17 - चक्रव्यूह
बाकी की फिल्म कब ख़त्म हुई मनिका को आभास भी नहीं हुआ. उसका पूरा समय वहाँ आए मर्दों को कोसने में ही बीत गया था. फिल्म देखने के बाद मनिका और जयसिंह ने वहीं मॉल के फ़ूड-कोर्ट में खाना खाया और रात हुए वापस अपने होटल पहुंचे.
मनिका नहा कर बाहर निकली तो पाया कि एक बार फिर जयसिंह काउच पर तौलिया लपेटे बैठे हुए थे. आज उन्होंने ऊपर कुरता भी नहीं पहना हुआ था. जयसिंह उसे देख कर मुस्कुराए और उठ खड़े हुए. मनिका ने एक तरफ हट कर अपने पिता को बाथरूम में जाने का रास्ता दिया व जा कर बेड पर बैठ गई.
बाथरूम से बाहर आने से पहले मनिका ने एकबारगी सोचा था कि अगर आज भी उसके पिता पिछली रात की भाँति सामने नंगे बैठे हुए तो वह क्या करेगी? पर फिर उसने यह सोचकर अपने मन से वह बात निकाल दी थी कि वो सिर्फ एक बार अनजाने में हुई घटना थी.
लेकिन बाथरूम से बाहर निकलते ही जयसिंह से रूबरू हो जाने पर मनिका की नज़र सीधी उनकी टांगों के बीच गई थी. आज भी जयसिंह ने टांगें इस पिछली रात की तरह ही खोल रखीं थी, लेकिन आज उन्होंने एक सफ़ेद अंडरवियर पहन रखा था. मनिका की धड़कन बढ़ गई थी. अंडरवियर पहने होने के बावजूद जयसिंह के लंड का उठाव साफ़ नज़र आ रहा था. अंडरवियर में खड़े उनके लिंग ने उसके कपड़े को पूरा खींच कर ऊपर उठा दिया था. मनिका ने झट से अपनी नज़र ऊपर उठा कर अपने पिता की आँखों में देखा था.
आज जयसिंह ने जानबूझकर अंडरवियर पहने रखा था ताकि मनिका को शक न हो जाए कि वे उसे अपना नंगापन इरादतन दिखा रहे थे. लेकिन फिर कुछ सोच कर उन्होंने अपन शर्ट और बनियान निकाल दिए थे, आखिर मनिका को सामान्य हो जाने का मौका देना भी तो खतरे से खाली नहीं था. बाथरूम से निकलते ही मनिका की प्रतिक्रिया को वे एक क्षण में ही ताड़ गए थे, और मुस्कुराते हुए नहाने घुस गए.
जब जयसिंह मनिका के करीब आ बाथरूम में गए थे तब मनिका की साँस जैसे रुक सी गई थी. बिना शर्ट और बनियान के जयसिंह के बदन का ऊपरी भाग पूरी तरह से उघड़ा हुआ था. हालाँकि मनिका ने अपने पापा को घर में बनियान पहने देखा था अपर आज उनका चौड़ा सीना और बलिष्ठ बाँहें देख मनिका शरमाए बिना न रह सकी.
बेड पर बैठे हुए उसके मन में फिर से कौतुहल जाग उठा था. मनिका को दोपहर में वेब-सर्च कर देखी हुई चीजें याद आने लगी.
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पहले-पहल तो सर्च में उसे सिर्फ़ प्राकृतिक विज्ञान वाली तस्वीरें दिखीं थी. लेकिन फिर उसके ब्राउज़र में लिखा आया ‘Turn Off Safe Search’. उसके बाद उसने नई सर्च की ‘Real Penis’ तो उसे विभिन्न प्रकार के लंडों की फ़ोटोएँ दिखीं. मनिका ने घबरा कर एक बार तो ब्राउज़र बंद कर दिया था, और डरते हुए बेड पर लेटे जयसिंह की तरफ़ देखा था. पर कुछ पल बाद उसके कौतुहल ने उसे फिर से सर्च करने को उकसाया था.
सर्च में जो लंड नज़र आ रहे थे उनका साइज़ उसे छोटा लगा. उसने “Real Penis Size" लिख कर भी सर्च किया. इस बार कुछ सिकुड़े हुए और कुछ खड़े लंड उसकी स्क्रीन पर आए. उसने पढ़ा कि मर्दों के उत्तेजित होने पर उनका लिंग इरेक्ट यानी खड़ा हो जाया करता है.
"तो क्या पापा का वो… erect… था?" उसकी साँसें गरम होने लगी थी.
फिर उसने “Erect Penis Size" सर्च किया. इस बार छोटे-बड़े कई लंड उसके सामने थे. उन्हीं में से एक को देख उसका दिमाग़ झनझना उठा. काफ़ी बड़ा और मोटा लंड था वो, बिलकुल उसके पापा जैसा. उसने एक काँपती अंगुली से लिंक पर क्लिक किया. वो किसी सेक्स फ़ोरम का लिंक था जिसमें लोगों ने ‘Dick Pics’ डाल रखी थी. वहाँ लिखे कॉमेंट्स को देख मनिका को पता चला कि मर्दों के प्राइवट पार्ट को ‘Dick, Cock और Dong' भी कहा जाता है.
यह सब देख उसके गाल सुर्ख़ होने लगे थे.
तभी उसकी नज़र एक कॉमेंट पर पड़ी, किसी लड़की के अकाउंट से लिखा था,
“Nice Big Black Cock!”
मनिका के मन में जयसिंह के लंड के लिए ख़याल आया था,
“Papa has a big black cock…"
उसका चेहरा और बदन तमतमा उठे थे. उसने एक बार फिर ब्राउज़र बंद कर दिया, लेकिन पापी मन ने उसे दोबारा सर्च करने को कहा. उसने लेटे-लेटे जयसिंह की तरफ़ शर्मिंदगी से देखा, वे तो बेख़बर सो रहे थे.
मनिका ने फिर से फ़ोन में सर्च खोली, और लिखा ‘Big Black Cock’.
इस बार जो सामने आया उसने उसके होश उड़ा दिए थे.
काले-काले मोटे अफ़्रीकन लंड वाले आदमी और उनके साथ गोरी-गोरी लड़कियाँ. इस बार ज़्यादातर पॉर्न साइट्स के लिंक खुले थे. वो नजारा देख मनिका कंपकंपा उठी. एक फ़ोटो में एक जवान सी लड़की और एक अधेड़ काला व्यक्ति नंगे खड़े थे. उस लड़की ने उस आदमी का लंड पकड़ रखा था. लिंक का नाम था ‘Big Black Cock Lover’ और आगे उस पॉर्न साइट का नाम था.
उसने अनायास ही वो लिंक खोल लिया. आगे जो था वो उसकी ज़िंदगी बदल देने वाला था.
वेबसाइट पर उस काले अधेड़ मर्द और उस लड़की कि क्रमवार फ़ोटोएँ थीं. जिसमें वो लड़की आकर उसके रूम का गेट बजाती है. वो गेट खोलता है तो लड़की शरारत भरी मुस्कान से उसे देखती है. फिर लड़की अंदर आ जाती है. अगली फ़ोटो में वे दोनों कुछ बात कर रहे होते है. लड़की ने अपना वक्ष जैसे आगे निकाल उस आदमी के सामने तान रखा होता है, और उसके चेहरे पर शरारती हँसी होती है.
फिर उसके आगे की फ़ोटोज़ ने जैसे मनिका का रंग उड़ा दिया था.
वो अधेड़ सा आदमी उस जवान लड़की को अपनी गोद में ले लेता है, फिर उसे नंगी करने लगता है. फिर यकायक उसे बेड पर फेंक देता है, लड़की के चेहरे पर अचरज का भाव होता है. फिर वो आदमी खुद भी नंगा हो जाता है और लड़की की तरफ़ बढ़ता है. लड़की ख़ुशी-ख़ुशी अपनी टांगे हवा में उठा कर खोल लेती है. अब वो आदमी उस लड़की की गुलाबी सी योनि चाट रहा होता है. अगली फ़ोटो में वो लड़की उसका लंड चूसते हुए दिखती है. फिर वो आदमी अपना लंड उस लड़की की योनि में ठूँसता है. इसपर लड़की के चेहरे का रंग उड़ा हुआ होता है. चुदाई की फ़ोटोज़ का एक क्रम आता है, जिसमें आदमी के चेहरे पर वहशत और लड़की के चेहरे पर मज़ा झलक रहा होता है. अगली फ़ोटो में लड़की घुटनों के बल बैठी होती है और आदमी अपने हाथ में लंड लिए होता है. उसकी बड़ी-बड़ी आँखें ऊपर आदमी को देख रही होतीं हैं. आख़िरी फ़ोटो में लड़की के मुँह पर आदमी के लंड से कुछ गंदा सा सफ़ेद पदार्थ निकला होता है. लड़की जीभ से उसे चाट रही होती है.
अब तक मनिका का बदन सुन्न पड़ चुका था.
“OH GOD! ये सब कितना गंदा है… हाय! मैं भी क्या देख रही हूँ."
मनिका ने बैक बटन दबाया. इस बार सर्च पेज पर उसे कुछ हिंदी रिज़ल्ट भी दिखे, जिनमें "मोटा लंड" और "खड़ा लौड़ा" जैसे शब्द लिखे थे.
"छीः… ये तो गंदी गालियाँ होतीं है". मनिका मुँह बनाते हुए सोचा था.
उसने ब्राउज़र बंद किया और जल्दी से अपनी हिस्ट्री डिलीट की थी.
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हालाँकि सेक्स के बेसिक कॉन्सेप्ट से भी वो वाक़िफ़ थी लेकिन उसने ये सब पहली बार देखा था. छोटे शहर में पली-बढ़ी मनिका को हिंदी फ़िल्मों में दिखाया जाने वाला प्यार ही मालूम था. उसमें भी किस्स-विस्स जैसी चीजें उसे असहज कर देतीं थी. सो इतने बड़े-बड़े लंड और सेक्स करने के अश्लील तरीक़े ने उसका सिर चकरा गया था और वह सो गई थी.
शायद इसीलिए आज फ़िल्म के दौरान सुने अभद्र कॉमेंट्स से उसे ज़्यादा ग़ुस्सा आ रहा था. क्योंकि सेक्स के तरीक़े ने उसे अंदर ही अंदर आतंकित कर दिया था और अब वह उन मर्दों का आशय समझ रही थी.
"Oh… thank god! आज पापा अंडरवियर पहने हुए थे… लेकिन फिर से मैंने उनके प्राइवेट पार्ट को… देख लिया… मतलब अंडरवियर में भी उनका बड़ा सा… डिक… हे राम! कैसा नाम है डिक… बिग ब्लैक कॉक!"
एक बार फिर उसका बदन तमतमा गया.
"Shit! मैं फिर से ऐसा-वैसा सोचने लगी…! पर पता नहीं पापा कैसे इतना बड़ा… पैंट में डाल के रखते हैं? नहीं-नहीं… ऐसा मत सोच… तकलीफ़ नहीं होती क्या उन्हें…? और सेक्स में वो गर्ल के अंदर जाता… हाय…! ये मैं क्या-क्या सोच रही हूँ… पापा को पता चला तो क्या सोचेंगे?"
जब जयसिंह नहा कर बाहर आए तो मनिका को टीवी देखते हुए पाया. मनिका ने ध्यान बंटाने के लिए टेलीविज़न चला रखा था. जयसिंह भी आकर उसके पास बैठ गए.
मनिका ने कनखियों से उनकी तरफ देखा, वे आज भी बरमूडा और टी-शर्ट पहने हुए थे.
जयसिंह ने मनिका की बाँह पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचा. वह उनका इशारा समझ गई और उनकी तरफ देखा. जयसिंह ने उसे उठ कर गोद में आने का इशारा किया. मनिका थोड़ा सकुचा गई, पर फिर भी उठ कर उनकी गोद में आ बैठी. आज वह उनकी गोद से थोड़ा हटकर उनकी जाँघ पर बैठी थी.
"क्या कुछ चल रहा है टीवी में…?" जयसिंह ने पूछा.
"कुछ नहीं पापा… वैसे ही चैनल चेंज कर रही थी बैठी हुई. आज दिन में सो लिए थे तो नींद भी कम आ रही है." मनिका ने बताया.
"हम्म…" जयसिंह ने टीवी की स्क्रीन पर देखते हुए कहा.
कुछ देर वे दोनों टेलीविज़न देखते रहे, मनिका थोड़ी-थोड़ी देर में चैनल बदल दे रही थी. कुछ पल बाद जब मनिका ने एक बार फिर चैनल चेंज किया तो ‘ETC’ चल पड़ा. उस पर 'जन्नत' फिल्म का ही ट्रेलर आ रहा था. जयसिंह को बात छेड़ने का मौका मिल गया, उन्होंने बात शुरू की,
"अरे मनिका! बताया नहीं तुमने कि मूवी कैसी लगी तुम्हें? पिछली बार तो फिल्म की बातों का रट्टा लगा कर हॉल से बाहर निकली थी तुम…"
"हेहे… ठीक थी पापा…" मनिका झेंप गई.
"हम्म… मतलब जंची नहीं फिल्म आज…?" जयसिंह ने मनिका से नजर मिलाई.
"हेह… नहीं पापा ऐसा नहीं है… बस वैसे ही, मूवी के हीरो-हीरोइन कुछ खास नहीं थे… और क्राउड भी गंवार था एकदम… सो… आपको कैसी लगी?" मनिका ने धीरे-धीरे अपने मन की बात कही और पूछा.
"मुझे तो बिलकुल पसंद नहीं आई." जयसिंह ने कहा.
"हैं? क्या सच में…?" मनिका ने आश्चर्य से पूछा.
"और क्या जो चीज़ तुम्हें नहीं पसंद वो मुझे भी नहीं पसंद…" जयसिंह ने डायलॉग मारा.
"हाहाहा पापा… कितने नौटंकी हो आप भी… बताओ ना सच-सच…?" मनिका हँस पड़ी.
“हाहा… सच कहूँ तो मुझे भी कुछ ख़ास नहीं लगी." जयसिंह ने कहा, "और क्राउड तो अब हमारे देश का जैसा है वैसा है."
"हुह… फिर भी बदतमीजी की कोई हद होती है. पब्लिक प्लेस का कुछ तो ख़याल होना चाहिए लोगों को…" मनिका ने नाखुशी जाहिर करते हुए कहा.
"हाहाहा… अरे भई तुम क्यूँ खून जला रही हो अपना?" जयसिंह ने मनिका की पीठ थपथपाते हुए कहा.
"और क्या तो पापा… गुस्सा नहीं आएगा क्या आप ही बताओ?" मनिका का आशय थिएटर में हुए अश्लील कमेंट्स से था.
"अरे अब मैं क्या बताऊँ… हाहाहा." जयसिंह बोले, “some people get excited you know…”
“हाँ… I don’t know why… ये सब आदमी लोग ही इतना… excited… हो जाते हैं, आपने देखा किसी लड़की या लेडी को ऐसा करते हुए?" मनिका ने जयसिंह के ढुल-मुल जवाब को काटते हुए कहा.
"हाहाहा भई तुम तो मेरे ही पीछे पड़ गई… मैं तो किसी को कुछ नहीं कह रहा."
जयसिंह को एक सुनहरा मौका दिखाई देने लगा था और उन्होंने अब मनिका को उकसाना शुरू किया,
"अब हो जाते हैं बेचारे मर्द थोड़ा उत्साहित क्या करें…"
"हाँ तो पापा और भी लोग होते है वहाँ जिनको बुरा लगता है… और ये वही मर्द हैं आपके जिनका आप कह रहे थे कि बड़ा ख़याल रखते हैं गर्ल्स का…" मनिका ने मर्द जात को लताड़ते हुए कहा.
"अच्छा भई… ठीक है सॉरी सब मर्दों की तरफ से… अब तो गुस्सा छोड़ दो." जयसिंह ने मामला सीरियस होते देख मजाक किया.
"हेहे… पापा आप क्यूँ सॉरी बोल रहे हो… आप उनकी तरह नहीं हो." मनिका ने भी अपने आवेश को नियंत्रित करते हुए मुस्का कर कहा.
इस पर जयसिंह कुछ पल के लिए चुप हो गए. मनिका ने उनकी तरफ से कोई जवाब ना मिलने पर धीरे से कहा,
"पापा?"
तो जयसिंह कुछ गंभीरता अख्तियार कर बोले.
“हाँ भई मान ली तुम्हारी बात… वैसे ये बात तुम्हारे या मेरे सही-गलत होने की नहीं है. हमारा समाज ही ऐसा है…”
चुप हो जाने की बारी अब मनिका की थी. मनिका ने कुछ पल जयसिंह की बात पर विचार करने के बाद कहा,
"पर पापा… ये आप कैसे कह सकते हो? Those people were abusing so badly…”
“Well, look at it like this… हम समाज के नाम पर बहुत सी पाबंदियों में जीते हैं. सो, जब कभी लोगों को लगता है कि वो समाज के कंट्रोल से बाहर हैं, तो ऐसी हरकतें कर बैठते हैं.”
“हम्म…” मनिका ने बस इतनी सी प्रतिक्रिया दी. सो जयसिंह आगे बोले,
"जिस तरह का सीन फिल्म में आ रहा था…"
जयसिंह का मतलब फिल्म में आए उस किसिंग सीन से था, मनिका थोड़ी सकपका गई,
"क्या वह हमारे समाज के चलन के अनुसार था..? हमारे समय में तो इस तरह की फिल्मों की कल्पना तक नहीं कर सकते थे."
"इह… हाँ पापा… but that does not give anybody the right to act so badly like that…" मनिका ने तर्क रखा.
“No it does not… पर समाज ने भी तो कल्चर के नाम पर हमें औरत और मर्द के बीच के रिश्तों पर पर्दा डालना ही सिखाया है… आज फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि परम्परा के नाम पर दबी हुई इच्छाएँ बाहर आने लगी हैं…”
मनिका सोच ही रही थी कि क्या कहे पर जयसिंह ने बात चालू रखी,
“और मेरा मतलब सिर्फ लड़कों या मर्दों से नहीं है. औरत की इच्छाओं का दमन तो सबसे ज्यादा हुआ है… लेकिन मैं ये कह रहा हूँ कि जब समाज के बनाए नियम टूटते हैं तो इंसान अपनी आज़ादी के जोश में कभी-कभी कुछ हदें पार कर ही जाता है."
जयसिंह के ज्ञान की गगरी ने फिर से मनिका को निरुत्तर कर दिया. वे आगे बोले,
"अब तुम ही सोचो, आज उन लड़कियों को बिगड़ैल और ख़राब नहीं कहा जाता जो अपने हिसाब से रहती हैं?”
“हाँ पापा, वो तो है.” मनिका सोचते हुए बोली.
“जिन लड़कियों के बॉयफ्रेंड होते हैं या जो सिगरेट-शराब पीती हैं, हमारा समाज तो उन्हें और भी बुरी नज़र से देखता है.” जयसिंह ने जाल बिछाना शुरू किया.
"हाँ… पर… वो भी तो गलत है ना…? I mean… शराब पीना…" मनिका ने तर्क से ज्यादा सवाल किया.
"कौन कहता है?" जयसिंह ने पूछा.
"सभी कहते हैं पापा… सबको पता है… it’s harmful." मनिका बोली.
"सभी कौन…? लोग-समाज-सोसाइटी यही सब ना?”
“जी…”
“अब शराब अगर ख़राब है तो लड़कों के लिए भी तो ख़राब होगी… या नहीं? पर उन्हें तो नहीं रोका जाता. आज अगर तुम्हारा भाई शराब पीने लगे और तुम भी पीने लगो तो ज़्यादा लानत किसपर आएगी?
जयसिंह अब टॉप-गियर में आ चुके थे.
“ऐसे ही अगर किसी लड़की को अपने पसंद के लड़के के साथ रहना है तो उसपर ज़्यादा तोहमत लगाई जाएगी लेकिन दूसरी तरफ़ अगर लड़का हो तो… चलता है… कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है.”
“हाँ पापा… ये तो मैं भी सोचती हूँ.”
तो फिर सोचो… इस समाज की सही और गलत की परिभाषा सबके लिए एक बराबर तो नहीं है… कि है?”
"अब मैं क्या बोलूँ पापा…? आप तो सबसे अलग सोचते हो सच में…” मनिका ने हल्का सा मुस्का कर कहा.
लेकिन फिर उसने एक और तर्क रखा,
“पर सोसाइटी की सब चीज़ें तो ख़राब नहीं है. अब वो लोग जैसे कर रहे थे वो भी तो ग़लत था ना?”
“हाँ बिलकुल ग़लत था, लेकिन हमारे-तुम्हारे हिसाब से…” जयसिंह बोले, “जैसे समाज की परिभाषा एक समान नहीं है, वैसे ही हमारी उनकी सोच भी तो अलग हो सकती है…”
"वो कैसे?" मनिका ने सवालिया निगाहें उनके चेहरे पर टिकाते हुए पूछा.
"वो ऐसे कि, वे लोग उसी तरह का सिनेमा देखने आए थे… it was their way of enjoying outside the rules of society… और हम अपने तरीक़े से फ़िल्म देखने गए थे.”
“But papa… we have to follow the rules of society in public place, privately you can do anything.” अपना तर्क सिद्ध होते देख मनिका ने कहा.
“बिलकुल सही कहा तुमने मनिका… privately we can do anything… but what does private mean?”
“It means being in your own space… I think.” मनिका ने अस्पष्ट सा उत्तर दिया था.
“हाँ, लेकिन उसका एक मतलब यह भी होता है… कि जहाँ तुम्हारी तादाद ज़्यादा हो, जहाँ तुम्हारी चले. है कि नहीं?”
“I guess so papa…”
“तो आज सिनेमा हॉल में ज़्यादा लोग कौन थे? वही लोग ना जो हूटिंग कर रहे थे?”
“जी.”
"चारों तरफ से आवाजें आ रही थी. अब सोचो अगर सिर्फ कोई एक अकेला होता तो समाज के ठेकेदार उसे वहाँ से भगाने में देर नहीं लगाते. लेकिन क्योंकि वे ज्यादा थे तो कोई कुछ नहीं बोला…”
“हाँ पर पापा… ऐसे लोगों को बोल भी क्या सकते हैं?”
“कुछ नहीं… because they have as much right to enjoy as you do… इसलिए मेरी मानो तो इतना मत सोचो इस बारे में.” जयसिंह ने कहा.
जयसिंह के तर्क मनिका के आत्मसात् किए सभी मूल्यों के इतर जा रहे थे. लेकिन उसे कोई प्रतिरोध भी नहीं सूझ रहा था.
“लेकिन पापा, ऐसे तो लोग फिर सोसाइटी के सभी रूल तोड़ देंगे.” मनिका ने एक और आशंका व्यक्त की.
“मनिका, तुम्हें क्या लगता है नहीं तोड़ते होंगे? Rules are meant to be broken… बशर्ते यह समझदारी से किया जाए.” जयसिंह ने कहा.
"मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा पापा… क्या कहना चाहते हो आप?" मनिका ने उलझन में पड़ते हुए सवाल किया.
जयसिंह का एक हाथ अब मनिका की कमर पर आ गया था. वे आगे बोले,
“देखो, भरी सड़क पर तेज गाड़ी चलाओगे तो पकड़े जाओगे कि नहीं? लेकिन अगर ख़ाली सड़क है और आस-पास कोई नहीं है तो तुम रफ़्तार के मज़े ले सकते हो. क्यूँ ग़लत कह रहा हूँ?”
“नहीं पापा, पर इसका हमारी बात से क्या लेना देना…”
“अरे अभी तुम्हीं ने तो कहा, प्राइवेट में जो मर्ज़ी आए करो… जब हम समाज के नियम खुले-आम तोड़ते हैं तो हज़ार लानतें लगती हैं… पर ऐसे भी लोग हैं जो किसी को बिना बताए अपने मन की मस्ती करते हैं…” जयसिंह ने दांव खेला, “ और उनमें तो तुम भी हो…”
"क्या मतलब पापा… मैंने क्या किया?" उसने हैरानी से पूछा.
"क्या मधु से तुम्हारी लड़ाई नहीं होती? वो तुम्हारी माँ है… समाज तो यही कहता है कि अपने माता-पिता का आदर करो… क्या अपनी माँ के सामने बोलना तुम्हें शोभा देता है?" जयसिंह ने कहा.
मनिका को उनकी बात से बेहद ठेस पहुँची.
"पर पापा मम्मी मुझे बिना बात के डांट देती है तो गुस्सा नहीं आएगा क्या? और मैं कोई हमेशा उनके सामने नहीं बोलती. पर जब छोटी-छोटी बात पर ग़ुस्सा करती हैं तो क्या करूँ…? अब आप भी मुझे ही दोष दे रहे हो."
"अरे!" जयसिंह ने अब अपना हाथ मनिका की कमर से पीठ तक फिरा कर उसे बहलाया,
"मैं तो हमेशा तुम्हारा साथ देता आया हूँ…"
"तो आप ऐसा क्यूँ बोले कि मैं मम्मी से बिना बात के लड़ती हूँ?" मनिका ने मुँह बनाते हुए अपना सिर उनके कंधे पर टिकाया.
“अरे मैं कह रहा हूँ, समाज ऐसा कहता है… मैंने ये कब कहा कि समाज सही है और तुम ग़लत… बेशक बड़ों का आदर करना अच्छी बात है लेकिन जैसा तुमने कहा कि इसका मतलब ये नहीं कि तुम्हारी माँ कुछ भी कहती रहे और तुम्हें सुनना ही पड़े.”
“हाँ पापा… पर सब आपके जैसा नहीं सोचते… उन्हें तो बस मैं ही ग़लत लगूँगी.”
“वही तो मैं कह रहा हूँ डार्लिंग… सो अब तुम अपनी माँ से हर बात शेयर नहीं करती… इस तरह तुम भी तो छुप कर समाज के नियम को तोड़ रही हो कि नहीं?” जयसिंह ने प्यार से उसे समझाया.
"हाँ पापा." मनिका को भी उनका आशय समझ आ गया था, “So papa you are saying that, it’s okay to break society’s rules if you are not doing anything wrong?”
“हाँ और नहीं…”
“मतलब?"
“मतलब, बात सही-ग़लत की नहीं है… मैं ये कह रहा हूँ कि… it’s okay to break society’s rules if you are enjoying yourself… समाज को सिर्फ उतना दिखाओ जितना उनकी नज़र में ठीक हो… कुछ समझी?"
"हाँ पापा कुछ-कुछ…" मनिका ज़रा मुस्काई.
“समाज के सही-ग़लत के चक्कर में मत पड़ो… अगर तुम्हें मज़ा आ रहा है तो बस… मज़ा करो. अगर मैं भी समाज के हिसाब से चलने लगता तो क्या हम यहाँ इतना वक्त बिताते?” जयसिंह ने मनिका का गाल थपथपाया.
“Oh papa. You are so open minded… कहाँ फँस गए बाड़मेर जैसी जगह पर…” मनिका हँस कर कहा.
“बस क्या बताऊँ… पर तुम्हें बात समझ आई कि नहीं?
"हाँ पापा… I think I am getting your point… कि हम सोसाइटी के रूल्स मानें ये ज़रूरी नहीं हैं… बस… we have to be careful while breaking them… है ना?" मनिका ने आँखे टिमटिमाते हुए कहा.
"हाँ… finally!” जयसिंह बोले.
"हीहीही. मैं इतनी भी बेवकूफ नहीं हूँ पापा…" मनिका हँसी.
"हाहाहा. बस समझाने वाला होना चाहिए." जयसिंह ने हौले से मनिका को अपनी बाजू में भींच कर कहा.
"तो आप हो ना पापा…" मनिका भी उनसे करीबी जता कर बोली.
जयसिंह ने बात ख़त्म नहीं होने दी.
"हाहाहा… मुझे लगा था तुम अपने-आप ही समझ गई होगी दिल्ली आने के बाद."
"वो कैसे?" मनिका ने फिर से कौतुहलवश पूछा.
"अरे वही हमारी बात… कुछ नहीं चलो छोड़ो अब…" जयसिंह आधी सी बात कह रुक गए.
"बताओ ना पापा!? कौनसी बात…?" मनिका ने हठ किया.
"अरे कुछ नहीं… कब से बक-बक कर रहा हूँ मैं भी…" जयसिंह ने फिर से टाला.
“Tell me na papa… please." मनिका ने भी जिद नहीं छोड़ी.
सो जयसिंह ने एक पल उसकी नज़र से नज़र मिलाए रखी और फिर हौले से बोले,
"वही, जब मैंने तुम्हें ब्रा-पैंटी लेने के लिए कहा था?"
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