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Incest बेटी की जवानी - बाप ने अपनी ही बेटी को पटाया - 🔥 Super Hot 🔥

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कहानी में अंग्रेज़ी संवाद अब देवनागरी की जगह लैटिन में अप्डेट किया गया है. साथ ही, कहानी के कुछ अध्याय डिलीट कर दिए गए हैं, उनकी जगह नए पोस्ट कर रही हूँ. पुराने पाठक शुरू से या फिर 'बुरा सपना' से आगे पढ़ें.

INDEX:

 

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16 - इंटर्व्यू

अगली सुबह जब मनिका सो कर उठी तो उसका मन अजीब सा हो रखा था. उसे ऐसा लग रहा था मानो वह कोई बहुत बड़ी दुर्घटना घटने के बाद की पहली सुबह हो. फिर जैसे-जैसे उसकी नींद उड़ने लगी उसे पिछली रात देखा नज़ारा याद आने लगा. रात को तो अचानक इस तरह अपने पिता के गुप्तांग देख लेने ने से वह सन्न रह गई थी और उस वाकये को भुलाने की कोशिश करते-करते सो गई थी. लेकिन अब उसे वही बात हज़ार गुना ज्यादा झटके के साथ याद आ रही थी. जब तक वे दोनों नीचे रेस्टोरेंट में नाश्ते के लिए पहुँचे थे, मनिका अनगिनत बार हँसते-मुस्कुराते अपने पिता की तरफ देख कर शरम और अपराधबोध से भर चुकी थी.

उधर जयसिंह को अब पूरा विश्वास हो चुका था की उनकी हरमजदगी का भान मनिका को नहीं हुआ था. सो वे आज कुछ ज्यादा ही चहक रहे थे. वे लोग ब्रेकफ़ास्ट करने के बाद कैब से कॉलेज पहुँचे. वहाँ काफी भीड़-भाड़ थी. अन्दर पहुँच ड्राईवर को पार्किंग में रुकने का बोल मनिका के साथ कॉलेज बिल्डिंग की तरफ चल दिए.

कॉलेज के अकादमिक ब्लॉक से उन्होंने इंटर्व्यू के लिए निर्धारित ऑफिस का पता किया और उनके बताए रास्ते के मुताबिक मैनेजमेंट ब्लॉक में जा पहुँचे. वहाँ बहुत से लड़के-लड़कियाँ अपने अभिभावकों के साथ आए हुए अपना नंबर आने का इंतजार कर रहे थे. मनिका और जयसिंह भी एक तरफ बने वेटिंग एरिया में बैठ गए और मनिका का नाम बुलाए जाने की प्रतीक्षा करने लगे.

“Papa I am so nervous…!" मनिका ने जयसिंह से अपना भय व्यक्त किया.

“Arey why? तुम्हें तो सब आता है. ऐसा मत सोचो बिलकुल भी, तुम्हारा सेलेक्शन पक्का होगा, मुझे पूरा यकीन है अपनी… गर्लफ्रेंड पर…" जयसिंह ने मुस्कुरा कर उसकी हिम्मत बँधाई.

वे मनिका को अपनी बेटी कहते-कहते रुक गए थे.

"ओह पापा. हाहाहा… आप भी ना!" मनिका ने भी उनकी बात पर हँसते हुए उलाहना दिया और बोली, “I know my preparation is good but… कल से थोड़ा डर भी लग रहा है कि एडमिशन नहीं हुआ तो क्या करूँगी… और थोड़ा mind divert भी हो रखा है…"

यह कहते ही मनिका के मन में एक बार फिर जयसिंह के लिंग की आकृतियां बनने लगीं और उसकी नजर जयसिंह की पैंट की ज़िप पर चली गई.

"कोई बात नहीं तुम टेंशन मत लो, जो होगा अच्छे के लिए ही होगा." जयसिंह ने पास बैठी मनिका के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

मनिका भी थोड़ा मुस्का दी पर कुछ नहीं बोली.

"पापा को क्या पता की मैंने इनका उनका प्राइवट पार्ट देख लिया… हे भगवान! फिर से वही गंदे ख़याल…" उसके मन में आया और वह भीतर ही भीतर शर्मसार हो गई.

अब जयसिंह का हाथ उसके कंधे पर उसे एक तपिश सी देता हुआ महसूस हो रहा था.

कुछ वक्त बाद इंटर्व्यू के लिए मनिका का नंबर आ गया. जयसिंह ने उसे मुस्का कर ‘Good Luck’ कहा. मनिका धड़कते दिल से अपना पहला इंटर्व्यू देने के लिए चल दी. जयसिंह वहीं बैठे उसका इंतज़ार करने लगे.

"हम्म… mind divert… हाहाहा… चलो लंड देख कर माइंड तो डाइवर्ट हुआ हरामज़ादी… बस अब माइंड डाइवर्ट ही रहना चाहिए… हाहाहा… क्या गांड है यार!”

उन्होंने इंटर्व्यू रूम में घुसती हुई मनिका को देखते हुए सोचा था.

अंदर पहुँच कर मनिका ने देखा कि इंटर्व्यू के लिए तीन जनों का पैनल बैठा था. उसके अभिवादन करने के बाद उसे बैठने को कहा गया और फिर एक-एक कर के तीनों लोग उससे सवाल करने लगे.

–​

पहले सवाल पर मनिका एक क्षण के लिए सकपका गई थी. लेकिन फिर उसके दिमाग़ ने धीरे-धीरे एक बार फिर सही दिशा में काम करना चालू कर दिया. जवाब उसकी ज़ुबान पर आने लगे. हर सही जवाब के बाद उसका आत्मविश्वास लौटने लगा.

मनिका का इंटर्व्यू करीब 25 मिनट तक चला.

जब मनिका इंटर्व्यू देकर बाहर आई तो जयसिंह को जस के तस बैठे हुए पाया. उससे नज़र मिलते ही जयसिंह उठ खड़े हुए और उसकी तरफ आने लगे. उनके चेहरे पर एक सवालिया भाव था.

"कैसा हुआ?" जयसिंह ने करीब आ कर पूछा.
"अच्छा हुआ पापा… मतलब… I think so… पहले मैं थोड़ा नर्वस थी… but then I got confident.” मनिका हल्की सी मुस्काई.
“May be… मेरा एडमिशन हो जाएगा… ओह पापा मुझे फिर से डर लग रहा है अब…" उसने आगे कहा.
"कितनी देर में आएगा रिजल्ट?" जयसिंह ने पूछा.
"बस 10-15 मिनट में ही… I guess… अपना नंबर सबसे आख़िर में ही आया है…"
"हम्म… कोई बात नहीं घबराओ मत…" जयसिंह ने उसे फिर से ढाँढस बँधाया.

कुछ देर बाद ही मनिका के कहे मुताबिक रिजल्ट आ गया.

ऑफिस से एक आदमी बाहर आया था और उसने बाहर लगे सॉफ़्ट-बोर्ड पर एक कागज पिन कर दिया था. उस पर सेलेक्ट हुए लोगों के नाम थे. काँपते कदमों से मनिका अपना रिजल्ट देखने के लिए बढ़ी. बोर्ड के चारों तरफ जमघट लग गया था. कुछ पल बाद मनिका को कागज सही से दिखा, पर घबराहट के मारे एक पल के लिए उससे कुछ पढ़ा नहीं गया. फिर उसने अपने-आप को सम्भालते हुए गौर से देखा तो पाया कि ऊपर से चौथे नंबर पर लिखा था,

‘Manika Singh'

मनिका ख़ुशी से झूम उठी.

"पापाऽऽ… I got selected!" उसने पीछे मुड़ते हुए जयसिंह को आवाज़ दी और खिलखिलाते हुए उनकी तरफ बढ़ी.

जयसिंह ने भी आगे बढ़ते हुए अपनी बाँहें खोल दीं. मनिका आ कर उनके आगोश में समा गई. उन्होंने मनिका को अपनी छाती पर भींच लिया. मनिका का वक्ष अब उनकी छाती से लगा हुआ था और उनके हाथ उसकी पीठ और कमर पर कसे हुए थे. मनिका के जवान होने के बाद ये पहली बार थी जब उन्होंने उसे इस तरह गले लगाया था. उनके बदन में जैसे करेंट दौड़ने लगा और उन्होंने अपनी बाँहें और ज्यादा कस लीं.

उधर कुछ पल के उन्माद के बाद मनिका को भी जयसिंह के पुरुष जिस्म की संरचना और ताकत का एहसास होने लगा. जयसिंह की छाती उसके स्तनों को दबाए थी, उसका बदन उनकी बाजूओं में इस तरह जकड़ा हुआ था कि वह चाहकर भी उनसे अलग नहीं हो पा रही थी.

"पापा…!" जयसिंह की कसती चली जा रही पकड़ से आजाद होने की कोशिश करते हुए मनिका ने कहा.

"मैंने कहा था ना तुम सेलेक्ट हो जाओगी…" जयसिंह भी मनिका का प्रतिरोध भाँप गए थे, उन्होंने अपनी गिरफ़्त थोड़ी ढीली करते हुए कहा.

"हाँ पापा… Oh god, I am so happy!” मनिका ने कहा.

रिजल्ट वाले नोटिस में सेलेक्ट हुए लोगों को अकादमिक ब्लॉक में जा कर एडमिशन फॉर्म भरने के निर्देश दिए गए थे. सो मनिका और जयसिंह एक बार फिर से वहाँ गए. वहाँ एक और खुशखबरी जयसिंह का इंतज़ार कर रही थी.

कॉलेज की फ़ीस अगले तीन दिनों में जमा कराने पर ही लिस्ट में सेलेक्ट हुए लोगों का एडमिशन पक्का होना था. वरना कॉलेज से दूसरी लिस्ट जारी होनी थी और क्रमवार अगले कैंडिडेट्स को मौका दिया जाता.

जयसिंह ने बाहर आते ही पहला फोन अपने घर पर किया और मनिका के सेलेक्ट हो जाने की खबर सुनाई. फिर कहा कि उनकी वापसी में एक-दो दिन और लगने वाले थे. उनकी बीवी मधु ने इस पर कोई खासी उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं दी. वैसे भी अपनी बेटी के बर्ताव व उससे हुई अनबन की गाँठ उसके मन में थी. उधर एडमिशन हो जाने की ख़ुशी के मारे मनिका कुछ पल के लिए अपने पिता के लिंग-दर्शन को भूल गई थी. हालाँकि उनके साथ वहाँ एक-दो दिन और बिताने के ख़याल ने एक बार उसे थोड़ा आतंकित कर दिया था.

जयसिंह ने मनिका से कहा कि वे अगले दिन आ कर उसके एडमिशन की प्रक्रिया पूरी कर जाएँगे. मनिका को भला क्यूँ एतराज़ हो सकता था, और वे दोनों वापिस अपने होटल लौट आए.
अपने कमरे में आ कर मनिका ने एडमिशन-फॉर्म निकाला और उसे भरने बैठ गई. दोपहर के खाने का वक़्त भी हो चुका था और जयसिंह भी उसके पास ही बैठे मेन्यू देख रहे थे. आज जयसिंह ने अपनी मर्जी से ही खाना ऑर्डर कर दिया क्योंकि मनिका का पूरा ध्यान अपने फॉर्म में लगा हुआ था.

कुछ देर बाद मनिका ने भी फॉर्म पूरा भर लिया,

“All done papa…" मनिका ने फॉर्म में लिखी सभी डिटेल्स को एक बार फिर चेक करते हुए कहा.
"हम्म चलो एक काम तो पूरा हुआ… अब तो खुश हो तुम?" जयसिंह ने पास बैठी मनिका को अपने पास खींचते हुए कहा.
"हाँ पापा." मनिका हल्के प्रतिरोध के बाद उनसे सटते हुए बोली.
"और बताओ फिर… दिल्ली भी देख ली, शॉपिंग भी हो गई और एडमिशन भी हो गया अब क्या करने का इरादा है?" जयसिंह ने मुस्कुराते हुए सवाल किया.
"हाहाहाहा… बस पापा इतना बहुत है… अब आप जल्दी-जल्दी डेल्ही आते रहना." मनिका ने हँसते हुए कहा.
"हाँ भई अब मेरी गर्लफ्रेंड यहाँ है तो आना ही पड़ेगा." जयसिंह ने शरारत से कहा.
"हाहा… क्या बोलते रहते हो पापा." मनिका बोली.
"वैसे कॉलेज में लड़के काफ़ी हैं…" जयसिंह की बात में कुछ अंदेशा था.
"तो…?" मनिका भी उनके कहने का मतलब समझ गई थी पर उसने अनजान बनते हुए पूछा.
"तो क्या? कल को कोई पसंद आ गया तुम्हें तो ये पुराना बॉयफ्रेंड थोड़े ही याद रहेगा…" जयसिंह ने झूठी उदासी दिखाते हुए कहा.
"हेहेहे… पापा कुछ भी…" मनिका ने उनकी बात को मजाक में ही लिया था.
"और वैसे भी मुझे कोई बॉयफ्रेंड नहीं चाहिए…" उसने कहा.
"हाहाहा…" जयसिंह ने भी दाँत दिखा दिए, "वैसे क्यों नहीं चाहिए तुम्हें बॉयफ्रेंड?" उन्होंने पूछा.
"अरे भई नहीं चाहिए तो नहीं चाहिए… क्या करना है बॉयफ्रेंड-वोयफ़्रेंड का…"
मनिका अपने पिता से ऐसी बातें करने में झिझक रही थी.
"वैसे बॉयफ्रेंड तो होना ही चाहिए जो ख़याल रखे तुम्हारा…" जयसिंह भी कहाँ मानने वाले थे.
"अच्छा? तो आप बना लो… हीही." मनिका ने कहा और अपने ही मजाक पर हँसी.
"तो मुझे तो गर्लफ्रेंड बनानी होगी ना…?" जयसिंह मुस्काए.
"हाँ तो बना लो न जा के…" मनिका भी अब उनके कहे को मजाक समझ बोली.
"हाहाहा… हाँ तो इसीलिए तो तुम्हारा एडमिशन यहाँ करवाया है, कोई सुंदर सी सहेली बना कर मुझसे दोस्ती करवा देना…" जयसिंह ने हँसते हुए उसे आँख मारी.
"हाआआ…! पापा कितने ख़राब निकले आप… बड़े आए, बूढ़े हो गए हो और अरमान तो देखो. मम्मी से बोलूंगी ना तो गर्लफ्रेंड का भूत एक मिनट में उतार जाएगा… हाहाहा." मनिका ने उन्हें झूठ-मूठ धमकाया.
"इतना भी बूढ़ा नहीं हूँ… तुम्हें क्या पता? बस अपनी मम्मी के नाम से डराती हो मुझे…" जयसिंह भी पीछे नहीं हटे.
"रहने दो आप… हाहाहा… मेरी फ्रेंड आपसे कितनी छोटी होगी पता है…? कुछ तो शरम करो…" मनिका ने उन्हें उलाहना दिया.
"तो क्या हुआ… होगी तो लड़की ही ना और हम भी तो मर्द हैं…" जयसिंह ने उसे चिढ़ाया.
"हाहाहा… जाओ-जाओ रहन दो आप…" मनिका ने उनका मखौल उड़ाते हुए कहा.
"हँस लो हँस लो तुम भी कोई बात नहीं… लेकिन एक असली मर्द लड़की का जितना ख़याल रख सकता है उतना तुम्हारे ये नए-नवेले बॉयफ्रेंड कभी नहीं रख सकते…" जयसिंह ने मनिका की हँसी का जवाब देते हुए कहा.
"हाहाहा पापा बस भई मान लिया… और मेरे कोई नए-नवेले बॉयफ्रेंड है भी नहीं… हीहीही." मनिका फिर भी हँसती रही.

थोड़ी देर में उनका लंच आ गया और वे दोनों खाना खाने लगे.

आज एक बार फिर वही वेटर खाना दे गया था जिसने मनिका को एक बार अर्धनग्न अवस्था में देख लिया था. पर जयसिंह वहीं बैठे थे सो उसने कोई उद्दंडता नहीं दिखाई थी. खाना खाने के बाद जयसिंह बेड पर लेट सुस्ताने लगे और मनिका टीवी देखने लगी.

मनिका ने टेलीविजन में MTV चैनल चला रखा था जिसमें बॉलीवुड की खबरें आ रहीं थी. कुछ देर देखते रहने के बाद मनिका का ध्यान टीवी पर से हट गया. वह जो प्रोग्राम देख रही थी उसमे बॉलीवुड के स्टार्स की लव-लाइफ़ इत्यादि के बारे में भी कयास लगाए जा रहे थे. मनिका को एहसास हुआ कि ज्यादातर हीरो अधेड़ उम्र के थे और उनका नाम नई आई हीरोइनों के साथ जोड़ा जा रहा था. यह बात तो उसे पहले से भी पता थी कि अक्सर 40-45 पार के हीरो अपने से आधी उम्र की हिरोइन को डेट करते हैं. लेकिन उसने इस बारे में कभी गहराई से नहीं सोचा था.

'बॉलीवुड में ऐसा ही चलता है' यह एक सामान्य सोच थी. पर अब उसे एहसास हुआ कि इस बात से उसके पिता के उस दावे को भी पुष्टि मिल रही थी के मर्द लड़कियों का ख़याल रखने में माहिर होते हैं,
"क्या सच में…?" मनिका ने मन ही मन सोचा. "पापा जो कह रहे थे क्या सच में वैसा ही है? पहले कभी सोचा ही नहीं लेकिन ये हिरोईनों को हमेशा बूढ़े-बूढ़े हीरो ही क्यों पसंद आते हैं…? पैसा होता है क्योंकि उनके पास… पर पैसा तो वो भी कमाती ही हैं और नए हीरो भी तो कम पैसेवाले नहीं होते…?"

मनिका सोचती जा रही थी,

"और बड़े-बड़े बिजनेसमैन भी तो कैसे रोज नई गर्लफ्रेंड घुमा रहे होते हैं… बात सिर्फ पैसे की तो नहीं है… हम्म. हाथ तो पापा का भी कितना खुल्ला है, खर्चा करते रुकते ही नहीं… पर उनकी तो कोई गर्लफ्रेंड नहीं है…"

फिर उसे अपनी सहेलियों की ठिठोली याद आई,

"मनि तुम्हारे डैड तो हमारे बॉयफ्रेंडों से भी ज्यादा ख़याल रखते हैं तुम्हारा… ओह! पागल लड़कियाँ हैं मेरी फ्रेंड्स भी." मनिका सोचते हुए उठी.

टीवी ऑफ कर वो बिस्तर की तरफ चल दी.

अब वह भी जा कर बेड के सिरहाने से टेक लगा कर बैठ गई और अपने सोते हुए पिता की तरफ देखा.

"पर पापा के साथ जब भी होती हूँ अक्सर लोग मुझे उनकी गर्लफ्रेंड ही मान बैठते हैं… बाड़मेर में तो फिर भी लोग हमें जानते हैं पर यहाँ तो कोई सोचता ही नहीं की हम बाप-बेटी हैं… कैसे लोग हैं पता नहीं…? पर हम दोनों भी तो एक-दूसरे से कुछ ज्यादा ही खुल गए हैं… तो क्या हुआ…? सो लोग तो उल्टा सोचेंगे ही न! आज भी पापा ने कैसे मुझे गले लगाया था… वो भी सब के सामने… उह… कितने पावरफुल हैं पापा… मेरी तो जान ही निकाल देते अगर कुछ देर और नहीं छोड़ा होता तो…"

मनिका जयसिंह की बलिष्ठ पकड़ को याद कर मचल उठी और उसके बदन में एक अजीब सी कशिश दौड़ने लगी.

अब उसकी नज़र जयसिंह की पैंट के अगले हिस्से पर चली गई,

"पापा का… Oh shit! फिर से नहीं…" मनिका ने अपने-आप को सम्भाला.

लेकिन वह विचार जो उसके मन में कौंध गया था उससे छुटकारा पाना इतना आसान भी नहीं था.

–​

कुछ सोचते हुए मनिका बेड से उठ खड़ी हुई और सामने रखे काउच पर जा लेटी. सामने बेड पर सो रहे जयसिंह की तरफ़ एक नज़र देखने के बाद उसने अपने फ़ोन का वेब-ब्राउज़र खोला और टाइप किया ‘Men’s private part’.


जब जयसिंह सो कर उठे तब तक शाम ढल आई थी. उन्होंने देखा कि मनिका काउच पर सोई पड़ी थी. उन्होंने उठ कर रूम-सर्विस से चाय मँगवाई उतने में मनिका भी आँखें मलती हुई उठ बैठी थी.
"पापा!" मनिका ने अपने हमेशा के अंदाज में जयसिंह को पुकारा.

"हेय मनिका! उठ गई तुम? कब से सो रही हो…?" जयसिंह ने उसकी ओर देखते हुए सवाल किया.
"बस पापा आपके सोने के कुछ देर बाद मुझे भी नींद पर आ गई थी…" मनिका ने कहा.
"हम्म…"

थोड़ी देर बाद उनकी चाय आ गई. मनिका भी काउच से उतर कर जयसिंह के पास आ कर बैठ गई थी. जब उन्होंने अपनी चाय ख़त्म कर ली तो मनिका ने कहा,

"पापा चलो ना कहीं बाहर चलते हैं, कितने दिन से रूम में रुके हैं हम."

जयसिंह भी राजी हो गए और वे दोनों कैब ले कर गुडगाँव के ही एक मॉल में घूमने जा पहुंचे. कुछ देर तक यूँ ही तफ़रीह मारने के बाद जयसिंह ने सुझाया,

"मनिका यहाँ भी मल्टीप्लेक्स-थिएटर है, क्यूँ ना कोई मूवी ही देख लें…?" मनिका झटपट मान गई.

वहाँ एक तो 'जाने तू या जाने ना' ही लगी थी, जो वे पहले देख आए थे. दूसरी फिल्म थी 'जन्नत'. जयसिंह जा कर उसी के टिकट ले आए. मनिका को इल्म हुआ की उस फिल्म के हीरो को बॉलीवुड में 'सीरियल किसर' के नाम से जाना जाता है तो वह थोड़ी विचलित हो गई,

"Oh shit, ये तो इमरान की मूवी है… कुछ गलत-सलत ना हो भगवान इसमें…"

दरअसल मनिका ने चुपके-चुपके जो वेब-सर्च की थी उसके बाद से ही उसका मन और ज़्यादा विचलित हो गया था. उसी से ध्यान हटाने के लिए उसने अपने पिता से घूमने चलने को कहा था. लेकिन किस्मत के फेर ने उसे कहीं और ही ला कर खड़ा कर दिया था.

मनिका और जयसिंह मूवी हॉल में जा पहुंचे, वहाँ ज्यादातर आदमी ही थे.

कुछ देर में फिल्म शुरू हो गई.

फिल्म की कहानी में हीरो को एक बुकी के किरदार में दिखाया था जिसे एक लड़की से प्यार हो जाता है.

मध्यांतर के बाद भी कुछ देर तक फिल्म में कोई आपत्तिजनक सीन नहीं आया तो मनिका भी थोड़ा सहज हो गई. उधर फिर एक बार जयसिंह मनिका के साथ कोल्ड-ड्रिंक शेयर कर रहे थे. उनका एक हाथ भी कुर्सी के हैण्ड-रेस्ट पर रखे मनिका के हाथ पर था.

लेकिन मनिका का सोचना सही था, फ़िल्म सीरियल किसर की थी. अचानक फिल्म में एक किसिंग-सीन आ ही गया. हीरो बहुत ही प्यार से हीरोइन के होंठों को चूमने लगा.

जयसिंह को अपने हाथ के नीचे रखे मनिका के हाथ के अकड़ जाने का एहसास हुआ.

सीन कुछ ही सेकंड चला होगा लेकिन तब तक मनिका ने अपना हाथ हौले से खींच कर जयसिंह के हाथ से हटा लिया था. उधर पूरे थिएटर में ठहाके और गंदे कमेंट्स आने चालू हो गए. आख़िर गुड़गाँव की जनता थी.

"चूस ले चूस ले… ओओओ…"
"मसल-मसल इमरान…! हाहाहा, हाहाहा!"
"वाह सीरियल किसर… आहाहाहा…"
एक आदमी ने तो बेशर्मी की हद ही पार कर दी थी,
"डाल दे साली के… डाल डाल…"

मनिका का सिर ऐसे कमेंट सुन शर्म से झुक गया, उसका बदन गुस्से से तमतमा रहा था.

"कैसे गंदे लोग हैं यहाँ पर… बेशर्म… हुह."

–​
 

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17 - चक्रव्यूह

बाकी की फिल्म कब ख़त्म हुई मनिका को आभास भी नहीं हुआ. उसका पूरा समय वहाँ आए मर्दों को कोसने में ही बीत गया था. फिल्म देखने के बाद मनिका और जयसिंह ने वहीं मॉल के फ़ूड-कोर्ट में खाना खाया और रात हुए वापस अपने होटल पहुंचे.

मनिका नहा कर बाहर निकली तो पाया कि एक बार फिर जयसिंह काउच पर तौलिया लपेटे बैठे हुए थे. आज उन्होंने ऊपर कुरता भी नहीं पहना हुआ था. जयसिंह उसे देख कर मुस्कुराए और उठ खड़े हुए. मनिका ने एक तरफ हट कर अपने पिता को बाथरूम में जाने का रास्ता दिया व जा कर बेड पर बैठ गई.

बाथरूम से बाहर आने से पहले मनिका ने एकबारगी सोचा था कि अगर आज भी उसके पिता पिछली रात की भाँति सामने नंगे बैठे हुए तो वह क्या करेगी? पर फिर उसने यह सोचकर अपने मन से वह बात निकाल दी थी कि वो सिर्फ एक बार अनजाने में हुई घटना थी.

लेकिन बाथरूम से बाहर निकलते ही जयसिंह से रूबरू हो जाने पर मनिका की नज़र सीधी उनकी टांगों के बीच गई थी. आज भी जयसिंह ने टांगें इस पिछली रात की तरह ही खोल रखीं थी, लेकिन आज उन्होंने एक सफ़ेद अंडरवियर पहन रखा था. मनिका की धड़कन बढ़ गई थी. अंडरवियर पहने होने के बावजूद जयसिंह के लंड का उठाव साफ़ नज़र आ रहा था. अंडरवियर में खड़े उनके लिंग ने उसके कपड़े को पूरा खींच कर ऊपर उठा दिया था. मनिका ने झट से अपनी नज़र ऊपर उठा कर अपने पिता की आँखों में देखा था.

आज जयसिंह ने जानबूझकर अंडरवियर पहने रखा था ताकि मनिका को शक न हो जाए कि वे उसे अपना नंगापन इरादतन दिखा रहे थे. लेकिन फिर कुछ सोच कर उन्होंने अपन शर्ट और बनियान निकाल दिए थे, आखिर मनिका को सामान्य हो जाने का मौका देना भी तो खतरे से खाली नहीं था. बाथरूम से निकलते ही मनिका की प्रतिक्रिया को वे एक क्षण में ही ताड़ गए थे, और मुस्कुराते हुए नहाने घुस गए.

जब जयसिंह मनिका के करीब आ बाथरूम में गए थे तब मनिका की साँस जैसे रुक सी गई थी. बिना शर्ट और बनियान के जयसिंह के बदन का ऊपरी भाग पूरी तरह से उघड़ा हुआ था. हालाँकि मनिका ने अपने पापा को घर में बनियान पहने देखा था अपर आज उनका चौड़ा सीना और बलिष्ठ बाँहें देख मनिका शरमाए बिना न रह सकी.

बेड पर बैठे हुए उसके मन में फिर से कौतुहल जाग उठा था. मनिका को दोपहर में वेब-सर्च कर देखी हुई चीजें याद आने लगी.

–​

पहले-पहल तो सर्च में उसे सिर्फ़ प्राकृतिक विज्ञान वाली तस्वीरें दिखीं थी. लेकिन फिर उसके ब्राउज़र में लिखा आया ‘Turn Off Safe Search’. उसके बाद उसने नई सर्च की ‘Real Penis’ तो उसे विभिन्न प्रकार के लंडों की फ़ोटोएँ दिखीं. मनिका ने घबरा कर एक बार तो ब्राउज़र बंद कर दिया था, और डरते हुए बेड पर लेटे जयसिंह की तरफ़ देखा था. पर कुछ पल बाद उसके कौतुहल ने उसे फिर से सर्च करने को उकसाया था.

सर्च में जो लंड नज़र आ रहे थे उनका साइज़ उसे छोटा लगा. उसने “Real Penis Size" लिख कर भी सर्च किया. इस बार कुछ सिकुड़े हुए और कुछ खड़े लंड उसकी स्क्रीन पर आए. उसने पढ़ा कि मर्दों के उत्तेजित होने पर उनका लिंग इरेक्ट यानी खड़ा हो जाया करता है.

"तो क्या पापा का वो… erect… था?" उसकी साँसें गरम होने लगी थी.

फिर उसने “Erect Penis Size" सर्च किया. इस बार छोटे-बड़े कई लंड उसके सामने थे. उन्हीं में से एक को देख उसका दिमाग़ झनझना उठा. काफ़ी बड़ा और मोटा लंड था वो, बिलकुल उसके पापा जैसा. उसने एक काँपती अंगुली से लिंक पर क्लिक किया. वो किसी सेक्स फ़ोरम का लिंक था जिसमें लोगों ने ‘Dick Pics’ डाल रखी थी. वहाँ लिखे कॉमेंट्स को देख मनिका को पता चला कि मर्दों के प्राइवट पार्ट को ‘Dick, Cock और Dong' भी कहा जाता है.

यह सब देख उसके गाल सुर्ख़ होने लगे थे.

तभी उसकी नज़र एक कॉमेंट पर पड़ी, किसी लड़की के अकाउंट से लिखा था,

“Nice Big Black Cock!”

मनिका के मन में जयसिंह के लंड के लिए ख़याल आया था,

“Papa has a big black cock…"

उसका चेहरा और बदन तमतमा उठे थे. उसने एक बार फिर ब्राउज़र बंद कर दिया, लेकिन पापी मन ने उसे दोबारा सर्च करने को कहा. उसने लेटे-लेटे जयसिंह की तरफ़ शर्मिंदगी से देखा, वे तो बेख़बर सो रहे थे.

मनिका ने फिर से फ़ोन में सर्च खोली, और लिखा ‘Big Black Cock’.

इस बार जो सामने आया उसने उसके होश उड़ा दिए थे.

काले-काले मोटे अफ़्रीकन लंड वाले आदमी और उनके साथ गोरी-गोरी लड़कियाँ. इस बार ज़्यादातर पॉर्न साइट्स के लिंक खुले थे. वो नजारा देख मनिका कंपकंपा उठी. एक फ़ोटो में एक जवान सी लड़की और एक अधेड़ काला व्यक्ति नंगे खड़े थे. उस लड़की ने उस आदमी का लंड पकड़ रखा था. लिंक का नाम था ‘Big Black Cock Lover’ और आगे उस पॉर्न साइट का नाम था.

उसने अनायास ही वो लिंक खोल लिया. आगे जो था वो उसकी ज़िंदगी बदल देने वाला था.

वेबसाइट पर उस काले अधेड़ मर्द और उस लड़की कि क्रमवार फ़ोटोएँ थीं. जिसमें वो लड़की आकर उसके रूम का गेट बजाती है. वो गेट खोलता है तो लड़की शरारत भरी मुस्कान से उसे देखती है. फिर लड़की अंदर आ जाती है. अगली फ़ोटो में वे दोनों कुछ बात कर रहे होते है. लड़की ने अपना वक्ष जैसे आगे निकाल उस आदमी के सामने तान रखा होता है, और उसके चेहरे पर शरारती हँसी होती है.

फिर उसके आगे की फ़ोटोज़ ने जैसे मनिका का रंग उड़ा दिया था.

वो अधेड़ सा आदमी उस जवान लड़की को अपनी गोद में ले लेता है, फिर उसे नंगी करने लगता है. फिर यकायक उसे बेड पर फेंक देता है, लड़की के चेहरे पर अचरज का भाव होता है. फिर वो आदमी खुद भी नंगा हो जाता है और लड़की की तरफ़ बढ़ता है. लड़की ख़ुशी-ख़ुशी अपनी टांगे हवा में उठा कर खोल लेती है. अब वो आदमी उस लड़की की गुलाबी सी योनि चाट रहा होता है. अगली फ़ोटो में वो लड़की उसका लंड चूसते हुए दिखती है. फिर वो आदमी अपना लंड उस लड़की की योनि में ठूँसता है. इसपर लड़की के चेहरे का रंग उड़ा हुआ होता है. चुदाई की फ़ोटोज़ का एक क्रम आता है, जिसमें आदमी के चेहरे पर वहशत और लड़की के चेहरे पर मज़ा झलक रहा होता है. अगली फ़ोटो में लड़की घुटनों के बल बैठी होती है और आदमी अपने हाथ में लंड लिए होता है. उसकी बड़ी-बड़ी आँखें ऊपर आदमी को देख रही होतीं हैं. आख़िरी फ़ोटो में लड़की के मुँह पर आदमी के लंड से कुछ गंदा सा सफ़ेद पदार्थ निकला होता है. लड़की जीभ से उसे चाट रही होती है.

अब तक मनिका का बदन सुन्न पड़ चुका था.

“OH GOD! ये सब कितना गंदा है… हाय! मैं भी क्या देख रही हूँ."

मनिका ने बैक बटन दबाया. इस बार सर्च पेज पर उसे कुछ हिंदी रिज़ल्ट भी दिखे, जिनमें "मोटा लंड" और "खड़ा लौड़ा" जैसे शब्द लिखे थे.

"छीः… ये तो गंदी गालियाँ होतीं है". मनिका मुँह बनाते हुए सोचा था.

उसने ब्राउज़र बंद किया और जल्दी से अपनी हिस्ट्री डिलीट की थी.

–​

हालाँकि सेक्स के बेसिक कॉन्सेप्ट से भी वो वाक़िफ़ थी लेकिन उसने ये सब पहली बार देखा था. छोटे शहर में पली-बढ़ी मनिका को हिंदी फ़िल्मों में दिखाया जाने वाला प्यार ही मालूम था. उसमें भी किस्स-विस्स जैसी चीजें उसे असहज कर देतीं थी. सो इतने बड़े-बड़े लंड और सेक्स करने के अश्लील तरीक़े ने उसका सिर चकरा गया था और वह सो गई थी.

शायद इसीलिए आज फ़िल्म के दौरान सुने अभद्र कॉमेंट्स से उसे ज़्यादा ग़ुस्सा आ रहा था. क्योंकि सेक्स के तरीक़े ने उसे अंदर ही अंदर आतंकित कर दिया था और अब वह उन मर्दों का आशय समझ रही थी.

"Oh… thank god! आज पापा अंडरवियर पहने हुए थे… लेकिन फिर से मैंने उनके प्राइवेट पार्ट को… देख लिया… मतलब अंडरवियर में भी उनका बड़ा सा… डिक… हे राम! कैसा नाम है डिक… बिग ब्लैक कॉक!"

एक बार फिर उसका बदन तमतमा गया.

"Shit! मैं फिर से ऐसा-वैसा सोचने लगी…! पर पता नहीं पापा कैसे इतना बड़ा… पैंट में डाल के रखते हैं? नहीं-नहीं… ऐसा मत सोच… तकलीफ़ नहीं होती क्या उन्हें…? और सेक्स में वो गर्ल के अंदर जाता… हाय…! ये मैं क्या-क्या सोच रही हूँ… पापा को पता चला तो क्या सोचेंगे?"

जब जयसिंह नहा कर बाहर आए तो मनिका को टीवी देखते हुए पाया. मनिका ने ध्यान बंटाने के लिए टेलीविज़न चला रखा था. जयसिंह भी आकर उसके पास बैठ गए.

मनिका ने कनखियों से उनकी तरफ देखा, वे आज भी बरमूडा और टी-शर्ट पहने हुए थे.

जयसिंह ने मनिका की बाँह पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचा. वह उनका इशारा समझ गई और उनकी तरफ देखा. जयसिंह ने उसे उठ कर गोद में आने का इशारा किया. मनिका थोड़ा सकुचा गई, पर फिर भी उठ कर उनकी गोद में आ बैठी. आज वह उनकी गोद से थोड़ा हटकर उनकी जाँघ पर बैठी थी.

"क्या कुछ चल रहा है टीवी में…?" जयसिंह ने पूछा.
"कुछ नहीं पापा… वैसे ही चैनल चेंज कर रही थी बैठी हुई. आज दिन में सो लिए थे तो नींद भी कम आ रही है." मनिका ने बताया.
"हम्म…" जयसिंह ने टीवी की स्क्रीन पर देखते हुए कहा.

कुछ देर वे दोनों टेलीविज़न देखते रहे, मनिका थोड़ी-थोड़ी देर में चैनल बदल दे रही थी. कुछ पल बाद जब मनिका ने एक बार फिर चैनल चेंज किया तो ‘ETC’ चल पड़ा. उस पर 'जन्नत' फिल्म का ही ट्रेलर आ रहा था. जयसिंह को बात छेड़ने का मौका मिल गया, उन्होंने बात शुरू की,

"अरे मनिका! बताया नहीं तुमने कि मूवी कैसी लगी तुम्हें? पिछली बार तो फिल्म की बातों का रट्टा लगा कर हॉल से बाहर निकली थी तुम…"
"हेहे… ठीक थी पापा…" मनिका झेंप गई.
"हम्म… मतलब जंची नहीं फिल्म आज…?" जयसिंह ने मनिका से नजर मिलाई.
"हेह… नहीं पापा ऐसा नहीं है… बस वैसे ही, मूवी के हीरो-हीरोइन कुछ खास नहीं थे… और क्राउड भी गंवार था एकदम… सो… आपको कैसी लगी?" मनिका ने धीरे-धीरे अपने मन की बात कही और पूछा.
"मुझे तो बिलकुल पसंद नहीं आई." जयसिंह ने कहा.
"हैं? क्या सच में…?" मनिका ने आश्चर्य से पूछा.
"और क्या जो चीज़ तुम्हें नहीं पसंद वो मुझे भी नहीं पसंद…" जयसिंह ने डायलॉग मारा.
"हाहाहा पापा… कितने नौटंकी हो आप भी… बताओ ना सच-सच…?" मनिका हँस पड़ी.
“हाहा… सच कहूँ तो मुझे भी कुछ ख़ास नहीं लगी." जयसिंह ने कहा, "और क्राउड तो अब हमारे देश का जैसा है वैसा है."
"हुह… फिर भी बदतमीजी की कोई हद होती है. पब्लिक प्लेस का कुछ तो ख़याल होना चाहिए लोगों को…" मनिका ने नाखुशी जाहिर करते हुए कहा.
"हाहाहा… अरे भई तुम क्यूँ खून जला रही हो अपना?" जयसिंह ने मनिका की पीठ थपथपाते हुए कहा.
"और क्या तो पापा… गुस्सा नहीं आएगा क्या आप ही बताओ?" मनिका का आशय थिएटर में हुए अश्लील कमेंट्स से था.
"अरे अब मैं क्या बताऊँ… हाहाहा." जयसिंह बोले, “some people get excited you know…”
“हाँ… I don’t know why… ये सब आदमी लोग ही इतना… excited… हो जाते हैं, आपने देखा किसी लड़की या लेडी को ऐसा करते हुए?" मनिका ने जयसिंह के ढुल-मुल जवाब को काटते हुए कहा.
"हाहाहा भई तुम तो मेरे ही पीछे पड़ गई… मैं तो किसी को कुछ नहीं कह रहा."

जयसिंह को एक सुनहरा मौका दिखाई देने लगा था और उन्होंने अब मनिका को उकसाना शुरू किया,

"अब हो जाते हैं बेचारे मर्द थोड़ा उत्साहित क्या करें…"
"हाँ तो पापा और भी लोग होते है वहाँ जिनको बुरा लगता है… और ये वही मर्द हैं आपके जिनका आप कह रहे थे कि बड़ा ख़याल रखते हैं गर्ल्स का…" मनिका ने मर्द जात को लताड़ते हुए कहा.
"अच्छा भई… ठीक है सॉरी सब मर्दों की तरफ से… अब तो गुस्सा छोड़ दो." जयसिंह ने मामला सीरियस होते देख मजाक किया.
"हेहे… पापा आप क्यूँ सॉरी बोल रहे हो… आप उनकी तरह नहीं हो." मनिका ने भी अपने आवेश को नियंत्रित करते हुए मुस्का कर कहा.

इस पर जयसिंह कुछ पल के लिए चुप हो गए. मनिका ने उनकी तरफ से कोई जवाब ना मिलने पर धीरे से कहा,
"पापा?"

तो जयसिंह कुछ गंभीरता अख्तियार कर बोले.
“हाँ भई मान ली तुम्हारी बात… वैसे ये बात तुम्हारे या मेरे सही-गलत होने की नहीं है. हमारा समाज ही ऐसा है…”

चुप हो जाने की बारी अब मनिका की थी. मनिका ने कुछ पल जयसिंह की बात पर विचार करने के बाद कहा,

"पर पापा… ये आप कैसे कह सकते हो? Those people were abusing so badly…”
“Well, look at it like this… हम समाज के नाम पर बहुत सी पाबंदियों में जीते हैं. सो, जब कभी लोगों को लगता है कि वो समाज के कंट्रोल से बाहर हैं, तो ऐसी हरकतें कर बैठते हैं.”
“हम्म…” मनिका ने बस इतनी सी प्रतिक्रिया दी. सो जयसिंह आगे बोले,
"जिस तरह का सीन फिल्म में आ रहा था…"

जयसिंह का मतलब फिल्म में आए उस किसिंग सीन से था, मनिका थोड़ी सकपका गई,

"क्या वह हमारे समाज के चलन के अनुसार था..? हमारे समय में तो इस तरह की फिल्मों की कल्पना तक नहीं कर सकते थे."
"इह… हाँ पापा… but that does not give anybody the right to act so badly like that…" मनिका ने तर्क रखा.
“No it does not… पर समाज ने भी तो कल्चर के नाम पर हमें औरत और मर्द के बीच के रिश्तों पर पर्दा डालना ही सिखाया है… आज फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि परम्परा के नाम पर दबी हुई इच्छाएँ बाहर आने लगी हैं…”

मनिका सोच ही रही थी कि क्या कहे पर जयसिंह ने बात चालू रखी,

“और मेरा मतलब सिर्फ लड़कों या मर्दों से नहीं है. औरत की इच्छाओं का दमन तो सबसे ज्यादा हुआ है… लेकिन मैं ये कह रहा हूँ कि जब समाज के बनाए नियम टूटते हैं तो इंसान अपनी आज़ादी के जोश में कभी-कभी कुछ हदें पार कर ही जाता है."

जयसिंह के ज्ञान की गगरी ने फिर से मनिका को निरुत्तर कर दिया. वे आगे बोले,
"अब तुम ही सोचो, आज उन लड़कियों को बिगड़ैल और ख़राब नहीं कहा जाता जो अपने हिसाब से रहती हैं?”
“हाँ पापा, वो तो है.” मनिका सोचते हुए बोली.
“जिन लड़कियों के बॉयफ्रेंड होते हैं या जो सिगरेट-शराब पीती हैं, हमारा समाज तो उन्हें और भी बुरी नज़र से देखता है.” जयसिंह ने जाल बिछाना शुरू किया.
"हाँ… पर… वो भी तो गलत है ना…? I mean… शराब पीना…" मनिका ने तर्क से ज्यादा सवाल किया.
"कौन कहता है?" जयसिंह ने पूछा.
"सभी कहते हैं पापा… सबको पता है… it’s harmful." मनिका बोली.
"सभी कौन…? लोग-समाज-सोसाइटी यही सब ना?”
“जी…”
“अब शराब अगर ख़राब है तो लड़कों के लिए भी तो ख़राब होगी… या नहीं? पर उन्हें तो नहीं रोका जाता. आज अगर तुम्हारा भाई शराब पीने लगे और तुम भी पीने लगो तो ज़्यादा लानत किसपर आएगी?

जयसिंह अब टॉप-गियर में आ चुके थे.

“ऐसे ही अगर किसी लड़की को अपने पसंद के लड़के के साथ रहना है तो उसपर ज़्यादा तोहमत लगाई जाएगी लेकिन दूसरी तरफ़ अगर लड़का हो तो… चलता है… कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है.”
“हाँ पापा… ये तो मैं भी सोचती हूँ.”
तो फिर सोचो… इस समाज की सही और गलत की परिभाषा सबके लिए एक बराबर तो नहीं है… कि है?”
"अब मैं क्या बोलूँ पापा…? आप तो सबसे अलग सोचते हो सच में…” मनिका ने हल्का सा मुस्का कर कहा.

लेकिन फिर उसने एक और तर्क रखा,
“पर सोसाइटी की सब चीज़ें तो ख़राब नहीं है. अब वो लोग जैसे कर रहे थे वो भी तो ग़लत था ना?”
“हाँ बिलकुल ग़लत था, लेकिन हमारे-तुम्हारे हिसाब से…” जयसिंह बोले, “जैसे समाज की परिभाषा एक समान नहीं है, वैसे ही हमारी उनकी सोच भी तो अलग हो सकती है…”
"वो कैसे?" मनिका ने सवालिया निगाहें उनके चेहरे पर टिकाते हुए पूछा.
"वो ऐसे कि, वे लोग उसी तरह का सिनेमा देखने आए थे… it was their way of enjoying outside the rules of society… और हम अपने तरीक़े से फ़िल्म देखने गए थे.”
“But papa… we have to follow the rules of society in public place, privately you can do anything.” अपना तर्क सिद्ध होते देख मनिका ने कहा.
“बिलकुल सही कहा तुमने मनिका… privately we can do anything… but what does private mean?”
“It means being in your own space… I think.” मनिका ने अस्पष्ट सा उत्तर दिया था.
“हाँ, लेकिन उसका एक मतलब यह भी होता है… कि जहाँ तुम्हारी तादाद ज़्यादा हो, जहाँ तुम्हारी चले. है कि नहीं?”
“I guess so papa…”
“तो आज सिनेमा हॉल में ज़्यादा लोग कौन थे? वही लोग ना जो हूटिंग कर रहे थे?”
“जी.”
"चारों तरफ से आवाजें आ रही थी. अब सोचो अगर सिर्फ कोई एक अकेला होता तो समाज के ठेकेदार उसे वहाँ से भगाने में देर नहीं लगाते. लेकिन क्योंकि वे ज्यादा थे तो कोई कुछ नहीं बोला…”
“हाँ पर पापा… ऐसे लोगों को बोल भी क्या सकते हैं?”
“कुछ नहीं… because they have as much right to enjoy as you do… इसलिए मेरी मानो तो इतना मत सोचो इस बारे में.” जयसिंह ने कहा.

जयसिंह के तर्क मनिका के आत्मसात् किए सभी मूल्यों के इतर जा रहे थे. लेकिन उसे कोई प्रतिरोध भी नहीं सूझ रहा था.

“लेकिन पापा, ऐसे तो लोग फिर सोसाइटी के सभी रूल तोड़ देंगे.” मनिका ने एक और आशंका व्यक्त की.
“मनिका, तुम्हें क्या लगता है नहीं तोड़ते होंगे? Rules are meant to be broken… बशर्ते यह समझदारी से किया जाए.” जयसिंह ने कहा.
"मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा पापा… क्या कहना चाहते हो आप?" मनिका ने उलझन में पड़ते हुए सवाल किया.

जयसिंह का एक हाथ अब मनिका की कमर पर आ गया था. वे आगे बोले,
“देखो, भरी सड़क पर तेज गाड़ी चलाओगे तो पकड़े जाओगे कि नहीं? लेकिन अगर ख़ाली सड़क है और आस-पास कोई नहीं है तो तुम रफ़्तार के मज़े ले सकते हो. क्यूँ ग़लत कह रहा हूँ?”
“नहीं पापा, पर इसका हमारी बात से क्या लेना देना…”
“अरे अभी तुम्हीं ने तो कहा, प्राइवेट में जो मर्ज़ी आए करो… जब हम समाज के नियम खुले-आम तोड़ते हैं तो हज़ार लानतें लगती हैं… पर ऐसे भी लोग हैं जो किसी को बिना बताए अपने मन की मस्ती करते हैं…” जयसिंह ने दांव खेला, “ और उनमें तो तुम भी हो…”
"क्या मतलब पापा… मैंने क्या किया?" उसने हैरानी से पूछा.
"क्या मधु से तुम्हारी लड़ाई नहीं होती? वो तुम्हारी माँ है… समाज तो यही कहता है कि अपने माता-पिता का आदर करो… क्या अपनी माँ के सामने बोलना तुम्हें शोभा देता है?" जयसिंह ने कहा.

मनिका को उनकी बात से बेहद ठेस पहुँची.

"पर पापा मम्मी मुझे बिना बात के डांट देती है तो गुस्सा नहीं आएगा क्या? और मैं कोई हमेशा उनके सामने नहीं बोलती. पर जब छोटी-छोटी बात पर ग़ुस्सा करती हैं तो क्या करूँ…? अब आप भी मुझे ही दोष दे रहे हो."
"अरे!" जयसिंह ने अब अपना हाथ मनिका की कमर से पीठ तक फिरा कर उसे बहलाया,
"मैं तो हमेशा तुम्हारा साथ देता आया हूँ…"
"तो आप ऐसा क्यूँ बोले कि मैं मम्मी से बिना बात के लड़ती हूँ?" मनिका ने मुँह बनाते हुए अपना सिर उनके कंधे पर टिकाया.
“अरे मैं कह रहा हूँ, समाज ऐसा कहता है… मैंने ये कब कहा कि समाज सही है और तुम ग़लत… बेशक बड़ों का आदर करना अच्छी बात है लेकिन जैसा तुमने कहा कि इसका मतलब ये नहीं कि तुम्हारी माँ कुछ भी कहती रहे और तुम्हें सुनना ही पड़े.”
“हाँ पापा… पर सब आपके जैसा नहीं सोचते… उन्हें तो बस मैं ही ग़लत लगूँगी.”
“वही तो मैं कह रहा हूँ डार्लिंग… सो अब तुम अपनी माँ से हर बात शेयर नहीं करती… इस तरह तुम भी तो छुप कर समाज के नियम को तोड़ रही हो कि नहीं?” जयसिंह ने प्यार से उसे समझाया.
"हाँ पापा." मनिका को भी उनका आशय समझ आ गया था, “So papa you are saying that, it’s okay to break society’s rules if you are not doing anything wrong?”
“हाँ और नहीं…”
“मतलब?"
“मतलब, बात सही-ग़लत की नहीं है… मैं ये कह रहा हूँ कि… it’s okay to break society’s rules if you are enjoying yourself… समाज को सिर्फ उतना दिखाओ जितना उनकी नज़र में ठीक हो… कुछ समझी?"
"हाँ पापा कुछ-कुछ…" मनिका ज़रा मुस्काई.
“समाज के सही-ग़लत के चक्कर में मत पड़ो… अगर तुम्हें मज़ा आ रहा है तो बस… मज़ा करो. अगर मैं भी समाज के हिसाब से चलने लगता तो क्या हम यहाँ इतना वक्त बिताते?” जयसिंह ने मनिका का गाल थपथपाया.
“Oh papa. You are so open minded… कहाँ फँस गए बाड़मेर जैसी जगह पर…” मनिका हँस कर कहा.
“बस क्या बताऊँ… पर तुम्हें बात समझ आई कि नहीं?
"हाँ पापा… I think I am getting your point… कि हम सोसाइटी के रूल्स मानें ये ज़रूरी नहीं हैं… बस… we have to be careful while breaking them… है ना?" मनिका ने आँखे टिमटिमाते हुए कहा.
"हाँ… finally!” जयसिंह बोले.
"हीहीही. मैं इतनी भी बेवकूफ नहीं हूँ पापा…" मनिका हँसी.
"हाहाहा. बस समझाने वाला होना चाहिए." जयसिंह ने हौले से मनिका को अपनी बाजू में भींच कर कहा.
"तो आप हो ना पापा…" मनिका भी उनसे करीबी जता कर बोली.

जयसिंह ने बात ख़त्म नहीं होने दी.

"हाहाहा… मुझे लगा था तुम अपने-आप ही समझ गई होगी दिल्ली आने के बाद."
"वो कैसे?" मनिका ने फिर से कौतुहलवश पूछा.
"अरे वही हमारी बात… कुछ नहीं चलो छोड़ो अब…" जयसिंह आधी सी बात कह रुक गए.
"बताओ ना पापा!? कौनसी बात…?" मनिका ने हठ किया.
"अरे कुछ नहीं… कब से बक-बक कर रहा हूँ मैं भी…" जयसिंह ने फिर से टाला.
“Tell me na papa… please." मनिका ने भी जिद नहीं छोड़ी.
सो जयसिंह ने एक पल उसकी नज़र से नज़र मिलाए रखी और फिर हौले से बोले,
"वही, जब मैंने तुम्हें ब्रा-पैंटी लेने के लिए कहा था?"

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sharaabi

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Ye new update he ta wahi he story jaha xp pe thaa pm karna please
 

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18 - धर्मसंकट

मनिका के चेहरे पर लाली फैल गई. जयसिंह ने जान-बूझकर अंडरवियर ना कह, ब्रा-पैंटी शब्द का प्रयोग किया था.

"क्या हुआ मनिका?" मनिका के चुप हो जाने पर जयसिंह ने पूछा.
"कुछ नहीं पापा…" मनिका ने धीमी आवाज़ में कहा.
"बुरा मान गई क्या?" जयसिंह बोले. "मैंने तो पहले ही कहा था रहने दो…"
"उह… नहीं पापा. मुझे क्या पता था कि… आप उस बात का कह रहे हो… मैंने कहा न… I am sorry for that…" मनिका ने संकोच के साथ कहा.

इतने दिन बीत जाने के बाद उस घटना के जिक्र ने उसे फिर से शर्मिंदा कर दिया था.

"हाहा, अरे तुम न कहती थीं के कपड़े ही तो हैं…?" जयसिंह ने मनिका की झेंप कम करने के उद्देश्य से हँस कर कहा.
"हेहे… हाँ पापा." मनिका बोली. “लेकिन आपने ऐसा क्यूँ कहा कि मैं अपने-आप समझ गई हूँगी?" मनिका ने थोड़ा हौले से सवाल उठाया.
“हम्म… जब मैंने तुमसे वो बात कही तो तुम हमारे सामाजिक रिश्ते की वजह से ही तो बुरा मानी थी कि नहीं?”
“हाँ पापा.” मनिका ने हामी भरी.

जयसिंह ने आगे कहा,
"अगर वहीं मेरी जगह तुम्हारा कोई दोस्त, कोई लड़का होता तो भी शायद तुम्हारा रिऐक्शन अलग होता…”

जयसिंह की बात में एक सवाल भी छुपा था. मनिका एक और दफ़ा कुछ पल के लिए खामोश हो गई.

"नहीं पापा! मेरा ऐसा कोई लड़का दोस्त नहीं है." मनिका को न जाने क्यों सफ़ाई देने की ज़रूरत महसूस हुई थी.
“अरे भई, मैं कह रहा हूँ, शायद… पर तुम ग़ुस्सा तो इसीलिए हुई न कि… I am your father…”
“जी पापा… लेकिन मैं समझी नहीं कि आप…”
“मनिका, मैंने तुम्हें एक अडल्ट समझदार लड़की की तरह ट्रीट करते हुए वो बात कही थी… कि अपनी पसंद की चीज़ें ले लो…”

मनिका चुपचाप सुनती रही.

“और जब तुमने सॉरी बोला था तो मुझे लगा तुम्हें इस बात का एहसास हो गया है…" जयसिंह बोले, “अब तुमने क्या सोच कर माफ़ी मांगी थी यह तो तुम ही बता सकती हो…?"
"वो पापा… जब आप रूम में भी नहीं रुकते थे तब मैंने टीवी पर एक फ़िल्म देखी थी जिसमें… एक फ़ैमिली को दिखाया था. उसमे जो लड़की थी वो समुद्र-किनारे पर अपने पापा-मम्मी के सामने बीच-ड्रेस पहने हुए थी… तब मुझे लगा कि उसके पेरेंट्स उसे एन्जॉय करने से नहीं रोक रहे… और आपने भी डेल्ही में मुझे इतना फन करने दिया… और मैंने आपसे थोड़ी सी बात पर इतना झगड़ा कर लिया…"
मनिका ने धीरे-धीरे अपने पिता को बताया.
"हम्म… मैंने कहा वो सच है ना फिर?" जयसिंह ने मुस्का कर मनिका से पूछा.
"हाँ पापा…" मनिका ने सहमति जताई.
"लेकिन जैसा मैंने कहा ये हमारी प्राइवेट बात है, इसका ख़याल तुम्हें रखना होगा.” जयसिंह ने कहा.

इस बार जयसिंह ने सीधा मनिका को संबोधित करते हुए यह बात कही थी.

"हाहाहा… हाँ पापा… चिंता मत करो… इसका ध्यान तो मैं आपसे भी ज्यादा रखने लगी हूँ…" मनिका ने हँस कर कहा.
“Very good girl!" जयसिंह ने मनिका का गाल थपथपाते हुए कहा.

मनिका भी इठला कर मुस्कुरा दी थी.

"चलो अब सोएँ रात काफी हो गई है. कल काफी काम बाकी पड़ा है तुम्हारे एडमिशन का…"

कहते हुए जयसिंह ने मनिका की कमर पर रखे अपने हाथ से उसके नितम्बों पर दो हल्की-हल्की चपत लगा कर उसे उठने का इशारा किया. ऐसी अंतरंग बातचीत के बाद मनिका के दिल में एक ज्वार सा उठ रहा था.

"पापा! नींद नहीं आ रही आज… कुछ देर और बैठते हैं ना?" मनिका बोली.
"हम्म… ठीक है, वैसे भी एक-दो दिन की ही बात और है, फिर तो हम अलग-अलग हो जाएँगे." जयसिंह ने कुछ सोच कर कहा.
"ओह पापा! ऐसे तो मत कहो… we promised that nothing will change between us." मनिका ने उदासी से कहा.
"अरे हाँ भई… लेकिन घर जाने के बाद कुछ तो बदलाव आएगा ही… याद है ना… समाज को सिर्फ़ उतना ही दिखाओ जितना…”
“हाँ-हाँ, जितना उसे ठीक लगे…” मनिका ने जयसिंह की बात पूरी की.
“तब कह रहा हूँ… कि घर जाके हम थोड़े ही इस तरह साथ रह पाएंगे?" जयसिंह उसकी कमर और पीठ सहलाते हुए बोले, “वहाँ अगर तुम इस तरह मेरी गोद में बैठोगी धो मधु के फ़्यूज़ उड़ जाएँगे.”
“हाहाहा… हाँ पापा, वो तो है.” मनिका खिलखिलाई, “We have become too frank for Barmer after coming here, na?”
“Hmm… you think so?”
“Hehe… yes papa, I feel closer to you now… it feels like I can share anything with you.”
“You can darling.” जयसिंह ने मनिका को अपनी छाती से लगाते हुए कहा.

तभी मनिका को एक और बात याद आ गई जो उसके पिता ने कही थी और जिसका सच उसने बाद में महसूस किया था.

"पापा! एक बात बोलूँ?" फिर उसने उनके जवाब का इंतज़ार किए बिना ही आगे कहा, "आप सही थे आज…"
"किस बात के लिए?" जयसिंह ने कौतुहल से पूछा.
"वही जो आप कह रहे थे ना कि लड़कों से ज्यादा… men… मर्द या जो कुछ भी अपनी गर्लफ्रेंड का ज्यादा ख़याल रख सकते हैं." मनिका ने बताया.
"हाहाहा. अब ये कैसे लगा तुम्हें?" जयसिंह ने मजाक में पूछा.
"फिर वही, टीवी से पापा… हाहाहा!" मनिका ने हँसते हुए बताया.
"आप सो गए थे मैंने टीवी में नोटिस किया कि ज्यादातर हीरो-हिरोइन में उम्र का फ़रक होता है, फिर भी वे एक-दूसरे को डेट करते हैं… I mean… कुछ कपल तो एकदम आपकी और मेरी ऐज के होते हैं… so I realised that maybe you were right.”
"हाहाहा… धन्य है ये टीवी. अगर इसके चरण होते तो अभी छू लेता…" जयसिंह ने मजाक किया, पर उनका दिल ख़ुशी से नाच उठा था.
"हाहाहा… हेहेहे…" मनिका उनकी बात पर लोटपोट होते हुए हँस दी. "क्या पापा कितना ड्रामा करते हो आप हर वक्त… हाहाहा!"
"अरे भई मेरी कही हर बात टीवी पर दिखाते हैं तो मैं क्या करूँ…?" जयसिंह बोले.
"हाहाहा… तो आप भी किसी सेलेब्रिटी से कम थोड़े ही हो." मनिका ने हँसते हुए कहा.
"हाहा… और मेरी गर्लफ्रेंड भी है किसी सेलेब्रिटी जैसी ही…" जयसिंह ने मौका न चूकते हुए कहा.
"हेहेहे… पापा आप फिर शुरू हो गए." मनिका बोली.
"लो इसमें शुरू होने वाली क्या बात है?" जयसिंह बोले. "ख़ूबसूरती की तारीफ़ भी ना करूँ…?"
"हाहा… पापा! इतनी भी कोई हूर नहीं हूँ मैं…" मनिका ने कहा.

लेकिन मन ही मन उसे जयसिंह की तारीफ़ ने आनंदित कर दिया था और वह मंद-मंद मुस्का रही थी.

"अब तुम्हें क्या पता इस बात का के हूर हो की नहीं?" जयसिंह भी मुस्काते हुए बोले. "हीरे की कीमत का अंदाज़ा तो जौहरी को ही होता है…"
"हाहाहा… क्या पापा…? क्या बोलते जा रहे हो… बड़े आए जौहरी… हीही!" मनिका ने मचल कर कहा.

फिर जयसिंह को छेड़ते हुए बोली.

"वैसे क्या बात है आपने बड़े हीरे देख रखें हैं… हूँ?"
"भई अपने टाइम में तो देखें ही हैं…" जयसिंह शरारत भरी आवाज़ में बोले.
"हा…!" मनिका ने झूठा अचरज जता कर कहा. "मतलब आपकी भी काफ़ी गर्लफ्रेंडें होती थी?"
"हाहाहा अरे ये गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड का चलन तो अब आया है. हमारे जमाने में तो कहाँ इतनी आज़ादी मिलती थी. सब कुछ लुका-छिपा और ढंका-ढंका होता था." जयसिंह ने बताया.
"हेहेहे! हाँ बेचारे आप…" मनिका ने मजाक करते हुए कहा. फिर उसने जयसिंह को छेड़ने के लिए याद कराया, "तभी अब कसर पूरी कर रहे थे उस दिन टीवी में हीरोइनों को देख-देख कर… है ना?"
"हाहाहा…!" जयसिंह बस हँस कर रह गए.
"देखा उस दिन भी जब चोरी पकड़ी गई थी तो जवाब नहीं निकल रहा था मुँह से… बोलो-बोलो?" मनिका ने छेड़ की.
"अरे भई क्या बोलूँ अब… मैं भी इन्सान ही हूँ." जयसिंह ने बनावटी लाचारी से कहा.
"हाहाहा!" मनिका हँस-हँस कर लोटपोट होती जा रही थी.

उधर उसकी करीबी ने जयसिंह के लिंग को तान रखा था. जयसिंह को भी इस बात का एहसास नहीं हुआ था कि उनका लंड खड़ा है. क्योंकि दिल्ली आने के बाद से उनके लिए यह एक रोजमर्रा की बात हो गई थी. बरमूडे के आगे के हिस्से को उनके लंड ने पूरा ऊपर उठा रखा था.

"तो मतलब आप मेरी झूठी तारीफ़ कर रहे थे ना? आपको तो वो कटरीना-करीना ही पसंद आती है… जिनका सब कुछ ढंका-ढंका नहीं होता है!" मनिका ने हँसते हुए बोली.

इस बार वो उत्साह के मारे कुछ ज्यादा ही खुल कर बोल गई थी.

जयसिंह ने मन ही मन विचार किया,
"आज तो किस्मत कुछ ज्यादा ही तेज़ चल रही है… क्या करूँ? बोल दूँ के नहीं?"

फिर उन्हें अपना निश्चय याद आया कि दिमाग़ से ज्यादा अब वे काम-इच्छा का पक्ष लेंगे. वे बोले,
"हाहाहा. वैसे मनिका तुम भी कोई कटरीना-करीना से कम तो नहीं हो…! फैशन में तो तुम भी काफी आगे हो…"
"हीहीही… क्या बोल रहे हो पापा?" मनिका ने थोड़ा आश्चर्य से पूछा.
“अरे भई, इतने फ़ैशन वाले कपड़े पहनती हो, कल ही तो बताया था तुम्हें कि… you are so beautiful… पर तुम मेरी बात मानती ही नहीं.” जयसिंह बोले.
“हीहीही… पापा, आप भी ना… वैसे… thank you so much for the complement.”
“Anytime darling.” जयसिंह बोले, “पर घर पर थोड़ा ध्यान से रहना, कहीं तुम्हारी मम्मी ने देख लिए वो कपड़े तो मेरी जान को आफ़त कर देगी.”
“हाहा पापा… आपसे पहले तो मेरी जान को आफ़त होगी. चिंता मत करो, बिलकुल छुपा कर रखूँगी.”

जयसिंह और मनिका एक दूसरे की आँखों में आँखें डाल मुस्कुरा उठे थे. लेकिन फिर उनके बीच चुप्पी छा गई. कुछ पल बाद मनिका बोली,
“वैसे पापा… you surprised me… जब हम कपड़े ले रहे थे. मुझे लगा आप मना करोगे या नाराज़ होओगे उन कपड़ों के लिए.”
“हम्म. ऐसा क्यूँ लगा तुम्हें?”
“वैसे ही… you know… मम्मी नाराज़ होती रहती है ना… तो मुझे लगा आप भी…”
“हम्म… पर मैंने तो कभी नहीं टोका तुम्हें?”
“हाँ पापा… वैसे ही लगा मुझे… जाने दो, आप तो हो ही सबसे अच्छे.” मनिका ने प्यार से उन्हें देखते हुए कहा.
“हाहा वो तो मैं हूँ.” वे बोले, “वैसे मुझे तो उस दिन भी तुम्हारी लेग्गिंग बहुत पसंद आई थी जिनके लिए मधु ग़ुस्सा कर रही थी.”
“हेहे… हाँ तभी तो मुझे और दिला लाए.” मनिका बोली, “मम्मी का तो काम ही नुक़्स निकालना है.”

लेकिन फिर उसे वो टाइट और पारदर्शी लेग्गिंग्स याद आ गई जो उसने अपने पिता को पहन कर दिखाई थी. उसके गाल थोड़े लाल हो गए.

उधर जयसिंह ने थोड़ा अधीर मन से अंधेरे में एक तीर चलाया.
“हम्म… सच कहूँ तो मुझे लगता है मधु तुमसे थोड़ा जलती है…”
“हेहे पापा… क्या बोलते हो?” मनिका आश्चर्य से बोली.
“हाँ. शादी के बाद मुझे एहसास हुआ कि उसे अपनी ख़ूबसूरती का थोड़ा घमंड था… और अब जब तुम बड़ी हो गई हो तो शायद उसे लगता हो कि तुम उस से ज़्यादा सुंदर हो.” जयसिंह ने झूठा प्रपंच रचते हुए कहा, “जो कि तुम हो.”
“हाय पापा. सच में?”
“हाँ… मुझे ऐसा लगता है… क्यूँकि मैं भी कभी-कभी सोचता था कि मधु सिर्फ़ तुमसे ही इतना क्यूँ चिड़ी रहती है.”
“ओह पापा, कितनी ख़राब है मम्मी तो.” मनिका ने मुँह बनाते हुए कहा.
“वैसे तुम्हारी मम्मी भी इतनी ख़ूबसूरत नहीं थी जवानी में… वो फ़िल्मी हिरोइनें भी तुम्हारे सामने कुछ नहीं लगती सच कहूँ तो."
"इश्श पापा… बस करो इतना भी हवा में मत उड़ाओ मुझे…" मनिका ने शर्माते-इठलाते कहा.
"सच कह रहा हूँ… हाहा." जयसिंह ने हँस कर कहा.
"हीही पापा…" मनिका उनकी तारीफ़ से थोड़ा झेंप गई थी.

अब जयसिंह ने मनिका को थोड़ा और करीब खींचा. जिससे वह उनकी जाँघ पर खिसक कर उनसे सट गई. ऐसा करते ही उसकी जाँघ जयसिंह के खड़े लिंग से जा टकराई. मनिका को कुछ पल तो पता नहीं चला, पर फिर उसे जयसिंह के ठोस लंड का आभास होने लगा. उसने एक नज़र नीचे देखा तो वह फिर होश खोने के कगार पर आ खड़ी हुई.

बरमूडे के अन्दर तना उसके पिता का लंड उनकी गोद में किसी डंडे सी आकृति बना रहा था, और उसकी जाँघ से सटा हुआ था. यह देखते ही मनिका चिहुँक कर थोड़ा पीछे हट गई. उधर जयसिंह को भी मनिका की जाँघ पर अपने लंड के स्पर्श का पता चल चुका था. जब उसने अनायास ही अपने-आप को पीछे हटाया था, वे उसके चेहरे पर ही नज़र गड़ाए हुए थे.

मनिका ने भी झट नज़र उठा कर जयसिंह की तरफ देखा कि उनकी क्या प्रतिक्रिया होती है, पर उन्हें बिलकुल सामान्य पाया. उन्होंने उसका गाल फिर से थपथपाया और पूछा,
"नींद नहीं आ रही आज?"
"हाँ… हाँ पापा… स्स…सोते हैं चलो." मनिका ने थर्राते हुए कहा.

जयसिंह के लंड का आभास होने के बाद से मनिका की इंद्रियाँ जैसे पहली बार जाग उठी थी. उसे अब अपने पिता के बदन के हर स्पर्श का एहसास साफ़-साफ़ हो रहा था. उसके गाल पर रखा हाथ अब उन्होंने नीचे कर उसकी गर्दन पर रखा हुआ था. वहीं उनके दूसरे हाथ के स्पर्श ने उसकी हया को और ज्यादा बढ़ा दिया. उसने पाया कि जब से जयसिंह ने उसकी नितम्बों पर थपकी दी थी, तब से उनका हाथ वहीं था. हालाँकि उसके पापा पूरी तरह से उसके अधो-भाग को नहीं छू रहे थे, पर उसे एक हल्के से स्पर्श की अनुभूति हो रही थी. उसे अपने नीचे दबी जयसिंह की मांसल जाँघ की कसावट भी अब महसूस हो रही थी.

उसे ऐसा लग रहा था जैसे जहाँ-जहाँ उसका और उसके पापा का बदन छू रहा था वहाँ से एक गरमाहट सी उठ रही थी. वह सोने का बोल कर उनकी गोद से उठने लगी.
'पट्ट' की आवाज आई.

जयसिंह ने हल्के से उसके कूल्हे पर एक और चपत लगा दी थी.

इस बार मनिका को उनका स्पर्श अधिक प्रवेग से महसूस हुआ. उस थपकी की आवाज़ भी उसके कानों में आन पड़ी थी.

"चलो फिर सोते हैं…" जयसिंह भी मुस्काते हुए उठ गए.

–​

बिस्तर की तरफ बढ़ती हुई मनिका के क़दमों में एक तेज़ी थी. जयसिंह भी पीछे-पीछे ही आ रहे थे.

बेड पर चढ़ कर मनिका ने अपने पिता की तरफ देखा, उसको जैसे ताव आ गया. पिछली रात जब जयसिंह ने बरमूडा-शॉर्ट्स पहनी थी तो उनके लिंग के उठाव का पता मनिका को इसलिए चला क्योंकि उसने उनके नग्न दर्शन कर लिए थे, सो उसकी नज़र सीधा वहीं गई थी. लेकिन आज मानो जयसिंह का लंड पूरी तरह से तना हुआ था. शॉर्ट्स में एक डंडेनुमा आकृति बनी थी और जयसिंह के चलने के साथ हौले-हौले हिल रही थी.

जयसिंह मुस्कुराते हुए बिस्तर में घुस कर उसकी ओर करवट लिए लेट गए.

उन दोनों की नज़रें मिली.

जयसिंह उसकी निगाहों को ताड़ चुके थे और मुस्काए. मनिका भी क्या करती सो वह भी मुस्का दी. जयसिंह को जैसे कोई छिपा हुआ इशारा मिल गया था. वे खिसक कर मनिका के बिलकुल करीब आ गए.

इस तरह उनके अचानक पास आ जाने से मनिका असहज हो गई और उसका शरीर एक पल के लिए जड़ हो गया. जयसिंह ने उसके करीब आ कर अपना हाथ उसकी कमर में डाल लिया और अपना चेहरा उसके चेहरे के बिलकुल पास ले आए. उधर मनिका से हिलते-डुलते भी नहीं बन रहा था.

“Good night darling!" जयसिंह ने धीरे से कहा.
“Oh! Good night papa…” मनिका उनकी इस हरकत का आशय समझ थोड़ी सहज होने लगी.

जयसिंह ने मुस्का कर उसकी कमर से हाथ उठा उसकी ठुड्डी पकड़ी और अपना मुँह उसके चेहरे की तरफ बढ़ा दिया.

'पुच्च'

मनिका कुछ समझ पाती उस से पहले ही उन्होंने उसके गाल पर एक छोटा सा किस्स कर दिया था.

“I hope you will stop comparing me to Madhu now… hmm?” उन्होंने कहा.

मनिका की नज़रें उठाए नहीं उठ रहीं थी. जयसिंह के यकायक किए इस बर्ताव ने उसे स्तब्ध कर दिया था. किसी तरह उसने एक पल को उनकी तरफ देखा और हौले से कहा,
“No papa… I am really sorry for that.”
"हम्म. कोई बात नहीं…" वे बोले.

फिर अपने हाथ से उसके चेहरे से बाल हटाते हुए उसका गाल थपथपाया.

"ओह पापा." मनिका ने राहत की साँस ली.
"ठीक है…" जयसिंह बोले, "चलो अब यहाँ आओ और मुझे मेरी गुड-नाइट किस्स दो…"

मनिका एक पल के लिए ठिठकी. उसकी नज़र फिर से जयसिंह के लिंग पर चली गई थी. फिर उसने धीरे से आगे झुक कर अपने पापा के गाल पर पप्पी दे दी,

'पुच्च'

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19 - रात का नशा

मनिका पीछे हट कर फिर से अपनी जगह पर लेट गई थी.

जयसिंह ने लाइट बुझा कर नाईट-लैम्प जला दिया था. अब वे एक-दूसरे की तरफ करवट लिए सोने लगे. बाप-बेटी के बीच एक लुका-छिपी का खेल चल पड़ा था, कभी मनिका तो कभी जयसिंह आँख खोल कर एक-दूसरे को देख रहे थे. जब कभी उनकी आँखें साथ में खुल जाती थी तो दोनों झट से आँखें मींच लेते थे. पर उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान होती.

यूँ तो दिल्ली आने के बाद से मनिका और जयसिंह के बीच दुनियाँ-जहान की बातें हो चुकीं थी, लेकिन अभी तक उन्होंने अपने रिश्ते के दायरों का उल्लंघन नहीं किया था. हालाँकि कभी-कभी जयसिंह की चालाकी से उनके बीच की बातचीत ने कुछ रोचक मोड़ ज़रूर लिए थे. पर आज जिस तरह से जयसिंह ने बात घुमाते-घुमाते मनिका के सामने उनके रिश्ते की परिभाषा को बदल सा दिया था. उस से मनिका की सोच एक नया मोड़ लेने लगी थी. जयसिंह ने समाज को एक दीवार के रूप में पेश किया था, जिससे मनिका अशांत, और थोड़ी आतंकित हो गई थी.

वह लेटी-लेटी सोचने लगी,

"पापा भी कैसी अजीब बातें सोचते हैं… सबसे डिफरेंट… लड़कियों के बारे में… कि वो अपनी आज़ादी से रहें… सोसाइटी के बनाए हर रूल से उलट…! वैसे वे भी कुछ गलत तो नहीं कह रहे थे… I mean… अगर हम अपनी लाइफ़ अपने हिसाब से जीना चाहते हैं तो उससे सोसाइटी को क्यूँ दिक्कत होती है?"

उसे जयसिंह के कुछ तर्क सही लग रहे थे. वो अब आँखें मूँद सोच में पड़ गई,

"और पापा ने कहा कि उन फूहड़ लोगों का भी अपना लाइफ़ स्टाइल है वो चाहें मूवी में हूटिंग करें या कुछ और… पापा के हिसाब से बात तो तब गलत होगी जब वे किसी और को जान-बूझ कर परेशान करें या छेड़ें… और पापा ने सही कहा कि मैं भी मम्मी से बातें छुपाने लगी हूँ… हाँ क्योंकि वे हमेशा मुझसे चिढ़ती रहती हैं… पापा ही तो कहते हैं कि सब बातें सबको बताने की नहीं होती… मैंने भी तो यही सोचा था कि अगर मम्मी को पता चले कि हम यहाँ दिल्ली में ऐश कर रहे थे तो कितना बखेड़ा खड़ा हो जाएगा… जैसा मम्मी का स्वभाव है, हमें तो ज़िन्दगी भर ताने सुनने पड़ें शायद… और अगर..! अगर मम्मी को पता चले कि मैं पापा के सामने कैसे expose हो चुकी हूँ… वो भी दो-तीन बार… तो फिर तो गए समझो!"

जयसिंह की लगाई वैचारिक आग अब मनिका के मन में ज़ोर पकड़ती जा रही थी.

"कैसे हम दोनों इतने दिनों से एक ही रूम में रह रहे हैं और… वो अंडरगारमेंट्स वाली बात पर हुई लड़ाई… पापा ने कहा कि अगर उनकी जगह कोई और होता तो मैं शायद उतना ग़ुस्सा नहीं करती… क्या सच में? कभी किसी ने ऐसी बात तो कही नहीं है मुझसे… आखिर मूवीज़ में ये सब चलता है. पर पापा थे इसलिए मैंने इतना ग़ुस्सा किया… सुबह उनसे फिर से सॉरी कहूँगी… पापा कितने समझदार हैं और कितने कूल भी… उन्होंने कहा कि वे सच में मुझे एक अडल्ट की तरह ट्रीट करते हैं… हाँ वो तो है!"

मनिका ने करवट बदल ली.

–​

उधर जयसिंह लेटे हुए उसे देख रहे थे. उसके करवट बदलने पर उन्होंने अच्छे से आँखें खोल कर उसकी तरफ देखा था.

"आज तो पता नहीं क्या-क्या बोल गया मैं… पर कुतिया को ज़्यादा मौक़ा मिला नहीं मेरी बातें काटने का… साली के मन में पता नहीं क्या चल रहा होगा. कैसी मचकी थी छिनाल जब साली की जाँघ मेरे लंड से टकराई थी… पर फिर भी सब लग तो सही ही रहा है… वरना चुम्मा ना देती इतने आराम से… देखो कल कितना काम आता है ये ज्ञान…"

जयसिंह जानते थे कि आज उनके बीच जैसी बातें हुई थी वैसी आज से पंद्रह दिन पहले तक नामुमकिन थी. ये उनके रचे चक्रव्यूह का ही कमाल था कि मनिका अब उनके चंगुल में फंसती चली जा रही थी. आख़िरकार अपनी बेटी की पटाने की उनकी चाल कामयाब होने लगी थी. क्योंकि उन्होंने मनिका के साथ एक कदम आगे बढ़ने के बाद दो कदम पीछे भी खींचे थे. कभी वे मनिका को शर्मिंदगी के कगार पर पहुंचा देते थे और कभी खुद ही उसे आश्वस्त कर देते कि उनके बीच होनेवाली बातों में कुछ गलत नहीं है. जाने-अनजाने मनिका उनकी और ज्यादा कायल हो जाती थी.

वैसे भी 22 साल की मनिका जयसिंह जैसे मंजे हुए व्यापारी के साथ क्या होड़ कर सकती थी? उन्होंने देखा कि मनिका ने अपना हाथ उठा कर अपने नितम्ब पर रखा हुआ था और एक बार उसे हल्के से सहलाया था. उनके चेहरे पर एक लम्बी मुस्कान तैर गई.

–​

"और मम्मी ने मुझे आज तक इतने अच्छे से ट्रीट नहीं किया है… छोड़ो मम्मी की किसे ज़रूरत है?"

मनिका के विचारों की उथल-पुथल जारी थी.

"अगर उन्हें पता चले कि पापा और मैं एक ही रूम में रहते है… और पापा ने मेरी ब्रा और थोंग देख ली थी तो…! हाय! पापा ने कैसा सताया था… और मैंने जो उनका डिक… देख लिया? हाय रे!"
मनिका एक पल के लिए फिर से सिहर उठी.

"पापा बार-बार कहते हैं कि हमें घर पर सावधान रहना होगा… पर ये बात तो मैं वैसे भी किसी से शेयर नहीं कर सकती… कितना बड़ा है पापा का बिग ब्लैक कॉक…! हाय…!"

मनिका ने उस सेक्स फ़ोरम के पेज पर कुछ लड़कियों के कॉमेंट्स भी पढ़े थे. कुछ ने लिखा था कि बड़े डिक वाले मर्द उन्हें बहुत भाते हैं. उसके कान लाल हो गए.

"कैसे खिसिया जाते हैं जब उनको सताती हूँ मूवी वाली हिरोइनों के नाम पर… क्या उनके छोटे-छोटे कपड़े देख कर पापा को कैसा लगता होगा… क्या उनका डिक इरेक्ट…? हाय…क्या सोचने लगी मैं!"
उसने अपने विचारों को फिर से थामा.

"और बोले की मैं मम्मी से भी ज्यादा ख़ूबसूरत हूँ… तो क्या उनको इरेक्शन हुआ होगा मुझे देखने के… नहीं-नहीं वो तो पापा हैं मेरे ऐसा थोड़े ही सोचेंगे…! छीः यार मनिका क्या सोचे जा रही हो…!"
मनिका के मन में उलटे-सीधे विचारों के ज्वार उमड़ते जा रहे थे.

"पर पापा तो कहते हैं कि सब रिश्ते समाज ने बनाए हैं. मैंने भी पागलों की तरह उन्हें बता दिया कि सब मुझे उनकी गर्लफ्रेंड समझते हैं… कैसे मजाक बनाते हैं उस बात का भी वे… और दो-तीन बार तो मुझे डार्लिंग भी कह चुके हैं… मनिका डार्लिंग… ये तो मैंने सोचा ही नहीं था… घर जाने के बाद देखती हूँ कितना डार्लिंग-डार्लिंग करके बुलाते हैं मुझे… पर वो तो वे प्यार से कहते होंगे… हे भगवान मैं क्या ग़लत-सलत सोचती जा रही हूँ आज ये…?”

मनिका ने एक बार फिर अपने ख़यालों को विराम देने की कोशिश की पर विफल रही.

"और आज तो… goodnight kiss… मुझे तो एक बार लगा कि… he is going to kiss my lips… जैसा उस मूवी में था… उनकी पकड़ कितनी मजबूत है, चेहरा घुमा तक नहीं सकी थी मैं… उस दिन कॉलेज में भी तो उनकी बाँहों में… सबके सामने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया था… उह्ह… और जब हम साथ सोए थे काउच पर! कितनी स्वीटली नींद आई थी…"

जयसिंह की बातों से सम्मोहित मनिका को अचानक उनका उसकी गांड पर चपत लगाना याद आ गया और उसे अचानक वहाँ एक स्पंदन का एहसास होने लगा. इसीलिए उसने हाथ से वहाँ पर सहलाया था जहाँ उसके पिता ने उसे छुआ था. यही देख जयसिंह की बाँछें खिल उठी थीं.

–​

जयसिंह जानते थे कि आज मनिका इतनी जल्दी नहीं सो पाएगी सो वे देर तक सोने का नाटक करते रहे थे.

"आहा आज तो मजा आ गया! साली का दिमाग़ पलटने में अगर कामयाबी मिल जाती है तो उसके बाद तो कुतिया के बचने का सवाल ही पैदा नहीं होता… जल्दी से सो जाए तो थोड़ा मजा कर लूँ काफी दिन हो गए… उफ़्फ़… अब तो वापसी का वक़्त भी करीब आ गया है."

करीब दो घंटे तक जयसिंह ने कोई हरकत नहीं की. जब उन्हें लगा कि अब तो मनिका गहरी नींद सो चुकी होगी, वे उसकी तरफ़ घूमे.

मनिका बेड की लेफ़्ट साइड में लेटी थी. उसकी करवट फिर से उनकी तरफ हो चुकी थी. कमरे में आज नाईट-लैम्प की हल्की रौशनी फैली हुई थी. मनिका बेफिक्र नींद के आँचल में समाए हुई थी. एक पल के लिए उसके मासूम-ख़ूबसूरत चेहरे को देख जयसिंह को अपने इरादों पर शर्मिंदगी का एहसास हो आया. पर फिर हवस का राक्षस उन पर दोगुनी गति से सवार हो गया.

"रांड छिनाल कुतिया… छोटी-छोटी कच्छीयाँ पहनती है मेरे पैसों से! ऐश करती है मेरे पैसों से… और मजे लेगा कोई और? हँह!"

जयसिंह ने उसे पुकारा.

“मनिका!"

आज उन्होंने अपनी आवाज़ भी नीची नहीं की. मनिका सोती रही.

आज जयसिंह की हिमाक़त बढ़ चुकी थी. वे अब बेख़ौफ़ खिसक कर मनिका के करीब हो कर लेट गए. उन्होंने अपना हाथ उसके गाल पर रखा और सहलाने लगे. कुछ पल के बाद उन्होंने अपने हाथ का अँगूठा मनिका के गुलाबी होंठों पर रखा और उन्हें मसला. मनिका के रसीले होंठों को मसलते-मसलते उन्होंने अपना अँगूठा उसके मुँह में डाल दिया. मनिका के होंठों पर लगे लिपग्लॉस की ख़ुशबू उसकी साँसों के साथ बाहर आने लगी थी. जयसिंह की उत्तेजना बढ़ने लगी, उनका इरादा सिर्फ मजे लेने का नहीं था.

मनिका ने अपना दाहिना हाथ अपने सिर के नीचे रखा हुआ था और बायाँ हाथ मोड़ कर अपनी छाती के सामने बेड पर. जयसिंह ने बेड पर रखे उसके हाथ को धीरे-धीरे सहलाया. थोड़ा आश्वस्त होने पर वे खिसक कर मनिका के क़रीब आ गए और उसका हाथ उठा अपनी कमर पर रख लिया. दोनों के बीच अब सिर्फ कुछ ही इंच की दूरी थी. जयसिंह ने कुछ पल का विराम लिया. फिर उन्होंने अपना बायाँ हाथ धीरे-धीरे मनिका की कमर के नीचे घुसाना शुरू किया. कुछ पल की कोशिश के बाद उन्हें सफलता मिल गई और वे फिर थोड़ा रुक गए. उसके बाद वे अपना दाहिना हाथ मनिका की पीठ पर ले गए और उसके नीचे दबे अपने बाएँ हाथ से उसकी कमर को थाम लिया. इसके बावजूद मनिका ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. जयसिंह ने अब अपने बाजू कस मनिका को अपने से चिपटा लिया.

कुछ पल जयसिंह यूँ ही अपनी सोती हुई बेटी को बाँहों में लिए रहे, फिर एकदम से उसे अपने साथ खींचते हुए सीधे हो कर लेट गए. उनके ऐसा करते ही मनिका भी उनके साथ ही खिंच कर बेड पर उनकी साइड आ गई. इस दौरान मनिका जैसे ही थोड़ा ऊपर हुई थी उन्होंने उसके नीचे दब अपना हाथ ऊपर कर उसकी बगल में डाल लिया था. अब मनिका आधी उनकी बगल में और आधी उनकी छाती पर लगी हुई सो रही थी.

जयसिंह के इस कारनामे ने मनिका की नींद को थोड़ा कच्चा कर दिया था और वह थोड़ा हिलने-डुलने लगी. जयसिंह ने जड़वत: हो आँखें मींच ली ताकि उसके उठ जाने की स्थिति में बचा जा सके. लेकिन मनिका ने थोड़ा सा हिलने के बाद अपना सिर उनकी छाती पर टिकाया और अपनी एक टांग उठा कर उनकी जाँघ पर रख कर सोने लगी. जयसिंह को अपनी जाँघ से सटी अपनी बेटी की उभरी हुई योनि का आभास मिलने लगा और वे दहक उठे.

अब जयसिंह ने अपना दाहिना हाथ, जो अभी मनिका की पीठ पर था, उसे नीचे ले जा कर उसकी टी-शर्ट का छोर पकड़ा और ऊपर उठाने लगे. क्योंकि आज उनका एक हाथ मनिका के नीचे था, सो टी-शर्ट ऊपर करने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा. कुछ ही देर में वे अपनी बेटी की टी-शर्ट उसकी कमर से ऊपर कर उसकी पीठ तक उघाड़ चुके थे. पीछे से ऊपर होती टी-शर्ट आगे से भी ऊपर हो गई थी. मनिका की नाभि से ऊपर तक उसका बदन अब नग्न था.

जब जयसिंह को मनिका की टी-शर्ट के नीचे उसकी ब्रा का एहसास हुआ तो वे एक पल के लिए रुक गए. उनकी धड़कनें उनका साथ छोड़ने को हो रहीं थी. उन्होंने अब मनिका की टी-शर्ट को छोड़ा और धीरे-धीरे उसकी नंगी पीठ और कमर सहलाने लगे.

मनिका के नीचे दबे होने की वजह से वे अपना सिर उठा कर उसका नंगापन तो अच्छे से नहीं देख सकते थे, लेकिन अब उनके हाथ ही उनकी आँखें बन चुके थे. उन्होंने अब एक और दुस्साहसी कदम उठाते हुए, मनिका का लोअर भी नीचे करना शुरू कर दिया. लेकिन कुछ पल बाद उन्हें रुकना पड़ा क्योंकि लोअर मनिका के नीचे दबा हुआ था और उसने एक पैर भी मोड़ रखा था. फिर भी उन्होंने कुछ देर की कोशिश के बाद अपनी सोती हुई बेटी की गांड का ऊपरी हिस्सा उसके लोअर से बाहर निकाल ही लिया.

मनिका की सेक्सी थोंग पैंटी का इलास्टिक और उसके नितम्बों के बीच फंसा पैंटी का पतला सा पिछला भाग अब उघड़ चुके थे. जयसिंह हौले-हौले मनिका की गांड से लेकर पीठ तक हाथ चला रहे थे. मनिका के मखमली स्पर्श ने उनके लंड को तान दिया था और वह अब मनिका की जाँघ के नीचे दबा हुआ कसमसा रहा था.

जयसिंह ने अपने दाहिने हाथ को उनकी टांग पर रखी मनिका की जाँघ के नीचे डाला और अपने लंड को सीधा कर थोड़ा आज़ाद किया. वे अपना हाथ वापस निकालने लगे ही थे कि उनकी उत्तेजना चरम पर आ पहुँची. उन्होंने अपना हाथ बाहर न निकाल, मनिका की टांगों के बीच दे दिया और उसकी जवान योनि को छुआ. जयसिंह के बदन में मानो गरमाहट का एक सैलाब सा उठने लगा. मनिका की योनि उनके हाथ में किसी तपते अंगारे सी महसूस हो रही थी. वे आनंद से निढाल हो गए और बरबस ही अपनी बेटी की कसी हुई चूत को दबाने लगे.

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