अंकुश पिछले दो घंटो से लगातार अपने केमिस्ट्री के असाइनमेंट को पूरा करने में लगा हुआ था, एग्जाम से पहले उसको मलेरिया हो गया था इसलिए उसका असाइनमेंट अधूरा था उसकी टीचर ने उसकी बीमारी को देखते हुए एग्जाम के बाद असाइनमेंट जमा करने की छूट दे दी थी। आज ही उसका गयारहवी का एग्जाम पुरा हुआ था और उसको कल अपना असाइनमेंट हर हाल में जमा करना था, घर में उसकी मम्मी की कुछ सहेलिया आयी हुई थी इसीलिए अपनी टेबल और कुर्सी ले कर छत पर आगया था और अब पूरा मन लगा कर अपनी असाइनमेंट फाइल कम्पलीट करने में लगा हुआ था। वैसे भी मार्च के शरुआती दिन थे इसलिए छत का मौसम बहुत सुहाना था।
अंकुश ने एक आखरी नज़र अपनी असाइनमेंट की फाइल पर डाली और फिर एक झटके से फाइल बंद कर दी मनो जान छूटै हो उस मनहूस फाइल से, उसने के एक लम्बी सुख की साँस ली, आखिर उसका असाइनमेंट पूरा हो गया, वो लगातार कुर्सी पर बैठे बैठे थक भी गया था इसलिए अपनी कुर्सी से उठा और एक ज़ोर की अंगड़ाई ली, शरीर की लॉगभग सारी हड्डिया एक साथ बोल उठी, पहले उसने अपने शरीर को पीछे की ओर मोड़ा फिर दायी ओर, फिर जैसे ही उसने अपने शरीर को बायीं ओर मोड़ा के जैसे उसका शरीर उसी दशा में जड़ होकर रह गया।
उसकी नज़रे सामने वाली छत पर जम कर रह गयी थी और साथ ही अंकुश का शरीर भी उसी अवस्था में अटका रह गया, उसकी नज़रो का केंद्र शर्मा जी की छत पर निकल आया चाँद था, हाँ वो किसी चाँद जैसी ही सुन्दर तो थी या शायद उस से भी ज़्यदा खूबसूरत, अंकुश उस चाँद को देख कर बस देखता ही रह गया, अपनी अट्ठारह साल के जीवन में उसने इतनी खूबसूरत लड़की नहीं देखी थी, उधर वो अपनी छत पर दुनिया से बेखबर तौलिया हाथ में संभाले अपने काले घने बालो को पोंछ रही थी, लगता था बस अभी नाहा कर छत पर बाल सुखाने आयी हो और जिस पल उसने गर्दन को आगे कर अपने बालो को तौलिये से आज़ाद किया और फिर झटके से अपने बालो को पीछे की ओर झटका दिया अंकुश को ऐसा लगा की उसके घने काले बालो ने कोई उस पर कोई काला जादू कर दिया हो, क्यूंकि उस पानी से भीगे उलझे बालों ने सेकंड के सव्वे हिस्से में उसका दिल लूट लिया था। अंकुश किसी दीवानो के जैसे उसी अजीब अवस्था में अटका अपलक उस सुंदरी को निहारता खोया हुआ था। शायद अंकुश के निहारने का एहसास उस सुंदरी को भी हो गया था, उसने एक निगाह अंकुश की ओर डाली और जल्दी से पीठ मोड़ कर अपनी दिशा बदल ली।
उस लड़की के दिशा बदलते भर ही अंकुश वापस अपने होश में आया और जल्दी से लड़खड़ाता हुआ कुर्सी पर ढेर हो गया, वह कुछ पल के लिए तो झेंपा और अपना धयान इधर उधर भटकने के कोशिश की लेकिन भला वो दिल ही क्या जो उद्दण्ता ना करे। उसका दिल तो बस अब उस सुंदरी में अटका गया था और निगाहो को उस सुंदरी का पता मालूम था इसलिए बिना देरी किये वापिस उस हसीना पर आ टिकी और उसकी सुंदर मुखड़े के दीदार की तलब में उसके पलटने की राह देखने लगी।
अंकुश को ज़ायदा इंतज़ार नहीं करना पड़ा, शायद उसके बालो का पानी तौलिये ने सूखा दिया था और अब वो कंघे से अपने बालो को सुलझाते हुए फिर से अंकुश की की ओर पलटी, घने काले बालो के बीच में उसका छोटा सा मासूम मुखड़ा और उस पर बड़ी बड़ी काली आँखे अंकुश अपने छत से दो माकन दूर भी बिलकुल साफ़ देख पा रहा था, वो अभी अब छत पर हौले हौले टहलते हुए अपने बाल सुलझा रही थी और कभी कभी कनखियों से अंकुश की ओर देख लेती, एक बार ऐसे ही देखते हुए उसकी नज़र अंकुश की नज़रो से टकरा गयी तो वो झेप उठी और जल्दी से हडबडते हुए सीढ़ियों की ओर दौड़ गयी।
उसके जाते है अंकुश का मन जैसे उचाट हो उठा, कुछ देर ऐसी ही बैठा इन्तिज़ार करता रहा लेकिन वो नहीं आयी, उसने भुझे हुए मन से अपना सामान समेटा और नीचे उतर आया, नीचे उसकी मम्मी चाय के लिए बुला रही थी। रात के खाने के बाद अंकुश को बिस्तर में नींद ही नहीं आरही थी, बार बार उसी का चेहरा नज़र आरहा था, वो बार बार उसका नाम याद करने के कोशिश कर रहा था लेकिन नाम भी याद नहीं आरहा था, उसकी शर्मा जी के बेटे मोनू से थोड़ी बहुत जान पहचान थी, अंकुश के मकान से दो मकान आगे शर्मा जी का मकान था ये मकान पहले जैन साहब का हुआ करता था, जैन साहब का बेटा विवेक और अंकुश एक ही स्कूल में पढ़ते थे और गहरे दोस्त थे लेकिन चित फण्ड कंपनी के चक्कर में पढ़कर जैन साहब का बड़ा नुक्सान हुआ और वो अपना मकान बेच कर दूसरे मोहल्ले में चले गए थे, उनका मकान शर्मा जी ने खरीद लिया था और अलगभग तीन चार साल पहले अपने परिवार के साथ उस मकान में रहने आगये थे,
शर्मा जी के परिवार में शर्मा जी की माँ, उनकी पत्नी और दो बच्चे यानि की मोनू और उनकी लाड़ली बेटी थी, अंकुश को याद आरहा था की उसने कई बार शर्मा जी को परिवार के साथ आते जाते देखा था, उसने भी मोनू के साथ होली दिवाली में भेंट की थी एकिन कभी उनकी बेटी की ओर धयान ही नहीं दिया और बस आज इसी बात पर खीज रहा था, उसका नाम न पता होना उसे बेचैन कर रहा था और वो बार बार बेचैनी से करवट बदल रहा था। पता नहीं रात के कौन से पहर में उसे नीड आयी और वो सो गया।
सुबह मम्मी के जगाने पर उठा, टाइम देखा तो आठ बजने वाला था स्कूल के लिए लेट हो चूका था इसलिए फटाफट नाहा धो कर तैयार हुआ और नाश्ता ठूँसता हुआ अपनी साइकिल निकली और फाइल साइकिल के करियर में फसा कर सरपट स्कूल की ओर निकल गया। स्कूल में छुटियाँ पड़ चुकी थी इसलिए आज स्कूल बिलकुल अजीब खाली खाली लग रहा था , उसने स्टाफ रूम में जा कर मैडम को फाइल पकड़ाई और मैडम से परमिशन ले कर घर की ओर चल पड़ा, उसने घडी में टाइम देखा बारह बजने वाले था उसने साइकिल की स्पीड तेज़ की और साइकिल दौड़ाता हुआ सरकारी स्कूल जा पंहुचा, उसने जल्दी से साइकिल रोड की साइड में खड़ी की और स्कूल के गेट में घुस गया, ये उनके टाउन का सबसे बड़ा सरकारी स्कूल था, सरकारी स्कूल था इसीसलिए या कोई रोका ताकि नहीं हुई और वो तेज़ी से चलता हुआ उस ओर चल दिया जहा क्लासेस बनी हुई थी, उसे ज़यादा नहीं चलना पड़ क्यंकि विवेक उसे इसी ओर आता हुआ मिल गया।
"तू यहाँ क्या कर रहा है ?" विवेक ने अंकुश को अपनी और आते हुए पूछा
"तेरे से मिलने आया था, मैंने सोचा लंच टाइम है तो तू मिल जायेगा " अंकुश ने जवाब दिया
"अरे यार ये सरकारी स्कूल है यहाँ क्या लंच और क्या छुट्टी, यहाँ तो सब हरामखोर बसे हुए है, साले टीचर क्लास में ऐसे आते है जैसे एहसान कर रहे हो " विवेक की आवाज़ में एक खीज सी थी
"हाँ ये तो है, तू बता तेरे एग्जाम कब से स्टार्ट हो रहे है "
"अगले महीने से होंगे शायद, अभी डेट शीट नहीं मिली, अच्छा छोर, तू साइकिल से आया है क्या ?"
"हाँ, बाहर खड़ी की है "
"फिर रुक दो मिनट मैं बैग लेकर आता हु फिर साथ घर चलेंगे "
"ठीक है लेकिन क्या तेरा टीचर जाने देगा ?"
"अबे अटेंडेंस लग चुकी है अब कोई पूछने भी नहीं आएगा, यहाँ किसी मादरचोद को घंटा भी फरक नहीं पड़ता "
"विवेक यार तू तो सरकारी स्कूल में आकर इनके जैसा ही हो गया वर्ण तू अपने वाले स्कूल में तो गाली नहीं देता था ?"
"अरे वो स्कूल छोड़े तो तीन साल हो गए, यहाँ आके बहुत कुछ सीख लिया, चल अब बाकी बातें रास्ते में करेंगे पहले मैं बैग उठा लाऊँ क्लासरूम से "
दो मिनट में ही विवेक बैग उठा लाया और फिर दोनों चलते हुए बाहर आगये और वह से साइकिल पर बैठ कर दोनों घर के लिए चल दिए, स्कूल और घर के बीच में पहले खेत पड़ते थे और फिर उसके आगे मार्किट और मार्किट के बाद विवेक का घर आता था, खेत पार करने के बाद दोनों मार्किट में रुक गए वहा से अंकुश ने दो समोसे और दो पेस्ट्री ली और दोनों मार्केट के पीछे बने ग्राउंड में चले गए, ये एक सरकारी ग्राउंड था जहा अक्सर बचे क्रिकेट का मैच खेलने आया करते थे, अब दोपहर हो चली थी इसलिए कुछ खास भीड़ नहीं थी, दोनों ने साइकिल एक और खड़ी की और एक पेड़ के नीचे घास पर बैठ गए, अंकुश ने खाने का सामान खोला और दोनों मिलकर खाने लगे।
अंकुश विवेक को ऐसे ही नहीं लाया था अपने साथ उसका मकसद था शर्मा जी की बेटी की जानकारी निकलना, विवेक मोहल्ले में सबको जानता था और वो हर किसी के घर में बेहिचक घुस जाता था, वो बड़े छोटे सबका दोस्त था, इसलिए अंकुश को साडी जानकारी विवेक से ही मिल सकती थी, समोसे और पेस्ट्री चट करने के बाद अंकुश अपने पॉइंट पर आगया
"यार वैसे तेरा पहले वाला मकान बढ़िया था, दोनों पास पास रहते थे "
"हाँ यार, वो बड़ा भी था, ये वाला मकान छोटा भी है और आसपास के लोग पुराने मोहल्ले जैसे नहीं है "
"हाँ, सही कहा, अब तो शर्मा जी ने घर का फ्रंट भी बढ़िया बनवा लिया है , तूने देखा ?"
"हाँ मैं तो आता जाता रहता हूँ, उन्होंने अंदर भी काम कराया है, उनका खुद का कंस्ट्रक्शन का काम है, ठेका लेते है शर्मा जी "
"हाँ मस्त है यार उनकी लाइफ, अच्छा पैसा है उनके पास, मोनू भी बढ़िया लड़का है "
"अरे घंटा बढ़िया है मोनू, एक नंबर का हरामी है, तुझे पता है साला मॉर्निंग शो वाली फिल्म देखने जाता है "
"हैं, सच में ?" यार कैसे चला जाता है, मुझे तो उस सिनेमा हाल के सामने से निकलते हुए भी शर्म आती है, नंगी नंगी फिल्मे लगती है वहा "
"अरे, हाँ, विदेशी बहुत हरामी होते है उनकी औरते किसी के साथ भी करा लेती है काण्ड"
"तुझे कैसे पता ये सब ?"
"अरे मैं एक दो बार मोनू के साथ गया हूँ "
"फिल्म देखने? तूने भी मॉर्निंग शो वाली फिल्म देखी है " अंकुश को हैरत हुई
"अरे नहीं मैं नहीं गया, मेरे पास पैसे नहीं थे वो ही गया था, मैं तो बस बाहर से ट्रेलर के पोस्टर देख कर आया, मज़ा आगया था यार "
"यार ये मोनू तो सच मैं हरामी है, और इसके घरवाले तो बहुत सीधे है "
"अरे सीधा विधा कोई नहीं है, इसके पापा भी दारुबाज है, खूब पीते है, शाम को घर में ही बोतल खोलके बैठ जाते है "
"अच्छा ऐसा क्या ? और उनकी पत्नी और बेटी कुछ नहीं बोलती "
"अरे आंटी क्या बोलेंगी वो तो बेचारी गाओं की है इसलिए घर में उनकी कुछ नहीं चलती, उनकी अम्मा की चलती है बस "
"और उनकी बेटी, वो भी हमारी ही उम्र की है ना " अंकुश ने धड़कते दिल के साथ पूछा
"कौन गरिमा ? गरिमा दसवीं के एग्जाम देगी अगले महीने "
"ओह उसका नाम गरिमा है "
"हाँ गरिमा शर्मा, क्यों तुझे नहीं पता था क्या ?"
"नहीं यार, मेरी तो बस मोनू से ही थोड़ी बहुत बातचीत होती है कभी कभार बाकि तुझे पता ही है हमारे स्कूल वाले कितना होमवर्क देते थे और फिर ऊपर से टूशन कोचिंग, टाइम ही कहा मिलता है "
"हाँ ये तो है, यहाँ सरकारी स्कूल में मज़े है, वहा की तरह नहीं "
"हाँ, सही है यार, तो ये गरिमा भी तेरे स्कूल में ही पढ़ती है क्या ?"
"अरे नहीं वो भी गर्ल्स वाले सरकारी स्कूल में पढ़ते है "
"ओह्ह मुझे लगा वो प्राइवेट स्कूल में पढ़ती होगी "
"नहीं वो अपना मंगल बाजार वाला सरकारी स्कूल है न केवल लड़कियों वाला उसी में जाती है "
"चल ठीक है हमे क्या करना, और तू बता तेरा क्या चल रहा है ?"
"कुछ नहीं यार मेरा क्या चलेगा, बस कट रहा है टाइम "
"कोई नहीं, अच्छा सुन वो पिंकी तुझे पूछ रही थी"
"कौन पिंकी? पिंकी गर्ग ? हमारे क्लास वाली ?"
"हाँ वही, तुझे याद करती रहती है वो ?"
"हट उस मोटी को मेरे से क्या लेना देना ?"
"पता नहीं, क्या पता तुझसे प्यार करने लगी हो, मिल ले उस से एक बार, थोड़ी मोटी ही तो है लेकिन है कितनी क्यूट ?"
"हाँ क्यूट तो है ?" लेकिन छोड़ यार वो इतनी अमीर है मैं क्यों उसके चक्कर में दिमाग ख़राब करू
"अब देख ले भाई उसने पूछा था तो मैंने तुझे बता दिया आगे तेरी मर्ज़ी "
"हाँ ठीक है, छोर देखते फिर कभी , अब घर चलते है मुझे कुछ काम भी है "
"हाँ ठीक है निकलते है अब थोड़ी धुप भी होने लगी है "
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