Naik
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Hammat ki daad deni padegi Ankush ki Pyar m kia kia kerna padta h ab dekhte h suleman uncle se kia jugaad lagwata h apna ashiq Ankushअंकुश की उस दिन की दिलेरी काम कर गयी और अगले दिन से उनकी फ़ोन पर बात होना स्टार्ट हो गयी, प्रेम की आग दोनों और लगी हुई थी, जो बात प्रेमपत्र की एक छोटी सी लाइन से शरू हुई थी वो कब आयी लव यू और भविष्य में संग जीने मरने की कसमो में बदल गयी दोनों को पता ही नहीं चला, दोनों प्रेम मेंथे और जब प्रेम में होते तब न दिन का पता होता है और न रात का, यही उन दोनों के साथ हुआ, दोनों के स्कूल खुल गए और उनका स्कूल जाना भी शरू हो गया लेकिन फिर भी दोनों किसी न किसी बहाने से रात के अँधेरे में एक दूसरे से बात करके अपने प्रेम की अग्नि को शांत कर लिया करते थे,
लेकिन जैसे जैसे समय गुज़र रहा था उसके साथ इस प्रेम रुपी अग्नि को संभालना दोनों के बस से बहार हो रहा था और ऊपर से बदलते मौसम ने बरसात के बाद ठंढ के आने की आहट दे दी थी, इसका मतलब था की अब दोनों का छत पर सोना बंद और अगर छत पर सोना नहीं होगा तो फिर वो दोनों भला बात कैसे कर पाएंगे एक दूसरे से।
प्रेमपत्र वाला मामला खतरों भरा था इसलिए ये फ़ोन वाला प्लान बनाया था अंकुश ने और अब अगला रास्ता मिलने का हो सकता था लेकिन
छोटे शहर में प्रेमी प्रेमिका का मिलना या एक दूसरे के सामने बैठ कर बातें कर पाना किसी स्वपन के सामान होता है, वहा सब एक दूसरे को जानते है और ऐसे अगर लड़के और लड़की की परछाई भी एक दूसरे से टकरा जाये तो लड़की बदनाम हो जाती थी और यहाँ तो इनदोनो में
इतना प्रेम हो चला था की वो एक दूसरे के बिना एक रात भी बिताना पहाड़ जैसा था।
नवम्बर आते आते सर्दी आगयी, इस बार अंकुश को लग रहा था जैसे ठण्ड समय से पहले ही आगयी हो, गरिमा ने अब छत पर सोना बंद कर दिया था और अब बस फिर वही शाम में छत से किसी बहाने से इशारो में गरिमा से बात हो जाती थी लेकिन अब इन इशारो से अंकुश का कोई भला नहीं होने वाला था, आखिर एक दिन अंकुश ने इशारो में ही गरिमा को रात में छत पर मिलने के लिए कहा, पहले तो गरिमा ने ना नुकर की लेकिन फिर मान गयी।
अंकुश पहली बारी की तरह इस बार भी रात के अंधेरे में अपने कमरे से चुप चाप निकला और गरिमा की छत पर जा कर कोठरी में छुप गया, उसे ज़्यादा इन्तिज़ार नहीं करना पड़ा क्यूंकि लगभग दस मिनट बाद ही गरिमा भी उस कोठरी में आपहुची।
"क्यों बुलाया है मुझे इतनी रात को " गरिमा ने फुसफुसाते हुए अंकुश से कहा
"इतने दिन से बात नहीं हो पा रही थी और ना ही तुम्हारे पास आने के मौका मिला था इसलिए "
"तुम खुद तो मरोगे और साथ में मुझे भी मरवाओगे "
"हट, कोई नहीं मरेगा, बस मैं तो तुमको देखना चाहता था और तुम्हारी आवाज़ सुनना चाहता था, आयी वास् मिसिंग यू " अंकुश की आवाज़ में तड़प थी
"हाँ देख लो फिर इस घुप अँधेरे में,और हाँ ये मिस इस के चक्कर से बहार निकल जाओ, अगर पापा को भनक लग गयी न तो दोनों को जान से मार देंगे " गरिमा ने अंकुश को चेताते हुए कहा
"क्यों मारेंगे पापा, मैं तो उनकी बेटी से बियाह करना चाहता हूँ मैं भला कोई खेल थोड़ी कर रहा हूँ उनकी बेटी के साथ " अंकुश ने दुनिया भर का प्रेम अपनी आवाज़ में उड़ेलते हुए कहा
"बस बस अब ज़ायदा आशिक़ी मत करो और घर जाओ, जो देखना था देख लिया और आवाज़ सुननी थी वो भी सुन ली, मैं नीचे जा रही हूँ इस से पहले नीचे कोई जग जाए " गरिमा ने अंकुश समझते हुए कहा
"ठीक है जा रहा हूँ लेकिन ये तो बताओ अब फिर कब मिलोगी ? हमारी बात कैसे होगी आगे ?"
"वो तुम देखो, लेकिन आजके बाद अब हम यहाँ नहीं मिलेंगे, यहाँ अगर किसी ने देख लिया तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी दोनों के लिए, तुम इतने समझदार हो तुम्ही कोई रास्ता निकालो "
"हाँ सोंचता हूँ कोई रास्ता लेकिन उस से पहले ये बताओ की रात में तुम कमरे में अकेली सोती हो या कोई और भी सोता है तुम्हारे कमरे में "
"दादी सोती है मेरे साथ, क्यों ये क्यों पूछ रहे हो तुम ?"
"कुछ नहीं, मैं एक दो दिन में टेलीफोन वाले अंकल को भेजूंगा तुम्हारे घर किसी बहाने से वो तुम्हारे कमरे में कुछ ऐसा जुगाड़ कर देंगे जिस से रात में हम किसी बहाने से बात कर पाएंगे "
"ना बाबा ना, ये नहीं हो पायेगा, वहा कमरे में बहुत रिस्क है, अगर किसी ने भूल से भी फ़ोन देख लिया तो बवंडर हो जायेगा "
"अरे पागल कोई नहीं देखेगा, वो फ़ोन बस हम एमेजेन्सी में बात करने के लिए इस्तेमाल करेंगे, वैसे भी वो जुगाड़ तुम्हारे घर के नंबर से कनेक्टेड होकर ही हो पायेगा इसलिए उसमे रिस्क है लेकिन थोड़ा रिस्क तो लेना होगा नहीं तो अब मैं जो रास्ता निकलूंगा उसकी जानकारी तुम तक कैसे पहुंचेगी "
"हाँ कभी कभार एक दो मिनट के लिए तो हो सकता है " गरिमा ने हामी भरी
"गुड तो फिर मैं एक दो दिन में टेलीफोन वाले सुलेमान अंकल को तुम्हारे घर भेजूंगा, बस उस टाइम तुम्हारे पापा न हो "
"बुधवार को भेजना, बुधवार को पापा आगरा जाते है काम से "
"हाँ फिर ये अच्छा रहेगा, तुम बुधवार को घर पर ही रहना ओके "
"ठीक है बाबा घर ही रहूंगी, अब तुम जाओ, कोई देख लेगा "
"ठीक है जा रहा हूँ," कह कर अंकुश दरवाज़े की ओर मुड़ा और फिर वापिस पलटा गरिमा को अपनी बहो में लेने के लिए लेकिन आज गरिमा पहले से तैयार थी छिटक के दूर खड़ी हो गयी और अंकुश हाथ मसलता रह गया, गरिमा की एक हलकी खनकती हुई हसीं उसके कानो से टकराई और अंकुश ने गरिमा को उस कोठरी के दरवाज़े से खुली छत की ओर जाते हुए देखा, अस्समान पर छाए हुए बदल छट गए थे और छत चांदनी से नहाया हुआ था अंकुश के भी गरिमा के पीछे पीछे छत पर निकल आया, गरिमा बीच छत पर खड़ी चाँद की ओर देख रही थी, नवंबर की हलकी ठंडवाली रात थी और चाँद अपनी शबाब पर था अंकुश गरिमा से कुछ दूर खड़ा गरिमा और चाँद को एक साथ देख रहा था उसे उन्दोनो को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो एक साथ दो दो चाँद को निहार रहा हो, एक वो चाँद जो सबका था और ये दूसरा चाँद जो सिर्फ उसका था
चौदहवी के चाँद को देख कर किसी समुन्दर में कोई जवार भाटा उठा हो या न हो लेकिन अंकुश के मन में प्यार का जवार भाटा हिलोरे मार रहा था, वो हलके कदम से चलता हुआ गरिमा के पास जा पंहुचा और पीछे उसको अपनी बाहों में कस लिया, गरिमा ने भी कोई विरोध नहीं किया और अंकुश के हाथो पर अपना हाथ रख दिया।
दोनों चांदनी और प्रेम में डूबे एक दूसरे की बाहों में समाये एक दूसरे के कान में सरगोशियां करते हुए अपने प्रेम का इज़हार कर रहे थे, ये पहले बार था जब दोनों ने अपने प्रेम का इज़ार एक दूसरे के सामने किया हो, इस खूबसूरत रात से अच्छा समय भला हो भी क्या सकता था अपने प्रेमी को अपने मन की बात बताने का, कुछ देर बाद जब दोनों अलग हुए तो अंकुश ने हौले से गरिमा का माथा अपने हाथो में ले कर चुम लिया, गरिमा ने शर्म और लाज का मान रखते हुए अपनी आँखे बंद कर ली। अंकुश ने एक आखिरी बार गरिमा की सुन्दरता को अपनी आँखों में कैद किया और बाउंड्री से उतर कर अपने घर की छत की ओर चला गया।
Badhiya shaandar update