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Romance बेडु पाको बारो मासा

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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बढ़िया अपडेट भाई जी।

बचपन और लड़कपन तो सबका एडवेंचर्स से भरपूर होता है, बस उसका रूप बदलता रहता है।

लेकिन भाई ये साइड हीरो की लव स्टोरी कुछ ज्यादा लंबी लगने लगी है अब तो। इतना तो आपने न सुनहरी और न नीतू का लिखा अभी तक।
 

Naik

Well-Known Member
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अंकुश का अगला पूरा दिन फ़ोन के इन्तिज़ार में गुज़ारा, वो फ़ोन का इतनी बेसब्री से इन्तिज़ार कर रहा था की उस से गरिमा को लेटर भी नहीं लिखा जा सका, राम राम करते करते दिन कटा और अगले दिन पापा के पीछे पीछे वो भी ऑफिस जा पंहुचा, उसे फ़ोन लेकर कर हर हाल में एक बजे से पहले गरिमा के स्कूल के पास पहुंचना था अगर ऐसा नहीं होता तो फिर गरिमा से मिलने का दूसरा मौका इतनी आसानी से नहीं मिलने वाला था, अंकुश सुलेमान को ढूंढता हुआ एक्सचेंज जा पंहुचा लेकिन वहा से उसे एक अच्छी तो एक बुरी खबर सुनने को मिल गयी।

अच्छी खबर ये थी की राकेश अंकल को फ़ोन मिल गया था और उन्होंने अंकुश के लिए खरीद भी लिया था, लेकिन वो आज सुबह आने की जगह शाम में आने वाले थे इसलिए अब अंकुश फ़ोन शाम से पहले नहीं मिल सकता था, अंकुश निराश हो गया लेकिन फिर भी उसे आज गरिमा से मिलना ही था, आखिर वो पहली बार गरिमा को इतने पास से देखने का उससे बात करने का मौका नहीं गवा सकता था, अंकुश साइकिल उठा कर धीरे धीरे चलाता हुआ गरिमा के स्कूल के पास आपहुचा, उसने अपनी साइकिल स्कूल से थोड़ी दूर पर रोकी थी वो नहीं चाहता था की लोगो की नज़रो में आये, वैसे स्कूल की छुट्टियां चल रही थी इसलिए इक्का दुक्का स्टूडेंट स्कूल आते जाते दिख रहे थे। अंकुश ने साइकिल एक पेड़ के नीचे लगायी और पेड़ के नीचे राखी एक टूटी फूटी बेंच पर बैठ गया, अभी केवल बारह ही बजे थे उसे काम से काम एक घंटा और इन्तिज़ार करना था गरिमा का।

गर्मी बढ़ने लगी थी और चारो और सफ़ेद चिट्टी चुप निकली हुई थी, धुप की गर्मी दिन चढ़ने के साथ साथ इतनी तेज़ होने लगी थी की वातावरण में वायुमंडलीय अपवर्तन होने लगा था, अंकुश गर्मी से बेहाल पेड़ के बैठा गरिमा का इन्तिज़ार कर रहा था, तभी उसे स्कूल से बाहर निकलता हुआ एक धुंधला साया दिखाई दिया वायुमंडलीय अपवर्तन के कारन अंकुश उसे पहचान नहीं पा रहा था लेकिन उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो सफ़ेद कपडे में लिप्त हुआ साया हवा में हौले हौले उड़ता हुआ चल रहा हो, अंकुश पुरे धयान से पहचाने के कोशिश कर रहा था लेकिन एक तो दुरी ऊपर से वायुमंडलीय अपवर्तन के कारन अंदाज़ा लगाना भारी पड़ रहा था, वो साया स्कूल से चलता हुआ जब रोड पर पंहुचा और अंकुश को उस साये को देखने का एंगल बदला तब उसे शक हुआ की ये साया गरिमा ही है।

अंकुश को पछतावा हो रहा था की अगर वो आज एक्सचेंज जाने की जगह घर होता तो गरिमा को घर से निकलते देख पाता तो उसे पता रहता की वो स्कूल किस रंग के कपड़ो में गयी है, लेकिन जो भी हो उसे इस लड़की के पीछे ही जाना था क्यूंकि उसे लग रहा था की ये लड़की गरिमा ही है, अंकुश साइकिल के पैडल मरता हुआ हुआ उस सफ़ेद कपड़ो में लिपटे साये के पास जा पंहुचा,

गर्मी बहुत थी इसलिए उस लड़की ने अपनी सफ़ेद चुन्नी से अपने चेहरे को ठक लिया था, अंकुश उस लड़की के पास तो जा पंहुचा था लेकिन उसे समझ नहीं आरहा था की कैसे पूछे की वो गरिमा ही है या कोई और, अगर गरिमा ही है और उसको नहीं पहचाना तो मुसीबत और अगर गलती से कोई और लड़की हुई तो कही सरे आम बेइज़्ज़ती न हो जाये।

अंकुश का दिमाग बिलकुल भी काम नहीं कर रहा था और वो किसी मुर्ख इंसान के जैसे धीरे धीरे साइकिल का पैडल मारते हुए उस साये के पीछे चल रहा था, अचानक वो साया चलते चलते रुका और और अंकुश की ओर पलटा, अंकुश उसके ऐसे पलटने से हड़बड़ा गया और उसकी साइकिल लड़खड़ा गयी, अंकुश ने साइकिल के ब्रेक मारे लेकिन तबतक देर हो चुकी थी और वो साइकिल समेत गर्म तपती हुई सड़क पर चारो खाने चित पड़ा था।

अंकुश को ऐसे लड़खड़ा कर गिरते देख कर वो लड़की अरे अरे करती हुई दौड़ी आयी और अंकुश को सहारा दे कर उठाया, अंकुश झेप गया था, लड़की के सामने ऐसे लड़खड़ा आकर गिरना उसे किसी कीमत पर गवारा नहीं था लेकिन वो अब झेंपने के अलावा कर ही क्या सकता था उसे झट से साइकिल उठा कर स्टैंड पर खड़ी की और अपने कपड़ो पर लगी धूल झाड़ने लगा,

"तुमको चोट तो नहीं लगी ज़यादा ?" सुरीली आवाज़ में पूछा गया
"नहीं नहीं कोई चोट नहीं लगी वो बस ब्रेक अटक गया था इसका इसलिए " अंकुश उसकी सुरीली आवाज़ में खोता हुआ बोला

"तुम बड़े अजीब हो इतनी देर से बिना कुछ बोले पीछे पीछे चल रहे थे, लेटर में तो ऐसे लिखा था जैसे कितनी ज़रूरी बात करनी हो मुझसे " गरिमा ने शिकायती स्वर में कहा

"आयी ऍम सॉरी ! वो एक्चुअली तुमने मुँह पर चुन्नी लपेट राखी थी तो मुझे लगा तुम शायद बात नहीं करना चाहती इसीलिए " अंकुश ने मरा टूटा झूट बोला, उस टाइम उसका दिमाग एक दम ब्लेंक था

"बड़े अजीब हो तुम, वो तो मैंने गर्मी के कारन डाला हुआ था, अब चले यहाँ यही धुप में ही खड़े रहना है " गरिमा के बोलते ही अंकुश जैसे नींद से जागा और झट से साइकिल स्टैंड से हटा कर उस पर बैठ गया

"आजाओ तुम भी साइकिल पर" अंकुश ने हिम्मत करके गरिमा को साइकिल पर बैठने का इशारा किया
"पागल हो क्या, पुरे कसबे में प्रचार करोगे, अगर एक आदमी ने भी मुझे तुम्हारी साइकिल पर ऐसे बैठे हुए देख लिया तो पुरे कसबे को पता लग जायेगा हम दोनों की दोस्ती का, तुम भी साइकिल से उतर जाओ और मेरे साथ चलते चलते बात कर लो जो भी कहना है, और ये बुक भी पकड़ लो अपने हाथ में अगर कोई जान पहचान वाला नज़र आये तो ये बुक मुझे ऐसे पकड़ना जैसे तुम मुझे ये किताब देने आये थे, समझे मेरी बात " गरिमा ने ठोस शब्दों में अंकुश को समझाया

अंकुश खुद दुनिया भर का चालाक था लेकिन गरिमा की समझदारी और प्लानिंग सुन कर दंग रह गया था, वो गरिमा के कहे अनुसार साइकिल से उतर कर उसके साथ साइकिल थामे चलने लगा, उसने गरिमा की दी हुई वही हिंदी की किताब साइकिल के करियर में फसा दी थी। अंकुश अब चल तो रहा था लेकिन उसको समझ नहीं आरहा था की आखिर बात कहा से शरू करे, उसकी ये परेशानी भी गरिमा ने दूर कर दी

"हाँ अब बोलो क्या बात करनी थी तुम्हे "
"वो बस कुछ खास नहीं, बस ऐसे ही " अंकुश हकलाया

"ठीक है तो फिर साइकिल पर बैठो और घर जाओ, मैं अकेली घर आजाऊंगी, जब स्कूल होता है तब भी तो अकेली आती ही हूँ ना " गरिमा की सुरीली आवाज़ में नाराज़गी साफ़ महसूस की थी अंकुश ने
"अरे वो बात ये है की अब हम दोंनो फ्रैंड्स बन चुके है लेकिन वो लेटर लिखने और भेजने वाला मामला रिस्की लग रहा है इसी के बारे में बात करना चाह रहा था " अंकुश ने एक सांस में बोल डाला

"ओह्ह तो ठीक है मत लिखा करो लेटर, किसने बोला तुमको मुझे लेटर लिखने के लिए ? तुमने ही लिखा था लेटर तो मैंने भी जवाब में लिख दिया, अब ठीक नहीं लग रहा तो कोई बात नहीं " गरिमा की आवाज़ में अब गुस्सा महसूस किया था अंकुश ने

"अरे नहीं, बात ये है की मोहित को आदत पड़ गयी है पैसो की, कल वो कही किसी के आगे बोल देगा तो हम दोनों के लिए मुसीबत आजायेगी, इस दिक्कत से बचने का मैंने एक रास्ता निकला है जो सेफ भी और लेटर लिखने और पकडे जाने का झझट भी नहीं रहेगा "

"मतलब अब मोहित से डर कर लेटर लिखना बंद "
"हाँ लेटर बंद लेकिन उस से बढ़िया तरीका है फ़ोन पर "

"फ़ोन पर ??? दिमाग ठीक है क्या, फ़ोन पर कैसे बात हो सकती है भला, जब मम्मी पापा पूंछेंगे तब ?"
"अरे तुम्हारे घर वाले फ़ोन पर नहीं, मेरी बात धयान से सुनो अगर कोई डाउट लगे तब बोलना बस तुम मेरी बात सुन लो आराम से "

"ठीक है बोलो, जो भी कहना है तुम्हे "
"बस इतना प्लान है मेरा की मैं आज रात को तुम्हारी छत पर आऊंगा और एक छोटा सा फ़ोन तुम्हारी छत पर बनी हुई कोठरी में रख जाऊंगा वो बहुत छोटा सा फ़ोन है देखने में मोबाइल के जैसा लेकिन उस में तार होगी, उस तार में २ पिन लगा हुआ होगा, तुम्हारी छत से जो टेलीफोन की चार पांच वायर जा रही है आगे के घरो में उनमे से एक वायर पर कट लगा होगा, तुम फ़ोन की एक पिन वायर के पहले कट पर लगा देना और दूसरी पिन उस वायर पर बने दूसरे कट पर बस हो गया, फिर रात में हम दोनों बिना किसी दिक्कत के एक दूसरे से बात कर पाएंगे , इसमें कोई रिस्क नहीं है और ना किसी को पता चलेगा "

"और जो टेलीफोन का बिल आएगा उसका क्या ?" गरिमा ने शंका जताई
"मेरा और तुम्हारा फ़ोन दोनों एक ही लाइन पर होगा इसलिए कोई बिल नहीं आएगा, ठीक वैसे ही जैसे हमारे घर के दो अलग अलग कमरों में रखे हुए फ़ोन को हम एक ही टाइम पर उठा लेते है तो आपस में बात कर लेते है बिना किसी चार्जेज के "

"ओह्ह अच्छा, लेकिन अगर उस टाइम नीचे से पापा ने किसी को कॉल करने के लिए फ़ोन उठा लिया फिर ?"
"कुछ नहीं होगा, क्यंकि ये लाइन तुम्हारे घर की नहीं है, किसी और के घर की है वो तो रात से पहले ही सो जाते है"

"ठीक है लेकिन मैं फ़ोन कहा छुपा कर रखूंगी, किसी ने देख लिया तो ?"
"वो बहुत छोटा सा फ़ोन है, तुम उसे अपने स्कूल बैग में भी रख सकती हो, और अगर कोई पूछे तो बोल देना की किसी सहेली का है "

"हाँ ये ठीक है लेकिन बात करने के लिए छत पर जाना पड़ेगा बार बार, किसी ने देख लिया तो ?"
"तो हम दिन में नहीं करेंगे, आजकल गर्मी के दिन है सब छत पर सोते है, तुम भी छत पर सोने के बहाने से आजाना और फ़ोन कनेक्ट कर लेना दोनों रात में बाते कर लिया करेंगे और सोने से पहले तुम फ़ोन हटा कर छुपा देना और सो जाना, किसी को कानो कान खबर भी नहीं होगी और हमारी बात हो जाया करेगी "

"हाँ ये आईडिया ठीक लग रहा है, लेकिन तुम आज रात को कैसे आओगे मेरी छत पर, किसी ने देख लिया तो ?"
"हाँ ये रिस्क है लेकिन कोई दूसरा चारा नहीं है, मुझे आज रात आना पड़ेगा फ़ोन रखने के लिए और उस वायर में कट लगाने के लिए "

"ठीक है तो तुम आज कर लेना जो करना है, वहा कोठरी में एक बाल्टी है पेंट की, उलटी रखी होगी उसी के नीचे छुपा देना फ़ोन, मैं सुबह में बहाने से निकाल ले जाउंगी, रात में नहीं आसक्ति, किसी ने दोनों को साथ में देख लिया तो शहर में जुलुस निकल जायेगा हमारा "

"हाँ ठीक है, बस मोनू की प्रॉब्लम है वो रात में सोता तो नहीं है छत पर "
"कौन ? मोनू भैय्या ??? अरे वो तो बहुत दिनों से चाचा के घर में सोते है, वहा चाची और गोलू अकेले रहते है तो भैय्या रात में खाना खा कर वही जाता है सोने फिर सुबह नाश्ता करके ही आता है, मेरी चाचा जी मुंबई में जॉब करते है इसलिए चाची अकेली रहती है "

"वाह ! ये तो और अच्छा है, ठीक है फिर आज रात में फ़ोन आते ही मैं सारी सेटिंग कर दूंगा "
"ठीक है, अब तुम मुझे वो किताब दे कर जाओ, बाजार शुरू होने वाला है कही कोई मिल न जाये "

अंकुश ने साइकिल रोक कर करियर से किताब निकाल कर गरिमा की और पलटा, गरिमा भी चलते चलते रुक गयी थी और अब अपने मुँह पर से चुन्नी हटा कर अपना पसीना पोंछ रही थी, गर्मी और धुप से उसका गोरा मुखड़ा तमतमाया हुआ था और लाल हो गया था जैसे किसी ने ढूढ़ के भगोने में एक चुटकी सिन्दूर घोल दिया हो, अंकुश पहली बार गरिमा को इतने पास से देख रहा था, उसके सुन्दर मुखड़े को देख कर अंकुश का मन धड़क उठा,

"हे ईश्वर कितनी सुन्दर है ये, काश ये सदा के लिए मेरी हो जाये "।
गरिमा अंकुश की प्राथना से अनजान अपने चेहरे का पसीना पोंछ कर किताब थामी और एक अलविदाई नज़र अंकुश पर डाल कर घर की ओर बढ़ गयी, अंकुश गरिमा के रूम में मंतर्मुग्ध साइकिल खींचता हुआ उसके पीछे चलता चला गया।

गरिमा की चाल में अब तेज़ी थी वो कुछ ही देर में तेज़ी से चलती हुई अंकुश की नज़रो से ओझल हो गयी, लेकिन अंकुश अभी भी उसी अवस्था में साइकिल खीचता हुआ चल रहा था, वो गरिमा के खयालो में ऐसा खोया हुआ था की उसे याद भी नहीं रहा की वो अपने साथ साथ साइकिल का वज़न भी खींच रहा है और अगर चाहे तो वो साइकिल चला कर भी घर जा सकता था।
Bahot badhiya shaandar update bhai
Yeh Garima ka naak pe dhra gussa bada pyara laga jab woh Ankush ko Pyar se daant Rahi thi
Baherhal sab jugad fit ho gaya h set kerna Baki h
 

Naik

Well-Known Member
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शाम को सुलेमान अंकल ने चुपके से अंकुश को फ़ोन पकड़ा दिया, अंकुश फ़ोन देख कर खुश हो गया, फ़ोन बिलकुल वैसा ही था जैसा उसे चाहिए था, सुलेमान अंकल के हाथ पापा ने कुछ सामान भिजवाया था और वो मम्मी का हाथ बटाने में लगे हुए थे, फ़ोन में सब ठीक था लेकिन जैसी चिमटी जैसी पिन अंकुश को चाहिए थी वो नदारत थी लेकिन सुलेमान अंकल ने उसकी ये समस्या भी दूर कर दी, उनकी टूल किट में वैसी चिमटी थी जो उन्होंने लगा कर अंकुश को दे दी। अब अंकुश रेडी था बस उसे रात का इन्तिज़ार था,

रात में लगभग नौ बजे खाना खाकर उसने थोड़ी देर टीवी देखा और फिर सोने का बहाना करके छत पर आगया, सबसे पहले उसने चारपाई पर अपना बिस्तर लगाया और छत वाली अपनी कोठरी से अपना फ़ोन उठा लाया, ये वही फ़ोन था जिस से अंकुश ने उस रात फ़ोन नुम्बरो की पड़ताल की थी, उसने उसे चावला जी वाली लाइन से कनेक्ट किया और रिंगटोन चेक की, फ़ोन बिलकुल ठीक काम कर रहा था, उसने फ़ोन की बेल ऑफ कर दी थी, उसके यहाँ सब रेडी था लेकिन उसे चिंता थी चवला जी की लाइन गरिमा की छत पर ढँढ़ने की, उसने उसका भी हल ढूंढ लिया था लेकिन वो कितना कामयाब होगा ये तो समय ही बता सकता है,

अंकुश ने फ़ोन का रिसीवर क्रेडल से हटा कर नीचे रख दिया, उसने जेब से अपना वॉकमेन निकला और उसमे कसेट डाल कर गाना प्ले करके रिसीवर के पास रख दिया, उसने टाइम देखा रात के दस बजने वाले थे, उसके शहर में लोग अक्सर दस बजे तक सो जाया करते थे इसलिए उसने गरिमा को देने वाला फ़ोन उठाया और साथ एक छोटा सा बैग उठा कर चुपके से अपने घर की छत से अपने पडोसी की छत पर उतर गया, वो अँधेरे का फ़ायदा उठाकर धीरे धीरे झुक कर चल रहा था ताकि वो किसी को दिखाई ना दे, वो किसी बन्दर की तरह चलता हुआ गरिमा की छत की मुंडेर तक पंहुचा और फिर मुंडेर की दीवार फांद कर छत पर पहुंच गया, अंकुश पहली बार गरिमा की छत पर आया था इसलिए संभल कर चल रहा था, उसकी सांस डर और उत्तेजना के कारन फूल रही थी उसने ज़िन्दगी में आज से पहले कभी ऐसी कोई हरकत नहीं की थी।

अंकुश छत को टटोलता हुआ वहा तक जा पंहुचा जहा से टेलीफोन की वायर आगे जा रही थी, वो दीवार की ओट में होकर बैठ गया और अपने साथ लाये बैग से मोमबत्ती और माचिस निकली, उसने दो ईंट को खड़ा करके मोमबत्ती जलाई, उसने ईंट इस लिए खड़ी की थी ताकि किसी पडोसी को रौशनी न दिखे,

अंकुश ने बिना देर किये ब्लेड निकला और एक एक करके चारो तारो में कट लगा दिया, उसने जेब से नन्हा फ़ोन निकला और कटे हुए तारो में चिमटी फसा कर रिंगटोन चेक करने लगा। उसकी किस्मत अच्छी थी की दूसरे वायर में लगते ही उसे अपने वॉकमेन पर गाना बजने की आवाज़ साफ़ सुनाई दे गयी।

अंकुश ने बैग में से टेप निकाल कर जल्दी से बाकी के वायर पर टेप लगाया और चावला जी के वायर को खुला छोर दिया, उसे जल्दी से मोमबत्ती बुझा दी, उसे अब इसकी ज़रूरत नहीं थी, उसने फ़ोन को डिसकनेक्ट किया और बाकी का सामान अपने बैग में दाल लिया, उसका प्लान कामयाब रहा था बस अब उसको फ़ोन बाल्टी के नीचे रखना भर था।

अंकुश दबे कदमो से कोठरी का गेट खोलकर अंदर घुसा, कोठरी में घाना अँधेरा था, उसने अँधेरे में ही टटोल कर बाल्टी ढ़ंढने की कोशिश की लेकिन बाल्टी नहीं मिली, उसने थक कर बैग से माचिस जलाई, लेकिन माचिस की रौशनी में भी उसे कोई बाल्टी या पेंट के डिब्बे जैसा कोई सामान नहीं नज़र आया, मचिर जल के बुझ गयी तो अंकुश ने फिर से माचिस की डिब्बी से तीली निकाल कर जैसी ही माचिस जलानी चाही, अँधेरे में किसी ने उसका हाथ थाम लिया,

अंकुश इस तरह अचानक हाथ थामे जाने से चिहुंका लेकिन इस पहले आगे कुछ करता
"मैं हूँ अंकुश, तुम्हारी गरिमा " गरिमा ने फुसफुसाते हुए कहा

"ओह्ह गरिमा तुमने तो डरा ही दिया था " अंकुश ने भी उसी तरह फुसफुसाते हुए कहा
गरिमा का हाथ अभी भी अंकुश के हाथ पर ही था

"सॉरी, मैं बस देखने आये थी की तुम आये या नहीं ?"
"हाँ सब हो गया ठीक से, आओ तुम्हे दिखा दू"

"नहीं तुम यही बता दो बाहर किसी ने देख लिया तो ................."
"ठीक है लेकिन मुझे एक माचिस जलनि पड़ेगी"

"तुम माचिस मुझे दो, मैं जलाती हूँ "

अंकुश ने माचिस गरिमा को थमा दी और जेब से फ़ोन निकाल कर गरिमा को समझा दिय। कुछ भी मुश्किल नहीं था, एक बार में ही गरिमा को सब समझ में आगया, अंकुश ने फ़ोन गरिमा को थमा दिया, अंकुश को अपने हाथ पर गरिमा के कोमल हाथ का स्पर्श बहुत भला लगा था, जीवन में पहलीबार किसी लड़की ने इस तरह उसका हाथ पकड़ा था।

अंकुश ने गरिमा से माचिस ले कर फ़ोन थमा दिया, अब उसके चलने का समय था लेकिन वो जाना नहीं चाहता था उसका मन था गरिमा के पास कुछ देर और रुकने का लेकिन ऐसे रुकना खतरे से खाली नहीं था, उसने माचिस बैग में डाल कर गरिमा के दोनों हाथो को अपने हाथ में थमा और फासफूसाते हुए बोला

"मैं चलता हूँ इस से पहले कोई देख ले लेकिन ये बताओ कल बात करोगी ना ?"
"हाँ कल बात करेंगे पक्का, अब जाओ, मुझे भी नीचे जाना है "

अंकुश ने वापस जाने के लिए कदम उठाया लेकिन न जाने उसके दिमाग में क्या विचार आया की वो रुका और अँधेरे में ही बिना एक पल गवाए गरिमा को अपनी बाँहों में भर लिया, गरिमा भचूंकी रह गयी थी और अंकुश तो मनो स्वर्ग में था, उसकी प्रेमिका उसका प्यार उसकी बाहों में था और अंकुश सातवे आसमान पर, कुछ पल दोनों अँधेरे में एक दूसरे की बाहों में सिमटे खड़े रहे फिर गरिमा छिटक कर अलग हो गयी तो अंकुश भी धरातल पर उतर आया फिर बिना कुछ कहे छत की बाउंडरी से नीचे उतर गया।
Badhiya
Phone bhi aa gaya saari setting bhi ho gayi or sabse badi baat Garima ka waha aana or bhai sahab ne mauke per chauka maar dia gale laga ker sabhi bhi tha aisa kaha Milne wala tha jaldi
Baherhal dekhte h aage kia hota h
Behtareen zabardast shaandar update
 
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प्रेम की अग्नि एक तरफ नही , दोनो तरफ से सुलग रही थी उस वक्त ।
अंकुश का दीवानापन , उसका डेरिंग , उसके दिल की अवस्था , गरिमा के साथ नाॅन स्टाप कम्युनिकेशन हो उसके लिए की गई उसकी सारी क्रियाएं सबकुछ स्पष्ट जाहिर कर रहा था कि वो गरिमा का कितना बड़ा शैदाई था ।
इधर गरिमा का पोजिटिव रिस्पांस , फोन के साथ छेड़छाड़ करने मे अंकुश का हेल्प करना , रात्री पहर मे छत पर अंकुश का इन्तजार करना , अंकुश की कलाई थाम लेना यह जाहिर कर रहा था कि वो भी अंकुश के इश्क मे गिरफ्तार हो गई थी ।
मतलब आग दोनो ओर से लगी हुई थी । लेकिन कुछ तो जरूर हुआ होगा जिससे इनकी लव स्टोरी बीच रास्ते मे ही दम तोड़ गई ।
शायद अंकुश मौका पर हिम्मत न दिखा पाया हो या फिर गरिमा लोक लाज या फैमिली के दबाव मे अपने पांव पीछे खिसका लिया हो !

बहुत ही बेहतरीन अपडेट ब्लिंकिट भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 

blinkit

I don't step aside. I step up.
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बढ़िया अपडेट भाई जी।

बचपन और लड़कपन तो सबका एडवेंचर्स से भरपूर होता है, बस उसका रूप बदलता रहता है।

लेकिन भाई ये साइड हीरो की लव स्टोरी कुछ ज्यादा लंबी लगने लगी है अब तो। इतना तो आपने न सुनहरी और न नीतू का लिखा अभी तक।
sahi kaha lekin wo ladkpan wale pahle pyar ki story likhne me maza aaraha tha isliye ankush ki story thodi lambi hogayi, is kahani ko itne bade update me likhne ka plan nahi tha lekin main thoda yuva awastha wale dino me kho gaya tha, jaldi hi ankush wala arc pura kar dunga
 

blinkit

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प्रेम की अग्नि एक तरफ नही , दोनो तरफ से सुलग रही थी उस वक्त ।
अंकुश का दीवानापन , उसका डेरिंग , उसके दिल की अवस्था , गरिमा के साथ नाॅन स्टाप कम्युनिकेशन हो उसके लिए की गई उसकी सारी क्रियाएं सबकुछ स्पष्ट जाहिर कर रहा था कि वो गरिमा का कितना बड़ा शैदाई था ।
इधर गरिमा का पोजिटिव रिस्पांस , फोन के साथ छेड़छाड़ करने मे अंकुश का हेल्प करना , रात्री पहर मे छत पर अंकुश का इन्तजार करना , अंकुश की कलाई थाम लेना यह जाहिर कर रहा था कि वो भी अंकुश के इश्क मे गिरफ्तार हो गई थी ।
मतलब आग दोनो ओर से लगी हुई थी । लेकिन कुछ तो जरूर हुआ होगा जिससे इनकी लव स्टोरी बीच रास्ते मे ही दम तोड़ गई ।
शायद अंकुश मौका पर हिम्मत न दिखा पाया हो या फिर गरिमा लोक लाज या फैमिली के दबाव मे अपने पांव पीछे खिसका लिया हो !

बहुत ही बेहतरीन अपडेट ब्लिंकिट भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
bilkul sahi kaha bhai, dono jawani ki dahleez par khade hai aur jawani josh maar rahi hai dono ki
 

blinkit

I don't step aside. I step up.
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अंकुश की उस दिन की दिलेरी काम कर गयी और अगले दिन से उनकी फ़ोन पर बात होना स्टार्ट हो गयी, प्रेम की आग दोनों और लगी हुई थी, जो बात प्रेमपत्र की एक छोटी सी लाइन से शरू हुई थी वो कब आयी लव यू और भविष्य में संग जीने मरने की कसमो में बदल गयी दोनों को पता ही नहीं चला, दोनों प्रेम मेंथे और जब प्रेम में होते तब न दिन का पता होता है और न रात का, यही उन दोनों के साथ हुआ, दोनों के स्कूल खुल गए और उनका स्कूल जाना भी शरू हो गया लेकिन फिर भी दोनों किसी न किसी बहाने से रात के अँधेरे में एक दूसरे से बात करके अपने प्रेम की अग्नि को शांत कर लिया करते थे,

लेकिन जैसे जैसे समय गुज़र रहा था उसके साथ इस प्रेम रुपी अग्नि को संभालना दोनों के बस से बहार हो रहा था और ऊपर से बदलते मौसम ने बरसात के बाद ठंढ के आने की आहट दे दी थी, इसका मतलब था की अब दोनों का छत पर सोना बंद और अगर छत पर सोना नहीं होगा तो फिर वो दोनों भला बात कैसे कर पाएंगे एक दूसरे से।

प्रेमपत्र वाला मामला खतरों भरा था इसलिए ये फ़ोन वाला प्लान बनाया था अंकुश ने और अब अगला रास्ता मिलने का हो सकता था लेकिन
छोटे शहर में प्रेमी प्रेमिका का मिलना या एक दूसरे के सामने बैठ कर बातें कर पाना किसी स्वपन के सामान होता है, वहा सब एक दूसरे को जानते है और ऐसे अगर लड़के और लड़की की परछाई भी एक दूसरे से टकरा जाये तो लड़की बदनाम हो जाती थी और यहाँ तो इनदोनो में
इतना प्रेम हो चला था की वो एक दूसरे के बिना एक रात भी बिताना पहाड़ जैसा था।

नवम्बर आते आते सर्दी आगयी, इस बार अंकुश को लग रहा था जैसे ठण्ड समय से पहले ही आगयी हो, गरिमा ने अब छत पर सोना बंद कर दिया था और अब बस फिर वही शाम में छत से किसी बहाने से इशारो में गरिमा से बात हो जाती थी लेकिन अब इन इशारो से अंकुश का कोई भला नहीं होने वाला था, आखिर एक दिन अंकुश ने इशारो में ही गरिमा को रात में छत पर मिलने के लिए कहा, पहले तो गरिमा ने ना नुकर की लेकिन फिर मान गयी।

अंकुश पहली बारी की तरह इस बार भी रात के अंधेरे में अपने कमरे से चुप चाप निकला और गरिमा की छत पर जा कर कोठरी में छुप गया, उसे ज़्यादा इन्तिज़ार नहीं करना पड़ा क्यूंकि लगभग दस मिनट बाद ही गरिमा भी उस कोठरी में आपहुची।

"क्यों बुलाया है मुझे इतनी रात को " गरिमा ने फुसफुसाते हुए अंकुश से कहा
"इतने दिन से बात नहीं हो पा रही थी और ना ही तुम्हारे पास आने के मौका मिला था इसलिए "

"तुम खुद तो मरोगे और साथ में मुझे भी मरवाओगे "
"हट, कोई नहीं मरेगा, बस मैं तो तुमको देखना चाहता था और तुम्हारी आवाज़ सुनना चाहता था, आयी वास् मिसिंग यू " अंकुश की आवाज़ में तड़प थी

"हाँ देख लो फिर इस घुप अँधेरे में,और हाँ ये मिस इस के चक्कर से बहार निकल जाओ, अगर पापा को भनक लग गयी न तो दोनों को जान से मार देंगे " गरिमा ने अंकुश को चेताते हुए कहा
"क्यों मारेंगे पापा, मैं तो उनकी बेटी से बियाह करना चाहता हूँ मैं भला कोई खेल थोड़ी कर रहा हूँ उनकी बेटी के साथ " अंकुश ने दुनिया भर का प्रेम अपनी आवाज़ में उड़ेलते हुए कहा

"बस बस अब ज़ायदा आशिक़ी मत करो और घर जाओ, जो देखना था देख लिया और आवाज़ सुननी थी वो भी सुन ली, मैं नीचे जा रही हूँ इस से पहले नीचे कोई जग जाए " गरिमा ने अंकुश समझते हुए कहा
"ठीक है जा रहा हूँ लेकिन ये तो बताओ अब फिर कब मिलोगी ? हमारी बात कैसे होगी आगे ?"

"वो तुम देखो, लेकिन आजके बाद अब हम यहाँ नहीं मिलेंगे, यहाँ अगर किसी ने देख लिया तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी दोनों के लिए, तुम इतने समझदार हो तुम्ही कोई रास्ता निकालो "
"हाँ सोंचता हूँ कोई रास्ता लेकिन उस से पहले ये बताओ की रात में तुम कमरे में अकेली सोती हो या कोई और भी सोता है तुम्हारे कमरे में "


"दादी सोती है मेरे साथ, क्यों ये क्यों पूछ रहे हो तुम ?"
"कुछ नहीं, मैं एक दो दिन में टेलीफोन वाले अंकल को भेजूंगा तुम्हारे घर किसी बहाने से वो तुम्हारे कमरे में कुछ ऐसा जुगाड़ कर देंगे जिस से रात में हम किसी बहाने से बात कर पाएंगे "

"ना बाबा ना, ये नहीं हो पायेगा, वहा कमरे में बहुत रिस्क है, अगर किसी ने भूल से भी फ़ोन देख लिया तो बवंडर हो जायेगा "
"अरे पागल कोई नहीं देखेगा, वो फ़ोन बस हम एमेजेन्सी में बात करने के लिए इस्तेमाल करेंगे, वैसे भी वो जुगाड़ तुम्हारे घर के नंबर से कनेक्टेड होकर ही हो पायेगा इसलिए उसमे रिस्क है लेकिन थोड़ा रिस्क तो लेना होगा नहीं तो अब मैं जो रास्ता निकलूंगा उसकी जानकारी तुम तक कैसे पहुंचेगी "

"हाँ कभी कभार एक दो मिनट के लिए तो हो सकता है " गरिमा ने हामी भरी
"गुड तो फिर मैं एक दो दिन में टेलीफोन वाले सुलेमान अंकल को तुम्हारे घर भेजूंगा, बस उस टाइम तुम्हारे पापा न हो "

"बुधवार को भेजना, बुधवार को पापा आगरा जाते है काम से "
"हाँ फिर ये अच्छा रहेगा, तुम बुधवार को घर पर ही रहना ओके "

"ठीक है बाबा घर ही रहूंगी, अब तुम जाओ, कोई देख लेगा "
"ठीक है जा रहा हूँ," कह कर अंकुश दरवाज़े की ओर मुड़ा और फिर वापिस पलटा गरिमा को अपनी बहो में लेने के लिए लेकिन आज गरिमा पहले से तैयार थी छिटक के दूर खड़ी हो गयी और अंकुश हाथ मसलता रह गया, गरिमा की एक हलकी खनकती हुई हसीं उसके कानो से टकराई और अंकुश ने गरिमा को उस कोठरी के दरवाज़े से खुली छत की ओर जाते हुए देखा, अस्समान पर छाए हुए बदल छट गए थे और छत चांदनी से नहाया हुआ था अंकुश के भी गरिमा के पीछे पीछे छत पर निकल आया, गरिमा बीच छत पर खड़ी चाँद की ओर देख रही थी, नवंबर की हलकी ठंडवाली रात थी और चाँद अपनी शबाब पर था अंकुश गरिमा से कुछ दूर खड़ा गरिमा और चाँद को एक साथ देख रहा था उसे उन्दोनो को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो एक साथ दो दो चाँद को निहार रहा हो, एक वो चाँद जो सबका था और ये दूसरा चाँद जो सिर्फ उसका था

चौदहवी के चाँद को देख कर किसी समुन्दर में कोई जवार भाटा उठा हो या न हो लेकिन अंकुश के मन में प्यार का जवार भाटा हिलोरे मार रहा था, वो हलके कदम से चलता हुआ गरिमा के पास जा पंहुचा और पीछे उसको अपनी बाहों में कस लिया, गरिमा ने भी कोई विरोध नहीं किया और अंकुश के हाथो पर अपना हाथ रख दिया।

दोनों चांदनी और प्रेम में डूबे एक दूसरे की बाहों में समाये एक दूसरे के कान में सरगोशियां करते हुए अपने प्रेम का इज़हार कर रहे थे, ये पहले बार था जब दोनों ने अपने प्रेम का इज़ार एक दूसरे के सामने किया हो, इस खूबसूरत रात से अच्छा समय भला हो भी क्या सकता था अपने प्रेमी को अपने मन की बात बताने का, कुछ देर बाद जब दोनों अलग हुए तो अंकुश ने हौले से गरिमा का माथा अपने हाथो में ले कर चुम लिया, गरिमा ने शर्म और लाज का मान रखते हुए अपनी आँखे बंद कर ली। अंकुश ने एक आखिरी बार गरिमा की सुन्दरता को अपनी आँखों में कैद किया और बाउंड्री से उतर कर अपने घर की छत की ओर चला गया।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अंकुश की उस दिन की दिलेरी काम कर गयी और अगले दिन से उनकी फ़ोन पर बात होना स्टार्ट हो गयी, प्रेम की आग दोनों और लगी हुई थी, जो बात प्रेमपत्र की एक छोटी सी लाइन से शरू हुई थी वो कब आयी लव यू और भविष्य में संग जीने मरने की कसमो में बदल गयी दोनों को पता ही नहीं चला, दोनों प्रेम मेंथे और जब प्रेम में होते तब न दिन का पता होता है और न रात का, यही उन दोनों के साथ हुआ, दोनों के स्कूल खुल गए और उनका स्कूल जाना भी शरू हो गया लेकिन फिर भी दोनों किसी न किसी बहाने से रात के अँधेरे में एक दूसरे से बात करके अपने प्रेम की अग्नि को शांत कर लिया करते थे,

लेकिन जैसे जैसे समय गुज़र रहा था उसके साथ इस प्रेम रुपी अग्नि को संभालना दोनों के बस से बहार हो रहा था और ऊपर से बदलते मौसम ने बरसात के बाद ठंढ के आने की आहट दे दी थी, इसका मतलब था की अब दोनों का छत पर सोना बंद और अगर छत पर सोना नहीं होगा तो फिर वो दोनों भला बात कैसे कर पाएंगे एक दूसरे से।

प्रेमपत्र वाला मामला खतरों भरा था इसलिए ये फ़ोन वाला प्लान बनाया था अंकुश ने और अब अगला रास्ता मिलने का हो सकता था लेकिन
छोटे शहर में प्रेमी प्रेमिका का मिलना या एक दूसरे के सामने बैठ कर बातें कर पाना किसी स्वपन के सामान होता है, वहा सब एक दूसरे को जानते है और ऐसे अगर लड़के और लड़की की परछाई भी एक दूसरे से टकरा जाये तो लड़की बदनाम हो जाती थी और यहाँ तो इनदोनो में
इतना प्रेम हो चला था की वो एक दूसरे के बिना एक रात भी बिताना पहाड़ जैसा था।

नवम्बर आते आते सर्दी आगयी, इस बार अंकुश को लग रहा था जैसे ठण्ड समय से पहले ही आगयी हो, गरिमा ने अब छत पर सोना बंद कर दिया था और अब बस फिर वही शाम में छत से किसी बहाने से इशारो में गरिमा से बात हो जाती थी लेकिन अब इन इशारो से अंकुश का कोई भला नहीं होने वाला था, आखिर एक दिन अंकुश ने इशारो में ही गरिमा को रात में छत पर मिलने के लिए कहा, पहले तो गरिमा ने ना नुकर की लेकिन फिर मान गयी।

अंकुश पहली बारी की तरह इस बार भी रात के अंधेरे में अपने कमरे से चुप चाप निकला और गरिमा की छत पर जा कर कोठरी में छुप गया, उसे ज़्यादा इन्तिज़ार नहीं करना पड़ा क्यूंकि लगभग दस मिनट बाद ही गरिमा भी उस कोठरी में आपहुची।

"क्यों बुलाया है मुझे इतनी रात को " गरिमा ने फुसफुसाते हुए अंकुश से कहा
"इतने दिन से बात नहीं हो पा रही थी और ना ही तुम्हारे पास आने के मौका मिला था इसलिए "

"तुम खुद तो मरोगे और साथ में मुझे भी मरवाओगे "
"हट, कोई नहीं मरेगा, बस मैं तो तुमको देखना चाहता था और तुम्हारी आवाज़ सुनना चाहता था, आयी वास् मिसिंग यू " अंकुश की आवाज़ में तड़प थी

"हाँ देख लो फिर इस घुप अँधेरे में,और हाँ ये मिस इस के चक्कर से बहार निकल जाओ, अगर पापा को भनक लग गयी न तो दोनों को जान से मार देंगे " गरिमा ने अंकुश को चेताते हुए कहा
"क्यों मारेंगे पापा, मैं तो उनकी बेटी से बियाह करना चाहता हूँ मैं भला कोई खेल थोड़ी कर रहा हूँ उनकी बेटी के साथ " अंकुश ने दुनिया भर का प्रेम अपनी आवाज़ में उड़ेलते हुए कहा

"बस बस अब ज़ायदा आशिक़ी मत करो और घर जाओ, जो देखना था देख लिया और आवाज़ सुननी थी वो भी सुन ली, मैं नीचे जा रही हूँ इस से पहले नीचे कोई जग जाए " गरिमा ने अंकुश समझते हुए कहा
"ठीक है जा रहा हूँ लेकिन ये तो बताओ अब फिर कब मिलोगी ? हमारी बात कैसे होगी आगे ?"

"वो तुम देखो, लेकिन आजके बाद अब हम यहाँ नहीं मिलेंगे, यहाँ अगर किसी ने देख लिया तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी दोनों के लिए, तुम इतने समझदार हो तुम्ही कोई रास्ता निकालो "
"हाँ सोंचता हूँ कोई रास्ता लेकिन उस से पहले ये बताओ की रात में तुम कमरे में अकेली सोती हो या कोई और भी सोता है तुम्हारे कमरे में "


"दादी सोती है मेरे साथ, क्यों ये क्यों पूछ रहे हो तुम ?"
"कुछ नहीं, मैं एक दो दिन में टेलीफोन वाले अंकल को भेजूंगा तुम्हारे घर किसी बहाने से वो तुम्हारे कमरे में कुछ ऐसा जुगाड़ कर देंगे जिस से रात में हम किसी बहाने से बात कर पाएंगे "

"ना बाबा ना, ये नहीं हो पायेगा, वहा कमरे में बहुत रिस्क है, अगर किसी ने भूल से भी फ़ोन देख लिया तो बवंडर हो जायेगा "
"अरे पागल कोई नहीं देखेगा, वो फ़ोन बस हम एमेजेन्सी में बात करने के लिए इस्तेमाल करेंगे, वैसे भी वो जुगाड़ तुम्हारे घर के नंबर से कनेक्टेड होकर ही हो पायेगा इसलिए उसमे रिस्क है लेकिन थोड़ा रिस्क तो लेना होगा नहीं तो अब मैं जो रास्ता निकलूंगा उसकी जानकारी तुम तक कैसे पहुंचेगी "

"हाँ कभी कभार एक दो मिनट के लिए तो हो सकता है " गरिमा ने हामी भरी
"गुड तो फिर मैं एक दो दिन में टेलीफोन वाले सुलेमान अंकल को तुम्हारे घर भेजूंगा, बस उस टाइम तुम्हारे पापा न हो "

"बुधवार को भेजना, बुधवार को पापा आगरा जाते है काम से "
"हाँ फिर ये अच्छा रहेगा, तुम बुधवार को घर पर ही रहना ओके "

"ठीक है बाबा घर ही रहूंगी, अब तुम जाओ, कोई देख लेगा "
"ठीक है जा रहा हूँ," कह कर अंकुश दरवाज़े की ओर मुड़ा और फिर वापिस पलटा गरिमा को अपनी बहो में लेने के लिए लेकिन आज गरिमा पहले से तैयार थी छिटक के दूर खड़ी हो गयी और अंकुश हाथ मसलता रह गया, गरिमा की एक हलकी खनकती हुई हसीं उसके कानो से टकराई और अंकुश ने गरिमा को उस कोठरी के दरवाज़े से खुली छत की ओर जाते हुए देखा, अस्समान पर छाए हुए बदल छट गए थे और छत चांदनी से नहाया हुआ था अंकुश के भी गरिमा के पीछे पीछे छत पर निकल आया, गरिमा बीच छत पर खड़ी चाँद की ओर देख रही थी, नवंबर की हलकी ठंडवाली रात थी और चाँद अपनी शबाब पर था अंकुश गरिमा से कुछ दूर खड़ा गरिमा और चाँद को एक साथ देख रहा था उसे उन्दोनो को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो एक साथ दो दो चाँद को निहार रहा हो, एक वो चाँद जो सबका था और ये दूसरा चाँद जो सिर्फ उसका था

चौदहवी के चाँद को देख कर किसी समुन्दर में कोई जवार भाटा उठा हो या न हो लेकिन अंकुश के मन में प्यार का जवार भाटा हिलोरे मार रहा था, वो हलके कदम से चलता हुआ गरिमा के पास जा पंहुचा और पीछे उसको अपनी बाहों में कस लिया, गरिमा ने भी कोई विरोध नहीं किया और अंकुश के हाथो पर अपना हाथ रख दिया।

दोनों चांदनी और प्रेम में डूबे एक दूसरे की बाहों में समाये एक दूसरे के कान में सरगोशियां करते हुए अपने प्रेम का इज़हार कर रहे थे, ये पहले बार था जब दोनों ने अपने प्रेम का इज़ार एक दूसरे के सामने किया हो, इस खूबसूरत रात से अच्छा समय भला हो भी क्या सकता था अपने प्रेमी को अपने मन की बात बताने का, कुछ देर बाद जब दोनों अलग हुए तो अंकुश ने हौले से गरिमा का माथा अपने हाथो में ले कर चुम लिया, गरिमा ने शर्म और लाज का मान रखते हुए अपनी आँखे बंद कर ली। अंकुश ने एक आखिरी बार गरिमा की सुन्दरता को अपनी आँखों में कैद किया और बाउंड्री से उतर कर अपने घर की छत की ओर चला गया।
डेयरिंग और रिस्क दोनो बढ़ते जा रहे हैं।

बहुत कठिन है डगर पनघट की....
 
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