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Incest बेटी की जवानी - बाप ने अपनी ही बेटी को पटाया - 🔥 Super Hot 🔥

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कहानी में अंग्रेज़ी संवाद अब देवनागरी की जगह लैटिन में अप्डेट किया गया है. साथ ही, कहानी के कुछ अध्याय डिलीट कर दिए गए हैं, उनकी जगह नए पोस्ट कर रही हूँ. पुराने पाठक शुरू से या फिर 'बुरा सपना' से आगे पढ़ें.

INDEX:

 

Nasn

Well-Known Member
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29 - पार्टी

जब जयसिंह अपने परिवार के साथ पार्टी में पहुँचे तो माथुर और उनकी बीवी रेणु ने उनका भरपूर स्वागत किया. सभी मेहमान लगभग परिचित लोग ही थे. मनिका के चाचा जो पुराने शहर में रहते थे वे भी मनिका की दादी, जो उनके साथ रह रहीं थी, उन्हें लेकर वहाँ आए हुए थे. बाक़ी माथुर के परिवार और मिलने वाले लोग तो थे ही.

माथुर के बेटा-बेटी भी मनिका के हम उम्र थे और वे लोग अक्सर पारिवारिक उत्सवों में मिलते रहते थे. कुछ देर परिवार के लोगों से मिलने जुलने के बाद मनिका और उसके भाई-बहन माथुर के बच्चों के साथ एक तरफ़ बैठ हंसी-मज़ाक़ और बतियाने में लग गए. घर के बड़े लोग भी एक तरफ़ एकत्रित हो गपशप करने लगे थे. माथुर ने भी जयसिंह के यहाँ काम करके अच्छा पैसा बना लिया था, सो इंतज़ाम भी उसी हिसाब का था. सजे-धजे बैरे भाग-भाग कर सबको स्नैक्स सर्व कर रहे थे.

जब सभी मेहमान आ गए तो फ़ंक्शन शुरू हुआ, एक छोटी पूजा का आयोजन किया गया था जिसके बाद माथुर के बच्चों ने अपने माता-पिता के लिए एक सरप्राइज़ वरमाला प्रोग्राम रखा हुआ था. काफ़ी हंसी-मज़ाक़ के माहौल में सब कुछ हुआ जिसके बाद माथुर और उनकी बीवी को एक काउच पर किसी नव-विवाहित जोड़े की तरह बैठा दिया और सभी मेहमान उनके साथ फ़ोटो खिंचवाने लगे. कुछ देर बाद जयसिंह और उनके परिवार से भी अनुरोध किया गया कि एक फ़ोटो खिंचवाएँ.

जयसिंह और मधु आकर फ़ोटो खिंचवाने के लिए खड़े हो गए. मनिका, कनिका और हितेश को भी आवाज़ देकर बुला लिया गया. फ़ोटोग्राफ़र के कहे अनुसार बीच में जयसिंह और उनकी बीवी मधु खड़े थे, मधु की बाईं तरफ़ हितेश खड़ा था और जयसिंह की दाईं ओर पहले कनिका और फिर मनिका खड़ी हो गईं. माथुर और उनकी बीवी तो आगे काउच पर बैठे ही थे.

यह सब शायद एक मिनट से भी कम समय में हुआ होगा. जब फ़ोटोग्राफ़र ने फ़ोटो खींचने से पहले उन्हें थोड़ा-थोड़ा क़रीब होने को कहा. जयसिंह ने हाथ फैला कर अपने दोनों तरफ़ खड़े परिवार के सदस्यों के पीछे किए, जैसा पोज़ अक्सर बीच में खड़े व्यक्ति बनाया करते हैं. उनका बायाँ हाथ अब हितेश के कंधे पर था. लेकिन जब वे दाहिना हाथ ऊपर कर मनिका के कंधे पर रखने जा रहे थे उस से पहले ही उनका हाथ उसके ब्लाउज़ के ऊपर से होता हुआ उसकी पीठ के उघड़े हिस्से पर छू गया, और वहीं रुक गया.

उनका स्पर्श पाते ही मनिका भी सिहर गई और उसका जिस्म अकड़ गया था. फ़ोटोग्राफ़र ने उन सबसे स्माइल करने को कहा. तब तक जयसिंह ने मनिका की पीठ के नंगे हिस्से को एक-दो बार सहला दिया था. सबने स्माइल की, मनिका का चेहरा थोड़ा लाल हो गया था पर वो भी मुस्का दी थी, और फ़ोटो खिंच गई. जब वे काउच के पीछे से हटने लगे तो मनिका और जयसिंह की नज़र मिली. मनिका ने अपने पिता के चेहरे परे एक शरारत भरी मुस्कान तैरती देखी और शरमा कर आगे चल दी.

उसके बाद डिनर लगा दिया गया और सब लोग इधर-उधर लगी मेज़-कुर्सियों पर बैठ खाना खाने लगे.

उसके बाद बातचीत और घुलने-मिलने का एक दौर और चला. ज़्यादातर मेहमान खाना खा कर विदा ले चुके थे. जयसिंह और उनके भाइयों के परिवार के अलावा एक-दो मेहमान ही रुके रहे थे. सो इस बार बढ़े-छोटे सब एक ही जगह एकत्रित हो बैठ गए. केटरिंग वाले भी सामान समेटने लग गए थे. लेकिन मनिका, कनिका और नीरा अभी गोलगप्पे वाले के पास ही खड़ी थी. कुछ देर बाद वे तीनों भी उस तरफ़ आ गईं जिधर सब लोग बैठे थे. सब लोग बातचीत में मशगूल थे, सबकी अलग-अलग बातें चल रहीं थी. मगर वहाँ ख़ाली कुर्सियाँ नहीं बचीं थी.

तीनों लड़कियाँ अचकचाकर खड़ी हो गई. जब माथुर ने देखा कि कुर्सियाँ नहीं है तो उसने केटरिंग वाले को आवाज़ दी कि और कुर्सियाँ लेकर आए. एक लड़का दोनों हाथों में कुर्सियाँ उठाए आया और रख गया. माथुर उसे एक और कुर्सी लाने को कहने ही वाला था जब मनिका की नज़र अपने पिता से मिली. वे उसके ताऊजी और चाचा के बीच में बैठे थे. उन्होंने मुस्कुरा कर अपने पैर बिलकुल उसी अन्दाज़ में खोल दिए जिस से वे उसे अपनी गोद में बुलाते थे. सब के सामने उनका ऐसा करना मनिका को झकझोर गया था, लेकिन उसके कदम मानो अपने-आप ही उनकी ओर बढ़ गए और वह सबके सामने उनकी जाँघ पर जा बैठी.

मनिका के अंदेशे के विपरीत किसी ने उसके इस तरह अपने पिता की गोद में बैठने पर आपत्ति नहीं की थी. हालाँकि उसकी दादी ने ज़रूर कहा था कि "छोरी इत्ति बड़ी हो गई लेकिन बचपना नहीं गया." जिसपर सब हँस पड़े थे.

"अरे भई एक कुर्सी और पकड़ाओ इधर." माथुर ने फिर से लड़के को आवाज़ दी.
"कोई बात नहीं माथुर." जयसिंह ने उसे कहा.

फिर वे धीरे से अपना हाथ मनिका की नंगी कमर पर रख सहलाने लगे. मनिका भी सबके मज़ाक़ पर हँसी थी मगर उसकी असली वजह अपनी शरम छुपाना था.

सब लोग बतिया रहे थे और जयसिंह उसकी कमर और पीठ के नंगे हिस्से को हौले-हौले सहला रहे थे. एक दो बार उन्होंने उसकी कमर से हाथ आगे की ओर ला, पल्लू के नीचे ढँके उसके पेट को भी गुदगुदा दिया था. किसी तरह मनिका अपने चेहरे को नॉर्मल बनाए बैठी रही और ऐसा जताती रही जैसे वो उसके ताऊजी और चाचा के बीच हो रही बिज़नस की बातों में दिलचस्पी ले रही है. उसके मन में तो बस एक ही विचार चल रहा था.

"कभी-कभी… घर पे भी गर्लफ़्रेंड… हम्म?"

कुछ देर बाद एक बैरा सबके लिए आइसक्रीम ले आया. मनिका की मन:स्थिति ऐसी नहीं थी कि आइसक्रीम खा पाती सो उसने मना कर दिया. लेकिन जयसिंह ने उसकी कमर से हाथ हटा एक कप उठा लिया था. अब सभी का ध्यान आइसक्रीम खाने और बातों में फिर से लग गया. इधर जयसिंह ने धीरे-धीरे एक दो चम्मच खाने के बाद अगला चम्मच मनिका के मुँह की तरफ़ बढ़ा दिया.

मनिका ने एक नज़र उनसे नज़र मिलाई थी और अपने गुलाबी होंठ हल्के से खोल लिए. अब जयसिंह एक चम्मच खुद खाते और एक उसे खिलाते. पहले भी वह अपने पिता के साथ खाने-पीने की चीजें शेयर कर चुकी थी लेकिन आज जयसिंह के साथ इस तरह आइसक्रीम शेयर करना मनिका को रोमांचित किए जा रहा था. ठीक उसी तरह जैसे कभी जयसिंह मनिका की झूठी स्ट्रॉ से कोल्ड-ड्रिंक पी कर आनंदित हुए थे.

आइसक्रीम ज़्यादा नहीं बची थी, इधर मनिका तो मानो अगले चम्मच के इंतज़ार में ही बैठी थी. मनिका को खिलाने के बाद जयसिंह ने एक बार फिर कप से आइसक्रीम लेकर चम्मच अपने मुँह में डाला. लेकिन मनिका ने देखा कि इस बार जब उन्होंने चम्मच मुँह से निकाला तो उस पर आइसक्रीम बची हुई थी. उन्होंने वही चम्मच उसके होंठों की तरफ़ बढ़ा दिया. मनिका एक पल मुँह बंद किए रही फिर उसने जयसिंह की आँखों में झांका और मुँह खोल लिया. जयसिंह के मुँह से निकली आइसक्रीम अब उसके मुँह में थी. इतनी देर से जो हया उसने अपने चेहरे पर नहीं आने दी थी उसे अब वह रोक ना सकी और शरम से लाल हो गई. जयसिंह ने उसे दो-तीन चम्मच और इसी तरह खिलाया जिसके बाद आइसक्रीम ख़त्म हो गई.

जयसिंह ने कप एक ओर रखा और एक बार फिर उसकी नंगी कमर सहलाने लगे. किसी का ध्यान उनकी ओर नहीं गया था.

-

क़रीब आधा-पौना घंटा वहाँ बैठने के बाद सब लोग अपने-अपने घरों को रवाना हो गए. आते समय मनिका की दादी उनके साथ आई थी. वे तीनों बेटों के पास बारी-बारी से आती जाती रहती थीं. सब लोग घर आ गए और अपने-अपने कमरों में कपड़े बदल सोने की तैयारी में लग गए.

ग्राउंड फ़्लोर पर जयसिंह और मधु के कमरे के बग़ल वाला कमरा गेस्ट रूम की तरह इस्तेमाल किया जाता था. लेकिन सब लोग उसे दादी का कमरा कहते थे क्यूँकि जब वे आती थीं तो उसी में रहती थी. इस दौरान मधु भी अक्सर उनके पास सोया करती थी. कपड़े बदल मधु ने जयसिंह को रात का दूध दिया और फिर ख़ाली ग्लास ले अपनी सास के पास सोने चल दी. यह एक अनकहा नियम था सो जयसिंह ने भी कुछ पूछा-कहा नहीं और लेट गए.

उधर मनिका आज की घटनाओं के बाद बेहद रोमांचित स्थिति में अपने कमरे में पहुँची थी. कनिका बाथरूम में चेंज कर रही थी जब उसने धड़कते दिल से अपने धुले हुए कपड़े उठा कर उनमें से वो शॉर्ट्स और गंजी निकाल कर एक तरफ़ रख ली. "क्या पापा का मेसेज आज भी आएगा?" यह ख़याल उसे एक अजीब से आवेश से भरे दे रहा था.

कनिका कपड़े बदल का बाहर आ गई तो मनिका ने भी जल्दी से बाथरूम में जा कर चेंज किया और मुँह धो कर मेकअप साफ़ किया और बाहर निकल आई. वो बिस्तर तक पहुँची भी नहीं थी कि जयसिंह का मेसेज आ गया.

Papa: Hello darling.

मनिका ने घबरा कर कनिका की तरफ़ देखा, अपने स्टडी टेबल पर बैठी थी. उसकी माँ ने वैसे भी उसे घर आते ही हिदायत दी थी कि पढ़ाई किए बिना सोना नहीं है. मनिका बेड पर लेट गई और करवट फेर टाइप करने लगी.

Manika: Papa, kanu jagi huyi hai abhi, padh rahi hai.
Papa: Hmmm. To ham to baat kar sakte hain, bol dena kisi friend se baat kar rahi ho.
Manika: Ji. Par mummy so gayi?
Papa: Madhu to daadi ke paas so rahi hai.
Manika: Oh haan, main bhool gayi thi.
Papa: Hmmm. Aur meri girlfriend kya kar rahi hai?

मनिका ने नज़र फेर एक पल अपनी बहन की तरफ़ देखा. उसका सिर किताब पर झुका था और वो कुछ पढ़ते हुए बुदबुदा रही थी.

Manika: Kuch nahi papa, bas leti huyi hu, aap kya kar rahe ho?
Papa: Tumhein yaad kar raha hu.
Manika: Issh papa.
Papa: Aaj party mein maja aaya?

पिछली रात की तरह फिर से मनिका से कुछ लिखते न बना.

Papa: Kya hua?
Manika: Kuch nahi, haay papa, meko itna dar lag raha tha.
Papa: Par maja bhi aa raha tha, hmm?
Manika: Hmmm.
Papa: Manika bol ke bataya karo, pehle bhi kaha hai.
Manika: Yes papa...❤️

फिर कुछ देर तक जयसिंह का कोई जवाब नहीं आया. मनिका फ़ोन की स्क्रीन तकती जा रही थी और कुछ टाइप करने ही वाली थी जब फिर से जयसिंह का मेसेज आया.

Papa: Bahut sexy lag rahi thi aaj.

मनिका का हाथ काँपने लगा था. उसने फिर धड़कते दिल से कनिका की तरफ़ देखा, और टाइप करने लगी.

Manika: Thank you papa. You were also looking very handsome in the party.
Papa: Main uss se pehle ki baat kar raha tha.

जयसिंह का आशय समझ मनिका और ज़्यादा दहक उठी.

Manika: Haay papa aap to na... thank you!
Papa: Vese aaj kya pehena hai?

आख़िर एक बार फिर जयसिंह ने वो सवाल किया था जिसका शायद मनिका भी इंतज़ार कर रही थी.

Manika: Night dress.
Papa: Kaunsi?

इस बार जवाब देने से पहले मनिका ने जयसिंह को कुछ देर इंतज़ार करवाया, फिर कांपती अंगुलियों से टाइप किया.

Manika: Jo aapko pasand hai.
Papa: Sach mein.
Manika: Yes.
Papa: Main aa raha hun dekhne.
Manika: No papa! Aap pagal ho, kanu is awake.
Papa: To kya ho gaya?

जयसिंह का इरादा जान मनिका की जान गले में अटक गई थी. वह उनके स्वभाव से भी परिचित थी, वे सच में भी आ सकते थे.

Manika: No, no, no! Don't come, please.
Papa: To tum aa jao.
Manika: What? Aap aise kyun kar rahe ho, sab jage huye hain.
Papa: Arey to neeche aa jao na paani peene ka bol kar.
Manika: No papa, you are scaring me now.
Papa: Kuch nahin hoga darling, main hu na. Come now.
Manika: Papa! Aise matt karo na, koi dekh lega... I wear this dress in my room only.
Papa: Aa jao na, sab apne rooms me hai.
Manika: No na papa.

मनिका ने फिर से मिन्नत की.

Papa: Tumne to kaha tha meri har baat maanogi, that nothing will change between us. Ab kya hua?
Manika: But papa not like this na.
Papa: Okay.

जयसिंह का जवाब पढ़ मनिका समझ गई कि उन्होंने तल्ख़ी से लिखा था.

Manika: Papa please understand na.

इस बार जयसिंह ने मेसेज seen नहीं किया था. मनिका ने फिर से लिखा.

Manika: Papa? Please na... ab aise to matt karo.
Manika: Papa talk to me na!

लेकिन जयसिंह का कोई जवाब नहीं आया और ना ही उन्होंने उसके मेसेज पढ़े.

मनिका काफ़ी देर तक असमंजस में पड़ी रही. पापा के नाराज़ हो जाने पर उसे रोना आ रहा था. आख़िर वह उठ बैठी और कनिका से बोली,

"कनु?" उसकी आवाज़ में एक कंपन था.
"जी दीदी?" कनिका ने मुड़ कर पूछा.
"पानी पीना है? मैं नीचे जा कर आ रही हूँ."
"नहीं-नहीं. आप पी आओ." कनिका ने कहा.

मगर उसकी नज़र एक बार मनिका की पहनी पोशाक पर ज़रूर ठहर गई थी. वह भी जानती थी कि ये ड्रेस मनिका सिर्फ़ रूम में ही पहना करती थी. पर उसने कुछ ना कहा और मुड़ कर पढ़ने लगी.

मनिका उठ कर कमरे से बाहर निकली. हितेश के कमरे के गेट के नीचे से लाइट आ रही थी, उसका डर और बढ़ गया. वह दबे पाँव चलती हुई नीचे उतरी. हॉल में एक नाइट-लाइट जल रही थी. उसकी की रौशनी के सहारे वो धीरे-धीरे चलती हुई अपने पिता के कमरे के गेट तक आई. बग़ल के कमरे से उसकी दादी और मम्मी के बातें करने की आवाज़ आ रही थी. उसका डर चरम पर पहुँच गया, एक बार वापस जाने का सोचा मगर फिर धीरे से उसने गेट का हैंडल मोड़ा और उसे धकेला. हल्की सी आवाज़ हुई थी मगर मनिका का घबराहट के मारे बुरा हाल हो गया था. वो अपने पिता के कमरे में दाखिल हुई, अंदर घुप्प अंधेरा था.

"पापा?" मनिका हौले से फुसफुसाई.

उसके अंदर आते ही बिस्तर में हलचल हुई थी. जयसिंह ने मोबाइल की लाइट जला कर उसकी ओर की, मनिका ने अनायास ही अपना बदन उस रौशनी से ढँकना चाहा था. फिर उसने देखा, जयसिंह बेड से उठ रहे थे. वो भी कांपते कदमों से थोड़ा आगे बढ़ी. जयसिंह अब उसके क़रीब आ गए थे.

"पापा." मनिका एक बार फिर दबी आवाज़ में बोली.
"हम्म." जयसिंह के हाथ उसकी कमर पर थे.

मनिका का जिस्म डर और उत्तेजना से अकड़ गया था.

"हेल्लो डार्लिंग..." जयसिंह ने कहा और फिर उसे अपनी तरफ़ खींचा.
"पापा, कोई आ जाएगा... मैं जा रही हूँ." मनिका ने हल्का प्रतिरोध किया.

मगर अब तक जयसिंह ने उसकी कलाई पकड़ ली थी और उसे अपने साथ ले जाने के लिए खींच रहे थे. मनिका कुछ समझ पाती उस से पहले ही जयसिंह उसे बेड की तरफ़ ले गए थे और लाइट ऑन कर दी. कमरे में रौशनी होते ही मनिका किसी डरी हुई हिरनी की तरह वापस भागने को हुई. लेकिन जयसिंह ने उसे एक झटके से खींच कर अपनी बाँहों में भर लिया था.

"पापाऽऽऽऽ!" मनिका फुसफुसाती हुई उनसे अलग होने की कोशिश कर रही थी. "प्लीज़ लाइट ऑफ़ करो, कोई आ जाएगा."
"हम्प! कुछ नहीं होगा... डार्लिंग." जयसिंह ने उसे अपनी गिरफ़्त से आज़ाद किया और ऊपर से नीचे तक देखा.

आख़िर मनिका को अपनी नग्नता का एहसास हुआ. इतनी देर से कुछ अंधेरे और कुछ डर की वजह से उसे एहसास नहीं हुआ था लेकिन अब उसका ध्यान अपने कपड़ों की स्थिति पर गया. हालाँकि गंजी फिर भी ठीक थी मगर ऊपर से नीचे तक चल कर आने की वजह से शॉर्ट्स पीछे से ऊपर हो गई थी. वो उन्हें खींच कर नीचे करना चाहती थी मगर उसकी दोनों कलाईयाँ जयसिंह पकड़े हुए थे.

"पापाऽऽऽ, प्लीज़ जाने दो ना! देख लिया ना आपने बस..." मनिका ने फुसफुसाते हुए मिन्नत की.

उसकी नज़रें जयसिंह के चेहरे पर थीं जब उसने देखा कि उनका जयसिंह की आँखों में एक कठोर सा भाव आ गया था. उन्होंने उसे फिर से अपनी ओर खींचा, उनके चेहरे एकदम क़रीब आ गए थे.

"मैं कह रहा हूँ ना... हम्म?" उन्होंने आँख दिखाते हुए कहा. वे इस बार फुसफुसाए न थे.
उनका इतना कहना था कि मनिका का सारा प्रतिरोध ख़त्म हो गया.
"जी..." उसने निढाल होते हुए कहा.

जयसिंह ने अब उसके हाथ छोड़ दिए और उसका चेहरे पर हाथ रख उसकी ओर झुकते हुए उसके गाल पर किस्स किया "पुच्च."

"Don't worry darling... मैं कह रहा हूँ ना, हम्म?" अब उन्होंने थोड़ा नरम स्वर में कहा था.
"Yes papa." मनिका ने आँखें बंद करते हुए कहा था.

"पुच्च, पुच्च, पुच्च." जयसिंह ने उसकी गर्दन और गाल पर तीन-चार किस्स और करते हुए उसे अपने आग़ोश में भींच लिया.

"ओह पापाऽऽऽ... what are we doing?" मनिका भी उनके गले में हाथ डाल उनसे चिपट गई और उनके कान में फुसफुसाई.

जयसिंह कुछ ना बोले बस उसे चूमते रहे. मनिका अब रह ना सकी और उसने अपने दोनों पैर हवा में उठा जयसिंह की कमर पर कस लिए और उनके जिस्म में धँसने लगी. ऐसा करते ही उसकी शॉर्ट्स अब पूरी ऊपर हो चुकी थी, जयसिंह ने उसके चेहरे से हाथ हटाया और उसके अर्धनग्न नितम्बों पर ले गए उन्हें सहलाने लगे.

"आँआऽऽऽऽऽऽ..." मनिका उनके स्पर्श से तड़प उठी और अपनी टाँगे और ज़ोर से उनकी कमर पर कसने लगी. रह रह कर वो अपना वक्ष अपने पिता के सीने में गड़ा रही थी.

कुछ पल का उन्माद रहा उसके बाद मनिका का खुमार उतरा, उसे अपनी स्थिति का अंदाज़ा हुआ और उसकी पकड़ ढीली पड़ने लगी. जयसिंह ने भी अपनी गिरफ़्त थोड़ी ढीली की, मनिका ने अपने पैर खोले और ज़मीन पर रखे. वो एक बार के लिए लड़खड़ा गई थी, मानो उसके पैरों में जान ही नहीं बची थी. जयसिंह का एक हाथ अभी भी उसके जवान कसे हुए नितम्बों पर था और वे उन्हें हौले-हौले सहला रहे थे. अब दूसरे हाथ से उन्होंने उसके नीचे होते चेहरे को पकड़ कर ऊपर किया और उसकी आँखों में झाँकते हुए बोले.

"You are so sexy Manika, you know that?"
एक पल बाद कांपते होंठों से मनिका बोली,
"Thank you papa..."

उनकी नज़र अभी भी बंधी हुई थी.

"थप्प!"

जयसिंह ने हौले से उसके उघड़ चुके नितम्बों पर चपत लगाई. आज उनकी हरकत मनिका के लिए और अधिक शर्मनाक थी.

"आह!"

मनिका के मुँह से निकला और उसका चेहरा और ज़्यादा लाल हो गया. वो अपने पिता की नज़र का सामना ना कर पाई और सिर झुका उनके आग़ोश में समा गई.

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जब मनिका अपने कमरे में वापस आई तो कनिका को पढ़ते हुए ही पाया. उसके और जयसिंह के बीच अभी-अभी जो हुआ था वो शायद पाँच मिनट से ज़्यादा न चला होगा मगर मनिका के लिए मानो घंटों का बीत चुके थे. वो दबे पाँव आकर बिस्तर में घुस गई और चादर खींच कर अपने अधनंगे तन को ढँक लिया. उसने इस बात का शुक्र मनाया कि कनिका ने कुछ नहीं कहा था.

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