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Incest बेटी की जवानी - बाप ने अपनी ही बेटी को पटाया - 🔥 Super Hot 🔥

Daddy's Whore

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कहानी में अंग्रेज़ी संवाद अब देवनागरी की जगह लैटिन में अप्डेट किया गया है. साथ ही, कहानी के कुछ अध्याय डिलीट कर दिए गए हैं, उनकी जगह नए पोस्ट कर रही हूँ. पुराने पाठक शुरू से या फिर 'बुरा सपना' से आगे पढ़ें.

INDEX:

 

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08 - शॉपिंग

आधा घंटा बीतते-बीतते मनिका ने तीन जीन्स और चार-पाँच टॉप्स पसंद कर लिए थे.

जयसिंह एक तरफ़ खड़े शॉपिंग करती हुई मनिका को देख रहे थे. मनिका अब वहाँ रखी शॉर्ट्स और स्कर्टें उठा कर देख रही थी. फिर वह धीरे-धीरे आगे बढ़ती हुई पार्टी-वियर ड्रेसेज़ के पास पहुँची. फिर आगे बढ़ते हुए उसने कुछ और टॉप्स उठा कर देखे. इस तरह घूमते हुए वह बैगों, बेल्टों और परफ़्यूम वाले सेक्शन में हो कर वापस उनकी तरफ आ गई.

"क्या हुआ? देख लिया सब कुछ?" जयसिंह ने पूछा.
"कहाँ पापा. इतना कुछ है यहाँ कि पूरा दिन लग जाए मेरा तो." मनिका ने मुस्का कर कहा.
"और कुछ पसंद आया तुम्हें?"
"पसंद तो पूरा स्टोर ही आ गया है पापा… पर क्या करूँ… आज के बाद कहीं आप फिर कभी मुझसे पैसों की चिंता ना करने को नहीं बोले तो…" मनिका ने शरारत भरी नज़र से उन्हें देखते हुए कहा.
"हाहाहा… अच्छा तो ये बात है. बड़ी सयानी हो तुम भी." जयसिंह ने हँस कर कहा.
"वो तो मैं हूँ…" मनिका इठलाई.
"लेकिन अभी तो और चीज़ें ले सकती हो अगर तुम्हारा मन है तो. उधर क्या है, कुछ पसंद नहीं आया तुम्हें?"

जयसिंह ने जिस तरफ से वो घूम कर आई थी उधर हाथ से इशारा करते हुए पूछा.

"ओह उधर?" मनिका ने एक रहस्यमय मुस्कान बिखेरते हुए कहा, "वो आप देखोगे तो लेने से मना कर दोगे."
"क्यूँ? ऐसा क्या है." जयसिंह अनजान बनते हुए बोले.
"है तो कपड़े ही पापा… कपड़ों के स्टोर में टमाटर थोड़े ही होंगे…" मनिका ने होशियारी दिखाते हुए कहा, "लेकिन आप को पसंद नहीं आएँगे. वो थोड़े छोटे-टाइप्स हैं…"

उसने दोनों हाथों से हवा में छोटा होने का हाव बनाकर कहा.

"अरे तो मैं तुम्हारी मम्मी थोड़े ही हूँ, buy whatever you like sweetheart?” जयसिंह ने भी चतुराई से कहा.
“Oh papa, you are so great.” मनिका खिलखिला दी.
"हाँ तो फिर जाओ ले आओ. ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलेगा." जयसिंह ने उसकी पीठ पर थपकी देकर कहा.
"हाहाहा… पापा अब आप इतना कह रहे हो तो ले ही लेती हूँ." मनिका ने फिर से शरारत भरी स्माइल देकर कहा.

मनिका के मन में लड्डू फूट रहे थे. वो दोबारा शॉर्ट्स और स्कर्ट वाले सेक्शन में जा पहुँची और कपड़े देखने लगी.

इधर जयसिंह वहीं लगे एक सोफे पर बैठ कर उसका इंतज़ार करने लगे. इस बार मनिका काफी देर लगा कर वापस आई. जयसिंह ने उसे फिर से हर एक सेक्शन में जाते हुए देखा था.

"आज पहली बार क्रेडिट-कार्ड का पूरा सही इस्तेमाल होगा." जयसिंह ने बैठे हुए सोचा था और मुस्कुरा उठे.

"हेय पापा." मनिका ने उनके पास आते हुए कहा.
"हाँ भई? हो गई शॉपिंग पूरी?" उन्होंने पूछा.
“Yes papa, done.” मनिका ख़ुशी-ख़ुशी बोली.
"ले लिया सब कुछ या अभी और कुछ बाकी है?" जयसिंह ने उठते हुए पूछा.
"हेहेहे! पापा वो तो आपको बिल देख कर पता चल जाएगा." मनिका ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा.

वो आगे बोली,

"वैसे आपको मम्मी के लिए कुछ लेना हो तो ले सकते हो. वहाँ आगे की तरफ साड़ी-सूट भी हैं."
"उसे तो मैं लक्ष्मी क्लॉथ स्टोर से दिला दूंगा." जयसिंह ने अपने शहर की एक दुकान का नाम लेकर कहा.
"ईहहाहाऽऽ पापाऽऽ!" उनकी बात सुन कर मनिका की जोर की हँसी छूट गई.

उसके ज़ोर से हँसने से आस-पास खड़े लोगों का ध्यान भी उन दोनों की तरफ आकर्षित हो गया था. कुछ लोग उन्हें देख कर मुस्कुरा भी रहे थे.

"अरे अब बस करो मनिका… लोग देख रहें हैं कि कहीं पागल तो नहीं है ये लड़की." मनिका की रह-रह छूटती हँसी को देख कर जयसिंह ने कहा.
“Papa! You are so funny… really… लक्ष्मी क्लॉथ स्टोर… हाहाहा" मनिका ने आखिर अपनी हँसी पर काबू पाते हुए कहा.
"अरे भई, अगर मधु को कपड़े दिलाने होते तो उसे न लेकर आता यहाँ?” जयसिंह ने भी शरारती लहजे में कहा, “वैसे भी ज़िन्दगी भर दिलाता आया हूँ उसे तो… आज तुम्हारी बारी है."
"Oooh! Really papa…" मनिका ने अपनी हसीन अदा से पूछा.
"और नहीं तो क्या…?" जयसिंह उसे निहारते हुए बोले.
"पर पापा आपने तो मुझे कुछ दिलाया ही नहीं…" मनिका ने भोला सा चेहरा बना कर कहा.
"हैं? तो फिर ये सब शॉपिंग जो तुमने की है, इसका बिल क्या…" जयसिंह बोलते हुए रुक गए.

वे कहने वाले थे कि 'बिल क्या तुम्हारा बाप भरेगा'. लेकिन मनिका समझ गई थी.

"हिहाहा हाँ पापा… वही भरेगा." उसने उन्हें छेड़ा.
"अब मुझे लग रहा है कि गलत ले आया मैं तुम्हें शॉपिंग कराने." जयसिंह भी कहाँ पीछे रहने वाले थे.
"हेहे पापा. पर मेरा वो नहीं था मतलब. I mean… आप तो सिर्फ पैसे दे रहे हो… इस सब के लिए." मनिका ने उन्हें समझाते हुए कहा, "आपने अपनी पसंद से तो मुझे कुछ दिलाया ही नहीं…"
"ओह, तो ऐसा क्या?" जयसिंह के मन में लड्डू फूटा.
"हाँ ऐसा." मनिका ने उनकी नक़ल करते हुए कहा.

जयसिंह ने कुछ पल सोच कर कहा,

"तो क्या दिलाऊं फिर मैं तुम्हें?"
"अगर मैं ही बताऊँगी तो फिर वही बात रहेगी ना पापा." मनिका ने मजे लेते हुए कहा.
"हम्म…"
"सोचो-सोचो कुछ अच्छा सा." मनिका उन्हें उकसा कर खुश हो रही थी.
"चीज़ तो मैंने सोच ली है बट उसे कहते क्या हैं ये मुझे नहीं पता… और हो सकता है तुम वो पहले ही खरीद चुकी हो."
“क्या-क्या? मुझे बताओ… you can describe, I will help you out.” मनिका ने उत्सुकता से कहा.
"अरे वही पैंट जो तुम घर से पहन कर निकली थी…" जयसिंह बोल ही रहे थे कि मनिका ने ठहाका लगा कर उनकी बात काट दी.
“हाहाहा… not pant papa! आपको तो सच में कुछ नहीं पता." मनिका बोली, “leggings… they are called leggings… और मैंने वो नहीं ली है सो आप मुझे दिला सकते हो." वो फिर से खिलखिलाने लगी.

जब मनिका ने कहा कि उन्हें तो कुछ भी नहीं पता तो जयसिंह के मन में विचार आया था,

"पता तो मुझे तेरी कच्छी के रंग का भी है जानेमन."

पर वे मुस्का के बोले,

"तो आओ, चलो मेरी पसंद की लेग्गिंग्स लेते हैं तुम्हारे लिए…"

जयसिंह मनिका को लेकर फिर से सेल्स-गर्ल के पास पहुँचे और उसे लेग्गिंग्स दिखाने को कहा. सेल्स गर्ल ने मनिका की तरफ देख कर पूछा.

“For you ma’am?"
"Yes." मनिका ने हाँ भरी.
“Same size as before ma’am? I am sorry, what was it again?” सेल्स-गर्ल ने पूछा.

मनिका ने पहले कपड़े लेते वक्त उसे साइज़ बताया था पर इस बार वह उसका सवाल सुन सकपका गई. पापा के सामने कैसे बताए?
पर जब सेल्स-गर्ल उसे सवालिया नज़रों से देखती रही तो मनिका ने धीमे से सकुचा कर कहा,

“Thirty four…" मनिका ने यह बिलकुल नहीं सोचा था कि उसे अपने फिगर का माप बताना पड़ेगा, उसका उत्साह थोड़ा ठंडा पड़ गया.

उधर जयसिंह के मन हिलोरे उठने लगे.

"आह चौंतीस… मुझे लग ही रहा था कुतिया की गांड है तो भरी-भरी…"

ऊपर से सेल्स-गर्ल बोली.

“But ma’am, I recommend that you take a smaller size for leggings.”
"क्यूँ? वो छोटी नहीं रहेंगी?" मनिका की जगह जयसिंह ने सवाल किया.

फिर उन्होंने मनिका की तरफ देखा था, उसकी नज़रें काउंटर पर गड़ी थी.

“Actually sir, leggings are made from very stretchable material… सो छोटे साइज़ वाली मैम के बिलकुल फिट आएँगी." सेल्स-गर्ल ने उन्हें समझाया.
“Hmm okay. आप 30 साइज़ में दिखा दीजिए फिर तो…" जयसिंह पूरे चार साइज़ कम करके बोले. “वैसे भी, she keeps talking about losing weight… you know.”

थोड़ा शर्मिंदा होने के बावजूद मनिका जयसिंह की बात पर मुसकाए बिना न रह सकी. उसने बातों-बातों में पापा से कहा था कि उसे वजन कम करना है, और यह बात पापा भूले नहीं थे. पर जयसिंह और सेल्स-गर्ल की बातों ने उसे थोड़ा असहज कर दिया था. वह अब सोच रही थी कि काश उसने अपना मुँह बंद रखा होता.

"वैसे भी मैंने इतनी शॉपिंग तो कर ही ली है…" उसने अफ़सोस करते हुए सोचा.

सेल्स-गर्ल लेग्गिंग्स दिखाने लगी.

जयसिंह ने उनमें से सबसे झीने कपड़े वाली दो-तीन लेग्गिंग मनिका को दिखा कर पूछा कि उसे वे कैसी लगी.

वहाँ से जल्दी हटने के मारे मनिका ने बिना देखे ही कहा कि, आप दिला दो जो भी आपको पसंद है. जयसिंह ने मंद-मंद मुसकाते हुए वो लेग्गिंग्स सेलेक्ट कर ली.
मनिका ने आखिर चैन की साँस ली और जयसिंह के साथ बिलिंग डेस्क पर जाने के लिए मुड़ी.

“Ma'am?" पीछे से सेल्स-गर्ल की आवाज आई.
“Yes?" मनिका ने पूछा.

जयसिंह भी रुक गए थे.

“We have a new lingerie collection, that just came in, if you would like to have a look?” सेल्स-गर्ल ने पूछा.

सेल्स वालों को यही सिखाया जाता है कि जब कोई जोड़ा आए तो उन्हें ज्यादा से ज्यादा लुभा कर रोके रखें. ऊपर से दिल्ली में अमीर, ठरकी बुड्ढों की भी कमी नहीं है. जयसिंह को उसे लेग्गिंग्स दिलाते देख उस बेचारी सेल्स-गर्ल को कैसे पता चलता की वे मनिका के पिता हैं.

इधर मनिका को जैसे काटो तो खून नहीं.

"WHAT…?" उसके मुँह से निकला.
“Yes ma’am… nighties, bras and panties in lace and silk…" सेल्स-गर्ल को लगा था कि मनिका पूछ रही है कि कलेक्शन में क्या-क्या है?

यह सुनते ही मनिका का मुँह जयसिंह की तरफ घूमा. ज़ाहिर था उन्होंने सब सुन लिया था, वे उसकी बगल में ही तो खड़े थे. मनिका का चेहरा शर्म से लाल हो गया.

“N… No!” उसने सेल्स-गर्ल को जरा तल्खी से कहा.
"ले लो मनिका अगर चाहिए तो…" इस बार जयसिंह थे.

मनिका को जैसे चार सौ वॉल्ट का झटका लगा, उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था की जयसिंह ने ऐसा कह दिया था.

उसके पिता उसे ब्रा-पैंटी लेने को कह रहे थे.

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09 - सज़ा

आखिरकार जयसिंह की किस्मत जवाब दे ही गई.

वे लोग अपने होटल रूम में लौट चुके थे. जयसिंह एक तकिया लेकर काउच पर अधलेटे हुए सो रहे थे. मनिका बेड पर अकेली कम्बल से अपने-आप को ढंके हुए थी. दोनों सोने का नाटक कर रहे थे पर नींद उनके आस-पास भी नहीं थी.

जयसिंह के मन में निराशा की उथल-पुथल मची हुई थी,
"अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली मैंने…!"

उनके मनिका से ब्रा-पैंटी लेने को कहते ही मनिका का बदन अकड़ गया था. उसने एक क्षण रुकने के बाद मुड़ कर उनकी तरफ देखा था और जयसिंह उसकी नज़र से ही समझ गए थे कि उनके किए-धरे पर पानी फिर चुका है. उनकी बेटी की आँखों में शर्म, गुस्से और नफरत का मिला-जुला सैलाब उमड़ रहा था.

जयसिंह कुछ न बोल सके थे और मनिका तेज़ क़दमों से चलती हुई वहाँ से बाहर निकल गई थी.

किसी तरह वे बिल चुका कर मनिका के खरीदे सामान के साथ उसे ढूँढ़ते हुए आख़िर कार पार्किंग में पहुंचे. मनिका पहले से कैब में बैठी थी. उन्होंने ड्राईवर से डिक्की में सामान रखवाया था और चुपचाप आगे ड्राईवर की बगल वाली सीट पर बैठ उसे होटल चलने को बोला था.

होटल पहुँच कर भी वे दोनों बिना कोई बात किए अपने कमरे तक आए. आज मनिका उनसे अलग होकर चल रही थी. जयसिंह ने कमरे में घुस कर अपने हाथों में उठाए शॉपिंग-बैग एक तरफ रखे ही थे कि मनिका का गुस्सा फट पड़ा था.

"बदतमीज़ी की भी कोई हद होती है!" मनिका ने ऊँची आवाज़ में कहा था.

जयसिंह ने सीधे हो कर उसकी तरफ अपराधबोध से भरी नज़रों से देखा था.

"आप होश में तो हो कि नहीं? क्या बके जा रहे थे वहाँ… आपको जरा भी शर्म नहीं आई मुझसे ऐसी बात कहते हुए पापा?" मनिका अब तैश में थी.

जयसिंह क्या जवाब देते. एक-एक कर उनके बनाए हवाई-महल उनके आस-पास ध्वस्त हो गिर रहे थे.

“I am your daughter for god’s sake! कोई अपनी बेटी से इस तरह…" मनिका आगे की बात कह न सकी थी.
“Don’t you talk to me, I am sick of you…" और लगभग भागती हुई बाथरूम में घुस गई थी.

उसकी आँखों में शर्म और गुस्से के आँसू थे. जयसिंह बेड के पास हक्के-बक्के से खड़े थे.

–​

मनिका ने बाथरूम में जा कर ठंडे पानी से अपना मुँह धोया. आज तक उसे इतनी शर्म और जिल्लत महसूस नहीं हुई थी.

“OH GOD! ये क्या हो रहा है मेरे साथ?" उसने धड़कते दिल से सोचा, उसे एहसास हुआ कि जयसिंह की बदतमीजी के बाद से ही उसके दिल की धड़कने बढ़ी हुईं थी. "पापा ऐसा कैसे कह सकते हैं कि… l… lingerie… चाहिए तो… अब कैसे उनके साथ नॉर्मल हो सकूँगी मैं… शायद कभी नहीं… अभी तक तो वे भी कुछ नहीं बोले… वैसे भी कुछ बोलना बाकी तो रह नहीं गया है…"

बाहर जयसिंह भी अपनी हार को बर्दाश्त करने की कोशिश कर रहे थे. उनकी अंतरात्मा भी एक बार फिर से सिर उठाने लगी थी.

"यह तो सब खेल चौपट हो गया. मेरी भी मत मारी गई थी जो मैंने संयम से काम नहीं लिया… लेकिन वैसे भी बुरे काम का अंत तो हमेशा बुरा ही होता आया है… अगर कहीं उसने घर पे यह बात जाहिर कर दी तो…?" जयसिंह को भी अब अपने किए को लेकर तरह-तरह की अनिश्चित्ताओं ने घेर लिया था. "पता नहीं क्या सोच कर मैंने ये कदम उठाए थे… मनिका और मेरे बीच ऐसा कुछ हो सकता है यह सोचना ही मेरी सबसे बड़ी गलती थी… अपने ही घर में आग लगा ली मैंने… अपनी बेटी की जवानी देख कर बहक गया यह भी नहीं सोचा कि कितनी बदनामी हो सकती है…"

जयसिंह अपनी पराजय के बाद अब खुद पर ही दोष मढ़ रहे थे. वैसे भी ये सब उनकी हवस से ही उपजा था.

मनिका जब बाथरूम से बाहर निकली तो पाया कि जयसिंह तकिया लिए हुए काउच पर लेटे थे. उन्होंने एक नज़र उसे देखा था पर मनिका की हिकारत भरी नज़रों से अपनी नज़र नहीं मिला पाए और आँखें झुका लीं थी.

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असल में मनिका तभी असहज हो गई थी जब जयसिंह उसके लिए लेग्गिंग्स ले रहे थे. सो जब उन्होंने अंडरवियर वाली बात कही तो उसका सब्र टूट गया और वे मनिका का भरोसा खो बैठे. जो मनिका कुछ घंटे पहले तक उनकी तारीफों के पुल बांधती नहीं थकती थी वह अब उनकी शक्ल देख कर भी खुश नहीं थी.

मनिका को भी जयसिंह से मिले इस विश्वासघात का बेहद गहरा धक्का लगा था. उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक पिता अपनी जवान बेटी से इस तरह का निर्लज्ज व्यवहार कर सकता है.
उस रात अपने-अपने टूटे हुए सपने लिए वे दोनों बहुत देर तक जागते रहे.

–​

अगली सुबह जयसिंह की नींद देर से खुली. काउच पर वे आराम से सो भी नहीं पाए थे. उन्होंने बेड की तरफ देखा तो पाया कि मनिका अभी भी लेटी हुई थी. कुछ देर वैसे ही लेटे रहने के बाद जयसिंह धीरे से उठे.

मनिका बेड पर जिस ओर करवट ले कर सो रही थी उसी तरफ उनका लगेज भी पड़ा था. जयसिंह दबे पाँव अपनी अटैची के पास गए और कपड़े निकालने लगे. जब वे कपड़े ले कर वापस जाने को हुए तो उन्होंने एक नज़र मनिका की तरफ़ देखा. उसने जल्दी से अपनी आँखें मीचीं थी.

जयसिंह बिना कुछ बोले चुपचाप बाथरूम में घुस गए. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या कहें या करें. उनके जाते ही मनिका उठ बैठी और पास रखी बोतल से पानी पिया. वह भी, अपने और जयसिंह के बीच बढ़ी दूरियों का सामना कैसे करे, इस उलझन में थी.

उस दिन जयसिंह जल्दी ही नहा कर बाहर निकल आए. उन्होंने मनिका को बिस्तर में बैठे पाया. उनके बाहर आने तक मनिका ने तय का लिया था कि वह पीछे नहीं हटेगी. इसीलिए अब वह सोने का नाटक नहीं कर रही थी.

जयसिंह बाथरूम से निकले ही थे कि फोन की घंटी बजने लगी. मनिका और जयसिंह दोनों अपनी-अपनी जगह जड़वत: थे. कुछ देर जब फोन बजता रहा तो आखिर जयसिंह ने जा कर फोन उठाया.

“हेल्लो?" जयसिंह की आवाज़ भर्रा कर निकली थी.

फोन रिसेप्शन से था. रोज़ की तरह आज भी उनकी कैब आ चुकी थी और ड्राइवर उनका इंतज़ार कर रहा था. जयसिंह ने उनसे कहा कि अब उन्हें कैब की ज़रूरत नहीं रहेगी, सो वे उनकी बुकिंग कैंसिल कर दें.

मनिका भी उनकी बातों से समझ गई कि फोन कहाँ से आया है.

जयसिंह ने फोन रखा और फिर अपने चेंज किए कपड़े रूम में रखे लॉंड्री बास्केट में डाल कमरे से बाहर चले गए.

उनके चले जाने के बाद मनिका उठी और नहा धो कर आई. अपनी ज़िन्दगी में आए इस तूफ़ान के बारे में सोचते-सोचते उसका पूरा दिन बीत गया. जब उसे कुछ भूख लगी थी तो उसने रूम-सर्विस पर कॉल कर खाने के लिए एक-दो चीज़ें ऑर्डर कीं थी. लेकिन जब वेटर खाना लेकर आया तो उसने थोड़ा सा खाकर छोड़ दिया और वापस बेड पर जा लेटी थी. उधर जयसिंह का सुबह से कोई अता-पता न था.

रात होते-होते मनिका को नींद की झपकी आ गई. ऊनींदेपन में ही उसे कमरे का गेट खुलने का आभास हुआ. मनिका ने कमरे की लाइट बुझा रखी थी. अँधेरे में किसी ने राह टटोलते हुए आ कर लाइट जलाई. जयसिंह ही थे.

मनिका ने बेड से सिर उठा कर उनींदी आँखों से उन्हें देखा और अजीब सा मुँह बनाया. फिर वह उठ कर बैठ गई. जयसिंह एक बार फिर अपना पायजामा कुरता ले कर बाथरूम में घुस रहे थे.
"मुझे यहाँ एडमिशन नहीं लेना है."

मनिका की आवाज़ सुन जयसिंह ठिठक कर खड़े हो गए.

"मुझे घर जाना है." मनिका आगे बोली.

जयसिंह ने उसकी तरफ देखा, मनिका ने भी दो पल उनसे नज़र मिलाए रखी और घूरती रही. जयसिंह ने नज़र झुका ली.

"दो-चार दिन की बात है… इतने दिन से यहाँ हम आपके एडमिशन के लिए ही रुके हुए है. हमारे वहाँ वैसे भी कोई ढंग के कॉलेज नहीं है." उन्होंने धीरे-धीरे बोलते हुए कहा, "देख लो अगर रुकना है तो… नहीं फिर मैं कल टिकट्स करवा आऊँगा."

इतना कहकर वे बाथरूम में घुस गए.

मनिका ने पूरा दिन यही सोचते हुए बिताया था कि वह जयसिंह से वापस चल-चलने को कहेगी, क्योंकि अब वो उनके भरोसे नहीं रहना चाहती थी. पर जयसिंह के सधे हुए जवाब में तर्क था. साथ ही, बाड़मेर वापस जाने पर उसे घर पर ही रहना पड़ता जहाँ उसका अपने पिता से रोज सामना होना था. लेकिन यह बात वह जयसिंह से नहीं कहना चाहती थी. सो उनके बाथरूम से निकल आने के बाद भी मनिका उनसे कुछ नहीं बोली और बेड पर लेटी रही. जयसिंह ने भी आगे कुछ नहीं कहा था और लाइट बुझा फिर से काउच पर जा लेटे थे.

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अगले दिन सवेरे-सवेरे जयसिंह एक बार फिर कमरे से नदारद हो गए. मनिका ने उन्हें उठ कर कमरे में खटर-पटर करते हुए सुना तो था, पर जब वो उठी तो वे नहीं थे.

मनिका की फिर से वही दिनचर्या रही. आज फिर उसने थोड़ा सा ही खाना खाया था. उसके मन में रह-रह कर जयसिंह की बात आ जाती थी और उसके विचारों का चक्र फिर से शुरू हो जाता. आखिर उसने दिल बहलाने के लिए उठकर टीवी चालू किया और बैठी-बैठी चैनल बदलने लगी.

कुछ देर बाद मनिका एक अंग्रेज़ी फ़िल्म चैनल पर जा कर रुक गई, उस पर एक रोमांटिक कॉमेडी वाली फिल्म चल रही थी. मनिका का पूरा ध्यान तो उसमें नहीं था, पर वह फिर भी देखने लगी.

कुछ देर बाद फिल्म में एक सीन आया जिसमें एक परिवार समुद्र किनारे पिकनिक मनाने जाता है. उस परिवार में माँ-पिता और उनके जवान बेटा-बेटी साथ होते हैं. बीच पर पहुँच कर वे अपनी पिकनिक एन्जॉय कर रहे होते हैं. तभी वहाँ एक और फ़ैमिली आ जाती है और सब आपस में घुलने-मिलने लगते हैं. पहली आई फ़ैमिली वाला आदमी एक-एक कर बाद में आए लोगों से अपने परिवार का इंट्रोडक्शन करवा रहा होता है. जब वह अपनी बेटी का नाम लेता है तो पाता है कि वो वहाँ नहीं है. सो वह आवाज़ लगा कर उसे बुलाता है. इस पर उसकी बेटी उनकी वैन के पीछे से निकल कर आती है. उसने एक लाल बिकिनी पहनी होती है, जिसे देख दूसरी फ़ैमिली के साथ आए लड़के का मुँह खुला रह जाता है और सीन स्लो-मोशन में चलता है. फिल्म चलती रहती है. अब दोनों परिवार साथ मिल बैठ कर मस्ती कर रहे होते हैं जिस दौरान कुछ हास्यास्पद घटनाएँ घटती हैं.

लेकिन मनिका का ध्यान उस बिकिनी वाले सीन को देखने के बाद फिल्म से हट चुका था.

"ये अंग्रेज भी कितने अजीब होते हैं… बेटी को बाप के सामने बिकिनी पहने दिखा दिया बताओ…"

मनिका का दिमाग़ तो वैसे ही अपने पिता के व्यवहार से ख़राब हो रखा था. अब ऐसा सीन देख उसके मन में फिर खटास सी आ गई थी.

"कैसे वह लड़की बिकिनी में आकर अपने माँ-बाप के सामने खड़ी हो गई यार… और उसका बाप हँस-हँस कर उसका इंट्रोडक्शन और करवा रहा था… यहाँ तो मेरे पापा के… ओह यह मैं क्या सोचने लगी… नहीं बाहर ऐसा चलता होगा, गलती तो पापा की ही थी… पर ये अंग्रेज ऐसे क्यूँ होते हैं? कोई कल्चर नहीं है क्या इनका, बेटी बाप के सामने अधनंगी खड़ी है बोलो…"

मनिका ने पिछले दो दिन से खाना भी ठीक से नहीं खाया था, सो उसका तन और मन वैसे ही थोड़ा कम काम कर रहे थे. अब उसके विचलित मन में ऐसे विचार उठ रहे थे जिन पर वह चाह कर भी लगाम नहीं लगा पा रही थी.

"तुम भी तो कुछ दिन पहले पापा के साथ अधनंगी हो कर पड़ी थी…" मनिका के अंतर्मन ने उसे याद कराया. "हाय ये मैं क्या… पर मैंने जान-बूझकर थोड़े ही किया था वो…"

मनिका ने अपने-आप को ही सफाई पेश की.

"और पापा ने मुझे कुछ बोला भी नहीं… पापा वैसे भी हमेशा मेरी ही साइड लेते हैं…"

मनिका का दिमाग़ उसे एक अलग ही राह पर ले जा रहा था.

"और वहाँ शॉप में भी पापा ने कहा था कि वो मम्मी की तरह मुझे रोकने-टोकने वाले नहीं हैं… और शायद तभी यहाँ आने के बाद मैंने इतना… enjoy… किया है. इस मूवी में भी तो सब पिकनिक पर मस्ती करने ही गए थे… तभी उस लड़की को उसके घरवाले बिकिनी पहनने के लिए कुछ नहीं कहते… क्योंकि पानी में तो सब वही पहनते हैं… मतलब लड़कियाँ… पर हमारे यहाँ तो नहीं करते ये सब… हम जब वॉटर-पार्क जाते हैं तो पूरे कपड़ों में ही नहाते हैं… पर पापा ने कहा उनकी तरफ़ से कोई रोक-टोक नहीं हैं… papa has let me enjoy everything here… वरना तो हम कब के घर चले जाते."

मनिका ने अब टीवी बंद कर दिया था. उसका दिल और दिमाग़ दोनों बेचैन थे.

“How caring of papa to treat me like this… और मैंने… मैंने क्या किया… उनके मुझे लांज़रे लेने को कहने पर… पर इसमें तो गलती उन्हीं की थी…" मनिका कुछ देर गहरी सोच में डूबी रही. "पर क्या सच में? He did not say anything directly… वो तो उस कमीनी सेल्स-गर्ल ने अपनी सेल बढ़ाने के लिए बक दिया था… पर पापा ने भी तो… पर नहीं उन्होंने इतना ही तो कहा था कि… चाहिए तो ले लो…"

मनिका की ख़ुद से बातें चलतीं रही.

“GOD! It was so embarrassing… हम्म… पर उन्हें उस सेक्शन में लेकर तो मैं ही गई थी… गलती मेरी भी तो है…"

मनिका की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. हालाँकि जयसिंह के नापाक इरादों पर शक करने का ख़याल अभी भी उसके मन में नहीं आया था. पर अब जयसिंह से उसकी नाराज़गी के कारण कम होते जा रहे थे.

"तो क्या गुस्से में मैंने कुछ ज़्यादा ही बोल दिया पापा को? पापा भी दो दिन से कितने अपसेट लग रहे हैं… पता नहीं कहाँ जाते हैं? वे मेरे साथ इतने कूल पेश आ रहे थे और मैंने इतनी सी बात का बतंगड़ बना दिया…!"

अब मनिका जैसे अपने-आप को ही दोष देने लगी थी.

"दो दिन से हमारी बात तक नहीं हुई… कल थोड़ी सी बात हुई उसमें भी वे मुझे आप कह कर बुला रहे थे… पापा इतना खर्चा कर रहे हैं यहाँ और मुझे बोलते हैं चिंता न करो… और एक मैं हूँ कि… oh shit! I am such a fool… अब क्या करूँ…?"

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10 - दोस्ती

मनिका ने समय देखा, रात के नौ बज रहे थे. वो अभी भी जयसिंह से वापस बात शुरू करने की तरकीबें सोच रही थी.

पिछली रात जयसिंह ग्यारह बजे करीब लौट कर आए थे.

मनिका उठी और अपना तन और मन कुछ तरोताज़ा करने के लिए नहाने घुस गई. शॉवर के ठंडे पानी के नीचे अपना नंगा बदन सहलाते हुए उसे एक ख़याल आया और वो मंद-मंद मुसकाने लगी.

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उस रात जब जयसिंह लौटे तो पाया कि कमरे की लाइट जल रही थी. उन्होंने देखा कि मनिका जगी हुई थी और बिस्तर पर बैठी थी. एक तरफ मेज पर खाना रखा हुआ था. एक बार फिर उन्होंने अपने रात के कपड़े लिए और बाथरूम में चले गए. मनिका ने एक बार नज़र उठा कर उनकी तरफ देखा तो था पर कुछ बोली नहीं थी.

"धत्! कैसे बात शुरू करूँ पापा से?"

मनिका ने उनके बाथरूम में चले जाने पर अफ़सोस से सोचा, उनको देखते ही उसकी आवाज़ जैसे गले में ही अटक गई थी.

उधर जयसिंह ने बाथरूम में जा कर कपड़े उतारे और शॉवर में घुस पानी चलाने के लिए हाथ बढ़ाया, पर सामने का नजारा देख वे सन्न रह गए. शॉवर के नल पर मनिका की ब्रा-पैंटी लटक रही थी.
जयसिंह को मनाने के ख़यालों में डूबी मनिका रोज़ की तरह अपने धुले हुए अंत:वस्त्र तौलिए के नीचे छुपाना भूल गई थी.

जयसिंह को जैसे खड़े-खड़े लकवा मार गया था और उनका चेहरा तमतमा कर गरम हो गया. पैंटी क्या थी सिर्फ़ एक छोटा सा कपड़े का टुकड़ा था. जयसिंह ने तो अपनी बीवी को हमेशा मर्दनुमा कच्छे ही पहनते देखा था. और मनिका की गुलाबी ब्रा के बड़े-बड़े कप मानो उन्हें उसकी जवान छाती की कसावट याद करवा रहे थे.

लेकिन फिर जयसिंह ने नज़र फेर ली और पीछे हट कर शॉवर का पर्दा लगा दिया. शॉवर में फर्श और पर्दे पर गिरे पानी से वे समझ गए की मनिका नहाई थी और शायद अपने अंत:वस्त्र वहाँ भूल गई है. वे मुड़े और नहाने के लिए बाथटब में बैठ कर पानी चला लिया. उन्होंने अपने लंड की तरफ एक नज़र देखा, उनका लंड बिलकुल शांत था.

जब जयसिंह नहा कर बाहर निकले तो मनिका को जगे हुए पाया. वे जा कर काउच पर बैठने लगे.

"पापा?" मनिका ने सधी हुई आवाज़ में कहा.
"जी…?" जयसिंह ने भी उसी लहजे में पूछा और मन में सोचा. "लगता है जो सोचा था वो आज ही करना पड़ेगा."
"क्या हम बात कर सकते हैं?" मनिका ने बेड से थोड़ा उठते हुए कहा.
“I am so sorry Mani…" जयसिंह ने सिर झुकाते हुए कहा.

दो दिन से जयसिंह अपने-आप से संघर्ष कर रहे थे. पहले-पहल तो उन्हें अपना प्लान बिगड़ जाने का बहुत अफ़सोस हुआ था. लेकिन धीरे-धीरे उनकी अंतरात्मा ने उन्हें लताड़-लताड़ कर शर्मिंदगी का एहसास दिला ही दिया था. आज वे अपने किए का पश्चाताप करने और मनिका से माफ़ी मांगने का सोच कर ही वापस आए थे. पर मनिका की तरह उनसे भी पहल करने की हिम्मत नहीं हुई थी. वे बाथरूम में यह सोच कर घुस गए थे कि शायद उनके बाहर आने तक वह सो चुकी हो, और उन्हें हिम्मत जुटाने के लिए अगली सुबह तक का वक़्त मिल जाए. तभी पश्चाताप की आग में जलते जयसिंह मनिका के अंत:वस्त्रों को देख कर भी उत्तेजित नहीं हुए थे.

लेकिन अब मनिका के संबोधन ने उनके मन का गुबार निकाल दिया था.

मनिका का चेहरा भी लाल हो गया.

"पता नहीं क्या सोच मैंने आपसे ऐसा कह दिया… I am really…" जयसिंह बोलते जा रहे थे.
"NO!" मनिका ने अपनी आवाज़ ऊँची कर कहा.

जयसिंह ने उसकी इस प्रतिक्रिया पर अपना सिर उठाया. उन्हें लगा कि मनिका को उनके माफ़ी मांगने पर यकीन नहीं कर रही. लेकिन मनिका उनकी बात काटते हुए बोली,
“Papa, don’t say sorry! माफ़ी तो मुझे आपसे माँगनी चाहिए. आप क्यूँ सॉरी बोल रहे हो… after all the things you did for me… मैंने एक छोटी सी बात पर इतना ओवर-रीऐक्ट कर दिया… so, I am sorry papa… please forgive me…"

मनिका ने एक ही साँस में यह सब बोल गई थी.

जयसिंह के कुछ समझ नहीं आ रहा था. उन्होंने असमंजस भरी नज़रों से मनिका को देखा, और फिर से अपनी बात रखने की कोशिश की.

"आपने ओवर-रीऐक्ट नहीं किया था मनि. मैंने बात ही ऐसी कह दी थी के आपको बुरा लगा… please listen to me for a second…”
"नहीं पापा… मैं नहीं सुनूंगी… you did not hurt me, okay? मैं ही आपको नहीं समझ सकी… you treated me like a friend on this trip… इतना ख़याल रखा मेरा ताकि… I can enjoy my life… जबकि आप मुझे वापस घर ले जा सकते थे… सबसे झूठ बोला सिर्फ मेरे लिए… और मैंने आपको एक छोटी सी बात के लिए इतना बुरा-बुरा कह दिया… so, I should be saying sorry papa…”

मनिका जैसे उनकी कोई बात सुनने को राज़ी नहीं थी.

"छोटी सी बात नहीं थी वो…" जयसिंह ने फिर कहने का प्रयास किया.
“No papa… don’t say a word… सिर्फ कपड़े लेने की ही तो बात थी…" मनिका ने फिर से उनकी बात काट दी.

अब जयसिंह चुप हो गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक मनिका को यह क्या हो गया था और उसके तेवर बदल कैसे गए थे. वह ब्रा-पैंटी को अब 'सिर्फ कपड़े ही तो थे' कह रही थी.

"पापा?" मनिका ने इस बार उन्हें दुलार कर कहा.
"मनि…?" जयसिंह ने उसकी बदली आवाज़ सुन सधी हुई सवालिया नज़र से उसे देखा.
“Please believe me… विश्वास करो मेरा, I am really sorry… आपकी कोई गलती नहीं थी."

मनिका बेड से उतर कर उनके करीब आ खड़ी हो गई. जयसिंह ने अपनी नज़र उठा उसकी आँखों में देखा और एक पल बाद धीमे से हाँ में सिर हिला दिया.

“Okay Mani…” जयसिंह ने हौले से कहा.

मनिका ने ये सुन उनकी ओर अपना हाथ बढ़ाया और मुस्का दी. जयसिंह ने भी धीमे से मुस्कुरा कर, थोड़े संकोच के साथ उसका हाथ थाम लिया. मनिका आगे बढ़ उनकी गोद में बैठ गई.

“I missed talking to you papa… and I am really sorry." मनिका ने प्यार से मुँह बना कर उनसे अपनी माफ़ी का इज़हार एक बार फिर कर दिया, “Please… मुझे माफ़ कर दो?”
“I missed talking to you too my darling." जयसिंह ने कहा. मनिका ने उनके इस सम्बोधन पर भी कोई आपत्ति नहीं जताई.
“Promise me… कि फिर कभी मुझसे नाराज़ नहीं होओगी." उसका बर्ताव देख जयसिंह उसे अपने से सटाते हुए आगे बोले.
“I promise papa…" मनिका ने मुस्कुरा कर हाँ भर दी.

जयसिंह के लंड में एक बार फिर क्रांति की लहर दौड़ने लगी थी.

–​

बाप-बेटी की दोस्ती हुए आधा घंटा बीत चुका था. उस दौरान मनिका फिर एक-दो बार अपने पिता से माफ़ी माँग चुकी थी. जयसिंह ने जब उसे पूछा कि क्या वह सचमुच उनसे बिलकुल भी नाराज़ नहीं है? तो उसने उन्हें बताया कि किस तरह उसे एहसास हुआ था कि वह गलत थी और उनसे माफ़ी मांगने के लिए ही सुबह से उनका इंतज़ार कर रही थी.

जयसिंह ने अपनी जगी हुई किस्मत को मन ही मन धन्यवाद दिया.

"अगर कहीं मैंने पहले माफ़ी मांग ली होती तो रांड हाथ से निकल जाती…"

अब तक, जयसिंह अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को फिर से अँधेरे में धकेल चुके थे.

मनिका ने उन्हें वह फ़िल्म के सीन वाली बात नहीं बताई थी, जिस से उसका हृदय-परिवर्तन शुरू हुआ था. बल्कि उसने ऐसे जताया कि उसे अपने-आप ही अपनी गलती का एहसास हो गया था. उसकी पीठ सहलाते हुए जयसिंह अंदर ही अंदर आनंदित हो रहे थे. तभी मनिका को याद आया कि उसने जयसिंह के लिए खाना भी ऑर्डर किया था.

"खाना खाया आपने?" मनिका ने बड़े प्यार से जयसिंह की गोद में बैठे-बैठे पूछा
"नहीं खाया तो नहीं है." जयसिंह ने कहा.
"मैंने आपके लिए ऑर्डर किया था पापा, लेकिन अब तक तो सब ठंडा हो चुका होगा." मनिका ने खेद प्रकट किया.
"कोई बात नहीं. मुझे भूख नहीं है वैसे भी…" वे बोले और फिर मन में सोचा. "पर साली तूने मुझे तो गरम कर दिया है…"
"क्यूँ नहीं है?" मनिका ने फिर सवाल किया.

अभी-अभी हुई सुलह के कारण वो अपने पिता से थोड़ा ज्यादा ही प्यार दिखा रही थी.

"आप जो वापस आ गई मेरे पास…" जयसिंह ने भी डायलॉग दे मारा.
"हाहाहा… पापा मैं कोई खाने की चीज़ हूँ क्या?" मनिका ने हँसते हुए कहा.

जयसिंह ने कुछ ना कहते हुए उसे रहस्यमय अंदाज़ से मुस्का कर देखा. वह भी मुस्का दी और आगे बोली,

"और मुझे 'आप' क्यों कहना शुरू कर दिया है. मैं आपसे छोटी हूँ… ऐसे बोलते हो तो मुझे आंटी जैसा फ़ील होता है."
"हाहाहा, अच्छा भई अब नहीं कहूँगा." जयसिंह भी हँस पड़े और पूछा. "क्या तुमने खाया खाना?"
"नहीं, पर पापा मुझे भी भूख नहीं है." मनिका ने उन्हीं का जवाब देते हुए कहा.
"क्यूँ?" जयसिंह ने भी सवाल कर दिया.
"आपसे बात करने की ख़ुशी से ही पेट भर गया." उसने शरारत से कहा.
"हम्म तो ये बात है…" जयसिंह ने हाथ से उसका चेहरा अपनी तरफ मोड़ते हुए कहा.
"हाँ पापा… I am so happy…” मनिका गहरी साँस भर कर बोली.

मनिका ने स्ट्रॉबेरी-फ्लेवर की लिपग्लॉस लगा रखी थी. उनके चेहरे इतने करीब थे कि जयसिंह को उसके होंठों की ख़ुशबू आ रही थी. उनके लंड ने एक और अंगड़ाई ली.

"पापा?" मनिका एक बार फिर सवाल करने से पहले बोली.
"हम्म…?" जयसिंह उसके हिलते हुए गुलाबी होंठ देख मंत्रमुग्ध से बोले.
"आपको नींद नहीं आ रही?" उसने पूछा.
"तुम्हें आ रही लगती है… है ना?" जयसिंह मनिका के सवाल का आशय समझ गए थे.
"हाँ… आपको कैसे पता?" मनिका ने मानते हुए कहा.
"बस पता है… तुम्हारी जो बात है…" जयसिंह वापस अपनी फॉर्म में आ चुके थे.
"हाहा… दो दिन से अच्छे से नींद ही नहीं आई पापा…" मनिका बोली.
"क्यूँ?" जयसिंह ने फिर पूछा.
"आपको पता तो है…" मनिका ने उनकी तरफ भोली सी निगाहों से देख कर कहा.
"मुझे कैसे पता होगा?" जयसिंह ने अनभिज्ञता जाहिर की.
"आपसे लड़ाई कर ली थी इसलिए ना…" मनिका ने नज़र झुका अपना अपराध-बोध जाहिर किया.
जयसिंह ने भी उसे और नहीं सताया और कहा,
"चलो फिर सोते हैं."
"ओके पापा"

मनिका उनकी गोद से उतर बेड की तरफ चल दी. बेड पर चढ़ कर उसने देखा जयसिंह काउच पर ही सोने लगे हैं.

"पापा! आप क्या कर रहे हो?" मनिका ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा.
"अरे भई, अभी तुमने ही तो कहा सोने को…" जयसिंह ने शरारती मुस्कुराहट बिखेर दी.
"पापा… यहाँ आ जाओ चुपचाप…" मनिका ने उनींदी हो कहा.
"सोने के लिए बुला रही हो या ऑर्डर दे रही हो?" जयसिंह टस से मस न होते हुए बोले. "प्यार से बुलाओगी तो आऊँगा."
"जाओ मैं नहीं बुलाती." मनिका ने भी नखरा दिखाया.
जयसिंह ने कोई जवाब नहीं दिया और अपनी आँखें मूँद ली. मनिका कुछ पल उन्हें देखती रही फिर नखरा छोड़ मुस्काते हुए कहा,
"पापा?"
"हाँ मनिका?" जयसिंह ने झट से आँखें खोलते हुए कहा.
"पापा मेरे प्यारे पापा यहाँ बेड पर मेरे पास आ कर सो जाओ ना?" मनिका ने आँखें टिमटिमा कर कहा.

जयसिंह मुस्कुराते हुए उठ खड़े हुए और बेड पर जा मनिका के साथ कम्बल में घुस गए.

–​

जयसिंह ने बत्ती बुझा नाईट-लैम्प जला दिया. वे दोनों एक दूसरे की तरफ करवट ले कर सो रहे थे. मनिका की आँखें खुली थी और उसके चेहरे पर मुस्कान तैर रही थी. लैम्प की मद्धम रौशनी में वे एक-दूसरे को निहार रहे थे. जयसिंह ने अपना हाथ थोड़ा आगे किया जिसपर मनिका ने भी अपना हाथ आगे बढ़ा उनका हाथ थाम लिया. जयसिंह हौले-हौले उसकी हथेली सहलाने लगे. कुछ देर बाद दोनों की आँख लग गई, दोनों अभी भी हाथ पकड़े हुए थे.

–​

अगली सुबह जब मनिका उठी तो उसे बहुत अच्छी सी फ़ीलिंग हो रही थी.

पास लेटे जयसिंह को देख उसे रात की बातें याद आई और वह अपने पापा से हुई दोस्ती के ख़याल से ही चहक उठी थी.

"पापा! आप अभी तक सो रहे हो? देखो आज मैं आपसे पहले उठ गई."
"उन्ह हम्म…" ऊनींदे से जयसिंह ने आँखें खोलीं.

दो दिन से काउच पर बिताने के बाद आज बेड पर उन्हें काफी गहरी नींद आई थी.

"उठो ना पापा…क्या आलस बिखरा रहे हो…" मनिका ने उन्हें हिला कर कहा.

मनिका जयसिंह को उठा कर ही मानी.

फिर वे दोनों बाथरूम से फ़्रेश हो कर आए और ब्रेकफ़ास्ट ऑर्डर किया. जयसिंह बैठे हुए अखबार में स्टॉक-मार्केट की ख़बरें देख रहे थे. मनिका भी उनके पास ही बैठी उनसे कुछ-कुछ बात करते हुए एक मैगज़ीन के पन्ने पलट रही थी.

थोड़ी देर में रूम-सर्विस आ गई. मनिका ने जा कर गेट खोला.

“Good morning ma’am.” सामने वो हरामी वेटर था जो सबसे पहले दिन आया था.
“M… m… morning.” मनिका उसकी कुटिल मुस्कान भूली नहीं थी.

वेटर अंदर आ गया और उनका नाश्ता टेबल पर लगाने लगा. मनिका जयसिंह के पास बैठ गई. पर अब उसकी नज़र फर्श पर टिकी थी. वेटर ने खाना लगा दिया और एक मंद सी मुस्कुराहट लिए खड़ा रहा. जयसिंह ने उसे टिप देकर फ़ारिग कर दिया. उसने अदब से झुक कर जयसिंह से कहा था,

“Thank you sir."
और फिर मनिका से मुख़ातिब हो बोला,
“Thank you ma’am…"

मनिका की नज़र उससे मिली थी, वेटर के चेहरे पर फिर वही मुस्कान थी.

वेटर के चले जाने के बाद मनिका ने जयसिंह से कहा,
“I don’t like him."
"क्या? किसे?" जयसिंह ने अखबार से नजर उठा कर पूछा.
"अरे यही जो अभी गया है… वो वेटर…" मनिका ने बताया.
"हैं? क्यूँ क्या बात हुई…?" जयसिंह ने अखबार साइड में रखते हुए पूछा.
"ऐसे ही बस… अजीब सा आदमी है वो…" मनिका भी उन्हें क्या बताती.
"हाहाहा… पता नहीं क्या हो जाता है तुम्हें चलते-चलते, अब बताओ मैडम को वेटर भी पसंद का चाहिए." जयसिंह हँस कर बोले.
"क्या है पापा… don’t make fun of me… चलो ब्रेकफास्ट करते हैं." मनिका ने मुँह बनाते हुए कहा.

नाश्ता करने के बाद मनिका ने अपने पिता से पूछा कि आज के लिए उनका क्या प्लान था. जिस पर जयसिंह ने रूम में ही रहकर रेस्ट करने की इच्छा जताई. मनिका भी मान गई और नहाने घुस गई.
बाथरूम का गेट बंद होने की आवाज़ से जयसिंह को अचानक कुछ याद आया और वे मुस्कुरा उठे.

–​

जब मनिका नहा कर वापस निकली तो जयसिंह को काउच पर सुस्ताते पाया. दरअसल वे सोने का नाटक कर रहे थे ताकि मनिका को नहा कर निकलते हुए देख सकें. मनिका ने बाहर आते ही उनकी और देखा और उन्हें सोता समझ अपने सूटकेस के पास जा कर कपड़े रखने लगी.

"नहा ली मनिका?" जयसिंह ने थोड़ा सा सिर उठा उसकी तरफ देखते हुए कहा.
"हाँ पापा." मनिका पीछे मुड़ बोली. जयसिंह ने पाया कि उसकी आवाज़ में पहले जैसी चहक नहीं थी.

कुछ देर बाद मनिका आ कर काउच के पास रखी सोफ़े-नुमा कुर्सी पर बैठ गई. जयसिंह उसके चेहरे के भाव देख समझ गए कि वह कुछ कहना चाह रही है. वे चुपचाप लेटे रहे और आँखें बंद कर फिर से सोने का नाटक करने लगे.

"आप नहीं ले रहे बाथ?" मनिका ने उनसे पूछा.
"म्म… अभी थोड़ी देर में जाता हूँ… आज तो रूम पर ही हैं ना हम…" जयसिंह ने झूठा आलस दिखाया.
"पापा?" मनिका हौले से बोली.
"हम्म?" जयसिंह ने नाटक जारी रखते हुए थोड़ी सी आँख खोल उसे देखा.
"पापा कल रात को… रात को आप शॉवर से नहाए थे क्या?" मनिका ने पूछा.

उसकी नज़रें जमीन पर टिकीं थी और चेहरे पर लालिमा झलक रही थी.

–​

मनिका ख़ुशी-ख़ुशी नहाने घुसी थी पर जैसे ही उसने शॉवर का पर्दा हटाया था उसे वही नज़र आया जिसने पिछली रात जयसिंह को साँप सुंघा दिया था. उसकी ब्रा और पैंटी जो नल पर लटक रही थी. मनिका एक बार तो सकपका गई थी,
"ये यहाँ कैसे पहुँची…?"

फिर उसे याद आया कि कल रात नहाने के बाद उसने उन्हें वहीं छोड़ दिया था.

“Oh shit…!"

वह अपने अंत:वस्त्र उठाने को हुई थी जब उसे याद आया कि उसके पिता ने रात को आकर बाथ लिया था. लेकिन इसीलिए उसने बाहर निकल कर जयसिंह से टोह लेते हुए पूछा था कि क्या वे शॉवर में गए थे.

–​

जयसिंह ने चेहरे पर बिना कोई भाव लाए कहा,

"नहीं तो, बाथटब से… क्यूँ क्या हुआ, पानी नहीं आ रहा शॉवर में?"
"ओह… नहीं-नहीं आ रहा है पानी तो. कुछ नहीं पापा ऐसे ही पूछ रही थी." मनिका ने राहत भरी साँस खींची.
"पापा ने कुछ नहीं देखा… thank god!" उसने मन ही मन सोचा.
"ऐसे ही?" जयसिंह ने सवाल पर थोड़ा जोर दे पूछा.
"हाँ पापा." मनिका ने दोहराया.
"अच्छा भई मत बताओ…" जयसिंह ने खड़े होते हुए कहा और मनिका की तरफ देखा, "मैं नहा कर आता हूँ चलो…"
"ओके पापा." मनिका ने उनकी आधी बात का ही जवाब दिया.
जयसिंह मनिका के पास से गुजरते हुए रुक गए और मनिका के कंधे पर हाथ रखा,
"मनिका?"
"हम्म… हाँ पापा…?" मनिका अब पहले सी चहक कर बोली.
"सिर्फ़ कपड़ों की ही तो बात है… है ना?"

जयसिंह ने एक शरारत भरी मुस्कान के साथ कहा और आगे बढ़ नहाने चले गए.

–​
 

Daddy's Whore

Daddy's Whore
2,561
2,618
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11 - ख़ज़ाना

जयसिंह नहाने घुस गए थे पर मनिका के मन में शर्म-ओ-हया के ज्वार उठा गए थे. उन्होंने रात को कही उसी की बात को इस तरह से कह दिया था कि मनिका न चाहकर भी मुस्का उठी थी.

"हाऽऽऽऽ! पापा ने देख ली मेरी अंडरवियर…! हाय राम…" मनिका ने अपना चेहरा दोनों हाथों से छुपाते हुए सोचा. "और तो और कैसे बन रहे थे… मैं तो बाथटब से नहाया था… झूठे ना हों तो…" मनिका शरम से कुर्सी में गड़ी जा रही थी. "कल तक तो मैंने इतना बखेड़ा खड़ा किया हुआ था और अब अपनी ही बेवकूफी से बेइज़्ज़ती हो गई…! हाय पापा ने मेरी थोंग देख कर क्या सोचा होगा…? कि कैसी बेशरम हूँ मैं… हाय फूटी किस्मत…!”

जब तक जयसिंह नहा कर निकले थे, मनिका अपने-आप को बैठी कोस ही रही थी. पर उसने सोचा था कि बात को दबाने की बजाय वो पापा से सॉरी कह देगी, ताकि जयसिंह उसे बिगड़ैल ना समझें.
उनके आने पर मनिका ने कुर्सी से उठते हुए कहा,

“Papa… I am so embarrassed.”

जयसिंह ने उसकी तरफ झूठे असमंजस से देखा. इस पर मनिका ने आगे सफाई पेश की,

"मैं भूल गई थी… कल जल्दी में…" मनिका अटकते हुए इतना ही कह पाई.

अब जयसिंह ने सीरियस सा अंदाज इख़्तियार कर लिया और उसके पास आ गए.

"मनिका तुम इतना क्या सोचने लगी? कोई बात नहीं… हम्म?"

मनिका से कुछ पल कुछ कहते ना बना पर जयसिंह के उसे ताकते रहने पर उसने धीरे से कहा,

“हाँ, I know papa… but… पर शरम तो आती ही है ना… आपने भी क्या सोचा होगा… कि मैं कैसी बेशरम हूँ…"
"मैं ऐसा क्यूँ सोचूँगा भला?" जयसिंह झूठा अचरज जता रहे थे.

मनिका भला कैसे कहती कि वो अपनी थोंग वाली पैंटी की बात कर रही है.

जब मनिका नज़र झुकाए खड़ी रही तो वे आगे बोले,

"कल जब तुमने मुझसे माफ़ी माँगी थी, उस से पहले तक मैं अपने-आप को ही गलत मान रहा था… पर फिर मुझे भी तुम्हारी बात में सच्चाई लगी… it’s okay Manika, we are enjoying our time with each other… they are just clothes… लेकिन अब तुम खुद ही अपनी बात काट रही हो… इसका मतलब तो फिर मैं ही गलत था…"

जयसिंह मनिका को भावनाओं और तर्क के जाल में फंसाते जा रहे थे.

“No papa… ऐसा नहीं है… आप सही कह रहे हो पर… आप भी समझो ना… जिस बात को लेकर मैंने आपसे इतनी लड़ाई की… और फिर ऐसी भूल कर दी.” मनिका ने सकुचाते हुए दलील दी.
जब जयसिंह कुछ न बोले तो उसने आगे कहा,
“इसीलिए… it’s so embarrassing for me.”
“Okay Manika… it’s okay… okay?” जयसिंह थोड़ी सी सख़्ती से बोले.

उनकी टोन सुन मनिका की आनाकानी पर ब्रेक लग गया.

“जी पापा." मनिका ने धीमे से कहा.

जयसिंह समझ गए थे कि यह उनके प्लान का सबसे जटिल हिस्सा था. मनिका भले ही उनके साथ खुल चुकी थी पर अभी भी उसके मन में समाज के नियम-कायदों का एहसास मजबूत था. अब सामाजिक रिश्तों में मनिका के इस विश्वास को उन्हें तोड़ना था.

“Then give me a smile… ऐसे उदासी नहीं चलेगी…" जयसिंह ने मुस्काते हुए उसे उकसाया.
"हेहे… पापा. मैं कहाँ उदास हूँ…" कह मनिका हँस दी.
“Good girl.” जयसिंह ने उसे स्माइल देते देख कहा और फिर अपने सूटकेस की तरफ चले गए.

–​

मनिका अपने पिता को देखते हुए सोचने लगी.

"हाय…! पापा तो सच में कुछ ज़्यादा ही खुली सोच के हैं… इतना तो मैंने भी नहीं सोचा था. उन्होंने तो मेरी बात का कुछ और ही मतलब निकाल लिया… after all… वो मेरे पापा हैं, उन्हें नहीं तो मुझे तो लाज आएगी ही… but papa is acting so cool and taking everything so lightly… और यहाँ मैं शरम से मरी जा रही हूँ. बात सिर्फ अंडरवियर की होती तो फिर भी… पर मेरी थोंग… और पापा ने उन्हें देख लिया… that’s why it’s so embarrassing…”

दरअसल मनिका पहले साधारण पैंटी ही पहना करती थी. लेकिन कुछ साल पहले वो अपने ताऊ के यहाँ जयपुर गई थी, और वहीं एक मॉल में उसने पहली बार ऐसी सेक्सी कच्छीयाँ कलेक्शन देखा था. टीवी और फ़िल्मों में उसने लड़कियों को ये सब पहने देखा तो था ही. सो वह उत्सुकतावश चुपके से वो सेक्सी अंडरवियर उठा लाई थी. बस तभी से उसे इस तरह के अंडरवियर पहनने की आदत पड़ गई थी. क्यूँकि घर पर उसका रूम और बाथरूम अलग थे और अंतःवस्त्र भी वो अंदर ही सुखाया करती थी तो किसी को खबर भी नहीं हुई कि घर की बड़ी बेटी कितनी सयानी हो चली है. लेकिन तब उसे क्या पता था कि उसका एक फ़ैसला आख़िर में उसके पिता को पथभ्रष्ट कर देगा.

जयसिंह की आवाज़ सुन मनिका का ध्यान टूटा.

"मनिका जरा रूम-सर्विस पर कॉल करके लॉंड्री वाले को बुलाना. मेरे सारे कपड़े धोने वाले हो रहे हैं."

मनिका और जयसिंह को दिल्ली आए आज बारह दिन हो चले थे. सो उनके कपड़े अब धुलाई योग्य हो गए थे. मनिका को भी अपनी कुछ पोशाकें धुलने देने का ख़याल आया. सो उसने अपनी उलझन को एक ओर कर, जयसिंह के कहे अनुसार लॉंड्री सर्विस को कॉल किया.

थोड़ी देर में लॉंड्री से एक लड़का आया और उनके कपड़े अगली शाम तक ड्राई-क्लीन कर वापस देने का बोल गया.

मनिका और जयसिंह को आज पूरा दिन कमरे में ही बिताना था. उन्होंने मनिका को याद दिलाया कि उसके इंटर्व्यू का दिन करीब आ चुका था, सो उसे थोड़ी तैयारी कर लेनी चाहिए. इस पर मनिका ने चहक कर कहा कि उसे सब आता है, बस वे ही उसकी इंटेलिजेंस की कद्र नहीं करते. मनिका का इतना आत्मविश्वास होना लाजमी भी था. उसके मामा कॉलेज में प्रोफेसर थे और उन्होंने उसे बहुत अच्छे से तैयारी करवाई थी.

खैर, इस तरह बातें करते हुए अब उन्हें यह भी एहसास हुआ कि उनके घर वापस लौटने का समय भी आने वाला था. जयसिंह के साथ फिर से बढ़ी आत्मीयता ने मनिका को थोड़ा इमोशनल कर दिया था. घर वापस जाने की बात आई तो उसने जयसिंह से अपने मन में चल रहीं कुछ बातें शेयर कर दीं. जैसे, कैसे उसे उनके इतने खुले विचारों पर अचरज होता है और उनका उसे इतने अच्छे से ट्रीट करना उसे कितना अच्छा लगता है.

मनिका ने उन्हें यह भी बताया कि कैसे वह सोच रही थी कि घर वापस जाने के बाद भी उनके बीच का ये रिश्ता बना रहे तो कितना अच्छा हो. फिर उसने कहा था कि,

“But papa, I know that… घर पर हम इतना खुल कर और मस्ती से नहीं रह सकते. मम्मी वैसे ही इतना चिक-चिक करती है… और आपको भी ऑफ़िस वग़ैरह के काम होंगे."

मन ही मन खुश होते जयसिंह ने सोचा कि,

"साली कुतिया पर यह दोस्ती का भूत इसी तरह चढ़ा रहे तो आखिरी बाज़ी भी जीती जा सकती है."

फिर उन्होंने मनिका को आश्वासन दिया कि वे उनके बीच का यह स्पेशल रिश्ता टूटने नहीं देंगे बशर्ते कि वह भी उन पर भरोसा बनाए रखे. इसपर मनिका ने बहुत खुश हो कर उनसे प्रॉमिस किया कि वो वैसा ही करेगी जैसा वे कहेंगे.

जयसिंह ने उसे फिर एक दफ़ा अपनी मम्मी और घर के दूसरे लोगों के सामने सोच-समझ कर रहने की हिदायत दी. उनका वही पुराना तर्क था कि उसकी माँ सोचती है कि उन्होंने अपने लाड़-प्यार से मनिका को बिगाड़ दिया था. मनिका ने भी उनसे हाँ में हाँ मिलाई पर फिर शरारत भरे अन्दाज़ में कहा,

"वैसे मम्मी ग़लत तो नहीं है… आप मुझे बिगाड़ तो रहे हो…"

फिर वे दोनों अपने इस सीक्रेट पर हँस पड़े थे.

कुछ देर बाद जयसिंह मनिका को लेकर होटल के गार्डन में घूमने निकल गए. एक बार फिर मनिका उनकी बाँह में बाँह डाले थी.

–​

जब वे गार्डन में घूम कर वापस लौट रहे थे तो मनिका की नज़र एक तरफ लगे बोर्ड पर गई. जिसपर होटल के विभिन्न हिस्सों और सेवाओं के नाम और डायरेक्शन लिखे हुए थे. उनमें से एक नाम ने उसका ध्यान आकर्षित किया था 'Beauty & Spa'.

जवानी की दहलीज़ पर कदम रखने के साथ ही मनिका ने अपने सौंदर्य ख़याल करना शुरू कर दिया था. अनजाने में ही सही, उसकी इस आदत ने भी उसके पिता को उसका दीवाना बना रखा था. एक-दो दिन से मनिका को अपने बदन पर हल्के रोएँ महसूस हो रहे थे. उसे फिर से वैक्सिंग की ज़रूरत थी. दिल्ली सिर्फ़ दो दिन का कार्यक्रम बना कर आई होने की वजह से वो अपना वैक्सिंग किट भी साथ नहीं लाई थी. वैसे भी अपने पिता के साथ रूम शेयर करते हुए वह उसका इस्तेमाल नहीं कर पाती.

सो जब उसने वह सैलून का बोर्ड देखा तो जयसिंह से बोली,

"पापा आज तो हम होटल में ही हैं ना?"
"हाँ हैं तो… कहीं बाहर घूमने का मन है तुम्हारा?" जयसिंह ने पूछा.
"नहीं पापा… वो मैं सोच रही थी कि आज यहाँ सैलून से… I can go get a hair cut and facial…”
"हाँ तो करा लो न…" जयसिंह कहाँ ना कहने वाले थे.

मनिका जयसिंह से वैक्सिंग का तो कैसे कहती सो उसने बाल कटवाने की बात कही थी. वैसे दोनों ही स्थितियों में कटने तो बाल ही थे.

जयसिंह ने उसे अपना क्रेडिट कार्ड थमा दिया और कमरे में लौट गए.

इधर मनिका ने सैलून में जा वैक्सिंग, हेयर-कटिंग और ब्यूटी-फेशियल के लिए पूछा. काउंटर मैनेज कर रही लड़की ने एक ब्यूटिशियन को बुला दिया जो उसे अंदर ले गई.

–​

कमरे में आकर जयसिंह मनिका के वापस आने का इंतज़ार करने लगे.

मनिका ने कहा था कि उसे आने में थोड़ा वक़्त लग जाएगा, सो उन्होंने सोचा कि वे थोड़ी देर सो लेंगे. वैसे भी टीवी देखने का उनका मन नहीं था, और आजकल उन्हें अपनी बेटी की जवानी के ख़याली पुलाव पकाने में ही ज़्यादा मजा आता था. सो वे बिस्तर पर लेटे हुए मनिका को बहलाने-फुसलाने के बारे में सोच रहे थे. यह सब सोचते-सोचते वे उत्तेजित होने लगे और उनका लंड खड़ा हो गया. उन्होंने उसे हौले से दबा कर करवट बदली. उनकी नज़र बेड के पास रखे मनिका के सूटकेस पर पड़ी.

कुछ सोचते हुए जयसिंह यकायक बेड से उठ खड़े हुए.

वे मनिका के सूटकेस के पास पहुँचे और उसे उठा कर बेड पर रखा. सूटकेस में नंबर-लॉक सिस्टम था लेकिन मनिका ने उसे लॉक नहीं कर रखा था. जयसिंह के दिल की धड़कने बढ़ गई थी. उन्होंने सूटकेस खोला.

सूटकेस खुलते ही उन्हें मनिका के कपड़ों में से उसके परफ्यूम और तन से आने वाली भीनी ख़ुशबू का एहसास हुआ. वे सूटकेस में उसके कपड़े टटोलने लगे. लेकिन जो वे ढूँढ़ रहे थे वो उन्हें नहीं मिला.
जयसिंह थोड़े असमंजस में पड़ गए, "आखिर उन्हें होना तो यहीं चाहिए था?" अब उन्होंने जरा ध्यान से सूटकेस में रखी चीज़ें चेक करना शुरू की. उसमें मनिका के कुछ कपड़े थे जो उन्होंने उसे अभी तक पहने नहीं देखा था. एक दो डिब्बों में झुमके, रिबन, बालों की क्लिप-बैंड इत्यादि सामान था. एक छोटा मेकअप किट भी उनके हाथ लगा. फिर उन्होंने सूटकेस के ऊपर वाले पार्टीशन में देखना शुरू किया.
वहाँ भी मनिका के कुछ कपड़े और एक कपड़े व नायलॉन से बना किट रखा था. मनिका ने पहली-पहली रात जो शॉर्ट्स और गंजी पहनी थी वे भी वहाँ रखे थे. मनिका के हुस्न के उस दीदार की याद आते ही उनका शांत होता लंड फिर से उछल पड़ा.

अब उन्होंने वो नायलॉन वाला किट बाहर निकाला, उसके साइड में ज़िप लगी हुई थी और वह एक बक्से की तरह खुलता था. जयसिंह ने उसे खोला और उन्हें अपने मन की मुराद मिल गई. किट में मनिका के अंत:वस्त्र थे.

उस किट के अंदर लगे एक लेबल से जयसिंह को पता चला कि वह एक lingerie case था. उसमें ब्रा रखने के लिए अलग से स्तन-नुमा जगह बनी हुई थी ताकि उनके कप ना मुड़ें, और साइड में छोटी-छोटी पॉकेट्स थीं जिनमें मनिका ने बड़े क़रीने से अपनी पैंटीयाँ समेट कर डाल रखीं थी.

"कैसी-कैसी चीज़ें है इस रंडी के पास देखो जरा… ब्रा और कच्छीयों के लिए भी अलग से डब्बा… वाह!"

अपनी जवान बेटी के अंत:वस्त्र हाथ में लेने का मौक़ा जयसिंह एक बार गँवा चुके थे. सो इस बार बिना एक पल गँवाए वे उसकी ब्रा और पैंटीयाँ निकाल-निकाल कर देखने लगे.

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Casinar

Dimaagh ka garam, Dil ka naram
Divine
18,429
125,673
259
Hi,

Sorry but almost 65000+ words have been written so far, cannot switch now. Will write my next story in Hinglish though. So sorry :(
no issues but if you check my scripts i did write both in English and Hinglish on readers' request. 125,000 words :D but never mind. chalta hai yaar.
 

Daddy's Whore

Daddy's Whore
2,561
2,618
159
12 - करतूत

कुल मिलाकर उस केस में तीन जोड़ी रंग-बिरंगी ब्रा-पैंटी थीं.

ब्रा: बैंगनी, गुलाबी और सफ़ेद
पैंटी: बैंगनी, हरी और आसमानी

"और एक गुलाबी वाली जो छिनाल ने पहन रखी होगी" उन्होंने सोचा था.

जयसिंह मनिका की छोटी सी, कोमल बैंगनी पैंटी को अपने हाथ में लेकर देख रहे थे. उसकी तीनों ही पैंटी थोंग स्टाइल की थीं. जयसिंह की पैंट में अब तक उनका लंड उनके अंडरवियर में छेद करने पर उतारू हो चुका था. जयसिंह रह नहीं सके और मनिका की पैंटी अपने नाक के पास ले जा कर उसकी गंध ली. पैंटी धुली हुई थी लेकिन फिर भी उसमें से एक हल्की मादा गंध आ रही थी,

"आहऽऽऽ…!"

एक जोरदार आह भर जयसिंह ने अपनी पैंट की ज़िप खोली और अंडरवियर के अँधेरे से अपने लंड को आज़ाद किया. लंड उछल कर बाहर निकला और उनके हाथ से टकराया,

'थप्प…'.

जयसिंह ने नीचे देखा और अपने काले घनघोर लंड पर अपनी बेटी की छोटी सी पैंटी लपेट बेड पर गिर पड़े.

जयसिंह बेसुध से हो गए थे. पैंटी का कोमल कपड़ा उनके खड़े लंड को गुदगुदा कर और उत्तेजित कर रहा था. उनका लंड फुफकार मार-मार कर हिल रहा था. उनके दोनों अंड-कोषों ने भी अपने अंदर भरी आग को उगल डालने की कोशिशें तेज़ कर दीं थी. छींयालिस साल के जयसिंह हवस के दर्द से बिलबिला रहे थे. लेकिन आनंद की चरम सीमा पर पहुँचने से पहले ही जयसिंह को अपनी भीष्म-प्रतिज्ञा याद आ गई, कि वे मनिका के नाम का मुठ नहीं मारेंगे. उन्होंने किसी तरह अपने-आप को सम्भाल लंड पर से हाथ हटाया.

फिर कुछ देर हाँफते हुए पड़े रहने के बाद उन्होंने मनिका की पैंटी अपने लंड से उतारी. फिर उसके सभी अंत:वस्त्रों को वापस जँचा कर रख दिया. अब उनकी नज़र किट में ही रखे एक काले लिफाफे पर गई.

कौतुहलवश उन्होंने उसे भी खोला. लिफ़ाफ़े में लड़कियों द्वारा माहवारी में लगाए जानेवाले पैड्स थे और दो कॉटन की नॉर्मल अंडरवियर भी रखी थी. इनका इस्तेमाल भी वे समझ गए,

"साली की उन छोटी-छोटी पैंटीयों में तो पैड टिकते नहीं होंगे… हम्म तो पीरियड्स का सामान अभी तक पैक पड़ा है… पर आज बारह दिन हमें यहाँ आए हो चुके हैं मतलब वक्त करीब है." उन्होंने आगे सोचा.

जयसिंह जानते थे कि पीरियड्स के वक्त लड़कियों के मन की स्थिति थोड़ी बदल जाती है, और वे इमोशनल जल्दी होने लगती हैं. यह सब सोचते-सोचते जयसिंह के खड़े लंड के मुहाने पर गीलापन आने लगा था.

पर तभी उन्हें यह भी याद आया कि मनिका के पास कमरे में घुसने के लिए दूसरा की-कार्ड था. उन्हें आए हुए काफ़ी देर हो चुकी थी. उसके लौट कर आने का अंदेशा होने पर उन्होंने धीरे-धीरे सारा सामान वापिस रखना शुरू किया.

सब सामान जस का तस रख जब वे सूटकेस बंद करने लगे तो उनकी नज़र एक बार फिर मनिका के मेकअप किट पर पड़ी. किट तो बंद था परन्तु उसके पास ही मनिका का लिपग्लॉस, जो वह रोज लगाया करती थी, बाहर ही रखा था. जयसिंह ने उसे उठाया और ढक्कन खोल उसकी ख़ुशबू ले कर देखा, बिलकुल वही महक थी जो मनिका के मादक होंठों से आती थी. हवस में अंधे हुए जयसिंह ने अपने लंड के मुहाने पर आए पानी को अपने हाथ के अंगूठे पर लगाया और मनिका के लिपग्लॉस के ऊपर फैला कर ढक्कन लगा दिया.

वैसे भी, लिपग्लॉस और लंड पे आने वाला पानी, दोनों ही चिकने होते हैं, सो मनिका को पता लगने का मतलब ही नहीं था.

उन्होंने जल्दी से सूटकेस बन्द कर वापस रखा और बेड पर पीठ के बल गिर पड़े. अपनी उस गंदी हरकत से वे और अधिक उत्तेजित हो गए थे.

कुछ पल बाद जब जयसिंह का अपने-आप पर कुछ काबू हुआ तो वे उठ कर बाथरूम गए और अपने हाथ धोए. उनका लंड अभी भी बाहर लटक रहा था. वे पंजों के बल खड़े हो अपना लंड वॉशबेसिन के नल से आती ठंडे पानी की धार से शांत कर ही रहे थे कि कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ हुई.

जयसिंह हड़बड़ा गए, बाथरूम का दरवाज़ा खुला ही था. उन्होंने जल्दी से अपना लंड अंदर ठूँसा और ज़िप बंद कर के हाथ धोने का नाटक करने लगे.

"पापा? क्या कर रहे हो?" मनिका की आवाज़ आई.
"कुछ नहीं बस थोड़ा आलस आ रहा था तो हाथ-मुँह धो रहा था. आ गई तुम?" जयसिंह ने कहा.
"हाँ पापा… आ गई हूँ तभी तो आवाज़ आ रही है मेरी…" मनिका ने उनकी खिल्ली उड़ाने के अंदाज़ में कहा.
"हाहाहा… हाँ भई मान लिया…" जयसिंह बाथरूम से बाहर आते हुए बोले थे.

मनिका बेड के पास अपना मोबाइल चार्ज लगा रही थी. उनकी आहट सुन वह पलटी और एक बार फिर जयसिंह के होश फ़ाख्ता हो गए.

"आप कौन हैं मिस?" जयसिंह ने अचंभे से कहा.
"हीहाहाहाऽऽ… पापा! क्या है आपको… it’s me na…" मनिका ने कुछ हँसते कुछ लजाते हुए कहा.

वैसे तो आजकल जयसिंह के ज्यादातर हाव-भाव मनिका के सामने दिखावे के लिए ही होते थे, पर अपने सामने खड़ी ख़ूबसूरत लड़की को देख वे आश्चर्यचकित रह गए थे.

मनिका की ख़ूबसूरती के कायल जयसिंह ने देखा कि ब्यूटी-सैलून जाने के बाद तो उसका काया-पलट ही हो गया था. मनिका ने बालों में स्टेप-कट करवाया था जिससे उसके बाल किसी मॉडल से प्रतीत हो रहे थे. उसका चेहरा भी मेकअप से दमक रहा था और गोरे-गोरे गालों पर लालिमा फैली थी. मनिका की आँखों को काले काजल, जिसे मस्कारा भी कहते हैं, ने और अधिक मनमोहक बना दिया था. ऊपर से उसके होंठों पर एक गाज़री रंग की स्पार्कल-लिपस्टिक लगी थी जिससे वे काम-रस से भरे हुए जान पड़ते थे.

जब वे उसे तकते रहे और कुछ नहीं बोले तो मनिका ने खिखियाते हुए फिर से कहा,

“Papa! Stop it na…"

वह तो बस मस्ती-मस्ती में हल्का सा मेकअप करवा आई थी. लेकिन जयसिंह का रिऐक्शन देख उसे लग रहा था कि वे उसकी टाँग खींच उसे सताने के लिए ऐसा कर रहे हैं.

"पहले यह तो बता दो कि आप हैं कौन?" जयसिंह ने भी जरा मुस्कुरा कर मज़ाकिया अंदाज़ से कहा.

कुछ देर तक यूँ ही उन दोनों के बीच खींच-तान चलती रही. जयसिंह रह-रह कर उसे देख मुस्काए जा रहे थे. साथ ही, बार-बार कोई कमेंट कर उसे चिढ़ा रहे थे. आखिर मनिका को भी थोड़ी लाज आने लगी. वह बाथरूम में जा अपना मुँह धो, मेकअप साफ़ कर आई.

जयसिंह काउच पर बैठे थे.

"अरे वो लड़की कहाँ गई जो अभी यहाँ बैठी थी?" जयसिंह ने मनिका को देखते हुए पूछा.
"पापा आप फिर चालू हो गए…" मनिका हँसते हुए बोली.
"अरे भई अभी इतनी सुन्दर लड़की के साथ बैठा था मैं कि क्या बताऊँ?" जयसिंह ने मुस्का कर कहा, "पर पता नहीं कहाँ गई अभी तुम्हारे आने से पहले…"
"हाहाहा पापा… भाग गई वो मुझे देख…" मनिका हँसते हुए बोली.
"ओह… मेरा तो दिल ही टूट गया फिर…" जयसिंह ने झूठा दुःख प्रकट किया.
"ऊऊऊ… क्यों पापा आपकी गर्लफ्रेंड थी क्या वो?" मनिका मजाक करते हुए बोली.

जयसिंह को एक बार फिर मौके पर चौका मारने का अवसर मिल गया.

"मेरी किस्मत में कहाँ ऐसी गर्लफ्रेंड…" जयसिंह ने मगर के आँसू बहाए.
"हाहाहा पापा… गर्लफ्रेंड चाहिए आपको? मम्मी को बता दूँ? बहुत पिटोगे देखना…" मनिका ने ठहाका लगाते हुए कहा.

उसे भी जयसिंह की टांग खिंचाई का मौका जो मिला था. पर जयसिंह भी उसके पिता यूँ ही नहीं थे,

"बता दो भई… मेरा क्या है तुम ही फँसोगी." जयसिंह ने शरारत से कहा.
"हैं? वो कैसे?" मनिका ने अचरज जताया.
"तुम ही तो कह रहीं थी उस दिन कि तुम्हारी सहेलियाँ मुझे तुम्हारा बॉयफ्रेंड कहती हैं." जयसिंह बोले.
"हाँ… oh shit… पापा! कितने खराब हो आप… हमेशा मुझे हरा देते हो…" मनिका ने पैर पटकते हुए नखरा किया.
"हाहाहा…" जयसिंह हँसते हुए बैठे रहे.
"और वो तो मेरी फ्रेंड्स कहतीं है मैं कोई सच्ची में आपकी गर्लफ्रेंड थोड़े ही ना हूँ…" मनिका झूठी नाराज़गी दिखाते हुए उनके पास आ बैठी.

जयसिंह बस मुस्का दिए और अपनी जाँघ थपथपा उसे गोद में आने का इशारा किया.

"जाओ मैं नहीं आती… गंदे हो आप…" मनिका नखरे से बोली.
"अरे भई सॉरी अब नहीं हँसता तुम पर… बस…" जयसिंह के चेहरे पर अभी भी शरारत थी.
"आप हँसोगे देख लेना… मुझे पता है ना…" मनिका ने उन्हें अविश्वास से देखते हुए कहा.
"अरे भई अभी तो नहीं हँस रहा ना…" जयसिंह भी कहाँ मानने वाले थे, "सो अभी तो आ जाओ…"

उन्होंने फिर अपनी जाँघ पर हाथ रखते हुए उसे अपनी गोद में बुलाया.

"देख लेना पापा अगर आपने मुझे फिर तंग किया तो आपसे कभी बात नहीं करुँगी…" मनिका ने शिकायत भरे लहजे से कहा.

पर फिर मचल कर उठी और उनकी गोद में आ गई.

"लेकिन तुमने तो मुझसे नाराज ना होने का प्रॉमिस किया था न?" जयसिंह ने उसका मुँह अपनी तरफ करते हुए पूछा.
"वो… वो तो मैंने ऐसे ही आपको उल्लू बनाने के लिए कर दिया था." मनिका के चेहरे पर भी शरारती मुस्कान लौट आई थी.
"अच्छा ये बात थी…" जयसिंह ने मुस्का कर कहा और अपने दोनों हाथों से मनिका का पेट गुदगुदा दिया.

मनिका हँसते हुए हिल-डुल रही थी सो उनका चेहरा उसके बालों में आ गया था. मनिका के जवान जिस्म पर इस तरह हाथ सेंकते हुए जयसिंह के मन में आया,

"आह क्या कच्चा बदन है… कुतिया हर वक़्त महकती भी रहती है… आह!"

इधर बेख़बर मनिका उनकी गोद में उछलती हुई हँस रही थी.

"ईईई! हाहाहा… पपाऽऽऽऽ… नहीं नाराज होती… ईई…"

जयसिंह ने उसे एक दो बार और गुदगुदा कर छोड़ दिया क्योंकि उनकी पैंट में भी तूफ़ान उठने लगा था. मनिका अब खिलखिलाती हुई उनके साथ लगी बैठी थी. उसकी साँस जरा फूली हुई थी. आज पहली बार उसका पूरा भार जयसिंह के शरीर पर था. जयसिंह अपने बदन पर इस तरह उसके यौवन भरे जिस्म का एहसास पाकर अपनी उत्तेजना को बड़ी मुश्किल से कंट्रोल कर पा रहे थे.

फिर भी जयसिंह के नापाक हाथ यंत्रवत ही मनिका के यौवन पर चलते जा रहे थे. वे एक हाथ से उसकी पीठ और कमर सहला रहे थे और दूसरा हाथ उन्होंने मनिका की जाँघों पर रखा हुआ था. हालाँकि मनिका के लिए आजकल अपने पिता के साथ इस तरह स्नेह जताना नॉर्मल बात थी, पर अवचेतन मन में ही सही उसे उनके इस अंतरंग स्पर्श का एहसास था.

जयसिंह से इस तरह लिपट कर बैठे-बैठे मनिका को नींद आने लगी थी. वह उनके कंधे पर सिर रख के उंघने लगी.

"नींद आ रही है?" जयसिंह ने हौले से उसकी ठुड्डी पकड़ उसका मुँह अपनी तरफ़ घुमाते हुए पूछा.
"ऊहह… हम्म…" मनिका ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा.

जयसिंह ने अपने पैर उठा कर काउच के ऊपर कर लिए और मनिका को भी हौले से अपनी बग़ल में खींचा. मनिका समझ गई कि वे उसे लेटाना चाहते हैं.

"बेड पे चलते हैं… पापा." मनिका बोली, काउच पर वैसे ही एक आदमी के सोने जितनी जगह थी.

मनिका उठने को हो रही थी पर उन्होंने फिर उसे अपने साथ लेटाने के लिए खींचा.

“Hmm… but we are so cozy… let’s stay here…” जयसिंह ने झूठ-मूठ ऊनींदे होने की ऐक्टिंग करते हुए कहा.

इतने दिनों में जयसिंह का ध्यान एक और बात पर गया था, कि लड़कियों पर अंग्रेज़ी का अलग ही इम्प्रेशन होता है. जब भी वे अंग्रेज़ी में मनिका से कुछ करने को कहते, वह अक्सर मान ज़ाया करती थी.
सो मनिका कहाँ अपने बाप की हरमजदगी के सामने टिक पाती. उसने भी अपने पैर काउच के ऊपर कर लिए.

जयसिंह ने हौले से अपना हाथ मनिका के सिर के नीचे लगा कर उसे अपने और क़रीब कर लिया. मनिका भी उस ऊनींदी सी दोपहर में अपने पिता के हाथ का तकिया बना उनके साथ लेटी रही. मनिका के कसे हुए स्तन अब जयसिंह की बग़ल से टकरा रहे थे, और हवस ने उन्हें निढ़ाल कर रखा था.

मनिका को भी थोड़ा अटपटा लग रहा था. उसे अपने स्तनों पर जयसिंह की बलिष्ठ छाती की कठोरता का आभास था. लेकिन अपने पिता को इतना नॉर्मल बर्ताव करते देख वो प्रतिरोध नहीं कर पाई.

–​

कुछ ही देर में दोनों बाप-बेटी एक हसीन नींद के आग़ोश में समा गए.

लेकिन काउच पर जगह तो कम ही थी. थोड़ी देर बाद नींद में समाई मनिका ने अपने-आप को एडजस्ट करना चाहा. जयसिंह ने अब उसे पूरी तरह अपने पास खींच लिया. मनिका का जवान वक्ष अब जयसिंह की छाती से चिपटा हुआ था, और वो बेख़बर सो रही थी.

घंटा भर इसी तरह सुस्ताने के बाद मनिका की नींद थोड़ी खुली. उसे अपनी परिस्थिति का अंदाज़ा होने लगा तो उसके गाल शर्म से लाल हो गए. मनिका हौले से अपने पिता के जिस्म से अलग हो, उठ बैठी. उसके उठते ही जयसिंह भी भाँप गए थे कि मनिका कुछ विचलित है. उन्होंने फिर भी हौले से उसकी जाँघ पर हाथ फेरा. मनिका ने उनकी तरफ़ देखा तो वे मुस्कुरा दिए. मनिका भी एक पल शरमा गई थी पर फिर वह भी सकुचाते हुए मुस्कुरा दी.

अब तक लंच टाइम से थोड़ा लेट वक़्त हो चुका था. मनिका और जयसिंह को भूख भी लग आई थी. जयसिंह ने उठ कर ठंडे पानी से मुँह धोया. मनिका ने भी हल्का मेकअप कर बाल सँवारे. उसके बाद वे नीचे रेस्टोरेंट में खाना खाने के लिए गए.

खाना खाने के दौरान कुछ ख़ास बातचीत नहीं हुई, दोनों अभी भी आलस में थे. लेकिन मनिका को आज का साथ बिताया वक़्त उनके बाक़ी दिनों के सैर-सपाटे से ज़्यादा भा रहा था. कुछ तो इतने दिनों से घूमने-फिरने की थकान थी और कुछ पिछले दो-तीन दिन से उनके बीच हुई नोंक-झोंक का तनाव, जिनसे आज वह आज़ाद महसूस कर रही थी.

पर अपने पिता के साथ इस तरह सो कर उठने के बाद अनजाने में ही उसकी भावनाओं पर एक शर्मीली परत भी चढ़ गई थी. उसके बदन में एक अलग सी तरंग उठ रही थी. जब-जब उसकी नज़रें अपने पिता से मिलती, वह अनायास ही मुस्का देती थी. इधर जयसिंह तो जयसिंह थे, अपने लंड के वश में क़ैद. उन्हें तो मनिका के मान जाने और अपनी अच्छी किस्मत पर ही भरोसा नहीं हो पा रहा था. आगे आने वाले एहसासों की कल्पना करते हुए वे भी मनिका को देख कर मुस्का दे रहे थे.

लंच करने के बाद जयसिंह ने मनिका से कहा कि रूम में तो वे लोग फिर आलस बिखेरते हुए सोने लगेंगे, सो थोड़ी देर होटल के लाउंज में चलते हैं. मनिका का तो आजकल काम ही उनकी हाँ में हाँ मिलाना था.

–​

दोपहर के बाद का वक्त होने की वजह से लाउंज में ज्यादा लोग नहीं थे. जयसिंह मनिका को ले बिलीयर्डस टेबल के पास पहुँचे, वहाँ दो कपल मस्ती करते हुए खेल रहे थे. जयसिंह ने जा कर एक क्यू-स्टिक उठा ली, पर दूसरों को खेलते देख थोड़े अचकचाकर खड़े हो गए.

लेकिन वे लोग काफी फ़्रेंड्ली थे और जयसिंह खड़े देख, उन्हें भी खेलने के लिए आमंत्रित कर लिया. उन्होंने बताया कि वे तो बस लेडीज़ को खुश करने के लिए वहाँ मसखरी कर रहे थे और अगर जयसिंह चाहें तो वे सीरियस गेम लगा सकते हैं. इस पर जयसिंह ने भी हाँ कह दिया.

बातों-बातों में आपसी परिचय भी हो गया.

“I am Jaisingh and this is Manika…”

पर जयसिंह ने उन्हें यह नहीं बताया कि मनिका उनकी बेटी है.

वे लोग रुपयों की शर्त लगा कर खेलने लगे, और कुछ ही देर में वहाँ हँसी और मस्ती का माहौल बन गया. तीनों मर्दों को उनके साथ आई लड़कियाँ सपोर्ट करने लगीं.

सामने वाले लौंडे खेलने में माहिर थे और जल्द ही जयसिंह ने अपने-आप को हारते हुए पाया. लेकिन मनिका के साथ होने पर जयसिंह भी हार कैसे मान लेते. वे शर्त की बाज़ी बढ़ाते चले जा रहे थे. आखिर एक वक्त आया जब जयसिंह ने 50,000 रुपए का दाँव लगा डाला. एक बार के लिए सामने वालों के चेहरों पर हवाइयाँ तैर गई थी, पर फिर आपस में सलाह कर वे उनकी बात मान गए और खेलने लगे.

इस बार खेल की आक्रामकता बढ़ी हुई थी और हर चाल के बाद चिल्लम-चिल्ली मची रही थी. देखने के लिए कुछ और लोग भी आस-पास आ जमे थे. पर अंत में जयसिंह वह बाज़ी भी हार गए. फिर माहौल थोड़ा शांत हुआ. जयसिंह ने भी हँस कर अपनी हार स्वीकार कर ली.

अब दूसरों ने उन्हें ड्रिंक्स का ऑफर किया जिसे उन्होंने मान लिया. तीनों लड़कियों को वहीं छोड़ वे लोग बार से ड्रिंक्स लेने चले दिए. लड़कियों ने अपने लिए बिना शराब की मॉकटेल्स मँगवाई थी.
मर्दों के चले जाने के बाद तीनों लड़कियाँ बतियाने लगीं, बातों-बातों में सामने वाली लड़कियों ने मनिका से कहा था,

“Obviously you guys have a lot of money…”

जब मनिका ने उनसे ऐसा कहने की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि जयसिंह द्वारा शर्त की राशि बढ़ाते जाने के कारण उन्हें ऐसा लगा था. जब जयसिंह ने आखिरी बार पचास हजार का दाँव खेला था तो उन्होंने सिर्फ इसीलिए हाँ भरी थी कि वे लोग पहले से सत्तर हज़ार जीत कर उनसे आगे चल रहे थे. वे लोग तो वहाँ एक कंपनी के इवेंट के लिए आए हुए थे.

सो मनिका ने भी हँस कर उन्हें बताया कि वह भी पहली बार दिल्ली आई है और एक-दो दिन में उसका इंटर्व्यू है. सो उसके पापा उसके साथ आए थे. इस पर दोनों ही लड़कियाँ चौंक गई.

“You mean to say you are here with your dad?" एक ने पूछा.
“Yes… why?" मनिका ने उनकी उलझन देख जानना चाहा.
“Oh well we thought he was your… I mean… हमने नहीं सोचा था कि… he is your father.” एक लड़की बोली.
"Oh… हाहाहा… So you people thought he is my boyfriend or something?” मनिका ने हँस कर पूछा.

इस पर उन दोनों ने भी झेंप भरी स्माइल दे हाँ में सिर हिला दिया.

“It’s okay. I get that a lot… मेरी सब फ्रेंड्स भी ऐसा ही बोलती हैं… because we are very close to each other.” मनिका ने उन्हें मुस्काते हुए बताया.
“Well, the kind of money he has, I don’t mind him being my boyfriend…” दूसरी लड़की ने एक बेशर्म सी मुस्कान बिखेर जयसिंह की तरफ़ इशारा करते हुए कहा.
“Oh Shipra, stop it… she is his daughter!” पहली वाली लड़की ने उसके हाथ पर हाथ मारते हुए कहा.

मनिका मुस्कुराती हुई बैठी रही. उसे थोड़ा अजीब भी लगा कि इतनी जवान लड़की उसके पापा पर लाइन मार रही थी.

उतने में जयसिंह और वो दोनों बन्दे वापस आ गए. उन लोगों ने घुलते-मिलते ड्रिंक्स ख़त्म की जिसके बाद मनिका और जयसिंह उनसे विदा ले अपने रूम में आ गए.

आने से पहले जयसिंह ने उन लोगों से उनका रूम नंबर ले लिया था. कमरे में पहुँचते ही उन्होंने रूम-सर्विस से किसी के हाथ एक लिफ़ाफ़ा भिजवाने को कहा. जब एक स्टाफ़ का बन्दा लिफ़ाफ़ा देने आया तो उन्होंने उसे रुकने को कहा. फिर लिफ़ाफ़े में एक लाख बीस हजार की राशि का चेक डाल कर उसे उन लोगों कमरे में दे आने को भेज दिया.

कुछ देर बाद होटल स्टाफ़ वाला लड़का एक ‘धन्यवाद संदेश' लेकर लौटा, तो जयसिंह ने उसे भी टिप के पाँच सौ थमा दिए.

मनिका तो मानो जयसिंह की क़ायल हो चुकी थी.

–​

जयसिंह अब बेड पर लेटे हुए थे और मनिका दूसरी तरफ बैठी हुई अपने फोन में कुछ कर रही थी.

जयसिंह ने आँखें बंद करी ही थी कि मनिका उनसे बोली,

"पापा… जोश-जोश में कितने रुपए उड़ा दिए हैं आज आपने…"
"हम्म कोई बात नहीं… पैसे तो आते-जाते रहते हैं." जयसिंह ने बेफ़िक्री से कहा.
"इससे अच्छा तो मैं शॉपिंग ही कर लेती…" मनिका ने ठंडी आह भरी.
"हे भगवान! कितनी शॉपिंग करनी है इस लड़की को?" जयसिंह ने झूठ-मूठ का अचरज दिखाया.
"आपको क्या पता पापा… शॉपिंग तो हर लड़की का सबसे बड़ा सपना होता है…" मनिका ने इठला कर कहा.
"और उस दिन जो पूरा मॉल खरीद कर लाईं थी उसका क्या?" जयसिंह ने याद दिलाया.
"हाँ तो थोड़ी सी और कर लेती…" मनिका मुस्काई.
"उस दिन जो इतनी ड्रेसेज़ लेकर आई थी वो तो दिखाईं नहीं अभी तक तुमने…?" जयसिंह ने ताना दिया.
"अरे भई पापा दिखा दूँगी तो… अभी मुझे नींद आ रही है…" मनिका ने अंगड़ाई लेते हुए कहा और वह भी लेट गई.

एक बार फिर मनिका और जयसिंह लेट गए थे. लेकिन इस बार मनिका बेड पर अपनी साइड सो रही थी. जयसिंह ने इस बार उसके साथ छेड़छाड़ न करने में ही अपनी भलाई समझी.

जब बाप-बेटी की आँख फिर खुली तो शाम हो चली थी. उन्होंने चाय और स्नैक्स का ऑर्डर किया. मनिका ने हँसते हुए जयसिंह से कहा कि सुबह से वे दोनों बस खा और सो ही रहे हैं. जयसिंह भी हँस दिए. मनिका ने अब टीवी ऑन कर लिया. एक हिन्दी फ़िल्म चल रही थी 'रेस'. फ़िल्म अभी कुछ महीने पहले ही रिलीज़ हुई थी. मनिका ने अभी तक देखी नहीं थी, सो उसका ध्यान उस में लग गया.
क्योंकि फ़िल्म नई थी तो मनिका को लगा के उसके पापा को शायद वह ज़्यादा पसंद न आए. पर वह थोड़ी-थोड़ी देर में जयसिंह की तरफ़ नज़र उठा देख रही थी कि वे क्या कर रहे हैं. वैसे भी जयसिंह के साथ इतने दिनों से रह रही मनिका उनके स्वभाव में आने वाले परिवर्तनों को भाँपने लगी थी. उसने देखा कि जयसिंह वैसे तो फ़िल्म में कम ही इंटरेस्ट ले रहे थे, पर जब कोई हीरोइन या आईटम सॉन्ग स्क्रीन पर आते थे, तो उनकी नज़र जरा पैनी हो जाती थी.

मनिका मन ही मन शरारत से मुस्का उठी,

"देखो कैसे भाती हैं बिपाशा और कैटरीना इन्हें…"

कुछ देर बाद टीवी में एड आने लगे. मनिका ने मन ही मन इतने लम्बे विज्ञापनों को कोसा ही था कि उनकी चाय और स्नैक्स भी डिलीवर हो गए. सो वे बैठे कर खाना-पीना करने लगे. टेलीविज़न से अब उनका ध्यान थोड़ा हट गया.

तभी टीवी पर ‘Enamour Lingerie’ का एड आया.

स्क्रीन पर चल रही तस्वीरों पर बाप-बेटी दोनों का ध्यान चला गया. कुछ मॉडल्स सिर्फ़ ब्रा-पैंटी पहने अठखेलियाँ कर रहीं थी. और तो और उनमें से एक दो ने मनिका जैसी पैंटी पहनी हुई थी और उनकी तस्वीरों के साथ कैप्शन आ रहा था ‘Hot & Sexy’.

विज्ञापन कुछ ही सेकंड चला पर दोनों के मन में उथल-पुथल मचा गया था.

एक तरफ मनिका को सुबह वाली बात याद आ गई और वह शरमा गई थी. वहीं दूसरी तरफ जयसिंह का दिल खुश हो गया था. उन्होंने हल्का सा मुस्काते हुए मनिका की ओर देखा. मनिका थोड़ी तन के सीधी बैठी थी और उसकी नज़रें टेबल पर रखे स्नैक्स पर गड़ीं थी. लेकिन उसे कनखियों से जयसिंह की नज़र और शरारती मुस्कान का आभास हो गया था.

जयसिंह उसे देखते रहे.

एक-दो पल बाद उससे भी रुका नहीं गया और उसके चेहरे पर भी शर्मीली मुस्कान तैर गई जयसिंह फिर भी उसे देखते रहे.

“Papa! Stop it na…?” मनिका ने उनकी तरफ बिना देखे कहा.
"अरे मैंने तो कुछ कहा ही नहीं…" जयसिंह ने मुस्काते हुए कहा.
“मुझे सब पता है…” मनिका हिनहिनाई.
“अरे भई… ये क्या बात हुई.” जयसिंह ने शरारत से कहा.
"पापा! याद है ना मैंने कहा था आपसे कभी बात नहीं करुँगी मुझे छेड़ोगे तो…" मनिका ने उनकी तरफ एक नज़र देख अपनी धमकी दोहराई.
"अच्छा भई मैं दूसरी तरफ मुँह करके बैठ जाता हूँ अगर तुम कहती हो तो…" जयसिंह ने मुँह दीवार की तरफ घुमाते हुए कहा.

अब तक मनिका की शरम कुछ कम हो गई थी और उसे जयसिंह की नौटंकी पर हँसी आने लगी. उधर जयसिंह चुप-चाप मुँह फेरे बैठे रहे. मनिका को समझ नहीं आ रहा था कि वह अब क्या कहे?

"कपड़े ही तो हैं…" जयसिंह की आवाज़ आई.
"हाहाहाऽऽऽ… पापाऽऽऽ!" मनिका को उनकी बात ने गुदगुदा कर लोटपोट कर दिया था. “You are so naughty papa…!" वह हँसते और शरमाते हुए बोली.

जयसिंह भी हँसते हुए उसकी तरफ घूमे और पास सरक आए. मनिका हँसे जा रही थी जब जयसिंह ने पहली उसे पकड़ कर अपनी गोद में खींच लिया. वह हँसते-हँसते अपने-आप को छुड़ाने के प्रयास करने लगी. साथ ही, वह उनसे कह रही थी कि उन्होंने उसे चिढ़ाया है इसलिए वह उनके पास नहीं आएगी. लेकिन फिर भी वह उनकी गोद उठी नहीं. जयसिंह ने भी इसी बहाने उसे थोड़ा कसकर अपने से लगा रखा था.

"वैसे आप भी कम नहीं हो… पता चल गया मुझे ठीक है ना…" मनिका ने उलाहना देते हुए कहा.
"मैंने क्या किया…?" जयसिंह ने अनजान बनते हुए कहा, उन्हें लग रहा था कि वह उनकी कही बात के लिए ही कह रही है.
"जो आँखें फाड़-फाड़ कर देख रहे थे ना अभी मूवी में बिपाशा-कैटरीना और डांस करती फिरंगनों को… सब देखा मैंने…" मनिका ने उनकी गोद में बैठे-बैठे उन्हें हल्का सा धक्का दे कर कहा.

जयसिंह मनिका के इस खुलासे से सच में निरुत्तर हो गए थे. मनिका को उनके इस तरह झेंप जाने पर बहुत मजा आ रहा था. उसने खनकती हुई आवाज में आगे कहा,
"अब क्या हुआ… बोलो ना पापा? बढ़ा छेड़ रहे थे मुझे…!"
"अब मूवी भी ना देखूं क्या?" जयसिंह ने कहा पर उनकी आवाज़ से साफ़ पता चल रहा था कि उनकी चोरी पकड़ी गई थी.
"हाहाहाहा… कैसे भोले बन रहे हो देखो तो… बता दो बता दो… नहीं कहूँगी मम्मी से… I promise…" पहली बार लगाम मनिका के हाथ में आई थी.

मतलब उसे तो ऐसा ही लग रहा था, सो वह और जोर से हँसते हुए बोली.

"हाँ तो… क्या हो गया देख लिया तो…" जयसिंह ने भी हौले से अपना जुर्म कबूल कर लिया.
"हाहाहा…" मनिका ने अपनी बात के साबित हो जाने पर ठहाका लगाया, उसे कुछ ज्यादा ही हँसी आ रही थी.

इसी तरह हँसी-मजाक चलता रहा. उसके काफ़ी देर बाद जयसिंह ने मनिका को अपनी गिरफ़्त से आज़ाद किया था. रात ढल आई, खाने-पीने के एक और दौर का समय आ गया था. मनिका और जयसिंह डिनर करने फिर से नीचे रेस्टॉरेंट में ही गए.

लेकिन जयसिंह के लंड ने उस रात उन्हें ढंग से खाना भी नहीं खाने दिया.

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हुआ ये कि जब मनिका और जयसिंह नीचे रेस्टॉरेंट में जाने के लिए कमरे से निकलने लगे थे तब मनिका ने अपने सूटकेस से लिपग्लॉस निकाल कर अपने होंठों पर लगाया था. यह देखना था कि बस जयसिंह का तो काम तमाम हो गया.

बड़ी मुश्किल से जयसिंह लिफ़्ट से निकल कर रेस्टॉरेंट की कुर्सी तक पहुँचे थे. इधर सामने बैठी मनिका उनसे हँस-मुस्कुरा कर बातें कर रही थी. उधर वे उसके होंठों पर लगे अपने लंड के पानी मिले लिपग्लॉस की चमक देख-देख प्रताड़ित हो रहे थे. उन्हें लग रहा था जैसे उनका शरीर दिमाग़ की बजाय लंड के कंट्रोल में आ गया हो. उनके पूरे जिस्म में हवस के मरोड़े उठ रहे थे. वे थोड़ा सा ही खाना खा सके और पूरा समय टेबल के नीचे अपने बाएँ हाथ से लंड को जकड़े हुए बैठे रहे.

उनकी कारस्तानी से अनजान मनिका ने खाना खाने के बाद मँगवाई आइसक्रीम खा कर जब अपने होंठों पर जीभ फिराई तो जयसिंह को हार्ट-अटैक आते-आते बचा. लेकिन इस बार वे अपने चेहरे के भावों पर काबू नहीं रख सके और मनिका को उनकी बेचैनी का आभास हो गया.

"क्या बात है पापा?" मनिका के चेहरे पर चिंता झलक आई, "आप ठीक तो हैं?" उसने पूछा.
"हम्म… कुछ नहीं बस थोड़ा ज़्यादा खा लिया आज… और सिर में भी दर्द है ज़रा सा…"
जयसिंह को समझ नहीं आया कि वे क्या कहें सो उनके जो मुँह में आया वही बोल गए.
"साली को कैसे बताऊँ कि तू जो मेरे लंड का रस चाट रही है जीभ फिरा-फिरा कर… उससे सिर में नहीं लंड में दर्द है…" जयसिंह ने आँखें मींचते हुए सोचा.

डिनर के बाद जब वे अपने कमरे में आए तो मनिका ने जयसिंह को जल्दी सो जाने को कहा. उसने उनसे कुछ देर सिर दबा देने के लिए भी पूछा था. लेकिन जयसिंह की कुंठित उत्तेजना ने आज भयंकर रूप धारण कर लिया था. सो उनको डर था कि मनिका का स्पर्श कहीं उन्हें अपना आपा खोने पर मजबूर न कर दे. सो उन्होंने उसे मना कर दिया व कम्बल ओढ़ कर लेट गए.

मनिका को इस बात की ज़रा भी ख़बर नहीं थी कि कम्बल के अंदर जयसिंह ने अपने उफनते लंड को पकड़ कर काबू में कर रखा है. उनके रोम-रोम में आग लगी थी और वे सुलगते हुए सोच रहे थे, "इस हरामजादी मनिका को तो पटक-पटक कर चोदूँगा एक दिन…"

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