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Incest बेटी की जवानी - बाप ने अपनी ही बेटी को पटाया - 🔥 Super Hot 🔥

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कहानी में अंग्रेज़ी संवाद अब देवनागरी की जगह लैटिन में अप्डेट किया गया है. साथ ही, कहानी के कुछ अध्याय डिलीट कर दिए गए हैं, उनकी जगह नए पोस्ट कर रही हूँ. पुराने पाठक शुरू से या फिर 'बुरा सपना' से आगे पढ़ें.

INDEX:

 

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28 - बहकते कदम

रात काफ़ी हो चुकी थी. मनिका बेड पर लेटी हुई थी और कनिका भी कब की आकर सो चुकी थी. मगर मनिका की आँखों में नींद का नामोनिशान न था.

घर आने के बाद ठीक वैसा ही हुआ था जिसका जयसिंह को अंदेशा था, मनिका धीरे-धीरे अपने पुराने रूप में ढलने लगी थी. लेकिन वे नहीं जानते थे कि उनका बिछाया चक्रव्यूह मनिका के मन पर कितना गहरा असर कर चुका है. जैसे ही मनिका के अंतर्मन को इस बदलाव का एहसास हुआ था, उसने मनिका से ऐसी अंतरंग बात कहलवा दी जो वह नॉर्मली अपने पिता से शेयर नहीं करती. इसी के चलते अब उसकी नींद उड़ी हुई थी.

“हाय… मैंने पापा को पिरीयड्स का बता दिया… पता नहीं कैसे मुँह से निकल गया. पापा क्या सोच रहे होंगे… कितनी पर्सनल बात है ये… पर अब तो पापा के साथ कितना ही कुछ शेयर कर चुकी हूँ… और एक पापा हैं कि बिलकुल unexpected reaction देते हैं…”

मनिका की मानसिक स्थिति वैसे ही माहवारी की वजह से प्रभावित थी. सो अब उसे अपने पिता के साथ बिताया अनाचार भरा वक्त और अधिक सताने लगा. हर एक वाक़या उसे दोगुनी-तिगुनी तीव्रता से याद आने लगा जैसे वो इंटर्नेट पर देखी गंदी तस्वीरें, वो गंदे सपने, और उसके बदन पर जयसिंह के लिंग की छुहन. पर सबसे ज़्यादा विचलित करने वाली बात यह थी कि बाप-बेटी के पावन रिश्ते को तार-तार कर देने वाली ये घटनाएँ उसे शर्मसार करने के बजाए उत्तेजित कर रही थी. उसे जयसिंह की याद आने लगी, उनकी कुटिल मुस्कान और उसके तन-बदन को कुरेदती उनकी नज़र, उनका अनायास आलिंगन और मज़बूत पकड़, यह सब याद कर वो सिसक उठी.

सुबह होने को थी मगर मनिका को एक पल नींद नहीं आई थी. आतुर मन से वो सबके उठने का इंतज़ार करने लगी, ताकि जल्द से जल्द जयसिंह के सामने जा सके.

-​

उस रोज़ जब मधु रसोई में आई तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा. अमूमन देर तक सोने वाली मनिका, चाय-नाश्ता बना रही थी.

“मनि?” मधु ने अवाक् होकर कहा.

मनिका भी खिसियानी बिल्ली की तरह पलटी.
“उठ गए मम्मी?”
“ये सब क्या कर रही हो?”
“वो कुछ नहीं मम्मी, आज जल्दी आँख खुल गई तो सोचा ब्रेकफ़ास्ट बना दूँ.”
“अरे वाह… आज सूरज किस दिशा से निकला है देखूँ तो ज़रा…” खिड़की से बाहर देखने का नाटक करते हुए मधु हँस पड़ी.
“क्या मम्मी… आप भी ना.” मनिका खिसियाते हुए बोली और फिर अपने पापी मन की बात पूछी, “पापा उठ गए? उनको चाय दे आऊँ?”
“हाँ जगे तो हैं लेकिन आलस कर रहे हैं, जाकर उठा दे उनको.” मधु रसोई का जायज़ा लेते हुए बोली, “तब तक मैं मेरी रसोई सम्भालूँ… देखूँ तो सही तूने क्या गड़बड़ की है…”

मनिका ने तो पहले से ही ट्रे सजा रखी थी. मधु की बात अनसुनी कर वो झट से अपने पिता के कमरे की ओर चल दी.
जब वह उनके बेडरूम में पहुँची तो देखा कि जयसिंह बिस्तर में लेते ऊँघ रहे हैं.

“पापा..?”
“हम्म… मनि… क्या हुआ?” जयसिंह उसकी आवाज़ सुन अचकचा कर उठ बैठे. फिर उनकी नज़र उसके हाथ में पकड़ी ट्रे पर गई.
“पापा… आपकी मॉर्निंग टी…” मनिका ने ट्रे आगे बढ़ाई.
“बड़ी फुर्ती दिखाई आज तो तुम्हारी माँ ने… अभी तो उठ कर गई थी.” जयसिंह ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा.
“मैंने बनाई है पापा.” मनिका न जाने क्यूँ ऐसा कहते समय सकुचा गई थी.
“हैं? क्या सच में?” जयसिंह ने हैरान हो कर पूछा.
तभी मनिका के पीछे कदमों की आहट हुई.
“वही तो मैं कह रही हूँ… कहीं छोरी बदल तो नहीं लाए आप दिल्ली से…” मधु ने कमरे में आते हुए कहा.
“हाहाहा…” जयसिंह हँस पड़े. उनकी नज़र मनिका से मिली, “बदल तो लाया हूँ… है ना मनिका?”

मधु उनकी बात का आशय कैसे समझ सकती थी, लेकिन मनिका समझ गई. उसके पिता के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान जो तैर रही थी, और उन्होंने उसे मनिका कह कर पुकारा था.
वो अनायास ही मचल उठी और मुस्कुरा कर सिर झुका लिया.

-​

“दिल्ली में गर्लफ़्रेंड और घर पे डॉटर… और कभी-कभी… घर पे भी गर्लफ़्रेंड… हम्म?”

मनिका अपने कमरे में बैठी थी. उसे जयसिंह की कही बात रह-रह कर याद आ रही थी. क्या सच में पापा उसे अब अपनी गर्लफ़्रेंड ही मानते थे या वो सिर्फ़ दिल बहलाने के लिए कही गई बातें भर थीं? लेकिन पापा का उसे यूँ देखना उसकी तारीफ़ें करना और उसे अपने साथ सुलाना, सहलाना, उसे उनके रिश्ते को मर्द और औरत का रिश्ता समझने को कहना, वो सब इसी तरफ़ इशारा कर रहा था कि उनका रिश्ता अब बदल चुका था.

अपने मन की उधेड़बुन से निकलने के लिए मनिका उठी और नीचे चली आई.

अगले दो दिन मनिका और जयसिंह के बीच कोई ख़ास बात-चीत नहीं हुई और दोनों बाप-बेटी रोज़मर्रा की पारिवारिक हलचल में रमे रहे. इसी बीच मनिका एक बार अपनी सहेलियों से भी मिलकर उन्हें अपने दिल्ली दर्शन के कुछ वाक़ये सुना मंत्रमुग्ध कर आई थी. घर में जब भी मनिका और जयसिंह आस-पास होते तो उनकी नज़र अक्सर मिले बिना न रह पाती और मनिका के चेहरे पर एक मंद सी मुस्कान आ जाती थी. जयसिंह की आँखों में भी एक अजीब सी चमक होती थी जो मनिका को अंदर ही अंदर बेहद भाती भी थी और सताती भी. ऊपर से माहवारी के चलते उसका मन हर वक्त डोलता रहता था. कभी सोचती सब बंद हो जाए और चीजें पहले जैसी हो जाएँ और कभी लगता कि पापा की नज़रों के सामने बैठी ही रहे. ये कैसा रिश्ता था जो उनके बीच बनता जा रहा था यही सोचती हुई वह उस रात लेटी हुई थी जब उसका फ़ोन वाइब्रेट हुआ.

Papa: So gayi kya?

मेसेज देख मनिका की धड़कनें तेज हो गई. यह पहली बार था जब जयसिंह ने घर आने के बाद उसे फ़ोन से मेसेज किया था. उसने किसी चोरनी की तरह झट से पास सोती अपनी बहन की तरफ़ देखा, लेकिन कनिका नींद में थी.

Manika: Bas so hi rahi thi papa.
Papa: Okay.

जयसिंह का संक्षिप्त सा जवाब आया. लेकिन अब नींद मनिका की आँखों से भी ग़ायब हो चुकी थी. जब जयसिंह ने कुछ और मेसेज नहीं भेजा तो मनिका ने धड़कते दिल से टाइप किया.

Manika: Kya keh rahe the aap?

उसका मेसेज जाते ही जयसिंह ने पढ़ लिया था और टाइप करने लगे थे.

Papa: Kuch nahin bas, neend nahin aa rahi thi to socha kuch der apni girlfriend se baatein kar lu.
Manika: Hehe papa. Aap bhi na.
Papa: Lagta hai ghar aate hi girlfriend ne mann badal liya hai, hmm?

उनका सवाल पढ़ मनिका कुछ पल सोचती रही, क्या पापा को मना कर दे? क्या सब पहले जैसा हो सकता है? मगर फिर रह ना सकी.

Manika: No papa, bas ghar aake busy ho gaye, aapko bhi office jaana hota hai.
Papa: Hmm. Phir bhi, kabhi kabhi to papa ko pyar kar diya karo. Tumhari goodnight kiss ke bina neend bhi nahin aati aajkal.
Manika: Haha papa, rehne do aap. Wife ke paas aakar aapko girlfriend ki yaad kahan aati hai.

मनिका ने जयसिंह का उलाहना उन्हीं को सुनाते हुए कहा. यह लिखते-लिखते अचानक उसे अपनी माँ से जलन होने लगी थी.

Papa: Mera bas chale to abhi upar aa jaun tumhare paas.

अपने पिता का जवाब सुन मनिका मुस्काए बिना न रह सकी.

Manika: Haan aur pakde gaye to kya kahoge?
Papa: Yahi ki ab girlfriend ke saath hi sona hai.
Manika: Hahaha, haay papa kuch bhi bolte ho aap.
Papa: Sach me, I miss our bedtime together Manika.

जयसिंह का जवाब मनिका का दिल धड़का गया था.

Manika: Yes papa, me too. I love you papa.
Papa: Hmm. Iss baar lamba plan banaate hain Delhi ka.

जयसिंह की बात के पीछे का आशय समझ मनिका सिहर गई थी. उसके पिता उसके साथ के लिए इतना कुछ सोच रहे हैं यह उसे गुदगुदा गया था.

Manika: Oh papa, kisi ko pata chal jayega to...
Papa: Kuch nahin hoga, main sambhaal lunga darling.
Manika: Ji.

मधु सोई पड़ी थी और जयसिंह दूसरी ओर करवट लिए अपनी बेटी से नापाक बातें कर रहे थे. मनिका के जवाब सुन उन्हें थोड़ी तसल्ली मिली कि अभी बाज़ी उनके हाथ में ही थी. सो उन्होंने एक हिमाक़त करने की सोची.

Papa: Waise ab to ghar aa gayi ho, to night dress bhi change karli hogi na?

जयसिंह का मेसेज पढ़ अंधेरे में भी मनिका का चेहरा तमतमा गया था. वह अपने पिता का आशय अच्छे से समझ गई थी. कुछ पल उसने कोई जवाब नहीं दिया तो जयसिंह का मेसेज फिर से आया.

Papa: Kya hua?
Manika: Kuch nahin papa.
Papa: Naraaz to nahin ho gayi? Main to vaise hi pooch raha tha.
Manika: Nahin papa.
Papa: Kya, naraaz nahin ho ya night dress nahin change ki?

जयसिंह की शातिर हाज़िरजवाबी ने एक बार फिर मनिका को मुस्कुराने पर मजबूर कर दिया था.

Manika: Nahin papa, nahin hu naraaz. So jao na!
Papa: Aur night dress change kar li?
Manika: Kya karoge jaan kar aap?
Papa: Kuch nahin, bas tum keh rahi thi na ke ghar par wahi pehen ke soti ho to pooch raha tha.

जयसिंह के टाल-मटोल भरे जवाब ने मनिका को उत्तर देने पर विवश कर ही दिया.

Manika: Nahin papa, abhi nahin peheni vo dress.
Papa: Oh.
Manika: Kya hua?
Papa: Mujhe laga peheni hoti to milne aa jaata tumse.

मनिका को कुछ जवाब ना सूझा.

Papa: Kya hua?
Manika: Kuch nahin, pata nahin aur kya bolun. Aap to uss dress ke peeche hi pad gaye.
Papa: Haha, tumhen to pata hi hai mujhe pasand hai chhoti chhoti dress, uss din to bada chhed rahi thi mujhe.
Manika: Hehehe, meko kya pata tha aap mere hi peeche padd jaaoge.
Papa: Ab tum itni khoobsurat ho to main kya karun.
Manika: Papaa! Kuch bhi bolte rehte ho aap.
Papa: Sach to sach hi hai sweetheart.
Manika: Hmmm, theek hai.

जयसिंह की बातें मनिका के तन-मन में उफान ला रहीं थी.

Papa: Neend nahin aa rahi?
Manika: Haan papa, I am sleepy. Aap bhi so jao.
Papa: Pehle meri goodnight kiss to de do.

जयसिंह कुछ पल तक मनिका के जवाब का इंतज़ार करते रहे.

Manika: Umaaaa! 😘
Papa: Good night darling.
Manika: Good night papa.

मनिका ने फ़ोन साइड में रखा और आँखें मूँद सोने की कोशिश करने लगी. पर उसके पिता की बातों ने उसे झकझोर के रख दिया था. हालाँकि घर आए उन्हें कुछ ही दिन हुए थे मगर एक बार फिर जयसिंह के मुँह से अपनी तारीफ़ सुन उसका रोम-रोम खिल उठा था.

"पापा भी ना, कितने ख़राब हैं." जयसिंह के उसके कपड़ों को लेकर कही बात याद कर उसने सोचा था. उसे याद आया कि उसने वो नाइट ड्रेस धोने के लिए डाली थी, शायद धुले कपड़ों में होगी. "कल पहनूँगी." यह सोचना हुआ कि उसके रोंगटे खड़े हो गए.

रात ढलते-ढलते मनिका आख़िर नींद के आग़ोश में समा गई.

अगली रोज़ जब मनिका की आँख खुली तो उसने पाया कि कनिका उठ कर स्कूल जा चुकी है. वो लेटी हुई रात की बातों को याद कर ही रही थी कि उसकी माँ आ गई.

"मनि? कभी तो ये लड़की सुबह-सवेरे ही रसोई सम्भालने लगती है और आज दिन चढ़ गया फिर भी सोई पड़ी है." उसकी माँ बुदबुदाते हुए कमरे में घुसी.
"ओहो मम्मा, उठ रही हूँ बस." कहते हुए मनिका उठ बैठी.
"जल्दी से उठ कर नाश्ता कर लो, मैं और ताईजी बाज़ार जा कर आ रहे हैं. माथुर साहब के यहाँ फ़ंक्शन है शाम को." उसकी माँ ने कहा.
"माथुर अंकल के यहाँ? किस चीज़ का?" मनिका ने आँखें मलते हुए पूछा.
"उनकी ऐनिवर्सरी है." मनिका की माँ ने कनिका का कम्बल तह करते हुए कहा.
"ओह. ठीक है." कह मनिका बिस्तर से निकली और बाथरूम की ओर बढ़ी.
"ओ मैडम, ये कम्बल कौन समेटेगा?" मनिका की माँ की आवाज़ आई.
"कर दो ना आप." मनिका ने आँखें टिमटिमाई और बाथरूम में घुस गई.

जब तक मनिका नाश्ते के लिए नीचे आई थी, उसकी माँ बाज़ार जा चुकी थी. कनिका और हितेश स्कूल चले गए थे और जयसिंह ऑफ़िस. सो उसने अकेले ही बैठ कर नाश्ता किया और वापस अपने रूम में चली आई.

कमरे में आते ही एक बार फिर मनिका को अपने पिता से हुई बातें याद आने लगी और वो फ़ोन में चैट खोल कर वापस पढ़ने लगी. जयसिंह की बातें पढ़ कर एक बार फिर वो शर्मसार हो उठी थी.
दोपहर बाद का समय था जब मधु बाज़ार से लौट कर आई. कनिका और हितेश भी स्कूल से आ चुके थे और तीनों बच्चे टी.वी. के सामने जमे थे.

"खाना खाया या यहीं बैठे हो?" मधु ने अंदर घुसते हुए पूछा था.
"बस मम्मी खा रहे हैं." कनिका बोली, लेकिन उसका ध्यान टेलिविज़न पर जमा था.
"जल्दी से लंच कर लो, माथुर साहब के यहाँ सात बजे तक जाने का कह रहे थे तुम्हारे पापा." मधु अपने कमरे में जाते हुए कह गई थी.

उस शाम जयसिंह ऑफ़िस से जल्दी लौट आए थे. शाम के 6 बजते-बजते घर में चहल-पहल हो गई थी. माथुर एक लम्बे अरसे से जयसिंह का मैनेजर रहा था और उनके घरों में अच्छी जान-पहचान थी. सो घर के सभी लोग जा रहे थे. मनिका और कनिका ऊपर अपने कमरे में तैयार हो रहीं थी. हितेश तो पहले ही एक टी-शर्ट और जींस पहन कर नीचे हॉल में अपने प्लेस्टेशन पर खेल रहा था. मधु भी तैयार हो कर बाहर आई ही थी जब जयसिंह भी ऑफ़िस से लौट आए.

"जल्दी से तैयार हो जाइए आप भी और ये लड़कियाँ पता नहीं क्या कर रही हैं ऊपर." मधु झुंझलाते हुए सीढ़ियाँ चढ़ने लगी.

जयसिंह अपने कमरे में गए और अलमारी से कोट-पैंट निकाल तैयार होने लगे. कुछ देर में मधु भी आ गई और उनसे पूछ कर उनकी पसंद की टाई, बेल्ट और घड़ी वग़ैरह निकाल कर बेड पर रखने लगी. तभी कनिका कमरे में आई, उसने लाल रंग का सूट पहना था.

"मम्मी, वो सेफ़्टीपिन कहाँ रखी हैं? दीदी को चाहिए." उसने कहा.
"ओहो, रुक देती हूँ." कहते हुए मधु अपनी अलमारी में कुछ टटोलने लगी.
तभी बाहर से हितेश की आवाज़ आई कि उनके ताऊजी की बेटी नीरा पूछने आई है सब तैयार हुए के नहीं.
"हाँ बस आ रहे हैं, तू ड्राइवर भैया को बोल गाड़ी निकालें." मधु ने हॉल में आवाज़ दी.
"हाँ बोल रहा हूँ, बस एक मिनट." हितेश ने कहा.
"कनि तू जा बेटा, इसका एक मिनट तो होगा नहीं, कहा था ये पिटारा ना लेकर बैठे जाने से पहले पर सुनता कहाँ है."
"वो मम्मी दीदी को सेफ़्टीपिन दे आना." कहते हुए कनिका बाहर चली गई.
"इतनी देर से कह रही थी सबको तैयार हो जाओ पर बस आख़िरी टाइम पे किसी को गेम खेलना है किसी को सेफ़्टीपिन याद आ रही है." मधु ने बड़बड़ाते हुए सेफ़्टीपिन का एक गुच्छा निकाला.
"अरे तुम ये सब समेट कर रखो, लाओ मैं दे आता हूँ. अभी टाइम पड़ा है क्यूँ चिंता करती हो." जयसिंह ने कहा और मधु के हाथ से सेफ़्टीपिन लेते हुए कहा.

मनिका कमरे में बैठी कनिका का इंतज़ार कर रही थी. उसने फ़ंक्शन के लिए एक काली साड़ी निकाल कर रही थी और उसी को बांधने के लिए कनिका को सेफ़्टीपिन लेने दौड़ाया था. कमरे का दरवाज़ा खुला. वो उठ खड़ी हुई.

"कितनी देर लगा दी, फिर मम्मी ग़ुस्सा..." कहते-कहते मनिका रुक गई. कनिका नहीं उसके पिता कमरे में आ रहे थे.

एक पल के लिए बाप-बेटी की नज़र मिली. मनिका सिर्फ़ ब्लाउज़ और पेटिकोट पहने हुए थी. जयसिंह के सामने पा कर उसने अनायास ही अपना वक्ष ढँकने की कोशिश की थी. लेकिन जयसिंह एक पल अचकचाने के बाद चलते हुए उसके पास आ गए.

"ये सेफ़्टीपिन." जयसिंह ने हाथ आगे बढ़ाया.
"ओह... Thank you papa." मनिका को उनके हाथ से सेफ़्टीपिन लेने के लिए अपना एक हाथ वक्ष से हटाना पड़ा.

जयसिंह खड़े रहे और उसके चेहरे को ताकते रहे. मनिका ने शरमा कर नज़र झुका ली थी. जयसिंह ने हाथ बढ़ा कर उसकी गर्दन सहलाई और बोले,

"अच्छी लग रही हो."
"Th... thank you papa." मनिका ने फिर से कहा.
"तैयार हो जाओ चलो, हम्म?"
"जी."

जयसिंह मुड़े और कमरे से बाहर चले गए.

मनिका खुमार में एक पल तो बेड पर बैठ गई थी. फिर किसी तरह उठ कर उसने जल्दी से साड़ी लपेटने लगी.
जब मनिका तैयार होकर नीचे आई तो सभी हॉल में खड़े थे. उसके खड़कते सैंडिलों की आवाज़ सुन सबकी नज़र उसकी ओर पड़ी थी, लेकिन उसकी नज़र थी कि सीधा जयसिंह से मिली और उसके गालों पर लालिमा छा गई थी. बाहर दोनों घरों के ड्राइवर गाड़ियाँ लिए खड़े थे. मनिका के ताऊजी, ताईजी और उनकी बेटी भी बाहर आ गए थे. सभी गाड़ियों में बैठे और माथुर साहब के यहाँ रवाना हो गए.
-​


अंततः यह कहानी एक बार पुनः प्रारम्भ करने के लिए लेखिका का बहुत बहुत आभार।

पिता पुत्री के सम्बन्धों में पिछले कुछ दिनों में आए हुए बदलाव के कारण उत्पन्न हुए अंतर्द्वंद का बहुत ही अनूठा और लाजवाब वर्णन है। माहवारी के समय के मनिका के मन उठने वाली लहरे, बीते समय को याद कर उसके उसके मन उठने वाली सिहरन, पिता के सामने आते ही उसका लजाना, और पिता के ना होने पर उसका यही सब बीते हुए लम्हों को याद करके उत्तेजित हो जाना, hats off to the writer।

जयसिंह as usual कभी भी हार ना मानने वाला प्राणी है। अपनी पत्नी के पास में सोते हुए होने पर अपनी नयी नवेली गर्लफ्रेंड के साथ चैटिंग कर उसका आग भड़काने का पूरा प्रयास जारी है। मनिका ने पर चैटिंग में नारी सुलभ लज्जा को बहुत हद तक जीवित रखा, जिससे लगता है कि अभी जयसिंह के लिए मंजिल इतनी भी आसान नही है। मनिका का अपनी

safety pin वाले घटना क्रम का वर्णन इतना नैशर्गिक है कि लगता ही नहीं, कि ये वही पिता और पुत्री है, जो होटल में एक दूसरे के साथ सोते थे।

अब अगले अपडेट में इंतजार रहेगा, कि कैसे जयसिंह आगे की बाजी चल कर अपने नापाक इरादों को अंजाम तक पहुंचाने का प्रयास करता है।
 
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Ki hai ek chhoti koshish :)

इतने लंबे समय के बाद यह अपडेट लिखा गया पर आपने को तारतम्य मिलाया है पुराने अपडेट से, कबीले तारीफ है, just like a professional write. अब चूंकि यह कहानी प्रारम्भ हो ही गयी है, तो अब इसको इसकी मंजिल तक पहुंचा देना :D
 

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इतने लंबे समय के बाद यह अपडेट लिखा गया पर आपने को तारतम्य मिलाया है पुराने अपडेट से, कबीले तारीफ है, just like a professional write. अब चूंकि यह कहानी प्रारम्भ हो ही गयी है, तो अब इसको इसकी मंजिल तक पहुंचा देना :D
Jitni hindi tum jaante ho, next update tum hi likh do ;)
 
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Jitni hindi tum jaante ho, next update tum hi likh do ;)

कहते है, कि कलाकार को एक अच्छी रचना के लिए प्रेरणा की आवश्यकता होती है, और आपसे अच्छी प्रेरणा मेरे लिए कुछ नहीं होगी, आप मेरे सामने बैठो, हम पूरा ग्रंथ लिख देंगे।

jokes apart, कहानी को लिखने के लिए हिन्दी अच्छी होना, ना होना जरूरी नही है, उसमे तरलता, जुड़ाव लाने के लिए भावनाओं का होना आवश्यक है, जो शायद आपसे अच्छे किसी के पास नहीं होगी :sad: , इसलिए आप ही इस कहानी को आगे बढ़ाओ :D
 
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