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Incest बेटा है या.....घोड़(ALL IN ONE)

फीर मचायेगें है की नही?

  • हां

    Votes: 9 81.8%
  • जरुर मचायेगें

    Votes: 8 72.7%
  • स्टोरी कैसी लगी

    Votes: 0 0.0%

  • Total voters
    11
  • Poll closed .

Nevil singh

Well-Known Member
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अपडेट---9








हवेली के सारे सदस्य नीचे आते ही-


ठाकुर- ये मेरी पत्नी है रेनुका,
ये मेरी बड़ा बेटा पंकज सींह और ये छोटा बेटा राजीव सींह और ये मेरी बेटी स्नेहा सींह।

दरोगा-- काफी छोटा परीवार है , आपाका ठाकुर साहब....वैसे आपके बेटे क्या करते है।

ठाकुर-- मेरा बड़ा बेटा पंकज मेरे कारोबार में हाथ बटाता है....और मेरा छोटा बटा राजीव 12 में पढ़ता है और बेटी स्नेहा B.A मेँ पढ़ती है।

दरोगा- अच्छा....नौकर वौकर तो होगें,
ठाकुर-- जी।
दरोगा-- तो जरा उनसे भी मीलाईये..।

ठाकुर-- ये मेरा ड्राइवर वीजय है, और ये चम्पा अभी हाल ही में काम पर लगी है और ये मेरे ड्राइवर की पत्नी है।

दरोगा-- और कौन है।
ठाकुर-- ये पप्पू ये नौकर तो नही , लेकीन ये भी मेरे कारोबार में हाथ बटाता है...

दरोगा-- बहुत खुब ठाकुर साहब। हवलदार!

हवलदार- जी साहब!
दरोगा- जरा गांव के लोगो को , अपने अपने घर जाने के लीये कहो...जरा मैं भी अपना परीचय सबको दें दूं

हवलदार- जी साहब!

फीर हवलदार सबको ठाकुर के घर से बाहर नीकालता है...

अब हवेली में ठाकुर के सदस्य , नौकर और दरोगा ही थे।

दरोगा(कुर्सी पर बैठते हुए) -- स्नेहा बेटी थोड़ा पानी मीलेगा?
स्नेहा-- जी लाती हूं।

और फीर स्नेहा पानी लाने अंदर चली जाती है।

दरोगा-- तो .....क्या नाम है तुम्हारा?
जी विजय......

दरोगा-- अच्छा तो वीजय....तुम कल रात कहां थे....?

विजय- साहब कल रात तो मैं ठाकुर साहब के अनाज के गोदाम में था....ठाकुर साहब ने कहा था तो चला गया था...देख रेख के लीये!

दरोगा- ह्मम.....तो इससे पहले भी कोइ गोदाम में रहता था या कल ही...

मुनीम-- साहब. ...वो!

मुनीम कुछ बोलने ही वाला था की दरोगा ने-
दरोगा-- तुमसे मैने पुछा....पुछा क्या(चिल्लाते)

दरोगा का गुस्सा देखकर तो ठाकुर के साथ साथ सभी लोग सहम गये..।

दरोगा- हां तो वीजय बताओ?
विजय-- न...नही साहब, उस गोदाम में तो कोई नही रहता था बस कल ही मुझे भेजा।

दरोगा-- हम्म......और तुम क्या नाम है तुम्हारा?

जी च.....चम्पा!

दरोगा- हा तो चंम्पा तुम कल रात कहां थी।
चम्पा तो एकदम से डर गयी , उसे कुछ समझ में नही आ रहा था की क्या बोले!

चम्पा- जी...साहब....वो....मै.....वो....कल राता...

दरोगा- हवलदार!
हवलदार-- गिरफ्तार कर लो इसे....और चलो!
चम्पा- म....मैने कुछ नही कीया है साहब! मुझे छोड़ दो...

चम्पा रोने लगती है....और गीड़गीड़ाने लगती है.....तभी उसका पती विजय भी

विजय- इसने कुछ नही कीया है, साहब छोड़ दो!
दरोगा- अरे चिंता मत करो ....अगर ये निर्दोष है तो इसे कुछ नही होगा...और हां हवलदार , ठाकुर साहब के दोस्तो को भी साथ में लेकर चलो।

ये सुनते ही ठाकुर और उसके दोस्त सहम गये!

ठाकुर-- एक मीनट दरोगा...

ठाकुर ये बोलकर ....अपना फोन नीकालता है....और कीसी को फोन लगाता है।

ठाकुर- ये लो बात कर लो...

दरोगा फोन लेते हुए- हेलौ, जय हिन्द साहब....जी साहब , ठीक है साहब अभी छोड़ता हूं

ये बात सुनकर ठाकुर और मुनीम एक दुसरे को देख कर हंसने लगते है...तभी!

दरोगा- हवलदार..(चिल्ला कर) सुना नही ले चलो सब को!

ठाकुर का चेहरा पल भर में फीर उतर जाता है....और चंपा के साथ ठाकुर के दोस्तो को हवलदार जीप में भरकर ले जाता है....


गांव के पुलीया पर.....रितश और अजय दोनो बैठे थे.....शाम के 4 बजे थे....

अजय- यार.....मजा आ गया....जो कोई भी उस सेठ को मारा है.....भगवान करे मेरी भी उमर उसे लग जाये....

रितेश बेचारा गुमसुम बैठा था....कुछ नही बोला।

अजय- अरे क्या यार , मैं तुझसे बात कर रहा हूं और तू है की पता नही कहां खोया है।

रितेश- बस यार ....सर दर्द कर रहा है।
अजय-- तेरा दोस्त हूं साले....चल बता क्या बात है?

रितेश फीर सारी बाते अजय को बता देता है-

अजय- तो इसमे परेशान होने की क्या बात है....कल बुर फाड़ा था आज गांड फाड़ दे जाके रज्जो की।

रितेश- यार मज़ाक मत कर मै यहां परेशान हूं और तू...

अजय- इसीलीए कह रहा हूं, तेरी परेशानी तेरी मां है...अपनी मां को पटा ले सारा झंझट ही खतम.....और माशा अल्लाह तेरी मां.....बवाल है बवाल, क्या लगती है काकी...तेरे घर में चांद है और तू अंधेरो के पीछे भाग रहा है।

रितेश- अबे साले....वो मां है मेरी....कोई और नही जो पटा लूं....साले तू अपनी मां को पटा के दीखा।

अजय- ठीक है भाई, आज से मैं मेरी पटाता हूं और तू तेरी....ठीक है...।

रितेश-- बात पटाने की नही है रे....मुझे ना सच में मेरी मां बहुत प्यारी लगती है....उसके गोरे गोरे फुले गाल जब भी देखता हूं ना तो मन करता है खा जाउं...और जब वो हंसती है तो उसके होठ बाप रे....मुझसे नही होता।

अजय-- एक सांस भरते हुए) - भाई एक बात बोलू तेरी मां तुझसे ही पटेगी....ये ठाकुर वाकुर चुतीया है.....जो पीछे पड़े है.....तू बस थोड़ा प्यार तो दीखा अपनी मां को फीर देख पीघल जायेगी....हीम्मत कर डर मत...मां से कैसा डरना।

अजय की बात सुनकर रितेश के अँदर हीम्मत आती है....और वो उठ कर खड़ा होता है।

अजय-- कहां?
रितेश-- बेटा अपनी मां के पास जा रहा हूं....बड़ा मन कर रहा है उसे देखने का।

ये कहकर रितेश अपने घर की तरफ चल देता है......

रितेश जैसे ही घर पहुचंता है.....उसके घर पर उसकी मां के साथ संगीता और आंचल बैठी थी.....

रितेश को देखकर आंचल खाट पर से उठ जाती है....

संगीता- अरे बेटा कहां घुम रहा है...बिना खाये पीये...

कजरी-- अरे संगीता तू पागल है, उसको खीलाने वालो की कमी थोड़ी है....

ये सुनकर रितेश बोला-
रितेश- मां मैने सच में कुछ नही खाया है...बहुत भुख लगी है।

कजरी चुपचाप वही बैठी रही...

संगीता- अरे आंचल जा तू ही ला कर दे दे खाना...

आंचल के चेहरे पर थोड़ा मुस्कान सी आ गयी और वो घर के अँदर चली जाती है...

रितेश ने जब देखा की उसकी मां कुछ नही बोल रही है तो....वो दबे पांव फीर घर से चला जाता है....

संगीता-- अरे.....बेटा....खाना खा ले ॥

लेकीन तब तक रितेश वंहा से चला जाता है.....आंचल भी खाना ले कर आ चुकी थी लेकीन जब उसने भी देखा की रितेश चला गया तो बेचारी का फुल जैसा चेहरा मुरझा गया।

कजरी-- देखा ये लड़के को.....इतनी जल्दी रुठता है की क्या बोलू...।

संगीता-- अरे थोड़ा नाराज़ है....ठीक हो जायेगा...।

कजरी और संगीता बैठकर घंटो बात की फीर संगीता आंचल के साथ घर चली जाती है........

रात सुहाना था.....ठंढ़ी ठंढ़ी हवाये चल रही थी.....रात के करीब 9 बजे थे....आसमान में चांद की रौशनी धरती पर उज़ाला बीखेरे थी....कजरी अपने बेटे का घर पर इंतजार कर रही थी.....

तभी रितेश घर पहुंचता है.....वो जैसे ही अपनी मां को देखता है....एक ठंढ़ी आह भरता है....कजरी रितेश को देखते ही दुसरी तरफ मुहं कर के खड़ी हो जाती है...

लालटेन की रौशनी में कजरी की दुधीया पतली कमर चमक रही थी....एक गजब का कटाव लीये कजरी की कमर देख कर रितेश के रौगंटे खड़े हो जाते है....उसका दील जोर जोर से धड़कने लगता है....उसने आज तक कभी अपनी मां को गौर से नही देखा था....और देखता भी था तो एक मां के रुप में ....लेकीन आज जब उसने अपनी मां को देखने का नजरया बदला तो उसे अपनी मां के रुप यौवन और शरीर के बनावट को देखकर उसके पसीने छुटने लगे.....उसके दील में ऐसी ख्वाहीश होने लगी की वो अभी जा कर अपनी मां के पतली गोरी कमर को अपने हाथ की हथेलीयो में भरकर दबोच ले और उसके सुराही दार गर्दनो पर चुम्बन की बौछार कर दे....
रितेश खड़े हो कर बहुत देर तक यही सोचता रहा.....और इधर कजरी भी सोचने लगी की....ये लड़का मुझे मनाने क्यूं नही आ रहा....तो कजरी ने मुड़कर रितेश को देखा.....

रितेश कीसी मुर्ती की तरह खड़ा अपनी मां के कमर को देख रहा था...उसे इतना भी नही पता की उसकी मां अब उसकी तरफ पलट चुकी है....

कजरी बीना कुछ बोले वंहा से रसोई घर में चली जाती है....रितेश की आंखो से उसकी मां जैसे ओझल होती है....उसकी तन्द्रा भंग होती है.....वो भी पिछे पिछे अपनी मां के पास रसोई घर में आ जाता है....जंहा कजरी थाली में खाना नीकाल रही थी...।

रितेश अपनी मां के बगल में कुछ दुर खड़ा हो जाता है.....

कजरी(मन में) - आ गये नवाब साहब , आज इससे बात ही नही करुगीँ.....तभी!

रितेश- मां तू बहुत खुबसुरत है...।

कजरी ये सुनकर एक पल के लीये तो वैसे ही खड़ी रही....लेकीन फीर।

कजरी-- हां हूं तो तूझे क्या?
रितेश-- नही मां तू सच में बहुत खुबसुरत है।

कजरी-- हाँ तो मैं भी कह रही हूं ना हूं तो खुबसुरत तो तूझे उससे क्या?

ये सुनकर रितेश कुछ नही बोलता ,

कुछ समय के लिये दोनो शांत रहते है...

कजरी-- क्यूं क्या हुआ चुप क्यूं हो गया?
रितेश-- नही तूने कहां ना मुझे उससे क्या तू खुबसुरत है तो।

कजरी-- हां तूझे तो रज्जो से पड़ी है.....तेरी मां उतनी खुबसुरत कहां?

रितेश ये सुनकर उतावला होते हुए-

रितेश-- अरे......मां तेरी खुबसुरती के आगे वो रज्जो काकी कुछ नही है.....।

कजरी- मुझे सब पता है...तू झूठ मत बोल। अगर मैं इतनी खुबरत होती तो तू मुझे छोड़कर उस रज्जो के पास थोड़ी जाता...तू तो मुझसे प्यार ही नही करता।

ये सुनना रितेश के लीये कीसी बीजली के 440 बोल्ट के झटके से कम ना था...उसके दील की धड़कन बढ़ने लगी...हाथ पांव कापनें लगे...पसीने चेहरे पर दस्तक देने लगें।

रितेश(कांपते हुए) - न.....नही मां, मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूं...और रही रज्जो काकी की बात तो उसने मुझे फंसा लीया था।

कजरी-- नही मुझे पता है...भला उस रज्जो की खुबसुरती के आगे मैं क्या ? तू कल से उसी के पीछे लग जायेगा।

रितेश घबरा कर अपनी मां के थोड़ा नज़दीक आ जाता है......

रितेश- नही......मां म......मैं तेरी कसम खा कर कहता हूं, मैं सीर्फ तुझसे प्यार करता हूं , और आज के बाद तू मुझे रज्जो काकी के आस पास भी नही दखेगी......मेरे दील में सीर्फ तू हैं मां।

कजरी-- अच्छा तो ऐसी बात है तो, तूने मुझे कभी बताया क्यूं नही की तू मुझसे प्यार करता है।

रितेश-- वो......वो , इसलीए की तू मेरी मां है , ईसलीए।

कजरी-- हां...मां हूं तभी...तूने सोचा होगा की मै तो बुड्ढी हूं तो भला इससे क्या प्यार करु?

रितेश-- अरे क्या मां तू भी कहां सोच रही है...तूझे इसलीए नही बोल पाया की मां और बेटे में ये सब पाप होता है...और डर भी रहा था की अगर तुझे पता चलेगा तो क्या होगा?

कजरी के आंखो से आंशू नीकल आये , उसने सोचा हे भगवान मेरा ही बेटा मेरे ही उपर गंदी नज़र रख रहा है...इससे तो अच्छा था की तू मुझे कोई औलाद ही ना देता...और मैं ये जो कर रही हूं उसके लीये भगवान मुझे माफ करना, क्यूकीं उस रज्जो से इसे बचाने के लीये मुझे ये नाटक तब तक करना पड़ेगा, जब तक इसकी शादी नही हो जाती।


रितेश- क्या हुआ मां?

कजरी सोच से बाहर आते हुए-

कजरी- क...कुछ नही..। हां तो मां हूं तो क्या एक औरत भी तो हूं....क्या मुझे मर्द की कमी नही खलती क्या?

रितेश- तो मां क्या सच में तू भी मुझसे....
कजरी-- हां....मैं भी तुझसे प्यार करती हूं।

इतना सुनते ही रितेश का रोम रोम खील उठता है...उसका मन उसके बस में नही था...वो धिरे धिरे कदमो से कजरी की तरफ बढ़ रहा था...उसका दील जोरो से धड़कने लगा।

और जब कजरी ने देखा की रितेश उसकी तरफ आ रहा है तो कजरी का भी दील जोर जोर से धड़कने लगा...

कजरी(मन में) - हे भगवान, अब ये क्या करेगा मेरे...साथ।

कजरी सोच ही रही थी की रितेश कजरी के एकदम नजदीक आ गया...।
behtreen update mitr.
 

Nevil singh

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रितेश के कदम धीरे धिरे...कजरी के तरफ बढ़ रहे थे.....ये देख कजरी का दील जोरो से धड़कने लगा.....

उसकी तेज चल रही सांसो की वजह से....कजरी की बड़ी बड़ी चुचीयां उपर नीचे हो रही थी.....माथे पर से पसीने की बुंदे चुते हुए उसके चेहरे से होते हुए कजरी की चुचीयों के कटाव में अँदर घुस जाती.....

रितेश का भी कुछ ऐसा ही हाल था....उसे भी पसीने आ रहे थे....और दील की धड़कन तेज होने लगी थी.....


रितेश धिरे धिरे अपने मां के करीब पहुचं गया.....रितेश और उसकी मां के बीच कुछ जगह का ही फासला था......
रितेश खड़ा होकर एकटक अपनी मां को देख रहा था......कजरी भी रितेश की आंखो में देखे जा रही थी....

कजरी- ऐसे क्या देख रहा है?
रितेश- तू सच में बहुत खुबसुरत है मां।

ये बात सुनकर कजरी अपनी आंखे नीचे कर लेती है.....भले ही वह ये सब एक नाटक कर रही थी....लेकीन रितेश के मुह से उसकी तारीफ उसके अंदर एक अजीब सा नशा चढ़ा देता था......

कजरी-- हां पता है....बहुत बार बोल चुका है तू।

रितेश की नजरें लगातार कजरी को ही देखे जा रही थी....रितेश ने थोड़ी हीम्मत करके अपने हाथ से कजरी की झुकी हुई गर्दन को उपर उठाता है.....

कजरी का चेहरा उपर उठते ही....रितेश कजरी के चेहरो को एक बार फीर से गौर से देखने लगता है.....कजरी की आंखे बंद थी।

रितेश-- मां आखें क्यूं बदं की है?
कजरी के बदन में कंपकपीं फैलने लगी थी....जैसे ही रितेश ने अपने हाथो से.....उसके गोरे मुखड़े को उपर उठाता है....फीलहाल कजरी की आंखे बंद थी....रितेश के पुछने पर भी कजरी ने अपनी आंखे नही खोली....

कजरी-- मुझे...शर्म आ रही है.....मैं भले ही तुझसे प्यार करती हूं बेटा.....लेकीन एक मां से प्रेमीका बनने के लीये अभी मैं पूरी तरह से तैयार नही हूं बेटा.....मै तेरे दील के जज्बात समझ सकती हूं बेटा.....की तु चाहता है की तू अपनी मां को.....खुब प्यार करे.....और ये सब चीजे सीर्फ तूझे ही नही बल्की मुझे भी मन करता है....लेकीन बेटा अभी इस चीज के लीये मैं पूरी तरह से तैयार नही हूं.....

रितेश- मैं समझ सकता हूं मां.....लेकीन तू चींता मत कर .....मैँ बीना तेरे इजाजत के ऐसा कोई भी काम नही करुगा.....जिससे तुझे तकलीफ हो.....लेकीन कोशीश करुगां की मेरी मां बहुत जल्द मेरी बांहो मे और फीर कजरी के कान के पास जिकर धिरे से बोला......बिस्तर पर मेरीं बांहो मे हो....।

ये सुनकर कजरी का बदन पुरा कांप गया....पसीनो से पुरी भीग गयी....और मारे शरम के वो रितेश से नज़रे नही मीला पा रही थी.....वो करीब करीब भागते हुए दुसरे कमरे में जाती है.....और अंदर से दरवाजा बंद कर के दरवाजे से चीपक कर खड़ी हो जाती है......

पसीने से पूरी भीग चुकी कजरी की सासों की गती तेज होते चली जा रही थी.....उसकी चुचींया तो तेज चल रही सांसो की वजह से इतनी टाइट हो गयी की ब्लाउज के उपर का बटन करीब दो तीन सांस लेने पर टुट गयी....।

कजरी दरवाजे से चीपकी मन मे सोचती हुई....हे भगवान, ये मैं क्या कर रही हूं, इतना बड़ा पाप....और तो और मैं अपने बेटे के दील के साथ ही खेल रही हूं......लेकीन ये सब तो मैं उसी के भलाई के लीये ही तो कर रही हूं.....कजरी ये सब सोचते हुए अपनी आंखे खोलती है.....जब उसे अपनी हालत का अंदाजा होता है तो उसे पता चलता है की.....उसका ब्लाउज पुरा पसीने से भीग चुका है....और ब्लाउज का एक बटन भी टुट गया है.....

जब कजरी ने देखा की उसके ब्लाउज का बटन टुट गया है तो वो समझ गयी की रितेश के द्वारा कही गयी बात उसके कानो में उसी के वजह से मारे उत्तेजना के उसकी चुचीया टाईट हो गयी जीससे ब्लाउज का बटन टुट गया....कजरी एक बार फीर शरमा जाती है......

कजरी(मन में) - आह.....ईस दुनीया में अगर बेटे से प्रेम करने का हक अगर कीसी मां को होता तो......हम औरते हमेशा पसीने से भीगी रहती......कीतनी जल्दी बदन गरम हो गया.......

कुछ देर तक कजरी घर के अँदर रही फीर वो कमरे से बाहर आ जाती है.......

चांद की रौशनी में रितेश छत पर नीचे जमीन पर ही बिस्तारा लगाया था.....एक अपना और कुछ दुर पर अपनी मां का.....

कुछ देर बाद कजरी भी उपर छत पर आती है......उसके हाथं में खाने की थाली थी....।

कजरी-- ये ले बेटा खाना खाले..।

रितेश खाने की थाली ले लेता है...कजरी भी बगल में बैठ जाती है.....

रितश(खाते हुए) - मां तू नही खायेगी क्या?
कजरी-- आज खाने का मन नही है बेटा।

रितेश-- क्यूं मां?
कजरी-- पता नही क्यूं खाने का मन नही कर रहा।

रितेश कजरी का हाथ पकड़ कर बोला-

रितेश- आ....जा मां मैं खीला देता हूं।
कजरी- अरे नही तू खा ले मुझे भुख नही है।

रितेश-- तो फीर खाना ले के जा......मुझे भी भुख नही है......

इतना सुनने पर कजरी अंदर ही अँदर खुश हो जाती है.......उसने सोचा सच में मेरा बेटा मुझसे कीतना प्यार करता है....

कजरी सीधा उठी और रितेश के पास जाकर बैठ जाती है.....

कजरी-- अच्छा ठीक है......खीला दे।

रितेश ने जब से अपनी मां के मुंह से सुना की वो भी उससे प्यार करती है.....तब से उसका दील कजरी को अपनी बांहो में भरकर चुमने के लिये बेकरार था....

रितेश-- मां तूं मेरी बांहो में आजा.....फीर अच्छे से खाना खीलाता हूं.....अगर तूझे बुरा ना लगे तो......

कजरी ये सुनकर एक पल के लीये सोच में पड़ गयी की अब क्या करे? लेकीन अगले पल उसने सोचा की सीर्फ बांहो में ही तो बैठने के लीये कह रहा है...

कजरी-- एक शर्त पर बैठुगीं।
रितेश- कैसी शर्त?

कजरी-- यही की तू कोई ऐसी वैसी हरकत नही करेगा.....

रितेश-- ठीक है मां....कोशीश करुगां।


ये बोलकर रितेश और कजरी दोनो हंस पड़ते है...

फीर कजरी उठ कर रितेश की गोद में बैठ जाती है....

कजरी के बैठते ही रितेश के अँदर एक उमंग की लहर दौड़ जाती है....

कजरी-- बैठ तो गयी....लेकीन कोइ हरकत मत करना...

रितेश-- अच्छा ठीक है...नही करुगां।

रितेश थाली में से खाना नीकाल कर अपने हाथो से खीलाने लगता है.....

कजरी जीस तरह बैठी थी....उसकी मदमस्त गांड रितेश के लंड के उपर ही थी....जीसे रितश ने सीर्फ महसूस ही कीया था कजरी की गांड इतनी गरम थी की उसकी गरमी रितेश के लंड में जान फूंक रही थी......

कजरी-- अब मुझे.....तेरी शादी करनी पड़ेगी.....।

रितेश-- वो क्यूं मां....?
कजरी-- क्यूकीं अब तू जवान हो गया है....इसलीए।

रितेश-- नही......मां, मुझे शादी वादी नही करनी है...।

कजरी-- क्यूं?
रितेश-- क्यूकीं मैं तुझसे प्यार करता हूं....और शादी करुगां तो तुझसे ही करुगां।

ये सुनकर कजरी का दील धक्क हो जाता है.....वो रितेश की गोद से सीधा उठ जाती है......और गुस्से में रितेश को खीच कर एक तप्पड़ रसीद कर देती है...।

कजरी-- तू सच में बहुत हरामी है.....तूझे शरम आती है की नही मुझसे ऐसी बात करते हुए......और मैं तुझसे कोई प्यार व्यार नही करती......वो तो मैं बस नाटक कर रही थी .....की ताकी तू रज्जो जैसी औरतो के चक्कर में ना पड़े......लेकीन तेरे साथ तो मैं एक दीन का भी नाटक नही कर पायी......चल अच्छा भी हुआ इसी बहाने तेरी नीयत भी तो पता चल गयी.....ये कहते हुए कजरी गुस्से में छत से नीचे चली जाती है....।

रितेश तो एक पुतले की तरह वही खड़ा रहा.....उसे यकीन नही हो रहा था की उसकी मां ने सीर्फ प्यार का नाटक कीया था और कुछ नही.......रितेश की आंखो में आंशु आ गये .....और होगा भी क्यूं नही उसके सपने जो टुट गये थे......वो हाथ धो कर वही बीस्तरे पर लेट जाता है.......




उसी राता रज्जो अपने कमरे में लेटी थी......और वो एकदम नंगी थी......रज्जो का एक हाथ उसके बुर पर था......और हाथ की दो उंगलीया उसके बुर के अंदर आगे पीछे हो रही थी.......

रज्जो-- आह.....आ......मां.......रिते....श.....डाल दे रज्जो की बुर.....में......अपना लंड......आह....

तो ले......साली.....आ गया मै.....अपना लंड ले के......।


इस आवाज से रज्जो ने जैसे ही.....अपनी आखें खोली तो देखा.....रीतेश सामने खड़ा था.......


रज्जो-- रितेश......बेटा तू......हाय रे.....मै मर गयी......मेरी कीस्मत क्या बताउं कीतनी खुश हूं मै...।

रितेश का दीमाग आज बहुत खराब था.....उसका दील जो टुटा था......और इसीलीए वो गुस्से में रज्जो के पास चला आया था.......

रितेश-- तू खुश है......तो आज मुझे भी खुश कर दे....साली....।

रज्जो-- हाय.....तेरी गालीयां भी कीतनी प्यारी लगती है....।

ये बोलकर रज्जो ने रितेश का हाथ पकड़ कर अपने उपर खीच लेती है......और अपने होठो को रितेश के होठो से सटा देती है.........
lovely update mitr.
 

Nevil singh

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आज रज्जो......रितेश को अपने उपर लिये उसके होठो को जोर जोर से चुस रही थी॥

रितेश भी......पूरी तरह रज्जो के अँदर घुल जाना चाहता था....खैर ये सब रितेश के लीये पहला अनुभव था तो उसे भी बहुत मजा आ रहा था.......वो भी रज्जो के मुह में अपना पूरा मुहं घुसा कर चुसने लगा.......।

रज्जो की हालत खराब होने लगी.......उसकीबुर गीली होकर आंसुआ बहाने लगी थी......वैसे तो उसने आज तक कयी मर्दो से चुदवाया था.....लेकीन वो मर्द गांव के नही थे......सब के सब रज्जो के कहीं ना कहीं के रिश्तेदार ही थे...।

करीब 5 मीनट चुसने के बाद.....दोनो अलग हुए.....दोनो एकदम हाफ रहे थे....।

रज्जो-- आह.....मजा आ रहा है बेटा?
रितेश-- पूंछ मत काकी बहुत मज़ा आ रहा है...

रज्जो रितेश के सामने ही अपनी एक चुचींया पकड़ कर मसलने लगी......जीसे देख रितेश के अंदर और चींगारी भड़कने लगी......

रज्जो-- बेटा.....तुझे मेरी चुचींया कैसी लगती है......

रितेश- बहुत मस्त है काकी.....बड़ी बड़ी है....लगता है.....जैसे बहुत सारा दुध भरा हो...।

रज्जो-- तो बेटा नीचोड़ कर पी जा.....इसे....।

इतना सुनते ही रितेश रज्जो की चुचीयों पर टुट पड़ा......उसकी एक चुचीयों को पकड़ कर उसने मुहं में घुसा लीया.....और जोर जोर से चुसने लगा.....और दुसरी चुचीं को अपने हाथोँ से मसलने लगा.......

रज्जो को इतना मजा पहले कभी नही आया था......उसकी सीसकीया......पूरे कमरे में गुंज रही थी......

रज्जो-- आह.....बेटा.....चुस ले.....बेटा.....हां.....ऐसे ही.....बहुत मस्त चुसता है.....आईंईंईंईंईंई......स्स्स्स्स्स।

रितेश ने रज्जो की दोनो चुचीयों को जमकर चुसा.....रज्जो की दमदार चुसाई से......उसकी दोनो चुचींया लाल हो चुकी थी.......

रितेश ने बीना देरी कीये झट से खड़ा हो जाता है.....और अपना पैंट नीकाल देता है.....उसका तनतनाया हुआ 8.5 का लंड देखकर रज्जो की आंखो में एकबार फीर चमक आ जाती है.....

रज्जो रितेश के लंड को हाथ में पकड़ लेती है......

रज्जो-- द इया.....रे द इया.....ऐसा लंड भी होता है.....मैने अपने पूरे 42 साल की उम्र में ऐसा लंड कभी नही देखा.....तेरी मां ने तूझे खीला पीला कर तेरे लंड को घोड़े का आकार दे दीया है......जो कीसी भी औरत की हालत खराब कर दे......

रज्जो की मदमस्त बाते सुनकर रितेश का लंड रज्जो के हाथ में ही झटके मारने लगता है......

अभी रज्जो रितेश के लंड को हाथ में पकड़ी ही थी की......अचानकर से दरवाजा धड़ाम से खुलता है.....दरवाजा खुलने के आवाज़ से....रितेश और रज्जो की नज़रे दरवाजे की तरफ़ गयी.....दोनो की आंखे फटी की फटी रह जाती है.....क्यूकीं सामने कजरी खड़ी थी....।

कजरी भी अँदर का नज़ारा देख कर एक दम चौंक जाती है....।

कजरी की नज़रे......की आंखे तब खुली की खुली रह जाती है.....जब उसकी नज़र रितेश के मस्ताने लंड पर पड़ती है.....जो की इस समय रज्जो के हाथ में था....।

कुछ देर के लीय तीनो को जैसे लकवा मार गया था.....तीनो अँसमंजस के भाव लीये अपने चेहरे पर मुर्ती बने खड़े रहे.....

लेकीन तभी कजरी दरवाजे की तरफ मुह करके घुम जाती है.....ये देख रज्जो ने भी रितेश का लंड हाथ से छोड़ दीया....
रज्जो जल्दी से अपने कपड़े पहन लेती है.....और रातेश भी अपना पैटं पहन कर जल्दी से कमरे के बाहर नीकल जाता है.....कजरी अभी भी वही खड़ी थी......

रज्जो अपने कपड़े पहन कर चुपचाप खड़ी थी......

तभी कजरी उसके पास आती है.......और खींच कर एक तमाचा रज्जो के गाल पर जड़ देती है......

कजरी-- तू सच में एक रंडी है........छीनाल, आखीर तू मेरे बेटे का पीछा क्यूं नही छोड़ देती?

रज्जो(शरारती) - अरे कजरी.......तूझे शायद पहले भले ही ना पता हो........लेकीन आज जो तूने देखा उसे देखने के बाद तो तूझे ये समझ में आ ही गया होगा की....क्यूं मैं तेरे बेटे के पीछे दीवानी हूं...........लेकीन तू हर बार मेरी ख्वाहीसों को पूरी होने नही देती.......मेरी प्यास अधुरी रह जाती है।

कजरी-- और तेरी प्यास हमेशा अधुरी ही रहेगी..........।

रज्जो-- तू ना ही एक औरत बन पायी.......और ना ही एक मां........तूने सीर्फ मुझे प्यासी नही रखा है.........बल्की एक मां के तौर पर तूने अपने बेटे को और एक औरत के तौर पर ठाकुर साहब दोनो को प्यासा रखा है........।

कजरी-- अरे घटीया औरत, तू क्या जाने एक औरत क्या होती है.......मैने आज तक अपने पती के अलावा और कीसी के बारे में सोचा तक भी नही........और रही बात मेरे बेटे की, तो आज नही तो कल उसकी शादी हो ही जायेगी......तड़पेगी तो तू। और तूझे शरम आनी चाहीए ठाकुर जैसे भले इंसान पर एसा इल्जाम लगाते हुए.........पहले मै भी तेरी तरह यही सोचती थी की.......ठाकुर साहब की नीयत मुझ पर अटकी है.......लेकीन मैं गलत थी........वो तो एक भले इंसान हैं..

इतना कहकर कजरी भी कमरे के बाहर चली जाती है..........और रज्जो कमरे में खड़ी कजरी को जाते हुए देखते रहती है।



दुसरे दीन सुबह.........ठाकुर की गाड़ी सीधा थाने में रुकती है........गाड़ी के अँदर से ठाकुर के साथ एक और आदमी नीकलता है और दोनो तेज कदमो से थाने के अंदर प्रवेश करते है।

थाने में दरोगा सतीश सींह अपने कुर्सी पर बैठा था.......॥

क्यूं रे दरोगा........तूझे मेरी बात समझ में नही आती.......क्या?

इस आवाज़ को सुनकर दरोगा अपनी नज़रे उपर उठाता है...........और झट से खड़ा हो कर सेल्यूट करता है।

दरोगा-- जय हीदं साहब!

ये कोई और नही बल्की उस ब्लाक के वीधायक समसेर सींह थे।

विधायक पास में रखी कुर्सी पर बैठकर एक सीगरेट जलाता है.....और कश भरता हुआ....अपनी हाथ की उगंलीयो से इशारा करता है......

दरोगा-- हवलदार छोड़ दे इन लोग को।
हवलदार-- जी साहब!

फीर हवलदार ने चंपा के साथ......ठाकुर के दोस्तो को भी छोड़ दीया.....

विधायक कुर्सी पर से उठा.....और थाने के बाहर चल दीया.....ठाकुर के साथ साथ चंपा और ठाकुर के दोस्त भी विधायक के पीछे पीछे चल दीये......

विधायक ठाकुर के साथ बाहर आकर गाड़ी के पास खड़ा हो गया...।

ठाकुर-- आपका बहुत बहुत धन्यवाद विधायक जी........

विधायक-- अरे ठाकुर साहब, इतनी छोटी सी बात के लीये आप भी क्या धन्यवाद कर रहे है.....और हां आपके प्रधानी के चुनाव का परचा निरस्त नही हुआ है......आप चुनाव लड़ सकते है......

ये सुनकर ठाकुर के खुशी का ठीकाना न रहा.....

विधायक-- अच्छा तो ठाकुर साहब मै चलता हूं

ये कहकर विधायक अपने गाड़ी में बैठकर चल देता है.......

ठाकुर भी अपनी गाड़ी में बैठकर घर आ जाता है....और मुनीम से बोलकर चुनाव प्रचार की तैयारी कराता है.....

ठाकुर अपने दोस्तो के साथ बैठा था......

ठाकुर को बस एक बात की चिंता हो रही थी की..........आखीर सेठ मरा कैसे?

करीब 1 घंटे तक बैठ कर ठाकुर अपने दोस्तो के साथ बाते करता रहा.....फीर वो मुनीम के साथ चुनाव प्रचार के लीये नीकल पड़ा......


इधर रितेश अपने घर पर अभी भी सो रहा था....सुबह के 11 बज रहे थे....

आज कजरी भी रितेश को उठाने नही गयी थी.....क्यूकीं वो रितेश से बहुत ज्यादा नाराज़ थी......तभी वहां अजय पहुचं जाता है......

अजय- काकी रितेश कहां है? आज वो चुनाव प्रचार में नही आया?

कजरी- वो सो रहा है......।
अजय-- अभी तक सो रहा है.....और ये कहते हुए अजय रितेश के कमरे की ओर बढ़ जाता है......

रितेश तो सोया ही नही था......वो परेशान तो था ही लेकीन उसकी परेशानी तब और बढ़ जाती है, जब उसकी मां उसे उठाने नही आती ..।

रितेश ये सब सोच ही रहा था की......तभी उसके दरवाजे पर खट खट होती है......रितेश ने समझा की मां ही होगी.....वो खुश हो जाता है.....तभी

रितेश.....रितेश.....कीतना सोयेगा....

अजय की आवाज़ सुनकर रितेश का चेहरा उतर जाता है.....उसे लगा शायद उसकी मां होगी लेकी न ये तो अजय था....।

रितेश उठ कर अपनी आंखे मलते हुए बाहर नीकला......

जंहा अजय और कजरी खड़े थे.....

अजय-- क्या हुआ भाई कीतना सो रहा है.....
रितेश-- बस यार तबीयत थोड़ा ठीक नही लग रही है.....

अजय-- अच्छा, तो ठीक है तू आराम कर मैं प्रचार के लीये जा रहा हूं।

रितेश - अरे अब प्रचार करने की क्या जरुरत है.....ठाकुर का तो चुनावी परचा ही नीरस्त हो गया.....अब तो प्रधानी तेरी ही है।

अजय-- यार गड़बड़ हो गयी है .....वो विधायक है ना.....उसने ठाकुर का परचा निरस्त होने से बचा लीया है.....और ठाकुर जोरो शोरो से प्रचार कर रहा है।

रितेश अजय से बात करते करते अपनी मां की तरफ भी देखे जा रहा था.....लेकीन कजरी रितेश की तरफ़ एक बार भी नही देखी.....।

रितेश-- अच्छा ठीक है.....तू चल मैं एक दो घंटे में आता हूं।
अजय-- ठीक है......ये बोलकर अजय वंहा से चला जाता है...।

अजय के जाते ही कजरी भी उठ कर रसोइ घर में जाती है......और खाने की थाली लाकर रितेश की तरफ बढ़ा देती है......लेकीन कुछ बोलती नही.....

रितेश- नही.....भुख नही है....।

कजरी कुछ नही बोलती और खाने की थाली वही रखकर जैसे ही जाने के लीये मुड़ी तो रितेश ने कजरी का पकड़ लीया.....और खीचं कर उसे जोर से अपनी बांहो में जकड़ लीया....

रितेश ने कजरी को अपनी बाहों में इतना जोर सें जकड़ा था की......कजरी की चुचींया रितेश के सीने में चीपक कर रह गयी थी......

कजरी सकपका गयी......और अपने आप को छुड़ाने लगी.....लेकीन रितेश के मजबुत बांहों से छुटना मुश्कील था.....

रितेश-- नाराज हो....मुझसे!

अब कजरी छुटने की कोशीश तो नही कर रही थी......लेकीन अपना मुंह दुसरे तरफ घुमा रखी थी और रितेश की बातो का जवाब भी नही दे रही थी.......

रितेश-- ओ मेरी दुल्हन......ऐसे तो मत नाराज़ हो मुझसे......मेरी जान नीकल जायेगी।

ये सुनकर कजरी ने.......अपना मुंह रितेश की तरह घुमाया, वो बोली तो कुछ नही लेकीन गुस्से में अपनी आंखे इतनी बड़ी कर के रितेश को देखा की....पुछो मत!

रितेश-- हाय.....इतने प्यार से मत देखो कही इस नज़र से घायल ना हो जांउं!

ये सुनते ही कजरी को हंसी आने लगी.....वो अपनी हंसी रोकना चाहती थी.....लेकीन उसके चेहरे पर एक मुस्कान बिखर ही गयी!

रितेश-- सच में.......तेरा जवाब नही......इसमे मेरी कोइ गलती नही.....तूझे भगवान ने बनाया ही ऐसा है की तेरी एक मुस्कान पर तेरा बेटा भी पागल हो जाता है......पर शायद तू मुझे कभी कबुल नही करेगी......और मैं हमेशा तड़पता रहुगां।

कजरी ने अपनी खुबसुरती की तारीफें तो बहुत सुनी थी......लेकीन आज जीस तरह से रितेश ने उसकी तारीफ़ की......कजरी रितेश के अल्फाज़ो में कही खो सी गयी......और उसकी आंखे रितेश की आंखो से टकरा गयी......

दोनो मां बेटे एक दुसरे की आंखो में इस कदर खोये थे की.....कुछ लम्हा बित गया लेकीन वो दोनो एक दुसरे से नज़रे हटाने को तैयार ही ना थे.......

रितेश धिरे धिरे अपने होठ अपनी मां के होठ के पास ले जा रहा था......कजरी भी इस तरह खो गयी थी की.....उसके भी कापते गुलाबी होठ जैसे रितेश के होठो से मील जाना चाहती हो.......दोनो के होठ इतने करीब आ गये थे की......दोनो के दील की बढ़ चुकी धड़कन से गरम सांसे आपस में मील रहे थे......जैसे ही दोनो के कांपते होठ एक दुसरे से थोड़ा सा मिले.......वैसे ही एक जोर की आवाज सुनकर कजरी का प्रेम जाल टुटा और होश में आते ही रितेश को अपने इतने करीब पाते ही......उसने रितेश को जोर का धक्का दीया और उससे अलग हो कर खड़ी हो गयी.....

रितेश नें इधर उधर देखा तो एक बील्ली थी जीसने घर के बर्तन गीरा कर वहीं बैठी थी.....जीसकी आवाज सुनकर ही कजरी रितेश से अलग हो गयी थी......

उस बिल्ली को देख कर रितेश को इतना गुस्सा आया की.....उसने एक डंडा लेकर उस बिल्ली को खदेर लीया......

और ये दे कर कजरी एक बार फीर जोर जोर से खीलखीला कर हंसने लगी.......


कहानी कैसी लग रही है.......आप लोग जरुर बताईयेगा.........अगला अपडेट आज रात तक!

thanks to my all readers ....
fantastic update mitr
 

Nevil singh

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ठाकुर चुनाव प्रचार के लीये नीकल पड़ा था......
ठाकुर के घर में सीर्फ उसकी पत्नी रेनुका थी......रेनुका 48 साल की गोरी चीट्टी औरत थी....भरा हुआ बदन पर शांत रहने वाली औरत थी......

जैसे ही सब चुनाव प्रचार के लीये नीकले..... रेनुका फीर से अपने कमरे में चली गयी......।

रेनुका कमरे में अकेले बैठी थी.....की तभी वहां चंपा आ गयी.....चंपा के हाथ में चाय का कप था.....

चंपा चाय का कप रेनुका के तरफ करते हुए-

चंपा- ये लीजीये मालकीन चाय पीलीजीए!
रेनुका ने अपना हाथ बढ़ाकर चाय का कप ले लीया.....

चंपा चाय दे कर जैसे ही जा रही थी , रेनुका ने चंपा को रोक लीया.....

चंपा- जी कहीए मालकीन क्या हुआ?
रेनुका- चंपा जीस रात सेठ जी का कत्ल हुआ....उस रात तू यहां क्या कर रही थी?

रेनुका के इस जवाब ने चंपा के पसीने छुड़ा दीये.....वो कशमकश में पड़ गयी और रेनुका के बातो का क्या जवाब दे उसे कुछ समझ में नही आ रहा था....

चंपा-- वो......वो मै....मै.....उस रात...।
रेनुका-- डरने की जरुरत नही है चंपा तू खुल कर बोल.....

चंपा ने सोचा की छुपा कर कुछ फायदा नही है......और वैसे भी सेठ जी का कत्ल मैने थोड़ी ही कीया है.....जो डरु......और ये बात तो मैने उस दरोगा को भी बता दीया है।

फीर चंपा ने उस रात की घटना रेनुका को पुरा साफ साफ बता दीया.....

ये सुनकर रेनुका ने कहा....

रेनुका- तो तू उस रात सेठ जी के साथ कुछ नही कर पायी!

चंपा-- कहां मालकीन.....सेठ जी का पानी छुटते ही, दुबारा उठे ही नही....

रेनुका- कीतना बुरा लगता है ना....जब कोई औरत अधुरी प्यासी रह जाती है, तो।

रेनुका की बात सुनकर चंपा फीर असमंजस में पड़ जाती है....उसने सोचा की मालकीन ये कैसी बात कर रही है.....घर में कतल हो गया है.....और ये कैसी बात....तभी

रेनुका-- मुझे पता है तू क्या सोच रही है....लेकीन अब तू ही बता की इस घर में कोई औरत तो है नही जीससे मैं अपने दील की बात कर सकूं , मेरी बेटी है तो उससे मै अपनी हालत बंया नही कर सकती....


चंपा-- कैसी हालत मालकीन?
रेनुका-- एक प्यासी अकेली औरत की कैसी हालत होती है?

चंपा-- लेकीन मालकीन........ठाकुर साहब के होते हुए आप!

रेनुका- तेरे मालीक बड़े रंगीन कीस्म के मर्द है........उन्हे तो दुसरी औरतो में सुख मीलता है.......मेरे पास तो उनको आये ज़माना हो गया.......और सुना है की अब तेरे मालीक कीसी कज़री नाम के औरत के पीछे पड़े है.........लेकीन वो औरत इनके हाथ नही आ रही....क्या तू जानती है उस औरत को?

चंपा- लो कर लो बात , भला कजरी को कौन नही जानता..........सच कहूं तो कजरी के पीछे मालीक ही नही, बल्की पूरा का पूरा गांव लगा है।

रेनुका-- क्या सच में वो इतनी सुंदर है।
चंपा-- सुंदर नही मालकीन सुदंरता की मुरत कहो.......

रेनुका- काश भगवान ने मुझे भी उतना सुदंर बनाया होता तो मेरा पती दीन रात मेरे पीछे ही घुमता...

चंपा- बुरा ना मानो तो एक बात कहूं मालकीन!

रेनुका-- अरे बोल तू......मै भला बुरा क्यूं मानूगीं?

चंपा-- प्यास बुझाने के लीये जरुरी थोड़ी है की पती का ही होना जरुरी हो......कभी कभी दो औरते मीलकर भी अपनी अपनी प्यास बुझा लेती है.....हां वो बात अलग है की मर्द से मीला हुआ सुख अलग ही एहसास देता है लेकीन जंहा मर्दो की उम्मीद कम लगे वंहा अगर एक औरत दुसरे औरत के काम आ जाये तो बुरा क्या ?

ये बात सुनकर रेनुका की आंखो में चमक सी आ गयी.....

चंपा-- अगर आप कहे तो, इस काम में मै माहीर हूं।

रेनुका कुछ बोलने ही वाली थी की....तभी उसका छोटा बेटा राजीव वंहा पहुचं गया...

राजीव को देखकर रेनुका और चंपा दोनो की आंखे फटी पड़ जाती है,

क्यूकीं राजीव अपने फोन में उन दोनो की बाते रीकार्ड करके अपने फोन में चालू करके उनके सामने ही खड़ा हो गया।

राजीव-- इस काम मे सीर्फ तू नही मैं भी माहीर हू चंपा.....और मेरी मां की हालत तुझसे बेहतर मैं समझ सकता हूं.....है की नही मां।

रेनुका हंसते हुए बीस्तरे पर से उठी और अपने बेटे के करीब जा कर उसके गले में अपनी बांहे डाल देती है.

रेनुका-- पिछले एक सालो से तू ही तो अपनी मां की हालत समझ रहा है बेटा!

चंपा अब तक जीसे भोली भाली नादान समझ रही थी....उसका ये रुप देखकर तो वो हैरान रह गयी , और सबसे बड़ी हैरानी की बात तो मां बेटे के रीश्तो में संबध की थी....चंपा कुछ बोलती इससे पहले ही

रेनुका- मुझे पता है तू इस समय क्या सोच रही है....और तू जो सोच रही है बिलकुल सही सोच रही है.....ये मेरा बेटा पिछले एक सालो से तेरी मालकीन की बुर को शांत कर रहा है.......

चंपा की हालत को लकवा मार गया....उसे कुछ समझ में नही आ रहा था।

चंपा- तो....तो मालकीन अ...आप मेरे साथ ये कब से क्या?

रेनुका-- तेरे साथ ये थोड़ा बहुत खेल खेलना पड़ा....वो हमारी आदत है क्यूं बेटा! असली काम तो हमारा मोहरा ढ़ुढ़ने का था।

चंपा(चौकते हुए) - मोहरा! कैसा मोहरा?

रेनुका- मोहरा...मतलब तू!

ये बात पर चंपा को पसीने आने लगे.....वो एकदम घबरा गयी....वो अपने चेहरे पर से पसीने पोछते हुए बोली-

चंपा- म.....मै कुछ समझी नही!

रेनुका- ठीक है मै समझाती हूं.....यहां से करीब 500 कीलो मीटर दुर एक घनी पहाड़ी है....और वो पहाड़ी करीब हजार कीलोमीटर के दायरे में स्थीत है....

उस पहाड़ी का नक्शा वो तो ठाकुर के पास है, यानी की मेरे पती के पास।

और वो नक्सा मेरे पती ने अपने बाप को मारकर हांसील की थी.....लेकीन उस पहाड़ी के नक्से का एक छोटा सा टुकड़ा वो जीसके पास है वो मेरे पती के अलावा मैं भी जानती हूं की वो कीसके पास है।

अब मेरा सबसे बड़ा खतरा मेरा पती है....क्यूकीं उसने उस नक्से के चक्कर में सीर्फ अपने बाप की ही जान नही ली थी....बल्की मेरे बाप की भी जान ली थी....लेकीन उस नक्से का जो छोटा टुकड़ा था उसे एक आदमी ले कर नीकल गया था.....ऐसे बहुत सारे राज़ है उस पहाड़ी के जो सीर्फ एक शख्स जानता है....और उस इसांन के पास मेरा पती पहुचें इससे पहले मैं उसको उपर पहुचाँ दूगीं॥

एक बार मैने कोशीश भी की थी....लेकीन उस कोशीश में बेचार सेठ मर गया.....

चंपा की हालत को अब लकवा मार गया....

रेनुका- - तू डर मत मैं तुझे ठाकुर को मारने के लीये नही कह रही.....तूझे सीर्फ एक काम करना है.....जीसके बदले तूझे मुहमागीं कीमत मीलेगी......

चंपा के चेहरे पर घने बादल मड़रा रहे थे....वो सोचने लगी की कहीं ये लोग पैसे के लालच में मेरी जान का सौदा ना कर दे....

रेनुका- - क्या सोचने लग गयी...?
चंपा (चौकते हुए) - हां.....हां....करूगीं॥

चंपा के मुह से अनायास ही ये शब्द नीकल पड़े।

रेनुका-- तो तुझे जो काम मै दे रही हूं वो तुझे सोच समझ कर करना होगा.....तुझे मै एक पहेली बता रही हूं उस पहेली का मतलब ही तूझे ठाकुर साहब से पता करना है...।

चंपा-- पर मालकीन ये तो आप सीधा ठाकुर साहब से पुछ सकते हो....इसमे मेरी क्या जरुरत!

रेनुका- इस पहेली का जवाब , अगर ठाकुर साहब से आसानी से मील जाता तो मैं कब का पुछं चुकी होती।

चंपा- अगर पहेली का जवाब इतना ही जरुरी है तो.....आप ने पहेली के जवाब मीलने से पहले ठकुर साहब को क्यूं मारने का प्रयास कीया।

रेनुका-- क्यूकीं इस पहेली का जवाब ठाकुर को भी नही पता....लेकीन कीसको पता है ये ठाकुर जानता है।
ठाकुर साहब ने मुझे उसका नाम बताया था....लेकीन उसने मुझसे झूठ कहा था ये बात मुझे कल पता चली...

चंपा - ले....लेकीन पहेली क्या है?

रेनुका - तो सुन
"सावन के गीत बने तो, बने नाम वो प्राण प्रीये का॥ प्राण प्रीये का प्राण अश्व समुखा, जो तन भोगे प्राण प्रीये का प्राण नाथ समुखा॥ वो संकीला होय॥

ये पहेली सुनकर चंपा चौकते हुए बोली-

चंपा- ये......ये पहेली मैने कही सुनी है।

चंपा के मुह से ये सुनकर राजीव और रेनुका एक दुसरे का मुह देखने लगे.....और चौकंते हुए बोले-
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राजीव और रेनुका चौंकते हुए चंपा से पुछें-

रेनुका- कहां सुना था ये पहेली?

चंपा अपना दीमाग चला कर सोचते हुए कुछ समय बाद बोली-

चंपा- हां याद आया......एक बार ठाकुर साहब अपने कमरे में रात के समय दारु पी रहे थे....उसी समय मैं खाने के लीये पुछने गयी .....तो ठाकुर साहब यही पहेली बड़बड़ा रहे थे....और बार बार एक ही चीज बोल रहेथे!

रेनुका- क्या बोल रहे थे?

चंपा- वो बोल रहे थे की , बेटा है या घोड़ा!

रेनुका- बेटा है या घोड़ा, इसका क्या मतलब हुआ...रेनुका ने सोचते हुए बोला!

चंपा- मालकीन लेकीन मुझे एक बात समझ में नही आयी की, ये पहाड़ी का क्या राज है?

रेनुका- वो तो पता नही, लेकीन जो भी है पता लगाकर ही छोड़ुगीं...

राजीव- अच्छा मां मैं जा रहा हूं....चुनाव प्रचार में!

और इतना कहकर राजीव जैसे ही जाने के लीये मुड़ा....रेनुका ने उसका हाथ पकड़ लीया!

रेनुका- कहा जा रहा है? अपनी मां की गरमी बीना शांत कीये!

रेनुका के इस कथन पर चंपा का मुह खुला रह गया , उसने सोचा की क्या अब ये मां बेटे चुदाई करेगें वो भी मेरे सामन!

चंपा सोच ही रही थी की तभी...रेनुका ने कहा-
रेनुका- और वैसे भी बेटा....बीना तेरे लंड के मुझे चैन नही आता....साल भर चोद चोद कर तुने तेरी मां का भोसड़ा खुश कर दीया।

रेनुका की मस्त बातो से चंपा का भी बदन गरम होने लगा....वो बस वही खड़ी होकर रेनुका की बाते सुन रही थी......

राजीव भी अपनी मां की बात सुनकर मस्त हो गया......उसने अपनी मां का बाल अपने हाथो में पकड़ कर जोर से खीचा......

रेनुका - आईईईईई बेटा........
राजीव- साली......साल भर से रोज तेरी बुर 4 बार चोदता हूं लेकीन तेरी बुर की गरमी शांत नही हो रही...

रेनुका(कराहते हुए) - आ.....ह बेटा तेरा जोश मेरे बुर में .....आग लगा देता है।

चंपा हैरान हो जाती है ये सोच कर की ये मां बेटे कीतनी गंदी बात कर रहे है....लेकीन उनकी बातो से चंपा भी मस्त हुई जा रही थी.....

राजीव एक हाथ से अपनी मां का बाल खीचें हुए था.....और दुसरे हाथ से अपना पैंट खोल दीया......और जैसे ही अपना लंड हाथ मे नीकाल कर लीया......चंपा की सांसे रुक गयी......

राजीव का 7.5 इंच का लंड और करीब 3 इँच मोटा एक दम टाइट राजीव के हाथो में था.....चंपा ने इतना बड़ा और मोटा लंड कभी नही देखा था......

तभी राजीव ने अपनी मां का बाल खीचंते हुए उसे अपने घुटने के नीचे बीठा दीया...

रेनुका- आ.........ह.......!

राजीव का फनफनाता लंड उसकी मां के आखों के सामने था......रेनुका ने झट से राजीव का लंड अपने मुह घुसा लीया.....और उसे जोर जोर से चुसने लगी....वो राजीव के लंड को पुरा अपने गले तक ले लेती......

ये देख कर चंपा हैरान रह गयी की इतना मोटा और लबां लंड भला मालकीन पुरा अपने मुह में कैसे ले रही है..।

राजीव खड़ा मस्ती से अपना लंड चुसवा रहा था.....उसने चंपा की तरफ देखा तो चंपा की नज़रे उसके लंड और मां पर टीकी थी.....

तभी राजीव ने.......अपनी मां का सर दोनो हाथों से कस कर पकड़ लीया......और अपनी मां के मुहं मे जोर जोर से धक्का लगाने लगा.......
रेनुका इस झटके के लीये तैयार नही थी......जैसे ही रेनुका के मुंह में एक के बाद एक झटके लगने शुरु हुआ......रेनुका का मुह तकलीफ के कारण लाल हो गया......उसकी आंखे बड़ी होने लगी.....और आंखो से पानी भी नीकलने लगा.......फच्च फच्च की आवाज़ से राजीव अपना लंड झटके से अपनी मां के गले तक अपना समुचा लंड पहुचां देता......और वो जब अपना लंड बाहर खीचंता तो रेनुका के मुहं से ढेर सारा थुक भी नीकल कर जीमन फर्श पर गीर जाता......

चंपा को पसीने आने लगे.......उसने लंड तो चुसे थे......लेकीन मुह की इस प्रकार से जोरदार चुदाई पहली बार देख रही थी.......खड़े खड़े चंपा का पांव कापने लगा.....और ऐसा नज़ारा देख जंहा एक बेटा अपनी मां के मुहं को बेरहमी से चोद रहा था.......और वो मां जो इस अपने बेटे के लंड से झटपटा रही थी.......गुं.....गुं.....गु....करते हुए रेनुका अपने बेटे का लंड अपने गले तक ले रही थी......जो चंपा की भी हालत खराब कर रहा था.....राजीव अपना गांड पीछे ले जाकर ऐसे झटके मार रहा था.....जैसे आज वो अपनी मां का मुह ही फाड़ देगा......वो रेनुका को सांस लेने तक की भी फुर सत नही दे रहा था.......

राजीव - ले.......साली.....कुतीया......ठाकुर की छीनाल औरत......मेरी रंडी , कहते हुए राजीव ने एक जोर के झटके के साथ अपना लंड गले तक पहुचां दीया ......

रेनुका कीसी जल बीन मछली के तड़प रही थी......वो अपना हाथ राजीव के पैर पर मारने लगी.....और छटपटाने लगी......लेकीन राजीव था की उसे छोड़ ही नही रहा था......

रेनुका को इस तरह छटपटाता देख चंपा के भी रौगंटे खड़े हो गये......

तभी राजीव ने झटके से अपना लंड अपनी मां के मुह से नीकाला तो रेनुका अपने सीने पर हाथ रखकर खासने लगी......

रेनुका वहीं फर्श पर बैठी खांस रही थी....

राजीव- चंपा थोड़ा पानी लेकर आ....
चंपा- जी छोटे मालीक!

ये कहकर चंपा पानी लाने केलीये चली गयी.........

और जब वो लौटी तो देखती है की...... राजीव अपनी मां को घोड़ी बनाया था.....और वो बीस्तर के छोर पर खड़ा अपनी मां के बुर में लंड घुसाये उसे जोर जोर से चोद रहा है.......और रेनुका की चींखो से पूरा कमरा गुंज रहा था......

चंपा पानी का ग्लास राजीव को देकर फीर से वहीं खड़ी हो जाती है........उसने सोचा की छोटे मालीक पानी मालकीन को पीने को देंगे लेकीन ये क्या ये तो खुद पी रहे है।

एक 19 साल के लड़के को ऐसे चोदते हुए देख चंपा की भी बुर की फांके फुलने पीकने लगी......

रेनुका- हाय......रे.......इ....ईईईईईइ....बे.....टा.....आज मार डालेगा क्या...........आह.....चोदते रह......बेटा.....मजा आ रहा है.........

रेनुका को अपना पुरा मुह फाड़ कर चील्लाते हुए देख......चंपा को भी बर्दाश्त से बाहर होने लगा.......उसने अपना एक हाथ.....साड़ी के उपर से ही रखकर अपनी बुर मसलने लगी.......उसने सोचा की काश इस वक्त मैं मालकीन की जगह होती और छोटे मालीका इसी तरह मुझे भी चोदते.....लेकीन चंपा जानती थी की इस समय मां बेटे की चुदाई में विध्न डालना सही नही.....

राजीव अपनी मां को कीसी कुत्ते की तरह चोद रहा था......उसकी रफ्तार से......रेनुका के साथ साथ पुरी की पुरी चारपायी.....हचर पचर कर रही थी......और राजीव अपनी मां का बाल खीचें रेनुका को चोदे पड़ा था.......

कुछ 20 मीनट की चुदाई होती रही.......तभी

रेनुका- आ.......ई......ईईईईस्स्स.......बेटा मै गयी......

ये कहते हुए रेनुका अपना मुह बिस्तर में गड़ा लेती है.......उसका बदन अकड़ने लगता है.....और कुछ ही समय में वो झर जाती है...........राजीव भी धक्के पर धक्के लगाने के बाद जब वो झड़ने के कगार पे आया तो........

राजीव- आ......ह गया......मै भी.......रंडी....।

और फीर राजीव ने जोर का झटका मारा और फीर अपना पुरा रस अपनी मां की बुर में छोड़ने लगा.......

दोनो पसीने पसीने हो गये थे.......और हाफ रहे थे......राजीव का लंड ठीला पड़ गया था.....उसने आपनी मां के गांड पर जोर का थप्पड़ मारते हुए बोला-

राजीव- ठंढ़ी हो गयी तेरी बुर मेरी रंडी!
रेनुका उठ कर अपनी बांहे राजीव के गले में डालती हुई!

रेनुका - जब तू बेरहमी से चोदेगा तो ठंड़ी तो हो ही जायेगी तेरी रंडी।

राजीव अपने कपड़े पहन कर चुनाव प्रचार में नीकल जाता है।

रेनुका बिस्तर पर नंगी पड़ी थी......तभी चंपा उसके पास आती है.....चंपा की नज़र रेनुका के बुर पर पड़ती है......जो की एकदम चौड़ी हो चुकी थी......और उसमे से राजीव का पानी टपक रहा था.......

चंपा- वाह.......मालकीन.....छोटे मालीक का जवाब नही......आपको सच में कीसी रंडी की तरह चोद रहे थे।
रेनुका- सच कहा तुने चंपा......चोद चोद कर मुझे वो अपनी रंडी बना लीया है......

चंपा- हां देखो ना कैसे आपकी बुर चौड़ी हो गयी है।

रेनुका- तू घबरा मत, तेरी भी बुर अपने बेटे से जल्द ही चौड़ी कराउगीं।

ये सुनकर चंपा खुश हो जाती है......।

रेनुका- चल अच्छा अब अपने छोटे मालीक का पानी मेरे बुर पर से चाट कर साफ कर दे....

रेनुका के इतना कहते ही चंपा कुदकर बीस्तर पर चढ़ गयी और अपने जीभ से रेनुका की बुर कीसी कुतीया की तरह चाटने लगी........



आज सबकी नज़रे......आंचल पर ही टीकी थी....क्यूकीं आज आंचल एकदम बनठन के आयी थी.....रोज रोज ठाकुर के चुनाव प्रचार में जाने वाले गांव के लड़के आज आंचल की खुबसुरती के कायल हो गये थे.....और वो सारे लड़के आज अजय के चुनाव प्रचार में लगे थे......

निलम- यार आंचल तू रोज आया कर चुनाव प्रचार में।
आंचल- वो क्यूं?

निलम- क्यूकीं जब तू आती है.....तो हमारे चुनाव प्रचार की जनसंख्या मे इज़ाफा हो जाता है......

ये कहकर नीलम और आँचल दोनो हंसने लगती है.....

आंचल - हां लेकीन जीसे आना था.....आज वही नही आया है....

नीलम झट से समझ जाती है की आंचल रितेश की बात कर रही है.....

आंचल- पुछ ना अपने भैया सै की आज क्यूं नही आया वो..।

नीलम- उसका तबीयत खराब है.....इसीलीये आज नही आया.....भैया ने खुद बताया था सुबह.....

ये सुनकर आंचल थोड़ा हैरान हो जाती है....जीसे नीलम ने साफ परख लीया था!

नीलम- ज्यादा तबीयत नही खराब है , तू हैरान मत हो!

आंचल- चल ना थोड़ा उसे देख कर आते है...

निलम- हमें कही जाने की जरुरत नही है....वो देख आ गया तेरी जान!

आंचल ने जैसे ही अपने नज़रे उठा कर देखा तो रितेश आ गया था और वो अजय के पास खड़ा था.।

नीलम- अब पड़ गयी दील को ठंढ़क!
आंचल कुछ बोली तो नही लेकीन शर्मा जरुर गयी.......

अजय- कैसी है तबीयत?
रितेश- ठीक है.....भाई, लेकीन आज ये गांव के सारे लड़के क्यू जमा हो गये है.....तू भी कहीं चुनाव प्रचार के लीये पैसे तो नही बांट रहा है।

अजय- अरे इतनी औकात कहां मेरी.....ये सारे लड़के तो तेरी जान के पीछे आये है....जरा उधर देख!

रितेश ने अजय के उगंली के इशारे की तरफ़ अपनी नज़रे घुमायी तो देखता रह गया...

रितेश- बहुत ख़ुब यार.......मतलब एक हद होती है खुबसुरती की.....और इसने वो हद पार कर दी है......तू रुक मै मीलकर आता हूं।

रितेश आंचल की तरफ बढ़ने लगा.....

निलम- वो देख रितेश तो इधर ही आ रहा है।

आंचल का दील जोरो से धड़कने लगा......रितेश आंचल के करीब जैसे ही पहुचंता है।

रितेश- निलम थोड़ा पानी ले कर आ!

नीलम आंचल की तरफ देख कर हल्का सा मुस्कुराती है और फीर पानी लाने चली जाती है......

आंचल- अब कैसी तबीयत है तुम्हारी?
रितेश- तुम्हे कैसे पता की मेरी तबीयत खराब है।

आंचल- वो.....निलम ने बताया।
रितेश- मेरी तबीयत तो तुम्हे देख कर ही खराब हो जाती है.
super hot update
 

Nevil singh

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आंचल अपनी नज़रे झुकायी बोलती है!

आंचल- तुम्हारी हालत क्यूं खराब होने लगी भला, वो भी मुझे देखकर?

रितेश- अब तुम इस तरह तड़पाओगी मुझे तो हालत तो खराब होगी ही ना मेरी!

आंचल को ये सुनकर बहुत खुशी हुई की रितेश मुझसे प्यार करता है....और आज वो जो इतनी सज धज के आयी थी...वो रितेश को रिझाने के लीये ही तो आयी थी...

आंचल और रितेश दोनो चुप थे की तभी वहां नीलम पानी ले कर आ जाती है.....

नीलम- ये लो रितेश भैया...पानी!
रितेश पानी का ग्लास ले कर आंचल की तरफ बढ़ा देता है।

रितेश - ये लो पी लो......दील की धड़कन शांत हो जायेगी।

आंचल ये सुनकर और ज्यादा शरम से लाल हो जाती है....और पानी का ग्लास ले लेती है.....

कुछ देर में सब चुनाव प्रचार के लीये नीकल पड़ते है.......


सारा दीन चुनाव प्रचार करने के बाद.....रितेश अजय के साथ गांव के पुलीया पर बैठा था।

अजय - यार भाई, चुनाव के लीये मुझे कुछ ज्यादा ही परेशानी हो रही है.....

रितेश - कैसी परेशानी बे?
अजय - अरे यार भाई.....ये ठाकुर की पहुचं बहुत उपर तक है......चुनाव तो अपने हाथ में नही हैं समझ।

रितेश - हम्म्म......चल तू पहले ठेके पर....
अजय रितेश के साथ शराब के ठेके पर पहुचंता है....वंहा अजय ने शराब की दो बोतल खरीदी......और फीर गांव के बाहर तालाब पर बने पुलीया पर बैठ कर शराब पीने लगते है.......

रितेश और अजय बैठ कर दारु पी रहे थे.....चादं धरती पर अपना उज़ाला बीखेरी थी......और ठंढ़ी हंवाये चल रही थी.....।

रितेश - यार एक बीड़ी जला!
अजय ने एक बींड़ी अपने मुह में डालकर जैसे ही माचीस की तीली मारने को हुआ.......

रितेश- यार.....अजय इतनी रात को इस जंगल में तुझे कुछ उज़ाला ......नही दीख रहा है!

अजय बींड़ी को वापस मुहं मे से हाथ मे ले लेता है.....।

अजय - अरे भाई तू भी क्या बात कर रहा है.....इतनी रात को भला इस घने जंगल मे कौन आयेगा? जंहा सब दीन में आने से भी डरते है.....

अजय अपनी बात अभी पूरी भी नही की थी की......उन्हे गोली चलने की आवाज़ सुनायी पड़ी.....।

धांय.....धांय.......धांय......

एक के बाद एक करीब तीन बार गोलीया चलने की आवाज़ ने.......रितेश और अजय के चढ़ चुके शराब के नशे भी उतर गये.....

रितेश झट से पुलीया पर से उठ कर गोलींयो की आवाज़ की तरफ भागता है...

अजय भी रितेश के पीछे भागते हुए , जंगल की तरफ नीकल देता है.....

अजय रितेश के पीछे पीछे उस जगह तक पहुचं जाता है.......
कुछ 10 कदमों से दुर वंहा लकड़ीया , जल रही थी.... और उस आग के चारो तरफ़ करीब 10 लोग जो की , अपने चेहरे पर काले कपड़े बांधे हुए थे।

रितेश एक झांड़ी के पिछे खड़ा हो कर ये सब देख कर दंग रह गया......

अजय - भाई ये सब कौन है?
रितेश - चुप .......धिरे बोल, पता करते हैं की कौन है।

थोड़ी समय बाद....उन दोनो की आंखे खुली की खुली रह गयी....

राजू जो की रज्जो का बेटा था....वो कुछ आदमीयो के साथ एक बक्सा ले कर ठाकुर के गोदाम से बाहर नीकला....दो लोग एक हवलदार को पकड़े हुए थे.....

और तभी कुछ आदमी....अँदर से एक और आदमी को पकड़ कर ले आते है....जीसे देख कर रितेश और आजय चौकं जाते है..।

वो आदमी कोई और नही दरोगा था....दरोगा के कपड़े फटे थे....और उसके चेहरे पुरे सुजे हुए थे....औल पेट गर्दन पर खुन भी लगे हुए थे।

ये नज़ारा देखकर रितेश और अजय की हालत खराब हो गयी....दोनो झांडीयो के पीछे छुपकर ये सब देख रहे थे....

तभी उस जगह एक गाड़ी आकर रुकी....

अजय(आश्चर्य से) - अब ये कौन है?
रितेश कुछ बोला नही लेकीन अपनी एक उंगली अपने होठ पर रखकर चुप रहने का इशारा कीया!

तभी दरवाज़े का गेट खुलता है....उसमे से दो आदमी उतरते है.....
रितेश और अजय ये देखकर चौक जाते है की.....गाड़ी में से उतरने वाला कोई और नही बल्की विधायक और ठाकुर था!

अजय - भाई ये तो....
रितेश - चुप....चुप रह एकदम!

ठाकुर गाड़ी से नीचे उतर कर दरोगा के नज़दीक जाता है....दरोगा अपने घुटने पर बैठा था और दो आदमी....दरोगा के हाथ पकड़े हुए थे!

ठाकुर दरोगा के पास बैठते हुए-

ठाकुर - अरे....दरोगा साहब आप इस हालत मे ....ओ हो....सच बताउं दरोगा साहब.....आपको इस हालत में देखकर अच्छा नही लग रहा!

ठाकुर की बात सुनकर ......दरोगा ने अपने गर्दन को धीरे धीरे कराहते हुए उठाया और फीर बोला-

दरोगा - क्यूं....गांड फट गयी क्या तेरी ठाकुर?

दरोगा की बात पर ठाकुर को गुस्सा आया और जोर का थप्पड़ दरोगा के गाल पर ज़ड़ दीया!

ठाकुर - अबे....कुत्ते मौत के मुह में खड़ा है...और मुझे डरा रहा है! साले।

ये सुनकर दरोगा हंसने लगता है.....और बोला-

दरोगा - अबे तू क्या मुझे डरायेगा.....साले मादरचोद!

ठाकुर का गुस्सा आसमान पर पहुचं गया....

ठाकुर अपने बगल में खड़ा एक आदमी से बंदुक छीनते हुए दरोगा के कनपटी पर सटा कर गोली चला देता है....

ठाकुर - साले, मुझे गाली देता है....
दरोगा वहीं जमीन पर गीर जाता है....

ये खौफनाक मजंर देख कर अजय कांपने लगता है....रितेश को भी पसीने आने लगते है...

ठाकुर - मेरे काम में जो टांग लड़ायेगा वो जान से जायेगा....सुनो रे! लाश को ठीकाने लगा दो!

और इतना बोलकर ठाकुर विधायक के साथ गाड़ी में बैठ जाता है....और गाड़ी वंहा से नीकल जाती है।

थोड़ी देर बाद धिरे से अजय और रितेश भी वंहा से नीकल कर गांव के पुलीया पर आ जाते है...

रितेश ने अजय को देखा ....तो एकदम डरा हुआ था....चांद के रौशनी में रितेश अजय का चेहरा साफ देख सकता था!

रितेश - क्या हुआ?
अजय - भाई गलत पंगा ले लीया! ये ठाकुर तो बहुत खतरनाक आदमी नीकला...इसने तो दरोगा को ही मार दीया....

ये सुनकर रितेश हंसने लगा.....

अजय - अरे भाई यंहा गांड फटी पड़ी है...और तू हंस रहा है।

रितेश - अबे साले....मैं तो ठाकुर के बरबादी पर हंस रहा हूं।

अजय - ठाकुर की बरबादी.... वो कैसे?

रीतेश - तू एक काम कर...अभी घर जा...कल मुझे बनवारी के ठेले पर मील!

अजय - लेकीन!
रीतेश - अभी जा....बहुत रात हो गयी है!

अजय - ठीक है!
और फीर रितेश और अजय अपने अपने घर की ओर नीकल जाते है।

रितेश जैसे ही घर पहुचंता है....वो बाहर खाट पर बैठ जाता है....आज के हादसे ने उसे परेशानी में डाल दीया था.....।

वो अपना दोनो हाथ सर पर रखे हुए था....और कुछ सोच रहा था.....की तभी कजरी वंहा आ जाती है।

कजरी जब रितेश को देखती है तो वो हैरान हो जाती है।

कजरी (मन में ) - आज इसे क्या हो गया..? ऐसे सर पर हाथ रख कर क्यूं बैठा है, कहीं कीसी परेशानी में तो नही हैँ। क्या करुं पुछु की नही.....पुछ ही लेती हू....नाराज हूं तो क्या हुआ है तो मेरा बेटा ही ना!

कजरी - क्या हुआ.....ऐसे क्यूं बैठा है?
ये आवाज़ सुनकर रितेश ने अपनी नज़रे उठा कर अपनी मां की तरफ देखता है।

कजरी का चेहरा देखते ही मानो रितेश अपनी सारी परेशानीया भूल जाता है.।

रितेश खाट पर से उठ कर खड़ा हो जाता है....और कजरी को बांहो में भर लेता है।

कजरी(छुड़ाते हुए) - छोड़ मुझे....छोड़ !

रितेश कजरी को अपनी बांहो में और कसते हुए बोला-

रितेश - मैं भला अपनी दुल्हन को क्यूं छोड़ूं?
कजरी - अरे....मैं तेरी दुल्हन थोड़ी हूं...मैने तुझसे क्या शादी की है....जो तू मुझे अपनी दुल्हन समझ रहा है?

रितेश - तो क्या शादी करने पर ही दुल्हन बनती है..।
कजरी - और नही तो क्या? लेकीन तू मुझसे शादी करने का खयाल भी मत लाना....क्यूकीं मै तेरी मां हूं।

रितेश - बस ...बस यही बात की तू मेरी मां है....और मैं तुझसे प्यार करता हूं इसीलीये मैं तुझसे शादी करना चाहता हूं।

कजरी - ये प्यार नही हवस है....हवह!
रितेश गुस्से में आकर......अपनी मां को जोर का तमाचा मारता है...

तप्पड़ पड़ने से कजरी की गाल लाल हो जाती है....उसकी आंखो में आशुं आ जाते है।
जीसे देखकर रितेश को अपने आप पर गुस्सा आता है....वो प्यार से अपनी मां के चेहरे को अपने दोनो हथेलीयों में पकड़ अपनी उगंलीयो से कजरी के आखों से आंशु पोछते हुए बोला-

रितेश - ये हवस नही है मां, मैं सच में तुझसे प्यार करता हूं....अगर मुझे अपनी हवस ही मिटानी होती तो तूझे ये तो पता है की रज्जो हैं....और रज्जो ही क्यूं बल्की मैं कीसी से भी शादी कर लेता!

कजरी अपने गोरे खुबसुरत मासुम चेहरे को अपने बेटे के हथेलीयो में डाले अपनी कारी,कजरारी आंखो से रितेश को देखते हुए सोचा....

कजरी - बात तो ठीक है...अगर ये हवस होता तो सच में रज्जो तो हाथ धो के....हाथ क्या पुरा नहा धो के पड़ी है....तो क्या सच में वो सीर्फ मुझे अपनी!

कजरी - तो तू क्या चाहता है?
रितेश - यही की तू मेरी दुल्हन बन के मेरे साथ रह...

कजरी - उससे क्या हो जायेगा? अगर मैं तेरी दुल्हन बन भी जाती हूं तो तेरे मेरे बीच एक पती पत्नी का वो रिश्ता ....

'कजरी आगे बोलने ही वाली थी की'

रितेश - जीस्मानी संबध यही ना....नही बनाना मुझे ये संबध...बस तू मेरी दुल्हन बन कर रह...इससे मेरे मन को शातीं मीलेगी बस!

कजरी कुछ सोचती है और फीर बोली-

कजरी - ठीक है तू मुझे अपनी दुल्हन ही बनाना चाहता है ना , तो ठीक है...मैं तुझसे शादी करने के लीये तैयार हूं। लेकीन मैं तेरी एक पूरी दुल्हन कभी नही बन पांउगी....और ना ही तू इसकी कोशीश करना!

रितेश की आंखो में ऐसी चमक पहले शायद कभी नही आयी होगी....वो इतना खुश हो जाता है की मारे खुशी के उसने कजरी के गालो को चूम लेता है।

लेकीन तभी उसे अपनी गलती का एहसास होता है-

रितेश - अरे...अरे...गलती हो गयी!
कजरी - नही जाने दे तू...तू अपनी बात पर टीक नही सकता....मैं तुझसे शादी नही कर सकती!

रितेश ने सोचा अरे यार ये क्या हो गया सब कुछ ठीक हो गया था , ये क्या कर दीया मैने....और गुस्से में ही अपने आप को दो तीन थप्पड़ जड़ देता है।

ये देख कजरी को हंसी आ जाती है....वो अपने होठो पर एक दो उंगलीया रख कर थोड़ा मुस्कुरा देती है....कजरी को मुस्कुराता देख रितेश को चैन मीलता है।

रितेश(हकलाते हुए) - म...म...मां गलती हो गयी ...अब से आगे कभी नही छुउगां...सच में।

कजरी - पक्का आगे से नही होगा?
रीतेश - पक्का नही होगा।

कजरी - तो फीर ठीक है....कल जा कर मंदीर में शादी कर लेगें।

रितेश - कल नही मेरी दुल्हन!
कजरी - ऐ खबरदार! अभी मैं तेरी दुल्हन नही बनी हूं...एक बार पहले मुझे अपनी दुल्हन बना ले , फीर जीतना चाहें उतना बोल लेना मुझे दुल्हन!

रितेश - अच्छा ठीक है...मां।
कजरी - और ये बता कल क्यूं नही करना चाहता तू शादी?

ये सुनकर रितेश थोड़ा शरारती हो कर बोला-

रितेश - ओ....हो बड़ी उतावली हो रही हो शादी के लीये मां...

कजरी - अच्छा......। जा नही करती मै शादी।

रितेश - अरे....अरे मां मज़ाक कर रहा था...कल इस लीये शादी नही कर सकता क्यूकीं कपड़े खरीदने है....अब मेरी होने वाली दुल्हन अगर दुल्हन के जोड़े में ना सजे तो फीर वो मेरी दुल्हन कैसे लगेगी।

कजरी - वो अच्छा....लेकीन पैसे कहां है कपड़े खरीदने के लीये?

रितेश - अरे क्या है मां...तू पैस की चींता मत कर....लेकीन मैने ऐसी बात बोली तू थोड़ा शरमायी भी नही...कभी , कभी मौके पर शरमा भी दीया कर....मेरे दील पर बीजलीया गीरं जायेगी।

कजरी - अच्छा ठीक है.....शरमाउगीं , अब चल और खाना खा ले....सुबह से कुछ नही खाया है तूने!

और फीर कजरी हंसते हुए रसोयी घर की तरफ चली जाती है-

रितेश कजरी को जाते हुए देख कर बोला....यार ये औरत मुझे पागल कर देगी!


lovely update dost
 

Nevil singh

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सुबह जैसे ही रितेश की नीदं खुलती है....

वो उठकर बकरीयो को चारा डालता है....
अरे उठ गया बेटा........

रितेश ने पिछे मुड़ कर देखा तो उसकी मां खड़ी थी.......रीतेश अपनी मां को जैसे ही देखता है.....उसके बदन में झनझनाहट फैल जाती है।

कजरी अभी अभी नहा के आयी.......थी, उसके बाल गीले थे और खुले भी जो कजरी की खुबसुरती पर चार चांद लगा रहे थे।

रितेश की हालत तब और खराब हो जाती है...जब उसने देखा की उसकी मां ब्लाउज नही पहनी है......उसने खाली अपनी चुचींयो को साड़ी से ढ़का था.......कजरी की मस्त चुचीया इतनी बड़ी और कसी थी की......साड़ी उपर होने के बाद भी उसकी गोरी चुचींया झलक रही थी.......उसके मोटे और बड़े नीप्पल का उभार भी रितेश साफ देख सकता था.......ऐसा नज़ारा उसने कभी नही देखा था। और शायद इतनी मस्त मदहोश कर देने वाली चुचींया भी नही देखी थी.......रितेश को सुबह सुबह ही पसीने होने लगे......और हो भी क्यूं ना, उसके सामने रुप की देवी जो खड़ी थी.......रितेश की नज़रे तो अपनी मां की चुचींयो पर गड़ सी गयी थी मानो.......

कजरी - अरे कहां खो गया.....?
रितेश - क.....कहीं नही.....।

कजरी - अच्छा कल मैने नहा कर.....अपना ब्लाउज छत पर डाला था......कहीं दीख नही रहा हैं........तूने देखा क्या?

रितेश - नही मां ......मैने नही देखा!

कजरी - अच्छा......तो लगता है शायद हवा उड़ा ले गया! लेकीन अब मैं क्या पहनू।

रितेश ने मन में ही कहा- कुछ मत पहन मां , कसम से तू परी लग रही है.....।

रितेश - क्यूं मां दुसरा नही है क्या?
कजरी - अच्छा......बेटा कभी ला के दीया एक भी कपड़ा अपनी मां को.....जो पुछ रहा है.।

रितेश अपनी मां के करीब जा कर........
रितेश - मां क्या मैं तुझे अपनी बांहो में भर सकता हूं?

कजरी - क्यूं?
रितेश - पता नही.....लेकीन ना जाने क्यूं बहुत मन कर रहा है.....।

कजरी - नही.....नही.....तू बड़ा जादुगर है....अपनी नज़रो में फंसा कर पता नही क्या क्या कर देगा?
रितेश - अरे सच में कुछ नही करुगां सीर्फ बांहों में भरुगां बस।

कजरी - खा मेरी कसम, की तू कुछ नही करेगा!
रितेश - तेरी कसम.....

कजरी - ठीक है.....लेकीन अपनी छातीया मत सटाना.....क्यूकीं मैं कुछ पहनी नही हूं॥

कजरी बोल ही रही थी की.....रितेश ने कजरी को झट से अपनी बांहो में कैद कर लीया......

रितेश की तो हालत खराब हो गयी......कजरी की चुचींया उसके सीने में धंसते ही.....रितेश भी उपर से कुछ नही पहना था......और कजरी के उपर तो सीर्फ एक पतली सी साड़ी थी.....।

कजरी की चुचींया इतनी गरम थी की......रितेश अपने सीने पर साफ महसुस कर रहा था......भले ही कजरी के चुचींयो पर एक पतली सी साड़ी थी......लेकीन रितेश को ऐसा लग रहा था की......उसने अपनी मां की नंगी चुचीयों को अपने सीने से सटाया है।

क्यूकीं रितेश कजरी की मांसल चुचींया और उसके नीप्पल को अपने सीने पर साफ महसुस कर रहा था......।

कजरी - अरे.....मैने कहा था ना की झातीया मत सटाना?
रितेश - कहां मत सटाना?
कजरी - बन मत तुझे सब पता है.....की कहां नही सटाना था.....।

रितेश - एक बात बोलूं मां, जंहा भी सटायी है.....वो चीज बहुत मस्त है.......कसम से इतना बड़ा और कसा है की.....मेरी हालत खराब कर दे रहा है।

कजरी अपने बेटे के मुहं से अपनी चुचीयों के बारे में सुनकर पानी पानी हो जाती है......लेकीन वो शरमायी नही......और रितेश को देखती रही....।

रितेश - मां तूझे शरम नही आयी?
कजरी - ओ......हो, गंदे काम तू करे और शरम मुझे आनी चाहीये?

रितेश - अरे वो वाला शरम नही.....जब औरते अपने बारे में कुछ सुन कर प्यार से शरमाती है ना वो वाला!

कजरी - नही......आयी शरम वो वाला भी तूने ऐसा क्या बोल दीया जो मै शरमाउ?

रितेश कजरी को और जोर से अपनी बांहो में भर लेता है.......

कजरी - आह.....छोड़ बेटा.....मुझे तकलीफ हो रही है।
रितेश - होने दे......पर मुझे अच्छा लग रहा है।

कजरी - अपने दांतो से रीतेश के कानो में काट लेती है...।

कजरी के काटते ही रितेश चीखते हुए......

रितेश - आ.......मां क्या कर रही है दर्द हो रहा है।

कजरी - अब समझ में आया तकलीफ क्या होता है?
रितेश - अच्छा.......।

कजरी - हां......बेटा!

रितेश कजरी के कान के पास अपने होठ ले जाते हुऐ धिरे से बोला-

रितेश - मां .........एक बार मेरी दुल्हन बन कर मेरी सेज सजा दे......कसम से तुझे इतना तकलीफ पहुचाउगां की तू उन तकलीफो की कायल हो जायेगी।

अपने बेटे के मुहं से ऐसे शब्द सुनकर कजरी अंदर तक हील गयी......उसे समझ में आ गया था की उसका बेटा कीस तकलीफ के बारे में बात कर रहा था......उसका बदन और हाथ के रोवें खड़े होने लगे थे......तभी उसे अचानक से वो द्रिश्य उसके आंखो के सामने घुमने लगा.....जब रितेश रज्जो के मुंह में अपना शानदार लंड घुसाये था......और कजरी वंहा पहुचं गयी थी.....

रितेश का शानदार लंड जब कजरी के आंखो में तैरने लगा तो.....कजरी की सांसे भी तेज होने लगी.....कजरी ने अपनी पूरी जीदंगी में सीर्फ एक लंड देखा था और वो भी अपने पती का........और रितेश का लंड देखने के बाद वो अंदाजा लगाने लगी और सोचने लगी की......ऐसा भी होता है......इतना बड़ा और मोटा......और वो छिनाल रज्जो उसे मुह में डालकर चुस रही थी......भला ये चीज भी मुंह में डालने वाली चीज है......

कजरी ये सब सोच ही रही थी की तभी.....

रितेश - क्या हुआ मां तकलीफ से घबरा गयी क्या?
कजरी रीतेश की बात सुनकर अपने हाव भाव और तेज चल रही सांसो को काबू करते हुए वो भी रितेश के कानो के पास अपना मुह ले जाकर बोली-

कजरी - अगर मैने तेरी सेज सजा दी तो मुझे पता है......की तू मुझे तकलीफ़ नही बल्की बहुत तकलीफ देगा....और शायद मै उस तकलीफ़ की कायल भी हो जाउगीं....लेकीन मै तेरी सेज कभी नही सजाउगीं....मुझे मेरी मर्यादा पता है। और रितेश के गाल पर एक छोटी सी चुम्मी देकर घर के अँदर चली जाती है......रितेश वंही खड़ा कजरी को जाते हुए देखते रहता है।



दोपहर के दो बज रहे थे......हवेली में ठाकुर और विधायक के साथ साथ मुनीम एक कमरे में बैठे दारु पी रहे थे और जोर जोर से हंस रहे थे।

हंसी के ठहाके सुनकर चंपा जो इस वक्त रसोई घर में जा रही थी.......वो उपर के कमरे की तरफ बढ़ी......

चंपा ठाकुर के कमरे के बाहर खड़ी होकर कान लगा दी.........

ठाकुर दारु का एक घुंट पीकर ग्लास टेबल पर रखते हुए.।

ठाकुर(हंसते हुए) - हा......हा.....हा, वो साला दरोगा.......चला था ठाकुर को सलांखो के पीछे डालनें........खुद साला मौत की नींद सो गया।

ये सुनकर विधायक और मुनीम दोनो हंसने लगे।

विधायक - वो सब तो ठीक है ठाकुर, लेकीन सबसे अहम काम जीसके लीये मैं और तुम ना जाने कीतने सालो से पीछे पड़े..है। 'संकीरा' उस पहेली के बारे में कुछ पता चला!

ठाकुर - हां विधायक , उस पहेली का राज सीर्फ एक शक्श जानता है।

विधायक (चौकतें हुए) - कौन?

इतना बात जब चंपा के कानो में पड़ी तो....वो अपना कान दरवाज़े से और सटा दी।

ठाकुर - चामुडां बाबा।
विधायक - चामुडां बाबा?
मुनीम - चामुडां बाबा?
चंपा (आश्चर्य से) - चामुडां बाबा?

ठाकुर - हां चामुडां बाबा.......और ये बाबा बहुत ही जिस्मखोर बाबा है.....और इसका मठ काली पहाड़ी के अँदर है.....।

विधायक - हां तो चलते है...और सीधा इस पहेली का जवाब उस बाबा से पुछते है।

ठाकुर - मैं उस बाबा के पास कयी बार गया था.....विधायक , लेकीन वो साला सीर्फ एक ही बात बोलता है.......उस पहेली का जवाब अगर मैं तुझे बता भी दीया तो तू कुछ नही कर सकता।

विधायक - तो तुमने उससे और कुछ नही पुछा!
ठाकुर - अरे विधायक पुछा था.....तो उसने कहा- आने वाली पुर्णमासी की रात वो औरत जो संकीरा पहाड़ी की रानी बनेगी....वो औरत पुर्णमासी की रात दुनीया की सबसे खुबसुरत औरत बन जायेगी.....क्यूकीं संकीरा पहाड़ी की पहेली में उस औरत का नाम है....।

विधायक (चौंकते हुए) - फीर क्या हुआ?
ठाकुर - तो मैने पुछा की बाबा नाम तो बहुत सारे औरतो का हो सकता है। तो उसने बोला नही.....सीर्फ नाम ही नही बल्की पुरी की पुरी पहेली उससे मीलती है....। तो मैने पुछा की बाबा हम उस औरत को पहचानेगें कैसे?
तो बाबा ने बोला - वो औरत पुर्णमासी की रात अपने असली रुप में आ जायेगी....दुनीया की सबसे सुदंर और मोहीत कर देने वाली औरत होगी और उसके नाभी पर एक संकीरा पहाड़ी का नक्सा जैसा बन जायेगा ....इससे तूझे पता चल जायेगा!

विधायक और मुनीम अपनी आंखे फाड़े ठाकुर को देख रहे थे...

विधायक - और.....और क्या कहा बाबा ने?
ठाकुर - मैने और पुछा, लेकीन फीर बाबा ने कहा तू सीर्फ इंतजार कर पुर्णमासी की रात का....पुर्णमासी की रात जैसे ही वो औरत अपनी खुबसुरती नीखार रही होगी , हंवाओ में एक मदंमुख कर देने वाली खुशबू फैलने लगेगी और वो खुशबू ही मुझे उस औरत तक पहुचांयेगी। इतना कहकर वो बाबा एक औरत को चोदने लगा!


विधायक - ठाकुर अगर इस बाबा को संकीरा पहाड़ी के बारे में इतना कुछ पता है , तो तुम्हे लगता है की संकीरा अपने हाथ लगने देगा।

ठाकुर - कभी नही लगने देगा....लेकीन समय आने पर हम उस बाबा का भी काम तमाम कर देगें।

ये सुनकर चंपा जैसे ही पीछे मुड़ी उसे एक नौकर आते हुए दीखा उसके हाथो में कुछ था...ये देख चंपा वही एक पीलर के आटं मे छुप जाती है..॥

वो नौकर सीधा उस कमरे में जाता है, जंहा ठाकुर बैठा था।

ठाकुर अपने ग्लास का शराब जैसे ही खतम होता है.....वैसे ही वो नौकर वहां पहुचं जाता है.

ठाकुर - अरे हरीया तू?
हरीया - मालीक , एक बड्ढी औरत आयी थी और ये खत पकड़ा गयी बोला की ठाकुर साहब को दे देना।

ठाकुर खत को लेते हुए। उसे खोल कर पढ़ने लगता है।

ठाकुर के एकदम सन्न रह जाता है।और चील्लाते हुए हरीया से पुछा!

ठाकुर - कीसने दीया ये खत?

ठाकुर को चील्लाता देख विधायक और मुनीम भी हैरान रह गये।

विधायक - क्या हुआ ठाकुर?
ठाकुर ने वो खत विधायक को पकड़ा दीया..

विधायक(खत पढ़ते) - नमस्कार ठाकुर , हमे ये खत लिखते हुए खुशी हो रही है और आपको पढ़ते हुए दुख की , कल रात तालाब के पास वाले जंगल में हमने दरोगा का खुन होते हुए देखा....तो सोचा की इतनी बड़ी बात गांव के ठाकुर और विधायक को जरुर बतानी चाहीए.....ये खुन कीसने की या और क्यूं कीया ये तो आप पता लगा ही लेंगे। हमे कुछ नही बस ये खत लीखने में हमारे कलम की स्याही खत्म हो गयी तो , आप तक इतनी जरुरी बात पहुचांयी हमने तो आप बस हमारे स्याही का दाम जो बहुत छोटी सी है , 20 लाख रुपया लेकर आज रात उसी तालाब के कीनारे एक पुलीया है बस उसी पुलीया के नीचे एक छोला होगा, तो आप वो सारे पैसे उस झोले में डाल कर वंहा से चुपचाप नीकल जाना, और हां ठाकुर जी आप अपना चुनावी पर्चा भी नीरस्त करने की महान शुभ काम जरुर करें। धन्यवाद!


ये खत पढ़ने के बाद तो विधायक का भी गांड फट गया।

ठाकुर - हरीया!
हरीया - जी मालीक!

ठाकुर - जीस बुढ़ी औरत ने तुझे ये खत दीया उसे ढ़ुढ़ं चाहे जीतने आदमी ले के जा लेकीन उस बुड्ढी का पता लगा!

हरीया - जी मालीक.!

ये कहकर हरीया वंहा से चला जाता है।

विधायक - देखो ठाकुर, अब बात मेरी विधायकी पर भी आ गयी है। अगर कहीं उसने दरोगा की कत्ल का सुबुत उन लोगो ने थाने तक पहुचां दीया तो गजब हो जायेगी....तो इससे अच्छा है की अभी पैसे दे देते है और तुम चुनाव का परचा भी नीरस्त करा लो बाद में देखेगें.....


कहानी जारी रहेगी.....





hello dosto , aap sabko kahani pasand aa rahi hai........isi josh aur khumari me mai bhi iss kahani ko kafi soch samjh kar likh raha hu........mujhse galti bas yahi ho jati hai ki update kafi late se deta hu jiske vajah se hamare readers ki utsukta kam hone lagti hai......aur mujhe pata hai ki jab aap log ki utsukta kam hone lagegi to kahani ka koi fayda nahi hoga!

to mai ye zarur koshish karunga ki update zyada se zyada du....thanks!

kahani par apni raay zarur de!
fantastic update mitr
 

Nevil singh

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दोपहर के समय, रितेश और अजय दोनो अजय के घर पर बैठे थे.,

अजय के चेहरे पर परेशानी के भाव साफ झलक रहा था।
ये देख कर रितेश अपने हाथ के पंजो को खाट पर रखते हुए थोड़ा सीधा बैठते हुए बोला'

रितेश - क्या हुआ बे, इतना 'परेशान' क्यूं है''?
अजय का चेहरे पर पसीने के साथ 'साथ- डर के बादल मड़रा रहा था, वो अपने जीभ को अपने होठो पर फीराया'मानो जैसे उसका गला सुख गया हो-

अजय - यार भाई, मुझे बहुत 'डर' लग रहा है!

अजय की बातो में सच में 'डर' साफ झलक रहा था, जो रितेश ने पहेचान लीया था.....रितेश ने अजय के जांघो पर हाथ रखते हुए बोला-

रितेश - मुझे पता है की, तू क्यूं 'डर' रहा है? लेकीन तू चींता मत कर.....ठाकुर को इस बात का, कानो -कान भी खबर नही लगेगा की, वो 'खत' हमने ही लीखा है।

रितेश की बात सुनकर अजय के अँदर थोड़ी 'हिम्मत ' आयी......। अजय खाट पर से उठ कर एक कदम आगे जा कर बोला-

अजय - वो सब तो ठीक है भाई, लेकीन वो 'पैसे'

मुझे पता है ,अजय की बात काटते हुऐ रितेश खाट पर से उठ कर अजय के पास आकर बोला-

रितेश - यही ना की, जब ठाकुर पैसे लेके 'तालाब' के कीनारे आयेगा तो, 'हम उस पैसे को कैसे उठायेगें''?

रितेश की बात सुनकर , अजय अपनी आंखे कीसी उल्लू की तरह बड़ी करते हुए बोला-

अजय - ह......हां भाई!

रितेश की आंखो में एक चमक आयी और अपने होठ को खोलते हुए अपनी मोतीयों जैसे दातं को दीखाते हुऐ हंसा और बोला-

अजय - तो फीर तू ,वो 'झोला' ले -ले और हां एक पतली सी लम्बी 'डोरी ' भी ले-लेना और चल!

रितेश की बात सुनकर अजय थोड़ा सकपका गया, और वो रितेश की तरफ घुमते हुए बोला-

अजय - ये.......डोरी कीस लीये?
अजय की बात सुनकर, रितेश अपने कदम आगे बढ़ाते हुऐ दो-चार कदम चला, और फीर रुक जाता है.......रितेश अपने मोती जैसे दांत दीखाते हुए एक बार फीर हसा, और बोला-

रितेश - तूने........एक कहावत तो सुनी होगी, ।
अजय - कौन सी कहावत?

रितेश एक बार फीर अजय की तरफ घुम जाता है, और उसकी 'तरफ आते हुए' बोला-

रितेश - यही की 'सांप भी मर जाये,और लाठी भी ना टुटे'

तभी घर के अँदर 'पायल ' की झनकारे बजती हुई आवाज़े अजय और रितेश के कानो मैं पड़ी, तो दोनो नज़रे उस तरफ़ की तो.....देखा की अजय की मां ' रेवती' हाथ में खाने की थाली ले कर चली आ रही थी!

रेवती......हरे 'रंग' की साड़ी मे जच रही थी....बहुत ज्यादा खुबसुरत तो नही बोल सकते.....लेकीन उसकी 'मोटी' कमर गदराया हुआ 'पेट' और मस्त हथीनी जैसी चाल ,जब वो चलती है तो, उसकी बड़ी-बड़ी चौड़ी हो चुकी ' गांड' एक-एक करके उपर नीचे 'मटकती' है तो.....कीसी भी जवान 'मर्द ' के सोये हुए 'लंड' को जगा सकता था।

खैर रेवती 'खाने' की थाली' लेकर उन दोनो के करीब आ जाती है,

रेवती के हाथो में मेंहदी लगी हुई थी.....उसके गोरे हाथ पर 'मेहदीं काफी जच रही थी.....वो थोड़ा झुक कर खाने की थाली खाट पर रख रही थी.....तो अजय ठीक उसके पीछे खड़ा था। रेवती जैसे ही झुकी......रेवती की मस्त 'गाड' अजय के सीधा लंड पर जा भीड़ा.....अजय ने जैसे ही अपनी मां की 'मतवाली' गांड अपने लंड पर स्पर्ष कीया तो उसके मुह से इक मादक 'सीसकारी' नीकल पड़ी.......लेकीन तभी रेवती खड़ी होने लगती है,तो......एक बार फीर रेवती की गांड अजय के लंड को धीसते हुए उसके लंड से आजाद हुई।

अजय एकदम सीधा खड़ा था......मानो जैसे उसकी मां की गांड के स्पर्ष ने.....उसके पौरुष को जगा दीया हो, अजय के लंड मे तो उसकी मां ने अपनी मस्त गांड घीसकर 'आग' तो लगा ही दीया था......लेकीन अजय ने अपने एक हाथ से.....खड़े हो चुके लंड को छुपाते हुए खड़ा रहा!

अजय - मां हमे, अभी 'भूख' नही है.....हम कीसी काम से जा रहे है......बाद में आकर खा लेगें।

रेवती अपने साड़ी के पल्लू को उठा कर वो एक कदम आगे जा कर, अजय के माथे पर से 'पसीना' पोछते हुए बोली-

रेवती - अरे....मेरे लाला, दीन भर काम-काम-काम.......खाने का तो तूझे खयाल ही नही रहता॥ पहले खाना खा ले फीर जाना......और हां रितेश बेटा तू भी खाना खा ले, फीर जाना।

ये कहते हुए रेवती पीछे मुड़ी और अपनी भारी भरकम 'गांड ' हीलाते हुए कमरे से बाहर जाने लगी.......अजय अपनी चोर नज़रो से अपनी मां की 'मटकती' हुई गांड देख रहा था.....और एक बार फीर उसके लंड को उसके मां की गांड का छुवन याद आया और उसके लंड ने एक जोर का झटका मारा"

रितेश खाट पर बैठते हुए एक अँगड़ाई ली.....और फीर खाने की थाली हाथ.....मे लेते हुए बोला-

रितेश - चल यार खा लेते है, वैसे भी दीमाग चलाने के लीये 'पेट' भरा होना बहुत जरुरी है।



चंपा अपने तेज कदम 'हवेली' की सीढ़ीयो पर बढ़ा रही थी.......वो जल्द ही रेनुका के 'कमरे' के पास पहुचं' गयी! उसने दरवाजे को अपने हाथो से थोड़ा धक्का दीया , लेकीन दरवाज़ा अँदर से बंद था......।

चंपा ने सोचा, लगता है ये मां-बेटे फीर से चोदम -चादी में लगे है.....यही सोचते हुए उसने दरवाज़े को खटखटाया......

खट्---खट्---खट्

अँदर से आवाज़ आयी......कौन है?

चंपा- अरे.....मालकीन, मै हूं चंपा!
रेनूका ने अँदर से दरवाज़ा खोला......और अपना हाथ बाहर डालकर.....चंपा को अँदर खीच लीया.....।

चंपा अपने आप को इस तरह अंदर की खीचते पा कर वो 'डर' गयी......वो जैसे ही कमरे के अँदर 'दाखील' हुई तो , वो अपने सीने पर हाथ रखकर हांपने हुए बोली-

चंपा - क्या. .....मालकीन, आपने तो मुझे डरा दीया,
लेकीन जब चंपा ने देखा की रेनुका फीर से अँदर से दरवाज़ा बंद कर रही है तो, उसने पुछा 'आप दरवाज़ा क्यूं बंद कर रही है मालकीन?

रेनुका ने कुछ बोला नही.....लेकीन वो एक शातीर औरत की तरह मुस्कुराती हुई आगे बढ़ने लगी.....।

चंपा आश्चर्य से खड़ी होकर रेनुका को देख रही थी.....लेकीन जैसे ही वो पलटी......उसके पैरो तले जमीन खीसक गयी, उसने देखा की पंलग के बगल एक कुर्सी रखी थी......और उस कुर्सी पर कोइ आदमी बंधा है.....उस आदमी का 'पीठ' चंपा की तरफ होने की वजह से वो उसे देख नही सकी......।

चंपा अपने सीने पर से हाथ हटाते हुए हकलाकर बोली-

चंपा - ये......ये कौन है मालकीन....?
रेनुका अपने कदम......चंपा की तरफ बढ़ाते हुए, उसके करीब आयी 'और अपनी एक उगंली उसके चेहरे पर उपर नीचे करते हुए बोली-

रेनुका - तुझे बहुत जल्दी है, जानने की. ...आं?
रेनुका के इस तरह बात करने के अंदाज ने चंपा की हालत थोड़ा खराब कर दी....।

चंपा अपने चेहरे पर थोड़ा 'डर' और थोड़ी 'हंसी' के भाव लाते हुए हकलाके बोली-

चंपा - वो.....वो॥ मालकीन......मैं तो बस.....ऐसे ही!

तभी रेनुका अपने कदम आलमारी की.....तरफ बढ़ायी, औल आलमारी के पास पहुचकर उसने एक बार चंपा की तरफ देखकर मुस्कुराया और फीर, आलमारी खोलकर उसमे से एक 'चाभुक' नीकाला।

ये देखकर चंपा का तो गला सुखने लगा, उसकी हालत तो कीसी सुखे पेड़ की तरह हो गयी, उसने जब देखा की रेनुका वो 'चाभुक' अपने हाथों में लीये उसके तरफ ही चली आ रही है.। तो उसने सोचा की आज तो मै मरी लगता है.।

रेनुका चंपा के एकदम करीब आकर.....उसकी आंखो में आँखे डालती हुई बोली-

रेनुका - तू घबरा मत, ये 'चाभुक' तेरे लीये नही है। ये 'चाभुक- तो उसके लीये है.'रेनुका ने अपनी उगंली का इशारा उस बधें हुए आदमी की तरफ कीया!

ये सुनकर चंपा के शरीर में जैसे 'जान' आयी हो....वो एक लंबी सांस लते हुए बोली-

चंपा - क्या मालकीन, आपने तो मुझे 'डरा' दीया था। लेकीन ये हे कौन"?

रेनुका ने फीर हंसते हुए बोला-

रनुका - ये वो इसानं है, जो मेरा नही मेरे पती का वफ़ादार है....आज इसने मुझे रंगे हाथ पकड़ लीया'' खैर वो सब तू छोड़; तू ये पकड़ रेनुका ने चाभुक चंपा की तरफ करते हुए कहा,

चंपा बेचारी हैरान-परेशान उस 'चाभुक' को अपने हाथों में ले लेती है।

रेनुका उस आदमी के तरफ अपने कदम बढ़ाते हुए बोली-

रेनुता - शाबाश: अब तू इस चाभुक से, इस आदमी की चमड़ी खीचं ले....ऐसी पीटायी कर तू इसकी!
और फीर रेनुका उस बंधे हुए आदमी के पास जाकर बिस्तर पर बैठ जाती है।

चंपा - पर मालकीन, अगर ये चील्लायेगा तो आवाज़ बाहर तक जायेगा।

रेनुका - नही जायेगा.....ये हवेली ये सोच कर बनाया गया था की, दिवारो के भी कान होते है।

'फीर क्या था चंपा बीना सोचे -समझे आगे, बढ़ी और उस आदमी के पास आकर खड़ी हो गयी।

चंपा - लेकीन, मालकीन ये कौन है?
रेनुका बीस्तर पर से खड़ी हो गयी, और गुस्से में पास आकर चंपा के बालो को जोर से खीचंती हुई बोली-

रेनुका - रंडी तूझे जीतना बोला है, 'उतना कर' इस चाभुक से उधेड़ दे इसकी चमड़ी!

चंपा भी 'डर' गयी और लड़खड़ाते हुए लफ़्जो में बोली-

चंपा - जी......जी मालकीन,

फीर क्या था, चंपा ने वो चाभुक उस आदमी के उपर बरसाने शुरु कर दीये.....
वो आदमी तो, दर्द से तीलमीला गया लेकीन मुहं ढ़के होने और बंधे होने के कारण, उसके मुंह से सीर्फ गू......गू......गू......की आवाजें नीकल पायी....।

चंपा ने करीब 20 चाभुक, जोर-जोर के लगाये...उस आदमी के बदन पर के कपड़े फट गये थे और चाभुक पड़ने से उसके बदन पर चाभुक के काले-काले नीशान भी पड़ चुके थे।

वो आदमी कुर्सी में बंधा बहुत छटपटाया....लेकीन चंपा उस पर चाभुक बरसाती रही......इतना चाभुक तो 'घोड़े' पर भी नही चलाते, जीतना चंपा ने उस आदमी के उपर चलाये थे.....।

चंपा ने जैसे ही, अपना हाथ चाभुक मारने के लीये उपर कीया.....वैसे ही रेनुका ने उसे रोक दीया!

रेनुका - बस......बस मेरी चंपा रानी, आज के लीये इतना बहुत है, इसके लीये।

उसके बाद रेनुका ने चंपा को कहां की ये कुर्सी खींच कर पीछे वाले कमरे में ले चले, क्यूकीं यहां इसे कोई भी देख लेगा।
फीर चंपा और रेनुका दोनो ने उस आदमी को खीचं कर , पीछे वाले छोटे से कमरे में ले गये और फीर रेनुका ने बाहर से ताला मार दीया।

रेनुका बीस्तर पर बैठते हुऐ , अपने पैर बीस्तर पर फैला देती है और अपने सर के पीछे तकीया लगाकर दीवाल के सहारे अपना सर टीका कर बोली-

रेनुका - चंपा रानी, इतना याद रखना की इसके बारे में कीसी को कुछ पता ना चले....नही तो तुम जानती हो की, मैं तुम्हारे साथ क्या कर सकती हूं?

चंपा ये सुनते ही रेनुका के पैरो के पास बैठ कर रेनुका के पैर दबाते हुए बोली-

चंपा - अरे मालकीन, मेरी इतनी औकात कहां की, मै आपके साथ 'गद्दारी' करु, मै तो यंहा आपको कुछ बताने आयी थी......

रेनुका अपने हाथ चंपा के सर पर रखकर सहलाने लगती है, 'जैसे कोइ अपने पालतू कुत्ते को सहला रहा हो''

रेनुका - कैसी बात?
फीर चंपा ने ,ठाकुर की सारी बात चामुडां बाबा वाली रेनुका को बताने लगती है....चंपा की बात सुनते हुए रेनुका की आखें बड़ी होती जा रही थी.....जैसे ही चंपा ने अपनी बात पूरी की"

रेनुका उठ कर खड़ी हो जाती है और चंपा के कंधे पर हाथ रखते हुए बोली-

रेनुका - शाबाश: चंपा......तूझे नही पता की तूने क्या बात बतायी है.....रेनुका तुरतं अपने गले पर हाथ लगाती है, और एक सोने की चैन अपने गले में से नीकाल कर चंपा की तरफ बढ़ा देती है!

चंपा की तो मारे खुशी के झूम गयी.....वो चैन लेते हुए बोली-

चंपा - बस मालकीन , आप अपना हाथ मेरे सर पर हमेशा बनाये रखना, फीर देखना आपकी ये चंपा क्या-क्या करती है।

रेनुका - अब तो मुझे पुर्णमासी की रात होने आने से पहले, मुझे उस बाबा से मीलना होगा!


"रात का समय था.......ठाकुर, विधायक और मुनीम तीनो एक बैग में पैसे लेकर उस 'तालाब' के कीनारे पहुचें॥ ठाकुर के साथ 5 और आदमी थे जो हाथ में बंदूक लीये थे।

'चांद की रौशनी में ठाकुर उस पुलीया पर खड़ा होकर मुनीम से कहा-

ठाकुर - मुनीम, तू पैसे लेकर जा पुलीया के नीचे और पैसो को उस 'झोले' में डालकर वापस आजा, और तुम पांचो अपनी नज़र गड़ाये रखना , और जो भी पैसे लेने आये उसे दबोच लेना!

उन पाचों ने कहा- जी मालीक, और फीर मुनीम भी पैसे लेकर उस 'पुलीया' के नीचे जाता है , मुनीम ने देखा वहां सच में एक 'झोला' रखा है......उसने झट से उन पैसो को 'झोले' में डाला और वापस आ गया!


'यार रितेश मुझे बहुत डर लग रहा है, इन लोगों ने तो पैसे रख दीये, अब क्या करें?

रितेश और अजय 'उस पुलीया से करीब दस कदम दुर झांड़ीयो छुपे थे।

ठाकुर विधायक और मुनीम तीनो पैसे रखने के बाद गाड़ी में बैठकर चले जाते है.....लेकीन वो पांच लोग वही खड़े रहते है।

अजय - यार भाई, ये पांचो तो यही खड़े है।
रितेश - और ये लोग खड़े भी रहेगें, मुझे पता था की, ठाकुर कोई ना कोई तरकीब लगा कर ही आयेगा!

अजय- तो भाई अब पैसे कैसे लेगें?

रितेश- हमने तरकीब क्यूं बनायी थी....चल खीचं डोरी।

अजय के आँखों में एक चमक आ जाती है, और मुस्कुराते हुए 'डोरी' खीचने लगता है जो पैसे वाले 'झोले' में बंधा था।

रितेश और अजय बड़ी चालाकी से डोरी खीचते रहे.....और कुछ ही समय में वो झोला सरकते हुए उन लोग के पास आ गया!

रितेश ने वो झोला लीया और अपने कदम अजय के साथ धीरे- धिरे बढ़ाकर वहां से नीकलने लगा,

कुछ ही समय में वो लोग वहां से आसानी से नीकल जाते है। और गांव के पुलीया पर पहुचं कर वहीं उस पुलीया पर बैठ जाते है।

अजय(खुश होते) - यार भाई......मुझे तो यक़ीन ही नही हो रहा है की हमारे पास 'बीस लाख' रुपया है।

रितेश - लेकीन हमे, इन पैसो का इस्तमाल बहुत सावधानी से करना है, ताकी ठाकुर को इसकी भनक ना लगे!

अजय एक दम उत्सुकता के साथ बोला,

अजय- हां भाई, अब तू ही संभाल इन पैसो को!
रितेश - अरे, भोसड़ी के दस लाख तेरा भी है।

अजय रितेश के पास बैठते हुए बोला,

अजय - कुछ दीनो के लीये तो तुम्हे ही सभांलना पड़ेगा.....नही तो मेरी हरकतो से ठाकुर को पता चल जायेगा! लेकीन भाई इन दस लाख रुपयो का हम करेगें क्या....मैं तो ये सोच कर ही पागल हो जा रहा हूं।

रितेश - फीलहाल तो मैं शादी करने वाला हूं!
अजय - अरे वाह! भाई आँचल मान गयी शादी के लीये लगता है!

रितेश अपने चेहरे पर एक हल्की मुस्कान लाते हुए बोला-

रितेश - अरे मैने तूझे बताया नही......ये शादी आँचल से नही बल्की अपनी मां से कर रह हूं और ये शादी परसो है!

ये सुनकर तो अजय के पैरो तले ज़मीन खीसक गयी.....वो सकपकाते हुए बोला-

अजय - श.....शादी? वो भी मां से, कैसे?
रितेश - बस यार समझ ले.....की नसीब वाला हो जांउगां, अपनी मां से शादी करने के बाद....और हां ये बात की, मै मेरी मां से शादी कर रहा हूं इस बात की खबर कीसी को नही होनी चाहीये!

अजय - वो सब तो ठीक है, भाई लेकीन तेरी मां वो भी 'कजरी' काकी मान कैसे गयी?

रितेश - अबे साले, सीर्फ शादी कर रही है मां, और कुछ नही होगा हमारे बीच!

अजय ये सुनकर अपना सर खुज़ाने लगा और कुछ सोचते हुए बोला-

अजय - ये कैसी शादी हुई भाई? लेकीन जो भी हो शादी के बाद , कजरी काकी तो ठाकुर के अरमानो पर पानी ही फेर देगी!

अजय के मुहं से इतना सुनते ही रितेश खुश हो जाता है......

रितेश - अरे हां यार.....ये तो मैने सोचा ही नही, की शादी के बाद भले ही मेरे और मां के बीच कुछ भी ना हो......लेकीन मेरी मां तो रहेगी तो मेरी पत्नी ही ना!

अजय - हां भाई.....अब तो तू खुश है ना!

रितेश - बहुत यार......अच्छा सुन कल शहर चलेगें मां को कपड़े लेने है। और हां भाई शादी का पुरा इतंजाम तूझे ही करना है।

अजय - वो सब तो ठीक है, लेकीन शादी करेगा कहां?
रितेश - गाँव के बाहर , जो मंदीर है....वंहा!


अजय - लेकीन भाई, सब को पता चल गया तो....क्यूकीं उस मंदीर में गांव के लोग आते जाते रहते है!

रितेश - इसीलीये , ये शादी मैं रात को करुगां.!
अजय- हां भाई ये ठीक रहेगा।

फीर रितेश ने पैसो का 'झोला' उठाया और अजय से बोला-

रितश - चल पहले मेरे घर पर, इन पैसो को कंही छुपा देते है......ये झोला तू पकड़ क्यूकीं अगर इस झोले को मां ने मेरे हाथों मे देख लीया तो गजब हो जायेगा।

और उसके बाद पैसेअजय लेकर , दोनो अपने कदम घर की तरफ बढ़ाने लगते है.....दोनो के कदम जमीन पर इस तरह पड़ रहे थे जैसे वो जमीन को रौदतें हुएआगे बढ़ रहे हो'

अजय और रितेश जैसे ही घर पहुचंते है तो उनका नसीब भी शायद उनके साथ था....कजरी रसोई घर में थी।

रितेश - चल-चल-चल जल्दी, मां रसोई घर में है।

दोनो धीमे-धीमे कदम बढ़ाने लगे, और रितेश अपने कमरे में पहुचं कर अजय के हाथ से 'झोला' ले लेता है.....और झोले को एक बोरी में डालकर उस पर अपना बक्सा रख देता है.....और फीर ~दोनो बाहर आ जाते है।

कुछ समय बाद, कजरी भी बाहर आती है तो देखती है की.......।




kahani jari rahegi dosto!

thanks for your love for this story.
lovely update dost
 

Nevil singh

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आ गये, मेरे नवरतन! कज़री ने रितेश को देख कर बोला।

रितेश खाट पर से उठते हुए बोला-

रितेश - वो थोड़ा काम था मां तो, इसलीए थोड़ा देर हो गया!

'कजरी रितेश के पास आकर खाट पर बैठते हुए बोली-

कज़री - ऐसा कौन सा काम था? जीसेमे तुझे इतना समय लग गया'?

रितेश - अरे....मां वो कल तेरे लीये कपड़े लेने है ना, तो पैसो का 'इतंजाम' कर रहा था!

कज़री - अच्छा तो हो' गया इंतजाम?
तभी अजय बोला- हां......हां काकी, हो गया!

कज़री - अच्छा चल बैठ.....खाना लाती हूं॥ तू भी खा ले!

अजय - अरे नही काकी, मै घर जाकर खां लूगां!
कज़री - अरे बेटा....इतनी रात हो गयी है....खा ले और घर कल चले जाना!

अजय कुछ बोलने ही वाला था की......जोर का बादल 'गरजा'

कज़री - मौसम तो एकदम साफ हे, फीर ये बादल क्यूं?
कज़री अपनी बात पूरी भी नही कर पायी थी की, जोर-जोर की हवांये चलने लगी....मानो आंधी तूफ़ान आने वाला हो....।

हंवाओ की गती बढ़ती जा रही थी.....रितेश उठ कर बकरीयों को अँदर बांधने के लीये भागा.....अजय भी रितेश की मदद करने लगा, वो भी बकरीयों को अँदर करने लगा...।

'तब तक हवायें आंधीयों में बदल चुकी थी....।

रितेश और अजय दोनो बकरीयो को अँदर बाधं कर भागते हुए घर में पहुचं जाती है.....तब तक कज़री बाहर का खाट अँदर ला चुकी थी।
रितेश और अजय दोनो खाट पर बैठ जाते है....घर में एक लालटेन जल रही थी.....कजरी खाने की दो थाली लाती है.....और फीर दोनो को दे देती है।

अजय और रितेश के साथ-साथ कज़री भी खाना खाती है.....और फीर सोने के लीये कमरे में चले जाते है।



''रात की तेज हवायें आंधीयो में बदल चुकी थी......एक घने जंगल में लकड़ीया जल रही थी.....आंधीयों की वज़ह से 'आग की चींगारीया उड़ने लगी थी....।

'आग के चारो तरफ सफेद लकीरे खींची थी.....कुछ औरतें लाल चोला पहने इतनी तेज़ आंधी में भी खड़ी थी....। वही एक विशाल वृऋ था....जीनकी साखाये तेज हंवाओं की वजह से 'झूम' रही थी, उसी वृऋ के नीचे 'चामुडां' अपना आसन लगाये बैठा था।

बड़ी - बड़ी दाढ़ी मुछे और बड़े बाल जो तेज़ चल रही हंवाओं की वजह से उड़ रहे थे।

माथे पर सफेद रंग के तीन टीके , छातीयो पर गुच्छेदार बाल ऐसी की मक्खीया भी घुस जाये तो फंस कर अपना दम तोड़ दे...।

'जय चामुडां, जय चामुडां, जय चामुडां!
यही शब्द बोलते हुए चामुडां अपने आसन पर से उठा.....और दो कदम आगे जा कर आकाश की तरफ देखने लगा....।

चादं की फैली हुई रौशनी कब अंधेरे में बदल गयी पता ही नही चला......बीज़ली जोर जोर से कड़कने लगी......इतनी तेज बीज़ली की कड़कड़ाहट और तेज़ हवाओं ने वहा खड़ी उन औरतों को डराने लगी.....।

वे औरते भागर बगल में ही बने मीट्टी के घर के अँदर जाना चाहती ' थी'' लेकीन! चामुडां वही खड़ा था' तो वे औरतें भी वहीं खड़ी रही।

"चामुडां अपनी नज़रे उपर आकाश की तरफ उठाये खड़ा था....की तभी एक बूंद पानी की आकर उसके चेहरे पर पड़ा!

चामुडां ने अपने भारी-भरकम आवाज़ में उत्तेजीत होकर बोला!

चामुडां - हाआआआ.......आज की रात संकीरा पहाड़ी, जल अमृत बना रही है।

तभी उसमें से खड़ी एक औरत ने कहा की 'बाबा' आप पीछले कयी सालो से संकीरा पहाड़ी के पीछे पड़े है लेकीन?

वो औरत कुछ बोलती, इससे पहले ही चामुडां ने उसका बात काटते हुए उस औरत की तरफ बढ़ा.....तेज चल रही हंवाओ में चामुडां के बाल इस कदर उड़ रहे थे की. ॥ चामुडां देखने में अत्यंत ही भयानकर लगा रहा था।

'चामुडां उस औरत के पास आकर अपनी आंखे बड़ी करते हुए तेज स्वर में बोला-

चामुडां - नही मंदा..., सीर्फ मैं नही बल्की ना जाने कीतने 'तांत्रीक' भी संकीरा के पीछे पड़े थे, और अभी भी पड़े है लेकीन, लेकीन ये चामुडां....ये चामुडां तो इस पल का बेसब्री से इतंजार कर रहा था....और सीर्फ मै ही हूं , जो संकीरा के बहुत सारे राज़ जानता हूं' ऐसा पल सदीयों में एक बार आता है मंदा..,और ये पल मैं आसानी से नही जाने दूगां,., इस बार संकीरा का वो अद्भुद "अमृत जल" मैं प्राप्त कर के रहूगां!

तभी वंहा खड़ी मंदा चामुडां के नज़दीक आते हुए बोली-

मंदा - लेकीन 'बाबा' आपने कहा था की संकीरा के मुख्य द्वार तो सीर्फ उस औरत के स्पर्ष से ही खुलेगा!

ये सुनकर चामुडां अपने बालो को जोर से झटकते हुए मंदा की तरफ घुमा, और तेज स्वर में बोला-

चामुडां - नही मंदा....संकीरा का मुख्य द्वार तो उस खुबसुरत औरत के स्पर्ष से खुल जायेगा, लेकीन संकीरा का "अमृत जल' उसे उस औरत के अलावा वही छु सकता है., जीसने उसके साथ विवाह कीया हो।

ये सुनकर मंदा के साथ खड़ी और औरते भी अचम्भे पड़ गयी...तभी मंदा एक बार फीर चामुडां से बोली-

मंदा - लेकीन बाबा, संकीरा के बारे में इतनी बाते तो आपने उस ठाकुर को भी नही बतायी...और अच्छा भी कीया नही तो वो ठाकुर जरुर उस औरत को ढ़ुढ़ कर उससे शादी कर लेता!

' बीजली की कड़कड़ाहट और तेज हो गयी, जब-जब आसमान में बीजली कड़कती, अधेरां पड़ चुका धरती भी बीजली की 'चमक' से रौशन हो जाता.।

घने जगंल के बीचो -बीच तेज तूफान में चामुडां मंदा की बात सुनकर, जोर-जोर से हसनें लगा और फीर बोला-

चामुडां - पुर्णमासी की आधी रात के बाद वो कोयी साधारण औरत नही रहेगी..'जीससे कोई भी विवाह कर ले' उस औरत के साथ सीर्फ दो लोग शादी कर सकते है।

चामुडां की बात सुनकर मंदा ने उत्सुकता से पुछा-

मंदा - कौन - कौन बाबा?
चामुडां - एक तो स्वयं 'चामुडां' यानी 'मै' , मैने काले जादू का सहारा लेकर स्वयं को , उस औरत से वीवाह करने के योग्य बना लीया है।

मंदा - और दुसरा?
चामुडां - दुसरा ॥ संकीरा के पहेली के अनुसार!
. ॥सावन के गीत बने तो, नाम बने प्राण प्रीये का॥

इसका अर्थ है, सावन में जो गीत गाये जाते है वो है "कज़री' और यहीं नाम उस औरत का भी है॥

॥ प्राण प्रीये का प्राण समुखा, अश्व सहीता॥

प्राण प्रीये यानी 'कज़री' , प्राण समुखा 'यानी उसके प्राण के समान उसका 'पुत्र' जो की अश्व के समान ही यौन क्रीया में नीपुड़।

॥वो तन भोगे प्राण प्रीये का, प्राण नाथ सहीता॥

वो ही 'कज़री' यानी अपनी मां का तन भोगे, प्राण नाथ सहीता' यानी उस औरत का प्राणनाथ बनकर 'पति' बनकर। वो संकीरा होया॥

इस पहेली का अर्थ समझने के बाद , मंदा के चेहरे पर परेशानी के भाव आ गये।

वो कुछ बोलने ही वाली थी की , चामुडां ने कहा-

चामुडां - इससे पहले की उसका बेटा, उस औरत से विवाह करे...मुझे उस औरत का पता लगाकर मुझे उससे विवाह करना होगा....और उसका पता मुझे , पुर्णमासी की आधी रात को ही लगेगा.....और ये कहकर चामुडां जोर -जोर से हंसने लगता है।

मंदा - ये घड़ी बहुत नज़दीक आ गयी है बाबा,

चामुडां मंदा को जोर से अपनी बांहो में कस लेता है और भारी स्वर मे बोला-

चामुडां - अँतीमा मेरा रसपान ले कर आओ!
मंदा चामुडां के 6 फीट काले शरीर के आगोश में सीमटी कीसी बच्ची की तरह लग रही थी., लेकीन खुद को चामुडां के मजबुत बांहो में पाकर उसका रोम-रोम खील उठा।
वो चामुडां के बाहों में इठलाती हुई बोली-

मंदा - बाबा, मैं आपके साथ करीब चार सालो से हूं, और उन चार सालो में ऐसा कोयी दीन नही गया, जब आप उस रसपान को अपने सामने रखकर पता नही कैसे मंत्र पढ़ते है और फीर वापस उस रसपान को सुरच्छीत रख देते है। और आज से पहले आप ने कीसी भी औरत को छुवा तक भी नही था, आज तो आपने मुझे अपने आगोश में ले लीया!

मंदा की बात सुनकर चामुडां जोर- जोर से हंसने लगा और फीर उस औरत के हाथ से वो रसपान ले लीया।

चामुडां एक छोटी सी मीट्टी की हाड़ी मे रसपान को लीये मंदा के नाजुक होठो को अपने मोटे काले होठो में भीचं लेता है....एक जोरदार चुम्बन दे के चामुडा ने जैसे ही अपने होठ मंदा के होठ से अलग कीया तो, मंदा के होठो से खुन नीकल रहा था।

चामुडां - ये कोई सामान्य रसपान नही बल्की मेरे दस वर्षो की तमस्या है।
ये सुनकर मंदा अपने होठो पर लगे खुन को अपने हाथेली से पोछती हुई बोली-

मंदा - दस वर्षो की तपस्या?
चामुडां अपने तेज स्वर में!

चामुडां - हां दस वर्षो की तमस्या! जीस तरह लोग भगवान की पूजा करते है, उसी तरह मै शैतान की पुजा करता हू।

मुझे पुरे दो साल लगे शैतान को खुश करने मे 'आंशनी' शैतान!
उन्होने ने ही मुझे....संकरी प्राप्त करने का रास्ता बताया और ये रसपान को सीद्ध करने के लीये पुरे 10 साल तक उनके बताये हुए मंत्रो का जाप करता रहा!

मंदा चामुडां के आगोश में पड़ी आश्चर्य से पुछी-

मंदा - लेकीन ये रसपान कीस योग्य है।

चामुडां - ये तुम्हे अभी पता चल जायेगा...क्यूकीं आज़ की रात मेरी तपस्या की सबसे बड़ी रात है, जैसे ही तूफ़ान शातं होगा और चारो तरफ भयानक अँधेरा हो जायेगा, उस वक्त मै आंशनी शैतान की पुज़ा करके उन्हे प्रकट करुगां,

ये बोलकर चामुडां मंदा को अपने आगोश से आज़ाद कर देता है, और विशाल वृऋ के नीचे जाकर बैठ जाता है, और आसमान की तरफ देखने लगता है।

कुछ ऋण बीत गये, तूफान कम होने लगा और साथ में अँधेरा बढ़ने लगा।
थोड़ी ही देर में घनी अँधेरी काली रात धरती पर चादर ओढ़ ली,और तूफान की बात कुछ नही पेड़ो के पत्ते भी नही हील रहे थे।


इधर गांव के सारे लोग , अपने अपने घर से बाहर नीकल आये थे....कजरी और रितेश के साथ साथ अजय भी बाहर नीकल आया था।

ठाकुर के हवेली में से ठाकुर के साथ साथ मुनीम की औरत सन्नो भी बाहर नीकल आये , जीसे ठाकुर रोज़ रात को चोदता था।

पुरे गांव वालो हैरान थे, क्यूकीं अचानक से हंवावों का एकदम बंद होना और इतनी घनी काली रात जो गांव वालो ने अपनी ज़ीदंगी में पहली बार देखा था....ये देख कर हैरान रह गये।


इधर जंगल के बीचो -बीच चामुडां अपना आसन लगाकर बैठ गया था...उसके चारो ओर दीपक जल रहे थे, और बीच में एक गड्ढ़ा जीसमें काली लकड़ीया जल रही थी...

चामुडां - मंदा वो रसपान की हंडी , आग के करीब रख दो....और मेरी इस सीद्धी में तनीक भी विध्न ना आने पाये!

मंदा ने ठीक वैसा ही कीया और फीर खीचीं हुई लकीर के बाहर आकर खड़ी हो गयी।

चामुडां ने हाथेली में पानी लीया, और एक मत्रं का उच्चारण करके वो पानी, 'रसपान' के उपर छीड़क दीया और अपनी आंखे बंद करके जोर-जोर से मंत्रो का उच्चारण करने लगा!


'एक घंटे बीत गये, चामुडां अभी भी मंत्रो का उच्चारण कर रहा था , तभी राते और अँधेरी होने लगी और गर्मी बढ़ने लगी।



कजरी - आज ये क्या हो रहा है, इतनी अंधेरी रात और भीषण गर्मी, ऐसा तो पहले कभी नही हुआ!

अजय - हां काकी, अजीब रात है...
रितेश - अरे कुछ नही...जीस तरह तूफ़ान आने से पहले सन्नाटा हो जात है, उसी तरह तूफ़ान के थमने के बाद भी सन्नाटा हो जाता है।



तीन घंटे बीत गये जैसे ही रात के तीन बज़े, वैसे ही चामुडां के जलाये हुए लकड़ीयों में से तेज धुंआ नीकला और वही धुँआ एक शैतान का आकार ले लीया!

लकीर के बाहर खड़ी मंदा, और सभी औरते इतना भयानक दृश्य देखकर , बेहोश होकर नीचे ज़मीन पर गीर जाती है।

तभी आवाज आती है ये आवाज़ काफी भयानक थी.,
'आंखे खोलो चांमुडां, शैतान आंशनी तुम्हारे सालो की तपस्या से खुश हुआ!

चामुडां अपनी आंखे खोलता है वो अत्यधीक खुश हो जाता है। उसके शरीर का एक -एक रोआं खुशी से भर आते है।

चामुडां - जय हो सर्वॠष्ट शैतान आंशनी' की।

शैतान - सुनो चामुडां , ये जो रसपान है कोयी सामान्य रसपान नही है., बल्की ये वो रसपान है जो तेरे पौरुष अंग को अत्यधीक बलशाली बना देगा.. जीसकी जरुरत तुम्हे संकीरा के होने वाली रानी 'कज़री' के लीये पड़ेगी, लेकीन एक बात का याद रखना अगर कहीं संकीरा के पहेली के अनुशार उसके पुत्र ने कज़री से विवाह कर लीया, तो तुम्हारा पौरुष बल उसके पौरुष बल से कही कम हो जायेगा।

ये सुनकर चामुडां शैतान के चरड़ों में हाथ जोड़े गीर जाता है और बोला-

चामुडां - हे सर्वश्रेष्ट शैतान आंशनी., इसका कोयी तो उपाय होगा की अगर वो लड़का संकीरा रानी से विवाह कर भी लेता है, तो मेरा पौरुष बल उससे कम ना हो!

ये सुनकर शैतान ने कहा-

शैतान - वो लड़कां जैसे ही उसकी मांग भरेगा , वैसे ही उसका पौरुष बल तुमसे कयी गुना बढ़ जायेगा, लेकीन अगर तुम उसके समान रहना चाहते हो तो तुम्हे पांच स्त्रीयों के साथ संभोग करना होगा , और संभोग करने से पहले तुम्हे उन स्त्रीयों के पुत्र की बली चढ़ाओगें उन स्त्रीयों के हाथो और फीर संभोग के बाद जो बच्चा जन्म लेगा उन बच्चो की बली तुम्हे देनी होगी।
ये क्रीया वीधी संम्पन्न करने के बाद तुम्हे संकीरा की होनेवाली अमृत जल की रानी के साथ संभोग करना होगा उसके मन से तभी तुम उस अमृत जल को छु सकते हो। और एक बात और संकीरा को वर्षो से लोग इस लीये हासींल नही करना चाहते थे की वंहा 'अमृत जल' है, बल्की वहां सबसे मुख्य चीज कुछ और है, जो तुम्हे संकीरा का 'अमृत जल' ग्रहण करने के बाद प्रतीत होगा॥
'अब समय ब्यतीत होता जा रहा है, चामुडां जल्दी से रसपान ग्रहण करो और अपनी शैतानी पौरुष बल से संभोग का आँदन भोगो।

इतना कहकर वो शैतान अदृश्य हो जाता है.।

चामुडाँ उठा और रसपान की मेटी अपने हाथो में ले लीया....उसकी आँखो में चमक थी, अत्यधीक प्रशन्नता क्यूकीँ दुनीया में समसे ज्यादा पौरुषार्थ बनने वाला था और संकीरा के मुख्य रहस्य के बारे में जानने और पाने की खुशी।


चामुडां- पूरे दस साल, पूरे दस साल औरतो से दूर रहा, आज मेरी तपस्या पूर्ण हुई अब तो बस उन पांच औरतो की देरी है।

ये कहकर चामुडां जोर से हंसाने लगा , और उस रसपान को गटक कर गया।

थोड़ी देर के बाद चामुडा का शरीर कांपने लगा वो ज़मीन पर गीर गया और छटपटाने लगा कुछ देर छटपटाने के बाद वो बेहोश हो जाता है।


1 घंटे के बाद चामुडां को होश आया , उसने अपनी आँखे खोली तो देखा , काली रात छट चुकी थी सुबह का हल्का उज़ाला था...चीड़ीयां चहक रही थी , और सुबह की ठंढ़ी हवायें उसके शरीर को तरोताज़ा कर रही थी....मंदा चामुडां के पास बैठकर उसे उठा रही थी....

चामुडा जैसे ही उठा उसे अपने शरीर में कुछ बदलाव दीखे... उसने ध्यान नही दीया, लेकीन जैसे ही वो खड़ा हुआ मंदा चौकतें हुए दुर हट गयी।

मंदा को इस तरह चौकते हुए देख कर उसने मंदा की तरफ़ देखा तो।

मंदा - ये....ये क्या है बाबा।

चामुडां ने जब मंदा के उगलीयों के इशारे का पीछा कीया तो उसकी नज़र अपने लाल लंगोट की तरफ पड़ी.

चामुडां चौका , क्यूकीं उसका लंगोट खुल चुका था....और एक विशाल लीगं(लंड) और बहुत ही मोटा एकदम तनतना कर खड़ा था जो, एकदम भयानक लग रहा था।

चामुडां को यक़ीन नही हुआ की ये उसका लंड है, लेकीन दुसरे ही पल वो अपने लंड को हाथ में पकड़ना चाहा लेकीन अत्यधीक मोटाई होने के कारण वो हाथ में भी नही आ रहा था।

चामुडां अपने लंड को हाथ में पकड़े जोर-जोर से हंसने लगा....मंदा और उसके साथ खड़ी औरतो की हालत चामुडां के लंड को देखकर खराब होने लगी,., वो लोग चाहती थी की अभी चामुडां के लंड को पकड़ कर अपने बुर में घुसा ले....
beautiful update dost
 
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