Riky007
उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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ए ए ए....समीर घर वापस आगया था, रस्ते में सुनहरी का कॉल आया लेकिन समीर ने जवाब नहीं दिया, वो घर पहुंच कर ही उस से बात करना चाहता था, आज इन लड़कियों से मिलकर उसे अलग लगा था, समीर इतना बेकूफ़ भी नहीं था की उसे एहसास नहीं होता की उन लड़कियों के मन में कही न कही प्यार का कीड़ा कुलबुला रहा है लेकिन वो इस रास्ते पर नहीं चल सकता था, उसकी तो मज़िल कुछ और थी, भले ही चाहे आस्था कितनी ही सुन्दर क्यों न हो वो सुनहरी की जगह नहीं ले सकती थी, सुनहरी तो उसको जान थी, उसे सुनहरी की हर अदा से प्यार था, उसकी हंसी, उसका गुस्सा, उसका प्यार, उसका खुमार सब कुछ, उसके लिए सुनहरी से अच्छा और कौन हो सकता था
समीर ने सुनहरी के लिए जान दे सकता था तो फिर भला उसको धोखा कैसे दे सकता था, वहाँ से वापस आते हुए समीर ने फैसला कर लिया था की अब वो इन लड़कियों से नहीं मिलेगा और अंकुश को बोल देगा की वो अब उसे बख्शदे।
घर पहुंच कर समीर ने सुनहरी को कॉल की, वो थोड़ा नाराज़ थी लेकिन समीर के थोड़ा सा मानने से मान भी गयी, आखिर सुनहरी को भी समीर पर पूरा विश्वास था, वो जानती थी की समीर उसे कभी धोका नहीं देगा इसलिए वो भी समीर पर आंख बंद करके विश्वास करती थी।
दो दिन के बाद अंकुश घर से वापस आगया, आते ही उसने पूरी बात समीर से डिटेल्स में पूछी, अंकुश खिलाडी था वो समझ गया की समीर का जादू उन लड़कियों पर चल गया है, लेकिन उसने समीर को ऐसा कुछ दर्शाया नहीं बस मज़ाक मज़ाक में बोल दिया की अब वो आगया है तो आगे की स्टोरी वो खुद संभाल लेगा और समीर को भरोसा दिलाया जी वो आस्था से उसकी सेटिंग ज़रूर करा देगा।
समीर ने भी चुप ही रहा, उसे पता था की अगर उसने अंकुश को मना किया तो कहीं उसको सुनहरी पर शक न हो जाये, वो किसी भी क़ीमत पर अपने और सुनहरी की कहानी छुपा कर रखना चाहता था, इसलिए बस सर हिला कर रह गया।
अगले दिन से अंकुश ने वाक़ई में ही सिचुएशन अपने हाथ में ले ली और लग गया अपना जादू उन लड़कियों पर चलाने, समीर ने ख़ामोशी से अपने कदम पीछे खींच लिए थे, एक दो बार तृषा का कॉल आया तो उसने रिस्पांस नहीं किया, अंकुश खुश था समीर के पीछे हटने से उसे खुल कर खेलने का मौका मिल गया था, कभी कभी रात के खाने के टाइम अंकुश उसे कोई छिटपुट बात बताता लेकिन डिटेल्स में नहीं और समीर भी कोई भाव नहीं देता। अब अंकुश ने उसे आस्था वाला लालच भी देना छोड़ दिया था
समीर इस नयी प्रगति से खुश था जितना ज़ायदा अंकुश का धयान उससे दूर था वो उतना ज़ायदा समय अपने काम और सुनहरी को दे पाता, एक शाम समीर अपने कंप्यूटर पर काम कर रहा था की तभी उसके मोबाइल पर एक अनजान नंबर से कॉल आयी, काम करते करते उसने फ़ोन उठाया दूसरी ओर से किसी लड़की ने हेलो कहा,
"यस हेलो ! " समीर ने बहुत फॉर्मल तरीके से कहा
"इस डॉट यू समीर ?" उधर से थोड़ा सकुचाते हुए लड़की ने पूछा
"यस समीर स्पीकिंग, एंड यू ?" समीर उसी तरह से कंप्यूटर पर काम करते जवाब दिया
"समीर, मैं नीतू हु, क्या मैं बाद में बात करू, इफ यू आर बिजी ?" उसकी आवाज़ में एक झिझक थी
"यस नीतू बताइये, क्या काम था ?" समीर का दिमाग और नज़रे अभी भी कंप्यूटर स्क्रीन पर जमी थी
"समीर मैं तृषा की दोस्त नीतू शायद तुमने पहचाना नहीं "
"ओह्ह नीतू, सॉरी हाँ बोलो, मेरा धयान कही और था इसलिए समझ नहीं पाया, बताओ कैसी हो ?" समीर ने अपना सारा धयान फ़ोन पर लगते हुए कहा
"यार मुझे लगा तूने पहचाना नहीं, पहले तो लगा शायद मैंने किसी और को कॉल कर दी है " नीतू ने झेपते हुए बोली
"आरे नहीं यार वो कंप्यूटर पर काम कर रहा था तो धयान उधर ही था "
"ओह्ह कोई बात नहीं बड़े लोग कंप्यूटर पर काम करते है इसलिए हम जैसे छोटे मोटे लोगो को भूल जाते है "
"हाहाहा, नहीं ऐसा कुछ नहीं है, अच्छा बताओ कैसी हो " समीर ने बात बदली
"सब ठीक है, तू बता " आजकल तू अंकुश के साथ आता नहीं हमारे ग्रुप से मिलने " उसकी आवाज़ में हलकी सी शिकायत थी
"बस बिजी था इसलिए नहीं आपया, तुम बताओ खूब मौज मस्ती कर रहे तुम सब
"नहीं आजकल मैं नहीं जा पाती, मेरी बेस्ट फ्रैंड की शादी है उसी में थोड़ा बिजी हूँ, अब क्लासेज भी स्टार्ट होने वाली है तो उसकी भी तैयारी करनी है "
"ओह्ह्ह गुड, कोई बात नहीं शादी के बाद ही सही"
"हाँ यार देखते है, अच्छा समीर यार तुझसे एक काम था अगर तुझे कोई दिक्कत नहीं है तो "
"हाँ बोलो क्या हुआ ?"
"यार, एक्चुअली मेरी फ्रेंड की शादी है तो मैं और दीदी कुछ शॉपिंग के लिए लाजपत नगर गए थे, हमने वह से बहुत सारी शॉपिंग की, मैंने उसकी शादी के लिए एक बहुत महंगा सूट भी खरीद लिया लेकिन एक समस्या हो गयी "
"हाँ बोलो क्या समस्या हुई है "
"यार जो सूट मैंने पसंद किया था वो मेरी फिटिंग का नहीं था तो मैंने उन अंकल को फिटिंग करने के लिए दे दिया, उन्होंने कल देना था वो सूट फिटिंग करके "
"हाँ तो फिर दिक्कत क्या है " समीर को समझ नहीं आरहा था की नीतू आखिर चाहती क्या है
"आरे यार दिक्कत ये है की उनकी स्लिप मुझसे खो गयी "
"तो इसमें क्या दिक्कत है, वो बिना स्लिप के भी दे देंगे, ऐसा तो होता रहता है ?"
"वो तो दे देंगे, नहीं देंगे तो मैं तो पुलिस में फ़ोन कर दूंगी, चौदह हज़ार का है वो सूट "
"क्या चौदह हज़ार का? समीर को मुँह खुला का खुला रह गया, "अरे इतने में तो चौदह जोड़ी कपडे आजाते"
"अरे वो बात की बात है, पूरी बात तो सुन " नीतू ने टोका
"हाँ बोल "
"तो बात ऐसी है की उस स्लिप पर उनकी दूकान का नंबर और एड्रेस था, अब हम इतनी दुकानों और मार्किट पर गए थे की मुझे वो दूकान याद ही नहीं आरही है
"क्या तुम वहा गयी थी ? " समीर ने पूछा
"हाँ यार तभी तो टेंशन हो रही है, कल गयी थी, लेकिन वो तो मार्किट ही अलग लग रही है, मैं ढूंढ ढूंढ कर थक गयी "
"ओह्ह तो एक काम करो दीदी से पूछ लो उनको पता होगा " समीर ने सुझाया
"हाँ उनको पता होगा, लेकिन उनको नहीं बताना चाहती "
"वो क्यों ?" समीर ने पूछा
"अरे वो जिस दिन शॉपिंग के लिए गयी थी उसी दिन बोल रही थी की अब बड़ी हो गयी है कॉलेज जाने लगी है अब आगे से खुद ही अपनी शॉपिंग किया कर, तो मैंने भी बोल दिया था की आगे से नहीं बोलूंगी "
"ओह्ह तो इसका मतलब अब अगर दीदी से पूछोगी तो तुमको इंसल्ट फील होगी " समीर उसकी सिचुएशन समझ गया था
"बिलकुल यही बात है यार, इसीलिए उसके जब कोई ऑप्शन नहीं होगा तब ही पूछूँगी " नीतू ने समीर को समझाया
"तो अब मुझसे क्या चाहती हो" समीर ने जानना चाहा
"बस यही की तु अगर फ्री हो तो कल मेरी हेल्प कर दे उस शॉप को ढूंढने में" उसने समीर की हेल्प मांगी
"अच्छा ठीक है मैं हेल्प कर दूंगा, तुमने अच्छा किया की मुझे अभी कॉल कर दिया, मैं कल के लिए टाइम निकल लूंगा, लेकिन एक बात बताओ तुमने मुझे क्यों कॉल किया, अंकुश भी तो कर सकता था तुमहरी हेल्प और मेरा नंबर कहा से मिला तुमको ?
"अरे उस दिन प्लेटफॉर्म पर तृषा ने तुझे मेरे नंबर से कॉल किया था इसलिए मेरे फ़ोन में तुम्हारा नंबर रह गया था, और रही अंकुश की बात तो, अंकुश लफंदर टाइप लड़का है उस जैसे लड़के मुझे बिलकुल अच्छे नहीं लगते, उस दिन भी उसने तृषा को फॅसा दिया था ड्राफ्ट वाले मामले में और अगर तु मेरी हेल्प नहीं कर सकता तो मुझे क्लियर बता दे मैं कोई और रास्ता देख लुंगी" अंतिम के शब्द बोलते बोलते उसकी आवाज़ में रूखापन आगया था
"अरे मैंने कब मन किया, मैंने तो बस जिज्ञासावश पूछा था, ये कोई इतनी बड़ी बात नहीं है मुझे लाजपत नगर की मार्किट पता है, मैं हेल्प कर दूंगा" समीर ने उसे भरोसा दिलाया
"हाँ मैं जानती हूँ की यू अरे ऐ हेल्पफुल पर्सन, तो कल का पक्का फिर "
" हाँ पक्का, बस तुम एक काम करना मार्किट दस बजे तक पहुंच जाना, मैं भी आजाऊंगा, बाइक से आऊंगा, वहाँ से मैं बाइक पर तुमको पूरी मार्किट घुमा दूंगा, सुबह भीड़ नहीं होती तो शॉप्स अच्छे से नज़र आजायेगी " समीर ने नीतू को प्लान समझाया
"हाँ ठीक है मैं आजाऊंगी" कह कर उसने बात ख़तम कर दी और फ़ोन रख दिया
फ़ोन रख कर समीर ने सर पीट लिया, अभी थोड़े दिन पहले उसने तय किया था की अब इन लड़कियों से दूरी बनाएगा, लेकिन आज फिर एक लड़की से मिलने का प्लान बना लिया
"हद है यार आखिर कब मना करना सीखूंगा " समीर ने खुद से कहा और फिर लग गया जल्दी जल्दी काम निबटाने आखिर उसे कल का काम भी आज ही निबटना जो था।
फंसा.....
वैसे जिंदगी में हमेशा न बोलना जरूर आना चाहिए।