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Romance बेडु पाको बारो मासा

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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समीर घर वापस आगया था, रस्ते में सुनहरी का कॉल आया लेकिन समीर ने जवाब नहीं दिया, वो घर पहुंच कर ही उस से बात करना चाहता था, आज इन लड़कियों से मिलकर उसे अलग लगा था, समीर इतना बेकूफ़ भी नहीं था की उसे एहसास नहीं होता की उन लड़कियों के मन में कही न कही प्यार का कीड़ा कुलबुला रहा है लेकिन वो इस रास्ते पर नहीं चल सकता था, उसकी तो मज़िल कुछ और थी, भले ही चाहे आस्था कितनी ही सुन्दर क्यों न हो वो सुनहरी की जगह नहीं ले सकती थी, सुनहरी तो उसको जान थी, उसे सुनहरी की हर अदा से प्यार था, उसकी हंसी, उसका गुस्सा, उसका प्यार, उसका खुमार सब कुछ, उसके लिए सुनहरी से अच्छा और कौन हो सकता था

समीर ने सुनहरी के लिए जान दे सकता था तो फिर भला उसको धोखा कैसे दे सकता था, वहाँ से वापस आते हुए समीर ने फैसला कर लिया था की अब वो इन लड़कियों से नहीं मिलेगा और अंकुश को बोल देगा की वो अब उसे बख्शदे।

घर पहुंच कर समीर ने सुनहरी को कॉल की, वो थोड़ा नाराज़ थी लेकिन समीर के थोड़ा सा मानने से मान भी गयी, आखिर सुनहरी को भी समीर पर पूरा विश्वास था, वो जानती थी की समीर उसे कभी धोका नहीं देगा इसलिए वो भी समीर पर आंख बंद करके विश्वास करती थी।

दो दिन के बाद अंकुश घर से वापस आगया, आते ही उसने पूरी बात समीर से डिटेल्स में पूछी, अंकुश खिलाडी था वो समझ गया की समीर का जादू उन लड़कियों पर चल गया है, लेकिन उसने समीर को ऐसा कुछ दर्शाया नहीं बस मज़ाक मज़ाक में बोल दिया की अब वो आगया है तो आगे की स्टोरी वो खुद संभाल लेगा और समीर को भरोसा दिलाया जी वो आस्था से उसकी सेटिंग ज़रूर करा देगा।

समीर ने भी चुप ही रहा, उसे पता था की अगर उसने अंकुश को मना किया तो कहीं उसको सुनहरी पर शक न हो जाये, वो किसी भी क़ीमत पर अपने और सुनहरी की कहानी छुपा कर रखना चाहता था, इसलिए बस सर हिला कर रह गया।

अगले दिन से अंकुश ने वाक़ई में ही सिचुएशन अपने हाथ में ले ली और लग गया अपना जादू उन लड़कियों पर चलाने, समीर ने ख़ामोशी से अपने कदम पीछे खींच लिए थे, एक दो बार तृषा का कॉल आया तो उसने रिस्पांस नहीं किया, अंकुश खुश था समीर के पीछे हटने से उसे खुल कर खेलने का मौका मिल गया था, कभी कभी रात के खाने के टाइम अंकुश उसे कोई छिटपुट बात बताता लेकिन डिटेल्स में नहीं और समीर भी कोई भाव नहीं देता। अब अंकुश ने उसे आस्था वाला लालच भी देना छोड़ दिया था

समीर इस नयी प्रगति से खुश था जितना ज़ायदा अंकुश का धयान उससे दूर था वो उतना ज़ायदा समय अपने काम और सुनहरी को दे पाता, एक शाम समीर अपने कंप्यूटर पर काम कर रहा था की तभी उसके मोबाइल पर एक अनजान नंबर से कॉल आयी, काम करते करते उसने फ़ोन उठाया दूसरी ओर से किसी लड़की ने हेलो कहा,

"यस हेलो ! " समीर ने बहुत फॉर्मल तरीके से कहा
"इस डॉट यू समीर ?" उधर से थोड़ा सकुचाते हुए लड़की ने पूछा

"यस समीर स्पीकिंग, एंड यू ?" समीर उसी तरह से कंप्यूटर पर काम करते जवाब दिया
"समीर, मैं नीतू हु, क्या मैं बाद में बात करू, इफ यू आर बिजी ?" उसकी आवाज़ में एक झिझक थी

"यस नीतू बताइये, क्या काम था ?" समीर का दिमाग और नज़रे अभी भी कंप्यूटर स्क्रीन पर जमी थी
"समीर मैं तृषा की दोस्त नीतू शायद तुमने पहचाना नहीं "

"ओह्ह नीतू, सॉरी हाँ बोलो, मेरा धयान कही और था इसलिए समझ नहीं पाया, बताओ कैसी हो ?" समीर ने अपना सारा धयान फ़ोन पर लगते हुए कहा
"यार मुझे लगा तूने पहचाना नहीं, पहले तो लगा शायद मैंने किसी और को कॉल कर दी है " नीतू ने झेपते हुए बोली

"आरे नहीं यार वो कंप्यूटर पर काम कर रहा था तो धयान उधर ही था "
"ओह्ह कोई बात नहीं बड़े लोग कंप्यूटर पर काम करते है इसलिए हम जैसे छोटे मोटे लोगो को भूल जाते है "

"हाहाहा, नहीं ऐसा कुछ नहीं है, अच्छा बताओ कैसी हो " समीर ने बात बदली
"सब ठीक है, तू बता " आजकल तू अंकुश के साथ आता नहीं हमारे ग्रुप से मिलने " उसकी आवाज़ में हलकी सी शिकायत थी

"बस बिजी था इसलिए नहीं आपया, तुम बताओ खूब मौज मस्ती कर रहे तुम सब
"नहीं आजकल मैं नहीं जा पाती, मेरी बेस्ट फ्रैंड की शादी है उसी में थोड़ा बिजी हूँ, अब क्लासेज भी स्टार्ट होने वाली है तो उसकी भी तैयारी करनी है "

"ओह्ह्ह गुड, कोई बात नहीं शादी के बाद ही सही"
"हाँ यार देखते है, अच्छा समीर यार तुझसे एक काम था अगर तुझे कोई दिक्कत नहीं है तो "

"हाँ बोलो क्या हुआ ?"
"यार, एक्चुअली मेरी फ्रेंड की शादी है तो मैं और दीदी कुछ शॉपिंग के लिए लाजपत नगर गए थे, हमने वह से बहुत सारी शॉपिंग की, मैंने उसकी शादी के लिए एक बहुत महंगा सूट भी खरीद लिया लेकिन एक समस्या हो गयी "

"हाँ बोलो क्या समस्या हुई है "
"यार जो सूट मैंने पसंद किया था वो मेरी फिटिंग का नहीं था तो मैंने उन अंकल को फिटिंग करने के लिए दे दिया, उन्होंने कल देना था वो सूट फिटिंग करके "

"हाँ तो फिर दिक्कत क्या है " समीर को समझ नहीं आरहा था की नीतू आखिर चाहती क्या है
"आरे यार दिक्कत ये है की उनकी स्लिप मुझसे खो गयी "

"तो इसमें क्या दिक्कत है, वो बिना स्लिप के भी दे देंगे, ऐसा तो होता रहता है ?"
"वो तो दे देंगे, नहीं देंगे तो मैं तो पुलिस में फ़ोन कर दूंगी, चौदह हज़ार का है वो सूट "

"क्या चौदह हज़ार का? समीर को मुँह खुला का खुला रह गया, "अरे इतने में तो चौदह जोड़ी कपडे आजाते"
"अरे वो बात की बात है, पूरी बात तो सुन " नीतू ने टोका

"हाँ बोल "
"तो बात ऐसी है की उस स्लिप पर उनकी दूकान का नंबर और एड्रेस था, अब हम इतनी दुकानों और मार्किट पर गए थे की मुझे वो दूकान याद ही नहीं आरही है

"क्या तुम वहा गयी थी ? " समीर ने पूछा
"हाँ यार तभी तो टेंशन हो रही है, कल गयी थी, लेकिन वो तो मार्किट ही अलग लग रही है, मैं ढूंढ ढूंढ कर थक गयी "

"ओह्ह तो एक काम करो दीदी से पूछ लो उनको पता होगा " समीर ने सुझाया
"हाँ उनको पता होगा, लेकिन उनको नहीं बताना चाहती "

"वो क्यों ?" समीर ने पूछा
"अरे वो जिस दिन शॉपिंग के लिए गयी थी उसी दिन बोल रही थी की अब बड़ी हो गयी है कॉलेज जाने लगी है अब आगे से खुद ही अपनी शॉपिंग किया कर, तो मैंने भी बोल दिया था की आगे से नहीं बोलूंगी "

"ओह्ह तो इसका मतलब अब अगर दीदी से पूछोगी तो तुमको इंसल्ट फील होगी " समीर उसकी सिचुएशन समझ गया था
"बिलकुल यही बात है यार, इसीलिए उसके जब कोई ऑप्शन नहीं होगा तब ही पूछूँगी " नीतू ने समीर को समझाया

"तो अब मुझसे क्या चाहती हो" समीर ने जानना चाहा
"बस यही की तु अगर फ्री हो तो कल मेरी हेल्प कर दे उस शॉप को ढूंढने में" उसने समीर की हेल्प मांगी

"अच्छा ठीक है मैं हेल्प कर दूंगा, तुमने अच्छा किया की मुझे अभी कॉल कर दिया, मैं कल के लिए टाइम निकल लूंगा, लेकिन एक बात बताओ तुमने मुझे क्यों कॉल किया, अंकुश भी तो कर सकता था तुमहरी हेल्प और मेरा नंबर कहा से मिला तुमको ?

"अरे उस दिन प्लेटफॉर्म पर तृषा ने तुझे मेरे नंबर से कॉल किया था इसलिए मेरे फ़ोन में तुम्हारा नंबर रह गया था, और रही अंकुश की बात तो, अंकुश लफंदर टाइप लड़का है उस जैसे लड़के मुझे बिलकुल अच्छे नहीं लगते, उस दिन भी उसने तृषा को फॅसा दिया था ड्राफ्ट वाले मामले में और अगर तु मेरी हेल्प नहीं कर सकता तो मुझे क्लियर बता दे मैं कोई और रास्ता देख लुंगी" अंतिम के शब्द बोलते बोलते उसकी आवाज़ में रूखापन आगया था

"अरे मैंने कब मन किया, मैंने तो बस जिज्ञासावश पूछा था, ये कोई इतनी बड़ी बात नहीं है मुझे लाजपत नगर की मार्किट पता है, मैं हेल्प कर दूंगा" समीर ने उसे भरोसा दिलाया
"हाँ मैं जानती हूँ की यू अरे ऐ हेल्पफुल पर्सन, तो कल का पक्का फिर "

" हाँ पक्का, बस तुम एक काम करना मार्किट दस बजे तक पहुंच जाना, मैं भी आजाऊंगा, बाइक से आऊंगा, वहाँ से मैं बाइक पर तुमको पूरी मार्किट घुमा दूंगा, सुबह भीड़ नहीं होती तो शॉप्स अच्छे से नज़र आजायेगी " समीर ने नीतू को प्लान समझाया
"हाँ ठीक है मैं आजाऊंगी" कह कर उसने बात ख़तम कर दी और फ़ोन रख दिया

फ़ोन रख कर समीर ने सर पीट लिया, अभी थोड़े दिन पहले उसने तय किया था की अब इन लड़कियों से दूरी बनाएगा, लेकिन आज फिर एक लड़की से मिलने का प्लान बना लिया

"हद है यार आखिर कब मना करना सीखूंगा " समीर ने खुद से कहा और फिर लग गया जल्दी जल्दी काम निबटाने आखिर उसे कल का काम भी आज ही निबटना जो था।
ए ए ए....

फंसा.....


वैसे जिंदगी में हमेशा न बोलना जरूर आना चाहिए।
 

Thakur

असला हम भी रखते है पहलवान 😼
Prime
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समीर घर वापस आगया था, रस्ते में सुनहरी का कॉल आया लेकिन समीर ने जवाब नहीं दिया, वो घर पहुंच कर ही उस से बात करना चाहता था, आज इन लड़कियों से मिलकर उसे अलग लगा था, समीर इतना बेकूफ़ भी नहीं था की उसे एहसास नहीं होता की उन लड़कियों के मन में कही न कही प्यार का कीड़ा कुलबुला रहा है लेकिन वो इस रास्ते पर नहीं चल सकता था, उसकी तो मज़िल कुछ और थी, भले ही चाहे आस्था कितनी ही सुन्दर क्यों न हो वो सुनहरी की जगह नहीं ले सकती थी, सुनहरी तो उसको जान थी, उसे सुनहरी की हर अदा से प्यार था, उसकी हंसी, उसका गुस्सा, उसका प्यार, उसका खुमार सब कुछ, उसके लिए सुनहरी से अच्छा और कौन हो सकता था

समीर ने सुनहरी के लिए जान दे सकता था तो फिर भला उसको धोखा कैसे दे सकता था, वहाँ से वापस आते हुए समीर ने फैसला कर लिया था की अब वो इन लड़कियों से नहीं मिलेगा और अंकुश को बोल देगा की वो अब उसे बख्शदे।

घर पहुंच कर समीर ने सुनहरी को कॉल की, वो थोड़ा नाराज़ थी लेकिन समीर के थोड़ा सा मानने से मान भी गयी, आखिर सुनहरी को भी समीर पर पूरा विश्वास था, वो जानती थी की समीर उसे कभी धोका नहीं देगा इसलिए वो भी समीर पर आंख बंद करके विश्वास करती थी।

दो दिन के बाद अंकुश घर से वापस आगया, आते ही उसने पूरी बात समीर से डिटेल्स में पूछी, अंकुश खिलाडी था वो समझ गया की समीर का जादू उन लड़कियों पर चल गया है, लेकिन उसने समीर को ऐसा कुछ दर्शाया नहीं बस मज़ाक मज़ाक में बोल दिया की अब वो आगया है तो आगे की स्टोरी वो खुद संभाल लेगा और समीर को भरोसा दिलाया जी वो आस्था से उसकी सेटिंग ज़रूर करा देगा।

समीर ने भी चुप ही रहा, उसे पता था की अगर उसने अंकुश को मना किया तो कहीं उसको सुनहरी पर शक न हो जाये, वो किसी भी क़ीमत पर अपने और सुनहरी की कहानी छुपा कर रखना चाहता था, इसलिए बस सर हिला कर रह गया।

अगले दिन से अंकुश ने वाक़ई में ही सिचुएशन अपने हाथ में ले ली और लग गया अपना जादू उन लड़कियों पर चलाने, समीर ने ख़ामोशी से अपने कदम पीछे खींच लिए थे, एक दो बार तृषा का कॉल आया तो उसने रिस्पांस नहीं किया, अंकुश खुश था समीर के पीछे हटने से उसे खुल कर खेलने का मौका मिल गया था, कभी कभी रात के खाने के टाइम अंकुश उसे कोई छिटपुट बात बताता लेकिन डिटेल्स में नहीं और समीर भी कोई भाव नहीं देता। अब अंकुश ने उसे आस्था वाला लालच भी देना छोड़ दिया था

समीर इस नयी प्रगति से खुश था जितना ज़ायदा अंकुश का धयान उससे दूर था वो उतना ज़ायदा समय अपने काम और सुनहरी को दे पाता, एक शाम समीर अपने कंप्यूटर पर काम कर रहा था की तभी उसके मोबाइल पर एक अनजान नंबर से कॉल आयी, काम करते करते उसने फ़ोन उठाया दूसरी ओर से किसी लड़की ने हेलो कहा,

"यस हेलो ! " समीर ने बहुत फॉर्मल तरीके से कहा
"इस डॉट यू समीर ?" उधर से थोड़ा सकुचाते हुए लड़की ने पूछा

"यस समीर स्पीकिंग, एंड यू ?" समीर उसी तरह से कंप्यूटर पर काम करते जवाब दिया
"समीर, मैं नीतू हु, क्या मैं बाद में बात करू, इफ यू आर बिजी ?" उसकी आवाज़ में एक झिझक थी

"यस नीतू बताइये, क्या काम था ?" समीर का दिमाग और नज़रे अभी भी कंप्यूटर स्क्रीन पर जमी थी
"समीर मैं तृषा की दोस्त नीतू शायद तुमने पहचाना नहीं "

"ओह्ह नीतू, सॉरी हाँ बोलो, मेरा धयान कही और था इसलिए समझ नहीं पाया, बताओ कैसी हो ?" समीर ने अपना सारा धयान फ़ोन पर लगते हुए कहा
"यार मुझे लगा तूने पहचाना नहीं, पहले तो लगा शायद मैंने किसी और को कॉल कर दी है " नीतू ने झेपते हुए बोली

"आरे नहीं यार वो कंप्यूटर पर काम कर रहा था तो धयान उधर ही था "
"ओह्ह कोई बात नहीं बड़े लोग कंप्यूटर पर काम करते है इसलिए हम जैसे छोटे मोटे लोगो को भूल जाते है "

"हाहाहा, नहीं ऐसा कुछ नहीं है, अच्छा बताओ कैसी हो " समीर ने बात बदली
"सब ठीक है, तू बता " आजकल तू अंकुश के साथ आता नहीं हमारे ग्रुप से मिलने " उसकी आवाज़ में हलकी सी शिकायत थी

"बस बिजी था इसलिए नहीं आपया, तुम बताओ खूब मौज मस्ती कर रहे तुम सब
"नहीं आजकल मैं नहीं जा पाती, मेरी बेस्ट फ्रैंड की शादी है उसी में थोड़ा बिजी हूँ, अब क्लासेज भी स्टार्ट होने वाली है तो उसकी भी तैयारी करनी है "

"ओह्ह्ह गुड, कोई बात नहीं शादी के बाद ही सही"
"हाँ यार देखते है, अच्छा समीर यार तुझसे एक काम था अगर तुझे कोई दिक्कत नहीं है तो "

"हाँ बोलो क्या हुआ ?"
"यार, एक्चुअली मेरी फ्रेंड की शादी है तो मैं और दीदी कुछ शॉपिंग के लिए लाजपत नगर गए थे, हमने वह से बहुत सारी शॉपिंग की, मैंने उसकी शादी के लिए एक बहुत महंगा सूट भी खरीद लिया लेकिन एक समस्या हो गयी "

"हाँ बोलो क्या समस्या हुई है "
"यार जो सूट मैंने पसंद किया था वो मेरी फिटिंग का नहीं था तो मैंने उन अंकल को फिटिंग करने के लिए दे दिया, उन्होंने कल देना था वो सूट फिटिंग करके "

"हाँ तो फिर दिक्कत क्या है " समीर को समझ नहीं आरहा था की नीतू आखिर चाहती क्या है
"आरे यार दिक्कत ये है की उनकी स्लिप मुझसे खो गयी "

"तो इसमें क्या दिक्कत है, वो बिना स्लिप के भी दे देंगे, ऐसा तो होता रहता है ?"
"वो तो दे देंगे, नहीं देंगे तो मैं तो पुलिस में फ़ोन कर दूंगी, चौदह हज़ार का है वो सूट "

"क्या चौदह हज़ार का? समीर को मुँह खुला का खुला रह गया, "अरे इतने में तो चौदह जोड़ी कपडे आजाते"
"अरे वो बात की बात है, पूरी बात तो सुन " नीतू ने टोका

"हाँ बोल "
"तो बात ऐसी है की उस स्लिप पर उनकी दूकान का नंबर और एड्रेस था, अब हम इतनी दुकानों और मार्किट पर गए थे की मुझे वो दूकान याद ही नहीं आरही है

"क्या तुम वहा गयी थी ? " समीर ने पूछा
"हाँ यार तभी तो टेंशन हो रही है, कल गयी थी, लेकिन वो तो मार्किट ही अलग लग रही है, मैं ढूंढ ढूंढ कर थक गयी "

"ओह्ह तो एक काम करो दीदी से पूछ लो उनको पता होगा " समीर ने सुझाया
"हाँ उनको पता होगा, लेकिन उनको नहीं बताना चाहती "

"वो क्यों ?" समीर ने पूछा
"अरे वो जिस दिन शॉपिंग के लिए गयी थी उसी दिन बोल रही थी की अब बड़ी हो गयी है कॉलेज जाने लगी है अब आगे से खुद ही अपनी शॉपिंग किया कर, तो मैंने भी बोल दिया था की आगे से नहीं बोलूंगी "

"ओह्ह तो इसका मतलब अब अगर दीदी से पूछोगी तो तुमको इंसल्ट फील होगी " समीर उसकी सिचुएशन समझ गया था
"बिलकुल यही बात है यार, इसीलिए उसके जब कोई ऑप्शन नहीं होगा तब ही पूछूँगी " नीतू ने समीर को समझाया

"तो अब मुझसे क्या चाहती हो" समीर ने जानना चाहा
"बस यही की तु अगर फ्री हो तो कल मेरी हेल्प कर दे उस शॉप को ढूंढने में" उसने समीर की हेल्प मांगी

"अच्छा ठीक है मैं हेल्प कर दूंगा, तुमने अच्छा किया की मुझे अभी कॉल कर दिया, मैं कल के लिए टाइम निकल लूंगा, लेकिन एक बात बताओ तुमने मुझे क्यों कॉल किया, अंकुश भी तो कर सकता था तुमहरी हेल्प और मेरा नंबर कहा से मिला तुमको ?

"अरे उस दिन प्लेटफॉर्म पर तृषा ने तुझे मेरे नंबर से कॉल किया था इसलिए मेरे फ़ोन में तुम्हारा नंबर रह गया था, और रही अंकुश की बात तो, अंकुश लफंदर टाइप लड़का है उस जैसे लड़के मुझे बिलकुल अच्छे नहीं लगते, उस दिन भी उसने तृषा को फॅसा दिया था ड्राफ्ट वाले मामले में और अगर तु मेरी हेल्प नहीं कर सकता तो मुझे क्लियर बता दे मैं कोई और रास्ता देख लुंगी" अंतिम के शब्द बोलते बोलते उसकी आवाज़ में रूखापन आगया था

"अरे मैंने कब मन किया, मैंने तो बस जिज्ञासावश पूछा था, ये कोई इतनी बड़ी बात नहीं है मुझे लाजपत नगर की मार्किट पता है, मैं हेल्प कर दूंगा" समीर ने उसे भरोसा दिलाया
"हाँ मैं जानती हूँ की यू अरे ऐ हेल्पफुल पर्सन, तो कल का पक्का फिर "

" हाँ पक्का, बस तुम एक काम करना मार्किट दस बजे तक पहुंच जाना, मैं भी आजाऊंगा, बाइक से आऊंगा, वहाँ से मैं बाइक पर तुमको पूरी मार्किट घुमा दूंगा, सुबह भीड़ नहीं होती तो शॉप्स अच्छे से नज़र आजायेगी " समीर ने नीतू को प्लान समझाया
"हाँ ठीक है मैं आजाऊंगी" कह कर उसने बात ख़तम कर दी और फ़ोन रख दिया

फ़ोन रख कर समीर ने सर पीट लिया, अभी थोड़े दिन पहले उसने तय किया था की अब इन लड़कियों से दूरी बनाएगा, लेकिन आज फिर एक लड़की से मिलने का प्लान बना लिया

"हद है यार आखिर कब मना करना सीखूंगा " समीर ने खुद से कहा और फिर लग गया जल्दी जल्दी काम निबटाने आखिर उसे कल का काम भी आज ही निबटना जो था।
Bedu sahi me paak riya he :notme:
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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नवीनतम दो अपडेट से यही लग रहा है कि कहानी नीतू और समीर की है। परिस्थितियां ऐसी बनी हैं समीर के लिए, कि उसको नीतू के संग समय बिताना ही पड़ रहा है। किधर मुड़ेगी कहानी, शायद दो तीन अपडेट में समझ आ जाए। बहुत बढ़िया लेखन! मनोरंजक 😊
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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समीर घर वापस आगया था, रस्ते में सुनहरी का कॉल आया लेकिन समीर ने जवाब नहीं दिया, वो घर पहुंच कर ही उस से बात करना चाहता था, आज इन लड़कियों से मिलकर उसे अलग लगा था, समीर इतना बेकूफ़ भी नहीं था की उसे एहसास नहीं होता की उन लड़कियों के मन में कही न कही प्यार का कीड़ा कुलबुला रहा है लेकिन वो इस रास्ते पर नहीं चल सकता था, उसकी तो मज़िल कुछ और थी, भले ही चाहे आस्था कितनी ही सुन्दर क्यों न हो वो सुनहरी की जगह नहीं ले सकती थी, सुनहरी तो उसको जान थी, उसे सुनहरी की हर अदा से प्यार था, उसकी हंसी, उसका गुस्सा, उसका प्यार, उसका खुमार सब कुछ, उसके लिए सुनहरी से अच्छा और कौन हो सकता था

समीर ने सुनहरी के लिए जान दे सकता था तो फिर भला उसको धोखा कैसे दे सकता था, वहाँ से वापस आते हुए समीर ने फैसला कर लिया था की अब वो इन लड़कियों से नहीं मिलेगा और अंकुश को बोल देगा की वो अब उसे बख्शदे।

घर पहुंच कर समीर ने सुनहरी को कॉल की, वो थोड़ा नाराज़ थी लेकिन समीर के थोड़ा सा मानने से मान भी गयी, आखिर सुनहरी को भी समीर पर पूरा विश्वास था, वो जानती थी की समीर उसे कभी धोका नहीं देगा इसलिए वो भी समीर पर आंख बंद करके विश्वास करती थी।

दो दिन के बाद अंकुश घर से वापस आगया, आते ही उसने पूरी बात समीर से डिटेल्स में पूछी, अंकुश खिलाडी था वो समझ गया की समीर का जादू उन लड़कियों पर चल गया है, लेकिन उसने समीर को ऐसा कुछ दर्शाया नहीं बस मज़ाक मज़ाक में बोल दिया की अब वो आगया है तो आगे की स्टोरी वो खुद संभाल लेगा और समीर को भरोसा दिलाया जी वो आस्था से उसकी सेटिंग ज़रूर करा देगा।

समीर ने भी चुप ही रहा, उसे पता था की अगर उसने अंकुश को मना किया तो कहीं उसको सुनहरी पर शक न हो जाये, वो किसी भी क़ीमत पर अपने और सुनहरी की कहानी छुपा कर रखना चाहता था, इसलिए बस सर हिला कर रह गया।

अगले दिन से अंकुश ने वाक़ई में ही सिचुएशन अपने हाथ में ले ली और लग गया अपना जादू उन लड़कियों पर चलाने, समीर ने ख़ामोशी से अपने कदम पीछे खींच लिए थे, एक दो बार तृषा का कॉल आया तो उसने रिस्पांस नहीं किया, अंकुश खुश था समीर के पीछे हटने से उसे खुल कर खेलने का मौका मिल गया था, कभी कभी रात के खाने के टाइम अंकुश उसे कोई छिटपुट बात बताता लेकिन डिटेल्स में नहीं और समीर भी कोई भाव नहीं देता। अब अंकुश ने उसे आस्था वाला लालच भी देना छोड़ दिया था

समीर इस नयी प्रगति से खुश था जितना ज़ायदा अंकुश का धयान उससे दूर था वो उतना ज़ायदा समय अपने काम और सुनहरी को दे पाता, एक शाम समीर अपने कंप्यूटर पर काम कर रहा था की तभी उसके मोबाइल पर एक अनजान नंबर से कॉल आयी, काम करते करते उसने फ़ोन उठाया दूसरी ओर से किसी लड़की ने हेलो कहा,

"यस हेलो ! " समीर ने बहुत फॉर्मल तरीके से कहा
"इस डॉट यू समीर ?" उधर से थोड़ा सकुचाते हुए लड़की ने पूछा

"यस समीर स्पीकिंग, एंड यू ?" समीर उसी तरह से कंप्यूटर पर काम करते जवाब दिया
"समीर, मैं नीतू हु, क्या मैं बाद में बात करू, इफ यू आर बिजी ?" उसकी आवाज़ में एक झिझक थी

"यस नीतू बताइये, क्या काम था ?" समीर का दिमाग और नज़रे अभी भी कंप्यूटर स्क्रीन पर जमी थी
"समीर मैं तृषा की दोस्त नीतू शायद तुमने पहचाना नहीं "

"ओह्ह नीतू, सॉरी हाँ बोलो, मेरा धयान कही और था इसलिए समझ नहीं पाया, बताओ कैसी हो ?" समीर ने अपना सारा धयान फ़ोन पर लगते हुए कहा
"यार मुझे लगा तूने पहचाना नहीं, पहले तो लगा शायद मैंने किसी और को कॉल कर दी है " नीतू ने झेपते हुए बोली

"आरे नहीं यार वो कंप्यूटर पर काम कर रहा था तो धयान उधर ही था "
"ओह्ह कोई बात नहीं बड़े लोग कंप्यूटर पर काम करते है इसलिए हम जैसे छोटे मोटे लोगो को भूल जाते है "

"हाहाहा, नहीं ऐसा कुछ नहीं है, अच्छा बताओ कैसी हो " समीर ने बात बदली
"सब ठीक है, तू बता " आजकल तू अंकुश के साथ आता नहीं हमारे ग्रुप से मिलने " उसकी आवाज़ में हलकी सी शिकायत थी

"बस बिजी था इसलिए नहीं आपया, तुम बताओ खूब मौज मस्ती कर रहे तुम सब
"नहीं आजकल मैं नहीं जा पाती, मेरी बेस्ट फ्रैंड की शादी है उसी में थोड़ा बिजी हूँ, अब क्लासेज भी स्टार्ट होने वाली है तो उसकी भी तैयारी करनी है "

"ओह्ह्ह गुड, कोई बात नहीं शादी के बाद ही सही"
"हाँ यार देखते है, अच्छा समीर यार तुझसे एक काम था अगर तुझे कोई दिक्कत नहीं है तो "

"हाँ बोलो क्या हुआ ?"
"यार, एक्चुअली मेरी फ्रेंड की शादी है तो मैं और दीदी कुछ शॉपिंग के लिए लाजपत नगर गए थे, हमने वह से बहुत सारी शॉपिंग की, मैंने उसकी शादी के लिए एक बहुत महंगा सूट भी खरीद लिया लेकिन एक समस्या हो गयी "

"हाँ बोलो क्या समस्या हुई है "
"यार जो सूट मैंने पसंद किया था वो मेरी फिटिंग का नहीं था तो मैंने उन अंकल को फिटिंग करने के लिए दे दिया, उन्होंने कल देना था वो सूट फिटिंग करके "

"हाँ तो फिर दिक्कत क्या है " समीर को समझ नहीं आरहा था की नीतू आखिर चाहती क्या है
"आरे यार दिक्कत ये है की उनकी स्लिप मुझसे खो गयी "

"तो इसमें क्या दिक्कत है, वो बिना स्लिप के भी दे देंगे, ऐसा तो होता रहता है ?"
"वो तो दे देंगे, नहीं देंगे तो मैं तो पुलिस में फ़ोन कर दूंगी, चौदह हज़ार का है वो सूट "

"क्या चौदह हज़ार का? समीर को मुँह खुला का खुला रह गया, "अरे इतने में तो चौदह जोड़ी कपडे आजाते"
"अरे वो बात की बात है, पूरी बात तो सुन " नीतू ने टोका

"हाँ बोल "
"तो बात ऐसी है की उस स्लिप पर उनकी दूकान का नंबर और एड्रेस था, अब हम इतनी दुकानों और मार्किट पर गए थे की मुझे वो दूकान याद ही नहीं आरही है

"क्या तुम वहा गयी थी ? " समीर ने पूछा
"हाँ यार तभी तो टेंशन हो रही है, कल गयी थी, लेकिन वो तो मार्किट ही अलग लग रही है, मैं ढूंढ ढूंढ कर थक गयी "

"ओह्ह तो एक काम करो दीदी से पूछ लो उनको पता होगा " समीर ने सुझाया
"हाँ उनको पता होगा, लेकिन उनको नहीं बताना चाहती "

"वो क्यों ?" समीर ने पूछा
"अरे वो जिस दिन शॉपिंग के लिए गयी थी उसी दिन बोल रही थी की अब बड़ी हो गयी है कॉलेज जाने लगी है अब आगे से खुद ही अपनी शॉपिंग किया कर, तो मैंने भी बोल दिया था की आगे से नहीं बोलूंगी "

"ओह्ह तो इसका मतलब अब अगर दीदी से पूछोगी तो तुमको इंसल्ट फील होगी " समीर उसकी सिचुएशन समझ गया था
"बिलकुल यही बात है यार, इसीलिए उसके जब कोई ऑप्शन नहीं होगा तब ही पूछूँगी " नीतू ने समीर को समझाया

"तो अब मुझसे क्या चाहती हो" समीर ने जानना चाहा
"बस यही की तु अगर फ्री हो तो कल मेरी हेल्प कर दे उस शॉप को ढूंढने में" उसने समीर की हेल्प मांगी

"अच्छा ठीक है मैं हेल्प कर दूंगा, तुमने अच्छा किया की मुझे अभी कॉल कर दिया, मैं कल के लिए टाइम निकल लूंगा, लेकिन एक बात बताओ तुमने मुझे क्यों कॉल किया, अंकुश भी तो कर सकता था तुमहरी हेल्प और मेरा नंबर कहा से मिला तुमको ?

"अरे उस दिन प्लेटफॉर्म पर तृषा ने तुझे मेरे नंबर से कॉल किया था इसलिए मेरे फ़ोन में तुम्हारा नंबर रह गया था, और रही अंकुश की बात तो, अंकुश लफंदर टाइप लड़का है उस जैसे लड़के मुझे बिलकुल अच्छे नहीं लगते, उस दिन भी उसने तृषा को फॅसा दिया था ड्राफ्ट वाले मामले में और अगर तु मेरी हेल्प नहीं कर सकता तो मुझे क्लियर बता दे मैं कोई और रास्ता देख लुंगी" अंतिम के शब्द बोलते बोलते उसकी आवाज़ में रूखापन आगया था

"अरे मैंने कब मन किया, मैंने तो बस जिज्ञासावश पूछा था, ये कोई इतनी बड़ी बात नहीं है मुझे लाजपत नगर की मार्किट पता है, मैं हेल्प कर दूंगा" समीर ने उसे भरोसा दिलाया
"हाँ मैं जानती हूँ की यू अरे ऐ हेल्पफुल पर्सन, तो कल का पक्का फिर "

" हाँ पक्का, बस तुम एक काम करना मार्किट दस बजे तक पहुंच जाना, मैं भी आजाऊंगा, बाइक से आऊंगा, वहाँ से मैं बाइक पर तुमको पूरी मार्किट घुमा दूंगा, सुबह भीड़ नहीं होती तो शॉप्स अच्छे से नज़र आजायेगी " समीर ने नीतू को प्लान समझाया
"हाँ ठीक है मैं आजाऊंगी" कह कर उसने बात ख़तम कर दी और फ़ोन रख दिया

फ़ोन रख कर समीर ने सर पीट लिया, अभी थोड़े दिन पहले उसने तय किया था की अब इन लड़कियों से दूरी बनाएगा, लेकिन आज फिर एक लड़की से मिलने का प्लान बना लिया

"हद है यार आखिर कब मना करना सीखूंगा " समीर ने खुद से कहा और फिर लग गया जल्दी जल्दी काम निबटाने आखिर उसे कल का काम भी आज ही निबटना जो था।

Bahut hi badhiya update post kiya he blinkit Bhai,

As usual, ankush apne playboy wale kaam me lag gaya.............samir ko usne aastha ka lalach bhi diya lekin samir ne use ignore hi kiya..............Sunahari ke character ki details abhi bhi puri tarah se nahi post ki he aapne............shayad jald hi ye character story ko alvida kehne vala he........

Kahani ke title ke mutabiq pahadi ladki kewal nitu hi he is story me.......mujhe yaqin he nitu hi nayika banegi is story ki..........

Keep posting Bhai
 

blinkit

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ये समीर के लिए कोई नयी बात नहीं थी, वो अपनी इस ना, ना कह पाने की आदत के कारण अक्सर विषम स्तिथि में फसता रहता था लेकिन लाख कोशिश के बाद भी उसकी ये आदत छूटती नहीं थी शायद इसके पीछे के कारण उसे पारिवारिक संस्कार थे, उसके पिताजी भी कुछ इसी प्रकार के थे इसलिए अब समीर ने अपनी इस प्रवति के साथ समझौता कर लिया था।

खैर करता क्या अगले दिन समीर समय से पहले लाजपत नगर पहुंच गया, उसने नीतू को कॉल किया तो पता चला की वो अभी बस में है और लगभग पन्दरह मिनट में वो पहुंच जाएगी,

समीर जानभुझ कर समय से पहले पंहुचा था, लाजपत नगर वो पहले भी आचुका था लेकिन वो इस मार्किट से इतना भी परिचित नहीं था की चप्पा चप्पा मालूम हो, नीतू की बात से उसे पता चल चूका था की आज उसे लाजपत नगर मार्किट का चप्पा चप्पा घूमना होगा इसलिए नीतू के आने से पहले वो खुद अकेला घूमकर कर मार्किट का जायज़ा ले लेना चाहता था ताकि नीतू के सामने बुद्दू ना नज़र आये।

अपने प्लान के मुताबिक समीर ने अगले पन्दरह बीस मिनट मार्किट में घूम घूम कर अच्छे से सारे रास्ते और एरिया को अच्छे से समझ लिया था, लाजपत नगर चार पार्ट्स में बटा हुआ था लेकिन पार्ट दो में बनी सेंट्रल मार्किट सबसे बड़ी और सबसे मशहूर मार्किट थी, ये मार्किट लड़कियों और महिलाओ में बहुत लोकप्रिय थी, इसीलिए समीर उसी मार्केट के आसपास घूम फिर कर नीतू का इन्तिज़ार करने लगा,

कुछ देर में नीतू लाजपत नगर के बस स्टैंड पर उतर गयी, लेट हो गयी थी पहुंचने में, उसे थोड़ा बुरा लग रहा था, काम उसका था लेकिन समीर उस से पहले ही पहुंच चूका था और उसका वेट कर रहा था, वो बस स्टैंड से उतर कर मार्किट की ओर चलने लगी, चलते चलते उसने जेब से मोबाइल निकला इस से पहले की वो समीर को कॉल मिलती उसके मोबाइल पर तृषा की कॉल आगयी, उसे तृषा की कॉल देख कर उलझन होने लगी, उसने आजके प्लान के बारे में किसी को बताया नहीं था, कही समीर ने तो नहीं बता दिया था तृषा को, वो नहीं चाहती थी की तृषा को उसके और समीर की ऐसे मिलने के बारे में पता चले, वर्ना पता नहीं वो क्या क्या सोचती।

ना चाहते हुए भी उसने फ़ोन उठा लिया

"यार नीतू तू घर पर है क्या ?" तृषा ने छूटते ही पूछा
"नहीं बाहर हु किसी काम से, बता क्या हुआ ?"

"कुछ नहीं यार, वो मार्किट जाने का प्लान था मेरा और आस्था का लेकिन उसने लास्ट टाइम पर कैंसिल कर दिया की उसे कुछ काम है, मैं घर में पड़ी बोर हो रही थी इसलिए सोचा दोनों साथ चल लेंगे "
"नहीं यार, मुझे अपने कॉलेज में कुछ काम था इसलिए आगयी, अब तो शाम तक ही अपाउंगी " नीतू ने साफ़ झूट बोला

"चल ठीक यार, मुझे भी ले चलती यार अपने साथ कॉलेज, मैं भी तेरा कॉलेज घूम लेती "
"हाँ ठीक है फिर कभी ले चलूंगी, अब तो वैसे भी बस क्लासेज स्टार्ट होने वाली है "

नीतू ने जल्दी से तृषा से पीछा छुड़ाया, आज उसने भी फ़ोन जल्दी से रख दिया था नहीं तो वो उसे घंटो पकाती रहती।
नीतू ने जल्दी से समीर का फ़ोन मिलाया, इससे पहले घटी बजती उसे समीर को एक बिजली की खम्बे से टिका हुआ नज़र आया, वो हाथ में अपना हेलमेट पकडे बिजली के खम्बे से टेक लगाए खड़ा किसी गहरी सोंच में गुम था, इतनी गहरी सोच में था की उसे पता भी नहीं चला की कब नीतू चुपके से उसके पास आखड़ी हुई और धीरे से अपना एक हाथ उसके कंडे पर रख कर इधर उधर देखने लगी, एक पल के लिए समीर ऐसे ही खड़ा रहा लेकिन अगले ही पल वो ऐसे उछल कर अलग हुआ जैसे करंट लगा हो,

" ओह्ह सॉरी मैडम मैंने आपको देखा नाहीई ........, ओह्ह नीतू हद है यार तुमने मुझे डरा ही दिया था " समीर पहले तो घबराया और फिर बड़बड़ाने लगा
नीतू उसकी हालत देख कर हंस पड़ी, बौखलाया फिर खीजता हुआ, उसे बहुत हसी आयी, क्या लड़का है ये भी एक दम यूनिक
"डर मत यार मैं ही हूँ, तेरी इज़्ज़त नहीं लूटूँगी " नीतू ने मज़ाक उड़ाया

"ओह्ह नहीं, मुझे लगा मैं गलती से किसी अनजान लेडी के पास खड़ा हो गया इसलिए"
"कोई नहीं हो जाता है, इसमें तेरी कोई गलती नहीं, अच्छा ये बता किसके खयालो में इतना खोया था की तुझे आसपास का कोई होश ही नहीं है" नीतू ने उसे भरोसा दिलाते हुए पूछा

"अरे कुछ नहीं बस इधर उधर की, तुम बताओ अब क्या प्लान है " समीर ने बात टाली
"बस यार वो शॉप ढूंढनी है, अब तू बता कहा से स्टार्ट करे " नीतू अपने कपड़ो की चिंता हुई

"देखो उस दिन तुम आयी थी अपनी दीदी की साथ इसलिए तुम मुझे बताती चलना मैं एक एक करके पूरी मार्किट ले कर चलूँगा जहा तुमको लगे मैं बाइक उसी ओर घुमा दूंगा " समीर ने प्लान बताया
"हाँ ठीक है फिर चले "
"हाँ चलो "

समीर ने बाइक स्टार्ट की और नीतू उसके पीछे बैठ गयी, उसके हाथ में एक शॉपिंग बैग था जो उसने अपने और समीर के बीच में रख लिया था, समीर को भी इस बात से कोई अप्पत्ति नहीं थी इसलिए वो बिना कुछ बोले बाइक आगे बढ़ा दी,

एक एक करके समीर ने सेंट्रल मार्किट की एक एक दूकान नीतू को दिखा दी, लेकिन कोई भी दुकान वो नहीं थी जहा से नीतू ने वो सूट खरीदा था, दोनों को घूमते घूमते दो घंटे बीत चुके थे लेकिन दूकान नहीं मिली, समीर ने बाइक पार्क कर दी थी और दोनों अब पैदल ही ढूंढ रहे थे लेकिन कुछ पता नहीं चला, दोनों मार्केट घूम घूम कर थक चुके थे, ऊपर से गर्मी और धुप ने बुरा हाल कर दिया था, समय बीतने के साथ साथ मार्किट में भीड़ भी बढ़ती जा रही थी और हर बीतते समय के साथ नीतू की उम्मीद भी ख़तम हो रही थी, अब उसके पास दीदी को कॉल करने के अल्वा कोई चारा नहीं था।

"बस यार समीर, छोड़ मैं दीदी को कॉल करती हूँ, सुन लुंगी थोड़ा और क्या, अब और नहीं चला जा रहा "
"हाँ ठीक है, अब मुझे भी कोई और रास्ता समझ नहीं आरहा है, पूरी मार्किट तो हमने घूम ली अब कुछ नहीं बचा ढूंढने के लिए " समीर ने भी बेचारगी से कहा

नीतू ने अपनी जीन्स की जेब से अपना फ़ोन निकला, समीर देख रहा था की नीतू ने फ़ोन तो निकला है लेकिन कॉल करते हुए झिझक रही है, भला किसको अपनी बेइज़्ज़ती कराने में मज़ा आता है

"रुक एक मिनट, पहले कुछ खाते है फिर करना दीदी को फ़ोन " समीर ने नीतू को झिझकते देख कर रोका
"क्या खाएंगे बता " नीतू ने अपना फ़ोन वापस जेब में ठूंसते हुए पूछा

"तुम बताओ क्या खाओगी ?, मुझे कुछ खास भूक नहीं है लेकिन प्यास ज़रूर लग रही है "
"भूक तो मुझे भी नहीं है, मैं तो घर से खा कर आयी थी " नीतू ने बताया

"कोई नहीं फिर एक काम करते है यहाँ एक फेमस आइस क्रीम वाला है वहा से आइस क्रीम खाते है, वैसे भी मुझे आइस क्रीम बहुत पसंद है "
"हाँ आइस क्रीम ठीक है, गर्मी से भी रहत मिलेगी " नीतू ने भी हाँ में हाँ मिलाया

दोनों घूमते फिरते आइस क्रीम की शॉप पर पहुंच गए, समीर ने दोनों के लिए आर्डर किया और और अपनी आइस क्रीम ले कर एक सीट पर बैठ गए, समीर की आइस क्रीम एक कप में आयी थी और नीतू ने कोन वाली आइस क्रीम ली थी,

आइस क्रीम वाक़ई समीर को पसंद थी, नीतू के देखते देखते उसने अपनी आइस क्रीम चट कर दी थी, समीर आइस क्रीम ख़तम करके अब नीतू की ओर देख रहा था, नीतू बेचारी ने अभी तक तो बस एक दो बाईट ही ली थी,

"तो कुल मिलकर हम दोनों का यहाँ आना बेकार हुआ, समझ नहीं आ रहा ऐसी कौन सी दुकान से तुमने वो सूट खरीदा था "
"हाँ यार, मैंने बेकार में ही अपने दो दिन बर्बाद किये और आज तुझे भी घसीट लिया"

"हुऊ हूह्ह वो अलग बात है, लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है की एक एक शॉप देखने के बाद भी हमें वो शॉप नहीं मिली "
"शॉप तो छोड़, मार्किट ही नहीं मिली, मार्किट तो मिलती वो वाली "

"क्या? एक मिनट, क्या कहा तुमने की ये वो मार्किट नहीं है " समीर ने हैरत से पूछा
"हाँ तो, ना वो शॉप है ना वो मार्किट है "

"शॉप गयी भाड़ में, बस मुझे ये बताओ की ये वो मार्किट है या नहीं, जहा से तुमने शॉपिंग की थी ?"
"अरे शॉपिंग यहाँ से भी की थी, लेकिन मेरा वाला सूट इस मार्किट से नहीं लिया था"

"तो फिर किस मार्किट से लिया था ?" समीर ने पूछा
"लाजपत नगर, सेंट्रल मार्किट से " नीतू का जवाब था

"हम दोनों इस टाइम सेंट्रल मार्किट लाजपत नगर में ही बैठे है, और तुम्हारे हिसाब से ये वो मार्किट नहीं है "
"हाँ यही तो समझ नहीं आरहा है यार, वो लाजपत नगर में ही थी मार्किट लेकिन वो थोड़ी अलग टाइप की मार्किट थी " नीतू ने समीर को समझने की कोशिश की

"एक मिनट, कही तुम लाजपत राइ मार्किट तो नहीं चली गयी थी, वो लाल क़िला के सामने है, लेकिन वो इलेक्ट्रॉनिक की मार्किट है" समीर ने क्लियर करना चाहा
" नहीं यार वो लाला क़िला वाला एरिया नहीं था ये तो पक्का था, वो लाजपत नगर ही था "

"अच्छा तुमको कैसे पता लगा था की वो लाजपत नगर था, मेरा मतलब किसने बताया था ?"
"किसी ने नहीं बताया, मैंने स्लिप पर पढ़ा था जो उस अंकल ने दी थी"

"और उस स्लिप पर क्या लिखा था ?" समीर ने और जानना चाहा
"बस लाजपत नगर, दिल्ली और याद नहीं, बाकी भी याद होता तो फिर एड्रेस नहीं ढूँढ़ढ लेती उस शॉप का " नीतू अब थोड़ा चिढ़ने से लगी थी

"हाँ वो बात भी ठीक है, बस थोड़ा सा धयान देकर मुझे ये बताना की लाजपत नगर के आगे, पार्ट एक लिखा था या पार्ट दो "
"बस लाजपत नगर था, कोई पार्ट वार्ट नहीं था " नीतू ने जवाब दिया

"एक बार बहार उस शॉप का बोर्ड पढ़ो, देखो उस पर जो एड्रेस लिखा है, उसमे क्लियर लिखा है पार्ट दो, उस टाइप का कुछ" समीर ने फिर से अपने सवाल पर ज़ोर दिया
"नहीं यार ऐसा कुछ नहीं था यार, पक्का है उस स्लिप पर केवल लाजपत नगर था "

"बस तो फिर मोबाइल डालो जेब में, लगता है आज ये तुम्हारे जीतने का दिन है " समीर ने मुस्कुराते हुए जोशीले लहजे में कहा
"मतलब तुमको एड्रेस समझ आगया" नीतू ने हैरत से कहा

"तुम जल्दी से आइस क्रीम ख़तम करो डार्लिंग, फिर पता चल जायेगा " समीर के मुँह से निकला
"छोड़ आइस क्रीम, ये मेरे दांत में लग रही है" कहा कर नीतू आइस क्रीम टेबल पर रखने लगी

"उनहोऊ आइस भी कोई फेकने की चीज़ होती है, इधर दो मुझे" समीर ने आइस क्रीम का कोन नीतू के हाथ से लिया
"अरे ये झूठी है मेरी " नीतू समीर को अपनी झूठी आइस क्रीम खाते देख कर बोली

"तो क्या हुआ, हम तो खा लेते है झूठा" कहते हुए समीर ने जल्दी जल्दी पूरी आइस खा ली

फिर जल्दी से नीतू का हाथ पकड़कर कर लाया और नीतू को बाइक पर बिठा कर उड़ चला, तीन मिनट की ड्राइव पर वो एक मार्किट में बाइक लेकर जैसे ही घुसा, पीछे से नीतू उसकी पीठ पर एक धप लगा कर और चीख उठी

"समीर यू अरे ऐ जीनियस, यही है वो मार्किट " उसकी आवाज़ में एक्ससिटेमेंट में ऊँची हो गयी थी
"हाहाहा बस अब तुम अपने उस शॉप को ढूंढो जिसके पास तुम्हारा सूट है "

कुछ ही देर में नीतू को वो शॉप नज़र आगयी, समीर ने बाइक रोक दी, दोनों उतर कर शॉप के अंदर चले गए, नीतू का सूट रेडी था, दुकानदार ने नीतू का सूट पैक कर दिया और नीतू से स्लिप मांगी, स्लिप का सुन कर नीतू एक मिनट के लिए चुप हुई फिर समीर की ओर पलट कर बोली,

"समीर अंकल को स्लिप दे दो "
"स्लिप, कौन सी स्लिप ? मेरे पास तो नहीं है ?" समीर ने अचम्भे से कहा

"अरे वही स्लिप जो मैंने आपको घर से चलते टाइम दी थी, देखो आपने अपने वॉलेट में रखी होगी " नीतू ने पूरी कॉन्फिडेंस से कहा, उसका कॉन्फिडेंस देख कर तो एक बार खुद समीर भी चौंक गया
"नहीं है ये देखो, पता नहीं कहा गया " समीर ने अब नीतू का साथ देते हुए नाटक किया

"ओह्हो आप से एक काम ठीक से नहीं हो सकता" नीतू ने थोड़ा गुस्सा दिखते हुए कहा
"क्या हुआ बेटा ?"दुनकानदार ने नीतू को गुस्सा करते देख कर पूछा

"कुछ नहीं अंकल इनको मैंने आपकी स्लिप रखने के लिए दी थी, पता नहीं कहा खो दी इन्होने, ये हमेशा ऐसा ही करते है" नीतू ने शिकायती लहजे में कहा
"कोई बात नहीं बेटा हो जाता है, तुम ये सूट ले जाओ, मैंने तुम्हे पहचान लिया है उस दिन तुम अपनी दीदी के साथ आयी थी ना ?"

"जी अंकल, कोई बात नहीं वो स्लिप मैं ढूंढ कर भेज दूंगी आपको " नीतू ने भोलेपन से कहा
"कोई ज़रूरत नहीं बेटा, आप दोनों अच्छे परिवार के लग रहे हो इसलिए कोई दिक्कत नहीं है" कह कर उसने बैग नीतू को पकड़ा दिया

नीतू ने एक हाथ से बैग उठाया और दूसरे हाथ से समीर का हाथ अपने हाथो में लिया और मुस्कुराती हुई दुकान से बहार निकल गयी,
उस समय कोई उन्दोनो को देखता तो यहाँ समझता की वो दोनों पत्नी पत्नी शॉपिंग करके बाहर निकल रहे हो।

"बाहर निकल कर दोनों खिलखिला कर हंस पड़े, दोनों बहुत खुश थे, ना सिर्फ सूट मिलने की ख़ुशी थी बल्कि इस ख़ुशी में उन दोनों की अदाकारी ने चार चाँद लगा दिए थे, दोनों बहुत देर हॅसते रहे फिर मार्किट से बाहर निकल गए , बाहर निकल कर उसने नीतू का आगे का प्लान पूछा, नीतू अब सूट मिलने के बाद खुश भी थी और शांत भी, उसे घर जाने की कोई जल्दी नहीं थी इसलिए उसने समीर को बता दिया की वो शाम तक फ्री है

"तो बताओ क्या करे, खाना खाओगी या कही घूमने चलना है ?" समीर ने पूछा
"नहीं मुझ भूख नहीं है, बताया ना मैं घर से खाना खा कर आयी थी "

"तुमने ऐसा क्या खाया है जो अब तक भूख नहीं लगी " समीर ने हैरत से पूछा
"अरे हम पहाड़ी है, हम तो सुबह नाश्ते में भी भात खा लेते है " नीतू ने झेपते हुए कहा

"रोज़ नाश्ते में चावल?" नाश्ते में चावल कौन खाता है ?" समीर ने अचरज से कहा
"अरे हर रोज़ नहीं, कभी कभी मेरी इज्जा सुबह में भात और भट्ट की दाल बना देती है, जो मुझे भँगुल की चटनी के साथ बहुत अच्छी लगती है बस आज वो ही बना था इसलिए पेट भर के खा लिया " नीतू ने समझाया

"ओह्ह गुड, तुम कौन से पहाड़ की हो? मेरा मतलब हिमाचल या उत्तराखंड ? "
"हम कुमाउनी है " उसके शब्दों में एक गर्व सा था

"ओह्ह मतलब उत्तराखंड राइट ? समीर ने कन्फर्म किया
"हाँ, उत्तराखंड या उत्तरांचल जो मन आये कह दो, वैसे मुझे उत्तरांचल अच्छा लगता था बाद में सरकार ने बदल दिया "

"हम्म गुड, तो अब बताओ कहा चलना है? यही सारी बातें यही बाइक पर बैठे बैठे ही करोगी " समीर ने टोका
"जहा तेरा मन करे, मुझे तो कुछ पता नहीं है, तू ही तो जेम्स बांड है, अच्छा ये तो बता तुझे कैसे समझ आया की हम गलत मार्किट में है और इस मार्किट में आना है।

"ओह्ह कुछ खास नहीं, एक्चुअली ये मार्किट अमर कॉलोनी की कहलाती है, लेकिन एरिया लाजपत नगर का ही लगता है तो अड्रेस में सब लाजपत नगर लिखते है लेकिन पार्ट नहीं लिखते इसीलिए जैसे ही तुमने मुझे बताया की स्लिप पर ओनली लाजपत नगर है तब अचानक मुझे क्लिक किया की हम गलत मार्किट में है और जो सूट तुमने खरीदा है वो तुमने लाजपत नगर की सेंट्रल मार्किट से नहीं अमर कॉलोनी की मार्किट से खरीदा है। "

"वाओ, दिमाग खूब चलता है तेरा, थैंक यू यार, अगर तूने आज हेल्प नहीं की होती तो बेकार में दीदी की डांट सुननी पड़ती" नीतू ने समीर का शुक्रिया अदा किया
"कोई बात नहीं, कोई बड़ी बात भी नहीं थी " समीर ने लापरवाही से कहा

"बस एक बात और यार" नीतू ने झिझकते हुए कहा
"हाँ बोलो "

"बस यही की आज हमारे मिलने वाली बात तू अंकुश और तृषा से मत बताना, मैंने उनको नहीं बताय था क्यंकि मुझे लगा था की वो कुछ गलत ना सोंचे हमारे बारे में "
"हाहाहा जो अभी तुमने शॉप में किया उसे देख कर तो तृषा को हार्ट अटैक ही आजाता, नहीं मैं किसी से नहीं बात करूँगा इस बारे में, मैं भी तुमसे यही कहने वाला था अच्छा हुआ तुमने कह दिया "

"गुड, चल अब बता कहा चले" नीतू ने ठीक से बाइक पर बैठते हुए कहा
"यहाँ से पास में ही लोटस टेम्पल है वहा चले ?" समीर ने पूछा

"हाँ अच्छा रहेगा, मैंने देखा भी नहीं है, चल फिर वही चलते है "

समीर नीतू को बाइक पर बिठा कर लोटस टेम्पल ले गया, दोनों वहा शाम तक घूमते रहे फिर शाम होने से पहले समीर ने नीतू को बस स्टैंड पर ड्राप किया, वहा से नीतू अपने घर की बस ले कर अपने घर चली गयी और समीर बाइक दौड़ा कर अपने घर आगया।
 

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समीर ने घर आकर मोबाइल चेक किया, शुक्र था की सुनहरी की कोई कॉल नहीं आयी थी, सुनहरी अपने इंस्टिट्यूट जाते टाइम रोज़ उसे कॉल करती थी, डेली वो उसी की कॉल से उठता था, वो अपने घर से पैदल ही अपने इंस्टिट्यूट तक जाती थी और पुरे रास्ते समीर से बातें करती थी, इसी बहाने उसका रास्ता भी कट जाता था और समीर से बात भी हो जाती थी। वापसी के टाइम अगर अकेली होती थी तभी समीर को कॉल करती थी, उसने शाम का टाइम समीर के लिए रखा हुआ था, हर दिन उसकी माँ शाम के टाइम मंदिर जाती थी और पार्क में टहल भी लेती थी उस टाइम घर में वो अकेली होती थी बस वो उस टाइम का भरपूर फ़ायदा उठाती थी समीर के साथ बात करके। केवल संडे ही एक ऐसा दिन था जब उसकी बात समीर से नहीं हो पाती थी क्यूंकि उस दिन उसके पापा घर पर होते थे।

शाम में समीर को अंकुश मिला, वो दोनों रात का खाना अक्सर साथ ही खाते थे, खाने के टाइम समीर ने महसूस किया की अंकुश बहुत खुश है लेकिन समीर ने कुरेदा नहीं, उसे पता था आज नहीं तो कल अंकुश खुद ही सब बता देगा। रात में सोते टाइम नीतू का एसएमएस आया था उसे फिर से थैंक यू बोला था, सूट के लिए और उसे घुमाने के लिए भी। समीर ने रिप्लाई करना ठीक नहीं समझा और मैसेज पढ़ कर छोड़ दिया।

कुछ दिन वो सुनहरी और काम में बिजी रहा, कुछ अच्छे आर्डर मिले थे इसलिए उसने पूरा फोकस काम पर लगा दिया था, ये उसने सुनहरी को भी समझा दिया था की वो पैसे वाला नहीं है कामना उसकी ज़रूरत भी है और मजबूरी भी इसलिए वो अपने काम से समझौता नहीं कर सकता लेकिन काम के बाद का सारा टाइम सुनहरी का था। सुनहरी भी समझती थी और वो उसे काम के लिए प्रोत्साहित भी करती थी, उसे भी पता था की अगर समीर कमा नहीं पाया ढंग से तो उसके पापा किसी कीमत पर उसकी शादी समीर से नहीं करेंगे।

एक दिन क़िस्मत से समीर को नया आर्डर मिला द्वारका से, मयूर विहार से द्वारका दूर पड़ता था, समीर ने सुबह सुबह निकलने के प्लान बनाया और दस बजे तक वो द्वारका के लिए निकल गया, एक घंटे में वो द्वारका में था, वहा उसको मीटिंग में काफी टाइम लग गया, निकलते निकलते लगभग तीन बज गए लेकिन ख़ुशी की बात थी की उसका आर्डर फाइनल हो गया था, बाहर आकर उसने राहत की साँस ली, थक गया था बोल बोल कर और भूख भी लग रही थी, उसे एक छोटी सी बेकरी नज़र आयी वो अंदर चला गया अभी वो काउंटर पर खड़ा आर्डर देंगे की सोंच ही रहा था की अचानक पीछे से आवाज़ आयी

"यहाँ आइस क्रीम नहीं मिलेगी मिस्टर जीनियस "
समीर ने घूम कर देखा, पीछे की टेबल पर नीतू बैठी हाथ हिला रही थी उसके चेहरे पर शरारती मुस्कराहट थी

"तुम यहाँ ?" समीर ने हैरत से पूछा
"ये तो तुम बताओ " क्या मेरा पीछा कर रहे थे मिस्टर स्टाल्कर ? " उसने मुस्कान बिखेरते हुए कहा

"हाहाहा मैं तो नहीं शायद तुम मुझे स्टॉक कर रही हो" बोलता हुआ समीर उसकी टेबल पर आ पंहुचा
"तो बताओ तुम यहाँ क्या कर रही हो ?" उसे इस बार थोड़ा सीरियस हो कर पूछा

"कुछ नहीं अपनी एक फ्रैंड के साथ कुछ खाने आयी थी " उसने हाथ के इशारे से एक सांवली सी लड़की की ओर इशारा किया जो काउंटर पर खड़ी पेमेंट कर रही थी
"ओह्ह मुझे लगा तुम तृषा की साथ आयी हो " समीर ने मुस्कुराते हुए कहा

"हाहा नहीं तृषा ही मेरी इकलौता फ्रैंड नहीं है, और भी फ्रैंड्स है, इससे मिलो ये हिना है, मेरे साथ स्कूल में थी
"अह्ह्ह्ह, प्लेज़र तो मीट यू" उसने हिना से हैंडशेक करते हुए कहा

"मुझे भी" बोलते हुए हिना ने सवालिया नज़रो से नीतू की ओर देखा
"ओह्ह्ह ये समीर है" मिस्टर जीनियस, अगर कभी तुझे अर्जेंट में बैंक ड्राफ्ट बनवाना हो, कोई एड्रेस न मिल रहा हो या कोई जेम्स बांड टाइप का काम हो तो वो काम ये कर सकता है और मज़े की बात बिलकुल फ्री में और आइस क्रीम भी अपने पैसो से खिलता है" नीतू ने समीर को चिढ़ाते हुए कहा

"आह हिना तुम इसकी बातों में मत आओ ये तो कुछ भी बोलती रहती है, तुम बताओ क्या खाओगी ? मुझे भूख लगी है इसीलिए मैं यहाँ आया था " समीर ने बात बदली
"और हम तुमसे मिलने " नीतू आज मज़ाक के मूड में थी

"नहीं हम खा चुके, हम बस निकल ही रहे थे की आप आगये " हिना ने जल्दी से बात संभाली
"ओह्ह ओके, लेकिन ये अजीब लगेगा की मैं अकेला खाऊं और तुम दोनों ऐसे ही बैठी रहो, रुको मैं कुछ देखता हूँ" बोलकर समीर उठा गया

काउंटर पर जा कर समीर ने अपने लिए सैंडविच और और कुछ फ्राइज आर्डर की और तीन कोल्ड ड्रिंक की कैन्स ले कर टेबल पर आया और बातें करते हुए खाने लगा। वो तीनो भी खाते हुए बातें ही कर रहे थे की तभी समीर का फ़ोन बजा, फ़ोन तृषा का था, समीर ने फ़ोन नीतू की ओर कर दिया, नीतू ने फ़ौरन हाथ के इशारे से समीर को मना कर दिया तृषा को उनके बारे में कुछ भी बताने के लिए

"हेलो !" समीर ने फ़ोन उठाते हुए कहा
"हाँ समीर, मैं तृषा, कहा है तू ?"

"किसी काम से बाहर हूँ बताओ क्या बात है "
"ये बता आस्था कहा है ? मेरी बात करा उस से " उसने बड़े अजीब लेकिन आर्डर देने वाले लहजे में कहा

"मुझे क्या पता आस्था कहा है ?" समीर ने थोड़े रूखे स्वर में कहा, उसे तृषा के ऐसे पूछना अच्छा नहीं लगा था
"तुझे नहीं पता तो किसको होगा, वो तेरे से ही मिलने गयी थी और अभी तक घर नहीं लौटी और ना ही फ़ोन उठा रही है "

"अरे तो मुझे क्या पता, उसी से पूछो, और तुमसे किसने बोला की वो मुझसे मिलने आयी थी ?" समीर को ये बात सुन कर हैरत हुई थी
"उस दिन के बाद से तुम दोनों चुपके चुपके मिलते हो क्या मुझे नहीं पता, पर चलो वो तुम दोनों की लाइफ है, लेकिन उसको बोल की वो अपनी मम्मी से बात कर ले वो मेरा नाम लेकर घर से निकली है की मेरे साथ जा रही है, मैंने तो साफ़ मना कर दिया है की मेरा उस से कोई लेना देना नहीं है"

" फिर मेरा क्या लेना देना है उस से ? " ना मेरी उस से कोई बात होती है और ना मैं उस से कभी मिला अकेले इसलिए मुझे नहीं पता " गुस्से से बोल कर समीर ने फ़ोन कट कर दिया

"क्या हुआ? किस बारे में बात कर रही थी तृषा ?" नीतू ने पूछा
"पता नहीं क्या बकवास कर रही है ? बोल रही है की आस्था मेरे साथ है " समीर गुस्से में था

"कोई बात नहीं वो गलत बोल गयी, उसे आस्था नहीं निष्ठां बोलना चाहिए था " नीतू बोल कर हंस पड़ी
"अब ये निष्ठां कौन है ?" समीर ने अपने सैंडविच को घूरते हुए पूछा ?

"ए लो, पूरी रामायण सुना दी, और जनाब पूछ रहे है सीता कौन थी " हिना ने हॅसते हुए कहा
"अरे बुद्धू इंसान, नीतू का का नाम ही निष्ठां है निष्ठां चौहान" हिना ने उसे समझाया

"ओह्ह लेकिन इसने मुझे कभी बताया ही नहीं, चलो इसी बहाने असली नाम तो पता चला "
लेकिन अब ये आस्था का क्या मामला है ? क्या तुम्हे कुछ पता है " उसने नीतू से पूछा ?

"ये तो तुम बताओ तुमने आस्था को कहा छुपाया है मिस्टर किडनैपर, मैं तो तुमको हीरो समझी थी तुमतो विलन निकले " नीतू ने गोल गोल आँखे घूमते हुए कहा "

"चुप हो जाओ, मुझे बेकार में टेंशन हो रही है " समीर ने सीरियस होकर कहा
"टेंशन क्यों ले रहा है , मिल जाएगी, पता कर हो सकता है अंकुश के साथ होगी ?" नीतू ने पुरे कॉन्फिडेंस से कहा

"हाँ हो सकता है, सही दिमाग लगाया, रुक कॉल करता हूँ उसको " बोलकर समीर ने जल्दी से अपना फ़ोन निकल कर अंकुश को कॉल मिलाया, इतनी देर में हिना ने कुछ नीतू के कान में कुछ कहा और और उन दोनों को बाई बोल कर बेकरी से बाहर निकल गयी
"इसको क्या हुआ ? " समीर ने नीतू से पूछा

"दो दो का क्या करेगा, एक से ही काम चला ले" नीतू ने हॅसते हुए कहा
वो अपने घर गयी है उसको लेट हो रहा था " उसने असली बात बताई

बहुत देर घंटी जाने के बाद उधर से अंकुश ने कॉल उठाया ?

"हाँ बोल क्या बात है " अंकुश ने छूटते ही पूछा
"आस्था तेरे साथ है क्या ? समीर ने भी अंकुश से सीधे सीधे पूछा

"किसने बताया तुझे" अंकुश की आवाज़ में हैरत थी
"तृषा का फ़ोन आया था, बोल रही थी की उसकी मम्मी टेंशन में है, और मेरा नाम ले कर घर से निकली है शायद, बोल उसको उसका फ़ोन स्विच ऑफ आ रहा है "

"ठीक है बोलता हूँ लेकिन अगर किसी को कॉल आये तेरे पास उन तीनो में से तो ये मत बताइयो को मेरे साथ थी मैं कोई बहाना बनवा दूंगा इस से " अंकुश ने समीर को समझाया
"वो तू देख बस मुझे टेंशन मत करवाइयो तू " समीर चिढ़ता हुआ बोला
वैसे तुम दोनों हो कहा जो इतना बवाल हो रहा है ? समीर ने फिर से पूछा

"तेरे फ्लैट में " बोल कर अंकुश ने फ़ोन कट कर दिया

समीर ने नीतू की ओर देखा वो एक कातिलाना मुस्कान लिए उसी की ओर देख रही थी जैसे कह रही हो देखा मेरी बात सही निकली ना "
 

blinkit

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सॉरी दोस्तों आप लोगो के इन बढ़िया replies का जवाब नहीं दे पा रहा हूँ, समय मिलते ही सब का रिप्लाई करूँगा, आप सब का बहुत धन्यवाद्
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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आस्था तो छुपी रुस्तम निकली। और बिल समीर के नाम का फाड़ दिया।

खैर, जैसा मैंने कहा कि सुनहरी के रहते तो कोई चांस नहीं दिख रहा नीतू का, फिर भी नियति एक कनेक्शन बना रही है दोनो के बीच।

बढ़िया अपडेट 👍
 

Premkumar65

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good update.
 
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