12 - करतूत
कुल मिलाकर उस केस में तीन जोड़ी रंग-बिरंगी ब्रा-पैंटी थीं.
ब्रा: बैंगनी, गुलाबी और सफ़ेद
पैंटी: बैंगनी, हरी और आसमानी
"और एक गुलाबी वाली जो छिनाल ने पहन रखी होगी" उन्होंने सोचा था.
जयसिंह मनिका की छोटी सी, कोमल बैंगनी पैंटी को अपने हाथ में लेकर देख रहे थे. उसकी तीनों ही पैंटी थोंग स्टाइल की थीं. जयसिंह की पैंट में अब तक उनका लंड उनके अंडरवियर में छेद करने पर उतारू हो चुका था. जयसिंह रह नहीं सके और मनिका की पैंटी अपने नाक के पास ले जा कर उसकी गंध ली. पैंटी धुली हुई थी लेकिन फिर भी उसमें से एक हल्की मादा गंध आ रही थी,
"आहऽऽऽ…!"
एक जोरदार आह भर जयसिंह ने अपनी पैंट की ज़िप खोली और अंडरवियर के अँधेरे से अपने लंड को आज़ाद किया. लंड उछल कर बाहर निकला और उनके हाथ से टकराया,
'थप्प…'.
जयसिंह ने नीचे देखा और अपने काले घनघोर लंड पर अपनी बेटी की छोटी सी पैंटी लपेट बेड पर गिर पड़े.
जयसिंह बेसुध से हो गए थे. पैंटी का कोमल कपड़ा उनके खड़े लंड को गुदगुदा कर और उत्तेजित कर रहा था. उनका लंड फुफकार मार-मार कर हिल रहा था. उनके दोनों अंड-कोषों ने भी अपने अंदर भरी आग को उगल डालने की कोशिशें तेज़ कर दीं थी. छींयालिस साल के जयसिंह हवस के दर्द से बिलबिला रहे थे. लेकिन आनंद की चरम सीमा पर पहुँचने से पहले ही जयसिंह को अपनी भीष्म-प्रतिज्ञा याद आ गई, कि वे मनिका के नाम का मुठ नहीं मारेंगे. उन्होंने किसी तरह अपने-आप को सम्भाल लंड पर से हाथ हटाया.
फिर कुछ देर हाँफते हुए पड़े रहने के बाद उन्होंने मनिका की पैंटी अपने लंड से उतारी. फिर उसके सभी अंत:वस्त्रों को वापस जँचा कर रख दिया. अब उनकी नज़र किट में ही रखे एक काले लिफाफे पर गई.
कौतुहलवश उन्होंने उसे भी खोला. लिफ़ाफ़े में लड़कियों द्वारा माहवारी में लगाए जानेवाले पैड्स थे और दो कॉटन की नॉर्मल अंडरवियर भी रखी थी. इनका इस्तेमाल भी वे समझ गए,
"साली की उन छोटी-छोटी पैंटीयों में तो पैड टिकते नहीं होंगे… हम्म तो पीरियड्स का सामान अभी तक पैक पड़ा है… पर आज बारह दिन हमें यहाँ आए हो चुके हैं मतलब वक्त करीब है." उन्होंने आगे सोचा.
जयसिंह जानते थे कि पीरियड्स के वक्त लड़कियों के मन की स्थिति थोड़ी बदल जाती है, और वे इमोशनल जल्दी होने लगती हैं. यह सब सोचते-सोचते जयसिंह के खड़े लंड के मुहाने पर गीलापन आने लगा था.
पर तभी उन्हें यह भी याद आया कि मनिका के पास कमरे में घुसने के लिए दूसरा की-कार्ड था. उन्हें आए हुए काफ़ी देर हो चुकी थी. उसके लौट कर आने का अंदेशा होने पर उन्होंने धीरे-धीरे सारा सामान वापिस रखना शुरू किया.
सब सामान जस का तस रख जब वे सूटकेस बंद करने लगे तो उनकी नज़र एक बार फिर मनिका के मेकअप किट पर पड़ी. किट तो बंद था परन्तु उसके पास ही मनिका का लिपग्लॉस, जो वह रोज लगाया करती थी, बाहर ही रखा था. जयसिंह ने उसे उठाया और ढक्कन खोल उसकी ख़ुशबू ले कर देखा, बिलकुल वही महक थी जो मनिका के मादक होंठों से आती थी. हवस में अंधे हुए जयसिंह ने अपने लंड के मुहाने पर आए पानी को अपने हाथ के अंगूठे पर लगाया और मनिका के लिपग्लॉस के ऊपर फैला कर ढक्कन लगा दिया.
वैसे भी, लिपग्लॉस और लंड पे आने वाला पानी, दोनों ही चिकने होते हैं, सो मनिका को पता लगने का मतलब ही नहीं था.
उन्होंने जल्दी से सूटकेस बन्द कर वापस रखा और बेड पर पीठ के बल गिर पड़े. अपनी उस गंदी हरकत से वे और अधिक उत्तेजित हो गए थे.
कुछ पल बाद जब जयसिंह का अपने-आप पर कुछ काबू हुआ तो वे उठ कर बाथरूम गए और अपने हाथ धोए. उनका लंड अभी भी बाहर लटक रहा था. वे पंजों के बल खड़े हो अपना लंड वॉशबेसिन के नल से आती ठंडे पानी की धार से शांत कर ही रहे थे कि कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ हुई.
जयसिंह हड़बड़ा गए, बाथरूम का दरवाज़ा खुला ही था. उन्होंने जल्दी से अपना लंड अंदर ठूँसा और ज़िप बंद कर के हाथ धोने का नाटक करने लगे.
"पापा? क्या कर रहे हो?" मनिका की आवाज़ आई.
"कुछ नहीं बस थोड़ा आलस आ रहा था तो हाथ-मुँह धो रहा था. आ गई तुम?" जयसिंह ने कहा.
"हाँ पापा… आ गई हूँ तभी तो आवाज़ आ रही है मेरी…" मनिका ने उनकी खिल्ली उड़ाने के अंदाज़ में कहा.
"हाहाहा… हाँ भई मान लिया…" जयसिंह बाथरूम से बाहर आते हुए बोले थे.
मनिका बेड के पास अपना मोबाइल चार्ज लगा रही थी. उनकी आहट सुन वह पलटी और एक बार फिर जयसिंह के होश फ़ाख्ता हो गए.
"आप कौन हैं मिस?" जयसिंह ने अचंभे से कहा.
"हीहाहाहाऽऽ… पापा! क्या है आपको… it’s me na…" मनिका ने कुछ हँसते कुछ लजाते हुए कहा.
वैसे तो आजकल जयसिंह के ज्यादातर हाव-भाव मनिका के सामने दिखावे के लिए ही होते थे, पर अपने सामने खड़ी ख़ूबसूरत लड़की को देख वे आश्चर्यचकित रह गए थे.
मनिका की ख़ूबसूरती के कायल जयसिंह ने देखा कि ब्यूटी-सैलून जाने के बाद तो उसका काया-पलट ही हो गया था. मनिका ने बालों में स्टेप-कट करवाया था जिससे उसके बाल किसी मॉडल से प्रतीत हो रहे थे. उसका चेहरा भी मेकअप से दमक रहा था और गोरे-गोरे गालों पर लालिमा फैली थी. मनिका की आँखों को काले काजल, जिसे मस्कारा भी कहते हैं, ने और अधिक मनमोहक बना दिया था. ऊपर से उसके होंठों पर एक गाज़री रंग की स्पार्कल-लिपस्टिक लगी थी जिससे वे काम-रस से भरे हुए जान पड़ते थे.
जब वे उसे तकते रहे और कुछ नहीं बोले तो मनिका ने खिखियाते हुए फिर से कहा,
“Papa! Stop it na…"
वह तो बस मस्ती-मस्ती में हल्का सा मेकअप करवा आई थी. लेकिन जयसिंह का रिऐक्शन देख उसे लग रहा था कि वे उसकी टाँग खींच उसे सताने के लिए ऐसा कर रहे हैं.
"पहले यह तो बता दो कि आप हैं कौन?" जयसिंह ने भी जरा मुस्कुरा कर मज़ाकिया अंदाज़ से कहा.
कुछ देर तक यूँ ही उन दोनों के बीच खींच-तान चलती रही. जयसिंह रह-रह कर उसे देख मुस्काए जा रहे थे. साथ ही, बार-बार कोई कमेंट कर उसे चिढ़ा रहे थे. आखिर मनिका को भी थोड़ी लाज आने लगी. वह बाथरूम में जा अपना मुँह धो, मेकअप साफ़ कर आई.
जयसिंह काउच पर बैठे थे.
"अरे वो लड़की कहाँ गई जो अभी यहाँ बैठी थी?" जयसिंह ने मनिका को देखते हुए पूछा.
"पापा आप फिर चालू हो गए…" मनिका हँसते हुए बोली.
"अरे भई अभी इतनी सुन्दर लड़की के साथ बैठा था मैं कि क्या बताऊँ?" जयसिंह ने मुस्का कर कहा, "पर पता नहीं कहाँ गई अभी तुम्हारे आने से पहले…"
"हाहाहा पापा… भाग गई वो मुझे देख…" मनिका हँसते हुए बोली.
"ओह… मेरा तो दिल ही टूट गया फिर…" जयसिंह ने झूठा दुःख प्रकट किया.
"ऊऊऊ… क्यों पापा आपकी गर्लफ्रेंड थी क्या वो?" मनिका मजाक करते हुए बोली.
जयसिंह को एक बार फिर मौके पर चौका मारने का अवसर मिल गया.
"मेरी किस्मत में कहाँ ऐसी गर्लफ्रेंड…" जयसिंह ने मगर के आँसू बहाए.
"हाहाहा पापा… गर्लफ्रेंड चाहिए आपको? मम्मी को बता दूँ? बहुत पिटोगे देखना…" मनिका ने ठहाका लगाते हुए कहा.
उसे भी जयसिंह की टांग खिंचाई का मौका जो मिला था. पर जयसिंह भी उसके पिता यूँ ही नहीं थे,
"बता दो भई… मेरा क्या है तुम ही फँसोगी." जयसिंह ने शरारत से कहा.
"हैं? वो कैसे?" मनिका ने अचरज जताया.
"तुम ही तो कह रहीं थी उस दिन कि तुम्हारी सहेलियाँ मुझे तुम्हारा बॉयफ्रेंड कहती हैं." जयसिंह बोले.
"हाँ… oh shit… पापा! कितने खराब हो आप… हमेशा मुझे हरा देते हो…" मनिका ने पैर पटकते हुए नखरा किया.
"हाहाहा…" जयसिंह हँसते हुए बैठे रहे.
"और वो तो मेरी फ्रेंड्स कहतीं है मैं कोई सच्ची में आपकी गर्लफ्रेंड थोड़े ही ना हूँ…" मनिका झूठी नाराज़गी दिखाते हुए उनके पास आ बैठी.
जयसिंह बस मुस्का दिए और अपनी जाँघ थपथपा उसे गोद में आने का इशारा किया.
"जाओ मैं नहीं आती… गंदे हो आप…" मनिका नखरे से बोली.
"अरे भई सॉरी अब नहीं हँसता तुम पर… बस…" जयसिंह के चेहरे पर अभी भी शरारत थी.
"आप हँसोगे देख लेना… मुझे पता है ना…" मनिका ने उन्हें अविश्वास से देखते हुए कहा.
"अरे भई अभी तो नहीं हँस रहा ना…" जयसिंह भी कहाँ मानने वाले थे, "सो अभी तो आ जाओ…"
उन्होंने फिर अपनी जाँघ पर हाथ रखते हुए उसे अपनी गोद में बुलाया.
"देख लेना पापा अगर आपने मुझे फिर तंग किया तो आपसे कभी बात नहीं करुँगी…" मनिका ने शिकायत भरे लहजे से कहा.
पर फिर मचल कर उठी और उनकी गोद में आ गई.
"लेकिन तुमने तो मुझसे नाराज ना होने का प्रॉमिस किया था न?" जयसिंह ने उसका मुँह अपनी तरफ करते हुए पूछा.
"वो… वो तो मैंने ऐसे ही आपको उल्लू बनाने के लिए कर दिया था." मनिका के चेहरे पर भी शरारती मुस्कान लौट आई थी.
"अच्छा ये बात थी…" जयसिंह ने मुस्का कर कहा और अपने दोनों हाथों से मनिका का पेट गुदगुदा दिया.
मनिका हँसते हुए हिल-डुल रही थी सो उनका चेहरा उसके बालों में आ गया था. मनिका के जवान जिस्म पर इस तरह हाथ सेंकते हुए जयसिंह के मन में आया,
"आह क्या कच्चा बदन है… कुतिया हर वक़्त महकती भी रहती है… आह!"
इधर बेख़बर मनिका उनकी गोद में उछलती हुई हँस रही थी.
"ईईई! हाहाहा… पपाऽऽऽऽ… नहीं नाराज होती… ईई…"
जयसिंह ने उसे एक दो बार और गुदगुदा कर छोड़ दिया क्योंकि उनकी पैंट में भी तूफ़ान उठने लगा था. मनिका अब खिलखिलाती हुई उनके साथ लगी बैठी थी. उसकी साँस जरा फूली हुई थी. आज पहली बार उसका पूरा भार जयसिंह के शरीर पर था. जयसिंह अपने बदन पर इस तरह उसके यौवन भरे जिस्म का एहसास पाकर अपनी उत्तेजना को बड़ी मुश्किल से कंट्रोल कर पा रहे थे.
फिर भी जयसिंह के नापाक हाथ यंत्रवत ही मनिका के यौवन पर चलते जा रहे थे. वे एक हाथ से उसकी पीठ और कमर सहला रहे थे और दूसरा हाथ उन्होंने मनिका की जाँघों पर रखा हुआ था. हालाँकि मनिका के लिए आजकल अपने पिता के साथ इस तरह स्नेह जताना नॉर्मल बात थी, पर अवचेतन मन में ही सही उसे उनके इस अंतरंग स्पर्श का एहसास था.
जयसिंह से इस तरह लिपट कर बैठे-बैठे मनिका को नींद आने लगी थी. वह उनके कंधे पर सिर रख के उंघने लगी.
"नींद आ रही है?" जयसिंह ने हौले से उसकी ठुड्डी पकड़ उसका मुँह अपनी तरफ़ घुमाते हुए पूछा.
"ऊहह… हम्म…" मनिका ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा.
जयसिंह ने अपने पैर उठा कर काउच के ऊपर कर लिए और मनिका को भी हौले से अपनी बग़ल में खींचा. मनिका समझ गई कि वे उसे लेटाना चाहते हैं.
"बेड पे चलते हैं… पापा." मनिका बोली, काउच पर वैसे ही एक आदमी के सोने जितनी जगह थी.
मनिका उठने को हो रही थी पर उन्होंने फिर उसे अपने साथ लेटाने के लिए खींचा.
“Hmm… but we are so cozy… let’s stay here…” जयसिंह ने झूठ-मूठ ऊनींदे होने की ऐक्टिंग करते हुए कहा.
इतने दिनों में जयसिंह का ध्यान एक और बात पर गया था, कि लड़कियों पर अंग्रेज़ी का अलग ही इम्प्रेशन होता है. जब भी वे अंग्रेज़ी में मनिका से कुछ करने को कहते, वह अक्सर मान ज़ाया करती थी.
सो मनिका कहाँ अपने बाप की हरमजदगी के सामने टिक पाती. उसने भी अपने पैर काउच के ऊपर कर लिए.
जयसिंह ने हौले से अपना हाथ मनिका के सिर के नीचे लगा कर उसे अपने और क़रीब कर लिया. मनिका भी उस ऊनींदी सी दोपहर में अपने पिता के हाथ का तकिया बना उनके साथ लेटी रही. मनिका के कसे हुए स्तन अब जयसिंह की बग़ल से टकरा रहे थे, और हवस ने उन्हें निढ़ाल कर रखा था.
मनिका को भी थोड़ा अटपटा लग रहा था. उसे अपने स्तनों पर जयसिंह की बलिष्ठ छाती की कठोरता का आभास था. लेकिन अपने पिता को इतना नॉर्मल बर्ताव करते देख वो प्रतिरोध नहीं कर पाई.
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कुछ ही देर में दोनों बाप-बेटी एक हसीन नींद के आग़ोश में समा गए.
लेकिन काउच पर जगह तो कम ही थी. थोड़ी देर बाद नींद में समाई मनिका ने अपने-आप को एडजस्ट करना चाहा. जयसिंह ने अब उसे पूरी तरह अपने पास खींच लिया. मनिका का जवान वक्ष अब जयसिंह की छाती से चिपटा हुआ था, और वो बेख़बर सो रही थी.
घंटा भर इसी तरह सुस्ताने के बाद मनिका की नींद थोड़ी खुली. उसे अपनी परिस्थिति का अंदाज़ा होने लगा तो उसके गाल शर्म से लाल हो गए. मनिका हौले से अपने पिता के जिस्म से अलग हो, उठ बैठी. उसके उठते ही जयसिंह भी भाँप गए थे कि मनिका कुछ विचलित है. उन्होंने फिर भी हौले से उसकी जाँघ पर हाथ फेरा. मनिका ने उनकी तरफ़ देखा तो वे मुस्कुरा दिए. मनिका भी एक पल शरमा गई थी पर फिर वह भी सकुचाते हुए मुस्कुरा दी.
अब तक लंच टाइम से थोड़ा लेट वक़्त हो चुका था. मनिका और जयसिंह को भूख भी लग आई थी. जयसिंह ने उठ कर ठंडे पानी से मुँह धोया. मनिका ने भी हल्का मेकअप कर बाल सँवारे. उसके बाद वे नीचे रेस्टोरेंट में खाना खाने के लिए गए.
खाना खाने के दौरान कुछ ख़ास बातचीत नहीं हुई, दोनों अभी भी आलस में थे. लेकिन मनिका को आज का साथ बिताया वक़्त उनके बाक़ी दिनों के सैर-सपाटे से ज़्यादा भा रहा था. कुछ तो इतने दिनों से घूमने-फिरने की थकान थी और कुछ पिछले दो-तीन दिन से उनके बीच हुई नोंक-झोंक का तनाव, जिनसे आज वह आज़ाद महसूस कर रही थी.
पर अपने पिता के साथ इस तरह सो कर उठने के बाद अनजाने में ही उसकी भावनाओं पर एक शर्मीली परत भी चढ़ गई थी. उसके बदन में एक अलग सी तरंग उठ रही थी. जब-जब उसकी नज़रें अपने पिता से मिलती, वह अनायास ही मुस्का देती थी. इधर जयसिंह तो जयसिंह थे, अपने लंड के वश में क़ैद. उन्हें तो मनिका के मान जाने और अपनी अच्छी किस्मत पर ही भरोसा नहीं हो पा रहा था. आगे आने वाले एहसासों की कल्पना करते हुए वे भी मनिका को देख कर मुस्का दे रहे थे.
लंच करने के बाद जयसिंह ने मनिका से कहा कि रूम में तो वे लोग फिर आलस बिखेरते हुए सोने लगेंगे, सो थोड़ी देर होटल के लाउंज में चलते हैं. मनिका का तो आजकल काम ही उनकी हाँ में हाँ मिलाना था.
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दोपहर के बाद का वक्त होने की वजह से लाउंज में ज्यादा लोग नहीं थे. जयसिंह मनिका को ले बिलीयर्डस टेबल के पास पहुँचे, वहाँ दो कपल मस्ती करते हुए खेल रहे थे. जयसिंह ने जा कर एक क्यू-स्टिक उठा ली, पर दूसरों को खेलते देख थोड़े अचकचाकर खड़े हो गए.
लेकिन वे लोग काफी फ़्रेंड्ली थे और जयसिंह खड़े देख, उन्हें भी खेलने के लिए आमंत्रित कर लिया. उन्होंने बताया कि वे तो बस लेडीज़ को खुश करने के लिए वहाँ मसखरी कर रहे थे और अगर जयसिंह चाहें तो वे सीरियस गेम लगा सकते हैं. इस पर जयसिंह ने भी हाँ कह दिया.
बातों-बातों में आपसी परिचय भी हो गया.
“I am Jaisingh and this is Manika…”
पर जयसिंह ने उन्हें यह नहीं बताया कि मनिका उनकी बेटी है.
वे लोग रुपयों की शर्त लगा कर खेलने लगे, और कुछ ही देर में वहाँ हँसी और मस्ती का माहौल बन गया. तीनों मर्दों को उनके साथ आई लड़कियाँ सपोर्ट करने लगीं.
सामने वाले लौंडे खेलने में माहिर थे और जल्द ही जयसिंह ने अपने-आप को हारते हुए पाया. लेकिन मनिका के साथ होने पर जयसिंह भी हार कैसे मान लेते. वे शर्त की बाज़ी बढ़ाते चले जा रहे थे. आखिर एक वक्त आया जब जयसिंह ने 50,000 रुपए का दाँव लगा डाला. एक बार के लिए सामने वालों के चेहरों पर हवाइयाँ तैर गई थी, पर फिर आपस में सलाह कर वे उनकी बात मान गए और खेलने लगे.
इस बार खेल की आक्रामकता बढ़ी हुई थी और हर चाल के बाद चिल्लम-चिल्ली मची रही थी. देखने के लिए कुछ और लोग भी आस-पास आ जमे थे. पर अंत में जयसिंह वह बाज़ी भी हार गए. फिर माहौल थोड़ा शांत हुआ. जयसिंह ने भी हँस कर अपनी हार स्वीकार कर ली.
अब दूसरों ने उन्हें ड्रिंक्स का ऑफर किया जिसे उन्होंने मान लिया. तीनों लड़कियों को वहीं छोड़ वे लोग बार से ड्रिंक्स लेने चले दिए. लड़कियों ने अपने लिए बिना शराब की मॉकटेल्स मँगवाई थी.
मर्दों के चले जाने के बाद तीनों लड़कियाँ बतियाने लगीं, बातों-बातों में सामने वाली लड़कियों ने मनिका से कहा था,
“Obviously you guys have a lot of money…”
जब मनिका ने उनसे ऐसा कहने की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि जयसिंह द्वारा शर्त की राशि बढ़ाते जाने के कारण उन्हें ऐसा लगा था. जब जयसिंह ने आखिरी बार पचास हजार का दाँव खेला था तो उन्होंने सिर्फ इसीलिए हाँ भरी थी कि वे लोग पहले से सत्तर हज़ार जीत कर उनसे आगे चल रहे थे. वे लोग तो वहाँ एक कंपनी के इवेंट के लिए आए हुए थे.
सो मनिका ने भी हँस कर उन्हें बताया कि वह भी पहली बार दिल्ली आई है और एक-दो दिन में उसका इंटर्व्यू है. सो उसके पापा उसके साथ आए थे. इस पर दोनों ही लड़कियाँ चौंक गई.
“You mean to say you are here with your dad?" एक ने पूछा.
“Yes… why?" मनिका ने उनकी उलझन देख जानना चाहा.
“Oh well we thought he was your… I mean… हमने नहीं सोचा था कि… he is your father.” एक लड़की बोली.
"Oh… हाहाहा… So you people thought he is my boyfriend or something?” मनिका ने हँस कर पूछा.
इस पर उन दोनों ने भी झेंप भरी स्माइल दे हाँ में सिर हिला दिया.
“It’s okay. I get that a lot… मेरी सब फ्रेंड्स भी ऐसा ही बोलती हैं… because we are very close to each other.” मनिका ने उन्हें मुस्काते हुए बताया.
“Well, the kind of money he has, I don’t mind him being my boyfriend…” दूसरी लड़की ने एक बेशर्म सी मुस्कान बिखेर जयसिंह की तरफ़ इशारा करते हुए कहा.
“Oh Shipra, stop it… she is his daughter!” पहली वाली लड़की ने उसके हाथ पर हाथ मारते हुए कहा.
मनिका मुस्कुराती हुई बैठी रही. उसे थोड़ा अजीब भी लगा कि इतनी जवान लड़की उसके पापा पर लाइन मार रही थी.
उतने में जयसिंह और वो दोनों बन्दे वापस आ गए. उन लोगों ने घुलते-मिलते ड्रिंक्स ख़त्म की जिसके बाद मनिका और जयसिंह उनसे विदा ले अपने रूम में आ गए.
आने से पहले जयसिंह ने उन लोगों से उनका रूम नंबर ले लिया था. कमरे में पहुँचते ही उन्होंने रूम-सर्विस से किसी के हाथ एक लिफ़ाफ़ा भिजवाने को कहा. जब एक स्टाफ़ का बन्दा लिफ़ाफ़ा देने आया तो उन्होंने उसे रुकने को कहा. फिर लिफ़ाफ़े में एक लाख बीस हजार की राशि का चेक डाल कर उसे उन लोगों कमरे में दे आने को भेज दिया.
कुछ देर बाद होटल स्टाफ़ वाला लड़का एक ‘धन्यवाद संदेश' लेकर लौटा, तो जयसिंह ने उसे भी टिप के पाँच सौ थमा दिए.
मनिका तो मानो जयसिंह की क़ायल हो चुकी थी.
–
जयसिंह अब बेड पर लेटे हुए थे और मनिका दूसरी तरफ बैठी हुई अपने फोन में कुछ कर रही थी.
जयसिंह ने आँखें बंद करी ही थी कि मनिका उनसे बोली,
"पापा… जोश-जोश में कितने रुपए उड़ा दिए हैं आज आपने…"
"हम्म कोई बात नहीं… पैसे तो आते-जाते रहते हैं." जयसिंह ने बेफ़िक्री से कहा.
"इससे अच्छा तो मैं शॉपिंग ही कर लेती…" मनिका ने ठंडी आह भरी.
"हे भगवान! कितनी शॉपिंग करनी है इस लड़की को?" जयसिंह ने झूठ-मूठ का अचरज दिखाया.
"आपको क्या पता पापा… शॉपिंग तो हर लड़की का सबसे बड़ा सपना होता है…" मनिका ने इठला कर कहा.
"और उस दिन जो पूरा मॉल खरीद कर लाईं थी उसका क्या?" जयसिंह ने याद दिलाया.
"हाँ तो थोड़ी सी और कर लेती…" मनिका मुस्काई.
"उस दिन जो इतनी ड्रेसेज़ लेकर आई थी वो तो दिखाईं नहीं अभी तक तुमने…?" जयसिंह ने ताना दिया.
"अरे भई पापा दिखा दूँगी तो… अभी मुझे नींद आ रही है…" मनिका ने अंगड़ाई लेते हुए कहा और वह भी लेट गई.
एक बार फिर मनिका और जयसिंह लेट गए थे. लेकिन इस बार मनिका बेड पर अपनी साइड सो रही थी. जयसिंह ने इस बार उसके साथ छेड़छाड़ न करने में ही अपनी भलाई समझी.
जब बाप-बेटी की आँख फिर खुली तो शाम हो चली थी. उन्होंने चाय और स्नैक्स का ऑर्डर किया. मनिका ने हँसते हुए जयसिंह से कहा कि सुबह से वे दोनों बस खा और सो ही रहे हैं. जयसिंह भी हँस दिए. मनिका ने अब टीवी ऑन कर लिया. एक हिन्दी फ़िल्म चल रही थी 'रेस'. फ़िल्म अभी कुछ महीने पहले ही रिलीज़ हुई थी. मनिका ने अभी तक देखी नहीं थी, सो उसका ध्यान उस में लग गया.
क्योंकि फ़िल्म नई थी तो मनिका को लगा के उसके पापा को शायद वह ज़्यादा पसंद न आए. पर वह थोड़ी-थोड़ी देर में जयसिंह की तरफ़ नज़र उठा देख रही थी कि वे क्या कर रहे हैं. वैसे भी जयसिंह के साथ इतने दिनों से रह रही मनिका उनके स्वभाव में आने वाले परिवर्तनों को भाँपने लगी थी. उसने देखा कि जयसिंह वैसे तो फ़िल्म में कम ही इंटरेस्ट ले रहे थे, पर जब कोई हीरोइन या आईटम सॉन्ग स्क्रीन पर आते थे, तो उनकी नज़र जरा पैनी हो जाती थी.
मनिका मन ही मन शरारत से मुस्का उठी,
"देखो कैसे भाती हैं बिपाशा और कैटरीना इन्हें…"
कुछ देर बाद टीवी में एड आने लगे. मनिका ने मन ही मन इतने लम्बे विज्ञापनों को कोसा ही था कि उनकी चाय और स्नैक्स भी डिलीवर हो गए. सो वे बैठे कर खाना-पीना करने लगे. टेलीविज़न से अब उनका ध्यान थोड़ा हट गया.
तभी टीवी पर ‘Enamour Lingerie’ का एड आया.
स्क्रीन पर चल रही तस्वीरों पर बाप-बेटी दोनों का ध्यान चला गया. कुछ मॉडल्स सिर्फ़ ब्रा-पैंटी पहने अठखेलियाँ कर रहीं थी. और तो और उनमें से एक दो ने मनिका जैसी पैंटी पहनी हुई थी और उनकी तस्वीरों के साथ कैप्शन आ रहा था ‘Hot & Sexy’.
विज्ञापन कुछ ही सेकंड चला पर दोनों के मन में उथल-पुथल मचा गया था.
एक तरफ मनिका को सुबह वाली बात याद आ गई और वह शरमा गई थी. वहीं दूसरी तरफ जयसिंह का दिल खुश हो गया था. उन्होंने हल्का सा मुस्काते हुए मनिका की ओर देखा. मनिका थोड़ी तन के सीधी बैठी थी और उसकी नज़रें टेबल पर रखे स्नैक्स पर गड़ीं थी. लेकिन उसे कनखियों से जयसिंह की नज़र और शरारती मुस्कान का आभास हो गया था.
जयसिंह उसे देखते रहे.
एक-दो पल बाद उससे भी रुका नहीं गया और उसके चेहरे पर भी शर्मीली मुस्कान तैर गई जयसिंह फिर भी उसे देखते रहे.
“Papa! Stop it na…?” मनिका ने उनकी तरफ बिना देखे कहा.
"अरे मैंने तो कुछ कहा ही नहीं…" जयसिंह ने मुस्काते हुए कहा.
“मुझे सब पता है…” मनिका हिनहिनाई.
“अरे भई… ये क्या बात हुई.” जयसिंह ने शरारत से कहा.
"पापा! याद है ना मैंने कहा था आपसे कभी बात नहीं करुँगी मुझे छेड़ोगे तो…" मनिका ने उनकी तरफ एक नज़र देख अपनी धमकी दोहराई.
"अच्छा भई मैं दूसरी तरफ मुँह करके बैठ जाता हूँ अगर तुम कहती हो तो…" जयसिंह ने मुँह दीवार की तरफ घुमाते हुए कहा.
अब तक मनिका की शरम कुछ कम हो गई थी और उसे जयसिंह की नौटंकी पर हँसी आने लगी. उधर जयसिंह चुप-चाप मुँह फेरे बैठे रहे. मनिका को समझ नहीं आ रहा था कि वह अब क्या कहे?
"कपड़े ही तो हैं…" जयसिंह की आवाज़ आई.
"हाहाहाऽऽऽ… पापाऽऽऽ!" मनिका को उनकी बात ने गुदगुदा कर लोटपोट कर दिया था. “You are so naughty papa…!" वह हँसते और शरमाते हुए बोली.
जयसिंह भी हँसते हुए उसकी तरफ घूमे और पास सरक आए. मनिका हँसे जा रही थी जब जयसिंह ने पहली उसे पकड़ कर अपनी गोद में खींच लिया. वह हँसते-हँसते अपने-आप को छुड़ाने के प्रयास करने लगी. साथ ही, वह उनसे कह रही थी कि उन्होंने उसे चिढ़ाया है इसलिए वह उनके पास नहीं आएगी. लेकिन फिर भी वह उनकी गोद उठी नहीं. जयसिंह ने भी इसी बहाने उसे थोड़ा कसकर अपने से लगा रखा था.
"वैसे आप भी कम नहीं हो… पता चल गया मुझे ठीक है ना…" मनिका ने उलाहना देते हुए कहा.
"मैंने क्या किया…?" जयसिंह ने अनजान बनते हुए कहा, उन्हें लग रहा था कि वह उनकी कही बात के लिए ही कह रही है.
"जो आँखें फाड़-फाड़ कर देख रहे थे ना अभी मूवी में बिपाशा-कैटरीना और डांस करती फिरंगनों को… सब देखा मैंने…" मनिका ने उनकी गोद में बैठे-बैठे उन्हें हल्का सा धक्का दे कर कहा.
जयसिंह मनिका के इस खुलासे से सच में निरुत्तर हो गए थे. मनिका को उनके इस तरह झेंप जाने पर बहुत मजा आ रहा था. उसने खनकती हुई आवाज में आगे कहा,
"अब क्या हुआ… बोलो ना पापा? बढ़ा छेड़ रहे थे मुझे…!"
"अब मूवी भी ना देखूं क्या?" जयसिंह ने कहा पर उनकी आवाज़ से साफ़ पता चल रहा था कि उनकी चोरी पकड़ी गई थी.
"हाहाहाहा… कैसे भोले बन रहे हो देखो तो… बता दो बता दो… नहीं कहूँगी मम्मी से… I promise…" पहली बार लगाम मनिका के हाथ में आई थी.
मतलब उसे तो ऐसा ही लग रहा था, सो वह और जोर से हँसते हुए बोली.
"हाँ तो… क्या हो गया देख लिया तो…" जयसिंह ने भी हौले से अपना जुर्म कबूल कर लिया.
"हाहाहा…" मनिका ने अपनी बात के साबित हो जाने पर ठहाका लगाया, उसे कुछ ज्यादा ही हँसी आ रही थी.
इसी तरह हँसी-मजाक चलता रहा. उसके काफ़ी देर बाद जयसिंह ने मनिका को अपनी गिरफ़्त से आज़ाद किया था. रात ढल आई, खाने-पीने के एक और दौर का समय आ गया था. मनिका और जयसिंह डिनर करने फिर से नीचे रेस्टॉरेंट में ही गए.
लेकिन जयसिंह के लंड ने उस रात उन्हें ढंग से खाना भी नहीं खाने दिया.
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हुआ ये कि जब मनिका और जयसिंह नीचे रेस्टॉरेंट में जाने के लिए कमरे से निकलने लगे थे तब मनिका ने अपने सूटकेस से लिपग्लॉस निकाल कर अपने होंठों पर लगाया था. यह देखना था कि बस जयसिंह का तो काम तमाम हो गया.
बड़ी मुश्किल से जयसिंह लिफ़्ट से निकल कर रेस्टॉरेंट की कुर्सी तक पहुँचे थे. इधर सामने बैठी मनिका उनसे हँस-मुस्कुरा कर बातें कर रही थी. उधर वे उसके होंठों पर लगे अपने लंड के पानी मिले लिपग्लॉस की चमक देख-देख प्रताड़ित हो रहे थे. उन्हें लग रहा था जैसे उनका शरीर दिमाग़ की बजाय लंड के कंट्रोल में आ गया हो. उनके पूरे जिस्म में हवस के मरोड़े उठ रहे थे. वे थोड़ा सा ही खाना खा सके और पूरा समय टेबल के नीचे अपने बाएँ हाथ से लंड को जकड़े हुए बैठे रहे.
उनकी कारस्तानी से अनजान मनिका ने खाना खाने के बाद मँगवाई आइसक्रीम खा कर जब अपने होंठों पर जीभ फिराई तो जयसिंह को हार्ट-अटैक आते-आते बचा. लेकिन इस बार वे अपने चेहरे के भावों पर काबू नहीं रख सके और मनिका को उनकी बेचैनी का आभास हो गया.
"क्या बात है पापा?" मनिका के चेहरे पर चिंता झलक आई, "आप ठीक तो हैं?" उसने पूछा.
"हम्म… कुछ नहीं बस थोड़ा ज़्यादा खा लिया आज… और सिर में भी दर्द है ज़रा सा…"
जयसिंह को समझ नहीं आया कि वे क्या कहें सो उनके जो मुँह में आया वही बोल गए.
"साली को कैसे बताऊँ कि तू जो मेरे लंड का रस चाट रही है जीभ फिरा-फिरा कर… उससे सिर में नहीं लंड में दर्द है…" जयसिंह ने आँखें मींचते हुए सोचा.
डिनर के बाद जब वे अपने कमरे में आए तो मनिका ने जयसिंह को जल्दी सो जाने को कहा. उसने उनसे कुछ देर सिर दबा देने के लिए भी पूछा था. लेकिन जयसिंह की कुंठित उत्तेजना ने आज भयंकर रूप धारण कर लिया था. सो उनको डर था कि मनिका का स्पर्श कहीं उन्हें अपना आपा खोने पर मजबूर न कर दे. सो उन्होंने उसे मना कर दिया व कम्बल ओढ़ कर लेट गए.
मनिका को इस बात की ज़रा भी ख़बर नहीं थी कि कम्बल के अंदर जयसिंह ने अपने उफनते लंड को पकड़ कर काबू में कर रखा है. उनके रोम-रोम में आग लगी थी और वे सुलगते हुए सोच रहे थे, "इस हरामजादी मनिका को तो पटक-पटक कर चोदूँगा एक दिन…"
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