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Romance बेडु पाको बारो मासा

blinkit

I don't step aside. I step up.
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आस्था अपने माँ बाप की इकलौती बेटी थी, माँ बाप दोनों ने मिलकर आस्था को बड़े प्यार से पाल पोस कर बड़ा किया, उन्होंने अपने प्यार में कही कोई कसार नहीं होने दी थी, लेकिन आज जो प्यार अंकुश ने आस्था पर न्योछावर किया था वो अनोखा था, सबसे अलग, सबसे जुड़ा प्यार, आस्था अंकुश के प्यार में ऐसे खोयी थी जैसे जन्मो की प्यासी हो और अंकुश का प्यार उसको जन्मो की प्यास बुझा रहा था,

वो एक दूसरे को बाहों में कसे एक दूसरे के मधु के प्यालो से रसपान कर रहे थे, दोनों इस वक़्त से दुनिया से बेखबर एक दुसरो की बाहों में खोकर प्रेम और सपनो की दुनिआ में खोये हुए थे,

अंकुश ने आस्था को हाथो में संभाले हुए उसे हलके से उठाया और बिस्तर पर लिटा दिया, आस्था बिना किसी विरोध के बेड पर लेट गयी, अंकुश भी बिना देरी किये आस्था के बगल में लेट गया, अपनी बाहों को फैला कर उसने फिर एक बार आस्था को अपनी मज़बूत बाहों में समेट लिया और फिर एक बार किसी प्यासे भवरें की तरह उसके गुलाबी होंटो से जवानी का रस भोगने लगा।

बिस्तर पर लेटे अंकुश ने अब अपने हाथ आस्था के मासूम और कमसिन बदन पर फिरना शुरू कर दिया था, उसके हर स्पर्श से आस्था का नाज़ुक कमसिन बदन काँप उठता था, वो अंकुश के होंटो को चूसने और अपने होठो को रस पिलाने में इतनी खो गयी थी की उसे पता ही नहीं चला की कब अंकुश अपना हाथ उसकी पीठ से ससारते हुए उसकी कड़क उभरी हुई चूँचियों पर ले आया, उस बेचारी को अंकुश के हाथ के एहसास तो तब हुआ जब अंकुश ने कच्चे अमरुद जैसी ठोस ब्रा में कैद चूचियों को कुर्ती के ऊपर से ही रगड़ दिया, आस्था अंकुर के इस प्रहार से एक दम चौंक गयी और उसके नाज़ुक गुलाबी होंठ किस को तोड़ कर सीत्कार कर उठे।

आस्था कोई बच्ची तो थी नहीं, भले ही उसने कभी कुछ न किया हो लेकिन जानती सब थी, कई बार साइबर कैफ़े गयी थी प्रोजेक्ट्स के लिये और वहा उसने चोरी चोरी देसिबाबा पर चुदाई की नंगी फोटोज और छोटी छोटी क्लिप्स देखि थी, वो जानती थी की की जब चूत में लण्ड जाता है तो चुदाई होती है और चुदाई में बहुत मज़ा आता है, लेकिन उसने अंकुश के साथ पहली बार में ही चुदाई का सपने में भी नहीं सोचा था, अंकुश के उसकी चूचियों को छू कर अपने मन की इच्छा जाता दी थी लेकिन आस्था इतना आगे जाने लिए अभी तैयार नहीं थी,

सीत्कार करते हुए आस्था अंकुश की बाहों से अलग हुई और उठ कर बिस्तर पर बैठ गयी, अंकुश समझ गया था लेकिन अनजान बनते हुए आस्था से पूछा
"क्या हुआ जानू, मेरे पास आओ ना"
"अब हो गया, इतना ज़ायदा अभी ठीक है" आस्था ने नज़रे चुराते हुए कहा

"ओह्ह जानू कुछ भी नहीं कर रहा, बस अपने होने वाली पत्नी को प्यार ही तो कर रहा हूँ " अंकुश ने शरारत से कहा
"तो कर लिये प्यार और कितना करोगे, इतने से पेट नहीं भरा क्या " आस्था ने शर्म से दोहरी होते हुए कहा

"भला प्यार से किसका पेट भरा है आजतक, और फिर जब तुम्हारे जैसे पत्नी हो तो पुरे जीवन प्यार से पेट न भरे" अंकुश ने आस्था की तारीफों के पल बांधे
"हम्म बस करो ना अंकुश, बाद में कर लेना" आस्था ने भी थोड़ा सा नखरा दिखाया

"बस पांच मिनट और उसके बाद अगर मना करोगी तो नहीं करूँगा " अंकुश आस्था के कमज़ोर ना के पीछे की हाँ को पहचानता हुआ बोला और आस्था को अपनी बाहों में समेटने के लिए अपनी बाहें आगे बढ़ा दी

आस्था वैसे भी इस टाइम अंकुश के प्यार के मोहपाश में बंधी थी भला कैसे इंकार करती, किसी चुम्बक की भांति अंकुश की बाहों में समाती चली गयी, फिर एक बार दोनों एक दूसरे के शहद से भरे पयालो पर टूट पड़े और एक दूसरे का रस निचोड़ने लगे, अंकुश ने इस बार किस के साथ साथ हाथो का सफर भी जारी रखा था, कभी उसकी कोमल गद्देदार चूतड़ों को सहलाता और कभी उसकी कुर्ती के नीचे हाथ लेजाकर नंगी पीठ को सहलाकर आस्था की उत्तेजना बढ़ाता।

आस्था नयी नयी जवान हुई लड़की थी, अंकुश का प्यार और स्पर्श पा कर उसका रोम रोम खिल उठा था, जैसे जैसे अंकुश का हाथ उसके जिस्म पर घूम रहा था वैसे वैसे उसका शरीर अंकुश के शरीर से चिपकता जा रहा था, अब हालत ये थी की आस्था की ठोस चूचियां अंकुश के सीने में धंसी हुई थी और दोनों के होंठ एक दूसरे से जुड़े हुए थे, अंकुश का एक हाथ आस्था की नरम नाज़ुक गांड को सहला रहा था तो दूसरा हाथ कुर्ती के अंदर से उसके नंगे शरीर को छेड़ते हुए जिस्म की आग भड़का रहा था,

अंकुश ने किस तोड़ते हुए आस्था को अपने शरीर से हल्का से अलग किया और उसकी सफ़ेद चमकती हुई आँखों में देखा, उसके मस्ती के लाल डोरे साफ़ नज़र आरहे थे, आस्था अंकुश को अपनी आँखों में देखता पा कर लजा गयी, अंकुश ने भी मौका देख कर झट से अपने दोनों हाथो से उसकी गोलाइयों को थाम लिया और धीरे धीरे उनका मर्दन करने लगा, आस्था मज़े से दोहरी होती हुई सीसियाने लगी, जीवन में पहली बार किसी पुरुष के हाथ इस तरह से उसकी इन गोलाइयों को सहला रहे थे, पहली बार उसे एहसास हो रहा था की ये चूचियां देखने मात्र के लिए नहीं बल्कि आनंद पाने के लिए भी होती है।

बेड पर बैठे बैठे अंकुश ने आस्था को खींच कर अपनी गोदी में बिठा लिया और धीरे धीरे आस्था की कुर्ती को उतारने लगा, आस्था ने अंकुश की ओर देख कर विरोध जाताना चाहा लेकिन तब तक देर हो चुकी थी अंकुश ने तेज़ी दिखते हुए उसके कुर्ती के बटन खोल दिए थे और एक झटके में उसके जिस्म से कुर्ती को अलग कर दिया, आस्था ने भी अपने हाथ ऊपर उठा कर अपनी मौन स्वीकृति दे दी।

आस्था का शरीर एक दम गोरा और चिकना था, बाल तो दूर की बात एक रोया तक नहीं था, क्रीम कलर की ब्रा में कैद उसकी चूचियां हवा में तन कर निमंत्रण दे रही थी, अंकुश बिना एक पल गवाए उसके नंगे बदन पर टूट पड़ा, अंकुश ब्रा के ऊपर से ही आस्था की कठोर चूचियों को चुम रहा था और चाट रहा था, आस्था भी अंकुश से अपनी चूचियां दबवाकर और उसका रस पिला कर निहाल हो रही थी, अंकुश से अब बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था उसने आस्था की बायीं चूची को रगड़ते हुए उसे ब्रा से खींच कर बाहर निकल दिया, इससे पहले की आस्था अंकुश को टोकती या रोकती उसने बिना कोई मौका गवाए उसकी गोरी चूची के गुलाबी छोटे निप्पल को अपने होठो में ले लिये और किसी भूखे बच्चे की तरह उसको पीने लगा।

आस्था जो अभी तक किस करने और चूची दबवाने के मज़े में ही खोयी थी की इस नए मज़े को पाकर किसी और ही दुनिया में पहुंच गयी, अब उसके मुँह से केवल सिसकारियां ही निकल रही थी और बेचैन हो कर अंकुश के घुंघराले बालो में हाथ चला रही थी। अंकुश भी पूरी तन्मन्यता से आस्था की चूची को पी रहा था, लेकिन एक ही चूची को वो भी ब्रा से बाहर निकल कर पीने में बात नहीं बन रही थी इसलिए उसने आस्था के निप्पल्स को चूसते चूसते अपने हाथ पीछे ले जाकर उसकी ब्रा का हुक खोल दिया और उसकी कच्चे अमरुद जैसी चूचियों को ब्रा की कैद से आज़ाद कर दिया।

आस्था को जैसे ही एहसास हुआ की अब वो ऊपर से पूरी नंगी हो चुकी है तो उसने अपनी दायीं चूची को छुपाने की नाकाम कोशिश की, क्यूंकि अब अंकुश ने उसकी बायीं चूची से अपने मुँह को हटा कर उसकी दायीं चूची पर कब्ज़ा जमा लिये था, आस्था शर्म और मज़े से दुहरी हुई जा रही थी, लेकिन शर्म पर मज़ा भाड़ी पड़ रहा था और धीरे धीरे वो भी बेशर्म होकर अंकुश से अपनी चूचियों को दबवाने और उसका रस पिलाने लगी,

अंकुश आस्था जैसे सुंदरी को पा कर निहाल था उसने धीरे धीरे करके आस्था को बेड पर लिटा दिया था और अब उसके छोटे से नाज़ुक शरीर के ऊपर लेटा हुआ उसकी चूचियों को अपने होंटो से चूस रहा था कभी अपने दांतो से काटा रहा था, आस्था मज़े से बेहाल तरह तरह की आवाज़े निकल रही थी। अंकुश ने आस्था को मस्ती से बेहाल तो कर दिया था लेकिन अभी असली काम बाकी था, आस्था को नीचे से नंगा करने का।

अंकुश ने एक हाथ से उसकी चूची को दबाते और मुँह से दूसरी चूची को चूसते हुए अपना दूसरा हाथ आस्था की नाभि पर रख दिया और धीरे धीरे सहलाने लगा, आस्था जो मज़े में डूबी हुई थी उसे पता भी नहीं चला और कब अंकुश ने चुपके से उसकी जीन्स के बटन के साथ साथ ज़िप को भी खोल दिया, आस्था को पता तब चला जब अंकुश अपना मुँह आस्था की चूचियों से हटा कर अलग हुआ और उसके पैरो में बैठ गया, आस्था ने गर्दन उठा कर अंकुश की ओर देखा तो अंकुश ने एक फ्लाइंग किस उसकी ओर उछाल दी, अंकुश ने आस्था की नंगी कमर को अपने दोनों हाथो से संभाला और उसे बेड के सिरहाने की ओर खिसकने का इशारा किया, आस्था ने जैसे ही अपने शरीर को ऊपर की ओर सरकने के लिए बिस्तर से ऊँचा किया बस उसी पल अंकुश ने आस्था की कमर को छोड़ कर उसकी जीन्स को पकड़ा और एक झटके से खींच दिया, जीन्स के साथ साथ उसकी काळा रंग की पेंटी भी उतरती चली गयी और घुटनो पर आकर अटक गयी।

इतने देर से जो खेल उन दोनों के बीच चल रहा था उसने आस्था की कुवारी चूत को पानी पानी कर दिया था, उसकी पेंटी उतारते ही अंकुश को उसकी चूत रस से सनी चूत नज़र आगयी। क्या प्यारी चूत थी उसकी, एक दम गोरी और चिंकी चूत, इतनी चिकनी जैसे कभी चूत पर बाल आये ही ना हो, ऊपर से उभरी और फूली हुई भी, उसने झट से अपने होंठ उसकी चूत पर लगा कर चुम लिया। अंकुश ने बहुत छूटे छोड़ी थी, लेकिन ऐसे गोरी चिकनी चूत केवल ब्लू फिल्मो में देखि थी, शायद उसके असमियाँ जीन के कारन।

आस्था अंकुश की इस हरकत से घबरा गयी और उठ कर बिस्तर पर बैठ गयी,

"बस अंकुश अब और नहीं, बहुत हो गया "
"बस जानू थोड़ी देर और, क्या मज़ा नहीं रहा है तुमको " अंकुश ने प्यार भले शब्दों में कहा

"अच्छा लग रहा अंकुश लेकिन बस अब रुक जाओ, इस से आगे फिर कभी कर लेंगे। "
"आयी लव यू आस्था, मेरी जान प्लीज मत रोको मुझे "

"नहीं अंकुश इस आगे नहीं प्लीज, मैं मन नहीं कर रही लेकिन फिर और दिन कर लेना " आस्था ने मिन्नत की
"उह आस्था क्या तुम मुझपर विश्वास नहीं करती, मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ, तुम्हारे लिए जान दे सकता हूँ, लेकिन तुम मुझे तुमको प्यार करने से भी रोक रही हो।

"नहीं अंकुश, मुझे आप पर पूरा भरोसा है लेकिन..............................."
"लेकिन क्या आस्था, यही न की तुम मुझ पर पूरा भरोसा नहीं करती "

"नहि अंकुश आप पर दुनिया में सबसे ज़्यदा भरोसा है लेकिन बस डरती हूँ , कही कुछ हो न जाये तो फिर क्या करेंगे हम "
"कुछ नहीं होगा जानू, मैं अपनी पत्नी को अपनी जान को कुछ नहीं होने दूंगा, और अगर इतना ही दर है तो रुको " इतना बोल कर अंकुश जल्दी से बेड से उठा और अलमारी में से एक छोटी से डिब्बी निकल लाया

"ये क्या है आस्था ने पूछा "

अंकुश ने डिब्बी खोली, उसमे एक चंडी की अंगूठी चमचमा रही थी, उसके अंगूठी निकल कर आस्था को पहना दी,

"अब विश्वास आया की नहीं"" अंकुश ने थोड़ा रूखे स्वर में पूछा

आस्था अंकुश के रूखे स्वर को सुन कर घबरा गयी, उसका प्रेमी नाराज़ हो गया था, वो कुछ भी कर सकती थी लेकिन अपने प्रेमी को नाराज़ कैसे कर सकती थी, आस्था जो बिलकुल नंगी बिस्तर पर बैठी थी अंकुश की नाराज़गी बर्दाश्त नहीं कर पायी और उठ कर अंकुश के गले लग गयी, अंकुश के होंटो को अपने गुलाबी होंठ हवाले करते हुए बड़बड़ाई

"नाराज़ मत हो अंकुश, मुझे पूरा विश्वास है आप पर, जब मैं आपकी हूँ तो मेरा जिस्म भी आपका ही है अंकुश, जो मन आये कर लो मैं मना नहीं करुँगी "

अंकुश को हरी झंडी मिल चुकी थी वो ख़ुशी से झूमते हुए "आयी लव यू आस्था " चिल्लाया और आस्था को ले कर नरम बिस्तर पर धम्म से गिर गया, आस्था भी अपने प्रेमी को खुश देख कर खिल पड़ी

अंकुश ने फिर एक बार फिर आस्था के कमसिन जिस्म से खेलाना शरू कर दिया, इस बार आस्था ने भी खुल कर साथ दिया। अंकुश ने आस्था की चूचियों को चूस चूस कर लाल कर दिया, बहुत देर तक आस्था की चूचियों से खेलने के बाद अंकुश वापिस से आस्था की टांगो के बीच में आकर बैठ गया ,

क्या चूत थी उसकी, एक दम साफ़ सुथरी लार टपकाती चूत, एक दम मजबूती से बंद चूत के दोनों होंठ और उसके बीच से हल्का सा झांकते चूत के अंदर के लिप्स बिलकुल गुलाब की अधखिली कली की तरह, अंकुश ने झट से चूत के बाहरी होंटो को चाट लिया, आस्था चूत को चाटे जाने से सिहर उठी, उसने अपने कपकपाते पैरो को मिलाने की कोशिश की लेकिन अंकुश ने रोक लिया, वो अब पूरा धयान लगा कर उसकी चिकनी चूत को चाटने में लगा हुआ था, अंकुश चूत चाटता रहा और आस्था मज़े से बिलबिलाती रही, अब दोनों से बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था, अंकुश ने हाथ बढ़ा कर सिरहाने से तकिया उठा और आस्था के चूतड़ों के नीचे रख दिया, इसबार आस्था ने कोई विरोध नहीं किया था बल्कि खुद अपने चूतड़ उठा कर तकिया रखने की जगह दी थी।

अंकुश ने भी जल्दी से अपने कपडे उतार फेंके और नंगा हो कर अपने लण्ड को सहलाता हुआ आस्था के पैरो के बीच घुटनो बल बैठ गया, उसने आस्था की ओर देखा उसकी आंखे बंद थी, और तेज़ तेज़ सांसे ले रही, उसका मन था की आस्था उसकी ओर देखे, उसका लण्ड देखे और सहलाये लेकिन उसके लिए अभी टाइम नहीं था, उसे दर था की कही आस्था फिर उसे रोक न दे, उसने झट से आस्था की दोनों चिकनी जांघो को उठाया और अपने कंधो पर रख लिया, उसने लण्ड की खाली खींच कर नीचे की और सूपड़ा आस्था की चुतरस से भीगी चिकनी चूत पर लगा दिया, लण्ड का स्पर्श चूत पर पाकर आस्था कसमसाई लेकिन अंकुश की पकड़ मज़बूत थी, उसने दूसरे हाथ से चूत का मुँह हल्का सा खोला और लण्ड का सूपड़ा एक हलके धक्के के साथ चूत के मुँह पर टिका दिया।

आस्था के मुँह से एक आह निकल गयी, अंकुश ने उसकी दोनों जाँघे छोड़ उसकी कमर पकड़ ली और और अपनी पूरी ताकत लगा कर एक ज़ोर का झटका लगाया, अंकुश का लण्ड आस्था की कुवारी चूत की सील को चीरता हुआ आधा घुस गया, आस्था दर्द से बिलबिला कर चीख उठी

"मर गयी मम्मी, ओह्ह माँ बहुत दर्द हो रहा है "
"बस जानू हो गया, बस एक मिनट और " कह कर अंकुश ने बिना कोई मौका दिए आस्था की चूत में दूसरा झटका लगा दिया, आस्था फिर एक बार दर्द से बिलबिलाई और चीख पड़ी, अब अंकुश का पूरा लण्ड आस्था की चूत में था, अंकुश ने आस्था की टाँगे अपने कंधे से उतारी और उसके नंगे जिस्म पर लेट गया और उसके बाएं बूब्स को मुँह में लेकर चुभलाने लगा, आस्था धीरे धीरे सिसक रही थी, उसकी आँख के कोने से एक आंसू टपक कर बिस्तर पर गिर गया।

अंकुश उसके अमरुद जैसी कच्ची चूचियों को चूसता कभी दबाता और कभी उसके गुलाबी होंटो को चुस्ता, कुछ ही देर में आस्था की सिसकियाँ रुक गयी और उसके जिस्म में फिर से गर्मी आने लगी थी, अंकुश ने आस्था के ऊपर लेटे ही लेट अपनी कमर चलनी शुरू कर दी, कुवारी चूत थी तो टाइट होना लाज़मी था, उसे बड़ी मुश्किल हो रही थी कमर चलने में, लण्ड आस्था की चूत में जकड गया था, उसने ताकत लगा आकर आधा लण्ड चूत से बाहर खीचा और फिर वापस धीरे धीरे घुसा दिया, तीन चार बार ऐसे करने पर चूत थोड़ा ढीली हुई और फिर अंकुश ने स्पीड बढ़ा दी, आस्था की चूत में जो दर्द था उसमे अब चुदाई का मज़ा भी शामिल हो गया था, अब उसके मुँह से दर्द और मज़े की मिली जुली सिसकारियां निकल रही थी, अंकुश भी अब पुरे जोश से आस्था की चिकनी जांघो को संभाले टपा तप धक्के मार रहा था और आस्था चुदाई और प्रेम की मिलेजुले सागर में डूबी हुई कराह रही थी।

अंकुश लगभग एक घंटे से अपने लण्ड पर काबू किये आस्था के जिस्म से खेल रहा था उसके लिए देर तक टिकना मुश्किल हो रहा था, इसलिए उसने अपने धक्को के स्पीड बढ़ा दी और अब उसकी लण्ड राजधानी एक्सप्रेस की तरह धकाधाक आस्था की चूत में धक्के मार रहा था, उधर आस्था भी मज़े से सीसिया रही थी की तभी उसकी चूत में मानो एक तूफ़ान सा उठा और उसका शरीर अकड़ने लगा, उसने हाथ आगे बढ़ा कर अंकुश को अपनी बाहों में लेना चाहा लेकिन अंकुश भी बस अपने चरम के करीब था उसने आखरी धक्का आस्था की चूत में लगाया और लण्ड आस्था की चूत से खींच कर बेड से कूद गया, उसने टेबल पर पड़े अखबार को खींचा और भरभरा कर सारा माल अख़बार पर निकल दिया, उसकी टाँगे काँप रही थी, उसने अखबार ज़मीन पर डाला और बिस्तर आकर आस्था के बगल में ढेर हो गया।
 

blinkit

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दोनों की सांसे फूल रही थी, कुछ देर लेटने से दोनों ने खुद को शांत किया, आस्था ने हाथ बढ़ा कर अपने पैरे में पड़ी चादर को खींचा और अपने नंगे जिस्म को ढक लिया, अंकुश थोड़ी देर वैसे ही लेटा रहा फिर उठ कर अपना अंडरवियर पहना और फ्रिज से पानी की बोतल निकाल लाया, उसे थोड़ी भूख भी लग रही थी, सुबह उठने की आदत नहीं थी आज उसे जल्दी उठना पड़ा था और जल्दी जल्दी में कुछ खाने का मौका भी नहीं मिला था, उसने आस्था को आवाज़ दे कर खाने का पूछा तो उसने हाँ में सर हिला दिया, सेक्स के बाद से अभी तक उनके बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी, उसे अंकुश से आँख मिलाते हुए शर्म आरही थी।

अंकुश ने जल्दी जल्दी अपने कपडे पहने और खाना लाने निकल गया, जाते जाते उसने वियाग्रा की एक टेबलेट खा ली थी, चुदाई के पहले दिन ही वियाग्रा खाने का उसका कोई प्लान नहीं था लेकिन आस्था की चूत का नशा उसके सर पर था उसने वियाग्रा की टेबलेट खा ली थी ताकि दूसरी चुदाई में जम कर आस्था की चूत चोद सके। उसने एक रेस्टुरेंट से खाना पैक कराया और घूमता फिरता घर लौट आया, वो बाहर से ताला लगा कर गया था इसलिए वो बिना किसी शोर शराबे के अपने फ्लैट में आगया, उसने झाँक कर देखा, आस्था बेड में चादर लपेटे लेटी हुई थी उसकी आंखे बंद थी, अंकुश ने जल्दी से टेबल पर खाना लगाया और आस्था को आवाज़ दे कर उठाया, वो सो नहीं रही थी बस लेटी हुई आराम कर रही थी , अंकुश के आवाज़ देने पर आस्था उठ गयी, उसने अंकुश के जाने के बाद अपने कपड़े वापिस पहन लिए थे।

दोनों ने मिलकर खाना खाया, अंकुश कभी कभी आस्था को छेड़ता तो आस्था शरमा जाती, खाने के बाद अंकुश प्लेट उठाने लगा तो आस्था ने उसे रोक दिया और खुद प्लेट उठा कर खिचन में रख आयी और टेबल साफ़ करके अंकुश की किताबे फिर वापिस टेबल पर करीने से लगा दी
उसने वो अखबार भी जिसपर अंकुश ने अपना सारा माल गिराया था उठा कर डस्टबिन में डाल दिया। अंकुश कुर्सी पर बैठा बैठा आस्था को काम करते देख रहा था, जब आस्था अखबार डाल कर टेबल की ओर वापिस आयी तो अंकुश ने आस्था का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया, आस्था धम्म से उसकी गोद में आ गिरी।

अंकुश ने आस्था को अपनी बाँहों में लपेट लिया और उसके गुलाबी होटों को चुम लिया, दोनों फिर से एक दूसरे की बाँहों में समां गए, अंकुश ने अपने दोनों हाथ आस्था की कुर्ती में घुसा दिए और ब्रा के ऊपर से ही उसकी चूचियों को अपने हाथो में दबोच कर दबाने लगा, अंकुश के हाथ का स्पर्श अपने चूचियों पर पा कर आस्था के जिस्म में फिर से आग भड़कने लगी थी और इधर वियाग्रा ने भी अपना कमाल दिखाना शरू कर दिया था , दोनों कुछ देर ऐसे ही एक दूसरे के जिस्म से खेलते रहे फिर अंकुश आस्था को उठा कर बिस्तर पर ले गया और फिर से आस्था को नंगा कर दिया, उसने जल्दी से अपने भी कपडे उतार दिए और खुद भी नंगा हो गया, आस्था उसका खड़ा लण्ड देख कर शरमा गयी और अपनी नज़रे नीची कर ली, आस्था का भी चुदाई का मन हो चला था लेकिन अभी थोड़ी देर पहले वाले दर्द को याद करके अंकुश को रोक भी रही थी लेकिन अंकुश भला कहा मांनने वाला था, थोड़ी ही देर में अंकुश का लण्ड फिर से आस्था की चूत में लुका छिपी का खेल खेलने लगा।

अगले एक घंटे में अंकुश ने २ बार आस्था को जम कर चोदा, आस्था की चूत भी लगातार हुई चुदाई से जल रही थी लेकिन उसने अपने प्रेमी के लिए दर्द को बर्दाश्त करके खुद भी चुदाई का मज़ा लिया। चुदाई ने उसके शरीर को थका दिया था, इसलिए वो चादर ओढ़ कर सो गयी,

अंकुश भी थक गया था, आखिर कुवारी लड़की को चोदना कोई आसान काम तो था नहीं। बाथरूम से मूतने के के बाद वापिस आया तो देखा आस्था चादर लपेट कर सो गयी है, वो बिस्तर के पास पंहुचा तो उसने देखा आस्था का फ़ोन बज रहा था, शायद आस्था ने अपनी रिंगटोन साइलेंट की हुई थी क्यंकि केवल लाइट जल रही थी बेल नहीं बजी थी , उसने कॉल कटने पर देखा आस्था की माँ का फ़ोन था उनकी सात मिस्स्कॉल फ़ोन में पड़ी थी, वो फ़ोन देख ही रहा था की उसका फ़ोन फिर से बज उठा लिकेन इस बार अंकुश ने तेज़ी दिखते हुए जल्दी से फ़ोन की बैटरी निकाल कर फ़ोन बंद कर दिया।

उसे आस्था की ओर देखा वो बेखबर सो रही थी, आज पहली बार आस्था की सील टूटी थी फिर उसके बाद उसने वियाग्रा खा कर आस्था को चोदा था उसने उसकी हालत ख़राब कर दी थी इसीलिए वो चाहता था की आस्था थोड़ी देर आराम करले ताकि जब वो घर जाए तो भेद न खुले आखिर आस्था को आने वाले दिन में फिर से जो चोदना था, भला इतना कोरा और कच्चा माल कैसे हाथ से जाने देता।

वो उठकर दूसरे कमरे में चला आया और कॉम्पटर चला कर उसने धीमी आवाज़ में म्यूजिक चला लिया, तीन बजने ही वाले थे की उसके मोबाइल पर तृषा की कॉल आयी, तृषा का कॉल देख कर अंकुश का माथा ठनका जल्दी से अपना फ़ोन भी सिलिएंट कर दिया, अब उसे थोड़ी चिंता हुई, अभी वो सोंच ही रहा था की क्या करे की तभी समीर की कॉल उसके फ़ोन पर आयी, वो समझ गया की भसड़ हो गयी है, उसने फ़ोन उठाया, जो कुछ समीर ने बताय उसके हिसाब से अब क्लियर था की बात बढ़ गयी है, उसके पास कोई चारा नहीं था आखिर उसे आस्था को जगाना ही पड़ा, वो बेचारी घबरा गयी, एक तो नींद से उठी थी ऊपर से मम्मी की इतनी मिस कॉल देख कर उसको रोना आने लगा था।

वो अपना फ़ोन उठा कर जल्दी से फ़ोन मिलाने ही वाली थी की अंकुश ने उसे रोक दिया, उसने सवालिया नज़रो से अंकुश की ओर देखा

"रुक जाओ जानू, पहले सोच लो की मम्मी को क्या बोलोगी"
"मैं बोल देती हूँ की मैं आपके साथ हूँ " आस्था ने मासूमियत से कहा

"जानू तुम मम्मी को तृषा के साथ जाने का बोल कर निकली थी लेकिन उसके साथ नहीं गयी और मेरे साथ आगयी, खुद सोचो अगर तुम सच बताओगी तो मम्मी सब समझ जाएँगी " अंकुश ने प्यार से समझाया

"तो आप की बताओ मैं क्या करू" आस्था ने जल्दी जल्दी अपने कपडे पहनते हुए पूछा
"तुम आराम से कपडे पहले और मुझे सोंचने दो, जब इतनी देर से मम्मी को रिप्लाई नहीं किया है तो पांच मिनट और रुक जाओ और मुझे सोचने दो। "

आस्था ने जल्दी जल्दी अपने कपडे पहले और बाथरूम में जा कर अपना हाथ मुँह धोया और बालो में कंघी करके अपनी हालत ठीक की, अंकुश ने एक पैन किलर निकाल कर आस्था को खाने के लिए दी ताकि चलते हुए उसे दर्द न हो।
आस्था दवाई खा कर अंकुश के सामने आकर बैठ गयी

"बताओ अंकुश क्या बोलू मम्मी को, मुझे अब डर लग रहा है " उसने घबराटते हुए पूछा
"हाँ, एक काम हो सकता है, पहले ये बताओ तुम्हारी मम्मी मेरे और समीर के बारे में क्या जानती है ?"

"ज़ायदा नहीं बस इतना की आप दोनों फ्रैंड्स हमारे फ्रैंड्स हो और कॉलेज में सीनियर हो, और हाँ समीर ने जो तृषा की हेल्प की थी वो मम्मी को बताया था बस उस से ज़ायदा नहीं " आस्था ने बताया
"और जब उनको समीर की हेल्प वाली बात पता चली थी तो उनका क्या रिएक्शन था ?"

"अच्छा ही था, बोल रही थी की अच्छा लड़का है जो बिना पैसे लिए ड्राफ्ट बनवा लाया और एडमिशन में हेल्प की, एक्चुअली तृषा ने ही उनको बताया था, जब उसका उसका ड्राफ्ट नहीं बन रहा था तो उसने मेरी मम्मी को भी कॉल किया था लेकिन तब मेरी मम्मी अपने स्कूल में थी इसलिए वो हेल्प नहीं कर पायी थी तृषा की "

"गुड, ये अच्छा है, तब अब हम एक काम करेंगे की तुम अपनी मुम्मा को बताना की समीर ने तुमको आज साथ घूमने के लिए बुलाया था, फिर वो तुमको मूवी में लेकर चला गया था जहा तुमने फ़ोन बैग में डाल लिया था इसीलिए तुमको उनकी कॉल का पता नहीं चला और फिर मोबाइल की बैटरी ख़तम हो गयी और फ़ोन बंद हो गया " अंकुश ने समझाया

"ठीक है लेकिन मैं आपका भी तो नाम ले सकती हूँ, थोड़ा तो मम्मी आपको भी जानती है " आस्था को समीर का नाम लेना अच्छा नहीं लग रहा था
"अरे अब तक नीतू और तृषा सबको पता लग गया होगा की तुम झूठ बोलकर घर निकली हो बिना उनको बताये तो वो सब बुरा मानेंगी और हम दोनों से अलग हो जाएँगी, समीर तो वैसे भी अब तुम सब से मिलना नहीं चाहता, उसको मैंने ही ज़बरदस्ती तुम सब से मिलवाया था, इसलिए अगर तुम्हारी मम्मी और फ्रैंड्स उस से मिलने से मना भी कर देती है तो उसे कोई फरक नहीं पड़ेगा वार्ना तुम सोंचो अगर मुझसे मिलने के लिए मना कर दिया तो फिर मैं अपनी जानू से कैसे मिल पाउँगा "

"नहीं होगा कुछ, मेरी मम्मी ऐसा कुछ नहीं करेंगी, आप चिंता मत करो" आस्था ने समझाना चाहा
"जो कहा है वो ही करो, बाकि मैं संभाल लूंगा" अंकुश ने दबाव डाला

आस्था को अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन बेचारी ज़ायदा विरोध नहीं कर पायी, असल में उसे अपनी माँ की ओर से ज़्यदा चिंता नहीं थी, असली चिंता तृषा की थी, तृषा ने अबतक पता नहीं क्या क्या उसकी माँ के दिमाग में डाल दिया होगा। उसने फ़ोन मिलाया दूसरी ओर उसकी मम्मी ने फ़ोन उठाया

"हेलो मम्मी !" आस्था ने धीरे से कहा
"कहा हो आस्था बेटा ?" उसकी मम्मी ने बहुत शांत शब्दों में पूछा

"मम्मी मूवी देखने आयी थी समीर के साथ"
"देख ली मूवी?" उसकी मम्मी ने उसी शांत तरीके से पूछा

"हाँ मम्मी बस आरही हूँ घर "
"ठीक है जल्दी आओ, और हाँ साथ में समीर को भी लेकर आना, बोलना मैं भी उस से मिलना चाहती हूँ, जल्दी आना, अपने पापा के आने से पहले "

"ठीक है मम्मी " आस्था ने कहा और फ़ोन रख दिया
अंकुश ने स्पीकर पर पूरी बात सुन ली थी उसने जल्दी से फ़ोन तृषा का मिलाया और उसने उसे झूठी कहानी सुनाई की अंकुश और आस्था मूवी देखने गए थे और अब वो आस्था को उसके घर लेकर जाते हुए डर रहा है इसलिए अंकुश से उसने रिक्वेस्ट की है घर पहुंचाने की

उसने समीर को भी समझा दिया था की अगर उनमे से कोई पूछे तो यही जवाब दे की आस्था उसी के साथ थी , सब प्लान सेट कर अंकुश ने आस्था को बाइक पर बिठाया और आस्था के लेकर उसके घर चल पड़ा।

आस्था अपनी मम्मी से बात करके अब रिलैक्स थी, वो अपने माँ बाप की इकलौती संतान थी इसलिए उसे पता था की उसके मम्मी पापा उससे बहुत प्यार करते है, दोनों पढ़े लिखे है और उन्होंने लव मर्रिज की थी, उनके कल्चर में लव मर्रिज को बुरा नहीं समझा जाता था, फिर अंकुश तो देखने में भी स्मार्ट है उसने सोंच लिया था की वो घर जा कर मम्मी को सब सच बता देगी और अंकुश से भी मिलवा देगी, आखिर जब आज उसने अपनी सबसे कीमती चीज़ अंकुश के हवाले कर ही दी थी और अंकुश ने भी थी उसे अपनी जीवनसाथी बनाने का वादा किया था, उसने अपने हाथ में पड़ी अंकुश की दी हुई चांदी की अंगूठी को चुम लिया और मुस्कुरा दी।

अंकुश बाइक चलाते हुए अपना दिमाग भी उसी रफ़्तार से चला रहा था, जिस तरह से आस्था की मम्मी ने बात की थी उस से उसे चिंता हो रही थी, आखिर कोई माँ इतना शांत कैसे हो सकती है और वो समीर को अपने घर क्यों बुला रही थी वो भी उसके पापा के घर आने से पहले। उसे डाउट हो रहा था, ठीक था की आस्था गज़ब की सुन्दर और सेक्सी लड़की थी लेकिन वो उसे भोग तो चुका ही था फिर क्यों किसी पचड़े में पड़े,

उसने रास्ते में रुक कर अपना फ़ोन निकला और तृषा को फ़ोन लगाया
"तृषा यार कहा है तू " अंकुश ने पूछा
"मैं अपने घर में हूँ तू कहाँ तक पंहुचा ?"

"यार मैं रास्ते में हूँ, मैं पंद्रह मिनट में कैंट पहुंच जाऊंगा, तू वह आसकती है क्या ?" अंकुश ने पूछा
"मैं क्या करुँगी वह आकर " तृषा ने जानना चाहा

"अरे यार तुझे पता तो है मुझे समीर ने फसा दिया था, अब उसे चूतिये के चक्कर में मुझे आस्था को लेकर जाना पड़ रहा है, मैं ला तो रहा हु उसे लेकिन मैं उसे उसके घर नहीं लेकर जाना चाहता, उसकी मम्मी घर बुला रही है समीर को तो मैं क्यों जाऊ भला, तू एक काम कर मुझे कैंट में मिलजाना और वहा से आस्था को ले जाना, बोल ....... "

इस से पहले तृषा का जवाब आता आस्था ने पीछे से अंकुश के कान में लगा फ़ोन खींचा और कॉल काट दिया
"अंकुश आप तृषा को क्यों इन्वॉल्व कर रहे हो, मैं क्या बच्ची हूँ, अगर आप मेरे साथ नहीं चलना चाहते तो मुझे क्लियर बोल दो, मैं अकेली चली जाउंगी, वो मेरा घर है भला मुझे अपने घर जाने के लिए किसी की मदद क्यों चाहिए होगी " आस्था थोड़े गुस्से में थी, उसे पहले ही समीर को इसमें घसीटना अच्छा नहीं लग रहा था और अब अंकुश का तृषा को कॉल करना उसे बहुत बुरा लगा था।

"अरे जानू, तुम चिंता ना करू मैं तृषा को समझा दूंगा वो समझा देगी तुम्हारी मम्मी को "
"अंकुश हम दोनों के बीच में तृषा को क्यों ला रहे हो, जब हम दोनों है तो हमें किसी की कोई ज़रूरत नहीं है, मम्मी को जो समझाना होगा मैं वो समझाउंगी तृषा नहीं, आप को नहीं पता तृषा ने ही मेरी माँ को भड़काया होगा वरना वो कभी इतनी कॉल नहीं करती "

"जानू मैं किसी को नहीं ला रहा, बस मैं तो आज वाली समस्या को सोल्व करने की कोशिश कर रहा हूँ लेकिन तुम बेकार में गुस्सा हो रही हो " अंकुश ने फुसलाने की कोशिश की
"अंकुश आप मुझ से प्यार करते हो और मैं आप से, रही बात मेरे मम्मी पापा की तो आप नहीं जानते मेरी मम्मी को, वो मेरे लिए बेस्ट फ्रैंड जैसी है, उनको बस इस लिए चिंता हुई की मैंने तृषा का नाम लिया और फिर उनकी कॉल नहीं उठायी, मैं अभी उनको हमारे बारे में नहीं बताना चाहती थी लेकिन आज जो हमारे बीच हुआ है उसके बाद अब कोई डाउट नहीं है अंकुश, आप बस एक बार मम्मी को मिलके देखो आपको खुद पता चल जायेगा "

"जानू मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ लेकिन मैं नहीं मिलसकता तुम्हारी मम्मी से, पता नहीं क्यों में अभी रेडी नहीं हूँ" अंकुश ने समझाने की नाकाम कोशिश की
"अंकुश जब आपने मुझे पुपोसे कर दिया, मेरे हाथ में अंगूठी भी पहना दी और अब हम दोनों ने वो सब भी कर लिया जो लोग शादी के बाद करते है तो फिर बचा क्या है रेडी होने के लिए । मम्मी शादी की बात नहीं करेंगी वो आपको मेरा बॉयफ्रैंड एक्सेप्ट कर लेंगी, पापा से शादी से पहले भी दोनों कई साल तक अफेयर में रहें थे इसलिए वो समझती है सब, ये हमारे लिए अच्छा रहेगा, मैं जानती हूँ " आस्था पूरी कोशिश कर रही थी

अंकुश ने बहुत लड़कियों के साथ अफेयर किया था लेकिन कभी ऐसी सिचुएशन में नहीं फसा था, उसकी खोपड़ी घूम रही थी समझ नहीं आ रहा था की वो आस्था को क्या जवाब दे, लेकिन उसने तय कर रखा था की चाहे जो हो वो आस्था के परिवार वालो से नहीं मिलेगा, उसे कोनसा आस्था से शादी करनी थी उसने तो बस आस्था को चोदने के लिए अंगूठी का ड्रामा किया था।

उसने आस्था को साफ़ मना कर दिया, आस्था ने उसे मनाने की बहुत कोशिश की मगर जब उसकी किसी बात का असर अंकुश पर होता नज़र नहीं आया तो उसने अपने आखिरी हथियार का इस्तेमाल करते हुए कहा

"अंकुश अगर आप मुझसे प्यार करते हो तो आज आप मेरे साथ मम्मी के पास चलोगे क्यूंकि मैं मम्मी के सामने समीर का नाम किसी कीमत पर नहीं लुंगी, उसकी इसमें कोई इंवोल्मेंट नहीं है तो मैं क्यों उसका नाम लू।" आस्था को पूरी उम्मीद थी की अब अंकुश मना नहीं कर पायेगा

"जो बताना चाहो बताओ अब मैं तुम्हे इससे ज़ायदा नहीं समझा सकता बाकी तुम्हारी मर्ज़ी " अंकुश ने रुखाई से कहा

अंकुश के शब्दों में पता नहीं क्या था की अचानक आस्था का दिल टूट गया, वो बच्ची तो थी नहीं उसे समझते देर नहीं लगी की वो प्यार के नाम पर ठगी जा चुकी है, वो बिना कुछ बोले अंकुश से दूर चलती हुई रोड पर खड़े ऑटो के पास पहुंची और अपना एड्रेस बता कर चुपचाप बैठ गयी। ऑटो में बैठने से पहले उसने एक उम्मीद भरी नज़र अंकुश पर डाली, शायद वो उसे रोक ले, लेकिन उसने देखा अंकुश बाइक वापिस मोड़ रहा था,

ऑटो स्टार्ट होते उसकी आँखों से आंसुओं की बरसात होने लगी, उसका दिल टूट गया था, अबसे से कुछ घंटे पहले वो दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की थी जिसे इतना प्यार करने वाला लड़का मिला था और अब वो खुद को कोस रही थी, उसे दुःख था आखिर उसने कैसे अंकुश की बातों पर यक़ीन कर लिया और उसके झांसे में आगयी, अंकुश को उस से प्यार नहीं था उसे तो प्यार बस उसके जिस्म से था जो उसने खुद बेवकूफी में उसे सौंप दिया था।

आस्था का दिल टूटा था और उसे उसकी टूटने का दर्द अपने सीने के अंदर महसूस कर पा रही थी, दर्द इतना बढ़ गया था की उसे साँस लेना भारी हो गया, उसने अपना मुँह ऑटो के बाहर निकला और लम्बी लम्बी सांसे लेने लगी, सांस लेते हुए उसकी नज़र ऑटो की रॉड पकडे अपने हाथ पर पड़ी जिस पर अंकुश की दी हुई अंगूठी चमक रही थी, उसने बिना कुछ सोचे अंगूठी को खींच कर अपनी ऊँगली से निकला और पूरी ताक़त से बाहर फेक दिया। अंगूठी हवा में तैरती हुई झाड़ियों में जा कर गिर गयी।

कितनी छोटी सी उसकी प्रेम कहानी थी जो शरू होते ही ख़तम हो गयी थी। उसने रुमाल से अपने आंसू पोछें और एक ज़ोर का ठहाका लगा कर अपना सर ऑटो की सीट पर टिका दिया और आंखे बंद कर ली।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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हद से ज्यादा कमीना इंसान है अंकुश। जिस जमाने की कहानी है उस हिसाब से।

आज तो खैर सब वैसे ही हैं, खेलो खाओ और एंजॉय करो।
 

blinkit

I don't step aside. I step up.
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हद से ज्यादा कमीना इंसान है अंकुश। जिस जमाने की कहानी है उस हिसाब से।

आज तो खैर सब वैसे ही हैं, खेलो खाओ और एंजॉय करो।
sahi kaha ricky007 bhai isiliye aajke samay ko dhayan me rakh kar nahi likhi hai. aasha aapko kahani pasand aarahi hogi
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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sahi kaha ricky007 bhai isiliye aajke samay ko dhayan me rakh kar nahi likhi hai. aasha aapko kahani pasand aarahi hogi
आपकी कहानी तो वैसे ही दिल को छूने वाली होती है भाई।

बस आस्था के बारे में सोच कर बुरा लग रहा है, ऐसे में अब इसे शायद ही किसी भी आदमी पर भरोसा हो।
 
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blinkit

I don't step aside. I step up.
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आपकी कहानी तो वैसे ही दिल को छूने वाली होती है भाई।

बस आस्था के बारे में सोच कर बुरा लग रहा है, ऐसे में अब इसे शायद ही किसी भी आदमी पर भरोसा हो।
aapki tareefo ka bahut dhanyawad bhai, astha ke cherector ko aage badhane ka koi plan nahi socha hai agar uske charecter ko aage likha to is aspect par bhi likhne ka try karunga.
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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aapki tareefo ka bahut dhanyawad bhai, astha ke cherector ko aage badhane ka koi plan nahi socha hai agar uske charecter ko aage likha to is aspect par bhi likhne ka try karunga.
आस्था के कैरेक्टर को अंकुश से जोड़ कर ही दिखाना, कुछ सबक जैसा।
 

Sanjuhsr

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दोनों की सांसे फूल रही थी, कुछ देर लेटने से दोनों ने खुद को शांत किया, आस्था ने हाथ बढ़ा कर अपने पैरे में पड़ी चादर को खींचा और अपने नंगे जिस्म को ढक लिया, अंकुश थोड़ी देर वैसे ही लेटा रहा फिर उठ कर अपना अंडरवियर पहना और फ्रिज से पानी की बोतल निकाल लाया, उसे थोड़ी भूख भी लग रही थी, सुबह उठने की आदत नहीं थी आज उसे जल्दी उठना पड़ा था और जल्दी जल्दी में कुछ खाने का मौका भी नहीं मिला था, उसने आस्था को आवाज़ दे कर खाने का पूछा तो उसने हाँ में सर हिला दिया, सेक्स के बाद से अभी तक उनके बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी, उसे अंकुश से आँख मिलाते हुए शर्म आरही थी।

अंकुश ने जल्दी जल्दी अपने कपडे पहने और खाना लाने निकल गया, जाते जाते उसने वियाग्रा की एक टेबलेट खा ली थी, चुदाई के पहले दिन ही वियाग्रा खाने का उसका कोई प्लान नहीं था लेकिन आस्था की चूत का नशा उसके सर पर था उसने वियाग्रा की टेबलेट खा ली थी ताकि दूसरी चुदाई में जम कर आस्था की चूत चोद सके। उसने एक रेस्टुरेंट से खाना पैक कराया और घूमता फिरता घर लौट आया, वो बाहर से ताला लगा कर गया था इसलिए वो बिना किसी शोर शराबे के अपने फ्लैट में आगया, उसने झाँक कर देखा, आस्था बेड में चादर लपेटे लेटी हुई थी उसकी आंखे बंद थी, अंकुश ने जल्दी से टेबल पर खाना लगाया और आस्था को आवाज़ दे कर उठाया, वो सो नहीं रही थी बस लेटी हुई आराम कर रही थी , अंकुश के आवाज़ देने पर आस्था उठ गयी, उसने अंकुश के जाने के बाद अपने कपड़े वापिस पहन लिए थे।

दोनों ने मिलकर खाना खाया, अंकुश कभी कभी आस्था को छेड़ता तो आस्था शरमा जाती, खाने के बाद अंकुश प्लेट उठाने लगा तो आस्था ने उसे रोक दिया और खुद प्लेट उठा कर खिचन में रख आयी और टेबल साफ़ करके अंकुश की किताबे फिर वापिस टेबल पर करीने से लगा दी
उसने वो अखबार भी जिसपर अंकुश ने अपना सारा माल गिराया था उठा कर डस्टबिन में डाल दिया। अंकुश कुर्सी पर बैठा बैठा आस्था को काम करते देख रहा था, जब आस्था अखबार डाल कर टेबल की ओर वापिस आयी तो अंकुश ने आस्था का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया, आस्था धम्म से उसकी गोद में आ गिरी।

अंकुश ने आस्था को अपनी बाँहों में लपेट लिया और उसके गुलाबी होटों को चुम लिया, दोनों फिर से एक दूसरे की बाँहों में समां गए, अंकुश ने अपने दोनों हाथ आस्था की कुर्ती में घुसा दिए और ब्रा के ऊपर से ही उसकी चूचियों को अपने हाथो में दबोच कर दबाने लगा, अंकुश के हाथ का स्पर्श अपने चूचियों पर पा कर आस्था के जिस्म में फिर से आग भड़कने लगी थी और इधर वियाग्रा ने भी अपना कमाल दिखाना शरू कर दिया था , दोनों कुछ देर ऐसे ही एक दूसरे के जिस्म से खेलते रहे फिर अंकुश आस्था को उठा कर बिस्तर पर ले गया और फिर से आस्था को नंगा कर दिया, उसने जल्दी से अपने भी कपडे उतार दिए और खुद भी नंगा हो गया, आस्था उसका खड़ा लण्ड देख कर शरमा गयी और अपनी नज़रे नीची कर ली, आस्था का भी चुदाई का मन हो चला था लेकिन अभी थोड़ी देर पहले वाले दर्द को याद करके अंकुश को रोक भी रही थी लेकिन अंकुश भला कहा मांनने वाला था, थोड़ी ही देर में अंकुश का लण्ड फिर से आस्था की चूत में लुका छिपी का खेल खेलने लगा।

अगले एक घंटे में अंकुश ने २ बार आस्था को जम कर चोदा, आस्था की चूत भी लगातार हुई चुदाई से जल रही थी लेकिन उसने अपने प्रेमी के लिए दर्द को बर्दाश्त करके खुद भी चुदाई का मज़ा लिया। चुदाई ने उसके शरीर को थका दिया था, इसलिए वो चादर ओढ़ कर सो गयी,

अंकुश भी थक गया था, आखिर कुवारी लड़की को चोदना कोई आसान काम तो था नहीं। बाथरूम से मूतने के के बाद वापिस आया तो देखा आस्था चादर लपेट कर सो गयी है, वो बिस्तर के पास पंहुचा तो उसने देखा आस्था का फ़ोन बज रहा था, शायद आस्था ने अपनी रिंगटोन साइलेंट की हुई थी क्यंकि केवल लाइट जल रही थी बेल नहीं बजी थी , उसने कॉल कटने पर देखा आस्था की माँ का फ़ोन था उनकी सात मिस्स्कॉल फ़ोन में पड़ी थी, वो फ़ोन देख ही रहा था की उसका फ़ोन फिर से बज उठा लिकेन इस बार अंकुश ने तेज़ी दिखते हुए जल्दी से फ़ोन की बैटरी निकाल कर फ़ोन बंद कर दिया।

उसे आस्था की ओर देखा वो बेखबर सो रही थी, आज पहली बार आस्था की सील टूटी थी फिर उसके बाद उसने वियाग्रा खा कर आस्था को चोदा था उसने उसकी हालत ख़राब कर दी थी इसीलिए वो चाहता था की आस्था थोड़ी देर आराम करले ताकि जब वो घर जाए तो भेद न खुले आखिर आस्था को आने वाले दिन में फिर से जो चोदना था, भला इतना कोरा और कच्चा माल कैसे हाथ से जाने देता।

वो उठकर दूसरे कमरे में चला आया और कॉम्पटर चला कर उसने धीमी आवाज़ में म्यूजिक चला लिया, तीन बजने ही वाले थे की उसके मोबाइल पर तृषा की कॉल आयी, तृषा का कॉल देख कर अंकुश का माथा ठनका जल्दी से अपना फ़ोन भी सिलिएंट कर दिया, अब उसे थोड़ी चिंता हुई, अभी वो सोंच ही रहा था की क्या करे की तभी समीर की कॉल उसके फ़ोन पर आयी, वो समझ गया की भसड़ हो गयी है, उसने फ़ोन उठाया, जो कुछ समीर ने बताय उसके हिसाब से अब क्लियर था की बात बढ़ गयी है, उसके पास कोई चारा नहीं था आखिर उसे आस्था को जगाना ही पड़ा, वो बेचारी घबरा गयी, एक तो नींद से उठी थी ऊपर से मम्मी की इतनी मिस कॉल देख कर उसको रोना आने लगा था।

वो अपना फ़ोन उठा कर जल्दी से फ़ोन मिलाने ही वाली थी की अंकुश ने उसे रोक दिया, उसने सवालिया नज़रो से अंकुश की ओर देखा

"रुक जाओ जानू, पहले सोच लो की मम्मी को क्या बोलोगी"
"मैं बोल देती हूँ की मैं आपके साथ हूँ " आस्था ने मासूमियत से कहा

"जानू तुम मम्मी को तृषा के साथ जाने का बोल कर निकली थी लेकिन उसके साथ नहीं गयी और मेरे साथ आगयी, खुद सोचो अगर तुम सच बताओगी तो मम्मी सब समझ जाएँगी " अंकुश ने प्यार से समझाया

"तो आप की बताओ मैं क्या करू" आस्था ने जल्दी जल्दी अपने कपडे पहनते हुए पूछा
"तुम आराम से कपडे पहले और मुझे सोंचने दो, जब इतनी देर से मम्मी को रिप्लाई नहीं किया है तो पांच मिनट और रुक जाओ और मुझे सोचने दो। "

आस्था ने जल्दी जल्दी अपने कपडे पहले और बाथरूम में जा कर अपना हाथ मुँह धोया और बालो में कंघी करके अपनी हालत ठीक की, अंकुश ने एक पैन किलर निकाल कर आस्था को खाने के लिए दी ताकि चलते हुए उसे दर्द न हो।
आस्था दवाई खा कर अंकुश के सामने आकर बैठ गयी

"बताओ अंकुश क्या बोलू मम्मी को, मुझे अब डर लग रहा है " उसने घबराटते हुए पूछा
"हाँ, एक काम हो सकता है, पहले ये बताओ तुम्हारी मम्मी मेरे और समीर के बारे में क्या जानती है ?"

"ज़ायदा नहीं बस इतना की आप दोनों फ्रैंड्स हमारे फ्रैंड्स हो और कॉलेज में सीनियर हो, और हाँ समीर ने जो तृषा की हेल्प की थी वो मम्मी को बताया था बस उस से ज़ायदा नहीं " आस्था ने बताया
"और जब उनको समीर की हेल्प वाली बात पता चली थी तो उनका क्या रिएक्शन था ?"

"अच्छा ही था, बोल रही थी की अच्छा लड़का है जो बिना पैसे लिए ड्राफ्ट बनवा लाया और एडमिशन में हेल्प की, एक्चुअली तृषा ने ही उनको बताया था, जब उसका उसका ड्राफ्ट नहीं बन रहा था तो उसने मेरी मम्मी को भी कॉल किया था लेकिन तब मेरी मम्मी अपने स्कूल में थी इसलिए वो हेल्प नहीं कर पायी थी तृषा की "

"गुड, ये अच्छा है, तब अब हम एक काम करेंगे की तुम अपनी मुम्मा को बताना की समीर ने तुमको आज साथ घूमने के लिए बुलाया था, फिर वो तुमको मूवी में लेकर चला गया था जहा तुमने फ़ोन बैग में डाल लिया था इसीलिए तुमको उनकी कॉल का पता नहीं चला और फिर मोबाइल की बैटरी ख़तम हो गयी और फ़ोन बंद हो गया " अंकुश ने समझाया

"ठीक है लेकिन मैं आपका भी तो नाम ले सकती हूँ, थोड़ा तो मम्मी आपको भी जानती है " आस्था को समीर का नाम लेना अच्छा नहीं लग रहा था
"अरे अब तक नीतू और तृषा सबको पता लग गया होगा की तुम झूठ बोलकर घर निकली हो बिना उनको बताये तो वो सब बुरा मानेंगी और हम दोनों से अलग हो जाएँगी, समीर तो वैसे भी अब तुम सब से मिलना नहीं चाहता, उसको मैंने ही ज़बरदस्ती तुम सब से मिलवाया था, इसलिए अगर तुम्हारी मम्मी और फ्रैंड्स उस से मिलने से मना भी कर देती है तो उसे कोई फरक नहीं पड़ेगा वार्ना तुम सोंचो अगर मुझसे मिलने के लिए मना कर दिया तो फिर मैं अपनी जानू से कैसे मिल पाउँगा "

"नहीं होगा कुछ, मेरी मम्मी ऐसा कुछ नहीं करेंगी, आप चिंता मत करो" आस्था ने समझाना चाहा
"जो कहा है वो ही करो, बाकि मैं संभाल लूंगा" अंकुश ने दबाव डाला

आस्था को अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन बेचारी ज़ायदा विरोध नहीं कर पायी, असल में उसे अपनी माँ की ओर से ज़्यदा चिंता नहीं थी, असली चिंता तृषा की थी, तृषा ने अबतक पता नहीं क्या क्या उसकी माँ के दिमाग में डाल दिया होगा। उसने फ़ोन मिलाया दूसरी ओर उसकी मम्मी ने फ़ोन उठाया

"हेलो मम्मी !" आस्था ने धीरे से कहा
"कहा हो आस्था बेटा ?" उसकी मम्मी ने बहुत शांत शब्दों में पूछा

"मम्मी मूवी देखने आयी थी समीर के साथ"
"देख ली मूवी?" उसकी मम्मी ने उसी शांत तरीके से पूछा

"हाँ मम्मी बस आरही हूँ घर "
"ठीक है जल्दी आओ, और हाँ साथ में समीर को भी लेकर आना, बोलना मैं भी उस से मिलना चाहती हूँ, जल्दी आना, अपने पापा के आने से पहले "

"ठीक है मम्मी " आस्था ने कहा और फ़ोन रख दिया
अंकुश ने स्पीकर पर पूरी बात सुन ली थी उसने जल्दी से फ़ोन तृषा का मिलाया और उसने उसे झूठी कहानी सुनाई की अंकुश और आस्था मूवी देखने गए थे और अब वो आस्था को उसके घर लेकर जाते हुए डर रहा है इसलिए अंकुश से उसने रिक्वेस्ट की है घर पहुंचाने की

उसने समीर को भी समझा दिया था की अगर उनमे से कोई पूछे तो यही जवाब दे की आस्था उसी के साथ थी , सब प्लान सेट कर अंकुश ने आस्था को बाइक पर बिठाया और आस्था के लेकर उसके घर चल पड़ा।

आस्था अपनी मम्मी से बात करके अब रिलैक्स थी, वो अपने माँ बाप की इकलौती संतान थी इसलिए उसे पता था की उसके मम्मी पापा उससे बहुत प्यार करते है, दोनों पढ़े लिखे है और उन्होंने लव मर्रिज की थी, उनके कल्चर में लव मर्रिज को बुरा नहीं समझा जाता था, फिर अंकुश तो देखने में भी स्मार्ट है उसने सोंच लिया था की वो घर जा कर मम्मी को सब सच बता देगी और अंकुश से भी मिलवा देगी, आखिर जब आज उसने अपनी सबसे कीमती चीज़ अंकुश के हवाले कर ही दी थी और अंकुश ने भी थी उसे अपनी जीवनसाथी बनाने का वादा किया था, उसने अपने हाथ में पड़ी अंकुश की दी हुई चांदी की अंगूठी को चुम लिया और मुस्कुरा दी।

अंकुश बाइक चलाते हुए अपना दिमाग भी उसी रफ़्तार से चला रहा था, जिस तरह से आस्था की मम्मी ने बात की थी उस से उसे चिंता हो रही थी, आखिर कोई माँ इतना शांत कैसे हो सकती है और वो समीर को अपने घर क्यों बुला रही थी वो भी उसके पापा के घर आने से पहले। उसे डाउट हो रहा था, ठीक था की आस्था गज़ब की सुन्दर और सेक्सी लड़की थी लेकिन वो उसे भोग तो चुका ही था फिर क्यों किसी पचड़े में पड़े,

उसने रास्ते में रुक कर अपना फ़ोन निकला और तृषा को फ़ोन लगाया
"तृषा यार कहा है तू " अंकुश ने पूछा
"मैं अपने घर में हूँ तू कहाँ तक पंहुचा ?"

"यार मैं रास्ते में हूँ, मैं पंद्रह मिनट में कैंट पहुंच जाऊंगा, तू वह आसकती है क्या ?" अंकुश ने पूछा
"मैं क्या करुँगी वह आकर " तृषा ने जानना चाहा

"अरे यार तुझे पता तो है मुझे समीर ने फसा दिया था, अब उसे चूतिये के चक्कर में मुझे आस्था को लेकर जाना पड़ रहा है, मैं ला तो रहा हु उसे लेकिन मैं उसे उसके घर नहीं लेकर जाना चाहता, उसकी मम्मी घर बुला रही है समीर को तो मैं क्यों जाऊ भला, तू एक काम कर मुझे कैंट में मिलजाना और वहा से आस्था को ले जाना, बोल ....... "

इस से पहले तृषा का जवाब आता आस्था ने पीछे से अंकुश के कान में लगा फ़ोन खींचा और कॉल काट दिया
"अंकुश आप तृषा को क्यों इन्वॉल्व कर रहे हो, मैं क्या बच्ची हूँ, अगर आप मेरे साथ नहीं चलना चाहते तो मुझे क्लियर बोल दो, मैं अकेली चली जाउंगी, वो मेरा घर है भला मुझे अपने घर जाने के लिए किसी की मदद क्यों चाहिए होगी " आस्था थोड़े गुस्से में थी, उसे पहले ही समीर को इसमें घसीटना अच्छा नहीं लग रहा था और अब अंकुश का तृषा को कॉल करना उसे बहुत बुरा लगा था।

"अरे जानू, तुम चिंता ना करू मैं तृषा को समझा दूंगा वो समझा देगी तुम्हारी मम्मी को "
"अंकुश हम दोनों के बीच में तृषा को क्यों ला रहे हो, जब हम दोनों है तो हमें किसी की कोई ज़रूरत नहीं है, मम्मी को जो समझाना होगा मैं वो समझाउंगी तृषा नहीं, आप को नहीं पता तृषा ने ही मेरी माँ को भड़काया होगा वरना वो कभी इतनी कॉल नहीं करती "

"जानू मैं किसी को नहीं ला रहा, बस मैं तो आज वाली समस्या को सोल्व करने की कोशिश कर रहा हूँ लेकिन तुम बेकार में गुस्सा हो रही हो " अंकुश ने फुसलाने की कोशिश की
"अंकुश आप मुझ से प्यार करते हो और मैं आप से, रही बात मेरे मम्मी पापा की तो आप नहीं जानते मेरी मम्मी को, वो मेरे लिए बेस्ट फ्रैंड जैसी है, उनको बस इस लिए चिंता हुई की मैंने तृषा का नाम लिया और फिर उनकी कॉल नहीं उठायी, मैं अभी उनको हमारे बारे में नहीं बताना चाहती थी लेकिन आज जो हमारे बीच हुआ है उसके बाद अब कोई डाउट नहीं है अंकुश, आप बस एक बार मम्मी को मिलके देखो आपको खुद पता चल जायेगा "

"जानू मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ लेकिन मैं नहीं मिलसकता तुम्हारी मम्मी से, पता नहीं क्यों में अभी रेडी नहीं हूँ" अंकुश ने समझाने की नाकाम कोशिश की
"अंकुश जब आपने मुझे पुपोसे कर दिया, मेरे हाथ में अंगूठी भी पहना दी और अब हम दोनों ने वो सब भी कर लिया जो लोग शादी के बाद करते है तो फिर बचा क्या है रेडी होने के लिए । मम्मी शादी की बात नहीं करेंगी वो आपको मेरा बॉयफ्रैंड एक्सेप्ट कर लेंगी, पापा से शादी से पहले भी दोनों कई साल तक अफेयर में रहें थे इसलिए वो समझती है सब, ये हमारे लिए अच्छा रहेगा, मैं जानती हूँ " आस्था पूरी कोशिश कर रही थी

अंकुश ने बहुत लड़कियों के साथ अफेयर किया था लेकिन कभी ऐसी सिचुएशन में नहीं फसा था, उसकी खोपड़ी घूम रही थी समझ नहीं आ रहा था की वो आस्था को क्या जवाब दे, लेकिन उसने तय कर रखा था की चाहे जो हो वो आस्था के परिवार वालो से नहीं मिलेगा, उसे कोनसा आस्था से शादी करनी थी उसने तो बस आस्था को चोदने के लिए अंगूठी का ड्रामा किया था।

उसने आस्था को साफ़ मना कर दिया, आस्था ने उसे मनाने की बहुत कोशिश की मगर जब उसकी किसी बात का असर अंकुश पर होता नज़र नहीं आया तो उसने अपने आखिरी हथियार का इस्तेमाल करते हुए कहा

"अंकुश अगर आप मुझसे प्यार करते हो तो आज आप मेरे साथ मम्मी के पास चलोगे क्यूंकि मैं मम्मी के सामने समीर का नाम किसी कीमत पर नहीं लुंगी, उसकी इसमें कोई इंवोल्मेंट नहीं है तो मैं क्यों उसका नाम लू।" आस्था को पूरी उम्मीद थी की अब अंकुश मना नहीं कर पायेगा

"जो बताना चाहो बताओ अब मैं तुम्हे इससे ज़ायदा नहीं समझा सकता बाकी तुम्हारी मर्ज़ी " अंकुश ने रुखाई से कहा

अंकुश के शब्दों में पता नहीं क्या था की अचानक आस्था का दिल टूट गया, वो बच्ची तो थी नहीं उसे समझते देर नहीं लगी की वो प्यार के नाम पर ठगी जा चुकी है, वो बिना कुछ बोले अंकुश से दूर चलती हुई रोड पर खड़े ऑटो के पास पहुंची और अपना एड्रेस बता कर चुपचाप बैठ गयी। ऑटो में बैठने से पहले उसने एक उम्मीद भरी नज़र अंकुश पर डाली, शायद वो उसे रोक ले, लेकिन उसने देखा अंकुश बाइक वापिस मोड़ रहा था,

ऑटो स्टार्ट होते उसकी आँखों से आंसुओं की बरसात होने लगी, उसका दिल टूट गया था, अबसे से कुछ घंटे पहले वो दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की थी जिसे इतना प्यार करने वाला लड़का मिला था और अब वो खुद को कोस रही थी, उसे दुःख था आखिर उसने कैसे अंकुश की बातों पर यक़ीन कर लिया और उसके झांसे में आगयी, अंकुश को उस से प्यार नहीं था उसे तो प्यार बस उसके जिस्म से था जो उसने खुद बेवकूफी में उसे सौंप दिया था।

आस्था का दिल टूटा था और उसे उसकी टूटने का दर्द अपने सीने के अंदर महसूस कर पा रही थी, दर्द इतना बढ़ गया था की उसे साँस लेना भारी हो गया, उसने अपना मुँह ऑटो के बाहर निकला और लम्बी लम्बी सांसे लेने लगी, सांस लेते हुए उसकी नज़र ऑटो की रॉड पकडे अपने हाथ पर पड़ी जिस पर अंकुश की दी हुई अंगूठी चमक रही थी, उसने बिना कुछ सोचे अंगूठी को खींच कर अपनी ऊँगली से निकला और पूरी ताक़त से बाहर फेक दिया। अंगूठी हवा में तैरती हुई झाड़ियों में जा कर गिर गयी।

कितनी छोटी सी उसकी प्रेम कहानी थी जो शरू होते ही ख़तम हो गयी थी। उसने रुमाल से अपने आंसू पोछें और एक ज़ोर का ठहाका लगा कर अपना सर ऑटो की सीट पर टिका दिया और आंखे बंद कर ली।
Awesome update
Ashtha ke sath bahut bura hua hai, ankush ne bahut gahari chout.di uske man ko
 

SKYESH

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sahi kaha ricky007 bhai isiliye aajke samay ko dhayan me rakh kar nahi likhi hai. aasha aapko kahani pasand aarahi hogi
mindblowing dear ............ :toohappy:
 

blinkit

I don't step aside. I step up.
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आस्था जब घर पहुंची तो तृषा उसे दरवाज़े के बाहर ही मिल गयी, तृषा ने आस्था को रोकने की कोशिश की लेकिन आस्था ने उसे अनसुना करते हुए अपने घर चली गयी, दरवाज़ा उसकी माँ ने खोला, सामने अपनी बेटी को सही सलामत देख कर उनके मन की चिंता दूर हुई, आस्था अपनी माँ से नज़रे चुराती हुई अपने रूम में गयी और और अपना बैग रख कर बाथरूम में जा घुसी, अपनी माँ को देख कर उसे फिर से रोना आरहा था, काश की अंकुश ने उसका साथ दिया होता तो अभी दोनों मिलकर माँ का सामना आसानी से कर पाते।

आस्था बाथरूम में कमोड पर बैठी आंसू बहाती रही, उसके आंसू रुक ही नहीं रहे थे, जब कुछ समझ नहीं आया तो शावर चला कर उसके नीचे खड़ी हो गयी, शायद अपने जिस्म से अंकुश के हर एक स्पर्श को मैल की तरह उतरना चाहती थी, लेकिन चोट के निशान तो दिल पर थे भला पानी से कहा साफ़ होते फिर भी ठन्डे पानी ने उसे आंसू रोकने में मदद की और जब मन थोड़ा शांत हुआ तो वो कपडे बदल कर बाथरूम से बाहर निकली, उसकी माँ किचन में रात का खाना बनाने की तैयारी कर रही थी, वो धीमे कदमो से चलती हुई माँ के पास जा खड़ी हुई, अभी तक उसकी मम्मी ने उस से कुछ भी नहीं पूछा था,

आस्था की मम्मी ने चाय पैन में से दो कप में डालकर एक कप उसे पकड़ाया
"पी ले, अच्छा लगेगा "
"मम्मी वो........" आस्था हकलाई

"कुछ कहने की ज़रूरत नहीं, मैं तेरे चेहरे पर देख सकती हूँ "
"आयी ऍम सॉरी मम्मी फिर कभी ऐसा नहीं ......। "

"बेटा, हमारे लिए तुम ही सब कुछ हो और हमने कभी तुझे किसी चीज़ के लिए मना नहीं किया, बस ऐसा कुछ मत करना की तुम्हे हमसे आँखे चुराना पड़े या झूट बोलना पड़े यही सोंच कर मैंने तुम दोनों को बुलाया था की अगर तुम दोनों सच में एक दूसरे को ........।

"नहीं मम्मी ऐसा कुछ नहीं है, आगे से मैं कभी उसकी शकल भी नहीं देखूँगी,आयी प्रॉमिस" आस्था ने अपनी माँ की बात काटी
"तो उसने तुम्हारे साथ आने के लिए मना कर दिया ?"

"मैं ही नहीं लायी उसे आपके पास मम्मी, वो इस लायक है ही नहीं की आपसे मिलवा सकूँ। " आस्था के शब्दों में घृणा थी

आस्था की मम्मी ने उसकी आवाज़ में गुस्सा और और नफरत साफ़ भांप ली थी, उन्होंने भी बात ख़त्म करना ही ठीक समझा अपनी बेटी को तकलीफ पहुंचने का उनका कोई इरादा नही था

"ठीक है फिर जल्दी से अपनी चाय ख़तम करो, तुम्हारे पापा आते ही होंगे, और हाँ मैं इस बात की उनसे कोई चर्चा नहीं करुँगी"
"थैंक यू मम्मी" कहकर आस्था अपनी माँ के गले लग गयी , उसे फिर से रोना आरहा था इसलिए जल्दी से उनसे अलग हो कर अपनी कमरे में चली गयी।

आज का दिन अजीबा गुज़रा था आस्था के लिए, लेकिन उसने मन में ठान लिया था की जो गलती आज हुई है वो फिर कभी दुबारा नहीं करेगी और ना कोई ऐसा कदम उठाएगी जिससे उसकी मम्मी को दुःख पहुंचे, उसने अपने जेब से फ़ोन निकला और अंकुश के सारे मैसेज और कॉल्स डिलीट कर दी अंकुश का कांटेक्ट नंबर भी डिलीट कर दिया और उसी के साथ साथ तृषा का भी, वो पहले भी उसकी बात बढ़ाने की आदत से चिढ़ती थी और आज उसकी मम्मी को सब बताने के पीछे उसी का हाथ था इस बात का उसे पक्का यक़ीन था।

अपने कमरे आकर आस्था बिस्तर पर लेट गयी, दिन भर की थकान और रोने ने उसे तोड़ दिया था वो बिस्तर पर लेटते ही सो गयी इस उम्मीद पर की आने वाला कल आज से बेहतर होगा।

उधर अंकुश को भी थोड़ी टेंशन थी उसे डर था की कहीं आस्था की मम्मी भांप न जाए की आस्था चुदवा कर गयी है, अगर ऐसा होता तो उसकी लंका लग सकती थी, कही रेप का केस न लगा दे, आज वियाग्रा खा कर उसने कुछ ज़ायदा ही चुदाई कर दी थी आस्था की।
उसने वापस आकर अपने फ्लैट जाना ठीक नहीं समझा और अपने दोस्त पंकज के घर चला गया, पंकज भी अकेला रहता था इसलिए उसे वह रुकने में कोई दिक्कत नहीं थी।

अगले दिन उसने समीर को फ़ोन किया, समीर भी भरा बैठा था उसने भी अंकुश को उलटी सीधी सुना दी लेकिन उसने कोई दिक्कत की बात नहीं बताई इसका मतलब सिचुएशन कण्ट्रोल में थी, अंकुश की टेंशन दूर हुई, टेंशन दूर होते ही उसने जल्दी से आस्था को कॉल मिलाया लेकिन उसका फ़ोन स्विच ऑफ था, अंकुश ने कई बार आस्था को कॉल किया लेकिन उसका फ़ोन लगातार ऑफ आरहा था।


जब दोपहर का टाइम हुआ तो उसने तृषा को फ़ोन किया वो एक बार आस्था से बात करके सिचुएशन को संभालना चाहता था, उसे पता था की ३ बजे के बाद आस्था की मम्मी स्कूल से आसकती थी इसलिए उनके आने से पहले वो अपनी पोजीशन क्लियर करनी थी।

तृषा ने फट से कॉल उठायी, लेकिन उसकी भी बात नहीं हुई थी आस्था से बल्कि उसकी मम्मी ने भी उसको कुछ नहीं बताया था, तृषा खुद जानकारी के आभाव में थी, अंकुश समझ गया था की आस्था नाराज़ है और अब शायद ही उसके हाथ आएगी, उसके इतनी जल्दी ास्ते के छिटक जाने का दुःख था लेकिन उसने मौका देख कर अब तृषा पर डोरे डालना शरू कर दिया।

तृषा, आस्था और समीर की प्रेम कहानी से अंदर ही अंदर दुखी थी जब अंकुश का साथ मिला तो दोनों की बात बढ़ने लगी, अंकुश ने भी अब अपना दिमाग अपने दूसरे शिकार पर टिका दिया।


इस घटना के बाद समीर ने अंकुश से क्लियर कर दिया की अब उसका इन लड़कियों से कोई लेना देना नहीं है, तृषा से बिलकुल नहीं, उसका जो मन हो तो उनसे मिला या न मिले लेकिन वो उसे दूर ही रखे।

अंकुश को भी अब समीर की कोई ज़रूरत नहीं थी इसलिए उसने हामी भर ली और ये बात यही ख़तम हो गयी, न समीर ने पूछा और न उसने समीर को बताया की उसके और आस्था के बीच में क्या क्या हुआ, समीर वैसे भी उस से कभी डिटेल में उसकी और उसकी प्रेमिकाओ के बारे में नहीं पूछता था।

समीर का मन कुछ दिन तृषा की बात सुन कर खट्टा रहा लेकिन फिर वो सब भुला कर अपने काम और सुनहरी के प्यार में बिजी हो गया। वैसे भी उसकी बहन की शादी की डेट फिक्स होने वाली थी और उसे अपनी सिस्टर के शादी के लिए दहेज़ के पैसो का जुगाड़ करना था।

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इस घटना सात आठ महीने बाद एक शाम समीर फरीदाबाद से मीटिंग करके फ्री हुआ तो उसके मोबाइल पर कई साड़ी मिस्ड कॉल थी, सबसे पहले उसने सुनहरी को कॉल की, उसने उसे पहले ही बता दिया था की आज शाम उसकी मीटिंग है इसलिए वो नाराज़ नहीं थी लेकिन अब वो बिजी हो गयी थी घर के किसी काम में इसलिए उसने रात में बात करने का बोलकर कॉल कट कर दिया। दूसरी कॉल उसके पुराने क्लाइंट की थी उसे जल्दी जल्दी उसे भी काम का स्टेटस समझा कर घर के लिए निकल गया, दो मिस्ड कॉल अनजान नंबर से थी उसने बाइक चलते हुए उनमे से एक अनजान नंबर पर कॉल की तो उधर से कॉल रिजेक्ट हो गयी, समीर ने भी फ़ोन जेब में डाला और बाइक तेज़ी से घर की और दौड़ा दी, वो ट्रैफिक बढ़ने से पहले मयूर विहार पहुंच जाना चाहता था।
 
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