02 - AC फ़र्स्ट-क्लास
मनिका और जयसिंह का रिजर्वेशन फर्स्ट-क्लास AC केबिन में था.
जब मनिका और जयसिंह केबिन में पहुँचे तो पाया कि खिड़की से सूरज की तेज़ रौशनी पूरे केबिन में फैली हुई थी. वे दोनों आमने-सामने की बर्थ पर बैठ गए.
मनिका उनकी ओर देख कर मुस्कुराई.
“Finally, हम जा रहे हैं पापा, I am so excited!" उसने चहक के कहा.
"हाहा… हाँ भई." जयसिंह भी हँस के बोले.
"क्या पापा मम्मी हमेशा मुझे टोकती रहती है…" मनिका ने अपनी माँ से हुई लड़ाई का जिक्र किया.
"अरे छोड़ो न उसे, उसका तो हमेशा से यही काम है. कोई काम सुख-शान्ति से नहीं होता उससे." जयसिंह ने मनिका को बहलाने के लिए कहा.
"हाहाहा पापा, सच में जब देखो मम्मी चिक-चिक करती ही रहती है, ये करो-ये मत करो और पता नहीं क्या क्या?"
मनिका ने भी अपने पिता का साथ पा कर अपनी माँ की बुराई कर दी.
"हाँ भई, मुझे तो 23 साल हो गए सुनते हुए." जयसिंह ने बनावटी दुःख प्रकट करते हुए कहा और खिलखिला उठे.
"हाय पापा आप बेचारे… कैसे सहा है आपने इतने साल." मनिका भी खिलखिलाते हुए बोली और दोनों बाप-बेटी हँस पड़े.
“Seriously papa,” मनिका ने हँसते हुए आगे कहा. “आप ही इतने वफादार हो कोई और होता तो छोड़ के भाग जाता…”
"हाहा… भाग तो मैं भी जाता पर फिर मेरी मनि का ख़याल कौन रखता?" जयसिंह ने नहले पर देहला मारते हुए कहा.
“Oh papa, you are so sweet!" मनिका उनकी बात से खिल उठी थी.
वह खड़ी हुई और उनके बगल में आ कर बैठ गई. जयसिंह ने अपना हाथ मनिका के कंधे पर रखा और उसे अपने साथ सटा लिया, मनिका ने भी अपना एक हाथ उनकी कमर में डाल रखा था.
वे दोनों कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे. जवान होने के बाद आज पहली बार मनिका ने अपने पिता से इस तरह स्नेह जताया था. आमतौर पर जयसिंह उसके सिर पर हाथ फेर स्नेह की अभिव्यक्ति कर दिया कर देते थे. सो आज अचानक, बिना सोचे-समझे इस तरह करीब आ जाने के एहसास ने मनिका को कुछ पल बाद थोड़ा असहज कर दिया. जयसिंह भी उसके इस तरह अनायास पास आ जाने से थोड़ा विचलित हो गए थे. मनिका के परफ्यूम की भीनी-भीनी ख़ुशबू उनकी साँसों में घुल रही थी.
इससे पहले कि उनके बीच की खामोशी और गहरी होती मनिका ने चहक कर माहौल बदलने के लिया कहा,
"पता है पापा, मेरे सारी फ्रेंड्स आपसे जलती हैं?”
"हाहाहा… अरे क्यूँ भई?" जयसिंह भी थोड़े आश्चर्य से बोले.
"अब आप मेरा इतना ख़याल रखते हो न… तो इसलिए… मेरी फ्रेंड्स कहती है कि उनके पापा लोग उन्हें आपकी तरह चीज़ें नहीं दिलाते, you know… वे कहती हैं कि…”
इतना कह मनिका सकपका के चुप हो गई.
"क्या?" जयसिंह ने उत्सुकतावश पूछा.
"कुछ नहीं पापा ऐसे ही फ्रेंड्स लोग मजाक करते रहते हैं." मनिका ने टालने की कोशिश की.
"अरे बताओ ना?" जयसिंह ने अपना हाथ मनिका की पीठ पर ले जाते हुए कहा.
"वो सब कहते हैं कि तेरे पापा… कि तेरे पापा तो तेरे बॉयफ्रेंड जैसे हैं. पागल हैं मेरी फ्रेंड्स भी." मनिका ने कुछ लजाते हुए बताया.
"हाहाहा… क्या सच में?" जयसिंह ने ठहाका लगाया. साथ ही वे मनिका की पीठ सहला रहे थे.
"नहीं ना पापा वो सब मजाक में कहते हैं… और मेरा कोई बॉयफ्रेंड नहीं है ओके…" मनिका ने थोड़ा सीरियस होते हुए कहा. उसे लगा की उसके पिता बॉयफ्रेंड की बात सुन कर कहीं नाराज न हो जाएँ.
"हाँ भई मान लिया, मैं कहाँ कुछ कह रहा हूँ." जयसिंह ने मनिका की पीठ पर थपकी दे कर कहा.
जाने-अनजाने में जयसिंह ने अपना दूसरा हाथ मनिका की जाँघ पर रख लिया था.
मनिका की जाँघें लेग्गिंग्स में से उभर कर बेहद सुडौल और कसी हुई नज़र आ रही थी. जयसिंह की नज़र उन पर कुछ पल से टिकी हुईं थी. उनके अवचेतन मन के ख़यालों ने यंत्रवत ही उनका हाथ उठा कर मनिका की जाँघ पर रखवा दिया था. उन्हें लगा की बातों में लगी मनिका को इस का एहसास शायद न हो. मनिका की जाँघ की कसावट महसूस करते ही वे और ज़्यादा भटक गए. उन्होंने हल्के से अपना हाथ उस पर फिराया.
उधर मनिका भी उनके स्पर्श से अनजान नहीं थी. जयसिंह के उसकी जाँघ पर हाथ रखते ही मनिका की नजर उस पर जा टिकी थी, लेकिन उसने अपनी बात जारी रखी और अपने पिता के उसे इस तरह छूने को नज़रंदाज कर दिया. उसे लगा कि वे बस उससे स्नेह जताने के लिए ऐसा कर रहे हैं. पर उसके लिए भी यह एक नया एहसास था.
"चलो पापा अब आप आराम से बैठ जाओ. मैं अपनी सीट पे जाती हूँ." कह मनिका उठने को हुई.
जयसिंह ने अपने हाथ उसकी पीठ और जाँघ से हटा लिए. उनका मन कुछ अशांत था.
"क्या मैंने जानबूझकर मनि… मनिका के बदन पर हाथ लगाया? पता नहीं कैसे मेरा हाथ मानो अपने-आप ही वहाँ चला गया हो. ये मैं क्या सोचने लगा हूँ… अपनी बेटी के लिए. नहीं-नहीं अब से ऐसा फिर कभी नहीं होगा. हे ईश्वर! मुझे क्षमा करना." उन्होंने आँखें बंद कर मन ही मन सोचा.
पर जैसे ही उन्होंने आँखें खोली तो मानो उन पर बिजली आ गिरी.
–
जयसिंह को आँख मूँद कर अपनी प्रार्थना करने में शायद एक-दो सेकंड ही लगे होंगे, पर उतनी सी देर में मनिका जिस तरह उनके सामने खड़ी हो गई थी वह देख उनका सिर चकरा गया.
मनिका की पीठ उनकी तरफ थी और वह खड़ी-खड़ी ही कमर से झुकी हुई थी. उसके दोनों नितम्ब लेग्गिंग्स के कपड़े में से पूरी तरह उभर आए थे. उसकी टी-शर्ट ऊपर उठ गई थी और मनिका की पतली, गोरी कमर केबिन में फैली सूरज की रौशनी में चमक रही थी. तिसपर, जयसिंह का चेहरा अपनी बेटी के अधोभाग के बिलकुल सामने था.
जयसिंह ने अपने लिए प्रण के वास्ते अपनी नज़रें घुमानी चाही पर उनका दिमाग़ अब उनके काबू से बाहर जा चुका था. अगले ही पल उनकी आँखें फिर से मनिका के कसे हुए जवान नितम्बों पर जा टिकीं. उन्होंने गौर किया कि मनिका असल में सामने वाली बर्थ के नीचे रखे बैग में कुछ टटोल रही थी. उनसे रहा न गया,
"क्या ढूँढ रही हो मनिका?" उन्होंने पूछा.
"कुछ नहीं पापा मेरे earphones नहीं मिल रहे, डाले तो इसी बैग में थे." मनिका ने झुके-झुके ही पीछे मुड़ कर कहा.
उसके मुड़ने पर जयसिंह ने पाया कि मनिका के बाल खुले थे और उसकी टी-शर्ट के गले से उसका वक्ष दिखाई पड़ रहा था. वे बेकाबू हो गए.
मनिका वापस अपना सामान टटोलने में लग गई.
जयसिंह ने देखा कि मनिका के इस तरह झुके होने की वजह से उसकी लेग्गिंग्स का महीन कपड़ा खिंच कर थोड़ा पारदर्शी हो गया था. उन पर एक बार फिर जैसे बिजली गिर पड़ी. केबिन में इतनी रौशनी थी कि उन्हें उसकी सफ़ेद लेग्गिंग्स में से गुलाबी कलर का अंडरवियर नज़र आ रहा था. जयसिंह ने अपनी नज़रें पूरी शिद्दत से अपनी बेटी के नितम्बों पर गड़ा लीं.
वे सोचने लगे कि पहली नज़र में उन्हें उसकी अंडरवियर क्यूँ नहीं दिखाई दी? फिर उन्हें एहसास हुआ की मनिका जो अंडरवियर पहने थी वह कोई सीधी-सादी अंडरवियर नहीं थी, बल्कि एक थोंग था.
Thong, एक प्रकार का सेक्सी अंडरवियर होता है जिससे पीछे का अधिकतर भाग ढंका नहीं जाता.
जयसिंह पर गाज पर गाज गिरती चली जा रही थी. ट्रेन के हिचकोलों से हिलते मनिका के नितम्बों ने उनके लिए वचन की धज्जियाँ उड़ा दीं थी. आज तक जयसिंह ने, अंग्रेज़ी फ़िल्म अभिनेत्रियों के सिवा किसी को इस तरह की सेक्सी अंडरवियर पहने नहीं देखा था, अपनी बीवी मधु को भी नहीं. उनके मन में पहला ख़याल वही आया जो हर एक हिंदुस्तानी मर्द के मन में किसी लड़की को इस तरह देखने पर आता है, ‘रांड’.
”ये मनिका कब इतनी जवान हो गई? पता ही नहीं चला. आज तक इसकी माँ ने ऐसी कच्छी पहन कर नहीं दिखाई जैसी ये पहने घूम रही है! ओह्ह मेरे पैसों से ऐसी कच्छीयाँ लाती है ये…" जयसिंह जैसे सुध-बुध खो बैठे थे. “म्म, क्या कसी हुई गांड है साली की… हाय, ये मैं क्या सोच रहा हूँ? सच ही तो है… साली कुतिया कैसे अधनंगी घूम रही है देखो, मधु बेचारी सही कह रही थी. साली छिनाल के बोबे भी बहुत बड़े हो रहे हैं… म्म… हे प्रभु!"
जयसिंह के दिमाग़ में बिजलियाँ कौंध रहीं थी.
–
जयसिंह के कई ऐसे दोस्त थे जिनके शादी के बाद भी स्त्रियों से सम्बंध रहे थे. लेकिन उन्होंने कभी मधु के साथ दगा नहीं की थी. उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनकी कामिच्छा भी मंद पड़ गई थी और वे कभी-कभार ही मधु संग संभोग किया करते थे. लेकिन आज अचानक जैसे उनके अन्दर का सोया हुआ मर्द फिर से जाग उठा था. उन्होंने पाया की उनका लिंग पैंट फाड़ने को हो रहा था.
मनिका को उसके ईयरफ़ोन मिल चुके थे. वो सीधी हुई और सामने की सीट पर बैठ फ़ोन में गाने लगाने लगी. जयसिंह से नज़र मिलने पर वह मुस्का दी थी. पर उसे क्या पता था कि सामने बैठे उसके पापा किस कदर उस के जिस्म के दीवाने हुए जा रहे थे.
इधर जयसिंह का लिंग उन्हें तकलीफ दे रहा था. बैठे होने की वजह से लिंग को खड़ा होने की जगह नहीं मिल पा रही थी. उन्हें ऐसा लग रहा था मानो एक दिल उनके सीने में धड़क रहा था और एक उनकी टांगों के बीच. जयसिंह जैसे भूल चुके थे कि मनिका उनकी बेटी है,
"साला लौड़ा भी फटने को हो रहा है और ये साली कुतिया मुस्कुरा रही है सामने बैठ कर! ओह, क्या मोटे होंठ है साली के, गुलाबी-गुलाबी… मुँह में भर दूँ लंड इसके… आह्ह…"
लेकिन सच से मुँह भी नहीं फेरा जा सकता था, थोड़ी देर बाद जब उनका दिमाग़ कुछ शांत हुआ तो वे फिर सोच में पड़ गए.
"मनिका… मेरी बेटी है… साली कुतिया छोटी-छोटी कच्छीयाँ पहनती है… उफ़ पर वो मेरी बेटी… साली का जिस्म ओह्ह… उसकी फ्रेंड्स मुझे उसका बॉयफ्रेंड कहती हैं… ओह मेरी ऐसी किस्मत कहाँ… काश ये मुझसे पट जाए…कयामत आ जाएगी… पर वो मेरी प्यारी बिटिया… है."
जयसिंह इसी उधेड़बुन में लगे थे जब मनिका ने अपनी सैंडिल खोली और पैर बर्थ के ऊपर कर के लेट गई. एक बार फिर उनके कुछ शांत होते बदन में करंट दौड़ गया. मनिका की करवट उनकी तरफ़ थी और उसकी गहरे गले की टी-शर्ट में उसका वक्ष उभर आया था. इससे पहले की जयसिंह का दिमाग़ इस नए झटके से उबर पाता उनकी नज़र मनिका की टांगों के बीच बन रही 'V' आकृति पर जा ठहरी. वे तड़प उठे.
"ओह्ह! मनिकाऽऽ… रांड!” जयसिंह के मन में आया संकोच फिर से जाता रहा था.
जयसिंह अपनी बर्थ पर सीधे हो कर लेट गए ताकि मनिका पर उनकी नज़र ना पड़े. वे जानते थे कि अगर वे उसकी तरफ देखते रहे तो उनका दिमाग़ सोचने-समझने के काबिल नहीं रहेगा. लेकिन यह वक्त सोच-समझकर आगे बढ़ने का ही था.
"मैं और मनिका दिल्ली अकेले जा रहे हैं, इस को पटाने के लिए इससे ज्यादा सुनहरा मौका शायद ही फिर मिले. क्या ये हो सकता है? अगर थोड़ी भी गड़बड़ हुई तो मामला बहुत बिगड़ सकता है… हे भगवान! क्या मैं अपनी बेटी को पटाने का सोच रहा हूँ…”
–
पिछले 23 साल में जयसिंह की जनाना समझ सिर्फ़ अपनी बीवी और घर की महिलाओं तक ही सीमित रही थी. सो वे लेटे-लेटे स्कूल कॉलेज के ज़माने के अपने अनुभव के बारे में सोचने लगे.
"हम्म, मनिका एक लड़की है… सो उसे पटाने के लिए लौंडों वाले पैंतरे लगाने होंगे… लड़कियों के बारे में मैं क्या जानता हूँ? हमेशा से ही लड़कियाँ पैसे वाले लौंडों के चक्करों में जल्दी आती थी, सो पहली समस्या का हल तो मेरे पास है. दूसरा लड़कियों को अपनी तारीफ़ भी काफ़ी पसंद होती है, उसमें भी कोई दिक्कत नहीं है… पर ऐसा क्या है जो मनिका को मेरे प्रति आकर्षित कर सके…?"
जयसिंह के ज़ेहन में अचानक से एक विचार कौंधा.
"कॉलेज में साला अविनाश रोज़ नई लड़की घुमाता था, और उसकी अय्याशी का पता होने के बावजूद वो लड़कियाँ भी उसके आगे-पीछे घूमा करतीं थी. क्या कहता था वो कि…? एक बार लड़की को अगर भरोसे में ले लिया जाए तो उस से कुछ भी करवाया जा सकता है. क्या यह तरीक़ा मनिका पर काम कर सकता है?"
जयसिंह ने मुड़ कर एक बार मनिका की तरफ़ देखा. उनकी नज़रें मिली तो मनिका ने फिर से एक चुलबुली सी मुस्कान बिखेर दी. जयसिंह भी मुस्का दिए, उन्हें अपने सवाल के लिए एक जवाब मिल गया था.
"जिस तरह की कच्छी पहन के साली रंडी मुस्कुरा रही है उससे तो शायद बात बन सकती है. अगर ये इस तरह के कपड़े पहनती है तो कहीं ना कहीं इसके मन में भी ठरक तो है. इसके साथ थोड़ी बहुत ऐसी-वैसी बातें अगर करूँ तो शायद किसी से न कहे. इसमें मधु से हुई इसकी लड़ाई भी काम आ सकती है. कुछ-कुछ बातें अगर इसे छुपाने को कहूँगा तो मान ही जाएगी. वैसे भी लड़कियाँ स्वभाव से संकोची होतीं है, लेकिन उन्हें चुपके-चुपके शरारत करना बहुत भाता है. इसी सब के बीच मुझे अपनी पिता की छवि से बाहर आकर इसे दोस्ती का एहसास करना होगा. अगर सच में इसकी सहेलियाँ मुझे इसका बॉयफ़्रेंड कहती है तो शायद ये काम ज़्यादा मुश्किल ना हो. लेकिन इस से आगे क्या…?"
इधर मनिका, जो अपने फ़ोन से गाने सुन रही थी, को लग रहा था कि उसके पापा सो रहे हैं. गाना सुनते-सुनते वो हौले-हौले गाने भी लगी. लेकिन जयसिंह की सारी इंद्रियों का ध्यान तो मनिका की तरफ़ ही था, उसकी आवाज़ सुनते ही उन्होंने अपने कान खड़े कर लिए थे.
"I am sexy and you know it… mmm" मनिका रुक-रुक कर गाने का मुखड़ा गा रही थी.
जयसिंह को मानो कायनात ही अपनी बेटी की जवान देह की तरफ़ धकेल रही थी.
"सेक्सी! हम्म, साली कुतिया गाने भी ऐसे सुनती है. यहाँ मैं इसे भोली समझे बैठा था." जयसिंह कामाग्नि में रिश्ते-नाते भूलते जा रहे थे. "बस मुझे किसी तरह से मनिका की जवानी में आग लगानी होगी. वैसे इन मामलों में लड़कियाँ मर्दों से कम तो नहीं होती बस वे जाहिर नहीं करती. लेकिन यहीं सबसे बड़ी दिक्कत आने वाली है. मनिका के तन में इतनी हवस जगानी होगी कि वह समाज के नियम तोड़ने के लिए राज़ी हो जाए."
दिल्ली पहुँचते-पहुँचते जयसिंह अपनी बेटी को पटाने का प्लान बना चुके थे.
पहले वे अपने पैसे और तारीफों से मनिका को दोस्ती के जाल में फँसाने वाले थे, ताकि वह उन्हें पिता के रूप में देखना छोड़ दे. फिर वे धीरे-धीरे अपना चंगुल कसते हुए मनिका के साथ अडल्ट किस्म की बातें शुरू करने वाले थे. उनका आख़िरी लक्ष्य था, उसका भरोसा पूरी तरह से जीतने के बाद, हौले-हौले उसकी कमसिन जवानी की आग को हवा देने का.
जयसिंह की एक ख़ूबी थी, कि वे एक बार जो ठान लेते थे उसे पा कर ही दम लेते थे. इसीलिए आज उनका बिज़नस में इतना नाम और दाम था. उनका मन अब शांत था. अब इसी एकाग्रता और धैर्य के साथ वे अपनी बेटी को अपनी रखैल बनाने के अपने प्लान पर अमल लाने वाले थे.
–
शाम ढल चुकी थी, दिल्ली स्टेशन पर गाड़ी आ कर रुकी. बाहर आ कर मनिका और जयसिंह ने एक टैक्सी ली. टैक्सी ड्राईवर ने पूछा कि वे कहाँ जाना चाहते हैं.
“Marriott Gurgaon." जयसिंह बोले, और कनखियों से मनिका की तरफ देखा.
–