27 - पीरियड
अगली सुबह जब मनिका की आँख खुली तो उसे अपने बदन में आनेवाले मासिक परिवर्तन की आहट महसूस हुई.
पास में कनिका बेफ़िक्र सो रही थी. उसने एक टी-शर्ट और लम्बा सा नेकर पहना था, जिसमें उसकी कुछ-कुछ उघड़ी जाँघें देख मनिका को अपने पिता के साथ बिताई वह रात याद आ गई.
“पापा भी उठे होंगे तो मुझे ऐसे ही पड़ा देखा होगा…” उस समय की अपनी परिस्थिति याद कर मनिका को हल्की लाज महसूस हुई.
वो कनिका को उठाने को हुई, फिर उसे याद आया कि आज रविवार था और कनिका के स्कूल की छुट्टी थी. सो वह धीमे से उठ अपनी अलमारी के पास गई और रात को उसमें रखा अपना लांज़रे बॉक्स निकला.
अब कुछ दिन थोंग छोड़कर नॉर्मल पैंटी पहनने का वक्त आ गया था.
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जब तक मनिका और कनिका नहा धो कर नीचे आए, नाश्ता लग चुका था. जयसिंह एक उदासीन सा चेहरा लिए मधु अपनी प्लेट में पोहा उलटते देख रहे थे. लड़कियों के आते ही उनका चेहरा खिल उठा.
“Good morning papa…” उनकी दोनों बेटियाँ एक स्वर बोलीं.
“Good morning, good morning… बैठो बैठो.” जयसिंह ने मुस्कुरा कर दोनों का अभिवादन स्वीकारा.
मनिका और कनिका उनके सामने की ओर बैठ गईं.
“मम्मी… हितेश कहाँ है?” मनिका ने पूछा.
“सो रहा होगा… जब से मोबाइल लेकर दिया है उसे, टाइम से नहीं सोता ये लड़का.” मधु बोली.
फिर उसकी माँ ने हॉल की सीढ़ियों के पास जा कर आवाज़ दी, “हितेश… नाश्ता कर ले नीचे आकर, पापा इंतज़ार कर रहे हैं.”
हालाँकि मनिका, कनिका और जयसिंह नाश्ता शुरू कर चुके थे. लेकिन पिता के नाम से घर के लड़कों को अक्सर डराया जाता रहा है और मधु वही पैंतरा आज़मा रही थी.
कुछ देर में आँखें मलता हुआ हितेश भी डाइनिंग टेबल पर आ बैठा. मधु भी कुर्सी खींच बैठ गई, खाने-पीने और बातचीत का दौर चल पड़ा. नाश्ता कर लेने के बाद जयसिंह उठ कर हाथ धोने चल दिए.
छुट्टी का दिन था लेकिन जयसिंह अपने दफ़्तर का एक चक्कर लगा कर आना चाहते थे, साथ ही दिल्ली में इतने दिन लगाने पर उनके रोज़मर्रा के संगी-साथी उलाहने देने लगे थे. सो उन्होंने अपने ड्राइवर को बुला रखा था ताकि कुछ काम निपटा लिया जाए और कुछ मौज-मस्ती.
वे हाथ धोकर डाइनिंग टेबल की तरफ़ लौटे. मनिका और बाक़ी परिवार अभी भी चाय-नाश्ता करते हुए बतिया रहे थे.
“ठीक है भई… चलता हूँ मैं…” जयसिंह ने कहा.
“Okay papa…” कनिका दूध का घूँट भरते हुए बोली.
“Bye papa…” हितेश ने अपने फ़ोन में देखते हुए कहा.
“जी पापा…” मनिका ने थोड़ा सकपका कर, थोड़ा मुस्का कर कहा.
उनकी नज़र मिली. फिर मधु की आवाज़ आई,
“ठीक है ठीक है, जाइए अब, हरी कब से बाहर गाड़ी स्टार्ट किए बैठा है. उसको कुछ कहा करो आप… AC चला कर ना बैठा करे… फ़ालतू तेल जलाता है.”
“अरे तुम भी ना… अच्छा चलो मैं जाता हूँ, कहीं हरी ने सारा तेल जला दिया तो क्या करेंगे… है ना?” जयसिंह मधु को छेड़ते हुए बाहर निकल गए.
तीनों बच्चों के चेहरे पर शैतानी मुस्कान देख मधु बोली,
“क्या बत्तीसी बघार रहे हो… चलो नाश्ता खतम करो और फिर होमवर्क करने बैठो तुम दोनों… और मनि, तू सामने ताऊजी के यहाँ मिल आना. सब पूछ रहे थे कल ही तेरा.”
“क्या मम्मी! आज तो संडे है. शाम को कर लूँगी होमवर्क… मैं भी जा रही हूँ दीदी के साथ…” कनिका मचलते हुए बोली.
“मुझे गौरव के घर जाना है, हमारा मैच है आज.” उधर हितेश ने कहा.
थोड़ी नोंक-झोंक के बाद मधु ने भी बच्चों के बहानों और टाल-मटोल के सामने हार मान ली.
“ठीक है भई… जाओ… लेकिन अगली बार स्कूल से कोई शिकायत आई तो मम्मी नहीं जाएगी… पापा को लेकर जाना अपने.”
उसके बाद मनिका और कनिका अपने कमरे में आ गए.
मनिका ने अपनी अटैची ख़ाली की और सामान अलमारी में रखने लगी. जयसिंह के दिलाए नए कपड़े निकालते वक्त वह कनखियों से कनिका पर नज़र रखे हुए थी. जब कनिका का ध्यान उसकी ओर नहीं था, उसने जल्दी से वो कपड़े अलमारी में पीछे की तरफ़ छुपा कर रख दिए थे. उसके बाद दोनों बहनें हँसते-बतियाते अपने ताऊजी के घर निकल पड़ीं.
जयसिंह और उनके बड़े भाई, जयंतसिंह के मकान आमने-सामने ही थे.
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दिन कैसे बीता पता ही नहीं चला.
मनिका के ताऊजी के एक बेटी और एक बेटा थे. बेटा बाहर नौकरी कर रहा था और बेटी वहीं बाड़मेर के कन्या महाविद्यालय में पढ़ रही थी व कनिका की हमउम्र थी.
ताऊजी और ताईजी से मिलने के बाद मनिका अपनी दोनों बहनों के साथ बतियाने बैठ गई थी. फिर उनका मूवी देखने का प्लान बन गया. नीरा ने पास ही एक सीडी वाले से ‘जाने तू या जाने ना’ की पायरटेड सीडी ला रखी थी. मनिका उन्हें थोड़े ही बताने वाली थी कि फ़िल्म तो वह देख चुकी है. लेकिन उस धुंधली तस्वीर और ख़राब साउंड वाली सीडी से फ़िल्म देखने में भी उसे बड़ा मज़ा आया. उसे हर सीन के साथ सिनेमा हॉल में अपने पिता के साथ बिताए पल याद आ रहे थे.
ताईजी के कहने पर मनिका और कनिका ने लंच उनके यहाँ ही किया था. उसके बाद तीनों लड़कियाँ फिर से बतियाने बैठ गईं.
आख़िर शाम ढले दोनों बहनें चलने को हुईं.
“आप भी आना ताईजी… मम्मी कह रही थी काफ़ी दिन हो गए हम सबने साथ में डिनर नहीं किया.” मनिका ने कहा.
“हाँ-हाँ बोलती हूँ तेरे ताऊजी को… दो दिन तो तेरे ताऊजी किसी काम से जयपुर जा रहे हैं. मम्मी को कहना बुधवार को मैं आ जाऊँगी दिन में… खाना वग़ैरह तैयार कर लेंगे. ये भी आ जाएँगे तब तक.” उसकी ताईजी बोलीं.
“जी ताईजी…”
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उधर जयसिंह भी ऑफ़िस का चक्कर लगाने के बाद अपने यार-दोस्तों से मिलने चले गए थे. लेकिन कुछ देर इधर-उधर की करने के बाद वे घर वापस लौट आए थे. पर घर से मनिका को नदारद पा उन्होंने लंच किया था और फिर सोने चले गए.
दरअसल घर आने के बाद उनके तेज रफ़्तार प्लान पर भी ब्रेक लग गया था. हालाँकि इसका अंदेशा उन्हें पहले से था लेकिन शायद अपनी और मनिका की सामाजिक परिस्थिति भाँपने में उनसे थोड़ी चूक हो गई थी. आज सुबह घर से निकलने से पहले हुआ वाक़या वे भूले नहीं थे. मनिका उनसे मुख़ातिब होते वक्त थोड़ी सकपकाई थी. सो उन्हें अब यह डर सताने लगा था कि कहीं बिछी-बिछाई बिसात उलट ना जाए. अगर मनिका फिर से घरेलू परिस्थितियों में ढल गई तो उनका प्लान कभी सफल नहीं हो सकेगा.
जब उनकी आँख खुली तब एक बार फिर से घर में शोरगुल का माहौल था. मनिका, कनिका और हितेश हॉल में बैठे मज़ाक़-मस्ती कर रहे थे.
जयसिंह भी झटपट उठ कर बाहर चल दिए.
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“हाँ भई… क्या चल रहा है?” जयसिंह ने हॉल में आते हुए कहा.
“कुछ नहीं पापा, ऐसे ही बैठे हैं.” कनिका बोली, “ताऊजी के घर जा कर आए, मैं और दीदी.”
“अच्छा… घर पर ही थे भाईसाहब?”
“जी. लेकिन रात को जयपुर जा रहे हैं किसी काम से…” इस बार मनिका ने बताया.
“हाँ वो उनका प्लॉट है वहाँ उसकी कुछ चारदीवारी का काम करवा रहे हैं.” जयसिंह ने सोचते हुए कहा, “और मम्मी कहाँ है तुम्हारी?”
“चाय बना रही है शायद… अभी किचन में गईं थी.” मनिका बोली.
“तो उनको बोलो हमें भी कुछ चाय-पानी करवा दे…” जयसिंह ने कनिका को इशारा किया.
“तो आप ही बोल दो… आप डरते हो क्या मम्मी से?” मनिका के मुँह से निकल गया.
कनिका और हितेश हँस पड़े.
“हाहा… अच्छा जी… चलो मैं बोल देता हूँ… और डरता-वरता नहीं हूँ मैं…” जयसिंह ने नाटकीय मुद्रा में कहा और फिर आवाज़ में झूठा ख़ौफ़ लाते हुए बोले, “अजी सुनती हो…”
तीनों बच्चों को हँस-हँस कर लोटपोट होता छोड़ जयसिंह रसोई की तरफ़ चल दिए.
कुछ देर बाद मधु और पीछे-पीछे जयसिंह चाय-बिस्कुट वाली ट्रे लिए आ गए. जयसिंह अभी भी डरा होने का नाटक कर रहे थे.
“जी कहाँ रख दूँ?” उन्होंने मधु से पूछा.
“अरे आप तो ना… रहने दो सब पता है मुझे कितनी बात मानते हो मेरी.” मधु उनकी शैतानी पर मुस्काए बिना न रह सकी थी.
बच्चे तो हँस ही रहे थे.
इसी तरह ठिठोली करते-करते वक्त बीत गया और रात के खाने का समय हो गया. खाना-पीना कर एक बार फिर सब लोग अपने-अपने कमरों की तरफ़ चल दिए थे. मधु ने हितेश और कनिका को इतनी मौज-मस्ती के बाद अब होमवर्क करने बैठने की सख़्त हिदायत दी थी.
सो कमरे में आने के बाद कनिका स्टडी टेबल पर बैठ अपना काम करने लगी. मनिका भी लेटी हुई अपनी सहेलियों से मेसेजिंग करने लगी. वो उनसे मिलने का प्लान बनाने को कह रही थी, ताकि अपने दिल्ली दर्शन की कुछ बातें उन्हें भी बता कर वाहवाही लूट सके.
“दीदी..?” कुछ देर बाद कनिका बोली.
“हाँ?” मनिका ने उसकी ओर देख पूछा.
“आपको प्यास नहीं लग रही…” कनिका ने कनखियों से मुस्कुराते हुए पूछा.
उसका आशय समझ मनिका हँस पड़ी.
“पानी लाकर दूँ?”
“हाहाहा… हाँ दीदी प्लीज़ ना… नीचे जाऊँगी तो मम्मी फिर डाँटेगी कि पढ़ नहीं रही.”
“हाहा… लाती हूँ बाबा.” मनिका उठते हुए बोली.
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मनिका फ़्रिज में से ठंडे पानी की एक बोतल निकाल ऊपर अपने कमरे में जाने के लिए सीढ़ियों की ओर बढ़ी.
“मनिका?” जयसिंह थे.
“हैं… ज… जी पापा.” मनिका अचकचा कर खड़ी हो गई.
उसके पिता अपने कमरे से निकल कर किचन की तरफ़ जा रहे थे. घर आने के बाद शायद एकांत में उनका पहला पल था. और उन्होंने उसे ‘मनिका’ बुलाया था.
“क्या कर रही हो?” जयसिंह ने पास आते हुए पूछा.
“जी पापा… वो कनु पानी माँग रही थी तो लेने आई थी…” मनिका ने एक पल उनके चेहरे की तरफ़ देखा था फिर नज़र झुका ली.
“ओह… हम्म. तुम ठीक हो?” जयसिंह ने पूछा.
“जी पापा…” मनिका ने धीमे से हामी भरी, फिर एक पल बाद आगे कहा, “पिरीयड्स स्टार्ट हो गए…”
“ओह…” जयसिंह इतना बोल चुप हो गए.
मनिका के मन में अचानक शर्मिंदगी का भूचाल आ गया था.
“हाय! मैंने ये बात पापा को क्यूँ बताई?”
उधर जयसिंह ने हौले से उसकी पीठ सहलाई और कहा,
“कुछ चाहिए हो तो बताना… हम्म?”
“जी पापा.” बोल मनिका तेज़ी से सीढ़ियाँ चढ़ गई.
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