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Romance बेडु पाको बारो मासा

blinkit

I don't step aside. I step up.
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ब्लिंकिट भाई , अंकुश और गरिमा के इस बचपन की प्रेम कहानी एवं लव लेटर लिखने की झिझक ने मुझे अपने बचपन के दिनों की याद दिला दी ।
बिल्कुल ऐसा ही हुआ था मेरे साथ भी । अस्सी - नब्बे के दशक मे चूंकि मोबाइल फोन का जमाना नही था तो लोग पत्राचार ही किया करते थे । अगर लैंडलाइन फोन होता भी था तो बहुत ही रेयर घरों मे होता था ।
अंकुश की तरह हमारी भी लव स्टोरी अपने अपने घर के छत से शुरू हुई थी । कभी किसी को लव लेटर लिखा ही नही इसलिए मेरे अंदर झिझक के साथ डर भी था ।
अंकुश की तरह ही मैने भी घंटो - दिनों तक यह सोचता रहा कि आखिर लिखूं तो क्या लिखूं ! ऐसा क्या लिखूं कि अगर लव लेटर किसी दूसरे के हाथ लग जाए तो भी मेरी बदनामी न हो । और ऐसा क्या लिखूं जिसमे प्रेम का प्रपोजल होकर भी कहीं से लगे नही कि यह प्रेम की अभिव्यक्ति है ।
अंकुश की तरह मैने भी लव लेटर मे ना ही खुद का नाम लिखा और ना ही लड़की के नाम का जिक्र किया ।
अंकुश की तरह मेरे हालत भी खस्ता थी जब आखिरकार चिठ्ठी लड़की के पास वाया एक बच्चे के माध्यम से पहुंच गई।

यह मेरे जीवन का एक मात्र लव लेटर था और किस्मत से इस का परिणाम काफी सुखद रहा । कई साल बीत गए पर लगता है जैसे कुछ ही दिन पहले की बात है । हमने प्रेम किया लेकिन कभी मर्यादा की दीवार नही लांघी ।

नौजवानी के शुरुआती दौर मे इश्क होना बिल्कुल स्वभाविक है । लेकिन अगर इस इश्क ने आपको एक अच्छे इंसान की जगह बुरे इंसान मे परिवर्तित कर दिया तब यह इश्क बहुत ही बुरी चीज हो जाती है । प्रेम का अर्थ पाना नही देना होता है - अपने प्रेमी को खुशियों का सौगात देना , प्रेमी के खुशियों की परवाह करना , प्रेमी के दुख से खुद को दुखित महसूस होना होता है ।

अंकुश ने लैंडलाइन फोन के साथ जो छेड़खानी की , वह भी हंड्रेड प्रतिशत रियलिस्टिक है । लड़के अपने लवर से बात करने या उनसे मुलाकात करने के लिए न जाने कितने - कितने तरकीब बनाते ही रहते है ।

लेकिन अंकुश का वर्तमान चरित्र यह धारणा बना रहा है कि उसका पहला प्यार सफल नही रहा होगा । या तो लड़की ने जानबूझकर उसे धोखा दिया या फिर कोई कारणवश वह धोखा देने के लिए मजबूर हुई ।

बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
Thank you Sanju brother you are too kind and generous in appreciation of my writing.

Meri kahani ke is part ne aapki purani yadein taza ki ye meri sabse badi achievement hai, aap jaise mahan readers ka saath aur ashirwad rahega to wishwas hai ki kuch accha likhna ban padega.

Thank you once again for sharing your beautiful memories. Keep coming brother.
 
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Thank you Sanju brother you are too kind and generous in appreciation of my writing.

Meri kahani ke is part ne aapki purani yadein taza ki ye meri sabse badi achievement hai, aap jaise mahan readers ka saath aur ashirwad rahega to wishwas hai ki kuch accha likhna ban padega.

Thank you once again for sharing your beautiful memories. Keep coming brother.
आप निस्संदेह एक बहुत अच्छे राइटर है । आप अपनी स्टोरी पर हर छोटी छोटी चीज , छोटी छोटी बात का ध्यान रखते है , भले ही उन सब का कोई खास मतलब हो या फिर नही भी हो।
आप की दोनो कहानी एक कहानी लगती है । एक रियलिस्टिक का आभास कराती है । एक ऐसी कहानी जिसे पढ़कर रीडर्स अपने लाइफ के साथ तुलना करे ।
ऐसे राइटर्स इस फोरम पर बहुत ही रेयर हैं। और आप उन रेयर मे एक है ।
थोड़ी-बहुत अभी भी कमियाँ है जो आपके पिछले स्टोरी मे भी था और अब भी है - आप का अपडेट पोस्ट करने से पहले का एडिटिंग । कोई भी अपडेट पोस्ट करने से पहले आप उसे पढ़े और जो भी मिस्टेक या गलती हुआ है , उसे करेक्शन कर लें ।
आप से हमे बहुत उम्मीद है । एक समय आएगा जब लोग आपके इस अथक प्रयास और आपके बेहतरीन कहानी के लिए लोग याद करेंगे ।
इस फोरम के मौजूद चंद राइटर्स मे आप मेरे फेवरेट राइटर बन गए है ।
 

Naik

Well-Known Member
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अंकुश पिछले दो घंटो से लगातार अपने केमिस्ट्री के असाइनमेंट को पूरा करने में लगा हुआ था, एग्जाम से पहले उसको मलेरिया हो गया था इसलिए उसका असाइनमेंट अधूरा था उसकी टीचर ने उसकी बीमारी को देखते हुए एग्जाम के बाद असाइनमेंट जमा करने की छूट दे दी थी। आज ही उसका गयारहवी का एग्जाम पुरा हुआ था और उसको कल अपना असाइनमेंट हर हाल में जमा करना था, घर में उसकी मम्मी की कुछ सहेलिया आयी हुई थी इसीलिए अपनी टेबल और कुर्सी ले कर छत पर आगया था और अब पूरा मन लगा कर अपनी असाइनमेंट फाइल कम्पलीट करने में लगा हुआ था। वैसे भी मार्च के शरुआती दिन थे इसलिए छत का मौसम बहुत सुहाना था।

अंकुश ने एक आखरी नज़र अपनी असाइनमेंट की फाइल पर डाली और फिर एक झटके से फाइल बंद कर दी मनो जान छूटै हो उस मनहूस फाइल से, उसने के एक लम्बी सुख की साँस ली, आखिर उसका असाइनमेंट पूरा हो गया, वो लगातार कुर्सी पर बैठे बैठे थक भी गया था इसलिए अपनी कुर्सी से उठा और एक ज़ोर की अंगड़ाई ली, शरीर की लॉगभग सारी हड्डिया एक साथ बोल उठी, पहले उसने अपने शरीर को पीछे की ओर मोड़ा फिर दायी ओर, फिर जैसे ही उसने अपने शरीर को बायीं ओर मोड़ा के जैसे उसका शरीर उसी दशा में जड़ होकर रह गया।

उसकी नज़रे सामने वाली छत पर जम कर रह गयी थी और साथ ही अंकुश का शरीर भी उसी अवस्था में अटका रह गया, उसकी नज़रो का केंद्र शर्मा जी की छत पर निकल आया चाँद था, हाँ वो किसी चाँद जैसी ही सुन्दर तो थी या शायद उस से भी ज़्यदा खूबसूरत, अंकुश उस चाँद को देख कर बस देखता ही रह गया, अपनी अट्ठारह साल के जीवन में उसने इतनी खूबसूरत लड़की नहीं देखी थी, उधर वो अपनी छत पर दुनिया से बेखबर तौलिया हाथ में संभाले अपने काले घने बालो को पोंछ रही थी, लगता था बस अभी नाहा कर छत पर बाल सुखाने आयी हो और जिस पल उसने गर्दन को आगे कर अपने बालो को तौलिये से आज़ाद किया और फिर झटके से अपने बालो को पीछे की ओर झटका दिया अंकुश को ऐसा लगा की उसके घने काले बालो ने कोई उस पर कोई काला जादू कर दिया हो, क्यूंकि उस पानी से भीगे उलझे बालों ने सेकंड के सव्वे हिस्से में उसका दिल लूट लिया था। अंकुश किसी दीवानो के जैसे उसी अजीब अवस्था में अटका अपलक उस सुंदरी को निहारता खोया हुआ था। शायद अंकुश के निहारने का एहसास उस सुंदरी को भी हो गया था, उसने एक निगाह अंकुश की ओर डाली और जल्दी से पीठ मोड़ कर अपनी दिशा बदल ली।

उस लड़की के दिशा बदलते भर ही अंकुश वापस अपने होश में आया और जल्दी से लड़खड़ाता हुआ कुर्सी पर ढेर हो गया, वह कुछ पल के लिए तो झेंपा और अपना धयान इधर उधर भटकने के कोशिश की लेकिन भला वो दिल ही क्या जो उद्दण्ता ना करे। उसका दिल तो बस अब उस सुंदरी में अटका गया था और निगाहो को उस सुंदरी का पता मालूम था इसलिए बिना देरी किये वापिस उस हसीना पर आ टिकी और उसकी सुंदर मुखड़े के दीदार की तलब में उसके पलटने की राह देखने लगी।

अंकुश को ज़ायदा इंतज़ार नहीं करना पड़ा, शायद उसके बालो का पानी तौलिये ने सूखा दिया था और अब वो कंघे से अपने बालो को सुलझाते हुए फिर से अंकुश की की ओर पलटी, घने काले बालो के बीच में उसका छोटा सा मासूम मुखड़ा और उस पर बड़ी बड़ी काली आँखे अंकुश अपने छत से दो माकन दूर भी बिलकुल साफ़ देख पा रहा था, वो अभी अब छत पर हौले हौले टहलते हुए अपने बाल सुलझा रही थी और कभी कभी कनखियों से अंकुश की ओर देख लेती, एक बार ऐसे ही देखते हुए उसकी नज़र अंकुश की नज़रो से टकरा गयी तो वो झेप उठी और जल्दी से हडबडते हुए सीढ़ियों की ओर दौड़ गयी।

उसके जाते है अंकुश का मन जैसे उचाट हो उठा, कुछ देर ऐसी ही बैठा इन्तिज़ार करता रहा लेकिन वो नहीं आयी, उसने भुझे हुए मन से अपना सामान समेटा और नीचे उतर आया, नीचे उसकी मम्मी चाय के लिए बुला रही थी। रात के खाने के बाद अंकुश को बिस्तर में नींद ही नहीं आरही थी, बार बार उसी का चेहरा नज़र आरहा था, वो बार बार उसका नाम याद करने के कोशिश कर रहा था लेकिन नाम भी याद नहीं आरहा था, उसकी शर्मा जी के बेटे मोनू से थोड़ी बहुत जान पहचान थी, अंकुश के मकान से दो मकान आगे शर्मा जी का मकान था ये मकान पहले जैन साहब का हुआ करता था, जैन साहब का बेटा विवेक और अंकुश एक ही स्कूल में पढ़ते थे और गहरे दोस्त थे लेकिन चित फण्ड कंपनी के चक्कर में पढ़कर जैन साहब का बड़ा नुक्सान हुआ और वो अपना मकान बेच कर दूसरे मोहल्ले में चले गए थे, उनका मकान शर्मा जी ने खरीद लिया था और अलगभग तीन चार साल पहले अपने परिवार के साथ उस मकान में रहने आगये थे,

शर्मा जी के परिवार में शर्मा जी की माँ, उनकी पत्नी और दो बच्चे यानि की मोनू और उनकी लाड़ली बेटी थी, अंकुश को याद आरहा था की उसने कई बार शर्मा जी को परिवार के साथ आते जाते देखा था, उसने भी मोनू के साथ होली दिवाली में भेंट की थी एकिन कभी उनकी बेटी की ओर धयान ही नहीं दिया और बस आज इसी बात पर खीज रहा था, उसका नाम न पता होना उसे बेचैन कर रहा था और वो बार बार बेचैनी से करवट बदल रहा था। पता नहीं रात के कौन से पहर में उसे नीड आयी और वो सो गया।

सुबह मम्मी के जगाने पर उठा, टाइम देखा तो आठ बजने वाला था स्कूल के लिए लेट हो चूका था इसलिए फटाफट नाहा धो कर तैयार हुआ और नाश्ता ठूँसता हुआ अपनी साइकिल निकली और फाइल साइकिल के करियर में फसा कर सरपट स्कूल की ओर निकल गया। स्कूल में छुटियाँ पड़ चुकी थी इसलिए आज स्कूल बिलकुल अजीब खाली खाली लग रहा था , उसने स्टाफ रूम में जा कर मैडम को फाइल पकड़ाई और मैडम से परमिशन ले कर घर की ओर चल पड़ा, उसने घडी में टाइम देखा बारह बजने वाले था उसने साइकिल की स्पीड तेज़ की और साइकिल दौड़ाता हुआ सरकारी स्कूल जा पंहुचा, उसने जल्दी से साइकिल रोड की साइड में खड़ी की और स्कूल के गेट में घुस गया, ये उनके टाउन का सबसे बड़ा सरकारी स्कूल था, सरकारी स्कूल था इसीसलिए या कोई रोका ताकि नहीं हुई और वो तेज़ी से चलता हुआ उस ओर चल दिया जहा क्लासेस बनी हुई थी, उसे ज़यादा नहीं चलना पड़ क्यंकि विवेक उसे इसी ओर आता हुआ मिल गया।

"तू यहाँ क्या कर रहा है ?" विवेक ने अंकुश को अपनी और आते हुए पूछा
"तेरे से मिलने आया था, मैंने सोचा लंच टाइम है तो तू मिल जायेगा " अंकुश ने जवाब दिया

"अरे यार ये सरकारी स्कूल है यहाँ क्या लंच और क्या छुट्टी, यहाँ तो सब हरामखोर बसे हुए है, साले टीचर क्लास में ऐसे आते है जैसे एहसान कर रहे हो " विवेक की आवाज़ में एक खीज सी थी
"हाँ ये तो है, तू बता तेरे एग्जाम कब से स्टार्ट हो रहे है "

"अगले महीने से होंगे शायद, अभी डेट शीट नहीं मिली, अच्छा छोर, तू साइकिल से आया है क्या ?"
"हाँ, बाहर खड़ी की है "

"फिर रुक दो मिनट मैं बैग लेकर आता हु फिर साथ घर चलेंगे "
"ठीक है लेकिन क्या तेरा टीचर जाने देगा ?"

"अबे अटेंडेंस लग चुकी है अब कोई पूछने भी नहीं आएगा, यहाँ किसी मादरचोद को घंटा भी फरक नहीं पड़ता "

"विवेक यार तू तो सरकारी स्कूल में आकर इनके जैसा ही हो गया वर्ण तू अपने वाले स्कूल में तो गाली नहीं देता था ?"
"अरे वो स्कूल छोड़े तो तीन साल हो गए, यहाँ आके बहुत कुछ सीख लिया, चल अब बाकी बातें रास्ते में करेंगे पहले मैं बैग उठा लाऊँ क्लासरूम से "

दो मिनट में ही विवेक बैग उठा लाया और फिर दोनों चलते हुए बाहर आगये और वह से साइकिल पर बैठ कर दोनों घर के लिए चल दिए, स्कूल और घर के बीच में पहले खेत पड़ते थे और फिर उसके आगे मार्किट और मार्किट के बाद विवेक का घर आता था, खेत पार करने के बाद दोनों मार्किट में रुक गए वहा से अंकुश ने दो समोसे और दो पेस्ट्री ली और दोनों मार्केट के पीछे बने ग्राउंड में चले गए, ये एक सरकारी ग्राउंड था जहा अक्सर बचे क्रिकेट का मैच खेलने आया करते थे, अब दोपहर हो चली थी इसलिए कुछ खास भीड़ नहीं थी, दोनों ने साइकिल एक और खड़ी की और एक पेड़ के नीचे घास पर बैठ गए, अंकुश ने खाने का सामान खोला और दोनों मिलकर खाने लगे।

अंकुश विवेक को ऐसे ही नहीं लाया था अपने साथ उसका मकसद था शर्मा जी की बेटी की जानकारी निकलना, विवेक मोहल्ले में सबको जानता था और वो हर किसी के घर में बेहिचक घुस जाता था, वो बड़े छोटे सबका दोस्त था, इसलिए अंकुश को साडी जानकारी विवेक से ही मिल सकती थी, समोसे और पेस्ट्री चट करने के बाद अंकुश अपने पॉइंट पर आगया

"यार वैसे तेरा पहले वाला मकान बढ़िया था, दोनों पास पास रहते थे "
"हाँ यार, वो बड़ा भी था, ये वाला मकान छोटा भी है और आसपास के लोग पुराने मोहल्ले जैसे नहीं है "

"हाँ, सही कहा, अब तो शर्मा जी ने घर का फ्रंट भी बढ़िया बनवा लिया है , तूने देखा ?"
"हाँ मैं तो आता जाता रहता हूँ, उन्होंने अंदर भी काम कराया है, उनका खुद का कंस्ट्रक्शन का काम है, ठेका लेते है शर्मा जी "

"हाँ मस्त है यार उनकी लाइफ, अच्छा पैसा है उनके पास, मोनू भी बढ़िया लड़का है "
"अरे घंटा बढ़िया है मोनू, एक नंबर का हरामी है, तुझे पता है साला मॉर्निंग शो वाली फिल्म देखने जाता है "

"हैं, सच में ?" यार कैसे चला जाता है, मुझे तो उस सिनेमा हाल के सामने से निकलते हुए भी शर्म आती है, नंगी नंगी फिल्मे लगती है वहा "
"अरे, हाँ, विदेशी बहुत हरामी होते है उनकी औरते किसी के साथ भी करा लेती है काण्ड"

"तुझे कैसे पता ये सब ?"
"अरे मैं एक दो बार मोनू के साथ गया हूँ "

"फिल्म देखने? तूने भी मॉर्निंग शो वाली फिल्म देखी है " अंकुश को हैरत हुई
"अरे नहीं मैं नहीं गया, मेरे पास पैसे नहीं थे वो ही गया था, मैं तो बस बाहर से ट्रेलर के पोस्टर देख कर आया, मज़ा आगया था यार "

"यार ये मोनू तो सच मैं हरामी है, और इसके घरवाले तो बहुत सीधे है "
"अरे सीधा विधा कोई नहीं है, इसके पापा भी दारुबाज है, खूब पीते है, शाम को घर में ही बोतल खोलके बैठ जाते है "

"अच्छा ऐसा क्या ? और उनकी पत्नी और बेटी कुछ नहीं बोलती "
"अरे आंटी क्या बोलेंगी वो तो बेचारी गाओं की है इसलिए घर में उनकी कुछ नहीं चलती, उनकी अम्मा की चलती है बस "

"और उनकी बेटी, वो भी हमारी ही उम्र की है ना " अंकुश ने धड़कते दिल के साथ पूछा
"कौन गरिमा ? गरिमा दसवीं के एग्जाम देगी अगले महीने "

"ओह उसका नाम गरिमा है "
"हाँ गरिमा शर्मा, क्यों तुझे नहीं पता था क्या ?"

"नहीं यार, मेरी तो बस मोनू से ही थोड़ी बहुत बातचीत होती है कभी कभार बाकि तुझे पता ही है हमारे स्कूल वाले कितना होमवर्क देते थे और फिर ऊपर से टूशन कोचिंग, टाइम ही कहा मिलता है "
"हाँ ये तो है, यहाँ सरकारी स्कूल में मज़े है, वहा की तरह नहीं "

"हाँ, सही है यार, तो ये गरिमा भी तेरे स्कूल में ही पढ़ती है क्या ?"
"अरे नहीं वो भी गर्ल्स वाले सरकारी स्कूल में पढ़ते है "

"ओह्ह मुझे लगा वो प्राइवेट स्कूल में पढ़ती होगी "
"नहीं वो अपना मंगल बाजार वाला सरकारी स्कूल है न केवल लड़कियों वाला उसी में जाती है "

"चल ठीक है हमे क्या करना, और तू बता तेरा क्या चल रहा है ?"
"कुछ नहीं यार मेरा क्या चलेगा, बस कट रहा है टाइम "

"कोई नहीं, अच्छा सुन वो पिंकी तुझे पूछ रही थी"
"कौन पिंकी? पिंकी गर्ग ? हमारे क्लास वाली ?"

"हाँ वही, तुझे याद करती रहती है वो ?"
"हट उस मोटी को मेरे से क्या लेना देना ?"

"पता नहीं, क्या पता तुझसे प्यार करने लगी हो, मिल ले उस से एक बार, थोड़ी मोटी ही तो है लेकिन है कितनी क्यूट ?"
"हाँ क्यूट तो है ?" लेकिन छोड़ यार वो इतनी अमीर है मैं क्यों उसके चक्कर में दिमाग ख़राब करू

"अब देख ले भाई उसने पूछा था तो मैंने तुझे बता दिया आगे तेरी मर्ज़ी "
"हाँ ठीक है, छोर देखते फिर कभी , अब घर चलते है मुझे कुछ काम भी है "

"हाँ ठीक है निकलते है अब थोड़ी धुप भी होने लगी है "



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Ankush ke purse me Jo picture h Kahi yahi woh ladki tow nahi Jo Sharma ji ki chat per dikhi jiski ek jhalak dekhte hi Pyar ho gaya or pehle Pyar ko aadmi jaldi bhoolta nahi
Bade jugaad h ladki ka naam pata ker lia Garima
 

Naik

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अंकुश विवेक को उसके घरके पास छोड़ कर वापिस अपने घर आगया, उसे उसका नाम तो पता चल गया था लेकिन बात आगे कैसे बढे इसी उधेरबुन में शाम तक उलझा रहा, शाम के पांच बजते ही अंकुश छत पर था लेकिन शर्मा जी की छत खाली पड़ी हुई थी वह कोई नहीं था। शाम सात बजे तक वो इन्तिज़ार करता रहा लेकिन छत पर कोई नज़र नहीं आया। थक हार कर वापिस अपने कमरे में निराश हो कर लेट गया।

अगले तीन चार दिन तक अंकुश का यही रूटीन रहा लेकिन उसको गरिमा तो क्या उसकी परछाई भी नज़र नहीं आयी। अब अंकुश को लगने लगा था की उसकी प्रेम कहानी शरू होने से पहले ही ख़तम हो गयी। अब उसने छत पर जाना भी छोड़ दिया था आखिर जा कर करता ही क्या जब पुरे दिन में वो एक बार भी छत पर नज़र नहीं आती थी।

जैसे तैसे करके दिन गुज़र रहे थे की होली आगयी सत्रह मार्च को होलिका दहन थी और अट्ठारह मार्च को रंग। अंकुश के परिवार धार्मिक था लेकिन होली केवल नाम मात्र की ही खेलते थे वो भी केवल गुलाल से। अंकुश के पिता जी बीएसएनएल में वरिष्ठ पद पर थे इसलिए दिन भर मिलने वालो का ताँता लगा रहता था और आने वाले गेस्ट की सेवा में अंकुश और उसकी दीदी लगे रहते थे इसी में उनका दिन बीत जाता था। होली को आता देख कर अंकुश के मन में एक छोटी सी उम्मीद की किरण जागी थी गरिमा तक पहुंचने की इसलिए उसने मन में ठान लिया था की इस बार वो घर में बंद नहीं रहेगा, वह बाहर निकल कर सबके संग होली खेलगा और अगर मौका मिला तो किसी तरह गरिमा का फिर से दीदार कर सकेगा। उसने मन में एक प्लान बनाया और दिन में जब मम्मी बिस्तर में लेती आराम कर रही थी तब उनके पास जा पंहुचा

"आप सो रही हो क्या मम्मी ?"
"नहीं बस लेती हुई हूँ बता क्या हुआ ?"

"मम्मा यार इस होली मैं और विवेक मोहल्ले में होली खेलने जाना चाहते है, तो आप न प्लीज इस बार जाने देना "
"क्यों क्या हुआ, हर बार तो खेलते है हम होली, दिक्कत क्या है तुझे ?"

"अरे हम कहा खेलते है होली बस गुलाल लगते है और फिर सारा दिन अंकल को पानी पिलाओ, चाय पिलाओ, मिठाई खिलाओ यही चलता रहता है "
"अरे तो बेटा तेरे पापा से मिलने इतने लोग जो आते है उनका भी तो धयान रखना होता है और वो गिफ्ट भी तो कितना लाते है तुम सबके लिए "

"वो सब ठीक है मम्मा लेकिन आप सोचो ना अगली साल बोर्ड के एग्जाम है लास्ट ईयर भी टेंथ के एग्जाम के कारन नहीं खेल पाया तो इस साल जाने दो ना, नेक्स्ट ईयर तो वैसे भी आप जाने नहीं दोगी घर से बाहर "
"हाँ ये भी है , लेकिन बेटा अगर तू बाहर चला जायेगा तो मैं और तेरी दीदी कितना कर पाएंगे"

"मुझे कुछ नहीं पता मम्मी आप प्लीज पापा से बात करो ना, वो कुछ सोचेंगे "
"ठीक है चल बात करुँगी मैं तेरे पापा से अगर मान गए तो ठीक नहीं तो फिर घर में ही रहना होगा "

अंकुश कमरे से खुश खुश बाहर आगया, उसके पापा, मम्मी की कोई बात नहीं टालते थे उसे पक्का यक़ीन था की पापा मान जायेंगे
अगले दिन हुआ भी यही, सुबह ऑफिस जाते टाइम अंकुश की मम्मी ने उसके पापा से बात की तो उन्होंने हाँ कर दी आखिर एक ही तो बेटा था उनका और त्यौहार के दिन इतना लाड प्यार तो बनता भी था, उन्होंने हामी भर दी।

अंकुश को जब उसकी मम्मा ने बताया तो वो ख़ुशी से खिल गया, झटपट तैयार होकर अपनी मम्मी से पैसे लिए और विवेक के साथ मार्किट के लिए निकल गया। अंकुश और विवेक ने मार्किट से खूब साड़ी पिचकारी और रंगो की खरीदारी की, अंकुश ने ढेर सारे गुब्बारे भी खरीद लिए। दोनों खरीदारी के बाद मार्किट से निकल ही रहे थे की अचानक उन्हें अनुराग हाथ हिलाता हुआ नज़र आगया, अनुराग उन दोनों को देख कर ही हाथ हिला रहा था, अंकुश को थोड़ी हैरत हुई क्यूंकि अनुराग से उसकी कोई खास दोस्ती नहीं थी।

अनुराग अंकुश और विवेक से लगभग दो तीन साल बड़ा था, वो दसवीं में दो बार फेल हो गया था, तीसरी बार बड़ी मुश्किल से पास हो पाया था, वो अंकुश के ही स्कूल में पढता था लेकिन उसका सेक्शन अलग था, अनुराग के पिता उनके शीशगंज टाउन के सबसे अमीर लोगो में से एक थे। शीशगंज की सबसे बड़ी मार्किट उन्ही की थी और इस टाइम वो दोनों जो खरीदारी कर रहे थे वो उन्ही की किराये पर दी हुई दूकान में थी।

दोनों चलते हुए अनुराग के पास पहुंचे, पास जाने पर अनुराग ने विवेक से बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया, उसने अंकुश से भी हैंडशेक किया लेकिन जिस तरह से वो विवेक से मिला था उस से लगता था की विवेक और अनुराग की दोस्ती गहरी है, अनुराग दोनों को अपने ऑफिस में ले कर आया और सोफे पर बैठने का इशारा किया, अनुराग का ऑफिस उन्ही की दुकाने में से एक दूकान में बना हुआ था जिसे एक ओर केबिन बना हुआ था जिसमे मार्किट का किराया वसूलने वाले मुंशी जी बैठे हुए थे दूसरी ओर केबिन में एक बड़ी सी कुर्सी और मेज़ लगी हुई थी जो शायद अनुराग के पापा की थी और मेज़ के सामने कुछ कुर्सियां था, ये जगह बाकी दुकान की तुलना में थोड़ी बड़ी थी शायद जान बुझ कर बड़ा बनाया गया था ताकि इसे ऑफिस का रूप दिया जा सके।

विवेक और अनुराग काफी देर तक इधर उधर की बातें करते रहे, अंकुश भी किसी किसी बात पर हूँ हाँ कर देता था लेकिन उसे अनुराग से दोस्ती में कोई खास इंट्रेस्ट नहीं था, अनुराग ने उनके लिए खाने पिने के लिए बहुत कुछ माँगा लिया था थोड़ी देर के बाद जब अंकुश बोर होने लगा तो उसने विवेक को चलने का इशारा किया, विवेक को अभी अनुराग से बातें करने में मज़ा आरहा था लेकिन फिरभी वो अंकुश के इशारा करने पर चलने के लिए उठ गया।

रास्ते में अंकुश को विवेक से पता चला की अनुराग अक्सर उसके सरकारी स्कूल में आता जाता रहता है और वहा वो विवेक से भी मिलता है वही उनकी दोस्ती हो गयी थी वैसे वो उसको भी स्कूल टाइम से जनता था लेकिन सेक्शन अलग होने के कारन तब इतनी खास दोस्ती नहीं हुई थी।

अंकुश को अनुराग कुछ खास पसंद नहीं था इसलिए उसने उस टॉपिक पर आगे कुछ नहीं की और कल शाम का प्लान पक्का करके घर आगया। शाम को गली में होलिका दहन थी उसमे अंकुश को गरिमा की मम्मी और दादी तो दिखाई दे गयी थी लेकिन गरिमा का अब भी कुछ पता नहीं था। अंकुश एक बार फिर निराश हो गया था शायद गरिमा घर से निकलती ही नहीं थी वरना उस दिन के बाद कम से कम उसकी एक झलक तो नज़र आती। उसने आज दिन में विवेक से भी घुमा फिर कर जानकारी लेने की कोशिश की थी लेकिन विवेक के पास भी कोई जानकारी नहीं थी। अंकुश को अपना प्लान बेकार जाता हुआ नज़र आरहा था।


रात में जब अंकुश सोया था तब उसके मन में थोड़ी उदासी भरी हुई थी लेकिन अगले दिन जब वो सो कर उठा तो एक पॉजिटिव फीलिंग के साथ उठा, उसने बिस्तर से उठे से पहले थान लिया था की अगर भगवन को उसे गरिमा से मिलाना होगा तो आज उसे गरिमा से ज़रूर मिला देगा और नहीं मिलाना होगा तो वो आज कम से कम जम कर होली का त्यौहार मनाएगा और दोस्तों के साथ मज़े करेगा।

अंकुश जब अपने कमरे से बाहर आया तो देखा उसके पापा आंगन के कुर्सी डाले अखबार पढ़ रहे थे और मम्मी किचन में थी, तभी उसे किचेन में से पापा की नाश्ते की ट्रे लाते हुए सुलेमान अंकल नज़र आये, सुलेमान अंकल थे तो बीएसएनएल में लाइनमैन लेकिन असल में अंकुश के पापा का सारा ऊपर का काम करते थे, और टेबल के नीचे वाला काम भी अंकुश के पापा उन्ही से करवाते थे। अंकुश के पापा सुलेमान अंकल पर आँख बंद कर भरोसा करते थे।

अंकुश पापा के पेअर छू कर संगान में ही पड़े तखत पर बैठ गया

"पापा आज आप सुलेमान अंकल से घर का का काम क्यों करा रहे है "

अंकुश के पापा ने चश्मे की ओट से अंकुश की ओर देखा और अखबार साइड में रख कर चाय की कप उठा ली और किचेन की ओर जाते हुए सुलेमन को आवाज़ दी

"अरे सुलेमान सुनो तो तुम्हारा भतीजा क्या पूछ रहा है "
"क्या हुआ भैय्या जी क्या पूछ रहे है बाबू ?"

"पूछ रहा है की सुलेमान अंकल से आज घर का काम क्यों करा रहे हो आप, अब बताओ क्या जवाब दू इसको ?"
"भैय्याजी जो आप का मन हो कह दीजिये, हम तो इस घर को भी अपना घर जानते है इसलिए आपके इशारे पर दौड़े चले आये "

"आया समझ कुछ क्यों बुलाया है सुलेमान को? नहीं आया ?, तुमने ही तो कहा था न की आज तुमको घर का काम नहीं करना इसलिए सुलेमान को बुला लिया, जो आज गेस्ट आएंगे उनकी सेवा आज सुलेमान मिया ही करेंगे, समझे "

"जी पापा समझ गया" अंकुश ने झेंपते हुए कहा
"अच्छा है समझ गए, अब जल्दी से अंकल को थैंक यू बोलो और नाश्ता करके ऐसे कपडे पहन लो जो रंग लगने के बाद ख़राब हो जाये तो फेक सको, अगर नए कपड़ो पर रंग लगा तो तुम्हारी मम्मी जान लेलगी "

"ठीक है पापा, मैं पुराने कपडे ही पहनूंगा, अब मैं जाऊ खेलने ?"
"पहले नाश्ता कर लो फिर जाना और धयान रहे ज़यादा हुरदंग मत मचाना आवारा लड़को के साथ, तुम अच्छे परिवार से हो इसलिए ाचे लोगो की संगती में रहो करो ठीक है, चलो अब नाश्ता करो"

अंकुश ने जल्दी जल्दी नाश्ता किया और भाग कर अपने कमरे में चला गया, उसने जल्दी जल्दी अपने कपडे चेंज किये और एक पुरानी टीशर्ट और लोअर पहन लिया, वह अब होली खेलने के लिए कुछ ज़ायदा ही एक्सीसिटेड था इतना एक्ससिटेड की गरिमा का भूत उसके दिमाग से गायब हो गया था।
Holi khelne ki saari tayyari ker Dali h or khaas kerke Garima ki ek jhalak paane ke liye yeh saari tayyari
Maa ot papa se permission bhi mil gayi h ab dekhna yeh h ki kia itni mehnat kerne ke baad positive news Milne ke ummeed h ya nahi
Badhiya shaandar update
 

Naik

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समीर जब चेंज करके आया तब तक उसकी मम्मी किचन से फ्री हो चुकी थी और गुलाल की थाली सजा ली थी, सबसे पहले उसके पापा ने सब को गुलाल का टिका लगाया फिर मम्मी ने, समीर और उसकी बहन ने भी थोड़ा गुदा थोड़ा गुलाल सब के गाल पर लगाया, तब तक अंकुश के पापा ने सुलेमान से अंकुश की रंगो की बाल्टी तैयार करा दी थी और एक बाल्टी में ढेर सारे रंग बिरंगे गुब्बारे भी भरवा दिए थे, अंकुश ने एक हाथ में रंग और पिचकारी की बाल्टी उठायी और दूसरी में गुब्बारों से भरी बाल्टी, अंकुश जैसे ही दरवाज़े पर रुका गेट खोलने के लिए की अचानक उसके शरीर पर ठन्डे पानी और रंगो की बौछार पड़ी, अंकुश पहले हड़बड़या पर जल्दी से बाल्टियों को ज़मीं पर रख कर पलटा सामने उसकी दीदी और पापा हाथ में पिचकारी लिए खड़े है रहे थे, रंग और पानी में सराबोर दुबे अंकुश ने भी जल्दी से अपनी पिचकारी में रंग भरा और अपने पापा और अपनी दीदी पर रंगो की बौछार कर दी, कुछ देर में पूरा परिवार एक दूसरे पर रंग और पानी की बौछार कर रहे थे थोड़ी देर वाली शांति की जगह अब रंगो और ठहाको ने ले ली थी और पूरा परिवार होली की खुशियों में डूब गया था।

लगभग आधे घंटे की धमाचौकड़ी के बाद जब सब शांत हुए तबतक सब रंगो से सराबोर हो चुके थे अंकुश के पापा ने सुलेमान को भी खींच लिया था और वह भी रंगो से नहा चूका था, थोड़ी देर सुस्ताने के बाद सुलेमान ने फिर से अंकुश की रंगो की बाल्टी तैयार कर दी और गुब्बारे भी भर दिए, अभी अंकुश बाल्टी उठाने की तैयारी कर ही रहा था की किसी ने डोरबेल बजायी, विवेक अंकुश को बुला रहा था, विवेक को देख कर अंकुश जल्दी से अपनी पिचकारी और रंगो से भरी बाल्टी ले कर निकल गया, उसने गुब्बरो की बाल्टी घर में ही रहने दी थी, विवेक के पास भी रंगो से भरी बाल्टी थी और दो पिचकारियां दोनों अपनी अपनी बाल्टी उठा आकर गली के बाहर आये, यहाँ लोगो का जमवाड़ा लगा हुआ था, किसी ने घर के बहार म्यूजिक डेक लगा रहा था और सब एक दूसरे पर रंगो की बौछार कर रहे थे और नाच रहे थे, वो दोनों भी उसी भीड़ में जा घुसे और गानो की धुन पर नाचते हुए होली की मस्ती में डूब गए।

घंटो तक होली खेलकर जब दोनों थक गए और उनके सारे रंग और गुलाल ख़तम हो गए तो अंकुश विवेक को लेकर अपने घर आया, दोनों बिलकुल भूत बन चुके थे, चेहरे पर इतना रंग लग चूका था की पहचानना मुश्किल था, अंकुश के घर अब साफ़ किया जा चूका था और सबने कपडे बदल लिए था, अंकुश को देख कर उसकी मम्मी ने उसे भी नहाने के लिए कहा लेकिन अंकुश ने इंकार कर दिया, वो तो घर में केवल अपने गुब्बारो की बाल्टी लेने आया था, दोनों अपनी खाली बाल्टी रख कर गुब्बारों की बाल्टी उठा कर चलने लगे की तभी अंकुश को उसके पापा ने रोका और सुलेमान को इशारा किया, सुलेमान ने रंगो से भरी एक और बाल्टी अंकुश के सामने ला कर रख दी, अंकुश खुसी से गंदे कपड़ो की परवाह किये बिना पापा से लिपट गया

"थैंक यू पापा, ये मेरी ज़िन्दगी का बेस्ट डे है "
"हाहाहा हमारे लिए भी, जाओ और जितना मन करे खेल आओ लेकिन लंच तक वापस आजाना"

"हाँ पापा बस ये बाल्टी ख़तम करके आजायेंगे और मम्मी आप मेरे और विवेक के लिए भी कपडे निकल देना ये भी हमारे साथ ही खा लेगा खाना"
"ठीक है बेटा लेकिन घर जल्दी आना "

दोनों ने फिर से एक एक बाल्टी उठायी और बहार निकल गए, घर के बाहर ही उनको अपने मोहल्ले के कुछ लड़के मिल गए और फिर उन्होंने एक दूसरे पर गुब्बारों से हमला करना चालू कर दिया, दोनों ओर से गुब्बरो की बौछार ऐसे हो रहे थे दो दुश्मन देश एक दूसरे पर हमले करते हो, कुछ देर में ही विरोधी पक्ष के गुब्बारे ख़तम हो गए लेकिन अंकुश के पास अभी बहुत गुब्बारे बचे हुए थे इसलिए अंकुश और विवेक कार की ओट ले लेकर विरोधी लड़को पर हमले करने लगे, अंकसह और विवेक के हमलो से घबरा कर लड़के इधर उधर भाग रहे थे, एक लड़का अंकुश के हाथ में गुब्बारा देख कर चिल्ल्ता हुआ भगा, अंकुश ने गुब्बरा मारा लेकिन निशाना चूक गया और गुब्बरा दरवाज़े पर जा लगा, गुब्बारा लगने से लोहे का गेट झनझना गया अंकुश ने फिर एक गुब्बारा उठाया और पूरी ताकत से उस लड़के की ओर फेका, गुब्बारा तेज़ी से उड़ता हुआ फिर उसी दरवाज़े की ओर उड़ता हुआ जा टकराया, लेकिन इस बार गुब्बारा दरवाज़े पर नहीं पड़ा था इसबार गुब्बारा दरवाज़ा बंद करने आयी गरिमा पर जा पड़ा था।

गरिमा होली खेलकर नहा चुकी थी और कपडे भी बदल लिए थे लेकिन अंकुश के द्वारा फेका गया गुब्बरा सीधा उसके सुन्दर मुखड़े पर आ लगा था, गोरा सफ़ेद मुखड़ा उस पर गुब्बारे में भरा गुलाबी रंग, अंकुश अपने सामने गरिमा को इस रूप में देख कर दीवाना हो गया।

आज होली खेलने की ख़ुशी में उसे भूल बैठा था लेकिन शायद भगवान नहीं भुला था, अंकुश गरिमा को बस देखता ही रह गया, गरिमा जो गुब्बारा लगने से चिढ गयी थी उसने एक गुस्से से भरी नज़र रंगो से सराबोर अंकुश पर डाली, विवेक ने अंकुश को पीछे से एक और गुब्बारा पकड़ाया और अंकुश ने बिना कुछ सोंचे फिर से गुब्बरा गरिमा की ओर फेक मारा, गरिमा गुस्से से चिल्लाई और घर के अंदर भाग गयी।

गरिमा को इस रूप में देखने के बाद अंकुश में मन में जो प्यार की फीलिंग्स कही खो गयी थी वो दुबारा जाग गयी, अब उसका मन होली से उचट गया और जल्दी जल्दी बाल्टी का रंग और गुब्बारे ख़तम करके घर में जा घुसा। उसने घर में घुसते ही उसने एक जोड़ी कपड़े विवेक को दिए और उसको बाथरूम में नहाने के लिए बोलकर झट से छत पर जा चढ़ा। उसे पूरी उम्मीद थी की गरिमा फिर से नाहा कर छत पर ज़रूर आएगी और हुआ भी ऐसा ही, कुछ ही देर में उसे गरिमा क्रीम और लाल कलर के सूट में अपने लम्बे बाल लहराती हुई छत पर आपहुची, उसके हाथ में वही सफ़ेद रंग का सूट था जो अभी पहने हुई थी और उस पर अंकुश के फेंके हुए गुब्बारे ने चित्रकारी कर दी थी।

आज छत पर चढ़ते ही गरिमा ने भी अंकुश को देख लिया था, उसने अंकुश को साफ़ पहचान कर बुरा सा मुँह बनाया और अपना मुँह दूसरी और फेर लिया, पता नहीं उस पल अंकुश में कहा से इतनी ताक़त आगयी की वो बरबस ही ज़ोर से चिल्लाया "हैप्पी होली " और दूर कहीं बजते गाने की धुन पर नाचने लगा, गरिमा ने पलट कर अंकुश को बंदरो की तरह नाचते देखा तो एक हलकी सी मुस्कान उसके चेहरे पर दौड़ गयी, ये मुस्कान अंकुश से छुपी ना रह सकी और गरिमा को अपनी हरकतों पर मुस्कुराता देख कर और तेज़ी से नाचने लगा।

गरिमा ने अपने गीले कपड़ो को तार पर सूखने के लिए डाल दिया, अब अंकुश ने भी नाचना बंद कर दिया था और छत पर लगे खम्बे से
टेक लगाए गरिमा को एकटक निहार रहा था, पहले तो अंकुश को ऐसे घूरते देख कर गरिमा हल्का सा शर्मायी फिर गुस्से वाला मुँह बना कर अंकुश को हाथ के इशारे से अपने सूट के बर्बाद होने का इशारा किया, पहले तो अंकुश कुछ समझा नहीं पर जैसे ही समझ आया उसने झट से हाथ जोड़ लिए और इशारो में ही माफ़ी मांग ली, गरिमा ने भी एक अदा से मुँह फुला कर निगाहे फेर ली।

गरिमा को ऐसे गुस्से से निगाहे फेरते देख कर अंकुश ने झट से अपने कान पकडे और उठक बैठक करने लगा, गरिमा जो अंकुश को बनावटी गुस्सा करके कनखियों से देख रही थी वो रंगो से सने और भूत जैसी हालत में उठक बैठक करते अंकुश को देख कर खिलखिला कर हंस पड़ी और हाथो से उसके पागल होने का इशारा करके छत से नीचे की ओर भाग गयी।

गरिमा का हंसना था की अंकुश की होली दिवाली सब एक साथ मन गयी, कल तक जो निराशा उसके मन में थी वो अब गायब थी अब तो बस एक उमग थी, एक उम्मीद थी, एक सपना था और और उस सपने में वो था गरिमा थी और उनका कभी ना ख़तम होने वाला प्यार था।


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Badhiya h yeh letter wala jugad kaam ker gaya
Aise hi jugad lagate raho bahot aage jaoge
Behtareen update bhai
 

Naik

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उस दिन के बाद अंकुश और गरिमा की कहानी शरू हो गयी, दोनों किसी न किसी बहाने से एक दूसरे तक लेटर पंहुचा देते, जिस अंकुश को दो लाइन लिखने में पूरी रात लगी थी आज वही अंकुश एक रात में पांच छह पन्ने का लेटर लिख देता था। शरू में गरिमा एक दो पन्नो का ही जवाब देती थी लेकिन अब वो भी अंकुश के जैसे कई कई पन्नो का लेटर भेजती थी, लेकिन लेटर के साथ समस्या ये थी उसमे ज़ायदा बात नहीं हो सकती थी, और वो लेटर भी सप्ताह में एक या दो बार ही अदला बदली हो सकती थी ऊपर से अब अंकुश का स्कूल खुलने वाला था, एक बार स्कूल स्टार्ट होने के बाद उसको बार बार छत पर आने का टाइम मिलना संभव नहीं था, बोर्ड होने के कारन उसको कोचिंग भी ज्वाइन करनी थी।

अंकुश ने फिर दिमाग लगन चालू कर दिया, कोई परमानेंट सलूशन। रास्ता तो था लेकिन वो इस रास्ते को अपनाने से बच रहा था, आसान रास्ता ये था की दोनों के घर में फ़ोन था लेकिन फ़ोन पर घरवालों के सामने बात करना संभव नहीं था और मोबाइल फ़ोन अभी नया नया आया था और उसमे कॉल तो महंगी थी ही ऊपर से सुनने के भी पैसे लगते थे इसलिए उसे कोई और हल निकलना था।

कहते है न जहा चाह है वह राह है, आखिर अंकुश की उधेड़ बन रंग लायी, अंकुश के पापा बीएसएनएल में थे तो उनके कारन ही इस मोहल्ले में टेलीफोन की लाइन आयी थी, टेलीफोन का पोल अंकुश के के घर की दिवार से लग कर लगाया गया था और उसके घर के सामने से ४ टेलीफोन वायर दूसरे घरो में जाती थी, एक गरिमा के घर, २ अलग अलग घरो में लेकिन उनमे से चौथी वायर चावला साहब के घर जाती थी, चावला साहब आर्मी से रिटायर थे, घर में केवल वो और उनकी पत्नी रहती थी, दिन में एक काम वाली उनके घर का काम करने आती थी।
चावला जी के ३ बच्चे थे जिसमे एक आर्मी में था जिसकी पोस्टिंग कही साउथ में थी और उनके एक बेटा और बेटी कनाडा में रहते थे।

अंकुश ने कैलकुलेशन लगायी की चावला जी जल्दी सोने वाले व्यक्ति है इसलिए रात में उनकी टेलीफोन लाइन फ्री रह सकती है। उसने रात के समय एक एक एक करके ब्लेड से चारो टेलीफोन वायर्स को हल्का हल्का छील दिया और रात को मम्मी से छत पर सोने का बहाना करके अपना बिस्तर छत पर ही लगा लिया और साथ में एक एक्स्ट्रा पड़ा फ़ोन भी उठा लाया। अंकुश के पापा टेलीफोन कंपनी में थे इसलिए उसके घर में टेलीफोन की कोई कमी तो थी नहीं।

उसके चुपके से पहली वायर से फ़ोन को कनेक्ट किया और अपने खुद के घर का नंबर मिलकर दौड़ता हुआ नीचे आगया, उसके घरके फ़ोन में कॉलर id लगी हुई थी, उसने जल्दी से फ़ोन उठा कर डिस्कोनेक्ट कर दिया और स्क्रीन पर आये नंबर को नोट कर लिया, उसने तीन चार बार ऐसे ही किया, उसने हर एक वायर से फ़ोन कनेक्ट करके अपने घर के नंबर पर कॉल करता और उस नंबर को नोट कर लेना। घर में सब टीवी देखने में व्यस्त थे इसलिए किसी का धयान अंकुश की खुराफात पर नहीं गया । अंकुश ने हर वायर पर भी मार्किंग कर दी थी और फिर वो फ़ोन को साइड में रख कर सो गया।

अगले दिन अंकुश ने फ़ोन की डायरेक्टरी से चावला जी का नंबर ढूंढ निकला और उसने उनका वायर छोड़कर बाकि सरे वायर पर टैपिंग कर दी। उसका आधा प्लान कम्पलीट था उसने उस रात गरिमा को लेटर लिखा और उस से मिलने के लिया कहा लेकिन गरिमा ने इंकार कर दिया लेकिन साथ ही ये भी लिखा की वो दो दिन बाद अपने स्कूल किसी काम से जाएगी अगर कोई बहुत ज़रूरी बात है तो घर वापिस आते हुए जो खेत मिलते है वह वो उस रास्ते पर एक दो मिनट उस से चलते चलते बात कर सकती है।

अंकुश अगले दिन अपनी साइकिल उठाकर अपने पापा के ऑफिस टेलीफोन एक्सचेंज जा पंहुचा, एक्सचेंज में बहुत सा स्टाफ उसको जनता था लेकिन उसे केवल सुलेमान अंकल की तलाश थी, कुछ देर में उसे सुलेमान अंकल नज़र आगये।

"नमस्ते अंकल "
"अरे अंकुश बेटा तुम यहाँ कैसे? चलो तुमको भईया जी के पास ले चलु "

"अरे नहीं अंकल मैं न आपसे ही मिलने आया था "
"मुझसे ? हाँ बताओ क्या काम है ?"

"वो अंकल मैंने अपने एक दोस्त के यहाँ देखा है एक बिलकुल छोटा सा फ़ोन मोबाइल के जैसा लेकिन उसमे वायर होती है "
"हाँ आता है, चीन का है वो फ़ोन, लेकिन तुम्हे क्या काम था "

"वो अंकल आप प्लीज मुझे वैसा फ़ोन दिला दो ना घर के लिए "
"बेटा वो यहाँ नहीं मिलेगा, वो या दिल्ली में मिलेगा या आगरा में, वो वैसे भी सरकार नहीं देती अलग से खरीदना पड़ता है "

"कोई बात नहीं अंकल आप दिला दो ना, मेरे पास पैसे है, मैं लेकर आया हु" अंकुश ने पैसे जेब से निकलते हुए कहा
"यहाँ नहीं है, अच्छा रुको एक मिनट" बोलकर वो एक रूम में जा घुसे और वहा किसी वयक्ति से कुछ बात करने लगे फिर उन्होंने किसी को कॉल लगाया और थोड़ी देर वापस आये

"सुनो बेटा अंकुश, हमारे ऑफिस के राकेश जी दिल्ली गए है डिपार्टमेंट के काम से मैंने उनको बोला है वो लाकर दे देंगे, लेकिन वो कल या परसो सुबह ही मिल पायेगा "
"ओह्ह थैंक यू अंकल, आप ये पैसे रख लीजिये, जब आजाये तो आप मुझे दे देना और हाँ पापा को मत बताना प्लीज "

अंकुश का काम हो गया था जल्दी जल्दी साइकिल चलता हुआ घर आगया बस अब तो एक ही प्रार्थना थी की राकेश अंकल परसो समय से उसका फ़ोन लेकर आजाये।
Letter ✉️ se Dil nahi bhara tow bhai sahab telephone line se jugad laga dala sahi h bahot aage tak jaoge
Behtareen shaandar update
 

blinkit

I don't step aside. I step up.
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आप निस्संदेह एक बहुत अच्छे राइटर है । आप अपनी स्टोरी पर हर छोटी छोटी चीज , छोटी छोटी बात का ध्यान रखते है , भले ही उन सब का कोई खास मतलब हो या फिर नही भी हो।
आप की दोनो कहानी एक कहानी लगती है । एक रियलिस्टिक का आभास कराती है । एक ऐसी कहानी जिसे पढ़कर रीडर्स अपने लाइफ के साथ तुलना करे ।
ऐसे राइटर्स इस फोरम पर बहुत ही रेयर हैं। और आप उन रेयर मे एक है ।
थोड़ी-बहुत अभी भी कमियाँ है जो आपके पिछले स्टोरी मे भी था और अब भी है - आप का अपडेट पोस्ट करने से पहले का एडिटिंग । कोई भी अपडेट पोस्ट करने से पहले आप उसे पढ़े और जो भी मिस्टेक या गलती हुआ है , उसे करेक्शन कर लें ।
आप से हमे बहुत उम्मीद है । एक समय आएगा जब लोग आपके इस अथक प्रयास और आपके बेहतरीन कहानी के लिए लोग याद करेंगे ।
इस फोरम के मौजूद चंद राइटर्स मे आप मेरे फेवरेट राइटर बन गए है ।
aapki kahani ki samiksha ke jaise hi aapne meri likhni ki kamaiyo ki jo samikhsha ki hai us se main purntah sahmat hoon.

main kahani adhiktar office ke kaam se free kar likhna start karta hoon aur jab tak update likhta hoon tab tak samay adhik ho chuka hota hai, isliye bas office se nikalne ke antim chhano me kani post karke ghar nikalna ho jaata hai,

aapne jo pramarsh diya hai wo purntah satik hai bas samay ko manage na kar paana meri majoori hai isko sudharne ka prayaas rahega.
 

blinkit

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अंकुश का अगला पूरा दिन फ़ोन के इन्तिज़ार में गुज़ारा, वो फ़ोन का इतनी बेसब्री से इन्तिज़ार कर रहा था की उस से गरिमा को लेटर भी नहीं लिखा जा सका, राम राम करते करते दिन कटा और अगले दिन पापा के पीछे पीछे वो भी ऑफिस जा पंहुचा, उसे फ़ोन लेकर कर हर हाल में एक बजे से पहले गरिमा के स्कूल के पास पहुंचना था अगर ऐसा नहीं होता तो फिर गरिमा से मिलने का दूसरा मौका इतनी आसानी से नहीं मिलने वाला था, अंकुश सुलेमान को ढूंढता हुआ एक्सचेंज जा पंहुचा लेकिन वहा से उसे एक अच्छी तो एक बुरी खबर सुनने को मिल गयी।

अच्छी खबर ये थी की राकेश अंकल को फ़ोन मिल गया था और उन्होंने अंकुश के लिए खरीद भी लिया था, लेकिन वो आज सुबह आने की जगह शाम में आने वाले थे इसलिए अब अंकुश फ़ोन शाम से पहले नहीं मिल सकता था, अंकुश निराश हो गया लेकिन फिर भी उसे आज गरिमा से मिलना ही था, आखिर वो पहली बार गरिमा को इतने पास से देखने का उससे बात करने का मौका नहीं गवा सकता था, अंकुश साइकिल उठा कर धीरे धीरे चलाता हुआ गरिमा के स्कूल के पास आपहुचा, उसने अपनी साइकिल स्कूल से थोड़ी दूर पर रोकी थी वो नहीं चाहता था की लोगो की नज़रो में आये, वैसे स्कूल की छुट्टियां चल रही थी इसलिए इक्का दुक्का स्टूडेंट स्कूल आते जाते दिख रहे थे। अंकुश ने साइकिल एक पेड़ के नीचे लगायी और पेड़ के नीचे राखी एक टूटी फूटी बेंच पर बैठ गया, अभी केवल बारह ही बजे थे उसे काम से काम एक घंटा और इन्तिज़ार करना था गरिमा का।

गर्मी बढ़ने लगी थी और चारो और सफ़ेद चिट्टी चुप निकली हुई थी, धुप की गर्मी दिन चढ़ने के साथ साथ इतनी तेज़ होने लगी थी की वातावरण में वायुमंडलीय अपवर्तन होने लगा था, अंकुश गर्मी से बेहाल पेड़ के बैठा गरिमा का इन्तिज़ार कर रहा था, तभी उसे स्कूल से बाहर निकलता हुआ एक धुंधला साया दिखाई दिया वायुमंडलीय अपवर्तन के कारन अंकुश उसे पहचान नहीं पा रहा था लेकिन उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो सफ़ेद कपडे में लिप्त हुआ साया हवा में हौले हौले उड़ता हुआ चल रहा हो, अंकुश पुरे धयान से पहचाने के कोशिश कर रहा था लेकिन एक तो दुरी ऊपर से वायुमंडलीय अपवर्तन के कारन अंदाज़ा लगाना भारी पड़ रहा था, वो साया स्कूल से चलता हुआ जब रोड पर पंहुचा और अंकुश को उस साये को देखने का एंगल बदला तब उसे शक हुआ की ये साया गरिमा ही है।

अंकुश को पछतावा हो रहा था की अगर वो आज एक्सचेंज जाने की जगह घर होता तो गरिमा को घर से निकलते देख पाता तो उसे पता रहता की वो स्कूल किस रंग के कपड़ो में गयी है, लेकिन जो भी हो उसे इस लड़की के पीछे ही जाना था क्यूंकि उसे लग रहा था की ये लड़की गरिमा ही है, अंकुश साइकिल के पैडल मरता हुआ हुआ उस सफ़ेद कपड़ो में लिपटे साये के पास जा पंहुचा,

गर्मी बहुत थी इसलिए उस लड़की ने अपनी सफ़ेद चुन्नी से अपने चेहरे को ठक लिया था, अंकुश उस लड़की के पास तो जा पंहुचा था लेकिन उसे समझ नहीं आरहा था की कैसे पूछे की वो गरिमा ही है या कोई और, अगर गरिमा ही है और उसको नहीं पहचाना तो मुसीबत और अगर गलती से कोई और लड़की हुई तो कही सरे आम बेइज़्ज़ती न हो जाये।

अंकुश का दिमाग बिलकुल भी काम नहीं कर रहा था और वो किसी मुर्ख इंसान के जैसे धीरे धीरे साइकिल का पैडल मारते हुए उस साये के पीछे चल रहा था, अचानक वो साया चलते चलते रुका और और अंकुश की ओर पलटा, अंकुश उसके ऐसे पलटने से हड़बड़ा गया और उसकी साइकिल लड़खड़ा गयी, अंकुश ने साइकिल के ब्रेक मारे लेकिन तबतक देर हो चुकी थी और वो साइकिल समेत गर्म तपती हुई सड़क पर चारो खाने चित पड़ा था।

अंकुश को ऐसे लड़खड़ा कर गिरते देख कर वो लड़की अरे अरे करती हुई दौड़ी आयी और अंकुश को सहारा दे कर उठाया, अंकुश झेप गया था, लड़की के सामने ऐसे लड़खड़ा आकर गिरना उसे किसी कीमत पर गवारा नहीं था लेकिन वो अब झेंपने के अलावा कर ही क्या सकता था उसे झट से साइकिल उठा कर स्टैंड पर खड़ी की और अपने कपड़ो पर लगी धूल झाड़ने लगा,

"तुमको चोट तो नहीं लगी ज़यादा ?" सुरीली आवाज़ में पूछा गया
"नहीं नहीं कोई चोट नहीं लगी वो बस ब्रेक अटक गया था इसका इसलिए " अंकुश उसकी सुरीली आवाज़ में खोता हुआ बोला

"तुम बड़े अजीब हो इतनी देर से बिना कुछ बोले पीछे पीछे चल रहे थे, लेटर में तो ऐसे लिखा था जैसे कितनी ज़रूरी बात करनी हो मुझसे " गरिमा ने शिकायती स्वर में कहा

"आयी ऍम सॉरी ! वो एक्चुअली तुमने मुँह पर चुन्नी लपेट राखी थी तो मुझे लगा तुम शायद बात नहीं करना चाहती इसीलिए " अंकुश ने मरा टूटा झूट बोला, उस टाइम उसका दिमाग एक दम ब्लेंक था

"बड़े अजीब हो तुम, वो तो मैंने गर्मी के कारन डाला हुआ था, अब चले यहाँ यही धुप में ही खड़े रहना है " गरिमा के बोलते ही अंकुश जैसे नींद से जागा और झट से साइकिल स्टैंड से हटा कर उस पर बैठ गया

"आजाओ तुम भी साइकिल पर" अंकुश ने हिम्मत करके गरिमा को साइकिल पर बैठने का इशारा किया
"पागल हो क्या, पुरे कसबे में प्रचार करोगे, अगर एक आदमी ने भी मुझे तुम्हारी साइकिल पर ऐसे बैठे हुए देख लिया तो पुरे कसबे को पता लग जायेगा हम दोनों की दोस्ती का, तुम भी साइकिल से उतर जाओ और मेरे साथ चलते चलते बात कर लो जो भी कहना है, और ये बुक भी पकड़ लो अपने हाथ में अगर कोई जान पहचान वाला नज़र आये तो ये बुक मुझे ऐसे पकड़ना जैसे तुम मुझे ये किताब देने आये थे, समझे मेरी बात " गरिमा ने ठोस शब्दों में अंकुश को समझाया

अंकुश खुद दुनिया भर का चालाक था लेकिन गरिमा की समझदारी और प्लानिंग सुन कर दंग रह गया था, वो गरिमा के कहे अनुसार साइकिल से उतर कर उसके साथ साइकिल थामे चलने लगा, उसने गरिमा की दी हुई वही हिंदी की किताब साइकिल के करियर में फसा दी थी। अंकुश अब चल तो रहा था लेकिन उसको समझ नहीं आरहा था की आखिर बात कहा से शरू करे, उसकी ये परेशानी भी गरिमा ने दूर कर दी

"हाँ अब बोलो क्या बात करनी थी तुम्हे "
"वो बस कुछ खास नहीं, बस ऐसे ही " अंकुश हकलाया

"ठीक है तो फिर साइकिल पर बैठो और घर जाओ, मैं अकेली घर आजाऊंगी, जब स्कूल होता है तब भी तो अकेली आती ही हूँ ना " गरिमा की सुरीली आवाज़ में नाराज़गी साफ़ महसूस की थी अंकुश ने
"अरे वो बात ये है की अब हम दोंनो फ्रैंड्स बन चुके है लेकिन वो लेटर लिखने और भेजने वाला मामला रिस्की लग रहा है इसी के बारे में बात करना चाह रहा था " अंकुश ने एक सांस में बोल डाला

"ओह्ह तो ठीक है मत लिखा करो लेटर, किसने बोला तुमको मुझे लेटर लिखने के लिए ? तुमने ही लिखा था लेटर तो मैंने भी जवाब में लिख दिया, अब ठीक नहीं लग रहा तो कोई बात नहीं " गरिमा की आवाज़ में अब गुस्सा महसूस किया था अंकुश ने

"अरे नहीं, बात ये है की मोहित को आदत पड़ गयी है पैसो की, कल वो कही किसी के आगे बोल देगा तो हम दोनों के लिए मुसीबत आजायेगी, इस दिक्कत से बचने का मैंने एक रास्ता निकला है जो सेफ भी और लेटर लिखने और पकडे जाने का झझट भी नहीं रहेगा "

"मतलब अब मोहित से डर कर लेटर लिखना बंद "
"हाँ लेटर बंद लेकिन उस से बढ़िया तरीका है फ़ोन पर "

"फ़ोन पर ??? दिमाग ठीक है क्या, फ़ोन पर कैसे बात हो सकती है भला, जब मम्मी पापा पूंछेंगे तब ?"
"अरे तुम्हारे घर वाले फ़ोन पर नहीं, मेरी बात धयान से सुनो अगर कोई डाउट लगे तब बोलना बस तुम मेरी बात सुन लो आराम से "

"ठीक है बोलो, जो भी कहना है तुम्हे "
"बस इतना प्लान है मेरा की मैं आज रात को तुम्हारी छत पर आऊंगा और एक छोटा सा फ़ोन तुम्हारी छत पर बनी हुई कोठरी में रख जाऊंगा वो बहुत छोटा सा फ़ोन है देखने में मोबाइल के जैसा लेकिन उस में तार होगी, उस तार में २ पिन लगा हुआ होगा, तुम्हारी छत से जो टेलीफोन की चार पांच वायर जा रही है आगे के घरो में उनमे से एक वायर पर कट लगा होगा, तुम फ़ोन की एक पिन वायर के पहले कट पर लगा देना और दूसरी पिन उस वायर पर बने दूसरे कट पर बस हो गया, फिर रात में हम दोनों बिना किसी दिक्कत के एक दूसरे से बात कर पाएंगे , इसमें कोई रिस्क नहीं है और ना किसी को पता चलेगा "

"और जो टेलीफोन का बिल आएगा उसका क्या ?" गरिमा ने शंका जताई
"मेरा और तुम्हारा फ़ोन दोनों एक ही लाइन पर होगा इसलिए कोई बिल नहीं आएगा, ठीक वैसे ही जैसे हमारे घर के दो अलग अलग कमरों में रखे हुए फ़ोन को हम एक ही टाइम पर उठा लेते है तो आपस में बात कर लेते है बिना किसी चार्जेज के "

"ओह्ह अच्छा, लेकिन अगर उस टाइम नीचे से पापा ने किसी को कॉल करने के लिए फ़ोन उठा लिया फिर ?"
"कुछ नहीं होगा, क्यंकि ये लाइन तुम्हारे घर की नहीं है, किसी और के घर की है वो तो रात से पहले ही सो जाते है"

"ठीक है लेकिन मैं फ़ोन कहा छुपा कर रखूंगी, किसी ने देख लिया तो ?"
"वो बहुत छोटा सा फ़ोन है, तुम उसे अपने स्कूल बैग में भी रख सकती हो, और अगर कोई पूछे तो बोल देना की किसी सहेली का है "

"हाँ ये ठीक है लेकिन बात करने के लिए छत पर जाना पड़ेगा बार बार, किसी ने देख लिया तो ?"
"तो हम दिन में नहीं करेंगे, आजकल गर्मी के दिन है सब छत पर सोते है, तुम भी छत पर सोने के बहाने से आजाना और फ़ोन कनेक्ट कर लेना दोनों रात में बाते कर लिया करेंगे और सोने से पहले तुम फ़ोन हटा कर छुपा देना और सो जाना, किसी को कानो कान खबर भी नहीं होगी और हमारी बात हो जाया करेगी "

"हाँ ये आईडिया ठीक लग रहा है, लेकिन तुम आज रात को कैसे आओगे मेरी छत पर, किसी ने देख लिया तो ?"
"हाँ ये रिस्क है लेकिन कोई दूसरा चारा नहीं है, मुझे आज रात आना पड़ेगा फ़ोन रखने के लिए और उस वायर में कट लगाने के लिए "

"ठीक है तो तुम आज कर लेना जो करना है, वहा कोठरी में एक बाल्टी है पेंट की, उलटी रखी होगी उसी के नीचे छुपा देना फ़ोन, मैं सुबह में बहाने से निकाल ले जाउंगी, रात में नहीं आसक्ति, किसी ने दोनों को साथ में देख लिया तो शहर में जुलुस निकल जायेगा हमारा "

"हाँ ठीक है, बस मोनू की प्रॉब्लम है वो रात में सोता तो नहीं है छत पर "
"कौन ? मोनू भैय्या ??? अरे वो तो बहुत दिनों से चाचा के घर में सोते है, वहा चाची और गोलू अकेले रहते है तो भैय्या रात में खाना खा कर वही जाता है सोने फिर सुबह नाश्ता करके ही आता है, मेरी चाचा जी मुंबई में जॉब करते है इसलिए चाची अकेली रहती है "

"वाह ! ये तो और अच्छा है, ठीक है फिर आज रात में फ़ोन आते ही मैं सारी सेटिंग कर दूंगा "
"ठीक है, अब तुम मुझे वो किताब दे कर जाओ, बाजार शुरू होने वाला है कही कोई मिल न जाये "

अंकुश ने साइकिल रोक कर करियर से किताब निकाल कर गरिमा की और पलटा, गरिमा भी चलते चलते रुक गयी थी और अब अपने मुँह पर से चुन्नी हटा कर अपना पसीना पोंछ रही थी, गर्मी और धुप से उसका गोरा मुखड़ा तमतमाया हुआ था और लाल हो गया था जैसे किसी ने ढूढ़ के भगोने में एक चुटकी सिन्दूर घोल दिया हो, अंकुश पहली बार गरिमा को इतने पास से देख रहा था, उसके सुन्दर मुखड़े को देख कर अंकुश का मन धड़क उठा,

"हे ईश्वर कितनी सुन्दर है ये, काश ये सदा के लिए मेरी हो जाये "।
गरिमा अंकुश की प्राथना से अनजान अपने चेहरे का पसीना पोंछ कर किताब थामी और एक अलविदाई नज़र अंकुश पर डाल कर घर की ओर बढ़ गयी, अंकुश गरिमा के रूम में मंतर्मुग्ध साइकिल खींचता हुआ उसके पीछे चलता चला गया।

गरिमा की चाल में अब तेज़ी थी वो कुछ ही देर में तेज़ी से चलती हुई अंकुश की नज़रो से ओझल हो गयी, लेकिन अंकुश अभी भी उसी अवस्था में साइकिल खीचता हुआ चल रहा था, वो गरिमा के खयालो में ऐसा खोया हुआ था की उसे याद भी नहीं रहा की वो अपने साथ साथ साइकिल का वज़न भी खींच रहा है और अगर चाहे तो वो साइकिल चला कर भी घर जा सकता था।
 

12bara

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Bachpan ka pyar masumiyat se bhara hota ... behtreen update
 

blinkit

I don't step aside. I step up.
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शाम को सुलेमान अंकल ने चुपके से अंकुश को फ़ोन पकड़ा दिया, अंकुश फ़ोन देख कर खुश हो गया, फ़ोन बिलकुल वैसा ही था जैसा उसे चाहिए था, सुलेमान अंकल के हाथ पापा ने कुछ सामान भिजवाया था और वो मम्मी का हाथ बटाने में लगे हुए थे, फ़ोन में सब ठीक था लेकिन जैसी चिमटी जैसी पिन अंकुश को चाहिए थी वो नदारत थी लेकिन सुलेमान अंकल ने उसकी ये समस्या भी दूर कर दी, उनकी टूल किट में वैसी चिमटी थी जो उन्होंने लगा कर अंकुश को दे दी। अब अंकुश रेडी था बस उसे रात का इन्तिज़ार था,

रात में लगभग नौ बजे खाना खाकर उसने थोड़ी देर टीवी देखा और फिर सोने का बहाना करके छत पर आगया, सबसे पहले उसने चारपाई पर अपना बिस्तर लगाया और छत वाली अपनी कोठरी से अपना फ़ोन उठा लाया, ये वही फ़ोन था जिस से अंकुश ने उस रात फ़ोन नुम्बरो की पड़ताल की थी, उसने उसे चावला जी वाली लाइन से कनेक्ट किया और रिंगटोन चेक की, फ़ोन बिलकुल ठीक काम कर रहा था, उसने फ़ोन की बेल ऑफ कर दी थी, उसके यहाँ सब रेडी था लेकिन उसे चिंता थी चवला जी की लाइन गरिमा की छत पर ढँढ़ने की, उसने उसका भी हल ढूंढ लिया था लेकिन वो कितना कामयाब होगा ये तो समय ही बता सकता है,

अंकुश ने फ़ोन का रिसीवर क्रेडल से हटा कर नीचे रख दिया, उसने जेब से अपना वॉकमेन निकला और उसमे कसेट डाल कर गाना प्ले करके रिसीवर के पास रख दिया, उसने टाइम देखा रात के दस बजने वाले थे, उसके शहर में लोग अक्सर दस बजे तक सो जाया करते थे इसलिए उसने गरिमा को देने वाला फ़ोन उठाया और साथ एक छोटा सा बैग उठा कर चुपके से अपने घर की छत से अपने पडोसी की छत पर उतर गया, वो अँधेरे का फ़ायदा उठाकर धीरे धीरे झुक कर चल रहा था ताकि वो किसी को दिखाई ना दे, वो किसी बन्दर की तरह चलता हुआ गरिमा की छत की मुंडेर तक पंहुचा और फिर मुंडेर की दीवार फांद कर छत पर पहुंच गया, अंकुश पहली बार गरिमा की छत पर आया था इसलिए संभल कर चल रहा था, उसकी सांस डर और उत्तेजना के कारन फूल रही थी उसने ज़िन्दगी में आज से पहले कभी ऐसी कोई हरकत नहीं की थी।

अंकुश छत को टटोलता हुआ वहा तक जा पंहुचा जहा से टेलीफोन की वायर आगे जा रही थी, वो दीवार की ओट में होकर बैठ गया और अपने साथ लाये बैग से मोमबत्ती और माचिस निकली, उसने दो ईंट को खड़ा करके मोमबत्ती जलाई, उसने ईंट इस लिए खड़ी की थी ताकि किसी पडोसी को रौशनी न दिखे,

अंकुश ने बिना देर किये ब्लेड निकला और एक एक करके चारो तारो में कट लगा दिया, उसने जेब से नन्हा फ़ोन निकला और कटे हुए तारो में चिमटी फसा कर रिंगटोन चेक करने लगा। उसकी किस्मत अच्छी थी की दूसरे वायर में लगते ही उसे अपने वॉकमेन पर गाना बजने की आवाज़ साफ़ सुनाई दे गयी।

अंकुश ने बैग में से टेप निकाल कर जल्दी से बाकी के वायर पर टेप लगाया और चावला जी के वायर को खुला छोर दिया, उसे जल्दी से मोमबत्ती बुझा दी, उसे अब इसकी ज़रूरत नहीं थी, उसने फ़ोन को डिसकनेक्ट किया और बाकी का सामान अपने बैग में दाल लिया, उसका प्लान कामयाब रहा था बस अब उसको फ़ोन बाल्टी के नीचे रखना भर था।

अंकुश दबे कदमो से कोठरी का गेट खोलकर अंदर घुसा, कोठरी में घाना अँधेरा था, उसने अँधेरे में ही टटोल कर बाल्टी ढ़ंढने की कोशिश की लेकिन बाल्टी नहीं मिली, उसने थक कर बैग से माचिस जलाई, लेकिन माचिस की रौशनी में भी उसे कोई बाल्टी या पेंट के डिब्बे जैसा कोई सामान नहीं नज़र आया, मचिर जल के बुझ गयी तो अंकुश ने फिर से माचिस की डिब्बी से तीली निकाल कर जैसी ही माचिस जलानी चाही, अँधेरे में किसी ने उसका हाथ थाम लिया,

अंकुश इस तरह अचानक हाथ थामे जाने से चिहुंका लेकिन इस पहले आगे कुछ करता
"मैं हूँ अंकुश, तुम्हारी गरिमा " गरिमा ने फुसफुसाते हुए कहा

"ओह्ह गरिमा तुमने तो डरा ही दिया था " अंकुश ने भी उसी तरह फुसफुसाते हुए कहा
गरिमा का हाथ अभी भी अंकुश के हाथ पर ही था

"सॉरी, मैं बस देखने आये थी की तुम आये या नहीं ?"
"हाँ सब हो गया ठीक से, आओ तुम्हे दिखा दू"

"नहीं तुम यही बता दो बाहर किसी ने देख लिया तो ................."
"ठीक है लेकिन मुझे एक माचिस जलनि पड़ेगी"

"तुम माचिस मुझे दो, मैं जलाती हूँ "

अंकुश ने माचिस गरिमा को थमा दी और जेब से फ़ोन निकाल कर गरिमा को समझा दिय। कुछ भी मुश्किल नहीं था, एक बार में ही गरिमा को सब समझ में आगया, अंकुश ने फ़ोन गरिमा को थमा दिया, अंकुश को अपने हाथ पर गरिमा के कोमल हाथ का स्पर्श बहुत भला लगा था, जीवन में पहलीबार किसी लड़की ने इस तरह उसका हाथ पकड़ा था।

अंकुश ने गरिमा से माचिस ले कर फ़ोन थमा दिया, अब उसके चलने का समय था लेकिन वो जाना नहीं चाहता था उसका मन था गरिमा के पास कुछ देर और रुकने का लेकिन ऐसे रुकना खतरे से खाली नहीं था, उसने माचिस बैग में डाल कर गरिमा के दोनों हाथो को अपने हाथ में थमा और फासफूसाते हुए बोला

"मैं चलता हूँ इस से पहले कोई देख ले लेकिन ये बताओ कल बात करोगी ना ?"
"हाँ कल बात करेंगे पक्का, अब जाओ, मुझे भी नीचे जाना है "

अंकुश ने वापस जाने के लिए कदम उठाया लेकिन न जाने उसके दिमाग में क्या विचार आया की वो रुका और अँधेरे में ही बिना एक पल गवाए गरिमा को अपनी बाँहों में भर लिया, गरिमा भचूंकी रह गयी थी और अंकुश तो मनो स्वर्ग में था, उसकी प्रेमिका उसका प्यार उसकी बाहों में था और अंकुश सातवे आसमान पर, कुछ पल दोनों अँधेरे में एक दूसरे की बाहों में सिमटे खड़े रहे फिर गरिमा छिटक कर अलग हो गयी तो अंकुश भी धरातल पर उतर आया फिर बिना कुछ कहे छत की बाउंडरी से नीचे उतर गया।
 
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