्मन - कुछ तो बोलो......लगता है मजा नही आया!!
तभी मरीयम धिमी आवाज़ में बोली!!
मरीयम - आया.......!
इतना सुनते ही........जुम्मन मरीयम को अपनी बांहो में भर लेता है.......और उसके होठो को चुसने लगता है.........और इस बार तो मरीयम भी जुम्मन का साथ दे रही थी!!
..........कुछ देर बाद दोनो हाफते हुए अलग हो जाते है!!
जुम्मन मरीयम की नज़रो में देखता हुआ......उसका एक हाथ पकड़ कर नीचे ले जाता है.......और अपने लंड पर मरीयम का हाथ रख देता है!!
...........मरीयम चौकं जाती है.......और नीचे देखती है तो उसकी आंखे फटी पड़ जाती है.....जुम्मन का मोटा लंड जो उसकी मुट्ठी में भी नही आ रहा था!!
जुम्मन - क्या हुआ पसंद नही आया?
........मरीयम शरमाते हुए धिरे से बोली-
मरीयम - बहुत मोटा.......और बड़ा है....!
जुम्मन के अंदर एक जोश सा भर गया , मरीयम के मुह से ये सुनकर........वो उठ कर मरीयम की टागें चौड़ी कर देता है.........मरीयम भी अपनी टागें फैलाये रखती
है.........जुम्मन ने अपने हाथ मे अपना लंड पकड़ कर मरीयम के बुर पर रखते हुए जोर का.....झटका देता है......
मरीयम - आ............इइइइइइइइइ........मर........ग.ईईईईईई!
मरीयम का दर्द से बुरा हाल हो गया था.......क्यूकीं जुम्मन बीना रुके जोर-जोर के धक्के दीये जा रहा था..........मरीयम के चेहरे पर दर्द की सीकुड़न साफ दीख रहा था.......उसकी आंखो से आंशू नीकल आये थे.......और बदन कांप रहा था.......जुम्मन के हर झटके पर मरीयम के साथ-साथ बीस्तर भी हील जाता..........
............आ........ब.........हुत..........दर्द.........हो र.......हा........है.......धिरे.......क.........रो!!
मरीयम की चीखें.........जुम्मन के लंड की ताकत बढ़ा देता ........वो मरीयम को कीसी जानवर के जैसे चोद रहा था..........उसका लंड खून से सन गया था........और मरीयम की बुर पूरी तरह खुल चुकी थी.........मरीयम का चील्ला -चील्ला कर बुरा हाल हो गया था!!
जुम्मन ......मरीयम के उपर लेट जाता है.........और मरीयम के उपर एक ही वस्त्र था जो उसकी..........चुचीयों को ढ़की थी........उसने एक झटके मेँ उसे भी फाड़ कर अलग कर देता है........और मरीयम को चोदते हुए........उसके चुचीयों को मुह में भर लेता है!!
.........दर्द का मंजर थमा तो मरीयम की चीखे.......सीसकीयों मे बदल गया.......उसने अपनी टागे........जुम्मन के कमर पर चढ़ा ली........और अपनी बाहें डालकर जुम्मन के सर को अपनी चुचीयों से चीपका ली!!
..........आ....'ह........आ.......ह..........आ........ह!!
जुम्मन अपनी गांड तक का जोर लगाकर मरीयम के बुर में अपना लंड आखीरी छोर तक घुसा देता..........!!
..........मरीयम का बदन अकड़ने लगा........और वो जुम्मन को कस कर पकड़ कर .........चील्लाते हुए झड़ने लगती है!!
जुम्मन भी मरीयम की कसी बुर को झेल नही पाया........और वो भी जोर का तीन -चार झटके मारता है.......और झड़ने लगता है!!
...........दोनो हाफते -हाफते एक दुसरे चीपके थे.........और अपनी सांसे काबू करने के चक्कर में कब नीदँ की आगोश में चले गये उन्हे पता भी नही चला...............
कहानी जारी रहेगी............
manmafik update dostअपडेट ----23
सुबह - सूबह जब जुम्मन जगता है..... तो देखता है की,, मरियम नंगी ही उसके बांहों मे सो रही है !!
मरियम का शरीर जुम्मन ने......... बड़े गौर से ऊपर से निचे तक देखा....... उसके बाद वो मरियम के माथे पर एक चुम्बन करते हुए...... बाहर निकल जाता है... ll
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रितेश, अजय और पप्पू पुलिया पर बैठे थे l
पप्पू थोड़ा आगे बढ़कर रितेश को गले से लगा लेता है..........
रितेश --- अरे क्या हुआ भाई..... ??
पप्पू रितेश से अलग होते हुए बोला.......
पप्पू -- भाई आज अगर tu सही समय पर नहीं आया होता तो.... ....
रितेश --- कुछ नहीं भाई...... जो होता है वो अच्छे के लिए ही होता है........ अब देखो ना..... मौसी भी मिल गई...... और तुम्हे तुम्हारी माँ ll
पप्पू --- हा यार.... आज बहुत खुश हु मै l लेकिन अब एक काम बाकि रह गया है ll
रितेश -- कैसा काम ???
पप्पू -- भाई विधायक तो गया..... अब बारी है, ठाकुर की ll
ये सुनते हुए रितेश ने कहा..........
रितेश -- अभी कुछ नहीं करना है हमें.... विधायक की मौत की खबर सुनते ही... ठाकुर चौकन्ना हो जायेगा.... मारना तो है उसे....... ll
पप्पू -- भाई एक बात समझ नहीं आया.... आखिर ये ठाकुर की हमारे बाप से क्या दुश्मनी थी? ?? ..... जो ठाकुर ने उन्हें मार दिया ll
रितेश........ खड़े -खड़े सब बाते सुनने के बाद बोला --
रितेश -- हो ना हो, कुछ तो राज जरूर है..... और ये बात, सुधा मौसी को ज़रूर पता होगा !!!
पप्पू -- तो देर किस बात की है...... अभी चलते है, और पूछते है माँ से..... की आखिर क्या राज़ हैं...?? ?
रितेश -- नहीं...... अभी नहीं, क्यूंकि अभी मौसी थोड़ा, सदमे मे है...... बेहतर होगा की कुछ दिन गुज़र जाने देते है...... ll
पप्पू -- ठीक है यार..... जैसा tu बोले !!!
.......इन सब बातो मे, रितेश ये तो भूल ही गया था की.... उसे अपनी माँ से शादी भी करनी है..... !!!
अजय -- भाई थोड़ा इधर तो आना !!!
रितेश - अरे बोल ना.... अब तो पप्पू अपना भाई ही है !!
अजय -- अरे भाई tu समझ नहीं रहा है..... बात थोड़ी वैसी है....... अजय ने अपने उंगलियों से इशारा करते हुए बोला !!!!
रितेश -- अरे..... बात चाहे ऐसी हो चाहे वैसी...... tu बोल !!!
अजय -- भाई शादी..... का क्या ?? ??
ये सुनते ही रितेश.... अपना सर पकड़ लेता है. !!!
रितेश -- अरे यार...... मै तो भूल ही गया था... !!
रितेश के बदलते हुए चहरे के भाव देखकर..... पप्पू ने बोला ---
पप्पू -- क्या हुआ.... रितेश !!! कैसी शादी की बात हो रही है ll
.....रितेश ने सोचा की इसको बताऊ या नहीं..... अगर बता भी दिया तो क्या हो जायेगा..... ll
रितेश --- शादी तो है.... मगर एक शर्त पर बताऊंगा ??
पप्पू --- शर्त....... ठीक है माज़ूर है.... ll
रितेश -- मेरी शादी है..... और इस शादी मे.... तुझे भी आना है ll
. पप्पू -- तेरी शादी..... कब, किससे ??
ये सुनकर...... रितेश और अजय दोनों हंसाने लगते है..... !!!
उन दोनों को हँसता देख.... पप्पू बोला --
पप्पू -- अरे यार.... तुम लोग हंस क्यों रहे हो, बताओ ना.... ll
अजय -- बता तो दू.... लेकिन तुझे कुछ होगा तो नहीं l
पप्पू -- यार... अगर नहीं बताया तो ज़रूर कुछ... हो जायेगा l
रितेश -- भाई...... शादी तो मेरी है.... लेकिन जिससे हो रही है ना... वो तेरी मौसी है.. ll
...... ये सुनकर पप्पू.. के चहरे के भाव बदलने लगते है... वो अपनी आंखे बड़ी कर लेता है..... ll
रितेश -- बोला था ना.... की, तू ज़रूर.. सदमे मे पड़ जायेगा ll
..... पप्पू -- तू मौसी से शादी करेगा.... मतलब अपनी माँ से ll
.. .. . रितेश कुछ बोलता नहीं... बस हँसते हुए अपनी मुंडी... हैं मे हिला देता है ll
पप्पू -- ये बात मौसी जानती है..... की तू उससे शादी करने वाला है ll
रितेश -- हा..... जानती है ll
पप्पू -- अरे..... गजब यार, क्या दिन आ गए है.. बेटा ही माँ से शादी करने लग गया ll ठीक है अच्छा है.... वैसे, कब है शादी ll
अजय -- परसो....... है.. ll और सारी तैयारी हमें ही करनी है ll
पप्पू -- ठीक है....... अपने भाई की शादी है... तैयारी कर लेंगे यार... अच्छा तो फिर सुहाग रात की तेयारी भी हमें ही करनी है या... फिर....
रितेश -- अरे भाई, उतनी दूर मत जा ll सिर्फ शादी है.... सुहाग रात की इज़ाज़त नहीं है... मुझे ll
........ पप्पू ये सुनकर चौंक जाता है.... और फिर बोला
पप्पू -- यार... क्या है? ? ती तो सदमे पे सदमा दिए जा रहा है..... ये कैसी शादी है? जिसमे सुहागरात ही ना हो....... !!!
रितेश -- भाई ये.... शादी दुनिया से एकदम हटकर है.. ll
पप्पू -- यार तुझे समझ पाना... बहुत मुश्क़िल है.. ll
........... रितेश अच्छा ये सब छोड़.... चल घर चलते है... अभी मुझे बहुत काम है ll और हा ye बात मौसी को मत बताना.... ll
पप्पू -- ठीक है नहीं बताऊंगा..... अब चल ll
अजय -- यार रितेश मै भी घर हो कर आता हु... सूबह se ही निकला हु ll
रितेश -- ठीक है........ ll
......... फिर अजय apne घर की तरफ चल देता है.... और रितेश, पप्पू अपने....... ll
***घर पहुंचते ही....... रितेश ने देखा, उसकी माँ और मौसी...... दोनों बैठ कर बाते कर रही थी ll
सुधा ने जैसे ही रितेश को देखा.......
सुधा -- अरे आ बेटा....... कहा चले गए थे... तुम दोनों ??
रितेश.... और पप्पू दोनों... खाट पर बैठ जाते है ll
रितेश -- अरे कही नहीं..... मौसी, बस ऐसे ही पुलिया पर बैठे थे ll
सुधा -- अच्छा ठीक है..... कुछ खाया पिया है.. तुम दोनों ने या फिर खाली पेट ही... घूम रहे हो ll
रितेश -- हमारी छोडो मौसी.... तुम बताओ तुमने खाया या नहीं??
सुधा -- हा मैंने कहा लिया है ll
....... रितेश ने सोचा की मौसी तो खुश नज़र आ रही है.... एक बार पूंछ ही लू क्या ? की आखिर ठाकुर ने मेरे बाप क्यों मारा था? ??
रितेश -- अच्छा मौसी.... एक बात पूंछू? ?
सुधा -- हा पूंछ.... बेटा !!
रितेश -- आखिर ये विधायक.... आपको कैद कर के क्यों रखा था ??
सुधा -- मै जानती थी की.... तू कुछ ऐसा ही सवाल करेगा?
रितेश -- नहीं अगर नहीं मन है तो मत बताओ..... ll
सुधा -- नहीं बेटा...... ये बात तो बतानी ही है ll क्युकी मरते वक़्त तेरे पिता ne जो बात बोली थी..... वो बात बताने का समय... आ गया है !!
. ... ..... .. .. रितेश, पप्पू के साथ -साथ कजरी भी.... हैरान हो गई ll
कजरी -- कैसी बात दीदी....??
सुधा -- देख कजरी..... ये बात शायद तुझे अटपटी.... लगे और शायद ये सुनने के बाद...... तुझे बुरा भी लगे !! लेकिन ये बात जो मै बताने जा रही हु....... ये बात मुझे तेरे पति ने मरते समय बताया था ll
............ सब की आँखे सुधा पर ही टिकी थी......
सुधा -- मुझे तो लगा था की........ वो घड़ी ख़त्म हो जाएगी, और मै विधायक और ठाकुर के चंगुल में ही फांसी रहूंगी ll
कजरी -- मै कुछ समझी नहीं दीदी.... कैसा वक़्त ख़त्म हो जायेगा...??
रितेश -- हा मौसी...... कुछ समझ में नहीं आ रहा है ll
सुधा -- परसो पूर्ड मासी की रात है....... और ये कोई ऐसी वैसी रात है....... हा शायद दुनिया में रहने wale लोग के लिए ye एक आम पूर्णमासी, की रात होंगी.... लेकिन कुछ लोग है..... जो दुनिया से ऊपर तक का ख्वाब देखते है... ll
कजरी -- दुनिया से ऊपर तक का ख्वाब ******
सुधा -- हा कजरी......... ये ठाकुर...... ये विधायक, ये सब तेरे पीछे........ क्यों पड़े है ll तू जानती है.... ??
ये सुनकर कजरी..... चौंक जाती है..... और बोली -
कजरी -- दीदी आपको कैसे पता की.... ठाकुर मेरे पीछे पड़ा है..... आप तो....
तभी सुधा कजरी की बात काटते हुए बोली.....
सुधा -- तेरे बारे में वो लोग भी जानते है..... जो तुझे जानते भी नहीं है....... और तेरे पीछे सिर्फ...... ठाकुर और विधायक ही नहीं, बल्कि दुनिया के बहुत सारे नमी - गिनामि, साधु....... बाबा भी पड़े है ll
.......... सुधा की बात सुनकर...... सब लोग एक दूसरे का मुँह देखने....... लगे ll ये देख सुधा ne कहा --
सुधा -- चौंको मत...... ये बात बिलकुल सच है ll
कजरी -- दीदी तुम क्या बोल रही हो...... मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा है ?? ?
सुधा -- आगे जो बताने जा रही हूं...... वो सुनकर तो तेरे पैरो तले ज़मीन ही खिसक जाएगी ll
...... किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा tha.... . और सब लोग... यही सोच rahe थे की आखिर... ऐसी सी कौन सी बात है..... जिसके बारे में सुधा ऐसा बोल रही है ll
सुधा -- उस दिन मै........ ठाकुर के हवेली ही जा रही थी.... की मैंने देखा.... तेरे पति खून se लथपत... जंगल की तरफ भागे जा रहे थे ll
ये देख कर मै घबरा गई........ और मै भी उनकी तरफ ही भागी........ कुछ दूर जंगल में जाने के बाद वो मुझे.... नहीं दिखे ll थोड़ी देर तक मै वहां उनको खोजती रही...... लेकिन जैसे ही मै वापस जाने के लिए मुड़ी........ मुझे एक पेड़ के पीछे से कराहने की आवाज़ सुनाई दी ll मै थोड़ा घबरा गई...... लेकिन जब डरते - डरते उस पेड़ के पास गई तो देखा...... तेरे पति ख़ून से लथपथ... वही गिरे पड़े थे ll
मैंने झाट से...... उन्हें सँभालने के लिए उनके पास गई..... ll
तो वो मुझे देखते ही बोले.......... अच्छा हुआ सुधा तू नसीब से..... मुझे मिल गई, नहीं तो मेरी मौत..... यूँ ही बेवज़ह चली जाती....
मैंने कहा -- ये सब कैसे हुआ...... और किसने किया ??
वो कराहते हुए बोले -- कुछ लोग है..... सुधा, जो बहुत बड़े ख्वाब देखने लगते है...... वो लोग प्रकृति का उलंघन करने से नहीं कतराते....... ll
मैंने कहा.... की मै कुछ समझी नहीं.... ll
...... तो फिर उन्होंने ने..... जो बात बताया.. मेरे तो रौंगटे खड़े हो... गए ll
कजरी..... रितेश और पप्पू का तो इतनी बात पर ही... रौंगटे खड़े होने लगे.....
कजरी -- क...... क्या बताया उन्होंने? ??
सुधा -- उन्होंने ने कहा......... ll सुधा....... मैं कल ठाकुर के साथ....... एक बाबा के मठ में गया था..... और उस बाबा का नाम था......... चामुंडा !!
वो कोई ऐसा वैसा बाबा नहीं था........ और ठाकुर भी पिछले कई दिनों se उस बाबा ke पास जा raha था....... ठाकुर को एक रहस्य के बारे में पता चला था.... वो रहस्य....... था, sankira का अमृत जल.... ll
कजरी -- sankira ka अमृत जल... ??
सुधा - हा....... अमृत जल ll
उन्होंने कहा......... जब ठाकुर को उस अमृत जल के बारे me पता चला.... तो वो उस अमृत को हांसिल करने ke लिए पागल हो गया......... और ऐसे ही.... उसे चामुंडा के बारे में..... पता चला ll
उन्होंने कहा..... जब मैं उस दिन, ठाकुर के साथ उस चामुंडा बाबा के मठ पर गया तो...... वो बाबा.... अपने मंत्रो में लीन था....... लेकिन जैसे ही हम uske करीब पहुंचे...... वो बाबा... हमें देखते ही बोला ll
चामुंडा -- आओ ठाकुर..... आखिर तुमको भी चैन... नहीं मिल रहा है...... बिबा अमृत जल के ll
ठाकुर -- सच कहा बाबा....... रात दिन..... bअस अब तो मुझे..... उस अमृत जल का ही सपना आता है.... ll
चामुंडा -- घबराओं मत ठाकुर....... मैंने अपने तपो बाल से...... अपने शैतान को ख़ुश करके......संकिरा के एक रहश्य का पता लगा लिया है..... ll
ठाकुर -- क... कैसा रहश्य बाबा??
चामुंडा -- ठाकुर....... अगर हम संकिरा के अमृत.... जल के.... करीब पहुँच गए.... तो भी हम चाह कर भी... उसे प्राप्त नहीं कर पाएंगे ll
ठाकुर -- ये आप क्या बोल रहे हो बाबा ?? ?
चामुंडा -- मैं बिलकुल..... सच कह रहा हूं ठाकुर ** और ये बात मुझे मेरे शैतान ने बताया है..... ll
ठाकुर -- तो फिर आखिर...... हम कैसे.... उस अमृत जल को प्राप्त कर पाएंगे.... ll
चामुंडा -- उसके लिए हमें....... 19 वर्षो का इंतज़ार करना पड़ेगा ll
ठाकुर (chaunkate hue) -- 19 वर्ष.... ऐसा क्यों बाबा ?? ?
चामुंडा -- क्युकी..... हमें अगर उस अमृत जल को हांसिल करना है तो....... सबसे पहले.... हमें उस स्त्री का पता लगाना होगा...... जिसके वजह से..... हमें वो अमृत जल हांसिल होगा ll
ठाकुर (आश्चर्य ) -- स्त्री........ कैसी स्त्री बाबा ??
चामुंडा....... दो कदम aage बढ़ा.... और दहाड़ते हुए बोला ll
चामुंडा -- संकिरा की रानी...... ll
ठाकुर -- संकीरा की रानी..... मैं कुछ समझा नहीं बाबा .... .!!!
चामुंडा -- वो स्त्री...... ही उस जल को हाथ लगा सकती है..... या फिर उसका बेटा !!! और उसका बेटा भी उस जल को तभी हाथ लगा सकता है..... जब, वो अपनी माँ से शादी करें और फिर उसका तन भोगे.... ll
ये सुनकर...... मैं और ठाकुर दोनों... चकित रह गए ll तभी ठाकुर बोला ll
ठाकुर -- लेकिन बाबा.... वो स्त्री ye पुरे संसार में कहा है..... इसका पता हम भला कैसे लगा सकते है ll
चामुंडा -- तुमने ठीक कहा ठाकुर....... वो स्त्री का पता.... तो हम दूसरे तरीके से ही लगा सकते है.... और वो तरीका 19 साल बाद ही...... होगा ll
ठाकुर (आश्चर्य से ) -- दूसरा तरीका..... तो फिर पहला तरीका क्या था ll
चामुंडा -- पहला तरीका ये था...की, उस स्त्री के योनि के ऊपर संकिरा पर्वत का एक चिन्ह अर्जित है...... और हम सारी दुनिया की स्त्रियों का वस्त्र उतार कर.... हम उनकी यौनिया नहीं देख सकते.. ll
ठाकुर -- लेकिन बाबा... वो निशान कैसा है... ??
चामुंडा -- वो निशान.... एक बेहद ही मोहित कर देने वाली स्त्री का है...... जो 19 वर्ष बाद.... वो औरत उसी रूप में...... paरिवर्तित होंगी ll
ये सुनते ही..... मेरे पैरो तले ज़मीन खिसक गई..... क्युकी वैसा ही निशान.... कजरी के योनि पर भी था ll
सुधा.... की बताई हुई बात...... सुनकर.... कजरी को पसीने आने लगे...... उसका गला भी सूखने लगा..... और कुछ ऐसा ही हाल.... रितेश और पप्पू का भी था....... ll
उन्होंने ने कहा....... मैं जल्द से जल्द वहां से निकलना चाहता था...... और जैसे ही मैं ठाकुर के साथ..... हवेली में पहुंचा...... तो मैंने कहा ll
ठाकुर..... साहब मैं चलता हूं.... ll
ठाकुर -- अच्छा एक बताओ....... तुम्हे वहां पसीने क्यों आ रहे थे... ll
ठाकुर की बात सुनकर मैं घबरा गया.....
....... वो..... वो, ठाकुर साहब... वो बाबा ऐसी बात बता रहे थे..... तो मैं थोड़ा.... डर गया था ll
मेरी बात सुनकर ठाकुर..... हंसाने लगा...... मैं और भी डर गया ll
ठाकुर -- तुम्हारी परेशानी का कारण..... मैं अच्छी तरह.... जनता हूं... ll
........ कारण....... कैसा..... कारण..... मालिक ?? ?
ठाकुर -- यही की चामुंडा जिस.... स्त्री को खोज रहा है.... वो स्त्री कोई और नहीं....... बल्कि तुम्हारी खूबसूरत पत्नी.... कजरी है ll
क्या बताऊ..... सुधा. मेरी तो जैसे जान ही निकल गई...... ll
सुधा -- ये सब मेरी गलती है..... मैंने ही, ठाकुर की औरत को बताया था शायद.... उसने ही ठाकुर को बता दिया होगा..... ll
...... मेरे पास समय बहुत कम है..... सुधा, तू बस एक काम कर..... की कजरी से बोलना जैसे..... अपने आप को ठाकुर से बचा के रखे...... और जैसे ही रितेश बड़ा होगा...... वो उससे शादी कर ले, क्युकी वो अमृत जल इन कमीनो के हाथ नहीं लगाना चाहिए..... ll
...... कौन रोकेगा.... मुझे ll
ये आवाज़ सुन कर जैसे..... ही मैं मुड़ी, ठाकुर और विधायक.... अपने चमचो के साथ खड़ा था....... फिर उसने... मुझे कैद कर लिया..... और उन्हें जान से मार कर... उन्हें पहाड़ी से निचे फेक दिया ll
ये सब सुनते हुए...... कजरी के आँखों में आंसू आ गया...... रितेश अपनी माँ की हालत समझ सकता था.... वो उठ कर अपनी माँ को गले से लगा लेता है........... ll